लोकोक्तियाँ एवं कहावतें

( ट, ठ, ड, ढ )

( ट )

टका धर्म: टका कर्म: टका देवो महेश्वर, टका कर्ता टका हर्ता टका मोक्ष विधायका : टका – रुपया पैसा। पैसे की ही सारी महिमा है।

टका है जिसके हाथ में, वही बड़ा है जात में : जिसके पास पैसा है वही बड़ा माना जाता है, वह अगर निम्न जाति का है तब भी कोई उसकी जाति नहीं पूछता। टका – पुराना दो पैसे का सिक्का।

टका हो जिसके हाथ में, वही बड़ा है बात में : जिसके पास पैसा हो उस की बात सब को माननी पड़ती है।

टके का सब खेल है : सारा खेल पैसे का है। पैसा है तो आप सारे साधन जुटा सकते हैं।

टके की तरकारी और रूपये का तड़का : बहुत सस्ती चीज़ को बनाने में बहुत अधिक खर्च आ रहा हो तो यह कहावत कही जाती है।

टके की बुढ़िया, नौ टका मूड़ मुड़ाई : चीज़ तो बहुत सस्ती पर रखरखाव की कीमत (मेंटेनेंस कॉस्ट) बहुत अधिक।

टके की मुर्गी छै टके महसूल : माल बहुत सस्ता पर टैक्स बहुत अधिक। महसूल – टैक्स।

टके की लौंग बनियानी खाय, कहो घर रहे के जाय। : बनिए की पत्नी ने टके की लौंग खा ली तो बनिया पूछता है कि इस तरह घर कैसे चलेगा।

टके के वास्ते मस्जिद ढहाना। : छोटे से लाभ के लिए बहुत बड़ा अपराध करना।

टके बिना टुकुर टुकुर ताकते रहो (टके बिना टकटकी लगा के देखते रहो) : जिस के पास पैसा नहीं है उसे किसी भी काम के लिए दूसरों का आसरा देखना पड़ता है।

टके भर की कमाई नहीं और पल भर की फुरसत नहीं : यह कहावत ऐसे लोगों पर व्यंग्य है जो कोई ठोस कार्य नहीं करते और अपने को बहुत व्यस्त दिखाते हैं।

टके वाली का बालक झुनझुना बजाएगा : एक महिला मेले में जा रही थी। आस पड़ोस की औरतों ने अपनी अपनी फरमाइशें बता दीं, मेरे लिए ये लाना, मेरे लिए वो लाना, लेकिन किसी ने कोई रुपया पैसा नहीं दिया। केवल एक औरत ने एक टका उस के हाथ पर रखा और कहा कि मेरे बालक के लिए झुनझुना ले आना। तो वह केवल उसी के लिए झुनझुना ले कर आई।

टटींगर काहे मोटा, लाभ गने न टोटा : आवारा आदमी मोटा इसलिए है क्योंकि उसे लाभ हानि की कोई चिंता नहीं है। टटींगर – आवारा आदमी।

टट्टर खोल निखट्टू आया : टट्टर – लोहे या बांस के जाल से बना दरवाजा। कोई निखट्टू व्यक्ति आवारागर्दी कर के घर लौटता है तो घर के लोग उपेक्षा से ऐसे बोलते हैं।

टट्टी की ओट शिकार : छिप कर शिकार करना। टट्टी माने सींको का बना पर्दा या चटाई।

टट्टू को कोड़ा और ताज़ी को इशारा : टट्टू बोझा धोने वाला सस्ता जानवर है और ताज़ी उन्नत किस्म का युद्ध में काम आने वाला घोड़ा। कहावत का अर्थ है कि मंदबुद्धि व अड़ियल व्यक्ति को मार कर काम कराना पड़ता है जबकि बुद्धिमान को इशारा काफी होता है।

टट्टू मारे घोड़ा काँपे (ताजी मारे तुर्की काँपे)। : किसी एक को सजा मिले तो दूसरों के मन में भी डर बैठ जाता है।

टहल करो माँ बाप की हो समपूरन आस, टहल करे से जो फिरे नरक उन्हीं का वास : माँ बाप की सेवा करने से सारी आशाएं पूरी होती हैं और उन का दिल दुखाने से नरक मिलता है।

टहल न टकोरी, लाओ मजूरी मोरी : काम धाम कुछ नहीं, मजदूरी मांगने में सबसे आगे।

टहलुए को टहल सोहे, बहलिए को बहल सोहे : जो जिसका काम है वह उसी को करता हुआ अच्छा लगता है।

टंटा विष की बेल है (टंटा मत कर जब तलक बिन टंटे हो काम, टंटा बिस की बेल है, या का मत ले नाम)। : जब तक राजी खुशी काम चले तब तक झगड़ा नहीं करना चाहिए। झगड़े से आपसी सम्बन्ध खराब होते हैं। झगड़ा बढ़े तो जान माल का नुकसान, मारपीट मुकदमेदारी की संभावना होती है।

