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Poems on Holi/Hori/Phag
होली पर कविताएँ
नज़ीर अकबराबादी
हुआ जो आके निशाँ आश्कार होली का
बुतों के ज़र्द पैराहन में इत्र चम्पा जब महका
बजा लो तब्लो तरब इस्तमाल होली का
होली पिचकारी
जब फागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की
होली की बहार
जब खेली होली नंद ललन
क़ातिल जो मेरा ओढ़े इक सुर्ख़ शाल आया
फिर आन के इश्रत का मचा ढंग ज़मी पर
मियां तू हमसे न रख कुछ गुबार होली में
जुदा न हमसे हो ऐ ख़ुश जमाल होली में
मिलने का तेरे रखते हैं हम ध्यान इधर देख
आ झमके ऐशो-तरब क्या क्या, जब हुश्न दिखाया होली ने
आलम में फिर आई तरब उनवान से होली
होली की बहार आई फ़रहत की खिलीं कलियां
जब आई होली रंग भरी
होली की रंग फ़िशानी से है रंग यह कुछ पैराहन का
सनम तू हमसे न हो बदगुमान होली में
होली हुई नुमायां सौ फ़रहतें सभलियां
जो ज़र्द जोड़े से ऐ यार! तू खेले होली
उनकी होली तो है निराली जो हैं मांग भरी
अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
होली/फाग पर कविताएं
भारतेंदु हरिश्चंद्र
होली
गले मुझको लगा लो ऐ दिलदार होली में
बसंत होली
अमीर खुसरो
दैया री मोहे भिजोया री
आज रंग है ऐ माँ रंग है री
सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
केशर की, कलि की पिचकारी
खेलूंगी कभी न होली
ख़ून की होली जो खेली
शाह शरफ़
होरी
भक्त सूरदास जी
चिरजीयो होरी को रसिया चिरजीयो
मैथिलीशरण गुप्त
होली
होली-होली-होली
दुष्यंत कुमार
होली की ठिठोली
हरिवंशराय बच्चन
होली
विश्व मनाएगा कल होली
खेल चुके हम फाग समय से
जयशंकर प्रसाद
होली की रात
संत मीरा बाई
फागुन के दिन चार होली खेल मना रे
होरी खेलत हैं गिरधारी
होरी खेलनकू आई राधा प्यारी
होली पिया बिण म्हाणे णा भावाँ
होली पिया बिन लागाँ री खारी
चन्द्रसखी
आज बिरज में होरी रे रसिया
बाबा नन्द के द्वार मची होरी
रंग में होरी कैसे खेलूँ
होली खेलन आया श्याम
म्हारे होरी को त्यौहार
लाल रसमातो खेलै होरी
छैला ये आज रंग में बोरो री
तेरी होरी खेलन में टोना
इक चंचल नारी अटा चढ़के
चहुँ दिसि नदिया रंग सों भरी हो
मेरे नैनन में डारयो है गुलाल
घासीराम
रंग में रंग दई बांह पकर के
कान्हा पिचकारी मत मार
फाग खेलन बरसाने आये हैं
श्यामा श्याम सलोनी सूरत को सिंगार बसंती है
त्रिलोक सिंह ठकुरेला
होली
कामना के थाल
दीपक सिंह
होली-ऐ फागुन आ रही हो आना
अवध की होली
गोलेन्द्र पटेल
होली
शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'
होली-मरहठा माधवी छंद
ब्रजभाषा लोकगीत होरी/होली
अरी होली में हो गया झगड़ा
अरी पकड़ौ री ब्रजनार
आई-आई रे होली
और महीनों में बरसे–न-बरसे
कन्हैया घर चलो गुँइया
कान्हा तुझे ही बुलाय गई
कान्हा पिचकारी मत मार
कान्हा पिचकारी मत मारे
खेलें मसाने में होरी दिगम्बर
चैत महिनवा पिया परदेस में
जमुना तट श्याम खेलत होरी
टेसू रंग राम खेलत होरी
दिल की लगी बुझा ले
ननदी के बिरन होली आई
नन्द के द्वार मची होली
नेक आगे आ श्याम
नैनन से मोहे गारी दई
बरसाने में सामरे की होरी रे
बरसै केसरिया रंग आज
ब्रज में हरी फाग मचायो
बसन्ती रंगवाय दूँगी
भीजेगी मोरी चुनरी
मत मारे दृगन की चोट
मति मारौ श्याम पिचकारी
मेरा खो गया बाजूबन्द
मोरी अँखियाँ कर दईं लाल
यशुदा तेरे री लाला ने
रसिया को नार बनाओ
रंग बाँको साँवरिया डार गयो
रंगरेजवा बलम जी का यार
रंगीलो रंग डार गयो री
होरी कौ खिलार
होरी खेली न जाय
होरी खेलें रघुबीरा अवध में
होरी मैं खेलूँगी उन संग
होली खेलन को आए
होली खेलन पधारे नन्दलाल
होली खेल रहे नन्दलाल
होली खेल रहे बाँके बिहारी
होली खेल रहे शिवशंकर
होली मोसे खेलो न श्याम बिहारी