लोकोक्तियाँ एवं कहावतें

( च, छ, ज, झ )

चकमक दीदा, खाय मलीदा : जो स्त्री सब लोगों से नैन मटक्का करती है उसे गुलछर्रे उड़ाने को मिलते हैं।

चकरया चाकरी करके आप अपने हाथ बिकता है : किसी की नौकरी करने वाला स्वयं ही अपने आत्म सम्मान को उसके हाथ बेच देता है। (चकरया – चाकरी करने वाला)

चकवा चकवी दो जने, इन मत मारो कोय, ये मारे करतार के रैन बिछोहा होय : चकवा और चकवी को वैसे ही रात में अलग रहने का श्राप मिला हुआ है। इन में से किसी को मारने से पाप लगता है।

चक्की पर चक्की, मेरी कसम पक्की : बच्चों की कहावत। कसम खाने के लिए बच्चे ऐसे बोलते हैं।

चक्की पे घर तेरो, निकल सास घर मेरो : नई बहू सास को बता रही है कि तेरा काम अब केवल चक्की पीसना ही है। अब इस घर की मालकिन मैं हूँ।

चक्की में कौर डालोगे तो चून पाओगे : चक्की में गेहूँ डालोगे तभी आटा मिलेगा। पहले कुछ रुपया पैसा खर्च करोगे या पहले कुछ रिश्वत वगैरा दोगे तभी काम हो सकेगा.

चक्की में से साबुत निकल आवे : बहुत निर्लज्ज व्यक्ति (जो चलती हुई चक्की में से भी साबुत निकल आए)।

चख ले माल धन को, कौड़ी न रख कफन को : बिंदास जीवन जीने वालों का कथन। सब कुछ अपने जीते जी खर्च कर लो, बचाने के चक्कर में मत पड़ो।

चचरे ममेरे, बड़तले बहुतेरे : बड़े लोगों से सब लोग अपनी रिश्तेदारी निकालते हैं।

चचा चोर भतीजा काजी : चाचा चोर है पर उसका भतीजा ही न्यायाधीश है, ऐसे में न्याय की क्या उम्मीद करें। यह कहावत कुछ राजनैतिक दलों और न्यायपालिका के कुछ भ्रष्ट सदस्यों के अनैतिक गठबन्धन पर बिलकुल सटीक बैठती है।

चट मंगनी पट ब्याह : तुरंत निर्णय लिया और तुरंत काम हो जाए तो यह कहावत कही जाती है।

चट मकई, पट सनई : जल्दी मक्का बो कर काट ली और सनई बो दी। बहुत जल्दी जल्दी काम निबटाने वाले लोगों के लिए।

चट मौत, पट शादी (चट रांड, पट सुहागन) : किसी स्त्री के पति की मृत्यु के बाद जल्दी दूसरा विवाह हो जाए तो।

चटनी बिन न रोटी सोहे, गूँधे बिन न चोटी सोहे (लवन बिना न सोहे रोटी, बिन गूँधे न सोहे चोटी) : बाल खोल कर घूमने वाली लड़कियों को पहले फूहड़ माना जाता था। उनको सीख देने के लिए कहा गया है कि जिस प्रकार चटनी या नमक के बिना रोटी अच्छी नहीं लगती, उसी प्रकार गूँधे बिना चोटी अच्छी नहीं लगती। लवन – लवण, नमक।

चटोर का ब्याह, चोट्टी न्योते आई : जैसा दूल्हा वैसे ही बाराती।

चटोर खोवे एक घर, बतोर खोवे दो घर : चटोरा व्यक्ति (खाने पीने का शौक़ीन) केवल अपना घर बर्बाद करता है (पैसा उड़ा कर), पर बातों का शौक़ीन आदमी दो घर बर्बाद करता है। अपना भी समय खराब करता है और दूसरे का भी।

चटोरा कुत्ता, अलोनी सिल : अलोनी सिल – ऐसी सिल जिस पर कुछ न पीसा गया हो। चटोरा कुत्ता ऐसी सिल क्यों चाटेगा जिस पर कुछ न लगा हो।

चटोरी जबान, दौलत की हान : चटोरी जबान वाले लोग खाने पीने में सब पैसा उड़ा देते हैं।

चढ़ जा बेटा सूली पर, भली करेंगे राम (भली करेगो अल्ला) : किसी व्यक्ति को जोखिम भरे काम के लिए उकसाया जा रहा हो तो वह यह कहावत कहता है।

चढ़ मार, गूलर पक्के : आगे बढ़ के काम करो, सफलता अवश्य मिलेगी।

चढ़ती जवानी और भरी हुई अंटी क्या अनर्थ नहीं कराती : जवानी के जोश में भी बहुत से गलत काम होते हैं और पास में आवश्यकता से अधिक धन हो तो भी गलत काम किए जाते हैं।

चढ़ते पित्त उतरते बाय, ताते गोरख भूंज के खाय : भांग की महिमा बताई गई है। भांग चढ़ते समय पित्त को शांत करती है और उतरते समय वायु को। बाय – वायु रोग, ताते – इस कारण से।

चढ़ाई से उतराई महान : 1. पहाड़ पर चढ़ने से उतरना अधिक कठिन है। 2. किसी व्यक्ति की उन्नति हो रही हो तो बहुत अच्छा लगता है, पर जब उस की अवनति होती है तो उसकी कठिन परीक्षा होती है।

चढ़ी कढ़ाही तेल न आया तो कब आएगा : गृहणी ने कढ़ाही आग पर चढ़ा दी है और पति तेल लाने में आनाकानी कर रहा है। तो पत्नी पूछती है कि इस मौके पर तेल नहीं लाओगे तो कब लाओगे। आवश्यकता के समय काम न किए जाने पर।

चढ़े ऊंट, मांगे बूंट : जो मांगने वाला है वह किसी भी स्थान पर पहुँच जाए उस की मांगने की आदत नहीं जाती। बूंट – चना।

चढ़े कचेहरी, बिके मेहरी : जो कचहरी के चक्कर में पड़ेगा उसका घर बार बिक जाएगा। मेहरी – स्त्री।

चढ़ेगा सो गिरेगा : जो चढ़ेगा वही गिरेगा, जो चढ़ेगा ही नहीं उसे गिरने का क्या डर (गिरते हैं शहसवार ही मैदाने जंग में, वो तिफ़्ल क्या गिरेगा जो घुटनों के बल चले)। इस का दूसरा अर्थ यह है कि उन्नति करने पर बहुत खुश मत हो, कल को फिर नीचे गिर सकते हो। इंग्लिश में कहावत है – He that never climbed, never fell.

चढ़ो चाचा, चढ़ो ताऊ, येहि में घोड़ी खाली चले : एक दूसरे के शिष्टाचार में चाचा ताऊ दोनों पैदल चल रहे हैं और घोड़ी खाली चल रही है

चतुर की चाकरी बुरी : यहाँ चतुर से अर्थ बहुत मीन मेख निकालने वाले व्यक्ति से है। ऐसे व्यक्ति की नौकरी करने में बहुत परेशानियाँ हैं।

चतुर के चार कान नहिं होत : चतुर व्यक्ति बहुत जल्दी बात को सुन और समझ लेता है, इसलिए नहीं कि उसके पास चार कान हैं। बल्कि इसलिए कि उसकी बुद्धि तीव्र होती है।

चतुर चार जगह ठगा जाता है : जो अपने को ज्यादा होशियार बनता है वह अधिक नुकसान उठाता है।

चतुर नार नरकूढ़ से ब्याह होए पछताए, जैसे रोगी नीम को आँख मीच पी जाए : बुद्धिमती स्त्री मूर्ख व्यक्ति से विवाह हो जाने पर मन ही मन शोक के घूँट पी कर रह जाती है, जैसे रोगी नीम को आँख बंद कर के मजबूरी में पी लेता है।

चतुर शत्रु उपायहिं नासे : चतुर शत्रु को चालाकी से ही नष्ट किया जा सकता है, पराक्रम से नहीं।

चतुर सो गृही जो संचै कोषा : कोष – खजाना। वही गृहस्थ चतुर माना जाता है जो रुपया पैसा और अनाज आदि इकठ्ठा कर के रखता है।

चतुरा का काम न करे, हेजिये के बच्चे न खिलाए : जो स्त्री अपने को बहुत चतुर समझती हो उसका काम नहीं करना चाहिए (क्योंकि वह उसमें कमियाँ निकालने से बाज नहीं आएगी)। इसी प्रकार जिसे अपने बच्चे का बहुत हेज (सयान) हो उसके बच्चे को नहीं खिलाना चाहिए (क्योंकि वह खिलाने वाले पर इलज़ाम लगाएगी कि उसने बच्चे को नुकसान पहुँचा दिया)।

चतुरा तो पूतन को तरसे, फूहड़ जन जन हारी : प्रकृति की अजब माया है। समझदार और सम्पन्न स्त्री सन्तान के लिए तरस रही है और जो फूहड़ और गरीब स्त्री है, (जो बच्चों को ठीक से पाल भी नहीं सकती) उसके धड़ाधड़ बच्चे हो रहे हैं।

चना और चुगल को मुहँ नहीं लगाना चाहिए। (चना और चुगल मुँह लग जाए तो छूटता नहीं है) : चुगल – जो दूसरों की बुराई (परनिंदा) करता हो। ऐसे व्यक्ति को मुँह नहीं लगाना चाहिए, क्योंकि फिर आपको भी परनिंदा में रस आने लगता है। कहावत को रुचिकर बनाने के लिए चने का उदाहरण जोड़ दिया गया है।

चना कूदे तो कितना कूदे, कढ़ाई से बाहर : छोटा आदमी बहुत बड़ा काम नहीं कर सकता।

चने चबाओ या शहनाई बजाओ : अगर शहनाई बजाना है तो चने नहीं चबा सकते। जब दो प्रिय कामों में से एक को चुनने की मज़बूरी हो तो।

चने चाब कर उँगलियाँ चाटने में क्या स्वाद आएगा : जब हम कोई स्वादिष्ट भोजन करते हैं तो उसके बाद उंगलियाँ चाटने में आनंद आता है, चने जैसी साधारण और बिना मसाले की चीज़ खा कर उँगली चाटने में क्या स्वाद आएगा।

चने चिरौंजी हो गए, गेहूँ हो गए दाख, घर में गहने तीन हैं, चरखा, पीढ़ी, खाट : अत्यधिक गरीबी। चने और गेहूँ मिलना इतने मुश्किल हो गए जैसे चिरौंजी और किशमिश। घर में जो मूल्यवान वस्तुएं बची हैं वे हैं चरखा, बैठने का पीढ़ा और खाट।

चन्दन की चुटकी भली, गाड़ी भरा न काठ : गाड़ी भर कर लकड़ी मिलने के मुकाबले चुटकी भर चन्दन बेहतर है। यह उन्हीं के लिए कहा गया है जो चन्दन की कीमत जानते हैं।

चप्पा भर की झोपड़ी नई हवेली नाम : नाम के विपरीत गुण।

चप्पे जितनी कोठरी और मियाँ मोहल्लेदार : चप्पा – चार अंगुल जगह। बहुत छोटी से घर में रहते हैं और शान बघारते हैं। झूठी शान बघारने वालों के लिए।

चबा के खाते तो हलक में क्यूँ फंसता : धैर्य पूर्वक काम करते तो परेशानी में क्यों पड़ते।

चबोकड़ सो लबोकड़ : ज्यादा बातूनी आदमी झूठा होता है।

चमगादड़ के घर मेहमान आए, जैसे हम लटके वैसे तुम भी लटको भैया : गरीब के घर मेहमान आए तो वह कहता है कि भैया जिस तरह मैं काम चलाता हूँ वैसे ही तुम भी काम चलाओ।

चमचागिरी न करो न कराओ : न किसी की चमचागीरी करनी चाहिए और न ही चमचों को देख कर खुश होना चाहिए।

चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए : पैसे के आठवें भाग को दमड़ी कहते थे। ऐसा व्यक्ति जो शरीर के अंगों को नुकसान होने की दशा में भी रत्ती भर पैसा इलाज में न खर्च करे। अत्यधिक कंजूस लोगों के लिए यह कहावत कही जाती है।

चमड़े का जल दुनिया पीवे : पहले के जमाने में चमड़े के मशक में कुएं से पानी भर कर भिश्ती लोग घर घर जा कर घड़ों में पानी भरते थे।

चमड़े की चलनी और कुत्ता रखकार (चाम का चमोटा, कूकुर रखवाल) : चमड़े की चलनी की रखवाली भला कुत्ता कैसे कर सकता है। वह तो मौका मिलते ही उसे चबा जाएगा।

चमड़े की देवी को जूतों की पूजा : जैसी देवी वैसी पूजा।

चमत्कार को नमस्कार : चमत्कार के आगे सब नतमस्तक होते हैं।

चमार के मनाने से डांगर नहीं मरते : डांगर – गाय, भैंस, बकरी आदि। चमार के मनाने से पशु नहीं मरते। अर्थात किसी के चाहने से दूसरे का अनिष्ट नहीं हो जाता। (कहावत उस समय की है जब चर्मकार बंधुओं का जीवन अत्यंत दयनीय था। उन बेचारों की जीविका केवल मरे हुए जानवरों पर ही निर्भर थी। आधुनिक भारत में अब सब के लिए समान अवसर उपलब्ध हैं)

चमरिया को चाची कह दिया तो चौके में चली आई : किसी निम्न कुल की स्त्री को कुछ सम्मान दे दिया तो वह ज्यादा सर चढ़ गई। (कहावतें तत्कालीन समाज का दर्पण होती हैं। इस कहावत में उस समय व्याप्त छुआछूत और जात पांत का सटीक चित्रण है। यह कितना भी आपत्तिजनक और निन्दनीय क्यों न हो, उस समय की सच्चाई यही है)।

चमार चमड़े का यार : जिसका जो काम होता है उसको उसी से सम्बन्धित चीजों में रूचि होती है (चर्मकार को चमड़े में, लोहार को लोहे में, मिस्त्री को ईंट गारे में)।

चमेली लाड़ में आई, घर भर साथ लाई : चमेली नाम की किसी घटिया स्त्री को दावत में बुला लिया तो वह सारे कुनबे को साथ ले आई। ओछे व्यक्ति से थोड़ा प्यार जता दो तो वह उस का गलत फायदा उठाता है।

चरणामृत के गटके, मिटें चौरासी योनि के भटके : चरणामृत पीने से मोक्ष प्राप्त हो जाता है। विशेषकर उन लोगों का कथन जिन्हें कथा से अधिक चरणामृत में रूचि होती है।

चर्बी छाई आंखन में तो नाचन लागी आँगन में : आँखों में चर्बी छाना – अहंकार में अंधा होना।

चल न सकूँ मेरा कूदन नाम : गुण के विपरीत नाम।

चल मरघट को लकड़ियाँ सस्ती हैं : कुछ लोग सस्ते के चक्कर में अनावश्यक सामान खरीद लेते हैं, उन का मज़ाक उड़ाने के लिए।

चलत फिरत धन पाइए, बैठे पावे कौन : कुछ परिश्रम करने से ही धन की प्राप्ति होती है। इंग्लिश में कहावत है – No gains without pains।

चलता है तो चल निगोड़े, मैं तो गंगा नहाउंगी : पत्नी पति को धमकी दे रही है कि तुम्हें चलना है तो चलो, मैं तो गंगा नहाने अवश्य जाऊँगी। अपनी इच्छा दूसरों पर जबरदस्ती थोपना।

चलती का नाम गाड़ी, गाड़ी का नाम उखली : संसार के रीति रिवाज़ उलटे हैं। कबीर कहते हैं – रंगी को नारंगी कहते, नकद माल को खोया, चलती को तो गाड़ी कहते, देख कबीरा रोया।

चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोय, दुइ पाटन के बीच में, साबित बचा न कोय : संसार की चक्की चलती देख कर कबीरदास को रोना आ रहा है। चाकी का एक पाट सांसारिक माया मोह है और दूसरा पाट भगवान की भक्ति है, इन के बीच में कोई भी साबुत नहीं बचता।

चलती में न चलाये वो बावला और न चलती में चलाये वो भी बावला : जो अवसर का लाभ न उठाए वह मूर्ख और जो बिना अवसर लाभ उठाने की कोशिश करे वह भी मूर्ख।

चलती हवा से लड़े : बहुत लड़ाका औरत के लिए।

चलते घोड़े को चाबुक कैसा : जो कर्मचारी अपने आप से अच्छा काम करता हो उसे व्यर्थ में नहीं फटकारना चाहिए।

चलना भला न कोस का, बेटी भली न एक, देना भला न बाप का, जो प्रभु राखे टेक : कोस भर चलना पड़े (सवारी न हो), एक ही संतान हो वह भी बेटी, पिता का ऋण बेटे को चुकाना पड़े, ईश्वर इन सब परेशानियों से बचाए।

चलना है रहना नहीं, चलना बिस्वे बीस, ऐसे सहज सुहाग पर कौन गुंधावे सीस : संसार से सब को निश्चित रूप से जाना है तो ऐसे क्षणिक सुखों के लिए क्यों माथापच्ची करते हो। बिस्वे बीस – जैसे आजकल कहते हैं शत प्रतिशत, वैसे ही पहले के लोग कहते थे बिस्वे बीस (क्योंकि एक बीघे में बीस बिस्वे होते हैं)। इसी तरह लोग कहते थे सोलह आने सच (क्योंकि रूपये में सोलह आने होते थे)।

चलनी चम्मा, घोड़ लगम्मा, कायस्थ गुलम्मा, ये तीनों नहिं कोऊ कम्मा : चमड़े की चलनी, घोड़े की लगाम और नौकरी करने वाला कायस्थ, ये तीनों किसी और काम के लायक नहीं होते।

चलनी में दुहे और करम को टटोले : चलनी में दूध दुह रहे हैं और दूध इकट्ठा नहीं हो रहा है तो अपने भाग्य को रो रहे हैं। मूर्खतापूर्ण कार्य करना और भाग्य को दोष देना।

चलनी में न दाने, अम्मा चलीं भुनाने : पहले के लोग किफायत करने के लिए गेहूं, चावल, मक्का, चने आदि इकट्ठा लेकर रखते थे (अब भी कुछ लोग ऐसा करते हैं)। जरूरत पड़ने पर अनाज के रूप में तो इनका उपयोग होता ही था, इसके अलावा कभी भुने चने या मक्का खाने का मन हो तो जाकर भाड़ में भुनवा लाते थे। घरों में उस समय बर्तन भी सीमित हुआ करते थे। इसलिए भाड़ तक अनाज ले जाने के लिए चलनी एक उपयोगी बर्तन होता था। कहावत का शाब्दिक अर्थ है की चलनी में दाने तो है नहीं और अम्मा भुनाने चल दी हैं। अर्थात घर में कुछ नहीं है लेकिन तड़क-भड़क और दिखावा खूब है।

चलनो भलो तो कोस को, दुहिता भली तो एक, मांगन भलो तो बाप सों, जो मांगे पर देत : थोड़ा चलना पड़े तो अच्छा, बेटी एक हो तो अच्छी, और माँगना ही पड़े तो ऐसे पिता से माँगना अच्छा जो आसानी से दे देता हो।

चला चली की राह में, भला भली कर लेहु (चला चली के मेले में, भला भली खरीदो) : इस संसार से कब जाना पड़ जाए यह कोई नहीं जानता, इसलिए परोपकार अवश्य करो, वही साथ जाएगा।

चले जब तक चलने दो : जब तक काम चले चलाना चाहिए।

चले तो अगाड़ी, ध्यान रहे पिछाड़ी : आगे को चलो लेकिन पीछे का भी ध्यान रखो।

चले तो चाकी, नहीं तो पत्थर : जो चीज जिस काम के लिओए बनाई गई है वही नहीं करेगी तो वह बेकार है।

चले रांड का चरखा और चले चटोरे का पेट : विधवा स्त्री बेचारी पेट पालने के लिए लगातार चरखा चलाती है और चटोरे आदमी का पेट अंट शंट खाने के कारण खराब होता रहता है। पेट चलना – दस्त होना।

चले हल न चले कुदारी, बैठे भोजन दे मुरारी : आलसी और मुफ्तखोरों के लिए।

चश्मे बद्दूर, आँखें मोतीचूर : छोटी आँख वालों की मजाक उड़ाने के लिए। चश्मे बद्दूर उर्दू का शब्द है जिसका अर्थ है बुरी नजर दूर रहे। चश्म – आँख, बद – बुरी।

चस्का दिन दस का, पराया खसम किसका : दूसरी महिला के पति पर डोरे डालने वाली महिला को सीख दी जा रही है कि पराया पति तुम्हारा सगा नहीं होगा।

चंचल नार की चाल छिपे नहिं, कोई नीच छिपे न बड़प्पन पाए, जोगी का भेस नीक धरो, कोई करम छिपे न भभूत रमाए : यहाँ चंचल नार से अर्थ चरित्रहीन नारी से है। अर्थ है कि चरित्रहीन नारी का चाल चलन छिपता नही है, किसी नीच को बड़ा पद मिल गया हो तो वह भी नहीं छिपता और भभूत रमा कर कोई धूर्त व्यक्ति साधु बनना चाहे तो वह भी नहीं छिपता।

चंचल नार छैल से लड़ी, खन अंदर खन बाहर खड़ी : दुश्चरित्र स्त्री का मिलन किसी मनचले (छैल) से हो गया है तो वह अपनी प्रसन्नता छिपा नहीं पा रही है।

चंडी माई लीपेगी, न निगोड़े खोदुंगी : कुछ स्त्रियां बड़े कर्कश स्वभाव की होती हैं, कुछ पूछो तो हमेशा उल्टा जवाब देती हैं। बोलचाल की भाषा में इन्हें चंडीमाई कहते हैं। ऐसी किसी स्त्री से किसी भले मानुष ने पूछा – चंडीमाई चौका लीपने जा रही हो? चंडीमाई ने जवाब दिया – न निगोड़े! खोदने जा रही हूँ। आजकल के बच्चों को यह नहीं मालूम होगा कि पहले के जमाने में खाना बनाने के पहले चौके (रसोई) को मिट्टी या गोबर का पतला घोल बना कर उससे लीपते थे। कुछ लोग इस कहावत को पूरा इस तरह बोलते हैं – चंडी माई लीपेगी, न निगोड़े खोदुंगी, चंडी माई खोदेगी, न निगोड़े लीपुंगी।

चंदन तरु की बास से सब चन्दन हुई जात, तैसेई एक सपूत से सबरो कुटुम अघात : (बुन्देलखंडी कहावत) जैसे एक चंदन के पेड़ की खुशबू से सारे पेड़ों में खुशबू आ जाती है, वैसे ही एक सुपुत्र से सारा कुटुंब धन्य हो जाता है।

चंदन धोई माछली, पर छूटी ना गंध : (राजस्थानी कहावत) मछली पर चंदन रगड़ो तब भी उस की गंध नहीं छूटती। निम्न कोटि का व्यक्ति अच्छी संगत पा कर भी नहीं सुधरता।

चंदन हूँ की आग से जरे देह तत्काल : चंदन की लकड़ी शीतल होती है पर जलती हुई चंदन की लकड़ी शरीर को जला देती है। कोई संत प्रकृति का व्यक्ति अगर क्रोध में है तो हानि पहुँचा सकता है।

चंद्र ग्रहण कुत्तों को भारी : चंद्र ग्रहण के दौरान डोम इत्यादि भीख माँगते हैं, तब गलियों में कुत्ते उन पर भौंकते हैं और अकारण ही पिट जाते हैं। दूसरों के कारण व्यर्थ कष्ट उठाने पर।

चंद्रमा में भी कलंक (दाग) हैं : कोई भी चीज़ पूर्णत: दोष रहित नहीं है। इंग्लिश में कहावत है -Nothing is perfect.

चंपा के दस फूल चमेली की एक कली, मूरख की सारी रैन चातुर की एक घड़ी : जिस प्रकार चम्पा के दस फूल से चमेली की एक कली अधिक अर्थपूर्ण है उसी प्रकार मूर्ख की सारी रात की मेहनत के मुकाबले बुद्धिमान व्यक्ति का एक घड़ी का कार्य अधिक अर्थपूर्ण है।

चाकर को उज्र नहीं, कूकुर को उज्र है : 1. नौकरी करने वाले को इस बात की स्वतंत्रता नहीं होती कि वह किसी काम को मना कर दे। उस से तो कुत्ता अधिक स्वतन्त्र होता है। 2. आप किसी बड़े आदमी से मिलना चाहते हैं। उसके नौकर को कोई आपत्ति नहीं है लेकिन उसका कुत्ता आप पर भौंके जा रहा है (या कोई महत्वहीन आदमी ख्वामखाह अड़ंगा डाल रहा है)।

चाकर को ठाकुर बहुतेरे और ठाकुर को चाकर बहुतेरे : नौकरी करने वाले के लिए काम देने वालों की कमी नहीं है और काम देने वालों के लिए नौकरी करने वालों की कमी नहीं है।

चाकर मालिक के हैं या बेंगन के : एक दिनराजा ने दरबार में कहा- बैंगन बहुत अच्छी सब्जी है। दरबारी बोले – जी हुजूर, तभी तो इस के सर पर भगवान ने ताज रखा है। कुछ दिन बाद राजा ने कहा – बैंगन तो बिल्कुल वाहियात चीज है। दरबारी तुरंत बोले – जी मालिक, तभी तो इसका नाम बेगुन (बिना गुण वाला) रखा है। राजा बोला – उस दिन तो तो तुम लोग बैगन की बहुत तारीफ़ कर रहे थे। दरबारी बोले – हुजूर हम आपके नौकर हैं, बैंगन के थोड़े ही हैं।

चाकर से कूकुर भला जो सोये अपनी नींद : पहले के लोग नौकरी को बुरा समझते थे क्योंकि उस में किसी की गुलामी करनी पड़ती है। कहते थे कि नौकर से तो कुत्ता अधिक आजाद है।

चाकर है तो नाचा कर, ना नाचे तो ना चाकर : नौकरी करने वाले को मालिक की मर्ज़ी के अनुसार नाचना पड़ता है। जो नाचने को तैयार न हो वह नौकरी नहीं कर सकता। (चाकरी या तो ना करी, करी तो फिर ना नाकरी)।

चाकरी में आकरी कैसी : नौकरी में अकड़ नहीं चल सकती।

चाकरी में न करी क्या : नौकरी करने वाला किसी काम को मना नहीं कर सकता।

चाकी फेरी, हुई चून की ढेरी : कोई काम शुरू करने की देर है, एक बार शुरू हो जाए फिर तो ढेर लग जाता है। चून – आटा।

चाचा पिए, भतीजे को चढ़े : जो लोग अपने रिश्ते दारों के बल पर ऐंठते फिरते हैं उन का मजाक उड़ाने के लिए।

चाची के मूंछें निकल आएं तो चाचा न कहलाएँ : कुछ काम ऐसे हैं जो चाचा ही कर सकते हैं। अगर चाची वो काम करने लगें तो चाचा और चाची में फर्क क्या रह जाएगा।

चातुर का काम नहीं पातुर से अटके : बुद्धिमान व्यक्ति वैश्या के चक्कर में नहीं पड़ता है।

चातुर की चेरी भली मूरख की नार से : कोई काम कराना हो तो बुद्धिमान व्यक्ति की नौकरानी से कहना बेहतर है बामुकाबले मूर्ख की स्त्री के।

चातुर को चिंता घनी, नहिं मूरख को लाज, सर औसर जाने नहीं, पेट भरे सो काज : घनी – बहुत अधिक, औसर – अवसर। समझदार व्यक्ति की बहुत सी चिंताएं होती हैं जबकि मूर्ख को कोई लाज शर्म नहीं होती। उसे केवल खाने से मतलब होता है।

चातुर को चौगुनी, मूरख को सौ गुनी : बुद्धिमान इशारे में ही बात समझ लेता है, मूर्ख को बार बार समझाना पड़ता है।

चातुर तो बैरी भलो, मूरख भलो न मीत : मूर्ख मित्र के मुकाबले बुद्धिमान शत्रु अधिक अच्छा है। मूर्ख व्यक्ति का कोई भरोसा नहीं कि वह कब अपनी मूर्खता से आपको कोई नुकसान पहुँचा दे। एक आदमी ने भालू पाला हुआ था। भालू उसकी बड़ी सेवा करता था। एक दिन वह सो रहा था और भालू पास में बैठा उस की मक्खियाँ उड़ा रहा था। एक मक्खी बार बार आदमी की नाक पर बैठ जा रही थी। भालू ने कई बार उसे उड़ाया, पर वह फिर आ कर बैठ जा रही थी। थोड़ी देर कोशिश करने के बाद भालू ने आव देखा न ताव पास में रखा मूसल उठा कर मक्खी पर दे मारा।

चापलूसी का मुँह काला : चापलूसी करने वाले व्यक्ति से सावधान रहना चाहिए।

चाबी लागे ही ताला खुले : सही युक्ति से ही कोई कठिन काम पूरा किया जा सकता है।

चाबुक तो मिल गई, बस जीन, लगाम, घोड़ी ही बाकी है : कोई छोटी सी चीज़ मिल जाने पर बहुत बड़े बड़े मंसूबे बांधना।

चाम प्यारा नहीं, दाम प्यारा है : जिसको अपने शरीर से पैसा अधिक प्यारा हो।

चार अफीमची तीन हुक्के : डिमांड अधिक हो और सप्लाई कम हो तो झगड़ा तो होगा ही।

चार आने का बाजरा, चौदह आने का मचान : चार आने के बाजरे की फसल की सुरक्षा के लिए चौदह आने का मचान बनाया है। छोटे से लाभ के लिए बहुत अधिक निवेश।

चार औरतें कजिए करें, तो कोई न कोई घर टूटे (औरतें इकटठी हों तो किसी का घर तोड़ती है) : औरतें इकट्ठी होती हैं तो तरह तरह की बातें कर के एक दूसरे को भड़काती हैं और घरों में फूट डलवाती हैं।

चार कान की बात ब्रह्मा भी नहीं छिपा सकता : कोई बात किसी एक व्यक्ति से कहो तो हो सकता है कि वह उसे अपने तक सीमित रखे, पर अगर दो लोगों से कह दी तब तो उसका फैलना तय है।

चार गोड़वा बांधा जाए, दो गोड़वा न बांधा जाए : चार पैर वाले (जानवर) को बांध कर रख सकते हैं दो पैर वाले (मनुष्य) को नहीं। गोड़ – घुटना।

चार चोर चौरासी बनिया, एक एक कर लूटा : चार चोर, चौरासी बनियों (डरपोक लोगों) को एक एक कर के लूट सकते हैं। जब एक को लूट रहे हों तो बाकी चुपचाप देखते रहते हैं।

चार जात गावें हरबोंग, अहीर, डफाली, धोबी, डोम : इन चार जातियों के लोग बेसुरा और बेतुका गाते हैं, अहीर, डफाली (डफली बजाने वाला), धोबी और डोम।

चार दिन की आइयाँ, और सोंठ बिसाइन जाईयां : अभी चार दिन आये हुए बीते हैं और सोंठ खरीदने चल दीं। सोंठ आमतौर पर प्रसव के बाद खिलाई जाती है। कोई नया आने वाला अधिक अधिकार जमाए तो।

चार दिन की चमर जोतिस : चमड़े का काम करने वाला कोई व्यक्ति ज्योतिषी बनने का ढोंग करके बैठा है। उसका यह ढोंग चार दिन में ही खुल जाएगा। कोई भी व्यक्ति वही काम ठीक से कर सकता है जो उस ने बचपन से सीखा हो, दूसरा काम करने की कोशिश करेगा तो उस की छीछालेदर होनी तय है।

चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात (अंधियारी पाख) : जब व्यक्ति को मालूम होता है कि कुछ दिनों की मौज मस्ती के बाद फिर परेशानी आनी है, तब वह यह कहावत कहता है।

चार दिन के गईले, सुग्गा मोर बन के अईले : (भोजपुरी कहावत) कुछ दिन विदेश में कुछ दिन रह कर जो अपने को अंग्रेज समझने लगते हैं। सुग्गा – तोता। गइले – गया, अइले – आया।

चार बिछिये टन टन बाजें, नौ मन काजल नैन बिराजे, झीना घूँघट नखरा घना, थोथा चना बाजे घना : सुन्दर न होने पर भी अत्यधिक श्रृंगार कर के इतराने वाली स्त्रियों के लिए।

चार लठा के चौधरी पांच लठा के पंच, जिनके घर में छह लठा वो अंच गिनें न पंच : (बुन्देलखंडी कहावत)जिस घर के चार सदस्य लठैत हों वह गाँव का चौधरी बन जाता है, जहाँ पांच लाठी चलाने वाले हों वह पंच, जहाँ छह हों वह किसी को कुछ नहीं गिनता।

चार वेद और पांचवाँ लवेद : लवेद माने छड़ी। ज्ञान प्राप्त करने के लिए चार वेद चाहिए और पांचवीं छड़ी।

चार सुहाली, चौदह थाली, बाँटन वाली सत्तर जनी : सुहाली – मैदे की पापड़ी नुमा पूड़ी। काम बहुत कम और करने वाले बहुत लोग।

