बाघ : केदारनाथ सिंह

Bagh : Kedarnath Singh


आमुख

बिंब नहीं प्रतीक नहीं तार नहीं हरकारा नहीं मैं ही कहूँगा क्योंकि मैं ही सिर्फ़ मैं ही जानता हूँ मेरी पीठ पर मेरे समय के पंजो के कितने निशान हैं कि कितने अभिन्न हैं मेरे समय के पंजे मेरे नाख़ूनों की चमक से कि मेरी आत्मा में जो मेरी ख़ुशी है असल में वही है मेरे घुटनों में दर्द तलवों में जो जलन मस्तिष्क में वही विचारों की धमक कि इस समय मेरी जिह्वा पर जो एक विराट् झूठ है वही है--वही है मेरी सदी का सब से बड़ा सच ! यह लो मेरा हाथ इसे तुम्हें देता हूँ और अपने पास रखता हूँ अपने होठों की थरथराहट..... एक कवि को और क्या चाहिए !

आज सुबह के अख़बार में

आज सुबह के अख़बार में एक छोटी-सी ख़बर थी कि पिछली रात शहर में आया था बाघ ! किसी ने उसे देखा नहीं अँधेरे में सुनी नहीं किसी ने उसके चलने की आवाज़ गिरी नहीं थी किसी भी सड़क पर ख़ून की छोटी-सी एक बूँद भी पर सबको विश्वास है कि सुबह के अख़बार मनें छपी हुई ख़बर ग़लत नहीं हो सकती कि ज़रूर-ज़रूर पिछली रात शहर में आया था बाघ सचाई यह है कि हम शक नहीं कर सकते बाघ के आने पर मौसम जैसा है और हवा जैसी बह रही है उसमें कभी भी और कहीं भी आ सकता है बाघ पर सवल यह है कि आख़िर इतने दिनों बाद इस इतने बड़े शहर में क्यों आया था बाघ ? क्या वह भूखा था ? बीमार था ? क्या शहर के बारे में बदल गए हैं उसके विचार ? यह कितना अजीब है कि वह आया उसने पूरे शहर को एक गहरे तिरस्कार और घृणा से देखा और जो चीज़ जहाँ थी उसे वहीं छोड़कर चुप और विरक्त चला गया बहार ! सुबह की धूप में अपनी-अपनी चौखट पर सब चुप हैं पर मैं सुन रहा हूँ कि सब बोल रहे हैं पैरों से पूछ रहे हैं जूते गरदन से पूछ रहे हैं बाल नखों से पूछ रहे हैं कंधे बदन से पूछ रही है खाल कि कब आएगा फिर कब आएगा बाघ ?

कथाओं से भरे इस देश में

कथाओं से भरे इस देश में मैं भी एक कथा हूँ एक कथा है बाघ भी इसलिए कई बार जब उसे छिपने को नहीं मिलती कोई ठीक-ठाक जगह तो वह धीरे से उठता है और जाकर बैठ जाता है किसी कथा की ओट में फिर चाहे जितना ढूँढ़ो चाहे छान डालो जंगल की पत्ती-पत्ती वह कहीं मिलता ही नहीं है बेचारा भैंसा साँझ से सुबह तक चुपचाप बँधा रहता है एक पतली-सी जल की रस्सी के सहारे और बाघ है कि उसे प्यास लगती ही नहीं कि वह आता ही नहीं है कई कई दिनों तक जल में छूटू हुई अपनी लंबी शानदार परछाईं को देखने और जब राजा आता है और जंगल में पड़ता है हाँका और तान ली जाती हैं सारी बँदूकें उस तरफ़ जिधर हो सकता है बाघ तो यह सचाई है कि उस समय बाघ यहाँ होता है न वहाँ वह अपने शिकार का ख़ून पी चुकने के बाद आराम से बैठा होता है किसी कथा की ओट में !

इस विशाल देश के

इस विशाल देश के धुर उत्तर में एक छोटा-सा खँडहर है किसी प्राचीन नगर का जहाँ उसके वैभव के दिनों में कभी-कभी आते थे बुद्ध कभी-कभी आ जाता था बाघ भी दोनों अलग-अलग आते थे अगर बुद्ध आते थे पूरब से तो बाघ क्या कभी वह पश्चिम से आ जाता था कभी किसी ऐसी गुमनाम दिशा से जिसका किसी को आभास तक नहीं होता था पर कभी-कभी दोनों का हो जाता था सामना फिर बाघ आँख उठा देखता था बुद्ध को और बुद्ध सिर झुका बढ़ जाते थे आगे इस तरह चलता रहा महान जीवन उस छोटे से नगर का बुद्ध की करुणा और बाघ के आतंक की एक-दूसरे को काटती हुई दोहरी छाया में वहाँ लोगों का ख़याल था कि बुद्ध समझते हैं बाघ की भाषा पर बेचारे बाघ के लिए बुद्ध की पाली घास की तरह सुन्दर थी और एकदम अखाद्य इस तरह दोनों के बीच एक अजब-सा रिश्ता था जहाँ एक ओर भूख ही भूख थी दूसरी ओर करुणा ही करुणा और दोनों के बीच कोई पुल नहीं था पर कभी-कभी रातों में जब हिमालय की चोटियों पर गिरती थी बर्फ़ और नगर में चलती थीं तेज़ हवाएँ तो नगर-वासी सोचते थे- इसी झोंके में कहीं सिहरते होंगे बुद्ध और कितना अजब है कि इसी झोंके में कहीं हिलता होगा बाघ भी !

