Munnawar Rana
मुनव्वर राना

मुनव्वर राना (26 नवंबर 1952-) का जन्म रायबरेली, उत्तर प्रदेश में हुआ । वह उर्दू भाषा के साहित्यकार हैं। 'शहदाबा' के लिये उन्हें सन् 2014 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वे लखनऊ में रहते हैं। भारत-पाकिस्तान बंटवारे के समय उनके बहुत से नजदीकी रिश्तेदार और पारिवारिक सदस्य देश छोड़कर पाकिस्तान चले गए। लेकिन साम्प्रदायिक तनाव के बावजूद मुनव्वर राना के पिता ने अपने देश में रहने को ही अपना कर्तव्य माना। मुनव्वर राना की शुरुआती शिक्षा-दीक्षा कलकत्ता (कोलकाता) में हुई। राना ने ग़ज़लों के अलावा संस्मरण भी लिखे हैं। उनकी रचनाओं का ऊर्दू के अलावा अन्य भाषाओं में भी अनुवाद हुआ है। उनकी रचनाएँ हैं : माँ, ग़ज़ल गाँव, पीपल छाँव, बदन सराय, नीम के फूल, सब उसके लिए, मुहाजिरनामा, घर अकेला हो गया, कहो ज़िल्ले इलाही से, बग़ैर नक़्शे का मकान, फिर कबीर, नए मौसम के फूल, शहदाबा, मुनव्वरनामा आदि ।

चुनिंदा ग़ज़लें मुनव्वर राना

  • अच्छा हुआ कि मेरा नशा भी उतर गया
  • अच्छी से अच्छी आब-ओ-हवा के बग़ैर भी
  • अना हवस की दुकानों में आ के बैठ गई
  • अलमारी से ख़त उस के पुराने निकल आए
  • आप को चेहरे से भी बीमार होना चाहिए
  • आँखों को इंतज़ार की भट्टी पे रख दिया
  • इतनी तवील उम्र को जल्दी से काटना
  • इश्क है तो इश्क का इजहार होना चाहिये
  • ऐसा लगता है कि कर देगा अब आज़ाद मुझे
  • कई घरों को निगलने के बाद आती है
  • कभी ख़ुशी से ख़ुशी की तरफ़ नहीं देखा
  • काले कपड़े नहीं पहने हैं तो इतना कर ले
  • किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई
  • किसी ग़रीब की बरसों की आरज़ू हो जाऊँ
  • ख़फ़ा होना ज़रा सी बात पर तलवार हो जाना
  • ख़ुद अपने ही हाथों का लिखा काट रहा हूँ
  • ख़ून रुलवाएगी ये जंगल-परस्ती एक दिन
  • गले मिलने को आपस में दुआएँ रोज़ आती हैं
  • घर में रहते हुए ग़ैरों की तरह होती हैं
  • चले मक़्तल की जानिब और छाती खोल दी हम ने
  • छाँव मिल जाए तो कम दाम में बिक जाती है
  • जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है
  • जहां तक हो सका हमने तुम्हें परदा कराया है
  • जुदा रहता हूँ मैं तुझ से तो दिल बे-ताब रहता है
  • तुम्हारे जिस्म की ख़ुश्बू गुलों से आती है
  • थकन को ओढ़ के बिस्तर में जा के लेट गए
  • थकी-मांदी हुई बेचारियाँ आराम करती हैं
  • दरिया-दिली से अब्र-ए-करम भी नहीं मिला
  • दुनिया तिरी रौनक़ से मैं अब ऊब रहा हूँ
  • दोहरा रहा हूँ बात पुरानी कही हुई
  • नुमाइश के लिए गुलकारियाँ दोनों तरफ़ से हैं
  • पैरों को मिरे दीदा-ए-तर बाँधे हुए है
  • फिर से बदल के मिट्टी की सूरत करो मुझे
  • बहुत पानी बरसता है तो मिट्टी बैठ जाती है
  • बादशाहों को सिखाया है क़लंदर होना
  • भुला पाना बहुत मुश्किल है सब कुछ याद रहता है
  • मसर्रतों के ख़ज़ाने ही कम निकलते हैं
