हिन्दी कविताएँ : त्रिलोक सिंह ठकुरेला

Hindi Poetry : Trilok Singh Thakurela


1. बिटिया (गीत)

बिटिया ! जरा संभल कर जाना, लोग छिपाये रहते खंजर । गाँव, नगर अब नहीं सुरक्षित दोनों आग उगलते, कहीं कहीं तेज़ाब बरसता, नाग कहीं पर पलते, शेष नहीं अब गंध प्रेम की, भावों की माटी है बंजर । युवा वृक्ष कांटे वाले हैं करते हैं मनभाया, ठूंठ हो गए विटप पुराने मिले न शीतल छाया, बैरिन धूप जलाती सपने, कब सोचा था ऐसा मंजर । तोड़ चुकीं दम कई दामिनी भरी भीड़ के आगे, मुन्नी, गुड़िया हुईं लापता, परिजन हुए अभागे, हारी पुलिस न वे मिल पायीं, मिला न अब तक उनका पंजर ।

2. करघा व्यर्थ हुआ (गीत)

करघा व्यर्थ हुआ कबीर ने बुनना छोड़ दिया । काशी में नंगों का बहुमत, अब चादर की किसे जरूरत, सिर धुन रहे कबीर रूई का धुनना छोड़ दिया । धुंध भरे दिन काली रातें, पहले जैसी रहीं न बातें, लोग काँच पर मोहित मोती चुनना छोड़ दिया । तन मन थका गाँव घर जाकर, किसे सुनायें ढाई आखर, लोग बुत हुए सच्ची बातें सुनना छोड़ दिया ।

3. हरसिंगार रखो (गीत)

मन के द्वारे पर खुशियों के हरसिंगार रखो. जीवन की ऋतुएँ बदलेंगी, दिन फिर जायेंगे, और अचानक आतप वाले मौसम आयेंगे, संबंधों की इस गठरी में थोडा प्यार रखो. सरल नहीं जीवन का यह पथ, मिलकर काटेंगे, हम अपना पाथेय और सुख, दुःख सब बाँटेंगे, लौटा देना प्यार फिर कभी, अभी उधार रखो.

4. मिलकर पढ़ें वे मंत्र (गीत)

आइये, मिलकर पढ़ें वे मंत्र । जो जगाएं प्यार मन में, घोल दें खुशबू पवन में, खुशी भर दें सर्वजन में, कहीं भी जीवन न हो ज्यों यंत्र । स्वर्ग सा हर गाँव घर हो, सम्पदा-पूरित शहर हो, किसी को किंचित न डर हो, हर तरह मजबूत हो हर तंत्र । छंद सुख के, गुनगुनायें, स्वप्न को साकार पायें, आइये, वह जग बनायें, हो जहाँ सम्मानमय जनतंत्र ।

5. खुशियों के गन्धर्व (गीत)

खुशियों के गन्धर्व द्वार द्वार नाचे । प्राची से झाँक उठे किरणों के दल, नीड़ों में चहक उठे आशा के पल, मन ने उड़ान भरी स्वप्न हुए साँचे । फूल और कलियों से करके अनुबंध, शीतल बयार झूम बाँट रही गंध, पगलाये भ्रमरों ने प्रेम-ग्रंथ बाँचे ।

6. देश

हरित धरती, थिरकतीं नदियाँ, हवा के मदभरे सन्देश । सिर्फ तुम भूखंड की सीमा नहीं हो देश ।। भावनाओं, संस्कृति के प्राण हो, जीवन कथा हो, मनुजता के अमित सुख, तुम अनकही अंतर्व्यथा हो, प्रेम, करुणा, त्याग, ममता, गुणों से परिपूर्ण हो तपवेश । सिर्फ तुम भूखंड की सीमा नहीं हो देश ।। पर्वतों की श्रंखला हो, सुनहरी पूरव दिशा हो, इंद्रधनुषी स्वप्न की सुखदायिनी मधुमय निशा हो, गंध, कलरव, खिलखिलाहट, प्यार एवं स्वर्ग सा परिवेश । सिर्फ तुम भूखंड की सीमा नहीं हो देश ।। तुम्हीं से यह तन, तुम्हीं से प्राण, यह जीवन, मुझ अकिंचन पर तुम्हारी ही कृपा का धन, मधुरता, मधुहास, साहस, और जीवन -गति तुम्हीं देवेश । सिर्फ तुम भूखंड की सीमा नहीं हो देश ।।

