लोकोक्तियाँ एवं कहावतें

( त, थ, द, ध, न )

( त )

तक तिरिया को आपनी, पर तिरिया मत ताक, पर नारी के ताकने, पड़े सीस पर ख़ाक : केवल अपनी स्त्री की और निगाह उठा कर देखो, पराई स्त्री की ओर नहीं। पराई स्त्री को ताकने में सिर पर धूल पड़ने का डर है (बेईज्जती होने का डर है)।

तकदीर के आगे तदबीर नहीं चलती (तकदीर के लिखे को तदबीर क्या करे) : भाग्य में नहीं हो तो किसी भी युक्ति से हम कोई चीज़ प्राप्त नहीं कर सकते। तदबीर – युक्ति, प्रयास।

तकदीर चलती है तो दुनिया जलती है : किसी का भाग्य साथ दे तो लोग उसे देख कर जलते हैं। (ट्रकों पर यह कहावत अक्सर लिखी मिलती है)।

तकदीर बड़ी के तदबीर : भाग्य बड़ा है या परिश्रम। सत्य यह है कि दोनों का महत्व है।

तकल्लुफ में है तकलीफ सरासर : संकोच करने वालों को बहुत परेशानी उठानी पड़ती है।

तकाज़ा नहीं किया तो भरपाई नहीं समझो : बिना तकाज़ा किए कोई उधार की रकम नही लौटाता।

तख्ती पर तख्ती और मियाँ जी की आई कमबख्ती : साधन कम और काम बहुत ज्यादा। कुछ जगहों पर तख्ती पर तख्ती रखने को मास्टर साहब के लिए अशुभ माना जाता है, इस सन्दर्भ में भी बच्चे ऐसा बोलते हैं।

तजी प्रतिज्ञा मोर मैं तोर प्रतिज्ञा काज : तुम्हारी बात का मान रखने के लिए मैंने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी। महाभारत के युद्ध में कृष्ण भगवान ने भीष्म की प्रतिज्ञा का मान रखने के लिए अपनी शस्त्र न उठाने की प्रतिज्ञा तोड़ दी थी।

तड़के का मेंह और सांझ का बटेऊ टला नहीं करते : सुबह सुबह जो बादल घिर कर आता है वह बरसता जरूर है (टलता नहीं है)। जो अतिथि शाम को घर आता है वह टिकता जरूर है (टलता नहीं है)।

ततड़ी ने दिया जनमजली ने खाया, जीभ जली स्वाद भी न पाया : ततड़ी माने जली हुई या दुखियारी। जनम जली माने अभागन स्त्री। जब दो अभागे लोग एक दूसरे की सहायता करने की कोशिश करें तो।

तत्ता कौर, न निगलने का न उगलने का : कभी धोखे से बहुत गरम कौर मुँह में रख लिया जाए तो बड़ी दुविधा की स्थिति हो जाती है, गरम की वज़ह से निगल भी नहीं सकते, मुँह में रखे रहें तो मुँह जलता है और थूक दें तो असभ्यता होती है।

तत्ते पानी से क्या घर जलते हैं : दुर्वचनों से किसी का अनिष्ट नहीं होता।

तन उजला मन सांवला, बगुले का सा भेक, तोसे तो कागा भला, बाहर भीतर एक : जो लोग देखने में भलेमानस लगते हैं पर मन के काले होते हैं उन के लिए कहा गया है कि आप तो बगुले की तरह बाहर से सफ़ेद और भीतर से काले अर्थात धूर्त हो : आप से तो कौआ अच्छा है जो बाहर से भी काला है और भीतर से भी।

तन कसरत में, मन औरत में : जो लोग व्यायाम तो करते हैं पर उनका ध्यान भोग वासनाओं में लगा रहता है उनका शरीर स्वस्थ नहीं हो सकता।

तन की तनक सराय में, नेक न पावो चैन, सांस नकारा कूच का, बाजत है दिन रैन : शरीर रूपी छोटी सी सराय में सांस रूपी नकारा बजता रहता है। जाने की तैयारी हर समय है इस लिए चैन से न बैठो।

तन तकिया मन विश्राम, जहाँ पड़े वहीं आराम : परिश्रमी व्यक्ति को बढ़िया बिस्तर और तकिये की आवश्यकता नहीं है। उसका शरीर ही तकिया है और हर स्थान उस के विश्राम के लिए उपयुक्त है।

तन ताजा तो कलन्दर ही राजा : शरीर स्वस्थ हो तो फ़कीर भी राजा है। कलन्दर – मस्त, फक्कड़।

तन दे मन ले : अपने शरीर द्वारा किसी की सहायता कर के ही आप उस का मन जीत सकते हैं।

तन पर चीर न घर में नाज, दद ससुरे का रोपा काज : घर में घोर गरीबी है और ददिया ससुर का श्राद्ध करने जा रहे हैं जो सामर्थ्य से बाहर भी है और बिलकुल अनावश्यक भी है।

तन पर नहीं लत्ता मिस्सी मले अलबत्ता : मिस्सी – लेप करने वाली प्रसाधन सामग्री। शरीर पर ढंग के कपड़े नहीं हैं और सुगन्धित लेप लगा रहे हैं। साधन न होने पर भी अनावश्यक खर्च करना।

तन पर नहीं लत्ता, पान खाएँ अलबत्ता : साधन न होने पर भी अनावश्यक शौक करना।

तन पिंजरा मन तीतरा सांस जीव का मूल, जब तीतर उड़ जात है होता पिंजर धूल : शरीर पिंजरा है और मन उसमें रहने वाला पक्षी है। जब पक्षी उड़ जाता है तो पिंजरा मिटटी हो जाता है।

तन पुतला है ख़ाक का इसे देख मत फूल, इक दिन ऐसा आएगा मिले धूल से धूल : शरीर मिटटी का पुतला है। इस के ऊपर घमंड मत करो। एक दिन ऐसा आएगा जब यह धूल का पुतला धूल में मिल जाएगा।

तन फूहड़ का भैंस सा भारी, कहे कहो मोहे नाजो प्यारी : फूहड़ स्त्री भैंस सी मोटी है लेकिन पति से कहती है कि मुझे सुकुमारी पुकारो।

तन मोर सा मन चोर सा : जो व्यक्ति देखने में सौम्य और आकर्षक हो पर अंदर से चोर हो।

तन शीतल हो शीत सों, मन शीतल हो मीत सों : शरीर तो ठन्डे मौसम और ठंडी हवा से शीतल होता है परन्तु मन मित्र का साथ मिलने पर शीतल होता है।

तन सुखी तो चैन है, वरना दुख दिन रैन है : शरीर निरोग हो तभी मनुष्य को चैन मिलता है, वरना दुःख ही दुःख है।

तन सुखी तो मन सुखी, मन सुखी तो तन सुखी : शरीर स्वस्थ हो व कोई रोग न हो तो मन भी सुखी रहता है और मन प्रसन्न हो तो शरीर भी सुखी रहता है।

तपे जेठ तो बरखा हो भरपेट : जेठ में अधिक गरमी हो तो वर्षा अच्छी होती है।

तपे मृगशिरा जोय, तो बरखा पूरन होय : मृगशिरा नक्षत्र में अधिक गर्मी पड़े तो पूर्ण वर्षा होती है।

तब लग झूठ न बोलिए, जब लग पार बसाय : जब तक बहुत मज़बूरी न हो, झूठ नहीं बोलना चाहिए।

तबेले की बला बंदर के सर : पुराने लोग मानते थे कि तबेले में घोड़ों के साथ बन्दर पाले जाएं तो घोड़ों पर आने वाली बला बंदरों पर आ जाती है। इस के पीछे एक कहानी भी है। एक राजा की घुड़साल के पास बहुत से बन्दर रहते थे। उन में से कुछ युवा बन्दर बहुत शैतान थे। वे सैनिकों का सामान चुरा कर भाग जाया करते थे। सयाने बन्दर उन्हें बहुत समझाते थे कि राजा के आदमियों से पंगा मत लो, पर वे एक न मानते थे। एक बार एक शैतान बन्दर कहीं से जलती हुई लकड़ी उठा लाया और फूस की झोंपड़ी के पास गिरा दी। उससे अस्तबल में आग लग गई और बहुत से अच्छी नस्ल के कीमती घोड़े जल गए। घोड़ों के वैद्य ने बताया कि घोड़ों के घावों को ठीक करने के लिए बन्दर के मांस का लेप करना होगा। इस इलाज के चक्कर में बेचारे बहुत से बन्दर मुफ्त में मारे गए। तभी से यह कहावत बनी।

तमाम रात पीसा और नाली में सकेला : किसी मूर्ख स्त्री ने रात भर मेहनत कर के कोई चीज़ पीसी और सुबह नाली में बहा दी। कोई व्यक्ति किसी काम के लिए बहुत मेहनत करे और अंत में उस चीज़ को व्यर्थ गंवा दे तो।

तय की तेरी, हाथ की मेरी : जो बंटवारा तय हुआ है वह तुम बाद में ले लेना, अभी जो हाथ में है वह मेरा है।

तरवर तास बिलम्बिए, बारह मास फलंत, सीतल छाया गहर फल, पंछी केलि करंत : कबीर कहते हैं कि ऐसे वृक्ष के नीचे विश्राम करो, जो बारहों महीने फल देता हो। जिसकी छाया शीतल हो,  खूब फल लगते हों और पक्षी क्रीडा करते हों। यहाँ वृक्ष से अर्थ सज्जन पुरुष से भी है।

तरवर बिना सरबर सूना : (राजस्थानी कहावत)। तालाब के पास पेड़ अवश्य होने चाहिए। पर्यावरण के हिसाब से भी दोनों एक दूसरे के पूरक हैं।

तरुवर अच्छा छांवला और रूप सुहाना सांवला : पेड़ वही अच्छा है जो छाँव देता हो और रूप सबसे मोहक वही होता है जो सांवला हो। सांवले व्यक्ति को सांत्वना देने के लिए।

तरुवर फल नहिं खात हैं, सरबर पियहिं न पान, कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान : वृक्ष कभी फल नहीं खाते और तालाब खुद पानी नहीं पीते। सज्जन लोग अपने द्वारा संचित किये गए धन को परोपकार के लिए ही प्रयोग करते हैं।

तलवार का खेत हरा नहीं होता : जोर जबरदस्ती से कराई गई खेती सफल नहीं हो सकती।

तलवार गिरी और परजा फिरी : हाकिम का आतंक खत्म होते ही प्रजा मनमानी करने लगती है। इसका अर्थ यह भी हो सकता है कि जो प्रजा विद्रोह पर उतारू है वह तलवार का वार होते ही वापस घरों में दुबक जाती है।

तलवार मारे एक बार, एहसान मारे बार बार : तलवार तो इंसान को एक ही बार में मार देती है लेकिन किसी का एहसान बार बार आदमी को मारता है (लज्जित करता है)।

तलवार म्यान में ही अच्छी : तलवार बाहर निकलती है तो खून खराबा करती है। यहाँ तलवार से अर्थ विवादित मुद्दों से भी है।

तलवों की सी कहूँ या जीभ की सी : एक हाकिम ने मुक़दमे के वादी और प्रतिवादी दोनों से रिश्वत खाई, एक ने मिठाई भेंट की और दूसरे ने पैर तले अशर्फी सरका दी। अब हाकिम परेशानी में कि तलवे की बात मानें या जीभ की।

तले पड़ा हूँ पर टांग तो मेरी ही ऊपर है : कुश्ती में जिस की पीठ जमीन से लग जाए वह हारा हुआ मान लिया जाता है। कोई हारा हुआ पहलवान कह रहा है कि मैं नीचे पड़ा हूँ तो क्या हुआ, मेरी टांग तो ऊपर है। हार कर भी हार न मानना।

तले पड़ी का मोल क्या : 1. जो वस्तु आसानी से उपलब्ध हो उस की कदर नहीं होती। 2. कोई वस्तु बेकद्री से पड़ी हो तो मूल्यहीन हो जाती है और वही वस्तु अच्छे रख रखाव से मूल्यवान बन जाती है।

तवा चढ़ा बैठी मिसरानी, घर में नाज, अगन न पानी : मिसरानी – मिश्रानी, ब्राह्मणी, खाना बनाने वाली। घर में कुछ साधन न होते हुए भी बड़ा काम करने के लिए तैयार होना।

तवा न तगारी, काहे की भटियारी : न तवा है न थाली, तो तुम संपन्न घर की कहां से हो गईं।

तवायफ के बिछौने पर बना है काम सोने का, न ठहरेगा मुलम्मा है अबस है ज़र के खोने का : तवायफ – वैश्या, मुलम्मा – बारीक परत। वैश्या के बिछौने पर सोने की कारीगरी किस काम की? बहुत से व्यक्तियों के सम्पर्क में आने के कारण वह जल्द ही बेकार हो जाएगी। कहावत का अर्थ है कि कोई नाज़ुक चीज़ ऐसे स्थान पर प्रयोग करना बेकार है जहाँ उस का रुखाई से प्रयोग हो।

तस्वीह फेरूँ, किस को घेरुं : तस्वीह – फेरने वाली मनकों की माला। ढोंगी भगत के लिए जो दिखावे के लिए माला फेर रहा है और मन में सोच रहा है कि किस को घेरूं।

तांक झाँक कर मत चले, ये है बुरा सुभाव, जार कहें या चोट्टा या फिर ऊदबिलाव : जार माने व्यभिचारी। दूसरों के घरों में ताँक झाँक करने वाले को चरित्रहीन या चोर समझा जाता है या ऊदबिलाव कह कर गाली दी जाती है।

तंगी में कौन संगी : जब आदमी परेशानी में होता है तो कोई साथ नहीं निभाता।

तंदुरस्ती हजार नियामत (सेहत हजार नेमत) : नियामत का अर्थ है वह चीज़ जिसको पाने की आपकी बहुत इच्छा हो पर उसको पाना कठिन हो। जैसे धन दौलत, उच्च पद आदि। कहावत में बताया गया है कि अच्छा स्वास्थ्य इस प्रकार की हजार नियामतों के बराबर है। यदि हमारा स्वास्थ्य ही ठीक नहीं होगा तो ये सब नियामतें हमारे किस काम आएँगी।

ताक पे बैठा उल्लू, माँगे भर भर चुल्लू : जब कोई बेशर्म हाकिम अधिक रिश्वत मांगे। जब छोटा आदमी बड़े पर हुक्म चलाए तो भी।

ताकत कमर में चाहिए औलाद के लिए, रखते नहीं हैं सिर्फ भरोसा मदार का : शाह मदार मुस्लिमों के एक प्रसिद्ध संत हुए हैं जिनके आशीर्वाद से संतान प्राप्ति होती है। कहावत में कहा गया है कि संतान प्राप्त करने के लिए खाली शाह मदार का आशीर्वाद ही नहीं पौरुष शक्ति भी चाहिए। किसी भी कार्य को सिद्ध करने के लिए केवल पूजा पाठ ही नहीं पुरुषार्थ भी आवश्यक है।

ताज़ी पर बस न चला तुर्की के कान काटे : ताज़ी और तुर्की घोड़ों की नस्लें हैं। कहावत उन लोगों पर कही गई है जो किसी एक पर बस न चले तो दूसरे पर उसका गुस्सा उतारते हैं।

ताज़ी मार खाय, तुरकी माल खाय : भाग्य से बहुत कुछ होता है। एक ही जगह रहने वाले दो लोगों में से एक मार खाता है और एक माल खाता है।

ताड़ पेड़ के नीचे दूध भी पिए तो लोग समझें कि ताड़ी पिए है : बुरी संगत में रह कर अच्छा काम भी करोगे तो लोग गलत ही समझेंगे।

ताड़ने वाले कयामत की नज़र रखते हैं : कोई काम कितना भी छिप कर करो, होशियार लोग देख ही लेते हैं।

ताता खाए छाँव में सोए, उस के पीछे बैद रोए : जो गर्म खाना खाता है और छाँव में सोता है वह बीमार नहीं पड़ता (इस कारण वैद्य को रोना पड़ता है)।

ताती रोटी और ठंडा पानी। सब तरह से सुख : ताज़ी गरम रोटी और ताजा ठंडा पानी, ऐसा सुख सब के भाग्य में नहीं होता।

ताते दूध बिलाई नाचे : कटोरे में तेज़ गरम दूध रखा हो तो उसे पी भी नहीं पाएगी और वहाँ से हटेगी भी नहीं, उसके चारों ओर नाचती रहेगी। जरूरत मंद मनुष्य भी अपनी जरूरत की चीज़ के लिए इसी प्रकार का व्यवहार करता है।

तार टूटा और राग पूरा हुआ : यदि उपकरण खराब होने से बिल्कुल पहले कार्य पूरा हो गया (जिससे काम रुका नहीं) तो यह कहावत कही जाती है।

तारे रौशनी करें तो चन्द्रमा क्या झख मारे : अगर छोटे लोग ही सारा काम कर लें तो बड़ों को कौन पूछेगा।

ताल तो भोपाल ताल, और सब तलैयां, गढ़ तो चित्तौड़गढ़, और सब गढ़ैयां : जिस ने भोपाल की झील देखी है वह इस कथन से जरूर सहमत होगा। चित्तौड़गढ़ के भग्नावशेष देख कर भी यह समझा जा सकता है की अपने समय में यह अद्वितीय रहा होगा। साथ ही बर्बर असभ्य मुगलों से घृणा भी होगी जिन्होंने इस प्रकार की उत्कृष्ट कृतियों को नष्ट किया।

ताल न तलैया, सिंघाड़े बुवैया : तालाब है नहीं और सिंघाड़े बोने की सोच रहे हैं। बिना साधन काम करने की सोचना।

ताल बजा कर मांगे भीख, उसका जोग रहा क्या ठीक : योगी वह है जो केवल ईश्वर की आराधना में ध्यान लगाए और जो कुछ भी रूखा सूखा मिल जाए वही खा के काम चलाए। गाना गा गा कर भीख मांगने वाले को योगी या साधु कैसे मान सकते हैं।

ताल में चमके ताल मछरिया, रन चमके तलवार, तम्बुआ चमके सैंया पगड़िया, सेज पे बिंदिया हमार : हर चीज़ अपनी अपनी जगह शोभा पाती है।

ताल में पानी नहीं हाथी को नेवता : साधन न होते हुए भी बहुत बड़ा काम करने की मूर्खता करना।

ताल सूख चौरस भयो, हंसा कहीं न जाए, मरे पुरानी प्रीत को, कंकर चुन चुन खाए : तालाब सूख गया है लेकिन हंस कहीं और ठिकाना ढूँढने नहीं जा रहा है। तालाब के प्रति अपने पुराने प्रेम के कारण वह जान देने को तैयार है और कंकड़ खा रहा है। इस कहावत को प्रेम के प्रति त्याग के महान आदर्श के रूप में भी प्रयोग कर सकते हैं और व्यक्ति के मूढ़ प्रेम एवं अनावश्यक आसक्ति के लिए भी प्रयोग कर सकते हैं।

ताल से तलैया गहरी, सांप से संपोला जहरी : संपोला माने सांप का बच्चा, ताल माने बड़ा तालाब और तलैया माने छोटा सा तालाब। जहाँ बेटा बाप से भी ज्यादा खुराफाती हो वहाँ यह कहावत कही जाती है।

तालाब के भरोसे घड़ा नही फोड़ा जाता : तालाब और घड़ा, दोनों का अपना महत्त्व है। इसी प्रकार समाज में छोटे बड़े सभी लोगों का महत्व होता है। यदि हमारे सम्बन्ध किसी बड़े आदमी से हों तो अपने निकटवर्ती छोटे लोगों को छोड़ नहीं देना चाहिए।

तालाब खुदा नहीं घड़ियाल डेरा डाल लिया : कोई काम होने से पहले ही उससे लाभ लेने वालों का इकट्ठा होना। (तालाब खुदने के बाद जब पानी से भर जाता है तो घड़ियाल उस में रहने के लिए आ जाते हैं)।

तालाब प्यासो और ब्याह भूखो : जो व्यक्ति तालाब के पास रह कर प्यासा रहे और बरात में जा कर भी भूखा रहे। मूर्ख या दुर्भाग्य का मारा व्यक्ति।

ताली एक हाथ से नहीं बजती : जब दो लोगों में झगड़ा होता है तो दोनों ही यह सिद्ध करने की कोशिश करते हैं कि इन की रत्ती भर भी गलती नहीं है, दूसरे ने ही झगड़ा किया है। ऐसे में सयाने लोग समझाते हैं कि देखो ताली तभी बजेगी जब दोनों हाथ एक दूसरे से टकराएंगे। कुछ न कुछ गलती दूसरे की भी होती है। इंग्लिश में कहावत है – It takes two to quarrel.

ताली दोउ कर बाजे (ताली दोनों हाथसे बजती है) : ऊपर वाली कहावत की भांति।

ताली बिन कैसा ताला, जोरू बिन कैसा साला : चाबी के बिना ताला बेकार है और पत्नी के बिना साले की कोई अहमियत नहीं है।

ताले बनियों के लिए होते हैं, चोरों के लिए नहीं : अर्थ स्पष्ट है। हम लोग ताला लगा कर निश्चिन्त हो जाते हैं, पर चोर के लिए ताले की कोई बिसात नहीं है।

तावल मत कर काज में धीरे धीर चला, ताता भोजन बालके देउत जीभ जला : तावल – उतावलापन, ताता – गरम। काम में उतावलापन न कर के धीरे धीरे चलो। बच्चा गरम खाने को मुंह में रख कर जीभ जला लेता है।

ताश पर मूंज का बखिया : ताश – सलमा सितारों वाला बारीक काम, मूंज – खाट बुनने वाला बान। सलमा सितारे वाले बारीक काम में कोई मूंज का बखिया लगा कर सिल दे तो यह अत्यधिक फूहड़पन कहलाएगा। बने बनाए काम को बिगाड़ देना।

तांत बजी राग पहचाना : किसी चीज़ की शुरुआत होते ही फौरन पहचान लेना।

तांत सी देह, पाँव न हाथ, लड़न चली सूरन के साथ : (वाद्य यंत्रों में बंधने वाले पतले तार को तांत कहते हैं)। किसी बहुत दुबले पतले कमजोर परन्तु दुस्साहसी व्यक्ति के लिए। लड़न चली सूरन के साथ अर्थात शूरवीरों के साथ लड़ने चली है।

तांबा देख व्यापार, मुँह देख व्यवहार : तांबे से अर्थ यहाँ रूपये पैसे से है। किसी के पास कितना पैसा है यह देख कर व्यापार किया जाता है (नकद ले रहा है या उधार, उधार चुका पाएगा या नहीं) और व्यक्ति से व्यवहार उस की हैसियत के अनुसार किया जाता है।

तिनका उतारे का भी एहसान होता है : किसी ने आपका बहुत छोटा सा काम भी किया (सर पे से तिनका हटा दिया हो) उसका भी एहसान मानना चाहिए।

तिनका कबहुँ न निंदिये, जो पाँयन तर होय, कबहुँ उड़ आँखिन परे, पीर घनेरी होय : तिनका यदि पैरों के नीचे हो तो उस की निंदा मत करो, यदि वह उड़ कर आँख में गिर गया तो बहुत कष्ट देगा। अर्थ यह है कि कोई व्यक्ति कितना भी छोटा क्यों न हो उसका अपमान मत करो।

तिनका गिरा गयंद मुख तनिक न घटा अहार, सो ले चली पिपीलिका पालन को परिवार : गयंद – हाथी, पिपीलिका – चींटी। हाथी के मूंह से तिनका गिरा तो उसका भोजन तो जरा भी कम नहीं हुआ लेकिन उससे चींटी के पूरे परिवार का पालन हो गया। अर्थ है कि यदि अमीर लोग चाहें तो थोड़े से प्रयास से ही गरीबों की बहुत सहायता कर सकते हैं।

तिनका हो तो तोड़ लूँ प्रीत न तोड़ी जाए, प्रीत लगी टूटत नहीं जब लग मौत न आए : किसी से सच्चा प्रेम हो तो आसानी से नहीं टूटता।

तिनके की ओट पहाड़ : 1. छोटा सा तिनका भी आँख के सामने हो तो पहाड़ को ढंक सकता है। 2. पास की छोटी सी चीज़ भी दूर की बड़ी चीज़ से अधिक महत्वपूर्ण हो सकती है।

तिनके की चटाई, नौ बीघा फैलाई : थोड़ा काम कर के बहुत दिखावा करना।

तिनब्याहे का बढ़िया भाग, दो ले जाएँ अरथी और इक ले जाए आग : जो आदमी तीन शादियाँ करे उसका मजाक उड़ाने के लिए।

तिरिया जने बार बार, जबान जने एक बार : स्त्री बार बार संतान को जनती है (पैदा करती है) पर जबान को एक ही बार बात जननी चाहिए। जबान से निकली बात बदलनी नहीं चाहिए।

तिरिया तुझ से जो कहे, उसको तू मत मान, तिरिया मत पर जो चले, वह नर है निर्ज्ञान : जो पुरुष अपने विवेक का उपयोग न कर के केवल स्त्रियों के कहने पर चलते हैं वे निरे मूर्ख होते हैं।

तिरिया तेरह मर्द अठारह : कहावत उस समय की है जब कम आयु में ही विवाह हो जाते थे। कहावत के अनुसार विवाह के लिए लड़की की आयु कम से कम तेरह वर्ष और लड़के की कम से कम अठारह वर्ष होनी चाहिए।

तिरिया तेल हमीर हठ, चढ़े न दूजी बार : राजस्थान के वीर हम्मीर देव चौहान के विषय में कहावत है कि वे जो हठ कर लेते थे उससे हटते नहीं थे। पूरी कहावत इस प्रकार है – सिंह सुवन, सत्पुरुष वचन, कदली फले इक बार, तिरिया तेल हमीर हठ चढ़े न दूजी बार। अर्थात सिंह एक ही संतान को जन्म देता है, सत्पुरुष अपने वचन पर अडिग रहता है, केला एक ही बार फल देता है, स्त्री पर तेल व उबटन एक ही बार चढ़ता है (अर्थात उस का विवाह एक ही बार होता है) और हम्मीर एक ही बार हठ करता है।

तिरिया तो है शोभा घर की जो हो लाज रखावा नर की : वही स्त्री घर की शोभा होती है जो पुरुष की लाज रखे।

तिरिया बिन तो नर है ऐसा, राह बटाऊ होवे जैसा : स्त्री के बिना पुरुष ऐसा ही है जैसा राह में चलता हुआ राहगीर (जो हमेशा अपनी मंजिल की तलाश में रहता है)। बटाऊ – राहगीर।

तिरिया बिस की बेल है, या सूं बच कर चाल, याका नेहा खोत है, दीन धरम धन माल : स्त्री विष की बेल है इससे बच कर चलो, इसका प्रेम धोखा है और आपके दीन, धर्म, धन और माल के लिए खतरा है।

तिरिया भी बिन नर है ऐसी, बिना धनी के खेती जैसी : स्त्री पुरुष के बिना सब तरह से असुरक्षित है।

तिरिया रोवे गेह बिना, खेती रोवे मेह बिना : स्त्री घर के लिए तरसती है और खेती वर्षा के लिए।

तिरिया सके न बात पचाय : स्त्रियों के पेट में कोई बात नहीं पचती।

तिरिया सरम की, कमाई करम की : करम – कर्म, भाग्य।स्त्री वही अच्छी जो लज्जाशील हो। कमाई अपने उद्यम और भाग्य दोनों से होती है।

तिल गुड़ भोजन नीच मिताई, आगे मीठ पाछे कडुआई : तिल गुड़ से बनी मिठाई आप खाते हैं तो पहले मीठी लगती है पर बाद में मुँह में कड़वाहट आ जाती है, इसी प्रकार नीच से मित्रता शुरू में अच्छी लगती है पर बाद में उस से परेशानी होती है।

तिल गुड़ भोजन तुरक मिताई, गेंवड़े खेती गाँव सगाई, पहले सुख पीछे दुखदाई, मतकर भाई मतकर भाई : तिल गुड़ से बनी मिठाई, मुसलमान की दोस्ती, गाँव के पास खेती और अपने ही गाँव में सगाई यह सब शुरू में अच्छे लगते हैं पर बाद में कष्ट देते हैं।

तिल चोर सो बज्जुर चोर : चोर तो चोर है चाहे बड़ी चीज़ चुराने वाला हो या तिल जैसी छोटी चीज़।

तिल तिल खाए, पहाड़ बिलाय : कितना भी धन इकट्ठा हो यदि उसमें से थोड़ा-थोड़ा लगातार खर्च करते रहोगे और उसमें जोड़ोगे  नहीं तो कभी न कभी वह खर्च हो जाएगा.

