Sant Thiruvalluvar

संत तिरुवल्लुवर

तिरुवल्लुवर (திருவள்ளுவர்) प्रख्यात तमिल संत कवि हैं । जिन्होंने तमिल साहित्य में नीति पर आधारित कृति थिरूकुरल का सृजन किया। उन्हें थेवा पुलवर, वल्लुवर और पोयामोड़ी पुलवर जैसे अन्य नामों से भी जाना जाता है। तिरुवल्लुवर का जन्म मायलापुर में हुआ था। उनकी पत्नी वासुकी एक पवित्र और समर्पित महिला थी, एक ऐसी आदर्श पत्नी जिसने कभी भी अपने पति के आदेशों की अवज्ञा नहीं की और उनका शतशः पालन किया। तिरुवल्लुवर ने लोगों को बताया कि एक व्यक्ति गृहस्थ या गृहस्थस्वामी का जीवन जीने के साथ-साथ एक दिव्य जीवन या शुद्ध और पवित्र जीवन जी सकता है। उन्होंने लोगों को बताया कि शुद्ध और पवित्रता से परिपूर्ण दिव्य जीवन जीने के लिए परिवार को छोड़कर संन्यासी बनने की आवश्यकता नहीं है। उनकी ज्ञान भरी बातें और शिक्षा अब एक पुस्तक के रूप में मौजूद है जिसे 'तिरुक्कुरल' के रूप में जाना जाता है। तमिल कैलेंडर की अवधि उसी समय से है और उसे तिरुवल्लुवर आन्दु (वर्ष) के रूप में संदर्भित किया जाता है। तिरुवल्लुवर के अस्तित्व का समय पुरातात्विक साक्ष्य के बजाय ज्यादातर भाषाई सबूतों पर आधारित है क्योंकि किसी पुरातात्विक साक्ष्य को अभी तक निर्धारित नहीं किया गया है। उनके काल का अनुमान 200 ई.पू. और 30 ई.पू. के बीच लगाया गया है ।
इन्हें दक्षिण भारत का कबीर कहा जाता है। शैव, वैष्णव, बौद्ध तथा जैन सभी तिरुवल्लुवर को अपना मतावलम्बी मानते हैं, जबकि उनकी रचनाओं से ऐसा कोई भी आभास नहीं मिलता है। यह अवश्य है कि वे उस परम पिता में विश्वास रखते थे। उनका विचार था कि मनुष्य गृहस्थ रहते हुए भी परमेश्वर में आस्था के साथ एक पवित्र जीवन व्यतीत कर सकता है। सन्न्यास उन्हें निरर्थक लगा था। संत तिरुवल्लुवर ने व्यक्ति को जीने की राह दिखाते हुए छोटी-छोटी ढेरों कविताएँ लिखी थीं, इनका संकलन 'तिरुक्कुरल ग्रंथ' में किया गया है।