टाट के अंगिया, मूंज की तनी, देख मेरे देवरा मैं कैसी बनी : कोई फूहड़ स्त्री भद्दा श्रृंगार कर के अपनी तारीफ़ करवाना चाह रही हो तो। टाट – पटसन से बना मोटा कपड़ा जिससे बोरी बनाते हैं, मूँज – सरकंडे के रेशों से बनी पतली रस्सी जो खाट बुनने के काम आती है। आजकल फटी हुई जींस पहन कर घूमने वाले लोगों के लिए भी कहा जा सकता है।

टाट पर मूँज का बखिया : घटिया माल बनाने के लिए घटिया सामान का ही प्रयोग किया जाएगा।

टाल बता उसको न तू जिससे किया करार, चाहे हो बैरी तेरा चाहे होवे यार : यदि किसी को कोई वचन दिया है तो उसका पालन अवश्य करें, चाहे वह आपका शत्रु क्यों न हो।

टांग उठे न, चढ़ना चाहे हाथी। : टांग उठती नहीं है और हाथी पर चढ़ना चाहते हैं, अपनी औकात से बहुत अधिक इच्छा रखना।

टांग लम्बी धड़ छोटा, वोही आदमी खोटा : एक लोक विश्वास है कि जिस आदमी की टांगें लम्बी और धड़ छोटा होता है वह आदमी खोटा (मक्कार) होता है।

टांटे से नाटा भला, जो तुरत दे जवाब, वह टांटा किस काम का जो बरसों करे खराब। : टांटा – झगड़ा या मुकदमा करने वाला, नाटा – वायदा कर के नट जाने (मुकर जाने) वाला।

टाट का लंगोटा, नबाब से यारी : खुद इतने गरीब हैं कि टाट का लंगोटा पहने हैं पर दोस्ती बड़े बड़े लोगों से करना चाहते हैं।

टिकटिक समझे, आ आ समझे, कहे सुने से रहे खड़ा, कहे कबीर सुनो भई साधो, अस मानुस से बैल भला : जैसे बैल केवल टिकटिक और आ आ की भाषा समझता है वैसे ही मूर्ख मनुष्य इसी प्रकार की भाषा समझते हैं। कबीर कहते हैं कि ऐसे मनुष्य से तो बैल ही भला।

टिटहरी समझे कि आकाश उसी पे टिका है : टिटहरी पक्षी मनुष्यों की भांति जमीन पर पीठ के बल सोती है और पैर ऊपर रखती है। एक मजाक भरा लोक विश्वास है कि टिटहरी समझती है आसमान उसके पैरों पर टिका है। कोई छोटी हैसियत वाला व्यक्ति अपने को बहुत महत्वपूर्ण बता रहा हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए यह कहावत बोलते हैं।

टिड्डी का आना, काल की निशानी : जब टिड्डियों का कोई इलाज नहीं था तब टिड्डी दल देखते देखते पूरे के पूरे खेत खा जाते थे। उस समय टिड्डी दल को अकाल की निशानी मानते थे।

टीले ऊपर चील बोले, गली गली में पानी डोले : घाघ कवि कहते हैं कि यदि टीले के ऊपर चील बैठ कर बोले तो समझ लो बहुत वारिश होगी।

टुकड़ा डालने पर कुत्ता भी पूँछ हिलाता है : घटिया किस्म के रिश्वतखोर सरकारी मुलाजिमों पर व्यंग्य।

टुकड़े दे दे बछड़ा पाला, सींग लगे तब मारन चाला : गाय के बछड़े को टुकड़े दे कर पाला, अब उसके सींग निकल आये तो मारने चला है। आपका आश्रित कोई व्यक्ति थोड़ा सा समर्थ होने पर आपको ही हानि पहुँचाने लगे तो।

टूटते हुए आकाश को खम्भों से नहीं रोका जा सकता : बहुत बड़ी आपदा को छोटे मोटे प्रयासों से नहीं टाला जा सकता।

टूटा औजार और खोटा बेटा भी समय पर काम आते हैं (टूटा हथियार और लूला बेटा भी समय पर काम आता है) : जिस चीज़ को हम बेकार समझते हैं वह भी आड़े समय में काम आ सकती है, इसलिए किसी की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए।

टूटी की बूटी नहीं, नहीं काल की टाल। : रिश्ते टूट जाए तो फिर जुड़ नहीं सकते (इसलिए कभी किसी से सम्बन्ध तोड़ने नहीं चाहिए) और मृत्यु को कोई टाल नहीं सकता। बूटी – दवा।

टूटी की बूटी बता दो हकीम जी : अर्थ ऊपर वाली कहावत की भांति।

टूटी टांग पाँव न हाथ, कहे चलूं घोड़ों के साथ : क्षमता न होने पर भी अपने से बहुत अधिक क्षमता वान लोगों की बराबरी करना।

टूटी नाड़ बुढ़ापा आया टूटी खाट दलिद्दर छाया : गर्दन हिलने लगती है तो इसका अर्थ यह है कि बुढ़ापा आ गया है और अगर खाट टूटी हुई है तो इसका अर्थ यह है कि घर में दलिद्दर छाया हुआ है.