तिल रहे तो तेल निकले : व्यापार की पूँजी ही खा जाओगे तो व्यापार क्या करोगे।

तिल, तीखुर और दाना, घी शक्कर में साना, खाय के बूढ़ा होय जवाना : तीखुर – हल्दी की प्रजाति का एक पौधा जिस की जड़ का सत हलुआ खीर आदि बनाने के काम आता है, दाना – पोस्त का दाना। तिल, तीखुर और पोस्त को घी शक्कर के साथ खाने से बूढ़े भी जवान हो जाते हैं।

तिलचट्टे को मारने से हाथ ही गंदा होता है : नीच को दंड देने की कोशिश में अपना ही नुकसान हो सकता है।

तिलों की परख तो तेली ही जानता है : हर व्यक्ति अपने अपने व्यवसाय से सम्बंधित चीजों के विषय में जानकार होता है।

तिसरी पीढ़ी सुधरे या तिसरी पीढ़ी बिगड़े : जो आज निर्धन है उस की तीसरी पीढ़ी धनवान हो सकती है, और जो आज सम्पन्न है उस की तीसरी पीढ़ी निर्धन हो सकती है। ऐसा इसलिए होता है कि निर्धन परिवार में अधिकतर बच्चे विनम्र और परिश्रमी होते हैं, जबकि धनी के बच्चे आलसी और नकचढ़े।

तीखी हु नीकी लगे कहिए समय बिचारि, सबके मन हर्षित करे ज्यों विवाह में गारि : उचित समय पर कही हुई तीखी बात भी अच्छी लगती है, जिस प्रकार विवाहादि में गाई जाने वाली गालियाँ (हंसी मज़ाक के लोक गीत) भी अच्छी लगती हैं।

तीतर की बोली बटेर क्या जाने : किसी समुदाय की भाषा उसी समुदाय के लोग समझ सकते हैं।

तीतर के मुँह लक्ष्मी : हाकिम कितना भी निकृष्ट क्यों न हो उस की जवान में बहुत ताकत होती है।

तीतर जाने तीतर की, मैं जानूँ तेरे भीतर की : बच्चों की कहावत।

तीन कचौड़ी नौ बराती खाओ ठूसमठूस, वाह भटियारिन तेरे घर ब्याह है या है लूटमलूट : किसी कंजूस महिला का मजाक उड़ाया गया है। अपने घर शादी में वह लोगों से कह रही है कि नौ बरातियों के बीच में तीन कचौड़ियाँ हैं, खूब ठूँस ठूँस कर खाओ। इस के जवाब में दूसरी महिला व्यंग्य कर रही है कि भई कमाल है, तेरे घर की शादी में तो लूट मची हुई है।

तीन कनौजिया तेरह चूल्हे : कनौजिया लोगों के बारे में कहा जाता है कि वे कभी मिल कर नहीं रह सकते। सब के चूल्हे अलग ही जलते हैं।

तीन का टट्टू तेरह का जीन : चीज़ की कीमत तो कम हो पर उसके साथ प्रयोग में आने वाला तामझाम महंगा हो तो।

तीन कोस के बाद भी काना मिल जाए तो वापस आ जाना चाहिए : पहले के लोग शगुन अपशगुन का बहुत विचार करते थे। किसी काम के लिए जाओ और कोई काना व्यक्ति दिख जाए। तो यह बहुत बड़ा अपशगुन माना जाता था। (वैसे यह काने व्यक्ति के साथ बहुत बड़ा अन्याय है)।

तीन गुनाह तो खुदा भी माफ़ करता है (तीन गुनाह खुदा भी बख्शता है) : अपराध करने वाले अक्सर यह कह कर सजा से बचना चाहते हैं। किसी को क्षमादान के लिए प्रेरित करना हो तो भी ऐसे बोला जाता है।

तीन जात अलगरजी, नाऊ, धोबी, दर्जी : हज्जाम, धोबी और दर्जी किसी की परवाह नहीं करते (स्वार्थी होते हैं)।

तीन टांग की घोड़ी, नौ मन की लदान : किसी अक्षम व्यक्ति पर बहुत सा काम लाद दिया जाए तो।

तीन तिकट महा विकट, चार का मुँह काला, पाँच हो तो आला : तीन लोग हों तो कोई काम नहीं होता और चार हों तो सब का मुँह काला होता है, पाँच हों तो बढ़िया काम होता है।

तीन तिगाड़ा काम बिगाड़ा : लोक विश्वास है कि तीन लोग मिल कर कोई काम करें तो काम बिगड़ जाता है।

तीन दिए और तेरह पाए, कैसे लोभ ब्याज का जाए : ब्याज पर रुपये देने से बहुत मोटा मुनाफा होता है इसलिए लोग ब्याज का लालच नहीं छोड़ पाते हैं।

तीन पाव की तीन पकाई सवा सेर की एक, जेठ निपूता तीन खा गया मैं संतोखन एक : किसी किसी पुरानी कहावत में उच्च कोटि का हास्य व्यंग्य देखने को मिलता है। कोई महिला बता रही है कि तीन पाव आटे से तीन रोटी पकाईं (यानि एक एक पाव की तीन) और सवा सेर आटे से एक पकाई। जेठ लालची और खाऊ था एक एक पाव की तीन रोटी खा गया और मुझ बेचारी को सवा सेर की एक खा कर संतोष करना पड़ा। कहावत उन लोगों के लिए कही गई है जो परले दर्जे के शातिर होते हैं और खुद को मासूम सिद्ध करने की कोशिश करते हैं।

तीन बराती नौ पाहुने : महत्वपूर्ण लोग कम और फ़ालतू लोग अधिक।

तीन बुलाए तेरह आए देखो यहाँ की रीत, बाहर वाले खा गए घर के गावें गीत : अनुमान से अधिक मेहमान आ जाएँ तो ऐसा होता है।

तीन बुलाए तेरह आए, दे दाल में पानी : किसी ने घर में दावत आयोजित की। जितने लोग बुलाए थे उससे बहुत अधिक लोग आ गए। खाना कम पड़ने की नौबत आ गई। तो बेचारे ने दाल में पानी मिलाकर उसे पतला किया। तब से यह कहावत बन गई। किसी भी कार्य में यदि अनुमान से बहुत अधिक खर्च होने की नौबत आने लगे तो जुगाड़ करनी पड़ती है। ऐसे में यह कहावत प्रयोग की जाती है।

तीन में न तेरह में, मृदंग बजाएं डेरे में : उपेक्षित होते हुए भी डींग हांकना।

तीन रांडें मुझे रंडुआ कर गईं, एक रांड तो मैं भी करूँगा : किसी व्यक्ति की एक के बाद तीन पत्नियों की मृत्यु हो गई। वह चौथा विवाह करने चला तो लोगों ने कहा कि अब अधेड़ावस्था में विवाह क्यों कर रहे हो। तब उसने चिढ़ कर ऐसा कहा।

तीन लोक से मथुरा न्यारी : 1. अति प्रिय स्थान। 2. ऐसी जगह जिस के सब नियम कायदे अलग ही हों।

तीनों पन नहिं एक समान : तीनों पन अर्थात जीवन की तीन अवस्थाएं।

तीर न कमान, काहे के पठान : पठान से पूछा जा रहा है कि अगर तुम्हारे पास तीर कमान नहीं हैं तो काहे के योद्धा बने फिर रहे हो।

तीर नहीं तो तुक्का ही सही : तुक्का माने बिना फलक का तीर। कहावत का प्रयोग इस तरह करते हैं कि यदि किसी बात का प्रमाण न हो तो अंदाज़ से कुछ भी बोल दो।

तीर, तुरमती (बाज), इस्तिरी छूटत बस न आएं, झूठ जो मानें ये वचन ते नर कूढ़ कहाएं : तीर, बाज और स्त्री एक बार हाथ से निकल जाएँ तो दोबारा हाथ नहीं आते।

तीरथ गए से एक फल, संत मिले फल चार, सतगुरु मिले अनेक फल, कहे कबीर विचार : अच्छे गुरु का मिल जाना तीर्थ जाने और संतों के साथ सत्संग करने से भी कई गुना फलदायक है।

तीसरी बार खीर भी बेसवाद लगती है : कोई चीज कितनी भी प्रिय क्यों न हो, अधिक मात्र में मिल जाए तो उस का महत्व ख़त्म हो जाता है।

तीसरे दिन मुरदा भी हलाल है : मुसलमान अपने आप मरे हुए जानवर को खाना हराम मानते हैं। लेकिन अगर कोई मुसलमान तीन दिन से भूखा हो तो मरे हुए जानवर को खाना भी हलाल (धर्म सम्मत) मान लिया जाता है। आशय है आपातकाल में धर्म अधर्म नहीं देखा जाता।

तुझको पराई की क्या पड़ी, अपनी निबेड़ तू : जो खुद परेशानी में हो और दूसरों की परेशानी में टांग अड़ा रहा हो उस को सीख दी गई है।

तुझे हुकहुकी आवे तो मुझे डुबडुबी आवे : नदी के इस पार रहने वाले एक सियार और ऊंट में बड़ी दोस्ती थी। नदी के उस पार खरबूजे के खेत थे। सियार का मन खरबूजे खाने के लिए करता था लेकिन वह नदी को पार नहीं कर सकता था। उसने ऊंट को इस बात के लिए पटाया कि वह उस को अपनी पीठ पर बैठा कर उस पार ले जाए तो दोनों खूब खरबूजे खाएंगे। ऊँट राजी हो गया और दोनों उस पार पहुंच गए। वहां खूब खरबूजे खाने के बाद सियार बोला कि मुझे हुकहुकी आ रही है (मेरा मन हुआ हुआ करने को कर रहा है)। ऊँट ने कहा, ऐसा मत करना। अभी खेत का मालिक आ जाएगा और हमें मारेगा। पर सियार नहीं माना और हुआ हुआ करने लगा। खेत के रखवाले डंडा लेकर आए तो सियार झाड़ियों में छुप गया और उन्होंने ऊँट को खूब मारा। ऊंट को बहुत गुस्सा आया पर वह उस समय कुछ नहीं बोला। लौटते समय नदी की बीच धार में ऊंट बोला कि मुझे डुबडुबी आ रही है (मेरा मन डुबकी लगाने का कर रहा है)। सियार बोला भाई ऐसा मत करना, मैं मर जाऊंगा। लेकिन ऊँट नहीं माना। उसके डुबकी लगाते ही सियार नदी की तेज धार में बह गया।

तुम एक लेते नहीं, मैं दो देता नहीं :  तुम कम लेने को तैयार नहीं हो और ज्यादा मैं दूंगा नहीं। मोल भाव के समय का आम दृश्य।

तुम काटो मेरी नाक और कान, मैं न छोडूँ अपनी बान : अत्यंत हठी व्यक्ति के लिए।

तुम रूठे हम छूटे : कोई व्यक्ति आप से अक्सर अपने काम के लिए कहता है और आप को न चाहते हुए भी उसका काम करना पड़ता है। फिर वह कोई काम न होने से आप से नाराज हो जाता है तब यह कहावत कही जाती है।

तुमको हम सी अनेक हैं हम को तुम सा एक, रवि को कमल अनेक हैं कमलन को रवि एक : इस कहावत को यदि कृष्ण और गोपियों का उदाहरण दे कर समझा जाए तो आसानी से समझ आएगी।

तुम्हरे भतार न हमरे जोय, अस कुछ करो कि बेटवा होय : एक विधुर व्यक्ति किसी विधवा स्त्री से विवाह का प्रस्ताव रखने के लिए घुमा फिरा कर कह रहा है, तुम्हारे पति नहीं है और हमारी पत्नी नहीं है, कुछ ऐसा करो कि बेटा हो जाए। मतलब की बात को घुमा फिरा कर कहना।

तुम्हारा हमारा क्या रूठना : यह बाट वह लोग कहते हैं जो काम के समय रूठ जाते हैं और खाने के समय मन जाते हैं।

तुम्हारी बराबरी वह करे जो टांग उठा कर मूते : किसी को गाली देने के लिए सीधे सीधे कुत्ता कहने की बजाए घुमा फिर कर कहा गया है।

तुम्हारे मरे देस पाक, हमारे मरे देस ख़ाक : आज कल के नेता एक दूसरे के लिए ऐसा कहते हैं, तुम मरोगे तो देश में से गंदगी कम होगी और हम मर गए तो देश बर्बाद हो जाएगा।

तुम्हारे मुंह में घी शक्कर : कोई बहुत अच्छी बात बोले तो ऐसा कहा जाता है।

तुम्हें और नहीं हमें ठौर नहीं (मुझे और न तुझे ठौर) :  मजबूरी में एक दूसरे का साथ निभाना, जैसे आजकल के राजनैतिक गठबंधन।

तुरक काके मीत, सरप से क्या प्रीत : तुर्क से दोस्ती क्या और सर्प से प्रीत क्या।

तुरक की यारी, तूम्बे की तरकारी, अंत खारी की खारी : तुर्क से दोस्ती करोगे तो शुरू में चाहे ठीक लगे पर बाद में पछताना पड़ेगा। इसी प्रकार तूम्बे की सब्जी खाने के बाद कड़वी लगती है। तुरक – तुर्क, तुर्की (Turkey) के लोगों को तुर्क कहा जाता है। मुग़ल लोग तुर्की से नहीं आये थे लेकिन आम बोल चाल की भाषा में उन्हें भी तुर्क कहा जाता था। तरकारी माने सब्जी।

तुरक, ततैया, तोतरा जे सब किसके मीत, भीर परत मुख मोड़ लें राखें नाहीं प्रीत : तुर्क, ततैया और तोता ये किसी के मित्र नहीं होते। संकट के समय मुँह मोड़ लेते हैं।

तुरत की पोई तुरत ही खाओ, बासी खा मत तोंद बढ़ाओ : रोटी ताज़ी बनी हुई ही खानी चाहिए, बासी खाने से तोंद बढ़ती है।

तुरत दान महा कल्याण : किसी काम को तुरंत निपटाना ही सबसे अच्छा रहता है।

तुरत फुरत हों सगरे काम, जब होवें मुट्ठी में दाम : पैसा पास हो तो सारे काम तुरंत होते हैं।

तुर्कनी के पकाए में क्या कसर : पहले के समय में हिंदू स्त्रियां खाना बनाने के बाद पहले भगवान को भोग लगाते थीं और फिर घरवालों को खिलाती थीं। वे खाना बनाते समय बीच में चखती नहीं थीं जिससे खाना झूठा न हो जाए। इस कारण से यह संभावना रहती थी कि खाने में कोई कमी हो सकती है। लेकिन मुसलमान स्त्रियाँ क्योंकि वह बीच-बीच में चख कर देख लेती है इसलिए उनके बनाए खाने में कोई कमी नहीं होती।

तुलसी अच्छे वचन सों सुख उपजे चहुँ ओर, बसीकरण यह तंत्र है तज दे वचन कठोर : सत्य और मधुर बोलने से सब ओर सुख पैदा होता है। यही सच्चा वशीकरण यंत्र है।

तुलसी अपने राम को रीझ भजो के खीझ, खेत पड़े सब ऊपजें औंधे सीधे बीज : राम नाम को जाहे खुश रह कर भजो खीझ कर, उसका फल अवश्य मिलता है। खेत में बीज चाहे सीधा पड़ा हो चाहे उल्टा, पौधा सब से निकलता है। (ऐसा माना जाता है कि महाकवि वाल्मीकि पहले डाकू थे। उनको नारद मुनि ने राम नाम जपने का उपदेश दिया तो वह राम राम नहीं बोल पा रहे थे। तब नारद जी ने उनको मरा मरा जपने की सलाह दी। मरामरामरामरा बार बार बोलने से भी राम का नाम निकलता है।

तुलसी अवसर के पड़े, को न सहे दुःख द्वन्द : सभी को कभी न कभी दुःख सहना पड़ता है।

तुलसी ऐसे पतित को बार बार धिक्कार, राम भजन को आलसी खाने को तैयार : ऐसे पतित व्यक्ति को धिक्कार है जो राम का नाम भजने में आलस करे और खाने को हर समय तैयार रहे।

तुलसी ऐसे मीत के कोट फांद कर जाए, आवत ही तो हंस मिले चलत बेर मुरझाए : कोट – किला या किले की चारदीवारी। जो मित्र आपके आते ही हँस कर मिलता है और बिछड़ते समय उदास हो जाता है वही सच्चा मित्र है। ऐसे मित्र से मिलने के लिए किले की दीवार फांद कर भी जाना पड़े तो भी जाना चाहिए।

तुलसी कर से कर्म कर मुँह से भज ले राम, ऐसो समय न आएगो लाखों खरचो दाम : जब तक शरीर स्वस्थ है मनुष्य को कर्म करते रहना चाहिए और साथ साथ मुँह से राम का भजन करते रहना चाहिए। ऐसा अवसर दोबारा नहीं मिलेगा।

तुलसी कलयुग के समय देखो यह करतूत, राम नाम को छांड़ि के पूजन लागे भूत : तुलसी दास जी को इस बात का बहुत दुःख है कि कलयुग में लोग राम नाम को छोड़ कर भूतों की पूजा करने लगे हैं। सब से बुरी बात तो यह है कि लोग मजारों की पूजा करने लगे हैं।

तुलसी के पत्ता छोट बड़ बरोबर होवे : जो वस्तु पवित्र है वह छोटी या बड़ी, पवित्र ही मानी जाती है।

तुलसी जग में दो बड़े, कै रुपया कै राम : तुलसी का नाम ले कर किसी ने कहा है कि संसार में या तो राम बड़े हैं या रुपया। इस प्रकार की तुच्छ बात तुलसीदास नहीं कह सकते।

तुलसी पैसा पास का सब से नीको होय, होते के सब कोय हैं, अनहोते की जोय : जिस प्रकार पास का पैसा ही आदमी के काम आता है उसी प्रकार परेशानी में पत्नी ही काम आती है। (अन्य लोग तो केवल अच्छे दिनों के साथी होते हैं)। आम तौर पर केवल बाद वाला हिस्सा ही बोलते हैं।

तुलसी बिरवा बाग़ के सींचत ही कुम्हलाएँ, राम भरोसे जो रहे परवत पे लहराए : ईश्वर की ऐसी महिमा है कि पर्वत पर भी पेड़ लहराता है जबकि बाग़ में लगा पौधा सींचने के बाद भी कुम्हला सकता है।

तुलसी मन शुद्ध भए जिनके वे तीरथ तीर रहे न रहे : जिनके मन शुद्ध हैं उन्हें तीर्थ के किनारे जा कर रहने की जरूरत नहीं है। (उनकी मुक्ति वैसे ही हो जाएगी)।

तुलसी मीठे वचन सों सुख उपजत चहुँ ओर : मीठे वचन से सब ओर सुख फैलता है।

तुलसी मूढ़ न मानिहै जब लग खता न खाय, जैसे विधवा इस्तिरी गरभ रहे पछताय : मूर्ख व्यक्ति जब तक धोखा नहीं खाता तब तक वह नहीं मानता। जैसे विधवा स्त्री जिसका चाल चलन ठीक न हो गर्भ रह जाने पर पछताती है।

तुलसी या संसार में पांच रतन हैं सार, साधुमिलन अरु हरि भजन, दया, धर्म, उपकार : इस संसार में पाँच रत्न हैं, साधुओं से मिलना, ईश्वर का भजन करना, सब पर दया करना, धर्म पर चलना और परोपकार करना।

तुलसी या संसार में पाखंडी को मान, सीधों को सीधा नहीं झूठों को सम्मान : इस संसार में पाखंडियो को ही सम्मान मिलता है। सीधे लोगों को तो भरपेट भोजन भी नहीं मिलता जबकि झूठे लोगों को सम्मान मिलता है।

तुलसी वह दोउ गए पंडित और गृहस्थ, आते आदर न कियो जात दियो न हस्त : जो आते ही अतिथि का सत्कार नहीं करते और उसके जाते समय हाथ में कुछ देते नहीं हैं, ऐसे लोग मुक्ति नहीं पा सकते।

तुलसी विलम्ब न कीजिए लेते हरी को नाम : ईश्वर का नाम लेने में आलस्य नहीं करना चाहिए।

तुलसी वैश्या देख के करन लगे तकझाँक, आवत देखे संत को मुँह लीन्हों झट ढांक : कहावत उन लोगों के लिए कही गई है जो वैश्या को आते देख कर तो तांक झांक करते हैं और संत को आते देख कर झट से मुँह ढक लेते हैं।

तुलसी हरि की भगति बिन, धिक दाढ़ी धिक मूँछ, पशु गढ़न्ते नर बनो, बिना सींग और पूंछ : हरि की भक्ति के बिना दाढ़ी मूंछें बढ़ा लेने पर धिक्कार है। ऐसे लोग बिना सींग और पूंछ के पशुओं के समान हैं।

तू अपना काम कर, तबलया भूँसन दे : तू अपना काम करता रह तबेले में बैठे कुत्ते को भौंकने दे। आलोचकों से बिना डरे काम करने की सलाह।

तू कबर खोद मोकों, मैं गाड़ आऊँ तोको : तू मेरे लिए कब्र क्या खोदेगा मैं ही तुझे गाड़ दूंगा।

तू गधी कुम्हार की, तुझे राम से क्या : बात ठीक ही है, कुम्हार की गधी को राम से क्या काम। जिसके अंदर कोई आध्यात्मिक चिंतन न हो और जो केवल अपना पेट भरने के लिए किसी की गुलामी कर रहा हो उस के लिए।

तू चाहे मेरे जाये को, मैं चाहूँ तेरी खाट के पाए को : पुरुष पुत्र की इच्छा करता है और स्त्री साथ रहने की। इससे उलट एक दूसरी कहावत है – मैं चाहूँ तेरे जाए को, तू चाहे मेरी खाट के पाए को। स्त्री की रूचि पुत्र को पालने में है और पुरुष की रूचि संसर्ग में।

तू डार डार मैं पात पात : तुम पेड़ की डालों पर चलोगे तो मैं पत्तों पर चलूँगा अर्थात मैं तुम से अधिक चालाक हूँ।

तू डाल मेरे मुँह में उँगली, मैं डालूँ तेरी आँख में : तू मेरा कुछ नुकसान करेगा तो मैं तेरा उससे बड़ा नुकसान करूंगा।

तू तेली का बैल, तुझे क्या सैर, लगा रह घानी से : जो व्यक्ति दिन रात काम में पिसता रहता है उस का मजाक उड़ाने के लिए। घानी – कोल्हू।

तू देवरानी मैं जेठानी, तेरे आग न मेरे पानी : जब दो बराबर के शातिर लोग मिल जाएँ।

तू भी ऐंठा मैं भी ऐंठी कैसे होए निबाह : चाहे विवाह का सम्बंध हो या दोस्ती का, किसी विवाद पर कोई भी झुकने को तैयार न हो तो निर्वाह नहीं हो सकता।

तू भी रानी मैं भी रानी, कौन भरेगा पानी : जहाँ सभी अपनी अपनी ऐंठ में हों वहाँ काम कौन करेगा।

तू मेरा लड़का खिला, मैं तेरी खिचड़ी पकाऊँ : बहू का सास या ससुर से कथन। तुम मुझे सहयोग करो तो मैं तुम्हें सहयोग करूँ।

तू मेरी ढपली बजा, मैं तेरा राग अलापूं : तुम मुझसे सहमत हो तभी मैं तुम्हारी इच्छा के अनुसार बोलूंगा।

तू मेरी पीठ खुजला, मैं तेरी पीठ खुजलाऊँ : पीठ खुजलाना एक ऐसा काम है जो हम खुद से नहीं कर सकते। इस तरह के सभी कामों में एक दूसरे की मदद करना चाहिए।

तू मेरे घूँघट की रख, मैं तेरी मूंछों की रक्खूँ : पत्नी का पति से कथन – तुम मेरी स्त्री सुलभ लज्जा और मर्यादा का ध्यान रखो, मैं तुम्हारे पुरुषत्व का मान रखूँगी।

तू मेरे बारे को चाहे, मैं तेरे बूढ़े को चाहूँ : बहू सास से कह रही है कि तुम मेरे बच्चे का ध्यान रखोगी तो मैं तुम्हारे बुढ़ऊ का ध्यान रखूँगी।

तू सच्चा तेरा पीर सच्चा : जो लोग अपनी आस्थाओं के प्रति बहुत हठी होते हैं उन से पीछा छुड़ाने के लिए ऐसा कहा जाता है।

तूने की रामजनी, मैंने किया रामजना : रामजनी माने वैश्या। वेश्यागामी पति से परेशान कोई स्त्री उस से कह रही है कि तू वैश्या के यहाँ जाता है तो जा, मैं ने भी एक यार पाल लिया है।

तूम्बी का क्या मीठा : जो व्यक्ति हर तरह से केवल कड़वा ही हो।

तूम्बी तिरे, तूम्बी तारे, तूम्बी कभी न भूखा मारे : जो साधु बन गया वह कभी भूखा नहीं मरता।

तूम्बे की बेल पर तो तूम्बे ही लगेंगे : यदि किसी कर्कश स्त्री के बच्चे असभ्य हों तो यह कहावत कही जाएगी।

तृन समूह को छिन भर में, जारत तनिक अंगार : छोटा सा अंगारा तिनकों के ढेर को क्षण भर में जला देता है। ज्ञान की छोटी सी बात, शंकाओं के समूह को भस्म कर देती है।

तेजी का बोलबाला, मंदी का मुँह काला : व्यापारी लोग सब से अधिक मन्दी से डरते हैं।

तेतरी बेटी राज रजावे, तेतरा बेटा भीख मंगावे : तेतरी बेटी – दो बेटों के बाद होने वाली बेटी। दो बेटों के बाद बेटी हो तो शुभ होती है और बेटा हो तो अशुभ।

तेते पाँव पसारिए जेती लम्बी सौर (अपनी पहुँच बिचारि कै, करतब करिये दौर) : जितनी लम्बी आपकी चादर है उतने ही पैर फैलाओ। चादर छोटी हो तो पैर समेट के लेटो। जितनी व्यक्ति की सामर्थ्य हो उतना ही खर्च करना चाहिए।

तेरह के तीन ही देना, पर नाम दरोगा रख देना : कुछ लोग ऐसी नौकरी चाहते हैं जिसमें वेतन चाहे कम हो लेकिन रौब दाब अधिक हो (चाहे बनावटी ही क्यों न हो)।

तेरह बरस की तिरिया पन्द्रह बरस का पुरख, अक्ल आई तो आई नहीं तो रहा जरख : स्त्री में यदि तेरह वर्ष की आयु तक और पुरुष में पंद्रह वर्ष की आयु तक अक्ल न आये तो उसे जानवर समझ लेना चाहिए। जरख – लकडबग्घा।

तेरा तो घड़ा ही फूटा, मेरा तो बना बनाया घर ही ढह गया : एक तेली तेल से भरा घड़ा ले कर शहर की ओर चला तो रास्ते में एक हट्टा कट्टा शेखचिल्ली (निहायत मूर्ख आदमी) मिला। तेली ने कहा मेरा घड़ा लाद लो मैं तुम्हें दो आने दूंगा (पहले के जमाने में दो आने बड़ी रकम थी)। शेखचिल्ली ने घड़ा लाद लिया और जोर जोर से बोलते हुए चलने लगा, मैं इन दो आनों से अंडे खरीदूँगा, उन से मुर्गियाँ निकलेंगी, उन्हें बेच कर बकरी खरीदूँगा, फिर कई बकरियाँ हो जाएंगी तो भैंस खरीदूँगा, उस का दूध बेच कर शादी करूंगा, फिर मेरे खूब सारे बच्चे होंगे, मेरा कहना नहीं मानेंगे तो यूँ उठा के पटक दूंगा, और उसने घड़ा पटक दिया। तेली ने कहा कि तूने मेरा तेल से भरा घड़ा क्यों तोड़ दिया, तो शेखचिल्ली बोला तेरा तो घड़ा ही फूटा है, मेरा तो बना बनाया घर ही उजड़ गया। कहावत में शिक्षा दी गई है कि मूर्ख आदमी से अपना कोई काम नहीं करवाना चाहिए।

तेरा माल सो मेरा माल, मेरा माल सो हें हें : तेरा माल भी मेरा है और जो मेरा है वह तो मेरा है ही। धूर्त व्यक्ति के लिए।

तेरा यार मर गया, कौन सी गली का : वेश्याओं के बहुत सारे ग्राहक होते हैं। सभी अपने आप को उसका खास दोस्त समझते हैं। उनकी नासमझी पर व्यंग

तेरी आँखों में राइ नोन : किसी से बहुत नाराज होने पर उसे कोसने के लिए कहा जा रहा है कि तेरी आँखों में राई और नमक पड़ जाए। तेरे मुँह में घी शक्कर से उल्टा। किसी की नजर लगने की आशंका हो तो भी उस का नाम ले कर फिर यह बोलते हैं।

तेरी करनी तेरे आगे, मेरी करनी मेरे आगे : अपनी अपनी करनी सब के आगे आनी है। कोई आप के साथ अन्याय कर रहा है और आप का कुछ बस नहीं चल रहा तो आप उसे ऐसा बोल कर मन में संतोष कर लेते हैं।

तेरी कुदरत के आगे कोई जोर किसी का चले नहीं, चींटी पर हाथी चढ़ बैठे फिर भी चींटी मरे नहीं : ईश्वर की लीलाएं निराली हैं। ईश्वर चाहे तो ऐसा भी हो सकता है कि चींटी के ऊपर हाथी पैर रख दे फिर भी चींटी न मरे।

तेरी गठरी में लागा चोर, मुसाफिर जाग जरा : मनुष्य को इस सांसारिक यात्रा में काम क्रोध लोभ मोह से सावधान रहने की सलाह दी गई है।

तेरी गाली, मेरे कान की बाली : जिससे प्रेम हो उसकी हर बात अच्छी लगती है।

तेरी मेरी बने नहीं, तेरे बिना सरे नहीं : उन लोगों के लिए जिनमें आपस में बनती नहीं है पर एक दूसरे के बिना काम भी नहीं चलता.

तेरी मेरी बोली में बस इतना ही फरक, तू तो कहे फ़रिश्ता मैं कहूँ था जरख : जरख – लकड़बग्घा। किसी मुसलमान की कब्र खोद कर लकडबग्घा उस की लाश को ले गया। एक जाट ने यह देख लिया। उसने जब मुसलमान के घरवालों को यह बात बताई तो वे बोले कि वह तो लकड़बग्घा नहीं फ़रिश्ता था।

तेरे जौ तेरी दरांती, जैसे चाहे काट : मनुष्य को इस बात की पूरी स्वतन्त्रता है कि वह अपनी चीज़ को जिस तरह चाहे प्रयोग करे।

तेरे मेरे सदके में, उसकी जोरू पेट से : कोई स्त्री पराए आदमी को मना न कर पाने का खामियाजा भुगत रही है (उसे गर्भ ठहर गया है)। इसी प्रकार की दूसरी कहावत है – मुरव्वत में मातियन गाभिन हो गई।

तेरो राम बसत है मन में, तू कहे को डोले वन में : तेरा ईश्वर तेरे मन में बसता है, तू उसे ढूँढने के लिए वन वन क्यों भटक रहा है?

