लोकोक्तियाँ एवं कहावतें

( प, फ, ब, भ, म )

( प )

पंखे से कोहरा नहीं छंटता : छोटे साधन से बहुत बड़ा कार्य सिद्ध नहीं किया जा सकता।

पंच कहें बिल्ली तो बिल्ली सही : पंचों की बात सब को माननी पड़ती है। किसी ने अपनी आँखों से देखा कि पडोसी के कुत्ते ने उसकी मुर्गी का शिकार किया, लेकिन यदि पंच कहते हैं कि जंगली बिल्ली ने किया है तो बिल्ली ने ही किया होगा।

पंच जहाँ परमेश्वर : कोर्ट कचहरी जा कर बर्बाद होने के मुकाबले यदि गाँव के लोग अपने बीच से ही पांच लोगों को पंच बना कर फैसला कर लें तो सभी का फायदा है। इसीलिए कहा गया है कि जहाँ आपसी समझ बूझ से झगड़े निबटाने की व्यवस्था है वहाँ परमेश्वर का वास है।

पंचों का कहना सर माथे, लेकिन परनाला यहीं गिरेगा : किन्हीं दो पड़ोसियों के बीच इस बात पर झगड़ा हो रहा है कि छत से आने वाला परनाला नीचे कहाँ खुलेगा। झगड़ा निबटाने के लिए पंचायत होती है और पंच कुछ फैसला देते हैं। लेकिन जो दबंग आदमी है वह कहता है कि मैं पंचों की बात जरूर मानूँगा लेकिन परनाला जहाँ मैं कह रहा हूँ वहीँ गिरेगा। किसी व्यक्ति द्वारा अपनी ही शर्त पर समझौता करने की जिद करना।

पंचों का जूता और मेरा सिर : अगर मेरी बात गलत साबित हो तो पंच जो सजा दें मैं मानने को तैयार हूँ।

पंज ऐब शरई : चोरी, व्यभिचार, शराब, जुआ और झूठ, इस्लाम  में ये पाँचों ऐब वर्जित हैं। किसी व्यक्ति में ये सारे ऐब हों और अपने को सच्चा मुसलमान बताता हो, उस के लिए व्यंग्य। शरई – शरिया को मानने वाला।

पंडित और मसालची दोनों उल्टी रीत, और दिखावें रोशनी आप अँधेरे बीच : मशालची औरों को रोशनी दिखाता है पर खुद अँधेरे में रहता है। पंडित औरों को ज्ञान देता है पर खुद उस पर अमल नहीं करता।

पंडित की कथा कोरी बांच ले तो पंडित को कौन पूछे : कोरी – बुनकर। कोरी यदि कथा सुना ले और पूजा करा ले तो पंडित को कौन पूछेगा। कम्पाउंडर अगर इलाज कर ले तो डॉक्टर को कौन पूछेगा।

पंडित केरा पोथड़ा ज्यों तीतर को ज्ञान, औरन सगुन बतात हैं, अपनों फंद न जान : तीतर का दिखाई पड़ना अच्छा शगुन माना जाता है, लेकिन तीतर को इस का ज्ञान नहीं होता। ऐसे ही पंडित अपने पोथे से औरों को मुहूर्त बताता है लेकिन अपने लिए मुहूर्त नहीं निकाल पाता।

पंडित जी गए दारू पीए तो भठिए में लग गई आग : (भोजपुरी कहावत)पंडित जी दारु पीने गए तो भट्ठी में ही आग लग गई। कलियुगी ब्राह्मणों का मजाक उड़ाने के लिए।

पंडित जी ने कौआ हग दिया : अफवाहों द्वारा बात का बतंगड बनना। एक पंडित जी जंगल में शौच के लिए गए और एक पेड़ के नीचे बैठ कर शौच करने लगे। पेड़ के ऊपर एक कौआ बैठा था। पंडित जी मलत्याग कर के उठे तभी संयोग से कौए का एक बड़ा सा पंख उन के मल पर आ कर गिर गया। पंडित जी की नज़र मल पर पड़ी तो उस में कौए का पंख दिखाई दिया। पंडित जी को यह वहम हो गया कि यह पंख उन के पेट से निकला है। घर आ कर उन्होंने पंडितानी को यह बात बताई। आधी अधूरी बात एक कामवाली के कानों में पड़ी। उसने किसी दूसरे को बताई, दूसरे ने तीसरे को बताई। उड़ते उड़ते यह बात फ़ैल गई कि पंडित जी ने कौआ हग दिया।

पंडित जी बैंगन वातल है, मुझे नहीं औरों को : पंडित लोग अपने फायदे के लिए उपदेशों को घुमा फिरा लेते हैं। एक पंडित जी बैंगन की बहुत सी बुराइयाँ बताया करते थे। किसी जजमान के घर गए तो वहाँ बढ़िया घी में तर बैंगन का भर्ता बना था। भोजन करने बैठे तो जजमान ने उन्हें भर्ता नहीं परोसा। कहा – पंडित जी बैंगन तो वायु करता है। पंडित जी बोले – मुझे नहीं औरों को।

पंडित बांचें पोथी लेखा, कबिरा बांचें आँखों देखा : पंडित तो पोथी में लिखा हुआ पढ़ कर ज्ञान की बात करते हैं लेकिन कबीरदास आँखों से देख कर और अनुभव द्वारा प्राप्त ज्ञान की बात करते हैं। सही बात यही है कि पोथियों में लिखे ज्ञान के मुकाबले धरातल का व्यवहारिक ज्ञान अधिक महत्वपूर्ण है।

पंडित भूलें तो राह कैसे मिले : मार्ग दिखाने वाला ही मार्ग भूल जाए तो रास्ता कैसे मिलेगा।

पंडित सोई जो गाल बजावा : गाल बजाना – अपनी प्रशंसा करना। जो पंडित अपने बारे में बढ़ चढ़ कर हांकता है, उसे ही लोग विद्वान समझते हैं।

पंडित, सूर, सुजानवर, रूपवती तिय जान, जहाँ जहाँ ये पग धरें, वहाँ वहाँ सम्मान : विद्वान व्यक्ति, शूरवीर, बुद्धिमान व्यक्ति और रूपवती स्त्री का हर जगह सम्मान होता है।

पंद्रह बुलाए आये बीस, घर के मिल कर हो गए तीस : घर के किसी आयोजन में थोड़े लोग बुलाओ तब भी बहुत लोग हो जाते हैं।

पंसेरी में पांच सेर की भूल : पंसेरी माने पांच सेर। पांच सेर तोलने में दो चार छटांक की भूल हो जाए तो माफ़ की जा सकती है, लेकिन अगर पांच सेर की भूल हो तो कोई कैसे मान जाएगा।

पंसेरी वाली भी दुह लेता है और पाव वाली भी : जो भ्रष्ट हाकिम अमीर गरीब सब से रिश्वत ले लेता हो। पंसेरी वाली – पांच सेर दूध देने वाली गाय, पाँव वाली – पाँव भर दूध देने वाली गाय।

पकाय सो खाय नहीं, खाय कोई और, दौड़े सो पाय नहीं, पाय कोई और : जिसने पकाया उसे नहीं मिला किसी और को खाने को मिला। जिसने दौड़ भाग की उसे नहीं किसी और को लाभ हो गया। जिसके भाग्य में कोई चीज़ नहीं होती वह उसे नहीं मिल सकती।

पके आम सुहावन, पके मर्द छिनावन : आम पक कर मीठा और आकर्षक हो जाता है जबकि पुरुष पक कर (वृद्ध हो कर) अप्रिय हो जाता है।

पक्का होना चाहे तो पक्के के संग खेल, कच्ची सरसों पेर के खली होय न तेल : अगर आप किसी काम में दक्ष होना चाहते हैं तो अनुभवी व्यक्ति के साथ काम कीजिए, कोई खेल सीखना चाहते हैं तो अनुभवी खिलाड़ी के साथ खेलिए। बात को समझाने के लिए सरसों का उदाहरण दिया गया है। सरसों पक जाए तभी उसको पेरने से तेल और खली मिलती है।

पक्के घड़े में जोड़ नहीं लगता : कच्चा घड़ा चटक जाए तो उस में जोड़ लगाया जा सकता है या टेढ़ा हो तो उसे सीधा किया जा सकता है लेकिन पक्के घड़े को न तो सीधा किया जा सकता है न ही उस में पैबंद लग सकता है। छोटे बच्चे के विचारों को प्रभावित किया जा सकता है, बड़े आदमी की मान्यताओं को नहीं।

पग पवित्र तीरथ गवन, कर पवित्र कछु दान, मुख पवित्र तब होत है, भज ले जब भगवान : पैर तभी पवित्र होते हैं जब आप उन से चल कर तीर्थ करने जाते हैं, हाथ दान देने से पवित्र होते हैं और मुख तब पवित्र होता है जब आप भगवान का नाम लेते हैं।

पग बिन कटे न पंथ : बिना पहला पग बढ़ाए रास्ता नहीं कटता है। अर्थात काम कितना भी बड़ा क्यों न हो जब तक आरम्भ ही न किया जाए, पूरा कैसे होगा।

पगड़ी की साख से घाघरी की साख ज्यादा प्यारी : जिसे अपने कुल की साख से पत्नी और ससुराल अधिक प्यारी हो।

पगड़ी गई ऐसी तैसी में, सिर तो बच गया : इज्जत चली गई तो क्या हुआ, जान तो बच गई। कुछ लोग इस के विपरीत सोचते हैं – सिर चला जाए, इज्ज़त नहीं जानी चाहिए।

पगड़ी दोनों हाथों से संभाली जाती है : बहुत मेहनत से इज्जत बचाई जाती है।

पगड़ी रख, घी चख :  घी चखने का अर्थ है मौज उड़ाना। 1. मौज उड़ाओ लेकिन पगड़ी सम्भाल कर (अपने सम्मान पर ठेस मत आने दो)। 2. सम्मान की परवाह मत करो, पगड़ी नीचे रखो और मौज उड़ाओ।

पगड़ी रहे या जाए, सर सलामत रहना चाहिए : जहां इज्जत बचाने के चक्कर में जान जा रही हो वहाँ कुछ लोग तो कहते हैं कि जान जाए पर इज्ज़त न जाए। कुछ लोग कहते हैं कि यदि जान बची रहे तो प्रतिष्ठा तो फिर भी प्राप्त की जा सकती है इस लिए पहले जान बचाओ।

पगले आग मत लगा देना, भली याद दिलाई : उल्टी खोपड़ी के आदमी से जिस काम के लिए मना करो वही करता है।

पगले सबसे पहले : 1. मूर्ख व्यक्ति भला बुरा विचार किये बिना हर काम में कूद पड़ता है। 2. कहीं भी कोई आयोजन हो रहा हो, उस में पगले लोगों को पहले पूछना चाहिए, क्योंकि वे रायता फैला सकते हैं।

पचै सो खाए, रुचै सो बोले : भोजन वही करना चाहिए जो आसानी से पच जाए। बोलना वही चाहिए जो सब को अच्छा लगे।

पछवा चले, खेती फले : खेती के लिए पछवा हवा (पश्चिम से आने वाली शुष्क हवा) लाभदायक होती है।

पछुआ हवा उसावे जोई, घाघ कहें घुन कबहु न होई : ओसाना – अनाज को हवा में उड़ा कर भूसी को अलग करना। पछवा हवा में अनाज को ओसाया जाए तो उसमें घुन नहीं होता।

पजामे का कोई जिकर नहीं : किसी व्यक्ति के घर उसका एक मित्र आया। मित्र को उस शहर में कुछ लोगों से मिलने जाना था लेकिन रास्ते में उसका पजामा कीचड़ से गंदा हो गया था। उस व्यक्ति ने नया पजामा मित्र को पहनने को दिया और दोनों लोग चल पड़े। रास्ते में उसे लगा कि मित्र का पजामा बहुत अच्छा लग रहा है जबकि उस का पजामा घटिया लग रहा है। जिन पहले सज्जन के घर ये लोग पहुँचे वहाँ उसने अपने मित्र का परिचय कराया कि ये मेरे मित्र फ़लाने फ़लाने हैं, अमुक शहर से आये हैं और ये जो पजामा पहने हैं ये मेरा है। मित्र ने बाहर निकल कर कहा, यार यह कहने की क्या जरूरत थी कि पजामा तुम्हारा है। दूसरे घर में गए तो वहाँ उन्होंने अपने मित्र का परिचय कराया और बोले कि जो पजामा ये पहने हैं ये इन्हीं का है। बाहर निकल कर मित्र ने फिर कहा कि यार यह अजीब बात है। यह कहने की क्या जरूरत है की पजामा मेरा है या तुम्हारा है। तीसरे घर में उन सज्जन ने मित्र का परिचय कराया और कहा कि ये पजामा न इनका है न मेरा है। मित्र बाहर निकल कर बहुत बिगड़े। बोले तुम पजामे का जिक्र ही क्यों करते हो। चौथे घर में उन्होंने मित्र का परिचय कराया कि ये श्री फलाने हैं, अमुक शहर से आए है और पजामे का कोई जिकर नहीं।

पटको तुम, मूछें हम उखाड़ें : पुराने जमाने में मूंछें उखाड़ना किसी का सब से बड़ा अपमान माना जाता था। जानी दुश्मनों के साथ ही ऐसा बर्ताव किया जाता था। कोई चतुर व्यक्ति अपने साथ वालों को उकसा रहा है कि तुम फलाने को पटक दो तो हम उस की मूँछ उखाड़ देंगे। किसी को खतरनाक काम के लिए उकसाना और खुद उस का श्रेय लेना।

पट्ठों की जान गई, पहलवान का दांव ठहरा : पहलवान अपने चेलों और चमचों पर अपने दांव आजमाते हैं, उसी पर कहावत।

पठान का पूत, घड़ी में औलिया, घड़ी में भूत : पठान का व्यवहार बड़ा विचित्र और अनुमान से परे होता है। वह कभी कुछ हो जाता है कभी कुछ।

पठानों ने गाँव मारा, जुलाहों की चढ़ बनी : बहादुर लोग कोई वीरतापूर्ण काम करते हैं और कायर लोग उसका फायदा उठाते हैं।

पड़वा पाठ भुलावे, छोरों को खिलावे : पुराने समय की मान्यता है कि पड़वा के दिन पढ़ाई करने से विद्यार्थी पाठ भूल जाता है। कुछ लोग केवल दीपावली की पड़वा के लिए ही ऐसा कहते हैं।

पड़िया के साथ भैंस मुफ्त : आम तौर पर किसी बड़ी चीज़ के साथ छोटी चीज मुफ्त मिलती है। जहाँ छोटे लाभ के साथ बड़ा लाभ स्वत: ही हो रहा हो वहाँ यह कहावत कही जाती है। भोजपुरी में इस कहावत को इस प्रकार कहते हैं – पड़िया मोल भैंस सुगौना।

पड़ी लकड़ी कौन उठाए : व्यर्थ की मुसीबत कौन मोल ले।

पड़ोसी के घर में बरसेगा तो बौछार यहाँ भी आयेगी : पड़ोसी की तरक्की से जलने के स्थान पर यह सोचना चाहिए कि पड़ोसी के घर समृद्धि आएगी तो हमें भी कुछ न कुछ लाभ होगा।

पडोसी से प्रेम रखो, पर बीच की दीवार न तोड़ो : पड़ोसियों से सद्भाव बना कर रखना चाहिए और उनके सुख दुःख में सम्मिलित भी होना चाहिए लेकिन थोड़ी दूरी भी बना कर रखना चाहिए।

पढ़ा लिखा जाट, सोलह दूनी आठ : पहले के जमाने में जाट लोगों में खेती का चलन ज्यादा था, पढ़ाई लिखाई का कम। इसी बात को लेकर लोगों ने उनका मजाक उड़ाने की कोशिश की है। व्यवहारिक रूप में इस कहावत का प्रयोग केवल जाटों के लिए नहीं करते हैं। कोई भी पढ़ा लिखा व्यक्ति यदि बचकाना और बेवकूफी की बात कर रहा हो तो यह कहावत कही जा सकती है।

पढ़ि पढ़ि के पत्थर भया लिख लिख भया ज्यूँ ईंट, कहें कबीरा प्रेम की लगी न एको छींट : पढ़ लिख कर यदि मनुष्य ईंट पत्थर जैसा निर्बुद्धि बन जाए,  तो ऐसे ज्ञान का क्या लाभ।

पढ़े घर की पढ़ी बिल्ली : जिस खानदान में कुछ लोग पढ़ लिख जाते हैं उस घर के सभी लोग अपने को बहुत काबिल समझने लगते हैं। उनका मज़ाक उड़ाने के लिए।

पढ़े तो हैं गुने नहीं : गुनना – व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त करना। पढ़ा पर गुना नहीं हो तो किस काम का। किसी राज पुरोहित का बेटा काशी से पढ़ कर आया। राजा ने उस की योग्यता की परीक्षा लेने के लिए पूछा, बताओ मेरी मुट्ठी में क्या है। उसने अपनी विद्या के बल पर बताया, कोई सफ़ेद पत्थर की गोल चीज़ है जिसके बीच में छेद है। राजा ने कहा, क्या हो सकता है? वह बहुत देर तक सोचता रहा कि इस तरह की गोल चीज़ क्या हो सकती है, फिर बोला – आपके हाथ में चक्की का पाट होगा। राजा हँस पड़ा। उस ने मुट्ठी खोली, उस में एक मोती था।

पढ़े तोता पढ़े मैना, कहीं सिपाही का पूत भी पढ़ा है : एक बार को तोता और मैना पढ़ सकते हैं पर सिपाही का बेटा नहीं पढ़ के देता (वह रिश्वत की कमाई से बिगड़ जाता है और अपने पिता की ताकत के नशे में चूर रहता है)।

पढ़े न लिखे, नाम विद्यासागर : गुण के विपरीत नाम।

पढ़े फारसी बेचें तेल, ये देखो कुदरत का खेल : पहले जमाने में सामान्य लोग उर्दू पढ़ते थे। जिनको ज्यादा पढ़ना होता था वे उसके बाद फारसी पढ़ते थे। मतलब यह कि फारसी एक प्रकार की उच्च शिक्षा थी। फारसी पढ़ने के बाद लोगों को नौकरी इत्यादि मिल जाया करती थी। अब यदि कोई किस्मत का मारा फारसी पढ़ने के बाद भी तेल बेच रहा हो तो यह कहावत कही जाएगी। अर्थ है कि कोई उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति बदकिस्मती से बहुत छोटा मोटा काम करने पर मजबूर है।

पढ़े वेद, जोते खेत : उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद कोई छोटा मोटा काम करना।

पढ़े से विद्या, किए से खेती : जिस प्रकार किसी दूसरे के पढ़ने से हमें विद्या नहीं आ सकती (अपने आप पढ़ने से ही आएगी) उसी प्रकार किसी दूसरे के करने से खेती नहीं हो सकती।

पढे सो पंडित होय : जो पढ़े लिखेगा वही विद्वान बनेगा।

पढों में अनपढ़, जैसे हंसों में कौवा : बहुत से शिक्षित व्यक्तियों के बीच में एक अनपढ़ व्यक्ति वैसा ही है जैसे हंसों के बीच में कौवा।

पतली देह अन्न की खान : जो आदमी दुबला पतला हो पर खाता अधिक हो।

पति तो पूजे देव को, भूतन पूजे जोय, एकै घर में दो मता, कुसल कहाँ से होय : पति देवता की पूजा करता है और पत्नी भूतों की। जब पति पत्नी दोनों के मत और विश्वास एक दूसरे से एकदम उल्टे हों तो उन में नहीं निभ सकती।

पति भूखा तो माथा दूखे, अपनी भूखों चूल्हा फूंके : उन कामचोर स्त्रियों के लिए जो पति का काम करने में बहाने बनाएँ और अपना स्वार्थ पूरा करती रहें। माथा दूखे – सर में दर्द।

पतिबरता भूखी मरे, पेड़े खाए छिनार : पतिव्रता स्त्री भूखी मरती है और चरित्रहीन स्त्रियों को पेड़े खाने को मिलते हैं। ईमानदार आदमी को रोटी मिलना मुश्किल है और धूर्त लोग मजे मार रहे हैं।

पतीली न जाने खाने का स्वाद : पतीली सब के लिए खाना बनाती है पर स्वयं उस का स्वाद नहीं ले सकती। मेहनतकश लोग सुख सुविधा के सारे साधन बनाते हैं पर स्वयं उन का आनंद नहीं ले पाते हैं।

पतुरिया का डेरा, जैसे ठगों का घेरा : पतुरिया – चरित्रहीन स्त्री। ऐसी स्त्री अपने मोहजाल में फंसा कर व्यक्ति का धन सम्मान सब ठग लेती है।

पतुरिया रूठी, धरम बचा : चरित्रहीन स्त्री अगर आपसे रूठ जाए तो यह समझो कि आपका धर्म बच गया (क्योंकि उसके चक्कर में पड़ कर तो धर्म भ्रष्ट होना ही था)।

पत्ता खटका, बंदा सटका : डरपोक लोगों के लिए जो पत्ता खड़कने की आवाज सुन कर ही सरक लेते हैं।

पत्ता खड़कल बाभन हड़कल : (भोजपुरी कहावत) ब्राह्मण इतने डरपोक होते हैं कि पता खड़कने से भी डर जाते हैं।

पत्थर को जोंक नहीं लगती : किसी भी समाज में मुफ्तखोर लोग जोंक के समान होते हैं जो कि समाज के अन्य लोगों का खून चूसते हैं। ये आपसे हर समय कुछ न कुछ सहायता मांगते रहते हैं और अगर आप मना करते हैं तो उलटे आपको ही पत्थर दिल कहते हैं। ऐसे लोगों से निबटने के लिए पत्थर दिल बनना ही अच्छा रहता है।

पत्थर नीचे हाथ दबे, तो चतुराई से काढ़े : किसी बड़ी मुसीबत में फंसने पर बहुत होशियारी से उससे निकलने की कोशिश करना चाहिए।

पत्थर से पत्थर टकराता है तो चिंगारियां निकलती हैं : जब दो विकट योद्धा लड़ते हैं तो लड़ाई भीषण होती है।

पर उपदेश कुशल बहुतेरे, (जे आँचरन्हि ते नर न घनेरे) : दूसरों को उपदेश देना बहुत आसान है। ऐसे लोग बहुत कम होते हैं जो स्वयं उन बातों पर अमल करें। अधिकतर इस कहावत का प्रथम भाग ही बोला जाता है।

पर घर कूदें मूसरचंद : जो बिना निमन्त्रण किसी के घर जाएं या बिना सहायता मांगे सहायता करने पहुँच जाएँ।

पर घर नाचें तीन जन, कायस्थ, बैद, दलाल : कायस्थ (कचहरी में काम करने वाले पेशकार व अन्य मुलाजिम), वैद्य और दलाल ये दूसरों के धन पर ऐश करते हैं।

पर धन बांधे मूरखचंद। (पर धन राखें मूरखचंद) : पराई धरोहर की चौकीदारी करना मूर्खता का काम है। इससे आप को लाभ तो कुछ नहीं होता, उलटे खतरा और होता है।

पर नारी पैनी छुरी, मत कोई लावो संग, दसों सीस रावन के ढह गए, पर नारी के संग : पराई स्त्री पैनी छुरी की भाँति खतरनाक है। पराई स्त्री का अपहरण करने के कारण रावण के दसों सर कट गए।

परखना हो किसी को तो उस के यार देख लो :  यदि किसी व्यक्ति की सच्चाई जाननी हो तो यह मालूम करो कि उसके मित्र किस बौद्धिक और सामाजिक स्तर के हैं। इंग्लिश में इस आशय की एक कहावत है – Man is known by the company he keeps.

परजा जड़ है राज की, राजा है ज्यों रूख, रूख सूख कर गिर पड़े, जब जड़ जावे सूख : राजा को यह नहीं भूलना चाहिए कि यदि वह पेड़ के समान है तो प्रजा उसकी जड़ है। यदि प्रजा कष्ट में रहेगी तो राजा का उसी प्रकार नाश हो जाएगा जैसे जड़ सूख जाने से पेड़ सूख जाता है।

परजा भागे छोड़ कर कुन्यायी का गाम, चहूँ ओर जग में करे फेर उसे बदनाम : अन्यायी राजा के राज्य को लोग छोड़ कर भागने लगते हैं और उसे बदनाम करते हैं।

परदे की बीवी और चटाई का लहंगा : किसी कुलीन महिला द्वारा सस्ता और फूहड़ता से भरा पहनावा धारण करना।

परदेशी की प्रीत, फ़ूस का तापना : फूस में आग लगाते ही वह एकदम से जल उठता है और बहुत कम समय में खत्म हो जाता है। परदेसी आदमी की प्रीत भी इसी प्रकार अल्प कालिक होती है।

परदेस कलेस नरेसन को : राजा और बड़े हाकिम दूसरे देश में परेशान रहते हैं क्योंकि उन की पूछ अपने देश में ही होती है।

परदेस में पैसे पेड़ों पर नहीं लगते : जो लोग यह समझते हैं कि विदेश में बहुत कमाई है उन को सीख देने के लिए।

पर नारी पैनी छुरी, तीन ओर से खाय, धन छीजे, जोवन हरे, पत पंचों में जाय : पराई नारी से आसक्ति पैनी छुरी से खेलने के समान है। उससे धन और यौवन का ह्रास होता है और पंचों (समाज के प्रतिष्ठित लोगों) के बीच प्रतिष्ठा जाती है। कुछ लोग इस के आगे भी बोलते हैं – जीवत काढ़े कलेजा, अंत नरक ले जाय।

परमात्मा गंजे को नाखून न दे : अगर गंजे के नाखून होंगे तो वह खुजा खुजा कर अपनी खोपड़ी लहूलुहान कर लेगा। (विस्तृत विवरण के लिए देखिए कहावत – खुदा ने गंजे को नाखून नहीं दिए)।

परवत पर खोदे कुआँ कैसे निकसे तोय : पर्वत पर कुआँ खोदने पर पानी नहीं मिल सकता। गलत स्थान पर उद्यम करना व्यर्थ जाता है।

परसी थाली देख कर मत चूको बेईमान : बेईमान व्यक्ति बेईमानी करने का कोई मौका नहीं चूकता, ख़ास तौर पर अगर पकी पकाई मिल रही हो तो।

परहथ बनिज संदेसे खेती, बिन वर देखे ब्याहें बेटी, द्वार पराए गाड़ें थाती, ये चारों मिल पीटें छाती : दूसरे के हाथों व्यापार करने वाला, संदेश भेज कर खेती कराने वाला, बिना वर को देखे कन्या का विवाह करने वाला और दूसरे के घर के बाहर अपना धन गाड़ने वाला, ये चारों लोग छाती पीटते हैं।

परहित सरिस धर्म नहिं भाई : परोपकार के समान उत्तम कोई दूसरा धर्म नहीं है। व्यवहार में इतनी ही कहावत बोली जाती है। इसके आगे की पंक्ति इस प्रकार है – पर पीड़ा सम नहिं अधमाई।

पराई आसा, नित उपवासा : दूसरों के भरोसे रहोगे तो भूखों मरोगे।

पराई नौकरी सांप खिलाने के बराबर है : दूसरे की नौकरी में बहुत खतरे हैं (सब से बड़ा खतरा तो नौकरी जाने का ही है)। इसके अलावा कोई भी अनहोनी हो तो उसका ठीकरा नौकर के सर पर ही फोड़ा जाता है।

पराई पत्तल का भात मीठा : मनुष्य को हमेशा यह प्रतीत होता है कि दूसरे लोग उससे अधिक सुखी हैं।

पराई बदशगुनी के वास्ते अपनी नाक कटाई : कुछ लोग इतने नीच प्रवृत्ति के होते हैं कि हमेशा दूसरों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करते हैं चाहे उस प्रयास में अपना नुकसान क्यों न हो जाए।

पराई हंसी गुड़ से भी मीठी : दूसरा व्यक्ति यदि प्रसन्न दिखाई देता है तो हम सोचते हैं कि वह बहुत सुखी है (चाहे वास्तविकता इससे भिन्न हो)।

पराए घर में नौ खाटों पर कमर सीधी होती है (दूसरों के घर चार खाटों पर कमर खुले) : अपने घर पर आदमी चाहे कैसे भी काम चला ले, दूसरे के घर जाता है तो उसे अतिरिक्त सुविधाएं चाहिए होती हैं.

पराए दुःख में दुखी होने वाले कम, पराए सुख में दुखी होने वाले ज्यादा मिलते हैं : किसी दूसरे के दुःख को बहुत कम लोग महसूस करते हैं और ज्यादातर लोग दूसरों को सुखी देख कर दुखी होते हैं।

पराए धन पर धींगर नाचे : मुस्टंडे लोग दूसरों के धन पर मौज करते हैं।

पराए धन पर लक्ष्मी नारायण : दूसरों का धन बांट कर अपने को बड़ा दानी सिद्ध करना।

पराए पीर को मलीदा, घर के देव को धतूरा : दूसरों के लिए पूजनीय किसी व्यक्ति का सम्मान करना और अपने देवताओं का अपमान करना।

पराए पूत किसको कमा कर देते हैं : किसी दूसरे को कमा कर देना कोई नहीं चाहता।

पराए पूतन सपूती होए : दूसरे की संपत्ति से अपने को धनवान समझने की मूर्खता। पराए पूतन – दूसरे के पुत्रों से, सपूती – पुत्रवती।

पराए भरोसे खेला जुआ, आज न मुआ कल मुआ : दूसरे पर विश्वास कर के जुआ खेलने वाला बर्बाद हो जाता है। पैसा उधार ले कर जुआ खेलने से भी मतलब हो सकता है।

पराए माथे पर सिल फोड़े : अपना गुस्सा दूसरों पर निकालना।

पराधीन दोनों सदा, जग में बेटी बैल : बेटी सदा दूसरों के आधीन रहती है, पहले पिता के घर में और फिर ससुराल में। इसी प्रकार बैल भी अपनी जीविका के लिए दूसरों के आधीन होता है। ये दोनों ही अपनी मर्जी से कुछ नहीं कर सकते।

पराधीन सपनेहूँ सुख नाहिं : दूसरे की गुलामी करने वाले को कभी सुख नहीं मिल सकता (सपने में भी नहीं)।

पराया खाइए गा बजा, अपना खाइए सांकल लगा : सांकल लगा कर कोई काम करने का अर्थ है घर के दरवाजे की कुंडी बंद कर के अर्थात बिना किसी को बताए। किसी दूसरे की दी हुई चीज़ खा कर खूब प्रशंसा कीजिए पर अपने घर में क्या खाते हैं यह किसी को नहीं बताना चाहिए।

पराया धर थूकने में भी डर, अपना घर हग जी भर : पराए घर में कोई भी काम डर डर कर करना पड़ता है, अपने घर में कोई भी काम हो और कैसा भी काम हो पूरी आज़ादी रहती है।

पराया माल, जी का जंजाल : किसी दूसरे का कोई कीमती सामान अपने घर में रखना बहुत झंझट का काम है। उसकी बहुत चौकीदारी करनी पड़ती है और यदि खो जाए तो बहुत लानत मलानत होती है।

पराया माल, पूंछ का बाल : दूसरे की सम्पत्ति को उतना ही तुच्छ समझना चाहिए जितना किसी पशु की पूंछ का बाल। संस्कृत साहित्य में भी ‘परद्रव्येषु लोष्टवत्’ समझने की सीख दी गई है।

परिवर्तन संसार का नियम है : संसार में हर वस्तु परिवर्तन शील है, कुछ भी स्थायी नहीं है। इंग्लिश में कहावत है – Change is the law of nature.

पर्दा रहे तो पुन्य, खुल जाए तो पाप : ऐसे दिखावटी पुण्यात्मा लोगों के लिए जो परदे के पीछे पाप करते हैं। (जैसे आजकल के बहुत से ढोंगी धर्मगुरु)।

पल का चूका कोसों दूर : मौके पर जरा सी चूक हो जाने पर आदमी अपने लक्ष्य से बहुत दूर भटक सकता है। (जैसे आजकल वन वे ट्रैफिक में होता है, एक कट छूटा और मीलों का चक्कर)।

पल पखवाड़ा, घड़ी महीना, चार घड़ी का साल, करजदार जब कल कहे तो ताको कौन हवाल : कर्जदार पैसा वापस करने की मियाद को टालता रहता है। वह एक पल कहता है तो पखवाड़ा निकाल देता है, एक घड़ी कह कर महीना बिता देता है और चार घड़ी कह कर साल निकाल देता है। अगर वह एक साल कह रहा है तब तो न जाने कभी देगा भी या नहीं।

पल्ले में रुपया हो तो जंगल में मंगल : जिसके पास धन है वह कहीं भी उत्सव मना सकता है.

पशु का सताना, निरा पाप कमाना : बेजुबान पशुओं को सताने से बहुत पाप लगता है।

पसु पच्छी हू जानिहैं अपनी अपनी पीर : अपनी अपनी पीड़ा को पशु पक्षी भी जानते हैं।

पहने ओढ़े नारी, लीपे पोते घर : स्त्री पहन ओढ़ कर अच्छी लगती है और घर लीपने पोतेने के बाद।

पहलवानी पचाय की, रईसी बचाय की : पहलवान वही बन सकता है जो अच्छी खुराक खाए और उसे पचा ले, धनवान वही बन सकता है जो अपनी कमाई में से बचत करे।

पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख घर में हो माया, तीजा सुख पतिव्रता नारी, चौथा सुख सुत आज्ञाकारी : किसी भी मनुष्य के लिए चार सुख सबसे बड़े माने गए हैं – पहला स्वस्थ शरीर, दूसरा सुख घर में धन संपदा, तीसरा सुख पतिव्रता पत्नी और चौथा सुख आज्ञाकारी पुत्र। इन के ऊपर तीन सुख और बताए गए हैं – पांचवां सुख राज सम्माना, छटवां सुख कुटुम्बी नाना, सातवाँ सुख धरम रति होई, तासे स्वर्ग धरनि पर होई।

पहला सुख निरोगी काया : संसार में भांति भांति के सुख माने गए हैं पर सब से बड़ा सुख है स्वस्थ शरीर (क्योंकि स्वस्थ शरीर के बिना आप अन्य सभी सुखों का उपभोग नहीं कर सकते)।

पहले अपना आगा ढंको, पीछे किसी को नसीहत करो : पहले अपने अंदर जो कमियाँ हों उन्हें छिपाओ या दूर करो, फिर किसी को उपदेश दो।

पहले आत्मा, फिर परमात्मा : पहले जीविका का प्रबंध करो, फिर भगवान की भक्ति करना संभव हो पाएगी।

पहले आप पहले आप में गाड़ी छूटी : दो तकल्लुफी लोग गाड़ी पकड़ने के लिए गए। दोनों एक दूसरे से आग्रह करते रहे कि पहले आप चढ़ें। इसी औपचारिकता में गाड़ी छूट गई।

पहले आप, फिर बाप : आजकल की संतानें अपना पेट भरने के बाद ही माँ बाप के विषय में सोचती हैं।

पहले गस्से में मक्खी (पहले गस्से में बाल) : किसी कार्य के आरंभ में ही कोई अनर्थ हो जाए तो। मूलत: यह संस्कृत की कहावत है – प्रथम ग्रासे मक्षिका पात।

पहले चारा भितर, फिर देवता पितर : इंसान पहले खाने की चिंता करता है उसके बाद उसे देवता और पितृ याद आते हैं।

पहले चुम्मे गाल काटा : आरंभ में ही धोखा दे दिया। चुम्मा – चुम्बन।

पहले ढोर चराते थे अब कान काटते हैं : बहुत मामूली व्यक्ति यदि किसी महत्वपूर्ण और प्रभावी पद पर पहुँच जाए तो (जैसे कुछ क्षेत्रीय राजनीति करने वाले शातिर नेता)।

पहले तो वह रीझ थी, अब क्यों ऐसी खीज : स्त्रियाँ अक्सर अपने पतियों से पूछती हैं कि पहले तुम्हें इतना प्रेम था कि तुम हर बात पर रीझ जाते थे, अब क्यों इतना खीजते हो।

पहले तोलो, पीछे बोलो : कोई बात बोलने से पहले उस पर मनन अवश्य कर लेना चाहिए।

पहले दही जमाय के पीछे कीन्ही गाय : दही जमाने का इंतजाम करने के बाद गाय पाल रहे हैं। बिना योजना के काम करना।

पहले नेग, पीछे गीत : विवाह आदि में जो लोग मंगल गीत आदि गाते हैं उन्हें विवाह के बाद नेग (रुपये, अनाज, कपड़े आदि) दिया जाता है। यदि कोई पहले नेग लेने की बात कहे तो यह उल्टी बात हुई।

पहले पहरे हर कोई जागे, दूजे पहरे भोगी, पहर तीसरे चोर जागे, चौथे पहर जोगी : रात्रि के चार प्रहर के बारे में बताया गया है, पहले प्रहर हर कोई जागता है, दूसरे प्रहर में भोगी लोग जाग कर भोग का आनंद उठाते हैं, तीसरे प्रहर सब गहरी नींद सोते हैं इसलिए चोर जाग कर चोरी करते हैं। चौथे प्रहर में योगी लोग जाग कर ध्यान और पूजन करते हैं।

पहले पहुंचे, मन भर खाए : दावत में जो पहले पहुँचता है उसे हमेशा लाभ होता है। इंग्लिश में कहते हैं -Early bird catches the worm। या First come first served.

पहले पिए जोगी, बीच में भोगी, पीछे रोगी : योगी लोग खाना खाने के पहले पानी पीते हैं और भोगी लोग बीच में। जो खाने के बाद पानी पीते हैं वे सदैव रोगी रहते हैं।

पहले पेट पूजा, फिर काम दूजा : बिना पेट भरे कोई काम ठीक से नहीं हो सकता।

पहले बो, पहले काट : खेती में जो पहले बोता है वह पहले फसल भी काटता है। पहले काम करने वाला हमेशा लाभ में रहता है।

पहले भात खवाय के पीछे मारी लात : पहले दिखावटी प्रेम दिखा के फिर अपमान करना।

पहले भोजन फिर स्नान, फिर टट्टी फिर सालिगराम : कायदे से हम पहले शौचादि से निवृत्त हो कर स्नान करते हैं, फिर भगवान की पूजा करते हैं और बाद में भोजन करते हैं। कहावत में आजकल की पीढ़ियों का जिक्र है जो सब काम उलटे करती हैं।

पहले मार पीछे संवार : मौका मिलने पर पहले ठुकाई कर दो और बाद में बात को संभाल लो।

पहले लिख ले पीछे दे, भूल पड़े कागज़ सूँ ले : किसी को रुपया पैसा या कोई चीज़ उधार देनी हो तो पहले लिख कर रखो उसके बाद दो। कभी भूल पड़े (आप स्वयं भूल जाओ या लेने वाला आनाकानी करे) तो यही लिखा हुआ काम आता है।

पहलो मूरख फांदे कुआँ, दूजो मूरख खेले जुआ, तीजो मूरख बहन घर भाई, चौथो मूरख घर जमाई : महा मूर्खों के चार प्रकार बताए गए हैं – पहला वह जो कुआँ फांदे (जरा सी चूक हुई और कुएँ में गया), दूसरा वह जो जुआ खेले (बर्बादी का पूरा प्रबंध), तीसरा वह जो विवाहित बहन के घर स्थायी रूप से रहे (उसकी कोई इज्ज़त नहीं होती) और चौथा वह जो घर जमाई बन कर ससुराल में रहे (घरेलू नौकर से भी बुरा हाल होता है)।

पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी पहाड़ के काम नहीं आते : पहाड़ का पानी नीचे को बह जाता है और पहाड़ी युवक काम की तलाश में मैदानी इलाकों में चले जाते हैं।

पहाड़ दूर से ही सुहाने लगते हैं : जो लोग पहाड़ पर नहीं रहते उन्हें पहाड़ों पर जाना और घूमना बहुत अच्छा लगता है, पर जो लोग वहाँ रहते हैं उन्हें मालूम है कि पहाड़ का जीवन कितना कठिन है।

पहाड़ भले ही टले फ़क़ीर न टले : भिखारी आसानी से नहीं हटता, कुछ ले कर ही टलता है।

पहाड़ों से छाया नहीं होती : कहने को पहाड़ इतने बड़े होते हैं पर आप चाहें कि उन की छाया में खड़े हो जाएँ तो यह नहीं हो सकता। जो बड़ा आदमी किसी के काम न आता हो उस पर व्यंग्य।

पहिला गाहक, परमेसुर बराबर : दुकानदार प्रत्येक दिन के अपने पहले ग्राहक को बहुत शुभ मानते है।

पहिले जागे पहिले सोवे, जो वह चाहे वाही होवे : जो पहले सोता है और पहले जागता है वह सदैव सफल होता है। इंग्लिश में कहावत है – Early to bed and early to rise, makes a man healthy wealthy and wise.

पहिले दिन पहुना, दूसरे दिन ठेहुना, तीसरे दिन केहुना। इंग्लिश में कहावत है –Fish and guest, smell in three days.

पहिले भात, पीछे बात : पहले पेट भरेगा तभी कुछ बात समझ में आएगी।

पाँच पंच मिल कीजे काजा, हारे-जीते कुछ नहीं लाजा : बहुत से लोग मिल कर कोई काम करते हैं तो हानि लाभ की जिम्मेदारी किसी की नहीं होती।

पाँच पहर धंधे गया, तीन पहर गया सोय, एक पहर हरिनाम बिन, मुक्ति कैसे होय : दिन रात मिला कर आठ पहर (प्रहर) होते हैं। इन में से पांच पहर धंधे पानी में लगा दिए और तीन पहर सो गया। कुछ समय निकाल कर एक पहर तो अच्छे कामों में लगा, वरना मुक्ति कैसे होगी।

पाँच भाई पाँच ठौर, मौका पड़े तो एक ठौर : आजकल के युग में सब भाइयों का एक ही घर में रहना तो संभव नहीं है पर समझदारी इस में है कि वे अलग अलग रहते हुए आवश्यकता होने पर एकजुट हो जाएं।

पाँच महीने ब्याह के बीते, पेट कहाँ से लाई : गर्भवती स्त्रियों का पेट छह माह के गर्भ के बाद बाहर निकला दिखाई देता है। किसी स्त्री के विवाह को पाँच महीने ही हुए हैं और उस का पेट निकला दिखाई दे रहा है तो अन्य स्त्रियाँ उस से पूछ रही हैं। किसी को नौकरी करते हुए साल दो साल ही हुआ हो और वह बहुत पैसा इकठ्ठा कर ले मजाक में यह कहावत कही जा सकती है।

पाँच साल की बाला का बेटा बारह साल का : असम्भव और हास्यास्पद बात।

पाँचों उँगलियों से पाहुंचा भारी : एकता में शक्ति है।

पाँचों उंगलियाँ एक सी नहीं होतीं : किसी घर में या समाज में सभी व्यक्ति एक से नहीं होते।

पाँचों पांडव छठे नारायण : 1. जो समूह भगवान् की प्रेरणा से कार्य करे। 2. व्यंग्य में – ये पांच पांडव क्या कम थे जो इन के गुरु घंटाल छठे नारायण और आ गए।

पांच कोस प्यादा रुके, दस कोस असवार, या तो नार कुभार्या, या नामर्द भतार : कहीं बाहर से घर लौट कर आने वाला व्यक्ति घर पहुँचने के लिए बहुत उतावला होता है। लेकिन अगर पैदल चल कर घर लौटने वाला व्यक्ति (प्यादा) शाम होने के कारण घर से पांच कोस पहले ही रुक जाए, और घोड़े पर सवार हो कर आने वाला यदि दस कोस पहले रुक जाए तो इसका अर्थ यह है कि या तो पत्नी में या पति में कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है।

पांच में तीन उठाऊं और दो में हिस्सा लूँ : कोई व्यक्ति हिस्से बांटे में दबंगई कर के ज्यादा हिस्सा हड़पना चाहता हो तो यह कहावत कही जाती है।

पांच रुपया शंकर और पच्चीस रूपये नंदी को : उलटी बात। कोई बड़े अफसर को कम रिश्वत दे और उसके मातहत को बहुत अधिक तो यह कहावत कही जाएगी।

पांचो उँगलियाँ घी में : अत्यधिक लाभ की स्थिति। घी के डब्बे में से कम घी निकालने के लिए एक उंगली से घी निकाला जाता है। अगर कोई पाँचों उंगलियाँ डाल कर घी निकाल रहा हो तो इसका मतलब हुआ कि वह बहुत सम्पन्न है। किसी की सम्पन्नता देख कर कोई व्यक्ति ईर्ष्यावश उस से कहता है कि भई तुम्हारी तो पाँचों उँगलियाँ घी में हैं, तो वह जवाब में कहता है – हाँ भई पाँचों उँगलियाँ घी में, सर कढ़ाई में और पैर चूल्हे में हैं (क्योंकि कि उसे धन कमाने के लिए बहुत कष्ट उठाने पड़ते हैं)।

पांड़े के घर की बिल्ली भी भगतिन : 1. घर के संस्कारों का असर सभी सदस्यों पर पड़ता है। 2. कपटी पंडित और उसके धूर्त चेलों पर व्यंग्य।

पांडे जी पछताएंगे, वोई चने की खाएंगे (सूखे चने चबाएंगे) : कहावत इस आशय में कही जाती है किशुरू में आप कितने भी नखरे करें अंत में मजबूर हो कर आप को यही काम करना पड़ेगा।

पांत में दो भांत कैसी : भोजन करने के लिए पंगत बैठी है तो दो तरह की पंगत क्यों बनाई गई हैं? ऊँच नीच और जात पांत का विरोध करने के लिए।

पांत, कचहरी, रेल में सबसे पहले जाए, जो न माने बात यह सो पाछे पछताए : पांत – पंगत (भोज)। खाने की दावत, कचहरी के काम और रेल में चढ़ने के लिए सबसे पहले जाना चाहिए।

पाऊँ तो रस लाऊँ, नाहीं तो घर-घर आगी लगाऊँ : फलां चीज़ मुझे मिल जाएगी तो खुश होऊंगा, नहीं मिलेगी तो घर घर आग लगाऊंगा।

पाक रह, बेबाक रह : पाप से दूर रह कर पवित्र मन से काम कीजिए तो आप निडर हो कर काम कर सकते हैं।

पके आम का क्या ठीक, कब टपक जाए :  अधिक वृद्ध और बीमार लोगों के लिए ऐसे बोलते हैं।

पागल और सांड के लिए रास्ता छोड़ देना चाहिए : कहावत के द्वारा यह सीख दी गई है कि पागल और सांड से नहीं उलझना चाहिए।

पादें कम कांखें ज्यादा (हगें कम, कांखें ज्यादा) :  जो लोग काम कम करते हैं शोर ज्यादा मचाते हैं। कांखना – जोर लगाना।

पान पीक सोहे अधर, काजर नैनन जोग : पान की पीक होठों पर ही अच्छी लगती है और काजल आँखों में ही। हर वस्तु अपनी जगह पर ही अच्छी लगती है।

पान सड़ा क्यों, घोड़ा अड़ा क्यों, फेरा न था : (यह अमीर खुसरो की एक विशेष प्रकार की पहेली नुमा कहावत है जिसमें दो प्रश्नों का एक ही उत्तर होता है)। पान को लम्बे समय तक रखना हो तो उसे बार बार उलट पलट कर रखना होता है। इसे पान को फेरना कहते हैं। घोड़े की थकान दूर करने के लिए मिटटी का बना एक खुरदुरा खरहरा घोड़े के ऊपर फेरा जाता है, इससे घोड़े को बड़ा आराम मिलता है।

पान सड़े, घोड़ो अड़े, विद्या बीसर जाए, रोटी जले अंगार पर, कहु चेला किन दाय, गुरु जी फेरा न था : ऊपर वाली कहावत में दो बातें और जोड़ दी गई हैं – विद्या क्यों बिसरी (भूली), क्योंकि फेरी नहीं थी (दोबारा नहीं पढ़ी) और रोटी क्यों जली। क्योंकि एक तरफ सिकने के बाद फेरी (पलटी) नहीं थी।

पानी केरा बुदबुदा, अस मानस की जात, देखत ही छिप जाएगा, ज्यों तारा परभात : मनुष्य देह पानी के बुलबुले के समान क्षण भंगुर है।

पानी था सो निकल गया, अब क्या बांधे पाल : वर्षा के पानी को इकट्ठा करने के लिए पाल बांधते हैं। पानी बह जाने के बाद पाल बाँधने से कोई लाभ नहीं होगा। अवसर चूक जाने के बाद प्रयास क्यों कर रहे हो।

पानी पी कर क्या जात पूछना (पानी पी घर पूछनो नाही भलो विचार) : अपने स्वार्थ के लिए कुछ भी करना और बाद में भला बुरा विचारना। पहले के जमाने में लोग छुआछूत को बहुत मानते थे। तब उच्च जाति के लोग नीची जाति वाले के हाथ का छुआ हुआ पानी नहीं पीते थे। एक महात्मा जी एक बार प्यास से मर रहे थे, किसी ने उन्हें पानी दिया जो उन्होंने तुरन्त गटागट पी लिया। पानी पी कर पूछते हैं भैया कौन जात हो?