टूटी बांह गले पड़ी : बांह टूट जाती है तो कपड़े की पट्टी के सहारे उसे गले से लटका देते हैं। कोई असहाय सगा सम्बन्धी किसी पर आश्रित हो जाए तो यह कहावत कही जाएगी।

टूटे पीछे फिर जुड़े, गाँठ गंठीली होय : जिस प्रकार धागा टूटने के बाद जोड़ा जाए तो उसमें गाँठ पड़ जाती है, उसी प्रकार सम्बन्ध टूटने के बाद जोड़ा जाए तो उसमें भी गाँठ पड़ जाती है। रहीम ने इस को इस प्रकार कहा है – रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाए, टूटे से फिर न जुड़े, जुड़े गाँठ पड़ जाए।

टूटे सुजन मनाइए, जौ टूटे सौ बार, रहिमन फिरि फिरि पोहिए, टूटे मुक्ताहार : यदि आप की मोतियों की माला टूट जाए तो आप बड़े यत्न से उसे दुबारा पो लेते हैं। इसी प्रकार यदि कोई स्वजन आपसे रूठ जाए तो उसे यत्न कर के मना लीजिए।

टेक उन्हीं की राखे साईं, गरब कपट नहिं जिनके माहीं : ईश्वर उन्हीं की सहायता करता है जिन के अंदर कपट और अहंकार नहीं है।

टेढ़ी उँगली से ही घी निकलता है (इस कहावत को इस प्रकार भी कहते हैं – सीधी उँगली से घी नहीं निकलता) : पहले के जमाने में चम्मच का प्रयोग नहीं होता था। यदि थोड़ा सा घी निकालना हो महिलाएं डब्बे में उँगली डाल कर उससे घी निकाल लेती थीं। अब जाहिर सी बात है कि अगर सीधी उंगली डालोगे तो घी कहाँ निकलेगा, टेढ़ी उँगली से ही निकलेगा। कहावत का अर्थ है कि केवल सिधाई से काम नहीं निकलता।

टेढ़ी खुरपी को टेढ़ो बेंट। : 1. खुरपी जैसे खुद टेढ़ी होती है वैसा ही टेढ़ा उसमें बट लगाया जाता है टेढ़े आदमी से काम लेने के लिए टेढ़ा ही होना पड़ता है। 2. दुष्ट लोगों की मित्रता दुष्टों से ही होती है।

टेढ़े फंसे को काट कर निकाला जाए : जब सर्जरी द्वारा बच्चे का प्रसव कराने की सुविधा उपलब्ध नहीं हुई थी तब यदि कोई बच्चा टेढ़ा फंस जाए तो उसे काट कर निकाला जाता था। आजकल के लोगों को यह बात बड़ी वीभत्स लग सकती है लेकिन उस समय ऐसा करना मजबूरी थी। कहावत का अर्थ है कि जो सीधी तरह न माने उस को कैसा भी दंड देना पड़ सकता है।

टेढ़ों के निकले नाम, सीधों ने मारे दांव : कई बार ऐसा होता है कि सीधे माने जाने वाले लोग चुपचाप दांव मार लेते हैं और आरोप उन्हीं पर आता है जो टेढ़े समझे जाते हैं।

टेर टेर के रोवे, अपनी लाज खोवे : अपनी परेशानी का रोना सबके आगे रोने से अपनी इज्ज़त ही कम होती है।

टोटा तेरे तीन नाम, लुच्चा गुंडा बेईमान : टोटा – घाटा। जिस आदमी को व्यापार में घाटा हो जाता है वह लोगों का पैसा वापस नहीं कर पाता और सब उसे लुच्चा लफंगा बेईमान कहने लगते हैं.

टेंट आँख में मुँह खुरदीला, कहे पिया मोरा छैल छबीला। : जो स्त्री अपने कुरूप पति की बहुत शेखी बघारती हो। टेंट आँख में – भेंगापन।

टेंटी बेर काल के मीत, खाएँ किसान और गावें गीत। : टेंटी और बेर जैसे फल अकाल के दिनों में ग़रीबों के काम आते हैं।

टोलन में घर टोल भला, सब बाजों में ढोल भला : टोल माने मोहल्ला। सब मोहल्लों में वह मोहल्ला सबसे अच्छा है जहाँ अपना घर है। बाद की पंक्ति तुकबंदी के लिए जोड़ी गई है।

( ठ )