चारण मत कर चतुर्भज नाई कीजे नाथ, आधी गद्दी बैठवों माथा ऊपर हाथ : हे चतुर्भूज (भगवान विष्णु), मुझे चारण मत बनाना, नाई बनाना क्योंकि नाई राजा के पास गद्दी पर बैठता है और राजा के मस्तक पर हाथ रखता है।

चारा खरीदने के लिए गाय बेच दो : गाय का चारा खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं तो कुछ बेचना पड़ेगा। कोई लाल बुझक्कड़ सलाह दे रहे हैं कि गाय बेच कर चारा खरीद लो। जब गाय नहीं होगी तो चारे का करोगे क्या। किसी समस्या के समाधान के लिए मूर्खतापूर्ण सुझाव देने वालों पर व्यंग्य।

चारु सो भारु : जो अधिक चारा खाता है वह बोझ बन जाता है।

चारों धार दुहारी में पड़ें, तो भरती क्या देर लगे : दुहारी – दूध दुहने की बाल्टी। काम करने वाले कई लोग हों तो काम निबटने में देर नहीं लगती।

चाल गड मगड, मतलब में चौकस : चाल ढाल में भोंदू लगते हैं पर अपने मतलब में होशियार हैं।

चाल चपल, मुख चरपरा, निपट निर्लज्जा होय, नाक काट गुद्दी धरे, करे दलाली सोय : तेज चलने वाला, अधिक बोलने वाला और निर्लज्ज व्यक्ति ही दलाली कर सकता है।

चाल रहे सादा तो निबहे बाप दादा : जो व्यक्ति सादा और सरल जीवन जीते हैं वे ही अपने कुटुंब की मर्यादा निभा पाते हैं।

चालाक पदनी पहले ही नाक दाबे : अपान वायु खारिज करने को बोलचाल की अशिष्ट भाषा में पादना कहा जाता है। पदनी का अर्थ है पादने वाली स्त्री। इस प्रकार की वायु में अक्सर दुर्गन्ध होती है। इसलिए चालाक लोग अपान वायु से पहले नाक बंद कर लेते हैं। कहावत का अर्थ है, चालाक आदमी कोई गलत काम करने से पहले अपने आप को बचाने का प्रबंध कर लेता है।

चालीस सेरा ऊत : मूर्ख व्यक्ति के लिए।

चाव घटे नित घर के जाए, भाव घटे कुछ मुँह के मांगे, रोग घटे औषधि के खाए, ज्ञान घटे कुसंगत पाए : बार बार कहीं जाने से मिलने की ललक कम हो जाती है, कुछ मांगने से सम्मान कम होता है, औषधि खाने से रोग कम होता है और कुसंगति से ज्ञान कम होता है।

चाह करी ताकि चाकरी कीजे, अनचाहत का नाम न लीजे : जो प्रेम करे उसकी नौकरी करो और जो न करे उस का नाम भी न लो।

चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह, जिनको कछू न चाहिए, वे साहन के साह : जब तक मनुष्य कुछ पाने की इच्छा करता है तब तक वह चिंताओं से दबा रहता है। जब मनुष्य अपने को इन इच्छाओं से मुक्त कर लेता है तब वह शहंशाह बन जाता है।

चाह चमारी चूहड़ी, सब नीचन की नीच : चाह का अर्थ यहाँ लालच से है। चमारी – चर्मकार जाति की महिला, चूहड़ी – सफाईकर्मी महिला। पुराने जमाने में जब छुआछूत और सामाजिक विषमता का बोलबाला था, तब चर्मकार और सफाई कर्मियों को नीची जाति का कह कर अपमानित किया जाता था (सौभाग्य से अब ऐसा नहीं है)। उस समय की कहावत में लालच करने की वृत्ति को बहुत निम्न कोटि का बताने के लिए चमारी और चूहड़ी से उपमा दी गई है।

चाहले की भैंस : ऐसी स्थूलकाय स्त्री के लिए जिसका पति उसे खूब लाड़ प्यार से रखता हो।

चाहे गाड़ी भर दहेज़ मिल जाए, पर ऐसे घर में ब्याह न करे जहाँ साला न हो : सही बात है, साले के बिना ससुराल बेकार है।

चाहे जहाँ जाओ, अपने आप से मुक्ति नहीं पा सकते : आदमी दुनिया से भाग सकता है लेकिन अपनी अंतरात्मा से नहीं।

चाहे जितने आदमी काम पर लगाओ, बच्चा पैदा होने में नौ महीने ही लगेंगे : कुछ काम ऐसे होते हैं जिनमें समय लगता ही है।

चाहे देकर भूल जाए, पर लेकर कभी न भूले : उधार दे कर वापस लेना भले ही भूल जाओ, लेकर वापस करना कभी नहीं भूलना चाहिए।

चाहे मार चाहे तार : ईश्वर के सब आधीन हैं, वह चाहे मारे चाहे तार दे।

चाँद आसमान चढ़ा, सबने देखा : जब व्यक्ति उन्नति करता है तो उस पर सबकी निगाह पड़ती है।

चाँद उगेगा तो क्या आंचल में छुपेगा : चाँद उगेगा तो सारी दुनिया को दिखेगा। प्रतिभा छिपती नहीं है।

चाँद के ऊपर थूको तो वह अपने ऊपर ही आता है : महापुरुषों पर कीचड़ उछालने से अपनी ही छवि खराब होती है।

चाँद के सामने तारों की परवाह कौन करे : बड़े आदमी के सामने छोटों को कोई नहीं पूछता।

चाँद को भी ग्रहण लगता है : महान से महान व्यक्ति को भी कभी न कभी बदनामी झेलनी पड़ती है।

चाँद देखे चंद्रमुखी याद आए : परदेस में रहने वाले व्यक्ति को चाँद देख कर अपनी पत्नी/प्रेयसी की याद आती है।

चाँद में भी दाग है। (चंद्रमा में भी कलंक है) : जब हम किसी बड़े आदमी की कोई कमी बताते हैं तो उसके प्रशंसक/समर्थक कहते हैं कि ऐसे तो हर व्यक्ति में कुछ न कुछ कमी होती है।

चांडालों के गाँव में कुत्ते भी खामोश : चांडाल – श्मशान में शवों का डाह संस्कार कराने वाला व्यक्ति। यह हमारे समाज की विकृति है कि चांडाल जैसा समाज के लिए आवश्यक मनुष्य घृणा का पात्र बना दिया गया है। उसको लोग निम्नतम श्रेणी का मनुष्य मानते हैं। कहावत में यह कहने की कोशिश की गई है कि नीच लोगों से सब डरते हैं, यहाँ तक कि कुत्ते भी।

चांदनी रात भाग्य में होती तो रतौंधी ही क्यों होती : रतौंधी – रात में दिखाई न देने की बीमारी, (विटामिन ए की कमी से होती है)। जिन लोगों को यह बीमारी होती है उन्हें चांदनी रात में भी दिखाई नहीं देता। जिसके भाग्य में सुख न लिखा हो उसके लिए।

चांदनी से जले और हवा से उड़े : बहुत नाज़ुक आदमी।

चांदी का जूता सबके सर पर भारी : पैसे के बल पर सबको दबाया जा सकता है।

चांदी की चाबी सब द्वार खोले : पैसे से सब काम कराए जा सकते हैं।

चांदी की चोट पड़े तब सांड भी गाय हो जावे : पैसे के बल पर टेढ़े आदमियों को भी सीधा किया जा सकता है।

चांदी देखे चेतना, मुख देखे व्यौहार : यहाँ चांदी से तात्पर्य चांदी के रुपयों से है। व्यापारी जब देख लेता है कि ग्राहक के पास रूपये हैं तभी माल दिखाने में रूचि लेता है, व्यक्ति को देख कर ही व्यवहार किया जाता है।

चिकना मुँह पेट खाली : देखने में अच्छा भला पर वास्तविकता में अभावग्रस्त। कुछ लोग इसे इस प्रकार बोलते हैं – दिल्ली की दलाली, मुँह चिकना पेट खाली।

चिकनी बातों मत पतियाओ : चिकनी चुपड़ी बातों पर विश्वास मत करो।

चिकने गाल तिलनियाँ के औ जरे भुजे भुरजनिया के : तेली की औरत के गाल चिकने हो जाते हैं और भड़भूंजे की औरत के गाल काले हो जाते हैं। अर्थात व्यक्ति जो काम करता है उसका असर उस के रंग रूप पर पड़ता है।

चिकने घड़े पर पानी नहीं ठहरता, पर मैल जम सकता है : बेशर्म आदमी कायदे की बात नहीं सीखता पर अनुचित बात फौरन सीख लेता है।

चिकने घड़े पर पानी नहीं ठहरता : बेशर्म आदमी को किसी भलाई बुराई से कोई फर्क नहीं पड़ता।

चिकने घाट बैठ कर उतरो : यदि नदी का घाट चिकना हो तो बैठ कर आगे बढ़ना चाहिए। प्रतिकूल परिस्थिति में अतिरिक्त सावधानी आवश्यक है।

चिकने मुँह को सब चूमते हैं : कमज़ोर का फायदा सब उठाते हैं।

चिड़ा चिड़ी की क्या लड़ाई, चल चिड़े मैँ तेरे पीछे आई : चिड़िया व चिड़े की कैसी लड़ाई, पति-पत्नी के बीच का मनमुटाव क्षणिक होता है।

चिड़िया का धन चोंच : गरीब आदमी के हाथ ही उसका धन हैं जिनसे श्रम कर के वह रोजी रोटी कमाता है।

चिड़िया की चोंच में चौथाई हिस्सा : जब किसी गरीब की कमाई में कोई हिस्सा मांगे।

चिड़िया की चोंच में सौ मन काठ : किसी गप्प मारने वाले का मजाक उड़ाने के लिए।

चिड़िया को बाज से क्या काम? : सही बात है, भला शिकार को शिकारी से क्या काम हो सकता है। कोई भोला भाला व्यक्ति किसी दुष्ट के जाल में फंसने जा रहा हो तो उसे सावधान करने के लिए।

चिड़िया चाहे जितने प्यार से पाले, पंख लगते ही बच्चे उड़ जाते हैं : माँ बाप चाहे जितने प्यार से बच्चों को पालें, कमाना शुरू करते ही वे अलग हो जाते हैं।

चिड़ियों की मौत, गवारों की हंसी : मूर्ख लोग यह नहीं देखते कि उन के मनोरंजन में निरीह लोगों का कितना नुकसान हो रहा है।

चिड़ियों के शिकार में शेर का सामान : छोटे से काम के लिए बहुत टीम टाम।

चिड़ी चोंच भर ले चली, नदी न घट्यो नीर, धरम किए धन न घटे, कह गए दास कबीर : भिखारी लोग इस तरह की बातें सुना कर लोगों को दान करने के लिए कहते हैं।

चिढ़े को चिढ़ाएंगे, हलुआ पूरी खाएंगे : जो चिढ़ने वाला हो उसे चिढ़ाने में सब को मज़ा आता है।

चित भी मेरी पट भी मेरी, अंटा मेरे बाप का : किसी भी सिक्के के एक साइड को चित और दूसरी साइड को पट कहते हैं। कई बार लोग किसी बात का फैसला सिक्का उछाल कर करते हैं। सिक्का उछालने से पहले ही एक व्यक्ति बोल देता है कि चित आने पर वह जीतेगा। लाख में एक चांस यह भी होता है कि सिक्का न चित पड़े न पट बल्कि खड़ा हो जाए। इसे अंटा कहते हैं। कोई किसी फैसले को अपने पक्ष में करने के लिए जोर जबरदस्ती कर रहा हो तो यह कहावत कहते हैं। इंग्लिश में कहावत है – Heads I win, Tails you lose.

चित्त लगा भोजन में कवित्त को कहवें : (बुन्देलखंडी कहावत)मन तो भोजन में लगा है और कविता सुनाने को कहा जा रहा है।

चिराग गुल, पगड़ी गायब : चोर और जेबकतरे निगाह बचते ही अपना काम कर जाते हैं।

चिराग तले अंधेरा : दीपक जलता है तो चारों ओर प्रकाश फैलता है पर दीपक के नीचे अँधेरा रहता है। कोई व्यक्ति देश या समाज के लिए बहुत कुछ कर रहा हो पर उसके अपने घर में अभाव हों तो यह कहावत कही जाती है।

चिराग में बत्ती और आँख में पट्टी : जो लोग बहुत जल्दी सो जाते हैं उनके लिए। जलते दिये को बुझाने के लिए लोग बत्ती को दीपक से बाहर कर देते थे जिससे तेल न मिलने के कारण वह बुझ जाए। बोलचाल की भाषा में इसे बाती बढ़ाना या दिया बाती करना कहते थे। विशेष रूप से यह कहावत उन पुरुषों का मजाक उड़ाने के लिए कही जाती है जो दीपक बुझने के बाद फौरन सो जाते हैं। कुछ स्त्रियाँ अपने पतियों की इस आदत से बहुत परेशान भी रहती हैं।

चिवड़ा दही बारह कोस, पूड़ी अठारह कोस : पूड़ी के मुकाबले चिवड़ा दही जल्दी पच जाता है, इसलिए अगर अधिक दूर जाना है तो पूड़ी खा कर जाना चाहिए।

चिंता ऐसी डाकिनी काट के जिउ को खाय, बैद बिचारा क्या करे कितनी दवा लगाय : (बुन्देलखंडी कहावत)चिंता बहुत बुरी बीमारी है, मनुष्य को घुला देती है, इसकी कोई दवा भी नहीं है।

चिंता चिता समान है : चिता तो मृत देह को जलाती है पर चिंता जीवित व्यक्ति को ही जला डालती है।

चिंता ज्वाल सरीर वन, दाह लगे न बुझाय, (प्रकट धुंआ न देखिये भीतर ही धुन्धुआए) : शरीर रूपी वन के लिए चिंता दावानल के सामान है जो बुझाए नहीं बुझती। फर्क यह है कि इस आग में धुंआ दिखाई नहीं देता, भीतर ही भीतर घुटता रहता है।

चीज न राखे आपनी, चोरन गाली देय, चोर बिचारा क्या करे, पड़ी पाय सो लेय : यदि आपने अपनी चीज़ संभाल कर नहीं रखी और वह चोरी हो गई तो इस के लिए चोर को गाली न दें। उस बेचारे को तो पड़ी मिली तो उस ने उठा ली।

चीटा मारे पानी हाथ : गरीब को सताने से कुछ हासिल नहीं होता। (बगुला मारे पखना हाथ)।

चीरे चार बघारे पांच : थोड़ा काम कर के बहुत ज्यादा बताना।

चील का मूत : असंभव वस्तु (जो चीज़ दुनिया में होती ही नहीं है)।

चील के घर में मांस की धरोहर। (चील के घोंसले में मांस कहाँ) : चील के घोंसले में मांस ढूँढना मूर्खता है। चील मांस छोड़ेगी ही नहीं। चोर उचक्कों से भरी जगह में आप अपना कोई कीमती सामान भूल आएँ और फिर फिर उसे ढूँढने जाएँ तो यह कहावत कही जाएगी।

चीलर मारे कुत्ता खाए : दुनिया को दिखाने के लिए चीलर मार रहा है और मौका मिलने पर कुत्ते को खा जाता है। ऐसे व्यक्ति के लिए जो भलाई के छोटे मोटे काम कर के वाहवाही लूटे और मौका लगने पर बड़ी चीज़ पर हाथ साफ़ करे।

चींचड़ी को खाज (जूं के सिर में खाज) : चीलर और जूँ जो सभी प्राणियों के शरीर में खुजली पैदा करती हैं उन्हें खुद ही खुजली हो जाए। कोई दुष्ट व्यक्ति अपनी दुष्टता के कारण किसी परेशानी में पड़ जाए तो।

चींटी की आवाज़ अर्श तक : निर्बल की पुकार ईश्वर सुनता है। अर्श माने आसमान।

चींटी की खाल निकालना : बाल की खाल निकालना।

चींटी की मौत आती है तो उसके पंख निकल आते हैं (चींटी के पर निकले और मौत आई) : छोटा आदमी बड़ा दुस्साहस करे तो उसकी बर्बादी निश्चित है।

चींटी के घर नित मातम : गरीब आदमी पर कोई न कोई दुःख टूटता ही रहता है।

चींटी को अपने पैर भारी हाथी को अपने पैर भारी : बड़ा आदमी बड़ी मुसीबतों से परेशान होता है तो छोटे आदमी को उसकी छोटी परेशानियाँ भी उतना ही परेशान करती हैं।

चींटी को पेशाब की धार ही बहुत है : गरीब के लिए छोटी मोटी परेशानी भी जानलेवा बन सकती है।

चींटी चाहे सागर थाह (चींटी लेत समुन्दर थाह) : बहुत क्षुद्र व्यक्ति अपनी औकात से बहुत अधिक प्रयास करे तो।

चींटी जावे सासरे, नौ मन सुरमा डाल : 1.बच्चों द्वारा मजाक में बोली जाने वाली कहावत। 2.अधिक लीपापोती करने वाली महिलाओं का मजाक उड़ाने के लिए।

चुका वायदा, दिखाया कायदा : काम निकल जाने के बाद नियम बताने लगना।

चुगलखोर खुदा का चोर : चुगलखोर व्यक्ति भगवान की नजर में चोर के समान होता है

चुटके का खाए, उकटे का न खाए : चुटका – गरीब, उकटा – कर के एहसान जताने वाला।

चुटिया को तेल नहीं, पकौड़ी को जी चाहे : आज के जमाने में खाने के लिए भी तरह तरह के तेल उपलब्ध हैं और सर में डालने के लिए भी, पर पहले के जमाने में ले दे कर एक सरसों का तेल ही सब कामों में आता था। कहावत का अर्थ है कि सर में डालने लायक जरा सा तेल तक तो है नहीं और पकोड़ी खाने का मन कर रहा है जिसके लिए बहुत सारा तेल चाहिए। कुछ भी न होते हुए बहुत कुछ की इच्छा करना।

चुड़ैल पर दिल आ जाए तो वह भी परी है : जो चीज़ अपने को पसंद आ जाए वही अच्छी है। इस तरह की एक कहावत और है – दिल लगा गधी से तो परी क्या करे। माँ बाप बेटे की शादी अपनी पसंद की किसी घरेलू लड़की से करना चाहते हैं पर लड़का किसी फैशनेबिल लड़की से शादी करने के लिए अड़ा हुआ है, ऐसे में माँ बाप यह कहावत बोल कर अपनी कुढ़न शांत करते हैं।

चुप आधी मर्ज़ी : कोई बात सुन कर अगर आप चुप रहते हैं तो इस का मतलब यह है कि आप उससे काफ़ी कुछ सहमत हैं।

चुप रहने का मौका कभी मत छोड़ो : चुप रहने से बहुत सी समस्याएँ हल हो जाती हैं। इंग्लिश में कहावत है – Silence is gold.

चुपको रह चन्दन, यहाँ करीलन को वन है : चन्दन को समझाया जा रहा है कि यहाँ करील (कांटेदार झाड़ियाँ) का जंगल है। तुम चुप रहो। यहाँ तुम्हारी कोई कद्र नहीं होगी।

चुपड़ी और दो दो (मीठा और भर कठौती) : गरीब आदमी के लिए चुपड़ी रोटी एक नियामत है और वो भी दो मिल जाएं तो क्या कहने। कोई अच्छी चीज़ मिल रही हो और वह भी उम्मीद से अधिक तो यह कहावत कही जाती है। इस प्रकार की दूसरी कहावत है.

चुप्पा आदमी गहरा होता है : बहुत बोलने वाला आदमी आमतौर पर हलकी मानसिकता का होता है जबकि चुप रहने वाले में गहराई होती है।

चुप्पा कुत्ता पहले काटे : जहाँ कई कुत्ते बैठे हों वहाँ जो कुत्ते बहुत भौंक रहे हों उनसे खतरा कम है। जो कुत्ता चुप बैठा हो वह पहले काटेगा। इसी तरह चुप रहने वाला आदमी भी अधिक खतरनाक होता है। इंग्लिश में कहावत है – Beware of silent dog and still waters.

चुभने वाली कील हथोड़े से ठोंक दी जाती है : अधिक परेशान करने वाले व्यक्ति को कड़ा सबक सिखाना जरूरी है।

चुरावे नथ वाली, नाम लगे चिरकुट वाली का : चिरकुट – कपड़े का चिथड़ा।पैसे वाला व्यक्ति गलत काम करता है और नाम गरीब का लगता है।

चुल्लू चुल्लू साधेगा, द्वारे हाथी बांधेगा : छोटी छोटी बचत से बड़ी राशि इकट्ठी की जा सकती है। इसके आगे एक पंक्ति और बोली जाती है ‘चुल्लू, चुल्लू खोवेगा, द्वारे बैठा रोवेगा।’

चुल्लू भर पानी में तंग जिंदगानी : अत्यधिक गरीबी।

चुल्लू में उल्लू करे, गाँठ कमाई खाय, मनुष जनावर बन चले, दारु बुरी बलाय : शराब बहुत बुरी चीज़ है, जो एक चुल्लू में ही आदमी को उल्लू बना देती है, आदमी की जमा पूँजी खा जाती है और आदमी को जानवर बना देती है।

चुहिया का शिकार और ग्यारह तोपें : छोटे से काम में बहुत बड़ा ताम झाम।

चूक अजाने से पड़े, बाँधे गाँठ सयान : नासमझ आदमी गलती करता है समझदार आदमी उससे सीख लेता है। इंग्लिश में कहावत है – Learn wisdom by the follies of others.

चूकी चोट निहाई पर : निहाई मजबूत लोहे की बड़ी सी वस्तु होती है जिस पर रख कर लोहे को पीटते हैं या काटते हैं। जिस चीज़ पर चोट करते हैं वह चूक जाए तो निहाई पर ही चोट पड़ती है। घर गृहस्थी में गलती कोई भी करे, जो जिम्मेदार व्यक्ति होता है उसी को खामियाजा भुगतना पड़ता है।

चून खाए मुसंड होवे, तला खाए रोगी : आटा खाने से ताकत आती है, तला हुआ खाने से रोग होते हैं।

चूनी कहे मुझे घी से खाओ : चूनी – मटर का आटा। चूनी जैसे घटिया आटे का भी दिमाग हो गया है, कह रहा है मुझे घी से खाओ। साधारण आदमी अपनी हैसियत से बहुत ऊपर की बात करे तो।

चूरा झाड़ खाओ, लड्डू मत तोड़ो : अपनी मूल पूँजी खा के खत्म नहीं करनी चाहिए, उससे मिलने वाले ब्याज या कमाई को खर्च कर के काम चला लेना चाहिए।

चूल्हा चक्की, सबहि काम पक्की : ऐसी स्त्री जो खाना पकाने में भी होशियार हो और चक्की भी खूब चला ले। ऐसा व्यक्ति जो हर काम में होशियार हो।

चूल्हा झोंके चांवर हाथ : चांवर माने हाथ का छोटा पंखा। बीबीजी चूल्हे पे खाना बनाने बैठी हैं और चांवर हाथ में है। काम में नज़ाकत दिखाना।

चूल्हा फूँके और दाढ़ी रखे : यदि आपकी दाढ़ी लम्बी होगी तो इस बात का बहुत खतरा है कि चूल्हा फूंकते हुए जल जाए। आप को सलाह दी गई है कि चूल्हा फूंकना है तो दाढ़ी न रखें।

चूल्हे का राव लाव लाव ही पुकारे : चूल्हे का देवता हमेशा लकड़ी मांगता है।

चूल्हे को आग से क्या डराना : जिन परेशानियों को कोई रोज झेलता हो, उनसे उसे क्या डराना।

चूल्हे पर तलवार चलाई, तोऊ चुहिया मार न पाई : किसी छोटे से काम को करने के लिए बहुत बड़ा और मूर्खतापूर्ण प्रयास करना।

चूल्हे में थूके और सुख की आस करे : चूल्हे में थूकना अर्थात किसी अत्यंत आवश्यक वस्तु का निरादर करना। ऐसा करने वाला व्यक्ति कभी सुखी नहीं हो सकता।

चूहा छोटा और पूँछ बड़ी : अधिक दिखावा करने वाले व्यक्ति का मजाक उड़ाने के लिए।

चूहा बिल न समा सके कानौ बांधा छाज (पूँछ में बाँधा छाज) : बिल इतना छोटा कि चूहा उस में घुस नहीं सकता है ऊपर से कान में छाज बाँध लिया। बहुत कम सामर्थ्य वाला व्यक्ति बहुत बड़ी जिम्मेदारी ले ले तो ऐसा कहते है।

चूहा मारे खेत जलाया : खेत या खलिहान में चूहे अधिक हों तो उन्हें मारने के लिए यदि कोई खेत ही जला दे। जैसे विरोधियों को मात देने के लिए यदि कोई नेता दंगे करा दे।

चूहे के चाम से जूते नहीं बनते : छोटे आदमी बड़ा काम नहीं कर सकते।

चूहे के जाए बिल ही तो खोदेगें : चूहे के जाए माने चूहे के बच्चे। कोई भी बच्चे वही काम करेंगे जो उन के माँ बाप करते आए हैं। किसी घटिया व्यक्ति के बच्चे कोई घटिया काम करें तो यह कहावत बोलते हैं।

चूहे के बिल में ऊंट नहीं समा सकता : किसी बहुत बड़े आयोजन के लिए बहुत छोटी जगह हो तो मजाक में ऐसा कहते हैं।

चूहे को गेहूँ मिलेगा तो कुतर कर ही खाएगा, पूड़ी नहीं बनाएगा : गरीब आदमी के पास आमोद प्रमोद मनाने के साधन नहीं होते। वह जैसे तैसे अपना पेट भरता है।

चूहे को सुपारी का टुकड़ा मिल गया तो खुद को पंसारी समझने लगा : पंसारी की दूकान में छोटी बड़ी सैकड़ों चीजें होती हैं जिनका वह हिसाब रखता है (देखा जाए तो यह बहुत कठिन काम है)। चूहे को सुपारी का टुकड़ा मिल गया तो समझने लगा कि वह भी पंसारी से कम नहीं है। कोई छोटा सा ज्ञान या वस्तु मिल जाने पर अपने को बहुत काबिल या बहुत बड़ा समझने लगना। जैसे इन्टरनेट पर एक बीमारी के विषय में एक लेख का कुछ हिस्सा पढ़ कर लोग अपने को डॉक्टर समझने लगते हैं।

चूहों की मौत बिल्ली का खेल : अहंकारी और अत्याचारी लोग मन बहलाते हैं और गरीब की जान पर बन आती है।

चेले लावें मांग कर बैठा खाए महंत, राम भजन का नाम है पेट भरन का पंथ : ढोंगी साधु, महंतों के लिए।

चैत्र चना, वैशाखे बेल, जेठ शयन अषाढ़े खेल : चैत में चना, वैशाख में बेल खाने तथा जेठ की दोपहरी में सोने एवं आषाढ़ में खेलकूद करने से शरीर स्वस्थ और निरोग रहता है।

चोट तभी करो जब लोहा गरम हो : लोहे को किसी आकार में ढालना हो तो उस पर तभी चोट करते हैं जब वह खूब गर्म होता है। किसी आदमी को दूसरे के खिलाफ भड़काना हो तो उस से तभी बात करनी चाहिए जब वह गुस्से में हो। इंग्लिश में कहावत है – Strike the iron when it is hot.

चोट पर चोट, भाग्य का खोट : भाग्य खराब हो तो एक परेशानी में दूसरी जुड़ जाती है।

चोट्टी कुतिया, जलेबियों की रखवाली (रहबर) : जब कोई कीमती चीज़ किसी चोर प्रकृति के व्यक्ति को रखवाली के लिए दी जाए। जैसे भ्रष्ट नेता को सत्ता सौंपना।

चोर उचक्का चौधरी, कुटनी भई प्रधान : जब नीच और दुष्ट मनुष्यों के हाथ में सत्ता आ जाती है.

चोर और गठरी को कस कर बांधना चाहिए : चोर को पकड़ लिया जाए तो उस के हाथ पैर कस कर बांधना चाहिए नहीं तो वह मौका मिलते ही खोल कर भाग जाएगा। गठरी को कस कर नहीं बाँधोगे तो खुल जाएगी और सामान बिखर जाएगा।

चोर और चाँद का बैर : चोर को चांदनी अच्छी नहीं लगती।

चोर और ढोर का नाहिं भरोसा : चोर और जानवर का विश्वास नहीं करना चाहिए।

चोर और सांप दबे पर चोट करते हैं : अर्थ तो स्पष्ट है, लेकिन जो सीख इस के द्वारा दी गई है वह याद रखने योग्य है। चोर व सांप को पकड़ते समय भी और पकड़ने के बाद सावधान रहना चाहिए।

चोर का क्या दीवाला : दीवाला निकलने का डर उसे होता है जो पूँजी लगा कर या उधार ले कर व्यापार करता है। चोर की कोई पूँजी थोड़े ही लगी है।

चोर का चावल टके सेर (चोरी का बाजरा टके धड़ी) : चोरी का माल औने पौने दाम में बिकता है। धड़ी – पांच किलो।

चोर का माल चांडाल खाय : पुराने जमाने में चांडाल को सभी मनुष्यों में सब से निकृष्ट माना जाता था। कहावत में कहा गया है कि चोर से भी निकृष्ट आदमी चोर का माल खाएगा।

चोर का माल सब घर खाए, चोर अकेला मारा जाए : चोरी का फायदा उसके घर वाले भी उठाते हैं और माल खरीदने वाले भी, लेकिन सजा अकेले चोर को ही मिलती है।

चोर का साथी गिरहकट (चोर का भाई गंठकटा) : चोर की दोस्ती अपने जैसे लोगों से ही होती है।

चोर की दाढ़ी में तिनका : एक व्यक्ति की दुकान में चोरी हुई। दुकान के नौकरों पर शक था इसलिए सब नौकरों को इकठ्ठा किया गया। तभी किसी ने जोर से कहा – “चोर की दाढ़ी में तिनका।” जिस ने चोरी की थी वह अपनी दाढ़ी टटोल कर देखने लगा और पकड़ में आ गया। कहावत का अर्थ है कि जिसने चोरी की होती है उसके मन में चोर होता है।

चोर की नज़र गठरी पर : चोर की नज़र उस माल पर ही रहती है जिसे वह चुरा सकता है।

चोर की नार जनम भर दुखिया : चोर की पत्नी हमेशा दुखी रहती है। क्योंकि पहली बात तो चोर रात रात भर बाहर रहता है और पकड़ा जाए तो उसे जेल या मृत्युदंड मिलता है।

चोर के घर चोरी करना चोरी नहीं कहलाता : अर्थ स्पष्ट है।

चोर के घर मोर : चोर के घर में कोई चोरी कर ले तो यह कहावत बोलते हैं।

चोर के पेट में गाय, आप ही आप रम्भाय : यहाँ चोर का अभिप्राय उस व्यक्ति से है जिसने चोरी से गोमांस खाया हो। उसे अपने पाप की सदैव ग्लानि रहती है।

चोर के पैर कितने : चोर बहुत डरपोक होता है।

चोर के हजार बुद्धि। चोर बनने के लिए बुद्धिमान होना जरूरी है।

चोर को कहे घुसो और कुत्ते को कहे भूँसो : ऐसे बहरूपिये नेताओं के लिए जो अपराधियों से सांठ गांठ करते हैं और पुलिस प्रशासन को उनसे निपटने के लिए निर्देश देते हैं।

चोर को न मारो, चोर की माँ को मारो : चोर को मारने से अधिक लाभ नहीं होगा, नए चोर पैदा हो जाएंगे। समाज से उन कारणों को दूर करना चाहिए जिन से लोग चोर बनते हैं।

चोर को पकड़ने के लिए चोर रखो : किसी चोर को पकड़ना हो तो किसी ऐसे आदमी को इस का जिम्मा दो जो चोरी करने के सारे दांवपेंच जानता हो।

चोर को पकड़िये गाँठ से, छिनाल को पकड़िये खाट से : चोरी सिद्ध करनी हो तो चोर को गाँठ (चोरी के माल) के साथ पकड़ना चाहिए और किसी किसी दुश्चरित्र स्त्री को पकड़ना हो तो उसे पर पुरुष के साथ ही पकड़ना चाहिए।

चोर गठरी ले गया, बेगारियों को छुट्टी मिली : जमींदारी के जमाने में गरीब लोगों को पकड़ कर उनसे मुफ्त में काम कराया जाता था जिसे बेगार करना कहते थे। जिस काम के लिए लोग पकड़ कर लाए गए थे उस से सम्बन्धित सामान चोर ले गए तो उन लोगों को काम से छुट्टी मिल गई।

चोर चाहे हीरे का हो या खीरे का, चोर चोर ही होता है : अर्थ स्पष्ट है।

चोर चूके उठाईगीर चूके पर चुगल न चूके : चोर चोरी करने से चूक सकता है, उठाईगीर सामान उठाने से चूक सकता है पर चुगलखोर चुगली करने से नहीं चूकता।

चोर चोर मौसेरे भाई : चोर लोग एक दूसरे से सहानुभूति रखते हैं। चोरों में आपस में मिलीभगत होती है।

चोर चोरी से जाय, हेरा फेरी से न जाय : चोर सजा के डर से या समझाने से चोरी करना तो छोड़ सकता है लेकिन उसकी हेराफेरी करने की आदत नहीं जा सकती इस कहावत के द्वारा यह सीख भी दी गई है कि कोई चोर कितना भी कहे कि उसने चोरी छोड़ दी है उसका विश्वास नहीं करना चाहिए।

चोर जाने चोर की सार (चोर को चोर ही पहचाने) : चोर को चोर ही सबसे जल्दी पहचान सकता है । चोर के भेद चोर ही जान सकता है।

चोर जुआरी गंठकटा, जार अरु नारि छिनार; सौ सौगंधें खायं जो, घाघ न कर एतबार : चोर, जुआरी, जेबकतरा, परस्त्रीगामी पुरुष और दुश्चरित्र स्त्री, ये सब अगर सौ सौ कसमें खाएं तब भी इनका विश्वास नहीं करना चाहिए। जार : परस्त्रीगामी।

चोर न जाने मंगनी के वासन : चोर को चोरी से मतलब है, जिन बरतनों को वह चुरा रहा है वे मँगनई के हैं इससे उसे क्या मतलब।

चोर न प्यारी चाँदनी, माँगे कारी रात (चोरहिं चांदनी रात न भावे) : चोरों को चांदनी अच्छी नहीं लगती। गलत काम करने वाले लोग भ्रष्टाचारी शासक को पसंद करते हैं क्योंकि उन्हें अपने काम में आसानी होती है।

चोर नारि जिमि प्रकट न रोई : चोर के पकड़े जाने पर या उसे सजा मिलने पर उसकी पत्नी सबके सामने रो भी नहीं सकती, छिप के रोती है।

चोर पेटी ले गया तो क्या हुआ, चाबी तो मेरे पास है : अपनी मूर्खतापूर्ण सोच से, नुकसान न होने के प्रति आश्वस्त रहने वाले लोगों के लिए।

चोर बन्दीखाने, तलवार सिरहाने : चोर पकड़ लिया गया, अब तलवार उठा कर रख दो।

चोर लाठी दो जने और हम बाप पूत अकेले : कोई दो बहादुर बाप बेटे चोर को देख कर वहाँ से भाग खड़े हुए। अब गाँव के लोगों को बता रहे हैं कि कितनी कठिन परिस्थिति थी – चोर के पास लाठी थी यानि वो दो जने थे और हम बाप बेटा अकेले थे। जब कोई व्यक्ति अपनी कायरता छिपाने के लिए परिस्थितियों को कठिन बता रहा हो तब यह कहावत कही जाती है।

चोर वही जो पकड़ा जाय : चोरी तो बहुत लोग करते हैं, जो पकड़ा जाए वही चोर कहलाता है।

चोर सब घर ले मरे : चोर अंत में खुद तो फंसता ही है सारे घर वालों को फंसा देता है।

चोर सब जग में चोरी करे पर घर में सच बोले : चोर सब जगह चोरी करता है पर अपने घर में सच बोलता है

चोर से कही चोरी करियो, शाह से कही जागते रहियो (चोर से कहे तू घुस, कुत्ते से कहे तू भौंक, और शाह से कहे तू जाग) : अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए सबसे अलग अलग तरह की बात करना और सबको खुश करने की कोशिश करना। इंग्लिश में इस तरह की एक कहावत है – To run with the hare and hunt with the hound.