7. देश हमारा

सुखद, मनोरम, सबसे प्यारा । हरा, भरा यह देश हमारा ।। नई सुबह ले सूरज आता, धरती पर सोना बरसाता, खग-कुल गीत खुशी के गाता, बहती सुख की अविरल धारा । हरा, भरा यह देश हमारा ।। बहती है पुरवाई प्यारी, खिल जाती फूलों की क्यारी, तितली बनती राजदुलारी, भ्रमर सिखाते भाईचारा । हरा, भरा यह देश हमारा ।। हिम के शिखर चमकते रहते, नदियाँ बहतीं, झरने बहते, 'चलते रहो' सभी से कहते, सबकी ही आँखों का तारा । हरा, भरा यह देश हमारा ।। इसकी प्यारी छटा अपरिमित, नये नये सपने सजते नित, सब मिलकर चाहें सबका हित, यह खुशियों का आँगन सारा । हरा, भरा यह देश हमारा ।।

8. रोशनी की ही विजय हो

दीप-मालाओ ! तुम्हारी रोशनी की ही विजय हो । छा गया है जगत में तम सघन होकर, जी रहे हैं मनुज जीवन-अर्थ खोकर, कालिमा का फैलता अस्तित्व क्षय हो । रात के काले अँधेरे छल लिए, बस तुम्हीं घिरती अमा का हल लिए, जिंदगी हर पल सरस, सुखमय, अभय हो । दिनकरों सम दर्प-खण्डित रात कर दो, असत-रिपु को किरण-पुंजो ! मात कर दो, फिर उषा का आगमन उल्लासमय हो । दीप - मालाओ ! तुम्हारी रोशनी की ही विजय हो।

9. कामना के थाल

आ गया फागुन सजाकर कामना के थाल । चपल नयनों ने लुटाया फिर नया अनुराग, चाह की नव-कोंपलों से खिल उठा मन-बाग़, इंद्रधनुषी आवरण में मुग्ध हैं दिक्पाल । धरा के हर पोर को छूने लगी मधु गंध, शिथिलता के पक्ष में हैं लाज के अनुबंध, बांधते आकर्षणों में ये प्रकृति के जाल । पोटली में बांधकर नव- कल्पना का धन, प्रेम की पगडंडियों पर दौड़ता है मन, बांटता है स्वप्न सुन्दर यह बसंती काल ।

10. जय हिंदी, जय भारती

सरल, सरस भावों की धारा, जय हिन्दी, जय भारती । शब्द शब्द में अपनापन है, वाक्य भरे हैं प्यार से, सबको ही मोहित कर लेती हिन्दी निज व्यवहार से, सदा बढ़ाती भाई-चारा, जय हिंदी, जय भारती । नैतिक मूल्य सिखाती रहती, दीप जलाती ज्ञान के, जन -गण -मन में द्वार खोलती नूतनतम विज्ञान के, नव-प्रकाश का नूतन तारा, जय हिन्दी, जय भारती । देवनागरी, भर देती है संस्कृति की नव-गंध से, इन्द्रधनुष से रंग बिखराती नव-रस, नव -अनुबंध से, विश्व-ग्राम बनता जग सारा, जय हिन्दी, जय भारती ।