ठंडा लोहा गरम लोहे को काट देता है : यदि दो लोगों में लड़ाई हो तो जीत उस की होती है जो ठंडा (संयत) रहता है। जो अधिक गरम हो जाता है (आपा खो देता है) वह हार जाता है।

ठंडो नहावे तातो खावे, ऊ घर वैद कबहुं न जावे : जो ठंडे पानी से नहाए और गर्म खाना खाए, वह बीमार नहीं पड़ता।

ठकुर सुहाती सब कहें, जब कछु लेनो होय : ठकुर सुहाती – मालिक को सुहाने वाली बात (चापलूसी भरी बात)। जब व्यक्ति का स्वार्थ होता है तो वह चापलूसी भरी बातें करता है।

ठग कसाई, चोर सुनार, खाऊ बामन, बली लुहार : विभिन्न जातियों की विशेषताएं बताई गई हैं। कसाई लोगों को ठगता है, सुनार गहनों में से कुछ न कुछ चुराता जरूर है, ब्राह्मण खाता बहुत है और लोहार अत्यधिक बलशाली होता है।

ठग की कौन मौसी : धूर्त लोग अपने सगे सम्बन्धियों को भी नहीं बख्शते।

ठग न देखा देख कसाई, शेर न देखा देख बिलाई : किसी ने ठग न देखा हो तो कसाई को देख लो जो कि उस से भी बढ़ कर है। शेर न देखा हो तो बिल्ली को देख लो जो उसी के समान शिकार करने वाली होती है।

ठग ही जाने ठग की भाषा : चोर उचक्कों ठगों की अलग ही भाषा होती है जिसे वही लोग समझ सकते हैं।

ठगा कर ठाकुर बने (ठगाने से ठाकुर कहाता है)। : धोखा खा कर बुद्धि आती है।

ठठेरे ठठेरे बदलाई। : बचपन में हम ने ‘ठ’ से ठठेरा पढ़ा था। आजकल के लोग नहीं जानते होंगे कि बर्तन बनाने वाले को ठठेरा कहते हैं। ठठेरा अगर दूसरे ठठेरे से कोई बर्तन लेता है तो बदले में पैसे नहीं बर्तन ही देता है। वाणिज्य में इसे वस्तु विनिमय कहते हैं।

ठठेरों की बिल्ली खटपट से नहीं डरती : ठठेरा बर्तन बनाने में लगातार खटपट करता रहता है, इसलिए उसकी पालतू बिल्ली खटर पटर की आदी हो जाती है। इसी प्रकार सीमा पर स्थित गाँवों के लोग थोड़ी बहुत गोलीबारी से नहीं डरते।

ठहर ठहर के चालिए जब हो दूर पड़ाव, डूब जात मंझधार में दौड़ चले जो नाव : जब दूर की मंजिल तय करनी हो तो बीच बीच में ठहर कर चलना चाहिए। जो नाव तेज़ दौड़ कर चलती है वह मंझधार में डूब जाती है।

ठांव गुन काजल, ठांव गुन कालिख : ठांव माने स्थान (place)। तेल को जला कर उसका धुआँ इकठ्ठा कर के काजल बनाया जाता है जो आँखों के लिए श्रृंगार है। वही धुंआ दीवारों पर जम जाता है तो उसे कालिख कह कर साफ़ करते हैं। व्यक्ति और वस्तु का महत्त्व उसके स्थान से होता है।

ठाकुर की बेटी ब्याहे, हिजड़े अड़ंगा लगाएँ : किसी भले आदमी के काम में बदमाश लोग अड़ंगा लगाएं तो.

ठाकुर गया, ठग रह्या, रह्या मुलक का चोर, वे ठकुरनियाँ मर गईं, जे जनतीं ठाकुर और : (राजस्थानी कहावत) वीर पुरुष अब नहीं रहे, केवल धूर्त लोग ही बचे हैं। वे वीर माताएं भी नहीं रहीं जो वीर पुरुषों को जन्म देती थीं।

ठाकुर चाकर दोऊ नीके : जब मालिक और नौकर (या हाकिम और मातहत) दोनों एक से बढ़ कर एक हों तो।

ठाकुर पत्थर, माला लक्कड़, गंगा जमना पानी, जब लग मन में साँच न उपजे, चारों वेद कहानी : भक्ति करने चले हो तो यह समझ लो कि जब तक मन सच्चा न हो तब तक शालिग्राम जी केवल पत्थर हैं, तुलसी की माला बेजान लकड़ी मात्र है, गंगा जमना का जल मात्र पानी है और वेदों में लिखा हुआ केवल कहानी के समान है।

ठाकुर बाल सफेद हो गए हैं और मैदान से भागते हो भाग भाग कर ही तो बाल सफेद किए हैं वरना काले में ही मारे जाते : ठाकुर साहब से कोई कह रहा है कि तुम्हारे बाल सफेद हो गए हैं, बूढ़े हो गए हो, फिर भी मैदान छोड़कर भागते हो। तो ठाकुर जवाब देते हैं कि मैदान से भागे ना होते तो काले बाल रहते हुए ही मारे गए होते। बाल सफेद होने की नौबत ही क्यों आती.