पानी पीकर मूत तोले : बहुत अधिक स्यानपन दिखानेवाले के लिए। वैसे आजकल गुर्दे की बीमारी में ऐसा करना पड़ता है।

पानी पीजे, चार महीने डाल का, चार महीने पाल का, चार महीने ताल का : डाल का और पाल का ये शब्द आम तौर पर फलों के लिए प्रयोग करते हैं। डाल का फल अर्थात तुरंत का तोड़ा हुआ, पाल का मतलब रख कर पकाया हुआ। पानी के लिए कहा गया है कि चैत, बैशाख, जेठ और अषाढ़ घड़े का पानी पीजिए (पाल का)। सावन, भादों, क्वार, कार्तिक नल का पानी पीजिए (डाल का) और बाकी चार महीने कुएँ या तालाब का पानी पीजिए (ताल का)।

पानी पीये छानकर और जीव मारे जानकर : ढोंगी महात्माओं के लिए।

पानी बाढ़े नाव में, घर में बाढ़े दाम, दोनों हाथ उलीचिए, यही सयानो काम : यदि आप नाव में जा रहे हैं और उस में पानी भरने लगे तो तुरन्त दोनों हाथों से उसे उलीचना (बाहर फेंकना) आरम्भ कर दीजिए (वरना पानी भरने से नाव डूब जाएगी), इसी प्रकार यदि घर में आवश्यकता से अधिक धन इकट्ठा होने लगे तो उसे दान करना शुरू कर दीजिए।

पानी मथे घी नहीं निकलता : बिना उचित साधनों के कोई कार्य सिद्ध नहीं होता। घी दही को मथने से निकलता है, पानी को मथने से नहीं।

पानी में आग लगाय लुगाई : स्त्रियाँ कहीं भी झगड़ा करा सकती हैं।

पानी में घुस कर कोई सूखा नहीं निकल सकता : इस संसार रूपी भवसागर में कोई व्यक्ति बिल्कुल निश्छल, निष्कपट, निष्पाप हो कर नहीं रह सकता।

पानी में पखान, भीगे पर छीजे नहीं, मूरख के आगे ज्ञान, रीझे पर बूझे नही : पखान – पाषाण (पत्थर)। पानी में पत्थर भीगता तो है पर गलता नही है। मूर्ख के आगे ज्ञान की बात करोगे तो वह खुश तो होगा, पर समझेगा कुछ नही।

पानी में पादोगे तो बुलबुले तो उठेंगे ही : कोई गलत काम कितना भी छिप कर करो तो भी औरों को दिखाई दे जाएगा। (भाषा में थोड़ी अभद्रता है पर बात सही है)।

पानी में मछली के नौ नौ हिस्सा : मछली अभी पकड़ी भी नहीं है (अभी पानी में ही है) और उस के हिस्से बांटे किए जा रहे हैं। काम पूरा होने से पहले ही लाभ के लिए झगड़ना।

पानी में मीन पियासी, मोहे देखत आवे हांसी : सब प्रकार की सुविधाओं के बीच रहते हुए भी मनुष्य की लालसा कम नहीं होती।

पानी में हगा ऊपर आता है : कोई गलत काम छिप कर किया जाए तब भी अंततः सामने आ जाता है। भोजपुरी कहावत – भइंस पानी में हगी त उतरइबे करी।

पाप का घड़ा कभी न कभी फूटता ही है : कोई अत्याचारी, अनाचारी कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो उसका अंत अवश्य होता है।

पाप का घड़ा डूब कर रहता है। (पाप का घड़ा भर कर डूबता है) : ऊपर वाली कहावत के समान।

पाप का धन, अकारथ जाए : पाप की कमाई अंततः व्यर्थ ही जाती है।

पाप का बाप लोभ : लोभ से पाप पैदा होता है। लालच ही इंसान को पाप करने के लिए प्रेरित करता है।

पाप की कमाई, कुत्ते-बिल्लियों ने खाई : पाप कर के कमाया हुआ धन अंतत: बर्बाद ही हो जाता है।

पाप छिपाए न छिपे, जस लहसुन की बास : जैसे लहसुन की गंध छिपाए नहीं छिपती वैसे ही पाप भी नहीं छिपता।

पाप डुबोवे धरम तिरावे, धरमी कभी नहीं दुःख पावे : पाप मनुष्य को डुबोता है जबकि धर्म मनुष्य को डूबने से बचाता है। धर्म पर चलने वाला अंततः सुख पाता अवश्य है।

पाप मूल निंदा : किसी की निंदा करना पाप की जड़ है।

पापियों के मारने को पाप महाबली : पापी व्यक्ति अंततः अपने पापों के कारण ही मारा जाता है।

पापी की नाव, भर कर डूबे : पाप कर्म द्वारा जो सम्पत्ति कमाई जाती है वह अंततः डूब जाती है।

पापी के मन में पाप ही बसे : अर्थ स्पष्ट है।

पापी को माल अकारथ जाए, दंड भरे या चोर लै जाए : पाप की कमाई व्यर्थ जाती है। दंड भरने में जाती है या चोर ले जाते हैं।

पार कहें सो आर है आर कहें सो पार, पकड़ किनारा बैठ रह यही पार यहि आर : नदी के किनारे बैठा आदमी अपने किनारे को आर कहता है और दूसरे किनारे को पार। दूसरी तरफ बैठा बंदा उस किनारे को आर कहता है और इस किनारे को पार। व्यर्थ के मोहजाल में मत उलझो। कोई एक किनारा पकड़ कर बैठ जाओ, यही आर है और यही पार।

पारसनाथ से चक्की भली जो आटा देवे पीस, कूढ़ नर से मुर्गी भली जो अंडा देवे बीस : पारसनाथ – जैन धर्मावलम्बियों का तीर्थस्थल पारसनाथ पर्वत जो झारखंड में स्थित है। कहावत में कहा गया है कि किसी पवित्र पर्वत के मुकाबले साधारण चक्की अधिक अच्छी है जो आटा पीस देती है। इसी प्रकार किसी बेकार के मनुष्य के मुकाबले मुरगी अधिक अच्छी है जो अंडे देती है। जैन धर्म का मजाक उड़ाने के लिए किसी ने ऐसा कहा है।

पाव की हंडिया में सेर नहीं समाता : छोटे आदमी की बुद्धि में बड़ी बात नहीं समा सकती। छोटी मानसिकता वाले व्यक्ति से किसी बड़े काम की आशा नहीं की जा सकती।

पाव भरी की देवी और नौ पाव पूजा : देवी छोटी सी हैं और पूजा की सामग्री बहुत सारी है। किसी अपात्र का बहुत अधिक सत्कार करने पर।

पावक, बैरी, रोग, रिन सेस राखिए नाहिं, जे थोड़े हूँ बढ़त पुनि बड़े जतन सों जाहिं : (बुन्देलखंडी कहावत) आग, शत्रु और ऋण, इनको बिल्कुल समाप्त कर के छोड़ना चाहिए। ये थोड़े से भी बच जाएँ तो पुनः विकराल रूप धारण कर लेते हैं और फिर बड़ी कठिनाई से जाते हैं।

पावस देखि रहीम मन, कोइल साधे मौन, अब दादुर बक्ता भए, हमको पूछत कौन : वर्षा ऋतु में कोयल चुप हो जाती है। वह सोचती है कि अब तो मेंढक बोल रहे हैं, उसे कौन पूछेगा। मूर्खों की भीड़ में कोई बुद्धिमान व्यक्ति बोलना पसंद नहीं करता।

पास का कुत्ता न दूर का भाई : दूर रहने वाले भाई के मुकाबले पास रहने वाला कुत्ता अधिक मददगार होता है।

पास की ससुरार, रात दिना की रार : ससुराल अगर बहुत पास में हो तो रोज कोई न कोई लफड़ा होता है, इसलिए ससुराल के पास नहीं रहना चाहिए।

पास जल सो जल, बांह बल सो बल : जो पानी हमारे आसपास उपलब्ध हो वही हमारे काम का है, जो बल हमारी बाहों में है वही हमारे काम का है।

पासा पड़े अनाड़ी जीते : भाग्य साथ दे तो अनाड़ी व्यक्ति भी कामयाब हो जाता है।

पासा पड़े सो दांव, राजा करे सो न्याव : पासा जो भी पड़ा वही आपका दांव माना जाएगा, उसे आप बदल नहीं सकते। राजा जो कह दे वही न्याय माना जाएगा, उसे कोई बदल नहीं सकता।

पासों का सबसे अच्छा फेंकना यही है कि उनको फेंक ही दें : चौपड़ का खेल बर्बादी का पूरा इंतजाम है। उसमें पासे फेंक कर चाल चली जाती है। सयाने लोगों का कहना है पासे फेंकना है तो घर से बाहर फेंक दो वही सबसे अच्छी चाल है।

पाहन में कौ मारबो, चोखा तीर नसाय : पत्थर में मार कर अच्छा ख़ासा तीर क्यों खराब कर रहे हो। पाहन – पाषाण, पत्थर। चोखा – अच्छा, नसाय – नष्ट कर रहे हो। कोई आदमी किसी निष्ठुर व्यक्ति से सहायता प्राप्त करने की कोशिश में अपना समय नष्ट करे तो । (या विद्वान व्यक्ति किसी मूर्ख को समझाने की कोशिश कर रहा हो तो)

पाहुने जीमते जाते हैं, रांडें रोती जाती हैं : वैसे तो रांड शब्द का अर्थ विधवा स्त्री होता है, पर कहावतों में कई स्थानों पर इस का प्रयोग धूर्त स्त्री के अर्थ में करते हैं। कहीं कोई शुभ कार्य होता देख कर धूर्त लोगों को कष्ट हो रहा हो तो यह कहावत कही जाती है।

पाहुनों से वंश नहीं चलता : किसी के घर में मेहमानों का जमघट लगा रहता हो पर उसकी अपनी कोई सन्तान न हो तो उस का वंश नहीं चल सकता। कोई व्यक्ति दुनियादारी में लगा रहे और अपने परिवार पर ध्यान न दे उसके लिए।

पिए भैंस का दूध, रहे ऊत का ऊत : भैंस का दूध पीने से अक्ल मोटी हो जाती है (गाय का दूध पीने से बुद्धि तीव्र होती है)।

पिए रुधिर पय न पिए, लगी पयोधर जोंक : जोंक यदि स्तन में लग जाए तो भी रक्त ही पीती है दूध नहीं। दुष्ट व्यक्ति को अच्छे परिवेश में रखो तब भी दुष्टता ही करता है।

पिछली रोटी खाय, पिछली मति पाय : ऐसा विश्वास है कि आखिरी रोटी खाने से बुद्धि कम हो जाती है।

पिछले गाँवों पिटकर आये, अगले गाँव में सिद्ध : धूर्त साधुओं के लिए।

पिटा हुआ और जीमा हुआ भूलता नहीं : किसी के घर से पिट के आए हों तो नहीं भूल सकते और कहीं भरपेट स्वादिष्ट भोजन मिला हो तो नहीं भूल सकते।

पितरन को पानी बामन को दान, आए दरवाजे को सदा रक्खें माने : पितरों को पानी देना, ब्राह्मण को दान देना और अतिथि को सम्मान देना सब का कर्तव्य है।

पितृ मुखी कन्या सुखी : जिस कन्या का चेहरा पिता से मिलता है वह सुखी रहती है।

पिय वियोग सम दुख जग नाहीं : किसी भी स्त्री के लिए पति के वियोग जैसा कोई दुख नहीं है।

पिया आगे राज, पीछे चलनी न छाज : विधवा स्त्री का कथन, पति के सामने तो मैंने राज किया और अब चलनी और सूप जैसी छोटी छोटी चीजों के लिए मुहताज हूँ।

पिया गए परदेश, अब डर काहे का : पति बाहर गए हों तो स्त्रियाँ निरंकुश हो जाती हैं। यह पुराने जमाने की कहावत है, अब स्त्रियाँ मैके जाती हैं तो पति निरंकुश हो जाते हैं।

पिया बिना कैसा त्यौहार : पति परदेश में हो तो सुहागिन को कोई त्यौहात अच्छा नहीं लगता।

पिया मोरा आंधर (अंधा), मैं का पर करूं सिंगार : मेरा पति अंधा है मैं श्रृंगार किस के लिए करूँ। जहाँ आपकी योग्यता का कोई कद्रदान न हो वहाँ योग्यता किस को दिखाएँ।

पिसनहारी को पूत, जो चबा ले सो लाभ (पिसनहारी के पूत को चना लाभ ही बहुत है) : पिसनहारी – अनाज पीसने वाली। पिसनहारी वहाँ से कुछ ले तो नहीं जा सकती। उस का लड़का वहाँ बैठ कर जितना चबा ले वही उसके लिए बहुत बड़ा लाभ है। छोटे आदमी के लिए छोटे छोटे लाभ भी बहुत मायने  रखते हैं।

पीठ की मार मारे, पेट की न मारे : किसी ने गलती की हो तो उस को दंड कितना भी दे दो पर उस की रोजी रोटी मत छीनो।

पीठ देख कर ही नजर लगे : 1. अत्यंत सुंदर व्यक्ति। 2. अत्यंत भद्दे व्यक्ति पर व्यंग्य।

पीठ पर मैल जम ही जाती है : शाब्दिक अर्थ तो स्पष्ट है, भावार्थ यह है कि जो स्थान हमारी देख रेख और कार्य क्षेत्र से दूर हो वहाँ गंदगी इकट्ठी हो जाती है।

पीठ पीछे की छींक, संका ते मत झींक : यदि आपकी पीठ के पीछे कोई छींके तो यह अपशकुन नहीं माना जाता।

पीतल की अँगूठी सोने का टांका, माँ छिनाल पूत बांका : किसी चरित्रहीन स्त्री का पुत्र बहुत बना ठना घूम रहा हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए।

पीतल, कांसा, लौह में पड़े जंग चढ़ जाए, जलधर आवे दौड़ता, इस में संसै नाय : अगर घर में पड़े पीतल, कांसा या लोहे में जंग लग जाए तो इस का अर्थ है कि वर्षा होने वाली है। (जलधर – बादल)

पीताम्बर ओच्छा भला, साबत भला न टाट, और जात शत्रु भली, मित्र भला न जाट : पीला कपड़ा घटिया वाला हो तो भी टाट से अच्छा है। इसी प्रकार दूसरी जातियों के दुश्मन भी जाट दोस्त से बेहतर हैं। (जाट से दोस्ती खतरनाक है)।

पीपर तले हाँ करे, कीकर तले नट जाए : पल पल में बात बदलने वाला आदमी जो अभी हाँ करे और अभी मुकर जाए।

पीपल पूजन मैं गई अपने कुल की लाज, पीपल पूजत हरि मिले एक पंथ दो काज : एक काम करने से दो लाभ होना।

पीर की सगाई पीर के घर : विवाह इत्यादि सम्बन्ध अपनी बराबरी वालों में ही करना चाहिए।

पीर को न शहीद को, पहले नकटे देव को : योग्य और पूज्य लोगों से पहले ओछे ओर बेशर्म आदमी को पूछना चाहिए, क्योंकि वह रायता फैला सकता है।

पीर जी की सगाई, मीर जी के यहाँ : दोस्ती, दुश्मनी, व्यापार,विवाह इत्यादि अपनी बराबरी वालों में ही करना चाहिए

पीला पीला सब सोना नहीं होता : ऊपरी दिखावे से जो चीज़ उत्तम प्रतीत होती है वह जरूरी नहीं कि वास्तव में उत्तम हो। इंग्लिश में कहते हैं – All that glitters is not gold.

पीसे हुए को क्या पीसना : जो सताया हुआ हो उसे क्या सताना।

पुचकारा कुत्ता सर चढ़े : कुत्ते को अधिक लाड़ करो तो वह सर पर चढ़ने लगता है। अपात्र को अधिक सुविधाएं दो तो वह उनका गलत लाभ उठाता है।

पुजारी की पगड़ी, नामर्द की जोय, कायर की तलवार, पड़ी पुरानी होय : ये चीजें बिना उपयोग के व्यर्थ हो जाती हैं।

पुजारी की पगड़ी, सिपाही की जोय, जुलाहे की जूती, पड़ी पुरानी होय : पुजारी अधिकतर समय पूजा पाठ के कारण पगड़ी नहीं पहनता, सिपाही ड्यूटी पर तैनात रहता है या युद्ध में मारा जाता है इस कारण वह पत्नी साथ समय नहीं बिता पाता, जुलाहा दिन रात बैठ कर काम करता है इसलिए जूती नहीं पहनता।

पुड़किया बाज से कैसे जीत सकती है : पुड़किया – कबूतर की जाति का एक छोटा पक्षी। अर्थ स्पष्ट है।

पुन्य करत होत यदि हानि, तऊ न छाड़िए पुन्य की बानि : पुन्य (किसी का भला) करने में यदि अपना कुछ नुकसान भी हो जाए तब भी पुन्य करने की आदत नहीं छोड़नी चाहिए।

पुन्य की जड़ सदा हरी : पुन्य (परोपकार) करने वाले व्यक्ति की सदा उन्नति होती है।

पुराना ठीकरा और कलई की भड़क : बुढापे में ज्यादा रंग रोगन लगा कर जवान दिखने की कोशिश। ठीकरा – टूटे हुए बर्तन का टुकड़ा।

पुराना पंसारी, नया बजाज : पुराने पंसारी को बहुत सी वस्तुओं के विषय में अधिक जानकारी होती है इसलिए वह अधिक योग्य माना जाता है, नए बजाज को नए फैशन और स्टाइल के विषय में अधिक जानकारी होती है इसलिए नया बजाज अधिक अच्छा माना जाता है।

पुराना वैद्य और नया ज्योतिषी अच्छा होता है : वैद्य पुराना अच्छा होता है क्योंकि जैसे जैसे वह पुराना होता जाता है उस का अनुभव बढ़ता जाता है, जबकि ज्योतिषी नया अच्छा होता है क्योंकि वह नए ज्योतिष शास्त्र की नई बातें सीख कर आता है।

पुरुष के दुख और पशु की भूख का कुछ पता नहीं चलता : ये अपनी परेशानी कहना नहीं जानते।

पुरुष पुरातन की वधू क्यों न चंचला होए : लक्ष्मी जी भगवान विष्णु की पत्नी हैं जोकि सृष्टि के सबसे पुरातन पुरुष हैं। शायद इसी लिए वह इतनी चंचल हैं। (लक्ष्मी अर्थात धन सम्पदा कभी किसी के पास ठहरती नहीं है इसलिए उन्हें चंचला कहा गया है)।

पुरुष बिचारा क्या करे जिस घर नार कुनार, वो सीमे दो आंगुली, वो फाड़े गज चार : जिस घर में गृहणी दुष्ट स्वभाव की हो उस घर को अकेला पुरुष नहीं संभाल सकता। वह दो उँगली सी कर चुकता है तब तक वह दो गज और फाड़ देती है, अर्थात वह थोड़ी बहुत बात सम्भालता है तब तक वह बात को और बिगाड़ देती है।

पुल पार करने के लिए होता है, घर बनाने के लिए नहीं : जो चीज़ समाज के उपयोग की होती है उस पर किसी को कब्ज़ा नहीं ज़माना चाहिए।

पुश्तों बाद कबूतर पाले, आधे गोरे आधे काले : किसी खानदान में कभी किसी ने कोई कायदे का काम न किया हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए।

पूंछकटा हर वक्त लड़ने को तैयार : जिस कुत्ते की पूंछ कटी हो तो वह हर समय लड़ने को तैयार रहता है। जिस आदमी की कोई इज्ज़त न हो उस के लिए।

पूंजी से पूंजी उपजे : व्यापार में पूँजी लगाने से ही और पूँजी पैदा होती है। इंग्लिश में कहा गया है – Money begets money.

पूछता नर पंडिता। (जो पूछे सो पंडित) : औरों से पूछ पूछ कर ज्ञान प्राप्त करने वाला व्यक्ति पंडित बन जाता है। इंग्लिश में कहावत है – Curiosity is the mother of knowledge.

पूछी खेत की बताई खलिहान की (पूछी जमीन की, बताई आसमान की) : कुछ का कुछ जवाब देना।

पूछी न काछी, मैं दुल्हन की चाची : जबरदस्ती किसी से रिश्ता जोड़ना। मान न मान मैं तेरा मेहमान।

पूजनीय गुण ते पुरुष, वयस न पूजित होए : पुरुष अपन गुणों से पूजा जाता है न कि अधिक आयु से।

पूड़ी न पापड़ी, पटाक बहू आ पड़ी : कहीं पर बिना किसी समारोह और दावत के कोई बड़ा काम (विवाह, बच्चे का जन्म आदि) हो जाए तो उस का मजाक उड़ाने के लिए।

पूत कपूत सुने बहुतेरे, मां न सुनी कुमाता : ऐसे बहुत से नालायक पुत्र हो सकते हैं जो अपनी माँ का ध्यान न रखें पर ऐसी माँ कोई नहीं होती जो अपने पुत्र का ध्यान न रखे।

पूत कमावे चार पहर, ब्याज कमावे आठ पहर : आदमी तो चार प्रहर काम कर के ही पैसा कमा सकता है पर ब्याज पर लगा पैसा आठों प्रहर पैसा कमाता है.

पूत का मूत प्रयाग का पानी : कोई कम उम्र की बहू पहली बार मां बनी तो बच्चे की टट्टी पेशाब से घिनिया रही थी तो उसकी मां या सास ने उसको समझाने के लिए यह कहावत कही। कुछ पुरानी महिलाओं जो लड़की पैदा होने को बुरा समझती हैं, वे इस कहावत के आगे ये भी बोलती हैं – धी का मूत नरक की निशानी।धी – बेटी।

पूत की जात को सौ जोखें : पुत्रों का शुरू से ही बहुत ध्यान रखा जाता है लेकिन तब भी उनको पालने में ज्यादा परेशानियाँ आती हैं, लड़कियां बेचारी बेकद्री का शिकार हो कर भी आसानी से पल जाती हैं।

पूत के पाँव पालने में ही पहचान लिए जाते हैं : बच्चे के आरम्भिक लक्षण देख कर ही इस बात का अंदाज़ लग जाता है कि वह होनहार है।

पूत के लक्षण पालने और बहू के लक्षण द्वार : पूत के लक्षण पालने में पहचान लिए जाते हैं यह तो सब जानते ही हैं, बहू के लक्षण तब ही पहचान लिए जाते हैं जब वह घर में प्रवेश करती है।

पूत तो गाय का और पूत किसका, राजा तो मेघराज और राज किसका : गाय का पूत – बैल, मेघराज – बादल। जब खेती बैलों से होती थी और वर्षा पर निर्भर थी तब किसान के लिए बैल और बादलों की बहुत कीमत थी।

पूत न माने अपनी डांट, भाई लड़े कहे नित बाँट, तिरिया करकस कलही होय, नियरे बसें दुष्ट सब कोय, मालिक नाहीं करें विचार, सबै कहें ये विपत अपार : (बुन्देलखंडी कहावत)पाँच सबसे बड़े कष्ट इस प्रकार हैं – पुत्र आपकी डांट न माने, भाई सम्पत्ति बाँटने के लिए लड़े, स्त्री कर्कशा हो, आस पास दुष्ट लोग बसें और मालिक आपकी परेशानी को न समझे।

पूत भए सयाने, दुःख भए बिराने : पुत्र सयाने हो जाते हैं तो आदमी के दुःख दूर हो जाते हैं।

पूत भी प्यारा भतार भी प्यारा, किसकी सौगंध खाऊं : किसी के सर की कसम खाने में यदि कसम पूरी न हुई तो उस की जान को खतरा होता है। पुत्र और पति दोनों प्यारे हैं, किसकी कसम खाऊं। असमंजस की स्थिति।

पूत मांगे गई, भतार खो आई : पुत्र की कामना में कुछ ऐसी अनहोनी हो गई कि पति से हाथ धो बैठी।

पूत मांगे गई, भतार लेती आई : ऐसी स्त्रियों पर व्यंग्य जो पुत्र की कामना में दुराचारी पीर फकीरों की वासना का शिकार हो जाती हैं।

पूत सपूत तो क्यों धन संचै, पूत कपूत तो क्यों धन संचै : पहले के जमाने के लोग पैसा जोड़ने को बुरा समझते थे। तब ऐसा माना जाता था यदि व्यक्ति की आमदनी अच्छी हो तो उसे पैसा इकठ्ठा करने की बजाए सामाजिक कार्य में लगाना चाहिए। तर्क यह होता था कि बेटा अगर लायक है तो भी धन संचय मत करो क्योंकि वह बुढ़ापे में आपको सहारा देगा ही और अगर बेटा नालायक है तो भी धन संचय मत करो क्योंकि वह सब उड़ा देगा। हमारे विचार से आज के युग में इस को उल्टा करके बोलना चाहिए। पूत सपूत तो भी धन संचय, पूत कपूत तो भी धन संचय। बेटा अगर होनहार है तो उसे उच्च शिक्षा या व्यापार के लिए धन चाहिए होगा और अगर नालायक है तो आपको अपना बुढ़ापा इज्जत से काटने के लिए धन चाहिए होगा।

पूता कारज करियो सोई, जामें हंडिया खुदबुद होई : सयाने लोग बच्चों को समझाते हैं कि काम वही करो जिससे घर में खाने पीने का प्रबंध हो सके (रोजी रोटी चल सके)।

पूतों का क्या बुरा, बुरे वो जिन के पूत न हों : संतान को पालने में यदि कोई लोग परेशानी महसूस करते हैं तो बड़े बूढ़े उनको यह समझाते हैं।

पूरब का बरधा, दक्खिन का चीर, पच्छिम का घोड़ा, उत्तर का नीर : दशहरे की पूजा में बनियों के प्रतिष्ठानों में बही खाते बदले जाते हैं और उस दिन का मुख्य वस्तुओं का भाव लिखा जाता है। इस के साथ क्या चीज़ कहाँ की अच्छी होती है यह भी लिखा जाता है। उसी क्रम में उपरोक्त कहावत लिखी जाती है।

पूरब के चाँद पश्चिम चले जाइहैं, धी के दुलार बहू नहीं पाइहैं : चाहे दुनिया इधर से उधर हो जाए, जो प्यार लड़की को दिया जाता है वह बहू नहीं पा सकती।

पूरा आसमान फटा है, थेगली कहाँ तक लगाऊं : थेगली – पैबंद। बहुत बड़ी गड़बड़ हो तो उस पर लीपा पोती नहीं की जा सकती।

पूरा तोल चाहे महंगा बेच : दुकानदार को हमेशा पूरा तोलना चाहिए चाहे सामान की कीमत औरों से कुछ अधिक ही क्यों न रखनी पड़े।

पूरे घर में एक घाघरा, पहले उठे सो पहने : घोर अभाव की स्थिति। वस्तुएं कम हैं और उपभोक्ता अधिक हैं, जो पहले पहुंचेगा वह पाएगा।

पूस न बइए, पीस खइए : पूस में गेहूँ बोने से फसल होने की सम्भावना कम है। इस से अच्छा तो उसे पीस कर खा लो। बइये – बोइये।

पेट काटे धन न जुड़े : जो गरीब व्यक्ति इतना कम धन कमा पा रहा हो कि केवल अपने परिवार का पेट भर सके वह धन नहीं जोड़ सकता। यदि वह भरपेट खाना नहीं खाएगा तो काम कैसे करेगा। पेट काटना – आवश्यकता से कम भोजन करना।

पेट की आग बुझते बुझते ही बुझती है : 1. तेज भूख लगी हो तो धीरे-धीरे ही शांत होती है 2. यदि स्त्री के पेट का जाया बच्चा ना रहे तो उसका दुख धीरे-धीरे ही भूलता है

पेट के आगे सब हेठ : सारे रिश्ते नाते, आदर्श और नैतिकता तभी अच्छे लगते हैं जब पेट भरा हो।

पेट खाली ईमान खाली : आदमी भूखा हो तो ईमानदारी से काम नहीं कर सकता, पेट भरने के लिए कुछ न कुछ बेईमानी जरूर करेगा।

पेट घुसे तो भेद मिले : किसी से मित्रता बढ़ा कर और अंतरंगता स्थापित कर के ही उस के मन का भेद लिया जा सकता है।

पेट जो चाहे करावे : पेट की आग आदमी से सब प्रकार के गलत काम कराती है। संस्कृत में कहा गया है – बुभुक्षितः किं न करोति पापं।

पेट नरम, पैर गरम, सर ठंडा, जो आवे वैद तो मारो डंडा : पुराने जमाने में जब बहुत थोड़ी सी ही बीमारियां हुआ करती थी तो लोग यह मानते थे कि सर गर्म होना बुखार का लक्षण है, पेट का कड़ा होना या फूलना पेट की बीमारी का लक्षण है और पैर ठंडे होना किसी गंभीर बीमारी का लक्षण है। अगर किसी का पेट नरम है, पैर गर्म हैं और सर ठंडा है तो उसे कोई बीमारी नहीं है। ऐसे में यदि वैद्य देखने आए तो उसे डंडा मारकर भगा दो। इस कहावत से दो बात समझ में आती हैं एक तो यह कि रोजमर्रा में होने वाली छोटी मोटी बीमारियों के यही तीन मुख्य लक्षण होते थे और  दूसरी यह कि उस जमाने में भी ऐसे वैद्य होते होंगे जो झूठी मूठी बीमारी बताकर लोगों को बेवकूफ बनाते होंगे। कुछ कुछ इस आशय की इंग्लिश में एक कहावत है – Keep your feet warm and your head cool, then you may call your doctor a fool.

पेट पालना कुत्ता भी जानता है : मनुष्य का जन्म मिला है तो केवल पेट के बारे में ही मत सोचो, इस से ऊपर उठ कर धर्म और समाज के विषय में भी कुछ सोचो। पेट तो कुत्ता भी भर लेता है।

पेट बुरी बला है : भूख आदमी से सारे पाप कराती है।

पेट भर और पीठ लाद (पेट भेट, काज समेट) : यदि किसी आदमी से भरपूर काम लेना है तो पहले उसका पेट भरो।

पेट भरा जानो तब, कुत्ता कौरा पावे जब : भोजन पूरा हुआ तब मानना चाहिए जब कुत्ते को भी रोटी दे दी जाए। प्राणी मात्र पर दया करने वाली सनातन संस्कृति का यही आदर्श है।

पेट भरा, नीयत नहीं भरी : यह तो मनुष्य की मूलभूत कमजोरी है कि पेट भरने के बाद भी नीयत नहीं भरती।

पेट भरे के खोटे चाले : 1. पेट भरा हो तो आदमी को खुराफात सूझती है। 2. पेट भरा हो तो आदमी काम नहीं करना चाहता।

पेट भरे नीच और भूखे भलमानस से डरिये : नीच आदमी का पेट भरा हो तो उसे बदमाशी सूझती है। भलामानस भूखा हो तो मजबूरी में कुछ भी कर सकता है इसलिए इन से डरना चाहिए।

पेट भरे पर सौ मस्ती सूझे (पेट में पड़ा चारा तो कूदन लगे विचारा) : जब तक इंसान का पेट नहीं भरता उसको इसी की चिंता रहती है। एक बार पेट भर जाने के बाद उस का मन भांति भांति के आनंद पाने के लिए भटकने लगता है।

पेट भरे पे सब खाने को पूछते हैं : कुछ ऐसा संयोग होता है कि जब आपका पेट भरा हो तो आप जहाँ भी जाएं, सब आपसे खाने के लिए पूछते हैं। कभी भूखे घर से निकल जाएं तो कोई नहीं पूछेगा।

पेट भरे मन मोदक से कब : मन के लड्ड़ओं से भूख नहीं मिटती।

पेट भूखा भले ही रखे, पीठ भूखी कोई नहीं रखता : निर्दयी लोग जानवर या मजदूर को खाना देने में कंजूसी करते हैं पर माल लादने में कंजूसी नहीं करते।

पेट में आंत न मुंह में दांत : अत्यधिक बुढ़ापा, जरावस्था।

पेट में न रोटी तो सारी बातें खोटी : मनुष्य भूख से व्याकुल हो तो उसे ज्ञान और आदर्श की सारी बातें बेमानी लगती हैं।

पेट में पड़ गई रोटी तो फड़के बोटी बोटी : अर्थ स्पष्ट है। आमतौर पर बहुत छोटे बच्चों के लिए प्रयोग करते हैं जो दूध पीने के बाद हाथ पैर चलाने लगते हैं।

पेट में पाप और गोमुखी में जाप : मन में पाप भरा है ऊपर से भक्ति दिखाते हैं।

पेट से निकली, घर से न निकली : एक लड़की ससुराल में सताए जाने के कारण मायके में आ कर रह रही थी। उस की भाभी को यह बात बहुत नागवार गुजरती थी। एक दिन चिढ़ कर उसने अपनी ननद से कहा कि तू मां के पेट से तो निकली पर इस घर से न निकली।

पेट-पीठ के कारने सब जग नाचे नाच : पेट भरने के लिए ही सब तरह के काम करने पड़ते हैं।

पेटवा चाकर, मुटवा घोड़, खाएं ज्यादा, काम करें थोड़ : पेटू (ज्यादा खाने वाला) नौकर और मोटा घोड़ा, खाते अधिक हैं और काम कम करते हैं।

पेटू मरे पेट को, नामी मरे नाम को : जिसे केवल खाने का ही शौक है वह हर समय खाने की ही चिंता करता है, और जो नाम कमाना चाहता है वह केवल उसी विषय में सोचता रहता है।

पेड़ फल से जाना जाता है : पेड़ का अपना कोई नाम नहीं होता, वह अपने फल के द्वारा ही जाना जाता है – जैसे आम का पेड़, जामुन का पेड़ आदि। इसी प्रकार व्यक्ति भी अपने कार्यों के द्वारा जाना जाता है।

पेड़ में कटहल, होठों तेल : कटहल खाते समय होठों पर न चिपके इस के लिए कटहल खाने से पहले होठों पर तेल लगा लेते हैं। अगर कटहल पेड़ से तोड़ा ही नहीं गया है तो तेल लगाने की क्या जरूरत। बहुत जल्दबाजी मचाने वालों का मजाक उड़ाने के लिए यह कहावत कही जाती है।

पैंठ लगी नहीं गिरहकट पहले आ गए : पैंठ – बाजार। कोई काम शुरू होने से पहले ही अवांछित लोगों का आ जाना।

पैदल और सवार का क्या साथ : मित्रता और सम्बन्ध अपने बराबर वालों से ही रखना चाहिए।

पैर उठाते ही छींक दिया : यात्रा शुरू करने से पहले कोई छींक दे दो इसे अपशकुन मानते हैं। कोई काम शुरू करते ही कोई अपशकुन कर दे तो यह कहावत कही जाती है।

पैर का जूता पैर में ही ठीक रहता है (पैर की जूती पैर में ही अच्छी होती है) : जो व्यक्ति जिस लायक हो उससे वैसा ही व्यवहार करना चाहिए। निम्न श्रेणी के व्यक्ति को दबा कर रखना ही ठीक रहता है।

पैर की पूजा हुई है, पीठ की नहीं : कोई माननीय रिश्तेदार (फूफा या दामाद आदि) बहुत दुष्टता करे तो।

पैर जलें तो जूती पहनो, धरती पर कालीन नहीं बिछेगी : आपकी व्यक्तिगत परेशान आपको स्वयं सुलझानी होगी, उसके लिए समाज में बदलाव नहीं लाया जाएगा।

पैर में से काँटा निकालो तो भी पीड़ा होती है : अपना कोई सगा सम्बंधी कितना भी निकृष्ट क्यों न हो उससे संबंध तोड़ने में कष्ट होता है।

पैरों से गाँठ लगाए जो हाथों से न खुले : बहुत धूर्त आदमी के लिए, जो सब के लिए उलझनें पैदा करता हो।

पैरों से लंगड़ी, नाम फुदकी : नाम के विपरीत गुण।

पैसा आते भी दुःख देता है और जाते भी : पैसा कमाने के लिए बहुत से कष्ट उठाने ही पड़ते हैं, पैसा जब आ जाता है तो रखने की चिंता, और अगर चला जाए तब तो कष्ट ही कष्ट।

पैसा करे काम, बीबी करे सलाम : पैसे में बड़ी ताकत है। पैसे के बल पर आदमी के सारे काम हो जाते हैं और पत्नी भी उसकी इज्ज़त करती है।

पैसा तो बेसवा भी कमा ले : (भोजपुरी कहावत) केवल पैसा कमाने के लिए काम नहीं करना चाहिए। पैसा तो लोग उल्टे सीधे और भ्रष्ट काम कर के भी कमा लेते हैं। बेसवा – वैश्या का अपभ्रंश।

पैसा ना कौड़ी, बाजार जाएँ दौड़ी (पैसा न कौड़ी, बीच बाज़ार में दौड़ा दौड़ी) : साधन हीन होने पर भी ख़याली पुलाव पकाना.

पैसा पर्वत पे राह चलावे है : पैसे के बल पर कठिन काम भी आसान हो जाते हैं।

पैसा पास का, घोड़ी रान की : रान – जांघ। पैसा वही काम आता है जो हमारे पास हो (इधर उधर बंटा हुआ न हो), घोड़ी वही काम की है जिसकी हम सवारी कर सकें।

पैसा फले न पेड़ : पैसा पेड़ पर पैदा नहीं होता (परिश्रम कर के कमाया जाता है)।

पैसा माँ पैसा भाई, पैसे बिन न होय सगाई : सगाई माने आपसी प्रेम भी होता है और सगाई माने विवाह संबंध भी होता है।। आज के युग में पैसा ही सब कुछ है। उसी पर सारे सम्बन्ध टिके हैं।

पैसा माई, पैसा बाप, पैसे बिना बड़ा संताप : आज के समय में पैसा ही सब कुछ है, पैसे के बिना बड़ा कष्ट है।

पैसा हाथ का मैल है : जिस प्रकार हाथ पर मैल लग जाए तो हम उसे धो कर साफ़ कर देते हैं उसी प्रकार अधिक पैसा हाथ में आने पर उसे बांट देना चाहिए। अधिक धन मनुष्य को पाप की ओर प्रवृत्त करता है।

पैसे का कोई पूरा नहीं, अक्ल का कोई अधूरा नहीं : पैसा कितना भी अधिक हो किसी को पर्याप्त नहीं लगता और अपने अंदर अक्ल कितनी भी कम हो किसी को कम नहीं लगती।

पैसे की आने की एक राह, जाने की चार : पैसा कमाया बहुत मुश्किल से जाता है पर खर्च बड़ी जल्दी हो जाता है, आता एक स्रोत से है पर खर्च कई जगह होता है।

पैसे की दाल और टके का बघार : एक पैसे की दाल में दो पैसे का छौंक।

पैसे को पैसा खींचता है : पूँजी से ही पूँजी कमाई जाती है।

पैसे बिन माता कहे जाया पूत कपूत, भाई भी पैसे बिना मारें सर लख जूत : पैसे के बिना माँ, बाप, भाई, बहन कोई सम्मान नहीं करते (माँ कहती है कि मैंने कुपुत्र पैदा किया है और भाई जूते मारते हैं)।

पैसे बिना बुद्धि बेचारी : आदमी कितना भी बुद्धिमान हो, धन के बिना अपनी बुद्धि का लाभ नहीं उठा सकता।

पोटली में जितने सिक्के डालोगे उतने ही निकलेंगे : आपने जितना पैसा इकट्ठा किया है उतना ही तो आपके पास होगा, उससे कम या अधिक कैसे हो जाएगा। यही बात पाप और पुण्य के विषय में भी कही जा सकती है।

पोतड़ों के अमीर : पोतड़े – नवजात शिशुओं के लंगोटे बिछौने आदि। जन्म से अमीर लोगों के लिए यह कहावत कही जाती है।

पोतड़ों के नशेड़ी : जिस ने बाप दादों से नशा करना सीखा हो।

पोतड़ों के बिगड़े, धोतड़ों में नहीं सुधरते : पोतड़े – बच्चों के लंगोटी बिछौने आदि, धोतड़े – पहनने के कपड़े (धोती इत्यादि) बचपन में जो खराब आदतें पड़ जाएँ वे बड़े होने पर भी नहीं सुधरतीं।

पोथा सो थोथा, पाठे सो साथै : पोथियों में जो लिखा है वह हमारे लिए व्यर्थ है, जो हम ने पढ़ लिया व कंठस्थ कर लिया वही हमारे साथ रहने वाला है।

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भय न कोय, ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय : पोथियाँ पढ़ कर कोई पंडित नहीं बनता। जो मानव मात्र से प्रेम करना सीख ले वही सच्चा पंडित बनता है।

पोपला और चने चाबे : अपनी सामर्थ्य से बाहर काम करने की कोशिश करना।

प्याज को जितना छीलो उतनी ही बदबू आती है : पुरानी बातों को जितना उघाड़ो उतना ही मनमुटाव बढता है।

प्यार करूं प्यार करूं, चूतड़ तले अंगार धरूं, जल जाए तो क्या करूं : कपटी मित्र या सम्बंधी के लिए जो ऊपर से प्रेम दिखाता है और चुपचाप आपको नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता है।

प्यार दिए से बेटा बिगड़े, भेद दिए से नारी, लोभ दिए से नौकर बिगड़े, धोखा दिए से यारी : अधिक लाड़ प्यार से बेटा बिगड़ जाता है, भेद की बात नारी को नहीं पचती, लालच देने से नौकर बिगड़ जाता है और धोखा देने से दोस्ती खत्म हो जाती है।

प्यास से मरने के बाद हजार घड़ा पानी बेकार : अर्थ स्पष्ट है।

प्यासे के पास कुआँ चल कर नहीं आता है : सयाने लोग समझाने के लिए कहते हैं कि जिस चीज की आपको आवश्यकता है उसके लिए आपको ही प्रयास करना पड़ेगा। वह चीज बैठे-बैठे आपके पास चलकर नहीं आएगी।

प्यासे को पिलाओ पानी, चाहे हो जाए कुछ हानी : प्यासे को पानी अवश्य पिलाना चाहिए, चाहे इसमें कुछ हानि क्यों न उठानी पड़े।

प्रजा मरन, राजा को हाँसी : प्रजा कितनी भी त्रस्त हो, राजा लोग अपने आमोद, प्रमोद, हास्य, विनोद में व्यस्त रहते हैं।

प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं है जो सामने दिख रहा उस को सिद्ध करने के लिए प्रमाण की क्या आवश्यकता : संस्कृत में कहते हैं – प्रत्यक्षम् किम् प्रमाणं।

प्रभुता पाई काहि मद नाहीं : प्रभुता का अर्थ यहाँ है धन, बल और अधिकार। कहावत का अर्थ है कि प्रभुता पा कर सभी को घमंड हो जाता है। तुलसीदास जी द्वारा रचित मूल कविता इस प्रकार है – नहिं कोई जन्मा इस जग माहीं, प्रभुता पाई जाहि मद नाहीं। इंग्लिश में कहावत है – Power always corrupts.

प्रारब्ध पहले बना, पीछे बना शरीर : व्यक्ति के जन्म लेने से पहले ही उसका भाग्य लिख दिया जाता है।

प्रीत करी थी नीच से पल्ले आई कीच, सीस काट आगे धरा अंत नीच का नीच : नीच व्यक्ति से प्रेम करने पर मुश्किल ही सामने आती है। चाहे कोई अपना सर काट कर सामने रख दे नीच व्यक्ति अपनी नीचता नहीं छोड़ता।

प्रीत का निबाहना खांडे की धार है : खांडा – सीधी एवं चौड़ी तलवार। प्रीत का निबाहना उतना ही मुश्किल है जितना तलवार की धार पर चलना।

प्रीत जहाँ परदा नहीं, परदा जहां न प्रीत : जहाँ प्रेम होता है वहाँ कुछ दुराव छिपाव नहीं होता, और जहाँ दुराव छिपाव होता है वहाँ प्रेम नहीं हो सकता।

प्रीत तो ऐसी कीजिए ज्यों हिन्दू की जोय, जीते जी तो संग रहे मरे पे सत्ती होय : दूसरे धर्म के लोगों द्वारा हिन्दू स्त्रियों की प्रशंसा की गई है। हिन्दू स्त्री के समान प्रेम करो जो जीवन भर साथ निभाती है और पति के मरने पर सती हो जाती है।

प्रीत न टूटे अनमिले, उत्तम मन की लाग, सौ जुग पानी में रहे, चकमक तजे न आग : प्रेमी जन यदि आपस में न मिल पाएं तो भी उनके प्रेम में कमी नहीं आती। चकमक पत्थर युगों तक पानी में डूबा रहे तो भी बाहर निकालने पर आग पैदा करता है।

प्रीत रीत जानी आसान, मुस्किल पड़ी बात अब आन : सामान्य लोग समझते हैं कि प्रेम करना आसान है, पर जब उन्हें किसी से प्रेम होता है तो मालूम होता है कि इस में कितनी मुश्किलें हैं।

प्रीत सीखिये ऊख सों, पोर पोर रसवान जहाँ गाँठ वहाँ रस नहीं, जेई प्रीत की बान : गन्ने में सब जगह रस होता है, केवल गाँठ में नहीं होता। इसी प्रकार प्रेम के संबंध में रस ही रस होता है, पर जहाँ मन में गाँठ पड़ जाती है वहाँ रस समाप्त हो जाता है।

प्रीतम मिले उजाड़ में, वही उजाड़ बजार : प्रीतम यदि उजाड़ में मिल जाएँ तो वही उजाड़ गुलज़ार हो जाता है।

प्रीतम हरि से नेह कर, जैसे खेत किसान, घाटा दे अरु दंड भरे, फेरि खेत पे ध्यान : ईश्वर से उसी प्रकार प्रेम करो जैसे किसान अपने खेत से करता है। खेती में घाटा हो या दंड भरना पड़े तो भी किसान का ध्यान खेत में ही लगा रहता है।

प्रेम और युद्ध में सब जायज है : अर्थ स्पष्ट है। इंग्लिश में कहते हैं – All is fair in love and war.

