लोकोक्तियाँ एवं कहावतें

(ख, ग, घ)

( ख )

खग ही जाने खग की भाषा : चिड़िया की भाषा चिड़िया ही समझ सकती है। बच्चे की भाषा बच्चा समझ सकता है, जवान की भाषा जवान और बूढ़े की भाषा को बूढ़ा ही समझ सकता है।

खजुही कुतिया, मखमली झूल : खुजली वाली कुतिया के लिए मखमल की झूल। अपात्र को कोई बहुत बढ़िया चीज़ मिल जाना।

खजूर खाने हैं तो पेड़ पर चढ़ना पड़ेगा : कुछ पाने के लिए परिश्रम तो करना ही पड़ेगा।

खटमल के कारण खटिया मार खाय : खाट में खटमल हो जाएँ तो उन्हें निकालने के लिए जोर जोर से लाठी मारते हैं। गलत लोगों की संगत से मनुष्य हानि उठाता है।

खटिया में खटमल और गाँव में तुरक : खाट में खटमल और गाँव में मुसलमान परेशानी का कारण बनते हैं।

खट्टा खट्टा साझे में, मीठा मीठा न्यारा : जो फल खट्टा निकल गया उसको बाँट कर खाओ और जो मीठा है वह केवल मेरा है। निपट स्वार्थपरता।

खड़ा बनिया पड़े समान, पड़ा बनिया मरे समान : बनियों के डरपोक होने पे व्यंग्य।

खड़ा मूते लेटा खाय, उसका दलिद्दर कभी न जाय : जो आदमी खड़ा हो कर पेशाब करता है और लेट कर खाता है वह हमेशा दरिद्र ही रहेगा।

खड़ा स्वर्ग में गया : जिसकी मृत्यु चलते फिरते हो उसके लिए कहते हैं।

खड़ी आई, लेटी जाऊँगी : स्त्री का ससुराल वालों से कथन।

खड़ी खेती, गाभिन गाय, तब जानो जब मुँह में जाय : खेती पक कर तैयार खड़ी हो तो भी किसान बहुत खुश नहीं होता। जब फसल कट कर खलिहान में पहुँच जाए और खाने को मिल जाए तभी वह खुश होता है। इसी प्रकार गाय गर्भवती हो तो तब तक खुश नहीं होना चाहिए जब तक वह ब्याह न जाए और दूध पीने को न मिल जाए।

खतरा दो अंगुल, डर सौ अंगुल : खतरे से अधिक डर आदमी को परेशान करता है।

खता करे बीबी, पकड़ी जाए बांदी : इसका अर्थ दो तरह से है। एक तो यह कि गलती कोई और करे और सजा किसी और को मिले। दूसरा यह कि बीबी से कुछ कहने की हिम्मत नहीं है इसलिए उसकी गलती की सजा बांदी को दे रहे हैं।

खता लम्हों ने की, सजा सदियों ने पाई : कुछ देखने में छोटी लगने वाली गलतियाँ बहुत लम्बे समय तक दुःख पहुँचाती हैं। गलती तो थोड़ी देर में ही हो जाती है लेकिन उसके परिणाम दूरगामी होते हैं। आजादी मिलने के समय जो गलतियाँ उस समय के नेताओं ने कीं उस का खामियाजा देश अब तक भुगत रहा है।

खत्री पुत्रम् कभी न मित्रम् (जब मित्रम् तब दगा ही दगा) : खत्रियों के विषय में किसी दिलजले का कथन।

खत्री से गोरा सो पिंड रोगी : खत्री से गोरा कोई दिखाई दे रहा है तो हो न हो पीलिया का रोगी होगा। खत्रियों के गोरे रंग पर कहावत।

खन में तत्ते खन में सीरे :  खन – क्षण, तत्ता – गरम, सीरा – ठंडा। घड़ी घड़ी मिजाज़ बदलना।

खपरा फूटा, झगड़ा टूटा : जिस चीज को लेकर झगड़ा हो रहा है वह टूट जाए तो झगड़ा खत्म।

खर को गंग न्हवाइए, तऊ न छांड़े खार : कितना भी प्रयास करो, दुष्ट व्यक्ति अपनी दुष्टता नहीं छोड़ता।

खर, उल्लू औ मूरख नर सदा सुखी इस घरती पर : गधा, उल्लू और मूर्ख नर, इस धरती पर सदा सुखी हैं क्योंकि इन की कोई महत्वाकांक्षाएं नहीं होतीं।

खरचे से ठाकुर बने : ठकुराई करने के लिए कुछ शान शौकत दिखानी पड़ती है।

खरब अरब लौं लच्छमी, उदै अस्त लौं राज, तुलसी हरि की भक्ति बिन, जे आवें किस काज : कितना भी धन हो और कितना भी फैला हुआ राज पाट हो, हरि की भक्ति के बिना सब बेकार हैं।

खरबूजा खरबूजे को देख कर रंग बदलता है : जो लोग दूसरों को देख कर रंग बदलते हैं उनका मज़ाक उड़ाने के लिए।

खरबूजा चाहे घाम को आम चाहे मेह, औरत चाहे जोर को और बालक चाहे नेह : खरबूजा तेज धूप में मीठा होता है और आम बरसात में। स्त्री पौरुष को पसंद करती है और बालक स्नेह को।

खरा कमाय खोटा खाय : ईमानदार आदमी कमाता है और बेईमान बैठ कर खाता है।

खरा खेल फरुक्खाबादी। सच्ची बात और ईमानदारी का काम।

खरादी का काठ काटे ही से कटता है : धीरे धीरे ही सही, काम करने ही से निबटता है और ऋण चुकाने से ही चुकता है.

खराब किराएदार से खाली मकान बेहतर : गलत आदमी को मकान किराए पर देने में बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

खरी मजूरी चोखा काम : नगद और अच्छी मजदूरी देने से काम अच्छा होता है.

खरे को बरकत ओर खोटे को हरकत : ईमानदार की उन्नति होती है और बेईमान का विनाश।

खरे माल के सौ गाहक : अर्थ स्पष्ट है। कहावत के द्वारा दूकानदारों को अच्छी गुणवत्ता वाला माल बेचने को प्रेरित किया गया है।

खरे सोने को कसौटी का क्या डर : सोना यदि शुद्ध हो तो कसौटी पर खरा ही उतरेगा। जो व्यक्ति निर्दोष है वह किसी से नहीं डरता।

खर्चा घना पैदा थोड़ी, किस पर बांधूं घोड़ा घोड़ी : आमदनी से अधिक खर्च है, किस बूते घोड़ा पाल लूँ। (घोड़ा पालना बहुत महंगा शौक है)

खल की दवा पीठ की पूजा : दुष्ट लोग पीटने से ही ठीक रहते हैं.

खल खाई और कुत्तों की झूठी : (बुन्देलखंडी कहावत) वैश्या के यहाँ जाने वाले से ऐसा कहा जाता है।

खलक का हलक किसने बंद किया है : जनता की आवाज़ को कोई नहीं दबा सकता।

खलक की जुबान, खुदा का नक्कारा : जनता की बात ईश्वर की आज्ञा : इंग्लिश में कहावत है – The voice of the people is the voice of God.

