सब कुछ होना बचा रहेगा : विनोद कुमार शुक्ल

Sab Kuchh Hona Bacha Rahega : Vinod Kumar Shukla


जो मेरे घर कभी नहीं आएँगे

जो मेरे घर कभी नहीं आएँगे मैं उनसे मिलने उनके पास चला जाऊँगा। एक उफनती नदी कभी नहीं आएगी मेरे घर नदी जैसे लोगों से मिलने नदी किनारे जाऊँगा कुछ तैरूँगा और डूब जाऊँगा पहाड़, टीले, चट्टानें, तालाब असंख्य पेड़ खेत कभी नहीं आयेंगे मेरे घर खेत खलिहानों जैसे लोगों से मिलने गाँव-गाँव, जंगल-गलियाँ जाऊँगा। जो लगातार काम से लगे हैं मैं फुरसत से नहीं उनसे एक जरूरी काम की तरह मिलता रहूँगा।-- इसे मैं अकेली आखिरी इच्छा की तरह सबसे पहली इच्छा रखना चाहूँगा।

मानुष मैं ही हूँ

मानुष मैं हीं हूँ इस एकांत घाटी में यहाँ मैं मनुष्य की आदिम अनुभूति में साँस लेता हूँ। ढूँढकर एक पत्थर उठाकर एक पत्थर युग का पत्थर उठता हूँ। कलकल बहती ठंढी नदी के जल को चुल्लू से पीकर पानी का प्राचीन स्वाद पाता हूँ। मैं नदी के किनारे चलते-चलते इतिहास को याद कर भूगोल की एक पगडंडी पाता हूँ। संध्या की पहली तरैया केवल मैं देखता हूँ। चारों तरफ़ प्रकृति और प्रकृति की ध्वनियाँ है यदि मैंने कुछ कहा तो अपनी भाषा नहीं कहूँगा मनुष्य ध्वनि कहूँगा।

धौलागिरी को देखकर

धौलागिरी को देखकर मुझे याद आई धौलागिरि की तस्वीर क्योंकि तस्वीर पहले देखी गई थी। पितामह पूर्वजों के भी चित्र हैं घर में पूर्वजों को मैंने कभी नहीं देखा मैं पूर्वजों को नहीं पूर्वजों के चित्र याद करता हूँ। लेकिन धौलागिरि को देखने के बाद मैं अपने पूर्वजों के चित्र नहीं पूर्वजों को याद करता हूँ।

मैं अदना आदमी

मैं अदना आदमी सबसे ऊँचे पहाड़ के बारे में चिंतित हुआ इस चिंता में मैं बाहर ही बाहर रहा आया एक दिन इस बाहर को कोई खटखटाता है जैसे आकाश धरती को खटखटाता है हवा को खटखटाता है जंगल के वृक्षों एक-एक पत्तियों को खटखटाता है देखो तो आकाश के नीचे खुले में है साथ में कोई नहीं है दूर तक कोई नहीं पर कोई इस खुले को खटखटाता है। कौन आना चाहता है? मैं कहता हूँ अंदर आ जाइये सब खुला है मैंने देखा मुझे हिमालय दिख रहा है।

एक अजनबी पक्षी

एक अजनबी पक्षी एक पक्षी की प्रजाति की तरह दिखा जो कड़ी युद्ध के पहले बम विस्फोट की आवाज से डरकर यहाँ आ गया हो। हवा में एक अजनबी गंध थी साँस लेने के लिए कुछ कदम जल्दी-जल्दी चले फ़िर साँस ली। वायु जिसमें साँस ली जा सकती है यह वायु की प्रजाति है जिसमें साँस ली जा सकती है। एक मनुष्य मनुष्य की प्रजाति की तरह साइरन की आवाज सुनते हीं जान बचाने गड्ढे में कूद जाता है। गड्ढे किनारे टहलती हुई एक गर्भवती स्त्री एक मनुष्य जीव को जन्म देने सम्भलकर गड्ढे में उतर जाती है पर कोई मनुष्य मर जाता है। इस मनुष्य होने के अकेलेपन में मनुष्य की प्रजाति की तरह लोग थे।