तेल की जलेबी मुआ दूर से दिखाए : एक तो घटिया चीज़ है (तेल से बनी जलेबी) ऊपर से नालायक आदमी खिलाने की बजाए दूर से दिखा रहा है।

तेल जले बाती जले नाम दिए का होए, बेटा तो तिरिया जने नाम पिया का होए : देश और समाज के कामों में त्याग व बलिदान कोई और करता है पर नाम किसी और का होता है।

तेल डाल कमली का साझा : किसी आदमी ने काफी मेहनत और लागत लगा कर कम्बल बनाया और उसे चिकना करने के लिए तेली से तेल मांगा। तेली ने कहा मेरा इस में आधे का साझा होना चाहिए।

तेल तिल से निकलता है, खली से नहीं : जब तिल में से तेल निकाल लिया जाता है तो जो बचता है उसे खली कहते हैं। उस खली में से फिर तेल नहीं निकल सकता। आप सेल में कपड़ा खरीदें और दुकानदार से उस पर भी छूट देने को कहें तो वह यह कहावत बोलेगा।

तेल तेली का नाम भगत जी का : भगत जी ने आरती में सौ दिए जलाए। तेल तो बेचारे तेली का खर्च हुआ और तारीफ़ भगत जी की हुई। किसी और के काम का श्रेय कोई दूसरा ले ले तो।

तेल देखो तेल की धार देखो : किसी बड़े बर्तन से छोटी शीशी में तेल डालना हो तो बड़े धैर्य से तेल की धार को ध्यान से देखते हुए तेल डालना होता है। कहावत का अर्थ है कि कोई कठिन काम पूरा होने में समय लगता है उसके लिए धैर्य रखना चाहिए।

तेल न मिठाई, चूल्हे धरी कड़ाही : साधन न होते हुए भी कोई काम करने की कोशिश करना या दिखावा करना।

तेल पिला कर घी निकाले : गाय भैंस से अधिक घी प्राप्त करने के लिए उन्हें तिल और बिनौले की खली खिलाई जाती है। जो व्यापार में लाभ प्राप्त करना चाहता है वह लागत भी लगाता है।

तेल में घी की मिलावट कोई नहीं करता : सस्ती चीज़ में महंगी की मिलावट कोई नहीं करता।

तेलिन से न धोबिन (मोचिन) घाट, इनके मोगरी उनके लाठ : घाट – घटी हुई (कम)। तेली की स्त्री धोबिन या मोची की स्त्री से किसी प्रकार कम नहीं है। उसके पास मूसल है तो इन के पास लट्ठ। जब दो लोग इस बात पर बहस कर रहे हो कि उन में से कौन बड़ा है तो उन का मजाक उड़ाने के लिए।

तेली का काम तमोली करे, चूल्हे में से आग उठे : तमोली माने पान बेचने वाला। किसी का काम कोई और करे तो कुछ का कुछ हो सकता है।

तेली का तेल गिरा हीना हुआ, बनिए का नून गिरा दूना हुआ : तेली का तेल जमीन पर गिर जाए तो बेकार हो जाता है, बनिए का नमक गिर जाए तो वह उस को उठा लेता है और धूल मिट्टी मिल कर नमक दूना हो जाता है। मतलब बनिया कभी नुकसान नहीं उठाता।

तेली का तेल जले, मशालची का दिल जले : कोई खर्च कर रहा है और परेशानी किसी और को हो रही है।

तेली का हुनर तमोली क्या समझेगा : तमोली – पान बेचने वाला (ताम्बूल से बना है)। किसी भी व्यवसाय को करने वाला व्यक्ति अपने काम को करते करते उसमें पारंगत हो जाता है। कोई दूसरा उस हुनर को नहीं समझ सकता।

तेली के घर तेल तो चुपड़े नहीं पहाड़ : तेली के घर तेल उपलब्ध है तो वह उससे पहाड़ थोड़े ही चुपड़ेगा। यदि हमारे पास किसी चीज़ की बहुतायत है तो हम उसका दुरुपयोग थोड़े ही करेंगे।

तेली के बैल को घर ही कोस पचास : तेली का बैल कोल्हू से बंधा हुआ दिन भर उसी के चक्कर लगाता रहता है और दिन भर में कई कोस के बराबर चल लेता है। कहावत ऐसे लोगों के लिए कही जाती है जिन्हें घर में रह कर भी बहुत मेहनत करनी पड़ती है।

तेली के माथा में तेल : व्यक्ति जिस चीज का व्यवसाय करता है वह उसे सहज ही उपलब्ध होती है।

तेली खसम किया, फिर भी रूखा खाया :  तेली से शादी की फिर भी रूखा खाना खाया। जो सुविधा पाने के लिए आप कहीं गए वही आप को नहीं मिली तो यह कहावत कही जाती है।

तैरता सो डूबता। (तैरेगा सो डूबेगा) : जो तैरेगा वही तो डूबेगा, जो डर के मारे किनारे बैठा रहेगा वह थोड़े ही डूबेगा।

तैराक की मौत पानी में ही होती है : अति आत्म विश्वास अंतत: मनुष्य को ले डूबता है।

तो सम पुरुष न मो सम नारी, यह संयोग विधि रचा विचारी : सूपनखा ने लक्ष्मण जी से ऐसा कहा था। जो स्त्रियाँ अपनी शक्ल सूरत और आयु न देख कर पुरुषों के सामने तरह तरह की अदाएँ दिखाती हैं उन का मजाक उड़ाने के लिए यह कहावत कही जाती है।

तोको पीर न मोको आपदा : इस काम में न तुझे कोई कष्ट है न मुझे कोई आफत है, अर्थात यह काम कर लेना चाहिए।

तोड़ने आए चारा और खेत पर इजारा : आपने किसी को अपने खेत में उगा हुआ चारा तोड़ने की इजाज़त दे दी और वह खेत पर ही अधिकार जमाने लगे तो यह कहावत कही जाएगी।

तोप के धमाकों में ताली की क्या बिसात : जहाँ बहुत बड़े बड़े लोग बोल रहे हों, वहाँ छोटे आदमी की कौन सुनेगा।

तोला के पेट में घुंघची : घुंघची – रत्ती (एक तोले में 96 रत्ती होती हैं)। अर्थ है कि बड़ी चीज़ में छोटी चीज़ समा जाती है।

तोला भर की आरसी, नानी बोले फ़ारसी : पहले के जमाने में दर्पण बहुत कम लोगों के पास होते थे। गरीब लोग पानी में शक्ल देख कर काम चला लेते थे। कुछ लोगों के पास एक छोटा सा शीशा होता था जिसे आरसी कहते थे। जैसे आज कल अंग्रेज़ी बोलना संभ्रांत होने का पर्यायवाची है वैसे ही उस जमाने में संभ्रांत लोग फ़ारसी बोलते थे। कहावत का अर्थ है कि बिलकुल छोटी सी चीज़ पर नानी इतरा रही हैं।

तोला भर की तीन कचौड़ी, खुरमा माशे ढाई का, लालाजी ने ब्याह रचाया, लहंगा बेच लुगाई का : अति कंजूस लोगों की मज़ाक उड़ाने के लिए। (पुरानी तौल के हिसाब से 8 रत्ती का एक माशा, 12 माशों का एक तोला (11.66 ग्राम)। लाला जी ने एक तोला आटे से तीन कचौड़ी बनाईं और ढाई माशे से खुरमा (शक्करपारा)। पत्नी का लहंगा बेच कर बाकी पैसे इकट्ठा किये और शादी करने चले हैं। बहुत जुगाड़ कर के लोगों को बेवकूफ बनाने वाले लोगों के लिए भी यह कहावत कही जा सकती है।

तोले भर की तीन चपाती, चले जिमाने घोड़े हाथी : बिना साधन के बड़ा काम करने की मूर्खता करना।

तोहरा बैल मोरा भैंसा, हम दोनों में संगत कैसा : व्यर्थ की बातों पर लड़ाई।

तौबा तेरी छाछ से, मुझे इन कुत्तों से छुड़ा : सम्पन्न लोग अक्सर दही में से मक्खन निकाल कर उसकी छाछ को बांटने के लिए गरीब लोगों को बुलाते हैं। ऐसे किसी गरीब आदमी को रहीस के कुत्तों ने घेर लिया तो वह बेचारा परेशान हो कर ऐसे बोल रहा है। किसी छोटी चीज के लालच में आदमी बड़ी मुसीबत में फंस जाए तो।

( थ )

थका ऊँट सराय ताकता : जब ऊँट थका हुआ होता है तो वह सराय की ओर ताकता है (कि कब मालिक सराय में पहुँचे और कब उसे विश्राम मिले)।

थका तैराक फेन चाटता है : परिस्थितियों से बाध्य हो कर मनुष्य को छोटा कार्य भी करना पड़ता है।

थके का सहारा, तम्बाकू बिचारा : तम्बाखू का सेवन करने वाले अपने को सही ठहराने (अपने को धोखा देने) के लिए ऐसे बोलते हैं।

थके बैल गौन है भारी, अब क्या लादोगे व्यापारी : (गौन – एक प्रकार का थैला जिस में सामान रख कर बैलों पर लादते हैं)। वृद्धावस्था के लिए कहा गया है, शरीर थक चुका है, पापों की गठरी पहले ही भारी हो चुकी है अब इस में और क्या लादोगे।

थके मनुष्य का भाग्य भी थक जाता है : जब तक मनुष्य उद्यम करता है तभी तक भाग्य उसका साथ देता है, उद्यम करना छोड़ने पर भाग्य भी उसका साथ छोड़ देता है।

थाली गिरी, झनकार हमने भी सुनी (थाली फूटी न फूटी झंकार तो हुई) :  इसकोकुछ इस प्रकार से प्रयोग करते हैं – फलाने दो लोगों में शायद झगड़ा हुआ है, कुछ आहट हमको भी मालूम हुई है। सम्बन्ध चाहे न टूटा हो पर कुछ तकरार तो हुई है।

थूक बिलोने से मक्खन नहीं निकलता : बिना साधन के कोई काम नहीं किया जा सकता।

थूक से चिपकाया कै दिन चलेगा : घटिया काम और झूठ बहुत दिन तक नहीं चलते।

थूक से सत्तू नहीं सनते :  1. सत्तू बनाने के लिए ठीक ठाक मात्रा में पानी चाहिए। बहुत थोड़े से पानी से सत्तू नहीं बनेगा। काम बड़ा हो और साधन बहुत कम हों तो। 2. अपमान जनक तरीके से किसी पर उपकार नहीं करना चाहिए।

थैली की चोट बनिया जाने : पूंजी का नुकसान कितना बड़ा नुकसान होता है यह बनिया ही जान सकता है। (क्योंकि उसे केवल खर्च करने के लिए ही नहीं बल्कि व्यापार करने के लिए भी पूंजी चाहिए)।

थैली बनाए हवेली : पैसे से बड़े बड़े काम किए जा सकते हैं।

थैली भरी तो सारी बात खरी : जिस के पास पैसा हो उस की सब बात ठीक है।

थैली में रुपया, मुँह में शक्कर : व्यापार के लिए ये दोनों आवश्यक हैं। थैली में रुपया अर्थात निवेश के लिए पूँजी और मुँह में शक्कर अर्थात मीठी बोली।

थैली लगावे सो थैला पावे : व्यापार में पूंजी लगाओगे तभी अधिक कमा पाओगे।

थोड़ा कमावे खरचे घनो, पहला मूरख उस को गिनो : सबसे बड़ा मूर्ख वह है जो कमाता कम है और खर्च अधिक करता है।

थोड़ा करें गाज़ी मियाँ, ज्यादा गाएं डफाली : डफाली – डफली बजा कर गाने वाले। साधु महात्मा लोग थोड़ा सा भी कुछ करते हैं तो उनके प्रशंसक बहुत बढ़ा चढ़ा कर बताते है।

थोड़ा खरचे थोड़ा खाए, उस पर टोटा कभी न आए : समझदारी से खर्च करने और कम खाने वाले को धन का संकट कभी नहीं आता। कम खाने से धन की बचत भी होती है और बीमारी भी नहीं होती।

थोड़ा खाना, बनारस में बसना : बनारस में बसने का एक समय बड़ा महत्व था। भरपेट खाना न मिले तब भी लोग बनारस में बसने की लालायित रहते थे।

थोड़ा खावे अंग लगावे, ज्यादा खावे घूर बढ़ावे : थोड़ा खाया हुआ शरीर को लगता है और ज्यादा खाने से शरीर को कोई लाभ नहीं होता, केवल अधिक मल बनता है। घूर – घूरा  (मल और कूड़े का ढेर)।

थोड़ा खावे बहुत डकारे : काम थोड़ा और दिखावा बहुत करने वालों के लिए।

थोड़ा जितना मीठा, ज्यादा उतना ही कड़वा : जो वस्तु कम मात्रा में उपलब्ध होती है वह अच्छी लगती है। जो अधिक मात्रा में मिल जाए वह बेकार लगने लगती है।

थोड़ा थोड़ा खाय, न मरे न मुटाय : थोड़ा थोड़ा खाने वाला मोटा भी नहीं होता और जल्दी मरता भी नहीं है। (क्योंकि कम खाने से बीमारियाँ कम होती हैं)।

थोड़ा थोड़ा जोड़ो, मुनाफ़ा कभी ना छोड़ो : कहावत के द्वारा बहुत से व्यवहारिक सुझाव दिया गया है। छोटी बचत भी लम्बे समय में बड़ी राशि बन जाती हैं। दूसरी सलाह है कि व्यापार में जहाँ मुनाफा हो रहा हो वहाँ चूकना नहीं चाहिए।

थोड़ी पूँजी खसमै खाय : कम पूँजी दूकानदार को ही बर्बाद कर सकती है। क्योंकि उससे लाभ कम होगा। यदि व्यापार की लागत अधिक हुई तो कम पूँजी का व्यापार नष्ट हो जाएगा।

थोड़े नफे में अधिक कुसल : ज्यादा मुनाफे के चक्कर में रकम डूब जाए इससे अच्छा है कि कम नफा लिया जाए।

थोड़े ही धन, खल बौराए (थोड़े धन में खल इतराए) : ओछी प्रवृत्ति का आदमी थोड़ा धन पा कर ही इतराने लगता है।

थोड़े ही में पाइए सब बातन को सार : अपनी बात को आप जितने कम शब्दों में व्यक्त कर पाएँ उतने ही काबिल माने जाएंगे।

थोथा चना बाजे घना : कोई घड़ा यदि चनों से पूरा भरा हो तो हिलाने से आवाज़ नहीं आएगी, लेकिन यदि आधा भरा हो तो हिलाने से आवाज़ आएगी। इसे इस प्रकार भी कह सकते हैं कि घुना हुआ चना अधिक आवाज करता है। कहावत का अर्थ है कि जिन लोगों को कम ज्ञान होता है वे अधिक बोलते है। इंग्लिश में कहावत है – The less men know, the more they talk.

थोथा फटके उड़ उड़ जाए : छाज (सूप) में अनाज फटकते समय जो खोखला अनाज होता है वह उड़ जाता है। जो व्यक्ति स्वभाव से गंभीर नहीं होता वह कठिनाइयों का सामना नहीं कर सकता।

थोथे बांस कड़ाकड़ बाजें : बांस यदि ठोस हो तो उसे पटकने पर आवाज नहीं होती, पर यदि खोखला हो तो उसे पटकने पर जोर की आवाज होती है। कहावत में यह समझाया गया है कि अल्पज्ञानी व्यक्ति बहुत बोलता है।

थोथे बादर क्वार के, ज्यों रहीम घहरात, धनी पुरुष निर्धन भये, करै पाछिली बात : थोथे बादर – बिना पानी के बादल। जिस प्रकार क्वार के महीने में बिना पानी वाले बादल गरजते हैं, उसी प्रकार धनी लोग जब निर्धन हो जाते हैं तो अपने पिछले दिनों की बातें करते हैं।

( द )

दगा किसी का सगा नहीं : धोखेबाज़ आदमी किसी का सगा नहीं होता।

दगा किसी का सगा नहीं, कर के देखो भाई, चिट्ठी उतरी बामन ऊपर, नाई नाक कटाई : किसी को धोखा दे कर आप फायदा नहीं उठा सकते, इस आशय की एक कहानी कही जाती है।  एक राजा किसी ब्राह्मण के ऊपर बहुत मेहरबान था। राजा के नाई को यह बहुत नागवार गुजरता था : नाई ने ईर्ष्यावश ब्राह्मण के खिलाफ राजा के खूब कान भरे। राजा उस के षड्यंत्र को नहीं समझ पाया और ब्राह्मण को सजा देने के लिहाज से राजा ने उसे एक बंद चिट्ठी और दो मोहरें दीं और कहा कि कोतवाल को चिट्ठी दे देना। चिट्ठी में लिखा था कि चिट्ठी लाने वाले की नाक काट लेना। सरल हृदय ब्राह्मण ने बाहर निकल कर नाई को बताया कि वह कोतवाल को कोई महत्वपूर्ण संदेश देने जा रहा है। नाई ने उससे चिट्ठी ले ली और स्वयं ही देने चला गया और अपनी नाक कटा बैठा।

दगाबाज दूना नवे, चीता चोर कबाण : चीता, चोर, धनुष और दगाबाज व्यक्ति जितना झुकते हैं उतना ही अधिक नुकसान पहुँचाते हैं। इस आशय की एक और कहावत है – नमनि नीच की अति दुखदाई।

दब कर रहना ही बड़ा दाँव : व्यवहार कुशलता का सबसे बड़ा गुर है दब कर रहना। विनम्रता पूर्ण व्यवहार से बड़े से बड़े शक्तिशाली लोगों को भी वश में किया जा सकता है।

दबा बनिया पूरा तौले : जब बनिये की अटकी होती है तो वह पूरा तौलता है वरना वह डंडी मारने की कोशिश करता है।

दबा हाकिम मातहतों से दबे : कमजोर अधिकारी (या रिश्वतखोर अधिकारी) अपने मातहतों से दबता है।

दबाने पर चींटी भी चोट करती है : अधिक अत्याचार करने से दुर्बल व्यक्ति भी हिंसक हो सकता है।

दबी आग और दबी बहू : जो लोग घर की बहू को दबा कर रखते हैं उन्हें सीख दी गई है कि दबी हुई बहू दबी हुई आग के समान खतरनाक है जो कि कभी भी विकराल रूप धारण कर सकती है।

दबी बिल्ली चूहों से कान कतरवाती है : शक्तिशाली व्यक्ति जब संकट में होता है तो उसे कमज़ोर लोगों से दबना पड़ता है।

दबे को सब दबाते हैं : मजबूर और लाचार इंसान पर सब रौब जमाते हैं।

दम भाई सगे भाई, और भाई घसर पसर : नशा करने वालों में बड़ा तगड़ा भाईचारा होता है।

दम है तो क्या गम है : अपने अंदर शक्ति है और आत्मविश्वास है तो कोई काम कठिन नहीं है।

दम है तो क्या गम है : नशा करने के बाद सारे दुःख भूल जाते हैं।

दमड़ी का उपला, धुआंधार मचाए : कोई सस्ती सी चीज बहुत बड़ा काम कर दे यह बहुत अव्यवस्था फैला दे तो.

दमड़ी का सौदा, बाजार ढिंढोरा : छोटे से काम का बहुत भारी दिखावा।

दमड़ी की अरहड़, सारी रात खड़खड़ : पुरानी मुद्रा में दमड़ी माने पैसे का आठवाँ भाग। बहुत कम कीमत की अरहर काट के लाए हैं और उसे रखने के लिए रात भर उठा पटक कर रहे हैं। छोटे से काम में बहुत दिखावा करना।

दमड़ी की उगाही में दस चक्कर : थोड़े से लाभ के लिए बहुत अधिक परिश्रम करना पड़े तो।

दमड़ी की घोड़ी, छै पसेरी दाना : पसेरी माने पाँच सेर (कहीं कहीं ढाई सेर को भी पसेरी कहते हैं)। घोड़ी तो बहुत कम कीमत की है पर दाना बहुत पैसों का खा रही है। किसी सस्ती चीज़ की मेंटेनेंस कॉस्ट बहुत अधिक हो तो।

दमड़ी की दाल, बुआ पतली न हो : कामवाली को जरा सी दाल बनाने के लिए दी है और कह रही हैं दाल पतली नहीं होनी चाहिए।

दमड़ी की निहारी में टाट के टुकड़े : निहारी माने नाश्ता (निराहार का अपभ्रंश है)। कहीं बहुत सस्ता नाश्ता मिल रहा है, खाते समय उस में टाट के टुकड़े निकल आए तो शिकायत कैसी। बहुत सस्ते में कोई चीज़ बनाने की कोशिश की जाए तो उसकी गुणवत्ता कम हो ही जाएगी।

दमड़ी की पगड़ी, अधेली का जूता : दमड़ी माने पैसे का आठवाँ हिस्सा और अधेली माने अठन्नी। कहावत उस समय की जब पगड़ी शान की चीज़ मानी जाती थी लिहाजा उस में लोग अधिक पैसा खर्च करते थे। जूते को लोग हिकारत की नजर से देखते थे और उसमें बहुत कम पैसे खर्च करना चाहते थे। उस समय के हिसाब से कोई आदमी उल्टा काम करे तो यह कहावत कहते थे। अब पगड़ी तो लोग पहनते ही नहीं हैं और जूते में हजारों रूपये खर्च करते हैं।

दमड़ी की बुलबुल, टका हलाली : दमड़ी माने पैसे का आठवाँ हिस्सा और टका माने दो पैसा (अधन्ना)। सामान बहुत सस्ता लेकिन बनाने का खर्च बहुत अधिक हो तो।

दमड़ी की भाजी, घर भर राजी : गरीब आदमी की आवश्यकताएँ बहुत कम होती हैं।

दमड़ी की मुर्गी, नौ टका पकड़ाई : सामान बहुत सस्ता पर सामान लाने का खर्च बहुत अधिक है।

दमड़ी की सुई, सवा मन मलीदा : (मलीदा – एक प्रकार का बढ़िया व महंगा खाद्य पदार्थ)। अनहोनी और उलटी बात, छोटी सी सस्ती सी सुई के लिए कोई सवा मन मलीदा क्यों देगा।

दमड़ी की हंडिया गई सो गई, कुत्ते की जात तो पहचानी गई : कोई सज्जन अच्छी नस्ल का समझ कर एक महंगा कुत्ता खरीद कर लाए। एक दिन मौका मिलते ही कुत्ता आंगन में रखी हंडिया ले कर भाग गया। वह सज्जन इस घटना से उदास हो कर बैठे थे तो किसी सयाने ने उन्हें इस तरह से समझाया। आपका कोई दोस्त, रिश्तेदार या नौकर धोखा दे तब भी यह कहावत कही जाती है।

दमड़ी न कौड़ी, रानी से मटकौअल : पास में फूटी कौड़ी नहीं है और बहुत बड़े घर की स्त्री से प्रेम करने चले हैं। मटकौअल को लोग नैन मटक्का भी बोलते हैं।

दमदमे में दम नहीं, खैर मांगो जान की : दमदमा – मोर्चाबंदी। जिसकी सेना कमजोर हो वह यह बात कहता है।

दमा दम के साथ जाता है : दमे की बीमारी ठीक नहीं होती, प्राण निकलने पर ही रोगी का पीछा छोड़ती है।

दमी यार किसके, दम लगाया खिसके : गांजा, सुल्फा, चरस और स्मैक आदि पीने वाले नशेड़ी लोगों को दमी (दम लगाने वाला) कहा जाता है। जहाँ कहीं नशे के अड्डे होते हैं वहाँ ये लोग पहुँच जाते हैं और दम लगा कर वहाँ से खिसक लेते हैं। कहावत स्वार्थी लोगों के लिए कही गई है जो अपना स्वार्थ पूरा होते ही वहाँ से निकल लेते हैं।

दया धर्म को मूल है पाप मूल अभिमान, तुलसी दया न छोड़िये जब लग घट में प्रान : सभी प्राणियों पर दया करना धर्म का मूल घटक है और अपने ऊपर अभिमान करना पाप की जड़ है। जब तक मनुष्य जीवित है उसे दया नहीं छोड़नी चाहिए।

दया धर्म नहिं मन में, मुखड़ा क्या देखे दर्पन में : यदि तुम्हारे मन में दया और धर्म नहीं है तो दर्पण में अपना रूप देख कर प्रसन्न मत हो।

दया बिनु संत कसाई : जिस संत के मन में दया नहीं है वह कसाई के समान है।

दरदी ही जाने दरदी की गति (दर्द को वह समझे जो खुद दर्दमंद हो) :  दूसरे का कष्ट वही जान सकता है जिसने स्वयं वह कष्ट झेला हो।

दरबार तक पहुँच हो तो दरबारी के पास क्यों जाए : जब बड़े आदमी से सीधे सम्बंध हों तो चमचों के पास क्यों जाएं।

दरया पर जाना और प्यासे आना : यदि किसी याचक को बहुत सम्पन्न व्यक्ति के यहाँ से खाली हाथ लौटना पड़े तो यह कहावत कहते है।

दरवाजे पर आई बरात, समधन को लगी हगास : जब बरात किसी के घर आती है तो द्वारचार में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका लड़की की मां की होती है। उस समय अगर उस को शौच लगने लगे तो बड़ी परेशानी होगी, ख़ास तौर पर उस जमाने में जब शौच के लिए लोटा ले कर बाहर जाना होता था। किसी अति आवश्यक कार्य के समय महत्वपूर्ण व्यक्ति के साथ कोई परेशानी आ जाए तो यह कहावत बोलते हैं।

दरिद्रता को मूल एक आलस बखानिए : आलसी व्यक्ति हमेशा दरिद्र ही रहता है।

दर्जी का क्या सामान और क्या मुकाम : कहावत उस समय की है जब बड़ी बड़ी टेलर शॉप नहीं हुआ करती थीं और दर्जी लोग अपना सुई धागा ले कर घर घर घूम कर काम करते थे।

दर्जी की सुई, कभी रेशम में कभी टाट में : दर्जी की सुई कीमती रेशम को भी सिलती है और घटिया टाट को भी। किसी ऐसे व्यक्ति या उपकरण के लिए कहावत कही जाती है जो सभी तरह के काम करता हो।

दर्शन मोटे, करतब खोटे : तड़क भड़क और दिखावा अधिक, काम बहुत कम या बहुत गलत काम।

दलाल का दिवाला क्या मस्जिद का ताला क्या : जिस व्यापार में पूंजी लगाई गई हो उस में अत्यधिक घाटा हो जाने पर दीवाला निकलने का डर रहता है। लेकिन दलाली एक ऐसा धंधा है जिस में व्यक्ति की स्वयं की पूंजी नहीं लगती इस लिए उस में दीवालिया होने का कोई डर नहीं है। इसी प्रकार किसी भी इमारत में कोई न कोई सामान अंदर रखा होता है जिस की चोरी न हो इसलिए ताला लगाया जाता है। मस्जिद एक ऐसी इमारत है जहाँ कोई सामान नहीं होता इस लिए ताले की कोई जरूरत नहीं है।

दलाली बेशरम की, सर्राफी भरम की, दौलत करम की, बात मरम की : दलाली का काम करने के लिए काफी बेशर्मी करनी पड़ती है, सर्राफ वही बड़ा बनता है जो बाजार में अपना भरम बना कर रखे, धन वही कमा सकता है जो कर्म करता हो, बात वही दमदार होती है जिसमें कुछ मर्म हो।

दलिद्दर घर में नोन पकवान : घोर गरीबी में रहने वाले इंसान के लिए नमक भी पकवान के समान है।

दलिद्दर बहुत दुखदाई : दलिद्दर – दारिद्र्य। दरिद्रता बहुत दुःख देती है।

दलिद्दर से जंजाल भला : दलिद्दर माने दरिद्रता, गरीबी। धन कमाने के लिए बहुत से जंजाल झेलने पड़ते हैं। लेकिन घोर गरीबी में जीने के मुकाबले यह जंजाल झेलना अधिक अच्छा है।

दवा की दवा और गिज़ा की गिज़ा : ऐसी वस्तु जिससे पेट भरे, ताकत आए और रोग भी ठीक हों। जैसे दूध मुनक्का।

दस भाइयों की बहन कुँवारी डोले : ज्यादा भाई होते हैं तो एक दूसरे पर जिम्मेदारी डाल देते हैं। इस प्रकार की दूसरी कहावत है – सात बेटों की माँ गंगा न पावे।

दस भोला भाला, बीस बावला, तीस तीखा, चालीस चोखा, पचास पका, साठ थका, सत्तर झूला, अस्सी लूला, नब्बे नागो और सौ भागो : हर अवस्था के व्यक्ति की विशेषता बताई गई है। 10 वर्ष की आयु में भोला भाला, 20 वर्ष की आयु में जुनूनी, 30 वर्ष की आयु में तेजतर्रार और कड़क, 40 वर्ष की आयु में अनुभवी, 50 वर्ष की आयु में परिपक्व, 60 वर्ष की आयु तक थोड़ा थकने लगता है, 70 वर्ष में भूलना शुरू हो जाता है, 80 में चलना फिरना मुश्किल, 90 में अपनी देखभाल स्वयं नहीं कर सकता इसलिए नंगा रहता है और 100 वर्ष की अवस्था का मतलब अब संसार से कूच का समय आ गया।

दस्तरखान के बिछाने में सौ ऐब, न बिछाने में एक ऐब : मेहमानों की आवभगत के लिए खाने की मेज पर कपड़ा बिछाया जाता है उसे दस्तरखान कहते हैं। आप दस्तरखान बिछाते हैं तो उस में बहुत सी कमियाँ निकाली जाती हैं, मसलन – गंदा है, छोटा है, ठीक से नहीं बिछाया, घटिया है वगैरा वगैरा। लेकिन अगर आप कुछ बिछाते ही नहीं हैं तो कहने वालों के लिए एक ही बात रह जाती है कि दस्तरखान नहीं बिछाया। कहावत का अर्थ यह है कि यदि आप अच्छे के लिए कोई काम करें और लोग उसमें बहुत कमियाँ निकालें तो वह काम न करना ही अच्छा है।

दाँत टूटा साँप जोर से फू-फू करता है : दांत टूटने के बाद सांप जोर से फुफकार कर डराने की कोशिश करता है। शक्ति छिन जाने के बाद दुष्ट व्यक्ति अधिक भयंकर दिखने की कोशिश करता है।

दाँया धोए बांये को और बाँया धोए दांये को : कोई भी हाथ स्वयं अपने आप को नहीं धो सकता। दायें हाथ को धोने के लिए बायाँ हाथ जरूरी है और बाएँ को धोने के लिए दाहिना। समाज में सभी लोग एक दूसरे पर निर्भर होते हैं इसलिए सब को साथ मिल कर चलना चाहिए और एक दूसरे की मदद करना चाहिए।

दांत कुरेदने को तिनका नहीं बचा : आग या बाढ़ आदि आपदाओं में सब कुछ नष्ट हो जाने पर।

दांतले खसम का ना रोते का पता चले न हंसते का : (हरयाणवी कहावत) जिस आदमी के दांत बाहर हों उस का यह पता लगाना मुश्किल होता है कि वह हँस रहा है या रो रहा है।

दांतों का काम आँतों से नहीं लेना चाहिए : भोजन को पीसने का काम दांतों का है और पचाने का काम आँतों का। कहावत द्वारा उन लोगों को सीख दी गई है जो लोग भोजन को बिना ठीक से चबाए निगल जाते हैं।

दांव में आई, मरे बिलाई : बिल्ली जैसा चालाक प्राणी भी कभी कभी दांव में फंस जाता है। कोई कितना भी धूर्त हो कभी न कभी दांव में फंस सकता है।

दाई से क्या पेट छिपाना : जो जिस विषय का जानकार है उस से संबंधित राज छिपाने की कोशिश नहीं करना चाहिए।

दाख छुआरा छांड़ि अमर फल, विष कीड़ा विष खात : विषैले फल खाने वाला कीड़ा, किशमिस छुआरा आदि छोड़ कर विष खाता है।यह उसी प्रकार है जैसे दुनिया में एक से एक स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्धक चीजों के होते हुए भी शराब पीने वाले शराब पीते हैं।

दाख पके जब काग के होय कंठ में रोग : जब अंगूर पक कर तैयार हुए तो कौवे के गले में ऐसी बीमारी हो गई कि वह उन्हें खा ही नहीं सकता। जब कोई चीज प्राप्त करने में दुर्भाग्य आड़े आ जाए।

दाग लगाए लँगोटिया यार : जिगरी दोस्त आपकी बहुत बदनामी कर सकता है (क्योंकि वह आपके सब राज जानता है)।