चोर ही जाने चोर की घात : चोर की चालाकी चोर ही समझ सकता है।

चोरी ऊपर से सीना जोरी (चोरी और मुंहजोरी) : एक तो गलत काम करना और ऊपर से उसको सही ठहराने के लिए बहस करना।

चोरी करनी आसान, माल पचाना मुश्किल : चोरी के माल को ठिकाने लगाने में बहुत मुश्किलें आती हैं।

चोरी करी निहाई की, किया सुई का दान, ऊँचे चढ़ि चढ़ि देखता, केतिक दूरि विमान : आजकल के धनाढ्यों और महात्माओं के लिए यह कहावत है। (निहाई माने लोहे की बहुत बड़ी सी सिल)। समाज के लोगों को लूट कर खूब धन इकट्ठा किया और उसमें से जरा सा दान कर दिया। अब ऊंचे चढ़ कर देख रहे हैं कि स्वर्ग से विमान हमें लेने आता होगा।

चोरी का धन मोरी में जाता है : मोरी माने नाली। चोरी का धन व्यर्थ ही जाता है।

चोरी का माल सब कोई खाए, चोर की जान अकारथ जाए : चोरी के माल में से बहुत लोग खाते हैं (चोर के घर वाले, पुलिस वाले, चोरी का माल खरीदने वाले आदि), पर पकड़े जाने पर सजा अकेले चोर को मिलती है।

चोरी का माल, कुछ धर्म खाते बाकी हलाल : हलाल माने जो धर्म सम्मत हो। समाज में ढोंगी लोग चोरी के माल में से कुछ तथाकथित धार्मिक कार्यों में खर्च कर देते हैं और बाकी से अपनी तिजोरी भर लेते हैं।

चोरी की कमाई, मोरी में गँवाई : मोरी – नाली। चोरी का माल व्यर्थ जाता है।

चोरी के बाद चौकसी (चोरी पीछे हुशियारी)। चोरी के बाद पहरेदारी करने से क्या फायदा।

चोरी सा रुजगार नहीं जो मार न होवे, जुए सा व्यापार नहीं जो हार न होवे : अगर मार खाने का डर न हो तो चोरी जैसा कोई और रोजगार नहीं है और हारने का डर न हो तो जुए जैसा कोई व्यापार नहीं है।

चोरों की बरात में अपनी अपनी होशियारी : जहाँ सभी चोर हों वहाँ एक दूसरे से होशियार रहना पड़ता है।

चोरों के ब्याह में गिरहकट मेहमान : जैसा दूल्हा होगा वैसे ही बराती होंगे।

चोरों के रखवाले चोर : चोरों का साथ देने वाले भी चोर की श्रेणी में आते हैं।

चोरों के हवाले रखवाली : 1. रखवाली का काम चोर के हवाले कर दोगे तो चोरी होगी ही। 2. जिस से चोरी का डर हो उससे ही रखवाली को कह दो तो चोरी नहीं होगी।

चोरों को सारे नजर आते हैं चोर : जो खुद चोर होते हैं वे सब को चोर समझते हैं।

चोरों में भी इमानदारी होती है : चोर भी अपने धंधे के प्रति ईमानदार होते हैं। इंग्लिश में कहावत है – There is honour among thieves.

चौबे जी छब्बे बनने गए थे दुबे बन कर लौटे : जैसे थे उससे बड़ा बनने गए थे पर छोटे हो के लौटे। फायदे के लालच में नुकसान उठाना।

चौबे मरें तो बंदर हों, बंदर मरें तो चौबे हों : चौबे लोगों से चिढ़ने वाले किसी व्यक्ति का कथन।

चौमासे का गोबर, लीपने का न थापने का। (बिल्ली का गू, लीपने का न पोतने का) : बरसात के मौसम में गाय भैंस कहीं गोबर करती हैं तो वह पानी के कारण फ़ैल जाता है और किसी काम का नहीं रहता। जो चीज़ किसी काम की न हो उस के प्रति उपेक्षा पूर्ण कथन।

चौमासे का ज्वर और राजा का कर : इन दोनों से मुश्किल से निजात मिलती है।

चौमासे में लोमड़ी जो नहिं खोदे गेह, निस्चय करके जान लो नहिं बरसेगो मेह : चौमास आने पर यदि लोमड़ी खोद कर अपना घर नहीं बनाती तो समझ लो वर्षा नहीं होगी।

चौराहे पर बैठे लड़कों और सड़क पर बैठे कुत्तों को कभी न छेड़ें : अर्थ स्पष्ट है, बहुत व्यवहारिक बात है। कहावतों की उपमाएं भी कमाल की होती हैं।

( छ )

छज्जू गईले छौ जना, छज्जू अइले नौ जना : (भोजपुरी कहावत) छः आदमियों को ले कर गए और नौ को ले कर लौटे। व्यर्थ के लोगों को इकठ्ठा करने वाले के लिए।

छज्जे की बैठक बुरी, परछाईं की छाँह, धोरे का रसिया बुरा, नित उठ पकरे बांह : कारण कुछ भी हों पहले के लोग छज्जे पर बैठने को बुरा मानते थे। (छज्जा टूट कर गिरने का डर होता है, शोहदे वहाँ बैठ कर ओछी हरकतें करते हैं आदि)। परछाईं की छाँव भी बुरी होती है क्योंकि वह स्थाई नहीं होती। धोरे का रसिया माने बगल में रहने वाला प्रेमी। वह इसलिए बुरा है क्योंकि वह जब तब उठ कर बांह पकड़ कर परेशान करता है।

छठी का दूध याद आ गया : कुछ नवजात शिशुओं के स्तन से थोड़े से दूध का स्राव होता है। संभवत: जन्म से पहले माँ के रक्त से जो हॉर्मोन शिशु के रक्त में पहुँचते हैं उनके प्रभाव से ऐसा होता है। कहीं कहीं पर यह प्रथा है कि छठी संस्कार के समय शिशु के स्तनों को दबा कर इस दूध को निकाल देते हैं। इससे शिशु को दर्द होता है और वह रोता है। किसी व्यक्ति को बहुत अधिक परेशानी का सामना करना पड़े तो कहते हैं कि फलाने को छठी का दूध याद आ गया।

छठी की तेरईं हो गई : ख़ुशी अचानक मातम में बदल गई। (ईद मुहर्रम हो गई)।

छठी के राजा : जो छठी के दिन ही राजा बन गए। (जैसे किसी बड़े नेता या राजा का बेटा)। इंग्लिश में कहते हैं – born with silver spoon in mouth.

छड़ी चौदहवाँ रत्न है : डंडा बड़ी अनमोल चीज़ है। डंडे के डर से ही सब काम करते हैं।

छत्तीस प्रकार के व्यंजन में बहत्तर प्रकार के रोग : अधिक खाने और गरिष्ट भोजन खाने वालों को सावधान किया गया है कि ऐसे भोजन से तरह तरह के रोग होते हैं।

छत्रपती, घटे पाप बढ़े रती : बच्चों को छींक आने पर बोलते हैं। (रति का अर्थ प्रेम से है)

छत्री का शोहदा, कायस्थ का बोदा, बामन का बैल, बनिया का ऊत : क्षत्रिय का बेटा अगर लफंगा हो, कायस्थ का अनपढ़, ब्राह्मण का मूर्ख और बनिए का बेटा ऊत हो तो ये किसी काम के नहीं होते।

छत्री के छै बुधी, बामन के बारह, अहीर के एके बुधी, बोला तो मारूंगा : (भोजपुरी कहावत) क्षत्रिय के छः बुद्धि होती हैं और ब्राह्मण की बारह। अहीर की एक ही बुद्धि होती है, बोलोगे तो मारूँगा।

छदाम का छाज, छह टका गठाई : जब किसी चीज को ठीक कराने (repair) की कीमत वस्तु के मूल्य से अधिक मांगी जा रही हो तो।

छप्पन भोग छोड़ कर कूकुर, हड्डी को ही दौड़े : नीच प्रवृत्ति के मनुष्य को घटिया चीजें ही भाती हैं।

छप्पर पर फ़ूस नहीं, ड्योड़ी में नक्कारा : घर में कुछ नहीं है बाहर बहुत सा दिखावा कर रहे हैं। नक्कारा – नगाड़ा।

छलनी कहे सूईं से तेरे पेट में छेद : जिस छलनी में खुद बहुत सारे छेद हैं वह सुई से कह रही है कि तेरे पेट में छेद है। जिसमें खुद बहुत सी कमियाँ हों वह दूसरे की छोटी सी कमी का मज़ाक उड़ाए तो।

छंटाक भर चून चौबारे रसोई (छंटाक भर सतुआ और मथुरा में भंडारा) : बहुत थोड़े साधन में बहुत अधिक दिखावा। घर में जरा सा आटा है और घर के बाहर रसोई लगा रखी है।

छछूंदर के सर में चमेली का तेल : अयोग्य व्यक्ति को विशेष सुविधाएं।

छाछ भी दे और पाँव भी लगे : गाँव में जिन के पास अधिक गाय भैसें हों वे दही में से माखन निकाल कर छाछ बाँट दिया करते थे, पर वे छाछ लेने वाले गाँव के बुजुर्गों का पूरा आदर भी करते थे।

छाछ मांगन जाए और मलैया लुकाए : माँगना मजबूरी है पर मांगने में शर्म भी आ रही है। लुकाए – छिपाए।

छाजा जी का छाज करे, राजा जी का राज करे : एक बाप के दो बेटे थे छाजा और राजा। छाजा के वंशज छाज बनाते हैं और राजा के वंशज राज करते हैं। (छाज बनाने वाले अपने आप को श्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए ऐसा बताते हैं)।

छाती पर आम गिरा, कोई मुंह में डाल दे तो खा लूँ : आलसी होने की पराकाष्ठा।

छाती पे बाल नहीं, भालू से लड़ाई : अपने से बहुत अधिक शक्तिशाली से वैर मोल लेना।

छांड़ शतरंज, जा में रंज बड़ो भारी है : रंज – दुख। शतरंज के खेल में समय बहुत नष्ट होता है और व्यायाम भी बिल्कुल नहीं होता, इसलिए इसको नहीं खेलना चाहिए।

छिनरा, चोर, जुआरी, इनसे गंगा हारीं : दुश्चरित्र व्यक्ति, चोर और जुआरी। इनके पाप गंगा मैया भी नहीं धो सकतीं।

छिनाल का बेटा, बबुआ रे बबुआ : चरित्रहीन स्त्री के बच्चे को सब खिलाते हैं।

छिनाल डायन से भी बीस (डायन से छिनाल बुरी) : डायन कितनी भी बुरी क्यों न हो, चरित्रहीन स्त्री उससे भी गई गुजरी होती है।

छिप के चलें छिपक के काटें, का जानें पर पीरा, जे दुई जात कहाँ से आईं कायथ और खटकीरा : खटकीरा – खटमल। कायस्थ की तुलना खटमल से की गई है जो छिप कर काटता है।

छिपाओ उमर और कमाई, चाहे पूछे सगा भाई : यह तो सही है कि अपनी वास्तविक कमाई किसी को नहीं बतानी चाहिए (सगे भाई को भी नहीं) लेकिन उमर छिपानी चाहिए इस बात में संशय है, विशेषकर भाई से आप उमर कैसे छिपा सकते हैं।

छिमा बड़न को चाहिए, छोटन को उत्पात (का रहीम हरि को घट्यो, जो भृगु मारी लात) : छोटे लोग कोई गलती करें या उद्दंडता करें तो बड़े व्यक्ति का बड़प्पन इसी में है कि उन्हें क्षमा कर दे। इंग्लिश में कहावत है – To err is human, to forgive divine.

छी-छी गप-गप : किसी खाने की चीज़ को देख कर घिनिया भी रहे हैं और गपा गप खाए भी जा रहे हैं। किसी वस्तु को खराब भी कहना और उसका उपयोग भी करना।

छींकत नहाइए, छींकत खाइए, छींकत रहिए सोए, छींकत पर घर न जाइए, चाहे सुवर्ण का होए : छींकते हुए और सब काम किए जा सकते हैं पर छींक आ जाने पर किसी के घर नहीं जाना चाहिए (चाहे वह सोने का बना हुआ ही क्यों न हो)। पहले के लोग छींक आने को अपशगुन मानते थे।

छींकते की नाक नहीं काटी जाती : किसी छोटी सी गलती के लिए बड़ी सजा नहीं दी जाती (विशेषकर छींक आ जाना तो किसी के वश में भी नहीं है)।

छींकते गए, झींकते आए : किसी काम के लिए जाते समय छींक आ जाए तो काम नहीं होता और झींकते हुए लौटना पड़ता है।

छींकते ही नाक कटी : किसी छोटी सी गलती से बहुत बड़ा नुकसान हो जाना।

छींका टूटा और बिल्ली लपकी : दुष्ट लोग मौका देखते ही अपना दाँव लगाते हैं।

छींकें कोई, नाक कटावे कोई : गलती कोई करे और सजा कोई और भुगते।

छुटी घोड़ी भुसौरे खड़ी : घोड़ी छूटते ही भूसे की कोठरी पर जा कर खड़ी हो जाती है।

छुरी गिरी खरबूजे पर तो खरबूजा हलाल, खरबूजा गिरा छुरी पर तो भी खरबूजा हलाल : शाब्दिक अर्थ तो स्पष्ट है। कहावत के रूप में अर्थ यह है कि कुछ भी होनी या अनहोनी हो नुकसान हमेशा कमज़ोर आदमी का होता है, जबर को कुछ नहीं होता।

छुरी छड़ी छतरी छलो, सदा राखिए संग। छलो – छल्ला : ये चारों चीजें संकट में काम आती हैं इसलिए साथ रखना चाहिए।

छूछा कोई न पूछा : गरीब आदमी का आदर-सत्कार कोई नहीं करता.

छूछी हांडी बजे टना टन : खाली हंडिया पर हाथ मारो तो आवाज करती है। जिसमें ज्ञान न हो वह व्यर्थ की बकवास बहुत करता है।

छूछे फटके उड़ उड़ जाए : किसी कठिनाई का सामना करने में जो अंदर से खोखला है वह असफल हो जाएगा। जैसे सूप से फटकने पर खोखला अनाज और छिलके उड़ जाते हैं।

छूटा सो बैल भुसौडी में : इसका शाब्दिक अर्थ है कि कोल्हू में जुता हुआ बैल छूटते ही भूसे की कोठरी की ओर भागता है। तात्पर्य है कि मेहनत मजदूरी करने वाले को भी भूख लगती है, वह कोई मशीन नहीं होता।

छै चावल और नौ मशक पानी : आजकल के लोगों ने मशक नहीं देखी होगी। यह एक चमड़े की बहुत बड़ी थैली होती थी जिसमे पानी भर के भिश्ती (पानी भरने वाले) लोग कमर से बाँध के ले जाते थे। कहावत का अर्थ है छोटे से काम में बहुत लागत लगाना।

छोकरा दिखाय के डोकरा ब्याह दियो : धोखे का काम। शादी के लिए जवान लड़का दिखाया और शादी बुड्ढे से कर दी।

छोटा मुँह, बड़ा निवाला : 1. कोई छोटा आदमी बड़ा काम करने की कोशिश करे तो। 2. कोई अदना सा कर्मचारी बड़ी रिश्वत मांगे तो।

छोटा मुंह और ऐंठा कान, यही बैल की है पहचान : अच्छे बैल के लक्षण हैं कि उसका मुंह छोटा और कान मुड़े हुए होते हैं।

छोटा सबसे खोटा (छोटा उतना ही खोटा) : एक आम विश्वास है कि नाटा आदमी दुष्ट होता है।

छोटा सा छेद जहाज डुबावे : एक छोटी सी गलती बहुत बड़े काम को बिगाड़ सकती है।

छोटी भेंट दोनों घर लजाए : भेंट अगर अवसर और मर्यादा के अनुकूल न हो तो देने वाला और लेने वाला दोनों लज्जित होते हैं।

छोटी मछली उछले कूदे, बड़ी जाल में फंसे (छोटी मछली उछले कूदे, रोहू पकड़ी जाय) : किसी तालाब में मछलियाँ होने की सूचना छोटी मछलियों की उछल कूद से मिलती है, पर जाल डाला जाता है तो फंसती हैं बड़ी मछलियाँ।

छोटी मोटी कामिनी, सब ही विष की बेल, बैरी मारे दांव से, यह मारे हँस खेल : स्त्रियों को ले कर किसी दिलजले द्वारा कही हुई कहावत। औरत चाहे छोटी हो या मोटी, सब विष की बेल होती हैं। दुश्मन तो आपको दाँव से मारता है पर ये हँस खेल के मारती हैं।

छोटी सी गौरैया, बाघन से नज़ारा मारे : नज़ारा मारे – मुकाबला करे, बाघन से – बाघों से। कोई बहुत छोटा आदमी बड़े आदमी से दुश्मनी मोल ले तो।

छोटी सी बछिया, बड़ी सी हत्या : पुराने जमाने में किसी हिन्दू के हाथों धोखे से भी गाय की हत्या हो जाए तो समाज बहुत बड़ा दंड देता था, (बछिया की हत्या हो जाए तो भी)। छोटा अपराध करने में अगर बहुत बड़ी सजा मिले।

छोटी हो या बड़ी, मिर्च तो तीखी ही होती है : कहावत के द्वारा स्त्री जाति पर व्यंग्य किया गया है।

छोटे बिगड़ें, देख बड़ों को : बड़े लोगों को कोई गलत काम करने से पहले यह ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे वही सीखते हैं जो वे बड़ों को करते देखते हैं।

छोटे मुँह बड़ी बात। कोई छोटा बच्चा या छोटा आदमी बड़ों जैसी बात कहे तो : अपनी विनम्रता दिखाने के लिए भी लोग इस तरह बोलते हैं कि साहब! छोटे मुँह बड़ी बात कह रहा हूँ।

छोटे सींग औ छोटी पूंछ, ऐसा बरधा लो बेपूछ : बरधा – बैल। अच्छे बैल की पहचान बताई गई है।

छोटो बरतन छन में छलके : छन – क्षण। जिस प्रकार छोटे बर्तन में थोड़ा भी पानी हो तो छलकने लगता है उसी प्रकार छोटे व्यक्ति के पास थोड़ा धन आ जाए तो वह बहुत दिखावा करने लगता है।

छोड़ चले बंजारे की सी आग : बंजारे कुछ समय एक स्थान पर रह कर फिर दूसरे स्थान के लिए चले जाते हैं। जाते समय वे कुछ टूटी फूटी वस्तुएँ और कहीं कहीं जलती हुई आग और राख छोड़ जाते हैं। कोई व्यक्ति कुछ दिन कहीं रुके और फिर कुछ निशानियाँ छोड़ कर चला जाए तो यह कहावत कही जाती है।

छोड़ जाट, पराई खाट : जाटों से मालूम नहीं लोगों को क्यों दुश्मनी थी, उनका मजाक उड़ाने वाली बहुत सी बेतुकी कहावतें बनाई गई हैं। जाट से कहा जा रहा है कि दूसरे की चीज़ पर कब्ज़ा छोड़ दे।

छोड़ झाड़, मुझे डूबन दे : एक महिला तालाब में डूब कर जान देने का नाटक कर रही है। वहाँ कुछ लोग उसे बचाने आ जाते हैं, तो उन्हें यह दिखा रही है कि वह झाड़ में अटक गई है और झाड़ से कहती है झाड़ मुझे छोड़ दे, मुझे डूबने दे। नाटकबाज लोगों के लिए।

छोड़े खाद जोत गहराई, फिर खेती का मज़ा दिखाई : खेत को गहरा जोत कर उस में खाद डालनी चाहिए तभी खेती का मजा आता है।

छोड़े गाँव से नाता क्या : जो जगह छूट गई उससे मोह नहीं करना चाहिए।

( ज )

जैसा देवर वैसी भौजी : (भोजपुरी कहावत) जैसा देवर वैसी भाभी। दोनों एक से ठिठोली करने वाले।

जैसी माई वैसी धिया, जैसी काकड़ वैसी बिया : (भोजपुरी कहावत) धिया – बेटी, बिया – बीज। जैसी माँ वैसी ही बेटी, जैसी ककड़ी वैसा बीज।

जग कैसो, जग मों सो : जैसा मेरा चिंतन है संसार मुझे वैसा ही दिखाई देता है। जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखि तिन तैसी।

जग जीतना आसान पर मन जीतना मुश्किल : संसार को जीतना इतना कठिन नहीं है जितना अपने मन को जीतना।

जग जीता मोरी कानी, वर ठाड़ होए तब जानी : जब दो चतुर लोग एक दूसरे को बेबकूफ बनाने की कोशिश करें तो। एक कानी लड़की की शादी वर पक्ष को बिना बताए तय कर दी गई। लड़का लंगड़ा था यह बात लड़के वाले छिपाए रहे। शादी की रस्मे पूरी होने के बाद लड़की के पिता ने कहा – मेरी कानी ने दुनिया जीत ली, तो लड़के का पिता बोला – वर खड़ा होगा तो मालूम पड़ेगा।

जग में देखत ही का नाता : दुनिया में जो भी नाते हैं वे सब जब तक मनुष्य रहता है तभी तक हैं।

जगत कहे भगत पगला, भगत कहे जगत पगला : भक्त को देखकर संसार के लोग सोचते है कि यह व्यक्ति तो पागल है। और इधर भक्त संसार के लोगो को देखकर सोचता है कि ये सब लोग पागल है।

जगन्नाथ का भांटा, जिसमें झगड़ा न टांटा : जगन्नाथ जी का भात सब के लिए सुलभ है, इसमें जाति वर्ण का कोई झगड़ा नहीं है। अर्थ है कि ईश्वर के दरबार में सब बराबर हैं।

जगन्नाथ को भात, जगत पसारे हाथ : उड़ीसा के जगन्नाथ जी के मन्दिर में सभी को भात का प्रसाद मिलता है। अर्थ है कि ईश्वर के सम्मुख सभी हाथ फैलाते हैं।

जजमान के जौ, जजमान का घी, बोल बराहमन स्वाहा : दूसरे के माल को बर्बाद करने में किसी को कष्ट नहीं होता।

जजमान चाहे स्वर्ग जाए या नरक को, मुझे अपनी दही पूड़ी से काम : स्वार्थी ब्राह्मणों के लिए।

जटा बढ़ाए हरि मिले तो बरगद स्वर्ग सिधाये : हिन्दू धर्म के अंध विश्वास पर व्यंग्य।

जड़ काटते जाएं, पानी देते जाएं। (जड़ खोदते जाएं, पानी देते जाएं) (नीचे से जड़ खोदें, ऊपर से पानी दें) : मूर्खता पूर्ण कार्य के लिए भी कह सकते हैं और धोखेबाज़ के लिए भी कह सकते हैं जो भीतर से आपकी जड़ काटता है और ऊपर से दिखाने के लिए पानी देता है।

जड़ काटे वा डार की, बैठे जाही डार : जिस डाल पर बैठा है उसी की जड़ काट रहा है। मूर्ख व्यक्ति।

जड़ से बैर, पत्तों से यारी : मूर्खता पूर्ण सोच। अगर जड़ को नुकसान पहुँचाओगे तो पत्ते तो अपने आप खत्म हो जाएंगे।

जदपि जग दारुन दुःख नाना, सब तें कठिन जाति अपमाना : जाति सूचक गाली दे कर किसी का अपमान नहीं करना चाहिए। नाना प्रकार के – बहुत से।

जनते समय मरे तो जमाई के सर न पड़े : किसी स्त्री की ससुराल में रहते हुए मृत्यु हो जाए तो दामाद को ही दोषी माना जाता है। केवल एक अपवाद है, यदि मृत्यु प्रसव के समय हो।

जननी जन तो पूत जन कै दाता कै सूर, कै तो रह जा बाँझ ही काहे गंवाए नूर : महिलाओं से कहा जा रहा है कि पुत्र उत्पन्न करो तो ऐसा करो जो दाता हो या शूरवीर हो। वरना बाँझ रहना अच्छा है, प्रसव कर के अपना सौन्दर्य मत गंवाओ।

जनम के दुखिया करम के हीन, तिनको दैव तिलंगवा कीन : तिलंगा – अंग्रेजी फ़ौज का हिन्दुस्तानी सिपाही। जो हिन्दुस्तानी लोग अंग्रेजों की फ़ौज में नौकरी करते थे, उनसे बाकी हिन्दुस्तानी घृणा करते थे। ऐसे ही किसी व्यक्ति का कथन।

जनम के दुखिया, नाम सदासुख : नाम के विपरीत गुण।

जनम के मंगता, नाम दाताराम : ऊपर वाली कहावत की भांति।

जनम के साथी हैं, करम के साथी नहीं : जन्म एक ही घर में हुआ है पर कर्म अलग अलग हैं।

जनम जनम का मारा बनिया, अजहूँ पूर न तौले : पाप कर्म करने के चक्कर में बनिये को बार बार जन्म लेना पड़ता है पर वह अब भी पूरा नहीं तौल रहा। खाली बनिया ही नहीं संसार के हर व्यक्ति के साथ यह समस्या है।

जनम न देखी बोरिया, सुपने आई खाट : जिस गरीब ने जन्म से बोरी भी नहीं देखी वह खाट के सपने देख रहा है। अपनी हैसियत से बहुत ऊंचे सपने देखना। आजकल के बच्चों ने बोरी और खाट नहीं देखी होंगी।

जने–जने की लकड़ी, एक जने का बोझ : सब लोग मिल कर थोड़ी थोड़ी सहायता करें तो एक व्यक्ति की बहुत बड़ी सहायता हो जाती है। इंग्लिश में कहावत है – Many hands make work light.

जने-जने से मत कहो, कार भेद की बात : अपने रोजगार और भेद की बात हर एक व्यक्ति से नहीं कहनी चाहिए.

जन्म के दुखी, नाम चैनसुख : गुण के विपरीत नाम।

जब अपना पैसा खोटा तो परखैय्या का क्या दोष (अपना सोना खोटा तो सुनार का क्या दोष) : एक जमाना था जब सिक्कों की बड़ी कीमत हुआ करती थी। उस समय धातु के सिक्कों की नकल में रांग के नकली सिक्के बनाए जाते थे, जो खोटे सिक्के कहलाते थे। समझदार लोग फौरन यह परख लिया करते थे कि यह सिक्का खोटा है। यदि आपके मित्र या संबंधी में कुछ कमियां हो और कोई उसे बुरा कह रहा हो तो आप यही कहावत कह कर चुप रह जाते हैं।

जब अपनी उतार ली तो दूसरे की उतारने में क्या लगता है : जिस की खुद की इज्जत उतर चुकी हो उसे दूसरे की इज्जत उतारने में देर नहीं लगती।

जब आया देही का अन्त, जैसा गदहा वैसा सन्त : सज्जन और दुर्जन सभी को मरना पड़ता है और मरते समय सब एक से हो जाते है.

