Kedarnath Singh केदारनाथ सिंह

केदारनाथ सिंह (७ जुलाई १९३२ – १९ मार्च २०१८), हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि व साहित्यकार थे। वे अज्ञेय द्वारा सम्पादित तीसरा सप्तक के कवि रहे। भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा उन्हें वर्ष २०१३ का ४९वां ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया था। केदारनाथ सिंह का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के चकिया गाँव में एक गौतम क्षत्रिय(राजपूत) परिवार में हुआ था। उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से १९५६ ई॰ में हिन्दी में एम॰ए॰ और १९६४ में पी-एच॰ डी॰ की उपाधि प्राप्त की। उनका निधन १९ मार्च २०१८ को दिल्ली में उपचार के दौरान हुआ। कुछ वक़्त पडरौना में हिंदी के प्रध्यापक रहे। उन्होंने जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में भारतीय भाषा केंद्र में बतौर आचार्य और अध्यक्ष काम किया था।
मुख्य कृतियाँ-कविता संग्रह : अभी बिल्कुल अभी (1960), जमीन पक रही है (1980), यहाँ से देखो (1983), बाघ (1996), (पुस्तक के रूप में), अकाल में सारस (1988), उत्तर कबीर और अन्य कविताएँ (1995), तालस्ताय और साइकिल (2005), सृष्टि पर पहरा (2014) ।
आलोचना : कल्पना और छायावाद, आधुनिक हिंदी कविता में बिंबविधान, मेरे समय के शब्द, मेरे साक्षात्कार।
संपादन : ताना-बाना (आधुनिक भारतीय कविता से एक चयन), समकालीन रूसी कविताएँ, कविता दशक, साखी (अनियतकालिक पत्रिका), शब्द (अनियतकालिक पत्रिका)।
पुरस्कार : वर्ष 2013 में उन्हें प्रतिष्ठित ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इस पुरस्कार से सम्मानित होने वाले वह हिन्दी के १०वें साहित्यकार थे। 1989 में उनकी कृति ‘अकाल में सारस’ को साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था। इसके अलावा उन्हें व्यास सम्मान, मध्य प्रदेश का मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, उत्तर प्रदेश का भारत-भारती सम्मान, बिहार का दिनकर सम्मान तथा केरल का कुमार आशान सम्मान मिला था।

हिन्दी कविताएँ : केदारनाथ सिंह

Hindi Poetry : Kedarnath Singh

  • अकाल में दूब
  • अकाल में सारस
  • अनागत
  • अड़ियल साँस
  • अँगूठे का निशान
  • अंधेरे पाख का चांद
  • आना
  • आँकुसपुर
  • एक छोटा सा अनुरोध
  • एक दिन हँसी-हँसी में
  • एक नये दिन के साथ
  • एक पारिवारिक प्रश्न
  • एक मुकुट की तरह
  • ओ मेरी उदास पृथ्वी
  • काली मिट्टी
  • कुछ और टुकड़े
  • कुछ टुकड़े
  • कुछ सूत्र जो एक किसान बाप ने बेटे को दिए
  • खर्राटे
  • खोल दूं यह आज का दिन
  • गर्मी में सूखते हुए कपड़े
  • घड़ी
  • घुलते हुए गलते हुए
  • चट्टान को तोड़ो वह सुन्दर हो जायेगी
  • छोटे शहर की एक दोपहर
  • जनहित का काम
  • जब वर्षा शुरू होती है
  • जड़ें
  • जाना
  • जाड़ों के शुरू में आलू
  • जूते
  • जे.एन.यू. में हिंदी
  • झरने लगे नीम के पत्ते बढ़ने लगी उदासी मन की
  • झरबेर
  • टूटा हुआ ट्रक
  • तलस्तोय और साइकिल
  • तुम आयीं
  • दृश्ययुग-1
  • दृश्ययुग-2
  • दाने
  • दिशा
  • दीपदान
  • दुपहरिया
  • दुश्मन
  • दूसरे शहर में
  • धीरे-धीरे हम
  • नए कवि का दुख
  • नए शहर में बरगद
  • नदी
  • न होने की गंध
  • निराला को याद करते हुए
  • नीम
  • पक्षी की वापसी
  • पानी में घिरे हुए लोग
  • पूँजी
  • पत्नी की अट्ठाइसवीं पुण्यतिथि पर
  • प्रो० वरयाम सिंह
  • प्रक्रिया
  • फलों में स्वाद की तरह
  • फ़र्क़ नहीं पड़ता
  • फसल
  • बंगाली बाबू
  • बढ़ई और चिड़िया
  • बनारस
  • बसन्त
  • बादल ओ!
  • बुनाई का गीत
  • बारिश
  • महानगर में कवि
  • मंच और मचान (लम्बी कविता)
  • मार्च की सुबह
  • मातृभाषा
  • माँझी का पुल
  • मुक्ति
  • मेरी भाषा के लोग
  • मैंने गंगा को देखा
  • यह अग्निकिरीटी मस्तक
  • यह पृथ्वी रहेगी
  • रक्त में खिला हुआ कमल
  • रात पिया पिछवारे
  • रास्ता
  • रोटी
  • लयभंग
  • लोककथा
  • वह
  • विद्रोह
  • शब्द
  • शहर में रात
  • शहरबदल
  • शाम बेच दी है
  • शारद प्रात
  • सन् ४७ को याद करते हुए
  • सार्त्र की क़ब्र पर
  • सुई और तागे के बीच में
  • सूर्य
  • सूर्यास्त के बाद एक अँधेरी बस्ती से गुजरते हुए
  • सृष्टि पर पहरा (कविता)
  • हक दो
  • हाथ
  • होंठ