खलक गाल भरावे, पेट नहीं भरावे : खलक – संसार। संसार के लोग मुँह देखी बातें करते हैं, पर पेट भरने वाला कोई नहीं होता।

खली गुड़ एक भाव (खांड़ खड़ी का एक भाव) : भारी अव्यवस्था की स्थिति। (घोड़े गधे एक भाव, टके सेर भाजी टके सेर खाजा)। खराब शासन व्यवस्था।

खसम का खाए, भाई का गाए : पति बेचारा सारी सुख सुविधाएं मुहैया करा रहा है लेकिन गुणगान भाई का ही करेंगी। उन स्त्रियों के लिए जो हमेशा अपने मायके की ही तारीफ़ करती हैं।

खसम किया सुख सोने को, कि पाटी लग के रोने को : ससुराल में जो लड़की सुखी नहीं है उसका कथन।

खसम देवर दोनों एक ही सास के पूत, यह हुआ या वह हुआ : पति के मरने पर स्त्री को देवर से विवाह करने के लिए प्रेरित करने का प्रयास।

खसम मरे का गम नहीं, घरवाली का सपना सच होना चाहिए : एक स्त्री को यह गलतफहमी थी कि उस के सपने अवश्य सच्चे होते हैं। एक बार उस ने सपना देखा कि उस के पति की मृत्यु हो गई है। जागने पर उसने अपने पति को जीवित पाया तो वह बहुत दुखी हुई। लोगों ने कहा कि तुम्हें तो खुश होना चाहिए। तो वह बोली पति को चाहे कुछ भी हो मेरा सपना सच होना चाहिये। कितना भी नुकसान हो, अपनी मूर्खतापूर्ण सोच से चिपके रहना।

खसम मरे तो मरे सौतन विधवा होनी चाहिए : बहुत नीच प्रकृति के लोग हर हाल में दूसरे का बुरा चाहते हैं चाहे उस में अपना कितना बड़ा नुकसान क्यों न हो जाए।

खसम वाली रांड : ऐसी स्त्री जिसका पति उसकी कोई कद्र न करता हो।

खसम ही मारे तो किसके आगे पुकारे : अगर कोई स्त्री पर अत्याचार करता है तो वह सहायता के लिए अपने पति को पुकारती है, अगर पति ही उस पर अत्याचार करे तो वह किससे सहायता मांगे। यदि राजा या हाकिम ही अत्याचारी हो तो जनता किस की शरण में जाए।

खंजर तले जो दम लिया तो क्या दम लिया : तलवार के साए में कौन चैन से बैठ सकता है।

खंबा गिरे छप्पर भारी : छप्पर को टिकाने वाला खंबा गिर जाए तो छप्पर भारी हो जाता है। घर के मुख्य कमाने वाले की मृत्यु हो जाए तो घर चलाना भारी पड़ने लगता है।

खा के मुँह पोंछ लिया : गलत काम कर के उसे छिपाना या मुकर जाना।

खा चुके खिचड़ी, सलाम चूल्हे भाई : जिस से मतलब निकल गया उसको विदा की नमस्कार।

खांड की रोटी, जहाँ तोड़ो वहीँ मीठी : अच्छी वस्तु हर प्रकार से अच्छी ही है।

खांड़ खून्देगा तो खांड़ खाएगा : जो परिश्रम करेगा उसी को फल मिलेगा। (खांड बनाने के लिए उसे पैरों से खूँदना पड़ता है)।

खांड दही जो घर में होय, बांके नैन परोसे जोय, बा घर ही बैकुंठा होय : घर में बढ़िया खाद्य सामग्री हो और आग्रह कर के खिलाने वाली पत्नी हो तो घर में ही बैकुंठ धाम है।

खांड बिना सब रांड रसोई : जब चीनी बनाने के परिष्कृत तरीके ईजाद नहीं हुए थे तब गन्ने के रस से गुड़ और खांड बनाई जाती थी। फिर खांड को शुद्ध कर के उस से बूरा बनाने का रिवाज़ शुरू हुआ। इन चीजों से ही मिठाई आदि बनती थी। इसी लिए कहा गया कि खांड के बिना रसोई बेकार है।

खांसी करूं खुर्रा करूं, फिर भी न मरे तो क्या करूं : बीड़ी व तम्बाखू का कथन।

खांसी, काल की मासी : लम्बे समय चलने वाली खांसी किसी गंभीर रोग का सूचक हो सकती है।

खाइए मन भाता, पहनिए जग भाता : इंसान को खाना तो अपने मन का खाना चाहिए पर पहनना वह चाहिए जो दूसरों को उसके ऊपर अच्छा लगे।

खाई दाल तबेले की, अक्कल होवे धेले की : तबेला माने घोड़ों के बाँधने का स्थान (अस्तबल)। घोड़े को जब तबेला में रहने की आदत पड़ जाती है तो उस का दिमाग खराब हो जाता है। कहावत का अर्थ है कि सरकारी नौकरी लगते ही आदमी के दिमाग में सुरूर आ जाता है।

खाऊं कि न खाऊं तो न खाओ, जाऊं कि न जाऊं तो जरूर जाओ : जब मन में दुविधा हो कि इस समय खाना खाऊं या न खाऊं, तो उस समय नहीं खाना चाहिए। अगर यह दुविधा हो कि शौच जाऊं या न जाऊं तो चले जाना ज्यादा अच्छा है।

खाए के गाल और नहाए के बाल नहीं छिपते : जिस को भरपेट पौष्टिक आहार मिल रहा हो उस के गाल देख कर मालूम हो जाता है कि यह खाया पिया है। रिश्वत खाने वाले के लिए भी इस कहावत का प्रयोग कर सकते हैं। कहावत में तुक मिलाने के लिए नहाए हुए व्यक्ति के बाल भी नहीं छिपते यह भी जोड़ दिया गया है।

खाए गोप, कुटे जयपाल : अपराध कोई और करे, सजा किसी और को मिले।

खाए तो भेड़िए का नाम न खाए तो भेड़िए का नाम : कोई भी गलत काम हो तो लोग उन्ही पर शक करते है जो बदनाम हैं (चाहे उन्होंने वह काम किया हो या न किया हो)।

खाए बकरी की तरह, सूखे लकड़ी की तरह : जो लोग खाते खूब हैं पर फिर भी दुबले पतले हैं उन के लिए।

खाए मुँह पचाए पेट, बिगड़ी बहू लजाए जेठ : गलत काम कोई करे और उस को सुधारने की कोशिश दूसरे को करनी पड़े तो। स्वाद के चक्कर में मुँह अंट शंट चीजें खाता है और पेट को वह सब पचाना पड़ता है, बहू गलत काम करती है और लज्जित जेठ को होना पड़ता है।

खाए सिपाही नाम कप्तान का : अधीनस्थ कर्मचारी रिश्वत लेते हैं तो भी हाकिम की बदनामी होती है।

खाए हुए को खिलाना आसान : 1. भरे पेट पर आदमी कम खाएगा। 2. जिस के विषय में पता हो कि वह रिश्वतखोर है उस को रिश्वत खिलाना आसान है।

खाएं भीम हगें शकुनि : काम कोई और करे, फल किसी और को मिले।

खाएगा तो हगेगा भी : कर्म का फल अवश्य मिलेगा।

खाओ तो कद्दू से न खाओ तो कद्दू से : किसी को कद्दू पसंद नहीं है पर खाने के लिए केवल कद्दू की सब्जी ही है, मजबूरी में वही खानी पड़ रही है। पसंद की चीज़ न मिले और मजबूरी में दूसरी चीजों से काम चलाना पड़े तब यह कहावत कही जाती है।

खाओ दाल रोटी चटनी, कमाई कितनी भी हो अपनी : आमदनी अधिक हो तब भी सादगी से रहना चाहिए।

खाओ न पिओ, जुग जुग जिओ : झूठा आशीर्वाद देने वालों के लिए।

खाओ पकोड़ी पेलो दंड : जीवन को बिंदास जीने का संदेश।

खाओ यहाँ तो पानी पियो वहां : बहुत जल्दी जाओ।

खाक डाले चाँद नहीं छिपता : धूल फेंकने से चंद्रमा नहीं छिपता। महापुरुषों पर बेकार के लांछन लगाने से उनकी महानता कम नहीं होती।

खाक न खटाई, मुंडो फिरे इतराई : किसी के पास कुछ भी न हो फिर भी वह बहुत घमंड करे तो यह कहावत कहते हैं। किसी स्त्री की शक्ल सूरत कुछ खास न हो पर वह अपने को बहुत सुंदर समझ कर घमंड करती हो तो भी यह कहावत कही जाती है।

खाकर आवे आलस, नहा के होवे चौकस : खाना खा कर आलस आता है और नहाने के बाद स्फूर्ति।

खाकर हगे, कबहुं न अघे :  कुछ लोगों की खाना खाते ही शौच जाने की आदत होती है। ऐसे लोगों का पेट कभी नहीं भरता।

खाके जल्दी चलिए कोस, मरिए आप दैव के दोस : खाना खाके फ़ौरन लम्बी दूरी चलना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। (ऐसा करने वाला व्यक्ति अपनी गलती से मरता है और ईश्वर को दोष देता है)।