ठाड़ा मारे और आगे धर ले : दबंग और दुस्साहसी लोग अपराध कर के उसे छिपाने की कोशिश नहीं करते।

ठाड़ा मारे तो गरीब कोसने से भी गया : दबंग आदमी किसी गरीब को मारे तो बेचारा गरीब उसे कोस भी नहीं सकता (वरना वह और मारेगा)।

ठाड़े की बहू सबकी दादी, माड़े की बहू सबकी भाभी : दबंग आदमी की बीबी का सब सम्मान करते हैं और गरीब की बीबी से सब मजाक करते हैं।

ठाड़े के धन को जोखिम नहीं होता : जो आदमी जबर होता है उसकी संपत्ति को हाथ लगाने की कोई हिम्मत नहीं करता.

ठाढ़ा तिलक मधुरिया बानी, दगाबाज कै यहै निसानी। (कंठी टीका मधुरी बानी, दगाबाज़ की यही निशानी) : जो ज्यादा लम्बा टीका लगाए हो और ज्यादा मीठी बोली बोल रहा हो उस के धूर्त होने की संभावना बहुत अधिक है।

ठाली नाइन बछड़े को मूंड़े : नाई की पत्नी खाली हो तो अपनी गाय के बछड़े के ही बाल काटने लगती है। उद्यम शील व्यक्ति कभी खाली नहीं बैठता।

ठाली बनिया क्या करे, इस कोठी का धान उस कोठी में दे : बनिया कभी खाली नहीं बैठता, कुछ न कुछ उद्योग करता ही रहता है।

ठाली बहू नोन में हाथ : जो काम करने वाली बहू होती है वह कभी खाली नहीं बैठती।

ठिकाने ठाकुर पूजा जाय (ठिकाने से ठाकुर) : ठाकुर की इज्ज़त केवल उसके गाँव में होती है, बाहर उसे कोई नहीं पूछता।

ठीकरी के ठाकुर जी को थूक का तिलक : ठीकरी – फूटे हुए घड़े का टुकड़ा। निकृष्ट मूर्ति की भ्रष्ट पूजा ही की जाएगी।

ठुमकी गैया सदा कलोर : नाटा व्यक्ति सदा युवा लगता है.

ठेस लगे बुद्धि बढ़े : धोखा खाने से आदमी सीखता है।

ठोक बजा ले चीज, ठोक बजा दे दाम : चीज़ को खूब देख परख कर लो और पैसा भी ठीक से मोल भाव कर के और ठीक से गिन कर दो।

ठोकर खावे बुद्धी पावे : ठोकर खा कर ही इंसान को अक्ल आती है। इंग्लिश में कहावत है – There is no education like adversity.

ठोकर मारने से धूल भी सर की ओर आती है : छोटे से छोटे व्यक्ति का भी अपमान नहीं करना चाहिए। जिस का अपमान करोगे वह आपको किसी न किसी प्रकार से नुकसान पहुँचा सकता है।

ठोकर लगी पहाड़ की, तोड़े घर की सिल : पहाड़ से ठोकर लगी, उसका तो कुछ बिगाड़ नहीं सकते तो घर की सिल को तोड़ कर अपना गुस्सा निकाल रहे हैं। बड़े आदमी का कुछ न बिगाड़ पाओ तो छोटों पर गुस्सा उतारना।

ठोकर लगे तब आँख खुले : धोखा खा कर ही व्यक्ति जागता है।

( ड )

डंक मारना बिच्छू का सुभाव : दुष्ट व्यक्ति के स्वभाव में ही दुष्टता होती है, उसे उसके लिए कोई योजना नहीं बनानी होती।

डंडा सब का पीर : शरीफ लोग तो डंडे से डरते ही हैं, जो दुष्ट या कामचोर लोग होते हैं वे भी डंडे से डरते हैं। अर्थात डंडा सबको सीख देने में सक्षम है।

डकैतों ने माल लूटा, बेगारियों का पिंड छूटा (ले गए गठरी चोर चुराई, सकल बेगारन छुट्टी पाई)। : बेगारी – बिना पैसा दिए किसी से मजदूरी कराना। गरीब लोगों को गाँव के जमींदार का सामान ढोना पड़ रहा है (बिना मजदूरी मिले)। डकैत वह सामान लूट लेते हैं तो उन बेचारों को छुट्टी मिल जाती है।

डर के पास जाने से ही डर निकलता है : दूर से हम किसी बात से डरते हैं पर जब उसके पास पहुँच जाते हैं तो वह उतनी डरावनी नहीं लगती। इस प्रकार की एक राजस्थानी कहावत है – डर कने गियां डर मिटे।