  • महफ़िल में आज मर्सिया-ख़्वानी ही क्यूँ न हो
  • मिट्टी में मिला दे कि जुदा हो नहीं सकता
  • मुख़्तसर होते हुए भी ज़िंदगी बढ़ जाएगी
  • मुझ को गहराई में मिट्टी की उतर जाना है
  • मुहाजिर हैं मगर हम एक दुनिया छोड़ आए हैं
  • मेरी ख़्वाहिश है कि फिर से मैं फ़रिश्ता हो जाऊँ
  • मैं इस से पहले कि बिखरूँ इधर उधर हो जाऊँ
  • ये दरवेशों की बस्ती है यहाँ ऐसा नहीं होगा
  • ये बुत जो हम ने दोबारा बना के रक्खा है
  • ये सर-बुलंद होते ही शाने से कट गया
  • ये हिज्र का रस्ता है ढलानें नहीं होतीं
  • रोने में इक ख़तरा है, तालाब नदी हो जाते हैं
  • वो बिछड़ कर भी कहाँ मुझ से जुदा होता है
  • सहरा-पसंद हो के सिमटने लगा हूँ मैं
  • सहरा पे बुरा वक़्त मिरे यार पड़ा है
  • सारी दौलत तिरे क़दमों में पड़ी लगती है
  • हम कुछ ऐसे तिरे दीदार में खो जाते हैं
  • हर एक आवाज़ अब उर्दू को फ़रियादी बताती है
  • हर एक चेहरा यहाँ पर गुलाल होता है
  • हँसते हुए माँ-बाप की गाली नहीं खाते
  • हाँ इजाज़त है अगर कोई कहानी और है
  • घर अकेला हो गया मुनव्वर राना

  • लिपट जाता हूँ माँ से और मौसी मुस्कुराती है
  • मुहब्बत करने वालों में ये झगड़ा डाल देती है
  • दुनिया तेरी रौनक़ से मैं अब ऊब रहा हूँ
  • जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है
  • बुलन्दी देर तक किस शख़्स के हिस्से में रहती है
  • मेरी ख़्वाहिश कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊँ
  • न मैं कंघी बनाता हूँ न मैं चोटी बनाता हूँ
  • हमारा तीर कुछ भी हो निशाने तक पहुँचता है
  • हर एक आवाज़ अब उर्दू को को फ़रियादी बताती है
  • बहुत पानी बरसता है तो मिट्टी बैठ जाती है
  • भरोसा मत करो साँसों की डोरी टूट जाती है
  • हमारी ज़िन्दगी का इस तरह हर साल कटता है
  • घरौंदे तोड़ कर साहिल से यूँ पानी पलटता है
  • समझौतों की भीड़-भाड़ में सबसे रिश्ता टूट गया
  • अगर दौलत से ही सब क़द का अंदाज़ा लगाते हैं
  • वो जालिम मेरी हर ख्वाहिश ये कह कर टाल जाता है
  • सियासी आदमी की शक्ल तो प्यारी निकलती है
  • किसी भी चेहरे को देखो गुलाल होता है
  • नींद अपने आप दीवाने तलक तो आ गई
  • कोयल बोले या गौरैया अच्छा लगता है
  • तितली ने गुल को चूम के बना दिया
  • ऐन ख़्वाहिश के मुताबिक सब उसी को मिल गया
  • यह एहतराम तो करना ज़रूर पड़ता है
  • ये मत समझ कि अर्शे-ए-मुअल्ला उसी का है
  • कहाँ रोना है मुझको दीदा-ए-पुरनम समझता है
  • बिछड़ा कहाँ है भाई हमारा सफ़र में है
  • हम सायादार पेड़ ज़माने के काम आए
  • जब कभी धूप की शिद्दत ने सताया मुझको
  • इश्क़ में राय बुज़ुर्गों से नहीं ली जाती
  • बाज़ारी पेटीकोट की सूरत हूँ इन दिनों
  • हमारी बेबसी देखो उन्‍हें हमदर्द कहते हैं
  • मियाँ रुसवाई दौलत के तआवुन से नहीं जाती
  • मुझको हर हाल में बख़्शेगा उजाला अपना
  • मुखालिफ़ सफ़ भी ख़ुश होती है लोहा मान लेती है