खाज चली जाय, खुजाने की आदत न जाय : खुजली की बीमारी खत्म भी हो जाए तब भी खुजाने की आदत नहीं जाती। किसी भी चीज की आदत आसानी से नहीं जाती है।

खाज पर उँगली सीधी जावे : जहाँ खुजली हो रही होती है उँगली सीधे वहीँ जाती है। इस के लिए किसी को सिखाना नहीं पड़ता। यह बात आदमी ही नहीं जानवरों पर भी लागू होती है। शरीर को अपनी नैसर्गिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना प्रकृति सिखाती है।

खाज से गंजी कुतिया, पूंछ में कंघी बांधे : जिस कुतिया के बाल खुजली के कारण गिर गए हैं वह पूंछ में कंघी बांधे घूम रही है। कोई व्यक्ति जिस शौक के लायक न हो उस तरह का शौक करे तो।

खाट खड़ी और बिस्तर गोल : किसी स्थान से कब्जा छोड़ने को मजबूर किया जाना। पहले जब चारपाई (खाट) का चलन था तो लोग चारपाई बिछा के उस पर बिस्तर बिछाया करते थे। चारपाई पर कब्ज़ा करने वाले आदमी को हटाने के लिए चारपाई खड़ी कर दी गई और बिस्तर को गोल कर दिया (लपेट दिया)।

खाता जाए और खप्पर फोड़ता जाए : किसी चीज से अपना काम निकल जाने के बाद वह चीज किसी और के काम न आ जाए, ऐसी नीचता पूर्ण सोच रखने वाला।

खाता भी जाए और बड़बड़ाता भी जाए : जो लोग कभी खुश हो कर कोई काम नहीं करते, उन के लिए।

खातिन ईंधन को क्यूँ जाए, तेलिन रूखा क्यूँ खाए : खातिन – बढ़ई की पत्नी। बढ़ई को लकड़ी के छोटे टुकड़े और छीलन सहज ही उपलब्ध होती हैं और तेली को तेल की कमी नहीं होती।

खाते खाते भंडार नष्ट हो जाते हैं : अन्न या धन का कितना भी बड़ा भंडार हो, यदि आप उसमें कुछ जोड़ें नहीं और खर्च करते रहें तो वे एक दिन ख़त्म हो जाता है।

खाते पीते न मरे, आलस से  मर जाए : कोई व्यक्ति अधिक खाने से चाहे न मरे पर आलस्य से जरूर मर जाएगा.

खाद पड़े तो खेत, नहीं तो कूड़ा रेत : खाद से ही खेत फलता फूलता है।

खान तो खान, जुलाहा भी पठान : मुसलामानों में खान और पठान ऊंची जात के लोग माने जाते हैं और जुलाहा नीची जात का। कोई निम्न कोटि का व्यक्ति अपने को उच्च कोटि का दिखाने की कोशिश करे तो।

खान पान में आगे, काम काज से भागे : जो लोग खाने में सबसे आगे रहते हैं और काम के समय गायब हो जाते हैं।

खानदान है कि शिव जी की बारात : शिव जी की बरात में भयंकर शक्लों वाले उन के भूत और गण गए थे। किसी खानदान के सभी लोग भयंकर शक्लों वाले हों तो।

खाना कुखाना उपासे भला, संगत कुसंगत अकेले भला : (भोजपुरी कहावत) कुपथ्य खाने से भूखा रहना अच्छा है और बुरी संगत से अकेला रहना अच्छा है।

खाना घर में, भौंकना सड़क पे (खाना मन्दिर में, भौंकना मस्जिद में) : जो आजीविका दे रहा हो उसका काम न कर के दूसरे का काम करना।

खाना थाली का, परोसना साली का : जहाँ सब लोगों को पत्तल में खाना मिल रहा हो वहाँ थाली में खाना मिलना विशेष आवभगत का सूचक है (विशेषकर दामाद को ऐसी सुविधा मिलती है) और ऐसे में परोसने वाली साली हो तो सोने में सुहागा।

खाना पराया है पर पेट तो पराया नहीं है : मुफ्त का मिल रहा हो तो इस का अर्थ यह नहीं कि इतना खा लो कि बीमार हो जाओ।

खाना सीरा को, मिलना वीरा को : खाना शीरे (हलवे) का सबसे उत्तम होता है और मिलना भाई का।

खाना, तिरिया, रुपैय्या, तीनों रखो छुपाए : जो खाना आप खाते हैं वह दूसरों को दिखा कर नहीं खाना चाहिए, इसी प्रकार अपने घर की स्त्रियों का और अपने पैसे का प्रदर्शन नहीं करना चाहिए।

खाने को ऊँट (शेर), कमाने को बकरी (खाने को बाघ, कमाने को मुर्गी) : अर्थ स्पष्ट है।

खाने को चटनी, पलंग पे नटनी : घर में ठीक से खाने को तो है नहीं लेकिन वैश्या वृत्ति का शौक सूझ रहा है।

खाने को दाम नहीं नाम करोड़ीमल : नाम कुछ असलियत कुछ।

खाने को शेर, कमाने को बकरी : खाने में मजबूत कमाने में फिसड्डी।

खाने को हम और लड़ने को हमारा भाई : स्वार्थी और अवसरवादी लोगों के लिए।

खाने में आगे, काम से भागे : ऐसे व्यक्ति के लिए जो खाने पीने के मौकों पर आगे रहता हो और काम पड़ने पर गायब हो जाता हो।

खाने में शरम क्या, और घूंसे में उधार क्या : खाने में शरम नहीं करनी चाहिए और मारपीट का बदला तुरंत चुकाना चाहिए।

ख़ामोशी नीम रज़ा : उर्दू में नीम का अर्थ है आधा और रज़ा का अर्थ है सहमति। यदि आप किसी बात का विरोध नहीं करते (विशेषकर अन्यायपूर्ण बात का) तो इसका अर्थ यह लगाया जाता है कि आप उससे सहमत हैं। इंग्लिश में कहावत है – Silence is half consent. संस्कृत में कहा गया है – मौन स्वीकृति लक्षणं।

खाय कै मूते सोवे बाऊँ, काय को वैद बसावे गाऊँ : स्वास्थ्य के विषय में बहुत से लोक विश्वास प्रचलित हैं जिन में से एक यह भी है – खाना खा कर तुरंत मूत्र त्याग करे और बायीं करवट सोए तो व्यक्ति स्वस्थ रहता है (फिर वह गाँव में वैद्य क्यों बसाएगा)।

खाय चना, रहे बना : चना खाने वाला लम्बे समय तक स्वस्थ रहता है।

खाय तो घी से, नहीं तो जाय जी से : दाल और रोटी में घी के बिना कोई स्वाद नहीं है। घी न मिले इस से तो अच्छा है कि जान चली जाए।

खाय न खरचे सूम धन, चोर सबै ले जाय : सूम – कंजूस। कंजूस अपना धन खर्च नहीं करता। अंततः चोर सब धन ले जाता है।

खाय पिए रोवे, वो प्रभु को खोवे : जो लोग सब तरह से संपन्न हैं फिर भी रोते रहते हैं उनसे ईश्वर नाराज़ हो जाता है।

खाय भी गुर्राय भी : नीच प्रवृत्ति के कृतघ्न लोगों के लिए कहा जाता है। उन हाकिमों के लिए भी जो रिश्वत लेते हैं फिर भी गुर्राते हैं।

खाया पिया अंग लगेगा, दान धर्म संग चलेगा, धन पड़ा-पड़ा जंग लगेगा : आदमी को अधिक धन संग्रह के लालच में नहीं पड़ना चाहिए। अच्छा खाओगे तो शरीर स्वस्थ होगा, दान करोगे तो पुन्य मिलेगा जो कि परलोक में साथ जाएगा। इकठ्ठा किया हुआ पैसा केवल जंग खाएगा।

खाया पीया एक नाम, मारा पीटा एक नाम : किसी के घर चाहे थोड़ा खाओ या अधिक, खाने वालों में नाम तो हो ही जाता है। इसी तरह किसी को चाहे थोड़ा पीटो या अधिक, मारने वालों में नाम तो आ ही जाता है।

खाये बिना रहा जाय, पर कहे बिना न रहा जाय : जिन लोगों की बहुत बोलने की आदत होती है उन पर व्यंग्य।

खारा कड़वा गंधला, जो बरसेला तोय, खेती की हानी हुवे, देस नास भी होय : अगर कभी खारा, कड़वा या गंदा पानी बरसता है तो वह खेती को तो नुकसान करता ही है, देश के लिए भी यह अच्छा शगुन नहीं है। तोय – पानी।

खारे समन्दर में मीठा कुआं : बहुत से दुष्ट लोगों के बीच एक भला आदमी.