प्रेम करि काहू सुख न लयो : मीराबाई ने यह बात स्वयं के परिप्रेक्ष्य में कही है पर यह बात सब पर लागू होती है कि प्रेम करने वाले को कभी सुख नहीं प्राप्त होता (हमेशा कष्ट मिलता है)।

प्रेम का पान हीरा समान : पान वैसे तो बहुत तुच्छ वस्तु है पर किसी ने प्रेम से दिया हो तो हीरे के समान है।

प्रेम न डाली फलत है, प्रेम न हाट बिकाए, प्रेम से खोजो प्रेम को, आपहि में मिल जाए : प्रेम पेड़ पर भी पैदा नहीं होता और बाजार में भी नहीं मिलता। अपने अंदर ही प्रेम को खोजना चाहिए।

प्रेम में नेम कहाँ : नेम – नियम। प्रेम कोई नियम कानून नहीं मानता।

( फ )

फकत ताबीज़ से काम नहीं चलता, कुछ कमर में भी बूता चाहिए : सन्तान मांगने (या और किसी काम) के लिए पीरों फकीरों के यहाँ चक्कर लगाने वालों के लिए कथन।

फकीर अपनी कमली में मस्त : जो सही माने में फकीर होते हैं उन्हें धन व ऐश्वर्य की परवाह नहीं होती।

फकीर की जुबान किसने कीली है : फकीर की जबान को कोई नहीं रोक सकता (क्योंकि उसे किसी का डर नहीं होता)।

फकीर की सूरत ही सवाल है : जरूरत मंद कुछ न भी मांगे तो भी उसकी सूरत देख कर ही अंदाजा हो जाता है कि वह जरूरत मंद है।

फटी जेब में पैसा डालना बेकार : जो व्यक्ति धन को संभालना और ठीक से खर्च करना न जानता हो उसको धन देना बेकार है (दान देना भी और उधार देना भी)।

फटे कपड़े को पैबंद लग सकता है फूटे भाग्य को नहीं : किसी का भाग्य ही फूटा हो तो वह लाख प्रयास कर के भी आप उस की कोई सहायता नहीं कर सकते।

फटे को सियो और रूठे को मनाओ : जितना आवश्यक फटे हुए कपड़े को सिलना है उतना ही आवश्यक है रूठे हुए मित्र और सम्बन्धियों को मनाना (अपने अहं को अलग रख कर)।

फटे को सिलाय, रूठे को मनाय : रूठे स्वजन को मनाना उतना ही आवश्यक है जितना फटे कपड़े को सिलाना।

फटे पजामें में गोटे का नाड़ा : बेमेल काम।

फटे में पाँव, दफ्तर में नाँव : दूसरे के फटे में टांग अड़ाने वाला अपने को झंझट में डाल लेता है (दफ्तरों और कचहरी के चक्कर लगाने पड़ते हैं)।

फतह और शिकस्त, खुदा के हाथ : हार जीत ईश्वर के हाथ में है (हमें केवल प्रयास करना चाहिए)।

फन फन मणि नहिं होत : हर सांप के फन में मणि नहीं होती। हर व्यक्ति योग्य नहीं होता।

फल लगने पर पेड़ झुक जाता है : जिस प्रकार फल लगने के बाद पेड़ झुक जाता है उसी प्रकार संतान होने के बाद अहंकारी व्यक्ति भी विनम्र हो जाता है।

फलाने की मां ने खसम किया बड़ा बुरा किया, कर के छोड़ दिया और बुरा किया : खसम किया अर्थात किसी को अपना पति बना लिया (विवाह कर लिया)। किसी विधवा ने (जिसके एकाध बच्चा भी है) किसी पुरुष से विवाह कर लिया यह पुराने जमाने के हिसाब से बुरी बात हुई। लेकिन विवाह कर के फिर छोड़ दिया यह और भी बुरी बात हुई। समाज इस बात की अनुमति नहीं देता कि विवाह को हंसी खेल समझ लिया जाए।

फलेगा सो झड़ेगा : जिस पेड़ में फल आयेंगे उस पर अंततः पतझड़ भी आएगी, यह कालचक्र है।

फांदिये न कुआं, खेलिए न जुआ : कोई आदमी कितनी भी लंबी छलांग क्यों न लगा लेता हो, कुआँ फांदने की कोशिश कभी नहीं करनी करने चाहिए। जरा सा धोखा होते ही कुएं में गिरने का डर है। इसी प्रकार जुआ भी कभी नहीं खेलना चाहिए, जीवन भर की कमाई लुट सकती है।

फागुन का मेह बुरो, बैरी का नेह बुरो : फागुन के महीने की वारिश नुकसानदायक होती है (क्योंकि फसल पक कर खड़ी होती है या कट कर खेत में पड़ी होती है)। इसी प्रकार शत्रु का प्रेम बुरा होता है। शत्रु अगर आप से प्रेम दर्शा रहा हो तो सतर्क रहना चाहिए। बुन्देलखंड में पूरी कहावत इस प्रकार बोली जाती है – फागुन का मेह बुरो, बैरी का नेह बुरो, साला घर बीच बुरो, बिगड़ा भानेज बुरो (घर में साला बुरा और नाराज भांजा बुरा)। इंग्लिश में कहावत है – Gifts from enemies are dangerous.

फागुन मर्द, ब्याह लुगाई : होली के त्यौहार पर पुरुष लोग हंसी ठिठोली में महिलाओं को रंग लगाते हैं और शादी ब्याह में स्त्रियां हल्दी की रस्म में पुरुषों की पीठ पर धप्पी लगाती हैं।

फाटे पीछे न मिलें (जुड़ें), मन मानिक औ दूध : मन, माणिक और दूध फट जाएँ तो फिर नहीं मिलते। कहावत में यह सीख दी गई है कि आपसी संबंधों को सहेज कर रखना चाहिए।

फ़ारस गए फ़ारसी पढ़ आए बोले वहीँ की बानी, आब आब कह पुतुआ मर गए खटिया तरे धरो रहो पानी : मुगलों के जमाने में पढ़े लिखे लोग फ़ारसी पढ़ा करते थे (फ़ारसी एक प्रकार की उच्च शिक्षा थी, जैसे आजकल इंग्लिश है)। फ़ारसी में पानी को आब कहते हैं। फ़ारसी का ज्ञान बघारने वाले लोगों का मजाक उड़ाने के लिए यह कहावत कही गई है कि प्यास लगने पर वह आब आब चिल्लाते रहे, कोई समझा ही नहीं कि वह पानी मांग रहे हैं। वह बेचारे प्यास से मर गए जब कि खाट के नीचे पानी रखा था। आजकल इंग्लिश बोलने में अपनी शान समझने वालों पर यह कहावत लागू की जा सकती है।

फालूदा खाते दांत टूटे : किसी बहुत नाजुक आदमी का मजाक उड़ाने के लिए।

फ़िक्र बुरी फ़ाका भला, फ़िक्र फकीरै खाय : फाका – उपवास। चिंता करने के मुकाबले भूखा रहना कम नुकसानदायक है। चिंता तो फ़क़ीर को भी खा लेती है।

फ़िक्र से हाथी भी घुल जाता है : चिंता से हाथी भी दुबला हो जाता है।

फिजूलखर्ची से फकीरी : जो आज फिजूलखर्ची कर रहा है वह कल फकीर बनने पर मजबूर हो जाएगा।

फिसल पड़े तो हर गंगा : जिस काम से आप बचना चाहते हैं अगर मजबूरी में वह काम करना पड़ जाए तो यह दिखावा करना चाहिए कि आप प्रसन्नता से वह काम कर रहे हैं। कोई सज्जन नदी में नहाने से बचना चाह रहे थे, इसलिए लोगों की निगाह बचा कर किनारे खड़े थे। पर अचानक पैर फिसलने से नदी में गिर पड़े तो जोर जोर से हर हर गंगे चिल्लाने लगे जैसे नहाने में बड़ा आनंद आ रहा हो।

फुरसत घड़ी की नहीं, कमाई कौड़ी की नहीं (धेले भर का काम नहीं, घड़ी भर की फुरसत नहीं) : ऐसे लोगों का मजाक उड़ाने के लिए जो कोई ठोस कार्य नहीं करते और अपने को बहुत व्यस्त दिखाते हैं।

फूँक मार कर धूल उड़ाएँ, हम ऐसे बलवान : कायर लोगों का मजाक उड़ाने के लिए।

फूंकने से पहाड़ नहीं उड़ते : बेबकूफी के प्रयासों से बहुत बड़े काम नहीं किये जा सकते।

फूंके के न फांके के, टांग उठा के तापे के : अलाव जलाने में कोई सहयोग नहीं कर रहे हैं बस टांग उठा के ताप रहे हैं।

फूटा घड़ा आवाज से पहचाना जाता है (जर्जर घड़े की आवाज भी जर्जर) : फूटे घड़े में दरार दिखाई न भी दे तो ठोंक कर देखने पर उसकी आवाज से मालूम हो जाता है। इसी प्रकार चरित्रहीन मनुष्य के व्यवहार में उसकी असलियत झलक जाती है.

फूटी देगची और कलई की भड़क : देगची – एक प्रकार का पतीला। पतीला तो फूटा हुआ है पर उस पर कलई कर के चमकाया गया है। बेकार की चीज की बनावटी दिखावट।

फूटे घड़े में पानी नहीं टिकता : जिस के भाग्य फूटे हों या बुद्धि भ्रष्ट हो उस के पास धन नहीं टिक सकता।

फूटे लड्डू में सबका हिस्सा : लड्डू जब तक बंधा हुआ होता है तब तक एक ही आदमी के हिस्से में आता है, पर अगर फूट जाए तो लूट मच जाती है। एकता में ही शक्ति है।

फूफा रूठेगा तो बुआ को रखेगा : फूफा रूठेंगे तो हद से हद क्या करेंगे, बुआ को नहीं आने देंगे। फूफाओं के नखरों से तंग किसी व्यक्ति का कथन।

फूफी नाते लेना, भतीजे नाते देना : एक रिश्ते से लेना और दूसरे रिश्ते से देना।

फूल आये हैं तो फल भी लगेंगे : कहावत ऐसे परिप्रेक्ष्य में कही जाती है कि यदि देश या समाज में कोई सकारात्मक बदलाव हुआ है तो उसके अच्छे परिणाम अवश्य आएंगे।

फूल की डाल नीचे को झुकती है : परिपक्वता आने पर व्यक्ति विनम्र हो जाता है।

फूल की बैरन धूप, घी का बैरी कूप : फूल धूप में कुम्हला जाता है और घी कुप्पे में रखा रखा सड़ जाता है। कहावत में यह सीख दी गई है कि घी को अधिक दिन कुप्पे में नहीं रखना चाहिए, खा पी कर खत्म करो या बाँट दो।

फूल झड़े तो फल लगे : कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है। फूल झड़ने के बाद ही फल लगता है।

फूल न पाती, देवी हा हा : जिस देवी की पूजा ही न होती हो वह देवी कैसी।

फूल नहीं पंखुड़ी ही सही : बहुत न सही, थोड़ा ही सही।

फूल फूल करके चंगेर भरती है : चंगेर – बांस की डलिया। एक एक फूल इकट्ठा कर के ही डलिया भरती है। (बूंद बूंद से गागर भरता)।

फूल से फांस लगे और दिए से लू : नज़ाकत की पराकाष्ठा।

फूले फूले फिरत हैं आज हमारो ब्याव, तुलसी गाय बजाय के देत काठ में पाँव : विवाह के समय व्यक्ति बहुत प्रसन्न होता है, वह यह नहीं जानता कि इस तरह गा बजा के वह पिंजरे में फंसने जा रहा है।

फूहड़ करे सिंगार, मांग ईंटों से फोड़े : फूहड़ स्त्री कुछ भी कर सकती है, माँग में सिंदूर लगाने के लिए ईंट से सर भी फोड़ सकती है।

फूहड़ का माल, सराह सराह खाइए : मूर्ख व्यक्ति की तारीफ़ करते जाइए और उस का माल खाते जाइए

फूहड़ का मैल फागुन में उतरे : जो लोग जाड़े के मौसम में बहुत कम नहाते हैं उन पर व्यंग्य।

फूहड़ के घर उगी चमेली, गोबर मांड़ उसी पर गेरी : फूहड़ व्यक्ति किसी गुणवान चीज़ की कद्र नहीं जानता। उस के घर चमेली का पेड़ उग आया तो उसने उसी पर गोबर गिरा दिया।

फूहड़ के घर खुली किवाड़ी, सारे कुत्ते चले रिवाड़ी : यदि घर की मालकिन फूहड़ हो तो मुफ्तखोरों और बेईमानों की चांदी हो जाती है।

फूहड़ के तीन काम हगे, समेटे और गेरन जाए : (हरयाणवी कहावत) फूहड़ व्यक्ति की परिभाषा थोड़े हास्य पूर्ण ढंग से बताई गई है। पहले काम बिगाड़ता है और फिर समेटता है।

फूहड़ चले, नौ घर हिले : कहावत को मजेदार बनाने के लिए अतिशयोक्ति द्वारा हास्य उत्पन्न किया गया है। फूहड़ आदमी इतने फूहड़ पने से चलता है कि नौ घर हिलते हैं।

फेरन पे हगास लगी : हगास – शौच जाने की इच्छा। यदि किसी दुल्हन को फेरों के दौरान शौच जाने की इच्छा हो तो कितनी बड़ी परेशानी खड़ी हो जाएगी। किसी अति आवश्यक कार्य के बीच व्यर्थ की परेशानी खड़ी हो जाना।

फ़ोकट का चन्दन, घिस मेरे नंदन : कोई कीमती चीज़ मुफ्त में मिल जाए तो आदमी उस की कद्र नहीं करता। (माले मुफ्त – दिल बेरहम)।

फ़ौज की अगाड़ी, आंधी की पिछाड़ी : इनको संभालना मुश्किल होता है।

( ब )

बकरा मुटाय, तब लकड़ी खाय : बकरा ज्यादा मोटा हो जाता है तो लड़ाका हो जाता है, इसलिए पिटता है।

बकरी के मुँह में काशीफल : किसी को ऐसी चीज़ देना जिस का वह उपयोग ही न कर सके।

बकरी खटीक से ही बहलती है : खटीक – चमड़ा निकाल कर बेचने वाली एक जाति। बकरी यह नहीं जानती कि यह खटीक ही उसे मार कर उसकी खाल उतार लेगा। वह उसी का कहना मानती है। जो लोग भ्रष्ट और लुटेरे नेताओं को अपना शुभचिंतक समझते हैं उन्हें सीख देने के लिए।

बकरी जान से गई, राजा कहें नमक कम है : किसी गरीब का बहुत बड़ा नुकसान कर के यदि बड़ा आदमी कहे कि उसका मतलब हल नहीं हुआ तो यह कहावत कही जाती है।

बकरी दूध तो दे पर मींगनी कर के : किसी का कोई काम करने के साथ में अशोभनीय व्यवहार करना।

बकरी से हल चलता तो बैल कौन रखता : कम लागत से व्यापार हो तो अधिक लागत क्यों लगाई जाएगी।

बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी : जब कोई अप्रिय घटना होना अटलनीय हो। (जैसे बकरा तो कभी न कभी कटना ही है, उसकी माँ कब तक खैर मनाएगी)।

बख्शो बी बिल्ली, चूहा लंडूरा ही जिएगा : लंडूरा – दुमकटा।एक बिल्ली ने चूहे पर झपट्टा मारा तो चूहे की पूँछ कट के उस के हाथ में आ गयी। चूहा जल्दी से बिल में घुस गया। बिल्ली बोली – चूहे राजा, बाहर आ जाओ, पूँछ जोड़ दूंगी। चूहा बोला, मुझे बख्शो बड़ी बी, मैं दुमकटा ही अच्छा। कोई दुष्ट व्यक्ति किसी को लालच दे कर फंसाने की कोशिश करे तो वह आदमी यह कहावत बोलेगा।

बगल में कटारी, चोर को घूंसों से मारे : 1. मूर्खता पूर्ण काम। कटारी होते हुए घूंसे मारना। 2. समझदारी भी कह सकते हैं। कटारी से मारने में इस बात का डर है कि अगर चोर मर गया तो उल्टे लेने के देने पड़ जायेंगे।

बगल में छोरा शहर में ढिंढोरा : ढिंढोरा – बड़ा ढोल। पहले के जमाने में कोई बात आम जनता को बताने से पहले ढोल बजा कर (ढिंढोरा पीट कर) लोगों का ध्यान आकर्षित करते थे। कहावत में कहा गया है कि लड़का तो बगल में मौजूद है और शहर में ढिंढोरा पीट पीट कर उसे ढूँढा जा रहा है। पास में उपलब्ध किसी चीज़ को अन्यत्र ढूँढना।

बगल में तोशा, किसका भरोसा, (अपना तोसा अपना भरोसा) : जरूरत का सामान अपने साथ हो तो किसी पर निर्भर नहीं होना पड़ता। तोशा – खाने का सामान।

बगुला मारे पखना हाथ : मुर्गा या बत्तख मारने पर तो मांस हाथ आएगा पर यदि बगुले को मारोगे तो केवल पंख हाथ लगेंगे। कहावत का अर्थ है कि किसी गरीब आदमी को सताने से क्या हासिल होगा।

बगुलों की लड़ाई में चोंचों की खटखट : दो डरपोक लोग आपस में लड़ रहे हों और एक दूसरे को नुकसान पहुँचाने की हिम्मत न कर पा रहे हों तो उन का मजाक उड़ाने के लिए।

बचाया सो कमाया : धन बचाना भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना धन कमाना। क्रिकेट के खेल में भी कहते हैं runs saved are runs made.

बचे नर, हजार घर : आदमी की जान बची रहे तो घर तो बहुत से मिल जाएंगे।

बच्चा जने कोई, गोंद मखाने खाए कोई : पहले जमाने में स्त्रियों को प्रसव के बाद गोंद, मखाने, घी, मेवा (हरीरा, पंजीरी) इत्यादि खाने को मिलते थे। कहावत में कहा गया है कि प्रसव का कष्ट किसी और ने उठाया, और गोंद मखाने किसी और को खाने को मिल रहे हैं।

बच्चा बूढ़ा एक समान : बूढ़ा आदमी भी बच्चों के समान जिद्दी और मनचला हो जाता है। अधिक बूढ़ा होने पर मल मूत्र पर भी उसका नियंत्रण नहीं रहता।

बच्चे तो पेट में भी लातें मारते हैं : बच्चों की शैतानियों पर कही गई कहावत।

बच्चे पाले दूधों भात, बड़े हुए तो मारें लात : नालायक पुत्र के लिए।

बच्चे रोवें तब फूहड़ पोवे : जब बच्चे भूख से रोने लगते हैं तो फूहड़ स्त्री रोटी बनाने बैठती है।

बच्चों और मूर्खो के पेट में बात नहीं पचती : अर्थ स्पष्ट है।

बच्चों के पैर और बुड्ढों के मुँह खुजलाते हैं : बच्चों के पैर खुजलाते हैं अर्थात बच्चे एक जगह बैठते नहीं हैं, बुड्ढों के मुँह खुजलाते हैं मतलब बुड्ढे लोग चुप नहीं बैठते।

बच्चों के बिना घर कैसा : बच्चों से ही घर में रौनक होती है।

बच्चों से बोलूं नहीं, जवान मेरो भैया, बुड्ढन को छोडूँ नहीं चाहें ओढ़ें दस रजैयाँ (चाहें करें दय्या मैया) : जाड़े का मौसम ऐसा कहता है।

बछवा बैल जुताय जोय, न हल बहे न खेती होय : खेती से सम्बन्धित अधिकतर कहावतें घाघ ने कही हैं। घाघ कहते हैं कि जो बछवा बैल (एक विशेष प्रकार का बैल) से हल जोतने की कोशिश करेगा वह खेती नहीं कर पाएगा।

बछिया मरी तो मरी कलकत्ता तो देखा : कुछ नुकसान हुआ तो कुछ फायदा भी हो गया।

बजरंग बली का सोटा, फूट जाए भंगेड़ी का लोटा : भांग पीने वाले को डराने के लिए।

बजा दे बेटा ढोलकी, मियाँ खैर से आए : किसी काम में असफल हो कर कोई जान बचा कर लौट आया हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए।

बजाज की गठरी का झींगुर मालिक : दूसरों के माल को अपना समझ कर घमंड करना।

बज्जड़ परे कहाँ, तीन कायथ जहाँ : जहाँ तीन कायस्थ हों वहाँ बर्बादी होना तय है। कायस्थों को कचहरी का पर्यायवाची माना जाता था।

बटिया खेती सांट सगाई, जा में नफा कौन ने पाई : खेती को बटाई पे करने पर नफा नहीं मिलती और सांटे की सगाई (जिस घर में लड़की दी जाए उसी घर की लड़की को बहू बना कर अपने घर में लाया जाए) में दहेज़ आदि नहीं मिलता।

बटेऊ खांड मांडे खाए, कुतिया की जीभ जले : बटेऊ – राहगीर। राह चलता आदमी कोई अच्छी चीज़ खा रहा है, उसे देख कर कुतिया की जीभ जल रही है। दूसरे की ख़ुशी देख कर जलना।

बड़ खुस बनिया, दमड़ी दान : बनियों की कंजूसी पर व्यंग्य। बनिया बहुत खुश होगा तो दमड़ी दान में देगा।

बड़ संग रहियो तो खइयो  बीड़ा पान, छोट संग रहियो तो कटइयो दुनु कान : (भोजपुरी कहावत) सज्जन का संग अच्छा है जबकि दुष्टों का संग करने से हानि होती है। पूरब में अतिथि का सत्कार करने के लिए पान खिलाने की प्रथा थी। किसी बड़े आदमी के साथ कहीं जाओगे तो पान खाने को मिलेगा और नीच आदमी के साथ जाओगे तो दोनों कान कटेंगे।

बड़का दुश्मन कौन, माँ का पेट : माँ का पेट – माँ के पेट से उत्पन्न दूसरी सन्तान अर्थात भाई। जायदाद के लिए भाइयों में दुश्मनी हो जाती है।

बड़न की बात बड़े पहचाना बड़े लोगों के बातें बड़े ही समझ सकते हैं : इसको मज़ाक में अधिक प्रयोग करते हैं (दो मूर्ख लोग एक दूसरे की बड़ाई कर रहे हों तो)। पूरी कहावत इस प्रकार है – काँधे धनुष, हाथ में बाना, कहाँ चले दिल्ली सुल्ताना, बन के राव विकट के राना, बड़न की बात बड़े पहचाना। इसके पीछे एक कहानी है। एक बार एक धुनिया (रुई धुनने वाला) अपना धनुष जैसा औजार लिए जंगल में हो कर जा रहा था। एक सियार ने उसे देखा तो उसे शिकारी समझ कर डर गया। सियार ने उस की चापलूसी करने के लिए कहा कि कंधे पर धनुष और हाथ में वाण ले कर दिल्ली के सुल्तान कहाँ जा रहे हैं? धुनिया ने कभी सियार नहीं देखा था, वह उसे शेर समझ कर डर गया और उसे मक्खन लगाने के लिए बोला कि हे जंगल के राजा, बड़े लोगों को बड़े ही पहचानते हैं। आज कल के लोगों ने धुनिया और उस का अस्त्र नहीं देखा होगा।

बड़न को बड़ो पेट : बड़े आदमियों का पेट भी बड़ा होता है। जो जितना बड़ा हाकिम होगा वह उतनी ही बड़ी रिश्वत मांगेगा।

बड़सिंगा मत लीजो मोल, कुएं में डारौ रुपया खोल : बड़े सींग वाला बैल ठीक से काम नहीं करता। उसे खरीदना कुएं में रूपये डालने जैसा है। (घाघ की कहावतें)

बड़ा टूट कर भी बड़ा ही रहता है : अर्थ स्पष्ट है। बड़े आदमी को कुछ घाटा भी हो जाए तब भी वह छोटा नहीं हो जाता।

बड़ा धोता बड़ा पोथा, पंडिता पगड़ा बड़ा, अक्षरं नैव जानामि, स्वाहा स्वाहा करोम्यहम : पाखंडी पंडितों के लिए। बड़ी धोती, बड़ी पगड़ी पहन कर बड़ी पोथी हाथ में लिए हैं। मंत्र वंत्र कुछ नहीं जानते हैं, केवल कुछ बुदबुदा कर जोर से स्वाहा स्वाहा करते हैं।

बड़ा निवाला खाइए, बड़ा बोल न बोलिए : यदि आप धन धान्य से सम्पन्न हैं तो अच्छा खाइये पर अहंकार मत करिए।

बड़ा मरे बड़ाई को, छोटा मरे लाड़ को : वयस्क लोग जीवन में कुछ बनने के लिए संघर्ष कर रहे होते हैं। बच्चों को इस से कोई मतलब नहीं होता उन्हें केवल लाड़ प्यार ही चाहिए।

बड़ा रोवे बड़ाई को, छोटा रोवे पेट को : बड़ा आदमी अपना बड़प्पन सिद्ध करने लिए परेशान रहता है और छोटा आदमी पेट भरने के लिए।

बड़ा शोर सुनते थे कि हाथी की पूंछ है, पास जाके देखा तो सुतली बंधी थी : अर्थ स्पष्ट है। किसी स्थान या व्यक्ति के बारे में बहुत तारीफ सुनी हो और पास जाकर देखने पर वास्तविकता कुछ और निकले तो ऐसा कहा जाता है।

बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर (पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर) : कोई व्यक्ति बड़ा अधिकारी, नेता या अमीर बन गया पर आम लोगों की पहुँच से दूर है उस के लिए कहा गया है।

बड़ी असामी, बड़ी फरमाइश : 1. बड़े लोगों की फरमाइशें भी बड़ी होती हैं। 2. बड़ी असामी से बड़ी रिश्वत मांगी जाती है।

बड़ी नाव की बड़ी विपदा : जो चीज़ जितनी बड़ी होगी उस की विपत्ति भी उतनी ही कठिन होगी।

बड़ी बड़ी बात बगल में हाथ : जो लोग बातें बड़ी बड़ी करते हैं पर काम कुछ नहीं करते।

बड़ी बहू को बड्डा भाग, छोटो बनड़ो घनो सुहाग : (राजस्थानी कहावत) अगर पत्नी की उम्र पति से अधिक है तो उसे भाग्यशाली मानते हैं, पति आयु में छोटा होगा तो पत्नी से अधिक दिन जीएगा एवम् पत्नी सुहागन रहेगी।

बड़ी बहू, बड़ा भाग : अर्थ ऊपर वाली कहावत की भाँति।

बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है : जिस प्रकार बड़ी मछली छोटी मछली को निगल जाती है उसी प्रकार बड़े व्यापार छोटे व्यापार को और बड़े अपराधी छोटे अपराधियों को निगल जाते हैं।

बड़ी रातों के बड़े ही सवेरे : अधिक कष्ट के बाद सुख भी अधिक ही मिलता है।

बड़ी हैं जेठानी तो रखें अपना पानी : यहाँ पानी का अर्थ मान सम्मान से है। जो बड़े हैं उन्हें अपने बड़प्पन का ध्यान स्वयं रखना चाहिए।

बड़े आदमी का कुत्ता भी घमंडी होता है : जिस के पास सत्ता या ताकत हो उस को अहंकार हो जाना स्वाभाविक है, लेकिन देखा यह गया है कि उसके नौकर चाकर और चमचे भी अहंकारी हो जाते हैं।

बड़े आदमी की एक बात, बड़े घोड़े की एक लात : (बुन्देलखंडी कहावत) बड़े आदमी की एक ही बात काफी होती है और बड़े घोड़े की एक ही लात।

बड़े आदमी के चेले बनो कंगाल के दोस्त नहीं : कंगाल से दोस्ती करोगे तो उस की सहायता करने में ही उमर बीत जाएगी। बड़े आदमी के चेले बनने से खुद बड़ा बनने की संभावना हो जाती है।

बड़े आदमी ने साग खाया तो कहा सादा मिजाज़ है, गरीब ने साग खाया तो कहा कंगाल है : अर्थ स्पष्ट है। नेताजी खद्दर पहनते हैं तो उनकी महानता मानी जाती है, गरीब आदमी पहनता है तो उसका मजाक उड़ाया जाता है।

बड़े कढ़ाई में तले जाते हैं : कढ़ाई में तल कर दाल के बड़े बनाए जाते हैं। इन शब्दों का दूसरा अर्थ यह है कि घर के बड़ों को बहुत कष्ट उठाना पड़ता है।

बड़े की पीठ काली करें, छोटे का मुहँ काला : बड़े आदमी की बुराई करनी है तो उसकी पीठ पीछे ही करना चाहिए, छोटे आदमी की करनी है तो उसके मुँह पर कर सकते हो।

बड़े की बड़ाई न छोटे की छुटाई : ऐसे व्यक्ति के लिए जो न बड़ों का सम्मान करता हो और न ही छोटों को स्नेह करता हो।

बड़े गाँव जाऊं, बड़ा लड्डू खाऊं : बड़ी जगह पर कमाई अधिक होने की संभावना अधिक होती है।

बड़े घड़े के ठीकरे किस काम के : टूटे हुए टुकड़े किसी काम के नहीं होते चाहे छोटे घड़े के हों या बड़े खड़े के। ।

बड़े घर पड़ी, पत्थर ढो ढो मरी : लड़की ऐसे घर में ब्याह के गई जहाँ बहुत बड़ा परिवार था। बेचारी काम करते करते मर गई।

बड़े घर में बेटी दी, उससे मिलना भी मुश्किल : बेटी के घर खाली हाथ नहीं जाते हैं। बेटी बड़े घर की बहू है, हर बार उसी के अनुरूप भेंट ले कर जाना पड़ेगा।

बड़े न बूड़न देत हैं जाकी पकड़ी बांह, जैसे लोहा नाव में तिरत रहे जल मांह (संगत सार अनेक फल, लोहा तिरे काठ के संग) : बूड़ना – डूबना। बड़े लोग जिसकी बांह पकड़ लेते हैं उसको डूबने नहीं देते, जैसे लकड़ी के साथ लोहा भी पानी में तैरता रहता है।

बड़े पेड़ों की बड़ी शाखें : बड़े संगठनों या प्रतिष्ठानों की शाखाएं भी बड़ी होती हैं।

बड़े बड़ाई ना करैं, बड़ो न बोलैं बोल, (हीरा कब मुख ते कहै, लाख टका मेरो मोल) : जो लोग वास्तव में महान होते हैं वे अपने मुँह से अपनी बड़ाई नहीं करते। हीरा अपने मुँह से कभी नहीं कहता कि उसका मोल लाख रुपये है।

बड़े बड़े बादल टकराते हैं तो बिजली चमकती है : बड़े लोगों की लड़ाई के परिणाम भयानक हो सकते हैं।

बड़े बर्तन की खुरचन ही बहुत होती है : शाब्दिक अर्थ तो स्पष्ट है, कहावत का अर्थ यह है कि बड़े लोगों के यहाँ का बचा खुचा भी गरीब के लिए बहुत है। (अमीर का उगाल, गरीब का आधार)।

बड़े बात से, छोटे लात से : बड़े लोगों को बातचीत द्वारा समझाया जा सकता है किन्तु नीच लोगों को दंड दे कर ही समझाया जा सकता है।

बड़े बे आबरू होके, तेरे कूचे से हम निकले : अपमानित हो कर कहीं से निकलना पड़े तो।

बड़े बोल का सिर नीचा (घमंडी का सिर नीचा) : अहंकारी को कभी न कभी नीचा देखना पड़ता है।

बड़े मियाँ तो बड़े मियाँ छोटे मियाँ सुभान अल्लाह : जब कोई बड़े ओहदे वाला आदमी गड़बड़ियां करने वाला हो और उसके नीचे काम करने वाले और अधिक खुराफाती हों तब यह कहावत कही जाती है।

बड़े लोगों की डांट दूध मलाई होती है : बुजुर्गों की डांट का बुरा बिल्कुल नहीं मानना चाहिए। इससे केवल हमारी भलाई ही होती है।

बड़े लोगों के कान होते हैं आँखें नहीं : बड़े लोग केवल अपने चापलूसों की बातें सुन कर विश्वास कर लेते हैं, स्वयं देख कर सच्चाई जानने की कोशिश नहीं करते।

बड़े शहर का बड़ा ही चाँद : बड़े शहरों की हर बात निराली होती है।

बड़ों का बड़ा मुँह : बड़े लोगों की मांग भी बड़ी होती है (वे अधिक मुँह फैलाते हैं)।

बड़ों की बड़ी बात : 1. बड़े लोगों की बड़ी बड़ी बातें होती हैं। छोटे लोग उन से बराबरी करने की कोशिश में नुकसान उठाते हैं। 2. बुजुर्ग लोगों की सलाह बड़े काम की होती है।

बड़ों के कहे और आंवलों के खाए का पीछे ही स्वाद आता है : आंवला खाओ तो पहले कड़वा लगता है बाद में उसका स्वाद आता है, इसी प्रकार बड़े लोगों की सलाह पहले बुरी लगती है पर बाद में उसका महत्व मालूम पड़ता है।

बड़ों के पाँव सिर पर : बड़ों की आज्ञा शिरोधार्य करनी चाहिए।

बड़ों के बड़े हाथ : बड़ा आदमी किसी की बहुत सहायता कर सकता है।

बड़ों को टोपी नहीं, कुत्ते को पजामा : घर के बड़ों की अनदेखी कर के आलतू फ़ालतू लोगों को लाभ पहुँचाना।

बड़ों को बड़े ही कलेस : बड़ों की समस्याएं भी बड़ी होती हैं।

बड़ों को लड़ा कर बच्चे फिर एक हो जाते हैं : बच्चों की लड़ाई में बड़े शामिल हो जाते हैं और आपसी रंजिश पाल लेते हैं जबकि बच्चे फिर एक हो जाते हैं।

बड़ों को होवे दुःख बड़ा, छोटों से दुःख दूर, तारे तो न्यारे रहें गहे राहु ससि सूर : बड़े लोगों की परेशानियाँ भी बड़ी होती हैं, जबकि छोटे लोग उन विपदाओं से दूर रहते हैं। राहु, सूर्य और चन्द्रमा को ही ग्रसता है तारों को नहीं।

बढ़िया मिल गया तो बिटिया के भाग, न मिला तो नाऊ बामन मारियो : (हरियाणवी कहावत) पहले के जमाने में नाई और ब्राह्मण रिश्ते करा दिया करते थे। बढ़िया रिश्ता मिल गया तो कहेंगे हमारी बेटी का भाग्य अच्छा था, और खराब मिला तो नाई और पंडित को मारो।

बढ़े बाल औ मैले कपड़े और करकसा नार, सोने को धरती मिले नरक निसानी चार : कहावत में घोर दुर्दशा के चार लक्षण बताए हैं – बढ़े हुए बाल (पहले जमाने में बढ़े हुए बालों को बहुत बुरा माना जाता था), मैले कपड़े, कर्कश पत्नी और जमीन पर सोना।

बढ़ें तो अमीर, घटें तो फकीर, मरें तो पीर : मुसलमानों के विषय में अन्य धर्म वालों का व्यंग्य – वे तरक्की करते हैं तो अमीर बन जाते हैं, नुकसान हो जाए तो फकीर बनने का नाटक कर के मौज करते हैं और मर जाएं तो पीर बन कर अपनी पूजा करवाते हैं। मतलब हर परिस्थिति का लाभ उठाते हैं।

बतख तिरे तो तिरन दे, तू क्यों तैरे काग : बत्तख तैरती है तो उसे तैरने दे, तू तैरने की कोशिश मत कर हे कौवे। दूसरों की नकल करने में अपना नुकसान मत करो।

बात मानूँगा लेकिन खूँटा यहीं गाड़ा जाएगा :  (भोजपुरी कहावत)। सबकी सुनना लेकिन अपने मन की ही करना।

बत्तख की नकल करने में कौआ डूब जाता है : बिना सोचे समझे किसी की नकल करने में आदमी बहुत नुकसान उठा सकता है, विशेषकर यदि कोई गरीब आदमी किसी अमीर की नकल करे तो।

बद अच्छा बदनाम बुरा : बहुत से लोग वाकई में बुरे होते हैं लेकिन लोग उनके बारे में सच नहीं जानते इसलिए उन्हें अच्छा समझते हैं, कुछ लोग इतने बुरे नहीं होते पर किसी कारणवश बदनाम हो जाते हैं और लोग उन्हें बहुत बुरा समझते हैं।

बद बदी से न जाए तो नेक नेकी से भी न जाए : अगर बुरा आदमी बुराई नहीं छोड़ सकता तो अच्छे आदमी को अच्छाई भी नहीं छोड़नी चाहिए।

बदनाम भी होंगे तो क्या नाम न होगा : कुछ लोगों को नाम की इतनी भूख होती है कि वे उसके लिए गलत काम करने को भी तैयार हो जाते हैं, उन्हें बदनामी में भी अपनी प्रसिद्धि दिखाई देती है।

बदली की छाँव क्या : बादल अभी यहाँ तो कुछ देर बाद कहीं और होता है, उसकी छाँव पर आप भरोसा नहीं कर सकते। जो भी चीज़ क्षण भंगुर है उस के सहारे नहीं बैठना चाहिए।

बन आई कुत्ते की जो पालकी बैठा जाए : किसी दुष्ट व्यक्ति को या बड़े आदमी के मुंहलगे नौकर को ठाठ बाट से रहता देख कर आम आदमी के उद्गार।

बन में अहीर, नैहर में जोय, जल में केवट, काऊ के न होय : अहीर जब जंगल में हो, पत्नी अपने मायके में हो और केवट जल में नाव खे रहा हो, ये तीनों उस समय किसी के सगे नहीं होते।

बन में उपजे सब कोई खाए, घर में उपजे घर खा जाए : यह एक पहेलीनुमा कहावत है जिसका उत्तर है – फूट जोकि एक खरबूजे की जाति का फल होता है। यह पकने पर अपने आप फूट जाता है। कहावत में कहा गया है कि फूट अगर वन में उगती है तो उसे सब कोई खाते हैं और अगर घर में उगती है (आपसी फूट) तो घर को खा जाती है।

बन में बेर पके, कौवा के कौन काम के : (भोजपुरी कहावत) वन में बेर पक रहे हैं तो कौवे को उससे कोई लाभ नहीं होने वाला, क्योंकि वह तो शहर में रहने लगा है।

बनज में भाई बंदी क्या : बनज – वाणिज्य, व्यापार। व्यापार में भाई बन्धु नहीं देखे जाते।

बनते देर लगती है, बिगड़ते देर नहीं लगती : अर्थ स्पष्ट है।

बनत काम में बाधा डालो कुछ तो पंच दिलाएगा : (भोजपुरी कहावत) बनते काम में बाधा डालो। झगड़ा निपटाने की एवज में कुछ न कुछ तो मिल जाएगा।

बनिए का बहकावा और जोगी का फिटकारा : इनसे बचना मुश्किल है। फिटकारा – श्राप।

बनिए का बेटा कुछ देख कर ही गिरता है : बनिये इतने चालाक माने गये हैं कि अगर गिरते भी हैं तो कुछ देख कर उसे उठाने के लिए गिरने का बहाना करते हैं।

बनिए का लिखा बनिया बांचे : कारोबार के रहस्य दूसरा कारोबारी ही समझ सकता है।

बनिए की उचापत घोड़े की दौड़ सी : बनिए का उधार घोड़े की तरह तेज दौड़ता है।

बनिए की कमाई उसके चूतड़ों में होती है : बनिया गद्दी से चिपक कर बैठता है तभी कुछ कमा पाता है।

बनिए की सलाम बेगरज नहीं होती : बनिया अगर किसी को सलाम कर रहा है तो उस का कुछ न कुछ स्वार्थ अवश्य होगा।

बनिक पुत्र जाने कहा गढ़ लेवे की बात : बनिए का बेटा किला खरीदने की बात नहीं सोच सकता। छोटी सोच रखने वाला व्यक्ति बहुत बड़ा काम नहीं कर सकता।

बनिया अपना गुड़ छिपा कर खाता है : बनिया अपने धन का दिखावा नहीं करता।

बनिया कब कबूले कि नफा बहुत है : बनिया अपने मुँह से कभी नहीं कहता कि उसे व्यापार में बहुत लाभ है।

बनिया को सखरच, ठाकुर को हीन, वैद्य पूत व्याध नहिं चीन्ह, पंडित चुप चुप, बेसवा (वैश्या) मईल, घाघ कहहिं पांचो घर गइल : बनिए का बेटा खर्चीला हो, ठाकुर का बेटा तेजहीन हो, वैद्य अपने पुत्र की बीमारी न समझ पाए (या वैद्य पुत्र को बीमारियों की पहचान न हो), पंडित चुप रहने वाला हो और वैश्या मैले वस्त्र पहनने वाली हो, ये पाँचों घर चले जाते हैं अर्थात व्यवसाय नहीं कर पाते हैं।

बनिया खाट में तो बामन ठाठ में, बनिया ठाठ में तो बामन खाट में : बनिया बीमार होगा तो पूजा पाठ करेगा जिससे पंडित की मौज होगी और बनिया ठाठ में होगा तो पंडित भूखा मरेगा।

बनिया गम खाने में सयाना : गम खाना – कष्ट को सह लेना। बनिया व्यापार में होने वाले भांति भांति के नुकसान झेल कर परेशानियों का अभ्यस्त हो जाता है।

बनिया गुड़ न दे गुड़ की सी बात तो करे : एक बनिए से किसी ने थोड़ा गुड़ मांगा। बनिए ने कहा, चलो आगे बढ़ो, चले आते हैं मुफ्त में मांगने। हराम का आ रहा है क्या। उसने कहा भैया गुड़ न दो गुड़ जैसी मीठी बात तो बोल सकते हो। व्यापार में बुजुर्ग लोग बच्चों को समझाते हैं कि हर एक किसी से मीठा बोलना सीखो। किसी को मना भी करो तो भी मिठास के साथ।

बनिया चाहे बैठा खाए, मूल धन कहीं न जाए : बनिया ही क्यों, हम सभी यह चाहते हैं कि हमें बैठे बैठे (बिना काम किए) खाने को मिलता रहे और हमारी पूँजी कम न हो।

बनिया नरम के, नारी सरम के और सासन गरम के : सासन – शासन। बनिया तभी सफल हो सकता है जब वह नरम व्यवहार करे, नारी वही सम्मान पाती है जो लज्जावान हो और शासन वही कामयाब होता है जहाँ सख्ती हो।

बनिया बामन बन जाए तो सौदा तौले कौन : समाज में जिसका जो काम उसे वही करना चाहिए तभी समाज की व्यवस्था सुचारू रूप से चलती है। बनिया ब्राह्मण बन जाएगा तो सामान कौन बेचेगा।

बनिया मारे जान, ठग मारे अनजान : बनिया जानने वाले को ठगता है और ठग अनजान व्यक्ति को।

बनिया मीत न बेसवा सत्ती, सुनार साँच न एको रत्ती : बनिया किसी का दोस्त नहीं हो सकता, वैश्या पतिव्रता नहीं हो सकती और सुनार सच्चा नहीं हो सकता। एको रती – रत्ती भर भी।

बनिया मीत न वेश्या सती, कागा हंस न गदहा जती : बनिया किसी का मित्र नहीं हो सकता, वैश्या सती सावित्री नहीं हो सकती, कौवा हंस नहीं हो सकता और गधा सन्यासी नहीं हो सकता।

बनिया मेवे का रूख : बनिए को खुश करो तो बहुत कुछ मिल सकता है।

बनिया या तो आंट मे दे या खाट में दे। आंट – परेशानी : बनिया मुसीबत में फंसता है तो पैसा खर्च करता है, या बीमार पड़ता है तो करता है।

बनिया रीझे तो हँस के दांत दिखावे : बनिया किसी से खुश होता है तो देता कुछ नहीं है, केवल हँस के दांत दिखा देता है।

बनिया रीझे, हर्रे दे : बनिया किसी से खुश होगा तो क्या देगा – हर्र। हर आदमी की अपनी अलग मानसिकता होती है जिस के अनुसार ही वह कुछ दे सकता है।

बनिया लड़ेगा भी तो गढी ईंट को ही उखाड़ेगा : 1. बनियों की कंजूसी पर व्यंग्य है। 2. बनिया लड़ता है तो पुराने बही खाते निकाल कर देनदारी दिखाता है।

बनिया लिखे पढ़े करतार : कुछ तो बनिए की लिखावट वैसे ही गंदी होती है, कुछ वह जान बूझ कर गंदा लिखता है जिसे कोई पढ़ न पाए। पहले के जमाने में बही खाते लिखने में मुंडी भाषा का प्रयोग होता था जिसमें मात्राएँ नहीं होती थीं इसलिए उसे पढ़ना और मुश्किल होता था।

बनिया हाट न छेडिये, जाट जंगल के बीच : अपने अपने स्थान पर सब मजबूत होते हैं। बनिए को बाज़ार में मत छेड़ो और जाट को जंगल में।

बनिये का जी धनिये बराबर : बनियों की कायरता और कंजूसी पर व्यंग्य।

बनिये को पसंगे की आस : अधिक लाभ कमाने के लिए बनिए अपने तराजू में पासंग की जुगाड़ कर लेते हैं जिस से तराजू कम तौलता है।

बनिये से सयाना, सो दीवाना : बनिये से चतुर कोई नहीं होता।

बनी के सौ साले, बिगड़ी का एक बहनोई भी नहीं : आपके अच्छे दिनों में बहुत लोग आपसे रिश्ते निकाल लेते हैं। बुरे दिनों में कोई पास नहीं फटकता।

बनी न बिगारी तो बुंदेला काहे के : (बुन्देलखंडी कहावत) बुंदेले लोगों को यह कहने में गर्व होता है कि वे किसी की बनी बनाई बात को बिगाड़ने की क्षमता रखते हैं।

बनी फिरे बेसवा, खोले फिरे केसवा : पहले के जमाने में स्त्रियों के लिए बाल खोल कर घूमना बहुत निर्लज्जता की निशानी मानी जाती थी, केवल वैश्याएं ही ऐसा कर सकती थीं। बेसवा – वैश्या।

बनी बनावे बानिया, बनी बिगाड़े जाट, मूंड़ें सीस सराह के, डोम कवी अरु भाट : बनिया बनी हुई बात को और बनाता है जबकि जाट बनी हुई को बिगाड़ देता है। डोम, कवि और भाट आपकी प्रशंसा कर के आपको मूँड़ते हैं। मूंड़ें सीस – सर मूंडते हैं, सराह के – प्रशंसा कर के।

बनी बनी के सब कोई साथी, बिगड़ी के कोई नाहीं (बनी के सब यार हैं) : जब आप के दिन अच्छे होते हैं तो सब आपके दोस्त होते हैं।

बने को सब ही सराहें, बिगड़े को कहें कमबख्त : जिसका काम बन जाए उसकी सब सराहना करते हैं। जिसका बिगड़ जाए उसे मूर्ख और अभागा कहते हैं।

बन्दर एक निसाचरी लाया कर अपनी अर्धंगी, लालदास रघुनाथ कृपा से पैदा हुए फिरंगी : बंदर ने एक राक्षसी से शादी कर ली, उनसे जो संतानें पैदा हुईं वही फिरंगी (अंग्रेज़) हुए। इसके पीछे एक किंवदन्ती भी है कि भगवान राम ने वानरों को वरदान दिया था कि उनके वंशज कलियुग में संसार पर राज करेंगे।

बन्दर कभी गुलाटी मारना नहीं भूलता : धूर्त व्यक्ति कभी धूर्तता करने से बाज नहीं आता।

बन्दर का जखम जल्दी न भरे : क्योंकि बन्दर उसे हर समय नोचता खुजाता रहता है।

बन्दर का हाल मुछंदर जाने : मुछन्दर बंदरों के सरदार को कहते हैं। जो सच्चा नेता है वही जनता का हाल जान सकता है।

बन्दर की आशनाई, घर में आग लगाई : बंदर से प्रेम करने का अर्थ है अपना घर बर्बाद करना। कहावत का अर्थ है कि अपात्र से प्रेम नहीं करना चाहिए। आशनाई – प्रेम।

बन्दर की दोस्ती, जी का जियान : ऊपर वाली कहावत की भांति।

बन्दर के गले में मोतियों का हार : किसी अपात्र को बहुमूल्य चीज़ मिल जाना (जैसे किसी कुरूप व्यक्ति को बहुत सुंदर पत्नी मिल जाना)।

बन्दर के हाथ में नारियल : किसी मूर्ख व्यक्ति को कोई ऐसी चीज़ मिल जाना जिसका वह उपयोग न कर सकता हो (बंदर नारियल को तोड़ नहीं पाता है)।

बन्दा जोड़े पली पली और राम लुढ़ावे कुप्पा : पली – एक प्रकार का चमचा जो कुप्पे या पीपे में से घी, तेल निकालने के काम आता है, कुप्पा – बड़ा मटका। आदमी चमचा चमचा भर के इकट्ठा करता है, ईश्वर एक साथ कुप्पा ही लुढ़का देता है।

बरखा हो तो खेलूं खाऊँ, काल पड़े घर जाऊं : वर्षा हो और अच्छी खेती हो तो यहीं मौज करेंगे, अकाल पड़ा तो घर चले जाएंगे। विशुद्ध स्वार्थ।

बरगद का भार जटाएँ झेलती हैं : बरगद का वृक्ष जब बहुत फ़ैल जाता है तो उसका तना पूरा भार नहीं संभाल पाता। बरगद की जो जड़ें (जटाएं) पेड़ से लटकती हैं वे जमीन तक पहुँच जाती हैं और मोटी हो कर तने के समान पेड़ का भार संभालती हैं। इसी प्रकार बड़े परिवार में एक बुजुर्ग पर सारी जिम्मेदारी न डाल कर और सदस्यों को भी परिवार का भार उठाना चाहिए।

बरगद के नीचे पेड़ नहीं बढ़ते : बड़े पेड़ की छाँव में पेड़ नहीं बढ़ते। बच्चों को सीख देने के लिए यह कहावत कही जाती है कि हमेशा माँ बाप के साए में रहने वाला बच्चा स्वतंत्र रूप से कुछ नहीं बन सकता।

बरगद बोलते बोलते पीपल बोलने लगे : बात बदलने वाला व्यक्ति।

बरतन से बरतन खटकता ही है (जहां चार बर्तन होंगे वहां खट्केंगे भी) : जब चार लोग साथ रहते हैं तो कभी कभार उनमें थोड़ा बहुत मन मुटाव हो जाना स्वाभाविक है।

बरसा पानी बह न पावे, तब खेती के मजा देखावे : वर्षा के पानी को सहेजने से ही खेती अच्छी हो सकती है।

बरसात बर के साथ : वर्षा का आनंद पति के साथ ही आता है।

बरसात में घोंघे का मुँह भी खुल जाता है : कोई मूर्ख व्यक्ति अचानक किसी बात के बीच में बोल पड़े तो उस का मजाक उड़ाने के लिए।

बरसें कम, गरजें ज्यादा : जो लोग बातें बढ़ बढ़ कर करते हैं और काम कम करते हैं उनके लिए।

बरसेगा मेह होंगे अनंद, तुम साह के साह हम नंग के नंग : वर्षा होगी, खेती फले फूलेगी, अमीर आदमी और अमीर हो जाएगा, पर गरीब गरीब ही रहेगा।

बरसो राम कड़ाके से, बुढ़िया मर गयी फाके से : तेज वारिश में बच्चे खुश हो कर बोलते हैं कि हे भगवान जोर से पानी बरसाओ जिससे बुढ़िया भूख से मर जाए। बच्चों को बुड्ढे लोगों से कुछ विशेष बैर होता है।

बरसौ राम जगै दुनिया, खाय किसान मरै बनिया : किसान भगवान से वर्षा के लिए प्रार्थना करते हुए ऐसा कहता है।

बरात की सोभा बाजा, अर्थी की सोभा स्यापा : बरात में जितने अधिक बाजे हों उसे उतना ही प्रभाव छोड़ने वाली माना जाता है, अर्थी में जितना अधिक क्रन्दन हो उसे उतना ही प्रभावी माना जाता है। (स्यापा – रोना पीटना)

बराबर से लड़े और ऊपर से रोवे : कुछ लोग लड़ाई पूरी करते हैं पर साथ में अपने को सताया हुआ दिखाने के लिए रोते भी जाते हैं.