  • दामन को आँसुओं से शराबोर कर दिया
  • तू कभी देख तो रोते हुए आकर मुझको
  • रोने में इक ख़तरा है तालाब नदी हो जाते हैं
  • मर्ज़ी-ए-मौला मौला जाने
  • इस पेड़ में इक बार तो आ जाए समर भी
  • हाँ इजाज़त है अगर कोई कहानी और है
  • कुछ मेरी वफ़ादारी का इनआम दिया जाये
  • सरफिरे लोग हमें दुश्मने-जाँ कहते हैं
  • घरों को तोड़ता है ज़ेहन में नक़्शा बनाता है
  • सारा शबाब क़ैस ने सहरा को दे दिया
  • न जाने कैसा मौसम हो दुशाला ले लिया जाये
  • चिराग़-ए-दिल बुझाना चाहता था
  • नहीं होती अगर बारिश तो पत्थर हो गए होते
  • ऐ अँधेरे देख ले मुँह तेरा काला हो गया
  • सरफिरे लोग हमें दुश्मन-ए-जाँ कहते हैं
  • एक न इक रोज़ तो होना है ये जब हो जाये
  • बस इतनी बात पर उसने हमें बलवाई लिक्खा है
  • अजब दुनिया है नाशायर यहाँ पर सर उठाते हैं
  • आँखों में कोई ख़्वाब सुनहरा नहीं आता
  • साथ अपने रौनक़ें शायद उठा ले जायेंगे
  • गौतम की तरह घर से निकल कर नहीं जाते
  • जो उसने लिक्खे थे ख़त कापियों में छोड़ आए
  • फ़रिश्ते आके उनके जिस्म पर ख़ुश्बू लगाते हैं
  • धँसती हुई क़ब्रों की तरफ़ देख लिया था
  • तू हर परिन्दे को छत पर उतार लेता है
  • मुफ़लिसी पास-ए-शराफ़त नहीं रहने देगी
  • दश्त-ओ- सहरा में कभी उजड़े सफ़र में रहना
  • हँसते हुए माँ-बाप की गाली नहीं खाते
  • जिस्म का बरसों पुराना ये खँडर गिर जाएगा
  • मेरे कमरे में अँधेरा नहीं रहने देता
  • हम पर अब इस लिए ख़ंजर नहीं फेंका जाता
  • कभी ख़ुशी से खुशी की तरफ़ नहीं देखा
  • हालाँकि हमें लौट के जाना भी नहीं है
  • नाकामियों की बाद भी हिम्मत वही रही
  • बजाए इसके कि संसद दिखाई देने लगे
  • बहुत हसीन-सा इक बाग़ घर के नीचे है
  • मैं उसको छोड़ न पाया बुरी लतों की तरह
  • इसी गली में वो भूखा किसान रहता है
  • किताब-ए-जिस्म पर इफ़लास की दीमक का क़ब्ज़ा है
  • कोई चेहरा किसी को उम्र भर अच्छा नहीं लगता
  • नुमाइश के लिए गुलकारियाँ दोनों तरफ़ से हैं
  • वोह मुझे जुर्रत-ए-इज़हार से पहचानता है
  • पैरों को मेरे दीदा-ए-तर बाँधे हुए है
  • वो महफ़िल में नहीं खुलता है तनहाई में खुलता है
  • हम कुछ ऐसे तेरे दीदार में खो जाते हैं
  • मियाँ मैं शेर हूँ शेरों की गुर्राहट नहीं जाती
  • जिसे दुश्मन समझता हूँ वही अपना निकलता है
  • मोहब्बत करने वालों में ये झगडा डाल देती है
  • हम कभी जब दर्द के क़िस्सी सुनाने लग गये
  • सबके कहने से इरादा नहीं बदला जाता
  • मुसलसल गेसुओं की बरहमी अच्छी नहीं होती
  • जहाँ तक हो सका हमने तुम्हें परदा कराया है
  • शरीफ़ इन्सान आख़िर क्यों एलेक्शन हार जाता है
  • हर एक शख़्स खफ़ा-सा दिखाई देता है
  • आपको चेहरे से भी बीमार होना चाहिए
  • अमीरे शहर को तलवार करने वाला हूँ
  • मिट्टी में मिला दे कि जुदा हो नहीं सकता
  • मैं अपने हल्क़ से अपनी छुरी गुज़ारता हूँ