खाल उढ़ाए सिंह की, स्यार सिंह नहिं होए : अच्छे वस्त्र पहन लेने से या या दिखावा करने से कायर और मूर्ख पुरुष वीर या विद्वान नहीं बन सकते।

खाला खसम कराय दे, के मैं तो खुद हेरती फिरूं (खाला खसम करा दे, खाला खुद तलाश लें) : खाला – मौसी।, हेरती – ढूँढती। कोई लड़की मौसी से कह रही है कि मेरी शादी करा दो। मौसी कह रही हैं कि मैं तो खुद अपने लिए ढूँढ़ रही हूँ। जो स्वयं परेशानी में है वह दूसरे की सहायता क्या कर पाएगा।

खाली घर में चमगादड़ डेरा डाल लेते हैं : 1. खाली पड़ी जायदाद पर अनधिकृत लोग कब्ज़ा कर सकते है। 2. खाली दिमाग में तरह तरह के फितूर पैदा होते हैं।

खाली दिमाग शैतान का घर है : दिमाग अगर खाली होता है तो उसमें तरह-तरह के फितूर आते रहते हैं। इसलिए इंसान को कभी खाली नहीं बैठना चाहिए अगर आपके पास कोई धंधा पानी न हो तो कोई सामाजिक कार्य करें, भविष्य की योजना बनाएं, अच्छा साहित्य पढ़ें या किसी शौक में मन लगाएं। लंबे समय तक खाली न बैठें। इंग्लिश में इस प्रकार की कई कहावतें हैं – An idle brain is devil’s workshop. Idleness is mother of all evil.

खाली बर्तन खटकते हैं : निठल्ले लोग बैठे बिठाए झगड़ा ही किया करते हैं।

खाली बोरा सीधा खडा नहीं हो सकता : बोरे में कुछ गेहूँ चावल आदि भरा होगा तभी वह सीधा खड़ा हो पाएगा। कहावत का अर्थ है कि खाली पेट रहने वाला व्यक्ति ईमानदारी से काम नहीं कर सकता या स्वाभिमान से नहीं जी सकता।

खाली लल्ला ही सीखा है दद्दा नहीं सीखा : लल्ला – ‘ल’, दद्दा – ‘द’। ल से लेना, द से देना। जो लोग केवल लेना जानते हैं, देना नहीं जानते। कुछ लोग इस कहावत में आगे यह और जोड़ते हैं – दद्दा के डर से दिल्ली को भी हस्तिनापुर बोले।

खाली हाथ मुंह की तरफ नहीं जाता है : हाथ में कोई खाने की चीज़ होगी तो वह अवचेतन रूप से ही मुँह में जाता है। हाथ खाली होगा तो नहीं जाएगा। प्रकृति सभी जीवों को यह सिखाती है।

खाविंद राज बुलंद राज, पूत राज दूत राज : पति के राज में स्त्री को जितना सुख मिलता है उतना पुत्र के राज में नहीं मिलता।

खावे जैसो अन्न, होवे तैसो मन्न : बेईमानी से पैदा किया हुआ अन्न खाओगे तो बुद्धि भ्रष्ट होगी और ईमानदारी की रोटी खाओगे तो मन निर्मल रहेगा।

खावे पान, टुकड़े को हैरान : घर में खाने को नहीं है और पान खाने जैसा फालतू शौक करने की सूझ रही है।

खावे पूत, लड़े भतीजा : खाना पीना खाने और जायदाद का सुख भोगने के लिए तो बेटा है और खतरे उठाने के लिए भतीजे को आगे करना चाहते हैं।

खावे पौना, जीवे दूना : कोई व्यक्ति जितना खा सकता है उससे पौना (तीन चौथाई) ही खाने की आदत डाल ले तो वह लंबे समय तक जियेगा।

खावे मोट, तोड़े कोट : मोटा अनाज खाने से अधिक ताकत आती है। तोड़े कोट – किला तोड़ देते हैं।

ख़ास ख़ास को टोपली, बाकी को लंगोट : कुछ चुने हुए लोगों को टोपी दी गयी परन्तु शेष लोगों को लंगोट ही मिला।  कुछ विशेष चयनित लोगों का तो सम्मान किया गया परन्तु शेष लोगों को जैसे-तैसे ही निपटा दिया गया।

खिचड़ी की तारीफ़ कर दी तो दांतों में चिपक गई : किसी की तारीफ़ करने से वह गले पड़ जाए तो।

खिचड़ी खाते नीक लागे और बटुली माजत पेट फटे : (भोजपुरी कहावत) खिचड़ी खाते समय अच्छी लगती है और बरतन धोते समय बहुत परेशानी होती है। सुविधाएँ सब चाहते हैं पर काम कोई नहीं करना चाहता।

खिचड़ी खाते पाहुंचा उतरा : बहुत नाज़ुक व्यक्ति का मज़ाक उड़ाने के लिए। पाहुंचा – कलाई।

खिचड़ी तेरे चार यार, घी, पापड़, दही, अचार : खिचड़ी खाने का असली मज़ा इन चार चीजों के साथ है।

खिदमत से अज़मत है : बड़ों की सेवा करके ही आप संपन्न बन सकते हैं। इसका अर्थ यह भी हो सकता है कि चमचागिरी कर के ही रुतवा मिल सकता है। (खुशामद से ही आमद है)।

खिलाए का नाम नहीं, रूलाए का नाम : आप किसी के बच्चे को कितनी भी देर खिलाएं और बहलाएं उसका कोई श्रेय नहीं मिलता, अगर बच्चा रो दिया तो माँ कहेगी कि बच्चे को रुला दिया।

खिसियाई कुतिया भुस में ब्याई, टुकड़ा दिया काटने आई : कोई व्यक्ति खिसिया रहा हो और जो उस की सहायता करना चाहे उसी को बुरा भला कह रहा हो उस का मजाक उड़ाने के लिए।

खिसियानी बिल्ली खम्बा नोचे : चूहा बिल्ली की पकड़ से निकल कर भाग गया तो बिल्ली खिसिया कर खम्बे को नोचने लगी। काम न होने पर कोई व्यक्ति खिसिया रहा हो तो यह कहावत बोलते हैं।

खीर खीचड़ी मंदी आंच : खीर और खिचड़ी मंदी आंच पर अच्छी बनती हैं।

खीर पूड़ी खाएं और देवता को मनाएं (घर वाले खीर खाएँ और देवता राजी हों) : पहले के लोगों ने भगवान को प्रसन्न करने के लिए व्रत रखने का विधान बनाया जिसमें व्यक्ति दिन भर भूखा रह कर केवल एक बार रूखा सूखा भोजन करता था (यह एहसास करने के लिए कि गरीब कितनी कठिनाई से जीवन बिताते हैं)। आजकल के ढोंगी भक्त व्रत रखने का नाटक करते हैं जिसमे वे दिन भर भी कुछ न कुछ खाते पीते रहते हैं और शाम को खूब पकवान खाते हैं।

खीरा खाए ओस में सोवे, ताको वैद कहां तक रोवे : खीरे को लोग ठंडी तासीर वाला मानते थे। कोई आदमी खीरा खा कर ओस में सो जाए तो बीमार पड़ेगा ही, वैद्य इसमें क्या कर सकता है।

खीरा सिर तें काटिए, मलियत नमक बनाय, रहिमन करुए मुखन को, चहिअत इहै सजाय : खीरे का सर काट के नमक लगा मलते हैं जिस से उसकी कड़वाहट दूर हो जाए। जो लोग कड़वा बोलते हैं उनके साथ भी ऐसा ही व्यवहार होना चाहिए।