11. आओ, मिलकर दीप जलाएँ

आओ, मिलकर दीप जलाएँ। अंधकार को दूर भगाएँ ।। नन्हे नन्हे दीप हमारे क्या सूरज से कुछ कम होंगे, सारी अड़चन मिट जायेंगी एक साथ जब हम सब होंगे, आओ, साहस से भर जाएँ। आओ, मिलकर दीप जलाएँ। हमसे कभी नहीं जीतेगी अंधकार की काली सत्ता, यदि हम सभी ठान लें मन में हम ही जीतेंगे अलबत्ता, चलो, जीत के पर्व मनाएँ । आओ, मिलकर दीप जलाएँ ।। कुछ भी कठिन नहीं होता है यदि प्रयास हो सच्चे अपने, जिसने किया, उसी ने पाया, सच हो जाते सारे सपने, फिर फिर सुन्दर स्वप्न सजाएँ । आओ, मिलकर दीप जलाएँ ।।

12. तिरंगा

जन-गण-मन का मान तिरंगा । हम सब की पहचान तिरंगा ।। भरता नया जोश केसरिया कहता उनकी अमिट कहानी, मातृभूमि हित तन मन दे कर अमर हो गए जो बलिदानी, वीरों का सम्मान तिरंगा । हम सब की पहचान तिरंगा ।। श्वेत रंग सबको समझाता सदा सत्य ही ध्येय हमारा, है कुटुंब यह जग सारा ही बहे प्रेम की अविरल धारा, मानवता का गान तिरंगा । हम सब की पहचान तिरंगा ।। हरे रंग की हरियाली से जन जन में खुशहाली छाए, हो सदैव धन धान्य अपरिमित हर ऋतु सुख लेकर ही आए, अमित सुखों की खान तिरंगा । हम सब की पहचान तिरंगा ।। कहता चक्र कि गति जीवन है, उठो, बढ़ो, फिर मंजिल पाओ, यदि बाधाएं आयें पथ में, वीर, न तुम मन में घवराओ, साहस का प्रतिमान तिरंगा । हम सब की पहचान तिरंगा ।।

13. हम हिमालय

हम हिमालय हैं,हमें परवाह कब है । भले टूटें पर झुकें यह चाह कब है ।। प्यार की नदियां ह्रदय से बह रही हैं । घृणा का मन में कहीं प्रवाह कब है ।। लाख तूफां आये हैं फिर भी अडिग हैं । थिर सदा, गम्भीरता की थाह कब है ।। बुजदिली की बात मत करना कभी । वीर हैं हम, दासता की आह कब है ।। शिखर उन्नत हैं सदा, हम हर्षमय हैं । ऑसुओं की ओर अपनी राह कब है ।।

14. गंध गुणों की बिखरायें

हे जगत- नियंता यह वर दो, फूलों से कोमल मन पायें । परहित हो ध्येय सदा अपना, पल पल इस जग को महकायें ।। हम देवालय में वास करें, या शिखरों के ऊपर झूलें, लेकिन जो शोषित वंचित हैं, उनको भी कभी नहीं भूलें, हम प्यार लुटायें जीवन भर, सबका ही जीवन सरसायें । परहित हो ध्येय सदा अपना, पल पल इस जग को महकायें ।। हम शीत, धूप, बरसातों में, कांटों में कभी न घबरायें, अधरों पर मधु मुस्कान रहे चाहे कैसे भी दिन आयें, सबको अपनापन बॉंट बाँट, हम गंध गुणों की बिखरायें । परहित हो ध्येय सदा अपना, पल पल इस जग को महकायें ।। जीवन छोटा हो या कि बड़ा, उसका कुछ अर्थ नहीं होता, जो औरों को खुशियाँ बाँटे, वह जीवन व्यर्थ नहीं होता, व्यवहार हमारा याद रहे, हम भी कुछ ऐसा कर जायें । परहित हो ध्येय सदा अपना, पल पल इस जग को महकायें ।।

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