तिरुक्कुरल : तिरुवल्लुवर

Thirukkural in Hindi : Thiruvalluvar

  • अध्याय 1. ईश्वर-स्तुति
  • अध्याय 2 . वर्ष- महत्व
  • अध्याय 3. सन्यासी- महिमा
  • अध्याय 4. धर्म पर आग्रह
  • अध्याय 5. गार्हस्थ्य
  • अध्याय 6. सहधर्मिणी
  • अध्याय 7. संतान-लाभ
  • अध्याय 8. प्रेम-भाव
  • अध्याय 9. अतिथि-सत्कार
  • अध्याय 10. मधुर-भाषण
  • अध्याय 11. कृतज्ञता
  • अध्याय 12. मध्यस्थता
  • अध्याय 13. संयम्‍शीलता
  • अध्याय 14. आचारशीलता
  • अध्याय 15. परदार- विरति
  • अध्याय 16. क्षमाशीलता
  • अध्याय 17. अनसूयता
  • अध्याय 18. निर्लोभता
  • अध्याय 19. अपिशुनता
  • अध्याय 20. वृथालाप-निषेध
  • अध्याय 21. पाप-भीरुता
  • अध्याय 22. लोकोपकारिता
  • अध्याय 23. दान
  • अध्याय 24. कीर्ति
  • अध्याय 25. दयालुता
  • अध्याय 26. माँस- वर्जन
  • अध्याय 27. तप
  • अध्याय 28. मिथ्याचार
  • अध्याय 29. अस्तेय
  • अध्याय 30. सत्य
  • अध्याय 31. अक्रोध
  • अध्याय 32. अहिंसा
  • अध्याय 33. वध-निशेध
  • अध्याय 34. अनित्यता
  • अध्याय 35. संन्यास
  • अध्याय 36. तत्वज्ञान
  • अध्याय 37. तृष्णा का उन्मूलन
  • अध्याय 38. प्रारब्ध
  • अध्याय 39. महीश महिमा
  • अध्याय 40. शिक्षा
  • अध्याय 41. अशिक्षा
  • अध्याय 42. श्रवण
  • अध्याय 43. बुद्धिमत्ता
  • अध्याय 44. दोष-निवारण
  • अध्याय 45. सत्संग-लाभ
  • अध्याय 46. कुसंग-वर्जन
  • अध्याय 47. सुविचारित कार्य-कुशलता
  • अध्याय 48. शक्ति का बोध
  • अध्याय 49. समय का बोध
  • अध्याय 50. स्थान का बोध
  • अध्याय 51. परख कर विश्वास करना
  • अध्याय 52. परख कर कार्य सौंपना
  • अध्याय 53. बन्धुओं को अपनाना
  • अध्याय 54. अविस्मृति
  • अध्याय 55. सुशासन
  • अध्याय 56. क्रूर-शासन
  • अध्याय 57. भयकारी कर्म न करना
  • अध्याय 58.दया-दृष्टि
  • अध्याय 59. गुप्तचर-व्यवस्था
  • अध्याय 60. उत्साहयुक्तता
  • अध्याय 61. आलस्यहीनता
  • अध्याय 62. उद्यमशीलता
  • अध्याय 63. संकट में अनाकुलता
  • अध्याय 64. अमात्य
  • अध्याय 65. वाक्- पटुत्व
  • अध्याय 66. कर्म-शुद्धि
  • अध्याय 67. कर्म में दृढ़ता
  • अध्याय 68. कर्म करने की रीति
  • अध्याय 69. दूत
  • अध्याय 70. राजा से योग्य व्यवहार
  • अध्याय 71. भावज्ञता
  • अध्याय 72. सभा-ज्ञान
  • अध्याय 73. सभा में निर्भीकता
  • अध्याय 74. राष्ट्र
  • अध्याय 75. दुर्ग
  • अध्याय 76. वित्त-साधन-विधि
  • अध्याय 77. सैन्य-माहात्म्य
  • अध्याय 78. सैन्य-साहस
  • अध्याय 79. मैत्री
  • अध्याय 80. मैत्री की परख
  • अध्याय 81. चिर-मैत्री
  • अध्याय 82. बुरी मैत्री
  • अध्याय 83. कपट-मैत्री
  • अध्याय 84. मूढ़ता
  • अध्याय 85. अहम्‍मन्य-मूढ़ता
  • अध्याय 86. विभेद
  • अध्याय 87. शत्रुता-उत्कर्ष
  • अध्याय 88. सत्रु-शक्ति का ज्ञान
  • अध्याय 89. अन्तवैंर
  • अध्याय 90. बड़ों का उपचार न करना
  • अध्याय 91. स्त्री-वश होना
  • अध्याय 92. वार-वनिता
  • अध्याय 93. मद्य-निषेध
  • अध्याय 94. जुआ
  • अध्याय 95. औषध
  • अध्याय 96. कुलीनता
  • अध्याय 97. मान
  • अध्याय 98. महानता
  • अध्याय 99. सर्वगुण-पूर्णता
  • अध्याय 100. शिष्टाचार
  • अध्याय 101. निष्फल धन
  • अध्याय 102. लज्जाशीलता
  • अध्याय 103. वंशोत्कर्ष
  • अध्याय 104. कृषि
  • अध्याय 105. दरिद्रता
  • अध्याय 106. याचना
  • अध्याय 107. याचना-भय
  • अध्याय 108. नीचता
  • अध्याय 109. सौन्दर्य की पीड़ा
  • अध्याय 110. संकेत समझना
  • अध्याय 111. संयोग का आनन्द
  • अध्याय 112. सौन्दर्य वर्णन
  • अध्याय 113. प्रेम-प्रशंसा
  • अध्याय 114. लज्जा-त्याग-कथन
  • अध्याय 115. प्रवाद-जताना
  • अध्याय 116. विरह-वेदना
  • अध्याय 117. विरह-क्षमा की व्यथा
  • अध्याय 118. नेत्रों का आतुरता से क्षय
  • अध्याय 119. पीलापन-जनित पीड़ा
  • अध्याय 120. विरह-वेदनातिरेक
  • अध्याय 121. स्मरण में एकान्तता-दुःख
  • अध्याय 122. स्वप्नावस्था का वर्णन
  • अध्याय 123.संध्या दर्शन से
  • अध्याय 124. अंगच्छवि-नाश
  • अध्याय 125. हृदय से कथन
  • अध्याय 126. धैर्य-भंग
  • अध्याय 127. उनकी उत्कंठा
  • अध्याय 128. इंगित से बोध
  • अध्याय 129. मिलन-उत्कंठा
  • अध्याय 130. हृदय से रूठना
  • अध्याय 131. मान
  • अध्याय 132. मान की सूक्ष्मता
  • अध्याय 133. मान का आनन्द