खील बताशों का मेल : दो अच्छी चीजों का मेल।

खुजली तो खुजलाने से ही मिटती है : व्यक्तिगत आवश्यकताएं स्वयं अपने करने से ही पूरी होती हैं।

खुद करे तो खेती, नहीं तो बंजर हैती : खेती खुद करने से ही कामयाब होती है। दूसरों के ऊपर छोड़ देने से खेत बंजर हो जाता है।

खुद तो दान दे नहीं, देने में अड़ंगा लगाए : दुष्ट प्रवृत्ति के लोगों के लिए।

खुद राह राह, दुम खेत खेत : खुद सड़क पर चल रहे हैं और पूँछ खेत में है। निहायत ही फूहड़ और बेतरतीब आदमी के लिए।

खुद ही नाचे खुद ही न्योछावर करे (बलैयां ले) : अपनी प्रशंसा स्वयं करना।

खुदा का दिया कन्धों पर, पंचों का दिया सर पर : पंचों की आज्ञा ईश्वर की आज्ञा से बड़ी है।

खुदा का मारा हराम, अपना मारा हलाल : मांसाहारी लोग अपने आप से मरे हुए जानवर का मांस नहीं खाते बल्कि इंसान द्वारा मारे हुए जानवर का मांस ही खाते हैं।

खुदा किसी को लाठी ले कर नहीं मारता : ईश्वर किसी को दंड देता है तो लाठी ले कर नहीं मारता।

खुदा की खुदाई को कौन जाने : अकबर ने बीरबल के सामने ऐसा बोला तो बीरबल ने कहा, जहांपनाह मैं जानता हूँ। अकबर ने चिढ़ कर कहा, अच्छा! मुझे भी दिखाओ। बीरबल उसे यमुना के किनारे ले गए और यमुना की तरफ इशारा कर के बोले, हुजूर! यह खुदा ने खुदाई है या आप ने।

खुदा की चोरी नहीं तो बंदे का क्या डर : यदि हम ईश्वर के आगे सच्चे हैं तो मनुष्य से क्यों डरें।

खुदा की बातें खुदा ही जाने : ईश्वर के मन में क्या है यह ईश्वर ही जान सकता है।

खुदा के घर में चोर का क्या काम : चोर बदमाश लुटेरे आसानी से नहीं मरते (उनकी जरूरत वहाँ भी नहीं है)।

खुदा दो सींग दे तो भी सहे जाते हैं : ईश्वर कुछ भी दे उसे सहर्ष स्वीकार करना पड़ता है।

खुदा ने गंजे को नाख़ून नहीं दिए हैं : वैसे तो इस कहावत का अर्थ स्पष्ट है लेकिन इसका एक बहुत आश्चर्यजनक पहलू भी है। एक बहुत बिरली बीमारी होती है Anonychiya जिसमें जन्म से नाखून नहीं होते। ऐसे ही एक बीमारी होती है जिसमें सर पर या सारे शरीर पर बाल नहीं होते (Alopecia totalis)। ये बीमारियाँ जेनेटिक गड़बड़ी के कारण एक साथ भी हो सकती हैं। इस तरह के किसी बच्चे को देख कर किसी सयाने व्यक्ति ने मजाक में कहा होगा कि देखो इस गंजे को खुदा ने नाखून भी नहीं दिए हैं नहीं तो वह खुजा खुजा के अपनी खोपड़ी लहुलुहान कर लेता। तभी से यह कहावत बनी होगी।

खुदा ने जवाब दे दिया है, बेहयाई से जीते हैं : कोई अत्यधिक वृद्ध व्यक्ति परिवार और समाज पर बोझ बना हुआ हो तो यह कहावत कही जाती है।  

खुदा मेहरवान तो गधा पहलवान (किस्मत मेहरबान तो गधा पहलवान) : कोई पढ़ाई में पीछे रहने वाला बंदा यदि सिफारिश के बल पर अच्छी नौकरी पा जाए तो उससे ज्यादा काबिल लोग कुढ़ कर यह कहावत बोलते हैं। इंग्लिश में कहावत है – God sends fortune to fools.

खुदा लड़ने की रात दे, बिछड़ने का दिन न दे : पति पत्नी, दोस्त या रिश्तेदार आपस में थोड़ा लड़ लेते हैं पर बिलकुल बिछड़ना नहीं चाहते।

खुदी और खुदाई में बैर है : जिसके अन्दर अहम् है ईश्वर उससे प्रसन्न नहीं होता।

खुर तातो, खर मातो : बैसाख में मौसम बदलने के साथ जैसे ही गधे के खुर गरम होते हैं वैसे ही उस पर मस्ती छाने लगती है।

खुरचन मथुरा की, और सब नक़ल : खुरचन एक दूध की मिठाई का नाम है जोकि मथुरा की सबसे बढ़िया होती है। किसी बढ़िया और असली चीज़ की तारीफ़ करने के लिए यह कहावत कहते हैं।

खुले घर में धाड़ नहीं, निर्जन गांव में राड़ नहीं :  (राजस्थानी कहावत)धाड़ – डाका, राड़ – झगड़ा। अर्थ स्पष्ट है।

खुले मांस पर मक्खी तो बैठेगी ही : अपनी चीज़ की परवाह नहीं करोगे तो अवांछित तत्व उस का फायदा उठाएंगे ही।

खुशामद किसे कड़वी लगती है : खुशामद और तारीफ़ सब को अच्छी लगती है। अगर आप यह जानते हैं कि सामने वाला अपने स्वार्थ के लिए आपकी खुशामद कर रहा है तब भी आप खुश होते हैं। राजस्थानी कहावत है – खुसामद किसे खारी लागै।

खुशामद खरा रोजगार : खुशामद सबसे सच्चा व्यापार और सफलता का मन्त्र है।

खुशामद से ही आमद है : जो दूसरों की खुशामद करना जानते हैं वही जीवन में सफल होते हैं।

खुशामद से ही आमद है, इसलिए बड़ी खुशामद है : खुशामद से सब कार्य सिद्ध हो जाते हैं, इसीलिए खुशामद बड़ी चीज है।

खुशामदी का मुँह काला : जो व्यक्ति अयोग्य होते हुए भी दूसरों की खुशामद कर के आगे बढ़ जाता है, उसे कभी न कभी नीचा देखना पड़ता है।

खुसरो दरिया प्रेम का उल्टी बाकी धार, जो उतरा सो डूब गया जो डूबा सो पार : प्रेम की गति अजीब होती है। (अमीर खुसरो ने हिंदी में बहुत सी लोकप्रिय पहेलियाँ लिखी हैं और कुछ कहावतें भी बनाई हैं जिनमें से एक यह भी है)।

खूंटे के बल बछड़ा कूदे (खूंटे के बल बछड़ा नाचे) : कमजोर आदमी दूसरे की शह पर ही बोलता है।

खूंटे बंधा बछड़ा गाय की राह देखे : जिसका जिससे कार्य सिद्ध होता हो वह उसी की राह देखता है।

खून सर चढ़ कर बोलता है। (खून वह जो सर चढ़ कर बोले) : 1. किसी का खून किया गया हो तो सबूत अपने आप बोलते हैं। 2. खून के रिश्ते सर चढ़ के बोलते हैं।

खूब कीचड़ उछालो, दाग तो लगेगा ही : किसी के ऊपर बिना किसी सबूत के भी अगर खूब कीचड़ उछालोगे तो कुछ न कुछ दाग तो लगेगा ही। इंग्लिश में कहते हैं – Fling dirt enough and some will stick.