दाता कहने से बनिया गुड़ देता है : यदि किसी से कोई काम निकालना हो तो उसकी प्रशंसा करनी चाहिए। बनिए से कहोगे कि भाई आप बड़े दानी दाता हो तो वह खुश हो कर गुड़ दे देगा।

दाता की नाव पहाड़ चढ़े : दाता के सब काम आसानी से हो जाते हैं।

दाता के घर लच्छमी ठाड़ी रहत हजूर, जैसे गारा राज को भर भर देत मजूर : दानी व्यक्ति पर लक्ष्मी की विशेष कृपा रहती है। लक्ष्मी उस को इस प्रकार भर भर कर सम्पत्ति देती है जैसे मजदूर राज मिस्त्री को भर भर कर गारा देता है।

दाता के तीन गुण, दे, दिलावे, छीन ले : दाता स्वयं भी देता है और दूसरों से दिलाता भी है, पर जब क्रुद्ध होता है तो छीन भी लेता है। यहाँ दाता का अर्थ ईश्वर से है।

दाता को राम छप्पर फाड़ कर देता है : दानी व्यक्ति को ईश्वर भरपूर मदद देता है।

दाता दाता मर गए, रह गए मक्खीचूस : कोई जरूरतमंद व्यक्ति कई स्थानों से निराश होने के बाद कुढ़ कर यह बात कहता है।

दाता दे भण्डारी का पेट फटे (दाता दे, भंडारी पेट फाड़े) : भंडारी वह व्यक्ति होता है जो अनाज आदि के भंडारों का रख रखाव करता है। कहावत में कहा गया है कि दान तो दाता दे रहा है और भंडारी को कष्ट हो रहा है।

दाता देवे और शरमावे, पानी बरसे और गरमावे : जो सच्चे दानवीर होते हैं वे दान दे कर उस पर अहंकार नहीं करते बल्कि लज्जा और विनम्रता प्रकट करते हैं। तुक बंदी करने के लिए एक बिलकुल असम्बद्ध बात जोड़ दी गई है कि पानी बरसने के बाद गर्मी बढ़ जाती है।

दाता पुन्न करे, कंजूस जोड़ जोड़ मरे : जो लोग अपनी सम्पत्ति में से यथाशक्ति दान करते हैं वे पुन्य कमाते हैं जबकि कंजूस लोग जोड़ जोड़ कर ही मर जाते हैं।

दाद खाज अरु सेउआ बड़भागी के होंय, पड़े खुजावें खाट पर बड़ी अनंदी होय : जो बेचारे दाद, खाज और खुजली से परेशान हों उन का मजाक उड़ाने के लिए यह कहावत कही गई है (कि वे बड़े भाग्यवान हैं जो खाट पर पड़े खुजाने का आनंद ले रहे हैं)।

दाद, खाज और राज, बड़भागी को ही मिलते हैं : कोई खुजली से मरा जा रहा हो तो उस के जले पर नमक छिड़कने के लिए। दाद और खाज की तुलना राज्य मिलने से की गई है।

दादा कहे सरसों ही लादना : दादाजी ने कहा था कि सरसों का ही व्यापार करना तो केवल वही करेंगे। बिना अपनी बुद्धि प्रयोग करे लकीर के फकीर बनना।

दादा की बेटी लुगरी और भाई की बेटी चुनरी : लुगरी – फटी पुरानी धोती। बुआ की कोई इज्जत नहीं और भतीजी से प्यार।

दादा के भरोसे फौजदारी : मूर्खता पूर्ण कार्य। दादा कितने भी प्रभावशाली क्यों न हों, उन के भरोसे मार पीट नहीं करनी चाहिए। दादा के न रहने पर कौन बचाने आएगा। फौजदारी – मारपीट।

दादा खरीदे और पोता बरते : कोई चीज़ बहुत टिकाऊ है यह बताने के लिए यह कहावत कही जाती है।

दादा मर गया रोता, मरने के बाद हुआ पोता : जब किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उस की इच्छा पूरी हो।

दादा मरिहैं तो भोज करिहैं : किसी काम को लम्बे समय के लिए टालना (किसी से दावत मांगी जा रही है तो कह रहा है कि दादा मरेंगे तो भोज करेंगे)।

दादी को मत सिखलाओ कि जच्चगी कैसे होती है : अपने से अधिक अनुभवी व्यक्ति को सिखाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।

दादू दावा छोड़ दे, निरदावा दिन काट, केतेक सौदा कर गए, पंसारी की हाट : संत दादू कहते हैं कि दुनिया की मोह माया पर दावा करना छोड़ दो। जाने कितने यहाँ आए और चले गए। इस बाज़ार में सौदा सब करते हैं पर कोई कुछ ले कर नहीं गया।

दादो घी खायो, म्हारो हाथ सूँघ ल्यो : हमारे दादा बहुत घी खाते थे, हमारा हाथ सूँघ कर देख लो। जिन के बाप दादे बड़े आदमी थे पर वे दुर्भाग्यवश कुछ भी नहीं हैं, ऐसे लोग हर समय अपने बाप दादाओं का बखान करते हैं।

दान की गाय है तो क्या चलनी में दुहेंगे : दान में मिली हुई चीज को व्यर्थ ही बर्बाद नहीं किया जाता। चलनी में दूध दुहने का अर्थ है दूध को ऐसे ही बहा देना।

दान की बछिया के दांत नहीं गिने जाते : जब आप गाय की बछिया खरीदने जाते हैं तो उसके दांत गिन के देखते हैं कि वह उत्तम प्रजाति की है या नहीं। लेकिन अगर बछिया दान में मिली है तो यह सब थोड़े ही देखा जाता है। अगर कोई व्यक्ति मुफ्त में मिली चीज में मीन मेख निकालता है तो यह कहावत कही जाती है।

दान दहेज़ बह जाएगा, छाती कूटता रह जाएगा : जो लोग दान दहेज़ के चक्कर में रहते हैं उन्हें सीख दी गई है कि यह सब मिला हुआ धन नष्ट हो जाएगा और पैसे वाले घर की नकचढ़ी लड़की अपने घर में ला कर जीवन भर पछताना पड़ेगा।

दान दीन को दीजिए, मिटे दीन की पीर, औषध बाको दीजिए जा के रोग शरीर : जो गरीब है उसी को धन का दान दीजिए। उसी प्रकार जैसे औषधि केवल उसी को दी जाती जो रोगी है।

दान वित्त समान : 1. जरूरत मंदों को दान देना एक उत्तम निवेश है। यही वह धन है जो आपके साथ जाएगा। 2. अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान देना चाहिए।

दाना खाए न पानी पीवे, ऐसन आदमी कैसे जीवे : कुछ लोग चाहते हैं कि अपने कर्मचारी या मजदूर को खाने पीने न दें बस काम में जोते रहें। ऐसे लोगों के लिए।

दाना न घास, खरहरा छ: छ: बार : खरहरा कहते हैं खुरदुरी चीज़ से घोड़े की मालिश करने को जो दिन में एक बार करना पर्याप्त रहता है। कहावत का अर्थ है अपने कर्मचारी को आवश्यक वस्तु न दे कर फ़ालतू की चीजें देते रहना।

दाना न घास, घोड़ी तेरी आस : घोड़ी को खिलाने के लिए न दाना है न घास लेकिन घोड़ी पालने की इच्छा रखते हैं। साधन न होते हुए भी दिवास्वप्न देखना।

दाने को टापे, सवारी को पादे : ऐसे घोड़े के विषय में कहा गया है जो दाना खाने की जुगत में हर समय रहता है, पर सवारी बैठाने के नाम पर पादने लगता है।

दाने दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम : जो जिस के भाग्य में लिखा है वह उसी को मिलेगा।

दाम दीजे, काम लीजे : मुँह मांगा पैसा दीजिये और मनमाफ़िक काम लीजिए।

दाम बनावे काम (दाम सँवारे काम), (दाम करे सब काम) : पैसा हर काम बना देता है।

दामों रूठा बातों नहीं मानता : जो पैसे के लेनदेन पर रूठा हो वह केवल बातों से नहीं मानता।

दारु तो हाथी को भी पटक देती है : हाथी जैसा ताकतवर प्राणी भी यदि शराब पी लेगा तो नशे में ढेर हो जाएगा। कहावत द्वारा शराब से बचने की सलाह दी गई है।

दाल भात चोखा, कबहुं न करे धोखा : दाल भात से यहाँ अर्थ है सादा और पौष्टिक भोजन। सादा भोजन सबसे अच्छा है, जिससे स्वास्थ्य अच्छा रहता है और उसे कमाने के लिए गलत काम भी नहीं करने पड़ते।

दाल भात में मूसर चंद : किसी आनन्ददायक काम में विघ्न डालने वाला। किसी बने बनाए काम को गुड़ गोबर करने वाला।

दाल भात लंबा जैकारा, ए बाई परताप तुम्हारा : कोई व्यक्ति यदि अपनी जवान बेटी को किसी बूढ़े को ब्याह दे तो बेटी की ससुराल में उसकी खूब खातिरदारी होती है। ऐसे किसी व्यक्ति का कथन।

दाल में कुछ न कुछ काला है : जहाँ कुछ गड़बड़ी की आशंका हो वहाँ यह कहावत कही जाती है।

दाल में नमक, सच में झूठ : जितना दाल में नमक होता है उतना सच में झूठ चल जाता है।

दावत नहीं, अदावत है : अदावत – झगड़ा, दुश्मनी। 1. दावत देने से कुछ लोग तो खुश होते हैं पर बहुत से लोग नाराज़ भी हो जाते है। (यहाँ तक कि कुछ लोग दुश्मनी तक मानने लगते हैं)। 2. अधिक लोगों की दावत करना बहुत झंझट का काम है।

दावत में सबसे पहले पहुँचो और लड़ाई में सबसे बाद : दावत में पहले पहुँचने का फायदा यह है कि सबसे बढ़िया और ताज़ा माल खाने को मिलता है, जहाँ लड़ाई हो रही हो वहाँ बाद में इसलिए पहुँचो कि तब तक खतरा टल चुका होता है।

दावा किया, तकादा गया : जब आप अपने रुपए की वसूली के लिए किसी के ऊपर मुकदमा कर देते हैं तो फिर उस से तकादा नहीं कर सकते।

दासा सदा उदासा : जो किसी का दास हो वह कभी सुखी नहीं रह सकता।

दासी करम, कहार से नीचे : किसी एक व्यक्ति की नौकरानी बन के काम करना सबसे खराब काम है। उस से अच्छी कहारिन है जो घर घर जा कर काम करती है लेकिन किसी की गुलामी नहीं करती।

दिन अस्त, मजूर मस्त : दिन भर काम में खपने वाला मजदूर शाम होने पर सुख की सांस लेता है।

दिन आया रावण मरे : सब समय की बात है बुरा समय आने पर रावण जैसा सर्वशक्तिमान व्यक्ति भी मारा गया।

दिन ईद, रात शबेरात : हर समय मौज ही मौज।

दिन कटे काम से, रात कटे नींद से, राह कटे साथ से : अर्थ स्पष्ट है.

दिन के पीछे रात और रात के पीछे दिन : कहावत के द्वारा यह सीख दी गई है कि जिस प्रकार दिन के बाद रात अवश्य आती है और रात के बाद दिन, उसी प्रकार जीवन में सुख के बाद दुख अवश्य आता है और दुख के बाद सुख।

दिन चोखे होवें व्यापार चले और न्यौते आवें, दिन आड़े होवें तो माल घटे और पाहुने आवें : अच्छे दिन होते हैं तो व्यापार भी चलता है, आमदनी होती है और निमंत्रण मिलते हैं। दिन बुरे होते हैं तो व्यापार भी नहीं चलता, घाटा होता है और घर में मेहमान भी आ जाते हैं जिन के ऊपर खर्च भी करना पड़ता है।

दिन बुरे आते हैं तो सोने में हाथ डालो मिट्टी हो जाता है, दिन भले आते हैं तो मिट्टी छूने से सोना बन जाती है : अर्थ स्पष्ट है।

दिन दस आदर पाए के करनी आप बखान, जब लौं काग सराध पख तब लग को सन्मान : बहुत से लोगों का विश्वास है कि पितृ लोग श्राद्ध पक्ष में कौवे का रूप धर कर भोजन करने आते हैं, इसलिए लोग कौवों को भोजन कराते हैं। यह सम्मान केवल श्राद्ध पक्ष समाप्त होने तक ही मिलता है। थोड़े समय के लिए सत्ता या अधिकार पा जाने पर जो लोग इतराने लगते हैं उनको सीख देने के लिए यह कहावत कही गई है।

दिन नीके कंकर मोती (दिन अच्छे होते हैं तो कंकड़ जवाहर हो जाते हैं) : भाग्य साथ देता है तो हर काम में लाभ होता है। अच्छे दिन आते हैं तो कंकड़ मोती बन जाते हैं।

दिन भर ऊनी ऊनी, रात को चरखा पूनी : दिन में समय बर्बाद करती रही और रात में चरखा और पूनी (रूई का गोला) ले कर बैठी। समय पर काम न कर के अंत में बेसमय उल्टा सीधा काम करने वाले लोगों के लिए।

दिन भर खेली आले माले, जूआँ ढूँढे दिया उजाले (कातन बैठी दिया उजाले) : दिन भर इधर उधर खेलती रही और रात में दीये के उजाले में जूएँ बीनने बैठी। अर्थ ऊपर वाली कहावत की भांति।

दिन भले आएँगे तो घर पूछते चले आएंगे : जब आदमी के अच्छे दिन आने होते हैं तो उसे कोई प्रयास नहीं करना पड़ता।

दिन में गर्मी रात में ओस, कहे घाघ वर्षा सौ कोस : अगर दिन में गर्मी हो और रात में ओस गिरे तो घाघ कवि कहते हैं कि दूर दूर तक वर्षा की कोई संभावना नहीं है।

दिन में बादल रात में तारे, चलो कंत कहीं करें गुजारे : यदि चौमासे में कभी दिन में बादल छाए रहें पर रात में तारे दिखने लगें तो यह वर्षा न होने (अकाल पड़ने) के लक्षण हैं। ऐसे में किसान की स्त्री अपने पति को सुझाव दे रही है कि गुजारा करने के लिए कहीं और चलो।

दिन में सोवे, रोजी खोवे : जो दिन में सोता है वह अपनी जीविका खो देता है।

दिनन के फेर से सुमेरू होत माटी को : जब बुरा समय आता है तो बड़े बड़े लोग मिट्टी में मिल जाते हैं (सुमेरु जैसा विशालकाय पर्वत भी मिट्टी हो जाता है)।

दिया कलेजा काढ़, हुआ नहिं आपना : अपना कलेजा निकाल कर दे दिया फिर भी वह अपना न हुआ।

दिया तो मुंह चाँद था, न दिया तो सियार की मांद था : जब तक किसी को कुछ देते रहो वह आपकी बड़ाई करता है (आपके मुँह को चाँद सा बताता है) और न दो तो गाली देने से बाज भी नहीं आता (आपकी शक्ल को सियार की मांद जैसा बताने लगता है)।

दिया न बाती, बांदी फिरे इतराती : कुछ न होते हुए भी घमंड करना।

दिया भूलो, लिया कभी न भूलो : इस का अर्थ दो तरह से किया जा सकता है। 1. किसी को धन या कोई वस्तु उधार दिया हो तो भले ही भूल जाओ पर उधार ले कर कभी नहीं भूलना चाहिए। 2. किसी पर उपकार किया हो तो जताओ नहीं और उससे बदले में कुछ पाने की अपेक्षा मत करो (नेकी कर कुँए में डाल)। किसी ने आप पर उपकार किया हो तो हमेशा उसके कृतज्ञ रहो।

दिया लिया सब बह गया, रह गई कानी बहू : किसी ने अधिक दहेज़ के लालच में कानी लड़की से शादी कर ली। रुपया पैसा तो थोड़े दिनों में ही खर्च हो गया, पर अब कानी बहू को जीवन भर झेलना पड़ेगा।

दिया लिया ही काम आता है : दिया हुआ दान परलोक में काम आता है।

दिये का प्रकाश धरती पर, दिए का प्रकाश स्वर्ग तक : दिये का (दीपक का) प्रकाश धरती पर ही फैलता है जबकि दिए का (दान का) प्रकाश स्वर्ग तक साथ चलता है।

दिल को होए करार तब सूझे त्यौहार : मन में चैन हो तभी उत्सव इत्यादि अच्छे लगते हैं।

दिल जाने सो ही दिलदार : वही सच्चा मित्र या प्रेमी है जो आपके दिल का हाल जानता है और समझता है।

दिल मिले की यारी : दिल मिलते हैं तभी दोस्ती होती है।

दिल में न हो रार, तबहिं मने त्यौहार : किसी से कोई लड़ाई, झगड़ा, टंटा न हो तभी त्यौहार मनाने का मन करता है।

दिल में रहम हो, जुबान नरम हो, आँखों में शरम हो, तो सब कुछ तुम्हारा है :  स्पष्ट है।

दिल में हो आग तो शब्द बनें शोले : जला भुना आदमी जली कटी बातें बोलता है।

दिल लगा गधी से तो परी क्या करे : आदमी को जिस स्त्री से प्रेम हो जाए उसके आगे सब बेकार लगती हैं।

दिल लगा मेंढकी से तो पद्मिनी क्या चीज़ है : ऊपर वाली कहावत की भांति।

दिल से दिल को राह है : एक दूसरे से मन मिल जाना ही सब से बड़ा सुख है।

दिलेरी मर्दों का गहना है : स्त्रियाँ के शरीर पर बहुत से गहने अच्छे लगते हैं पर पुरुषों के लिए तो साहस और शूरता ही सबसे बड़े गहने हैं।

दिलों में ख़ाक उड़ती है, फकत मुँह पर सफाई है : दिल में ख़ाक उड़ने का अर्थ दुखी होने से भी है और ईर्ष्या में जलने से भी। जहाँ लोग ऊपर से ख़ुशी जाहिर करते हैं पर अंदर से दुखी होते हैं वहाँ यह कहावत कही जाती है।

दिल्ली की कमाई, दिल्ली में ही गंवाई : पैसा कमाने के लिएघर से बाहर तो रहे पर जो भी कमाया वहीँ खर्च आये।

दिल्ली की गद्दी लई, सुरा सुन्दरी राग : दिल्ली की गद्दी पर बैठने वाले सुरा, सुंदरी और संगीत के चक्कर में पड़ कर गद्दी की रक्षा नहीं कर पाए।

दिल्ली की तुर्कनो मरे और बूंदी का राजपूत सिर मुंडाए :  किसी अनजान व्यक्ति के दुख में अनावश्यक दुखी होना। तुर्कनो – मुस्लिम स्त्री।

दिल्ली की बेटी गोकुल की गाय, करम फूटे तो बाहर जाय : दिल्ली में पली बढ़ी लड़की को दिल्ली के बाहर कहीं अच्छा नहीं लगता। उसकी शादी कहीं बाहर हो जाए तो उसे लगता है कि उस के करम फूट गए। इसी प्रकार गोकुल में पलने वाली गाय गोकुल से बाहर जा कर खुश नहीं रह सकती।

दिल्ली के बांके, जूती में सौ सौ टाँके : दिल्ली वालों का मज़ाक उड़ाने के लिए कहा गया है। (अपने आप को बड़ा भारी अफलातून समझते हैं और जूते में मार तमाम टांके लगे हुए हैं)।

दिल्ली में क्या दीवालिए नहीं रहते : कोई स्थान कितना भी सम्पन्न क्यों न हो, वहाँ रहने वाले सभी लोग धनी नहीं होते।

दिल्ली में दरबारी से अपने गाँव की लंबरदारी भली : राजा के दरबार में दरबारी बनने के मुकाबले गाँव की जमींदारी ज्यादा अच्छी है। यहाँ आप अपने मालिक खुद हैं जबकि वहाँ किसी के गुलाम हैं।

दिल्ली से हींग आई, तब बड़े पके : किसी काम में आडम्बर के कारण अनावश्यक देर लगना।

दिवस जात नहिं लागहिं बारा : अच्छे दिन हों या बुरे, अंततः सब बीत जाते हैं।

दिवाले में डेढ़ हिस्सा : जिसे हर काम में घाटा ही घाटा होता हो।

दी दिवाई खली न खाए, पीछे कोल्हू चाटन जाए : बैल को जो खल दी गई है वह नहीं खा रहा है बल्कि पिराई के बाद कोल्हू को चाट रहा है। अवसर का लाभ न उठाने वाले मूर्ख व्यक्ति के लिए।

दीन की सेवा ही दीनबंधु की सेवा है : दीन हीन व्यक्ति की सेवा ही ईश्वर की सच्ची सेवा है।

दीन सबन को लखत है, दीनहिं लखै न कोय, जो रहीम दीनहिं लखै, दीनबंधु सम होय : दीन हीन व्यक्ति सब की ओर आशा भरी नजरों से देखता है लेकिन उसकी ओर कोई नहीं देखता। जो दीन की ओर ध्यान देता है वह दीनबंधु ईश्वर के समान होता है।

दीन से दुनिया रखनी मुश्किल है : धर्म पर चलो तो दुनिया में रहना मुश्किल है।

दीन से दुनिया है : धर्म पर ही संसार टिका है।

दीमक का खाया पेड़ और चिंता का खाया शरीर किसी काम के नहीं रहते : जिस पेड़ के तने को दीमक खा ले वह सूख जाता है, इसी प्रकार चिंताओं का मारा व्यक्ति भी किसी काम का नहीं रहता।

दई दई का करत है, दई दई सो कबूल : दई – दैव, दई – दिया है। दैव – दैव क्यों चिल्लाते हो। दैव (ईश्वर) ने जो दिया है उसे स्वीकार करो। इस दोहे की पहली पंक्ति इस प्रकार है – दीरघ सांस न लेय दुख, सुख साईँ न भूल।

दीवानी आदमी को दीवाना कर देती है : यहाँ दीवानी से अर्थ मुकदमों से है। मुकदमेदारी आदमी को पागल कर देती है।

दीवाने को बात बताई, उसने ले छप्पर चढ़ाई : मूर्ख आदमी को गोपनीय बात बताओगे तो वह सारे में फैला देगा।

दीवार खाई आलों ने, घर खाया सालों ने : दीवार में आले अधिक हों तो दीवार कमज़ोर हो जाती है। घर में सालों का दखल हो तो घर कमज़ोर हो जाता है।

दीवारों के भी कान होते हैं : घर की अंदर गुपचुप की गई बात भी जाने कैसे बाहर पहुँच जाती है। इसीलिए कहते हैं कि दीवारों के भी कान होते हैं।

दीवाल रहेगी तो पलस्तर बहुतेरे चढ़ जाएंगे : शरीर जीवित रहेगा तो चर्बी मांस सब बाद में चढ़ जाएगा।

दीवाली की कुलिया : देखने में आकर्षक चीज़ जो बाद में किसी काम न आए।

दीवाली जीत, साल भर जीत : दीवाली पर जुए में जीतना शुभ माना जाता है।

दीवे को परवा नहीं, जल जल मरे पतंग : एकतरफा प्रेम करने वालों के लिए यह कहावत कही जाती है।

दुख कहने के लिए नहीं सहने के लिए होता है : जब आप पर कोई दुःख पड़े तो चुपचाप उसे सहना चाहिए, सब के सामने उसका रोना नहीं रोना चाहिए। इंग्लिश में कहावत है – What cannot be cured must be endured.

दुख जाने दुखिया या दुखिया की माँ : किसी व्यक्ति के दुख को वह स्वयं समझ सकता है या उसकी माँ समझ सकती है, और कोई नहीं समझ सकता।

दुख पीछे सुख होत है ज्यों निशि बीते भोर : जिस प्रकार अँधेरी रात के बाद सुबह आती है उसी प्रकार दुःख के बाद सुख अवश्य आता है।

दुख मरें बी फाख्ता, कौवे मेवें खाएं : शरीफ लोग दुखी रहते हैं और धूर्त लोग मौज करते हैं।

दुख मिटा बिसरे राम : जब तक व्यक्ति परेशानी में होता है तब तक वह ईश्वर को याद करता है, दुःख समाप्त होते ही वह ईश्वर को भूल जाता है। इंग्लिश में कहावत है – The danger past and god forgotten।

दुख में सुमरिन सब करें, सुख में करे न कोय (जो सुख में सुमिरन करे, दुःख कहे को होए) : दुःख में सभी लोग ईश्वर को याद करते हैं और सुख में कोई नहीं करता। अगर सुख के दिनों में ईश्वर को याद करें तो दुःख होगा ही क्यों। इसी प्रकार का दूसरा दोहा है – सुख में सुमिरन न किया, दुःख में किया याद, रहिमन ऐसे नरन की कौन सुने फ़रियाद।

दुख सुख निसदिन संग हैं मेट सके न कोय, जैसे छाया देह की अलग कभी न होय : मनुष्य को सुख और दुःख दोनों मिलना अवश्यम्भावी है। जैसे शरीर की छाया को शरीर से अलग नहीं किया जा सकता वैसे ही सुख और दुःख को अलग नहीं किया जा सकता। जो व्यक्ति सुख में रह रहा है उसे घमंड नहीं करना चाहिए क्योंकि उसे भी कभी न कभी दुःख मिलेगा, और जो दुःख में जी रहा है उसे निराश नहीं होना चाहिए क्योंकि उसे भी कभी सुख अवश्य मिलेगा।

दुई दिन दौड़े इक दिन खाए, अहमक होय बराते जाए : बरात में एक दिन दावत खाने को मिलती है पर उसके लिए दो दिन फ़ालतू में दौड़ना पड़ता है। इस कारण से बरात में जाना कोई समझदारी का काम नहीं है।

दुकान सी दाता न घर सा भिखारी : व्यापार हमें जीवन भर कुछ न कुछ देता रहता है, अर्थात उस के जैसा दाता कोई नहीं है। गृहस्थी हर समय कुछ न कुछ मांगती रहती है अर्थात उसके जैसा भिखारी कोई नहीं है।

दुख में सुख की कदर मालूम होती है : आज यदि हमें सब प्रकार की सुविधाएँ मिली हुई हैं तो हम उन की कदर नहीं करते। कल जब हम पर दुख पड़ता है तो हमें इस चीजों की कीमत मालूम पडती है। इंग्लिश में कहावत है – Misfortunes tell us what fortune is.

दुखती चोट, काने से भेंट : कुछ लोग काने व्यक्ति को देखना बहुत अपशकुन मानते हैं (वैसे यह बहुत गलत और निंदनीय आचरण है, काना होना किसी का स्वयं का दोष नहीं है)। कहावत में कहा गया है कि किसी की चोट दुःख रही है ऊपर से काना आदमी दिख गया, याने दुःख में दुःख।

दुखते दांत को उखाड़ना ही अच्छा : जो चीज़ स्थायी दुःख का कारण बन जाए उसे नष्ट कर देना चाहिए।

दुखिया का घर जले, सुखिया पीठ सेंके : स्वार्थी लोग किसी के दुःख में भी अपना उल्लू सीधा कर लेते हैं।

दुखिया का दुःख दुखिया जाने और न जाने कोय : दुखी व्यक्ति का दुःख वह स्वयं ही जान सकता है, और कोई उसे नहीं समझ सकता।

दुखिया की पीड़ा दुखिया ही सुनता है : जिसने स्वयं दुख झेला हो वही दूसरों का दुखड़ा सुन सकता है।

दुखिया दुःख को रोवे, सुखिया उसकी जेब टोवे : दुखिया अपना दुःख सुना रहा होता है और सुखिया यह देखने की कोशिश करता है कि उस से कितना पैसा उगाहा जा सकता है।

दुखिया रोवे, सुखिया सोवे : जिसको कोई दुख है वह अपने दुख से परेशान है जबकि जो सुखी है वह चैन की नींद सोता है।

दुखे पेट, कूटे माथा (पिराए पेट, फोड़े माथा) : किसी और की परेशानी के लिए किसी और को प्रताड़ित करना।

दुखों का भंडार नाम सदासुखराय : गुण के विपरीत नाम।

दुधारू गाय की लात भली (लात खाए पुचकारिए होए दुधारू धेनु) : दूध देने वाली गाय लात भी मार दे तो उसे पुचकारा जाता है। जिससे आपका स्वार्थ सिद्ध होता है उसके अवगुण भी सहन किए जाते हैं।

दुधारू भी उतना खाय, जितना खाय बाँझ : घर व समाज के लिए जो उपयोगी व्यक्ति है उस पर जितना खर्च होता है उतना ही खर्च निठल्ले (अनुपयोगी) व्यक्ति पर भी होता है।

दुनिया का मुँह कौन पकड़े (दुनिया से कौन जीते) : यदि आप में कोई कमी है तो दुनिया के लोग कुछ न कुछ जरूर बोलेंगे। उन्हें कोई रोक नहीं सकता।

दुनिया खाये बिना रह जाए, पर कहे बिना नहीं रहती : लोगों को सबसे अधिक रस परनिंदा करने में मिलता है।

दुनिया ठगिये मक्कर से रोटी खाइए शक्कर से : आज कल की दुनिया में धूर्त और ठग लोग ही मजे मार रहे हैं।

दुनिया दुरंगी मकारा सराय कहीं खैर खूबी कहीं हाय हाय : मकारा सराय – मक्कारों की सराय। दुनिया में कहीं ख़ुशी का रंग है तो कहीं दुःख का रंग है।

दुनिया पराए सुख दुबली है (दुनिया पराए सुख से परेशान है) : दूसरे का सुख देख कर हर किसी को ईर्ष्या होती है।

दुनिया मुर्दापरस्त है : दुनिया मरे हुए लोगों की ही प्रशंसा करती है।

दुनिया में दो ही गरीब या बेटी या बैल : दुनिया में सबसे अधिक सताए हुए दो ही प्राणी हैं, बेटी और बैल।

दुनिया से कौन जीते : दुनिया वाले आप के बारे में क्या कहते हैं इस से अधिक परेशान नहीं होना चाहिए। जिस काम में आपको लाभ हो व सुविधा हो वह काम करना चाहिए। एक बाप और बेटा अपने गधे पर बैठे कहीं जा रहे थे। लोगों ने देखा तो बोले, देखो कैसे कसाई हैं, बेचारे दुबले पतले गधे पर दोनों लदे हुए हैं। लोगों की बात सुन कर बाप उतर कर पैदल चलने लगा, तो लोगों ने कहा कि देखो जवान मुस्टंडा गधे की सवारी कर रहा है और बूढ़े बाप को पैदल चलना पड़ रहा है। यह सुन कर बेटा उतर गया और बाप गधे पर बैठ गया। अब लोग कहने लगे कि कैसा बाप है, बेटे को चलवा रहा है और खुद मजे से गधे पर बैठा है। तंग आ कर वो दोनों गधे से उतर कर पैदल चलने लगे तो लोग हंसने लगे कि कैसे मूर्ख हैं, गधे के होते हुए पैदल चल रहे हैं।

दुबला कुनबा सराप की आस : दुर्बल आदमी की एक ही ताकत है उसका श्राप, जिससे सबल लोग भी डरते हैं।

दुबला जेठ देवर बराबर : परिवार का कोई बड़ा बूढ़ा व्यक्ति यदि साधन सम्पन्न न हो तो उस की कोई इज्जत नहीं होती। जेठ यदि गरीब है तो उससे देवर जैसा व्यवहार किया जाता है।

दुबली बिटिया को घाघरा भारी : दुबले पतले लोगों का मजाक उड़ाने के लिए।

दुबली बिल्ली भी अपशकुन करती है : दुबली बिल्ली चाहे शिकार न कर पाए, पर यदि रास्ता काट जाएगी तो अपशकुन तो पूरा ही करेगी। दुष्ट व्यक्ति कमजोर हो तो भी नुकसान पूरा पहुँचा सकता है।

दुबले कलावंत की कौन सुने : गरीब कलाकार को कोई नहीं पूछता।

दुबले को दुख बहुत : दुबले से अर्थ यहाँ शारीरिक रूप से दुर्बल व्यक्ति से भी है और आर्थिक रूप से दुर्बल से भी। दुर्बल व्यक्ति को दुःख ही दुःख हैं।

दुबले पर दो लदें। कमजोर को सभी सताते हैं।

दुबले से भिड़ो नहीं, मोटे से डरो नहीं : दुबले आदमी को कमजोर समझ कर उससे भिड़ने की गलती नहीं करना चाहिए (हो सकता है कि वह लड़ने में तेज हो), और मोटे आदमी को तगड़ा समझ कर उससे डरना नहीं चाहिए।

दुम पकड़ी भेड़ की आर हुए न पार : गाय की पूँछ पकड़ कर आप नदी पार कर सकती हैं, भेड़ की पूँछ पकड़ कर नहीं। संकट से पार पाने के लिए किसी समर्थ व्यक्ति का ही सहारा लेना चाहिए।

दुरंगी छोड़ दे एक रंग हो जा, सरासर मोम हो या संग हो जा : मोम – मोम की तरह मुलायम, संग – पत्थर (पत्थर की तरह सख्त)। दो तरह का व्यक्तित्व मत पालो, या विनम्र बनो या सख्त। इस को इस प्रकार भी कहते हैं – दो रंगी छोड़ दे एक रंग हो जा, या किनारे हो ले या संग हो जा।

दुराए दुरे नहीं, नाह को नेह, सुगंध की चोरी : स्वामी किसी को प्रेम करता हो तो यह बात छिप नहीं सकती (व्यवहार में प्रकट हो जाती है), इसी प्रकार सुगंध की चोरी छिप नहीं सकती (हाथ में सुगंध आ जाती है)।

दुर्घटना से देर भली : कहीं पहुँचने की जल्दी में दुर्घटना का शिकार होने के मुकाबले देर से पहुँचना अच्छा है। इंग्लिश में कहावत है – Better late than never.