बराबरों से कीजिए ब्याह, बैर औ प्रीत : विवाह आदि संबंध और प्रेम अपने से बराबर वालों में करना चाहिए, दुश्मनी भी अपने से बराबर वालों से करना चाहिए। अपने से बहुत बड़े से दुश्मनी करोगे तो बर्बाद हो जाओगे, बहुत छोटे से दुश्मनी करोगे तो आप को शोभा नहीं देगा।

बल बुद्धी की बोरियां, बिकें न हाट बजार : बल और बुद्धि बाजार में नहीं मिलते। ये परिश्रम से और भाग्य से ही मिलते हैं।

बलि का बकरा भी हँसे, ओछी पूजा देख : 1. कहीं पर कोई अधकचरा पंडित गलत सलत पूजा करा रहा हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए। 2. न्यायालयों में भ्रष्टाचार और गलत सलत निर्णय देख कर वादी और प्रतिवादी भी विद्रूप की हंसी हँस कर रह जाते हैं।

बलि के समय बकरा गायब : किसी समारोह में उपयुक्त समय पर यदि मुख्य व्यक्ति अनुपस्थित हो मजाक में यह बात कही जाती है (जैसे विवाह में दूल्हा ही गायब हो जाए)।

बस कर मियाँ बस कर, देखा तेरा लश्कर : जो अपनी बहादुरी की झूठी शान बघार रहा हो उससे कही जाने वाली कहावत।

बस हो चुकी नमाज, मुसल्ला बढ़ाइये : मुसल्ला – नमाज के लिए बिछाई जाने वाली दरी। काम पूरा हो जाने के बाद किसी से जाने के लिए कहने का एक तरीका यह भी है।

बसाव शहर का और खेत नहर का : शहर में बसना अच्छा होता है और नहर किनारे का खेत अच्छा होता है। नहर किनारे के खेत में सिंचाई में आसानी होती है।

बसि कुसंग चाहत कुसल, यह रहीम जिय सोस, (महिमा घटी समुद्र की, रावन बस्यो परोस) : रहीम इस बात पर अफ़सोस करते हैं कि व्यक्ति बुरी संगत में रह कर भी अपनी कुशल चाहता है। रावण के पड़ोस में रहने के कारण समुद्र को अपमानित होना पड़ा था।

बसे बुराई जासु तन, ताहि को सन्मान : यहाँ सम्मान का अर्थ हृदय से किया गया सम्मान नहीं बल्कि मजबूरीवश किया गया दिखावटी सम्मान है। इस प्रकार का सम्मान दुष्ट लोगों को ही मिलता है। सूर्य चन्द्रमा की पूजा न कर के लोग शनि और राहु की ही पूजा करते हैं.

बस्ती ऊजड़ को खावे : जब बस्तियों का विस्तार होता है तो जंगल काटे जाते हैं और बस्तियों में रहने वाले मनुष्य वनों का अत्यधिक दोहन भी करते हैं।

बस्ती की लोमड़ी बाघ को डराती है : बस्ती में रहने वाला कमजोर प्राणी भी सुविधाएँ मिलने के कारण शक्तिशाली हो जाता है।

बहता पानी निर्मला, खड़ा सो गंदा होय, (साधू जन रजता भला, दाग लगे न कोय) : बहता हुआ पानी स्वच्छ रहता है और यदि कहीं इकट्ठा हो जाए तो गंदा होने लगता है। इसी प्रकार साधु चलते फिरते ठीक रहते हैं, यदि एक स्थान पर रुक जाएं तो उनके चरित्र को दाग लग सकता है। पैसे के लिए भी ऐसा ही कहते हैं कि इकट्ठा किया हुआ धन पाप को जन्म देता है। इंग्लिश में इस आशय की एक कहावत है – Hoarded money becomes foul like standing water.

बहती गंगा में हाथ धो लो : मुफ्त में कोई सुविधा मिल रही हो तो उस का लाभ उठा लो।

बहते दरिया में चुल्लू भर लो : अवसर का लाभ उठा लो।

बहन के घर भाई कुत्ता, ससुरे के घर जमाई कुत्ता : विवाहित बहन के घर भाई को स्थाई रूप से नहीं रहना चाहिए और ससुराल में दामाद को घर जमाई बन कर नहीं रहना चाहिए। दोनों ही परिस्थितियों में व्यक्ति का कोई सम्मान नहीं होता।

बहन बत्तीस, भाई छत्तीस : जब भाई बहन एक से बढ़ कर एक हों तो।

बहन मरी तो जीजा किसके : जीजा से रिश्ता बहन के कारण ही होता है। बहन की मृत्यु हो जाए तो रिश्ते का आधार ही क्या रहा। इस प्रकार की एक कहावत है – बेटी मरी जमाई चोर।

बहरा पति और अंधी पत्नी, सदा सुखी जोड़ा : पति अगर बहरा हो तो पत्नी की हर समय की बक बक से परेशान नहीं होगा, और पत्नी अंधी हो तो हर समय कुछ न कुछ देख कर शक नहीं करेगी।

बहरा सुने धर्म की कथा : बहरा व्यक्ति प्रवचन सुने तो बेकार है। जिस ज्ञान को कोई ग्रहण ही नहीं कर सकता वह उस के लिए बेकार है।

बहरा सो गहरा। बहरा आदमी प्राय: गंभीर प्रवृत्ति का होता है।

बहरे आगे गावना, गूंगे आगे गल्ल, अंधे आगे नाचना, तीनों अल्ल बिलल्ल : बहरे के आगे गाना, गूंगे से बात करने की कोशिश करना और अंधे के आगे नृत्य करना ये तीनों मूर्खतापूर्ण कार्य हैं।

बहसू के नौ ठो हल, खेत में गया एको नहीं : बहसू – बहस करने वाला। बहुत बहस करने वाला व्यक्ति केवल बहस करना जानता है, अपने संसाधनों से काम लेना नहीं जानता।

बहादुरी का काम, चाहे नहीं नाम : जो सही मानों में बहादुर होते हैं वे नाम के लिए काम नहीं करते।

बहादुरी तो बैरी की भी सराही जाती है : शत्रु भी अगर वीर हो तो उस की वीरता की प्रशंसा करनी चाहिए।

बहु ऋणी, बहु धन्धी, बहु बेटियों का बाप, इन्हें कबहुं न मारिए, ये मर जाएँ आप : बहुत से लोगों से उधार लेने वाला, बहुत से व्यवसाय करने वाला और बहुत सी बेटियों का बाप, इनको कभी न मारो। ये बेचारे तो अपने आप मर जाते हैं।

बहु गुणी, बहु दुखी : जिसमें जितने अधिक गुण होते हैं वह उतना अधिक दुखी होता है। जो मूर्ख व्यक्ति है वह सबसे अधिक सुखी होता है।

बहु निबल मिल बल करें, करैं जो चाहे सोइ : कमजोर लोग यदि संगठित हो कर कार्य करें तो जो चाहें कर सकते हैं।

बहू सरम की बिटिया करम की : बहू वही अच्छी है जो लज्जावान हो, बेटी वही अच्छी है जो काम काज करती हो।

बहुत बोलना मूरखताई : बहुत बोलना मूर्खता की निशानी है।

बहुत सी कथनी से थोड़ी सी करनी भली : बहुत अधिक हांकने के मुकाबले थोड़ा सा काम कर के दिखाना अधिक अच्छा है।

बहू आई सास हरखी, पैर लगी तो परखी : बहू के आने पर सास को एकदम से बहुत खुश नहीं होना चाहिए, जब उस के लक्षण देख ले तब खुश होना चाहिए।

बहू और भैंस का खिलाया बेकार नहीं जाता : बहू को अच्छा खाने को मिलेगा तो घर का काम भी ठीक से कर पाएगी और स्वस्थ संतान को जन्म देगी। भैंस को ठीक से खिलाया जाएगा तो दूध अच्छा देगी और पड़िया जनेगी।

बहू के हाथ चोर मरवाए, चोर बहू का भाई : बहू से कहा गया कि चोर को मारो, यह किसी को मालूम ही नहीं कि चोर तो बहू का भाई है। जिस से श देने को कह रहे हो वह तो अपराधियों से मिला हुआ है।

बहू चुस्त और कूआं पास : बहू काम में मुस्तैद हो और कुआँ भी पास हो तो काम में आसानी ही आसानी है। सारी बातें अनुकूल हों तो काम आसानी से होता है।

बहू नवेली और गऊ दुधेली : नई बहू और दुधारी गाय सबको अच्छी लगती हैं।

बहू ने कूटा पीसा, सास ने हाथ साने : एक आदमी मेहनत कर रहा हो और दूसरा केवल दिखावा, तब यह कहावत कही जाती है।

बहू परोसा खाएगा जीते जी मर जाएगा : बहू अपने ससुर को पौष्टिक खाना क्यों खिलाएगी?

बहू बिना कैसा आंगन : घर के आंगन की शोभा बहू और बच्चों से ही होती है।

बहू लाली, धन घर खाली : बहू श्रृंगार करने की शौक़ीन (खर्चीली) हो तो धन और घर खाली कर देती है।

बंके को तिरबंका मिल ही जाता है : धूर्त व्यक्ति को अपने से बड़ा धूर्त कभी न कभी मिल जाता है।

बंद है मुठ्ठी तो लाख की, खुल गई तो फिर ख़ाक की : जब तक कोई रहस्य खुलता नहीं है तब तक लोगों को उसके विषय में बहुत उत्सुकता रहती है। रहस्य खुलने के बाद उसकी पूछ खत्म हो जाती है। एक राजा ने घोषणा की कि वह अमुक मंदिर में पूजा अर्चना करने के लिए अमुक दिन जाएगा। इतना सुनते ही मंदिर के पुजारी ने मंदिर की सजावट करना शुरू कर दिया, इस खर्चे के लिए उसने छः हजार रुपये का कर्ज लिया। राजा मंदिर में पूजा के लिए पहुंचे और आरती की थाली में चार आने रख कर प्रस्थान कर गए। पुजारी को बड़ा गुस्सा आया। उसने गांव भर में ढिंढोरा पिटवाया कि राजा की दी हुई वस्तु को वह नीलाम कर रहा है नीलामी पर उसने अपनी मुट्ठी बंद रखी। लोग समझे कि राजा की दी हुई वस्तु बहुत अमूल्य होगी इसलिए बोली दस हजार रूपये से शुरू हुई और बढ़ते बढ़ते पचास हजार तक पहुंची। यह बात राजा के कानों तक पहुंची। राजा ने अपने सैनिकों से पुजारी को बुलवाया और कहा कि मेरी वस्तु को नीलाम न करो, मैं तुम्हें लाख रुपए देता हूं और इस प्रकार राजा ने अपनी इज्जत को बचाया। तब से यह कहावत बनी।

बंदर के हाथ में आइना : बंदर आइने की कद्र नहीं जान सकता, उसमें अपनी शक्ल देख कर उसे दूसरा बंदर समझ कर तोड़ देगा। मूर्ख व्यक्ति बहुमूल्य वस्तु का मोल नहीं समझ सकता।

बंदर के हाथ में उस्तरा : किसी नासमझ व्यक्ति के हाथ में कोई छोटा सा अस्त्र भी बहुत खतरनाक हो जाता है, वह औरों को भी बहुत हानि पहुँचा सकता है और अपने को भी चोट मार सकता है। उस्तरे से पहले नाई लोग हजामत बनाते थे।

बंदर क्या जाने अदरख का स्वाद : अगर आप बंदर को अदरक खाने को दें तो वह यह नहीं समझेगा कि यह कोई नायाब चीज है। वह उसे कड़वा और चरपरा समझ कर थूक देगा। यह कहावत उस जगह प्रयोग की जाती है जब किसी नासमझ आदमी को कोई अक्ल की बात बताई जाए या कोई बहुत बढ़िया चीज दी जाए और वह उसकी कद्र न करे।

बंदर नाचे, ऊँट जल मरे : बन्दर को आज़ादी से नाचता देख कर ऊँट को बहुत जलन होती है, क्योंकि वह न तो आज़ाद है, न ही उसे नाचना आता है। दूसरे को प्रसन्न देख कर परेशान होना।

बंदर बूढ़ा हो जाए फिर भी छलांग लगाना नहीं भूलता : बूढ़ा होने के बाद भी आदमी की खुराफातें कम नहीं होतीं।

बंदरों के बीच में गुड़ की भेली : बंदरो के झुंड में अगर गुड़ की भेली रख दी जाए तो वे उस पर कब्जा करने के लिए आपस में बुरी तरह लड़ते हैं। अपात्र लोग अगर किसी चीज के लिए झगड़ रहे हों तो यह कहावत कही जाती है।

बा अदब बा नसीब, बे अदब बे नसीब : दूसरों का सम्मान करने वालों का भाग्य साथ देता है, जो दूसरों का सम्मान नहीं करते वे भाग्य हीन हो जाते हैं।

बाई खा लें तो बामनों को दें : स्वार्थी लोगों के लिए कहा गया है। कायदे में तो पहले ब्राह्मणों को दान दे कर या भोजन करा के तब स्वयं खाना चाहिए।

बाको अच्छा मत कहो, जो तेरे धोरे आय, करे बुराई और की, अपने तईं बधाय : जो आप के घर आ कर औरों की बुराई करे और अपनी प्रशंसा करे वह अच्छा व्यक्ति नहीं है।

बाघ ने मारी बकरी और कुत्ते हड्डी खाएँ : 1. शक्तिशाली लोग कोई उद्यम करते हैं तो समाज के कमजोर लोगों को भी उस का लाभ मिलता है। 2. बड़े अपराधी बड़े अपराध करते हैं और छोटे अपराधी उनके साए में फलते फूलते हैं।

बाघ बकरी एक घाट पर पानी पीते हैं : जहाँ किसी को किसी से भय न हो।

बाघ मार नदी में डारा, बिलाई देख डरानी : कोई ऐसी स्त्री अपनी बहादुरी के किस्से सुना रही थी कि उसने बाघ को मार कर नदी में डाल दिया था। अचानक वहाँ बिल्ली आ गई तो डर वह गई। झूठी शेखी बघारने वालों के लिए।

बाघ से लड़ने के लिए बघनखा : बघनखा एक खतरनाक अस्त्र होता है जिसे उँगलियों में पहन कर मुट्ठी बाँध ली जाती है। उस के मुड़े हुए काँटों से किसी का भी पेट फाड़ा जा सकता है। कहावत का अर्थ है कि खतरनाक दुश्मन से लड़ने के लिए खतरनाक अस्त्र ही चाहिए।

बाज के बच्चे मुंडेरी पर नहीं उड़ा करते : बाज अपने बच्चे को बहुत कठिन शिक्षा दे कर उड़ना सिखाता है जिससे वह शिकारी पक्षी बन सके। कहावत में ऐसा बताया गया है कि बहादुर लोग कड़ी मेहनत से ही उंचाई पर पहुँचते हैं।

बाजार का सत्तू, बाप भी खाए, बेटा भी खाए (बाज़ार की मिठाई, जिसने चाही उसने खाई) : वैश्या के लिए। वैश्या बाजार में बिकने वाली वस्तु की तरह है जिसे जो भी चाहे दाम दे कर खरीद सकता है।

बाजार किसका, जो लेकर दे उसका (बाज़ार उसका जो ले के दे) : जो उधार ले कर समय से वापस करे उसी की बाजार में साख है।

बाजार के दोनवा चाटे गुजर न होई : (भोजपुरी कहावत) दोनवा – दोने, पत्ते। कोई व्यक्ति चाहे कि रोज बाजार की चाट पकौड़ी खा कर काम चला लेगा तो ऐसा नहीं हो सकता। इस में अत्यधिक खर्च भी है और बीमार होने का डर भी। कहावत के द्वारा वैश्यावृत्ति के प्रति भी आगाह किया गया है।

बाड़ के सहारे दूब बढ़ती है (बाड़ बिना बेल नहीं चढ़ती) : कमजोर व्यक्ति को आगे बढ़ने के लिए किसी का सहारा चाहिए होता है।

बाड़ लगाईं खेत को बाड़ खेत को खाय, राजा हो चोरी करे कौन करे फिर न्याय (बाड़ ही जब खेत को खाए तो रखवाली कौन करे) : खेत की रक्षा करने को बाड़ लगाई और बाड़ ही खेत को खाने लगी। जब राजा ही चोरी करेगा तो न्याय कौन करेगा।

बाड़ी बारह, हाट अठारह, घर बैठे चौबीस : खेत से कोई चीज़ बारह रूपये में मिलती है तो बाज़ार में अठारह की और घर बैठे मंगाना चाहो चौबीस की पड़ती है। कहावत में जो अनुपात बताया गया है वास्तविकता में उस से भी बहुत अधिक अंतर होता है।

बाढ़े पूत पिता के धरमे, खेती उपजे अपने करमे : पुत्र पिता के धर्म कर्म से बढ़ता है पर खेती अपने कर्म से ही बढ़ती है।

बात एक ही है साँपनाथ कहो या नागनाथ : दुष्ट को किसी भी नाम से पुकारो, वह दुष्ट ही रहेगा।

बात कम हुई, बदनामी ज्यादा हुई : किसी स्त्री ने पड़ोस के पुरुष से जरा सी बात कर ली तो लोगों ने दोनों को खूब बदनाम किया। किसी बहुत छोटी सी बात पर अनावश्यक रूप से अधिक बदनामी होना।

बात कहिए जगभाती, रोटी खाइए मनभाती : बोली ऐसी बोलनी चाहिए जो सब को प्रिय लगे। खाना वह खाना चाहिए जो अपने को अच्छा लगे।

बात कही और पराई हुई : बात जब मुँह से निकल जाती है तो आप के वश में नहीं रहती।

बात की बात खुराफ़ात की लात, बकरी के सींगों को चर गए बेरी के पात : पहले के जमाने में कहानियाँ सुनाने का बहुत रिवाज़ था। एक विशेष प्रकार की कहानियाँ होती थीं गप्प। उन्हीं गप्पों की शुरुआत इस तरह से होती थी। कहावत का अर्थ है कोई असम्भव बात।

बात गई फिर हाथ न आती : सम्मान चला जाए तो वापस नहीं आता।

बात चूका लात खाय : जो अपनी बात पर कायम नहीं रहता वह लात खाता है (प्रताड़ित किया जाता है)।

बात छीले रूखड़ी औ काठ छीले चीकना : बात छीलने का यहाँ पर अर्थ है अनावश्यक बहस करना। काठ को छीलो तो चिकना होता है पर ज्यादा खोद खोद कर बात पूछने से या बहस करने से आपस में रुखाई होती है (मधुरता कम होती है)।

बात पूछे, बात की जड़ पूछे : बहुत खोद खोद के कोई बात पूछने वाला।

बात बिगारे तीन, अगर मगर लेकीन : शंका और संशय से बनते काम बिगड़ जाते हैं।

बात में हुँकारा और फौज में नगाड़ा : ये दोनों चीजें लोगों में जोश भरने का काम करती हैं।

बातन हाथी पाइए, बातन हाथी पाँव। (बातों हाथी पायं, बातों हाथी पायं) : एक ही बात को कहने का तरीका इतना फर्क हो सकता है कि राजा खुश हो कर हाथी इनाम में दे दे या नाराज हो कर हाथी के पैर तले कुचलवा दे।

बातें कम, लातें ज्यादा : मूर्ख लोग स्वस्थ तर्क वितर्क के मुकाबले लातों घूंसों में विश्वास रखते हैं।

बातें चीतें हमसे लेओ, खसम को रोटी तुम पै देओ : दुनिया भर की बातें और कजिए किस्से तो हम से कराओ और कोई काम आ पड़े तो तुम करो।

बातों की बुढ़िया करतब की ख्वार : जो बातें बहुत बड़ी बड़ी बनाए पर काम चौपट कर दे।

बातों के राजा नहीं होय काजा : जो लोग बातें बहुत करते हैं पर काम कुछ नहीं करते उनके लिए यह कहावत कही जाती है।

बातों चीतों मैं बड़ी, करतब बड़ी जिठानी : बातें बनाने में तो मैं बड़ी हूँ और कोई काम आ पड़े तो जिठानी बड़ी हैं।

बादल की छाया से कै दिन काम सरे : अस्थिर वृत्ति (चलायमान प्रकृति) वाले व्यक्ति पर निर्भर नहीं रहा जा सकता। बादल की छाया अभी है अभी खत्म हो जाएगी।

बादल देख कर ही घड़ा फोड़ दिया : मूर्खतापूर्ण और अदूरदर्शितापूर्ण काम। बादल आए हैं तो क्या मालूम बरसेंगे भी या नहीं, और बरसेंगे भी तो पानी भरने के लिए घड़ा तो चाहिए ही होगा।

बादलों को थेगली : बादलों में पैबंद लगाना। असम्भव काम।

बानिये की बान न जाए, कुत्ता मूते टांग उठाए : जिस व्यक्ति की जो आदत होती है वह जाती नहीं है। बान – आदत, बानिया – आदत से मजबूर आदमी।

बाप ओझा, मां डायन : विचित्र संयोग। माँ डायन है और बाप डायन को भगाने वाला ओझा है।

बाप कर गए मजा, बेटा पावे सजा : बाप ने गलत काम कर के या उधार ले कर गुलछर्रे उडाए हों और बेटे को उस का भुगतान करना पड़े तो यह कहावत कही जाती है।

बाप का किया बेटे के आगे आता है : मनुष्य जो गलतियाँ करता है वो उसकी संतानों को भुगतनी पड़ती हैं।

बाप का नाम दमड़ी, बेटे का नाम पचकौड़िया, नाती का नाम दोकौड़िया, तीन पुरसें बीतीं छदाम न पूरा हुआ : दमड़ी = 12 कौड़ी, छदाम = 24 कौड़ी। किसी निम्न कोटि के खानदान का मजाक उड़ाने के लिए।

बाप का पोखर है तो क्या कीच खानी है : कोई चीज़ पुरखों से मिली है तो उसका गलत प्रयोग थोड़े ही करोगे।

बाप की कमाई पर तागड़धिन्ना : जो लोग अपने आप कुछ नहीं करते और पैतृक सम्पत्ति पर ऐश करते हैं, उन पे व्यंग्य।  ।

बाप की टांग तले आई, और माँ कहलाई : बाप की रखैल के लिए।

बाप के गले लबनी, पूत के गले रुद्राच्छ : लबनी – ताड़ी इकठ्ठा करने वाली हांडी। बाप महा कुकर्मी है और पुत्र रुद्राक्ष की माला पहने साधु बना घूम रहा है।

बाप जिन्न और बेटा भूत : जहाँ बाप बदमाश हो और बेटा उस से भी बढ़ कर हो।

बाप देवता पूत राक्षस : पिता बहुत भला आदमी था पर बेटा उतना ही दुष्ट।

बाप न दादे, सात पुश्त हरामज़ादे : किसी नीच व्यक्ति को गाली देने के लिए (इसके केवल बाप और दादा ही नहीं सात पीढियां धूर्त हैं)।

बाप न मारी मेंढकी, बेटा तीरंदाज : बाप ने कभी मेंढकी भी नहीं मारी और बेटा अपने को योद्धा समझता है। शेखी खोरों का मजाक उड़ाने के लिए।

बाप नरकटिया, पूत भगतिया : नरकटिया – कीड़े मकौड़ों जैसे आचरण वाला क्षुद्र व्यक्ति (नरकीट)। बाप नरकीट है और बेटा भगत बना हुआ है।

बाप पदहिन न जाने, पूत शंख बजावे : बाप पादना नहीं जानते और पुत्र शंख बजा रहा है।

बाप पेट में, पूत ब्याहने चला : उचित समय से बहुत पहले कोई काम करने की कोशिश की जाए तो उसका मजाक उड़ाने के लिए यह अतिश्योक्ति पूर्ण बात कही जाएगी (बाप अभी पैदा भी नहीं हुआ है और बेटा विवाह करने चला है)।

बाप बड़ा न मैया सबसे बड़ा रुपैया : रुपया सब सम्बन्धों से बड़ा है।

बाप बनिया, पूत नवाब : बाप बनिए जैसा कंजूस और शातिर हो और बेटा नवाबों जैसा दरियादिल, तो यह कहावत कही जाती है।

बाप भिखारी पूत भंडारी : किसी गरीब पिता का पुत्र धनवान हो जाए और अपने धन का प्रदर्शन करने लगे तो लोग व्यंग्य में ऐसा कहते हैं।

बाप मरिहैं, तब पूत राज करिहैं : बाप के मरने के बाद ही बेटा राजा बनेगा। कोई बाधा दूर होने तक प्रतीक्षा करनी ही पड़ेगी।

बाप मरे घर बेटा हुआ, इसका टोटा उस में गया : एक नुकसान और एक फायदा हो तो नुकसान की भरपाई मान ली जाती है।

बाप मारे पूत साखी दे : साखी – साक्षी, गवाही। पिता ने कोई अपराध किया हो और पुत्र को गवाही के लिए बुलाया जाए तो न्याय कैसे होगा।

बाप से बैर पूत से सगाई : घर में किसी एक व्यक्ति से दुश्मनी और दूसरे से दोस्ती।

बाबरे गाँव में ऊँट पाहुना : मूर्खों के बीच में कुछ भी संभव है (वे ऊँट को भी सम्मानित अतिथि मान सकते हैं)।

बाबली गीदड़ी के पकड़े कान। न छोड़े जाएँ, न पकड़े राखे जाएँ : (हरियाणवी कहावत) पागल गीदड़ी के कान धोखे से पकड़ लिए हैं, अब छोड़ते हैं तो वह काट खाएगी और पकड़े रहेंगे तो आखिर कब तक पकड़े रहेंगे। जिस काम को करते रहने और छोड़ने दोनों में परेशानी हो।

बाबले कुत्ते हिरनों के पीछे भागें : हिरन जैसे तेज प्राणी को कुत्ते कभी नहीं पा सकते। अपनी पहुँच से बाहर कोई लक्ष्य पाने का प्रयास करना।

बाबा कमावे, बेटा उड़ावे : नालायक बेटे बाप दादों की मेहनत की कमाई को उड़ा देते हैं।

बाबा की बातें, कुत्ता चले बरातें : बाबा जी आप भी क्या बात करते हैं, कुत्ते भी कहीं बरात में चलते हैं? बड़े बुज़ुर्ग कभी कभी गप्पें हांकते हैं तो बच्चे इस प्रकार उनका मजाक उड़ाते हैं।

बाबा घर आना चाहिए, चाहे गली गली आए चाहे छप्पर फाड़ के आए : कैसे भी हो काम होना चाहिए।

बाबा जी कूदे तो सीधे बैकुंठ के अन्दर : बाबा जी को चेताया जा रहा है कि यहाँ से कूदे तो सीधे स्वर्ग सिधार जाओगे।

बाबा जी के दाना, हक लगा के खाना : अपनी पुश्तैनी संपत्ति का उपभोग करने का व्यक्ति को पूरा अधिकार है।

बाबा जी चेले बहुत हो गए हैं, बच्चा भूखों मरेंगे तो आप चले जाएंगे : जिम्मेदारियों से तनावग्रस्त न हो कर मस्त रहना।

बाबा मरे नाती जन्मा, वही तीन के तीन : घर या समूह में से कोई कम हुआ तो कोई बढ़ गया। खर्च के लिए उतने ही लोग रहे।

बाभन कुत्ता नाई, जात देख गुर्राई / घिनाई : ब्राह्मण, कुत्ता और नाई (हज्जाम नहीं कर्मकांड कराने वाला नाई) अपनी जाति वालों से ही शत्रुता रखते हैं / घृणा करते हैं।

बाभन कुत्ता भाट, जात जात के काट : ब्राह्मण कुत्ता और भाट अपनी जाति वालों की काट करते हैं।

बाभन को घी देव बाभन झल्लाय : किसी को लाभ पहुँचाने की कोशिश करो और वह नाराजगी दिखाए तो यह कहावत कही जाती है।

बामन का बनाया बामन खाए न तो बैल खाए : ब्राह्मणों की बनाई खराब रसोई का मजाक उड़ाने के लिए।

बामन का बेटा, बावन बरस तक पोंगा : ब्राहण का बेटा काफ़ी आयु तक पिता का पिछलग्गू रहता है।

बामन का मन लड्डू में। अर्थ स्पष्ट है।

बामन कुत्ता हाथी, ये न जात के साथी (तीनों जात के घाती) : ब्राहण, कुत्ता और हाथी अपनी जाति वाले का साथ नहीं देते।

बामन को दी बूढ़ी गाय, धरम न होय दलिद्दर जाय : ब्राह्मण को बूढ़ी गाय दान कर के बड़े खुश हैं, पुण्य न भी मिले तो भी कम से कम उसे खिलाने का झंझट तो गया।

बामन को बामन मिला, मुख देखे व्यौहार, लेन देन को कुछ नहीं नमस्कार ही नमस्कार : ब्राह्मण यदि समाज के किसी अन्य वर्ग के व्यक्ति से मिलते हैं तो आशीर्वाद देते हैं और बदले में कुछ पाने की आशा करते हैं। यदि दूसरा ब्राह्मण ही मिल जाए तो कोई लेन दन कुछ नहीं होता बस नमस्कार होती है। एक समय में ब्राह्मणों की ऐसी छवि बन गई थी कि वे भांति भांति से लोगों को ठगते हैं, उसी पर व्यंग्य।

बामन को लरिका मूलन में नाहिं होत : ब्राहण लोग आम लोगों को तरह तरह के भय दिखा कर धन ऐंठते हैं। इसी प्रकार का एक भय है मूल नक्षत्र का। मूल नक्षत्र को अशुभ बता कर उसमें जन्म लेने वाले बच्चों के लिए पूजा पाठ कराने का प्रावधान रखा गया है। कहावत में कहा गया है कि ब्राह्मण का बेटा मूलों में नहीं होता क्योंकि उस को मूल नक्षत्र का बता कर किस से धन ऐठेंगे।

बामन को साठ बरस पे बुद्धि आवे, और तब वह मर जावे : (राजस्थानी कहावत) साठ वर्ष का होके तो ब्राह्मण को बुद्धि आती है और उसके बाद वह मर जाता है।

बामन जीमे ही पतियाय : ब्राह्मण जब भर पेट खाना खा लेता है तभी किसी का विश्वास करता है।

बामन नाई कूकरो, जात देख गुर्राएं, कायथ कागो कूकड़ो, जात देख हरषाएं : ब्राह्मण, नाई और कुत्ता, अपनी जाति वाले को देख कर गुर्राते हैं। कायस्थ, कौवा और मुर्गा अपनी जाति वालों को देख कर खुश होते हैं।

बामन नाचे, धोबी देखे : उल्टी रीत।

बामन बनिया पनिया सांप, न उन में रिस न इन में बिस : (बुन्देलखंडी कहावत) ब्राह्मण और बनिया पानी के सांप के समान हैं। वे क्रोध (रिस) नहीं करते और इन में विष नहीं होता।

बामन बांधे छुरा तो बड़ा बुरा : ब्राह्मण से यह आशा नहीं की जाती कि वह छुरा रखेगा।

बामन बेटा लोटे पोटे, मूल ब्याज दोनहूँ घोटे : ब्राह्मण का बेटा कुछ न कुछ उलट फेर कर के मूल धन और ब्याज दोनों ही पचा लेता है।

बामन हाथी चढ़ कर भी मांगे : आदमी की आदत नहीं जाती। ब्राह्मण को हाथी मिल गया तो उस पर चढ़ कर भिक्षा मांग रहा है।

बामन, कुक्कुर, घोड़िया, जात देखि नरियाए : ब्राह्मण, कुत्ता और घोड़ा अपनी ही जाति के दुश्मन होते हैं।

बामनों में तिवारी, कटहल की तरकारी और हैजा की बीमारी ये तीनों खतरनाक होते हैं : तिवारी लोगों से परेशान किसी व्यक्ति का कथन।

बाय बह जाएगी और बात रह जाएगी : समय बदल जाता है, परिवेश बदल जाता है पर व्यक्ति की बात रह जाती है।

बार बार चोर की तो एक बार शाह की : चोर बार बार चोरी कर के राजा को परेशान करता है पर राजा जब एक बार चोर को पकड़ लेता है तो उसी एक बार में सारा हिसाब पूरा कर देता है।

बारह गाँव का चौधरी, अस्सी गांव का राय, अपने काम न आए तो ऐसी तैसी में जाए : अँगरेज़ लोग अपने चाटुकार लोगों को तरह तरह के इनाम और ओहदे दिया करते थे। किसी चाटुकार को चौधरी साहब की पदवी दे कर बारह गाँव की जमींदारी दे दी तो उस से बड़े चाटुकार को अस्सी गाँव का पट्टा दे कर राय साहब बना दिया। कहावत में कहा गया है कि कोई कितना भी बड़ा आदमी क्यों न हो अगर हमारे काम नहीं आता तो ऐसी तैसी में जाए।

बारह बरस का कोढ़ी, एक ही इतवार पाक : कुछ लोग (विशेषकर ईसाई) मानते हैं कि किसी एक पवित्र इतवार को कुछ चमत्कारों द्वारा कुष्ठ रोग को ठीक किया जा सकता है। कहावत में कहा गया है कि बहुत पुराना कुष्ठ रोगी है जिसे कई बार चमत्कारिक इलाज की जरूरत है, लेकिन एक ही इतवार ऐसा पड़ रहा है। आवश्यकताएँ बहुत अधिक हों और साधन सीमित हों तो।

बारह बरस की कन्या और छठी रात का वर, मन माने तो कर : कन्या बारह बरस की है और वर छह दिन का है। समझ में आता हो तो शादी करो वरना नहीं। कहावत का अर्थ है कि काम बड़ा बेमेल है, मर्जी हो तो करो।

बारह बरस तप किया, जुलहा भतार मिला : बारह साल कन्या ने व्रत तपस्या की लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ, शादी गरीब जुलाहे से हुई।

बारह बरस बाद घूरे के भी दिन फिरते हैं : घूरा – कूड़े का ढेर। बेकार से बेकार व्यक्ति या स्थान का भाग्य कभी न कभी बदलता है।

बारह बरस में बाँझ ब्याही, पूत ब्याही लंगड़ा : बहुत दिनों में कोई काम किया और वह भी ढंग का नहीं किया।

बारह बरस में बाबा बोले, बोले पड़ेगा अकाल : बाबा बारह बरस बाद तो बोले, और बोले भी तो इतनी अशुभ बात कि अकाल पड़ेगा।

बारह बरस लौं कूकुर जीवे, अरु तेरह तक जिए सियार, बरस अठारह छत्री जीवे, आगे जीवन को धिक्कार : कुत्ता बारह साल तक जीवित रहता है और सियार तेरह साल तक। मनुष्य की आयु सौ बर्ष मानी गयी है परन्तु क्षत्रिय योद्धा अठारह बरस तक ही जीते हैं (इसके बाद युद्ध में मारे जाते हैं) इसलिए इसके आगे यदि वे जिएँ तो वे कायर माने जाएंगे (क्षत्रिय युवकों को युद्ध में जाने के लिए उकसाने हेतु कथन)।

बारह बरस सेई कासी, मरने को मगहर की माटी : ऐसा माना जाता था की काशी में मरने वाला निश्चित रूप से स्वर्ग जाता है और काशी के पास मगहर नामक स्थान में मरने वाला निश्चित रूप से नर्क में जाता है। कबीरदास इस प्रकार के अंधविश्वासों के कट्टर विरोधी थे। वे जीवन भर काशी में रहे और मृत्यु निकट आने पर जानबूझ कर मगहर चले गए थे। एक तो उन के लिए विशेष रूप से यह कहावत कही गई है। दूसरे ऐसे लोगों के लिए जिनका जीवन अच्छा कटा हो पर मृत्यु के समय जिनकी दुर्गति हुई हो उनके लिए यह कहावत कही जा सकती है।

बारह बामन बारह बात, बारह खाती (बढ़ई) एक ही बात : आप किसी समस्या का हल पूछेंगे तो बारह ब्राह्मण बारह तरह की बात कहेंगे और बारह बढ़ई एक ही हल बताएंगे। कहावत का अर्थ है कि पंडितों में एक राय नहीं हो सकती।

बारह साल दिल्ली में रहे पर भाड़ ही झोंका : अच्छी से अच्छी परिस्थितियों में रह कर भी कोई प्रभावशाली कार्य नहीं कर पाए।

बाराती किनारे हो जइहैं, काम दूल्हा दुल्हन से पड़िहैं (बाराती जीम के जाते धाम, दूल्हा दुल्हन से पड़ता काम) : किसी भी आयोजन में इकठ्ठी हुई भीड़ आप के किसी काम की नहीं है। काम मुख्य लोगों से ही पड़ेगा।

बाल की खाल, हिंदी की चिंदी : व्यर्थ की नुक्ताचीनी।

बाल जंजाल, बाल सिंगार : बालों को धोना, काढ़ना, सुलझाना और समय समय पर कटवाना ये सब जी का जंजाल हैं पर बाल मनुष्य का श्रृंगार भी हैं। किसी भी चीज़ से हानि लाभ दोनों ही होते हैं।

बाल दोस गुन गनहिं न साधू : सज्जन लोग बच्चों के दोष नहीं गिनते (क्षमा कर देते हैं)।

बाल नोचने से ऊंट नहीं मरते : बड़े लोगों को छोटे मोटे नुकसान से कोई फर्क नहीं पड़ता।

बाल मराल कि मंदर लेहीं : हंस का बच्चा कहीं मंदराचल पर्वत को उठा सकता है? यह प्रसंग राम चरित मानस का है। जब ऋषि विश्वामित्र ने जनक जी के धनुष यज्ञ में राम से धनुष उठाने को कहा तो वहाँ उपस्थित स्त्रियाँ कहने लगीं कि यह सुकोमल बालक इस धनुष को कैसे उठा सकता है?

बाल हठ, तिरिया हठ, राज हठ : तीन हठ प्रसिद्ध हैं, बच्चों का हठ, स्त्रियों का हठ और राजा का हठ।

बालक हो बुद्धिमान सो बड़ा नर जान तू, बूढ़ा हो अज्ञानी सो पशु समान मान तू : बालक यदि बुद्धिमान हो तो उसे व्यस्क मानो और बूढ़ा अगर अज्ञानी हो तो उसे पशु समान मानो।

बालू की भीत, ओछे का संग, पतुरिया की प्रीत, तितली के रंग : रेत की दीवार, धूर्त व्यक्ति का साथ, चरित्रहीन स्त्री का प्रेम और तितली के रंग ये सब स्थायी नहीं होते।

बालू जैसी भुरभुरी, धौली जैसी धूप, मीठी ऐसी कुछ नहीं, जैसी मीठी चूप : चूप – मौन, धौली – श्वेत, धवल। मौन रहना बहुत बड़ा गुण है (क्योंकि इससे सब झगड़े शांत हो जाते हैं)। इस को इस प्रकार भी कहते हैं – सब से मीठी मौन।

बालों हाथ छिनाला और कागों हाथ संदेसा : किसी चरित्रहीन स्त्री द्वारा बच्चे के साथ व्यभिचार करना सफल नहीं हो सकता और कोई व्यक्ति कौवे के हाथ संदेश भेजना चाहे तो सफल नहीं हो सकता।

बावन बुद्धि बकरिया में, छप्पन बुद्धि गड़रिया में : गड़रिये में बकरी से कुछ ही ज्यादा बुद्धि होती है।

बावन बुद्धि बानिया, तरेपन बुद्धि सुनार, सबको ठगे बनिया, बनिया को ठगे सुनार : बनिया जितना होशियार होता है, सुनार उससे भी अधिक चालाक होता है।

बावली को आग बताई, उसने ले घर में लगाई : पहले के जमाने में माचिस और लाइटर की उपलब्धता न होने के कारण लोग एक दूसरे के घर से जलता हुआ कोयला या लकड़ी मांग कर लाते थे। कहावत में कहा गया है कि मूर्ख स्त्री को आग दी तो उस ने घर में ही आग लगा दी। मूर्ख व्यक्ति की सहायता भी सोच समझ कर ही करना चाहिए।

बावली खाट के बावले पाए, बावली रांड के बावले जाए : जहाँ माँ भी मूर्ख हो और बच्चे भी उस बढ़ कर मूर्ख हों। तुकबंदी के लिए खाट और पायों का ज़िक्र कर दिया गया है।

बावले मर गए औलाद छोड़ गए : किसी मूर्ख व्यक्ति की मूर्ख संतान का मजाक उड़ाने के लिए।

बासी कढ़ी उबाला आया : बुढापे में जोश आना।

बासी चावल बासी साग, अपने घर खाए क्या लाज : अपने घर पर कुछ भी खाओ उसमें शरम नहीं करनी चाहिए।

बासी भात में अल्ला मियाँ का कौन निहोरा (बासी भात में ठाकुर साहब का कौन निहोरा) : बासी भात खा कर किसी तरह पेट भर रहे हैं, तो इस में अल्ला मियाँ या ठाकुर साहब की क्या मेहरबानी मानें।

बासी मुंह फीका पानी औगुन करे है : बहुत से लोग खाली पेट पानी पीना ठीक नहीं मानते। ऐसे लोग पहले कुछ मीठा खा कर तब पानी पीते हैं। कहीं कहीं यह रिवाज होता है कि यदि कोई कामवाला भी पानी मांगे तो उसे पहले कुछ मीठा खाने को देते हैं।

बाहर की चुपड़ी से घर की रूखी सूखी भली : 1. घर में जो कुछ भी रूखा सूखा उपलब्ध हो वही खा कर व्यक्ति को संतोष करना चाहिए, बाहर चुपड़ी खाने के प्रयास में धन और स्वास्थ्य दोनों की हानि होती है। (रूखी सूखी खाय के ठंडा पानी पीव, देख पराई चूपड़ी मत ललचावे जीव)। 2. बाहर रह कर अधिक आय होती हो उस के मुकाबले कम आय हो पर घर में रहने को मिले तो बेहतर है।

बाहर खुशबू, भीतर बदबू : ढोंगी सफेदपोश लोगों के लिए।

बाहर टेढ़ो फिरत है, बाँबी सूधो साँप : सांप दुनिया भर में टेढ़ा टेढ़ा चलता है लेकिन अपनी बांबी में सीधा ही घुसता है। कोई व्यक्ति दुनिया के लिए कितना भी दुष्ट क्यों न हो घर में सीधा ही रहता है।

बाहर त्याग, भीतर सुहाग : ऐसे लोगों के लिए जो त्यागी होने का ढोंग करते हैं और वास्तव में भोगी होते हैं।

बाहर मियाँ झंगझंगाले, घर में नंगी जोय : घर से बाहर पतिदेव खूब चौकस कपड़े पहने घूम रहे हैं और घर में बीबी फटे पुराने और अपर्याप्त कपड़े पहन रही है।

बाहर मियाँ पंजहजारी, घर में बीबी कर्मों मारी : पंज हजारी – पांच हजार रूपये वेतन पाने वाला (पुराने समय में पांच हजार एक अत्यधिक बड़ी रकम थी)। पति बड़े ओहदे पर काम कर रहा है और पत्नी घर के कामों में पिस रही है।

बाहर मियाँ सूबेदार, घर में बीबी झोंके भाड़ : घर से बाहर पति बड़े अधिकारी बने रौब गाँठ रहे है और घर में बीबी चूल्हा झोंक रही है।

बाहर वाले खा गए, घर के गावें गीत : बाहर के लोग दावत खा गए और घर वाले गीत गाते ही रह गए। बिना सही योजना बनाए अव्यवस्था पूर्ण कार्य करने वालों के लिए।

बाँझ क्या जाने प्रसव की पीड़ा : जिसने कभी बच्चा नहीं जना वह स्त्री प्रसव की पीड़ा को नहीं समझ सकती। जो कष्ट आपने स्वयं नहीं झेला उसकी परेशानी को आप नहीं समझ सकते।

बाँझ गाय द्वार की सोभा : जो गाय दूध नहीं देती वह भी द्वार की शोभा तो बढ़ाती ही है। घर के बड़े बूढों के लिए भी यही बात कही जा सकती है।

बाँझ गाय से घी की आस : गाय बाँझ होगी तो दूध ही नहीं देगी, फिर घी कैसे मिलेगा। किसी ठप पड़े व्यवसाय से कोई लाभ की आशा कर रहा हो तो।

बाँझ बंझौटी, शैतान की लँगोटी : बाँझ – जिस के संतान न हो। पहले के जमाने में लोग संतान न होने पर केवल स्त्री को ही दोषी मानते थे और बहुत प्रताड़ित करते थे। ऐसे ही लोगों का कथन।

बाँट कर खाना, स्वर्ग में जाना : अपनी कमाई को बाँट कर खाने वाले को स्वर्ग में भी स्थान मिलता है और इस धरा पर भी उस के लिए स्वर्ग है।

बाँट खाओ या सांट खाओ : सांट – अदला बदली (वस्तु विनिमय)। भोजन को बाँट कर खाना चाहिए या अदला बदली कर के। बाँट कर खाने से परोपकार होता है और एक दूसरे से अदला बदली करने से सभी प्रकार के तत्व भोजन से प्राप्त हो जाते हैं।

बाँबी में हाथ तू डाल मंत्र मैं पढूं : सांप को पकड़ने के लिए मन्त्र पढ़ते हैं और हाथ से उसे पकड़ते हैं। मन्त्र पढने में तो कोई खतरा नहीं है पर बांबी में हाथ डालने में बहुत खतरा है। जब कोई धूर्त व्यक्ति लाभ पाने के लिए साथी को खतरे में डाल रहा हो तो।

बांटने से ज्ञान बढ़ता है : ज्ञान को बांटने से ज्ञान और बढ़ता है।

बांटने से सुख दूना होता है और दुख आधा : खुशियों को सबके साथ मिल कर मनाना चाहिए क्योंकि इस से खुशियाँ बढ़ती हैं। दुःख को भी दूसरों के साथ साझा करना चाहिए क्योंकि इस से दुःख कम हो जाता है।

बांटल भाई, पड़ोसी बराबर : जिस भाई से बंटवारा हो चुका हो वह पड़ोसी के बराबर ही है।

बांदी के आगे बांदी, मेह गिने न आंधी : नौकर के नीचे का नौकर बहुत काम करता है।

बांध कुदारी खुरपी हाथ, लाठी हंसिया राखे साथ, काटे घास औ खेत निरावे, सो पूरा किसान कहलावे : जो अपने साथ कुदाली, खुरपी, लाठी और हंसिया रखता है, अपने हाथ से घास काटता है और खेत निराता है वही किसान कहलाता है।

बांधा बरधा रहे मठाय, बैठा जवान जाय तुन्दियाय : बैल बंधे बंधे सुस्त हो जाता है और जवान आदमी कुछ न करे तो उस की तोंद निकल आती है। (घाघ कवि)।

बांबी पास मरे, सांप का नाम बदनाम : कोई अगर सांप की बांबी के पास मरता है तो सब लोग सांप पर ही शक करते हैं। जो बदनाम होता है उसका नाम कई बार बिना कुछ किए भी घसीटा जाता है।

बांस की कोख से रेड़ पैदा हुआ है : रेड़ – अरंड। किसी सज्जन व्यक्ति के घर कुपुत्र पैदा हो जाए तो।

बांस चढ़ी गुड़ खाए : नटनी बांस पर चढ़ कर ऊपर बंधा हुआ गुड़ तोड़ कर लाती है। अर्थ है कि जो प्रयास करेगा वही फल पाएगा।

बांस चढ़ी नटनी कहे, होत न नटियो कोय, मैं नट कर नटनी बनी, नटे सो नटनी होय : नट जाना – मना करना, मुकर जाना। बांस पर चढ़ी नटनी कह रही है कि पैसा होते हुए भी देने को मना मत करना। मैंने मना किया था तो मैं नटनी बनी, जो मना करेगा वह नटनी बनेगा।

बांस डूबें, बौरा थाह मांगे : पानी इतना गहरा है कि बांस डूब जाए और मूर्ख व्यक्ति यह जानने की कोशिश कर रहा है कि पानी कितना गहरा है। (हाथी घोड़ा डूब गए, गदहा पूछे कित्तो पानी)।

बांह गहे की लाज : किसी की बांह पकड़ी है (सहारा दिया है) तो निभाओ जरूर, या सहारा ही मत दो।

बिआवत दुख, बिहावत दुख : बेटी के बारे में यह कहावत कही गई है कि जब पैदा होती है तब भी दुख और जब शादी होकर चली चली जाती है, तब भी दुख।

बिगड़ी तो चेली बिगड़ी, बाबा जी तो सिद्ध के सिद्ध : बाबा जी और चेली के बीच कोई अनैतिक सम्बन्ध हुआ तो चेली की ही बदनामी होती है।

बिगड़ी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय, (रहिमन फाटे दूध के मथे न माखन होय) : बिगड़ी बात फिर नहीं बनती चाहे कितना भी प्रयास करो (फटे हुए दूध को मथने से माखन नहीं निकलता)।

बिगड़ी रसोई सुधरती नहीं : जो बात बिगड़ जाए वह सुधर नहीं सकती।

बिगड़ी लड़ाई सिपाहियों के सिर : हारी हुई लड़ाई का ठीकरा सिपाहियों के सर फोड़ा जाता है। कोई पार्टी चुनाव हारती है तो कार्यकर्ताओं पर दोष डालती है।

बिगड़ेगा बस सुगढ़ नर क्या बिगड़ेगा कूढ़, क्या बिगड़ेगा मट्ठा बिगड़ेगा बस दूध : जो सज्जन और सम्पन्न व्यक्ति है उसे ही हानि होने का डर होता है, जो मूर्ख और विपन्न है उसे क्या हानि होगी।

बिच्छू का काटा चोर, न हूँ कर सकै न चूँ : चोरी करते समय यदि किसी चोर को बिच्छू काट ले तो वह बेचारा दर्द से बिलबिलाते हुए भी चिल्ला नहीं सकता।

बिच्छू का काटा रोवे, साँप का काटा सोवे : बिच्छू का काटा व्यक्ति भयानक दर्द से रोता है जबकि सांप का काटा व्यक्ति विष के प्रभाव से मूर्च्छित होने लगता है।

बिच्छू का मंत्र जाने नहीं, साँप के बिल में हाथ डाले : जब बिच्छू और सांप के काटे का कोई इलाज उपलब्ध नहीं था तो लोग झाड़ फूँक किया करते थे। अगर सांप जहरीला नहीं हुआ या अधिक विष शरीर में नहीं पहुँचा तो मरीज़ बच जाता था और लोग समझते थे कि मन्त्र से ठीक हो गया। कहावत ऐसे व्यक्ति के विषय में कही गई है जो बिना किसी जानकारी के किसी खतरनाक काम में हाथ डाल रहा है।

बिच्छू के डर से भागे, सांप के मुँह में पड़े : छोटी परेशानी से बचने के प्रयास में बड़े संकट में पड़ जाना।

बिच्छू के मंत्र से सांप का जहर नहीं उतरता : हर संकट का हल एक ही तरीके से नहीं किया जा सकता। अलग अलग परिस्थितियों में अलग अलग हल खोजने होते हैं।

बिछौना देख थकावट लगे : अर्थ स्पष्ट है।

बिजली कांसे पर ही गिरती है : कांसा क्योंकि बिजली का अच्छा चालक (conductor) होता है इसलिए बिजली कांसे पर गिर कर धरती में समाती है। कांसा अन्य धातुओं से महंगा होता है। कहावत को इस अर्थ में प्रयोग कर सकते हैं कि आपदा बड़े आदमी पर ही आती है या किसी काम की गाज़ बड़े आदमी पर ही गिरती है।

बिटिया तेरो ब्याह कर दें, मैं कैसे कहूँ : किसी व्यक्ति से ऐसे विषय पर चर्चा करना जो उस के लिए लज्जा का विषय हो। पुराने समय में विवाह की बात पर लड़कियाँ शर्माती थीं।

बिटोरे में से तो उपले ही निकलेंगे : बिटोरा – गोबर के कंडों (उपलों) का ढेर। बिटोरे में से तो उपले ही निकलेंगे, कोई लकड़ियाँ थोड़े ही निकलेंगी। कोई घटिया आदमी गालियाँ दे रहा हो तो यह कहावत कही जा सकती है।

बित्ते भर की छोकरी गज भर की जीभ : कोई छोटा बच्चा बहुत बढ़ चढ़ कर वयस्कों जैसी बातें कर रहा हो तो.