डर के पास जाने से ही डर मिटता है : अर्थ स्पष्ट है।

डर तो अधिक खाने में है : कम खाने से आदमी कमजोर हो सकता है पर मरता नहीं है, अधिक खाने से तरह तरह की बीमारियाँ होती हैं और जल्दी मृत्यु हो सकती है।

डरपोक का बेली तो राम भी नहीं : कायर व्यक्ति की भगवान भी सहायता नहीं करता।

डरा सो मरा (जो डर गया सो मर गया) : किसी संकट से मुकाबला करना हो तो जो डर जाता है वह मुकाबला करने से पहले ही हार जाता है।

डरें लोमड़ी से, नाम शेर खां (दिलेर खां) : गुण के विपरीत नाम।

डांवाडोल सदा मोहताज : जिसमें निर्णय लेने की क्षमता न हो वह जीवन में कुछ नहीं बन सकता।

डाकिनी खाय तो मुँह लाल न खाय तो मुँह लाल (डायन खाए तो मुँह लाल, न खाए तो मुँह लाल) : डायन के विषय में लोगों को अंधविश्वास है कि वह बच्चों को खा जाती है। मुँह पर खून लगा रहने की वजह से उसका मुँह लाल ही रहता है। कहावत का प्रयोग इस अर्थ में करते हैं कि जो बदनाम है वह गलत काम करे या न करे, सब उसी पर शक करते हैं।

डाकिनों के ब्याह में मेहमान ही गटके जाएं : डाकिन के घर में कोई समारोह होगा तो कोई भरोसा नहीं कि वह मेहमानों को ही खा जाए। दुष्ट व्यक्तियों से दूर ही रहना चाहिए।

डायन किसकी मौसी : दुष्ट और अत्याचारी लोग किसी सामाजिक रिश्ते को नहीं मानते।

डायन को ख़्वाब में भी कलेजे। : दुष्ट व्यक्ति को हर समय अपना स्वार्थ ही सूझता है।

डायन को भी दामाद प्यारा : अपना दामाद सबको प्यारा होता है, डायन को भी।

डायन को मौसी कहे सो बचे : अपनी जान बचाने के लिए कभी कभी दुष्ट लोगों से आत्मीयता भी दिखानी पड़ सकती है।

डायन भी अपने बच्चे को नहीं खाती : अपना बच्चा सब को प्यारा होता है। कोई व्यक्ति कितना भी दुष्ट और निर्दयी क्यों न हो, अपने बच्चे से सबको ममता होती है।

डायन भी दस घर छोड़ कर खाती है। : कोई अपनों को ही धोखा दे तो। कोई भ्रष्ट हाकिम अपने निकट के किसी व्यक्ति से रिश्वत मांगे तो यह कहावत कही जाती है।

डायन मरे न मांचा छोड़े : मांचा – खाट। कोई अधिक आयु का व्यक्ति बीमार हो कर खाट पर पड़ा हो तो उससे परेशान परिजन ऐसा कहते हैं (विशेषकर बहू सास के लिए)।

डायन से पूतों की रखवाली : बच्चों को खाने वाली डायन से ही अगर आप बच्चों की रखवाली करने को कहेंगे तो यह मूर्खता ही कही जाएगी। भ्रष्ट नेताओं से देश की अर्थव्यवस्था की रखवाली की आशा करना भी कुछ ऐसा ही है।

डायनों को पराए न मिलें तो अपनों को ही गटकें : जिसको अपराध करने की लत और गलत आदतें लग जाती हैं वह बाहर कुछ न मिले तो घर वालों को ही अपना शिकार बनाता है।

डाल का चूका बंदर और बात का चूका आदमी, ये फिर नहीं संभलते : अर्थ स्पष्ट है।

डाले दाढ़ में तो आवे हाड़ में। : उपयुक्त भोजन करने से ही स्वस्थ शरीर बनता है

डालें वही खाना, भेजें वहीं जाना : घर के बड़े जो थाली में डालें वही खाना चाहिए और जो काम बताएँ वह करना चाहिए।

डींग हांकनी है तो हल्की फुल्की क्यों : अर्थ स्पष्ट है।डींग हांकना – अपनी झूठी प्रशंसा करना।

डील डौल गुम्बद, आवाज़ फिस्स। : बहुत मोटे तगड़े आदमी की बहुत हलकी आवाज़ हो तो।

डुग डुग बाजे बहुत नीको लागे, नाऊ नेग मांगे तो बगलें झांके : घर में कोई मंगल कार्य हो, ढोल बज रहे हो तो बड़ा अच्छा लगता है, पर जब दक्षिणा मांगने वाले पंडित और नेग मांगने वाले नाई, कर्मचारी वगैरा इकट्ठे हो जाते हैं तो आदमी बगलें झांकता है।

डूब जात आधी चले, झपट चले जो नाव : जो नाव बहुत तेज चलने की कोशिश करती है वह आधे रास्ते में ही डूब जाती है।

डूबते को तिनके का सहारा : किसी बड़ी मुसीबत में फंसे व्यक्ति को थोड़ा सा भी सहारा मिल जाए तो उसे बहुत लगता है। इंग्लिश में कहावत है – A drowning man will cathch at a straw.