जब आवे बरसन को चाव, पुरबा गिने न पछवा बाव : जब पानी बरसने को आता है तो पुरवा पछवा कोई भी हवा हो, बरसता ही है। बाव – वायु।

जब आवे संतोष धन सब धन धूरि समान : व्यक्ति के पास कितनी भी सम्पत्ति हो उसे सुख नहीं मिल सकता। सुख तभी मिलता है जब मन में संतोष करने की प्रवृत्ति हो। इसकी प्रथम पंक्ति है – गोधन, गजधन, बाजिधन और रतन घन खान।

जब एक कलम घसके तब बावन गाँव खसके : कचहरी और कायस्थों के लिए कहा गया है कि उनकी कलम चलने से कुछ का कुछ अनर्थ हो सकता है।

जब किस्मत मारे जोर, तब खेत निराएं चोर : एक गरीब किसान अपने खेत की निराई के लिए परेशान था। तभी कुछ चोर सिपाहियों से बचते हुए उसके खेत में आ छिपे। उन्होंने किसान से कहा कि हम आप का खेत निरा देते हैं, आप सिपाहियों से कह देना कि हम मजदूर हैं। इस तरह किसान का काम मुफ्त में हो गया।

जब कुर्सी अफसर पर सवार तब उल्टी गंगा बहे : जब अफसर पर पद का अहंकार हावी हो जाता है तो वह सारी मर्यादाएँ भूल जाता है।

जब गुण को गाहक मिले, तब गुण लाख बिकाई, जब गुण को गाहक नहीं, कौड़ी बदले जाई : कबीर कहते हैं कि जब गुण को परखने वाला ग्राहक मिल जाता है तो गुण की कीमत होती है। पर जब ऐसा ग्राहक नहीं मिलता, तब गुण कौड़ी के भाव चला जाता है।

जब जंगल जावे, तभी लोटा याद आवे : जंगल जाना – शौच के लिए खुले में जाना। आवश्यकता होने पर ही कोई चीज़ याद आती है यह कहने का हास्यप्रद तरीका।

जब जागो तभी सवेरा : अगर कोई गलती से गलत रास्ते पर चल पड़ा हो तो निराश नहीं होना चाहिए। अच्छा जीवन कभी भी शुरू किया जा सकता है।

जब डाकनवारो चढ्यो सर पे तब लाज कहाँ खर पे चढ़िबै की : डाकनवारो – बुलाने वाला, खर – गधा। प्रियतम से मिलने की धुन सर पे सवार है तो गधे पर चढ़ने में भी कैसी शर्म।

जब तक जीना तब तक सीना : जब तक मनुष्य जीवित रहता है तब तक उसे कुछ न कुछ करना ही पड़ता है। सीना – सिलाई करना।

जब तक तेरे पुन्य का बीता नहीं करार, तब तक तुझ को माफ़ है औगुन करे हजार : जब तक पिछले जन्मों के पुण्य समाप्त नहीं हो जाते तब तक ही तुम पाप कर्म कर के भी सुरक्षित हो। (इसके बाद तुम्हें दंड अवश्य मिलेगा)

जब तक दम है, तब तक गम है : जब तक जीवन है तब तक कुछ न कुछ दुःख लगे ही रहते हैं।

जब तक लालाजी पाग संभालेंगे, तब तक दरबार उठ जाएगा : श्रृंगार करने और तैयार होने में बहुत देर लगाने वालों पर व्यंग्य।

जब तक साँस, तब तक आस (जबलग सांसा, तबलग आसा) : कोई व्यक्ति गम्भीर रूप से बीमार हो तो यह कहावत कही जाती है, जब तक उस की सांस चल रही है तब तक उस के ठीक होने की आशा लगी रहती है।

जब दम लगा घटने, तो खैरात लगी बंटने : जब मृत्यु निकट आती है तो आदमी को दान धर्म सूझने लगता है।

जब दांत थे तब चने न थे, जब चने भए तो दांत नहीं : जब शरीर स्वस्थ होता है तो मनुष्य के पास आनन्द उठाने के साधन नहीं होते और जब तक साधन इकट्ठे हो पाते हैं तब तक शरीर अशक्त हो चुका होता है।

जब बरखा चित्रा में होए, सगरी खेती जावे खोय : घाघ कहते हैं कि यदि चित्रा नक्षत्र में वर्षा होती है तो खेती नष्ट हो जाती है।

जब बरसेगा उत्तरा, नाज न खावे कुत्तरा : उत्तरा नक्षत्र में वर्षा हो तो इतना अन्न पैदा होता है कि कुत्ते भी खाते खाते थक जाएं।

जब बाप का जूता बेटे के पैर में आ जाए तो उसको दोस्त समझना चाहिए : जब बेटा जवान हो जाए तो उससे मित्रवत व्यवहार करना चाहिए।

जब बिगड़े तब सुघड़ नर, क्या बिगड़ेगा कूढ़, मट्ठे का क्या बिगड़ना, जब बिगड़े तब दूध : जिसके पास कुछ है ही नहीं उसका क्या बिगड़ेगा।

जब बोलो तब राम ही राम, ठाली जिव्हा कौने काम : खाली जीभ के लिए सबसे अच्छा काम यह है कि वह बार बार राम राम बोले।

जब भए सौ तो भाग गया भौ : जब बहुत से लोग इकट्ठे होते हैं तो भय भाग जाता है।

जब भूख लगी भड़ुए को तो तंदूर की सूझी और पेट भरा तो दूर की सूझी : आम सांसारिक लोग पहले भूख और खाने की ही चिंता करते हैं। जब पेट भर जाए तो तभी कुछ और सोच पाते हैं।

जब माँ की चूड़ी बेटी के हाथ में आ जाए तो उसकी शादी कर देनी चाहिए : अर्थ स्पष्ट है।

जब मैं था तब गुरु नहीं, अब गुरु हैं मैं नाहिं, प्रेम गली अति सांकरी, जा में दो न समाहिं : जब मेरे अंदर अहंकार था तब मैं किसी को गुरु नहीं बना पाया, अब मुझे गुरु मिले हैं तो मेरा अहंकार चला गया है। प्रेम की गली बहुत पतली है, इस में गुरु और अहंकार दोनों नहीं समा सकते।

जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नांहि (सब अँधियारा मिट गया, दीपक रेखा मांहि) : कबीर दास जी कहते हैं कि जब मेरे अंदर अहंकार (मैं) था, तब मेरे ह्रदय में ईश्वर का वास नहीं था। और अब मेरे ह्रदय में ईश्वर का वास है तो अहंकार नहीं है।

जब राम तकें सब दुःख भगिहें : जब भगवान की कृपा दृष्टि होती है तो सब दुःख दूर हो जाते हैं।

जब लक्ष्मी तिलक करती हो, तब मुहँ धोने नहीं जाना चाहिए : अवसर को पहचान कर उचित कदम उठाना चाहिए।

जब लग चलें हाथ और पाँव, तब लग पूजे सारा गाँव : जब तक व्यक्ति के हाथ पाँव चलते हैं तभी तक उसका सम्मान होता है।

जब लाद ली तब लाज क्या : जब बेशर्मी लाद ली तो शर्म किस बात की।

जब साजन की होए लुगाई, तोड़े कोट और फांदे खाई : प्रेम में व्यक्ति किला तोड़ सकता है और खाई फांद सकता है।

जब हांडी पे ढकना न होवे तो बिलैया की लाज काहे चाहो : हंडिया पे ढक्कन न होगा तो बिल्ली शरम क्यों करेगी। अपनी चीज की सुरक्षा नहीं करोगे तो चोर चोरी क्यों नहीं करेगा।

जब ही तब ही दंडै करे, ताल नहाय ओस में परै, दैव न मारे आपै मरे : जो कभी कभी ही व्यायाम करता है और तालाब में नहा कर ओस में लेटता है उसे भगवान नहीं मारते, वह खुद ही मर जाता है।(घाघ कवि)

जब होवें करमन के फेर, मकड़ी जाल में फंस जाए शेर : (बुन्देलखंडी कहावत) भाग्य का फेर हो तो शेर भी मकड़ी के जाल में फंस सकता है। भाग्य सब से प्रबल है।

जब होवें बिधना विपरीत तब ऊँट चढ़े पर कूकर काटे : जब भाग्य विपरीत हो तो ऊँट पर बैठे व्यक्ति को भी कुत्ता काट सकता है।

जबर की जोय महतारी लागे, निबल की जोय मोरी साली : बलवान की पत्नी माँ जैसी लगती है और निर्बल की पत्नी साली। अर्थ है कि कमजोर को सब दबाते हैं।

जबर के जबरई, अबरा के नियाव : (भोजपुरी कहावत) दबंग अपनी जबरदस्ती पर विश्वास रखता है और कमजोर न्याय तन्त्र का मुँह देखता है।

जबरदस्त के दो भाग : किसी चीज़ के कई हिस्से किये जाएँ तो ताकतवर आदमी उसमें से दो हिस्से लेता है।

जबरदस्त के बीसों बिस्वे : जो जबरदस्त है वह सारा हिस्सा खुद लेना चाहता है। एक बीघे में बीस बिस्वे होते हैं।

जबरदस्त सबका जमाई : अर्थ स्पष्ट है। जमाई की सबको इज्ज़त करनी पडती है इसलिए उसका उदाहरण दिया गया है।

जबरदस्ती का ठेंगा सिर पर : अर्थ ऊपर वाली दोनों कहावतों के समान।

जबरा की जोरू, गाँव भर की ताई : दबंग व्यक्ति की पत्नी से सब डरते हैं।

जबरा मारे और रोने न दे : जो जबरदस्त होता है वह मारता है और रोने भी नहीं देता।

जबरा हारे तो भी मारे, न हारे तो भी मारे : दबंग व्यक्ति हार जाए तो भी अपने को हारा हुआ नहीं मानता और मार पीट पर उतारू हो जाता है।

जबरे की जात कोई न पूछे : पहले के जमाने में लोग जात पांत का बहुत विचार करते थे। ऊँची जाति वालों का सम्मान और निम्न जाति वालों का अपमान करना आम बात थी। लेकिन उस समय भी जो ताकतवर होता था उसकी जाति कोई नहीं पूछता था।

जबरे को जबरा ही मारे, या मारे करतार : आतताई को आतताई ही मार सकता है या ईश्वर।

जबरे ने दी गाली तो मजाक में टाली : दबंग आदमी गाली देता है तो लोग हँस के टाल देते हैं।

जबलग सनहकी में भात, तब लग तेरो मेरो साथ : जब तक तुम्हारे यहाँ खाने पीने की जुगाड़ है तब तक का ही तुम्हारा मेरा साथ है। निपट स्वार्थ। सनहकी – खाना पकाने का बर्तन।

जबान को लगाम चाहिए : जो कुछ हम बोलते हैं उस पर हमारा पूरा नियन्त्रण होना चाहिए।

जबान से ही घर उजड़ते हैं, जबान से ही घर बसते हैं : मीठी बोली प्रेम सम्बंध बना कर घर बसा सकती है और कड़वी बोली दुश्मनी करवा कर घर उजाड़ सकती है।

जबान ही हलाल है, जबान ही मुरदार है : जिस जानवर को इस्लामिक विधि से मारा गया हो उसे खाना मुसलमान हलाल (धर्मसंगत) मानते हैं और जो अपनी मौत मरा हो (मुरदार) उसे खाना पाप मानते हैं। कहावत में यह कहा गया है कि जीभ ही धर्म की बात करती है और जीभ ही अधर्म की।

जबान ही हाथी चढ़ाए, ज़बान ही सिर कटाए : बात को चतुराई से कहने पर हाथी इनाम में मिल सकता है और मूर्खता से कहने पर सर काटने की सजा मिल सकती है। (बातन हाथी पाइए, बातन हाथीपाँव)।

जम की भैन बरात : बारात की खातिरदारी करना बड़ा ही खतरनाक काम है। इसीलिए बारात को यमराज की बहन कहा गया है।

जम के पानी बरसे स्वाती, कुरमिनि पहिरै सोने की पाती : स्वाति नक्षत्र में पानी बरसे तो किसान को बहुत लाभ होता है (उसकी पत्नी सोने के गहने बनवाती है)।

जम से जबर बनिया : बनिया अपने उधार की उगाही करने के मामले में यमराज से भी बढ़ कर होता है।

जमा लगे सरकार की और मिर्ज़ा खेलें फाग : सरकार के धन का दुरुपयोग करने वालों के लिए।

जमाई के घर घोड़ा और सास हिनहिनाए : कोई व्यक्ति साधन सम्पन्न हो तो उस के सगे सम्बन्धी भी इतराने लगते हैं। ऐसे लोगों का मजाक उड़ाने के लिए यह कहावत कही जाती है।

जमाई जम के समान होता है : दामाद यमराज की तरह डरावना और खतरनाक होता है।

जमाई तो रूठा ही भला : दामाद के रूठने से बड़ा फायदा है, न वह बार बार घर आएगा, न उस की खातिर करनी पड़ेगी।

जमात में करामात : संगठन में शक्ति है.

जमीं जोरू जोर की, जोर हटया और की : जायदाद और स्त्री बलवान के पास ही ठहर सकती है।

जमींदार की जड़ हरी : जमींदार हमेशा फलता फूलता है। (अकाल पड़ेगा तो किसान मरेगा, जमींदार फिर भी फलेगा फूलेगा)।

जर का जर्रा भी आफताब है, बेजर की मिट्टी खराब है : जर – खजाना, आफताब – सूर्य, बेजर – निर्धन। धन का कण भी सूर्य के समान तेजवान लगता है। जिस के पास धन नहीं है उस की कोई पूछ नहीं है।

ज़र का जोर पूरा है, और सब अधूरा है : पैसे में जितनी ताकत है उतनी किसी चीज़ में नहीं है।

ज़र गया ज़र्दी छाई, ज़र आया सुर्खी आई : धन न रहने पर आदमी उदास हो जाता है और धन आ जाने से प्रसन्न। (जर्दी – पीलापन, सुर्खी – ललामी)

ज़र दीजे हजार मगर दिल न दीजे, उल्फत बुरी बला है किसी से न कीजे : पैसा जितना भी चाहे किसी को दे दें पर किसी से इश्क न करें।

जर नेस्त, इश्क टें टें : जर – खजाना, नेस्त – समाप्त। पैसा खत्म तो प्रेम भी खत्म।

जर है तो घर है, नहीं तो खंडहर है : पैसा हो तभी घर बनता है। जर – धन।

जर है तो नर है नहीं तो पंछी बेपर है : रुपया पैसा पास हो तभी आदमी की इज्जत है।

जर है तो नर, नहीं तो पूरा खर : पैसा पास हो तो आदमी नहीं तो गधे के बराबर।

जरा जरा सा कर लिया और अपना पल्ला भर लिया : थोड़ी थोड़ी बचत भी बहुत महत्वपूर्ण होती है।

जरा सा खावे बहुत बतावे वह है बहू सुघड़ेली, ज्यादा खावे कम बतलावे वह बहुतहि बिगड़ेली : जो बहू सुघड़ होती है वह कम खाती है और कहती है कि उसने बहुत खा लिया है, जो बहू बिगडैल होती है वह अधिक खाती है और कहती है कि उसे कुछ नहीं मिला।

जरा सा मुँह, बड़ा सा पेट : जो बोलता कम हो और पेट में ज्यादा बात रखता हो। उसके लिए भी जो देखने में दुबला पतला हो पर खाता अधिक हो।

जरूरत पड़ने पर लोग गधे को भी बाप बना लेते हैं : स्वार्थ सिद्धि की लिए मनुष्य कुछ भी कर सकता है।

जल की मछलिया जल में ही प्यासी : जिस चीज़ की बहुतायत होनी चाहिए उसी की कमी हो तो।

जल की मछली जल ही में भली : जो जहाँ का होता है उसे वहीं अच्छा लगता है.

जल में खड़ी प्यासों मरे : साधन सम्पन्न होने पर भी परेशान होना।

जल में जो मूते वही जाने : नदी या तालाब में नहाते समय किसने पानी के अंदर पेशाब की है यह केवल करने वाला ही जान सकता है। जो गलत काम छिप के किया जाता है उसे केवल करने वाला ही जान सकता है।

जल में डूबा तैर निकले, तिरिया में डूबा बह जाए : एक बार को पानी में डूबा आदमी तैर कर निकल सकता है पर जो स्त्री के मोह में डूब गया वह निश्चित रूप से बह जाता है।

जल में रहे मगर से बैर : जहां आप रहते हैं वहाँ रहने वाले शक्तिशाली लोगों से दुश्मनी मोल नहीं लेना चाहिए।

जल लकीर जिमि जीवनों है, स्थिर रह्यो नाहिं : जीवन पानी की लकीर की भांति है, अस्थिर और क्षणभंगुर।

जल सूर बामन, रन सूर छत्री, कलम सूर कायस्थ और डर सूर खत्री : ब्राह्मण ठन्डे पानी में रोज नहाता है (जल शूर), क्षत्रिय युद्ध करने (रण) में शूर होता है, कायस्थ कलम का वीर होता है और खत्री महा डरपोक होता है। खत्रियों से निवेदन है कि कहावत का बुरा न मानें।

जलता घर भगवान् को अर्पण : जो चीज़ हाथ से जा रही हो उस को भगवान को अर्पण कर के भक्त होने का नाटक करना।

जली तो जली पर सिकी खूब : काम बिगड़ तो गया पर आनंद खूब आया।

जले को क्या जलाना : जो कष्ट में हो उसे और कष्ट नहीं देना चाहिए। कोई आपसे ईर्ष्या करता हो उसके सामने ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिए जिससे वह और अधिक जले।

जले घर की बलेंडी : बलेंडी – छप्पर की लम्बी लकड़ी। व्यापार में बहुत नुकसान हुआ पर जो कोई एक बड़ा अदद बच गया।

जले पराया घी और हंसें बटाऊ लोग : दूसरे का नुकसान होते देख कर कुछ लोग आनंद लेते हैं। बटाऊ – राहगीर।

जले पांव की बिल्ली : एक साहूकार ने बिल्ली पाल रखी थी। बिल्ली के पाँव में चोट लग गई तो साहूकार ने उस के पाँव में मिट्टी के तेल में कपड़ा भिगोकर पट्टी बाँधी। वह बिल्ली अचानक रसोई घर में चली गई तो उस कपड़े में आग लग गई। आग लगने से वह बिल्ली घर में इधर-उधर भागने लगी। साहूकार के घर में कई अन्य व्यापारियों की रुई रखी थी जिसमें आग लग गई। इसके बाद बिल्ली ने इधर उधर भागते हुए कई घरों में आग लगा दी। कहावत किसी ऐसे व्यक्ति के लिए प्रयोग की जाती है जो गाँव भर में घूम घूम कर झगड़े की आग लगा देता है।

जलेबी की तरह सीधा : जलेबी बहुत टेढ़ी मेढ़ी होती है। अगर कोई धूर्त व्यक्ति अपने को सीधा बताने का प्रयास करता है तो उस के लिए मजाक में ऐसे बोलते हैं।

जलो मगर दीपक की तरह : जो लोग दूसरों की सफलता और सम्पन्नता से जलते हैं उन को सीख दी गई है कि अगर जलना ही है तो दीपक की तरह जलो जो स्वयं जल कर औरों को प्रकाश देता है।

जलो मत रीस करो : किसी की सम्पन्नता से जलने की बजाय उससे स्वस्थ प्रतिस्पर्धा करना और उस के बराबर बनने की कोशिश करना चाहिए। इंग्लिश में कहावत है – Envy never enriched any man.

जल्दबाजी करो तो भी धीरे धीरे : कभी कोई काम जल्दी में करना पड़े तो भी जितना संयम हो सके रखना चाहिए।

जल्दबाजी काम शैतान का, सुघड़ काम रहमान का : जल्दबाजी में काम खराब हो जाता है।

जवान जाए पताल, बुढ़िया मांगे भतार : बुढ़िया कह रही है कि जवान स्त्री भाड़ में जाए मुझे ब्याह करना है। बुढ़ापे में कुछ लोग बहुत स्वार्थी हो जाते हैं, उनके लिए।

जवान डरे भगने से, बूढ़ा डरे मरने से : जवान युद्ध भूमि से भागने से डरता है और बूढ़ा मरने से डरता है।

जवान में ही रस अर जबान में ही बिस : बोली में ही रस है और बोली में ही विष रहता है।

जवान रांड, बूढ़े सांड : जवान विधवा को देख कर बूढ़े लोग नीयत खराब कर रहे हों तब।

जवानी में गधी पर भी जोवन होता है : स्त्री कुरूप हो तब भी युवावस्था में उस पर भी मद छाता है।

जवानी में शादी, नहीं तो बरबादी : युवावस्था में विवाह न हो पाए तो आदमी बर्बाद हो जाता है।

जवानी में हाजी, बुढ़ापे में पाजी : जो व्यक्ति जवानी में धर्मात्मा हो पर बुढ़ापे में मदांध हो जाए।

जवानों को चला चली, बुढ़िया को ब्याह की पड़ी : जवानों की तो जान जोखिम में है और बुढिया को ब्याह करने का शौक सूझ रहा है। बुढ़ापे में मनुष्य स्वार्थी हो जाता है इस पर व्यंग्य।

जस केले के पात में पात पात में पात, तस ग्यानी की बात में बात बात में बात : जैसे केले के पत्ते में पत्ता होता है वैसे ही ग्यानी आदमी की बात में गूढ़ अर्थ छिपे होते हैं।

जस दुल्हा तस बनी बराता : जैसा नेता वैसी जनता, जैसा राजा वैसी प्रजा।

जस मतंग तस पादन घोड़ी, बिधना भली मिलाई जोड़ी : एक साथ काम करने वाले दो लोग जब एक से बढ़ कर एक निकम्मे हों तो।

जहर को जहर ही मारता है : दुष्ट का नाश दुष्टता से ही किया जा सकता है। (संस्कृत – विषस्य विषम औषधम्)।

जहँ आपा तहँ आपदा, जहँ संशय तहँ रोग : जहाँ स्वार्थ और अहंकार का बोलबाला है वहाँ संकट है और जहाँ शंकालु प्रवृत्ति है वहाँ आप स्वस्थ मन से काम नहीं कर सकते।

जहँ लूट पड़ी वहां टूट पड़ी जहँ मार पड़ी वहां भाग पड़ी : जहाँ माल की खुल्लम खुल्ला लूट मच रही हो वहाँ लालची लोग टूट पड़ते हैं और जहाँ मार पड़ने का डर हो वहाँ से भाग खड़े होते हैं।

जहाँ एकता वहाँ लक्ष्मी, जहाँ कलह वहाँ काल : घर हो व्यापार हो या समाज, जहाँ लोगों में एकता है वहाँ उन्नति है, जहाँ लड़ाई झगड़े है वहाँ दुर्गति।

जहाँ काम, वहीं राम : जहाँ उद्यम है, वहीं ईश्वर का वास है।

जहाँ के मुरदे तहाँ ही गड़ते हैं : जो काम जहां का है उसे वहीं निबटाना चाहिए।

जहाँ खर्च नहीं वहाँ हर एक गाँठ का पूरा : जहाँ लोगों की आदत व्यर्थ खर्च करने की नहीं होती वहाँ हर व्यक्ति सम्पन्न होता है।

जहाँ खैरात बंटे वहाँ मंगते अपने आप पहुँच जाते हैं : अर्थ स्पष्ट है।

जहाँ गंग, वहाँ रंग : जहाँ गंगा है, वहाँ आनंद हैं।

जहाँ गंज, वहाँ रंज : जहाँ ख़ुशी है वहाँ दुःख भी अवश्य है।

जहाँ गाय वहाँ बछड़ा, जहाँ गुरु वहाँ चेला : जैसे बछड़ा गाय पर पूरी तरह निर्भर है वैसे ही चेला भी पूरी तरह गुरु पर आश्रित है।

जहाँ गुलाब, वहाँ कांटे : जहाँ सुख सुविधाएँ होती हैं वहाँ कुछ न कुछ कष्ट भी होते हैं। इंग्लिश में कहावत है – There are no rose without thorns.

जहाँ चने हैं वहाँ दांत नहीं, जहाँ दांत हैं वहाँ चने नहीं : जहाँ सुविधाएँ उपलब्ध हैं वहाँ उन्हें भोगने वाले नहीं हैं, जहाँ भोगने वाले बहुतेरे हैं वहाँ सुविधाएँ नहीं हैं।

जहाँ चार गगरी तहाँ लड़बे करी : (भोजपुरी कहावत) जहाँ चार पनिहारिनें होंगी वहाँ आपस में लड़ाई तो होगी ही। स्त्रियों की लड़ने की आदत पर व्यंग्य।

जहाँ चार रजपूत, हुआँ बात मजबूत : राजपूत अकेला हो तो भी अपनी बात का पक्का होता है, और अगर चार राजपूत मिल जाएं तो क्या कहना।

जहाँ जाएं बाले मियाँ तहाँ जाए पूँछ : चमचों पर व्यंग्य करने के लिए।

जहाँ जाट, वहाँ ठाठ : जाट बड़े दरियादिल और मस्त माने जाते हैं उसी पर बनी कहावत।

जहाँ तेल देखा वहीँ जनने को बैठ गई : बच्चे का जन्म कराने के लिए दाइयों को तेल की आवश्यकता होती थी। एक ऐसी स्त्री का ज़िक्र किया गया है जो कहीं पर तेल देख कर बच्चे का प्रसव करने बैठ जाती है। कहावत उस निर्लज्ज व्यक्ति के लिए कही गई है जो अपने थोड़े से लाभ के लिए कुछ भी कर सकता है।

जहाँ दया तहँ धर्म है, जहाँ लोभ तहँ पाप, जहाँ क्रोध तहँ ताप है, जहाँ क्षमा तहाँ आप : जो दूसरों पर दया करते हैं वे धर्म पर चलने वाले माने जाते हैं, जो लोभी होते हैं वे लोभ के कारण पाप में प्रवृत्त हो जाते हैं। जो लोग क्रोध करते हैं वे कष्ट उठाते हैं और जो क्षमा करते हैं वे ईश्वर के समतुल्य बन जाते हैं।

जहाँ दूल्हा वहीँ बरात : जो महत्वपूर्ण व्यक्ति है उसी के इर्द गिर्द सब लोग रहना चाहते हैं।

जहाँ नहीं पेड़ वहाँ अरंड ही पेड़ (जहाँ रूख नहीं वहाँ अरंडा ही रूख) : अरंड का पेड़ बहुत घटिया पेड़ माना जाता है। लेकिन जहाँ पेड़ ही न हों वहाँ अरंड को ही पेड़ मान सकते हैं। काम चलाने वाली बात।

जहाँ नाश वहाँ सवा सत्यानाश : जहाँ नुकसान हो रहा है वहाँ थोड़ा और नुकसान सही। इस को इस प्रकार भी कहते हैं – जहाँ लादी वहाँ सवा लादी।

जहाँ पड़े मूसल, वहीं क्षेम कुशल : 1.मूसल से मसाले कूटे जाते हैं और चूरमा बनता है, इसलिए जहाँ खुशहाली हो वहीं मूसल का प्रयोग होता है। 2. कुटाई के डर से ही सारी व्यवस्थाएं सुचारू रूप से चलती हैं।

जहाँ पाँच पंच तहाँ परमेश्वर : जहाँ पांच पंच मिल कर न्याय करते हैं वहाँ अन्याय की गुंजाइश बहुत कम हो जाती है।

जहाँ फूल वहाँ काँटा : ईश्वर ने जहाँ सुख दिए हैं वहाँ कुछ न कुछ दुःख भी दिए हैं। इंग्लिश में कहावत है – No rose without thorns.

जहाँ बस्ती होती है वहाँ कुत्ते भी होते हैं : अच्छे इंसानों के बीच बुरे लोग भी अवश्य होते हैं।

जहाँ बहू का पीसना, वहीं ससुर की खाट : जहाँ बहू चक्की पीस रही है वहीं ससुर खाट डाले बैठे हैं। बेतुका काम।

जहाँ मिले पाँच माली, वहाँ बाग़ सदा खाली : साझे का काम हमेशा गड़बड़ होता है। इस आशय की और भी बहुत सी कहावतें हैं – ज्यादा जोगी मठ उजाड़, साझे की माँ गंगा न पाए। इत्यादि। इंग्लिश में कहते हैं – Too many cooks, spoil the broth.

जहाँ लाख, वहाँ सवा लाख : जहाँ बहुत अधिक खर्च हो रहा हो वहाँ थोड़ा और सही।

जहाँ हाथी तुलें, वहाँ गधे पासंग : कोई सामान तोलने से पहले तराजू के हल्के पलड़े में थोड़ा वजन बाँध कर दोनों पलड़ों को बराबर करते हैं। इसे पासंग कहते हैं। जहाँ हाथी जैसी बड़ी चीज़ तोलने का काम हो रहा वहाँ गधे की औकात पासंग जितनी ही है।

जहां काम आवे सुई, कहा करे तलवार : शेर और चूहे की कहानी हम सब को याद होगी। शेर ने एक बार एक चूहे को पकड़ लिया। चूहा गिड़गिड़ाया – मालिक मुझे छोड़ दीजिये। मैं कभी आपके काम आऊँगा। शेर हँसा कि तू मेरे किस काम आएगा पर उसे छोड़ दिया। कुछ समय बाद शेर एक शिकारी के जाल में फंस गया। चूहे को मालूम पड़ा तो उसने फ़ौरन आ कर अपने पैने दांतों से जाल को काट दिया और शेर को छुड़ा दिया। कहावत का तात्पर्य यह है कि आपके सम्बन्ध कितने भी बड़े बड़े लोगों से क्यों न हों आपके छोटे लोगों को भी सम्मान और महत्त्व देना चाहिए। (रहिमन देख बड़ेन को लघु न दीजिए डार, जहां काम आवे सुई कहा करे तलवार)।

जहां गड्ढा होता है पानी वहीँ भरता है : इस का शाब्दिक अर्थ तो स्पष्ट है पर कहावत के रूप में इसका अर्थ थोड़ा सूक्ष्म है। कहीं चार लोग बैठे हों तो आप किसी एक राजनैतिक दल की बुराई करना शुरू कर दीजिए। जो उस दल का समर्थक होगा उसे बुरा लगेगा और वह फ़ौरन विरोध करेगा। आप सोशल मीडिया पर किसी ग्रुप में किसी एक व्यवसाय की बुराई कीजिए। उस ग्रुप में उस व्यवसाय से संबंधित जो लोग होंगे वे फौरन आपत्ति करेंगे। इसे कहते हैं जहां गड्ढा होता है वहीं पानी भरता है।

जहां गुड़ होगा वहां मक्खियाँ आयेंगी ही : जिसके पास धन व अधिकार हो उसके बहुत से मित्र बन जाते हैं।

जहां चाह वहां राह : व्यक्ति यदि कोई कार्य करना मन से चाहता है तो उसके लिए रास्ता निकाल लेता है। इंग्लिश में कहावत है – Where there is a will, there is a way.