बिन कुत्तों के गाँव में बिल्ली अलबेली घूमे : समाज में जागरूक लोगों की कमी हो तो धूर्त लोगों की बन आती है।

बिन घरनी घर भूत का डेरा : बिना पत्नी घर भूत के डेरे के समान है।

बिन देखे राजा भी चोर : अपनी आँख से देखे बिना किसी बात पर विश्वास नहीं करना चाहिए।

बिन निरधार न हो सके सांच झूठ को न्याव : निरधार – निर्धारण करने वाला। बिना उचित निर्धारण करने वाले के सच और झूठ का न्याय नहीं हो सकता।

बिन बिचौलिया छिनाला नहीं : कोई भी गलत काम जैसे चोरी, डकैती, रिश्वतखोरी, वैश्या वृत्ति आदि दलालों के बिना नहीं होते।

बिन बुलाए अहमक, ले दौड़े सहनक : सहनक – भोजन का थाल। बिना बुलाए दूसरे के यहाँ जा कर भोजन करना।

बिन बैलन खेती करे, बिन भैय्यन के रार, बिन मेहरारू घर करे, चौदह साख गंवार : जो बिना बैलों के खेती करने चले, बिना भाइयों की सहायता के किसी से दुश्मनी मोल ले और बिना पत्नी के घर बनाए ये सब गंवार होते हैं।

बिन माँगे मोती मिले, मांगे मिले न भीख : माँगना बहुत बुरा है यह समझाने के लिए।

बिन विद्या नर नार, जैसे गधा कुम्हार : विद्या के बिना नर और नारी कुम्हार के गधे के समान हैं।

बिन स्वारथ कैसे सहे कोऊ करवे बैन, लात खाय पुचकारिए होए दुधारू धेनु : अपने स्वार्थ के लिए आदमी कड़वे बोल भी सह लेता है, दूध देने वाली गाय की लात खा कर भी उसे पुचकारते हैं।

बिन हिम्मत किस्मत नहीं : जो लोग साहस नहीं दिखाते उनका भाग्य भी साथ नहीं देता।

बिना कष्ट उठाए कोई सफलता नहीं मिलती : अर्थ स्पष्ट है।

बिना चाह का पाहुना, घी डालूं या तेल : जो अतिथि अपने मन को न भाता हो, उसका सत्कार भी काम चलाऊ ढंग से किया जाता है।

बिना दबाए तिल से तेल नहीं निकलता : बिना भय दिखाए कोई काम नहीं करता।

बिना नून का रांधे साग, बिना पेंच की बांधे पाग, बिना कंठ के गाए राग, न वो साग, न पाग, न राग : बिना नमक के साग बनाओ तो वह बेकार ही बनेगा, इसी प्रकार बिना पेंच के बंधी पगड़ी और बिना मधुर कंठ के गाया राग भी बेकार ही माना जाएगा।

बिना पथ्य के दवा और बिना सत्य के बात : बिना परहेज के दवा उतनी ही निरर्थक है जितनी बिना सत्य के कोई बात।

बिना पेंदी का लोटा चाहे जिधर लुढ़क जाए : जिस व्यक्ति की अपनी कोई विचारधारा न हो।

बिना बाप का छोरा बिगड़े, बिना माई की छोरी : बिना बाप का बेटा बिगड़ जाता है (अनुशासन के अभाव में) और बिना माँ की बेटी बिगड़ जाती है (माँ की सीख के अभाव में)।

बिना बिचारे जो करे सो पाछे पछिताए, (काम बिगारे आपनो जग में होत हंसाय) : जो बिना सोचे विचारे जल्दबाजी में काम करता है उसे बाद में पछताना पड़ सकता है। उसका काम भी बिगड़ता है और दुनिया के लोग उस पर हंसते भी हैं। इस कहावत को आम तौर पर केवल आधा ही बोला जाता है।

बिना बुलाई आवे, टांय टांय गावे : विवाह आदि अवसरों पर कुछ विशेष जातियों की स्त्रियाँ आ कर गीत गाती हैं और नेग मांगती है। किसी ऐसे व्यक्ति के लिए भी कहावत प्रयोग की जा सकती है जो बिना बुलाए आया हो और जबरदस्ती अपनी सलाह दे रहा हो।

बिना बुलाए आदर नहीं चाहे जा देखे, पेट भरे स्वाद नहीं चाहे खा देखे : अर्थ स्पष्ट है।

बिना बुलाए तो राम के घर भी नहीं जाएंगे : बिना बुलाए कहीं नहीं जाना चाहिए।

बिना बुलावे कुकुर धावे : बिना बुलाए कुत्ता ही जाता है। कहावत का अर्थ है कि बिना बुलाए कहीं नहीं जाना चाहिए।

बिना माँगे सलाह देने से बाज आइए : बिना मांगे किसी को सलाह नहीं देना चाहिए (ऐसी सलाह का कोई मोल नहीं होता)।

बिना मारे की तौबा : कोई बिना कष्ट के कोई चिल्ला रहा हो तो।

बिना मिर्च के घोटे भंग, बिन भाइन के रोपे जंग, ले वैश्या जो न्हावे गंग, ना वह भंग न जंग न गंग :  कहावत में तीन अलग अलग बातें तुकबन्दी कर के एक साथ बताई गई हैं – बिना मिर्च केभांग का सेवन करने से हानि हो सकती है, जिसका परिवार मजबूत न हो वह किसी से लड़ाई मोल ले तो मार खा सकता है, वैश्या को साथ ले कर कोई गंगा नहाएगा तो पुण्य की जगह पाप मिलेगा।

बिना मेह के जोतना, घोड़ा बिना लगाम, फ़ौज बिना सरदार के, तीनों भए निकाम : बिना वर्षा के खेत जोतना, बिना लगाम का घोड़ा और बिना सरदार की सेना ये किसी काम के नहीं हैं।

बिना रोए माँ भी दूध नहीं पिलाती : जब तक अपनी परेशानी बताओगे नहीं, कोई तुम्हारी सहायता कैसे करेगा।

बिना लाग खेले जुआ, आज न मुआ कल मुआ : लाग माने चालाकी, युक्ति। जिस के अंदर चालाकी नहीं है वह अगर जुआ खेलेगा तो निश्तित रूप से बर्बाद हो जाएगा।

बिना सींग पूँछ का बैल : किसी ताकतवर किन्तु मूर्ख व्यक्ति का मजाक उड़ाने के लिए।

बिनु मेहरी ससुरारै जाय, बिना माघ घी खिचरी खाय, बिन भादों पिन्हाए पउआ, घाघ कहै ये तीनहुं कउआ : मेहरी – पत्नी, पिन्हाए पउआ – झूला झूले। ससुराल पत्नी के साथ ही जाना अच्छा होता है। घी मिली हुई खिचड़ी को माघ के महीने में खाना ही ठीक माना गया है। जो बिना पत्नी ससुराल जाए, माघ के महीने अलावा घी खिचड़ी खाए और भादों के अलावा झूला झूले वह कौए के समान है।

बिनु सत्संग विवेक न होई : सत्संग का अर्थ है अच्छी संगत। कहावत का अर्थ है कि बुद्धिमान लोगों के साथ रहने से ही बुद्धि और विवेक जागृत होता है। (आम तौर पर लोग सत्संग का अर्थ केवल भगवान् का कीर्तन करना और धार्मिक उपदेश देना ही समझते हैं)। इस कहावत की अगली पंक्ति इस प्रकार है – बिनु सत्संग विवेक न होई, राम कृपा बिनु सुलभ न सोई। अर्थात अच्छी संगत भी भगवान् की कृपा से मिलती है।

बिनौलों की लूट में बरछी का घाव : बहुत छोटा अपराध करते समय बहुत बड़ा नुकसान हो जाना।

बिपत संगाती तीन जन, जोरू बेटा भाई : संगाती – साथ देने वाला। विपत्ति में तीन ही लोग साथ देते हैं, पत्नी, पुत्र और भाई।

बिरछा कबहुँ न फल भखै, नदी न संचै नीर, परमारथ के कारने, साधुन धरा शरीर : वृक्ष कभी अपने फल खुद नहीं खाता और नदी अपना पानी अपने लिए संचित नहीं करती। इसी प्रकार साधु लोग भी अपने शरीर का उपयोग परोपकार के लिए ही करते हैं।

बिरादरी का मुखिया, दुखिया ही दुखिया : किसी भी समाज का मुखिया होना बहुत तनाव का काम है।

बिरादरी को न खिलाया, चार कांधी ही जिमा दिए : किसी व्यक्ति की कंजूसी का ज़िक्र किया जा रहा है जिसने अपने घर में किसी की मृत्यु होने पर बिरादरी की दावत नहीं की केवल अर्थी को कंधा देने वाले चार लोगों को ही जिमाया (भोजन कराया)। देहाती समाज की यह बहुत बड़ी कुरीति है कि किसी की मृत्यु के बाद सारी बिरादरी को दावत देनी पड़ती है चाहे मरने वाला घर का इकलौता कमाने वाला ही क्यों न रहा हो और चाहे इस के लिए कर्ज़ ही क्यों न लेना पड़े।

बिल खोद चूहा मरे, मौज उड़ावे सांप : चूहा मेहनत कर के बिल खोदता है और सांप उस में रहने आ जाता है। किसी गरीब के परिश्रम का लाभ कोई दबंग व्यक्ति उठाए तो।

बिलाई का मन मलाई में : ओछे लोग हर समय अपने स्वार्थ के विषय में सोचते रहते हैं.

बिल्ली और दूध की रखवाली? : बिल्ली से दूध की रखवाली कौन करा सकता है।

बिल्ली की नज़र बस चूहे पे : धूर्त व्यक्ति केवल अपने लाभ की बात देखता है। भोजपुरी में कहते है – बिलैया की नज़र मुसवे पर।

बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे : एक बार चूहों की सभा हुई जिसमें बिल्ली के आतंक से मुक्ति पाने के उपायों पर विचार किया गया। किसी नौजवान चूहे ने सुझाव दिया कि बिल्ली के गले में एक घंटी बाँध दी जाए जिससे हमें उसके आने की आहट दूर से ही मिल जाए। सब को यह बात पसंद आई, पर एक बूढ़े चूहे ने कहा कि यह काम करेगा कौन, तो वहाँ सन्नाटा छा गया। कहावत का अर्थ है कि सुझाव सब देते हैं पर खतरा उठा कर काम करना कोई नहीं चाहता। इंग्लिश में कहावत है – Who will bell the cat.

बिल्ली के भागों छींका टूटा : अचानक बिना उम्मीद के कोई वांछित वस्तु मिल जाना।

बिल्ली के सपने में चूहा : धूर्त व्यक्ति को सपने में भी अपने फायदे की बात ही दिखती है।

बिल्ली के सरापे छींका नहीं टूटता : सरापे – श्राप देने से, कोसने से। धूर्त व्यक्ति द्वारा कोसे जाने से किसी का नुकसान नहीं होता। (कौआ कोसे ढोर नहीं मरते)।

बिल्ली के सिरहाने दूध नहीं जमता : बिल्ली दूध को इतनी देर छोड़ेगी ही कहाँ कि दूध जम पाए। जिस से चोरी का डर हो उसके आसपास कोई चीज़ कैसे सुरक्षित रह सकती है।

बिल्ली को ख़्वाब में भी छिछ्ड़े नजर आते हैं : धूर्त व्यक्ति सोते जागते हर समय केवल अपने लाभ के विषय में ही सोचते हैं। इंग्लिश में कहावत है – A sleeping fox counts hens in her sleep।

बिल्ली को पहले दिन ही मार देना चाहिए : 1. अप्रिय और अशुभ वस्तु को पहले दिन ही दूर कर देना चाहिए। 2. एक आदमी ने अपनी शादी के पहले दिन ही एक बिल्ली को मार दिया ताकि उसकी पत्नी के मन में आतंक बैठ जाए।

बिल्ली क्या जाने मोल का दही (बिल्ली को खाने से काम, मोल का हो या मुफ्त का) : गाँव के लोग अधिकतर गाय भैंस पालने की कोशिश करते हैं और दूध दही खरीदने से बचते हैं। मोल का दूध दही गाँव में विलासिता का प्रतीक माना जाता है। बिल्ली के हाथ दही लग जाए तो वह उसे फौरन चट कर जाएगी। उसे इस बात से क्या मतलब कि घर में बना है या खरीदा हुआ है।

बिल्ली खाएगी नहीं तो लुढ़का ही देगी : दुष्ट लोग अपना लाभ न ले पाएँ तो दूसरे का काम बिगाड़ कर ही खुश हो लेते हैं।

बिल्ली गई चूहों की बन आयी : बिल्ली चली जाए तो चूहों की मौज हो जाती है। इंग्लिश में कहावत है – When the cat is away, the mice are at play।

बिल्ली बाज़ार तो खूब कर ले पर कुत्ते करने दें तब न : कमजोर आदमी बहुत से काम कर सकता है लेकिन जबर उसे नहीं करने देते।

बिल्ली भई मुखिया, गीदड़ करमचारी : जहाँ हाकिम और मातहत सभी धूर्त हों।

बिल्ली भी चूहा खुदा के वास्ते नहीं मारती : हर आदमी अपने स्वार्थ के लिए काम करता है, बिल्ली भी परोपकार करने के लिए चूहा नहीं मारती (अपना पेट भरने के लिए मारती है)।

बिल्ली भी दब कर हमला करती है : इसका अर्थ दो प्रकार से हो सकता है – 1. बिल्ली झुक कर हमला करती है अर्थात धूर्त व्यक्ति अगर विनम्रता दिखा रहा हो तो सावधान हो जाएँ, हो सकता है कि हमला करने वाला हो। 2. दबाने पर बिल्ली भी हमला करती है अर्थात कमजोर को अधिक न दबाओ।

बिल्ली से छिछड़ों की रखवाली : चोर से किसी चीज़ की पहरेदारी करने को कैसे कहा जा सकता है।

बिसधर पकड़ जहर को चाट, परनारी संग चले न बाट : एक बार को सांप को पकड़ के उसका जहर चाट ले, लेकिन परनारी के साथ रास्ता न चले।

बिस्वा को कौन आसन सिखावे : जो सब सीखा सीखाया हो उसे कौन सिखा सकता है।

बिस्वा बिस की गाँठ : वैश्या विष की गाँठ होती है।

बिंध गया सो मोती, रह गया सो पत्थर : जिस का काम बन गया वह बड़ा आदमी बन गया और जिसका काम नहीं बना वह बेचारा छोटा ही रह गया।

बीघे बीघे भूत, बिस्वे बिस्वे सांप : राजस्थान की मरुभूमि में हर बीघे पर भूत और हर बिस्वे पर सांप रहते हैं।

बीच की उँगली बड़ी होती है : किसी भी विवाद के निवारण के लिए बीच का मार्ग सबसे अच्छा होता है।

बीज बोया नहीं, खेत का दुख : जिस काम से कोई सरोकार न हो उस के लिए दुखी होने वालों का मजाक उड़ाने के लिए।

बीती ताहि बिसारि दे, आगे की सुधि लेइ, (जो बनि आवै सहज में, ताही में चित देइ) : जो बीत गया उसका पश्चाताप करने की बजाए आगे क्या करना है यह सोचो। जो काम आसानी से हो सके उस में मन लगाओ। आम तौर पर इसका पहला भाग ही बोला जाता है।

बीबी को बांदी कहा हंस दी, बांदी को बांदी कहा रो दी : घर के किसी व्यक्ति को नौकर कहोगे तो मज़ाक समझ कर हँस देगा पर नौकर को नौकर कहोगे तो बुरा मानेगा।

बीबी नेकबख्त, दमड़ी की दाल तीन वक्त : बीबी बहुत उदार हैं जो दमड़ी की दाल में तीन बार का खाना बनवाती हैं। बहुत कंजूस लोगों का मजाक उड़ाने के लिए।

बीबी बच्चे भूखों मरे और भड़वे लड्डू खाएँ : अपने घर वालों की बेकद्री कर के आलतू फ़ालतू लोगों पर खर्च करने वालों के लिए।

बीबी बीबी ईद आई, चल हरामजादी तुझे क्या : कंजूस से खर्चे की बात कहो तो चिढ़ता है। नौकरानी मालकिन से कह रही है कि ईद आ गई है (मतलब उसे इनाम चाहिए) तो कंजूस मालकिन चिढ़ रही है।

बीबी वारे बांदी खाए, घर की बला कहीं न जाए : बच्चे की नज़र उतारने के लिए बीबी आटे की लोई को वार के (बच्चे के सिर के चारों और घुमा के) बाहर फेंक देती हैं जहां उसे कुत्ता इत्यादि खा लेता है और घर की बला बाहर चली जाती है। अब अगर वह बांदी को ही खिला देंगी तो घर की बला बाहर कैसे जाएगी। दान पुन्य के नाम पर अगर घर के लोगों को ही खिलाया पिलाया जाए तो परोपकार नहीं माना जाएगा।

बीबी हैं भरमाली, कान पीतर की बाली : अपने पास बहुत छोटी सी कोई चीज़ (पीतल की बाली) हो तो भी दिखावा करना।

बीमार की राय बीमार : अस्वस्थ आदमी की राय मानने लायक नहीं होती (क्योंकि उसकी दिमागी हालत ठीक नहीं होती और उसकी सोच भी नकारात्मक हो जाती है)।

बीमारी की रात पहाड़ बराबर : बीमारी में दिन तो फिर भी कट जाता है रात काटना बहुत मुश्किल होता है (बात उस समय की है जब न तो टीवी था न स्मार्ट फोन और न ही दर्द निवारक व नींद की दवाएँ थीं)।

बीरबल लाओ ऐसा नर, पीर बाबर्ची भिश्ती खर : ऐसे व्यक्ति की तलाश जो सारे काम कर सकता हो – पीर भी बन जाए, खाना भी पका ले, पानी भी भर लाए और बोझ भी ढो ले। इस कहावत के पीछे एक कहानी है। एक बार अकबर ने बीरबल से ऐसा कोई आदमी लाने को कहा तो बीरबल ने उनके सामने एक ब्राह्मण को ले जा कर खड़ा कर दिया। वास्तव में मुगल काल में ब्राह्मणों की दशा बड़ी खराब थी।

बीस पचीस के अंदर में जो पूत सपूत हुआ सो हुआ : पुत्र लायक है या नालायक यह बात बीस पचीस साल की आयु तक स्पष्ट हो जाती है।

बुआ के पास गहने तो भतीजी को क्या : किसी निकट संबंधी के पास धन हो, उससे हमें क्या लाभ होने वाला।

बुआ जाऊं जाऊं करे थी, फूफा लेने आ गया : बिना उम्मीद के कोई काम आसानी से हो जाना।

बुखार हाथी के भी हाड़ तोड़ देता है : बीमारी  बड़े से बड़े शक्तिशाली लोगों को भी त्रस्त कर देती है।

बुझने से पहले दीपक की लौ तेज हो जाती है : शाब्दिक अर्थ तो स्पष्ट है। कहावत का प्रयोग इस प्रकार करते हैं कि मृत्यु से पहले मनुष्य की स्मृतियाँ अधिक जागृत हो जाती हैं।

बुड़बक गए मछली मारे, काँटा आए गंवाय : (भोजपुरी कहावत) बुड़बक – मूर्ख व्यक्ति। कोई काम करने गए तो अपने औजार ही गंवा आए।

बुड्ढा ब्याह करे, पड़ोसियों को सुख हो गया : वैसे यह कोई न्यायपूर्ण और अच्छी बात तो नहीं है पर कटु सत्य तो है। कहावत में सीख दी गई है कि बूढ़े व्यक्ति को युवा स्त्री से विवाह नहीं करना चाहिए।

बुड्ढी बकरी और हुंडार (भेड़िया) से ठट्ठा : अपने से बहुत अधिक शक्तिशाली शत्रु से पंगा लेना।

बुड्ढी भैंस का दूध शक्कर का घोलना, बुड्ढे मर्द की जोरू गले का ढोलना : बुड्ढी भैंस का दूध मीठा होता है, बूढ़े व्यक्ति को अपनी पत्नी बहुत प्रिय होती है। (गले का ढोलना – गले में लटका तावीज़)।

बुढ़वा भतार पर पाँच टिकुली : टिकुली – माथे का टीका (सोने का),  भतार – पति। बूढ़े पति को प्रसन्न करने के लिए पाँच टिकुली लगाए हैं। अनावश्यक साज सज्जा।

बुढ़ापा दूसरा लड़कपन है : बुढापे में व्यक्ति बच्चों के समान जिद्दी और खाने पीने का लालची हो जाता है।

बुढ़ापा बड़ा कमीना :  1. बुढ़ापे में कष्ट ही कष्ट हैं। 2. बुढापे में आदमी बहुत स्वार्थी हो जाता है।

बुढ़ापा माने बुरा आपा : बूढ़ा होने पर शरीर में सौ बुराइयाँ आ धमकती हैं।

बुढ़ापे की औलाद ज्यादा प्यारी लगे : अर्थ स्पष्ट है।

बुढ़ापे में आदमी की मत मारी जाती है : अर्थ स्पष्ट है।

बुढ़ापे में मिट्टी खराब : किसी का सारा जीवन अच्छा कटा हो पर बुढ़ापे में बहुत कष्ट हो रहे हों तो। (बड़ी बीमारी हो जाए या सन्तान नालायक निकल जाए)

बुढ़िया के कहे खीर कौन रांधे (बुढ़िया के लिए खीर कौन पकाए) : आम घरों में लोग बुजुर्गों की फरमाइशों पर ध्यान नहीं देते।

बुढ़िया को पैठ बिना कब सरे : पैठ माने बाज़ार। बुढ़िया का बाज़ार जाए बिना काम नहीं चलता। (किसी की बुढापे में भी सैर सपाटे और खाने पीने की आदत न छूट रही हो तो व्यंग्य)।

बुढ़िया मरी कैसे, बोले सांस नहीं आई : किसी बात का सीधा उत्तर न देना।

बुढ़िया मरी तो मरी आगरा तो देखा : कुछ लोग घर की बड़ी बूढ़ी का इलाज कराने आगरा गए। बूढ़ी अम्मा तो नहीं बचीं पर इस बहाने आगरे की सैर हो गई। कहावत का अर्थ है कि जहाँ एक ओर कुछ काम बिगड़ा वहीं दूसरी ओर कुछ लाभ भी हो गया।

बुढ़िया मरी, खटोला मिला : किसी के नुकसान में अपना फायदा ढूँढने वालों के लिए।

बुढ़िया मरे का गम नहीं, पर जम घर देख गए : बुढ़िया मर गई इस बात का गम नहीं है पर इस बात की चिंता है कि यमदूत घर देख गए (अब दोबारा जल्दी न आ धमकें)।

बुढ़िया मिर्ची की पुड़िया : लड़ाकू बुढ़िया के लिए।

बुद्धि बिना बल बेकार : कोई कितना भी बलवान क्यों न हो अगर उसमें बुद्धि न हो तो सब बेकार है। शेर, हाथी, घोड़ा कितने भी बलवान क्यों न हों, मनुष्य अपनी बुद्धि से उन्हें वश में कर लेता है।

बुद्धि बिना विद्या बेकार (बुद्धि बिना विद्या बेचारी) : कोई कितनी भी विद्याएँ सीख ले, जब तक अपने अंदर बुद्धि न हो वे किसी काम की नहीं हैं।

बुद्धिमान शत्रु से मूर्ख मित्र अधिक खतरनाक होता है : अर्थ स्पष्ट है। उदाहरण के तौर पर एक कहानी कही जाती है। एक शिकारी जंगल में शेर का शिकार करने गया। शेर बहुत चालाक था। झाडियों की ओट से हमला करता, फिर छुप जाता। शिकारी ने अपनी सहायता के लिए एक भालू को शहद खिला कर उस से दोस्ती कर ली। एक दिन शिकारी थक कर पेड़ के नीचे सोया था और भालू पास बैठ कर उस की रखवाली कर रहा था। एक मक्खी बहुत देर से शिकारी के मुँह पर बार बार बैठ जा रही थी। भालू बहुत देर तक उसे उड़ाता रहा। जब वह नहीं मानी तो भालू ने आव देखा न ताव मक्खी को मारने के लिए एक बड़ा सा पत्थर उठा कर शिकारी के मुँह पर दे मारा। बेचारा शिकारी बुद्धिमान शत्रु (शेर) के हाथों नहीं बल्कि मूर्ख मित्र (भालू) के हाथों मारा गया। इंग्लिश में कहावत है – A wise enemy is better than a foolish friend.

बुरा कब्र तक कोसा जाए : बुरे व्यक्ति को लोग मरने के बाद तक कोसते हैं।

बुरा जो देखन मैं चली, बुरा न मिलिया कोय, जो दिल खोजो आपनो, मुझसे बुरा न कोय : दूसरों में बुराई ढूँढने की बजाए अपनी बुराइयों को ढूँढ़ कर उन्हें ठीक करना चाहिए।

बुरी नज़र वाले तेरा मुँह काला : ट्रकों के पीछे लिखा जाने वाली सबसे प्रचलित कहावत।

बुरी नज़र वाले तेरे बच्चे जीयें, बड़े हो कर तेरा खून पीएँ : ट्रकों के पीछे लिखा जाने वाली कहावत।

बुरी बात सच्ची हो जाती है, भली बात सच्ची नहीं होती : यदि हम बुरी बुरी आशंकाएं करते हैं तो उन में से कुछ सच हो जाती हैं। इसीलिए पुराने लोग कहते थे, बुरा मत सोचो। ।

बुरी संगत से अकेला भला (कुसंग से इकंत भली) (बुरी सोहबत से तन्हाई अच्छी) :  बुरे लोगों के साथ रहने से अकेला रहना अधिक अच्छा है। इंग्लिश में कहावत है – Better be alone than in a bad company.

बुरे का साथ दे वो भी बुरा : बुरा तो बुरा होता ही है, जो उसका साथ दे वह भी बुरा। द्रोणाचार्य और भीष्म पितामह इसी लिए बुरे बने क्योंकि उन्होंने दुर्योधन का साथ दिया।

बुरे काम का बुरा नतीजा (बुरे काम का बुरा हवाल) : किसी के साथ बुराई करने का परिणाम बुरा ही होता है।

बुरे दिन आते हैं तो पूछकर नहीं आते : कोई व्यक्ति कितना भी शक्तिशाली या सम्पन्न क्यों न हो, हर किसी को यह सोचना चाहिए कि उस पर भी कभी बुरे दिन आ सकते हैं।इसलिए जब अच्छे दिन हों तो भी सब से आदर और प्रेम रखना चाहिए।

बुरे लगत सिख के बचन, हिए बिचारो आप, करुवे भेषज बिन पिये, मिटै न तन को ताप : सिख के वचन – सीख, शिक्षा की बात, हिए – हृदय, भेषज – दवा, तन को ताप – बुखार। कड़वी दवाई से बुखार उतरता है इसलिए हमें दवा पीने में बुरा नहीं मानना चाहिए। इसी प्रकार सीख देने वाली बात कड़वी लगे तब भी हमें बुरा नहीं मानना चाहिए।

बुरे से देव डरावें : बुरे आदमी से भगवान भी डरता है।

बुर्के वाली बूआ, पीछे पीछे चूहा : बच्चों की आपसी मजाक।

बुलाई न चलाई, मैं दूल्हे की ताई : जबरदस्ती किसी से संबंध जोड़ने वालों के लिए।

बूचा सबसे ऊँचा : बूचा – कान कटा कुत्ता (जिसे मनहूस माना जाता है)। निर्लज्ज व्यक्ति सबसे बड़ा होता है।

बूची को और ताव, कानी को और ताव : बूची – जिसका कान कटा हुआ हो, ताव – गुस्सा या जोश। बूची और कानी दोनों को ही अशुभ माना जाता है (यद्यपि यह गलत है)।

बूढ़ा कुत्ता, पिलवा नाम : बेमेल नाम (बूढ़ा कुत्ता है और नाम है पिल्ला)।

बूढ़ा गिना न बालका, सुबहा गिनी न सांझ, जन जन का मन राखते, वैश्या रह गई बाँझ : वैश्या ने जो भी उसके पास आया, जिस समय भी आया, सबका मन रखा, इसलिए खुद वह बाँझ रह गई। (वैश्या गर्भधारण से बचने के लिए कुछ दवाएँ खाती है)। इसकी केवल एक पंक्ति भी बोली जाती है – जने जने का मन रखते वैश्या हो गई बाँझ।

बूढ़ा बैल और बूढ़े माँ बाप जितना काम कर दें उतना ही नफा : बैल बूढ़ा हो जाए तो उसे खिलाना तो पड़ता है पर वह खेती के काम का नहीं रहता, अर्थात उस का रख रखाव बहुत महंगा पड़ता है। इसी प्रकार बूढ़े माँ बाप घर के काम में या खेती व्यापार आदि में हाथ तो नहीं बंटा पाते पर उन पर खर्च पूरा होता है। इस प्रकार के लोग काम में जितना भी सहयोग कर दें वह एक प्रकार का बोनस है।

बूढ़ा बैल ब्याह गया है : कोई असम्भव सी बात। जैसे कोई बहुत कंजूस आदमी बड़ी रकम दान कर दे तो।

बूढ़ा रहे घर, न फिकर न डर : घर में कोई बुजुर्ग आदमी रहता हो तो घर सुरक्षित रहता है।

बूढ़ी घोडी लाल लगाम : किसी बूढ़े व्यक्ति को फैशन सूझ रहा हो तो या फिर किसी पुरानी चीज़ में कोई नया पुर्जा लगा दिया गया हो तो।

बूढ़ी बकरी को बहकावे भेड़िया, चल नाले पर हरी हरी खाने को मिलेगी : बूढ़ी बकरी भेड़िये की बातों में नहीं आने वाली। किसी अनुभवी व्यक्ति को कोई बहकाने की कोशिश करे तो यह कहावत कही जाती है।

बूढ़ी हुई बिल्ली, चूहे उड़ावें खिल्ली : जब कोई आततायी शक्तिहीन हो जाता है, तो कमजोर लोग भी उसका मजाक उड़ाने लगते हैं।

बूढ़े की जबान में जोर होता है : बूढ़े आदमी के हाथ पैर नहीं चलते लेकिन जबान बहुत चलती है।

बूढ़े को खिलाना, गठरी का डुबाना :  कहावत में कहा गया है कि बूढ़े आदमी पर अधिक पैसा खर्च करना समझदारी नहीं है।

बूढ़े तो सबकी करें, उनकी करे न कोय : बूढ़े लोग बेचारे सब की फ़िक्र करते हैं लेकिन उनकी फ़िक्र कोई नहीं करता।

बूढ़े तोते भी कही पढ़ते हैं (बूढ़ सुआ राम राम थोरै पढ़िहैं) : 1. बूढ़े लोग नहीं पढ़ सकते। इंग्लिश में कहावत है – You can not teach an old dog new tricks। 2. बूढ़े लोगों को पढ़ाने की कोशिश मत करो (उनका अनुभव किताबी ज्ञान से कम मूल्यवान नहीं है)।

बूढ़े बैल से भली कुदारी : बूढ़ा बैल किसी काम का नहीं होता क्योंकि वह हल नहीं चला सकता। उससे अधिक उपयोगी तो कुदाली है।

बूढ़े मुंह मुंहासे, लोग आए तमासे : मुँह पर मुँहासे जवानी में निकलते हैं अगर बुढापे में निकलें तो आश्चर्य की बात होगी। बूढों को यदि जवानी चढ़ने लगे तो उनका मजाक उड़ाने के लिए।

बूढ़ों की सीख, करे काम को ठीक : बूढ़े लोगों के पास लंबा अनुभव होता है जिस से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं।

बूढ़ों से बरकत : घर में मार्ग दिखाने वाले बूढ़े लोग हों तभी समृद्धि आती है।

बूँद का चूका, घड़े छ्लकावे : छोटा सा अवसर चूक जाने पर फिर उस लाभ को पाने के लिए बहुत प्रयास करना पड़ता है।

बूँद बूँद से सागर भरता है : सागर में अथाह जल है लेकिन वह बूँद बूँद कर के ही इकठ्ठा हुआ है। छोटी छोटी बचत एक बड़ी राशि बन सकती है।

बूंद बूंद सों घट भरे, टपकत रीतो होए : बूँद बूँद कर के घड़ा भरता है और बूँद बूँद टपकने से खाली भी हो जाता है। थोड़ी थोड़ी बचत कर के निर्धन व्यक्ति धनवान बन सकता है और थोड़ा थोड़ा धन गंवा के धनी व्यक्ति कंगाल हो सकता है।

बेइज्जत की पूरी से इज्जत की आधी भली : सम्मान के साथ थोड़ा भी मिले तो बेहतर है।

बेकार न बैठ कुछ किया कर, कपड़े ही उधेड़ कर सिया कर : आदमी को कभी खाली नहीं बैठना चाहिए। चाहे किसी काम को दोबारा करना पड़े।

बेकार से बेगार भली : बेकार होने का अर्थ है कोई काम न करना और बेगार का अर्थ है ऐसा काम करना जिसमें कोई मेहनताना या पैसा न मिले। कहावत का अर्थ है कि बेकार बैठने के मुकाबले कुछ न कुछ करना अच्छा है चाहे उससे कोई आर्थिक लाभ न भी हो। सयाने लोग कहते हैं कि खाली बैठोगे तो खाली दिमाग शैतान का घर है। कुछ काम करोगे तो पैसा न भी मिले कुछ अनुभव ही मिलेगा, किसी की दुआ ही मिलेगी। इंग्लिश में कहावत है – Better wear out than rust out.

बेकारी महकमे का जमादार : कोई बिलकुल बेकार आदमी। इस कहावत में बहुत से लोगों को जमादार शब्द पर आपत्ति होगी और होना भी चाहिए। कायदे में तो सफाई कर्मी को विभाग के महत्वपूर्ण लोगों में गिनना चाहिए। लेकिन यह कड़वा सच है कि जिस समय यह कहावत प्रचलन में आई होगी उस समय स्वच्छता कर्मियों की दशा शोचनीय थी।

बेगानी खेती पर झींगुर नाचे : दूसरे की चीज़ पर जबरदस्ती कब्जा करने वालों के लिए।

बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना : अनजान लोगों की ख़ुशी में जबरदस्ती खुश होने वाला मूर्ख व्यक्ति।

बेटा अभी हुआ नहीं, ढोल बजने लगे (बेटा हुआ नहीं, ढोल पीटने लगे) : उचित अवसर से पहले ही ख़ुशी मनाना।

बेटा एक कुल की लाज रखता है और बेटी दो कुल की : पुत्र को केवल अपने पिता के कुल की मर्यादा का पालन करना होता है जबकि पुत्री को अपने पिता और पति दोनों कुलों की मर्यादा निभानी होती है।

बेटा खाय, बाप लखाय, कलजुग अपना बल दिखलाय : बेटा खा रहा है और बाप बेचारा बैठा देख रहा है, यह कलियुग का लक्षण है।

बेटा जन कर झुक चले, सोना पहन कर ढक चले : बेटा होने के बाद स्त्री को घमंड नहीं करना चाहिए बल्कि विनम्र हो जाना चाहिए। सोने के गहने पहने हों तो उनका दिखावा नहीं करना चाहिए, ढक कर चलना चाहिए।

बेटा बेटी बस का अच्छा : बेटा और बेटी वही अच्छे हैं जो माता पिता की बात मानें।

बेटा से बेटी भली जो कुलवन्तिन होय : जो बेटा कुल की मर्यादा का ध्यान न रखे उस से वह बेटी अच्छी है जो कुल की लाज रखे।

बेटा हुआ तब जानिए जब पोता खेले द्वार : पहले के जमाने में संक्रामक रोगों के कारण बहुत से बच्चों की अकाल मृत्यु हो जाया करती थी। इसलिए यह कहावत कही गई है कि बेटा होने की ख़ुशी तब मनाओ जब बेटे का बेटा हो जाए।

बेटा होवे सयाना, दलिद्दर जाए पुराना : जब बेटे बड़े हो जाएँ और कमाने लगें तो घर की दरिद्रता दूर हो जाती है।

बेटी और घूरा, बहुत जल्दी बढ़ते हैं : कहावतों की एक विशेषता यह होती है कि उसे मजेदार बनाने के लिए दो बिल्कुल अलग चीजों को एक साथ मिला कर एक कहावत बना दी जाती है। कहीं पर कूड़ा डालना शुरू करो तो बहुत से लोग वहाँ कूड़ा डालने लगते हैं और घूरा बन जाता है जोकि बहुत तेजी से बढ़ता है। बेटी भी बहुत जल्दी बड़ी होती है और उसके विवाह की चिंता करनी पड़ती है।

बेटी कंगाल की नाम राजरानी : 1. गुण के विपरीत नाम। 2. गरीब से गरीब आदमी को भी अपनी संतान प्यारी होती है।

बेटी का भला चाहे तो बोल जमाई लाल की जै : बेटी को सुखी रखना चाहो तो दामाद को मक्खन लगाना चाहिए।

बेटी की माँ, बुढ़ापे में पानी भरे : जिस माँ के सब बेटियाँ ही होती हैं उसे बुढ़ापे में सारे काम करने पड़ते हैं, क्योंकि बेटियाँ अपने घर चली जाती हैं।

बेटी के बेटा कौनो काम, खइहें यहाँ और जइहें गाँव : (भोजपुरी कहावत) बेटी के बेटे किस काम के, खाएँगे यहाँ जाएँगे अपने गाँव। दूर रहनेवाले समय पर काम नहीं आते।

बेटी तू क्यों रोवे है, जो तुझको ब्याहेगो वो रोवेगा : एक समय था जब विवाह के समय लड़की के माँ बाप चिंता करते थे कि मालूम नहीं लड़का और उसके घर वाले कैसे निकलेंगे। अब तो लड़के वाले अधिक चिंता करते हैं कि मालूम नहीं बहू कैसी निकलेगी।

बेटी दे कंजूस को, बेटी ले उदार की : कंजूस के घर में बेटी की शादी करने से खर्च कम करना पड़ता है और उदार व धनवान व्यक्ति की बेटी से शादी करने पर माल खूब मिलता है।

बेटी ने किया कुम्हार और मां ने किया लुहार, न तुम चलाओ हमार न हम चलाएं तुम्हार : बेटी ने कुम्हार से शादी कर ली और माँ ने लुहार से। अब दोनों एक दूसरे से कह रही हैं कि तुम हमारे बारे में कुछ न कहो, हम तुम्हारे बारे में कुछ नहीं कहेंगे। जब दो अपराधी एक दूसरे का अपराध छिपाएं तो।

बेटी मरी जमाई चोर, टूट गई डाली उड़ गया मोर : जिस डाली पर मोर बैठा है वह टूट जाए तो मोर को वहाँ से उड़ जाना पड़ता है। बेटी के मरने पर दामाद की उस घर में हालत चोर जैसी हो जाती है (वह एक अवांछित व्यक्ति बन जाता है)।

बेटी माँ के पेट में समाती है पर बाप के आंगन में नहीं समाती : बेटा और बेटी दोनों माँ की कोख से पैदा होते हैं पर बेटी को अपना आंगन छोड़ कर जाना पड़ता है।

बेटे को खिलाऊँगी तगड़ा हो जाएगा, आदमी को खिलाऊँगी खूब कमाएगा, बूढ़े को खिलाऊँगी सो बेकार जाएगा : स्वार्थी बहुओं का कथन।

बेटे से बेटी भली जो कोई होय सपूत : नालायक बेटे से तो योग्य बेटी अधिक अच्छी।

बेटों को घी भरपूर और बेटियों को खट्टी छाछ : पुराने समय में बेटे बेटी में बहुत भेदभाव होता था।

बेड़ी सोने की भी बुरी : सोने की बेड़ी अर्थात खूब सुख सुविधाओं वाली गुलामी। गुलामी हमेशा बुरी ही होती है, चाहे उसमें कितनी भी सुविधाएं क्यों न हों।

बेदिल नौकर, दुश्मन बराबर : जो नौकर अपनेपन से काम न करे वह दुश्मन जैसा है (उसे मालिक के हानि लाभ की कोई परवाह नहीं होती)।

बेबकूफ किस्मत के धनी होते हैं : यदि किसी बेबकूफ आदमी को अच्छी सुविधाएं मिल रही होती हैं तो अक्लमंद लोग कुढ़ कर यह बात बोलते हैं। (खुदा मेहरबान तो गधा पहलवान)

बेबकूफों की कमी नहीं है, एक ढूँढो हजार मिलते हैं : मूर्ख लोग इस दुनिया में बहुतायत में पाए जाते हैं।

बेर खावे गीदड़ी, डंडे खावे रीछ : अपराध कोई और करे, दंड कोई और पाए।

बेल कच्चा या पका, कौवों के बाप का क्या : बेल पका हो या कच्चा हो कौवे को इससे फर्क नहीं पड़ता क्योंकि वह बेल खा ही नहीं सकता (कठोर छिलके में अपनी चोंच से छेद नहीं कर सकता)। जिस चीज़ से हमें कोई नफा नुकसान न हो उस में हम क्यों सर खपाएँ।

बेल के मारे बबूल तले, बबूल के मारे बेल तले : बेल के पेड़ के नीचे खड़े थे तो सर पे बेल गिरा और सर फट गया, वहां से भाग कर बबूल के पेड़ के नीचे खड़े हुए तो कांटे चुभ गए तो फिर भाग कर बेल के नीचे आए। अभागे व्यक्ति के लिए।

बेलज्जी बहुरिया पर घर नाचे : निर्लज्ज बहू दूसरों के घरों पर घूमती फिरती है।

बेलाग बेबाक : जिसे कोई लाग लपेट (स्वार्थ) न हो वह स्पष्ट बात कहने में नहीं डरता। बेलाग – निस्वार्थ, बेबाक – स्पष्टवादी।

बेवकूफ की सबसे बड़ी समझदारी चुप रहना है : बेवकूफ आदमी जब तक चुप रहता है तब तक उसमें और समझदार आदमी में अंतर करना मुश्किल होता है, पर जैसे ही वह बोलता है उसकी असलियत सामने आ जाती है। एक मंदबुद्धि लड़के को देखने के लिए लड़की वाले आ रहे थे। सब लोग उसे समझा रहे थे कि लड़की वाले ऐसा पूछे तो यह जवाब देना, वैसा पूछे तो वह जवाब देना आदि। तब एक बुजुर्ग ने कहा कि बेटा सब से बड़ी समझदारी यह होगी कि तुम चुप रहना।

बेवक्त की शहनाई, मुए कूढ़ ने बजाई : कोई मूर्ख व्यक्ति बेअवसर की बात करे तो। (कूढ़ – मूर्ख व्यक्ति, इसको कुछ लोग कूढ़ मगज़ भी कहते हैं)। शहनाई कुछ ख़ास अवसरों पर ही अच्छी लगती है, उस के अलावा कोई बजाए तो गुस्सा आता है।

बेवारिसी नाव डांवाडोल : हर काम के लिए योग्य नेतृत्व की आवश्यकता होती है। बिना मल्लाह की नाव डांवाडोल रहती है।

बेशरम को दुख नहीं, कंजूस को सुख नहीं : बेशर्म आदमी मान अपमान से परे होता है इसलिए उसे कोई दुख नहीं होता। कंजूस कभी अपने ऊपर खर्च नहीं करता इसलिए उसे कोई सुख नहीं होता।

बेशर्म का नंगे से पाला पड़ा है : जब एक बेशर्म आदमी का अपने से बड़े बेशर्म से पाला पड़े तो।

बेशर्मों के पूँछ थोड़े ही होती है : बेशर्म लोग देखने में इंसान ही होते हैं, बस उनकी हरकतें उन्हें औरों से अलग करती हैं।

बेसवा का जाया, किसको बाप कहे : वैश्या के बेटे के सामने यह समस्या होती है कि वह किसी को अपना बाप नहीं कह सकता।