डूबते जहाज में से चूहे बाहर कूद जाते हैं। : जब समुद्री जहाज डूब रहा होता है तो उस में रहने वाले चूहे बाहर कूदने लगते हैं (हालांकि बाहर कूद कर भी उन्हें मरना ही है)। जब कोई राजनैतिक दल डूब रहा होता है तो उसके सदस्य छोड़ कर भागने लगते हैं।

डूबते हाथी को मेंढक भी लात मारता है : जब व्यक्ति अपना पद और मान खो देता है तो छोटे से छोटे लोग भी उसे अपमानित करने से नहीं चूकते।

डूबी कन्त भरोसे तेरे : कोई स्त्री पति के भरोसे पानी में उतरी पर जब डूबने लगी तो पति ने उसको नहीं बचाया। जिस पर आप विश्वास करें वह संकट में आप का साथ न दे तो।

डेढ़ ईंट की अलग मस्जिद : सबसे अलग नियम कायदे बनाना।

डेढ़ चावल की अलग खिचड़ी : सबसे अलग और हास्यास्पद तरीके से काम करना।

डेढ़ पाव आटा, पुल पर रसोई : अपने पास साधन न होते हुए भी बहुत दिखावा करना।

डोई क्या जाने पकवान का स्वाद : डोई – करछुली।हँड़िया में जो कुछ पक रहा है उसका स्वाद करछुली नहीं ले सकती। जो ऐशो आराम की वस्तुएँ गरीब आदमी बड़े लोगों के लिए तैयार करता है उनका आनंद वह स्वयं नहीं ले सकता।

डोकरी को राजकथा से क्या मतलब : आम आदमी को राजा रजवाड़ों की बातों से क्या लेना देना।

डोम के घर ब्याह, मन आवे सो गा : डोम लोग अपने घरों पर बहुत अश्लील गीत गाते हैं क्योंकि वहाँ कोई टोकने वाला नहीं होता।

डोम हारे अघोरी से : बेचारे डोम को काफी निम्न श्रेणी का मनुष्य माना गया है पर अघोरी उस से भी निम्न होता है।

डोमन बजावे चपनी, जात बतावे अपनी। : डोमनी(गाने बजाने वाली स्त्री) चपनी (तश्तरी) बजा के गाती है तो हर कोई जान जाता है कि उस की जात क्या है। व्यक्ति के कार्य कलापों से उसकी जाति का पता चल जाता है।

डोमनी के रोने में भी राग : डोमनियां घर घर जा कर बधाई गाती हैं। वे रोती हैं तो उस में भी गाना होता है। कोई भी काम जो हम लगातार करते हैं वह हमारी आदत में शुमार हो जाता है।

डोली आई डोली आई मेरे मन में चाव, डोली में से निकल पड़ा भोंकड़ा बिलाव : बच्चों का मजाक। गाँव के बच्चे कहीं खेल रहे हैं कि कोई डोली आ कर रूकती है। बच्चे बड़ी उत्सुकता से देखते हैं कि उस में से सजी धजी दुल्हन निकलेगी, पर उसमे से मोटी तोंद वाले हाकिम उतरते हैं। तब बच्चे दूर खड़े ताली बजा बजा कर यह पंक्तियाँ बोलते हैं।

डोली न कहार, बीबी जाने को तैयार : कोई बिना निमंत्रण जाने को तैयार हो तो।

डोली में बैठ के कंडे बीनें : अत्यधिक नजाकत दिखाने वालों पर व्यंग्य। उन लोगों पर भी व्यंग्य जो वातानुकूलित कमरों में बैठ कर लोक कल्याणकारी काम करने का दिखावा करते हैं।

( ढ )

ढका हुआ ना उघाड़ बहू घर तेरा ही है : सास बहू को सीख दे रही है की घर की बदनामी वाली कोई बात मत उघाड़ो। अब यह घर तुम्हारा ही है.