जहां जाय भूखा, वहां पड़े सूखा : अभागा व्यक्ति कहीं भी जाए दुर्भाग्य उसका साथ नहीं छोड़ता।

जहां जाये दूला रानी, वहाँ पड़े पाथर पानी : पाथर पानी – ओला वृष्टि। किसी अभागे व्यक्ति पर व्यंग्य है कि वह जहाँ जाता है वहाँ कुछ न कुछ अनर्थ हो जाता है।

जहां ढेर मउगी, तहँ मरद उपास : (भोजपुरी कहावत) जिस आदमी की कई पत्नियाँ होती हैं उसे भूखा रहना पड़ता है। (क्योंकि सभी एक दूसरे पर काम टालती हैं)। ढेर – बहुत सारी, मउगी – पत्नी, उपास – उपवास।

जहां देखी रोटी, वहीं मुड़ाई चोटी : चोटी कटाने से दोनों अर्थ हो सकते हैं, सिर मुंडा कर सन्यासी बनना या चोटी कटा कर सन्यासी से पुनः सांसारिक बनना। अर्थ यह है कि रोटी के कारण व्यक्ति कुछ भी कर सकता है।

जहां देखे तवा परात, वहीँ बितावे सारी रात : जहाँ खाने पीने का इंतजाम हो वहीँ रहने की इच्छा करने वाले लोग।

जहां दो बर्तन होते हैं, खड़कते ही हैं : जब दो लोग एक साथ रहते हैं तो कभी न कभी, कुछ न कुछ मनमुटाव हो ही जाता है।

जहां धुंआ वहां आग जरूर होगी। (आग बिन धुंआ नहीं) : अगर कहीं धुंआ दिखाई दे रहा है तो इसका अर्थ यह है कि कहीं न कहीं आग जरूर लगी हुई है। अगर कोई व्यक्ति बहुत उदास दिखाई दे रहा है तो इसका अर्थ यह है कि उसके मन में जरूर कोई क्लेश है। अगर दो लोगों के रिश्तों में तनाव दिखाई दे रहा है तो कुछ गम्भीर कारण जरूर होगा।

जहां न जाए रवि, वहां जाए कवि (जहां न पहुंचे रवि, वहां पहुंचे कवि) : कवियों की कल्पना के विषय में कहा गया है।

जहां न जाए रेलगाड़ी, वहां जाए मारवाड़ी : मारवाड़ी लोग दूर दूर तक व्यापार करते हैं उसके लिए मजाक।

जहां बालों का संग वहां बाजे मृदंग, जहां बुड्ढों का संग वहां खरचे से तंग : जहां बालक होते हैं वहां मौज मस्ती होती है और जहां केवल बूढ़े लोग हों वहां केवल परेशानियों की चर्चा होती है।

जहां मीठा होइ, उहाँ चिउंटी लगबे करी : (भोजपुरी कहावत) जहाँ मीठा होगा वहाँ चीटियाँ जरूर आएंगी। जहाँ लाभ होने की संभावना होती है वहाँ बहुत से लाभार्थी पहुँच जाते हैं।

जहां मुर्गा नहीं होता वहां क्या सवेरा नहीं होता : मुर्गे को यह गलतफहमी होती है कि उसके बांग देने से ही सवेरा होता है। इसी प्रकार कुछ लोगों को यह भ्रान्ति होती है कि अमुक संस्था उन के कारण से चल रही है। ऐसे लोगों को उनकी हैसियत बताने के लिए यह कहावत कही जाती है।

जहां मेरो सैयां, वहां मेरो गइयां : मेरा गाँव वहीँ है जहां मेरा पति रहता है। सुहागिन स्त्रियों का कथन।

जहां राजा बसे, वहीं राजधानी : महत्वपूर्ण व्यक्ति जहाँ रहेगा वही स्थान महत्वपूर्ण हो जाएगा।

जहां रोजगार, वहीं घरबार : व्यक्ति को जहाँ रोजगार मिलता है वह वहीँ घर बसाता है।

जहां शहद वहां माखी : जो लाभ का स्थान होगा वहाँ बहुत से लोभी लोगों का जुटना स्वाभाविक ही है।

जहां सुमति तंह सम्पति नाना : जहाँ अच्छी मति होगी वहाँ सब प्रकार के सुख होंगे।

जंगल देख के गूजर नाचे, चंग देख बैरागी, खीर देख के बामन नाचे, तन मन होवे राजी : गूजर जंगल देख कर खुश होता है क्योंकि उसे जानवर चराने होते हैं, बैरागी चंग नामक वाद्य यंत्र से प्रसन्न होता है और ब्राह्मण खीर देख कर।

जंगल में मंगल, बस्ती में कड़ाका : उपयुक्त स्थान पर उपयुक्त काम न होना। जंगल में उत्सव हो रहा है और बस्ती में सन्नाटा है।

जंगल में मंगल, बस्ती में वीरान, जा घर भांग न संचरे, ता घर भूत समान (होत मसान) : भांग खाने वालों द्वारा भांग का गुणगान।

जंगल में मोर नाचा किसने देखा : यदि कोई प्रतिभाशाली व्यक्ति ऐसी जगह अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करे जहाँ कोई देखने वाला ही न हो।

जंगली हाथी, हाकिम चोर, इन के बिगड़े ओर न छोर : जंगली हाथी और भ्रष्ट अधिकारी जब बिगड़ते हैं तो बहुत नुकसान कर सकते हैं।

जंह जंह पाँव पड़े सन्तन के, तंह तंह बंटाढार : किसी व्यक्ति के आने से काम बिगड़ जाए तो मज़ाक में ऐसा कहते हैं। कलियुगी संतों के लिए भी कह सकते हैं।

जंह जंह संत मठा को गए, भैंस पड़ा दोउ मर गए : जब आपके भाग्य में कुछ न हो तो कहीं भी जाएं कुछ नहीं मिलने वाला। ऐसे संत जहाँ भी मट्ठा मांगने गए वहाँ भैंस और उस का कटरा दोनों मर गए। (जहां जाए भूखा, वहां पड़े सूखा)।

जा के रखवाल गोपाल धनी ताको बलभद्र कहा डर रे : जिसके रखवाले स्वयं श्रीकृष्ण हों, उस को बलराम से क्या डर। दुर्योधन बलराम का प्रिय शिष्य था। जब भीम ने गदा प्रहार कर के दुर्योधन की जंघा तोड़ दी (जोकि नियम विरुद्ध था) तो बलराम बहुत कुपित हुए और भीम को मार डालने को तैयार हो गए। लेकिन कृष्ण के समझाने पर वह मान गए।

जा घट प्रेम न संचरै, ता घट जानि मसान : जिस के हृदय में प्रेम का वास नहीं है वह श्मशान के समान है।

जा दिन घोड़ी, बा दिन गाय, तई दिन होरी दियो जराय : क्वार शुक्ल नवमी, कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा और फागुन पूर्णिमा एक ही वार को पडती है,

जा मन होय मलीन, सो पर सम्पदा सहे ना : जिस के मन में ईर्ष्या की भावना होगी उसे पराई सम्पत्ति देख कर कष्ट होगा।

जा मुख राम न उच्चरे, वा मुख लोह जड़ाइ : जिस मुख से राम का नाम न निकले उस को लोहे की कीलों से जड़ देना चाहिए। उच्चरे – उच्चारित हो, जड़ाई – जड़ दें।

जा री बिल्ली, कुत्ते को मार : किसी गरीब और छोटे आदमी को जबरदस्ती मुसीबत में धकेलना।

जाइए दुःख में पहले, सुख में पीछे : किसी की यहां कोई दुःख का अवसर हो उस में फौरन जाना चाहिए चाहें सुख के प्रसंग में बाद में चले जाएं।

जाए जान, रहे ईमान : चाहे जान चली जाए पर ईमान नहीं जाना चाहिए।

जाए लाख, रहे साख (लाख जाए पर साख न जाए) : चाहे लाखों रुपये खर्च हो जाएं अपनी साख नहीं जानी चाहिए।

जाओ चाहे नेपाल, साथ जायगा कपाल (जावो कलकत्ते से आगे, करम साथ में जावे : चाहे कहीं भी चले जाओ, भाग्य आपके साथ जाएगा।

जाका ऊंचा बैठना, जाका खेत निचान, ताका बैरी क्या करे, जाका मीत दिवान : जिस का बड़े लोगों में उठना बैठना हो, खेत नीची जगह पर हो और मंत्री या कोतवाल जिसके मित्र हों उसका कोई क्या बिगाड़ सकता है।

जाका कोड़ा ताका घोड़ा : घोड़ा उसी का है जिसके पास कोड़ा है। जिसके पास ताकत है उसी का संपत्ति पर अधिकार होता है। इस प्रकार की दूसरी कहावत है – जिसकी लाठी उसकी भैंस।

जाका गुरु भी अँधला, चेला खरा निरंध, अंधहि अंधा ठेलिया, दोनों कूप पडंत : यदि गुरु भी अँधा हो और चेला भी अँधा हो तो दोनों कुँए में गिरते हैं।

जाकी अच्छी सास बाका ही घर वास, जाकी सास नकारा, ताका कहाँ गुजारा : जिस बहू की सास अच्छी हो उसका घर स्वर्ग है।

जाकी अपकीरति छाय रही जग, सो यमलोक गयो न गयो : जिसकी बदनामी हो जाए वह जिन्दा भी मरे के बराबर है।

जाकी छाति न एकौ बार, उनसे सब रहियो हुशियार (जाकी छाती जमे न बार, उनसे रहना तुम होशियार) : जिनकी छाती पर बाल नहीं होते वे कुटिल प्रवृत्ति के होते हैं (एक पुरानी सोच)।

जाकी जात के जौन हैं ताकि पाँत के तौन, बाघ बाज के पूत को मार सिखावत कौन : (बुन्देलखंडी कहावत) जौन – जो भी, तौन – वही। जो जिस जाति के हैं उस के गुण अपने आप विकसित कर लेते हैं। शेर और बाज के बच्चों को शिकार करना कौन सिखाता है।

जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी : जब भगवान राम सीता स्वयम्बर में धनुष तोड़ने के लिए उठे तो अलग अलग लोगों को उनके अलग अलग रूप दिखाई दिए। कहावत का अर्थ है कि आप किसी को उसी रूप में देखते हैं जैसी आप के मन में उसके प्रति भावना होती है।

जाके कारन पहनी सारी, वही लगा अब टांग उघारी : प्राय: लडकियां शादी के पहले कुर्ता सलवार आदि पहनती थीं और शादी के बाद साड़ी। इस आशय में साड़ी पहनने का अर्थ विवाह करने से है। जिससे विवाह किया वही बदनाम करने पर तुला हुआ है।

जाके घर में नौ सौ गाय, सो क्यों छाछ पराई खाय : जिस के घर में बहुत सारी गाएं हों वह दूसरे से मांग कर छाछ क्यों खाएगा। जो स्वयं साधन सम्पन्न है वह दूसरों से कुछ क्यों मांगेगा।

जाके घर में माई, ताकी राम बनाई : जिस घर में माँ होती है वह स्वर्ग हो जाता है।

जाके पाँव न फटी बिबाई, वो क्या जाने पीर पराई : पैर की एड़ी और तलवे में खाल के फटने से जो गहरे क्रैक्स हो जाते हैं उन्हें बिवाई कहते हैं। इनमें बहुत दर्द होता है। जिनके पैर में बिबाई ना हुई हो वे उसका दर्द नहीं जान सकते। जो खुद किसी खास परेशानी से न गुजरा हो वह दूसरे को होने वाले कष्ट को कैसे जान सकता है।

जाके पास रहिए, ताकी ही सी कहिए : जैसा परिवेश हो वैसी ही बात कहनी चाहिए।

जाके सिर पे बोझ है, सोई करे निबाह : जिस के ऊपर पड़ती है उसी को निभाना पड़ता है।

जाके हित चोरी करों, सोई बनावे चोर : जिसको लाभ पहुँचाने के लिए चोरी की, वही आपको चोर ठहरा रहा है।

जाको जहं स्वारथ सधे, सोई ताहि सुहात, चोर न प्यारी चांदनी, जैसी कारी रात : जिसका स्वार्थ जहाँ पूरा होता है उसको वहीं अच्छा लगता है। चोर को चांदनी नहीं काली रात अच्छी लगती है।

जाको जेहिपर सत्य सनेहू, सो तेहि मिलेहि न कछु सन्देहू : जो सच्चे मन से किसी को चाहता है उसे वह जरूर मिलता है। विशेषकर ईश्वर के मिलने के लिए कहा गया है।

जाको जौन स्वभाव जाय नहिं जी से, नीम न मीठा होय सींचो गुड़ घी से : आदतें आसानी से नहीं बदलतीं।

जाको डंडा ताकी गाय, करो न कोई हाय हाय : जिसके पास डंडा होगा वही गाय को ले जाएगा, इसमें किसी को आपत्ति नहीं होना चाहिए। (जिसकी लाठी उसकी भैंस)। अर्थ है कि सम्पत्ति पर अधिकार बलवान का ही होता है।

जाको प्रभु दारुण दुःख देहीं, ताकी मति पहले हर लेहीं : जिसको प्रभु दुःख देना चाहते हैं उसकी बुद्धि भ्रष्ट कर देते हैं। यदि कोई व्यक्ति इस प्रकार के काम कर रहा हो जिस से वह बहुत परेशानी में पड़ सकता है तो यह कहावत कही जा सकती है।

जाको मारा चाहिए बिन मारे बिन घाव, बाको यही बताइये घुइंया पूरी खाव : पुराने लोग मानते थे कि घुइंया (अरबी) बहुत बादी होती है और नुकसान करती है, और अगर पूड़ी के साथ खाई जाए तब तो और भी अधिक। घाघ कवि कहते हैं कि जिस को आप बिना घाव के मारना चाहते हैं उसे घुइंया पूड़ी खाने की सलाह दीजिये।

जाको राखे सांइयाँ मार सके न कोय, बाल न बांका करि सकै जो जग बैरी होय : ईश्वर जिसका रखवाला हो उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता।

जाको राम रक्खे, ताको कौन भक्खे। (जाका राम रच्छक, ताको कौन भच्छक) : जिसका राम रखवाला हो उसका कौन भक्षण कर सकता है।

जाग मछन्दर गोरख आयो : मछन्दर नाथ (शुद्ध नाम मत्स्येन्द्र नाथ) गोरख़ नाथ के गुरु थे। एक बार मत्स्येन्द्र नाथ आसक्ति में पड़ गए तो गोरखनाथ ने आ कर उन्हें बोध कराया। आम तौर पर गुरु शिष्य को रास्ता दिखाते हैं पर यदि शिष्य को यह काम करना पड़े तो यह कहावत कही जाती है।

जागते को कौन जगाए : सोते हुए को जगाया जा सकता है पर जो स्वयं जाग रहा हो उसे कौन जगा सकता है। यदि आप मुझे किसी समझदार व्यक्ति को अक्ल सिखाने के लिए कहेंगे तो मैं यह कहावत बोलूँगा।

जागे जिस के देह में दूख, जागे जिस को लागे भूख : जिस के शरीर में कोई कष्ट होता है वह जागता है या जो भूखा होता है वह जागता है।

जागे जिसके घर में साँप, जागे जो बिटिया का बाप : जिसके घर में कोई सांप छिपा हो वह चिंता के कारण जागता है या बेटी का बाप चिंता के कारण जागता है।

जागे जो हो धन का धनी, जागे जिसको चिंता घनी : जिसके पास अधिक धन हो वह उस को सम्भालने की फ़िक्र में नहीं सो पाता है या जिस को कोई बड़ी चिंता हो वह नहीं सो पाता है।

जाट कहे शरमाय, पर लड़े न शरमाए : जाट बोलने में शर्माता है पर लड़ने में नहीं।

जाट कहे सुन जाटनी तोको इसी गाँव में रहना, ऊँट बिलाई लै गई तो हांजी हांजी कहना : जाट अपनी पत्नी को समझा रहा है की तुझे इसी गाँव में रहना है। कोई प्रभावशाली आदमी अगर यह कहे कि बिल्ली ऊँट को उठा ले गई, तो भी उसकी हाँ में हाँ मिलाना। जिस समाज में आप रह रहे हैं वहाँ की बहुत सी गलत बातें न चाहते हुए भी स्वीकारनी पड़ती हैं।

जाट का बैरी जाट, काठ का बैरी काठ : जाटों के आपसी वैमनस्य के ऊपर कहावत है। बात को समझाने के लिए लकड़ी का उदाहरण दिया गया है। लकड़ी को काटने वाली कुल्हाड़ी का बट लकड़ी का ही बना होता है, अर्थात लकड़ी ही लकड़ी को काटने में सहयोग करती है। कहीं कहीं इसे जात की बैरी जात भी कहा गया है (अर्थात सभी जातियों में ऐसा होता है)।

जाट क्या जाने लौंग का भाव : जाट दिल के कितने भी साफ़ हों, स्वभाव से थोड़े अक्खड़ होते हैं। जाटों में नज़ाकत का अभाव होता है इसी को ले कर यह कहावत बनाई गई है।

जाट जाटनी से पार न पावे तो बैल को चाबुक मारे : बलवान पर बस न चले तो लोग कमजोर पर गुस्सा उतारते हैं। (कुम्हार पे बस न चला तो गधे के कान मरोड़े)।

जाट बुढ़ापे में बिगड़ा करे : (हरयाणवी कहावत) जाट बूढ़े होने पर ज्यादा मनचले हो जाते हैं।

जाट मरा तब जानिये, जब तेरई हो जाए (जब चालीसा होए) : जाट लोगों में बड़ी कर्मठता और जिजीविषा होती है। उनकी तरक्की से जलने वाले दूसरी जातियों के लोग तरह तरह से उनका मजाक उड़ाने की कोशिश करते हैं। इस कहावत का शाब्दिक अर्थ तो यह है कि जाट का मरना आसान नहीं होता। जब उसकी तेरहवीं हो जाए तो समझो कि जाट वाकई मर गया। व्यवहार में इस कहावत का प्रयोग इस प्रकार करते हैं कि कोई भी काम तब तक पूरा हुआ मत मानो जब तक बिलकुल पक्का न हो जाए।

जाट रे जाट तेरे सर पे खाट, तेली रे तेली तेरे सर पे कोल्हू : किसी तेली ने जाट का मजाक उड़ाने के लिए कहा कि रे जाट तेरे सिर पर खाट। जाट ने तुरंत जवाब दिया कि तेली तेरे सिर पर कोल्हू। तेली बोला जाट भाई कुछ तुकबंदी नहीं बनी, जाट बोला तो क्या हुआ, तू बोझ से तो मरा।

जाट, जमाई, भांजा और सुनार, कभी न होवे आपनो कर देखो उपकार : कहावत का अर्थ स्पष्ट है। किसी सयाने ने अपने व्यक्तिगत अनुभव को सब के साथ साझा करने का प्रयास किया है (जरूरी नहीं है कि आप इससे सहमत हों)।

जाड़ लाग, जाड़ लाग जड़नपुरी, बुढ़िया का हगास लागि बिपति परी : जाड़े के मारे सबकी हालत खराब है और ऐसे जाड़े की रात में बुढ़िया अम्मा को टट्टी लग रही है। बड़ी विपत्ति आ पड़ी है कि उसे लेके बाहर कौन जाए।

जाड़ा गए रजाई और जोवन गए भतार : जाड़ा बीतने के बाद रजाई मिले तो किस काम की और स्त्री का यौवन बीतने के बाद पति मिले तो किस काम का।

जाड़ा जाए रुई से या दुई से : जाड़ा या तो रुई के गद्दे व रजाई से जाएगा या दो लोग एक साथ सोएं तो जाएगा।

जाड़ो ठाड़ो खेत में, सुन रे मेरे लाल, मोरे दुसमन तीन हैं, रुई कम्बल और प्याल : जाड़ा कह रहा है कि मेरे तीन दुश्मन हैं – रुई, कम्बल और पुआल।

जात का बामन। करम कसाई : उच्च जाति में जन्म लेने वाला कोई निम्न श्रेणी का निर्दयी व्यक्ति।

जात पांत पूछे नहिं कोई, वर्दी पहिन सिपहिया होई : जो व्यक्ति सिपाही बन जाता है उस की जाति कोई नहीं पूछता। वह किसी भी जाति का क्यों न हो, सब के लिए आदरणीय हो जाता है।

जात पात पूछे नहिं कोई, हरि को भजे सो हरि का होई : हमारे समाज में जाति भेद की बुराई कितनी भी व्याप्त हो ईश्वर के दरबार में सब बराबर हैं।

जात सुभाय न जाय कभी, माँगना ही भावै, रानी हो गई डोमनी, आले धर खावे : मनुष्य का जातिगत स्वभाव कभी जाता नहीं है। डोमनी रानी बन गई तो बीमार रहने लगी। फिर उसने अपने लिए एक अलग महल बनवाया। वहां वह खाने के टुकड़े कर के आले में रख देती थी और आले से मांगती थी, आला दे निवाला, और तब खाती थी।

जात सुभाव ना छूटे, कुकुर टाँग उठा के मूते : व्यक्ति के जन्मजात स्वभाव छूटते नहीं हैं (जिस प्रकार कुत्ता टांग उठा कर ही मूतता है)।

जाति न पूछो साधु की, पूछि लीजिए ज्ञान, मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान : व्यवहार में इस कहावत को आधा ही बोला जाता है। साधु की जाति नहीं पूछनी चाहिए ज्ञान देखना चाहिए। इस कहावत से यह बात भी सिद्ध होती है कि हमारे देश में तथाकथित नीची जाति के साधु संतों को भी पूरा सम्मान मिलता था

जातो गंवाए, भातो न खाए : बात उस समय की है जब देश में जात पाँत और छुआछूत का काफी जोर था। यदि कोई उच्च कुलीन व्यक्ति नीची जाति वाले के साथ खाना खा ले तो वह जाति से निकाल दिया जाता था। कहावत में ऐसे व्यक्ति का ज़िक्र किया गया है जो बढ़िया बढ़िया खाना भी नहीं खा पाया और नीची जाति वाले के साथ बैठने के कारण जाति से निकाल दिया गया। कोई व्यक्ति अनुचित लाभ उठाने के लिए अपने स्तर से नीचे गिर कर काम करे और उसे वह लाभ भी न मिल पाए तो यह कहावत कही जाएगी।

जादू टोना हे सखी भूल करो मत कोय, पिया कहे सो कीजिए आपहि बस में होय : पति को वश में करना है तो उसके लिए जादू टोना न करो बल्कि जो पति कहे वह करो।

जादू वह जो सर चढ़ कर बोले : असली जादू वह है जो आदमी की सुध बुध छीन ले।

जान की जान गई, ईमान का ईमान : बहुत से लोग जान दे कर ईमान की रक्षा करते हैं और कुछ लोग जान बचाने के लिए ईमान बेच देते हैं, पर अगर कोई व्यक्ति अपनी मूर्खता से दोनों ही चीज़ गंवा दे तो यह कहावत कही जाएगी।

जान के साथ जेवड़ा : यह जंजीर जिन्दगी भर पड़ी रहेगी। जेवड़ा, जेवड़ी – जंजीर।

जान जाए पर माल न जाए : कंजूस व्यक्ति के लिए।

जान न पहचान, खाला बड़ी सलाम : अपने मतलब के लिए किसी से जबरदस्ती जान पहचान निकालना।

जान न पहचान, मैं तेरा मेहमान (मान न मान मैं तेरा मेहमान) : ऊपर वाली कहावत की भांति।

जान बची तो लाखों पाए, लौट के बुद्धू घर को आए : कोई व्यक्ति कुछ काम करने गया। काम तो नहीं हुआ उलटे खतरे में फंसते फंसते बचा, तो लौट के आने पर और लोग उसका मजाक उड़ाने के लिए यह कहते हैं।

जान बची, लाखों पाए : किसी आदमी पर कोई खतरा आया और टल गया तो यह कहावत बोली जाती है।

जान भले ही जाए पर रोजी न जाए (जी जाए जीविका न जाए) : जीविका का छिन जाना, मृत्यु से भी अधिक दुखदायी है।

जान मारे बनिया, पहचान मारे चोर : बनिया जानने वाले को चूना लगाता है और चोर पहचान की जगह पर चोरी करता है।

जान है तो जहान है : जब तक हम जीवित हैं तभी तक संसार है। कोई काम करने में बहुत लाभ होने की सम्भावना हो पर जान का खतरा भी हो तो बुज़ुर्ग लोग उस काम के लिए मना करते हुए यह कहावत बोलते हैं।

जाना अपने बस, आना पराए बस : आप कहीं भी जाते तो अपनी इच्छा से हैं पर लौटना अपने वश में नहीं होता। जिसके यहाँ गए हैं उसकी इच्छा क्या है और ईश्वर की इच्छा क्या है दोनों पर निर्भर करता है।

जाना है रहना नहीं, मोए अंदेसा और, जगह बनाई है नहीं बैठेगा किस ठौर : इस संसार में सदा के लिए किसी को नहीं रहना है, इसलिए कुछ ऐसे कर्म अवश्य करने चाहिए जिनसे परलोक में जगह मिल सके।

जान लीन्ह बामन के लच्छन, बाप का नाम फीरोज़ अली : कोई मुसलमान ब्राहण का बहरूप बनाए और पकड़ा जाए तो। कहावत के द्वारा एकाध प्रसिद्ध नेताओं पर भी व्यंग्य किया गया है।

जाने को बकरी आने को ऊँट : घर से जाते समय धीरे धीरे चल रहे हैं और आते समय तेजी से आ रहे हैं। जो लोग घर से जाना नहीं चाहते उन के लिए।

जाने चोंच दी वही चुग्गा देगा : जिसने हमें जन्म दिया वही हमें भोजन भी देगा। आलसी एवं अकर्मण्य लोगों का कथन। रोजी रोटी के लिए बहुत प्रयास करने पर भी यदि सफलता न मिले तो निराशा से उबारने के लिए भी सयाने लोग ऐसा बोलते हैं।

जाने न बूझे, कठौती से जूझे : बिना किसी काम के विषय में जाने उस में सर खपाना।

जाने वाली चीज के पाँव निकल आते हैं : जो नुकसान होना होता है उसके हज़ार बहाने बन जाते हैं।

जाने वाले के हज़ार रास्ते, ढूँढने वाले का एक : खोए हुए व्यक्ति या वस्तु को ढूँढना बहुत कठिन है यह बताने के लिए यह कहावत कही जाती है।

जाने वाले को भूल जाएं पर आने वालों को नहीं भूलते : जिस की मृत्यु हो जाए उसे लोग भूल जाते हैं, पर उस समय आने वालों को लोग याद रखते हैं।

जानो नहिं जिस गाँव में कहा बूझनो नाम, तिन सखान की क्या कथा जिनसों नहिं कछु काम : जिस जगह जाना ही नहीं है उसका पता पूछ कर समय क्यों नष्ट करें और जिन लोगों से कुछ काम नहीं पड़ना उन की चर्चा क्यों करें।

जाप की ओट में पाप : ढोंगी और पापी महात्माओं के लिए।

जामिन हो मत चोर का, सींग पकड़ मत ढोर का : चोर की जमानत मत दो और जानवर का सींग मत पकड़ो। जामिन – जमानत देने वाला।

जामिन होना, धन का खोना : किसी की जमानत देने में अपना धन खोना पड़ सकता है।

जाया नाम जनम से हो तो रहना किस विधि होय : जाया का अर्थ उत्पन्न हुआ (संतान) भी है और जाया का अर्थ व्यर्थ में बर्बाद करने से भी है।

जालिम गुजर जाए, जुल्म बाकी रह जाए (जालिम मर जाता है पर कानून छोड़ जाता है) : अत्याचारियों के मरने के बाद भी उन के बनाए कानून बाकी रह जाते हैं और दुष्टता की कथाएँ रह जाती हैं।

जासु राज में प्रजा दुखारी, सो नृप अवसि नरक अधिकारी : जासु – जिसके, अवसि – अवश्य। जिस राजा के राज में प्रजा कष्ट पाती है वह नर्क में जाता है।

जासे जाको काम, सोई ताको राम : जिससे आपका काम बनता हो वही आपके लिए ईश्वर के बराबर है।

जासौ निबहे जीविका, करिए सो अभ्यास, वैश्या राखे लाज तो कैसे पूरे आस : जो भी जीविका का साधन हो उस में सहायक बनने वाली आदतें डालनी चाहिए। वैश्या लज्जावान होगी तो कैसे जीविका कमाएगी।

जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिए : जिन परिस्थितियों में व्यक्ति रहता है उन्हीं में संतोष करना सीखना चाहिए। पुराने लोग इसके पहले ‘सीताराम सीताराम सीताराम कहिए’ भी बोलते हैं।

जीते जी पुजवायें औ मर कर भी पुजवायें, जीते जी भी खाएँ और मरने पर भी खाएँ : (भोजपुरी कहावत) ब्राह्मणों के ऊपर व्यंग्य। जब मनुष्य जीवित होता है तब भी इनको पूजे और मरे तो भी इन को पूजे। जीवित हो तब भी इन को खिलाए और मरे तो भी इन को खिलाए।

जिए बाप को कोई न पूछे, मुए बाप पे छाती पीटे : जिन्दा माँ बाप की कद्र नहीं करते और मरने पर दिखावे के लिए छाती पीटते हैं।

जितना अधिक धन उतनी अधिक चिंता : धन आने के साथ उसको संभालने की चिंता भी बढ़ती जाती है।

जितना करम में लिखा उतना ही मिलेगा : जितना भाग्य में लिखा है उतना ही मिलेगा।

जितना खाय, उतना ललचाय : मनुष्य को जितना प्राप्त होता है उतना ही उसका लालच बढ़ता जाता है।

जितना गधा बनोगे उतने ही लादे जाओगे (अपने आप को गधा बना लोगे तो और लादे जाओगे) : जो लोग सिधाई से और ईमानदारी से काम करते हैं उन्हीं पर और काम लादा जाता है।

जितना गर्माएगा, उतना ही बरसेगा (जितना तपेगा, उतना बरसेगा) : बरसात के मौसम में पानी बरसने से पहले गर्मी और उमस हो जाती है। जितनी अधिक गर्मी होती है उतनी ही अधिक वारिश होती है। इस कहावत का दूसरा अर्थ यह भी है कि आपसी वाद विवाद में जितनी अधिक गरमा गरमी होगी उतने ही परिणाम बुरे होंगे।

जितना गुड़ डालोगे उतना ही मीठा होगा : जितना खर्च करोगे उतना ही अच्छा काम होगा। जैसी रिश्वत दोगे, वैसा ही काम होगा।

जितना घी डालोगे उतना स्वाद होगा : किसी काम में जितना खर्च करोगे उतना ही बढ़िया काम होगा।

जितना छानो, उतना ही किरकिरा : जितनी मीन मेख निकालोगे, उतने ही दोष नज़र आएँगे।

जितना छोटा, उतना ही खोटा : छोटे कद वालों का मजाक उड़ाने के लिए।

जितना जाने उतना बखाने : किसी भी विषय में व्यक्ति जितना जानता है उतनी ही बात कर सकता है.

जितना भोग, उतना सोग। सोग – शोक, दुःख : भोग में जितना लिप्त होगे उतना ही दुःख उठाना पड़ेगा।

जितना मुटाय, उतना मिमियाय : कहा तो बकरे के लिए गया है पर मनुष्य पर भी लागू होता है।

जितना लंबा सांप, उतनी ही गोह चौड़ी : जब दो धूर्त एक से बढ़ कर एक हों तो (गोह – बिस्खोपड़ी)।

जितना सयाना, उतना दीवाना (वहमी) : 1. जो व्यक्ति जितना अनुभवी होता है वह उतना ही अधिक किसी बात के भले बुरे पहलू पर विचार करता है। अपने आप को बहुत बुद्धिमान समझने वाले नौसिखिये लोग उसे दीवाना और वहमी करार देते है। 2. जो जितना बड़ा मूर्ख होता वह अपने को उतना ही होशियार समझता है।

जितना सरे, उतना करे : जितनी सामर्थ्य हो उतना ही काम करना चाहिए। सरे – कर मिले।

जितनी आमद, उतना लोभ (जितना लाभ, उतना लोभ) : जितनी जितनी आय बढ़ती है उतना ही लालच बढ़ता जाता है।

जितनी भेड़ नाहीं उतने गड़ेर : काम कम, करने वाले अधिक। गड़ेर – गड़रिया।

जितने काले, मेरे बाप के साले : जितने भी चोर बदमाश हैं सब मेरे रिश्तेदार हैं।

जितने की ताल नहीं उतने का मंजीरा फूट गया : जितना लाभ नहीं कमाया, उससे अधिक का सामान खराब हो गया।

जितने ठाकुर मरें, उतने जुहार कम हों : जुहार – झुक कर सलाम कटना। पहले जमाने में लोगों को ठाकुर और जमीदारों को झुक कर सलाम करना पड़ता था। ऐसा कोई सताया हुआ व्यक्ति ठाकुरों के मरने की कामना कर रहा है, जिस से उसे जुहार कम करनी पड़ें।

जितने नर उतनी बुद्धि : हर व्यक्ति की बुद्धि अलग अलग प्रकार की होती है। (मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना)।

जितने फेरे उतनी वसूली : हाकिम जितनी बार अपने क्षेत्र में जाएगा उतनी ही उगाही कर के लाएगा।

जितने बड़के गाजी मियाँ, उतना बड़की मोंछ : अधिक तड़क भड़क और दिखावा करने वालों पर व्यंग्य।

जितने भाई, उतने घर : आज के जमाने में एक ही घर में कई भाइयों का रहना संभव नहीं है। हर एक भाई को अलग घर चाहिए।

जितने मुहँ उतनी बातें : यदि किसी विषय में बहुत से लोगों की अलग अलग राय हों तो यह कहावत कही जाती है।

जिद पर आई दुगुना पीसे : कुछ लोग या तो काम करते नहीं हैं, और जिद पर आ जाएँ तो करते ही चले जाते हैं।

जिधर जलता देखें, उधर तापें : जहाँ अपना स्वार्थ सिद्ध होता हो वहीँ पहुँच जाना।

जिन की यहाँ जरूरत, उन की वहाँ भी जरूरत (जिनकी यहाँ चाह, उनकी वहाँ भी चाह) : अच्छे लोगों की इस दुनिया में भी जरूरत है और उस दुनिया में भी, इसीलिए अच्छे लोगों की मृत्यु जल्दी हो जाती है। इंग्लिश में कहावत है – Heaven gives its favourites early death.

जिन के दामन में दाग हों वे दूसरों पर कीचड़ न उछालें : जिनके अंदर खुद कमियां हैं उन्हें दूसरों को बुरा भला नहीं कहना चाहिए।

जिन के पास न हो कौड़ी, वो कौड़ी के तीन : जिन के पास पैसा न हो उन की कोई इज्ज़त नहीं है।

जिन खोजा तिन पाइयाँ, गहरे पानी पैठ (मैं बपुरा बूड़न डरयो, रहा किनारे बैठ) : जो परिश्रम करता है वही फल पाता है।

जिन घर साधु न पूजिये घर की सेवा नांहि, ते घर मरघट जानिए, भूत बसे तिन मांहि। (कबीर) : जिस घर में साधु की पूजा नहीं होती, वह घर तो मरघट के समान है।

जिन जाए उन्हहिं लजाए : जिन जाए – जिन्होंने पैदा किया। अपने मां बाप को लज्जित करने वाला।

जिन मोलों आई, उन्हीं मोलों गंवाई : कोई चीज़ मुफ्त में मिली थी और मुफ्त में ही हाथ से निकल गई।

जिनके घर शीशे के बने हैं वे दूसरों पर पत्थर नहीं फेंकते : शाब्दिक अर्थ है कि यदि आप कांच से बने घर में रह रहे हैं तो आप दूसरों पर पत्थर न फेंके क्योंकि यदि उसने पत्थर फेंक दिया तो आपका घर टूट जाएगा। तात्पर्य है कि जिनके अंदर खुद कमियां हैं उन्हें दूसरों को बुरा भला नहीं कहना चाहिए।

जिनके पशु प्यासे बंधे, तिरियां करें कलेश, उनकी रक्षा ना करें, ब्रह्मा विष्णु महेश : जिन घरों में पालतू पशुओं की देखभाल न हो और स्त्रियाँ कलेश करती हों, उनकी ईश्वर भी रक्षा नहीं करते।

जिनके बड़े बिछाई खाट, उनका कुनबा बारह बाट : जिस खानदान में बड़े लोग खाट बिछा कर बैठ जाएं (अर्थात कुछ काम न करें) उसका सत्यानाश होना तय है।

जिनके मर गए बादशाह, रोते फिरें वजीर : जब राजा की मृत्यु हो जाती है तो उसके मंत्रियों की दशा बहुत दयनीय हो जाती है।

जिनके मुच्छ नहीं उनके कुच्छ नहीं : जिन लोगों को बड़ी बड़ी मूंछें रखने का शौक होता है वे बिना मूंछ वालों को हिकारत की नजर से देखते हैं और यह कहावत बोलते हैं।

जिनके लाड़ घनेरे, उनको दुःख बहुतेरे : जो बच्चे अधिक लाड़ प्यार में पलते हैं, वे अधिक दुखी रहते हैं।

जिनके होंगे पूत, वो पूजेगें भूत : कोई व्यक्ति कितना भी वैज्ञानिक सोच वाला और नास्तिक क्यों न हो जब अपना बच्चा बीमार हो तो वह भूत प्रेतों और ग्रह नक्षत्रों को मानने लगता है।

जिनको चाव घनेरा, उनको दुख बहुतेरा : जितनी अधिक अपेक्षाएं उतना अधिक दुःख।

जिन्ने न पी गांजे की कली, उस लड़के से लड़की भली : (बुन्देलखंडी कहावत) नशा करने वाले मूर्ख लोग अपने को बड़ा मर्द समझते हैं, उनके अनुसार नशा न करने वाले लोग नामर्द होते हैं।

जिन्ह सन करत सनेहु, तिन्ह की सब सहि लेहु : (बुन्देलखंडी कहावत) जिन से प्रेम हो उनकी अच्छी बुरी सब बात सहन कर ली जाती है।

जिन्हें जल्दी थी वो चले गये : सड़क पर चलने में जो बहुत जल्दबाज़ी करते हैं वे दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं। (ट्रकों पर लिखी जाने वाली कहावत)।

जिन्हें मुस्कुराना नहीं आता, उन्हें व्यापार नहीं करना चाहिए : व्यापार चलाने के लिए व्यक्ति को हंसमुख होना आवश्यक है।

जिब्बो चलेगी, चन्दो पिटेगी : (जिब्बो – जिव्हा, जीभ। चन्दो – चांद, खोपड़ी)। जीभ जितना अधिक अंट शंट बोलेगी खोपड़ी उतना ही पिटेगी।

जिभ्या रोगों की जड़ है : जीभ के स्वाद के लिए मनुष्य आलतू फ़ालतू चीजें खाता है और बीमार पड़ता है, इसलिए जीभ ही रोगों की जड़ है।

जिम्मेदारी ले उतनी, संभल सके जितनी : जितनी जिम्मेदारी संभाल पाओ उतनी ही लेनी चाहिए।

जिय बिनु देह नदी बिन वारी, तैसेहि नाथ पुरुस बिनु नारी : जैसे आत्मा के बिना शरीर और पानी के बिना नदी अर्थहीन है वैसे ही पति के बिना स्त्री है।

जियत पिता की करी न सेवा, बाद मरन के लड्डू मेवा : जब माता पिता जीवित थे तब उनकी सेवा नहीं की और उनके मरने के बाद उन्हें प्रसन्न करने का ढोंग कर रहे हैं।

जियत पिता की पूछी न बात, मरे पिता को दूध और भात : जो लोग जीवित माता पिता को नहीं पूछते और उनके मरने पर श्राद्ध करने का ढोंग करते हैं उन पर व्यंग्य।

जियत पिता से जंगम जंगा, बाद मरन के हर हर गंगा : जीवित माता पिता से झगड़ा करते रहे और उनके मरने के बाद उन्हें गंगा ले जा कर उनके भक्त होने का नाटक कर रहे हैं।

जियेगा नर तो फिर बसाएगा घर : कितनी भी बड़ी आपदा आए, यदि मनुष्य जीवित रहेगा तो फिर से घर बसाएगा।

जियो और जीने दो : जिस प्रकार आप स्वयं एक अच्छा जीवन जीना चाहते हैं उसी प्रकार औरों को भी जीने दें। इंग्लिश में कहावत है – Live and let live.