बेहया की पीठ पर रूख जमा, उसने जाना छाँव हुई : बेशर्म आदमी की पीठ पर पेड़ उग आया, बात बहुत परेशानी की है पर वह खुश हो रहा है कि चलो छाया हो गई। बेशर्म आदमी के लिए मान अपमान एक समान है। इसको कुछ अश्लील ढंग से ऐसे भी कहा गया है – बेहया के चूतड़ में पेड़ उगा, आओ लोगों छाँव में बैठो।

बैठने को जगह दे दो, लेटने को खुद ही कर लेंगे : जो लोग थोड़ी सी सुविधा मिलने पर अपना अधिकार जमा लेते हैं उनके लिए।

बैठा बनिया क्या करे, बाट तराजू तौले : बनिया बहुत उद्यमशील होता है, वह खाली बैठने की बजाए कुछ न कुछ करता रहता है।

बैठी बुढ़िया मंगल गाए : समझदार आदमी कभी खाली नहीं बैठता। वह ऐसा कुछ न कुछ काम करता रहता है जो दूसरों को अच्छा लगे।

बैठे बैठे तो कारूँ का खजाना भी खाली हो जाता है : कारूँ – मुस्लिम कथाओं में एक अति धनवान और कंजूस व्यक्ति जो हज़रत मूसा का चचेरा भाई था। इंसान यदि कोई काम न करे तो उसने कितना भी धन जोड़ कर रखा हो सब खत्म हो जाता है।

बैद्य, धनी, राजा, नदी, अरु पंडित नहिं होय, जहाँ पाँच ये न हुए, वहाँ बसो न कोय : (बुन्देलखंडी कहावत) किसी भी समाज के अस्तित्व के लिए ये पांच आवश्यक हैं, जहाँ ये न हों वहाँ जीवन जीना कठिन है।

बैरी लायो गेह में, किया कुटुम पर रोस, आप कमाया कामड़ा, दई न दीजे दोस (बैरी न्यूत बुलाइयाँ कर भायां से रोस) : दई – दैव,ईश्वर;कामड़ा – दुर्भाग्य, दुर्दशा। घर वालों से बदला लेने के लिए बैरी को घर में बुलाया। अब मेरी बारी भी आ गई है। इस दुर्दशा को मैंने खुद बुलाया है, भाग्य का इस में दोष नहीं है। इस कहावत के पीछे एक कथा कही जाती है। एक कुएं में बहुत से मेंढक रहते थे। एक बार उनमें आपस में लड़ाई हो गई तो एक मेंढक दूसरों से बदला लेने के लिए एक सांप को बुला लाया। सांप ने एक एक कर के सब मेंढकों को खा लिया। जब अंत में उस मेंढक की बारी आई तो उस ने यह कहा। पृथ्वीराज चौहान से बदला लेने के लिए जयचंद ने मोहम्मद गोरी को बुलाया। बाद में गोरी ने कन्नौज पर आक्रमण कर के जयचंद को भी मार डाला।

बैरी संग न बैठिए पीकर मद और भांग : किसी प्रकार का नशा कर के अपने शत्रु के साथ कभी नहीं बैठना चाहिए। आप नशे में कोई भेद की बात उसे बता कर अपना नुकसान कर सकते हैं।

बैल अकेला किस काम का : अकेला बैल हल भी नहीं चला सकता और गाड़ी भी नहीं जोत सकता।

बैल का बैल गया, नौ हाथ का पगहा भी गया : किसी बड़े नुकसान के साथ एक छोटा नुकसान और होना। बैल तो चोरी हुआ है साथ में बैल को बाँधने वाली रस्सी भी चोरी हो गई।

बैल न कूदा, कूदी गौन, (ऐसा तमाशा देखे कौन) : गौन – बैल के ऊपर रखी जाने वाली अनाज की बोरी। बोरी रखने पर बैल ने तो कोई आपत्ति नहीं की, बोरी ही उछल कूद मचाने लगी। जिस से कोई चुभती बात कही गई वह तो कुछ न बोला, दूसरा कोई लड़ने को तैयार हो गया।

बैल बेच घंटी पर रार (भैंस बेच पगहे पर झगड़ा) : बड़ा सौदा कर के छोटी सी बात पर लड़ना। रार – झगड़ा। पगहा – गाय भैंस को बाँधने की रस्सी।

बैल ब्याहे तो नहीं पर बूढ़ा तो होगा ही : बैल की शादी भले ही न हो बैल बूढ़ा तो होगा ही। शादी न कर के कोई व्यक्ति समाज के नियम को टाल सकता है पर प्रकृति के नियम को नहीं टाल सकता।

बैल मरखना चमकुल जोय, बा घर रोना नित ही होय : जिस का बैल मरखना (सींग मारने वाला) हो और पत्नी चमक धमक से रहने वाली हो, उस के घर में नित्य ही मातम होता है।

बैल सरकारी, यारों की टिटकारी : सरकारी सम्पत्ति या किसी भी मुफ्त की चीज़ का लोग खूब दुरूपयोग करते हैं।

बैले दीजे जायफल, क्या तौले क्या खाय : जायफल सुपारी की जाति का एक फल होता है जिसका प्रयोग कुछ औषधियों और गरम मसाले में किया जाता है। बैल को जायफल दिया जाए तो न तो उस का पेट भरेगा और न ही वह उस के गुणों को समझेगा। इस कहावत में दो कहावतों का समावेश है – बंदर क्या जाने अदरख का स्वाद और ऊँट के मुँह में जीरा।

बैलों से खेती घोड़ों से राज, मर्दों से सुधरें सिगरे काज : खेती के लिए बैल आवश्यक हैं, शासन चलाने के लिए घोड़े और सभी प्रकार के कामों के लिए पुरुष आवश्यक हैं।

बोए कोई काटे कोई : इस कहावत का प्रयोग दो प्रकार से हो सकता है – मेहनत किसी और ने की और फल किसी और को मिला, या गलती किसी और ने की खामियाजा किसी और ने भुगता।

बोटी नहीं तो शोरबा ही सही : जो मिल जाए वही गनीमत।

बोया गेहूँ, उपजा जौ : भाग्य साथ न दे तो कोई काम ठीक नहीं होता।

बोया न जोता, अल्ला मियाँ ने दिया पोता : बिना मेहनत करे अचानक कोई चीज़ मिल जाए तो।

बोया पेड़ बबूल का, तो आम कहाँ से खाय : सब के साथ बुरा करोगे तो तुम्हारे साथ भलाई कैसे होगी।

बोलने वाले का भुस बिकाय, न बोलने वाले का धान सड़ाय : जिसके अंदर बोलने की कला है वह अपना घटिया उत्पाद भी बेच लेता है और जो नहीं बोल पाता है वह अच्छा उत्पाद भी नहीं बेच पाता है। विज्ञापन भी यही काम करते हैं।

बोलबो न सीख्यो तो सब सीख्यो गयो धूल में : आप कितना भी ज्ञान प्राप्त कर लें यदि आप को ठीक से बोलना नहीं आता (अभिव्यक्ति का गुण नहीं है) तो सब ज्ञान बेकार है।

बोली एक अमोल है, जो कोइ बोलै जानि, हिये तराजू तौल के, तब मुख बाहर आनि : बोली अनमोल वस्तु है इसलिए जो कुछ भी बोलो पहले अपने हृदय में उसे तोल लेना चाहिए।

बोली गधे चढ़ावे, बोली घोड़े चढ़ावे : जहाँ एक ओर खराब बोली बोलने पर किसी को मुंह काला कर के गधे पर बिठाया जाता है, वहीं दूसरी ओर अच्छी बोली बोल कर राजा के यहाँ अच्छा पद और सुविधाएं मिल जाती हैं।

बोली बोली तो ये बोली कि मेरी जूती बोले : लड़ाका स्त्री के लिए जो गुस्से में मुँह फुलाए है और कुछ बोल नहीं रही है, फिर कहती है मेरी जूती बोलेगी।

बोली से ही पान मिले और बोली से ही पन्हैया : अच्छी बोली बोलने से पान खिला कर सम्मान किया जाता है और बुरी बोली बोलने से जूते खाने पड़ते हैं। पन्हैया – जूता।

बोले सो तेल को जाए : चुप रहना सबसे अच्छा है। जो बोलेगा वही तेल लेने जाएगा। (जो बोले सो कुण्डी खोले)।

बोहरे की बकरी सो बरस सखरी : सखरी – अच्छी, स्वस्थ, बोहरा – सूदखोर। सूदखोर के असामी ही उस के भेड़ बकरी हैं जो पीढ़ियों तक कर्ज़ भरते हैं।

बोहरे की राम राम, जम का संदेसा : बोहरा – सूदखोर बनिया। बोहरा नमस्कार कर के अपने पैसे मांगता है, इसलिए उस की नमस्कार भी मौत का संदेश है।

बौना, जोरू का खिलौना : ठिगने कद के व्यक्ति को चिढ़ाने के लिए।

बौरी बिस्तुइया, बाघन से नज़ारा : बिस्तुइया – बिस्खोपड़ी, गोह (छिपकली की जाति का एक बड़ा प्राणी जो उस से काफी बड़ा होता है)। गोह पगला गई है जो बाघों से भिड़ रही है। कोई अपने से बहुत बड़े दुश्मन से भिड़े तो।

ब्याज कमाने आया, मूल गवां के जाए : किसी काम में लाभ के स्थान पर हानि हो जाना।

ब्याज बढ़ावे धन घना रार बढ़ावे छोय, जैसे गंधक आग में गिरे सो दूनी होय : ब्याज से धन बढ़ता है और झगड़ा बढ़ाने से क्षोभ बढ़ता है (जिस प्रकार गंधक आग में गिर कर दूनी हो जाती है)।

ब्याज मोटा, मूल का टोटा : ज्यादा मोटा ब्याज वसूलने के चक्कर में कभी कभी मूलधन भी मारा जाता है।

ब्यारी कबहुं न छोडिये, बिन ब्यारी बल जाए, जो ब्यारी औगुन करे दुपरै थोड़ो खाएँ : (बुन्देलखंडी कहावत) मेहनतकश आदमी को रात का भोजन अवश्य करना चाहिए। अगर रात में खाने से पेट में भारीपन लगे तो दोपहर में खाना थोड़ा कम कर देना चाहिए।

ब्याह तो बिगड़ गया, घर के तो जीमो : किसी विवाह में कन्या और वर पक्ष के बीच बात बिगड़ जाने से बारात वापस चली गई, तो कन्या का पिता कह रहा है कि घर के लोग तो भोजन करो। कोई काम बिगड़ जाने के बाद भी दुनिया रुक नहीं जाती, चलती रहती है।

ब्याह न सगाई, तू मेरी लुगाई : जबरदस्ती किसी से सम्बन्ध होने का दावा करना।

ब्याह नहीं किया तो क्या, बारात तो गए हैं : कोई कार्य हमें स्वयं करने का अनुभव नहीं है तो क्या हुआ हमने औरों को करते देख कर ही सीख लिया है।

ब्याह पीछे पत्तल भारी : किसी बड़े कार्य में आप कितना भी खर्च कर लें उस के बाद छोटे छोटे खर्च भी भारी लगते हैं। विवाह में चाहे हजार लोगों को खिला दिया हो पर उसके बाद एक आदमी को भोजन कराना भी भारी लगता है।

ब्याह पीछे बरात, बरात पीछे धौंसा : जो काम पहले करना चाहिए वह बाद में करना। विवाह के बाद बारात निकालना और बारात निकलने के बाद बैंड बाजा बजाना।

ब्याह बिगाड़ें दो जने, या मूंजी या मेह : दो चीजें विवाह में व्यवधान डालती हैं, पैसे का लालची व्यक्ति या बरसात। किसी भी आयोजन के लिएउचित खर्च करना जरुरी होता है और प्रकृति का सहयोग भी।

ब्याह में गाए गीत, सारे साँची न होते : विवाह में लोग अच्छे अच्छे गीत गाते हैं वे सब सच नहीं होते। हम भविष्य के बारे में बहुत सी आशाएं संजोते हैं, पर वे सब सच नहीं होतीं।

ब्याह सगाई नौकरी, राजी ही से होय : विवाह, प्रेम और नौकरी आपसी सहमति से ही हो सकते हैं।

ब्याह हुआ नहीं, गौने का झगड़ा : किसी काम को आरम्भ किए बिना उस के परिणाम को लेकर झगड़ा करना। गौना विवाह के बाद होने वाली रस्म है जिसमें वर वधू को विदा करा के अपने घर ले जाता है। किसी किसी समाज में गौना विवाह के काफी दिन बाद होता है।

ब्याहे न बरात गए : नितांत अनुभवहीन व्यक्ति।

ब्राह्मण और धान की जातियाँ अनंत हैं : जिस प्रकार धान की बहुत सारी प्रजातियाँ होती हैं उसी प्रकार ब्राह्मणों में भी बहुत सी उपजातियाँ होती हैं।

ब्राह्मण हो चोरी करे, विधवा पान चबाय, क्षत्री हो रण से भगे, जन्म अकारथ जाय : ब्राह्मण यदि चोरी करे, विधवा यदि पान चबाए (पान चबाना विलासिता का प्रतीक है जबकि विधवा स्त्रियों से बिलकुल सादा जीवन जीने की अपेक्षा की जाती थी) और क्षत्रिय हो कर रणभूमि से भाग जाए, इन सब का जीवन बेकार है।

( भ )

भंवरा जाने सर्व रस, जिन चाखी वनराय, घुन क्या जाने बापुरो, सूखी लकड़ी खाय : भंवरा भांति भांति के फूलों का पराग चखता है इस लिए उसे सारे रसों का ज्ञान होता है, घुन बेचारा केवल सूखी लकड़ी खाता है इसलिए कुछ नहीं जानता।

भई गति साँप छछूंदर केरी (धरम सनेह उभय मति घेरी) : सांप के विषय में कहा जाता है कि यदि वह छछूंदर को पकड़ ले तो बहुत संकट में पड़ जाता है, यदि वह उसे निगल ले तो अंधा हो जाएगा और अगर उगल दे तो कोढ़ी हो जाएगा। इस संसार में मनुष्य के लिए ऐसी ही स्थिति होती है एक तरफ धर्म होता है और दूसरी तरफ स्नेह करने वाले स्वजन होते हैं।

भए विधि विमुख विमुख सब कोऊ : भाग्य साथ न दे तो बंधु, बांधव, मित्र सभी मुँह मोड़ लेते हैं।

भगवान के राज्य में देर है अंधेर नहीं (भगवान के घर देर है अंधेर नहीं है) : ईश्वर सभी के साथ न्याय करता है चाहे वह कुछ देर से क्यों न हो।

भगवान तो भाव के भूखे हैं (भगवान भावना के भूखे हैं) : भगवान सवा मन लड्डू या सवा सेर सोना चढ़ाने से प्रसन्न नहीं होते, वे तो भक्त की भावना देखते हैं।

भगवान पर विश्वास रखो, पर अपनी सुरक्षा स्वयं करो : भगवान् पर विश्वास रखना चाहिए लेकिन अंधविश्वास न कर के अपने कार्य स्वयं करना चाहिए। इस से मिलती जुलती इंग्लिश में एक कहावत है – God helps those, who help themselves.

भगवान मुझे अपनों से बचाए शत्रुओं से मैं अपनी रक्षा आप कर लूँगा : शत्रुओं से अधिक खतरा उन लोगों से है जो अपना होने का दिखावा करते हैं और मौका पाते ही पीठ में छुरा भोंक देते हैं।

भगवान् देता है तो छप्पर फाड़ के देता है : ईश्वर जब कृपा करता है तो भरपूर देता है।

भगाओ मन के डर को, बुड्ढे वर को : मन के डर को भगाओ (जो डरता है वह कुछ नहीं कर सकता) और अगर कोई बुड्ढा किसी युवा लड़की से शादी करने को आए तो उसे भगा दो।

भगोड़ा सिपाही पलटन की बुराई करता है : कोई भी कर्मचारी जहाँ से काम छोड़ता है (या निकाला जाता है) वहाँ की बुराई करता है।

भज कलदारं, भज कलदारं, कलदारं भज मूढमते : कलदार – रुपया।इस कलयुग में रुपया ही सब कुछ है। यह कहावत श्री कृष्ण भजन – भज गोविन्दं मूढ़मते की तर्ज पर बनाई गई है।

भजन और भोजन एकान्त में भला : भजन एकांत में इसलिए करना चाहिए जिससे मन इधर उधर न भटके, और भोजन एकांत में इसलिए करना चाहिए जिससे औरों की नज़र न लगे।

भटा भर्ता (बैगन का भर्ता) न खाए, तो दुनिया में काहे को आए : बुन्देलखंड में बैगन के भर्ते को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। वहाँ के लोगों का कहना है कि यदि बैंगन का भर्ता नहीं खाया तो मनुष्य का जन्म लेना बेकार है।

भड़भड़िया अच्छा, पेट पापी बुरा : जो ऊपर से शांत दीखता है पर उसके मन में पाप है उस के मुकाबले जल्दी मचाने वाला व्यक्ति अच्छा है। भड़भड़िया – जल्दी मचाने वाला।

भड़भूँजा की छोकरी और केसर का तिलक : अयोग्य व्यक्ति को बहुमूल्य वस्तु मिल जाना। भड़भूँजा – भाड़ में अनाज इत्यादि भूनने वाला (पहले जमाने में निचली श्रेणी के लोगों में से एक)।

भडुए को भी मुंह पर भडुआ नहीं कहते : नीच व्यक्ति को भी उस मुँह पर नीच नहीं कहना चाहिए। भडुआ – वेश्याओं का दलाल या साज बजाने वाला।

भय और प्रेम एक जगह नहीं रहते : जहाँ प्रेम है वहाँ भय का कोई स्थान नहीं है और जो भय दिखाता है उस से प्रेम नहीं हो सकता।

भय बिन भाव न ऊपजै, भय बिन होय न प्रीति : बिना डर के किसी के प्रति आदर का भाव नहीं पैदा होता और बिना डर के प्रीति भी नहीं होती।

भय बिनु होहि न प्रीत। बिना डर के आदमी कोई काम नहीं करता : भगवान राम ने जब समुद्र से मार्ग देने का अनुरोध किया और वह नहीं माना तो राम ने अपने धनुष पर अग्नि बाण चढ़ाया और क्रोध से कहा कि यदि समुद्र रास्ता नहीं देगा तो मैं इसे सुखा दूँगा। – तुलसीदास जी ने राम चरित मानस में इस प्रकरण को इस प्रकार कहा है – विनय न मानत जलधि जड़ गए तीनु दिन बीत, बोले राम सकोप तब भय बिनु होहि न प्रीत।

भर फगुआ बुढ़उ देवर लागेंले : (भोजपुरी कहावत) होली के मौसम में इतनी मस्ती छाती है कि स्त्रियाँ ससुर से भी देवर के समान मजाक कर लेती हैं। फगुआ – फाग, होली।

भरम भारी, पिटारा खाली : जहाँ किसी बात का बहुत भारी भ्रम फैलाया जा रहा हो और वास्तविकता में कुछ न हो। बंद पिटारा दिखा कर लोगों को मूर्ख बनाया जा रहा है जबकि पिटारा अंदर से खाली है।

भरम मारे, भरम जियावे : भ्रम (अनावश्यक डर) ही व्यक्ति को मारता है और भ्रम (आशा) ही व्यक्ति को जीने की और कर्म करने की इच्छा प्रदान करता है।

भरी जवानी मांझा ढीला : मांझा – शरीर में कमर और नितम्बों का भाग। युवावस्था में यौनेच्छा की कमी या अशक्ति।

भरी जवानी में बुढ़ापे का मजा : कोई जवानी में ढीला ढाला, कमजोर और आलसी हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए ऐसे बोलते हैं।

भरी न छलके, अधभरी छलके (भरी गगरिया चुपके जाय) : भरी हुई गागर ले कर चलने पर वह छलकती नहीं है, आधी भरी हुई छलकती है। इसी प्रकार जिस व्यक्ति को अधिक ज्ञान होता है वह कम बोलता है जबकि अधूरे ज्ञान वाला व्यक्ति बहुत बकबक करता है।

भरी नाव में सूप भी भारी : जो व्यक्ति या संस्थान काम के बोझ से लदा हुआ है उस को थोड़ा सा भी अतिरिक्त काम भारी लगता है।

भरे को सब भरें : जो सब प्रकार से सम्पन्न है उसी को सब लोग भेंट और सम्मान देते हैं, जो वास्तव में जरूरतमंद है उसे कोई नहीं देना चाहता।

भरे पेट शक्कर खारी : जब पेट भरा हो तो अच्छे खाद्य पदार्थ भी स्वादिष्ट नहीं लगते, जबकि भूखे पेट पर सादा भोजन भी स्वादिष्ट लगता है।

भरे समंदर में घोंघा प्यासा : समस्त सुविधाओं के बीच रहने वाला व्यक्ति ही अगर उनसे वंचित हो

भरोसे की भैंस, पड़ा बियानी : (बुन्देलखंडी कहावत) भैंस की पड़िया की कीमत पड्ढे के मुकाबले बहुत अधिक होती है। जिस भैंस पर विश्वास था कि वह पड़िया जनेगी उसी ने पड्डा पैदा कर दिया। कोई विश्वास पात्र व्यक्ति ही धोखा दे जाए तो यह कहावत कही जाती है।

भलमानस घर में पड़ा, मवाली ने जाना मुझसे डरा : शांति प्रिय व्यक्ति चुपचाप अपने घर में रह रहा है तो गुंडे बदमाश समझ रहे हैं कि उन से डर गया है।

भला हुआ ननद गौने गई, ननद की साड़ी मोको भई : किसी के जाने से किसी का फ़ायदा। ननद के ससुराल जाने से भाभी इसलिए खुश है कि ननद की साड़ी उसे पहनने को मिल गई।

भले आदमी की मुर्गी टके टके : भले आदमी के माल को सब सस्ते में हासिल करना चाहते हैं।

भले के भाई, बुरे के जंवाई : जो हमारे साथ शराफ़त से पेश आएगा उस के लिए हम शरीफ़ हैं और जो हमारे साथ बुरा करेगा उस के लिए हम बुरे है। यहाँ जंवाई का अर्थ खून चूसने वाले प्राणी के रूप में किया गया है।

भले घोड़े को एक चाबुक, भले आदमी को एक इशारा काफी है : अर्थ स्पष्ट है।

भले दिन का मेहमान, बुरे दिन का दुश्मन : जब व्यक्ति सम्पन्न होता है तो घर आया मेहमान अच्छा लगता है। जब व्यक्ति परेशानी में होता है तो घर आया मेहमान दुश्मन लगता है।

भलो भयो मेरी मटकी फूटी, मैं दही बेचन से छूटी : चाहे नुकसान हो जाए पर काम न करना पड़े ऐसा सोचने वाले व्यक्ति के लिए।

भलो भयो मेरी माला टूटी राम जपन की किल्लत छूटी : उपर्युक्त कहावत की भांति।

भलो, भलो कह छांड़िए, खोटे ग्रह जप दान (दुष्ट ग्रहों को ही पूजा जाता है) : किसी भी घर, खानदान या संगठन में भले लोगों को तो यह कह कर उपेक्षित कर दिया जाता है कि ये तो भले आदमी है मान जाएंगे। जो दुष्ट और दुराग्रही हैं उन्हें मनाने की कोशिश की जाती है। इसका दृष्टांत इस कहावत में इस प्रकार दिया गया है कि सूर्य और बृहस्पति की पूजा कोई नहीं करता, शनि और राहु को शांत करने के लिए दान और हवन किए जाते हैं। इसकी पहली पंक्ति है – बसे बुराई जासु तन, ताही को सन्मान।

भवन बनावत दिन लगे, ढावत लगे न देर : मनुष्य बड़ी मेहनत से महीनों सालों में कोई भवन बनाता है या व्यापार खड़ा करता है, पर जब दुर्भाग्य आता है तो कुछ क्षणों में ही सब ढह जाता है।

भवानी निबल बकरे सबल : देवी कमजोर हैं और उनको बलि चढ़ाने के लिए लाए गए बकरे ताकतवर हैं। जहाँ प्रशासन कमज़ोर और अपराधी मजबूत हों।

भाँड़ो संग खेती की, गा बजा के छीन ली : निम्न श्रेणी के लोगों के साथ साझे में कोई काम नहीं करना चाहिए, वे नंगई दिखा कर व्यापार का सारा लाभ छीन सकते हैं।

भांग भखन तो सुगम है, लहर कठिन कैंह होय : भांग खाना आसान है भांग की तरंग झेलना मुश्किल है।

भांग मांगे भूगड़ा, सुल्फा मांगे घी, दारू मांगे खूंसड़ा, खुसी आवे तो पी : भूंगड़ा – भुने चने। भांग की तरंग मसाले दार भुने चने खाने से कम होती है और सुल्फे की खुश्की घी से, दारू पी के जो दिमाग फिरता है वह जूते लगने से ठीक होता है, जिसको जिसमें ख़ुशी हो वही पियो।

भांड की कौन बुआ, सांप की कौन मौसी : निकृष्ट लोग कोई सामाजिक रिश्ता नहीं मानते।

भाई का भाई बाहर बैठ जाए, जोरू का भाई चौके तक जाए : (बुन्देलखंडी कहावत)  महिलाएँ पति के भाई को घर में बैठाती तक नहीं हैं, लेकिन अपने भाई को चौके में बैठा कर प्रेम से खाना खिलाती हैं।

भाई दूर पड़ोसी नियरे : पड़ोसी का बहुत महत्व है क्योंकि मुसीबत के वक्त भाई तो दूर होगा पर पड़ोसी पास होगा।

भाई बराबर बैरी नहीं, भाई बराबर प्यारा नहीं : भाई सब से प्यारा भी होता है और जायदाद के झगड़े के कारण भाई सब से बड़ा दुश्मन भी बन जाता है।

भाई भतीजा भांजा भाट भांड भुइंहार, इतने भ को छोड़ के फेरि करो व्यापार (भइअन छओ भकार से, सदा रहो होसियार) : भ अक्षर से शुरू होने वाले इन सब लोगों के साथ व्यापार नहीं करना चाहिए। ये छः लोग कभी भी धोखा दे सकते हैं।

भाई भले ही मरे, भाभी का घमंड टूटना चाहिए : मूर्खता पूर्ण स्वार्थपरता की पराकाष्ठा।

भाई लड़ें तो माँ भी दो हो जाएँ : भाइयों में लड़ाई होती है तो बेचारी माँ के सामने यह दुविधा हो जाती है कि वह क्या बोले। दोनों को लगता है कि माँ दूसरे का पक्ष ले रही है।

भाई सीधा और भाभी चंट, उधर की कसर इधर पूरी : किसी घर में पति सीधा हो और पत्नी चालाक तो लोग पति के सीधेपन का नाजायज फायदा नहीं उठा पाते हैं। ऐसी परिस्थिति में यह कहावत कही जाती है।

भाग बिना भोगे नहीं भली वस्तु का भोग, (दाख पके जब काग के होत कंठ में रोग) : भाग्य के बिना हम किसी वस्तु का उपभोग नहीं कर सकते। लोक मान्यता है कि जब अंगूर पकते हैं तो कौए के गले में रोग हो जाता है और वह अंगूर नहीं खा सकता। दाख – द्राक्ष (अंगूर)।

भागते भूत की लंगोटी ही भली : जब कोई बड़ा नुकसान हो रहा हो तो जो कुछ भी बच जाए वही अच्छा।

भागतों के आगे और मारतों के पीछे : डरपोक लोगों के लिए। जहाँ मैदान छोड़ कर भागने की बात आएगी वहाँ सबसे आगे होंगे, और जहाँ आगे बढ़ कर मारने की बात आएगी वहाँ सब से पीछे होंगे।

भागने वाली को दहेज नहीं मिलता : जो लड़की घर से भाग कर शादी करती है उसे दहेज़ नहीं मिलता।

भागने से पहले चलना सीखो : किसी काम को सीखने में जल्दबाजी न करो।

भागलपुर के भागलिए कहलगाँव के ठग, पटना के दिवालिए ये तीनों नामज़द : स्थान विशेष के ऊपर बनाई गई कहावतें जो कभी किसी कारण से बनती हैं और कभी बेसिरपैर की भी होती हैं।

भागलपुर जाइए न, जाइए तो कुछ लाइए न और लाइए तो रोइए न : कहावत में कहा गया है कि भागलपुर में मिलने वाला सामान घटिया होता है। सत्य मालूम नहीं क्या है।

भाग्य और परछाई कभी साथ नहीं छोड़ते : जिस प्रकार परछाईं आदमी का साथ कभी नहीं छोड़ती, उसी प्रकार भाग्य भी हमेशा साथ लगा रहता है (व्यक्ति कहीं भी जाए)।

भाग्य की बलिया, रांधी खीर हो गयो दलिया : भाग्य में न हो तो आदमी जो भी काम करे कुछ का कुछ हो जाता है (खीर बनाई तो दलिया बन गया)।

भाग्य दो कदम आगे चलता है : जब व्यक्ति का भाग्य खराब होता है तो वह कहीं भी जाए उसे सफलता नहीं मिलती। उसका दुर्भाग्य उससे पहले ही वहाँ पहुँच जाता है।

भाग्यवान का पड़ोसी नरक में जाता है : क्योंकि वह ईर्ष्या से जलता भुनता रहता है।

भाग्यवान के भूत कमावें (भाग्यवान का हल भूत जोतते हैं) : जब आदमी का भाग्य प्रबल होता है तो उस के सारे काम अपने आप होते चले जाते हैं।

भाड़ में जावे दुनिया, हम बजावें हरमुनिया : दुनिया भाड़ में जाए, हम अपने राग रंग में मस्त हैं। हरमुनिया – हारमोनियम।

भाड़ लीप कर हाथ काला किया : अपनी हैसियत के अनुकूल काम न करके प्रतिष्ठा को बट्टा लगाया।

भाड़ा, ब्याज, दच्छना, पीछे मिले कुच्छ ना : किराया, ब्याज और दक्षिणा तुरंत ले लेना चाहिए। बाद में कुछ नहीं मिलता।

भाड़े के घोड़े, खाएं बहुत चलें थोड़े : किराए पर लिए गए घोड़े खाते अधिक हैं और काम कम करते हैं। जब तक किसी काम में व्यक्ति का अपना नफा नुकसान नहीं होता तब तक वह काम नहीं करता।

भात खाते हाथ पिराए : अत्यधिक नजाकत, चावल खाने में हाथ में दर्द होना।

भात छोड़ दो साथ न छोड़ो : चाहे एक बार को भोजन छोड़ दो पर किसी अपने का साथ न छोड़ो।

भात बिना है रांड रसोई, खांड बिना अनपूती, बिन घी के जिन खाई रोटी, मानो खाई जूती : चावल और खांड के बिना रसोई बिल्कुल निरर्थक है। घी के बिना रोटी खानी पड़े तो उसे बेइज्जती मानना चाहिए।

भात होगा तो कौवे बहुत आ जाएंगे : आपके पास धन और सत्ता हो उस का लाभ उठाने के लिए बहुत लोग आ जाएंगे (और धन एवं सत्ता के जाते ही ये सब गायब भी हो जाएंगे)।

भादों की घाम और साझे का काम देहि तोड़ा करें (या बैरी भादों की घाम, या बैरी साझे का काम) : भादों की धूप बहुत तेज़ होती है इसलिए शरीर को तोड़ देती है, साझे के काम में मेहनत करना सबको भारी लगता है इसलिए शरीर टूटता है।

भादों की छाछ जूतों को, कातक की छाछ पूतों को : भादों में छाछ हानिकारक मानी जाती है और कार्तिक में गुणकारी (खाद्य पदार्थों के बारे में ऐसे बहुत से बेतुके अंधविश्वास पहले के लोगों में भी पाए जाते थे और अब भी पाए जाते हैं)। जूतों के स्थान पर भूतों भी बोला जाता है।

भादों की धूप में हिरन काले हो जाते हैं : भादों की धूप बहुत तेज होती है इस बात को थोड़ा बढ़ा चढ़ाकर कहा गया है।

भादों की बरखा, एक सींग गीला एक सींग सूखा : भादों की वारिश कहीं होती है और कहीं नहीं होती, इस बात को हास्यपूर्ण ढंग से कहा गया है।

भानु उदय दीपक किहिं काजा : सूर्य उदय होने के बाद दीपक का क्या काम।

भाभी लीपती जाय, देवर खेलता जाय : कोई आदमी मेहनत कर के काम बना रहा हो और दूसरा उसे बिगाड़ता जा रहा हो तो।

भार घसीटत और को, रहे ऊँट के ऊँट : जो लोग अपने दिमाग से काम नहीं करते वे जानवरों के समान दूसरों का बोझ ही ढोते रहते हैं।

भारी पत्थर न उठा तो चूम कर छोड़ दिया : कोई चालाक आदमी भारी पत्थर उठाने की कोशिश कर रहा था। नहीं उठा तो चूम कर छोड़ दिया, यह जताने के लिए कि उठाने की कोशिश नहीं कर रहे थे, हम तो पत्थर को चूम रहे थे। कोई काम न कर पाओ तो चालाकी से उस से हाथ खींच लेना।

भारी ब्याज मूल को खाय : ज्यादा मोटा ब्याज वसूलने के चक्कर में कभी कभी मूलधन भी मारा जाता है।

भाव बिना भक्ति नहीं। भाग बिना धन मान : जब तक भगवान के प्रति समर्पण का भाव न हो तब तक भक्ति नहीं होती और भाग्य के बिना धन व सम्मान नहीं मिलते।

भाव राखे सो भाई। असल भाई वही है जो मन में प्रेम का भाव रखे।

भावज की थैली, सर्राफी करे देवर : दूसरों के धन पर व्यापार करने वालों के लिए।

भावी के वश सब संसार : भाग्य के वश में सारा संसार है।

भाषा जो न जाने ताहि शाखामृग जानिए : शाखामृग – बंदर। जो अनपढ़ है वह बंदर के समान है।

भिखारी का क्या दीवाला : जिस व्यापार में पूँजी लगती है उस में दीवाला निकलने का डर रहता है। भिखारी की कोई पूँजी दांव पर नहीं लगती।

भिच्छु जो लछमी पाइहै, सीधे परत न पाँव : भिखारी को धन मिल जाए तो बहुत इतराने लगता है।

भीख के टुकड़े बाजार में डकार : अपने पास कुछ न होते हुए भी दिखावा करना।

भीख न दे माई, मेरो खप्पर तो मत फोड़े : भले ही मेरे ऊपर कुछ उपकार न करो, मुझे नुकसान तो न पहुँचाओ।

भीख माँगे आँख दिखावे : निर्लज्ज भिखारी, भीख मांग रहा है और आँखें दिखा रहा है।

भीख मांगे और पूछे गाँव की जमा : गाँव भर से जो लगान इत्यादि जमींदार लोग जमा करते थे उसे गाँव की जमा कहते थे। कोई भीख मांगने वाला गाँव की जमा पूछे यह बेतुकी बात है।

भीख में पछोड़ क्या (भीख में मांगें पछोर पछोर) : भीख का अनाज साफ़ कर के नहीं मिलता। इंग्लिश में कहावत है – Beggars can’t be choosers।

भीख से भंडार नहीं भरते : भीख मांग कर कोई तरक्की की सीढ़ियाँ नहीं चढ़ सकता।

भीड़ में सिर बहुत, दिमाग एको नहीं। भीड़ में विवेक नहीं होता।

भीतर का घाव, रानी जाने या राव : घर की अंदरूनी समस्याओं को घर के मुखिया ही जानते हैं।

भील का घर टोकरी में : बहुत गरीब आदमी के पास इतना कम सामान होता है कि एक टोकरी में आ सकता है।

भीषण सिंधु तरंग में पहले पैठे कौन : समुद्र में भयंकर लहरें उठ रही हों तो पहले कौन उस में उतरेगा। किसी खतरनाक काम को पहले करने का बीड़ा कोई नहीं उठाना चाहता।

भुस के मोल मलीदा : जब कोई बहुत कीमती चीज़ बहुत सस्ते में मिल रही हो तो।

भुस में आग लगाए जमालो दूर खड़ी : दो लोगों में लड़ाई करवा के दूर से तमाशा देखना।

भूख गए भोजन मिले, जाड़ो गए रजाई, जोवन गए तिरिया मिले, कौन काम को भाई : भूख खत्म होने के बाद भोजन, जाड़ा खत्म होने के बाद रजाई और यौवन बीत जाने के बाद स्त्री मिले तो किस काम के।

भूख में किवाड़ पापड़ होते हैं (भूख में गूलर ही पकवान) : बहुत भूख लगी हो तो जो भी खाने को मिले अच्छा लगता है।

भूख में चने बादाम (भूख में चना चिरौंजी, भूख में चने भी मखाने) : भूख में चना भी मेवे जैसा लगता है।

भूख लगी तो घर की सूझी : आवारा आदमी और बालक इनको भूख लगने पर घर ही याद आता है।

भूखा आदमी क्या पाप नहीं करता : भूखा आदमी अपनी भूख मिटाने के लिए कुछ भी पाप करने को तैयार हो जाता है।(बुभुक्षित: किम न करोति पापं)। इंग्लिश में कहावत है – When there is no bread in the stomach, everything goes wrong.

भूखा खाए तो पतियाए : भूखे को कितने भी आश्वासन देते रहो, उसे विश्वास तभी होगा जब भर पेट खाने को मिल जाएगा।

भूखा गया जोय बेचने, अघाना कहे बंधक रखो : अघाना – जिस का पेट भरा हुआ हो। गरीब अपनी स्त्री को बेचने धनी के पास गया, धनी कहता है मैं खरीदूंगा नहीं मेरे पास गिरवी रख दो। किसी की मजबूरी का अनुचित लाभ उठाना।

भूखा चाहे रोटी दाल, अघाया कहे मैं जोडूं माल : भूखा आदमी भोजन के लिए परेशान है और धनी आदमी (अघाया हुआ, पेट भरा हुआ) माल जोड़ने की चिंता में है।

भूखा पूछे जोतसी, अघाया पूछे वैद : भूख से परेशान गरीब आदमी ज्योतिषी के पास जाता है और पूछता है कि उस के दिन कब फिरेंगे। अधिक खाने से परेशान संपन्न आदमी वैद्य से पूछता है कि खाना कैसे पचाया जाए।

भूखा बंगाली भात ही भात पुकारे : भूखा आदमी भोजन भोजन ही पुकारता है (अगर बंगाली होगा तो भात पुकारेगा क्योंकि भात उसका मुख्य भोजन है)।

भूखा बामन सिंह बराबर। भूखा ब्राह्मण हिंसक हो जाता है।

भूखा बामन सोवे, भूखा जाट रोवे, भूखा बनिया हंसे, भूखा रांगड़ कसे : ब्राह्मण भूखा होता है तो चुपचाप सो जाता है, जात भूखा होने पर रोता है, बनिया अजीब अजीब हरकतें करने लगता है और रांगड़ (मुस्लिम राजपूतों की एक जाति) लूटपाट के लिए कमर कस लेता है।

भूखा मरे कि सतुआ खाए : किसी को सत्तू बिलकुल पसंद नहीं है लेकिन खाने के लिए केवल सत्तू ही है। अब वह परेशान है कि भूखा मरे या सत्तू से पेट भरे। मजबूरी में कोई काम करना पड़े तो।

भूखा सिंह न तिनका खाय : शेर कितना भी भूखा क्यों न हो, घास नहीं खा सकता। वीर पुरुष कितने भी संकट में हों, अपने आदर्शों से समझौता नहीं करते।

भूखा सो जाना, पर जौ का दलिया नहीं खाना : सम्भवतः जौ का दलिया बहुत बेस्वाद होता है।

भूखा सो रूखा : भूखे आदमी से मधुर व्यवहार और विनम्रता की आशा नहीं करना चाहिए।

भूखे का पेट बातों से नहीं भरता : भूखे व्यक्ति को आदर्श वाद की बातें नहीं समझाना चाहिए। इंग्लिश में कहावत है – Hungry bellies have no ears।

भूखे की कोई जात नहीं होती : भूखा आदमी किसी भी जात का हो, समान रूप से त्रस्त होता है.

भूखे को क्या रूखा, थके को क्या तकिया : भूख लगी हुई तो रूखा सूखा भोजन भी अच्छा लगता है, आदमी थका हुआ हो तो बिना तकिये के सो सकता है।

भूखे को भोजन थके को विश्राम : भूखे को भोजन और थके हुए व्यक्ति को विश्राम सबसे अधिक प्यारा होता है। इस को इस प्रकार भी कह सकते हैं कि भूखे को भोजन और थके को विश्राम कराने से बड़ा पुण्य मिलता है।

भूखे ने भूखे को मारा, दोनों को गश आ गया : कमजोर आदमी जब कमजोर से लड़ता है तो दोनों का नुकसान होता है।

भूखे बेर, अघाने गाड़ा, ता ऊपर मूली का डांड़ा : भूखे पेट पर बेर खाना चाहिए, पेट भरने के बाद गन्ना और उसके ऊपर मूली का सेवन करना चाहिए।

भूखे भजन न होय गोपाला, ये लो अपनी कंठी माला : भूखा आदमी भजन नहीं कर सकता।

भूखे से पूछा दो और दो क्या, बोला चार रोटियाँ : भूखे व्यक्ति को केवल भोजन ही दिखाई पड़ता है।

भूत की दवा गू : एक नई नवेली बहू अपने ऊपर भूत आने का नाटक कर के बेहोश पड़ी थी। किसी सयानी स्त्री ने कहा भूत भगाने के लिए हम लोग कुत्ते का गू मुँह में डालते हैं। यह सुनते ही बहू को फौरन होश आ गया।

भूत जान न मारे, सता मारे : भूत किसी को जान से कैसे मार सकता है, भूत तो कुछ होता ही नहीं है। आदमी केवल उसका डर लोगों को सताता है।

भूत न मारे, मारे भय : भूत प्रेत कुछ नहीं होता, केवल भय से ही लोग मर जाते हैं।

भूत मरे, पलीत जागे : एक मुसीबत समाप्त नहीं हुई कि दूसरी खड़ी हो गई।

भूत माटी का भी डराता है : इंसान भूत के नाम से ही डरता है।

भूतों के घर सालिग्राम : किन्हीं निकृष्ट लोगों के घर में कोई अच्छा व्यक्ति जन्म ले तो।

भूमि न भुमिया छोड़िये, बड़ो भूमि को वास, भूमि विहीनी बेल ज्यों, पल में होत बिनास : (बुन्देलखंडी कहावत)आजकल बहुत से किसान जमीन बेच कर शहरों में बसना चाहते हैं। कहावत में सलाह दी गई है कि किसान को अपनी जमीन नहीं छोड़नी चाहिए।

भूमियाँ तो भू पे मरी, तू क्यों मरी बटेर : भूस्वामी तो जमीन के लिए लड़ते हैं, बटेर तू क्यों मरी जा रही है। जब बड़े लोगों की लड़ाई में कोई छोटा आदमी बिना बात शामिल हो रहा हो तो। धूर्त नेता तो सत्ता के लिए लड़ रहे होते हैं, उनके समर्थक बिना बात अपनी जान देते हैं।

भूरा भैंसा, चंदली जोय, पूस में वारिश, बिरले होय : भूरे भैंसे, गंजी स्त्री और पूस के महीने में वारिश ये बहुत कम पाए जाते हैं।

भूल का टका भूल में गया : व्यापार में भूल से कुछ पैसा आ भी जाता है और कुछ पैसा चला भी जाता है।

भूल गए राग रंग भूल गए छकड़ी, तीन चीज याद रहीं नोन तेल लकड़ी : शादी के पहले मस्त मौला रहने वाले लोगों का गृहस्थी संभालने के बाद का कथन।

भूल चूक का पैसा कमाई में नहीं गिना जाता : भूल चूक में कुछ पैसा यदि आ जाए तो उसे कमाई में नहीं गिनते।

भूल चूक लेनी देनी : व्यापारी लोग हिसाब में छोटी मोटी भूल चूक को आपसी सहमति से नज़र अंदाज कर देते हैं, उसी के लिए कथन। इंग्लिश में कहते हैं – Errors and omissions accepted.

भूला फिरे किसान जो कातिक मांगे मेंह : कार्तिक की वर्षा से कोई लाभ नहीं होता।

भूले चूके दंड नहीं : अनजाने में किसी से भूल हो गई हो तो उसे दंड नहीं देना चाहिए।

भूले बनिया भेड़ खाई (भूले बामन गाय खाई), अब खाऊं तो राम दुहाई : धोखे से कोई गलत काम हो गया है, अब आगे से किसी हाल में नहीं करूंगा।

भूसी बहुत आटा थोड़ा : कायदे में आटे में थोड़ी सी ही भूसी (चोकर) होना चाहिए। अगर भूसी अधिक और आटा कम है तो उसे घटिया माना जाएगा।

भेड़ की खाल में भेड़िया : कोई बहुत दुष्ट आदमी सज्जन बनने का ढोंग कर रहा हो तो।

भेड़ की लात घुटनों तक : कमजोर आदमी किसी को अधिक नुकसान नहीं पहुँचा सकता। भेड़ किसी को लात भी मारेगी तो टांगों पर ही मार पाएगी।

भेड़ जहां जाएगी वहीं मुंड़ेगी : सीधा साधा आदमी जहाँ जाएगा वहीं ठगा जाएगा।

भेड़ पर ऊन किसने छोड़ी : कमजोर को सब लूटते हैं।

भेड़ पूंछ भादों नदी को गहि उतरे पार : भादों की उफनती नदी है। भेड़ की पूंछ पकड़ कर कैसे पार हो सकती है। किसी बड़ी मुसीबत को छोटे आदमी के सहारे पार नहीं किया जा सकता।

भेड़ भगतिन बन गई और पूंछ में डाली माला : बनावटी साधुओं पर व्यंग्य।

भेड़ भेड़ तुझे कंबल उढ़ाउंगा, के ऊन कहाँ से लाएगा : जनता को मुफ्त में उपहार बांटने का नाटक करने वाले नेताओं से जनता को यह प्रश्न पूछना चाहिए कि तुम यह कहाँ से लाते हो। यह सब पैसा है तो जनता का ही।

भेड़िया आया, भेड़िया आया : एक चरवाहा दूर जंगल में भेड़ें चराया करता था। एक दिन वह मज़ाक मजाक में चिल्लाने लगा – भेड़िया आया, भेडिया आया। आसपास के लोग उसकी मदद के लिए दौड़े तो देखा कि वह झूठ मूठ चिल्ला रहा है। लोगों से मज़ा लेने के लिए उसने दो तीन बार फिर यही हरकत की। हर बार लोग आते और वापस लौट जाते। एक दिन सचमुच में भेड़िया आ गया और उस की एक भेड़ को उठा कर ले जाने लगा। अब वह बहुत चिल्लाया पर लोगों ने सोचा कि वह फिर से मज़ाक कर रहा होगा इसलिए कोई उस की मदद को नहीं आया। कहावत का अर्थ है कि गंभीर सामाजिक मसलों में ठिठोली नहीं करनी चाहिए।

भेड़िये रे भेड़िये, बकरी चराएगा : किसी दुष्ट आदमी से ऐसे काम के लिए पूछना जिसमें उसका फायदा ही फायदा हो।

भेड़ियों के जरख ही पाहुने : जरख – लकड़बग्घा। नीच लोगों के संबंध नीच लोगों से ही होते हैं।

भेदिया सेवक, सुंदर नार, जीरन पट, कुराज, दुख चार : कहावत कहने वाले को चार दुःख सबसे बड़े लगते हैं – नौकर जो आपके भेद और लोगों को बताता है, सुन्दर नारी (यदि वह काम न करती हो और हर समय उसके नखरे उठाने पड़ते हों), फटे कपड़े और बुरा राज (राजकीय अराजकता)।

भेदी चोर, उजाड़े गाँव : भेद जानने वाला चोर सबसे अधिक नुकसान करता है।

भैंस अपना रंग न देखे, छतरी को देख के बिदके : कोई व्यक्ति अपनी कमी न देखे और दूसरों की कमियाँ निकाले तो।

भैंस का गोबर, भैंस के चूतड़ों को ही लग जाता है : बड़े व्यापार में कमाई तो होती है पर उसके अपने खर्चे भी बहुत होते हैं।

भैंस की सगी भैंस : कम बुद्धि वाले लोग अपनी जाति वाले को ही अपना सगा मानते हैं।

भैंस के आगे पढ़ें भागवत, भैंस खड़ी रम्भाए : मूर्ख व्यक्ति के सामने ज्ञान की बात करना बेकार है।

भैंस के आगे बीन बजाई, गोबर का ईनाम : भैंस के आगे बीन बजाई तो उस ने गोबर कर दिया। जो कला का पारखी नहीं है उस के आगे कला प्रदर्शित करोगे तो क्या होगा।

भैंस के आगे बीन बजाओ, भैंस खड़ी पगुराए : यदि आप किसी मूर्ख व्यक्ति के सामने ज्ञान की बातें कर रहे हैं और उस पर कोई असर नहीं हो रहा है, या किसी ऐसे व्यक्ति के सामने अपनी कला प्रदर्शित करें जो उसको समझ न पा रहा हो तो यह कहावत बोलते हैं।

भैंस को पड़िया ही जननी चाहिए और बहू को बेटा : भैंस से तो यह उम्मीद करते हैं कि वह पड़िया ही जने (क्योंकि पड़िया की कीमत बछड़े से बहुत अधिक होती है), पर घर की बहू से यह चाहते हैं कि वह बेटा ही जने। निपट स्वार्थपरता।

भैंस चढ़ी बबूल पे, तकि तकि गूलर खाए : कोई व्यक्ति असम्भव और हास्यास्पद बात कह रहा हो तो उसका मजाक उड़ाने के लिए।

भैंस दूध जो काढ़ के पीवे, ताकत घटे न जब लग जीवे : जो आदमी भैंस के दूध को स्वयं दुह के पीता है वह सदा बलवान रहता है। यहाँ ध्यान देने लायक बात यह है कि भैंस का दूध दुहने में काफी अच्छा व्यायाम भी हो जाता है

भैंस पकोड़े हग गई : किसी को अचानक बिना उम्मीद के बड़ा लाभ हो जाए और वह उस का भेद न बता रहा हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए।

भैंस हमें चाहिए कम कीमत की और उधार, पड़िया उसके तले हो होवे बहुत दुधार : कोई ग्राहक ऐसा सामान मांग रहा हो जिस की कीमत भी कम हो और उस में सारी खूबियाँ भी हों, साथ में कोई चीज़ मुफ्त भी हो और उधार में मिल जाए।

भैंसा, मेंढा, बाकरा, चौथी विधवा नार, ये चारों पतले भले मोटा करें बिगाड़ : अर्थ स्पष्ट है.