ढपोर शंख :  ढपोर शंख की कथा कही जाती है कि उस से कोई एक चीज़ मांगो तो वह कहता था कि मैं तुम्हें दो दूँगा, पर देता कुछ नहीं था। आजकल के बहुत से नेता भी ऐसे ही हैं। (देना लेना कुछ नहीं हामी भरूं करोड़)।

ढंग से करो तो गेंडे को भी गुदगुदी होती है : गेंडे की खाल इतनी मोटी होती है कि उसे गुदगुदी होना असंभव सी बात है, लेकिन युक्ति पूर्वक करने से उसे भी गुदगुदी हो सकती है। कहावत में हास्य का सहारा ले कर यह बताया गया है कि प्रयास करने पर कठोर हृदय और नीरस व्यक्तियों की भावनाओं को भी जगाया जा सकता है। ऐसे भी कह सकते हैं कि प्रयास करने पर कंजूस आदमी से भी चंदा लिया जा सकता है।

ढाई आखर प्रेम को पढ़े सो पंडित होय, (पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय)। : जिसने मनुष्य मात्र के प्रति प्रेम का भाव जगा लिया वही सच्चा पंडित है।

ढाई दिन की बादशाहत : यह कहावत अलिफ़ लैला के किस्सों के किसी किरदार पर आधारित है जिसे ढाई दिन की बादशाहत मिली थी। कोई छोटी मानसिकता वाला व्यक्ति थोड़े समय के लिए कोई महत्वपूर्ण पद मिल जाने पर इतराए तो लोग यह बोल कर उसे उसकी हैसियत याद दिलाते हैं। मुगल बादशाह हुमायूं के समय में भी ऐसा एक किस्सा हुआ था जब हुमायूं ने डूबने से बचाने की एवज़ में एक भिश्ती को एक दिन की बादशाहत दी थी। उस भिश्ती ने चमड़े के सिक्के चलवा दिए थे।

ढाक के वही तीन पात : ढाक के एक पत्ते में तीन पत्तियाँ होती हैं। आप कितना भी ढूँढिए सारे पेड़ में तीन पत्तियों की तिकड़ी ही मिलेंगी, किसी में चार या पांच पत्तियाँ नहीं मिलेंगी। काफ़ी प्रयास करने के बाद भी समस्या वहीँ की वहीँ रहे तो यह कहावत कही जाती है।

ढाक तले की फूहड़, महुए तले की सुघड़ : ढाक के पेड़ में न छाँव है न फल। उसके नीचे केवल मूर्ख स्त्री ही खड़ी होगी। महुए में छाँव भी है और फल भी इसलिए समझदार स्त्री उसी के नीचे खड़ी होगी।

ढाल तलवार सिरहाने और चूतड़ बन्दीखाने : कायर व्यक्ति के लिए। ढाल तलवार दिखाने के लिए रखी हुई है और खुद युद्ध भूमि में जाने की बजाए बन्दीखाने में बैठे हैं।

ढाल देख कर दौड़ने का मन करता है : यह एक मनुष्य की स्वभावगत कमजोरी है, जो कार्य आसानी से हो जाए उसे करने का सब का मन करता है।

ढीलों का भाग्य भी ढीला। : (राजस्थानी कहावत) जो लोग ढीले (अकर्मण्य) होते हैं, उनका भाग्य भी साथ नहीं देता।

ढुलमुल बेंट कुदारी और हँस के बोले नारी। : कुदाली की बेंट हिलती हुई हो और नारी हँस के बोले, इन दोनों से खतरा है।

ढोर को क्या पता कि खेत रिश्तेदारों का है : जानवर को जहाँ मौका मिलता है वह किसी भी खेत में घुस कर फसल खाना शुरू कर देता है, फिर वह खेत चाहे उसके मालिक के रिश्तेदार का ही क्यों न हो। कोई नासमझ आदमी अनजाने में ही अपने किसी आदमी को नुकसान पहुँचाए तो।

ढोर को समझाना आसान, मूर्ख को समझाना मुश्किल : एक बार को जानवर को समझाया जा सकता है पर मूर्ख व्यक्ति को समझाना बहुत कठिन है। (क्योंकि वह अपने को बहुत बुद्धिमान समझता है)।

ढोर मरे कूकुर हरषाय : जानवर के मरने पर कुत्ता खुश होता है क्योंकि उसे मांस हड्डी आदि मिलती है। किसी की विपत्ति में कोई दुष्ट व्यक्ति प्रसन्न हो या लाभ उठाए तो यह कहावत कही जाती है।

ढोल के भीतर पोल : ढोल देखने में कितना भी बड़ा हो अंदर से खोखला होता है। जब किसी चीज़ में आडम्बर बहुत हो पर वास्तविकता में वह कुछ भी न हो तो यह कहावत कही जाती है।

ढोल गले पड़ गया, बजाओ चाहे न बजाओ : कोई अनचाही जिम्मेदारी आ पड़ी है, अब यह आपके ऊपर है कि निभाएँ या मना कर दें।

ढोल में पोल है, बजे जितना बजा लो। भरोसा नहीं कब फूट जाए, इसलिए जब तक हो सके मौके का फायदा उठालो : जहाँ कोई सरकारी ठेकेदार अफसरों से मिलीभगत कर के घटिया निर्माण करा रहा हो वहाँ यह कहावत कही जा सकती है।

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