Jaan Nisar Akhtar
जाँ निसार अख़्तर
जाँ निसार अख़्तर (18 फ़रवरी 1914–19 अगस्त 1976) महत्वपूर्ण उर्दू शायर, गीतकार और कवि थे। उनका जन्म ग्वालियर (मध्य प्रदेश) में हुआ।
उनका ताल्लुक शायरों के परिवार से था। उनके परदादा 'फ़ज़्ले हक़ खैराबादी' ने मिर्ज़ा गालिब के कहने पर उनके दीवान
का संपादन किया था। बाद में 1857 में ब्रिटिश सरकार के ख़िलाफ़ ज़िहाद का फ़तवा ज़ारी करने के कारण उन्हें ’कालापानी’ की सजा दी गई। उनके पिता 'मुज़्तर
खैराबादी’ भी एक प्रसिद्ध शायर थे। जाँनिसार ने बी०ए० (आनर्स) तथा एम०ए० की डिग्री प्राप्त की। 1943 में उनकी शादी प्रसिद्ध शायर 'मज़ाज लखनवी' की बहन 'सफ़िया
सिराज़ुल हक़' से हुई। 1945 व 1946 में उनके बेटों जावेद (मशहूर शायर जावेद अख़्तर) और सलमान का जन्म हुआ। आज़ादी के बाद हुए दंगों के दौरान जाँनिसार ने
भोपाल आ कर ’हमीदिया कालेज’ में बतौर उर्दू और फारसी विभागाध्यक्ष काम करना शुरू कर दिया। सफ़िया ने भी बाद में इसी कालेज में पढ़ाना शुरू कर दिया।
इसी दौरान आप ’प्रगतिशील लेखक संघ’ से जुड़े और उसके अध्यक्ष बन गए। 1949 में जाँनिसार फिल्मों में काम पाने के उद्देश्य से बम्बई आ गये। 1953 में कैंसर से
सफ़िया की मौत हो गई। 1956 में उन्होंने ’ख़दीजा तलत’ से शादी कर ली। 1955 में आई फिल्म ’यासमीन’ से जाँनिसार के फिल्मी करियर ने गति पकड़ी ।
1935 से 1970 के दरमियान लिखी गई उनकी शायरी के संकलन “ख़ाक़-ए-दिल” के लिए उन्हें 1976 का साहित्य अकादमी पुरुस्कार प्राप्त हुआ। उनकी रचनाएँ हैं: ख़ाक़-ए-दिल,
तनहा सफ़र की रात, जाँ निसार अख़्तर-एक जवान मौत, नज़रे-बुतां, सलासिल, जाविदां, पिछले पहर, घर आंगन।

जाँ निसार अख़्तर की रचनाएँ
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