भैया जी कितने भी डंड मलवाएं, बंदा पहलवान नहीं बनने का : आप लोग कितनी भी कोशिश कर लो मैं पहलवान (या डॉक्टर या आई ए एस) नहीं बन सकता।

भैरों (भूतों) के लड्डुओ में इलायची का क्या स्वाद : जो लड्डू भैरों देवता (या भूतों) पर चढ़ाने के लिए बनाने हैं उनमें इलायची जैसी नजाकत वाली चीज़ डालने का क्या औचित्य।

भैस पूछ उठाएगी तो गाना नहीं गाएगी गोबर करेगी : कोई मूर्ख या निकृष्ट आदमी मुँह खोलेगा तो निकृष्ट बात ही बोलेगा।

भोथर चटिया, बस्ता मोट : (भोजपुरी कहावत) मंद बुद्धि बालक का बस्ता अधिक मोटा होता है।

भोर का मुर्गा बोला, पंछी ने मुँह खोला : भोर होते ही पंछी भोजन की जुगाड़ में लग जाते हैं। छोटे बच्चे के लिए भी कहा जाता है जब वह उठते ही दूध मांगता है।

भौंकते कुत्ते को रोटी का टुकड़ा : जो हाकिम ज्यादा गुर्राता है उसे दक्षिणा दे कर चुप किया जाता है।

भौंके न बर्राय (गुर्राय), चुपके से काट खाय : जो आदमी बोले कुछ नहीं और चुपचाप भरी नुकसान पहुँचा दे।

भौंर न छाँड़े केतकी, तीखे कंटक जान : केतकी के फूल के साथ तीखे कांटे होते हैं पर भौंरा उसे नहीं छोड़ता। अपने मतलब की वस्तु हासिल करने के लिए (या जिससे प्रेम होता है उसे पाने के लिए) व्यक्ति थोड़ा खतरा भी उठाता है।

( म )

मकोड़ा कहे मां गुड़ की भेली उठा लाऊं, के अपनी कमर तो देख : अपनी सामर्थ्य देखे बिना कोई काम करने की योजना बनाने वालों के लिए यह कहावत कही जाती है।

मक्के गए न मदीने गए, बीच ही बीच में हाजी भए : कोई कार्य न कर के केवल उसका दिखावा करना और उससे लाभ लेने की कोशिश करना।

मक्के में रहते हैं पर हज नहीं करते : सारी सुविधाएँ उपलब्ध होते हुए भी कोई अच्छा काम न करना या फिर जो चीज़ सहज ही उपलब्ध हो उसकी कद्र न करना।

मक्खी बैठी शहद पर पंख लिए लपटाए, हाथ मले और सर धुने लालच बुरी बलाए : लालच में फंस के प्राणी की दुर्गति हो जाती है। लालच वश मक्खी शहद पर बैठ गई और शहद पंखों पर लग गया। अब वह कभी उड़ नहीं सकती।

मक्खी भी कुछ देख कर बैठती है : हर व्यक्ति अपना स्वार्थ देख कर ही कोई काम करता है।

मक्खी मारी पंख उखाड़े चींटे से रण जीता, मैं तो बहुत वीर मज़बूता : अपनी वीरता की डींग हांकने वाले किसी डरपोक आदमी पर व्यंग्य।

मक्खी मारुं पंख उखाडूँ, तोडूँ कच्चा सूत, लात मार कर पापड़ तोडूँ, मैं बनिए का पूत : बनियों की बहादुरी पर व्यंग्य।

मखमल के परदे पर टाट का पैबंद : कीमती और सुरुचिपूर्ण वस्तुओं के बीच में कोई बदनुमा चीज़।

मगध देश कंचन पुरी, देश अच्छा भाषा बुरी : बिहार के लोगों की भाषा का मजाक उड़ाने के लिए।

मगर को डुबकी सिखाए वो मूर्ख : मगरमच्छ स्वयं डुबकी लगाने में माहिर होता है। जो उसे डुबकी लगाना सिखाने की कोशिश करेगा मगर उसे ही खा जाएगा।

मगहर मरे सो गदहा होय (नरक में पड़े) : लोक विश्वास है कि काशी में जो मरता है वह स्वर्ग जाता है जबकि पास के मगहर नामक स्थान में जो मरता है वह नर्क में जाता है।

मच्छर मार के ऐंठा सिंह : कायर व्यक्ति का मजाक उड़ाने के लिए।

मछली के जाए किन्ने तैराए : जाए – उत्पन्न किए हुए, बच्चे। मछली के बच्चे को तैरना कौन सिखाता है? (वे खुद ही तैरना सीखते हैं)। युवाओं को यह सीख देने के लिए कि तुम्हें सब कुछ सिखाया पढ़ाया नहीं जाएगा, अपनी निर्णय लेने की क्षमता भी विकसित करो।

मछली खा के बगुला ध्यान : उन लोगों के लिए जो धार्मिक होने का ढोंग करते हैं और धार्मिकता की आड़ में चुपचाप गलत काम करते हैं।

मछली तालाब में, मसाले कुटन लागे : किसी काम के प्रति अदूरदर्शिता और मूर्खतापूर्ण उत्साह।

मछली भले ही दे दो पर मछली कहाँ से मिली ये नहीं बताओ : अपनी आमदनी में से किसी की सहायता भले ही कर दो पर अपने व्यापार के भेद किसी को मत बताओ।

मजनू को लैला का कुत्ता भी प्यारा : यदि कोई व्यक्ति आपको प्रिय हो तो उस की हर चीज़ अच्छी लगती है।

मजबूर को उलाहना, ज्यूँ घाव पर ठेस : किसी मजबूर आदमी को बुरा भला कहना किसी के घाव पर नमक छिडकने जैसा है।

मजबूरी का नाम महात्मा गांधी : महात्मा गांधी जी से प्रभावित होकर बहुत से संपन्न लोगों ने सादा जीवन शैली अपनाई थी। बहुत से लोग ऐसे भी थे जिनके पास कुछ नहीं था इसलिए वे साधारण तरीके से रहने को मजबूर थे। उनमें से बहुत से लोग यह कहा करते थे कि भाई हम महात्मा गांधी के चेले हैं इसलिए बहुत सादगी से रहते हैं।

मजूरी में क्या हुजूरी : जो मेहनत मजदूरी करके पेट पालता है वह किसी की जी हुजूरी क्यों करेगा।

मजे के लिए चाचा, सलाह के लिए बाबा : मौज मस्ती चाचा के साथ अच्छी लगती है लेकिन गंभीर विषयों पर सलाह बाबा से ही ली जाती है। परिवार में हर व्यक्ति का अलग महत्व है।

मज्जन फल पेखिअ तत्काला, काक होहिं पिक बकहिं मराला : सत्संग रूपी गंगा में स्नान करने का फल तत्काल ही देखा जा सकता है, इसके प्रभाव से कौआ कोयल और बगुला हंस बन जाता है।

मझधार में नाव नहीं बदलनी चाहिए : कोई काम जब नाज़ुक मोड़ पर हो तो उस समय अपने साधन बदलने से बचना चाहिए। उदाहरण के लिए जब गंभीर मरीज आधा ठीक हो चुका हो तो डॉक्टर नहीं बदलना चाहिए।

मटका में पानी गरम, चिड़ी न्हावे धूर, चिऊंटी अंडा ले चले, तो वर्षा भरपूर : घाघ कवि ने अनुभव के आधार पर ऐसी बहुत सी कहावतें कही हैं। उनके अनुसार यदि मटके में पानी ठंडा नहीं हो रहा है, चिड़िया धूल में नहा रही है और चींटी अपना अंडा लेकर जा रही है तो भरपूर वर्षा होगी।

मट्ठा मांगन चली, और मलैया पीछे लुकाई : मलैया – छोटी मटकी, लुकाई – छिपाई। माँगने भी जा रही हैं और शर्म भी आ रही है।

मढ़ो दमामा जात नहिं सौ चूहों के चाम : बहुत सारे छोटे लोग मिल कर भी बड़ा काम नहीं कर सकते। सौ चूहों का चमड़ा भी लगा दिया जाए तो भी दमामा (बहुत बड़ा वाला ढोल) नहीं मढ़ा जा सकता। इस दोहे की पहली पंक्ति इस प्रकार है – रहिमन छोटे नरन सों बड़ो बनत नहिं काम।

मत कर सास बुराई, तेरे भी आगे जाई : बहू सास को सावधान कर रही है कि तू मेरे साथ बुरा व्यवहार मत कर। तेरी लड़की को भी ससुराल जाना है। जाई माने पुत्री।

मत चूको चौहान : एक किम्वदंती के अनुसार पृथ्वीराज चौहान ने अंधा किए जाने के बाद भी शब्द भेदी बाण चला कर मोहम्मद गोरी को मार दिया था। चंदवरदाई ने उनसे कहा था – चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है मत चूको चौहान। इसी पर यह कहावत बनी है। किसी को सही काम के लिए जोश दिलाना हो तो यह कहावत कही जाती है।

मतलब की मनुहार, जगत जिमावे चूरमा : अपना मतलब होता है तो संसार के लोग चूरमे जैसा उत्कृष्ट खाद्य पदार्थ भी खिलाते हैं।

मतलब के दो बोल ही बहुत हैं : व्यर्थ की लम्बी चौड़ी बातों के मुकाबले अर्थ पूर्ण दो बातें अधिक उपयोगी हैं।

मतलब बनता लोग हंसे तो हंसने दो : यदि अपना काम निकलता हो तो लोगों के हंसी उड़ाने की परवाह मत करो।

मद पिए जात लखाय : दारु पी कर आदमी अपना भेद खोल देता है। कोई व्यक्ति सम्भ्रांत लोगों के बीच रहता है और लोग उसे कुलीन समझते हैं। एक दिन वह सब के बीच बैठ कर शराब पी लेता है और नशे में उगल देता है कि वह किसी नीचे कुल का है या आपराधिक इतिहास वाला है।

मदिरा मानत है जगत, दूध कलाली हाथ : शराब बेचने वाले के हाथ में दूध का पात्र होगा तब भी लोग मदिरा ही समझेंगे। (दूध कलारी कर गहे, मद समझे सब कोय)।

मद्धिम आंचे रोटी मीठ : तसल्ली और सलीके से किया गया काम अच्छा होता है। धीमी आंच में सिकी रोटी अधिक स्वादिष्ट होती है।

मधुर वचन सौ क्रोध नसाही : मधुर वचन बोलने से सौ क्रोध नष्ट हो जाते हैं। इंग्लिश में कहावत है – A soft answer turneth away wrath.

मधुर वचन है औषधी, कटुक वचन है तीर : मधुर वचन घाव को भर सकते हैं जबकि कड़वे वचन घाव कर सकते हैं।

मन का अंकुस ज्ञान : हाथी को वश में रखने के लिए महावत के पास जो औजार होता है उसे अंकुश कहते हैं। स्वेच्छाचारी मन को काबू में रखने के लिए ज्ञान अंकुश के समान है।

मन का अटका तन का झटका : जो मन में हार मान ले वह शरीर से भी हार जाता है। जो समय पर सही निर्णय नहीं ले पाता उसे धन व स्वास्थ्य सभी की हानि होती है।

मन का घाटा कि धन का : धन चला जाए तो इतना नुकसान नहीं मालूम देता, मन में घाटा मानो तभी घाटा होता है।

मन की मारी का से कहूँ, पेट मसोसा दे दे रहूँ : जब आप मन की बात किसी से न कह पा रहे हों और मन ही मन घुट रहे हों।

मन के मते न चालिए, मन के मते अनेक, जो मन पर अधिकार है, है कोई साधू एक : मन के कहने पर मत चलिए क्योंकि मन तरह तरह की बातें समझाता है। जो विवेकी पुरुष हैं वही मन पर अधिकार रख पाते हैं।

मन के मते न चालिए, मन है पक्का धूत : कहावत में यह समझाया गया है कि मन पक्का धूर्त होता है। मन के कहने पर चलेंगे तो यह आपको बहकाता रहेगा। अर्थात मनुष्य को संयम और विवेक से काम लेना चाहिए। इस दोहे की अगली पंक्ति है – ले डूबे मंझधार में, जाय हाथ से छूट।

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत : कहावत का अर्थ है कि जो अपने मन में हार मान लेता है वह निश्चित रूप से हार जाता है और जो जीत के लिए दृढ़ निश्चय कर लेता है वह अंततः जीत जाता है। कुछ लोग इसके पहले एक पंक्ति और बोलते हैं – यही जगत की रीत है यही जगत की नीत।

मन चंगा तो कठौती में गंगा : कठौती कहते हैं लकड़ी से बने पानी रखने के बर्तन को। गंगा नहाने को बहुत से लोग बड़े पुण्य का काम मानते हैं। लेकिन सब लोगों को तो गंगा नहाना नसीब नहीं होता। उन लोगों को दिलासा देने के लिए यह कहा जाता है कि यदि तुम्हारा मन शुद्ध है तो तुम्हारे लिए कठौती में नहाना ही गंगा नहाने के समान है। इसको इस प्रकार से भी प्रयोग कर सकते हैं जैसे किसी बूढ़े या बीमार व्यक्ति के लिए तीर्थ यात्रा पर जाना संभव नहीं है तो उसके लिए घर में या शहर में बने मंदिर में पूजा करना ही तीर्थ यात्रा के समान है। कुछ लोग इसके पीछे संत रैदास जी की कहानी सुनाते हैं कि उन्होंने चमड़ा भिगोने वाली अपनी कठौती में से गंगा जी में गिरा हुआ सोने का कड़ा निकाल कर दे दिया था।

मन जीते जग जीत : जो अपने मन पर काबू कर लेता है वह संसार को जीत सकता है। ।

मन तो चले, पर टट्टू न चले : कुछ कार्य करने का मन तो बहुत कर रहा है पर शरीर साथ नहीं दे रहा। यौन शक्ति के सम्बन्ध में भी यह कहावत कही जाती है।

मन थिर किए सिद्धि सब पावे : मन को स्थिर करने पर ही सिद्धि पाई जा सकती है।

मन बिना मेल नहीं बाड़ बिना बेल नहीं : मन मिलते हैं तो मेल बढ़ता है, बाड़ का सहारा मिलता है तो बेल बढ़ती है।

मन भर धावे, करम भर पावे : व्यक्ति कितना भी प्रयास कर ले, पाएगा उतना ही जितना भाग्य में है।

मन भाए तो ढेला सुपारी : मन को जो अच्छा लग जाए वह अच्छा।

मन मन भावे, मूढ़ हिलावे : कोई काम करने का या कुछ खाने का आपका अंदर से बहुत मन कर रहा है पर ऊपर से आप मना कर रहे हैं तो यह कहावत कही जाती है। कहीं-कहीं पूरी कहावत इस प्रकार कही जाती है – मन मन भावे मूढ़ हिलावे, साजन से कहियो मोहे लेने को आवे।

मन मलीन तन सुन्दर कैसे, विष रस भरा कनक घट जैसे : किसी का शरीर सुन्दर हो पर मन मैला हो तो वह उसी प्रकार है जैसे विष से भरा हुआ सोने का घड़ा।

मन मिले का मेला, चित्त मिले का चेला : दोस्ती उसी के साथ की जा सकती है जिससे मन मिलता हो, शिष्य उसी को बनाया जा सकता है जिससे विचार मिलते हों।

मन मिले का मेला : दोस्ती और मौज मस्ती उसी के साथ की जा सकती है जिससे मन मिलता हो।

मन में आन, बगल में छूरी, जब चाहे तब काटे मूरी : मन में कुछ और, बगल में छुरी, जब चाहे तब सिर काट ले। मूरी – मूंड़, सर।

मन में बसे सो सुपने दसे : जो बातें हमारे मन में होती हैं वही सपने में दिखती हैं।

मन मोतियों ब्याह, मन चावलों ब्याह : (मन – चालीस सेर) विवाह में सभी यथाशक्ति खर्च करते हैं। जिसके पास अथाह धन है वह मन भर मोती लुटाता है, जिसके पास कम पैसा है वह मन भर चावल खर्च करता है।

मन मोती औ दूध रस दोनों एक सुभाय, फाटे पे जुड़ते नहीं कोटिन करो उपाय : मन रूपी मोती और दूध का स्वभाव एक सा होता है, ये एक बार फट जाएँ तो फिर नहीं जुड़ते।

मन मोदक नहिं भूख बुझावें : मन के लड्डुओं से भूख नहीं मिटती।

मन मौजी, जोरू को कहे भौजी : मन मौजी का कोई भरोसा नहीं क्या कर बैठे, वह पत्नी को भाभी भी कह सकता है।

मन राजा करम दरिद्री : मन तो बहुत बड़ी बड़ी बातें सोचता है पर भाग्य में नहीं है।

मन साँचा तो जग साँचा (मन साँचा तो सब साँचा) : आप अपने मन में सत्य का अनुसरण करते हैं तो आप को संसार भी सच्चा लगता है।

मन के मेड़ नहीं होती : मन पर कोई बंदिशें नहीं होतीं, वह किसी भी बात के लिए मचल सकता है।

मना करने वाले की खिचड़ी में ही घी डाला जाता है : जो मना करता है उसी का अधिक आतिथ्य किया जाता है।

मनुज बली नहिं होत है समय होत बलवान, भीलन लूटीं गोपियाँ वहि अर्जुन वहि बान : समय अच्छा हो तो मनुष्य बलवान हो जाता है। समय खराब आने पर वही मनुष्य निर्बल हो जाता है। भगवान कृष्ण के गोलोक गमन और यादव पुरुषों के मारे जाने के बाद अर्जुन द्वारिका की स्त्रियों की सुरक्षा के लिए उन को अपने साथ हस्तिनापुर ले कर जा रहे थे। रास्ते में भीलों ने उन पर आक्रमण कर के उन स्त्रियों को लूट लिया। अर्जुन का गांडीव और वाण कुछ नहीं कर पाए।

मनुष्य अपना भाग्य स्वयं बनाता है : परिश्रम और व्यवहार मनुष्य के अपने हाथ में हैं, इन से ही सफलता मिलती है। इंग्लिश में कहावत है –Every man is the architect of his destiny।

मनुहार से बूढ़े नहीं ब्याहे जाते : बूढ़े आदमी से कोई युवा लड़की मान मनुहार से शादी नहीं कर लेती है, उस के लिए साम दाम दंड भेद प्रयोग करना पड़ता है।

मर जैहें पर टरिहैं नाहीं : (भोजपुरी कहावत) मर जाएंगे पर अपनी बात पे अड़े रहेंगे।

मर पड़ कर तो खसम किया, और वह भी हिजड़ा निकला : किसी तरह तो शादी की और पति हिजड़ा निकला। बहुत मुश्किल से कोई काम हुआ हो और उस में भी धोखा हो जाए तो।

मरखना बैल गली संकरी : अत्यंत संकट पूर्ण स्थिति। जैसे आप पतली गली में जा रहे हों और सामने से मरखना बैल आ जाए।

मरता क्या न करता : जब मजबूरी में कोई ऐसा काम करना पड़े जो आप सामान्य परिस्थितियों में करना पसंद नहीं करते।

मरते के साथ कोई नहीं मरता (मरते के साथ आप न मरो) : किसी प्रिय व्यक्ति की मृत्यु पर यदि कोई बहुत अधिक शोक ग्रस्त हो जाए तो उसे समझाने के लिए।

मरते मियाँ मल्हारें गाएं : मल्हार सावन में गाए जाने वाले मस्ती भरे गीतों को कहते हैं। उसी पर आधरित एक राग है मेघ मल्हार। किसी बहुत बीमार आदमी को शौक या मस्ती सूझ रही हो तो यह कहावत बोली जाती है।

मरते मूसे को गोबर सुंघा दिया : ऐसा मानते हैं कि मरते हुए चूहे को गोबर सुंघा दो तो वह जिन्दा हो जाता है। यदि आप किसी अयोग्य व अपात्र व्यक्ति को सजा मिलने से बचा लें तो व्यंग्य में यह कहावत कही जाएगी। भोजपुरी कहावत है – गोबर सुंघला से मुसरी जीओ।

मरद की बात और गाड़ी का पहिया आगे को ही चलते हैं : सच्चा मर्द अपनी बात से पीछे नहीं हटता।

मरद तो जुबान बांका, कोख बांकी गोरियां, गाय तो दुधार बांकी, तेज बांकी घोड़ियाँ : बांके से अर्थ यहाँ श्रेष्ठ से है। पुरुष वही श्रेष्ठ है जो जुबान का पक्का हो, स्त्री वह जो श्रेष्ठ संतान को जन्म दे, गाय वह अच्छी है जो दूध अधिक दे और घोडी वह अच्छी है जो तेज चले।

मरन चली तो बदसगुनी हो गई : कोई स्त्री मरने के लिए जाने का नाटक कर रही है कि बिल्ली रास्ता काट जाती है। इस पर वह कहती है कि अपशकुन हो गया, अब मैं नहीं जाऊँगी। झूठ मूठ का नाटक करने वाली महिलाओं के लिए।

मरना भला बिदेस में जहां न अपना कोय, माटी खाए जनावरा उनका उत्सव होय : साधु प्रवृत्ति के व्यक्ति का कथन – मरना विदेश में अच्छा है जहाँ कोई जानने वाला न हो, पशु पक्षी शरीर को खा लें, उनका भी भला हो जाए।

मरने के डर रोटी खावे : अत्यंत आलसी आदमी। रोटी खाने जितनी मेहनत भी इस लिए करता है कि नहीं खाएगा तो मर जाएगा।

मरने के बाद बाबा को घी पिलाने से क्या लाभ : जो लोग जीवित माता पिता की सेवा नहीं करते और उनके मरणोपरांत कर्मकांड करते हैं उन पर व्यंग्य।

मरने को जी करे, कफन का टोटा : जो लोग बात बात पर मरने की धमकी देते हैं उन पर व्यंग्य।

मरने से पहले ही भूतनी हो गई : किसी बहुत दुष्ट स्त्री पर व्यंग्य।

मरी बछिया बामन को दान : जो चीज़ किसी काम की न हो उसे दान कर के दानवीर बनना।

मरे कुत्ते को कोई लात नहीं मारता : मरे हुए कुत्ते को लात मारने में किसी का अहम संतुष्ट नहीं होता। जिन्दा कुत्ते को लात मारने से (विशेषकर अगर वह किसी बड़े आदमी का कुत्ता हो तो) अपने अहम की तुष्टि होती है।

मरे को मारे शाह मदार : (दुबले मारे शाह मदार) पीर और शाह भी दुर्बल को ही सताते हैं।

मरे कोई और, स्वर्ग मैं जाऊं : निकृष्ट स्वार्थपरता.

मरे तो शहीद, मारे तो गाजी : मुस्लिमों को जिहाद (धर्म युद्ध) के लिए उकसाने के लिए कहा जाता है कि यदि तुम काफिरों (दूसरे धर्म वालों, विशेषकर मूर्तिपूजकों) से लड़ते हुए मारे गए तो तुम्हें जन्नत में शहीद का दर्ज़ा मिलेगा और काफिर को मार दोगे तो जिन्दा रहते हुए गाज़ी की उपाधि मिलेगी।

मरे न जिए, हुकुर हुकुर करे (मरे न जिए, खों खों करे) : कोई बूढ़ा और बीमार व्यक्ति ठीक भी न हो रहा हो और मर भी न रहा हो तो अंततः प्रियजन भी तंग आ जाते हैं।

मरे न मूसा सिंह से, मारे ताहि बिलार : बिलार – बिल्ली। चूहे को शेर नहीं मार सकता, बिल्ली ही मार सकती है। कोई व्यक्ति कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, हर काम के लिए उपयुक्त नहीं हो सकता।

मरे बाघ की मूँछ उखाड़े : कायर लोगों पर व्यंग्य। जो जीवित बिल्ली से भी डरते हों वे मरे हुए बाघ की मूंछें उखाड़ कर बहादुरी दिखाते हैं।

मरे बाबा के बड़े बड़े दीदे : बाबा जब तक जिन्दा थे तब तक तो उन्हें कोई पूछता नहीं था, अब उनके मरने के बाद उनकी छोटी छोटी खूबियाँ गिनाई जा रही हैं, जैसे कोई कह रहा है कि उन की आँखें बड़ी बड़ी थीं।

मरे मुक्ति केहि काम : मर कर कष्टों से मुक्ति मिले तो किस काम की।

मरे हुए आदमी को मार कर कुछ नही मिलता : कमजोर को सताने से कुछ हासिल नहीं होता।

मर्ज बढ़ता ही गया ज्यों ज्यों दवा की : किसी समस्या को हल करने का प्रयास करने पर भी यदि वह बढ़े तो।

मर्द का एक कौल होता है : जो सही मानों में मर्द होते हैं वे अपनी बात पर अडिग रहते हैं।

मर्द का नहाना और औरत का खाना, किसी ने जाना किसी ने न जाना : दोनों काम बहुत जल्दी होते हैं

मर्द को गर्द जरूरी है : पुरुषों के लिए शारीरिक श्रम करना आवश्यक है।

मर्द को गर्द में रहना, हिजड़े की हवेली में नहीं : मर्द को शोभा देता है धूल मिट्टी में काम करना (मेहनत करना) न कि हिजड़ों के साथ रह कर बेशर्मी की कमाई खाना।

मर्द गया खटाई में, औरत गई ढिठाई में, दूकान गई ठठाई में : पहले के लोग मानते थे कि खटाई खाने से पुरुषों की यौनशक्ति कम हो जाती है इसलिए ऐसा कहा गया है कि मर्द ने खटाई खाई तो काम से गया, औरतें ढिठाई (हठ, त्रिया हठ) में जाती हैं और दूकान के बाहर यदि चार लोग खड़े हो कर हंसी ठठ्ठा करने लगें तो व्यापार चौपट हो जाता है।

मर्द तो मर्द है पांच का हो या पचास का : स्त्रियों को सलाह दी जाती है कि वे घर से बाहर जाएं तो किसी मर्द को साथ ले कर जाएँ। वे अगर किसी बच्चे को साथ ले जाएँ तो मजाक में यह बात कही जाती है।

मर्द मरे नाम को, नामर्द मरे नान को : नान – रोटी। मर्द लोग (वीर पुरुष, सत्पुरुष) नाम कमाने के लिए परिश्रम करते हैं और नामर्द (कापुरुष) केवल रोटी (सांसारिक साधनों) के लिए।

मर्द साठा सो पाठा, औरत बीसी सो खीसी : पुरुष साठ साल की आयु में परिपक्व होता है और स्त्री बीस के बाद ढलने लगती है।

मल-मल धोए शरीर को, धोए न मन का मैल नहाए गंगा-गोमती, रहे बैल के बैल : कबीर जी कहते हैं कि लोग शरीर का मैल अच्छे से मल मल कर साफ़ करते हैं किन्तु मन का मैल कभी साफ़ नहीं करते। वे गंगा और गोमती जैसे नदी में नहाकर खुद को पवित्र मानते हैं परन्तु वे मूर्ख के मूर्ख ही रहते हैं। जब तक कोई व्यक्ति अपने मन का मैल साफ़ नहीं करता तब तक वो कभी एक सज्जन नहीं बन सकता फिर चाहे वो कितना ही गंगा और गोमती जैसी पवित्र नदी में नहा ले, वो मूर्ख का मूर्ख ही रहेगा।

मलयगिरी की भीलनी चन्दन देत जलाय (अति परिचय ते होत है अरुचि अनादर भाय) : जहाँ जो चीज़ अधिक मात्रा में और सहज उपलब्ध होती है वहाँ उस चीज़ की कद्र नहीं होती। इंग्लिश में इस प्रकार की एक कहावत है – Familiarity breeds contempt.

मल्लाह का लंगोटा ही भीगता है : क्योंकि वह केवल लंगोट ही पहनता है। जिसके पास खोने के लिए अधिक कुछ न हो उसका अधिक नुकसान नहीं होता।

मसालची मरे तो जुगनू हो, यहाँ भी चमके वहां भी चमके : मशालचियों के सम्बन्ध में एक कथन है कि वे मरने के बाद जुगनू बन के जन्म लेते हैं (पता नहीं यह तारीफ़ है या व्यंग्य)। जुगनू को पटबीजना भी कहते हैं।

मस्जिद से नजदीक खुदा से दूर : कट्टर मुस्लिम धर्मावलम्बियों पर व्यंग्य। इंग्लिश में इस के समकक्ष एक कहावत है – The nearer the church, the farther from God.

महादेव को मन्त्र कौन सिखाए : जो सब कुछ जानता हो उसे कौन सिखा सकता है।

महावत से यारी और दरवाजा संकरा : सीमित साधन होते हुए भी अपने से बहुत बड़े लोगों से दोस्ती करना।

महुआ मेवा, बेर कलेवा, गुलगुच बड़ी मिठाई, इतनी चीजें चाहो तो गोंडवाने करो सगाई : गुलगुच – महुए का पका फल। बुन्देलखंड के गोंडवाना क्षेत्र में महुआ और बेर के पेड़ बहुत हैं। वहाँ के लोगों को ये बहुत प्रिय भी हैं।

मंगती और छुआ छूत करे : मांगने वाले को यह अधिकार नहीं होता कि वह छुआछूत करे।

मंगते से माँगना जैसे बुढ़िया से सगाई : भिखारी से भीख माँगना और बूढ़ी औरत से विवाह करना एक समान हैं।

मंगनी का बैल चांदनी रात, जोत बड़े भाई सारी रात (मांगे का बैल, मशक्कत से जोतो) : (बुन्देलखंडी कहावत)। दूसरे की चीज को लोग बेरहमी से प्रयोग करते हैं।

मंगनी के बैल के दांत नहीं देखे जाते : बैल अच्छे गुण वाला है या नहीं इसकी पहचान उसके दांत देख कर की जाती है। अब अगर आप किसी से बैल मांग कर ला रहे हैं तो उसके दांत थोड़े ही गिनेंगे। मांगी हुई वस्तु में गुण दोष नहीं देखे जाते।

मंगनी के सतुआ, सास के पिंडा : मंगनी के सत्तू से सास का पिंडदान कर रही है। पहली बात तो यह है कि सास का पिंडदान आप कर ही क्यों रहे हैं, साले को (यानि उन के बेटे को) करना चाहिए। दूसरी बात आप के पास पैसा नहीं है तो माँग कर क्यों कर रहे हैं। अपनी सामर्थ्य न होने पर भी किसी अनावश्यक कार्य में टांग अड़ाने की मूर्खता करना।

मंगलवार परै दीवारी, हँसे किसान मरे व्यापारी : यदि दीपावली मंगलवार को पड़े तो फसल अच्छी होती है।

मंजिल पे पहुँच के लुटा कारवाँ : कार्य समाप्त होने से बिल्कुल पहले बिगड़ जाना।

मंडप में बैठी भैंस भी सुंदर लगती है : विवाह के समय सज संवर के सभी लड़कियां अच्छी लगती हैं।

माई का मनवा गाय जैसा और पूत का मनवा कसाई जैसा : माँ दयालु और पुत्र निर्दयी।

माई घूमे गली गली, बेटा बने बजरंगबली : माँ तो महा गरीब थी पर बेटा अपने को बड़ा आदमी समझने लगा है।

माई बाप के लातन मारे, मेहरी देख जुड़ाए, चारों धामे जो फिरि आवे तबहूँ पाप न जाए : माँ, बाप को लात मारे और पत्नी को देख कर खुश हो, ऐसा व्यक्ति चारों धाम की यात्रा कर आए तब भी उसके पाप दूर नहीं हो सकते।

माई मासे, बाप छमासे, और लोग सब बारह मासे : बच्चा एक महीने को होने पर माँ को पहचानने लगता है, छह महीने में पिता को और बाकी सब लोगों को बारह महीने का होने पर।

माघ का जाड़ा, जेठ की धूप, बड़े कष्ट से उपजे ऊख : गन्ने की खेती में बहुत मेहनत करनी पड़ती है, माघ का जाड़ा और जेठ की धूप सहन करनी पड़ती है।

माघ के टूटे मरद और भादो के टूटे बरध कभी नहीं जुड़ते : बरध – बैल। माघ में जिस आदमी का शरीर कमजोर हो गया और भादों में जिस बैल का शरीर कमजोर हो गया उनका स्वास्थ्य फिर नहीं सुधरता।

माघ जाड़ा न पूस जाड़ा, जो चले बतास तो जाड़ा : माघ हो या पूस हो, जाड़ा तभी ज्यादा सताता है जब हवा चलती है। बतास – हवा।

माघ नंगे वैशाख भूखे : बहुत अधिक वंचित। (माघ की ठंड में भी जो नंगा रहे और बैसाख में नया गेहूँ आने के बाद भी भूखा रहे)।

माघ पंद्रह और पूस पचीस, चिल्ला जाड़ा दिन चालीस : अत्यधिक ठंड (चिल्ला जाड़ा) चालीस दिन पड़ता है, पन्द्रह दिन माघ महीने के और पच्चीस दिन पूस के।

माघ मास की बादरी और क्वार की घाम, ये दोनों जो कोई सहै करै परायो काम : पराए खेत में मजदूरी वही कर सकता है जो माघ की वर्षा और क्वार की धूप सहन कर ले। (घाघ की कहावतें)

माघ में बादर लाल घिरे, साँची मानो पाथर परै : माघ में यदि लाल बादल घिर कर आए तो निश्चित समझो कि ओला गिरेगा। (घाघ की कहावतें)

माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय, एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूंगी तोय : मिटटी कुम्हार से कह रही है कि तू मुझे क्या रौंद रहा है, एक दिन मैं तुझे रौंदूंगी। जो लोग अपने धन और पद का घमंड कर के दूसरों को परेशान करते हैं उन को सीख देने के लिए।

माटी की मूरत भी पहनी ओढ़ी अच्छी लगती है : अच्छे कपड़े पहनने का बड़ा महत्व है।

माटी के देवता जल चढ़ाने में खतम हो गए : देवता की मूर्ति मिट्टी की बनी थी, लोग उन पर जल चढाने लगे। बेचारे देवता पानी के साथ बह गए। अंधविश्वासी भक्तों पर व्यंग्य।

मात पिता कुल तारन को जो गया न गया सो कहीं न गया : जो पुत्र पितरों का तर्पण करने ‘गया’ नहीं गया उसके सारे तीर्थ बेकार हैं। गया – बिहार में एक तीर्थ स्थान जहाँ पितरों का तर्पण किया जाता है।

माता जैसी ममता, सौतन जैसा बैर, दूजा राखे न कोई, देखा सांझ सवेर : अर्थ स्पष्ट है।

माता न परसे भरे न पेट, भादों न बरसे भरे न खेत : जब तक माँ न खिलाए तब तक पेट नहीं भरता और जब तक भादों में वर्षा न हो तब तक खेत में पानी पूरा नहीं पड़ता।

मान का तो मुट्ठी भर चना ही बहुत है : सम्मान सहित मुट्ठी भर चना मिले तो भी से अच्छा है।

मान का पान भला न अपमान का लड्डू : व्यक्ति का सम्मान सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। सम्मान के साथ मिलने वाला पान, अपमान हो कर मिलने वाले लड्डू से बेहतर है।

मान का माहुर न अपमान का लड्डू : माहुर – विष। अपमान सह कर लड्डू खाने की अपेक्षा सम्मान सहित जहर पीना श्रेयस्कर है।

मान घटे नित के घर जाए, ज्ञान घटे कुसंगत पाए, भाव घटे कुछ मुंह के मांगे, रोग घटे कुछ औषध खाए : किसी के घर बार बार जाने से सम्मान कम होता है, बुरे लोगों के साथ रहने से ज्ञान कम होता है, किसी से कुछ मांगने से प्रेम भाव कम होता है और दवा खाने से रोग कम होता है।

मान घटे नित के घर जाए : बार बार कहीं जाने से सम्मान कम होता है। (कद्र खो देता है रोज़ का आना जाना)। संस्कृत में कहते हैं – अति गमनं अनादरं।

मान न मान, मैं तेरा मेहमान : जबरदस्ती किसी के गले पड़ना।

मान बड़ा कि दान : किसी को दान देने के मुकाबले सम्मान देना अधिक अच्छा है।

मान मनाई खीर न खाई, झूठी पातर चाटन आई : सम्मान के साथ परोसी गई खीर नहीं खाई और अब झूठी पत्तल चाटने आई हो। जो व्यक्ति उचित समय पर मिलने वाले सम्मान को ठुकरा दे और फिर घटिया काम कर के अपनी बेइज्जती कराए उस के लिए।

मान सहित विष खाय के शम्भु भए जगदीश, बिना मान अमृत पिए, राहू कटायो शीश : सम्मान सहित विष पान कर के शंकर जी को महादेव की उपाधि मिली, और चोरी से अमृत पीने वाले राहु का सिर काटा गया।

माने तो देवता नहीं तो पत्थर : किसी पत्थर की मूर्ति को देवता मान लो तो वह देवता बन जाती है और नहीं मानो तो पत्थर है।

मानो चाहे न मानो हम तुम्हारे पंच : जबरदस्ती किसी का भाग्य विधाता बनना।

मानों तो देव, नहीं तो भीत को लेव : दीवार में उकेर कर किसी ने देवता की मूर्ति बनाई हुई है। अगर मानो तो वह देवता है और न मानो तो दीवार का पलस्तर है।

मापा, कनिया और पटवारी, भेंट लिए बिन करें न यारी : (मापा – भूमि नापने वाला अमीन, कनिया – कानूनगो)। ये सभी सरकारी कर्मचारी बिना भेंट लिए काम नहीं करते।

मामू के कान में बालियाँ, भांजा ऐंड़ा ऐंड़ा फिरे : अपने किसी रिश्तेदार की समृद्धि पर घमंड करना।

मायके का कुत्ता भी प्यारा होता है : स्त्रियों को मायके की हर चीज़ प्यारी होती है।

माया का डर, काया का क्या डर : जिस के पास धन दौलत है उसे उस के चोरी होने या छिन जाने का डर है, जिस के पास कुछ नहीं है (केवल शरीर है) उसे क्या डर।

माया के भी पाँव होते हैं, आज मेरे पास कल तेरे पास : माया किसी की नहीं होती, चलती फिरती रहती है। इसलिए धन सम्पदा को अपना मान कर अधिक खुश नहीं होना चाहिए।

माया गंठी, विधा कंठी : पैसा वह काम आता है जो हमारे पास मौजूद हो (उधार में बंटा पैसा या बाद में मिलने वाला पैसा वक्त पर काम नहीं आता)। विद्या वही काम आती है जो हमें कंठस्थ हो (याद हो)। विद्या से भरी हुई कितनी भी पुस्तकें हमारे पास रखी हों, समय पर वही विद्या काम आएगी जो हमें याद हो। (विद्या कंठी दाम अंटी)।

माया चलती फिरती छाया : माया किसी की नहीं होती, चलती फिरती रहती है। इसलिए धन सम्पदा को अपना मान कर अधिक खुश नहीं होना चाहिए।

माया छाया एक सी, बिरला जाने कोय, भगता के पीछे लगे, सम्मुख भागे सोय : माया और छाया एक सी होती हैं यह बात बहुत कम लोग जानते हैं, जो इनसे दूर भागता है उसके पीछे भागती हैं और जो इनके पीछे भागता है उससे दूर भागती हैं।

माया बादल की छाया : बादल एक स्थान पर स्थिर नहीं रहता इसलिए उस की छाया भी स्थिर नहीं रहती। इसी प्रकार माया भी एक स्थान पर स्थिर नहीं रहती।

माया महा ठगिनी, हम जानी : जो ज्ञानी लोग हैं वही समझ पाते हैं कि माया केवल सबको ठगती है, किसी की हो कर नहीं रहती।

माया मिल गई सूम को, न खरचे न खाय : कंजूस के पास रखा धन बेकार ही है, न तो वह खुद खाएगा और न ही परोपकार में खर्च करेगा।

माया मुई न मन मुआ, मरि मरि गये शरीर, (आशा तृष्णा ना मुई, यों कह गये कबीर) : माया इसी संसार में रहती है जबकि उसे जोड़ने की इच्छा करने वाले लोग चले जाते हैं। सब कुछ जानते हुए भी मनुष्य की तृष्णा नहीं मिटती।

माया से छाया भली : पैसा अपने पास रखे रहने से भवन बनवाना अधिक अच्छा है।

माया से माया मिले कर कर लम्बे हाथ, तुलसी दास गरीब की कोई न पूछे बात : जिनके पास घन सम्पत्ति है उन्हीं के पास और धन इकट्ठा होता जाता है, गरीब को कोई नहीं पूछता।

माया हुई तो क्या हुआ हिरदा हुआ कठोर, नौ नेजा पानी चढ़ा तऊ न भीजी कोर : नेजा – बांस। बहुत धनी परन्तु कंजूस और निर्दयी व्यक्ति के लिए कहा गया है कि उस के पास माया आई तो किसी को क्या लाभ हुआ, उसका हृदय और कठोर हो गया। पत्थर के ऊपर नौ बांस की ऊँचाई के बराबर पानी भी चढ़ जाए तो भी उसका अंदरूनी हिस्सा नहीं भीगता।

मार के आगे भूत भी भागता है : कोई आदमी अपने ऊपर भूत आने का नाटक कर रहा था। गाँव के एक सयाने ने कहा कि दस कोड़े मारने से भूत भाग जाएगा। दो कोड़े खाने के बाद ही उस ने हाथ जोड़ दिए। तभी से यह कहावत बनी।

मार खाए और कहे मार के देख : कायर आदमी के लिए।

मार गुसैंया तेरी आस : जब स्त्रियाँ पूरी तरह पति पर आश्रित थीं तो पति यदि उन्हें मारे पीटे तब भी यह कहती थीं, कि तू चाहें हमें मार ले तब भी तेरे ही आसरे हैं। मां जब बच्चे को मारती है तब भी वह यही कहता है। जब राजा और जमींदार जैसे लोग गरीब पर अत्याचार करते हैं तो वह भी ऐसा ही बोलता है। हमारे ऊपर जब भी कोई कष्ट आए हमें ईश्वर से यही कहना चाहिए।

मार मार कर कोई हकीम नहीं बनता : जिस के अंदर लगन हो और मेहनत करने का जज़्बा हो वही बड़ा विद्वान बन सकता है, किसी को मार मार कर होशियार नहीं बनाया जा सकता।

मार पीछे पुकार होती रहे : मौके पर आगे बढ़ कर मार लो उसके बाद चीख पुकार होती रहे।

मारते का हाथ पकड़ा जाए, बोलते की जबान थोड़े ही न पकड़ी जाए : मारने वाले को रोका जा सकता है पर कड़वी बात कहने वाले या अपशब्द कहने वाले को रोकना कठिन है।

मारने वाले से जिलाने वाला बड़ा दाता है : कोई ऐसा हाकिम जो केवल लोगों को पीड़ित कर सकता हो उसके मुकाबले ऐसे व्यक्ति का स्थान बहुत बड़ा है जो दूसरों को जीवन दे सके या सुख दे सके।

मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है (मारने वाले से बचाने वाले के हाथ लंबे होते हैं) : अर्थ स्पष्ट है।

मारा चोर उपासा पाहुन लौटता नहीं : मार खाया हुआ चोर और भूखे लौटाया हुआ अतिथि दोबारा नहीं आते। उपासा – उपवास कराया हुआ।

मारि के टरि जाए, खाय के परि जाए : कहीं मार पीट करनी पड़े तो मारने के बाद के वहाँ से भाग लेना श्रेयस्कर है और भोजन कर के आराम करना अच्छा है।

मारे आप लगावे ताप : काल किसी को तलवार ले कर नहीं मारता, बुखार आदि कोई बीमारी लगा देता है।

मारे घुटना, फूटे ललाट : किसी और की गलती की सजा किसी और को मिलना। लात से किसी को मारोगे तो दूसरा आप का सर फोड़ेगा (घुटने की गलती की सजा सर को मिलना)।

मारे छोहन छाती फटे और आँसू के ठिकाने नाहीं : (भोजपुरी कहावत) बिछड़ते समय बहुत दुखी होने का दिखावा कर रहे हैं लेकिन आँसू बिल्कुल नहीं आ रहे हैं।

मारे सिपाही नाम सरदार का : बेचारे सिपाही खतरा उठा के आगे बढ़ के दुश्मन को मारते हैं और जंग जीतने पर नाम सरदार का होता है। किसी भी बड़े उद्योग में मेहनत मजदूर करते हैं और नाम मैनेजर का होता है या लाभ मालिक को होता है।

मारें मक्खी नाम तीसमारखां : एक सज्जन ने एक ही वार से तीस मक्खियाँ मार दीं, जिसके बाद वह अपने को तीसमारखां कहने लगे थे।

माल के नुकसान में जान की खैर : अगर किसी के माल का नुकसान हुआ तो यही कहने में आता है कि चलो माल चला गया कोई बात नहीं जान तो बच गई।

माल से चाल आवे : धन आता है तो आदमी की चाल बदल जाती है।

माला फेरत जुग गया, गया न मन का फेर, कर का मनका डारि दे, मन का मनका फेर : कहावत उन लोगों के लिए है जो दिखाने के लिए माला फेरते हैं पर उन का मन प्रपंचों में लगा रहता है। उनसे कहा गया है की माला को छोड़ो और अपने मन को प्रपंचों से हटा कर भगवान में लगाओ। इसी प्रकार का एक दोहा और भी है – माला तो कर में फिरे जीभ फिरे मुख मांहि, मनुआ तो चंहु दिसि फिरे ये तो सुमिरन नांहि।

माला फेरूँ, किस को घेरूँ : ढोंगी साधु के लिए जो माला फेरते समय हिसाब लगाता रहता है कि किसको घेरा जाए।

मालिक को काटने वाला कुत्ता बटाऊ का क्या लिहाज करेगा : बटाऊ – राहगीर। जो कुत्ता इतना नालायक है कि मालिक को काट सकता है वह राहगीर को तो जरूर काटेगा।

मालिक मालिक एक से : जैसे मालिक लोग मिल कर नौकरों की बेबकूफियों की बातें करते हैं वैसे ही नौकर भी जब आपस में मिलते हैं तो अपने मालिकों की बेबकूफियों और ज्यादतियों की चर्चा करते हैं।

माली आवत देख के, कलियाँ करें पुकार, फूले-फूले चुन लिए, काल्ह हमारी बार : माली को आता देख कर कलियाँ डर रही हैं कि आज यह फूल चुन रहा है, कल हमारी बारी आएगी। मनुष्य को सावधान करने के लिए।

माली चाहे बरसना, धोबी चाहे धूप, साहू चाहे बोलना, चोर चाहे चूप : हर व्यक्ति यह चाहता है कि दुनिया का हर काम उसकी सुविधा के अनुसार होना चाहिए।

माली सींचे नौ घड़ा, रुत आवे फल होय : माली चाहे पेड़ में नौ घड़े पानी डाल दे, फल ऋतु आने पर ही लगेगा। प्रयत्न चाहे कितना भी करो, समय आने पर ही कार्य होता है। इसकी पहली पंक्ति है – धीरे धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय। इंग्लिश में कहावत है – Rome was not built in a day.

