Vinod Kumar Shukla विनोद कुमार शुक्ल

विनोद कुमार शुक्ल (जन्म 1 जनवरी 1937-) हिंदी भाषा के साहित्यकार हैं। शुक्ल ने उपन्यास एवं कविता विधाओं में साहित्य सृजन किया है। उनकी पहली कविता संग्रह 1971 में लगभग जय हिन्द नाम से प्रकाशित हुआ। 1979 में नौकर की कमीज़ नाम से उनका उपन्यास आया जिस पर फ़िल्मकार मणिकौल ने इसी से नाम से फिल्म भी बनाई। शुक्ल के दूसरे उपन्यास दीवार में एक खिड़की को साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हो चुका है। विनोद कुमार शुक्ल को वर्ष 2024 के लिए 59वां ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किए जाने की घोषणा की गई है। भारतीय ज्ञानपीठ के बयान के मुताबिक, शुक्ल हिंदी के 12वें साहित्यकार और छत्तीसगढ़ के पहले लेखक हैं, जिन्हें यह पुरस्कार प्रदान किया जा रहा है।
वे कवि होने के साथ-साथ शीर्षस्थ कथाकार भी हैं। उनके उपन्यासों ने हिंदी में पहली बार एक मौलिक भारतीय उपन्यास की संभावना को राह दी है। उन्होंने एक साथ लोकआख्यान और आधुनिक मनुष्य की अस्तित्वमूलक जटिल आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति को समाविष्ट कर एक नये कथा-ढांचे का आविष्कार किया है। अपने उपन्यासों के माध्यम से उन्होंने हमारे दैनंदिन जीवन की कथा-समृद्धि को अद्भुत कौशल के साथ उभारा है। मध्यवर्गीय जीवन की बहुविध बारीकियों को समाये उनके विलक्षण चरित्रों का भारतीय कथा-सृष्टि में समृद्धिकारी योगदान है। वे अपनी पीढ़ी के ऐसे अकेले लेखक हैं, जिनके लेखन ने एक नयी तरह की आलोचना दृष्टि को आविष्कृत करने की प्रेरणा दी है। आज वे सर्वाधिक चर्चित लेखक हैं। अपनी विशिष्ट भाषिक बनावट, संवेदनात्मक गहराई, उत्कृष्ट सृजनशीलता से श्री शुक्ल ने भारतीय वैश्विक साहित्य को अद्वितीय रूप से समृद्ध किया है।
प्रमुख कृतियाँ - कविता संग्रह : लगभग जयहिंद ' वर्ष 1971, वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहिनकर विचार की तरह' वर्ष 1981, सब कुछ होना बचा रहेगा ' वर्ष 1992, अतिरिक्त नहीं ' वर्ष 2000, कविता से लंबी कविता ' वर्ष 2001, आकाश धरती को खटखटाता है ' वर्ष 2006, पचास कविताएँ' वर्ष 2011, कभी के बाद अभी ' वर्ष 2012, कवि ने कहा ' -चुनी हुई कविताएँ वर्ष 2012, प्रतिनिधि कविताएँ ' वर्ष 2013.
उपन्यास : 'नौकर की कमीज़' वर्ष 1979, 'खिलेगा तो देखेंगे' वर्ष 1996, 'दीवार में एक खिड़की रहती थी' वर्ष 1997, 'हरी घास की छप्पर वाली झोपड़ी और बौना पहाड़' वर्ष 2011, 'यासि रासा त' वर्ष 2017, 'एक चुप्पी जगह' वर्ष 2018.
कहानी संग्रह : पेड़ पर कमरा ' वर्ष 1988, महाविद्यालय ' वर्ष 1996, एक कहानी ' वर्ष 2021, घोड़ा और अन्य कहानियाँ ' वर्ष 2021.

हिन्दी कविताएँ : विनोद कुमार शुक्ल

Hindi Poetry : Vinod Kumar Shukla

  • अपने अकेले होने को
  • अपने हिस्से में लोग आकाश देखते हैं
  • अब इस उम्र में हूँ
  • अब कभी मिलना नहीं होगा ऎसा था
  • अभी तक बारिश नहीं हुई
  • आकाश की तरफ़
  • आकाश से उड़ता हुआ
  • आँख बंद कर लेने से
  • उपन्‍यास में पहले एक कविता रहती थी
  • एक अजनबी पक्षी
  • अपनी भाषा में शपथ लेता हूँ
  • उस रोज़ सूर्य
  • ईश्वर अब अधिक है
  • कहीं जाने का मन होता है
  • कक्षा के काले-तख़्ते पर
  • कितना बहुत है
  • कोई अधूरा पूरा नहीं होता
  • घर-बार छोड़कर संन्यास नहीं लूंगा
  • घर से बाहर निकलने की गड़बड़ी में
  • चार पेड़ों के
  • जगह-जगह रुक रही थी यह गाड़ी
  • जब बाढ़ आती है
  • जब मैं भीम बैठका देखने गया
  • जितने सभ्य होते हैं
  • जाते-जाते ही मिलेंगे लोग उधर के
  • जाते हुए थोड़ा-सा जाना
  • जैसे सब चल रहा है
  • जो कुछ अपरिचित हैं
  • जो मेरे घर कभी नहीं आएँगे
  • तीनों, और चौथा केन्द्र में
  • तीन मीटर ख़ुशबू के अहाते में
  • दुनिया जगत
  • दुनिया में अच्छे लोगों की कमी नहीं है
  • दूर से अपना घर देखना चाहिए
  • नदी तुम इस किनारे हो
  • पहाड़ को बुलाने
  • प्रेम की जगह अनिश्चित है
  • बहुत कुछ कर सकते हैं
  • बहुत कुछ देखना बाक़ी है
  • बोलने में कम से कम बोलूँ
  • मैं अंतर्मुखी होकर
  • मैं दीवाल के ऊपर
  • यह कहकर
  • यह दिन उम्र की रोज़ी है
  • रईसों के चेहरे पर
  • रहने के प्रसंग में कहीं एक घर था
  • राजिम का विष्णु-मंदिर
  • रायपुर बिलासपुर संभाग
  • लगभग जयहिंद
  • विचारों का विस्तार इस तरह हुआ
  • शहर से सोचता हूँ
  • सबसे ग़रीब आदमी की
  • हताशा से एक व्यक्ति बैठ गया था
  • हम अब कुछ देर चुप रहें
  • सब संख्यक