  • मैं दहशतगर्द था मरने पे बेटा बोल सकता है
  • थकी - माँदी हुई बेचारियाँ आराम करती हैं
  • ये संसद है यहाँ भगवान का भी बस नहीं चलता
  • क़सम देता है बच्चों की बहाने से बुलाता है
  • झूठ बोला था तो यूँ मेरा दहन दुखता है
  • यूँ आज कुछ चराग़ हवा से उलझ पड़े
  • उन घरों में जहाँ मिट्टी के घड़े रहते हैं
  • एक आँगन में दो आँगन हो जाते हैं
  • कुछ रोज़ से हम सिर्फ़ यही सोच रहे हैं
  • यह देखकर पतंगें भी हैरान हो गयीं
  • खिलौने की तरफ़ बच्चे को माँ जाने नहीं देती
  • अभी तक कुछ नहीं बिगड़ा अभी बीमार ज़िन्दा है
  • ज़रूर से अना का भारी पत्थर टूट जाता है
  • ख़ुदा-न-ख़्वास्ता दोज़ख मकानी हो गये होते
  • सियासत से अदब की दोस्ती बेमेल लगती है
  • किसी का क़द बढ़ा देना किसी के क़द को कम कहना
  • जिस्म पर मिट्टी मलेंगे पाक हो जाएँगे हम
  • हमारे कुछ गुनाहों की सज़ा भी साथ चलती है
  • ज़िन्दगी से हर ख़ुशी अब ग़ैर हाज़िर हो गई
  • ये दीवाना ज़माने भर की दौलत छोड़ सकता है
  • बदन सराय मुनव्वर राना

  • तुम्हारे पास ही रहते न छोड़ कर जाते
  • सरक़े का कोई शेर ग़ज़ल में नहीं रक्खा
  • कभी थकन के असर का पता नहीं चलता
  • जुर्रत से हर नतीजे की परवा किये बग़ैर
  • बंद कर खेल-तमाशा हमें नींद आती है
  • उनसे मिलिए जो यहाँ फेर-बदल वाले हैं
  • रोने में इक ख़तरा है, तालाब, नदी हो जाते हैं
  • ख़ून रुलावाएगी ये जंगल-परस्ती एक दिन
  • हाँ इजाज़त है अगर कोई कहानी और है
  • इन्सान थे कभी मगर अब ख़ाक हो गये
  • मैं जिसके वास्ते जलता रहा दिये की तरह
  • हम कुछ ऐसे तिरे दीदार में खो जाते हैं
  • हर एक लम्हा हमारी फ़िक्र पैग़म्बर को रहती है
  • अब मदरसे भी हैं तेरे शर से डरे हुए
  • नदी का शोर नहीं ये आबशार का है
  • तेरे लिए मैं शहर में रुस्वा बहुत हुआ
  • हर एक पल तेरी चाहत का एतबार रहे
  • दिल पहले कहाँ इस तरह ग़मगीन रहा है
  • मुट्ठी भर ये ख़ाक बहुत है
  • ये देख कर पतंगें भी हैरान हो गयीं
  • वो नम आँखें लबों से यूँ कहानी छीन लेती हैं
  • मियाँ मैं शेर हूँ शेरों की गुर्राहट नहीं जाती
  • जिसे दुश्मन समझता हूँ वही अपना निकलता है
  • अजब दुनिया है नाशायर यहाँ पर सर उठाते हैं
  • हमारी दोस्ती से दुश्मनी शरमाई रहती है
  • मोहब्बत करने वाला ज़िन्दगी भर कुछ नहीं कहता
  • फिर कबीर मुनव्वर राना

  • माँ
  • बचपन
  • कई घरों को निगलने के बाद आती है
  • मिट्टी में मिला दे कि जुदा हो नहीं सकता
  • जब भी देखा मेरे किरदार पे धब्बा कोई
  • अमीरे-शहर को तलवार करने वाला हूँ
  • कभी ख़ुशी से ख़ुशी की तरफ़ नहीं देखा
  • समझौतों की भीड़ -भाड़ में सबसे रिश्ता टूट गया
  • हम कभी जब दर्द के किस्से सुनाने लग गये
  • तुझ में सैलाबे-बला थोड़ी जवानी कम है
  • आँखों में कोई ख़्वाब सुनहरा नहीं आता
  • तू कभी देख तो रोते हुए आकर मुझको
  • अगर दौलत से ही सब क़द का अंदाज़ा लगाते हैं