समुद्र में जहाँ डूब रहा था सूर्य

समुद्र में जहाँ डूब रहा था सूर्य इस तरह डूब रहा था कि पश्चिम की दिशा भी उसके साथ डूब रही थी कि कल सूर्य के डूबने के लिए पश्चिम की दिशा नहीं होगी बाकी बची किसी दिशा में वह डूबता है तो डूब जाए. समुद्र में जहाँ उदित हो रहा है सूर्य एक ऐसे समुद्री पक्षी की तरह जो निकलने की कोशिश करता है पर सतह के तेल से पँख लिथडे़ होने के कारण निकल नहीं पाता है. इस न निकल पाने वाले सूर्योदय को देखने न पर्यटकों की भीड़ थी न पर्यटक आत्माओं की. इस न निकल पाने वाले सूर्योदय के दिन भर के बाद न निकल पाने वाला सूर्य डूब जाता है

यह चेतावनी है

यह चेतावनी है कि एक छोटा बच्‍चा है. यह चेतावनी है कि चार फूल खिले हैं. यह चेतावनी है कि खुशी है और घड़े में भरा हुआ पानी पीने के लायक है, हवा में सॉंस ली जा सकती है. यह चेतावनी है कि दुनिया है बची दुनिया में मैं बचा हुआ यह चेतावनी है मैं बचा हुआ हूं. किसी होने वाले युद्ध से जीवित बच निकलकर मैं अपनी अहमियत से मरना चाहता हूं कि मरने के आखिरी क्षणों तक अनंतकाल जीने की कामना करूं कि चार फूल है और दुनिया है.

प्रेम की जगह अनिश्चित है

प्रेम की जगह अनिश्चित है यहाँ कोई नहीं होगा की जगह भी नहीं है आड़ की ओट में होता है कि अब कोई नहीं देखेगा पर सबके हिस्‍से का एकांत और सबके हिस्‍से की ओट निश्चित है वहाँ बहुत दोपहर में भी थोड़ा-सा अंधेरा है जैसे बदली छाई हो बल्कि रात हो रही है और रात हो गई हो बहुत अंधेरे के ज्‍यादा अंधेरे में प्रेम के सुख में पलक मूंद लेने का अंधकार है अपने हिस्‍से की आड़ में अचानक स्‍पर्श करते उपस्थित हुए और स्‍पर्श करते, हुए बिदा

प्रत्‍येक आवाज खटका है

प्रत्‍येक आवाज खटका है बच्‍चे का माँ! कहकर पुकारना खत्‍म होती हरियाली में बीज से अंकुर का निकलना खाली मुट्ठी में बंद हवा का छूटकर जमीन पर गिरना खटका है. पानी पीना और रोटी चबाना भी. बचाओ! बचाओ!! चिल्‍ला सकने वाले लोग बचाओ भी नहीं चिल्‍लाते कोई बचा है यह पूछने वाला भी नहीं बचेगा लगता है दुनिया को नष्‍ट करने का धमाका अभी शायद हो हो सकता है जिंदगी को नष्‍ट करने के धमाके के पहले जिंदगी का बड़ा धमाका हो

जाते जाते ही मिलेंगे लोग उधर के

जाते जाते ही मिलेंगे लोग उधर के जाते जाते जाया जा सकेगा उस पार जाकर ही वहॉं पहुंचा जा सकेगा जो बहुत दूर संभव है पहुंच कर संभव होगा जाते जाते छूटता रहेगा पीछे जाते जाते बचा रहेगा आगे जाते जाते कुछ भी नहीं बचेगा जब तब सब कुछ पीछे बचा रहेगा और कुछ भी नहीं में सब कुछ होना बचा रहेगा|

सबसे गरीब आदमी की

सबसे गरीब आदमी की सबसे कठिन बीमारी के लिए सबसे बड़ा विशेषज्ञ डॉक्‍टर आए जिसकी सबसे ज्‍यादा फीस हो सबसे बड़ा विशेषज्ञ डॉक्‍टर उस गरीब की झोपड़ी में आकर झाड़ू लगा दे जिससे कुछ गंदगी दूर हो सामने की बदबूदार नाली को साफ कर दे जिससे बदबू कुछ कम हो उस गरीब बीमार के घड़े में शुद्ध जल दूर म्‍युनिसिपल की नल से भर कर लाए| बीमार के चीथड़ों को पास के हरे गंदे पानी के डबरे से न धोए बीमार को सरकारी अस्‍पताल जाने की सलाह न दे कृतज्ञ होकर सबसे बड़ा डॉक्‍टर सबसे गरीब आदमी का इलाज करे और फीस मॉंगने से डरे| सबसे गरीब बीमार आदमी के लिए सबसे सस्‍ता डॉक्‍टर भी बहुत महंगा है|