खूब गुजरेगी जब मिल बैठेंगे दीवाने दो : दो दोस्त मिल कर बैठते हैं तो खूब मस्ती होती है।

खूब दुनिया को आजमा देखा, जिसको देखा तो बेवफा देखा : ईमानदारी और कृतज्ञता बहुत कम लोगों में मिलती है।

खूबसूरती गहनों की मोहताज नहीं : जो वास्तव में सुन्दर है उसको सुन्दर दिखने के लिए आभूषणों की आवश्यकता नहीं होती।

खेत को खोवे गेली, साधु को खोवे चेली : गेली – खेत में से हो कर जाने वाला रास्ता। खेत अगर छोटा हो और उस में से भी रास्ता निकाल दिया जाए तो खेत में बचेगा ही क्या। कहावतों में तुक बंदी करने के लिए अक्सर कोई दूसरी बात साथ में जोड़ दी जाती है। इस कहावत में भी यह बात जोड़ दी गई है कि चेली के मोह में पड़ जाने से साधु की साख धूमिल हो जाती है।

खेत खाय गदहा, मार खाय जुलहा : गधा यदि किसी का खेत चरे तो उस को पालने वाले जुलाहे को मार पड़ती है। जब अपने से सम्बन्धित किसी व्यक्ति की गलती का दंड किसी को भुगतना पड़े तो।

खेत खाय पड़िया, भैंस का मुँह झकझोरा जाय : ।बच्चों की गलती की सजा उन के माँ बाप को भुगतनी पडती है।

खेत बिगाड़े खरतुआ और सभा बिगाड़े दूत : दूत से अर्थ यहाँ चुगलखोर है। खरतुआ – खरपतवार जो खेत में अपने आप उगती है।

खेत बिगाड़े सौभना, गांव बिगाड़े बामना : सौभना – बन ठन के घूमने वाला। इसका अर्थ है कि जो व्यक्ति अपने कपड़ों पर ज्यादा ध्यान देता है वह व्यक्ति खेत को बिगाड़ देता है। कहावत की दूसरी उक्ति है कि ब्राह्मण गांव को बिगाड़ता है। यह उक्ति सम्पूर्ण ब्राहमण वर्ग के लिए न हो कर केवल लालची पंडितों को लक्ष्य कर के कही गई है।

खेत भला न झील का, घर अच्छा नहिं सील का : झील के किनारे का खेत अच्छा नहीं होता क्योंकि झील में पानी बढ़ने से उसके डूबने का डर रहता है। जिस घर में सीलन हो वह घर भी अच्छा नहीं होता।

खेत में तरकारी को बघार नहीं लगता : हर कार्य के लिए अलग अलग स्थान उपयुक्त होते हैं।

खेत में बुरी नाली और घर में बुरी साली : खेत में नाली का होना नुकसान की बात है और घर में साली का स्थायी रूप से रहना अच्छा नहीं है।  

खेत रखे बाड़ को, बाड़ रखे खेत को : ये दोनों एक दूसरे की रक्षा करते हैं व एक दूसरे के पूरक हैं।

खेतिहर गये घर, दाएँ बाएँ हर : हर – हल। खेत का मालिक घर गया तो मजदूर हल छोड़ कर दाएँ बाएँ हो गए।

खेती उत्तम काज है, इहि सम और न कोय, खाबै को सब को मिले, खेती कीजे सोय : (बुन्देलखंडी कहावत) खेती सबसे अच्छा काम है जिससे अपना निर्वाह तो होता ही है, दूसरे प्राणियों को भी खाने को मिलता है।

खेती कर आलस करे, भीख मांग सुस्ताय, सत्यानास की क्या कहें, अठ्यानास हो जाए : (बुन्देलखंडी कहावत) खेती करने वाला यदि आलस करे और भीख मांगने वाला यदि सुस्ताने बैठ जाए तो इन का विनाश होना तय है।अठ्यानास – सत्यानाश से भी बड़ा नुकसान।

खेती कर कर हम मरे, बहुरे के कोठे भरे : किसान प्राण पण से खेती करता है और बदहाल रहता है। साहूकार और व्यापारी अपना घर भरते हैं।

खेती करे न बनिजे जाय, विद्या के बल बैठा खाय : बनिज (वणिज) – व्यापार। विद्वान व्यक्ति खेती या व्यापार करे बिना अपने ज्ञान के बल पर पैसा कमाता है।

खेती करे सांझ घर सोवे, काटे चोर हाथ धरि रोवे : खेती करने वाले को खेत की रखवाली करनी पड़ती है। अगर नहीं करेगा तो चोए काट के ले जाएंगे। कहावत का अर्थ सभी व्यापारों पर लागू होता है।

खेती करै वणिक को धावै, ऐसा डूबै थाह न पावै : खेती करने वाला यदि सूदखोर से उधार लेता है तो बहुत परेशानी में पड़ सकता है। वणिक – बनिया।

खेती खसम सेती : खेती या व्यापार में लाभ तभी होता है जब मालिक स्वयं उसकी देखरेख करे : खसम से अर्थ यहाँ मालिक से है।

खेती तो उनकी जो अपने कर हल हांकें, उनकी खेती कुछ नहीं जो सांझ सवेरे झांकें : जो किसान लग कर अपने हाथ से खेती करते हैं उन्हीं की खेती सफल होती है, जो सुबह शाम खेत का चक्कर लगा आएं उनकी खेती सफल नहीं होती।

खेती तो थोरी करे, मेहनत करे सिवाय, राम चहें बा मनुस को टोटो कबहुं न आए : (बुन्देलखंडी कहावत) खेती यदि थोड़ी भी हो तो भी मेहनत करने वाले व्यक्ति को धन की कमी नहीं होती।

खेती धन की नास, जो धनी न होवे पास, खेती धन की आस, धनी जो होवे पास : खेती करने वाले का वहीं रह कर खेती करना आवश्यक है। धनी से अर्थ यहाँ खेत के स्वामी से है।

खेती धान के नास, जब खेले गोसइयां तास : जब किसान ताश खेलता रहता है तो उसकी खेती स्वाभाविक रुप से नष्ट हो जाती है। गोसाईं – गोस्वामी, मालिक।

खेती बिनती पत्री और खुजावन खाज, घोड़ा आप संवारिये जो प्रिय चाहो राज : (बुन्देलखंडी कहावत) कुछ कार्य ऐसे हैं जो अपने हाथ से करने पर ही सफल होते हैं – खेती, अर्जी, चिट्ठी, खुजली और घोड़े की देखभाल।

खेती रहिके परदेस मां खाय, तेखर जनम अकारथ जाय : इसका अर्थ है कि जो व्यक्ति अपने पास खेत होते हुए भी पैसों के लिए परदेश जाता है उसका जन्म ही निरर्थक है।

खेती राज रजाए, खेती भीख मंगाए : फसल अच्छी हो जाए तो किसान राजा हो जाता है, चौपट हो जाए तो भीख मांगने की नौबत आ जाती है।

खेती हो चुकी, हल खूँटी ऊपर : काम ख़त्म हो गया अब औजार उठा कर रख दो।

खेती, पाती, बीनती, परमेसर को जाप, पर हाथां नहिं कीजिये, करिए आपहिं आप : खेती करना, किसी को चिट्ठी लिखना, अर्जी लिखना और ईश्वर की भक्ति अपने आप ही करना चाहिए।

खेती, पानी, बीनती (अर्ज़ी) औ घोड़े की तंग, अपने हाथ संभारिये लाख लोग हों संग : खेती के सारे काम, खेत में पानी देना, अर्जी लिखना और घोड़े की रास संभालना ये सारे काम अपने हाथ से ही करने चाहिए।

खेती, बेटी, गाभिन गाय, जो ना देखे उसकी जाय : खेती, बेटी और गाभिन गाय की देख-रेख करनी पड़ती है। यानि अगर आप इन तीनों पर नजर नहीं रखेंगे तो ये हाथ से निकल जाएंगी।

खेल खतम, पैसा हजम : खेल तमाशा देखने के लिए पैसा खर्च होता है। खेल ख़त्म होने के बाद जो पैसा आपने खर्च किया वह हज़म हो गया। पैसा खर्च करके आनंद उठाने के लिए यह कहावत बोलते हैं।

खेल खिलाड़ी का, पैसा मदारी का : काम कर्मचारी करते हैं और कमाई मालिक की होती है.