माले मुफ्त, दिल बेरहम : मुफ्त के माल को आदमी बेरहमी से खर्च करता है। (फोकट का चन्दन, घिस मेरे नन्दन)।

माहे गेहूँ, जेठ गुड़, भादों मास कपास, बहू मायके धी घरै, राखे होय बिनास : (बुन्देलखंडी कहावत) माघ के महीने में गेहूँ, जेठ में गुड़ और भादों में कपास घर में रखने से हानि होती है। इसी प्रकार बहू को मायके में रखने और बेटी को घर में रखने से हानि होती है।

माँ उठाए गोबर, पूत बिटौरे बख्शे : जहाँ माँ बाप बहुत गरीब हों और बेटा बहुत दानी बना फिरता हो। बिटौरा – कंडों का ढेर।

माँ का ऋण कोई नहीं चुका सकता : अर्थ स्पष्ट है।

माँ का पेट कुम्हार का आवा, कोई गोरा कोई काला रे : किसी माँ के कई बच्चों में कोई गोरा और कोई काला हो तो उन्हें समझाने के लिए। कुम्हार के आवे (बर्तन पकाने की भट्टी) में से भी कोई बर्तन पक कर सामान्य रंग का निकलता है जबकि कोई काला हो जाता है)।

माँ की सौत, न बाप से यारी, किस नाते बन गई महतारी : जब कोई जबरदस्ती रिश्तेदारी निकाल कर अपना अधिकार जमा रहा हो तो।

माँ के पेट से सीख कर कोई नहीं आता : जो कुछ भी हम सीखते हैं सब इस संसार में रह कर अपने अध्ययन और अनुभवों द्वारा ही सीखते हैं।

माँ को मारे, सासू को सिंगारे : ऐसे निकृष्ट बेटे के लिए जो माँ को प्रताड़ित करे और सास की गुलामी करे।

माँ डायन हो तो क्या बच्चे ही को खाएगी : कोई व्यक्ति कितना भी नीच और पापी क्यों न हो अपनी सन्तान का अहित नहीं कर सकता (हालांकि बच्चे मां बाप का अहित कर सकते हैं)।

माँ दूसरी तो बाप तीसरा : सौतेली माँ के आने बाद पिता भी पराया हो जाता है (बच्चे के प्रति पिता का व्यवहार भी बदल जाता है)।

माँ धोबन, पूत बजाजी : जहाँ माँ बाप कुछ न हों और बेटा कुछ बन जाए (तो लोग व्यंग्य में ऐसा कहते हैं)।

माँ न माँ का जाया, सब ही लोक पराया : माँ का जाया माने भाई। जब आप किसी ऐसी जगह रह रहे हों जहाँ आप का कोई न हो। कुछ लोग इसे ऐसे भी बोलते हैं – न तो माँ न ही भाई का साया। यदि किसी कारण से घर के लोग किसी व्यक्ति का साथ छोड़ दें तब भी यह कहावत कही जा सकती है।

माँ पिसनहारी बाप कंजर और बेटा मिरजा संजर : माँ अनाज पीसने वाली (मेहनत मजदूरी करने वाली) और बाप घर घर घूमने वाला कंगाल आदमी पर बेटा बड़ा आदमी बन गया है।

माँ बेटी गाने वाली, बाप पूत बराती : जब कोई अपने सगे सम्बन्धियों को बिना बुलाए घर में ही कोई आयोजन कर ले तो तो सगे संबंधी कुढ़ कर यह बात कहते हैं।

माँ भटियारी, पूत फ़तेह खां : भटियारी – भाड़ झोंकने वाली। यदि किसी परिवार में माँ बाप बहुत गरीब हों, पर उनका बेटा कोई बड़ा पद पा जाए तो लोग ईर्ष्यावश तरह तरह की बातें बोलते हैं।

माँ मर गई तो मर गई खीर तो खाली : नीच और स्वार्थी व्यक्ति। माँ के मरने का दुःख नहीं है, मृत्युभोज में खीर खाने को मिल रही है, इस बात से खुश हैं.

माँ मर गई नंगी, बेटी का नाम चंगी : जहाँ माँ बाप कुछ न हों, बेटी कुछ बन जाए और घमंड करने लगे तो लोग व्यंग्य में ऐसा कहते हैं।

माँ मारे और माँ ही माँ पुकारे : माँ और बच्चे के बीच सच्चा प्रेम है। माँ जब बच्चे को मारती है तो बच्चा माँ को ही पुकारता है। माँ की मार में भी उस का प्रेम छिपा है और बच्चा भी पिट कर माँ की गोद में ही चढ़ता है। ईश्वर और सच्चे भक्त का प्रेम भी ऐसा ही होता है।

माँ मारे पर दूसरे को मारन न दे : माँ स्वयं तो बच्चे को दंड दे सकती है पर दूसरे को ऐसा नहीं करने देती। माँ की मार में भी स्नेह होता है।

माँगन मरन समान है, मति माँगो कोई भीख, (माँगन से मरना भला, यह सतगुरु की सीख) : माँगना और मरना समान है।

माँगना न आवे भीख, तो सुरती खाना सीख : तंबाखू खाने वाला कितना भी धनी हो तब भी तंबाखू मांग के खाना सीख जाता है, उसी पर व्यंग्य।

माँगने से तो मौत भी नहीं मिलती : मांगने से कुछ नहीं मिलता, इसलिए कुछ माँगना चाहिए ही नहीं। इस बात को जोर दे कर कहने के लिए यह कहावत कही जाती है।

माँगे बिन महतारी भी न दे : जो आपका अधिकार है उसे मांग कर लेना चाहिए। बिना मांगे तो माँ भी दूध नहीं पिलाती।

माँगे हरड़, दे बहेड़ा : कोई भी काम ठीक से न करने वाला इंसान।

मां एली, बाप तेली, बेटा शाखे जाफ़रान : जहाँ माँ बाप कुछ न हों और बेटा कुछ बन जाए तो लोग व्यंग्य में ऐसा कहते हैं। (ज़ाफ़रान माने केसर)।

मां तो उपलों को तरसे, बेटी बिटौड़े के बिटौड़े बख्शे : माँ छोटी छोटी चीजों को तरस रही है और बेटी बड़ी भारी दानी बनी हुई है। बिटौरा – उपलों का ठेर।

मांगन भलो न बाप सों ईश्वर राखे टेक : हे ईश्वर तू हमारी इज्ज़त बचाए रख, हमें कभी अपने पिता से भी न माँगना पड़े।

मांगने वाले के सौ घर, कोई न दे तो जाए कहाँ, सब दे दें तो धरे कहाँ : मांगने वाला बहुत से घरों से मांगता है, कोई भी न दे तो बेचारा जाएगा कहाँ (कैसे जिन्दा रहेगा), और सब कुछ न कुछ दे दें तो इतना सामान हो जाएगा कि बेचारा रखेगा कहाँ।

मांगे तांगे काम चले तो ब्याह क्यों करें : अगर मांगने से स्त्री का साथ मिल जाए तो इंसान विवाह क्यों करे। अगर मांगने से ही गृहस्थी चल जाए तो इंसान व्यापार या नौकरी का झंझट क्यों करे।

मांगे मान न पाइए, सक्ति सनेह न होय : मांगने से सम्मान नहीं मिल सकता और जबरदस्ती किसी का प्रेम नहीं पाया जा सकता। सक्ति – शक्ति। इंग्लिश में कहावत है – Respct is earned, not commanded.

मांगे मिलें न चार, पूर्ब जनम के पुन्न बिन, इक विद्या इक संपति, नारी नेह सरीर सुख : विद्या, संपत्ति, स्त्री का प्रेम और शरीर का सुख, ये चारों वस्तुएँ पूर्व जन्म के सत्कर्मों से ही मिलती हैं।

मांगो उसी से, जो दे ख़ुशी से, कहे ना किसी से : यदि माँगना भी पड़े तो उसी से मांगो जो ख़ुशी से दे और सब जगह गाता न फिरे।

मांस खाए मांस बढ़े, घी खाए खोपड़ी, दूध पिए तो चल पड़े, अस्सी बरस की डोकरी : (बुन्देलखंडी कहावत) डोकरी – बुढ़िया। कहावत का अर्थ एकदम स्पष्ट है।

मिजाज क्या है तमाशा, घड़ी में तोला घड़ी में माशा : तोला और माशा किसी जमाने में तौलने की इकाइयाँ हुआ करती थीं। उस समय एक रुपये का सिक्का एक तोला (लगभग 11.7ग्राम) का होता था। माशा इसका दसवां हिस्सा होता था। कहावत का अर्थ ऐसे व्यक्ति से है जिसका मूड बहुत जल्दी जल्दी बदलता हो।

मिट्टी की ढांड़, लोहे की किवाड़। बेतुका काम : मिट्टी की कच्ची दीवारों में लोहे का किवाड़ लगाने से क्या लाभ होगा।

मिट्टी की दीवार को गिरते देर नहीं लगती : कमजोर व्यापार और कमजोर संबंध टूटते देर नहीं लगती।

मिट्टी के माधो : जो किसी काम के न हों।

मित्र का बैरी बैरी, बैरी का बैरी मित्र : जो हमारे मित्र का दुश्मन है वह हमारा भी दुश्मन हुआ और जो हमारे शत्रु का शत्रु है वह हमारे काम आ सकता है इसलिए हमारे मित्र के समान है।

मित्र को मिलाप अति आनंद को कंद है : किसी बिछड़े हुए मित्र से मिलना दुनिया के सबसे बड़े सुखों में से एक है।

मित्र वही जो विपत्ति में काम आए : वैसे तो हर व्यक्ति के बहुत से मित्र होते हैं पर उनमें से सच्चा मित्र कौन है इसकी पहचान तभी होती है जब कोई विपत्ति आती है।

मियाँ का मैल ईद में उतरे : मुसलमानों के कम नहाने पर व्यंग्य।

मियाँ की जूती, मियाँ के सर : किसी की खुद की चीज़ से उसी को नुकसान पहुँचाना।

मियाँ की दाढ़ी तावीजों में गई : कहीं कहीं रिवाज़ होता है कि मुल्ला लोग अपनी दाढ़ी का बाल तावीज़ में रख कर देते हैं। अपनी तारीफ़ करवाने के चक्कर में मुल्ला जी की पूरी दाढ़ी ही नुच गई। (मियां की दाढ़ी वाहवाही में गई), (मुल्ला की दाढ़ी तबर्रुक में गई)।

मियाँ घर नहीं बीवी को डर नहीं : पति बाहर गया हो तो पत्नियाँ आज़ाद हो जाती हैं। इस कहावत को इस तरह भी बोलते हैं – सैयां गए परदेस तो अब डर काहे का। (यह पुराने जमाने की बात है जब पत्नियां पतियों से डरती थीं। अब कुछ लोग इस कहावत को इस तरह कहते हैं – बीवी घर नहीं मियाँ को डर नहीं)।

मियाँ नाक काटने को फिरें, बीवी कहे नथ गढ़ा दो : मियाँ इतने गुस्से में हैं कि बीवी की नाक काटने पर उतारू हैं और बीवी कह रही है कि मेरे लिए नाक की नथ बनवा दो। बिना वक्त की नजाकत देखे कोई बात कहना।

मियाँ फिरें लाल गुलाल, बीबी के हैं बुरे हवाल : जहाँ पति सजधज के छैला बने घूमते हों और पत्नी घर के कामों में ही पिसती रहती हो।

मियाँ बीवी राजी तो क्या करेगा काजी : मुगल शासन काल में शहर में काजी की एक पोस्ट हुआ करती थी जो उस समय का मजिस्ट्रेट होता था। शादी करवाना, तलाक करवाना, झगड़े निपटाना आदि उसके काम हुआ करते थे। जब मियां बीवी आपस में राजी हो तो काजी का क्या काम : जब किसी झगड़े में शामिल दो लोग आपस में सुलह कर ले तो किसी न्यायाधीश या मध्यस्थ की क्या आवश्यकता? ऐसे ही प्रसंग में यह कहावत कही जाती है।

मियाँ भए गोर जोग, बीवी लाए घर योग : मियाँ बहुत बूढ़े हो गए हैं (कब्र में जाने योग्य), और बीबी लाये हैं जवान (गृहस्थी योग्य)। कोई अधिक आयु का व्यक्ति कम आयु की स्त्री से विवाह करे तो। गोर – कब्र।

मियाँ रिसाने मुर्गी मारी : मियाँ जी को बहुत गुस्सा आया तो और तो किसी का कुछ नहीं बिगाड़ पाए, मुर्गी मार दी। कमजोर पर गुस्सा निकालना।

मियाँ रोते क्यूँ हो, क्या करें सूरत ही ऐसी है : कुछ लोग शक्ल से ऐसे लगते हैं जैसे अभी रो पड़ेंगे। ऐसे ही लोगों के लिए कहावत।

मिरग, बांदरा, तीतर, मोर, ये चारों खेती के चोर : हिरन, बन्दर, तीतर और मोर ये चारों खेती को नुकसान पहुँचाते हैं।

मिरजापुरी बगल में छुरी, खाते पीते नीयत बुरी : मिर्जापुर में रहने वालों पर कही गई कहावत। इस तरह की कहावतें कहाँ से उत्पन्न होती हैं यह पता लगाना कठिन है।

मिल गए तो राम राम : वैसे याद नहीं करते हैं, सामने दिख गए तो राम राम कर ली। दिखावे की दोस्ती।

मिल जुल कर रहो मगर हिसाब साफ़ रखो : दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ मिल जुल कर रहना चाहिए, पर पैसे खर्चे का हिसाब साफ़ रखना चाहिए। हिसाब में गड़बड़ी होने से गाँठ पड़ जाती है।

मिलन भलो बिछुड़न बुरो, मत मिल बिछड़ो कोय : अपने प्रिय व्यक्ति से मिलना जितना अच्छा लगता है उससे अधिक बुरा बिछड़ना लगता है।

मिलन लगे दूध भात, बिसर गए माई बाप : जब व्यक्ति को सब सुख सुविधाएं मिलने लगती हैं तो वह माँ बाप को भूल जाता है।

मिलें न सूखी, चुपड़ के मांगें : सूखी रोटी नसीब नहीं हो रही है और घर वाले चुपड़ के मांग रहे हैं।

मिलेंगे ऊत बजेंगे जूत : मूर्ख लोग मिलते हैं तो जूतम पैजार करते हैं।

मिस्सों से पेट भरता है किस्सों से नहीं : पेट अनाज से भरता है कोरी बातों से नहीं। इंग्लिश में कहावत है – Give me some francs, not thanks।

मीठा और भर कठौती : एक तो मन माफिक चीज़ और वह भी खूब सारी। (चुपड़ी और दो दो)।

मीठा निवाला और कड़वे बोल कोई नहीं भूलता : जिस प्रकार आदमी स्वादिष्ट मिठाई का स्वाद नहीं भूलता उसी प्रकार वह कड़वे बोल की कड़वाहट भी कभी नहीं भूलता। तात्पर्य यह है कि किसी से कड़वे बोल नहीं बोलना चाहिए।

मीठा मीठा हप्प, कड़वा कड़वा थू : हम में से अधिकतर लोग केवल अच्छा अच्छा ही प्राप्त करना चाहते हैं, जो हमें बुरा लगता है उससे दूर भागते हैं। किसी व्यक्ति में या किसी काम में अच्छाइयों के साथ कुछ बुराइयाँ भी हैं तो हमें उन्हें भी सहन करना सीखना चाहिए।

मीठी छुरी, जहर की भरी : जो लोग बोलते तो मीठा हैं पर उन के मन में कपट होता है, उन के लिए।

मीठी मीठी बात से बनते बिगड़े काम : मीठी बोली से बिगड़ी हुई बात बन जाती है।

मीठे के लिए जूठा खाए : अल्पकालिक लाभ के लिए जो गलत काम करे उस के लिए कहा गया है (विशेषकर वैश्यागामियों के लिए)।

मीत बनाए न बनें, बैरी, सिंह और नाग, जैसे कभी न हो सकें एक ठौर जल आग : शत्रु, सिंह और सांप प्रयास करने पर भी मित्र नहीं बन सकते (जैसे आग और पानी एक साथ नहीं रह सकते)।

मीर साहब की जात आली है, मुँह चिकना है पेट खाली है : जो लोग बड़े लोगों की जमात में शामिल होने के लिए दिखावा बहुत करते हैं पर अंदर से खाली होते हैं, उनके लिए।

मुआ घोड़ा भी कहीं घास खाता है : मरा हुआ घोड़ा घास नहीं खाता। पितरों को श्राद्ध करने पर व्यंग्य। रिटायर्ड रिश्वतखोर अफसरों पर भी व्यंग्य।

मुए और मूरख कभी न बदलें : जो मर चुका है वह अपने विचार नहीं बदल सकता। इसी प्रकार मूर्ख लोग भी अपने विचारों पर अड़े रहते हैं।

मुए शेर से जीती बिल्ली भली : मरे हुए शेर से जीवित बिल्ली अच्छी है। किसी रिटायर्ड बड़े अफ़सर के मुकाबले नौकरी कर रहा क्लर्क अधिक काम का है।

मुए सांप पर कीड़ियों का हमला : सांप जब मर जाता है तो चींटियां उस पर हमला कर देती हैं। जब व्यक्ति के पास धन या सत्ता की शक्तियाँ नहीं रहतीं तो छोटे से छोटा आदमी भी उस पर हमलावर हो जाता है।

मुकद्दर किसी की जागीर नहीं : भाग्य किसी को विरासत में नहीं मिल सकता।

मुख दरसावे दुःख : इंसान का दुःख चेहरे पर प्रकट हो जाता है।

मुद्दई लाख बुरा चाहे तो क्या होता है, वही होता है जो मंजूरे खुदा होता है : इंसान लाख किसी का बुरा चाहे, होगा वही जो ईश्वर की इच्छा होगी। आम तौर पर केवल बाद वाला हिस्सा ही बोला जाता है।

मुद्दई सुस्त गवाह चुस्त : मुद्दई – मुकदमा करने वाला। किसी परेशानी का सब से ज्यादा असर जिस पर पड़ रहा है वह इतनी दौड़ भाग नहीं कर रहा है, जिनसे सहायता मांगी गई है वे ज्यादा परेशान हैं।

मुफलिस से माँगना हराम है : गरीब से कुछ नहीं माँगना चाहिए।

मुफलिसी सब बहार खोती है, मर्द का ऐतबार खोती है : 1. बहार आती है तो गरीब को उससे क्या लाभ। 2. गरीब आदमी पर कोई विश्वास भी नहीं करता। मुफलिसी – गरीबी।

मुफ्त का चंदन घिस रे लाला, तू भी घिस, घरवालों को भी बुला ला : कोई चीज मुफ्त में मिल रही हो तो सब उस का दुरूपयोग करते हैं।

मुफ्त का सिरका, शहद से मीठा : मुफ्त की चीज़ सदैव अच्छी लगती है।

मुफ्त की गंगा में हराम के गोते : मुफ्त में मिली चीज़ का मज़ा सब लूटना चाहते हैं।

मुफ्त की शराब काजी को भी रवां है : काजी जी लाख सब को समझाएँ कि शराब बुरी चीज़ है, पर जब मुफ्त में मिल जाए तो खुद भी हाथ साफ़ करने से नहीं चूकते।

मुफ्त में निकले काम तो काहे को दीजे दाम : जहाँ मुफ्त में काम बन रहा हो वहां पैसे खर्च करना मूर्खता ही कहलाएगी।

मुरगी की अजान कौन सुनता है : गरीब की आवाज़ कोई नहीं सुनता।

मुरदे के साथ कांधिये नहीं जलते : कांधिये – अर्थी को कंधा देने वाले। कोई मरने वाले का कितना भी सगा सम्बंधी क्यों न हो, चिता पर साथ कोई नहीं चढ़ता।

मुरदे पर सौ मन मिट्टी तो एक मन और सही : जहाँ किसी पर बहुत सारी मुसीबतें टूट पड़ी हों वहाँ एक और आ जाएगी तो क्या फर्क पड़ेगा।

मुरव्वत में मातियन गाभिन हो गई : मातियन – नाइन। एक नाई काफी लम्बे समय के लिए परदेस गया। लौट के आया तो देखा कि पत्नी गर्भवती है। उसने पूछा कि यह कैसे हुआ। तो नाइन बोली कि वह संकोच में मना नहीं कर पाई इसलिए किसी ने उस का गलत फायदा उठा लिया।

मुर्गा बांग न देगा तो क्या सवेरा न होगा : मुर्गे को एक बार यह अहंकार हो गया कि उसके बांग देने से ही सूरज उगता है। ऐसे ही कुछ लोग यह समझते हैं कि उनके बिना कोई काम नहीं हो सकता। ऐसे लोगों को हंसी हंसी में उनकी औकात बताने के लिए यह कहावत कही जाती है।

मुर्गी की नजर में हीरे से अच्छा घास का कीड़ा : हीरा चाहे कितना भी कीमती क्यों न हो मुर्गी के लिए उसकी कोई कीमत नहीं है। कोई चीज़ किसी के लिए मूल्यवान हो सकती है पर दूसरे के लिए बेकार भी हो सकती है।

मुर्गी को तकुआ का घाव ही बहुत है : छोटे आदमी को छोटा मोटा नुकसान भी बहुत बड़ा लगता है। तकुआ – चरखे से लगी लोहे की सलाई जिस पर सूत लपेटते हैं।

मुर्गी जान से गई, मुल्ला को मजा नहीं आया : जब किसी बड़े को खुश करने के लिए छोटा आदमी बहुत नुकसान उठाए और बड़ा खुश न हो।

मुर्गी बीमार और भैंस की बलि : छोटी सी परेशानी को हल करने के लिए बहुत महंगा उपाय करना।

मुर्गी रहे महमूद के, अंडे देवे मसूद के : खाए किसी और का, लाभ किसी और को पहुँचाए। जैसे देश में रहने वाले कुछ लोग खाते यहाँ का हैं और लाभ पड़ोसी देशों को पहुँचाते हैं।

मुर्गे को कलगी का गुमान : अपने रूप रंग पर वही लोग घमंड करते हैं जो मुर्गे की भांति छोटी सोच वाले होते हैं।

मुर्गों की लड़ाई में कबूतरों को फायदा : दो शक्तिशाली लोगों की लड़ाई में तीसरे को फायदा होता है (वह कमजोर हो तब भी)।

मुर्दे को कफन और देना पड़ता है : घर के किसी व्यक्ति की मृत्यु होना अपने आप में इतना बड़ा नुकसान है, ऊपर से उसके अंतिम संस्कार और मृत्यु भोज में और खर्च करना पड़ता है।

मुर्दे को बैठ कर रोते हैं, रोजगार को खड़े हो कर : अच्छा काम हो या बुरा, सामाजिक हो या असामाजिक, समाज में हर काम को करने का एक ढंग होता है।

मुल्ला की दाढ़ी तबर्रुक में गई : एक मुल्ला जी अपनी दाढ़ी का एक बाल नोच कर ताबीज़ में रख कर अपने मुरीदों को दिया करते थे। धीरे धीरे उनकी सारी दाढ़ी ही नुच गई। दूसरों की भलाई के चक्कर में अपना नुकसान कर बैठना।

मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक : छोटी सोच वाले लोग छोटा ही सोच सकते हैं (छोटा काम ही कर सकते हैं)।

मुसलमान भी हुए तो जुलाहे के घर : किसी बड़े आदमी के घर होते तो खूब गोश्त बिरयानी उड़ाते। कोई गलत काम भी किया और उस की एवज़ में भरपूर आनन्द भी नहीं उठाया।

मुसल्ला पसार, बगल में यार : मुसल्ला – नमाज पढने वाली दरी। नमाज पढ़ने जा रहे हैं और बगल में यार (प्रेमिका) को लिए हैं। ढोंगी नमाजी।

मुसाफिर प्यासा क्यों, गदहा उदासा क्यों, लोटा न था : अमीर खुसरो की खास तरह की पहेली नुमा कहावत जिसमें दो सवालों का एक ही उत्तर होता है। पहले के जमाने में लोग सफर में लोटा और डोरी साथ रखते थे जिससे कुँए से पानी निकाल कर पी सकें। मुसाफिर के पास लोटा नहीं था इसलिए प्यासा रह गया। गधा कुछ देर जमीन में लोटता है तभी उसका मन खुश होता है। गधा उदास क्यों था क्योंकि उसे लोटने को नहीं मिला था।

मुसीबत में काम आवे सो ही सगा : अर्थ स्पष्ट है।

मुसीबत सब पे आती है, भाग्यवान के मांस पर बीतती है, अभागे के हाड़ पर बीतती है : मांस पर बीतने का अर्थ है ऐसी परेशानी जो ठीक हो जाए (बीमारी में मांस सूख जाएगा तो ठीक होने के बाद दोबारा आ जाएगा), हाड़ पर बीतने का अर्थ है स्थाई नुकसान (हड्डी चली जाएगी तो दोबारा नहीं आ सकती)।

मुहर्रम की पैदाइश : मनहूस आदमी।

मुँड़ी हुई भेड़ की तरह अमीर : आपसी हास्य व्यंग्य में इस तरह की विरोधाभासी बात बोली जाती है। किसी दोस्त ने दूसरे से कहा कि तुम बहुत पैसे वाले हो, तो वह मजाक में कहता है कि हाँ उतना ही जितनी मुंडी हुई भेड़।

मुँह काला, वक्त उजाला : नीच परन्तु अच्छे भाग्य वाला व्यक्ति, जिसका समय अच्छा चल रहा हो।

मुँह के चिकने, पेट के काले (मुँह मीठी और पेट कसाइन) : जो लोग ऊपर से मीठी मीठी बातें करते हैं और अंदर से जहर से भरे होते हैं उनके लिए कही जाने वाली कहावत।

मुँह खाए, आँख लजाए : किसी से एहसान लेने के बाद व्यक्ति को थोड़ा लज्जित होना पड़ता है। कोई हाकिम जिस से रिश्वत ले लेता है उस से नज़र बचाता है।

मुँह देख कर बीड़ा और कमर देखकर पीढ़ा : आदमी की हैसियत देख कर ही उस का मान सम्मान किया जाता है। असभ्य भाषा में इसको इस तरह बोलते हैं – मुंह देख के बीड़ा और चूतड़ देख के पीढ़ा। बीड़ा – पान, पीढ़ा – सींकों का बना हुआ स्टूल।

मुँह देख बात, सर देख सलाम : व्यक्ति की हैसियत देख कर ही बात की जाती है और सलाम किया जाता है।

मुँह देखे की उल्फ़त : वैसे याद नहीं करते हैं, सामने दिख गए तो कुछ प्रेम भरी बात कर ली। दिखावे की दोस्ती।

मुँह न धोवे से ओझा कहावे : ओझागीरी करने वाले बहुत गंदे रहते हैं उन पर व्यंग्य।

मुँह पर कहे सो मूंछ का बाल, पीछे कहे सो पूंछ का बाल : किसी की बुराई उस के मुंह पर करने वाला बहादुर होता है और पीठ पीछे बुराई करने वाला कायर। मूँछ का बाल गर्व का प्रतीक है और पूँछ का बाल लज्जा का।

मुंगेरी लाल के हसीन सपने : कोई अयोग्य व्यक्ति बहुत बड़े बड़े सपने देखे तो।

मुंडा योगी और पिसी दवा का क्या ठीक : दोनों को पहचानना मुश्किल है।

मुंह देख कर तिलक : जैसी आदमी की हैसियत होती है वैसा ही उसका सत्कार होता है।

मुंह पर पूत, पीछे हरामी भूत : जो लोग सामने आपसे प्रेम जताते हैं (बेटा कहते हैं) और पीठ पीछे गन्दी गालियाँ देते हैं।

मुंह पर मुमानी, पीठ पीछे सूअर खानी : ऊपर वाली कहावत की तरह। सामने मुमानी (मुसलमानों में मामी को मुमानी कहते हैं) कह कर प्यार जता रहे हैं और पीठ पीछे सूअर खाने वाली कह रहे हैं (मुसलमानों में सूअर खाना हराम है इसलिए किसी को सूअर खाने वाली कहना बहुत बड़ी गाली है)।

मुंह बंधा कुत्ता क्या शिकार करेगा : किसी कर्मचारी को मुख्य औजार ही नहीं दोगे तो वह काम कैसे करेगा।

मुंह में राम बगल में छुरी : देखने में धर्मात्मा और अंदर से कपटी।

मुंह रहते नाक से पानी पिये : बेतुका काम।

मुंह लगाई डोमनी, बाल बच्चों समेत आए : छोटे आदमी को थोड़ी सी तवज्जो दे दो तो सर चढ़ जाता है।

मुंह सुपारी, पेट पिटारी। (मुंह सुई, पेट कुई) : मुँह छोटा पर पेट बड़ा। जो आदमी देखने में छोटा हो पर खाता बहुत हो। कोई हाकिम या बाबू बातें मीठी करता हो पर रिश्वत बहुत मांगता हो।

मुंह से चावल हजार खाए, नाक से एको न खाए :  (भोजपुरी कहावत)। जिस काम का जो कायदा होता है उसी से किया जाता है।

मूँछ उखाड़े मुर्दा हल्का न होय : बहुत छोटा सा नुकसान पहुँचा कर किसी बड़े आदमी का कुछ नहीं बिगाड़ लोगे।

मूँछ बिचारी क्या करे जब हाथ न फेरा जाए : मूंछ रखने का फायदा तभी है जब उस पर हाथ फेरा जाए। मूँछ पर हाथ फेरने को मर्दानगी का प्रतीक माना गया है।

मूँजी को नमाज छोड़ के मारे : मूंजी – बहुत बड़ा कंजूस, दुर्जन। ऐसे व्यक्ति को सब काम छोड़ कर पीटना चाहिए।

मूंग और मोठ में कौन बड़ा कौन छोटा : व्यर्थ की बहस।

मूंगफली ऊपर पानी पी लो खांसी हो जाएगी, काने से ब्याह कर लो हांसी हो जाएगी : किसी लड़की की काने से शादी हो जाए तो वह सबकी हँसी का पात्र बन जाती है। तुक मिलाने के लिए मूंगफली के ऊपर पानी का जुमला जोड़ दिया गया है।

मूंड़ कटाए बाल की रच्छा : बालों की रक्षा करने के लिए सर कटवा लेना। छोटे नुकसान से बचने के लिए बहुत बड़ा नुकसान उठाना।

मूंड़ मुंड़ाए सिगरे गाँव, कौन कौन का लीजे नाँव : जहां सभी लोग एक से बढ़ कर एक हों।

मूंड़ मुंड़ाए हरि मिलें तो सब ही लेंय मुंड़ाय (बार बार के मूंड़ने, भेड़ न बैकुंठ जाय) : कबीर दास ने कहा है कि सर गंजा कराने से प्रभु नहीं मिलते। यदि मिलते होते तो सबसे पहले भेड़ बैकुंठ जाती।

मूंड़ मुंड़ाए, जटा रखाए, नगन फिरें ज्यों भैंसा, खलड़ी ऊपर राख लगाए, मन जैसे को तैसा : ढोंगी साधुओं के लिए। मूंछ मुंडाए हैं, जटाएं बढ़ाए हैं, भैंसे की तरह नंगे घूम रहे हैं, तन पर राख मल रखी है, पर मन शुद्ध नहीं है।

मूजी को टरकाइए, हाथ पाँव बचाइये : मूजी – दुष्ट। दुष्ट और धूर्त व्यक्ति यदि आप के पास किसी काम से आये या आप की सहायता करने का प्रस्ताव भी रखे तो उसे टाल देना चाहिए। धूर्त व्यक्ति हमेशा आप को नुकसान पहुँचाएगा।

मूरख का बल मौन : मूर्ख व्यक्ति की सबसे बड़ी ताकत उस के चुप रहने में ही है (बोलते ही उस की पोल खुल जाती है)।

मूरख का माल खुशामद से खाइए : मूर्ख व्यक्ति की प्रशंसा करो तो वह बड़ा प्रसन्न होता है। उसकी प्रशंसा कर के उसे बेवकूफ बनाया जा सकता है और उससे जो चाहे कराया जा सकता है।

मूरख की सारी रैन, छैल की एक घड़ी (मूरख की सारी रैन, सयाने की एक घड़ी) : मूर्ख व्यक्ति बहुत समय लगा कर भी जो काम नहीं कर सकता उसी काम को चंट चालाक या बुद्धिमान व्यक्ति तुरंत कर लेता है।

मूरख को दियो पान, वो लगो रोटी संग खान : (बुन्देलखंडी कहावत) मूर्ख व्यक्ति को पान खाने को दिया तो वह उसे सब्जी की तरह से रोटी के साथ खाने लगा। कोई व्यक्ति मूर्खतावश किसी दी हुई चीज़ का गलत प्रयोग करे तो उस का मजाक उड़ाने के लिए।

मूरख को समझाय, ज्ञान गाँठ को जाय : मूर्ख को समझाने की कोशिश में अपना ज्ञान कम होता है।

मूरख मारे लट्ठ से ऊपर ही दरसाए, ज्ञानी मारे ज्ञान से रोम रोम भिद जाए : किसी को दंड देना हो तो मूर्ख व्यक्ति तो लाठी से मारता है जिसकी चोट केवल शरीर को लगती है, पर ज्ञानी आदमी आपके अंतर्मन को चोट पहुंचाने वाली बात कहता है।

मूरख मिले मौन हो जईयो, ऊसर बीज न बईयो जी : जिस प्रकार बंजर जमीन में बीज नहीं बोना चाहिए उसी प्रकार मूर्ख व्यक्ति को ज्ञान की बात समझाने का प्रयास नहीं करना चाहिए। इंग्लिश में कहावत है – You can never counsel a fool।

मूरख मूढ़ गंवार को सीख न दीजो कोय, कूकुर वर्गी पून्छड़ी कभी न सीधी होय : जैसे कुत्ते की पूँछ कभी सीधी नहीं हो सकती वैसे ही मूर्ख व्यक्ति लाख सीख देने से भी बुद्धिमान नहीं बन सकता।

मूरख वैद से मौत भली : मूर्ख वैद से इलाज कराने में जान तो जाएगी ही और धन भी जाएगा। संस्कृत में इस प्रकार से कहा गया है – वैद्यराज नमस्तुभ्यं! यमराजस्य सहोदर:, यम हरति प्राणानि, त्वं प्राण धनानि च।

मूर्ख अपने को अकलमंद समझते हैं और अकलमंद अपने को अज्ञानी : मूर्ख व्यक्ति कभी अपने को मूर्ख मानने को तैयार नहीं होते, वे समझते हैं कि उन्हें सब कुछ आता है। जो सही मानों में समझदार हैं वे यह समझते हैं कि दुनिया में जानने के लिए बहुत कुछ है जिसमें से वे बहुत कम जान पाए हैं। उदाहरण के तौर पर जो लोग धर्म की एक ही पुस्तक पढ़ते हैं वे अपने को सर्वज्ञ समझते हैं जबकि भारतीय धर्म दर्शन के सैकड़ों ग्रन्थों का अध्ययन करने वाला विद्वान अपने को अज्ञानी मानता है।

मूर्ख के तरकस में तीर नहीं टिकते : मूर्ख व्यक्ति अपने संसाधनों को ठीक से प्रयोग नहीं करता।

मूर्ख को कभी मूर्ख न कहो क्योंकि वह मूर्ख है : एक बार को बुद्धिमान व्यक्ति को मूर्ख कहने पर वह बुरा नहीं मानेगा पर अगर आपने मूर्ख को उस के मुँह पर मूर्ख बोल दिया तो शामत आई जान लो।

मूर्खों के पटाखे दीवाली से पहले ही ख़तम हो जाते हैं : जो लोग सही से खर्च करना नहीं जानते वे समय से पहले ही अपनी सारी सम्पत्ति गंवा देते हैं और जरूरत के वक्त खाली हाथ होते हैं।

मूर्खों के बीच अकल की बात करना मूर्खता : मूर्ख तो मूर्ख होते ही हैं, उन से बड़ा मूर्ख वह है जो उन के बीच अक्ल की बात करे।

मूर्खों के बीच मौन रह जाना अच्छा है : जहाँ बहुत सारे मूर्ख व्यक्ति अपनी राय दे रहे हों वहाँ समझदार लोग चुप रहते हैं।

मूल से ब्याज प्यारा होता है : 1. अपनी पूँजी (मूलधन) तो सब को प्यारी होती ही है उस पर मिलने वाला ब्याज और अधिक प्यारा होता है। 2. अपनी सन्तान से अधिक अपने नाती पोते प्यारे होते हैं।

मूस मोटइहें लोढ़ा हुइहें, न हाथी न घोड़ा हुइहें : चूहा कितना भी मोटा क्यों न हो जाए, हाथी या घोड़ा नहीं बन सकता। कोई ओछा आदमी धन या अधिकार पा कर महान नहीं बन सकता।

मूसे और बिलार में कबहुं प्रीत न होय : चूहे और बिल्ली में कभी प्रेम नहीं हो सकता। शोषक और शोषित में कभी मधुर संबंध नहीं हो सकते।

मूसे ने पाई खाकी कत्तर, तो वो थानेदार बन बैठा : ओछी बुद्धि के आदमी को छोटी सी चीज़ मिल जाए तो अपने आप को बहुत बड़ा समझने लगता है।

मूँछ बिचारी क्या करे, जो हाथ न फेरो जाए : मूँछ पर हाथ फेरना मर्दानगी का प्रतीक है।

मृत्यु सारे दुखों का अंत है : अर्थ स्पष्ट है। इंग्लिश में कहावत है – Death is the grand leveler.

मेढ़ा जब पीछे हटे, बैरी जब मीठा बोले : मेढ़ा जब पीछे हटे तो समझ लो कि टक्कर मारने वाला है, शत्रु जब मीठा बोले तो समझ लो कि नुकसान पहुँचाने वाला है।

मेरा कुत्ता मुझी पे भौंके : किसी के टुकड़ों पर पलने वाला व्यक्ति यदि उसी पर आक्रामक हो जाए तो।

मेरा पेट हाऊ, मैं न देहूं काऊ : अत्यधिक लालची व्यक्ति के लिए। मेरा पेट बहुत बड़ा है, मैं किसी को नहीं दूंगा।

मेरी एक आंख फूटे कोई गम नहीं, पडोसी की दोनों फूटनी चाहिए : ईर्ष्या की पराकाष्ठा। दूसरे को नुकसान पहुंचाने के लिए खुद भी नुकसान उठाने को तैयार। एक व्यक्ति को अपने पड़ोसी से बड़ी ईर्ष्या थी। उस ने कड़ी तपस्या कर के भगवान को प्रसन्न किया। भगवान ने कहा कि जो मांगोगे मैं तुम्हें दूँगा पर शर्त यह है कि पड़ोसी को उससे दुगुना दूँगा। तब काफी सोच समझ कर उसने माँगा कि मेरी एक आँख फूट जाए।

मेरी तौबा, मेरे बाप की तौबा : किसी काम से तौबा करना (वैसा काम कभी न करने की कसम खाना)।

मेरी नाजो को कहाँ कहाँ दुखता है, जहाँ जहाँ सहलाओ वहाँ वहाँ दुखता है : अधिक नाज नखरे दिखाने वाली स्त्रियों पर व्यंग्य।

मेरे और मौसी के इक्कीस रूपये : धूर्त व्यक्ति जोकि मौसी के दिए रुपयों में अपना नाम जोड़ रहा है।

मेरे घर ही बरसे मेह, मेरे घर ही खेती फले : निकृष्ट स्वार्थी व्यक्ति।

मेरे पूत निकम्मा को ढेर सारे कम्मा : जो लोग कोई ठोस काम नहीं करते और आलतू फ़ालतू कामों में व्यस्त रहते हैं या व्यस्त रहने का दिखावा करते हैं उन के लिए।

मेरे मन कछु और है साईं के कछु और : मैं अपने मन में कुछ भी चाहूँ यदि ईश्वर की इच्छा कुछ और है तो मेरा चाहा हुआ नहीं हो सकता।

मेरे लला के कौन कौन यार, धुनिया, जुलहा और मनिहार : एक माँ का कथन जो कि अपने पुत्र की घटिया मित्र मंडली से दुखी है।

मेव का पूत बारह बरस में बदला लेता है : मेव – राजपूतों की एक जाति जो अपनी वीरता और प्रतिहिंसक प्रवृत्ति के लिए प्रसिद्ध हैं। कहते हैं कि इस जाति में पिता की हत्या का बदला पुत्र बारह साल बाद भी ले सकता है।

मेहनत आराम की कुंजी है : सुनने में उलटी बात लगती है पर सही बात है। 1. मेहनत कर के जो बच्चे अपना भविष्य संवार लेते हैं वे फिर आराम का जीवन बसर करते हैं। 2. मेहनत कर के हम समय से काम निबटा लें तो फिर निश्चिंत हो कर आराम कर सकते हैं।

मेहनत मेरी रहमत तेरी : मेहनत मनुष्य करता है लेकिन ईश्वर की कृपा भी आवश्यक है।

मेहमानों से घर नहीं बसता : अतिथि कितना भी प्रिय क्यों न हो, उससे घर नहीं बस सकता। घर तो घर के सदस्यों से ही बसता है। (इसलिए मेहमानों के लिए घर वालों का अनादर नहीं करना चाहिए।

मेहरी जस बैरी न मेहरी जस मीत : पत्नी से बड़ा मित्र कोई नहीं हो सकता, और अगर वह दुश्मनी पर उतर आए तो उस से बड़ा शत्रु भी कोई नहीं हो सकता।

मेहरी भतार का झगरा, बीच में बोले सो लबरा : लबरा – झूठ बोलने वाला, मेहरी भतार – पति पत्नी। पति पत्नी में झगड़ा हो रहा तो बीच में नहीं बोलना चाहिए। पति पत्नी फिर एक हो जाते हैं, बेचारा बीच में बोलने वाला झूठा सिद्ध हो जाता है।

मेंढकी को जुकाम, हँसें लोग तमाम : ज्यादा नज़ाकत दिखाने या बीमारी का दिखावा करने वालों का मज़ाक उड़ाने के लिए।

मेंह, लड़का और नौकरी घड़ी घड़ी नहीं होते : वारिश होना, पुत्र का पैदा होना और नौकरी मिलना, ये बहुत जल्दी जल्दी नहीं होते।

मैके के महुए मीठे : मायके की हर वस्तु स्त्रियों को प्रिय लगती है।

मैना जो मैं ना कहे, दूध भात नित खाय, बकरी जो मैं मैं करे, उलटी खाल खिंचाय : मैना कहती है मैं ना (मैं कुछ नहीं हूँ), उसे दूध भात मिलता है। बकरी कहती है मैं मैं (मैं ही सब कुछ हूँ), उस की खाल खींची जाती है।

मैला कपड़ा पतली देह, कुत्ता काटे कौन संदेह : गरीब दुर्बल गाँव वालों को दुष्ट सरकारी कर्मचारी परेशान करते हैं उसके ऊपर व्यंग्य।

मैं कब कहूँ तेरे बेटे को मिरगी आवे है : किसी को उसकी कमी बताना और यह भी कहना कि मैं तो कुछ नहीं कह रहा हूँ।

मैं करूँ तेरी भलाई, तू करे मेरी आँखों में सलाई : भलाई के बदले में बुराई करने वाले के लिए।

मैं क्या तुमसे पतला मूतता हूँ : मैं तुमसे किसी तरह कम नहीं हूँ यह कहने का अश्लील तरीका।

मैं गला कटाए : अहं का भाव (अहंकार) सर्वनाश कर देता है।

मैं सच्चा, मेरा पीर सच्चा : जबरदस्ती अपनी बात मनवाना, जो मैं कह रहा हूँ वही ठीक है।

मैं ही पाल करा मुस्टंडा, मोहे ही मारे लेके डंडा : मैंने ही जिसे पाल पोस कर बड़ा किया वही (कृतघ्न पुत्र या आश्रित) अब मुझे डंडा ले कर मार रहा है। (टुकड़े दे दे बछड़ा पाला, सींग लगे तब मारन चाला)।

मोकों मिले न तोकों, ले चूल्हे में झोंको : जिस चीज़ पर लड़ाई हो रही है वह अगर मुझे नहीं मिल सकती तो तुझे भी न मिले, चाहे चूल्हे में झोंक दो।

मोची की जोरू और फटी जूती : जहाँ पर किसी चीज की बहुतायत होनी चाहिए, वहीं पर उस की कमी हो तो यह कहावत कही जाती है।

मोची की नजर जूते पर ही पड़ती है : मोची – जूते बनाने वाला। (आजकल इस नाम की एक बड़ी ब्रांड भी है)। जिसका जो काम होता है वह उससे सम्बन्धित चीजों पर ही गौर करता है।

मोज़े का घाव, मियाँ जाने या पाँव : मोज़े से जो घाव लगता है वह बाहर दिखाई नहीं देता, जिस को घाव लगा है वही जान सकता है। कोई अन्तरंग व्यक्ति यदि किसी को चोट पहुँचाता है तो वह किसी से कह भी नहीं सकता। ऐसे में यह कहावत कही जाती है।

मोठों का पीसना क्या और सास का रूसना क्या : किसी ऐसी दबंग बहू का कथन जो सास के रूठने की परवाह नहीं करती।

मोदक मरे जो ताहि माहुर न मारिए : जो लड्डू खाने से मरे उसे जहर मत दीजिए। जो मीठी बातों से वश में आ जाए उस के लिए कड़वी बात या दंड का प्रयोग क्यों किया जाए। इंग्लिश में कहावत है – It is easier to catch flies with honey than with vinegar.

मोम का हाकिम लोहे के चने चबावे : जो हाकिम कोमल हृदय होता है वह प्रशासन चलाने में बहुत परेशानी उठाता है।

मोर भुखिया मोर माई जाने, कठवत भर पिसान साने : कठवत – लकड़ी का बर्तन, पिसान – आटा। मेरी माँ ही जानती है कि मेरी खुराक कितनी है, इसलिए कठौता भर के आटा सानती है। बच्चे कि भूख केवल माँ ही समझ सकती है.

मोरी की ईंट चौबारे चढ़ी : (नाली की ईंट कोठे चढ़ी) : मोरी – नाली, चौबारे – चौपाल। कोई निम्न कोटि का व्यक्ति उच्च पद पा जाए कोई छोटे खानदान की लड़की बड़े घर में ब्याहे जाने पे घमंड करे तो लोग ईर्ष्यावश ऐसे बोलते हैं।

मोहिनी देख मुनिवर चले : ढोंगी मुनि के लिए जो सुंदर स्त्री को देख कर तपस्या छोड़ कर उसकी ओर चल देते हैं।

मौके का घूँसा तलवार से बढ़ कर : सटीक मौके पर दी गई छोटी चोट भी बड़ा काम कर देती है।

मौत कभी रिश्वत नहीं लेती : अर्थ स्पष्ट है।

मौत दीजो पर मंदी न दीजो : व्यापारी मंदी से सबसे अधिक घबराते हैं।

मौत मांदगी मुकद्दमा मंदी मांगनहार ये पाँचों मम्मा बुरे भली करे करतार : मांदगी – बीमारी, मम्मा – ‘म’ अक्षर से आरम्भ होने वाले शब्द। अर्थ स्पष्ट है।

मौत या तो बहुत जल्दी आती है या बहुत देर से : मृत्यु कभी भी मनुष्य की इच्छानुसार नहीं आती। या तो व्यक्ति की असामयिक मृत्यु होती है या मौत आती ही नहीं है (परिवार वाले इंतज़ार करते रहते हैं)।

मौत हराए, भूख नवाए : मौत सबको हरा देती है और भूख अच्छे अच्छों को झुका देती है।

मौन स्वीकृति लक्षणं (मौन सम्मति लक्षणं) : यदि कोई अन्याय होता देख कर आप चुप रह जाते हैं तो इसे आपकी स्वीकृति माना जाएगा।

मौला यार तो बेड़ा पार : ईश्वर प्रसन्न हो तो हर काम आसान है।

मौसी के मूंछें होतीं तो उन्हें भी मामा कहता : रिश्तों की आपसी मजाक।

म्याऊँ के ठौर को कौन पकडे : शाब्दिक अर्थ के लिए देखिए – बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे। कहावत का प्रयोग इस प्रकार करते हैं कि क्रोधी हाकिम या झगड़ालू व्यक्ति से काम के लिए कौन कहे।

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