दुर्बल को न सताइए, जाकि मोटी हाय, (मुई खाल की सांस सौं, लौह भसम हुई जाय) : लोहे को तपाने के लिए लोहार भट्टी जलाया करते थे जिसकी आग बढ़ाने के लिए धौंकनी से हवा फूँकी जाती थी। धौंकनी बकरे की खाल से बनती थी। कबीर दास ने कहा है कि दुर्बल व्यक्ति को मत सताओ। जिस प्रकार मरे हुए जानवर की खाल की सांस से लोहा भस्म हो जाता है उसी प्रकार दुर्बल व्यक्ति की हाय से बड़े से बड़ा व्यक्ति भी मिट्टी में मिल सकता है।

दुलहिन नहीं देखी तो देख उसका भाई, बाघ नहीं देखा तो देख ले बिलाई : (भोजपुरी कहावत) दुल्हन के भाई को देखने से दुल्हन कैसी होगी इसका अनुमान लगाया जा सकता है। इसी तरह बिल्ली को देखने से बाघ कैसा होगा इसका अनुमान लगाया जा सकता है।

दुलारी धिया का कनकटनी नाम : कुछ लोग अधिक लाड़ में बच्चों के ऊलजलूल नाम रख देते हैं, उन पर व्यंग्य।

दुलारी बिटिया, ईंटे का लटकन : ज्यादा लाड़ प्यार से बिगड़ी हुई बिटिया फूहड़ पने से फैशन कर रही है (ईंट का झुमका पहने है)।

दुल्हिन वही जो पिया मन भाए : कोई स्त्री कितनी भी सुंदर या गुणवान क्यों न हो यदि पति उसे पसंद नहीं करता तो सब बेकार है। इसी प्रकार जिसे मालिक पसंद करे वही कर्मचारी योग्य माना जाता है।

दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम : अधिकतर मनुष्य सांसारिक सुखों (माया) का आनन्द लेते हैं और कुछ ईश्वर की भक्ति (राम) में लीन हो कर परम सुख प्राप्त करते हैं, पर जो लोग दुविधा में रहते हैं उन्हें दोनों में से कुछ नहीं मिलता।

दुशाले में लपेट कर मारो : किसी का अपमान करना है तो भी शालीनता के साथ करो।

दुश्मन एक भी हो तो बहुत, दोस्त अनेक भी हों तो कम : दुश्मन कोई न हो तो अच्छा, दोस्त जितने अधिक हों उतना अच्छा।

दुश्मन की किरपा बुरी, भली मित्र की त्रास : दुश्मन की कृपा से तो मित्र द्वारा दिया गया कष्ट अच्छा है।

दुश्मनों की कमी है तो उधार दे के देखो : कहावत में यह सीख दी गई है कि जिसको आप उधार देते हैं वह (उधार वापस मांगने पर) आपका दुश्मन हो जाता है। इसलिए उधार देने से बचना चाहिए।

दुश्मनों में यूँ रहो, जैसे दांतों में जीभ : दांतों के बीच जीभ बड़ी युक्ति पूर्वक रहती है क्योंकि उस को हर समय कटने का खतरा होता है।

दुष्ट न छोड़े दुष्टता, दे कैसी सिख कोय, धोए हू सौ बार के स्वेत न काजर होय : कितना भी समझाने की कोशिश करो, दुष्ट व्यक्ति दुष्टता नहीं छोड़ता (जैसे सौ बार धोने पर भी काजल सफेद नहीं होता)।

दुष्ट नारि और मित्र शठ परै जानिए जाय, बसे सर्प घर बीच ही जाने कब उठ खाय : (बुन्देलखंडी कहावत) दुष्ट नारी और कपटी मित्र को घर में नहीं बसाना चाहिए। इनको घर में रखना सांप पालने के बराबर है।

दुष्ट सास और बदमाश बहू राम रूठें तभी मिलें : दुनिया में ये दोनों कष्ट सबसे बड़े हैं। भगवान जिससे नाराज हों उसे ही ऐसा कष्ट देते हैं।

दूजिये की जोरू, शैतान का घोड़ा, जितना कूदे उतना थोड़ा : दूजिया – पहली पत्नी की मृत्यु (या तलाक) के बाद दूसरा विवाह करने वाला। कोई दूजिया यदि कुँवारी लड़की से विवाह करता है तो उसे उसके बहुत नखरे उठाना पड़ते हैं। (शैतान के घोड़े से तुलना की गई है)।

दूतों से भींते हिल जाती हैं : कुटिल और चुगलखोर लोगों की करतूतों से राजमहलों की दीवारें (भीतें) हिल जाती हैं, अर्थात शासन अस्थिर हो जाते हैं। घर के बुजुर्ग लोग इस आशय से यह कहावत कहते हैं कि कुटिल लोगों की बातों में आने से घर परिवार और सम्बन्ध टूट जाते हैं, इसलिए सुनी सुनाई बातों में न आ कर अपने विवेक से काम लेना चाहिए।

दूध और पूत किस्मत से मिलते हैं : दूध केवल सम्पन्न लोगों को ही मिलता है अर्थात जो भग्यवान हैं वही पी सकते हैं। किसी के घर में पुत्र का जन्म भी भाग्य से ही होता है।

दूध कलारी कर गहे मद समझे सब कोए : कलारी – शराब बेचने वाली। शराब बेचने वाली स्त्री अगर दूध का गिलास भी पकड़े हो तो सब उसे शराब ही समझते हैं। जिस व्यक्ति की समाज में गलत छवि बनी हुई हो वह यदि अच्छा काम भी करे तो लोग बुरा ही समझते हैं।

दूध का उफान ठन्डे जल के छींटे से दबे : कोई व्यक्ति बहुत क्रोध में हो तो बदले में क्रोध करने से नहीं बल्कि शांत व्यवहार करने से वह शांत होता है।

दूध का जला छाछ भी फूँक फूँक कर पीता है (फूँके तक्र दूध को दाह्यो) : तक्र – मट्ठा। गर्म दूध पीने से कोई जल गया हो तो वह डर के कारण मट्ठे को भी पीने से पहले फूंक मार कर ठंडा करता है। एक बार धोखा खाया हुआ व्यक्ति दोबारा कुछ अधिक ही सावधानी से काम करता है। इंग्लिश में कहावत है – The burnt child dreads the fire.

दूध का दूध पानी का पानी : 1. हंस के विषय में कहा जाता है की वह दूध और पानी को अलग कर देता है और केवल दूध ग्रहण करता है। संस्कृत में इसे नीर क्षीर विवेक कहते हैं, अर्थात अशुद्धियों को अलग कर के शुद्ध वस्तु या शुद्ध ज्ञान ग्रहण करना। 2. दूध और पानी को अलग करना बहुत कठिन कार्य है। किसी उलझे हुए कठिन मसले को तर्क पूर्ण ढंग से सुलझाना। 3। इस कहावत का एक बिल्कुल अलग प्रकार से भी अर्थ किया जाता है। एक दूधवाली दूध में आधा पानी मिलाती थी और ग्राहकों से पूरे पैसे वसूलती थी। एक बार वह रुपयों की पोटली ले कर कहीं जा रही थी। नदी किनारे एक पेड़ के नीचे सुस्ताने के लिए बैठ गई तो उस की आँख लग गई। इसी बीच एक बंदरिया उस की रुपयों की पोटली ले गई और पेड़ की डाल पर बैठ कर पोटली में से निकाल कर एक रुपया नदी में और एक जमीन पर फेंकने लगी। दूध वाली जोर जोर से रोने लगी तो पास खड़े एक आदमी ने कहा कि बंदरिया दूध की कमाई तुझे दे रही है और पानी की कमाई पानी में डाल रही है।(बंदरिया कहे गूजरी सयानी, दूध का दूध और पानी का पानी).

दूध की मलाई, रखवाली में बिल्ली बिठाई : मूर्खतापूर्ण कार्य। बिल्ली मौका मिलते ही मलाई को चट कर जाएगी।

दूध दही का पाहुना छाछ से अनखावना : जिस मेहमान को दूध दही की आदत पड़ी हो उसे छाछ दी जाए तो वह नाराज हो जाता है।

दूध देने वाली गाय की लात भी सही जाती है : जिस से कोई लाभ मिलता हो उसकी अनुचित हरकतें भी सहन करनी पड़ती हैं।

दूध पीती बिल्ली कुत्तों में जा पड़ी : कोई बेचारा सुख में जीवन व्यतीत कर रहा हो और अचानक बहुत बड़ी मुसीबत में फंस जाए।

दूध बेचा, मानो पूत बेचा : गाँव के लोगों में आज भी दूध को बेचना अच्छा नहीं माना जाता। अपने बच्चे दूध पीने वाले हों तो लोग कहते हैं कि अगर तुम ने दूध बेचा तो यह बच्चे के साथ बहुत बड़ा अन्याय है।

दूध में की मक्खी, किसने चक्खी : दूध में यदि मक्खी गिर जाए तो मक्खी चखना तो बहुत दूर की बात है उस दूध को भी कोई नहीं पीता। जान बूझ कर किसी गलत व घृणित बात को कोई स्वीकार नहीं करता।

दूधों नहाओ, पूतों फलो : स्नेह से दिया गया आशीवाद। दूध से नहाओ अर्थात तुम्हारे घर में खूब सम्पन्नता हो, पूतों फलो अर्थात तुम्हारे घर में बहुत से पुत्र जन्म लें।

दूब तो चरने के लिए ही होती है : आतताइयों का मानना है कि कमजोर लोग सताने के लिए ही बने हैं।

दूर की गंगा से घर का पोखर भला :  कोई भी चीज़ कितनी भी अच्छी क्यों न हो यदि हमारी पहुँच से बाहर हो तो हमारे लिए बेकार है। जो सहज उपलब्ध हो वह अधिक अच्छी है।

दूर के ढोल सुहावने होते हैं : बहुत सी वस्तुएँ दूर से अच्छी लगती हैं परन्तु पास जा कर मालूम होता है कि वे इतनी अच्छी नहीं हैं।

दूर जमाई फूल बराबर गावँ जमाई आदो, घर जमाई गधे बराबर जितना चाहे लादो : जो दामाद दूर रहता है वह फूल के समान प्रिय होता है, जो उसी गाँव में रहे वह कुछ कुछ प्रिय और सम्माननीय होता है, पर जो ससुराल में रहे वह गधे के समान लादा जाता है।

दूर देस से साजन आया, ऊंची मैंड़ी पलंग बिछाया, खाय पीय कर रहिया सोय, लेना एक न देना दोय : 1. किसी ऐसे व्यक्ति के लिए जिसे अपनी पत्नी से कोई आसक्ति न हो। 2. किसी विशिष्ट अतिथि के लिए अच्छा प्रबंध करो और वह कोई तवज्जो न दे तो।

दूर रहे से हेत बढ़े : दूर रहने से प्रेम बढ़ जाता है।

दूल्हा और दूल्हे का भाई, लंगड़ी घोड़ी और काना नाई : जहाँ बरात में बहुत कम लोग हों और वो भी एक से बढ़ कर एक कार्टून हों तो।

दूल्हा ढाई दिन का बादशाह : ढाई दिन की बादशाहत का मुहावरा अलिफ़ लैला के एक किस्से से आया है जिसमें किसी गरीब आदमी को ढाई दिन के लिए बादशाह बना दिया गया था। दूल्हे की शान भी केवल ढाई दिन की होती है, बारात लौटने के बाद उसे कोई नहीं पूछता।

दूल्हा तो आया नहीं और फेरों की तैयारी : सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति के बिना कोई कार्यक्रम कैसे हो सकता है।

दूल्हा दुल्हन मिल गए, झूठी पड़ी बरात : दूल्हे को दुल्हन से मिलवाने के लिए ही विवाह नाम का बड़ा भारी आयोजन किया जाता है। अब अगर दूल्हा दुल्हन अपने आप से ही मिल जाएँ तो बारात को कौन पूछेगा। इस का दूसरा अर्थ यह है कि यदि दो व्यक्ति आपस में दुश्मनी रखते हों तो उनके समर्थक भी लड़ने लगते हैं। अब यदि वे दोनों आपस में मिल जाएँ तो समर्थक कहीं के नहीं रहते।

दूल्हे के मुंह से लार गिरे तो बाराती क्या करें : मुंह से लार गिरने का अर्थ है मंद बुद्धि होना। दूल्हा मंद बुद्धि है इस में बारातियों का क्या दोष है।

दूल्हे के सो जाने से ब्याह नहीं टलता : जब बाल विवाह होते थे तब यह समस्या आती होगी कि कोई कोई दूल्हा विवाह के बीच में ही सो जाता होगा। तभी यह कहावत बनी होगी। बड़े आयोजन किसी एक महत्वपूर्ण व्यक्ति की अनुपस्थिति से भी रुकते नहीं हैं, इस आशय में यह कहावत कही जाती है।

दूल्हे के ही साथ बरात : बारात दूल्हे के ही साथ चलती है, इसी प्रकार सेना सरदार के साथ और जनता अपने नेता के साथ चलती है।

दूल्हे को पत्तल नहीं, बजनिये को थाल : महत्वपूर्ण व्यक्ति की अनदेखी कर के महत्वहीन लोगों की आवभगत करना। (दूल्हे को पत्तल भी नहीं मिल रही है और बाजा बजाने वाले को थाल में भोजन परोसा जा रहा है। बजनिया – बाजा बजाने वाला।

दूसरे की थाली में घी घना दीखे : मनुष्य को सदैव ऐसा लगता है कि दूसरे लोग उससे अधिक सुखी हैं। ऐसा लगता है कि दूसरे की थाली में घी अधिक है (एक जमाने में घी अधिक होना अच्छे खाने का मानक था)।

दूसरे की थाली में लड्डू बड़ा दीखे : दूसरे की सुख समृद्धि हमेशा अपने से अधिक लगती है। इंग्लिश में कहावत है – The grass is always greener on the other side of court।

दूसरे की पत्तल, लंबा-लंबा भात : चावल जितना लम्बा हो उतना ही उच्च कोटि का माना जाता है। हर व्यक्ति को ऐसा लगता है कि दूसरे को उस से अच्छा भात मिला है। अर्थ ऊपर वाली दोनों कहावत की भांति।

दूसरे की पीठ खुजलाने से अपनी खुजली नहीं मिटती है : दूसरों के काम करते रहने से अपनी आवश्यकताएं पूरी नहीं होतीं। इसका अर्थ यह नहीं है कि दूसरों के लिए कुछ नहीं करना चाहिए। व्यक्ति को अपनी आवश्यकताओं और समाज के कार्यों में संतुलन बना कर चलना चाहिए। (घर में दिया जला कर चौराहे पर दिया जलाओ)।

दूसरे की बहू और अपनी बेटी सबको अच्छी लगती है : अधिकतर महिलाओं को अपनी बहू में बुराइयाँ ही बुराइयाँ और अपनी बेटी में अच्छाइयाँ ही दिखाई पडती है, साथ ही दूसरों की बहू बहुत सुशील और गुणवान नज़र आती हैं।

दे गया सो ले गया, जमा किया सो गवां दिया : जो धन दान दिया वह आपके साथ परलोक जाएगा, जो जमा करते रहे वह सब यहीं रह जाएगा।

दे दुआ समधियाने को, नहिं फिरती दाने दाने को : लड़के की ससुराल से मिले माल पर कोई औरत घमंड कर रही है तो दूसरी उसे आइना दिखा रही है।

दे दे बारूद में आग, किसकी रही और किस की रह जाएगी : खूब खाओ पियो और मौज उड़ाओ। यहाँ क्या बचना है।

देकर कोई नहीं भूलता : व्यक्ति कोई वस्तु ले कर भूल सकता है पर दे कर कभी नहीं भूलता।

देख पराई चूपड़ी जा पड़ बेईमान, एक घड़ी की सरमा सरमी दिन भर को आराम : कहीं खाने पीने का बढ़िया इंतजाम हो तो बिना शर्म किये वहाँ जा कर पड़ जाओ। एक घड़ी की बेशर्मी और सारे दिन का आराम।

देखती आँखों और चलते घुटनों : सभी लोग यह चाहते हैं कि जब इस संसार से जाने का समय आए तब तक आँखों से दिखता रहे और पैर चलते रहें (किसी का मोहताज न होना पड़े)।

देखते हैं ऊँट किस करवट बैठता है : ऊंट जब बैठता है तो पहले से यह बताना संभव नहीं होता कि वह दाएं या बाएं किस तरफ बैठेगा। जब किसी व्यक्ति के विषय में यह अनुमान लगाना कठिन होता है कि वह आगे क्या निर्णय लेगा तो यह कहावत कही जाती है।

देखन के बौरहियाँ, मतलब में चौकस : कहावत उन लोगों के लिए जो देखने में बुद्धू लगते हैं पर अपने मतलब में होशियार होते हैं।

देखन के बौराहिया, आवें पांचो पीर : ऊपर वाली कहावत की भांति।

देखा देखी साधे योग, छीजे काया बाढ़े रोग : बिना योग्य गुरु से सीखे किसी की नकल कर के योग करने से शरीर को हानि होती है।

देखा देस बंगाला, जहाँ दांत लाल मुँह काला : बंगाल के लोगों के सांवले रंग और पान खाने की आदत पे व्यंग्य।

देखा न भाला, सदके गई खाला : बिना देखे किसी की बड़ाई करना।

देखा बाप घर, करे आप घर : लड़की ने जो अपने मायके में देखा होता है वही ससुराल में करना चाहती है।

देखी तेरी कालपी, बावनपुरा उजाड़ : कालपी में पुराने महलों और किलों के खंडहर बहुत हैं इस पर किसी का व्यंग्य।

देखो खेल खुदाय का क्या क्या पलटे रंग, खानजादा खेती करे, तेली चढ़े तुरंग : एक नवाब ने तेली की रूपवती लड़की से शादी कर ली तो तेली जाति के लोगों की महल में बहुत पूछ हो गई और नवाब के अपने खानदानी खेती कर के पेट पालने पर मजबूर हो गए।

देना और मरना बराबर है : कंजूस के लिए कथन।

देना थोड़ा, दिलासा बहुत : देना कुछ ख़ास नहीं केवल बातों से ढाढस बंधाना।

देनी पड़ी बुनाई तो घटा बतावें सूत : एक जमाने में लोग सूत कात कर जुलाहों को बुनने के लिए देते थे। किसी ऐसे आदमी की बात हो रही है कि जब बुनाई (जुलाहे की मजदूरी) देने का नम्बर आया तो बोले मेरा सूत कम हो गया है। कामगार को पैसा देने में हीला हवाली करना।

देने का बाट और, लेने का बाट और : बनिए को जब माल देना होता है तो वह कम तोलता है और जब लेना होता है तो ज्यादा तोलता है।

देने के लिए दीवालिया और लेने के लिए शाह : जब उधार वापस करने की बात आती है तो अपने को दीवालिया बताते हैं और जब किसी से उधार लेना होता है तो अपने को बहुत बड़ा आदमी बताते हैं।

देने को लेने को राम जी का नाम है। सन्यासियों के लिए कथन।

देने वाले से दिलाने वाले को ज्यादा सबाब है : परोपकार करने वाले से परोपकार करवाने वाले को अधिक पुन्य मिलता है।

देर आए, दुरुस्त आए : गलत काम करने वाला कोई आदमी थोड़ी देर से सही पर सही राह पर आ जाए तो।

देव न मारे डेंग से कुमति देत चढ़ाय : ईश्वर किसी को दंड देना चाहता है तो डंडा नहीं मारता, उसकी बुद्धि भ्रष्ट कर देता है।

देवता का माहात्म्य, पुजारी के हाथ : पुजारी जितना अधिक देवता का गुणगान करेगा उतनी अधिक लोग देवता की भक्ति करेंगे। महात्माओं और नेताओं के चमचे भी इसी प्रकार से उनका प्रचार करते हैं।

देवदार औ चन्दन टोरा खस का इत्र मिलावें, करें उबटनों देह लगा के गरमी में सुख पावें : (बुन्देलखंडी कहावत) देवदार, चंदन और खस को मिला कर उबटन करने से ठंडक पड़ती है।

देवर से परदा जेठ से ठिठोली : उल्टा काम। आम तौर पर स्त्रियाँ जेठ से पर्दा करती हैं और देवर से हंसी मजाक कर लेती हैं।

देवी दिन काटें, लोग परिचै मांगें : देवी खुद परेशानी में हैं और किसी तरह दिन काट रही हैं, लोग उनसे आग्रह कर रहे हैं कि अपनी महिमा दिखाइये। कोई व्यक्ति स्वयं परेशानी में हो और उससे सहायता मांगी जाए तब।

देवी दे तो दे नहीं तो भैरों तैयार है : जहाँ पर मांगने वाले के पास बहुत सारे विकल्प हों।

देवेगा सो पावेगा, बोवेगा सो काटेगा : जैसा व्यवहार दूसरों को दोगे वैसा ही पाओगे।

देवों से दानव बड़े : भले लोगों के मुकाबले दुष्ट लोग अधिक प्रभावशाली हों तो।

देश छोड़ो, वेश न छोड़ो : यदि किसी कारण से विदेश में बसना पड़े तो भी अपनी संस्कृति और मूल्यों को नहीं छोड़ना चाहिए।

देशी गधा पूर्वी रेंक (देसी गधा पंजाबी रेंक) : कोई फूहड़ व्यक्ति अधिक फैशन करे या अनपढ़ व्यक्ति ज्यादा अंग्रेज़ी बोले तो।

देशी मुर्गी विलायती बोल : ऊपर वाली कहावत की भांति।

देस चाकरी, परदेस भीख : अपने शहर या गाँव में व्यक्ति लज्जा के कारण भीख नहीं मांग सकता, इसलिए नौकरी ही कर सकता है। लेकिन परदेस में (जहाँ उसे कोई जानता न हो) भीख मांग सकता है।

देस चोरी परदेस भीख : बहुत भूखा होने पर आदमी परदेस में तो भीख मांग कर काम चला लेता है पर अपने गाँव या शहर में लज्जा के कारण भीख नहीं मांग पाता, लिहाजा चोरी करता है।

देस पर चढ़ाव, सर दुखे न पाँव : परदेस से घर वापस आना हो तो न थकान होती है न पैर दुखते हैं।

देसी कुतिया विलायती बोली : अनपढ़ व्यक्ति ज्यादा अंग्रेज़ी बोले तो।

देसी गधी, पूरवी चाल : मूर्ख व्यक्ति अधिक इतराए तो।

देह धरे का दंड है, हर काहू को होय, ज्ञानी काटे ज्ञान से, मूरख काटे रोय : मानव शरीर मिला है तो कुछ न कुछ कष्ट तो मिलेगा ही। ज्ञानी लोग समझदारी से कष्ट सह लेते हैं जबकि मूर्ख कष्ट मिलने पर रोते रहते हैं।

देह पर बाल न, तीन पाव का उस्तरा : अनावश्यक साज सामान।

देहरी को दीपक, ज्यौं घर को त्यौं आँगन को : देहरी पर रखा हुआ दीपक घर को भी रौशनी देता है और आंगन को भी। समझदार लोग घर और समाज के कामों में संतुलन बना कर चलते हैं।

दैव दैव आलसी पुकारा : उद्यमी लोग कर्म करते हैं जिसका उन्हें फल मिलता है जबकि आलसी लोग ईश्वर से ही मांगते रहते हैं।

दो कहे तो चार सुने : यदि किसी की बुराई में दो बातें कहोगे तो चार सुननी भी पड़ेंगी। कहावत में यह सीख दी गई है कि यदि अपनी बुराई सुनना नहीं चाहते तो किसी को बुरा भी न कहो।

दो खसम की जोरू, चौसर की गोट : जिस स्त्री के दो पति हों वह हर दम दोनों के इशारों पर नाचने को मज़बूर रहती है। दो हाकिमों के बीच कोई एक ही मातहत हो तो दोनों उस पर अपना जोर जमाते हैं।

दो घर का पाहुना, भूखा ही रह जाए : यदि कोई व्यक्ति दो घरों का मेहमान हो तो दोनों यह सोचते हैं कि उसने दूसरी जगह खा लिया होगा, इस चक्कर में वह भूखा ही रह जाता है। दो लोगों के चक्कर में कोई काम न हो पा रहा हो तो यह कहावत कही जाती है।

दो घर डूबते तो एक ही डूबा : जहाँ पति पत्नी दोनों ही निकम्मे और झगड़ालू हों वहाँ यह बात कही जाती है कि इन की शादी अलग अलग हुई होती तो दो घर डूबते। इनकी आपस में हुई है तो गनीमत है एक ही घर डूबा।

दो घर मुसलमानी, तिसमें भी आनाकानी : किसी एक जाति के बहुत थोड़े से लोग हों और उन में भी आपस में खींच तान हो तो।

दो घोड़ों पर सवारी खोटी : कहावत में यह सीख दी गई है कि किसी लक्ष्य को पाने का पूरे मन से प्रयास करो, अधूरे मन से कई सारे लक्ष्यों के पीछे भागने से कुछ भी हासिल नहीं होगा।

दो जोरुओं का खसम फूंके चूल्हा : जिस आदमी के दो पत्नियाँ हों उसे खुद ही खाना बनाना पड़ता है (बल्कि कभी कभी तो पत्नियों के लिए भी बनाना पड़ता है), क्योंकि दोनों पत्नियाँ आपस में हिर्स करती हैं।

दो तरबूज एक हथेली पर नहीं सधते : एक व्यक्ति से एक साथ दो बहुत बड़े काम नहीं लिए जा सकते।

दो दिन की मुसलमानी अल्लाह अल्लाह पुकारै : (हरयाणवी कहावत) जो नया मुसलमान बना हो वह अधिक दिखावा करता है।

दो नाव में चढ़ना, छाती फाड़ के मरना : यदि कोई व्यक्ति दो नावों में पैर रख कर नदी पार करना चाहेगा तो बीच मंझदार अवश्य डूबेगा। कोई व्यक्ति एक साथ दो कठिन काम करना चाह रहा हो और कोई भी काम ठीक से न कर पा रहा हो तो उसे नसीहत देने के लिए।

दो पाटन के बीच में साबत बचा न कोए : संसार रूपी चक्की के दो पाट हैं, माया मोह और ईश्वर की भक्ति। बेचारा आम आदमी इन दोनों के बीच पिसता रहता है। (इसकी पहली पंक्ति है – चलती चाकी देख के दिया कबीरा रोय)।

दो बेटों की माँ दुखिया : दोनों बेटे एक दूसरे पर जिम्मेदारी टालते हैं।

दो भिड़ेंगे तो एक तो गिरेगा ही : अर्थ स्पष्ट है।

दो मुल्लो में मुर्गी हराम : अगर जानवर को एक ही वार में ठीक तरह से जिबह न किया गया तो उसका मांस हराम हो जाता है। दो मुल्ले करेंगे तो ठीक तरह से नहीं होगा।

दो मुल्लों में मुर्गी हलाल : दो मुल्लों की आपसी लड़ाई और हिर्स में मुर्गी बेचारी मुफ्त में मारी जाती है।

दो लड़ें तीसरा ले उड़े (दो की लड़ाई, तीजे की मौज) : जब दो लोग लड़ते हैं तो तीसरा उसका लाभ उठाता है। दो बिल्लियों की लड़ाई में बंदर ने किस तरह रोटी खा ली थी यह कहानी हम सब ने सुनी होगी।

दो लड़ेंगे तो एक गिरेगा भी : जब दो लोग लड़ेंगे तो कोई न कोई तो गिरेगा ही।

दो शरीर एक प्राण : अत्यधिक प्रेम।

दो हाथ दो पाँव मिलें तो चौपाया भी बन सकते हैं और चतुर्भुज भी : दो लोग मिल कर काम करें तो महान काम भी कर सकते हैं (भगवान के समान चतुर्भज बन सकते हैं) और नीचता की पराकाष्ठा भी कर सकते हैं (पशुओं के समान चौपाए बन सकते हैं)

दोउ बेर जो घूमे फिरे, तीन बेर जो खाए, सदा निरोगी चंग रहे, जो प्रातः उठ न्हाए : जो व्यक्ति सुबह शाम सैर को जाता है (अर्थात व्यायाम करता है), तीन बार से अधिक भोजन नहीं करता है और प्रातः उठ कर नहाता है वह सदा निरोगी रहता है।

दोनों दीन से गए पांड़े, हलुआ मिला न मांड़े : मांड़े माने पतली रोटी। पांडे जी दोनों चीजें खाने के चक्कर में थे हलुआ भी और रोटी भी। अंततः दोनों ही नहीं मिलीं। (दुविधा में दोनों गए, माया मिली न राम)।

दोनों पलीतों में दे दो तेल, तुम नाचो हम देखें खेल : दो लोगों में लड़ाई करा कर तमाशा देखने वालों के लिए।

दोनों वक्त मिले सियोगे तो सूरज की आँख फूट जाएगी : पुराने लोगों की आदत थी कि किसी काम को मना करना हो तो उस के साथ कोई लोक विश्वास जोड़ दो। इसी प्रकार का एक बच्चों को समझाने वाला लोक विश्वास।

दोष कहा वा कुब्जा को सखि अपनो श्याम खोटो : कंस के बुलाने पर जब कृष्ण मथुरा गए तो वहां उन्होंने एक कुबड़ी स्त्री को स्पर्श कर के परम रूपवती में बदल दिया। गोपियों को जब यह बात मालूम हुई तो उन्हें बड़ी जलन हुई। वे आपस में बात कर रही हैं कि इस में कुब्जा का कोई दोष नहीं है कृष्ण के मन में ही खोट है।

दोस पराए देख करि, चला हसन्त हसन्त, आपने याद न आवई, जिनको आदि न अन्त : सभी लोग पराए दोष को देख कर हँसते हैं लेकिन अपने दोष कोई नहीं देखता।

दोस्त के मुँह पर कहिए और दुश्मन की पीठ पर : दोस्त को उसकी कोई कमी बतानी हो तो उसके मुँह पर बताओ, पीठ पीछे किसी से उसकी बुराई मत करो। दुश्मन की कमी बतानी हो उस के मुँह पर कुछ न कह कर पीठ पीछे उसकी बुराई करो।

दोस्त बने दुश्मन से सावधान रहिए : कोई दुश्मन यदि आप का दोस्त बन जाता है तो उस पर पूरा विश्वास नहीं करना चाहिए। हो सकता है वह आपकी पीठ में छुरा भोंकना चाहता हो। (फागुन को मेंह बुरो, बैरी को नेह बुरो)।

दोस्त मिलें खाते, दुश्मन मिलें रोते : आशीर्वाद के रूप में कहा जाता है।

दोस्ती टूट जाती है बहुत अधिक मिलने से या बहुत कम मिलने से : बहुत अधिक मिलने से अनादर होता है। संस्कृत में कहावत है ‘अति परिचयात अवज्ञा, सतत गमनं अनादरम्’। बहुत कम मिलने से भी प्रेम कम हो जाता है। इंग्लिश में कहावत है ‘out of sight, out of mind'.