जिस आंगुली चोट लगे, दर्द उसी में होय : बात बड़ी स्पष्ट है,अपना अपना दर्द सबको स्वयं ही झेलना पड़ता है, कोई उसको बंटा नहीं सकता।

जिस का अगुआ अंधा, उसका लश्कर कुआं में : लश्कर माने सेना। सेना अपने नायक के पीछे आँख बंद कर के चलती है। यदि नायक अंधा होगा तो कुँए में गिरेगा और पीछे पीछे सेना भी कुँए में गिरेगी। अर्थ है कि यदि नेता मूर्ख हो तो जनता को ले डूबता है और गुरु मूर्ख हो तो शिष्यों को ले डूबता है।

जिस का आँडू बिके, वह बधिया क्यों करे : गाय का बछड़ा बड़ा हो कर सांड बनता है जोकि स्वेच्छाचारी होता है और खेती के काम नहीं आ सकता (इसलिए बिकता भी नहीं है)। इसलिए बचपन में ही उस के अंडकोष नष्ट कर दिए जाते हैं जिससे वह बधिया हो जाता है और बैल बन कर खेती के काम आता है। आँडू का अर्थ है सांड (जिसके अंडकोष सलामत हैं) और बधिया का अर्थ है बैल। किसी का घटिया उत्पाद बिक रहा हो तो वह उस को बढ़िया बनाने की कोशिश क्यों करेगा।

जिस का काम उसी को साजे, और करे तो डंडा बाजे : जो काम जिसके करने का वही करे तो ठीक रहता है, और कोई करे तो उस को मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। एक धोबी ने अपने कुत्ते से नाराज हो कर उसे खूब मारा और खाने को भी नहीं दिया, लिहाजा कुता नाराज हो कर एक कोने में पड़ गया। उस रात धोबी के घर चोर आए। कुत्ता नाराजी के कारण नहीं भौंका। गधे ने सोचा चलो मैं ही धोबी को जगा दूँ, तो वह जोर जोर से रेंकने लगा। धोबी गुस्से में उठा और नींद में खलल डालने की एवज में गधे की डंडे से ठुकाई कर दी।

जिस का खाओ, उसका गाओ : जिससे आपको लाभ होता हो उसी की प्रशंसा करनी चाहिए।

जिस का जाए, वही चोर कहलाए : हिन्दुस्तान में कुछ भी हो सकता है। यहाँ यह भी हो सकता है कि जिसके घर में चोरी हो उसी को पुलिस चोर ठहरा दे।

जिस का जूता उसी का सर (मियां की जूती मियां के सर) : मेरी ही चीज़ से कोई मुझे ही नुकसान पहुंचाए तो।

जिस का पल्ला भारी, उसी के साथ यारी : विशद्ध स्वार्थ। जो जीत रहा हो उसी के साथ दोस्ती करना।

जिस का बनिया यार, उसे दुश्मन की क्या दरकार : बनियों के बारे में कहा गया है कि वे अपने दोस्तों तक की जेब काट लेते हैं। इसी बात पर किसी ने कहा है कि जिस का बनिया दोस्त हो उसे दुश्मनों की क्या जरूरत।

जिस का ब्याह उसी के गीत : समय देख कर ही काम करना चाहिए। जिस का समय अच्छा हो उसी की प्रशंसा करो।

जिस की आँख में तिल, वह बड़ा बेदिल : जिसकी आँख में तिल होता है वह निष्ठुर होता है।

जिस की खाओ बाजरी, उसकी भरो हाजरी : जिसका अन्न खाओ उसी का काम करो।

जिस की खातिर नाक कटाई, वो ही कहे नकटा : जिस को लाभ पहुंचाने के लिए कोई गलत काम किया, वही आप को गलत ठहरा रहा हो तो यह कहावत कही जाती है।

जिस की गोद में बैठे उसी की दाढ़ी नोचे : आश्रय देने वाले को नुकसान पहुँचाने वाला।

जिस की जीभ चलती है उसके नौ हल चलते हैं : जो जबान का धनी है वह अपने सब काम करा लेता है।

जिस की जोरू अंदर, उसका नसीबा सिकन्दर : राजशाही और नवाबशाही के जमाने में जिस औरत को अंग्रेजों के घर में नौकरी मिल जाए उस के परिवार को बहुत सी सुविधाएं मिल जाती थीं।

जिस की तेग उसकी देग : जिसके पास ताकत होगी वही खाद्य सामग्री और अन्य संसाधनों पर कब्ज़ा कर लेगा। तेग – तलवार (युद्ध करने की क्षमता), देग – बड़ी हंडिया (भोजन का प्रबंध)।

जिस की देग, उसकी तेग : देग माने भोजन पकाने का बड़ा बर्तन। जिसके पास फ़ौज को खिलाने का इंतज़ाम होगा वही युद्ध जीतेगा।

जिस की फ़िक्र, उसका ज़िक्र : हम जिस के विषय में हर समय सोचते हैं उसी की बात करते हैं।

जिस की बंदरी वही नचावे, और नचावे तो काटन धावे : जो जिस का काम है वही उस को काम को करे तो काम ठीक से होता है, दूसरा उसे करने की कोशिश करे तो काम बिगड़ जाता है।

जिस की बीवी से पहचान, उसकी लौंडी से क्या काम : जहाँ बड़े हाकिम से जान पहचान हो वहाँ चपरासी को क्यों पूछें। (लौंडी – दासी)।

जिस की महल में मैया, मांगे पैसा मिले रुपैय्या : महल में नौकरी करने वालों की बड़ी ऐश होती है। महल में नौकरी करने वाली किसी महिला का बच्चा खर्चे के लिए पैसा माँग रहा है तो माँ उसे रुपया दे रही है। आजकल भी सरकारी नौकरी करने वालों का काफ़ी कुछ यही हाल है।

जिस की लाठी उसकी भैंस : यहाँ लाठी का अर्थ ताकत से और भैंस का अर्थ चल अचल संपत्ति से है। जिसके पास ताकत होती है वह संपत्ति पर कब्ज़ा कर लेता है। जाका कोड़ा ताका घोड़ा। इंग्लिश में कहावत है – Might is right.

जिस की सीरत अच्छी, उसकी सूरत भी अच्छी : जो आदत का अच्छा होता है वह अपने सौम्य स्वभाव के कारण देखने में भी अच्छा लगने लगता है।

जिस के कारन जोगन भई, वह सैंया परदेस : जिसके कारण घर बार छोड़ा वही छोड़ कर चला गया।

जिस के घर में बेरी का पेड़ है, उसके घर में ढेले आयेंगे ही : यदि आपके पास कोई नायाब चीज़ है और आप ठीक से उसकी रक्षा नहीं कर सकते तो लोग उस पर कुदृष्टि तो रखेंगे ही।

जिस के पास न पैसा, वह भलामानस कैसा : जिसके पास धन होता है उसको लोग भलामानस समझते हैं, निर्धन को लोग भलामानस नहीं समझते.

जिस के पास पूत नहीं, वह क्या जाने माया : जिनके संतान नहीं होती वे पैसे के महत्व को नहीं समझते (पैसे को महत्वपूर्ण नहीं मानते)।

जिस के राम धनी, उसे कौन कमी : जो भगवान के भरोसे रहता है, उसे किसी चीज की कमी नहीं होती.

जिस के लिए चोरी की वही कहे चोर : कभी कभी मजबूरी में अपने किसी बहुत प्रिय व्यक्ति की खातिर आपको गलत काम करना पड़ता है। जिसके लिए ऐसा काम किया वही आपको चोर कहने लगे तो यह कहावत कही जाएगी।

जिस के वास्ते रोए, उसकी आँखों में आंसू नहीं : जिस से हमदर्दी जताने के लिए आप रो रहे हैं वह अपने दुःख से इतना दुखी नहीं है।

जिस के सर पर ताज, उसके सर में खाज : किसी भी परिवार या संगठन में जो मुखिया होता है उसी को सारे झंझट झेलने पड़ते हैं।

जिस के हाथ डोई उसका सब कोई : डोई – करछी।यहाँ डोई का तात्पर्य खाने पीने की सुविधा से है। अर्थ है कि सब लोग धनवान का साथ देते हैं और उसी की खुशामद करते हैं.

जिस के होय न पैसा पास, उस को मेला लगे उदास : मेले में मस्ती करनी हो तो खर्च करने के लिए पैसा चाहिए। जिसके पास पैसा न हो उसे मेला उदास लगता है।

जिस को आदत है मेहनत की, उसको कमी नहीं है दौलत की : जो मेहनत करते हैं वे इतना पैसा तो कमा ही लेते हैं कि उनको अभावों में न रहना पड़े।

जिस को न दे मौला, उसको दे आसफुद्दौला : आसफुद्दौला लखनऊ के एक प्रसिद्द नवाब हुए हैं जो बड़े दानी माने जाते थे। उन्ही के लिए यह कहावत प्रसिद्द थी।

जिस को पिया चाहे वही सुहागन : 1. केवल विवाह कर लेने मात्र से कोई स्त्री सुहागिन नहीं हो जाती। सही मानों में सुहागिन वही है जिसका पति उसे प्रेम करता हो। 2. जिस मातहत पर हाकिम की कृपादृष्टि हो जाए उसी की मौज है।

जिस गाँव जाना नहीं, उसके कोस क्या गिनने : जो काम करना ही नहीं उसका हिसाब लगाने में समय क्यों खपाया जाए।

जिस घर जाई, उसी घर ब्याई : मुसलमानों में बहुत निकट सम्बन्धियों में विवाह सम्बन्ध हो जाते हैं उस पर व्यंग्य। जाई – पैदा हुई, ब्याई – विवाह हो कर गई।

जिस घर दूहे काली, उस घर नित दीवाली : जिस घर में काली गाय दूध दे रही हो वहाँ नित्य ही उत्सव का माहौल रहता है। वैसे काली तो भैंस भी होती है, लेकिन कहावतों में आमतौर पर भैंस को इतनी तवज्जो नहीं दी जाती।

जिस घर नारी फूहड़, वह घर जानो कूहड़ : जिस घर में गृहणी फूहड़ होती है वह कूड़े के ढेर के समान हो जाता है।

जिस घर बड़े न बूझिए, दीपक जले न सांझ, वह घर ऊजड़ जानिए, जाकी तिरिया बाँझ : जिस घर में बड़े लोगों से सलाह नहीं ली जाती, शाम से दीपक नहीं जलाया जाता और स्त्री बाँझ है उस घर का उजड़ना निश्चित है।

जिस घर बड्डा ना मानिये ढोरी पड़ै ना घास, सास-बहू की हो लड़ाई उज्जड़ हो-ज्या बास : (हरयाणवी कहावत) जिस घर में बड़ों की बात नहीं मानी जाती, जानवरों को समय पर दाना पानी नहीं डाला जाता और सास बहू में लड़ाई होती है, वह घर उजड़ जाता है।

जिस घर में खाना, उसी में आग लगाना : निकृष्ट और कृतघ्न लोगों के लिए। जैसे देश में रहने वाले कुछ लोग यहाँ का खाते हैं और देश की अर्थ व्यवस्था को नुकसान पहुंचाने का प्रयास करते रहते हैं।

जिस घर में नहिं बूढा, वो घर जानो बूड़ा : बूढ़ा – वृद्ध, बुजुर्ग, बूड़ा – डूबा। जिस घर में बुजुर्ग लोग न हों वह ड़ूब जाता है।

जिस घर में संपत नहीं, तासे भला विदेस : घर में बहुत अधिक गरीबी हो तो परदेस जा कर जीविका तलाशना अधिक अच्छा है।

जिस घर सौंफ महकनी उस घर जीरा कौन लिवाल, जिस घर सास मटकनी, उस घर बहू को कौन हवाल : बेटे की शादी हो जाए और बहू घर में आ जाए उस के बाद भी कुछ औरतें बहुत चटक मटक से रहती हैं, उन्हीं के ऊपर व्यंग्य। लिवाल – लेने वाला।

जिस घर होए कुचलिया नारी, सांझ भोर हो उसकी ख्वारी : जिस घर में स्त्री बदचलन हो वहाँ सुबह शाम सब बर्बाद हैं।

जिस घर होवे पुरुष कुचलिया, उस घर होवे खीर का दलिया : जिस घर में पुरुष दुश्चरित्र हो वहाँ पूरी अर्थ व्यवस्था बिगड़ जाती है।

जिस तन लागे वह तन जाने : जिस को कष्ट उठाना पड़ता है वही जान सकता है।

जिस थाली में खाए उसी में हगे : अत्यंत नीच और कृतघ्न व्यक्ति।

जिस थाली में खाये उसी में छेद करे : जिस के बूते खाना पानी मिल रहा हो उसी को नुकसान पहुँचाना।

जिस ने पढ़ा गीता, उसने घर में दिया पलीता : वैसे यह बात गीता के मुकाबले महाभारत के साथ अधिक सही बैठती है। जो महाभारत पढ़ता है वह घर में भी वैसे ही लड़ाई झगड़े करता है। इसीलिए पुराने लोग लोगों को महाभारत नहीं बल्कि रामायण पढने की सलाह देते हैं। गीता पढ़ने से भी लोगों के मन में वैराग्य का भाव आ सकता है जो कि गृहस्थ के लिए अच्छा नहीं माना जाता है।

जिस ने वैश्या को चाहा वह भी तबाह और जिसे वैश्या ने चाहा वह भी तबाह : वेश्याओं के चक्कर में पड़ने से हर तरह से बर्बादी ही बर्बादी है।

जिस राह ही नहीं चलना उसके कोस गिनने से क्या काम : जो काम करना ही नहीं है उसके नुकसान फायदे क्या गिनना।

जिस वन सुआ न कोयल, वहाँ कौए खाएं कपूर : जिस वन में तोते और कोयल न हों वहाँ कौओं को कपूर खाने को मिलता है। जहाँ योग्य व्यक्तियों का अभाव हो वहाँ अयोग्य व्यक्तियों की मौज हो जाती है।

जिस से चोरी का डर हो उसी से कहो रखवाली करे : बहुत ही व्यवहारिक सुझाव है।

जिस हंडिया में हमारा हिस्सा नहीं, वह भले ही चूल्हे पर चढ़ते ही टूटे : जिस आयोजन से हमें कोई लाभ नहीं होने वाला वह पूरा हो या उसका बंटाढार हो जाए, हमें क्या।

जिस का खा कर आओगे उसे खिलाना भी पड़ेगा : किसी के यहाँ विवाह आदि आयोजन में दावत खाओगे उसे फिर अपने यहाँ भी आमंत्रित करना पड़ेगा। किसी का एहसान लोगे तो उसको चुकाना भी पड़ेगा।

जिस का खावै टीकड़ा, उसका गावै गीतड़ा : (हरयाणवी कहावत) जिसकी रोटी खाओ, उसके गीत गाओ।

जिस का गुइंया नहीं उसका कूकुर गुइयां : जिसका कोई दोस्त नहीं उसका कुत्ता ही दोस्त होता है। गुइंया – दोस्त।

जिस का चाम, उसी की सीवन : चमड़े को सिलने के लिए चमड़े की ही डोरी बनाई जाती थी। अर्थ है कि जिस प्रकार के लोगों से काम लेना हो उसी प्रकार का कर्मचारी रखना चाहिए।

जिस का नहीं साला, उसके घर में ताला : कुछ कहावतें केवल आपसी हंसी मजाक के लिए बनाई गई हैं।

जिस का पल्ला भारी, उसी के साथ यारी : अवसर वादिता।

जिस का बाप बिजली से मरे, वो कड़क देख के डरे : अर्थ स्पष्ट है। इसी प्रकार की एक और कहावत है – सांप का काटा रस्सी से भी डरता है।

जिस का मरा सो रोवे, गंगादास सुख से सोवे : जो लोग कोई सामाजिक सरोकार नहीं रखते उन पर व्यंग्य। समाज का नियम तो यह है कि चाहे ख़ुशी में किसी के घर न जाओ, पर दुःख में अवश्य जाओ।

जिस की गाड़ी रेत में उसी का बुद्धू नाम : जिस की गाड़ी रेत में फंस जाए उसी को लोग बुद्धू समझते हैं। जिस का काम बिगड़ जाए उसे ही सब मूर्ख कहते हैं।

जिस की गूजर खीर खाए, उसी की भैंस चुरा ले जाए : कहावत मेंगूजर को कृतघ्न बताया गया है।

जिस के एक खसम न हो उसके सौ खसम हो जाते हैं : जिस स्त्री का पति न रहे सभी लोग उस पर अपनी हुकूमत चलाते हैं या उस का शोषण करना चाहते हैं।

जिस को चलना हो बाट, उसे कैसे सुहावै खाट : (हरयाणवी कहावत) जिसको दूर जाना है वह खाट पर बैठ कर आराम कैसे कर सकता है।

जिस को लगे उसी को दुखे : जिसको चोट लगती है वही उस के कष्ट को जान सकता है। वह चोट चाहे शरीर पर लगी हो या मन पर।

जिस ने दिया तन को देगा वही कफन को : जिसने शरीर के निर्वाह के लिए साधन दिए हैं वही कफन का इंतजाम भी करेगा। आलसी लोगों का कथन।

जिस ने देखी ना दिल्ली, वो कुत्ता न बिल्ली : जिसने दिल्ली नहीं देखी वह कुत्ते बिल्ली से भी गया बीता है।

जिसे आकाश में खोजा वह धरती पर मिला : कोई व्यक्ति बहुत ढूँढने के बाद मिले तो।

जिसे खाने को मिले यूँ, वह कमाने जाए क्यूँ : जिसे घर बैठे खाने को मिले वह पैसा कमाने के लिए मेहनत क्यों करेगा।

जिसे मरने का डर नहीं, उसे मारने वाला कोई नहीं : युद्ध में जो व्यक्ति जीवन का मोह छोड़ कर लड़ता है उसे हराना बहुत मुश्किल है।

जिस्म तोड़े तो घर बने : घर बनाने के लिए अत्यधिक श्रम करना पड़ता है।

जी कहीं लगता नहीं, जब जी कहीं लग जाए है : किसी से प्रेम हो जाए तो कहीं मन नहीं लगता। यह प्रेम स्त्री पुरुष का भी हो सकता है और आत्मा परमात्मा का भी।

जी कहो जी कहलाओ (जी न कहो तो जी न सुनोगे) : यदि तुम दूसरों का आदर करोगे, तो लोग भी तुम्हारा आदर करेंगे.

जी का बैरी जी : 1. मनुष्य स्वयं अपना सबसे बड़ा शत्रु है। 2. जीव ही जीव का शत्रु है। इंग्लिश में कहावत है – Man is his own worst enemy.

जी के बदले जी : जान के बदले जान लेने की इच्छा। बदला लेने की उत्कट भावना।

जी चाहे बैराग को, कुनबा छोड़े नाहिं : 1. कोई व्यक्ति वास्तव में वैराग्य लेना चाहता है लेकिन कुटुम्ब के लोग उसे छोड़ नहीं रहे हैं। 2. कोई व्यक्ति वैराग्य लेने का ढोंग रच रहा है और कह रहा है कि मैं तो वैराग्य लेना चाहता हूँ पर क्या करूँ परिवार के लोग जाने नहीं दे रहे हैं।

जी जाए, घी न जाए : चाहे जान चली जाए पर घी खर्च न हो। महा कंजूस व्यक्ति का मजाक उड़ाने के लिए। के लिए।

जी बहुत चलता है मगर टट्टू नहीं चलता : बुढ़ापे में इन्द्रियाँ कमज़ोर हो जाने पर।

जी ही से जहान है : यदि जीवन है तो सब कुछ है। इसलिए सब तरह से प्राण-रक्षा की चेष्टा करनी चाहिए.

जी हुजूरी को कभी जोखिम नहीं : चमचागिरी करने में नफा ही नफा है, जोखिम कोई नहीं।

जीजा के माल पे साली मतवाली : अपने रिश्तेदारों के बल पर घमंड करना।

जीजा हमारे इत्ते शर्मीले, इक परसो दो छोड़त हैं : (बुन्देलखंडी कहावत) खाने पीने में ज्यादा तकल्लुफ करने वाले लोगों पर हास्य पूर्ण व्यंग्य।

जीता सो भी हारा, और हारा सो मुआ : मुकदमा जीतने वाला इंसान भी बहुत परेशानी उठाता है (अत्यधिक मानसिक तनाव और खर्च के कारण) और अगर हार गया तब तो बिलकुल ही मरा।

जीती मक्खी कोई न निगले : कोई अपमानजनक या घृणित चीज़ अनजाने में तो आप सह सकते हैं पर जानते बूझते कोई नहीं सह सकता।

जीते आसा, मुए निरासा : जीवन के साथ आशा की डोर बंधी है जो मरते ही समाप्त हो जाती है। इस का अर्थ यह भी हो सकता है कि आशावादी व्यक्ति की जीत होती है और निराशावादी मरे हुए के समान है।

जीते चाव चाव, मुए दाब दाब : जीवित व्यक्ति से सब प्रेम रखते हैं पर उसके मरते ही दफनाने की जल्दी होने लगती है।

जीते तो हाथ काला, हारे तो मुँह काला : जुआरियों के लिए। जीतेंगे तो धन उड़ा देंगे, हारेंगे तो बेइज्ज़त होंगे।

जीते थे तो लीखों भरे, मर गए तो मोतियों जड़े : लीख कहते हैं जूँ के अंडे को। जीते जी तो माँ बाप की इतनी बेकदरी कि उन के सर में जूएँ पड़ गईं और उन के मरने के बाद उनकी मोतियों जड़ी तस्वीरें लगाई जा रही हैं।

जीना कठिन है पर मरना और भी ज्यादा कठिन : अर्थ स्पष्ट है।

जीने के लिए खाओ, खाने के लिए मत जिओ : कुछ लोग हर समय खाने के विषय में ही सोचते हैं जैसे कि वे केवल खाने के लिए जिन्दा हैं। उनके लिए यह शिक्षा है कि उतना ही खाना चाहिए जितना स्वस्थ जीवन जीने के लिए आवश्यक है।

जीभ और थैली को बंद ही रखना अच्छा है : कम बोलने (कम खाने) और कम खर्च करने से बड़ा लाभ होता है.

जीभ भी जली और स्वाद भी न पाया : जब कोई काम करने में आनंद भी नहीं मिला और नुकसान अलग हुआ।

जीभ में ही अमृत बसे और जीभ में ही जहर : मीठी बोली द्वारा किसी मृतप्राय व्यक्ति को जिलाया जा सकता है, और कड़वी बोली द्वारा किसी को मृत्यु जैसी प्रताड़ना दी जा सकती है।

जीमना और झगड़ना पराए घर ही अच्छे लगते हैं : जो मजा दूसरे के घर पर जीमने (खाने) में है वह अपने घर पर खाने में नहीं है। इसी तरह झगड़ा करने का मजा भी दूसरे के घर पर ही आता है।

जीमना न जूठना, न कंघी न खाट, साँपों के ब्याह में बस जीभों की लपलपाट : दुष्टों के जमावड़े में कोई एक दूसरे की आवभगत नहीं करता, सब एक दूसरे को निगल जाने की फ़िराक में रहते हैं।

जीमा जूठा एक नाम, मारा पीटा एक नाम : किसी के घर केवल मुँह जूठा किया या जम कर खाया, खाने का नाम तो हो ही गया। ऐसे ही किसी को एक थप्पड़ मारा या जम के ठुकाई की, मारने का नाम तो हो ही गया।

जीयेगा तो खेलेगा फाग : जीवन का आनंद लेने के लिए जीवित रहना जरूरी है।

जीवे मेरा भाई, गली गली भौजाई : ननद की भाभी से लड़ाई हुई तो वह कहती है कि मेरा भाई जीता रहे, तेरे जैसी भाभियाँ तो गली गली में मिल जाएंगी।

जुआरी का खर्चा बादशाह भी पूरा नहीं कर सकता : जुआरी के पास कितना भी पैसा हो, वह सब जुए में हार सकता है।

जुआरी को अपना ही दांव सूझता है : स्वार्थी आदमी अपना स्वार्थ ही देखता है।

जुआरी हमेशा मुफ़लिस : जुआरी अगर जुए में जीत जाए तो पैसे को खुर्द बुर्द कर देता है, और हार जाए तो कंगाल हो ही जाता है।

जुए में हारा और मेहरारू का मारा भेद न खोले : जुए में हारा हुआ व्यक्ति और पत्नी से मार खाया हुआ व्यक्ति किसी को अपना भेद बताता नहीं है।

जुए से बैल भी हारा है : इसका कहावती अर्थ तो यह है कि जुआ सभी के लिए बुरा है चाहे आदमी हो या जानवर। उसको अलंकारिक रूप में इस तरह कहा गया है क्योंकि कि जुए का एक अर्थ वह लकड़ी भी है जिसके द्वारा बैल हल से बांधे जाते हैं।

जुओं के मारे सर कौन कटाए : छोटी परेशानी से बचने के लिए बहुत बड़ा नुकसान कौन करता है।

जुगनू बोले सूर्य सों हम बिन जग अंधियार : किसी महत्वहीन व्यक्ति द्वारा अपने को बहुत महत्वपूर्ण बता कर अहंकार करना।

जुगल जोड़ी सलामत रहे : पति पत्नी को एक साथ दिया जाने वाला आशीवाद।

जुड़ती नहीं धुर की टूटी, धरी रहें सब दारु बूटी : धुर की टूटी का अर्थ है जिस गाड़ी की धुरी टूटी गई हो। यहाँ इशारा किसी ऐसी बीमारी से है जो शरीर को बिलकुल तोड़ दे। ऐसी बीमारी का इलाज नहीं हो पता, सब दवा दारु रखी रह जाती हैं।

जुत जुत मरें बैलवा बैठे खाएं तुरंग : बैल बिचारे हल जोत जोत कर जान देते हैं और घोड़े बैठे बैठे खाते हैं। मेहनतकश लोग मेहनत करते हैं और धनी लोग व हाकिम लोग उसका लाभ उठाते हैं।

जुबान बिना हड्डी की, फिरने में क्या देर लगे : जो लोग अपनी बात पर कायम नहीं रहते उन के ऊपर व्यंग्य।

जुबान में ही रस, जुबान में ही विष : जुबान से ही मीठी बोली बोली जाती है और जुबान से ही कड़वी बोली।

जुमा छोड़ सनीचर नहाए, उसका सनीचर कभी न जाए : लोक विश्वास है कि जो व्यक्ति शुक्रवार को न नहा कर शनिवार को नहाता है उसके सर से शनिश्चर नहीं हटता।

जूठा खाए मीठे को। (जूठा खाए मीठे के लालच) : मीठा खाने के लालच में मनुष्य झूठा भी खा लेता है। मनुष्य नीच काम तभी करता है जब लाभ अधिक हो।

जूठे हाथ से कुत्ता भी नहीं मारते : 1. किसी छोटे से छोटे व्यक्ति को भी अपमानित नहीं करना चाहिए। 2. अत्यधिक कंजूस व्यक्ति के लिए।

जूती तंग और रिश्तेदार नंग, सारी जगहां चुभें : (हरयाणवी कहावत) तंग जूता और बेशर्म रिश्तेदार बहुत कष्ट देते हैं।

जूती तो हमेशा पाँव के नीचे ही रहेगी : जो लोग स्त्री को पाँव की जूती समझते हैं (पुरुष से बहुत नीचा समझते हैं) और दबा कर रखना चाहते हैं वे इस प्रकार से बोलते हैं।

जूते का घाव, मियाँ जाने या पाँव : जूते से होने वाले घाव की पीड़ा वही जान सकता है जिस पर बीतती है।

जूते का मारा ऊपर को और टुकड़े का मारा नीचे को देखता है : जिस को जूता मारोगे वह आक्रोश दिखाएगा, जिस को टुकड़ा पकड़ा दोगे वह निगाह झुका लेगा।

जूते दान करने के लिए गाय की हत्या : अपने किसी छोटे से स्वार्थ के लिए किसी का बहुत बड़ा नुकसान करना।

जूँ बिना खाज नहीं, कुल बिना लाज नहीं : दोनों बातों का आपस में सम्बंध नहीं है, केवल तुकबंदी करने के लिए साथ कही गई हैं। सर में खुजली जूँ के कारण से होती है और लज्जा कुलीन लोगों में ही पाई जाती है।

जूं के कारण गुदड़ी नहीं फेंकी जाती : किसी छोटी सी कमी के कारण उपयोगी वस्तु या व्यक्ति का तिरस्कार नहीं करना चाहिए।

जे खाय गाय के गोश्त, ते कैसे हिन्दू के दोस्त : जो गाय का मांस खाते हैं वे हिन्दुओं के दोस्त कैसे हो सकते हैं (दोस्ती में दूसरों की भावनाओं का ध्यान रखना आवश्यक होता है)।

जे गरीब पर हित करैं, ते रहीम बड़ लोग, कहाँ सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग : व्यवहार में इसका पूर्वार्ध ही बोला जाता है। वास्तव में वही लोग बड़े कहलाने योग्य हैं जो निर्धन का हित करते हैं। (श्री कृष्ण का उदाहरण दिया गया है जिन्होंने राजा होते हुए भी अत्यंत निर्धन सुदामा से मित्रता निभाई)।

जे न मित्र दुःख होहिं दुखारी, तिन्हहिं विलोकति पातक भारी : जो मित्र के दुःख में दुखी नहीं होते उन्हें देखने मात्र से ही भारी पाप लगता है।

जिसका धन जाता है उसका धर्म भी चला जाता है : इसका एक अर्थ यह है कि गरीब को लोग धर्मात्मा नहीं मानते, झूठा लुच्चा ही मानते है। दूसरा अर्थ है कि धन जाने पर आदमी उसे वापस पाने के लिए अनैतिक कार्य भी करता है।

जिस की छाती बार नाहीं, उस का एतबार नाहीं : यह भी एक पुरानी मान्यता है।

जिस का खसम पूछा न करे, उस की मांग में भर भर सिन्दूर : (भोजपुरी कहावत) जिस स्त्री का पति उसको नहीं पूछता वह औरों को दिखाने के लिए अपनी मांग में अधिक सिदूर भरती है।

जिस की बहिन अंदर उस का भाई सिकंदर : (भोजपुरी कहावत) जिस भाई की बहन किसी बड़े नेता या अधिकारी के घर ब्याही हो वह बेखौफ उस घर में आता जाता है।

जिसकी जोरू अंदर, उसका नसीबा सिकंदर : जिस की पत्नी किसी बड़े आदमी के घर में काम करती हो उस का भाग्य चमक जाता है।

जेठ के भरोसे पेट : 1.जब कोई मनुष्य बहुत निर्धन होता है (या उस की मृत्यु हो जाए) और उसके परिवार का पालन उसका बड़ा भाई (स्त्री का जेठ) करता है तब कहते हैं । 2. कोई व्यक्ति अपने किसी रिश्तेदार की शह पर अनैतिक काम कर रहा हो तो व्यंग्य में बोलते हैं।

जेठ के सो पेट के : जेठ के पुत्र भी अपने बेटों जैसे हैं।

जेठ चले पुरवाई, सावन सूखा जाई : अगर जेठ के महीने में पुरबाई चले तो सावन में वारिश नहीं होती।

जेठा बेटा भाई बराबर : बड़े बेटे को भाई की तरह महत्व देना चाहिए। जेठा – ज्येष्ठ, बड़ा।

जेठे लड़का लड़की की शादी जेठ में न करो : पुरानी मान्यता है कि बड़े लड़के या लड़की की शादी जेठ के महीने में नहीं करना चाहिए।

जितने के बबुआ नाहीं, उतने के झुनझुना : (भोजपुरी कहावत) मूल वस्तु की कीमत कम, रख रखाव का खर्च अधिक।

जेते जग में मनुज हैं तेते अहैं विचार : संसार में सभी मनुष्यों की प्रकृति, प्रवृत्ति तथा अभिरुचि भिन्न-भिन्न हुआ करती है.