खेल में रोवे सो कौवा : जो बच्चा खेल खेल में खिसिया के रोने लगे उसे चिढ़ाने के लिए।

खेले कूदे होए खराब, पढ़े लिखे होए नबाव : (खेलोगे कूदोगे तो होगे खराब, पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नबाब)। वैसे तो कहावत का अर्थ स्पष्ट है लेकिन यहाँ खेल से मतलब व्यर्थ के घटिया खेलों से है जो समय नष्ट करते हैं (जैसे गुल्ली डंडा, पतंगबाजी आदि)। जो अच्छे प्रतिस्पर्धात्मक खेल हैं उन्हें खेलने से व्यक्तित्व का विकास होता है और उन में कैरियर भी बनाया जा सकता है।

खेले खाय तो कहाँ पिराए : यहाँ खेल से तात्पर्य अच्छे व्यायाम वाले खेलों से है और खाय का अर्थ पौष्टिक भोजन खाने से है। अच्छा व्यायाम और पौष्टिक भोजन करने वाले का शरीर कहीं से नहीं दुखता। पिराए – दर्द करे।

खेले न खेलन देय, खेल में मूत देय : दुष्ट प्रवृत्ति और खिसियाने वाले लोगों के लिए।

खैर का खूँटा : खैर की लकड़ी बहुत मजबूत होती है। इसमें दीमक या कीड़ा नहीं लगता। किसी दृढ़ निश्चयी व्यक्ति के लिए यह कहावत प्रयोग करते हैं।

खैर, खून, खांसी, खुसी, बैर, प्रीत, मदपान; रहिमन दाबे न दबें, जानत सकल जहान : कत्थे का दाग, बहता हुआ खून, खांसी, खुशी, वैर, प्रेम और शराब का नशा, ये दबाने से नहीं दबते (छिपाने से नहीं छिपते), सारा संसार इन्हें देख लेता है (जान जाता है)।

खैरात के टुकड़े बाजार में डकार : दूसरों से दान लेकर दिखावा करना।

खोखला शंख पराई फूंक से ही बजता है : शंख क्योंकि खोखला होता है इसलिए अपने आप नहीं बोल सकता। दूसरे की फूंक से ही बोलता है। पुरुषत्व विहीन लोग अपने आप कुछ नहीं करते दूसरों के बल पर ही बोलते हैं।

खोखले अंडे की पैदाइश : तुच्छ व्यक्ति।

खोखले में तो उल्लू ही पैदा होते हैं : मूर्ख लोगों को अपनी जमात बढ़ाने के लिए समाज से अलग जगह चाहिए होती है।

खोटा खरा तो भी गाँठ का, भला बुरा तो भी पेट का : गाँठ का पैसा चाहे खोटा हो या खरा, अपने को प्रिय होता है। पेट का जाया चाहे सज्जन हो या दुर्जन, माँ को प्रिय होता है।

खोटा खाओ और खरा कमाओ : खाना कितना भी रूखा सूखा मिले, कमाई ईमानदारी से ही करनी चाहिए।

खोटा नारियल होली के लिए या पूजा के लिए : खोटे नारियल को लोग होली में जलने वाली वस्तुओं में डाल देते हैं या पूजा में चढ़ा देते हैं.

खोटा बेटा खोटा दाम, बखत पड़े पे आवे काम (खोटा बेटा और खोटा पैसा भी समय पर काम आता है) : जिस जमाने में सिक्कों की बहुत कीमत हुआ करती थी तब लोग नकली सिक्के बना लिया करते थे (जैसे आजकल जाली नोट बना लेते हैं)। बहुत मुसीबत के समय कभी कभी खोटा सिक्का भी धोखे से चल जाया करता था। इसी प्रकार नालायक बेटा भी मुसीबत में काम आ सकता है।

खोटी बात में हुंकारा भी पाप : कोई अन्यायपूर्ण बात कर रहा हो  तो उस की हाँ में हाँ मिलाना भी पाप है। (उसका विरोध करना चाहिए)।

खोटी संगत के फल भी खोटे : बुरे लोगों की संगत के बुरे परिणाम होते हैं.

खोटे की बुराई श्मशान में : दुष्ट व्यक्ति जब तक जीवित होता है तब तक किसी की उस को बुरा कहने की हिम्मत नहीं होती। उस के मरने के बाद लोग उसे खुले आम बुरा कहते हैं।

खोटे खाते में गवाही कौन दे : धोखाधड़ी वाले काम में गवाही देने के चक्कर में कभी नहीं पड़ना चाहिए.

खोटे खाते में मरे हुए की गवाही : बिलकुल फर्जी काम।

खोतों के सींग थोड़े ही होते हैं (वो ऐसे ही पहचाने जाते हैं) : अगर कोई व्यक्ति समझदार लोगों के बीच बैठा बेवकूफी की हरकतें कर रहा हो तो यह कहावत कही जाती है। खोता माने होता है गधा। कहावत का अर्थ है कि गधों के सिर पर सींग नहीं होते। वे अपनी हरकतों से ही आदमियों के बीच अलग से पहचान लिए जाते हैं।

खोदा पहाड़ निकली चुहिया : बहुत अधिक श्रम करने के बाद बहुत कम लाभ होना या लाभ न होना। कुछ लोग इस बात में और वजन देने के लिए इस प्रकार कहते हैं – खोदा पहाड़ निकली चुहिया, वह भी मरी हुई।

खोदे चूहा और सोवे सांप : चूहा बड़े परिश्रम से बिल खोदता है और सांप उस पर कब्जा कर लेता है। यही समाज का नियम है।

खोया ऊंट घड़े में ढूंढे : ऊंट को घड़े में ढूँढना (मूर्खता पूर्ण कार्य)।

खोवें आदर मान को दगा लोभ और भीख : धोखा करना, मन में लोभ रखना और किसी से भीख माँगना, ये तीनों बातें व्यक्ति के सम्मान को ख़त्म कर देती हैं।

( ग )

गआ राज जहाँ चुगला पैठे, गया पेड़ जहाँ बगुला बैठे : भोजपुरी कहावत। चुगलखोर की जिस राजपरिवार में पैठ (पहुँच) होती है वह नष्ट हो जाता है और गिद्ध व बगुले जिस पेड़ पर बैठते हैं वह पेड़ भी ठूँठ हो जाता है।

गई आबरू वापस न आवे : एक बार इज्जत चली जाए तो वापस नहीं आती।

गई को जाने दे राख रही को : जो चला गया उसे भूल जाओ जो तुम्हारे पास है उसे संभालो। इसी प्रकार की दूसरी कहावत है – बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुधि लेय।

गई जवानी फिर न बहुरे, चाहे लाख मलीदा खाओ : मलीदा कहते हैं खूब घी से बनने वाले एक पकवान को। मनुष्य चाहे कितना प्रयास कर ले, बीता हुआ यौवन वापस नहीं आ सकता।

गई नार जो घर घर डोले, गया घर जहं उल्लू बोले, गया राज जहाँ माने गोले, गया वनिक जो कम कर तोले : पराए घरों में डोलने वाली स्त्री का सम्मान नहीं होता, जिस घर में उल्लू बोले उस का सर्वनाश हो जाता है, जिस राजा के यहाँ गोलों (दासों) की चलती हो वह भी नष्ट हो जाता है, जो बनिया कम तोलता है उस की साख भी समाप्त हो जाती है। गया – नष्ट हो गया।

गई परोथन लेने, कुत्ता आटा ले गया : किसी आवश्यक कार्य के बीच अनपेक्षित नुकसान हो जाना।

गई बला को कौन पुकारे : जो आफत अपने आप टल गई हो उसे वापस बुलाना मूर्खता ही कहलाएगी।

गई बात फिर हाथ न आवे : जो बात बिगड़ जाए वह दोबारा नहीं बनती।

गई भैंस पानी में : भैंस को यदि कहीं पानी भरा तालाब दिख जाए तो वह आपके रोकने के बावज़ूद उस में उतर जाती है। आपके कोशिश करने के बाद भी कोई बना बनाया काम बिगड़ जाए तो मज़ाक में यह बोलते हैं।

गई माँगने पूत, खो आई भतार : पुत्र मांगने गई थी, पति को खो आई। किसी लाभ की कोशिश में उससे भी बड़ा नुकसान उठाना।

गई साख फिर हाथ न आवे : जो साख चली जाए वो दोबारा नहीं आती।

गई सोभा दरबार की सब बीरबल के संग : बीरबल से ही अकबर के दरबार की शोभा थी। बीरबल की मृत्यु के बाद अकबर के दरबार में वह बात नहीं रही।

गऊ संतन के कारने, हरि बरसावें मेंह : अच्छे लोगों के हित के लिए प्रभु जो भी कृपाएं प्रदान करते हैं उनसे अच्छे बुरे सब का भला हो जाता है.