दोस्तों का हिसाब दिल में : जहां सच्ची दोस्ती हो वहां लिखत पढ़त की जरूरत नहीं पड़ती।

दोस्तों से रखिएगा लेन देन साफ़, कायम अगर आपको रखनी है दोस्ती : दोस्ती चाहे कितने भी पक्की क्यों न हो आपसी हिसाब किताब साफ़ रखना चाहिए, क्या मालूम कब किस के मन में कोई खटास पैदा हो जाए।

दौड़ चले सो औंधा गिरे : किसी भी काम को करने में जो बहुत तेजी दिखाने की कोशिश करता है वह परेशानी में जरूर पड़ता है।

दौड़े दौड़े जाइए, भाग बिना क्या पाइए : कितनी भी दौड़ भाग कर लो (प्रयास कर लो) भाग्य के बिना कुछ नहीं मिलता। (बहुत से आलसी लोग यह सोच कर प्रयास ही नहीं करते)। वैसे सयाने लोग इस आशय में भी इस कहावत को कहते हैं कि पूरा प्रयास करने के बाद यदि सफलता न मिले तो निराश मत हो, यह मान लो कि अमुक वस्तु तुम्हारे भाग्य में ही नहीं थी। इंग्लिश में भी इस आशय की एक कहावत है – Nothing is stronger than destiny.

दौलत पाय न कीजिए सपनेहूँ में अभिमान, (चंचल जल दिन चारिको, ठाउं न रहत निदान) : लक्ष्मी चंचला है, किसी के पास ठहरती नहीं है, इसलिए धन दौलत पा कर घमंड नहीं करना चाहिए, सपने में भी नहीं।

द्वार धनी के पड़ रहे, धक्का धनी के खाय, कबहूँ धनी नवाजिहैं, जो दर छांड़ि न जाए : धनवान के द्वार पर पड़े रहो चाहे वह धक्का ही क्यों न दे। अगर आशा ले कर पड़े रहेगो तो कभी न कभी उसकी कृपा हो जाएगी।

( ध )

धंधा थोड़ा धांधल घनी : (राजस्थानी कहावत)। जहाँ काम बहुत कम और धांधलेबाजी ज्यादा होती है। जैसे सरकारी कार्यालय। घनी – अधिक।

धतूरे के गुण महादेव जानें : जो जिस चीज का सेवन करता है वही उस के गुण जान सकता है।

धन और कन्दुक खेल की दोनों एक सुभाय, कर आवत छिन एक में छिन में कर से जाय : कन्दुक – गेंद। धन और गेंद दोनों का एक सा स्वभाव है, हाथ में आते ही तुरंत निकल जाते हैं।

धन का धन गया, मीत का मीत गया। (धन का धन गया, मीत की प्रीत गयी) : दोस्ती और रिश्तेदारी में पैसा उधार देने में यह खतरा हमेशा रहता है कि पैसा भी वापस न मिले और पैसा वापस मांगने पर सम्बंध भी खराब हो जाएँ।

धन के तेरह मकर पचीस दिन जाड़े दो कम चालीस : चिल्ला जाड़ा अड़तीस दिन का होता है।

धन के पन्द्रा मकर पचीस। जाड़ा परै दिना चालीस : राशि के हिसाब से बताया गया है कि धन राशि के पन्द्रह दिन और मकर राशि के पच्चीस दिन बहुत जाड़ा पड़ता है।

धन का बढ़ना अच्छा है,  मन का बढ़ना नाहीं : (भोजपुरी कहावत) रहीम ने इस विषय में बहुत उच्च कोटि की बात कही है – बढ़त बढ़त सम्पति सलिल, मन सरोज बढ़ जाहिं, घटत घटत पुनि न घटे, बरु समूल कुम्ह्लाहिं (तालाब में पानी बढ़ने के साथ कमल की नाल लम्बी होती जाती है पर पानी कम होने पर फिर छोटी नहीं होती, बल्कि कमल मुरझा जाता है। इसी प्रकार संपत्ति के बढ़ने से व्यक्ति का मन बढ़ जाता है और संपत्ति कम होने से मुरझा जाता है)।

धन के बिना नाथिया और धनी हुए तो नाथू लाल : किसी व्यक्ति का नाम नत्थू है। जब वह गरीब था तो सब उसे नाथिया कह कर बुलाते थे, धनी हो गया तो नाथू लाल कहने लगे।

धन खेती धिक चाकरी, धन धन बणिज व्यापार : खेती धन्य है और नौकरी को धिक्कार है। व्यापार भी धन्य है।

धन गया कुछ नहीं गया, स्वास्थ्य गया कुछ गया, चरित्र गया सब कुछ गया :  स्पष्ट है।

धन दे जी को राखिए, जी दे राखे लाज : धन खर्च कर के प्राणों की रक्षा कीजिए और प्राण दे कर आत्मसम्मान की।

धन से लखपति दिल से भिखारी : धनी परन्तु कंजूस व्यक्ति के लिए।

धन, जोबन और माया, तीन दिनां की छाया : धन, यौवन और माया अधिक समय तक नहीं ठहरते (इसलिए इनके होने पर अभिमान नहीं करना चाहिए)।

धनबल जनबल बुद्धि अपार, सदाचार बिन सब बेकार : सदाचार के बिना सारे धन और बुद्धि बेकार हैं।

धनवंती के काँटा लगा, दौड़े लोग हजार, निर्धन गिरा पहाड़ से, कोइ न करे विचार (धनवंती के कांटा लगा पूछे सब कोय, निर्धन गिरा पहाड़ से पूछे ना जोय) : धनवान को जरा सा भी कष्ट हो तो सब पूछने आते हैं, गरीब को कितना भी बड़ा कष्ट हो, कोई नहीं पूछता। (घर की जोरू भी नहीं पूछती)।

धनि बगुला भक्तन की करनी, हाथ सुमरनी बगल कतरनी : धनि – धन्य है, सुमरनी – जपने वाली माला, कतरनी – कैंची। हे बगुला भक्तों, तुम्हारी करनी धन्य है। तुम हाथ में माला ले कर भक्त बने हुए हो और बगल में जेब काटने वाली कैंची रखे हुए हो। कहीं कहीं पर केवल ‘हाथ सुमरनी बगल कतरनी’ बोला जाता है।

धनि रहीम जल पंक को लघु जिय पियत अघाय, उदधि बड़ाई कौन है जगत पियासो जाय : रहीम कहते हैं कि छोटे तालाब का जल धन्य है जिस से लोगों की प्यास बुझती है। समुद्र इतना बड़ा है लेकिन उस से किसी की प्यास नहीं बुझती। बड़े का बड़प्पन तभी माना जाएगा जब किसी को उससे लाभ होगा।

धनी की बेटी ब्याहे, हिजड़े अड़ंगा लगायें : किसी अच्छे काम में यदि दुष्ट लोग अड़ंगा लगाएं तो।

धनी बाप के काने बेटे भी ब्याहे जाते हैं : पैसे वाले लोगों के अयोग्य और कुरूप बेटों की भी शादी हो जाती है।

धन्य मेरी बालकी, जिन बाप चढ़ाए पालकी : बेटी के कारण प्रतिष्ठा पाने वाले के लिए प्रशंसा या व्यंग्य में कही गई बात।बालकी – पुत्री।

धरती माता तुम बड़ीं, तुम से बड़ा न कोय, जब धरती पर पग धरूँ, बैकुंठ सवेरा होय : सुबह उठ कर धरती पर पाँव रखने से पहले बोली जाने वाली पंक्तियाँ।

धरम का धरम, करम का करम : सर्वोत्तम कार्य वह है जिसमें धर्म का पालन भी हो और रोजी रोटी भी चले।

धर्म की जड़, सदा हरी (धर्म की जड़ पाताल में) : धर्म पर चलते वाला धनवान न भी हो तब भी सुखी रहता है।

धर्म धीरा, पाप अधीरा : धर्म पर चलने वाला व्यक्ति धैर्यवान होता है जबकि पाप कर्म करने वाला सब कुछ पा लेने के चक्कर में अधीर होता है।

धर्म भी छूटा, तुम्बा भी फूटा : तुम्बा – कड़वे कद्दू को सुखा कर बनाया गया पात्र जिसे साधु लोग प्रयोग करते हैं। कोई व्यक्ति धर्म से विमुख हो जाए तो।

धर्मी धर्म करे और पापी पेट पीटे : कोई धर्मात्मा परोपकार के कार्य करता है तो दुष्ट लोगों को बड़ा कष्ट होता है।

धाओ धाओ, करम लिखा सो पाओ : धाओ – दौड़ो। कितना भी दौड़ लो, जो भाग्य में लिखा है वही मिलेगा।

धाकड़ चोर, सेंध में गावे : आमतौर पर चोर सेंध लगा कर जल्दी से चोरी कर के भाग जाते हैं। परन्तु जो चोर आत्म विश्वास से भरा होता है उसे कोई जल्दी नहीं होती। कोई सरकारी कर्मचारी बिना किसी से डरे घर जा कर रिश्वत मांगे और धौंस दिखाए तो भी यह कहावत कह सकते हैं।

धान का गाँव पुआल से जाना जाता है : यदि गाँव में पुआल का प्रयोग अधिक दिखाई दे तो समझ लो यहाँ धान की खेती होती है। अर्थ है कि परिवेश को देख कर किसी स्थान के विषय में बहुत कुछ जाना जा सकता है।

धान गिरे बढ़ भाग, गेहूँ गिरे दुरभाग : खेत में अगर धान की खड़ी फसल गिरती है तो धान की उपज अच्छी होती है लेकिन गेहूँ की फसल गिर जाए तो उपज अच्छी नहीं होती। यानि गिरी हुई धान की फसल के दाने निरोग और बड़े होते हैं जबकि गेहूँ गिर जाए तो उसके दाने छोटे-छोटे हो जाते हैं।

धान पान ऊखेरा, तीनों पानी के चेरा : धान, पान और गन्ने की फसल को बहुत पानी चाहिए होता है।

धान पान पनियाव ले, दुष्ट जात लतियाव ले : धान और पान अधिक पानी से ठीक रहते हैं और दुष्ट जात लतियाने से।

धान पान पनिआए, बाभन खूब खिलाए, कायथ घूस दिलाए, नान्ह जात लतिआए : धान और पान के पौधे खूब पानी देने से खुश होते हैं (तेजी से बढ़ते हैं), ब्राह्मण खूब खिलाने से,  कायस्थ घूस देने से और छोटी जात के लोग लात खा कर खुश रहते हैं। यह एक कडवा सच है कि सामंत शाही व्यवस्था में तथाकथित उच्च जाति के लोग वंचितों पर बहुत अत्याचार करते थे।

धान पुराना घी नया और कुलवंती नार, चौथी पीठ तुरंग की सरग निसानी चार : चावल पुराना अच्छा माना जाता है और घी नया। ये चीजें भाग्य से ही मिलती हैं। इनके अतिरिक्त कुल की लाज रखने वाली स्त्री और घोड़े की सवारी भी बड़े भाग्य से मिलती हैं इसलिए इन चारों चीजों को स्वर्ग की निशानी बताया गया है।

धी छोड़ दामाद प्यारा : लड़की मायके में अपने पति की बुराई कर रही है। मां बाप समझाते हैं कि पति के बारे में ऐसा नहीं कहते, तो लड़की बोलती है कि अच्छा अब तुम्हें लड़की से दामाद ज्यादा प्यारा हो गया।

धी जमाई ले गए, बहू ले गईं पूत, चरनदास हम बुड्ढे बुढ़िया रहे ऊत के ऊत : धी माने बेटी। जमाई लोग लड़कियों को ले गए और लड़कों को बहुएं ले गईं। बेचारे पति पत्नी बुढ़ापे में अकेले रह गए।

धी ताको कहूँ, बहुरिया तू कान धर : कोई औरत बहू पर रोब जमाने के लिए लड़की को डांट रही है (जिससे बहू यह न कहे कि लड़की को कुछ नहीं कहतीं), और इस तरह बोल रही है कि बहू भी सुन कर सावधान हो जाए।

धी दस कोस, पूत पड़ोस :  धी – बेटी। लड़की को अपने घर से थोड़ा दूर बसाना चाहिए और पुत्र को बगल में।

धी न धियाना, आप ही कमाना, आप ही खाना : ऐसे इकलखोर निस्संतान व्यक्ति के लिए जो कोई सामाजिक सरोकार न रखता हो।

धी पराई, आँख लजाई : कोई व्यक्ति कितना भी बड़ा क्यों न हो, कितना भी अहंकारी क्यों न हो, बेटी की शादी के बाद उसे विनम्र होना पड़ता है।

धी ब्याही तब जानिये जब घर से डोली जावे : बेटी के विवाह में तरह तरह के संकट आते हैं। जब उस की डोली विदा हो जाए तभी मानना चाहिए कि विवाह सम्पन्न हो गया है।

धीमे नाचो, नंगे दिख जाओगे : अति उत्साह में आ कर ज्यादा उछल कूद करने से आपकी असलियत सामने आ जाने का खतरा होता है।

धीया न पूता, मुँह चाटे कुत्ता।  धीया, धी – बेटी, पूता – पुत्र : जिनके कोई संतान न हो बुढापे में उनकी बहुत बेकदरी होती है (कुत्ते मुँह चाटते हैं)।

धीरज धरिअ उतरिये पार, नाहीं बूड़त सब परिवार : जो लोग धैर्य रख कर नदी पार करते हैं, उनका परिवार बीच नदी में नहीं डूबता।

धीरज धर्म मित्र अरू नारी, आपत काल परखियेहीं चारी : कोई व्यक्ति कितना धैर्यवान है, कितना अपने धर्म पर अडिग है, कोई मित्र कितना सच्चा हितैषी है और कोई नारी कितनी पतिव्रता है, इन सब की परख आपत्ति काल में ही हो सकती है।

धीरज बनिज, उतावल खेती : व्यापार में धैर्य की आवश्यकता होती है और खेती में जल्दी निर्णय ले कर पहले काम करने की।

धीरज सुधारे कारज : धैर्यपूर्वक कार्य करने से सारे कार्य ठीक से हो जाते हैं।

धुली धुलाई भेड़ कीचड़ में गिरी : बाल अधिक होने के कारण भेड़ को नहलाना कठिन होता है, और नहलाने के बाद अगर वह कीचड़ में गिर जाए तो नहलाने वाले को कितना कष्ट होगा। मेहनत से किया हुआ काम मिट्टी हो जाना।

धूप रहते मेंह बरसे, काले चोर का ब्याह : लोक विश्वास है कि धूप और वर्षा एक साथ हो तो काले चोर का ब्याह हो रहा होगा। कहीं कहीं भूत भूतनी का ब्याह भी मानते हैं।

धूल उड़ाने से सूरज नहीं छिपता : किसी महापुरुष की निंदा करने से उसकी महानता कम नहीं हो जाती।

धूल छाने कंकड़ हाथ : व्यर्थ के काम से कुछ हासिल नहीं होता। धूल को छानोगे तो कंकड़ ही हाथ लगेंगे।

धूल पड़ी वा काम में एक चित्त दो ठौर : काम कहीं और कर रहे हैं और मन कहीं और है तो काम में सफलता नही मिल सकती।

धूल से ढका हो तो भी सूरज सूरज ही रहता है : अर्थ स्पष्ट है।

धेला न कौड़ी, कान छिदाने दौड़ी : कर्ण छेदन संस्कार में काफी खर्च होता है।जिस कन्या के माँ बाप के पास पैसा न हो और कन्या के कान छिदाना चाह रहे हों    

धेले की नथनी पर इतना गुमान, सोने की होती तो चढ़ती आसमान : बहुत छोटी छोटी चीजों पर घमंड करने वालों का मजाक उड़ाने के लिए यह कहावत कही गई है।

धेले की बुढ़िया टका सर मुड़ाई : किसी सस्ती चीज़ का रखरखाव महंगा हो तो।

धैया छूने आये थे। बच्चों के खेल में किसी एक स्थान को धैया मान लेते हैं : बच्चे एक स्थान से दौड़ कर धैया छूते हैं और लौट कर वापस आते हैं। कोई आप के घर आते ही जाने के लिए कहने लगे तो यह कहावत बोली जाती है।

धोबी अपने गदहे को भी बाबू कहे : जिससे काम लेना है उस से अच्छा व्यवहार करना चाहिए।

धोबियों से कौन सा घाट छिपा है : हर व्यापारी को अपने व्यवसाय से सम्बन्धित सभी बारीकियाँ मालूम होती हैं।

धोबी अहीर की कौन मिताई, इनके गदहा उनके गाई : दो अलग प्रवृत्ति या व्यवसाय वाले लोगों में मित्रता नहीं हो सकती इस बात को मजेदार ढंग से कहा गया है। धोबी के पास गदहा है और अहीर के पास गाय, इनमें मित्रता कैसे हो सकती है।

धोबी का कुत्ता, न घर का न घाट का : धोबी का कुत्ता धोबी के साथ घाट पर जाता है और घाट पर कपड़े सूखते छोड़ कर धोबी के साथ ही घर आ जाता है। अर्थात वह न तो घर की रखवाली कर पाता है और न ही घाट की। किसी ऐसे व्यक्ति के लिए जिस से कोई भी एक काम ढंग से न लिया जाए (और इस कारण उस की कोई कद्र न हो)। भोजपुरी कहावत – घर के ना घाट के माई के न बाप के।

धोबी का गधा, साधु की गाय और राजा का नौकर किसी और काम के नहीं रहते : अर्थ स्पष्ट है।

धोबी का छैला (बेटा), आधा उजला आधा मैला : धोबी का बेटा आधे कपड़े अपने पहनता है जो मैले होते हैं और आधे कपडे ग्राहकों के पहनता है जो उजले होते हैं।

धोबी की भाजी गधा भी खाए : भाजी – विवाह में रिश्तेदारों को बंटने वाली मिठाई। पालतू जानवर परिवार के सदस्य जैसा हो जाता है।

धोबी के घर पड़े चोर , वह न लुटा लुटे और : धोबी के घर चोरी होगी तो नुकसान धोबी का नहीं उन लोगों का होगा जिनके कपड़े धोबी धोने के लिए ले कर आया है।

धोबी के घर ब्याह, गधे का छुट्टी भइल : (भोजपुरी कहावत) धोबी के घर में ब्याह है। कपड़े नहीं धुलने इस लिए गधे को छुट्टी मिल गई है। किसी असम्बद्ध कारण से किसी को लाभ मिलने पर।

धोबी के घर में आग लगी, न हरष न बिषाद : धोबी के घर में आग लगी तो उसे कोई चिंता ही नहीं है, क्योंकि जो कपड़े जलेंगे वे उसके हैं ही नहीं।

धोबी के बसे या कुम्हार के, गधा तो लदेगा ही : गरीब और असहाय आदमी कहीं भी रहे उस पर काम तो लादा ही जाएगा.

धोबी के ब्याह, गधे के माथे मोर : धोबी के घर में ब्याह है तो गधे को भी सजने को मिल रहा है।

धोबी छोड़ भिश्ती किया, रही घाट के पास : धोबी घाट पर कपड़े धोता है और भिश्ती पानी भरता है। किसी स्त्री ने धोबी को छोड़ कर भिश्ती से शादी कर ली, तो भी उसे घाट पर ही रहना पड़ा। स्थान या व्यवसाय बदल कर भी किसी व्यक्ति की स्थिति न सुधरे तो यह कहावत कही जाती है।

धोबी बस के क्या करे, दिगम्बरन के गाँव : दिगम्बर – दिक्+अम्बर, दिशाएँ जिनका वस्त्र हैं अर्थात पूर्णतया निर्वस्त्र रहने वाले साधु लोग (जैन मुनियों का एक वर्ग)। जो लोग कपड़े ही नहीं पहनते उनके गाँव में बस कर धोबी क्या करेगा। जहाँ किसी चीज़ की बिलकुल माँग न हो वहाँ उस का व्यापार करने की क्या तुक।

धोबी रोवे धुलाई को, मियाँ रोवे कपड़े को : धोबी इस बात को रोता है कि धुलाई के पैसे कम मिल रहे हैं और मियाँ इस बात को रो रहे हैं कि कपड़े साफ़ नहीं धुले। सब अपनी अपनी परेशानी को रोते हैं।

धौले पर दाग लगे : सफेद पर ही दाग लगता है, काले या गहरे रंग पर दाग दिखाई नहीं पड़ते। सच्चरित्र लोगों की बदनामी बहुत जल्दी हो जाती है।

धौले भले हैं कापड़े, धौले भले न बार, काली भली है कामली, काली भली न नार : कपड़े तो सफेद अच्छे लगते हैं पर सफ़ेद बाल अच्छे नहीं लगते, कमली (छोटा कम्बल) तो काली अच्छी लगती है पर स्त्री काली अच्छी नहीं लगती।

( न )

न अंधे को न्योता देते न दो जने आते : अंधे को बुलाओगे तो अंधा खुद तो आएगा ही, किसी को साथ में ले कर भी आएगा। ऐसा कोई काम करो ही क्यों जिसमें उम्मीद से अधिक खर्च हो।

न इतना मीठा बन कि चट कर जाएं भूंखे, न इतना कड़वा बन कि जो चक्खे वो थूके : समाज में अपना व्यवहार कैसा रखना चाहिए इसके लिए बड़ा सुंदर सुझाव है। अगर बहुत मीठा बनोगे तो लोग आप से बहुत अपेक्षाएं करेंगे और आपको चैन से जीने नहीं देंगे। अगर बहुत कड़वा बनोगे तो आप के नाम पर थूकेंगे। इसलिए न बहुत मीठा और न बहुत कड़वा, संतुलित व्यवहार करना चाहिए।

न खाता न बही, जो हम कहें वही सही : जबरदस्ती अपनी बात मनवाने वालों के लिए।

न खुदा ही मिला न बिसाले सनम, न इधर के रहे न उधर के रहे : बिसाले सनम – प्रिय से मिलना (उर्दू)। कहावत का अर्थ स्पष्ट है। इस प्रकार की दूसरी कहावत है – दुविधा में दोनों गए, माया मिली न राम।

न खोटा करें न हाथ जोड़ें : जब हम कोई गलत काम नहीं करते तो हम किसी के आगे हाथ क्यों जोड़ें।

न गदहे को दूजा मालिक, न धोबी को जानवर दूजा : जहाँ दो व्यक्ति मजबूरी में एक दूसरे से गठबंधन किए हों और निभा रहे हों।

न गाय के थन, न किसान के भांडे : काम का कोई सूत कपास ही नहीं है।

न चलनी में पानी आएगा न मूँज का रस्सा बन पाएगा : खाट बुनने वाले मूंज से मोटा रस्सा नहीं बन सकता (जिस प्रकार चलनी में पानी नहीं भर सकते)। छोटी बुद्धि वाले लोग बड़ा काम नहीं कर सकते।

न तुम जीते न हम हारे : आपसी विवाद को समझदारी से सुलझाने की कला।

न दीन का न दुनिया का : दीन – धार्मिक आस्था। कोई दुविधा ग्रस्त व्यक्ति जो न साधु सन्यासी बन पा रहा हो और न दुनियादारी निभा पा रहा हो।

न देने के नौ बहाने : कोई वस्तु देने का मन न हो तो बहुत से बहाने बनाए जा सकते हैं।

न दौड़ चलेंगे, न ठेस लगेगी : दौड़ के चलने में ठोकर लगने का डर है, हम दौड़ कर चलेंगे ही नहीं तो ठेस क्यों लगेगी। कोई काम करने में जल्दबाजी न करो।

न धान बोवो न बादल ताको : जब सिंचाई के साधन नहीं थे तब धान बोने वाले किसान बादल आने की बाट देखते रहते थे। कहावत में यह सीख दी गई है कि ऐसा कोई काम मत करो जिसमें दूसरों पर आश्रित रहना पड़े।

न नाम लेवा, न पानी देवा : किसी का पूरा खानदान नष्ट हो जाना। न तो कोई नाम लेने वाला बचा, न पितरों को तर्पण देने वाला।

न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी : राधा नाम की एक लड़की से नाचने के लिए कहा गया। उसने कहा नौ मन तेल के दिए जलाओ तो मैं नाचूँगी। यहाँ नौ मन तेल का अर्थ है कोई असंभव सी शर्त। किसी काम को करने के लिए कोई बहुत बड़ी और अव्यावहारिक शर्त रखे तो यह कहावत कही जाती है।

न बात बिरानी कहिए, न ऐंचातानी सहिए : बिरनी – पराई। दूसरे की बुराई करोगे तो परेशानी में पड़ोगे, इसलिए दूसरों के कजिए किस्से (परनिंदा परचर्चा) नहीं करने चाहिए।

न बासी बचे, न कुत्ता खाय : किसी काम को बहुत किफायत से करना जिसमें चीज़ खराब न जाए।

न बेटा न बेटी, बेट होए : स्वामी जी से किसी गर्भवती स्त्री ने पूछा कि उसके बेटा होगा या बेटी। स्वामी जी बोले बेट होए। कोई व्यक्ति किसी बात का गोल मोल जवाब दे तो यह कहावत कही जाती है।

न मिली तो त्यागी, मिल गई तो वैरागी : स्त्री नहीं मिली तो त्यागी बन गए, मिल गई तो वैरागी बन गए। (वैरागी वैष्णवों का एक सम्प्रदाय है जिसमें स्त्री रख सकते हैं)।

न मैं जलाऊं तेरी, न तू जलाए मेरी : न मैं तुम्हें बुरा भला कह कर गुस्सा दिलाऊं, न तुम मुझे।

न मैके में सुख, न ससुराल में : जिसे कहीं सुख न मिले। (घर की दाही वन गई, वन में लागी आग)।

न रहेगा बाँस न बजेगी बांसुरी : सभी जानते हैं कि बांसुरी बांस से बनती है (उसका नाम बांसुरी इसीलिए है)। अब अगर बांस नहीं होगा तो बांसुरी बन ही नहीं पाएगी। जिस वस्तु के द्वारा कोई काम होना हो उसे ही नष्ट कर देना।

न सुनोगे सीख, तो मांगोगे भीख : बड़ों की सीख नहीं सुनोगे तो जीवन में कुछ नहीं बन पाओगे, भीख मांगने की नौबत आ जाएगी।

न सूप दूसे जोग, न चलनी सराहे जोग : दूसे जोग – दोष देने योग्य, सराहे जोग – सराहने योग्य। दो चीजें या दो व्यक्ति एक से हों तो। सूप और चलनी में से कोई भी प्रशंसा या बुराई करने योग्य नहीं है।

नंग बड़े परमेश्वर से : यहाँ नंगे से अर्थ निर्लज्ज व्यक्ति से है। निर्लज्ज व्यक्ति से सबको डरना चाहिए (चाहे एक बार को आप परमात्मा से मत डरो)।

नंगई तेरहवां रत्न है : बेशर्म आदमी से सब डरते हैं इस आशय में यह कहावत कही जाती है।

नंगई तेरा ही सहारा : निर्लज्ज व्यक्ति का सब से बड़ा हथियार निर्लज्जता ही है।

नंगा क्या ओढ़े क्या बिछाए : सभ्य समाज के लोगों की कुछ न्यूनतम आवश्यकताएँ होती हैं, जैसे ओढ़ने और बिछाने के कपड़े। जिसके पास कुछ भी नहीं है वह बेशर्म हो जाता है।

नंगा क्या नहाए और क्या निचोड़े : जो नंगा है वह नहा कर क्या करेगा, और नहा भी लेगा तो उसे कौन से कपड़े निचोड़ने हैं। जिसके पास कुछ भी न हो उसका भद्दे तरीके से मज़ाक उड़ाने के लिए।

नंगा खड़ा बजार में, है कोई कपड़े ले : नंगा बीच बाज़ार में खड़ापूछ रहा है कोई कपड़े लेगा। जो कंजूस और निर्लज्ज आदमी अपने आप को बहुत दानी बताता हो उस का मजाक उड़ाने के लिए।

नंगा नाचे खोवे क्या : जो निर्लज्ज है वह कुछ भी बेहयाई कर सकता है, उसका कोई नुकसान तो होना नहीं है।

नंगा साठ रुपये कमाए, तीन पैसे खाए : बहुत कंजूस आदमी के लिए।

नंगी ने घाट रोका, नहावे न नहाने दे : कोई बेशर्म स्त्री नंगी हो कर घाट पर खड़ी हुई है, खुद भी नहीं नहा रही है और लज्जा के मारे दूसरे लोग भी नहीं नहा पा रहे हैं। कोई नीच व्यक्ति खुद भी कोई काम न करे और दूसरों को भी न करने दे तो।

नंगी हो के काता सूत, बूढ़ी होके जाया पूत : उचित समय पर कोई काम न करना। जब कपड़े बिलकुल फट गए तो कपड़ा बुनने के लिए सूत कातने बैठीं, और जवानी में न करके बुढापे में पुत्र पैदा किया।

नंगे का आग में क्या जले : जिसके पास कुछ नहीं है उसका किसी प्राकृतिक आपदा में क्या बिगड़ेगा।

नंगे का क्या चुरा लोगे (नंगे का कोई क्या लेगा) : जिसके पास कुछ भी नहीं है (कपड़े तक नहीं हैं) उस से क्या ले लोगे। भाव यह है कि जो निर्लज्ज व्यक्ति है उसकी क्या बेइज्जती कर लोगे (बल्कि उससे लड़ने में आपकी इज्ज़त ही दांव पर लग जाएगी)।

नंगे के नौ हिस्से : उद्दंड और निर्लज्ज व्यक्ति किसी चीज के बंटवारे में अधिक से अधिक हिस्सा चाहता है।

नंगे को लुटने का क्या डर : 1. जो व्यक्ति एकदम कंगाल हो उस से कोई क्या लूट लेगा। 2. जो व्यक्ति एकदम बेशर्म हो उस की कोई क्या बेइज्जती कर लेगा। इंग्लिश में कहते हैं – Beggars are never robbed.

