मतदान केन्द्र पर झपकी : केदारनाथ सिंह

Matdan Kendra Par Jhapaki : Kedarnath Singh


मतदान केन्द्र पर झपकी

अबकी वोट देने पहुँचा तो अचानक पता चला मतदाता सूची में मेरा नाम ही नहीं है किसी से कुछ पूछें कि मेरे भीतर से आवाज़ आई- उजबक की तरह ताकते क्या हो न सही मतदाता सूची में उस विशाल सूची में तो हो ही जिसमें वे सारे नाम हैं जो छूट जाते हैं बाहर बाहर निकला तो निगाह पड़ी सामने खड़े पेड़ पर सोचा- वह भी तो नागरिक है इसी मिट्टी का और देखो न मरजीवे को खड़ा है कैसा मस्त मलंग ! मैं पेड़ के पास गया और उसकी छाँह में बैठे-बैठे आ गई झपकी देखा - पेड़ के नेतृत्व में जा रहे हैं बहुत पेड़ और लोग जिसमें शामिल हैं- बड़ पाकड़ गूलर गंभार मसान काली का दमकता सिन्दूर चला जा रहा था आगे-आगे कि सहसा एक पत्ती के गिरने का धमाका हुआ और टूट गई नींद मैंने देखा अब मेरी जेब में मेरा अनदिया वोट है - एक नागरिक का अन्तिम हथियार- मैंने खुद से कहा अब घर चलो केदार और खोजो इस व्यर्थ में ना कोई अर्थ।

पानी

मैं घोषित करता हूँ कि पानी मेरा धर्म है आग मेरा वेदांत हवा से मैंने दीक्षा ली है घास-पात मेरे सहपाठी रास्ता मेरा देवता है मकई मेरा कल्पवृक्ष भागड़नाला मेरी गंगा इस तरह यह वृद्ध शिशु दुनिया के चौराहे पर खड़ा है चंगा ।

बकरी और गांधी

वह एक अजीब जीव है देती ही देती है। माँगती कुछ नहीं चीर दो फाड़ दो कुछ नहीं कुट्टी-कुट्टी कर दो उसके दुधमुंहे बच्चे कहती कुछ हीं बस ताकती रहती है बकरी और गांधी का यह उदात्त रूपक चाहे जितना उदात्त हो ऐसे नहीं चलेगा कुछ करो कुछ तो करो मेरे लोगो, छूकर देखो मेरी ठुड्डी मेरा ललाट अगर दे सको तो बकरी को दे दो एक सुबह एक शाम एक भरा हुआ पानी का जाम दे दो उसे वह जी जाएगी गांधी जी जाएँगे दुनिया जी जाएगी।

फूल हँसेंगे और गिर पड़ेंगे

मेरा होना सबका होना है पर मेरा न होना सिर्फ़ मेरा होगा सारे दिन भर जाएँगे मेरे न होने से लबालब फूल हँसेंगे और गिर पड़ेंगे मेरे हाथ से किसी बीमार के सिरहाने धूल उड़ेगी दुनिया में बिना घर बिना पते के बिना वीसा बिना पासपोर्ट के चलता रहेगा ब्रह्मांड में आत्माओं का कारोबार सबकी करेंसी हो जाएगी लय हवा की करेंसी में और किसी डाल पर बैठा एक परिन्दा गाएगा मीर का एक मिसरा- 'मैं और यार और मेरा कारोबार और !'

माचिस लाना भूल न जाना

उठो कि धूप हो गई ठंडी तुम्हें बुलाती सब्जी मंडी सुनो कि क्या कहती है 'चिड़िया' कल पत्नी का व्रत है पिड़िया* देर करो मत, ले लो थैला आसमान हो चला धुमैला हवा अगर कम है साइकिल में रखो भरोसा अपने दिल में बिना हवा के देश की साइकिल चली जा रही - क्या है मुश्किल पहुँचा दे जो रस्ता-चुन लो पर घर की यह बात भी सुन लो दुनिया को है अगर बचाना माचिस लाना भूल न जाना। *पूर्वी उत्तर प्रदेश में स्त्रियों का एक त्योहार

करोड़ों साल पुरानी

मेरे मित्र असंख्य हैं और शत्रु कोई नहीं पर सुनो मेरे ज्ञात-अज्ञात अरबों-खरबों ब्रह्मांड-भर मित्रो - यह ब्रह्मांड करोड़ों साल पुरानी एक जर्जर बैलगाड़ी है जिसकी धुरी को मर मत की ज़रूरत है!

एक इन्सान

उन्हें यह दुनिया पसन्द नहीं थी ये सड़कें चौराहे रेल का धुआँ ये आदमियों के नाम उनसे धुएँ की तरह निकलती उपाधियाँ ये बी. ए. एम.ए. ये स्कूल-कॉलेज उन्हें कुछ भी कुछ भी पसन्द नहीं था सारे ज़हर को पी लिया था उन्होंने डॉक्टर की दी हुई दवाई समझकर एक अजब-सी हँसी के दो टूटे हुए दाँतों के बीच दबी थी एक विकट अँधेरा अहसास था वह जिसे हमा-शुमा उनकी हँसी समझते थे उन्हें सारे महाकाव्यों और नायकों के विरुद्ध एक काला भैंसा ज़्यादा ज़रूरी लगता था जो रौंद सकता था सारे बाज़ार को लोकतंत्र की विशाल इमारत में उनकी आँखों ने देख लिया था एक यहाँ छेद एक ऐसे अनफिट इन्सान थे वे कि अँट नहीं सकते थे किसी कहानी में सो सारी दुनिया उनको दिखती थी पानी में।

कालजयी

कहना चाहता था बहुत पहले पर अब जबकि क़लम मेरे हाथ में है कह दूँ- जो लिखकर फाड़ दी जाती हैं कालजयी होती हैं। वही कविताएँ।

सज्जनता

यह जीवन खोई हुई चीज़ों का एक अथाह संग्रहालय है जिसका दरवाज़ा खोलते मुझे डर लगता है मुझे साँप से डर नहीं लगता अँधेरे से डर नहीं लगता काँटों से बुझती लालटेन से डर नहीं लगता पर सज्जनो, मुझे क्षमा मुझे सज्जनता से डर लगता है!

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