जेते मुख तेती वार्ता। (जितने मुंह उतनी बात) : सभी लोगों का सोचने का ढंग अलग अलग होता है।

जेब जितनी भारी, दिल उतना हल्का : पैसा आने के साथ आदमी और अधिक स्वार्थी और कंजूस होता जाता है।

जेर से ही सेर होवे : आज का निरा बालक कल बलवान बन सकता है। इसलिए बच्चों की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए।

जेहि घट प्रेम न सँचरै, सो घट जानि मसान (जैसे खाल लोहार की, साँस लेत बिनु प्रान) : जिस व्यक्ति के मन में प्रेम नहीं है वह श्मशान के समान है। वह उसी प्रकार है जैसे लुहार की चमड़े की धौंकनी बिना प्राण के सांस लेती है।

जेहि घर साला सारथी, अरु तिरिया की हो सीख, सावन में बिन हल रहे, तीनहु मांगें भीख : जो घर साले की सलाह से चलता हो, जिस घर में केवल पत्नी की चलती हो एवं जो किसान सावन में बिना हल के रहे इन तीनों की बर्बादी निश्चित है। इस से मिलती एक बुन्देलखंडी कहावत है – बैरी को मत मानबो, अरु तिरिया की सीख, क्वार करे हल जोतनी, तीनहुं मांगें भीख।

जै घर में सुरती नहीं, नहीं पान सैं हेत, ते घर ऐसे जाएंगे, ज्यों मूली को खेत : (बुन्देलखंडी कहावत) सुरती – एक विशेष प्रकार की तम्बाखू। तम्बाखू प्रेमी कहते हैं कि जिस घर में पान तम्बाखू से प्रेम नहीं होता वह मूली के खेत की तरह नष्ट हो जाता है।

जै दिन जेठ चले पुरवाई, तै दिन सावन धूल उड़ाई : यदि जेठ के महीने में पुरवाई चले तो सावन में सूखा पड़ता है।

जैसन को तैसन, सुकटी को बैंगन : किसी दुबली पतली लड़की की शादी मोटे लड़के से हो जाए तो।

जैसन देखे गाँव की रीत, तैसन करे लोग से प्रीत : जैसी परिस्थितियाँ और परिवेश हों वैसा ही व्यवहार करना चाहिए।

जैसा अंश, वैसा वंश : माता पिता का जैसा अंश बच्चों में आता है वैसा ही उनका वंश बनता है। आधुनिक विज्ञान का आनुवंशिकता का सिद्धांत भी यही कहता है।

जैसा ऊँट लम्बा, वैसा गधा खवास : जब एक ही प्रकार के दो मूर्खों का साथ हो.

जैसा कन भर, वैसा मन भर : बोरी में से एक चावल देखकर चावल की क्वालिटी मालूम हो जाती है। व्यक्ति के एक काम को देख कर उसके विषय में अंदाज़ लग जाता है।

जैसा करेगा, वैसा भरेगा : व्यक्ति जैसे कार्य करता है वैसा ही फल पाता है।

जैसा काछ काछे वैसा नाच नाचे : काछ – परिधान (विशेषकर नटों या अभिनेताओं द्वारा धारण किया हुआ वेष)। कहावत का अर्थ यह भी हो सकता है कि नट लोग जैसा वेश पहनते हैं वैसा ही अभिनय करते हैं और यह भी हो सकता है कि जैसा परिवेश हो वैसा ही व्यवहार हमें करना चाहिए।

जैसा खावे, वैसी डकार आवे : आदमी जिस प्रकार का कार्य करता है उसके वैसे ही परिणाम होते हैं।

जैसा खुदा, वैसे ही फ़रिश्ते : जब कोई अफसर या नेता भ्रष्ट हो और उसके मातहत भी बेईमान हों।

जैसा जामन वैसा दही : 1. जामन अगर अच्छा होगा तो दही भी अच्छा जमेगा। जितना अच्छे साधन होंगे उतना ही अच्छा कार्य होगा। 2. बच्चे को जैसे संस्कार दोगे वह वह वैसा ही बनेगा।

जैसा तेरा ताना-बाना वैसी मेरी भरनी : जैसा व्यवहार तुम मेरे साथ करोगे, वैसा ही मैं तुम्हारे साथ करूँगा। ताना बाना और भरनी कपड़ा बुनने में प्रयोग होने वाले शब्द हैं।

जैसा दूध धौला, वैसी छाछ धौली : 1. जितना अच्छा दूध होगा उतनी ही अच्छी छाछ बनेगी। जितना उच्च कोटि का कच्चा माल होगा उतना ही अच्छा उत्पाद (product) होगा। 2. योग्य माँ बाप की योग्य संतान के लिए।

जैसा देवर, वैसी भौजी : जहाँ देवर भाभी एक से मजाकिया या दुष्ट हों।

जैसा देवे वैसा पावे, पूत भतार के आगे आवे : कोई स्त्री दूसरी से कह रही है कि जैसे सब के साथ करोगी वैसा ही तुम्हारे साथ होगा। औरों के साथ बुरा करोगी तो तुम्हारे पुत्र और पति के साथ बुरा होगा।

जैसा देस वैसा भेस : जहां रहो वहीँ के हिसाब से अपने को ढाल लो।

जैसा पशु, तैसा पगहा : पगहा माने जानवर के पिछले पैर या गले में बांधे जाने वाला रस्सा या जंजीर। जितना शक्तिशाली और गुस्सैल जानवर होता है उतने ही मजबूत पगहे से उस को बाँधा जाता है। समाज के लोगों के साथ व्यवहार में भी इसी सिद्धांत का प्रयोग किया जाता है। कौन से अफसर या सरकारी मुलाजिम से कैसे निबटना है इस के लिए भी यही कहावत चरितार्थ होती है।

जैसा पीवे पानी, वैसी बोले वानी : व्यक्ति का खान पान जैसा होता है उसका व्यवहार भी वैसा ही हो जाता है।

जैसा पैसा गाँठ का, तैसा मीत न कोय (जैसी गठरी आपनी, वैसो मीत न कोय) : अपने पास का पैसा ही सबसे अच्छा मित्र है।

जैसा बाप वैसा पूत : 1. पुत्र अमूमन पिता के आदर्शों पर ही चलते हैं। 2. अगर कोई बाप बेटा एक से बढ़ कर एक हों तो (चाहे खुराफाती हों या बुद्धिमान)।

जैसा बेटा रानी का, वैसा बेटा कानी का : सभी स्त्रियों को अपना पुत्र प्यारा होता है।

जैसा बोओगे वैसा काटोगे : जैसा व्यवहार औरों के साथ करोगे वैसा ही फल आपको मिलेगा। यदि दूसरों के खिलाफ़ षड्यंत्र रचोगे तो खुद भी किसी षड्यंत्र का शिकार होगे।

जैसा बोले डोकरा, वैसा बोले छोकरा : घर के बड़े बूढ़े जैसी बोली बोलते हैं वैसी ही बोली बच्चे सीख जाते हैं। (डोकरा – बूढ़ा आदमी)

जैसा ब्याह वैसा नेग : जैसा काम वैसा ही ईनाम।

जैसा मन हराम में वैसा हरि में होए, चला जाए बैकुंठ को रोक सके न कोए : जितना मन खुराफात में लगता है उतना अगर ईश्वर की भक्ति में लगाएं तो मोक्ष मिल जाएगा।

जैसा माल वैसा मोल : जैसा माल होगा वैसा ही उसका मूल्य मिलेगा।

जैसा मुँह वैसा थप्पड़ (जैसा मुंह वैसी चपेट) : गलती की सजा भी व्यक्ति का मुँह देख कर दी जाती है।

जैसा मुँह, वैसा तिलक : व्यक्ति की हैसियत के अनुसार उसका सम्मान होता है।

जैसा साजन वैसा भोजन : अतिथि की योग्यता के अनुसार ही उसका सम्मान होता है।

जैसा सोचे, वैसा पावे : जो बड़ी सोच रखते हैं वे बड़ी उपलब्धियाँ पा जाते हैं, जो छोटी सोच रखते हैं उनकी उपलब्धियाँ भी सीमित होती हैं।

जैसा सोता वैसी धारा : जैसा स्रोत होगा वैसी ही जल की धारा होगी। कोई संगठन या परिवार जिन विचारों से प्रेरित होगा वैसे ही कार्य करेगा।

जैसी कमाई वैसी समाई (खर्च) : कमाई जितनी हो खर्च भी उतना ही करना चाहिए.

जैसी करनी वैसी भरनी : जैसे कर्म करोगे वैसे ही फल भुगतने पड़ेंगे। कुछ लोग इस के आगे बोलते हैं – जैसी करनी वैसी भरनी, न माने तो कर के देख।

जैसी खान वैसा ही हीरा, ऐसी बहन का ऐसा ही वीरा : हीरों की कुछ खानें उच्च कोटि के हीरों के लिए प्रसिद्ध हैं, अर्थात उच्च कोटि की खान से निकला हीरा भी उच्च कोटि का होगा। जैसे योग्य माता पिता वैसा ही योग्य पुत्र, जैसी योग्य बहन, वैसा ही योग्य भाई।

जैसी गंगा नहाए, तैसी सिद्धि पाए : जैसी पूजा वैसा फल।

जैसी छिनरी आप छिनार, वैसा जाने सब संसार : जो स्त्री दुश्चरित्र होती है वह सारे संसार को दुश्चरित्र समझती है।

जैसी जाकी बुद्धि है, तैसी कहै बनाय, ताको बुरा न मानिए, लेन कहाँ सो जाय : यदि कोई मूर्खतापूर्ण बात करता है तो उसका बुरा मत मानिए। जिस के पास जैसी बुद्धि है वह वैसी ही बात कर सकता है।

जैसी जाकी भावना तैसी ताकी सिद्धि : जिसकी जैसी भावना होती है उसको वैसी ही सिद्धि मिलती है। दुष्ट प्रकृति के लोग नीच शक्तियाँ सिद्ध करते हैं, उत्तम प्रकृति के लोग परोपकारी भावनाओं को सिद्ध करते हैं। राक्षस लोग तपस्या करते थे तो भगवान से शक्तियाँ और दिव्यास्त्र मांगते थे, ऋषि मुनि तपस्या करते थे तो लोक कल्याण के साधन मांगते थे।

जैसी जात वैसी बात : आदमी अपनी जात के अनुसार ही बात करता है। इस बात को जातिवाद से जोड़ कर नहीं देखना चाहिए। यह सच है कि जो व्यक्ति जिस जाति में अर्थात जैसे माहौल में पैदा हुआ और पला बढ़ा है वह अधिकतर अपने उसी परिवेश के अनुरूप ही बात करता है।

जैसी झूठी बधाई, वैसी कड़वी मिठाई : आपने किसी को झूठी बधाई दी। बदले में उसने आप को जो मिठाई खिलाई वह आपको कड़वी लगी तो शिकायत किस बात की।

जैसी तेरी तिल चावली, वैसे मेरे गीत : विवाह या संतान जन्म पर जो स्त्रियाँ गीत गाती है उन्हें तिल चावल भेंट में दिए जाते हैं। यदि गाने वालियों को पर्याप्त तिल चावल नहीं मिला या घटिया मिला तो वे बेकार के गीत गायेंगी।

जैसी देखी गाँव की रीती वैसी उठाईं अपनी भीती : जैसी गाँव की रीति देखें वैसी अपनी दीवार बनाएँ। माहौल को देखते हुए काम करना चाहिए।

जैसी देवी सीतला वैसा वाहन खर : शीतला माता को खतरनाक देवी माना गया है क्योंकि उन के प्रकोप से चेचक निकलती है। जैसी देवी हैं वैसा ही उनका वाहन है गधा। हाकिम और उनका मातहत दोनों एक से अजीब हों तब।

जैसी धूप वैसी छतरी : जैसी परिस्थिति हो वैसा ही प्रबंध करना चाहिए।

जैसी नीयत, वैसी बरकत : जैसी जिसकी मनोवृत्ति हो उसी हिसाब से उसकी उन्नति या पतन होता है।

जैसी पड़े मुसीबत, वैसी सहे शरीर : जैसी परेशानी आती है शरीर वैसा ही अपने को ढालता है।

जैसी बंदगी, वैसा ईनाम : बंदगी शब्द के अर्थ में पूजा, सलाम और गुलामी का मिश्रण है। जितनी लगन और सच्चाई से बंदगी की जाएगी उतना ही अच्छा इनाम मिलेगा।

जैसी बहे बयार, पीठ तब तैसी कीजे : जैसा माहौल हो उसी के अनुसार व्यवहार कीजिए।

जैसी भाई की प्रीत, वैसे बहन के गीत : भाई के यहाँ कोई शुभ कार्य होता है तो बहनें बड़े चाव से गीत गाती हैं। यदि भाई की प्रीत में खोट होगा तो बहनों के गीत भी फीके होंगे।

जैसी मति, तैसी गति : जैसी व्यक्ति की मति (सोच) होती है उसको वैसी ही गति (परिणति) प्राप्त होती है।

जैसी माई, वैसी जाई : जाई माने बेटी। जैसी माँ वैसी बेटी।

जैसी रूह वैसे फ़रिश्ते : व्यक्ति ने जैसे कर्म किए हों उसे वैसा ही फल मिलेगा। दुष्ट आत्माओं को लेने के लिए दुष्ट फरिश्ते आएँगे और नेक आत्माओं को लेने अच्छे फरिश्ते आएँगे।

जैसी संगत, वैसी रंगत : व्यक्ति जिस प्रकार के लोगों के साथ रहता है वैसे ही उस के आचार विचार हो जाते हैं।

जैसी होत होतव्यता, तैसी उपजे बुद्धि, होनहार हिरदै बसे, बिसर जाए सब सुद्धि : जैसी होनहार होती है वैसी ही आदमी की बुद्धि हो जाती है। जब कुछ अनिष्ट होने वाला होता है तो आदमी सारी समझदारी भूल जाता है।

जैसे उदई वैसे भान, ना इनके चुनई ना उनके कान : दो मूर्ख एक सा व्यवहार करते हैं.

जैसे उदई वैसेहि खान, न उनके चुटिया, न उनके ईमान : जो लोग अपने धर्म में आस्था न रखते हों उनके लिए। ऊदई कोई हिन्दू हैं जो चुटिया नहीं रखते और खान कोई मुसलमान हैं जो अपने धर्म पर ईमान नहीं रखते।

जैसे उधौ वैसे माधौ : जब दो मूर्ख एक से हों तो।

जैसे कंता घर रहे वैसे रहे विदेस, जैसे ओढ़ी कामली वैसे ओढ़ा खेस : पत्नी को प्रेम न करने वाला पति या निकम्मा पति घर में रहे या विदेश में पत्नी को कोई फर्क नहीं पड़ता। कम्बल ओढ़ो या सूती चादर क्या फर्क पड़ता है। राजस्थान में इस का दूसरा प्रारूप भी प्रचलित है – कदे न हँस कर कुच गह्यो, कदे न रिस कर केस, जैसे कंता घर रह्यो, वैसे ही परदेस (पति ने कभी हँस कर शरीर को हाथ नहीं लगाया और न ही क्रोध में बाल पकड़े, जैसे परदेस में रहा वैसे ही घर में रहा)।

जैसे कुम्हड़ा छप्पर पर, वैसे कुम्हड़ा नीचे : स्थान या पद बदलने के बाद भी यदि व्यक्ति की हैसियत वही रहे तो मजाक में ऐसे कहा जाता है।

जैसे को तैसा मिला ज्यों बामन को नाई, इनने आशीर्वाद कही उन आरसी काढ़ दिखाई : ब्राह्मण किसी को आशीर्वाद देते हैं तो बदले में दक्षिणा की आशा रखते हैं। नाई जब किसी को आरसी में मुँह दिखाता है तो बदले में इनाम की आशा करता है। ब्राह्मण देवता ने दक्षिणा की जुगाड़ में नाई को आशीर्वाद दिया तो नाई ने बदले में आरसी निकाल कर दिखा दी। दो कुटिल व्यक्ति एक से बढ़ कर एक हों तो यह कहावत कही जाएगी।

जैसे को तैसा मिले सुन रे राजा भील, लोहे को चूहा खा गया लड़का ले गई चील : इस के पीछे एक कहानी कही जाती है। एक व्यक्ति ने किसी से लोहे के बर्तन उधार लिए और जब लौटाने का वक्त आया तो यह कह कर मुकर गया कि बर्तनों को चूहा खा गया। उधार देने वाला समझ गया पर कुछ बोला नहीं। कुछ दिन बाद उस ने इस व्यक्ति के बेटे को अपने घर बुलाया और छिपा लिया। फिर इससे कहा कि लड़के को चील ले गई है। जब बात राजा के पास पहुंची तो उस ने यह कहावत बोली।

जैसे को तैसा मिले, मिले कुल्हाड़ी बेंट, कानी को काना मिले, लिए आँख में टेंट : जिस की जैसी प्रवृत्ति होती है उस को वैसा ही साथ मिल जाता है।

जैसे को तैसा : कोई व्यक्ति किसी के साथ धूर्तता करे और दूसरा व्यक्ति उसी की भाषा में उसका जवाब दे तो।

जैसे जल, वैसे मच्छ : जितनी बड़ी नदी, तालाब या समुद्र होगा उतनी ही बड़ी मछलियाँ और मगरमच्छ उसमे होंगे। बड़े शहर में बड़े व्यापारी और बड़े अपराधी होंगे।

जैसे तेरी बाँसुरी, वैसे मेरे गीत : जैसे साधन तुम मुझे उपलब्ध कराओगे वैसा ही काम मैं कर के दूंगा।

जैसे नाग नाथ वैसे साँप नाथ : दो कुटिल लोग एक से मिल जाएँ तो।

जैसे नीमनाथ, वैसे बकायननाथ : बकायन – नीम की जाति का एक पेड़, महानिम्ब। यह भी नीम जैसा कड़वा होता है। कोई दो व्यक्ति एक से बढ़ कर एक बदमिजाज हों तो।

जैसे फूल गुलाब का सूखे तऊं बसाय, तैसी प्रीत सुशील की दिन पर दिन अधिकाय : (बुन्देलखंडी कहावत) बसाय – बास (सुगंध) देता है। जैसे गुलाब का फूल सूख कर भी सुगंध देता है, वैसे ही सुशील व्यक्ति की प्रीति समय के साथ बढ़ती है।

जैसे बाबा आप लबार, वैसा उनका कुल परिवार : लबार – झूठ बोलने वाला, गप्पें हांकने वाला। घर का बड़ा बूढ़ा झूठ बोलने वाला हो तो सारा घर वैसा ही हो जाता है।

जैसे मुर्दे पर सौ मन मिट्टी वैसे हजार मन : मुर्दे के ऊपर सौ मन मिटटी हो या हजार मन, मुर्दे को क्या फर्क पड़ता है। काम में पिसने वाली घर की महिला या काम के बोझ से दबे कर्मचारी पर जब और काम लादा जाता है तो वह ऐसे बोलता है। क़र्ज़ के बोझ तले दबा आदमी और अधिक क़र्ज़ लेने के लिए भी ऐसे बोलता है।

जैसे साजन आए, तैसे बिछौना बिछाए (तैसी सेज बिछाए) : जैसा मेहमान वैसा सत्कार।

जैसो पावणों, वैसो ही जीमावणों : (राजस्थानी कहावत)जैसा मेहमान वैसा ही सत्कार। पावणा – पाहुना, अतिथि, जिमावणा – जीमाना, खाना खिलाना।

जो अति आतप व्याकुल होई, तरु छाया सुख जाने सोई : आतप – सूर्य का ताप। जब व्यक्ति तेज धूप से व्याकुल होता है तभी उसे पेड़ की छाया का महत्व समझ में आता है। व्यक्ति जितनी बड़ी विपत्ति का सामना करता है उतना ही अधिक वह विपत्ति हटने पर आनंद पाता है।

जो अनमनी सासरे जावे, वो क्या निहाल करे : जो लड़की ससुराल जाने में आनाकानी करे वह ससुराल जा कर कैसे निभेगी। कार्य के आरम्भ में ही जो कोई अनिच्छा जाहिर करे वह उस काम को पूरा कैसे करेगा।

जो अपने काम न आए, सो चूल्हे भाड़ में जाए : कोई कितना भी बड़ा या महत्वपूर्ण व्यक्ति क्यों न हो, हमारे काम न आए तो उस का बड़प्पन हमारे किस काम का। (बारह गाँव का चौधरी, अस्सी गाँव का राय, हमारे काम न आए तो ऐसी तैसी में जाए)।

जो अपने पर विश्वास नहीं करता, वह किसी पर विश्वास नहीं कर सकता : अर्थ स्पष्ट है।

जो आके न जाय वो बुढ़ापा, जो जाके न आय वो जवानी : अर्थ स्पष्ट है।

जो आया है वह खाएगा जो कमायेगा वह खिलाएगा : इस संसार में जिसने जन्म लिया है उसको भोजन मिलना चाहिए। यदि उस के पास खाने को नहीं है तो जो सम्पन्न लोग हैं उनका कर्तव्य है कि वंचित लोगों की सहायता करें।

जो इच्छा करिहौं मन माहिं, हरि कृपा कछु दुर्लभ नाहिं : आप मन में कोई भी इच्छा कर लीजिए, ईश्वर की कृपा हो तो कुछ भी दुर्लभ नहीं है।

जो ऊँट की पीठ पे न लदे वो उसके गले बंधे : यदि कोई सामान ऊँट की पीठ पर नहीं लद पाता है तो उसे ऊँट के गले में बाँध कर लटका देते हैं। काम को हर हाल में गरीब आदमी पर ही लादा जाता है।

जो कबीर काशी में मरिहें, रामहिं कौन निहोरा : काशी में मरने से स्वर्ग जाने की गारंटी हो तो कोई भगवान की भक्ति क्यों करेगा।

जो करता है वह कहता नहीं फिरता, जो कहता फिरता है वह करता नहीं : अर्थ स्पष्ट है।

जो करे धरम, उसके फूटे करम, जो करता है पाप कमाई, वो खाता है दूध मलाई : कलियुग की सच्चाई यही है।

जो करे बिरानी आस, वो जीते जी मर जाय : दूसरों पर आश्रित होना, जीते जी मरने के समान है।

जो करे शरम उसके फूटे करम, जो करता है बेशर्माई वो खाता है दूध मलाई : यह कहावत आधी भी बोली जाती है और पूरी भी। संकोच करने वाला सदा नुकसान में रहता है।

जो करे होड़, सो मरे सिर फोड़ : अपनी क्षमताओं और सीमाओं को जाने बिना दूसरों से होड़ करने वाला व्यक्ति हमेशा पछताता है।

जो कहुं माघे बरसे जल, सब नाजों में होगा फल : माघ के महीने में जल बरसता है तो सभी अनाजों की पैदावार अच्छी होती है। (घाघ) माघ की वर्षा को महोटे कहते हैं।

जो काम हिकमत से निकलता है वो हुकूमत से नहीं निकलता : युक्ति द्वारा जो काम किया जा सकता है वह तानाशाही और जोर जबरदस्ती से नहीं किया जा सकता।

जो किसी से न हारे वो अपने से हारे : अपने से – स्वयं से, अपने से – अपनों से। 1. गलत काम कर के आगे बढ़ने वाला अंततः अपनी अंतरात्मा को जवाब नहीं दे पाता। 2. जो किसी से नहीं हारता है उसे किसी अपने (सगे) से हारना पड़ता है। एक से एक वीर पुरुष अपनों के द्वारा ही धोखे से मरवाए गए।

जो कोऊ हमें देख के जरे बरे, ओकी आंखन में राई नोन परे : (भोजपुरी कहावत) जलने वाले को लानत भेजने के लिए। कहीं कहीं महिलाएं राई और नमक से बच्चों की नजर उतारते समय इस प्रकार बोलती हैं।

जो कोसत बैरी मरे, मन चितवे धन होय, जल में घी निकसन लगे तो रूखा खाय न कोय : शत्रु अगर कोसने से मर जाए, इच्छा करने से धन मिल जाए, पानी मथने से घी निकल आए तो सभी सुखी हो जाएंगे।

जो खड़े मूते उसे छींटों का क्या डर : जान बूझ कर गलत काम करने वाले को उसके दुष्परिणामों की चिंता नहीं होती।

जो खेत में मोती फरे, तबहूँ बनिया न खेती करे : बनिए बहुत चालाक होते हैं, वे खेती जैसा मेहनत और खतरे से भरा काम कभी नहीं करते।

जो गंवार पिंगल पढ़े, तीन वस्तु से हीन, बोली, चाली, बैठकी, लीन्ह विधाता छीन : गंवार यदि पढ़ लिख भी जाए तो भी उसकी बोली और चाल ढाल संभ्रान्त लोगों जैसी नहीं हो सकती। पिंगल का अर्थ है छंद शास्त्र।

जो गरजते हैं वो बरसते नहीं। (गरजें सो बरसें नहीं) (गरजता बादल बरसता नहीं, बरसता है सो गरजता नहीं) : बादलों के विषय में कहा जाता है कि गरजने वाले बादल बरसते नहीं हैं। कहावत के रूप में इस का अर्थ यह है कि जो बहुत बढ़ चढ़ कर बोलते हैं वे कुछ कर के नहीं दिखाते।

जो गुड़ देने से मर जाए, उसे जहर क्यों दिया जाए (रस के मरे को विष क्यों देय) : जो मीठी बातों में फंस कर आपका काम कर दे उस के साथ रुखाई क्यों की जाए।

जो घर चलावे सो घर का बैरी, जो गॉव चलावे सो गाँव का बैरी : घर का मुखिया सभी का हित चाहता है लेकिन प्रत्येक व्यक्ति को लगता है कि उसी के साथ अन्याय हो रहा है। यही बात गाँव और देश के मुखिया पर भी लागू होती है।

जो घर में बोलें डोकरा, सो बाहर बोले छोकरा (जैसा बोले डोकरा, वैसा बोले छोकरा) : घर में बड़े बूढ़े जैसे बोलते हैं वैसा ही बच्चे बाहर बोलते हैं।

जो चढ़ेगा सो गिरेगा : इसका अर्थ दो तरह से है – 1. जो उन्नति करता है वह कभी न कभी गिरेगा भी। 2. जो चढ़ने का साहस करेगा वही तो गिरेगा। जो चढ़ेगा ही नहीं वह गिरेगा क्या।

जो चोरी करता है वह मोरी देख के रखता है : चोर चोरी करने से पहले अपने निकलने की जगह देख कर रखता है।

जो जाके मन में बसे सो सपने दर्शाए (जो मन में बसे सो सुपने दसे) : आपके मन में जो विचार होते हैं वही आपको सपने में दिखते हैं।

जो जाने जाड़े को भेद, सो ढांके कंबल को छेद : जिसको मालूम है कि कम्बल में छेद हो तो उससे जाड़ा दूर नहीं हो सकता वह समय रहते कम्बल के छेद को ढक देता है।

जो जीता वही सिकंदर : जब दो धुरंधरों में लड़ाई होती है तो जो जीतता है वही श्रेष्ठ कहलाता है चाहे वह अधर्म और कुटिलता से जीता हो या धुप्पल में जीत गया हो।

जो जैसा करता है, वो वैसा भरता है (जैसा करोगे वैसा भरोगे) : अर्थ स्पष्ट है।

जो जैसी करनी करे सो तैसो फल पाए, बेटी पहुँची राजमहल साधु बंदरा खाए : यह कहावत एक कहानी पर आधारित है। एक साधु राजा के महल में गया। राजा ने उसका बड़ा सत्कार किया। राजा की सुंदर बेटी को देख कर साधु के मन में पाप आ गया। उसने राजा से कहा कि ये कन्या बहुत अशुभ है इसे लकड़ी के बक्से में रख कर नदी में बहा दो। राजा उस की बातों में आ गया और उस ने ऐसा ही किया। साधु जल्दी जल्दी चल कर वहाँ से काफी दूर नदी किनारे बने अपने आश्रम में पहुँचा और बक्से के आने का इंतज़ार करने लगा। उधर बीच जंगल में एक राजकुमार ने नदी में बहते बक्से को देखा तो कौतूहल वश उसे बाहर निकाल कर खोला। राजकुमारी ने बाहर निकल कर उसे सारी कहानी बताई। राजकुमार ने एक कटखना बंदर पकड़ा और उसे बक्से में बंद कर के बक्सा नदी में बहा दिया। साधु तो बेसब्री से बक्से का इंतज़ार कर रहा था। जैसे ही बक्सा बहता हुआ उसके आश्रम के पास पहुँचा उसने झट उसे निकाल कर खोला। खिसियाये हुए बंदर ने उसे काट काट कर लहुलुहान कर दिया।

जो ज्यादा करीब सो ज्यादा रकीब : जो आपके अधिक निकट है वही अधिक स्पर्धा और ईर्ष्या करता है। (रकीब – प्रतिद्वंद्वी)।

जो ज्यादा काम करता है उसी पर और लादा जाता है : जो अधिक काम करता है और ठीक काम करता है, सब उसी से काम करवाना चाहते हैं। एक प्रकार से यह भलमनसाहत का नुकसान है।

जो टट्टू जीते संग्राम, क्यों खरचें तुर्की के दाम : टट्टू और खच्चर सामान ढोने वाले सस्ते जानवर होते हैं जबकि तुर्की उन्नत किस्म का लड़ाई में काम आने वाला घोड़ा होता है जो कि बहुत महंगा होता है। कहावत का अर्थ है कि यदि सस्ती और कामचलाऊ चीज़ से काम चल जाए तो महंगी चीज़ क्यों खरीदी जाएगी।

जो डरता है उसे और डराया जाता है, जो चिढ़ता है उसे और चिढ़ाया जाता है : अर्थ स्पष्ट है।

जो तिल हद से ज्यादा हुआ सो मस्सा हुआ : अति हर चीज़ की बुरी होती है। तिल चेहरे की सुन्दरता बढ़ाता है और मस्सा बुरा लगता है।

जो तुम करन फैसला चाहो, दोउ जने गम खाओ : गम खाना – कष्ट सहना। दो लोगों में विवाद हो और फैसला कराना चाह रहे हों, तो दोनों को थोड़ा थोड़ा दबना पड़ता है।

जो तोकु कांटा बुवे, ताहि बोय तू फूल, (तोकू फूल के फूल है, बाकू है त्रिशूल) : जो तुम्हारे साथ बुराई करे उसके साथ भी भलाई करो। आप भलाई कर के खुश रहोगे, वह बुराई कर के मन में परेशान रहेगा। इंग्लिश में कहावत है – Return good for evil.

जो दम गुजरे सो गनीमत : इस संसार में रहते हुए जितना समय आसानी से निकल जाए उतना ही गनीमत समझो।

जो दूसरों के लिए कुआं खोदते हैं उनके लिए पहले ही खाई खुद जाती है। (खाई खने जो और को, बाको कूप तैयार) : जो दूसरों को हानि पहुंचाने के लिए षड्यंत्र रचते हैं वे स्वयं भी किसी न किसी प्रकार से उसी षड्यंत्र (या किसी और परेशानी) का शिकार हो जाते हैं। इंग्लिश में कहावत है – Who so diggeth a pit, shall fall there in.