नंगे को लोटा मिल्यो, बार बार हगन गयो : नंगे को लोटा मिल गया (जो उसके लिए बहुत बड़ी चीज़ है) तो वह दूसरों को लोटा दिखाने के लिए बार बार दिशा मैदान (खुले में शौच करने) जा रहा है। तुच्छ मानसिकता वाले व्यक्ति को छोटी सी चीज़ मिल जाए तो वह बहुत दिखावा करता है।

नंगे पाँव ही जाएंगे, राजा और कंगाल : अंतिम यात्रा सभी को नंगे पाँव ही करनी है।

नंगे बादशाह से भी न्यारे (नंगे लुच्चे सब से ऊँचे) : बेशर्म आदमी सब से ऊपर है।

नंगे सर न नौ लेना न नौ देना : पहले के जमाने में सम्भ्रान्त लोगों के लिए टोपी या पगड़ी पहनना आवश्यक माना जाता था।बिलकुल निम्न वर्ण के लोग या बहुत गरीब लोग ही नंगे सर रहते थे। कहावत में बताया गया है कि निम्न श्रेणी के या बहुत गरीब लोगों को सामाजिक जिम्मेदारियों की कोई चिंता नहीं सताती।

नंगे से तो गंगा भी हारी है :  1. निर्लज्ज व्यक्ति से सब हार मान लेते हैं। 2. महापापी लोगों के पाप गंगा मैया भी नहीं धो सकतीं।

नंगों की बस्ती में धोबी का क्या काम : जहाँ कोई कपड़े ही नहीं पहनता, वहाँ धोबी क्या करेगा। नंगों से अर्थ बेशर्मों और धोबी से अर्थ सुधारक से भी है।

नैहर रहा न जाय, सासरा सहा न जाय : मायके में रहना अच्छा नहीं समझा जाता, इसलिए मायके में रह नहीं सकती, और ससुराल में रहना सहन नहीं होता। नैहर –  मायका, पीहर, सासरा – ससुराल।

नई कहानी, गुड़ से मीठी : पुराने समय में जब मनोरंजन के और कोई साधन नहीं थे तो किस्से कहानियों से ही मन बहलाया जाता था। बड़े लोग एक ही कहानी को बार बार सुनाते थे और बच्चे शौक से सुनते थे। उस समय नई कहानी का बहुत अधिक महत्व हुआ करता था।

नई घोड़ी चाल दिखाएगी : बच्चों की कहावत। कुछ बच्चे चोर सिपाही खेल रहे हों तो जो नया बच्चा खेल में शामिल होने आएगा उसे चोर बनना पड़ेगा।

नई दुलहन, कान में नथनी : कोई नौसिखिया आदमी किसी काम को गलत ढंग से कर रहा हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए।

नई धोबनिया लुगरी में साबुन : लुगरी – फटी पुरानी धोती। पुराने जमाने में साबुन महंगा होता था और केवल कीमती कपड़ों को धोने में प्रयोग होता था। कोई अनुभव हीन व्यक्ति घटिया काम में अधिक खर्च करे तो यह कहावत कही जाएगी।

नई नई दुल्हन की नई नई चाल : जब किसी समूह में नया आने वाला व्यक्ति कुछ नई निराली रीत चलाने की कोशिश करे तो।

नई नवेली के नौ फेरे :  अल्हड़ व नौसिखिए लोगों का मजाक उड़ाने के लिए।

नई बहू का दुलार नौ दिन : किसी भी नए काम का उत्साह थोड़े दिन ही रहता है। फिर सब उस के अभ्यस्त हो जाते हैं और उस में कमियाँ भी दिखने लगती हैं।

नई बहू के नए चाव : किसी भी नए काम को करने में लोगों में अधिक उत्साह होता है। जब घर में नयी बहू आती है तब घर के लोग तरह तरह से उसका लाड़ करते हैं।

नई बहू नौ दिन की : नयी बहू के नए चाव जल्दी ही खत्म भी हो जाते हैं। नए काम में उत्साह केवल कुछ ही दिन रहता है।

नउआ के घर चोरी भइल, तीन बोरा बाल गइल : (भोजपुरी कहावत) नाई के घर चोरी हुई तो तीन बोरा बाल चोरी गए। जिस के पास कोई कीमती चीज़ नहीं है उसके पास से क्या चुरा लोगे।

नए चिकनियाँ, अंडी का फुलेल : कहावत उन के लिए है जिन्हें नया नया फैशन का शौक चढ़ा हो लेकिन शऊर न हो। ऐसे कोई साहब अंडी के तेल को इत्र समझ कर लगा रहे हैं।

नए नए कानून, नए नए तोड़ : सरकारें नए नए कानून बनाती हैं पर होशियार लोग उससे पहले ही उन के तोड़ ढूँढ़ लेते हैं। इंग्लिश में कहावत है – Laws catch flies, but let hornets free। (hornet – ततैय्या)

नए नए हाकिम, नई नई बातें : नए हाकिम अपनी ऐंठ में नए कायदे लागू करने की कोशिश करते हैं (और बरसों से वहाँ जमे लोग उनका मजाक उड़ाते हैं।

नए सिपाही, मूंछ में ढांटा : ढाटा – चेहरे पर बाँधने वाला कपड़ा। नया नया अधिकार मिलने पर व्यक्ति बौरा जाता है।

नकटा जीवे बुरे हवाल : दुर्भाग्य वश नकटे व्यक्ति को समाज में अशुभ माना जाता है। इसलिए बेचारा नकटा आदमी बुरी स्थिति में जीता है।

नकटा बूचा सबसे ऊँचा : बूचा माने कान कटा कुत्ता (जो काफी मनहूस माना जाता है)। और अगर वह नकटा भी हो तो क्या कहने। कुल मिला कर यहाँ नकटा बूचा का अर्थ महा निर्लज्ज और मनहूस आदमी से है। इस प्रकार के आदमी से सब डरते हैं। (नंग बड़े परमेश्वर से)

नकटा ससुर निर्लज्ज बहू, आ रे ससुर कहानी कहूँ : रिश्तों की मर्यादा न जानने वाले निर्लज्ज लोगों का मजाक उड़ाने के लिए। ससुर और बहू दोनों बेशर्म हैं इसलिए साथ बैठ कर हंसी ठट्ठा कर रहे हैं।

नकटी नथ का क्या करे (नकटी को भी नथ की चाह) : जिसकी नाक ही नहीं है वह नथ का क्या करेगी।

नकटे का खाइए, उकेटे का न खाइए : उकेटा – दे कर एहसान जताने वाला आदमी। यहाँ नकटे का अर्थ है जिसकी कोई इज्जत न हो। किसी भी दीन हीन व्यक्ति का एहसान ले लो पर जो दे कर एहसान जताए उस का एहसान मत लो।

नकटे की नाक कटी, सवा गज और बढ़ी : जिसकी कोई इज्जत न हो उस की क्या बेइज्जती कर लोगे।

नकटे को आइना मत दिखाओ : 1. नकटे को आइना दिखाने का अर्थ है उसके नकटेपन को लेकर उसे चिढ़ाना। किसी व्यक्ति में कोई कमी हो तो उस को ले कर उसे अपमानित नहीं करना चाहिए। 2. निर्लज्ज आदमी से कभी यह नहीं कहना चाहिए कि उस की कोई इज्ज़त नहीं है।

नकद को छोड़ नफे को न दौड़िए : जो लाभ नकद मिल रहा हो वह अधिक अच्छा है। उस को छोड़ कर अधिक लाभ के पीछे भागने में खतरा अधिक है। (नौ नकद न तेरह उधार)

नकल को भी अकल चाहिए : किसी की नकल करने के लिए भी इतनी बुद्धि तो होना ही चाहिए कि नकल करने में हमारा भला बुरा क्या होगा यह समझ सके। इंग्लिश में कहावत है – Imitation needs intelligence.

नकल में भी असल की कुछ न कुछ बू आ ही जाती है : नकल कर के बनी हुई चीज़ में भी कुछ कुछ असली चीज़ का असर आ जाता है।

नकलची बन्दर : बंदर की आदत होती है कि वह इंसान की नकल करता है। इंसानों में कोई किसी की नकल करता हो तो उसे नकलची बन्दर कह कर चिढ़ाते हैं। विशेष कर बच्चों की कहावत। इस विषय में एक कहानी सुनाई जाती है। एक टोपी बेचने वाला गाँव से शहर जा रहा था। रास्ते में थक कर एक पेड़ के नीचे सो गया। पेड़ पर बहुत सारे बन्दर रहते थे, वे उसकी टोपियाँ उठा उठा कर ले गए। जागने पर उसने यह दृश्य देखा तो उसकी बुद्धि चकरा गई। फिर उसे एक तरकीब सूझी। उसने एक टोपी अपने सर पर लगा ली। बंदरों ने भी सर पर टोपी लगा ली। अब उसने सर से टोपी उतार कर जमीन पर पटक दी, तो बंदरों ने भी अपने अपने सर से टोपियाँ उतार कर नीचे फेंक दीं।

नक्कार खाने में तूती की आवाज : नक्कारखाना – जहाँ बहुत से नगाड़े रखे जाते हों या बजाए जाते हों, तूती – शहनाई की तरह का एक बाजा। जहाँ बड़े बड़े नगाड़े बज रहे हों वहाँ तूती की आवाज क्या सुनाई देगी। कहावत का अर्थ है कि बड़े बड़े लोगों के बीच किसी महत्व हीन आदमी की आवाज कोई नहीं सुनता।

नखरे दिखावे मुर्गी (लाड़ में आवे कुकड़ी), बल बल जावे कौवा : कुछ फूहड़ लडकियाँ जो अपने को अधिक सुंदर समझती हैं, नखरे दिखाती हैं और छिछोरे लड़के उन नखरों पर बलिहारी जाते हैं, इस प्रकार के जोड़ों का मजाक उड़ाने के लिए।

नट विद्या पाई जाय, जट विद्या न पाई जाय : अभ्यास करने से कोई नटों के समान कलाबाजी खाने जैसा कठिन काम सीख सकता है, परन्तु जाटों की विद्या नहीं सीख सकता।

नटनी जब बाँस पर चढी तो घूंघट क्या : नटनी बांस पर चढ़ कर करतब दिखाती है तो उस का सारा शरीर ही दिखाई देता है। अब ऐसे में अगर वह घूँघट करे तो क्या फायदा। कोई व्यक्ति सामजिक प्रतिष्ठा के प्रतिकूल कोई छोटा काम कर रहा हो और लोगों से छिपाने की कोशिश कर रहा हो तो।

नटे सो नाक कटाय : नटना – अपनी बात से मुकर जाना, नाक कटाना – बेइज्जती कराना। जो अपनी बात से मुकर जाए उसका कोई सम्मान नहीं करता।

नदी किनारे घर किया, क़र्ज़ काढ़ कर खाएं, जब कोई आवे मांगने, गड़प नदी में जाएं : उधार ले कर छिप के घूमने वाले के लिए।

नदी किनारे रूखडा, जब तब होय बिनास : रूखड़ा – रूख, पेड़। वृक्ष का अपभ्रंश, (वृक्ष – वृक्ख – रुक्ख)। नदी के किनारे उगे पेड़ को हर समय इस बात का खतरा होता है कि मिट्टी कटने से वह नदी में गिर सकता है। सदैव खतरे के साये में पलने वाले ले लिए।

नदी नाव संयोग। थोड़े समय का मेल : इस संसार में हमारे जो नाते हैं वे भी नदी नाव संयोग की भांति क्षणिक हैं।

नदी में जाना और प्यासे आना : जहाँ जा कर आप का काम हो जाना चाहिए था अगर वहाँ से आप खाली हाथ लौट आते हैं तो यह कहावत कही जाएगी।

नदीदी का खसम आया, भरी दोपहरी दिया जलाया : नदीदी – छोटी सोच वाली स्त्री। अपनी ख़ुशी दिखने को ऊटपटांग हरकतें करने वाले के लिए।

नदीदी ने कटोरा पाया, पानी पी पी पेट फुलाया (नदीदी को लोटा मिला, रातों उठ कर पानी पिया) :  यदि किसी ओछी मानसिकता वाले व्यक्ति को कोई साधारण चीज भी मिल जाए तो वह बहुत इतराता है।

ननद का नन्दोई, गले लाग रोई : जिस से बहुत दूर का संबंध हो उस से बहुत आत्मीयता और सहानुभूति दिखाना।

ननद भाभी में आग-पानी का बैर : ननद भाभी एक दूसरे को फूटी आँखों देखना पसंद नहीं करतीं।

नन्ही सी नाक, नौ सेर की नथनी : ऐसा भारी भरकम श्रृंगार जिसका कोई औचित्य न हो।

नन्हीं सी जान और इतने अरमान : किसी छोटे आदमी या कम आयु के व्यक्ति की बहुत बड़ी बड़ी महत्वाकांक्षाएं होना।

नफा घाटा भाई भाई : व्यापार में लाभ भी होता है और हानि भी। इन दोनों को ही स्वीकार करना चाहिए।

नमक गिराओगे तो आँखों से उठाना पड़ेगा : यह एक लोक विश्वास है। लोक विश्वासों के पीछे अक्सर कोई कारण भी होता है। एक समय में समुद्र के पानी से नमक नहीं बनाया जाता था बल्कि पहाड़ से बड़ी मुश्किल से सेंधा नमक लाया जाता था। उस समय साधन सम्पन्न लोग नमक को बर्बाद न करें इसलिए उनके मन में इस प्रकार का डर बैठाया गया होगा।

नमक फूट फूट कर निकले : विश्वास घात करने वाले की अंत में दुर्दशा होती है।

नमक हरामी नर से तो कूकर ही भलो : नमक हराम माने कृतघ्न और धोखेबाज, इस प्रकार के आदमी से तो कुत्ता अधिक अच्छा है।

नमनि नीच की अति दुखदाई : नीच व्यक्ति यदि झुके (नम्रता दिखाए) तो समझ लो कि धोखा देने वाला है।

नमे सो भारी होए : जैसे जैसे व्यक्ति की विनम्रता बढ़ती है वैसे वैसे वह और गंभीर और वज़नदार हो जाता है। नमे से अर्थ नमन करने अर्थात झुकने से भी है और नम होने अर्थात भीगने से भी।

नया नया राज, ढब ढब बाज : नया राजा आता है तो तरह तरह के फरमान जारी करता है। ढब ढब बजने का अर्थ है ढिंढोरा पीट कर राजाज्ञा का ऐलान करना।

नया नवाब, आसमान पर दिमाग : नए हाकिम अपने को तुर्रम खां समझते हैं।

नया नौ दिन, पुराना सौ दिन : जब हम किसी से नया नया सम्बंध बनाते हैं तो हमें वह व्यक्ति बहुत अच्छा लगता है और उस के सामने हम पुरानों की उपेक्षा करने लगते हैं, लेकिन कुछ दिन बाद हमें उसमें कमियाँ नज़र आने लगती हैं और पुराना अच्छा लगने लगता है। इसी कारण सयाने लोग यह सीख देते हैं कि नए के कारण पुराने की उपेक्षा मत करो। इंग्लिश में कहावत है – old is gold.

नया नौकर तीरंदाज़ : नया नौकर अपने को ज्यादा होशियार सिद्ध करने की कोशिश करता है।

नया बैल खूंटा तोड़ता है : नए बैल को बंधने की आदत नहीं होती इसलिए बन्धनमुक्त होने का प्रयास करता है। धीरे धीरे उसे समझ में आ जाता है कि अब यही उस की नियति है।

नया मुल्ला ज्यादा जोर से बांग देता है : किसी को कोई नया काम मिलता है तो वह अधिक जोर शोर और दिखावे के साथ उस काम को करता है।

नया मुल्ला प्याज ज्यादा खाता है : कहावत उस समय की जब हिन्दुओं (विशेषकर ब्राह्मण व बनियों में) प्याज खाने को बहुत बुरा माना जाता था और प्याज को मुसलमानों के खाने की चीज़ मानते थे। आज अधिकतर लोग प्याज खाने लगे हैं लेकिन पूजा और व्रत के दिन अब भी बहुत से लोग प्याज नहीं खाते। कहावत में कहा गया है कि जो नया नया मुसलमान बना है वह ज्यादा प्याज खाता है अर्थात कोई व्यक्ति जो भी नया काम शुरू करता है उसका दिखावा अधिक करता है।

नया साधू, कमंडल में पादे : नए आदमी के हर काम में अनाड़ी पन एवं अव्यवस्था होती है यह कहने का असभ्य तरीका। कहावतों में अक्सर इस प्रकार की असभ्य भाषा देखने को मिलती है.

नया हकीम, देवे अफीम : नया हकीम बीमारी के बारे में कम जानता है इसलिए मरीज को नशे की दवा देता है।

नयी घोसन, उपलों का तकिया : घोसन – दूध का काम करने वाले घोसी की पत्नी। दूध का नया काम शुरू करने वाली स्त्री अपने काम को महत्वपूर्ण सिद्ध करने के लिए गोबर के कंडों का तकिया लगाती है।

नर बिन तिरिया, ज्यों अन्न बिन देह, खेती बिन मेह : मेह – वर्षा। पुरुष बिना स्त्री उसी प्रकार असहाय है जैसे अन्न के बिना मानव शरीर और वर्षा के बिना खेती।

नरको में ठेलाठेली : (भोजपुरी कहावत) नरक में भी जीवन आसान नहीं है, वहाँ भी बड़ा कम्पटीशन है।

नर्मदा के कंकर, सब ही शिव शंकर : मध्यप्रदेश में नर्मदा नदी को अत्यधिक पवित्र मानते हैं। (वहाँ बहुत से लोग आपसी अभिवादन में नर्मदे नर्मदे बोलते हैं)। इसके उलट दूसरी कहावत है – नर्मदा के सब पत्थर शंकर नहीं होते।

नशा उसने पिया, खुमार तुम्हें चढ़ा : जब किसी बड़े अधिकारी या नेता का भाई भतीजा ज्यादा अकड़ दिखाए  तो।

नशेड़ी को नशेड़ी मिल ही जाता है। (शक्करखोरे को शक्करखोरा मिल ही जाता है) : ऐबी आदमी, लोगों की भीड़ में भी अपने जैसा ऐबी ढूँढ़ लेता है।

नसकट पनही, बतकट जोय, जो पहलौठी बिटिया होए; तातरि कृषि, बौरहा भाई, घाघ कहें दुःख कहाँ समाय : घाघ ने पाँच दुःख महा दुःख बताए हैं – 1. जूता (पनही) छोटा हो जो पैर की नस को काटता हो, 2. स्त्री (जोय, जोरू) जो पति की हर बात काटती हो, 3। पहली सन्तान यदि बेटी हो (अब इन बातों का महत्व कम हो गया है लेकिन पहले पुत्र होना अत्यधिक आवश्यक मानते थे), 4। खेती के लिए बहुत थोड़ी (तातरि) जमीन और 5। बौरहा भाई। बौरहा का अर्थ पागल भी होता है और गूंगा बहरा भी।

नहर का मुर्दा और शहर का फ़क़ीर, इनका क्या ठिकाना : नहर में यदि कोई लाश पड़ी हो तो कुछ नहीं कह सकते कि वह बह कर कहाँ से कहाँ पहुँच जाए और फ़क़ीर भी शहर में आज एक जगह है तो कल कुछ पता नहीं कहाँ मिले।

नहरनी तेज होगी तो क्या पेड़ काटेगी : नहरनी – नाखून काटने का औजार। नहरनी की धार कितनी भी तेज हो, उस से पेड़ नहीं कट सकता। हर काम के लिए अलग साधन चाहिए होता है।

नहाए के बाल और खाए के गाल अलग नजर आ जाते हैं : जो व्यक्ति नहाया हुआ हो उसके बाल देख कर ही फौरन समझ में आ जाता है। इसी प्रकार जो ठीक से खाता पीता हो उसके गाल देख कर ही समझ में आ जाता है।

नहाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाए, मीन सदा जल में रहे,  धोये बास न जाए : कबीर दास जी कहते हैं कि कितना भी नहा धो लो,  अगर मन साफ़ नहीं हुआ तो ऐसे नहाने का क्या फायदा। मछली हमेशा पानी में रहती है लेकिन फिर भी उस में से बदबू आती है।

नहीं मामा से काना मामा अच्छा : किसी का मामा काना हो यह थोड़ी परेशानी की बात है लेकिन मामा हो ही न इससे तो अच्छा है। कोई चीज़ बिलकुल न हो इसके मुकाबले थोड़ी सी त्रुटि वाली हो वह बेहतर है।

नहीं मिली नारी तो सदा ब्रह्मचारी : नारी न मिलने पर मजबूरी में ब्रह्मचारी बनने वालों पर व्यंग्य।

ना अच्छा गीत गाऊँगा ना दरबार पकड़कर जाऊँगा : काम से बचने के लिए जानबूझकर हमेशा गलत काम ही करना।

नाई देख कांख में बाल : नाई को देख कर बगल के बाल याद आ गए। (बहुत से लोग बगल के बाल नाई से साफ़ करवाते हैं)। मौका देख कर अपना काम करा लेना। भोजपुरी में इस प्रकार की एक कहावत है – नउआ के देखि के हजामत बड़ी जाला। कांख – बगल।

ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर : जो लोग समाज में किसी एक विचारधारा से न जुड़ कर तटस्थ रहते हैं। यह कबीर के दोहे की दूसरी पंक्ति है। पहली है – कबिरा खड़ा बजार में, मांगे सब की खैर।

ना गाऊँ, गाऊं तो बिरहा गाऊँ : गाने में नखरा कर रहे हैं, और गाएंगे तो बिरहा ही गाएँगे। या तो काम करेंगे नहीं और करेंगे तो अपने मन से ही करेंगे। बिरहा – विशेष प्रकार के लोकगीत (विरह के)

ना बारे की माँ मरे, ना बूढ़े की जोय : बालक की माँ न मरे औए बूढ़े की स्त्री न मरे। बच्चा अपनी माँ के बिना और बूढ़ा व्यक्ति अपनी पत्नी के बिना बेसहारा हो जाता है।

ना बोले में नौ गुण : चुप रहने के बहुत लाभ हैं। इससे किसी से लड़ाई नहीं होती और व्यक्ति यदि मूर्ख है तो उस की मूर्खता जाहिर नहीं होती।

नाइन सबके गोड़े धोए, अपने धोने में लजावे। (सबके पाँव नइनियाँ धोए, धोवत आप लजाए) : हम दूसरों के यहाँ जो काम करते हैं वही काम अपने यहाँ करने में शर्म महसूस करते हैं।

नाई किसका काम सुधारे : हिंदू रीति-रिवाजों में चाहे विवाह हो या अंतिम संस्कार, पंडित के साथ नाई का भी विशेष महत्व होता है। बहुत से काम नाई को ही करने होते हैं। नाई को बहुत चालाक धूर्त माना गया है। इस कहावत में भी यही दर्शाया गया है।

नाई की दूकान में बारै बार : नाई की दुकान में बाल ही बाल मिलेंगे। बजाज की दूकान में कपड़ा और सुनार की दुकान में सोना चांदी जैसी कीमती चीजें मिलेंगी, और बेचारे नाई की दूकान में केवल बाल।

नाई की परख नाखूनों में : पहले जमाने में जब नेल कटर का आविष्कार नहीं हुआ था तो नाई एलपीजी नहन्ने से नाखून काटते थे। जरा सी असावधानी होने पर उंगली कटने का डर होता था, इसलिए नाई की योग्यता की परीक्षा नाखून काटने में ही होती थी।

नाई की बरात में सब ही ठाकुर : सब की बारात में नाई प्रमुख सेवक के रूप में होता है और कुछ लोग विशेष माननीय (ठाकुर) होते हैं। नाई की बरात में सभी माननीय हैं।

नाई के नौ बुद्धि, ठाकुर के एक ही : नाई बहुत चतुर (और धूर्त) होता है और ठाकुर मंदबुद्धि (व लट्ठमार)।

नाई देख दाढ़ी बढ़ी : जहाँ कोई सुविधा उपलब्ध हो वहाँ उसका लाभ उठाना।

नाई नाई की बारात, टिपारा कौन धरे : टिपारा – मुकुट। औरों की बारात में तो नाई दूल्हे को मुकुट पहनाता है, नाई की बारात में मुकुट कौन पहनाएगा। हरयाणवी कहावत – नाइयों की बारात मां सारे ठाकर, हुक्का कौन भरै।

नाई नाई, बाल कितने ? जजमान, अभी सामने आ जाएँगे : जो काम अभी तुरंत होने वाला है उसमें पहले से अनुमान क्या लगाना। एग्जिट पोल देख कर लोग बहस करते हैं तो उन से यही कहना चाहिए कि नतीजे दो दिन में आने वाले हैं अभी बहस क्यों कर रहे हो।

नाई पुराना घोबी नया : नाई पुराना और अनुभवी अच्छा होता है जबकि धोबी नया अच्छा होता है क्योंकि उस के हाथों में ताकत और काम का उत्साह अधिक होता है।

नाई, दाई, बैद, कसाई, इनका सूतक कभी न जाई : पुरानी मान्यता के अनुसार घर में बच्चे का जन्म होने पर दस दिन तक सूतक काल होता है जिस में कोई धार्मिक कार्य नहीं करना होता है, इसी प्रकार घर में किसी की मृत्यु होने पर तेरह दिन का सूतक काल होता है। कहावत में कहा गया है कि नाई, बच्चे का जन्म कराने वाली दाई, वैद्य (डॉक्टर) और कसाई ये सूतक के बंधन से मुक्त हैं।

नाक कटी पर घी तो चाटा : एक जमाने में किसी को घी चाटने को मिले तो यह बहुत बड़ी नियामत थी। किसी की नाक दुर्घटनावश कट गई तो उसे घी चाटने को दिया गया। अब वह अगर इस बात से खुश हो तो यह कहावत कही जाएगी। अपमान हो कर कुछ इनाम मिले उस पर भी खुश होने वाले के लिए।

नाक कटी पर हठ न हटी : कुछ लोग कितना भी अपमान झेलना पड़े अपना हठ नहीं छोड़ते।

नाक कटी बला से, दुश्मन की बदसगुनी तो हुई : अपना नुकसान हुआ फिर भी खुश हैं क्योंकि दुश्मन का भी नुकसान हो गया।

नाक कटे मुबारक, कान कटे सलामत : निर्लज्ज आदमी के लिए, जिसका कितना भी अपमान हो, उसे कोई फर्क नहीं पड़ता।

नाक की नकटी, गले में नजरबट्टू : कोई बहुत सुंदर दिखता हो तो उसको नजर से बचाने के लिए काला टीका लगाते हैं या गले में कोई ताबीज़ इत्यादि पहना देते हैं। इसे नजरबट्टू कहते हैं। कहावत में उन स्त्रियों का मजाक उड़ाया गया है जो कुरूप होते हुए भी अपने आप को सुंदर समझती हैं।

नाक दबाने से ही मुहँ खुलता है : हिस्टीरिया नाम की बीमारी से ग्रस्त लोग कई बार आँखे बंद कर के और दांत भींच कर बेहोश होने का नाटक करते हैं (विशषकर महिलाएँ अपनी बात मनवाने के लिए)। वे वाकई में बेहोश हैं या नहीं यह देखने के लिए उन की नाक को कुछ देर के लिए दबा दिया जाता है। साँस बंद होने पर वे घबरा कर मुँह खोल देते हैं। कहावत का अर्थ है कि दुष्ट लोगों को समझाने के लिए सख्ती करनी पड़ती है।

नाक पर मक्खी न बैठन दे : ऐसा व्यक्ति जो थोड़ा सा भी अपमान बर्दाश्त न करे।

नाक हो तो नथिया सोहे : सभी स्त्रियाँ अच्छे गहने पहनना चाहती हैं पर चेहरा भी तो इस लायक होना चाहिए।

नाग मरा तब गोह गद्दी पर बैठी : किसी शक्तिशाली दुष्ट शासक के मरने के बाद पर उतना ही दुष्ट दूसरा शासक गद्दी पर बैठ जाए तो।

नागों के ब्याह में गोहरे बराती : दुष्टों के आयोजन में दुष्ट ही शामिल होते हैं।

नाच न आवे आँगन टेढ़ा : एक महिला को नाचने के लिए कहा गया। वह नाच नहीं पाई तो कहने लगी कि यह आँगन टेढ़ा है इसलिए वह नृत्य नहीं कर पा रही है। जो लोग कोई काम न कर पाने पर संसाधनों में कमी निकालते हैं उनके लिए यह कहावत कही जाती है। इंग्लिश में कहावत है – A bad worksman always blames his tools.