एक सुन्दर और विशाल ट्रैक्टर

एक सुन्दर और विशाल ट्रैक्टर वहाँ खेत में खड़ा था दिन-भर चलने के बाद वह इतना थक चुका था कि इस समय अपनी परछाई की माप से छोटा था न बड़ा वह सिर्फ़ वहाँ खड़ा था डूबते हुए सूर्य की लाल-लाल किरणें एक लम्बे बबूल के काँटों से छन कर सीधे उसके इंजन पर पड़ रही थीं और बाघ चूँकि कहीं भी हो सकता है इसलिए उस समय वह एक गन्ने के खेत में था और यह सब कुछ देख रहा था जब उससे रहा न गया तो वह वहीं से दहाड़ा- "भई, वाह अद्भुत!' उसे ट्रैक्टर एक विराट दाने की तरह लगा हराई में पड़ा हुआ एक पुख्ता लाल दमकता हुआ दाना और बाघ ने सोचा अब मज़ा आयेगा- क्योंकि अब जैसा कि होता है एक बुढ़िया आयेगी- जो दाने को उठा कर रख लेगी झोली में ले जायेगी घर और डाल लेगी अपनी अँधेरी खुदबुदाती हुई बटुली में फिर उसने एक दबी हुई ईर्ष्या से नीचे से ऊपर तक गौर से देखा समूचे ट्रैक्टर को और खुद-ब-खुद एक बुढ़िया की बटुली में पकने की इच्छा से हो गया लाल !

ये आदमी लोग

'ये आदमी लोग इतने चुप क्यों रहते हैं आजकल?'- एक दिन बाघ ने लोमड़ी से पूछा लोमड़ी की समझ में कुछ नहीं आया पर उसने समर्थन में सिर हिलाया और एकटक देखती रही बाघ के जबड़ों को जिनसे अब भी ताज़ा ख़ून की गन्ध आ रही थी फिर कुछ देर बाद कुछ सोचते हुए बोली- 'कोई दुख होगा उन्हें' "कैसा दुख ?" बाघ ने तड़प कर पूछा 'यह मैं नहीं जानती पर दुख का क्या वह हो ही जाता है कैसे भी' लोमड़ी ने उत्तर दिया 'हो सकता है उन्हें कोई काँटा गड़ा हो!' बाघ ने पूछा 'हो सकता है पर हो सकता है आदमी ही गड़ गया हो काँटे को' लोमड़ी ने धीरे से कहा अबकी बाघ की समझ में कुछ नहीं आया पर उसने समर्थन में उसी तरह सिर हिलाया फिर धीरे से पूछा- 'क्या आदमी लोग पानी पीते हैं?' 'पीते हैं' - लोमड़ी ने कहा- 'पर वे हमारी तरह सिर्फ़ सुबह-शाम नहीं पीते, दिन भर में जितनी बार चाहा उतनी बार पीते हैं' 'पर इतना पानी क्यों पीते हैं आदमी लोग?" बाघ ने आश्चर्य से पूछा 'वही दुख- मैंने कहा न!' लोमड़ी ने उत्तर दिया इस बार फिर बाघ की समझ में कुछ नहीं आया पर वह देर तक सिर झुकाये उसी तरह सोचता रहा यह 'दुख' एक ऐसा शब्द था जिसके सामने बाघ बिलकुल निरुपाय था ।

एक जलती दोपहरी में

एक जलती दोपहरी में बाघ ने देखा एक अद्भुत दृश्य उसने देखा कि एक विशाल वटवृक्ष के नीचे एक पक्षी और मनुष्य अपने डैने और कुल्हाड़ी अलग बग़ल रख कर निर्भय सुस्ता रहे हैं पहले वह गुर्राया फिर हो गया चुप क्योंकि उसने सुना वह बूढ़ा वटवृक्ष आदमी के कानों के पास झुक कर धीरे-धीरे गा रहा था एक बहुत पुराना गीत जो शायद किसी राजा के बारे में था जिसकी रानी जंगल में खो गयी थी फिर बाघ हिला न गुर्राया बस उसी तरफ़ मुँह किये देर तक खड़ा रहा मुग्ध अवाक !

मैं एक स्त्री को जानता हूँ

मैं एक स्त्री को जानता हूँ जो एक छोटे से शहर में रहती थी उसके पास ढेरों कहानियाँ थीं बाघ के बारे में और नदियों के बारे में और उन बहुत-से शहरों के बारे में जिनके नाम किताबों में नहीं कहीं मिलते उसका विश्वास था कि बाघ एक जादू है और इतना विकट कि अँधेरे में नाम लो तो हो जायेगा प्रकट! उसका ख़याल था कि यह जो प्यार है यह जो हम करते हैं एक-दूसरे से या फिर नहीं करते यह भी एक बाघ है और इतना क़रीब कि ध्यान से सुनो तो तुम अपनी छाती में सुन सकते हो उसके भारी पंजों के चलने की आवाज़

  • मुख्य पृष्ठ : केदारनाथ सिंह - हिंदी कविताएँ
  • मुख्य पृष्ठ : केदारनाथ सिंह निबंध और अन्य गद्य कृतियां
  • मुख्य पृष्ठ : हिन्दी कविता वेबसाइट (hindi-kavita.com)