जो दे उसका भी भला, जो न दे उसका भी भला : भीख मांगने वाले ऐसा बोल कर सब को खुश करते हैं।

जो देगा वह गाएगा, जो लेगा वह छिपाएगा : जो किसी को कुछ देता है वह सब लोगों से कहना चाहता है जिससे सब उस की बड़ाई करें। जो लेने वाला है वह छिपाना चाहता है क्योंकि उसे इसमें अपना अपमान लगता है।

जो धन दीखे जात, आधा दीजे बाँट : यदि धन जाता दिखे तो उसमें से आधा लुटा कर बाकी को बचाने का प्रयास करना चाहिए।

जो धरती पे आया, उसे धरती ने ही खाया : जो भी इस मिटटी से पैदा हुआ है उसे इस मिटटी में ही मिलना है।

जो धार पर चले, सो फूलों पर सोए : यहाँ धार पर चलने का अर्थ है तलवार की धार पर चलना। जो कठिन परिश्रम करता है और खतरों से खेलता है वही उसके बाद सुख भोगता है।

जो धावे सो पावे, जो सोवे वो खोवे : जो कुछ पाने के लिए दौड़ भाग करता है वही कुछ पाता है, जो सोता रहता है (आलस करता है) उसे कुछ नहीं मिलता।

जो न मानें बड़न की सीख, ले खपरिया मांगें भीख : जो बड़ों की सीख नहीं मानते, उन्हें खप्पर ले कर भीख मांगनी पड़ती है।

जो नर वचनों से फिरे वह पत देत गंवाए : जो अपना वचन नहीं निभाते उन का कोई सम्मान नहीं करता।

जो नवे सो भारी : तराजू का जो पलड़ा झुक जाता है वही भारी माना जाता है। आपसी वाद विवाद में जो व्यक्ति झुक जाता है वही वजनदार माना जाता है।

जो नहिं सीखा बोलना, सब सीखा बेकार : संसार में वही व्यक्ति दूसरे लोगों को प्रभावित कर सकता है जिसे बोलने की कला आती हो।

जो निकले सो भाग धनी के : खेती करने वाला मजदूर कहता है कि जो उपज होगी वह मालिक के भाग्य से होगी। हमें तो फ़कत बंधी हुई मजदूरी मिलनी है।

जो निर्दोष को देवे दोष, उसकी होय गति न मोक्ष : जो निर्दोष व्यक्ति को फंसाता है वह अत्यधिक पाप का भागी बनता है।

जो पंडित विवाह कराता है वही पिंडदान भी : यह संसार का चक्र है, जिसका जन्म हुआ उसको जीवन के विभिन्न संस्कारों से गुजरना होता है और अंत में उसकी मृत्यु भी होती है।

जो पकड़ा गया सो ही चोर। चोरी तो बहुत से लोग करते हैं, जो पकड जाए वही चोर कहलाता है।

जो पजामा सिलाता है, वो मूतने का रास्ता रख लेता है : समझदार आदमी कोई भी काम करता है तो उसमें होनी वाली संभावित परेशानियों का हल पहले ही सोच कर रखता है।

जो पल्ला भारी सो झुके : तराजू का जो पल्ला भारी होता है वही झुकता है। आपसी मतभेद में जो व्यक्ति अधिक वजनदार (गंभीर) है उसी को झुकना पड़ता है।

जो पहले कीजे जतन सो पाछे फल दाए, आग लगे खोदे कुआँ कैसे आग बुझाए : आम तौर पर इसका बाद वाला हिस्सा बोला जाता है। यदि पहले से प्रयास किया जाए तभी समय पर कार्य सिद्ध होता है। आग लगने पर कुआं खोदना आरम्भ करोगे तो आग कैसे बुझेगी। इंग्लिश में कहावत है – Dig a well before you are thirsty.

जो पहले मारे सो मीर : लड़ाई में जो पहले मारता है वह मनोवैज्ञानिक बढ़त हासिल कर लेता है।

जो पुरवा पुरबाई पावे, झूरी नदिया नाव चलावे : पूर्वा नक्षत्र में पुरवाई चले तो सूखी नदी में भी नाव चलने लगेगी, अर्थात बहुत वर्षा होगी। (घाघ की कहावतें)

जो पूत दरबारी भए, देव पितर सब से गए : मुगलों के दरबार में नौकरी करने वालों के लिए कहा गया है कि वे सब संस्कार हीन हो जाते थे।

जो फल चक्खा नहीं वही मीठा : जो चीज़ अपने को उपलब्ध नहीं है उसको हम बहुत अच्छा समझते हैं। (दूर के ढोल सुहावने)

जो बन आवे सहज में, वाही में चित देय : जो काम आसानी से सिद्ध हो उसी पर ध्यान देना चाहिए।

जो बल से न हो वह कल से हो जावे : कुछ काम ऐसे होते हैं जो कितना भी बल प्रयोग करो नहीं होते, लेकिन मशीन से फौरन हो जाते हैं। (युक्ति बल से बड़ी होती है)।

जो बात से नहीं मरा, वह लात से क्या मरेगा : जो सज्जन व्यक्ति है वह केवल अपना दोष बताए जाने से ही लज्जित हो जाता है। जो निर्लज्ज है उसको आप कितना भी बुरा भला कह लो या डांट फटकार लो उस पर कोई असर नहीं होता। ऐसे व्यक्ति पर लात खाने का भी कोई असर नहीं होता।

जो बामन की जीभ पर सो बामन की पोथी में : जिस बात से पंडित को लाभ होता हो वही वह पोथी में देख कर बताता है।

जो बिगड़ी बनावे सो बनिया : बनिए जुगाड़ करने में बहुत तेज होते हैं। कोई सामान खराब हो रहा हो उस से भी पैसा कमा लेते हैं।

जो बिल्ली पहने दस्ताने, तो चूहे पकड़े कौन : कहावत के द्वारा यह बताया गया है कि घर गृहस्थी या व्यापार के काम नजाकत से नहीं किए जा सकते।

जो बीत गई सो बात गई : जो बात बीत गई उसे भूल जाना चाहिए। (जो चला गया उसे भूल जा)।

जो बैरी हों बहुत से और तू होवे एक, मीठा बन कर निकस जा यही जतन है नेक : अगर बहुत से शत्रुओं के बीच फंस जाओ तो मीठी बातें कर के उन्हें खुश करो और वहाँ से सुरक्षित निकल लो।

जो बोले सो कुंडी खोले : घर के भीतर कई लोग बैठे हों और कोई बाहर से दरवाज़ा खटखटाए, तो जो बोलेगा वही कुण्डी खोलेगा। कोई काम करने के लिए कई लोग उपलब्ध हों तो जो आगे बढ़ कर अपनी राय देगा उससे ही काम करने को कहा जाएगा।

जो बोले सो बछड़ा खोले : अर्थ ऊपर वाली कहावत की भांति।

जो भावे न आप को, सो देऊ बहू के बाप को : जो चीज अपने काम की नहीं है वह किसी को उपहार में दे दो। निम्न कोटि की सोच।

जो भौंकते हैं वो काटते नहीं : जो अधिक शोर मचाते हैं वे उतना नुकसान नहीं पहुँचाते। इंग्लिश में कहावत है – Great barkers are no biters.

जो मना करे उसे ही मनुहार कर के खिलाया जाता है : अर्थ स्पष्ट है।

जो माँ से ज्यादा चाहे सो डायन : माँ से अधिक अपनी संतान को कोई नहीं चाह सकता। यदि कोई स्त्री उससे अधिक प्रेम दिखा रही है तो अवश्य ही उस के मन में कपट है।

जो मीठा खाएगा वह कडुआ भी खाएगा : जो किसी चीज़ का लाभ उठाएगा उसे उस से संबंधित कुछ न कुछ कष्ट भी सहने पड़ेंगे।

जो मुसीबतें ढूँढ़ता रहता है, उसे वे मिल भी जाती हैं : जो जान बूझ कर बेबकूफियों के काम करता है वह अंततः परेशानी में जरूर पड़ता है।

जो मैं ऐसा जानती प्रीत किये दुःख होए, नगर ढिंढोरा पीटती प्रीत न करियो कोए : प्रेम कर के दुःख उठाने वाली स्त्री का कथन।

जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग, (चंदन विष व्यापत नहीं, लपटे रहत भुजंग) : व्यवहार में इसकी केवल पहली पंक्ति ही बोली जाती है। जो लोग उच्च और दृढ़ चरित्र वाले होते हैं उन पर बुरी संगत का कोई कुप्रभाव नहीं पड़ता। चन्दन के पेड़ का उदाहरण दिया गया है जिस पर सांप लिपटे रहते हैं लेकिन उस में विष नहीं फैलता।

जो रहीम ओछो बढ़ै, तौ अति ही इतराय, प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ों टेढ़ो जाय : रहीम के नीति के दोहे एक से बढ़ कर एक हैं। अधिकतर दोहों में पहली पंक्ति में कोई नीति का उपदेश होता है और दूसरी पंक्ति में उदाहरण दे कर उसे सिद्ध किया जाता है। शतरंज के खेल में जो पैदल मोहरा (प्यादा) होता है वह एक बार में केवल एक घर चल सकता है वह भी सीधा। वही पैदल आखिरी खाने में पहुंच जाए तो वज़ीर (फरजी) बन जाता है और फिर वह आड़ा तिरछा कई घर चल सकता है। कहावत में कहा गया है कि तुच्छ मानसिकता वाले व्यक्ति को यदि बड़ा पद मिल जाए तो वह बहुत इतराने लगता है।

जो राह बताए सो आगे चले : जो किसी परेशानी का हल सुझाए उसे ही आगे कर दिया जाता है।

जो रुचे सो पचे : जो अच्छा लगता है वही पचता है और वही शरीर को लगता है।

जो रोज मरे, उसे कहाँ तक रोए : जिस के दुखों का कोई अंत ही न हो उस की सहायता कहाँ तक की जा सकती है।

जो वर देख ताप मोहे आवे, सोई वर मोहे ब्याहने आवे : कहावत का शाब्दिक अर्थ है कि जिस वर को देख कर मुझे बुखार चढ़ जाता है (कष्ट होता है या गुस्सा आता है) वही मुझसे शादी करने आ रहा है। अर्थात जिस काम से मैं हर हाल में बचना चाहती हूँ वही मुझे करना पड़ रहा है।

जो विधि लिखी ललाट पर, मेट सके न कोय : विधि ने जो भाग्य में लिख दिया है उसे कोई मिटा नहीं सकता।

जो विषया संतन तजी, मूढ़ ताहि लपटाय, ज्यों नर डारत वमन कर, स्वान स्वाद सों खाय : संत लोग जिन विषय भोग की वस्तुओं को त्याग देते हैं, मूर्ख सांसारिक लोग उन्हीं में लिपटे रहते हैं। जैसे मनुष्य जो भोजन उल्टी कर देता है कुत्ता उसे स्वाद से खाता है।

जो सिर उठा कर चलेगा सो ठोकर खाएगा : यहाँ सर उठा कर चलने से अर्थ है अपने चाल चलन में अहंकार प्रदर्शित करना। अर्थ है कि जो अहंकार दिखाएगा उसे नीचा देखना पड़ेगा।

जो सुख चाहो देह का चीजें त्यागो चार, चोरी, चुगली, जामनी और पराई नार : जामनी – किसी की जमानत देना। चैन से रहना चाहते हो तो इन चार चीजों को त्याग दो।

जो सुख छज्जू के चौबारे में, सो न बलख बुखारे में : जो सुख अपने घर और गाँव के लोगों के बीच में मिलता है वह किसी सम्पन्न विदेश में नहीं मिल सकता।

जो सेर से मरे उसे पसेरी क्या मारना : जब छोटे साधन से काम चल सकता हो तो बड़े की क्या जरूरत है।

जो सोवेगा सो खोवेगा, जो जागेगा सो पावेगा : चाहे पढ़ाई हो या व्यापार, जो आलस करेगा और सोएगा उसे कुछ प्राप्त नहीं होगा। जो जागेगा, उद्योग करेगा वही कुछ पाएगा।

जो हल जोतै खेती वाकी, और नहीं तो जाकी ताकी : खेती का लाभ उसी को हो सकता है जो स्वयं खेती करे। दूसरों पर खेती छोड़ने से दूसरे लोग ही उसका लाभ उठाते हैं।

जो हांडी में होगा सो रकाबी में आएगा : कुछ लोग बहुत उतावले होते हैं। कहीं भी कोई काम हो रहा हो वे बार बार पूछते हैं कि क्या हो रहा है, आगे क्या होने वाला है आदि। उनको समझाने के लिए यह कहावत कही जाती है। रकाबी – तश्तरी, थाली।

जोग में भोग की आस : ऐसे बनावटी साधुओं पर व्यंग्य जो सुख भोगने की लालसा रखते हैं।

जोगी का बेटा खेलेगा तो साँप से : बच्चा अपने घर परिवेश में जो देखता है वही करता है। संपेरे को जोगी भी बोलते हैं।

जोगी किसके पाहुने, राजा किसके मीत : पाहुना माने आपके घर कुछ समय टिकने वाला अतिथि। जोगी अर्थात सन्यासी किसी के घर टिकते नहीं हैं, वे तो आज यहाँ तो कल वहाँ। ऐसे ही राजा और हाकिम किसी के सगे नहीं होते, जब आपका काम पड़े तो वे आपके काम नहीं आते। इंग्लिश में कहावत है – Kings are always ungrateful.

जोगी किसके मीत और पातुर किसकी नार : पातुर – वैश्या। जोगी किसी के मित्र नहीं होते और वैश्या किसी की पत्नी नहीं होती।

जोगी किसके मीत कलंदर किसके साथी, (जोगी काके मीत, कलन्दर किसके भाई) : हिन्दुओं में साधुओं को जोगी कहा जाता है और मुसलमानों में फकीरों और सूफियों को कलंदर कहा जाता है। कहावत का अर्थ है कि ये किसी के मित्र नहीं होते।

जोगी की प्रीत क्या : जोगी से दिल लगाना ठीक नहीं (क्योंकि वह आज यहाँ तो कल और कहीं)।

जोगी को बैल बला : जोगी को बैल दान में दे दिया जाए तो वह उस के लिए मुसीबत ही होगा।

जोगी जुगत जानी नहीं, कपड़े रंगे तो क्या हुआ : केवल भगवा कपड़े पहनने से कोई जोगी नहीं हो जाता, उसके लिए ज्ञान होना आवश्यक है।

जोगी जुगत से जुग जुग जिए : योगी अपने संयमित जीवन और योग द्वारा लम्बे समय तक जीते हैं।

जोगी जोगी लड़े खप्परों की हानि, (जोगियों की लड़ाई में खप्पर फूटते हैं) : खप्पर – मिट्टी का बना भिक्षा मांगने का पात्र, खोपड़ी को भी खप्पर कहते हैं। कहावत का अर्थ है कि यदि किसी संगठन या परिवार के सदस्य आपस में लड़ते हैं तो घर और व्यापार की हानि होती है।

जोगी था सो उठ गया आसन रही भभूत : किसी व्यक्ति के चले जाने के बाद उसके अवशेष और स्मृतियाँ रह जाते हैं।

जोगी बढ़े, तूमड़ी बोवे : कोई छोटा आदमी यदि बड़े पद पर पहुँच जाए तो भी उस की सोच नहीं बदलती। जोगी को यदि बड़ी जायदाद मिल जाए तो वह उसमें तूमड़ी की खेती करेगा।

जोगी मारे छार हाथ : छार – राख, भभूत। जोगी को मारने से क्या मिलेगा, बस राख ही हाथ आएगी। इसी प्रकार की एक कहावत है – बगुला मारे पखना हाथ।

जोड़ जोड़ मर जाएंगे, माल जमाई खाएंगे : जो लोग दिन रात पैसा कमाने में लगे रहते हैं उन को समझाया गया है कि तुम तो पैसा जोड़ जोड़ कर मर जाओगे, ये सारा माल तुम्हारे उत्तराधिकारी खाएंगे।

जोड़ने में बनिया, पहनने में पठान, खाने में बामन, झेलने में किसान : बनिया पैसा जोड़ने में, पठान कपड़े पहनने में, ब्राहण खाने में और किसान मुसीबतों को झेलने में सबसे माहिर होते हैं।

जोड़ी टूटे गोटी पिटे : लूडो और चौपड़ के खेल में जब एक खाने में दो गोटियाँ होती हैं तो उन्हें कोई नहीं पीट सकता। जोड़ी में से एक गोटी चलनी पड़ जाए तो अकेली गोटी को पीटा जा सकता है। संगठन में शक्ति है।

जोतेगा हल पावेगा फल : जो खेती में मेहनत करेगा उसी को लाभ मिलेगा।

जोर बादशाह और दाँव वजीर : कुश्ती लड़ने वालों का कथन। ताकत (बादशाह) भी जरुरी है और दाँव पेंच (वजीर) भी।

जोरू का मरना और जूती का टूटना बराबर है : कुछ लोगों की सोच इतनी निकृष्ट होती है कि वे पत्नी को जूती के बराबर समझते हैं। वे समझते हैं कि जैसे जूती टूटने पर नई जूती खरीद ली जाती है वैसे ही पत्नी के मरने पर दूसरी पत्नी लाई जा सकती है।

जोरू खसम की लड़ाई, दूध की मलाई : पति पत्नी की लड़ाई में दूसरे लोग मजा लेते हैं।

जोरू चिकनी मियाँ मजूर : जहाँ पत्नी बहुत बन ठन कर रहती हो और पति बेचारा काम में पिसता रहता हो।

जोरू टटोले गठरी, माँ टटोले अंतड़ी : पत्नी इस बात की चिंता करती है कि आदमी क्या कमा कर लाया है जबकि माँ इस बात की चिंता करती है कि बेटे ने कुछ खाया है कि नहीं।

जोरू न जाता, अल्लाह मियां से नाता : उन लोगों का मज़ाक उड़ाया गया है जिनके बीबी और औलाद न होने के कारण वे अल्लाह से नाता जोड़ लेते है। तुलसी दास जी ने भी ऐसे लोगों के लिए कहा है – नारी मुई भई सम्पति नासी, मूढ़ मुड़ाए भए सन्यासी।

जोवन था तब रूप था, ग्राहक था सब कोय, जोवन रतन गवांय के, बात न पूछे कोय : जब तक रूप और यौवन था तब तक सब कोई पूछते थे, यौवन बीत जाने के बाद अब कोई नहीं पूछता।

जोंक की कौन माई कौन बाप : खून चूसने वाले लोग किसी को नहीं छोड़ते।

जोंक को जोंक नहीं लगती : समाज के परजीवी लोग केवल मेहनत कर के कमाने वालों का ही खून चूसते हैं, दूसरे परजीवियों का नहीं।

ज्यादा खाय जल्द मरि जाय, सुखी रहे जो थोड़ा खाय : जो ज्यादा खाता है वह बीमार हो कर जल्दी मर जाता है, जो कम खाता है वह सुखी रहता है। आज की दुनिया में मोटापा सब से बड़ी बीमारी है।

ज्यादा जोगी मठ उजाड़। (बहुते जोगी मठ उजाड़) : अधिक जोगी इकट्ठे हो जाएं तो मठ उजड़ जाता है। ज्यादा हिस्सेदार हों तो व्यापार चौपट हो जाता है। अधिक राय देने वाले हों तो काम चौपट हो जाता है।

ज्यादा दाइयां पेट फाड़ें : प्रसव कराने के लिए पहले दाइयां ही बुलाई जाती थीं। एक से ज्यादा दाइयां हों तो उससे लाभ होने की संभावना कम और खतरा अधिक होता है।

ज्यादा नौकर, घर उजाड़ : ज्यादा नौकर हों तो एक दूसरे से हिर्स करते हैं और एक दूसरे पर काम टालते हैं। घर की अर्थव्यवस्था भी बिगड़ती है।

ज्यादा पढ़े तो घर सों गए, थोड़ा पढ़े सो हर सों गए : (बुन्देलखंडी कहावत) हर – हल। ज्यादा पढ़ लिख कर बच्चे बाहर नौकरी करने चले जाते हैं याने घर से जाते हैं और थोड़ा बहुत पढ़ जाएँ तो हल चलाने में शर्म महसूस करने लगते हैं।

ज्यादा बहुएं बटाऊओं की खातिर थोड़े ही हैं : अगर हमारे घर में अधिक बहुएं हैं तो राहगीरों की सेवा करने के लिए थोड़े ही हैं। चंदा मांगने वाले लोग धनी लोगों से कहते हैं कि आप के पास क्या कमी है। कोई व्यक्ति सम्पन्न है तो इसका अर्थ यह नहीं है कि वह अपना धन आलतू फ़ालतू अनजान लोगों में बांट दे।

ज्यादा मरोड़ने से लोहा भी टूट जाता है : वीर से वीर पुरुष भी अत्यधिक अत्याचार या वेदना से टूट जाते हैं।

ज्यादा मेहनत से गधा हो जाता है : इतना अधिक परिश्रम नहीं करना चाहिए कि आदमी गधे से भी गया गुजरा हो जाए।

ज्यादा लज्जा करे छिनाल : चरित्रहीन स्त्री अधिक लज्जावान होने का दिखावा करती है।

ज्यादा लाड़ से बालक बिगड़े : बच्चों को लाड़ प्यार करना चाहिए लेकिन इतना अधिक नहीं कि वे बिगड़ जाएँ.

ज्यादा हाथ अच्छे, ज्यादा मुँह नहीं अच्छे : काम में हाथ बताने वाले जितने अधिक हों उतना अच्छा, खाने वाले और बातें करने वाले जितने अधिक हों उतना बुरा। (मुँह से अर्थ खाने से भी है और बातें बनाने से भी)।

ज्यादा होशियार ज्यादा ठगा जाता है : जो अपने को अधिक बुद्धिमान समझता है और किसी पर विश्वास नहीं करता वह अधिक ठगा जाता है।

ज्यों ज्यों बड़ा हो त्यों त्यों पत्थर पड़ें : यहाँ पत्थर पड़ने से अर्थ अक्ल पर पत्थर पड़ने से है। ऐसा व्यक्ति जो बड़ा होने के साथ और अधिक मूर्खतापूर्ण व्यवहार करे।

ज्यों ज्यों बाय बहे पुरवाई, त्यों त्यों घायल अति दुःख पाई : पुरबाई हवा चलने से चोटों का दर्द बढ़ जाता है।

ज्यों ज्यों मुर्गी मोटी होए, त्यों त्यों दुम सिकुड़े : जैसे जैसे व्यक्ति के पास पैसा बढ़ता है, वह कंजूस होता जाता है।

ज्यों तिल मांही तेल है, ज्यों चकमक में आग, तेरा सांई तुझमें, जाग सके तो जाग : तिल में तेल होता है पर ऊपर से नहीं दिखता, चकमक में से आग पैदा होती है पर चकमक के अंदर दिखाई नहीं देती। इसी प्रकार ईश्वर मनुष्य के मन में होता है पर वह उसे देख ही नहीं पाता।

ज्यों नकटे को आरसी देख होत है क्रोध : आरसी का अर्थ है छोटा दर्पण। नकटे को कोई शीशा दिखाए तो उसे गुस्सा आता है। किसी को उसकी कमी बताओ तो उसे गुस्सा आता है।

ज्यों-ज्यों भीजे कामरी त्यों-त्यों भारी होय। (अति हठ मत कर हठ बढे, बात न करिहै कोय) : कम्बल जैसे जैसे भीगता है वैसे वैसे भारी होता जाता है। इसी प्रकार अधिक हठ या बहस करने से नाराजगी बढ़ती जाती है।

ज्वर, याचक और पाहुना, करजा मांगनहार, लंघन तीन कराए दो, फेर न आवें द्वार : कहावत में यह सुझाव दिया गया है कि कर्ज़ मांगने वाले, भीख मांगने वाले और मेहमान को तीन चार बार टरका दो तो वह फिर नहीं आएगा। लंघन कराना – भूखा रखना। पहले के लोग मानते थे कि भूखा रहने से ही बुखार उतरता है।

( झ )

झगड़ा झूठा कब्जा सच्चा : जायदाद पर जिसका कब्ज़ा है वही एक प्रकार से उसका मालिक है। एक तो इसलिए कि वह उसे काम में ले रहा है यानि उसका फायदा उठा रहा है, दूसरे इस लिए कि उससे खाली कराने के लिए दूसरे पक्षकार को बीसियों साल तक मुकदमा लड़ना पड़ेगा।

झगड़ा भतार से, रूठीं संसार से : ऐसी स्त्री का मजाक उड़ाने के लिए जो पति से झगड़ा होने पर सब से रूठ कर बैठी है।

झगड़े की तीन जड़, जोरू जमीन और जर : तीन चीजें ऐसी हैं जिनके कारण सबसे अधिक सबसे अधिक झगड़े, मुकदमे और कत्ल आदि होते हैं – स्त्री, जमीन जायदाद और रुपया पैसा।

झटपट की घानी, आधा तेल आधा पानी : जल्दीबाज़ी में कोल्हू चलाओगे तो तेल में आधा पानी मिल जाएगा। जल्दबाज़ी का काम बुरा होता है। घानी – कोल्हू।

झटपट खेती, झटपट न्याव, झटपट कर कन्या को ब्याव : खेती तभी सफल होती है जब समय से की जाए, न्याय तभी न्याय माना जाता है जब समय से मिल जाए, इसलिए ये दिनों कार्य झटपट करना चाहिए। कन्या के विवाह में भी बिलकुल विलम्ब नहीं करना चाइए।

झरबेरी के जंगल में बिल्ली शेर : कहावत का अर्थ है कि परिस्थियाँ अनुकूल हों तो छोटा अपराधी भी खतरनाक हो सकता है।

झाड़ को जेरी, गंवार को लठा, कोदों की रोटी को भैंस का मठा : झाड़ से निबटने को जेली की जरूरत होती है, मूर्ख व्यक्ति से निबटने को लट्ठ और कोदों की रोटी पचाने के लिए भैंस के दूध का मट्ठा जरूरी होता है। जेली – झाड़ियाँ आदि हटाने का औजार।

झाडूं फूंकूँ चंगा करूं, दैव ले जाए तो मैं क्या करूं : झाड़ फूंक करने वाला (या अन्य इलाज करने वाला) व्यक्ति कह रहा है कि मैं तो झाड़ फूंक कर ठीक कर देता हूँ, पर ईश्वर के घर से किसी का बुलावा आ जाए तो मैं क्या करूं।

झार बिछाई कामरी, रहे निमाने सोई : किसी के लिए कंबल झाड़ के बिछाया पर वह फर्श पर सो गया। जिसके लिए इंतजाम किया उसे ही पसंद नहीं आया।

झांसी गले की फांसी, दतिया गले का हार; ललितपुर तब तक न छोडिए, जब तक मिले उधार : पुराने शहरों के विषय में बहुत से लोक कथन हैं, उन्हीं में से एक।

झिलंगा खटिया, वातल देह, तिरिया लम्पट, हाटै गेह, भाई बिगर के मुद्दई मिलंत, घाघ कहै ई विपति कै अंत : घाघ कवि ने पांच सब से बड़ी विपत्तियाँ यूँ गिनाई हैं – ढीली खाट, वायु रोग से ग्रस्त शरीर, दुश्चरित्र पत्नी, बाज़ार में घर होना और भाई का बिगड़ कर मुकदमा करने वाले दुश्मन से मिल जाना।

झुक के रहे तो सुख से रहे : विनम्रता से रहने वाला व्यक्ति सुखी रहता है।

झुके पेड़ पर बकरी भी चढ़ जाती है : आदमी की कमजोरी का लाभ सभी लोग उठाते हैं।

झूठ कहना और झूठा खाना बराबर है : अर्थ स्पष्ट है।

झूठ कहे सो लड्डू खाए, सांच कहे सो मारा जाए : जो झूठ बोलता है और तरह तरह के प्रपंच करता है उसे माल खाने को मिलता है, जो सच बोलता है वह नुकसान उठाता है।

झूठ की टहनी कभी फलती नहीं, नाव कागज़ की सदा चलती नहीं : झूठ बहुत समय तक नहीं टिकता।

झूठ की दौड़ छत तक होती है : झूठ अधिक नहीं चल सकता

झूठ की नाव मंझधार में डूबती है : झूठ बहुत दिन तक नहीं चलता।

झूठ के पाँव कहाँ (झूठ के पाँव नहीं होते) : झूठ बहुत दिन नहीं टिक सकता। इंग्लिश में कहावत है – A lie has no legs.

झूठ तितौंही बोलिए, ज्यों आटे में नोन : झूठ उतना ही बोलना चाहिए जितना आटे में नमक डाला जाता है।

झूठ न बोले तो अफर जाए : बहुत से लोग ऐसे होते हैं जो अगर झूठ न बोलें तो उनका पेट फूल जाता है।

झूठ नौ कोस, सच सौ कोस : झूठ अधिक दूर नहीं जा सकता, सच्ची बात दूर दूर तक जाती है।

झूठ बोलना पाप है, नदी किनारे सांप है : बच्चों की कहावत। झूठ बोलने से मना करने का बाल सुलभ तरीका।

झूठ बोलने के लिए अच्छी याददाश्त चाहिए : झूठ बोलने वाले को याद रखना पड़ता है कि किस से क्या कहा था।

झूठ बोलने में सरफ़ा क्या : झूठ बोलने में कुछ खर्च नहीं होता, इसलिए झूठ बोलने में क्या हर्ज़ है।

झूठ बोलने वाले को पहले मौत आती थी, अब बुखार भी नहीं आता : पहले के लोग कहते थे कि झूठ बोलने वाले को मौत आ जाती है। अब तो लोग इतने बेशर्म हैं कि झूठ बोलने वाले को बुखार तक नहीं आता।

झूठइ लेना झूठइ देना, झूठइ भोजन झूठ चबेना : 1. अत्यधिक झूठे व्यक्ति के लिए (जैसे आजकल के कुछ नेता)। 2. संसार के मिथ्या होने का ज्ञान। यहाँ लेन देन, खाना पीना सब मिथ्या है।

झूठा भले ही खा लो पर झूठी बात कभी मत करो : किसी का झूठा खाना बहुत बुरी बात मानी जाती है पर झूठ बोलना उससे भी बुरा है।

झूठे की कोई पत नहीं, मूरख का कोई मत नहीं : झूठ बोलने वाले व्यक्ति की कोई इज्ज़त नहीं होती, इसी प्रकार मूर्ख व्यक्ति के मत का कोई सम्मान नहीं होता।

झूठे की क्या दोस्ती, लंगड़े का क्या साथ, बहरे से क्या बोलना, गूंगे से क्या बात : जो आदमी झूठा हो उससे दोस्ती क्या करना (वह कभी दोस्ती नहीं निभाएगा), लंगड़े के साथ चलना कैसा, बहरे को कुछ सुनाने से क्या फायदा और गूंगे से बात क्या करना।

झूठे की क्या पहचान, वह बात बात पर कसम खाता है : जो आदमी बात बात पर कसम खाता है, यकीन मानिए वह सबसे बड़ा झूठा होता है।

झूठे के आगे सच्चा रो मरे : झूठ बोलने वाले व्यक्ति से पार पाना बहुत कठिन है।

झूठे के सींग पूँछ थोड़े ही होते हैं : क्या बात सच है और क्या झूठ यह जानना बहुत कठिन होता है।

झूठे को घर तक पहुँचाना चाहिए : झूठे से तब तक तर्क-वितर्क करना चाहिए जब तक वह सच न कह दे।

झूठे को झूठा मिले, दूना बढ़े सनेह, झूठे को साँचा मिले तब ही टूटे नेह : जब झूठे आदमी को दूसरा झूठा आदमी मिलता है तो दूना प्रेम बढ़ता है। पर जब झूठे को सच्चा आदमी मिलता है तो प्रेम टूट जाता है।

झूठे घर को घर कहें, सच्चे घर को गोर : गोर माने कब्र। आदमी जिस घर में कुछ दिन के लिए रहने को आया है उसे अपना घर समझने लगता है। उसका सच्चा घर तो वह है जिसे वह कब्र कहता है और जहाँ उसे सैकड़ों साल रहना है।

झूठे जग पतियाए, सच्चा मारा जाए : झूठे व्यक्ति का लोग आसानी से विश्वास कर लेते हैं और सच्चे व्यक्ति को बहुत कष्ट उठाने पड़ते हैं।

झूठे मीठे वचन कहि ऋण उधार ले जाय, लेत परम सुख ऊपजै लैके दियो न जाय : उधार लेने वाले झूठ बोल कर उधार ले लेते हैं और ले कर देना नहीं चाहते।

झूठे सुख को सुख कहै, मानत है मन मोद, जगत चबेना काल का, कछु मुख में कछु गोद : जिस व्यक्ति के पास धन दौलत, जायदाद पत्नी बच्चे इत्यादि सांसारिक सुख हैं वह मन में बड़ा प्रसन्न होता है, पर वह यह भूल जाता है कि ये सब क्षण भंगुर हैं।

झूठों में झूठा मिले हांजी हांजी होए : झूठों में सच्चा मिले तुरत लड़ाई होए। झूठे धोखेबाज और चापलूस लोगों में आपस में खूब बनती है लेकिन सच्चा आदमी उनके बीच क्षण भर भी नहीं रह सकता।

झोपड़ी में रहें, महलों के ख्वाब देखें : जो अपनी वास्तविकता भूल कर बड़े बड़े सपने देखता है।

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