  • कुछ मेरी वफ़ादारी का इनआम दिया जाये
  • न मैं कंघी बनाता हूँ न मैं चोटी बनाता हूँ
  • मेरे कमरे में अँधेरा नहीं रहने देता
  • हाँ इजाज़त है अगर कोई कहानी और है
  • मेरी थकन के हवाले बदलती रहती है
  • नाकामियों के बाद भी हिम्मत वही रही
  • जगमगाते हुए शहरों को तबाही देगा
  • हमारा तीर कुछ भी हो निशाने तक पहुँचता है
  • जब कभी धूप की शिद्दत ने सताया मुझको
  • उम्मीद भी किरदार पे पूरी नहीं उतरी
  • इतना रोए थे लिपटकर दरो-दीवार से हम
  • हँसते हुए माँ-बाप की गाली नहीं खाते
  • ख़ूबसूरत झील में हँसता कँवल भी चाहिए
  • किसी भी ग़म के सहारे नहीं गुज़रती है
  • कई घर हो गए बरबाद ख़ुद्दारी बचाने में
  • उड़के यूँ छत से कबूतर मेरे सब जाते हैं
  • मुझको गहराई में मिट्टी की उतर जाना है
  • तुम्हारे जिस्म की ख़ुश्बू गुलों से आती है
  • वो मुझे जुर्रते-इज़्हार से पहचानता है
  • गौतम की तरह घर से निकल कर नहीं जाते
  • हमारी दोस्ती से दुश्मनी शरमाई रहती है
  • ऐन ख़्वाहिश के मुताबिक़सब उसी को मिल गया
  • बस इतनी बात पर उसने हमें बलवाई लिक्खा है
  • क़सम देता है बच्चों की बहाने से बुलाता है
  • धँसती हुई क़ब्रों की तरफ़ देख लिया था
  • सरक़े का कोई दाग़ जबीं पर नहीं रखता
  • यह एहतराम तो करना ज़रूर पड़ता है
  • बुलन्दी देर तक किस शख़्स के हिस्से में रहती है
  • मियाँ मैं शेर हूँ शेरों की गुर्राहट नहीं जाती
  • अना की मोहनी सूरत बिगाड़ देती है
  • मेरी मज़लूमियत पर ख़ून पत्थर से निकलता है
  • हम दोनों में आँखें कोई गीली नहीं करता
  • तेरे चेहरे पे कोई ग़म नहीं देखा जाता
  • उदास रहता है बैठा शराब पीता है
  • जो हुक़्म देता है वो इल्तिजा भी करता है
  • हालाँकि हमें लौट के जाना भी नहीं है
  • सफ़र में जो भी हो रख़्ते-सफ़र उठाता है
  • फ़रिश्ते आकर उनके जिस्म पर ख़ुश्बू लगाते हैं
  • किसी भी मोड़ पर तुमसे वफ़ादारी नहीं होगी
  • उदास रहने को अच्छा नहीं बताता है
  • चमन में सुबह का मंज़र बड़ा दिलचस्प होता है
  • मुहब्बत करने वालों में ये झगड़ा डाल देती है
  • तुम उचटती-सी एक नज़र डालो
  • हमारी ज़िन्दगी का इस तरह हर साल कटता है
  • तुम्हारे पास ही रहते न छोड़कर जाते
  • सरक़े का कोई शेर ग़ज़ल में नहीं रक्खा
  • कभी थकन के असर का पता नहीं चलता
  • मेरी चाहत का फ़क़ीरी से सिरा मिलता है
  • मैं खुल के हँस तो रहा हूँ फ़क़ीर होते हुए
  • फ़क़ीरों में उठे बैठे हैं शाहाना गुज़ारी है
  • घर में रहते हुए ग़ैरों की तरह होती हैं
  • खण्डहर-से दिल में फिर कोई तमन्ना घर बनाती है
  • कहीं पर छुप के रो लेने को तहख़ाना भी होता था
  • अलमारी से ख़त उसके पुराने निकल आए
  • न कमरा जान पाता है, न अँगनाई समझती है
  • घरों में यू सयानी लड़कियाँ बेचैन रहती हैं
  • मौला ये तमन्ना है कि जब जान से जाऊँ
  • अश्आर
  • मुनव्वरनामा मुनव्वर राना

  • ऐसे उड़ूँ कि जाल न आए ख़ुदा करे