नाच बंदरिया नाच, पैसा दूँगा पांच : छोटा सा लालच दे कर काम कराना।

नाचने निकली तो घूँघट क्या : जब कोई ओछा काम कर रहे हो तो शर्म क्या करना।

नाचने वाली तो बस घुंघरू ही मांगे : आदमी को जिस चीज का शौक हो उसी से सम्बंधित वस्तुएँ मांगता है।

नाचे कूदे वानरा, माल मदारी खाय। (खेल खिलाड़ी का, पैसा मदारी का) : मेहनत कश लोग मेहनत करते हैं और बड़े लोग उसका फ़ायदा उठाते है।

नाज बौहरौ ले गयौ, भुस ले गयी बयार : बोहरा – उधार देने वाला बनिया। खेती करने वाले किसान को कुछ हाथ नहीं आता। फसल कटने पर अनाज तो सूदखोर ले जाता है और भूसा हवा में उड़ जाता है।

नाजो नाज बिना रह जाए, काजल टीके बिना नहीं रहती : ज्यादा श्रृंगार और नखरे करने वाली स्त्रियों पर व्यंग्य। नाज से अर्थ अनाज से भी हो सकता है और नखरे से भी।

नाटा सबसे टांटा : टांटा – झगड़ा (टंटा) करने वाला।बौने आदमी को झगड़ालू बताया गया है।

नाटे खोटे बेच के चार धुरंधर लेहु, आपन काम बनाय के औरन मंगनी देहु : छोटे कद के कामचोर बहुत सारे बैलों को बेच कर चार तगड़े बैल लो। अपना काम भी पूरा करो और जरूरत पर औरों को भी दो। (घाघ कवि)

नाड़ी की कुछ समझ नहीं है, दवा सभों की करते हैं, वैदों का क्या जाता है, बीमार बिचारे मरते हैं : नीम हकीम और झोला छाप डाक्टरों के विषय में कहा गया है।

नात का न गोत का, बांटा मांगे पोथ का : न नाते में कुछ हैं न गोत्र में, पर जायदाद में हिस्सा मांग रहे हैं।

नाता न गोता, खड़ा हो के रोता : न कोई रिश्ता है और न ही उस गोत्र के हैं पर किसी के दुःख में बहुत अधिक दुखी हो रहे हैं। गोता शब्द गोत्र का अपभ्रंश है।

नाता न गोता, नेवत ताबड़तोड़ : आजकल विवाह आदि समारोहों में अंधाधुंध निमंत्रण बांटे जाते हैं उस पर व्यंग्य। नेवत – न्यौता, निमंत्रण।

नातिन तो कुआँरी फिरे, नानी के नौ नौ फेरे : जहाँ घर के छोटे सदस्यों की मूलभूत आवश्यकताओं पर ध्यान न दे कर बड़े लोग अपने शौक पूरे करने में लगे हों।

नातिन सिखावे दादी को, बारह ड्योढ़े आठ : अपने को बहुत होशियार समझ कर बड़ों को सिखाने की कोशिश कर रहे हैं और वह भी गलत पढ़ा रहे हैं। (बारह ड्योढ़े आठ बता रहे हैं जबकि आठ ड्योढ़े बारह होता है)। अपने को बुद्धिमान समझने वाले मूर्ख लोगों के लिए।

नाती तो नाती बाबा खड़ा मूते : पहले के लोग खड़े हो कर पेशाब करने को बहुत असभ्यता मानते थे। कहावत ऐसे स्थान पर कही जाती है जहाँ बच्चे और बड़े सभी असभ्य व्यवहार करते हों।

नाती स‌िखावैं नानी को चलोगी नानी गौने : कायदे में नानी धेवती को ससुराल जाने के लिए समझाती हैं। यहाँ धेवता या धेवती नानी को सीख दे रहे हैं कि ससुराल जाओगी कि नहीं। कोई छोटा और कम अक्ल आदमी अपने से बड़े और समझदार व्यक्ति को अक्ल सिखा रहा हो तो।
 

नादां की दोस्ती, जी का जंजाल : मूर्ख से दोस्ती करने में बड़ी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है।

नानक दुखिया सब संसार : कोई अपने दुखों का रोना रो रहा हो तो उसको समझाने के लिए यह कहावत कही जाती है कि संसार में सभी प्राणियों को कोई न कोई दुख है।

नानक नन्हा हो रहो जैसे नन्ही दूब, बड़े पेड़ गिर जाइहैं दूब खूब की खूब : गुरु नानक देव कहते हैं कि व्यक्ति को विनम्र और छोटा बन कर रहना चाहिए। जब आंधी आती है तब बड़े पेड़ गिर जाते हैं लेकिन दूब पर कोई असर नहीं होता। इंग्लिश में कहावत है – Oaks may fall, when reeds stand the storm.

नाना की दौलत पर, नवासा ऐंड़ा फिरे। (नाना के धन पर धेवता ऐंठे) : जो खुद तो किसी काबिल न हो पर अपने पूर्वजों की कमाई हुई दौलत पर घमंड करे।

नानी के आगे ननसाल की बातें : नानी को जा कर बता रहे हैं कि ननसाल में क्या क्या होता है। अल्पज्ञानी होते हुए भी किसी जानकार व्यक्ति के सामने अपना ज्ञान बघारना।

नानी के टुकड़े खावे, दादी का पोता कहावे : लाभ किसी और से पाते हैं, गुण किसी और के गाते हैं।

नानी का धन, बेइमानी का धन और जजमानी का धन नाहीं पचे : ननिहाल से मिले धन, बेइमानी से कमाए धन और यजमानी में मिले धन से कोई तरक्की नहीं कर सकता।

नानी के बिना ननिहाल कैसा : ननिहाल का आनंद तो नानी के होने पर ही आता है। नानी ही सबसे अधिक स्नेह करती है।

नानी क्वारी मर गयी, नवासे के नौ नौ ब्याह : खानदान में किसी ने कुछ देखा नहीं, पर खुद चले हैं तीसमारखां बनने।

नानी खसम करे, धेवती दंड भरे (नानी फंड करै, धेवता डंड भरै) :  खसम करे अर्थात शादी कर ले। खानदान के बड़े लोग कोई गलती करें और बच्चे उसका नुकसान उठाएँ तो।

नानी मरी, नाता टूटा : ननसाल विशेष रूप से नानी से ही होती है। नानी के न रहने पर ननसाल का आकर्षण ख़त्म हो जाता है।

नाप न तोल, भर दे झोल : ईश्वर जो देता है उसकी नाप तोल नहीं करता, भरपूर देता है।

नापे सौ गज, फाड़े नौ गज : जो बातें बहुत करता है और काम कम करता है।

नाम कपूरचंद, गोबर की गंध : नाम के विपरीत गुण।

नाम काल नहीं खाय : हर मनुष्य को अंततः काल के गाल में समाना है। लेकिन यह भी सच है कि काल कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो किसी के नाम को नहीं खा सकता।

नाम के पेड़ काटे न कटें : धन दौलत समाप्त हो जाता है पर ख्याति जल्दी समाप्त नहीं होती।

नाम क्या शकरपारा, रोटी कितनी खाई दस बारा, पानी कितना पिया मटका सारा, काम कितना करोगे, मैं तो लड़का बेचारा : छोटे और पेटू लोगों के लिए जो खाते बहुत हैं पर काम कुछ नहीं करना चाहते।

नाम गंगादास कमण्डल में जल ही नहीं : गुण के विपरीत नाम।

नाम गंगाधर, नहाए ना सारी उमर : गुण के विपरीत नाम।

नाम बड़ा ऊँचा, कान दोनों बूचा : नाम बहुत ऊंचा है और कान कटे हुए हैं (हैसियत कुछ नहीं है)।

नाम बड़े और दर्शन छोटे। (नाम मोटा, दरशन खोटा) : नाम अधिक हो पर वास्तव में कुछ भी न हों तो।

नाम बढ़ावे दाम : जिसका अधिक नाम हो जाता है उसकी कीमत बढ़ जाती है। आजकल भी बड़ी बड़ी ब्रांड अपने नाम का खूब फायदा उठाती हैं।

नाम मोटा, घर में टोटा। गुण के विपरीत नाम।

नाम राखें, गीत या भीत : मरने के बाद या तो गीतों से नाम अमर रहता है या भवन निर्माण से।

नाम लखन देइ मुँह कुतिया सा : नाम के विपरीत गुण।

नाम शेरसिंह, चूहे से डरें : नाम के विपरीत गुण।

नाम से काम नहीं, काम से नाम है : किसी का बड़ी ख्याति हो उससे कोई काम नहीं होता, काम करने से ख्याति होती है।

नामरदी तो खुदा की देन है, मार मार तो कर : किसी कायर पुरुष को उलाहना दी जा रही है कि खुदा ने तुझे नामर्द (कायर) बनाया है, तू आगे बढ़ कर मार नहीं सकता तो मार मार चिल्ला तो सकता है।

नामी चोर मारा जाए, नामी शाह कमा खाए (नामी बनिया बैठा खाय, नामी चोर बांधा जाय) : जो चोर अधिक प्रसिद्ध हो जाता है वह अंततः मारा जाता है (क्योंकि वह प्रशासन की निगाह में आ जाता है), जबकि जो बनिया या हाकिम अधिक नामी होता है वह अपने नाम के बल पर खूब कमाता है।

नामी बनिया का नाम बिकता है : जिस व्यापारी का नाम हो जाता है उस के नाम से माल बिकता है। आजकल के लोग तो खास तौर पर ब्रांड के पीछे पागल रहते हैं।

नामी मरे नाम को, पेटू मरे पेट को : प्रसिद्ध आदमी अपनी प्रसिद्धि को और बढाने के लिए मरता है और पेटू आदमी खाने के लिए मरा जाता है।

नार सुलक्खनी कुटुम छकावे, आप तले की खुरचन खावे : सुलक्षणा नारी पहले सारे कुटुंब को खिला देती है उसके बाद जो बचता है उसे खा कर संतोष कर लेती है।

नारी अति बल होत है, अपने कुल की नाश : जिस कुल में नारी को अत्यधिक अधिकार दे दिए जाएं उस कुल का नाश हो जाता है।

नारी के बस भए गुसाईं, नाचत हैं मर्कट की नाईं : गुसाईं – साधु सन्यासी (गोस्वामी का अपभ्रंश है), मर्कट – बंदर। नकली साधु का मज़ाक उड़ाने के लिए (जो स्त्री के वश में हो कर बंदर की तरह नाच रहे हैं)।

नारी तो हैं सीपियां इनका मोल न तोल, न जाने किस कोख में छिपा रत्न अनमोल : नारी का सम्मान करने के जो बहुत से कारण गिनाए गए हैं उनमे से एक यह भी है कि नारियाँ ही उत्तम श्रेणी के पुरुषों को जन्म देती हैं।

नारी मुई भई सम्पति नासी, मूड़ मुड़ाए भए सन्यासी : तुलसीदास जी ने दो तरह के सन्यासियों का वर्णन किया है। एक वे जो सत्य की खोज के लिए संसार को त्याग कर सन्यासी बन जाते हैं, दूसरे वे जो स्त्री के मरने और सम्पत्ति के नाश के कारण मजबूरी में सर मुंडा कर सन्यासी बन जाते हैं।

नाली की ईंट कोठे चढ़ी, फिर भी गंध आती है : किसी निम्न श्रेणी के इंसान को उच्च पद मिल जाए तो भी उस का नीच पन नहीं छूटता।

नाली के कीड़े नाली में ही खुश रहते हैं : ओछी मानसिकता वाले लोग वैसे ही परिवेश में खुश रहते हैं।

नासमझ को कुछ नहीं, समझदार की मौत : जो समझदार होता है और जिम्मेदारी से काम करता है उसी को सारी परेशानी झेलता पड़ती है।

नासमझ को बात बताई, उसने ले छप्पर पे चढ़ाई : किसी नासमझ को भेद की बात नहीं बतानी चाहिए (वह उसे छप्पर पर चढ़ा देगा अर्थात सारे में फैला देगा)।

नाहीं चीन्ह तो नाया कीन्ह : 1. जिस काम की समझ नहीं है उसे मत करो। 2. पुरानी वस्तुओं की पहचान नहीं है तो नई खरीदना चाहिए।

निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छबाय, बिन साबन पानी बिना, निर्मल करे सुभाय : आम आदमी अपनी निंदा सुनना नहीं चाहता लेकिन कबीरदास कहते हैं कि निंदा करने वाले को अपने घर में कुटी बना कर उसमें रखो। जो निंदा वह करे उससे सीख ले कर अपने स्वभाव को निर्मल बनाया जा सकता है।

निकली हलक, पडी खलक (निकली होंठों, हुई पोटों) : हलक – गला, खलक – ब्रह्मांड। बात मुँह से निकल जाए तो सारे में फ़ैल जाती है।

निकली होंठों, चढी कोंठों : मुंह से निकले बात तुरन्त सारे में फ़ैल जाती है (इसलिए मनुष्य को सोच समझ कर बोलना चाहिए)। कोठा माने छत।

निकौड़िये गए हाट, ककड़ी देखे जियरा फाट : निकौड़िए – जिनके पास कौड़ी भी न हो। बिना पैसा कौड़ी के बाज़ार गए। वहाँ ककड़ी देख के हृदय फट रहा है (खाने का मन है पर खरीद नहीं सकते)।

निखट्टू भाई, नित उठ कर हलुआ मांगे : जो कोई काम नहीं करते वे अधिक सुविधाएं मांगते हैं।

निज हित अनहित पशु पहिचाना : पशुओं को भी अपने अच्छे बुरे की पहचान होती है।

निठल्ले सुहाग से तो रंडापा ही अच्छा : पति निठल्ला और आवारा हो इस से तो विधवा होना अच्छा।

निन्यानवे के फेर में जो पड़ा वो गया : इसके पीछे एक कहानी है। एक नेक लकड़हारा जंगल से लकड़ियाँ बीन कर अपने परिवार का पेट पालता था। वह हर समय भगवान का नाम लेता था और खुश रहता था। एक दिन भगवान विष्णु ने नारद जी से कहा कि देखो यह मेरा सबसे बड़ा भक्त है, इतनी कठिन परिस्थितियों में भी मेरा नाम लेता है और खुश रहता है। नारद जी बोले ठीक है प्रभु, कल से नहीं रहेगा। उस रात नारद जी ने एक थैली में निन्यानवे रुपये रख कर उस के आंगन में डाल दिए। सुबह पति पत्नी उठे तो रुपयों की थैली देखी। जल्दी जल्दी गिने, निन्यानवे थे। अब दोनों भजन कीर्तन भूल कर इसी फेर में लग गए कि एक एक पैसा बचा कर कैसे सौ रुपये पूरे कर लें।

निपट कठिन हठ मोसे कीन्हीं रे सैयां : किसी चाहने वाले ने कोई बहुत कठिन शर्त रख दी हो तो।

निपूतिये का धन फलता नहीं है : नि:सन्तान व्यक्ति के मरने के बाद सम्पत्ति की बन्दर बाँट होती है।

निपूती का घर सूना, मूरख का हृदय सूना, दरिद्री का सब कुछ सूना : जिसके कोई संतान न हो उसका घर सूना होता है, मूर्ख व्यक्ति का हृदय सूना होता है (क्योंकि उस में भावनाएँ नहीं होतीं) पर दरिद्र व्यक्ति का सब कुछ सूना है। निपूती – निस्संतान।

निपूती का मुँह देख सात उपास : निपूती – जिसके पुत्र न हों।पहले जमाने में लोग निस्संतान स्त्रियों को बहुत उपेक्षा की दृष्टि से देखते थे। यहाँ तक कहा गया है कि निस्संतान स्त्री को देख लो तो सात दिन खाना नहीं मिलेगा।

निपूते को धन प्यारा, कोढ़ी को जीवन : जिसके कोई सन्तान नहीं होती उसको भी धन प्यारा होता है और कोढ़ी का जीवन कितना भी कष्टमय क्यों न हो उसे भी जीवन से प्यार होता है।

निर्जलिया एकादशी, करवा चौथ, शिवरात, इन तीनों से कठिन है, लाला की बरात : बनियों की कंजूसी पर व्यंग्य।  जिस प्रकार मनुष्य को निर्जला एकादशी, करवा चौथ और शिवरात्रि के व्रत में दिनभर कुछ खाने को नहीं मिलता, सीधे रात में ही खाने को मिलता है वैसे ही बनिया की बारात में भी कुछ नहीं मिलता.

निर्धन के धन गिरधारी : जिसके पास कोई धन नहीं, ईश्वर उसका धन है।

निर्धन निर्बल पर सभी करें घात प्रतिघात, जैसे टूटी डाल पर, पाँव धरत सब जात : जो गरीब और कमजोर होता है उसे सब सताते हैं, जैसे पेड़ से टूटी डाल पर सब पैर रख कर जाते हैं।

निर्बल को दैव भी सतावे। कमजोर व्यक्ति को विधाता भी सताता है।

निष्ट देव की भिष्ट पूजा। (दुष्ट देव की भ्रष्ट पूजा) : जैसे निकृष्ट देवता वैसी भ्रष्ट उनकी पूजा।

निहाई की चोरी, सुई का दान : निहाई – पक्के लोहे की बड़ी सी सिल जिस पर रख कर लोहे को काटते व पीटते हैं। कहावत ऐसे ढोंगी दाताओं के लिए कही गई है जो अपने काले धंधों से खूब पैसा कमाते हैं और दिखावे के लिए उसमें से जरा सा दान कर देते हैं।

नींद न जाने टूटी खाट, प्यास न जाने धोबी घाट, भूख न जाने कच्चा भात, प्रीत न जाने जात कुजात : पहले के जमाने में समाज में यह नियम था कि विवाह सम्बन्ध अपनी जाति वालों से ही करना चाहिए। उस समय दूसरी जाति में विवाह करना (विशेषकर नीची जाति में) बहुत आपत्तिजनक माना जाता था। तब यह कहावत बनाई गई कि प्यार करने वाले ऊंची नीची जाति नहीं देखते। इस कथन को अधिक प्रभावी और मनोरंजक बनाने के लिए अन्य तीन बातें भी जोड़ दी गईं कि नींद आ रही हो आदमी टूटी खाट नहीं देखता, प्यास लगी हो तो धोबीघाट का गंदा पानी भी पी लेता है और भूख लगी हो तो कच्चा भात भी खा लेता है।

नीक लगे ससुरार की गारी : 1.विवाह और प्रसव आदि शुभ अवसरों पर ससुराल पक्ष द्वारा गाई जाने वाली गालियाँ भी अच्छी लगती हैं। 2. ससुराल भक्त दामादों पर व्यंग्य।

नीकी हु फीकी लगे, बिन अवसर की बात : बिना उचित अवसर के कही गई अच्छी बात भी बुरी लग सकती है।

नीके को सब लागत नीको : 1. जो लोग अच्छा हृदय रखते हैं उन्हें सब अच्छे लगते हैं। 2. जो अपने को अच्छा लगता है, उस की हर बाट अच्छी लगती है।

नीच की दोस्ती पानी की लकीर, शरीफ की दोस्ती पत्थर की लकीर : नीच की दोस्ती पानी की लकीर की तरह क्षण भंगुर होती है जबकि सज्जन की दोस्ती अमिट होती है।

नीच के साथ छक कर जीमो या उंगली भर चाखो बात एक ही है : नीच व्यक्ति के साथ थोड़ा बहुत संबंध भी नहीं रखना चाहिए (बदनाम पूरी होती है)।  

नीच न छोड़े निचाई, नीम न छोड़े तिताई : जिस प्रकार नीम अपना कड़वापन नहीं छोड़ सकता, उसी प्रकार नीच आदमी नीचता नहीं छोड़ सकता।

नीचन कूटन, देवन पूजन : नीच आदमी पिट कर ठीक रहता है और देवता पूजा से प्रसन्न रहते है।

नीचे की सांस नीचे ऊपर की सांस ऊपर : भय मिश्रित अचम्भे वाली स्थिति।

नीम न मीठा होए चाहे सींचो गुड़ घी से : (इसकी पहली पंक्ति इस प्रकार है – जाको जौन स्वभाव मिटे नहिं जी से)।नीम के पेड़ को गुड़ और घी से सींचो तब भी मीठा नहीं हो सकता। किसी भी व्यक्ति का स्वभाव बदलता नहीं है।

नीम पै तो निम्बोली ही लागैंगी : (हरयाणवी कहावत) जिसका जैसा स्वभाव होगा वह वैसा ही काम करेगा।

नीम हकीम खतरा ए जान, भीतर गोली बाहर प्रान : अधकचरे हकीम या डॉक्टर से इलाज कराने में जान का खतरा होता है। हो सकता है कि गोली भीतर जाए तो प्राण बाहर आ जाएं।

नीम हकीम खतरा-ए-जान, नीम मुल्ला खतरा-ए-ईमान : उर्दू में नीम का मतलब है आधा। नीम हकीम याने अधूरी जानकारी रखने वाला हकीम। उससे इलाज कराने में जान का खतरा है। नीम मुल्ला माने धर्म के विषय में अधूरी जानकारी रखने वाला धर्मगुरु। उससे आप धर्म की शिक्षा लेंगे तो धर्म का सत्यानाश हो जाएगा।

नीयत तेरी अच्छी है तो किस्मत तेरी दासी है, कर्म तेरे अच्छे हैं तो घर में मथुरा काशी है : कोई भी काम अच्छी नीयत से किया जाए तो सफलता निश्चित रूप से मिलती है। व्यक्ति अगर अच्छे कर्म करता है तो उसका घर ही तीर्थ बन जाता है।

नीयत सही तो मंजिल आसान : इरादा नेक हो तो मंजिल अवश्य मिलती है।

नील का टीका, कोढ़ का दाग, ये कभी नहीं छूटते : धोबी लोग कपड़े पर निशान लगाने के लिए जो स्याही प्रयोग करते हैं उस का दाग छूटता नहीं है और कुष्ठरोग का सफ़ेद दाग भी नहीं छूटता। कहावत उस समय की है जब कुष्ठ रोग का कोई इलाज नहीं था, पहले के लोग सफ़ेद दाग (ल्यूकोडर्मा) को भी कुष्ठ रोग समझते थे।

नीलकंठ कीड़ा भखें, मुखहिं विराजे राम, खोट कपट क्या देखिए, दर्शन से है काम : नीलकंठ (एक पक्षी जिस का गला नीला होता है) को देखना शुभ माना जाता है (क्योंकि शिव जी को भी नीलकंठ कहा जाता है)। नीलकंठ पक्षी कीड़े मकोड़े खाता है लेकिन ईश्वर का प्रतिबिम्ब मान कर लोग उस के दर्शन करते हैं। कहावत का तात्पर्य यह है कि किसी के खोट (कमियाँ) न देख कर उस के गुण देखना चाहिए।

नीलकंठ जिस सिर मंडरावे, मुकुटपति सों लाभ वो पावे : जिस के सर पर नीलकंठ मंडरा जाए उसके राजा होने का योग होता है।

नीला कंधा बैंगन खुरा, कभी न निकले बरधा बुरा : जिस बैल के कंधे नीले और खुर बैंगनी हों वह निश्चित रूप से अच्छा ही होता है। (घाघ की कहावतें) 

नेक अंदर बद, बद अंदर नेक : अच्छे से अच्छे आदमी के अंदर भी कुछ बुराइयाँ होती हैं और बुरे से बुरे में भी कुछ न कुछ अच्छाई होती है।

नेक की बनी देख नीच जलें : सज्जन व्यक्ति को उन्नति करते देख कर नीच लोग ईर्ष्या करते हैं।

नेक रहें करम, तो का करिहें बरम : (भोजपुरी कहावत) बरम – देवता (संभवतः ब्रह्म का अपभ्रंश है)। यदि व्यक्ति नेक कर्म करता है तो देवता भी उस का कुछ नहीं बिगाड़ सकते।

नेकनामी देर से, बदनामी जल्दी : प्रसिद्धि मुश्किल से और देर से मिलती है जबकि बदनामी जलदी मिल जाती है।

नेकी और पूछ पूछ : कोई व्यक्ति किसी भिखारी के पास जाकर पूछे, क्यों भैया सौ रूपए लोगे क्या? तो वह कहेगा – क्या बाबूजी! नेकी और पूछ पूछ।

नेकी कर कुँए में डाल : यदि आप किसी के ऊपर उपकार करते हैं तो उसे करके भूल जाइए उससे यह अपेक्षा मत करिए कि उसे आपका एहसान मानना चाहिए या एहसान चुकाना चाहिए। आजकल के लोग नेकी कम करते हैं या नहीं करते हैं पर उसका विज्ञापन जरूर करते हैं। उनके लिए यह कहावत इस प्रकार होनी चाहिए – नेकी कर न कर, अखबार (या फेसबुक) में जरूर डाल।

नेकी करो, खुदा से पाओ : किसी के साथ अच्छाई करने का प्रतिफल भगवान देता है।

नेकी नौ कोस, बदी सौ कोस : आप जो नेकी करोगे उसकी कहानी तो नौ कोस तक ही कही जाएगी पर अगर किसी के साथ कोई बदी की है (बुरा किया है) तो उसके किस्से सौ कोस तक फ़ैल जाएंगे।

नेकी बदी साथ जाला : (भोजपुरी कहावत) जो कुछ भी भलाई बुराई (पाप, पुण्य) मनुष्य करता है सब परलोक में उस के साथ जाती हैं।

नेकी बर्बाद, गुनाह लाजिम : किसी का भला किया उस की कोई कद्र नहीं ऊपर से अपराधी ठहरा दिए जाएं तो यह कहावत कही जाती है।

नेह फंद में जो फंस जावे, उस नर को न सीख सुहावे : जो मनुष्य प्रेम के फंदे में फंस जाता है उसे सीख अच्छी नहीं लगती।

नैन लगे तब चैन कहाँ है : नैन लगना – आँखें लड़ना, प्रेम हो जाना। किसी से प्रेम हो जाए तो मन को चैन नहीं रहता।

नैना देत बताय सब हिय को हेत अहेत, जैसे निर्मल आरसी भली बुरी कहि देत : हिय – हृदय। आप हृदय से किसी का भला चाहते हैं या बुरा यह आँखें बोल देती हैं, जिस प्रकार नाई की आरसी (एक प्रकार का छोटा दर्पण) में अच्छा बुरा सब दिख जाता है।

नौ पुरबिया तेरह चौके (नौ कनौजिया तेरह चूल्हे) : पुरबिया लोगों में एकता नहीं होती इस पर व्यंग्य।

नौ की लकड़ी नब्बे खर्च : चीज़ सस्ती हो पर लाने में खर्च अधिक हो रहा हो तो।

नौ जाने छौ जनबे न करे : (भोजपुरी कहावत) छह की गिनती नौ से पहले आती है। जाहिर सी बात है कि जिसे नौ की गिनती आती है उसे छह की तो जरूर आनी चाहिए। कोई अगर नौ जानता है और छह नहीं जानता (अर्थात आरम्भिक ज्ञान नहीं है पर आगे का ज्ञान है) तो यह कहावत कही जाती है।

नौ दिन चले अढ़ाई कोस : बहुत धीमी गति से काम होना।

नौ नकटों में एक नाक वाला भी नकटा : अयोग्य व्यक्तियों के बीच रहने से योग्य आदमी भी अयोग्य बन जाता है।

नौ नगद न तेरह उधार : कोई व्यक्ति तेरह रूपये बाद में देने को कहे उस के मुकाबले अगर नौ रूपये नकद मिल रहे हों तो अधिक अच्छे हैं। इंग्लिश में कहावत है – One in the hand is better than two in the bush.

नौ महीने माँ के पेट में कैसे रहा होगा : अत्यंत शैतान बालक या चंचल चित्त वाले व्यक्ति के लिए।

नौ लावे तेरह की भूख : मनुष्य को जब थोड़ा सा मिल जाता है तो उसे और अधिक की लालसा होती है।

नौ सौ चूहे खाय बिलैया हज को चली : (नौ सौ चूहे खाय बिलाई बैठी तप पे) यदि किसी व्यक्ति ने जीवन भर खूब कुकर्म किए हो और बाद में वह धर्म-कर्म का नाटक करने लगे तो यह कहावत कही जाती है। भोजपुरी में कहावत है – सत्तर मुस खाइके बिलाइ भईली भगतीन।

नौकर ऐसा चाहिए कबहूँ घर न जाय, काम करे सब ताव से भीख मांग कर खाय : सभी लोग ऐसा नौकर चाहते हैं जो कभी छुट्टी न ले और न ही घर जाए। काम पूरे जोश से करे पर तनख्वाह न ले।

नौकर का चाकर, चाकर का कूकुर : बड़े हाकिमों के महकमे के जो छोटे से छोटे कर्मचारी भी अपने को तुर्रमखां समझने लगते हैं, उनका मजाक उड़ाने के लिए व उन की हैसियत जताने के लिए उन को यह बताया जा रहा है कि साहब के नौकर के नौकर और उस के कुत्ते जितनी तुम्हारी औकात है, अपने को ज्यादा मत समझो। जो लोग इस के इसके आगे बोलते हैं – और कूकुर की पूंछ का बाल। कहीं कहीं इस कहावत में चाकर का कूकुर के स्थान पर चाकर का चूतड़ बोला जाता है।

नौकरी की जड़ आसमान में : (नौकरी की जड़ धरती से सवा हाथ ऊंची) : नौकरी का कोई भरोसा नहीं होता कब चली जाए।

नौकरी ताड़ की छांव : ताड़ के पेड़ की छाया बहुत थोड़ी और अपर्याप्त होती है। इसी प्रकार नौकरी की कमाई अपर्याप्त होती है (पहले के समय में नौकरी में बहुत कम वेतन मिलता था)। रिश्वत लेने वाले कर्मचारी रिश्वत को सही ठहराने के लिए भी ऐसा कहते हैं।

नौकरी न कीजिए घास खोद खाइए, और खोदें आस पास आप दूर जाइए : नौकरी करने से अच्छा है घास खोद कर अपना काम चलाया जाए। आस पास न मिले तो चाहे दूर जा कर खोदना पड़े।

नौकरी में सात खाविंद रिझाने पढ़ते हैं : बहुत सी स्त्रियों को यह शिकायत होती है कि उन्हें अपने पति को खुश रखने के लिए बहुत यत्न करने पड़ते हैं। उन स्त्रियों को समझाने के लिए पति यह बताते हैं कि नौकरी करना इतना कठिन है जितना एक दो नहीं सात पतियों को खुश करना।

न्याव को और भाव को कोउ भरोसा नाहिं : राजा के न्याय और बाजार के भाव के विषय में कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता.

न्यौता बामन, शत्रु बराबर : ब्राहण को न्यौता देना अपने लिए मुसीबत बुलाना है।

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