सूखा कुआँ तो मृत है

सूखा कुआँ तो मृत है बहुत मरा हुआ कि आत्‍महत्‍या करता है अपनी टूटी मुंडेर से अपनी गहराई भरता हुआ कुऍं के खोदने से निकले हुए पत्‍थरों से जो मुंडेर बनी थी कुएँ के तल की कुँआसी इच्‍छा उसकी अंदरूनी गहरी बारूद से तड़कने की परन्‍तु अपने ही निकले हुए पत्‍थरों और मिट्टी से भरता हुआ कुआँ कुआँ न होने की तरफ लौट रहा है, अब यह पलायन था कुऍं का गॉंव पहले उजाड़ हो चुका था

घर संसार में घुसते ही

घर संसार में घुसते ही पहिचान बतानी होती है उसकी आहट सुन पत्‍नी बच्‍चे पूछेंगे 'कौन?' 'मैं हूँ' वह कहता है तब दरवाजा खुलता है। घर उसका शिविर जहाँ घायल होकर वह लौटता है। रबर की चप्‍पल को छेद कर कोई जूते का खीला उसका तलुआ छेद गया है। पैर से पट्टी बॉंध सुस्‍ता कर कुछ खाकर दूसरे दिन अपने घर का पूरा दरवाजा खोलकर वह बाहर निकला अखिल संसार में उसकी आहट हुई दबे पाँव नहीं खाँसा और कराहा 'कौन?' यह किसी ने नहीं पूछा सड़क के कुत्‍ते ने पहिचानकर पूंछ हिलाई किराने वाला उसे देखकर मुस्‍कुराया मुस्‍कुराया तो वह भी। एक पान ठेले के सामने कुछ ज्‍यादा देर खड़े होकर उधार पान माँगा और पान खाते हुए कुछ देर खड़े होकर फिर कुछ ज्‍यादा देर खड़े होकर परास्‍त हो गया।

दूर से अपना घर देखना चाहिए

दूर से अपना घर देखना चाहिए मजबूरी में न लौट सकने वाली दूरी से अपना घर कभी लौट सकेंगे की पूरी आशा में सात समुन्दर पार चले जाना चाहिए. जाते जाते पलटकर देखना चाहिये दूसरे देश से अपना देश अन्तरिक्ष से अपनी पृथ्वी तब घर में बच्चे क्या करते होंगे की याद पृथ्वी में बच्चे क्या करते होंगे की होगी घर में अन्न जल होगा की नहीं की चिंता पृथ्वी में अन्न जल की चिंता होगी पृथ्वी में कोई भूखा घर में भूखा जैसा होगा और पृथ्वी की तरफ लौटना घर की तरफ लौटने जैसा. घर का हिसाब किताब इतना गड़बड़ है कि थोड़ी दूर पैदल जाकर घर की तरफ लौटता हूँ जैसे पृथ्वी की तरफ

मंगल ग्रह इस समय पृथ्‍वी के बहुत पास आ गया है

मंगल ग्रह इस समय पृथ्‍वी के बहुत पास आ गया है वहॉं किसी जीव के न होने का सन्‍नाटा अब पृथ्‍वी के पड़ोस में कोई नहीं समय पड़ने पर पृथ्‍वी का कौन साथ देगा पृथ्‍वी के सुख-दुःख उसके नष्‍ट होने और समृद्ध होने का कौन साक्षी होगा। सुनो मेरे पड़ोसी सबके अड़ोसी पड़ोसी और पड़ोस के बच्‍चे जो एक दूसरे की छतों में कूदकर आते जाते है, मंगलग्रह इस समय पृथ्‍वी के बहुत समीप है- पृथ्‍वी के बच्‍चों कूदो तुम्‍हारा मंगल हो वायु, जल, नभ, धरती, समुद्र, तुम्‍हारा मंगल हो दूब, पर्वत, वन तुम्‍हारा मंगल हो मगलू! तुम्‍हारा मंगल हो पृथ्‍वी से दूर अमंगल, मंगल हो।

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