  • गिड़गिड़ाए नहीं, हाँ हम्दो सना से माँगी
  • किसी के ज़ख्म पर चाहत से पट्टी कौन बाँधेगा
  • मसनद नशीन हो के न कुर्सी पे बैठ कर
  • दरबार में जब ओहदे के लिए पैरों पे अना गिर जाती है
  • जिसने भी इस ख़बर को सुना सर पकड़ लिया
  • अपने बाजू पे मुक़द्दस सी इक आयत बाँधे
  • पठान ही नहीं यूसुफ़ ज़ई निकलता है
  • अपने चेहरों को तबस्सुम से सजाए हुए लोग
  • आ कहीं मिलते हैं हम ताकि बहारें आ जायें
  • हम फ़सीलों को सजा देंगे सरों से अपने
  • लौट कर जैसे भी हो जाने पिदर! आ जाना
  • तेरी महफ़िल से अगर हम न निकाले जाते
  • ग़ज़ल हर अह्द में हम से सलीक़ा पूछने आई
  • इस रेत के घरौंदे को बेटे, महल समझ
  • बड़े सलीक़े से इक आशना के लहजे में
  • ग़ज़ल गाँव मुनव्वर राना

  • जगमगाते हुए शहरों को तबाही देगा
  • जो उसने लिक्खे थे ख़त कापियों में छोड़ आये
  • जिसको एहसासे ग़म नहीं होगा
  • ऐ अहले-सियासत ये क़दम रुक नहीं सकते
  • दिल पे ले कर हम एक निशान चले
  • एक आस की मारी हुई दुल्हन की तरह है
  • हमें मज़दूरों की, मेहनतकशों की याद आती है
  • ख़ुश्क था जो पेड़ उस पर पत्तियाँ अच्छी लगीं
  • हमें भी पेट की ख़ातिर ख़ज़ाना ढूँढ लेना है
  • यो एक शख़्स जो बचपन से मेरे गाँव में है
  • मेरे घर के दरो-दीवार की हालत नहीं देखी
  • अब कहने की ये बात नहीं है लेकिन कहना पड़ता है
  • रिसते हुए ज़ख़्मों को दवा भी नहीं मिलती
  • हम उसके पास से उठ कर जो झूठ-मूठ गये
  • लहू में रंग के छींटे मिलाये जाते हैं
  • काजल से मेरा नाम न लिखिए किताब पर
  • सूखा न पसीना कभी पंखे की हवा से
  • दिल को मिल गयी ख़ुशी कोई
  • कोई पागल किसी पागल को पकड़ना चाहे
  • लबों पे उसके कभी बद-दुआ नहीं होती
  • क़त्ल भी होगा हमारा तो यहीं पर होगा
  • पीपल छाँव मुनव्वर राना

  • जो तीर भी आता है वो ख़ाली नहीं जाता
  • वो मैला-सा, बोसीदा-सा आंचल नहीं देखा
  • वो ग़ज़ल पढने में लगता भी ग़ज़ल जैसा था
  • फ़रिश्ते आ के उनके जिस्म पर ख़ुशबू लगाते हैं
  • धंसती हुई क़ब्रों की तरफ़ देख लिया था
  • तू हर परिन्दे को छत पर उतार लेता है
  • ख़ूबसूरत झील मे हंसता कंवल भी चाहिए
  • ख़ुद सूख गया ज़ख़्म ने मरहम नहीं देखा
  • हम सायादार पेड़ ज़माने के काम आये
  • इतना रोये थे लिपट कर दरो-दिवार से हम
  • मुफ़लिसी पासे-शराफ़त नहीं रहने देगी
  • दश्तो-सहरा में कभी उजड़े खंडर में रहना
  • हिज्र में पहले-पहल रोना बहुत अच्छा लगा
  • हंसते हुए मां-बाप की गाली नहीं खाते
  • ऐ हुकूमत, तेरा मेआर न गिरने पाये
  • नये कमरों में अब चीज़ें पुरानी कौन रखता है
  • जिस्म का बरसों पुराना ये खंडर गिर जाएगा
  • ख़ुदा-न-ख़्वास्ता जन्नत हराम कर लेंगे
  • बिछड़ने वालों का अब इन्तज़ार क्या करना
  • जल रहे है धूप में लेकिन इसी सहरा में हैं
  • फ़िर आंसुओं की ज़रूरत न चश्मे-तर को हुई
  • मेरे कमरे में अंधेरा नही रहने देता