गए कटक, रहे अटक : बिना बात के किसी काम में फंस जाना।

गए को सबने सराहा है : व्यक्ति के मरने के बाद सब उसकी सराहना करते हैं।

गए गंगा जी और लाए बालू : किसी महत्वपूर्ण स्थान पर जा कर कोई क्षुद्र चीज ले आना।

गए थे रोजा छुड़ाने, उल्टे नमाज गले पड़ी (गए थे नमाज छुडाने, रोजे गले पड़े) : एक छोटी मुसीबत से पीछा छुड़ाने की कोशिश कर रहे थे, उससे बड़ी मुसीबत गले पड़ गई।

गए बिचारे रोजे, और रहे दस बीस : कोई कठिन कार्य करना पड़ रहा हो तो मन में यह भाव रखना चाहिए कि काम बहुत कठिन नहीं है और अब थोड़ा ही तो बचा है, निबट जाएगा।

गए शेर को कंकड़ मारे : शेर चला गया तो उस के पीछे कंकड़ फेंक रहे हैं। बनावटी बहादुर।

गगरी दाना, सूत उताना : सूत – शूद्र। गगरी में अनाज होने पर तुच्छ व्यक्ति इतराने लगता है।

गज भर के गाजी मियाँ, नौ गज की पूंछ : बहुत अधिक तामझाम और दिखावा।

गज, गेंडा, कायर पुरुष, एकहि बार गिरन्त, छत्रिय सूर सपूत नर, गिर गिर उठत अनंत : (बुन्देलखंडी कहावत) हाथी, गेंडा और कायर पुरुष एक बार गिर कर फिर उठ नहीं पाते। क्षत्रिय, शूर वीर और सुपुत्र गिर कर भी बार बार उठते हैं।

गठरी बाँधी धूल की रही पवन से फूल, गाँठ जतन की खुल गई रही धूल की धूल : मानव जीवन की क्षणभंगुरता के विषय में सुन्दर कथन। मनुष्य का शरीर हवा से फूली हुई धूल की गठरी की तरह है। गाँठ खुलते ही केवल धूल ही बचती है।

गठरी संभाल, मधुरी चाल, आज न पहुंचब, पहुंचब काल : भोजपुरी कहावत। सामान संभाल कर रखो और आराम से चलो, भले ही थोड़ा देर से पहुँच जाओ।

गडर प्रावाही लोक (संसार भेड़चाल है) : जैसे भेड़ें बिना सोचे समझे एक के पीछे एक चलती हैं वैसे ही संसार के लोग एक दूसरे की नकल करते हैं।  

गढ़ की शान कंगूरे बताते हैं : कौन सा गढ़ कितना शानदार है यह उसके कंगूरे देख कर ही मालूम हो जाता है।

गढ़िया लोहार का गाँव क्या : महाराणा प्रताप के लिए हथियार बनाने वाले लुहार जाति के लोगों ने यह शपथ ली थी कि जब तक राणा को मेवाड़ का राज्य नहीं मिल जाता तब तक वे बस्तियों में नहीं बसेंगे। उन के वंशज (जोकि गढ़िया लोहार कहलाते हैं) अभी तक घुमंतू जीवन व्यतीत कर रहे हैं।

गढ़े कुम्हार भरे संसार : कुम्हार घड़ा बनाते हैं, सब लोग उससे पानी भरते हैं। एक आदमी की कृति से अनेक लोग लाभ उठाते हैं.

गढ़े सुनार, पहने संसार : सुनार सुंदर गहने बनाता है जिन्हें सारा संसार पहनता है। कार्य ऐसा ही करना चाहिए जिससे खुद की जीविका भी चले और संसार लाभान्वित भी हो।

गढ़ों और मठों के बंटवारे नहीं होते : जिस प्रकार वारिसों के बीच संपत्ति का बंटवारा होता है उस प्रकार से राज्य और मठ का बंटवारा न कर के किसी एक ही व्यक्ति को उत्तराधिकारी बनाया जाता है। बंटवारे से राजसत्ता और धर्मसत्ता कमजोर होती है।

गणेश के ब्याह में सौ विघ्न : जो व्यक्ति हमेशा दूसरों की सहायता करता हो, उसका खुद का कोई काम न हो रहा हो तो मजाक में यह कहावत कही जाती है।

गणेश को बुद्धि कौन दे : गणेश जी स्वयं बुद्धि के स्रोत कहलाते हैं, उन्हें बुद्धि कौन दे सकता है। बहुत विद्वान या समझदार व्यक्ति को कौन समझा सकता है।

गणेशजी का चौक पूजा, मेंढक जी आन विराजे : किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति के लिए कोई प्रबंध किया जाए और ओछा व्यक्ति उसका लाभ उठाए तो। जो व्यक्ति अपने को बहुत होशियार समझता हो उस का मजाक उड़ाने के लिए भी ऐसे बोला जाता है।

गदहा गावे, ऊंट सराहे : गदहा गा रहा है और ऊँट सराहना कर रहा है। जब एक मूर्ख व्यक्ति दूसरे मूर्ख की तारीफ़ करे तो। संस्कृत में इस प्रकार कहा गया है – उष्ट्रानां विवाहेषु गीत: गायन्ति गर्दभ:, परस्परं प्रशंशंति अहो रूप: अहो ध्वनि।

गदहा पीटे धूल उड़े : मूर्ख व ढीढ आदमी को दंड देने से कोई लाभ नहीं होता।

गदहा मरे कुम्हार का, और धोबन सती होए : किसी और के दुःख पर अनावश्यक शोक मनाना।

गधा अगर सोने से लदा, तो भी रहे गधे का गधा : कोई बहुत पैसे वाला व्यक्ति हो पर उसे बातचीत का सलीका न हो या व्यवहारिक ज्ञान न हो तो यह कहावत कही जाती है। इंग्लिश में कहावत है – An ass remains an ass, even if laden with gold.

गधा की पीठ गधा ही खुजावे : मूर्ख ही मूर्ख के काम आता है।

गधा क्या जाने कस्तूरी की गंध : मूर्ख व्यक्ति बहुमूल्य वस्तुओं का मूल्य नहीं समझ सकता।

गधा क्यों नहाए गंगा, घूरा ही चंगा : गधा गंगा में क्यों नहाएगा (उसे गंगाजी का महत्व क्या मालूम), वह तो घूरे में लोटने में ही खुश है। मूर्ख व्यक्ति को सत्पुरुषों की संगति अच्छी नहीं लगती।

गधा खेत खाय, कुम्हार मारा जाय : कोई मातहत गलती करे और मालिक उसका दंड भुगते तो।

गधा गंगाजल का माहात्म्य क्या जाने : मूर्ख व्यक्ति किसी अनमोल चीज़ का महत्व नहीं समझ सकता।

गधा गया दुम की तलाश में, कटा आया कान : चौबे जी छब्बे बनने गए, दुबे बन कर लौटे।

गधा गिरा पहाड़ से और मुर्गी के टूटे कान : किसी बिलकुल अनजान व्यक्ति की परेशानी से यदि कोई अत्यधिक दुखी हो रहा हो तो।

गधा घूरा देख कर ही रेंके : मूर्ख व्यक्ति निकृष्ट वातावरण में ही प्रसन्न होता है।

गधा घोड़ा एक भाव : जहाँ योग्य व्यक्ति की पूछ न हो।

गधा चरे खेत, न पाप न पुन्य, गाय चरे तो पुन्य तो होता : यदि किसी के खेत में गधा चर रहा हो तो वह उसे क्यों चरने दे। अगर गाय चर रही हो तो कम से कम पुन्य तो मिलेगा। कोई ऐसा आदमी आपकी पूँजी खा रहा हो जिससे आपको कोई फायदा न हो तो यह कहावत कही जाती है।

गधा धोने से बछड़ा नहीं हो जाता : कितना भी प्रयास करो मूर्ख आदमी अक्लमंद नहीं बन सकता।

गधा पानी पिए घंघोल के : गधा तो गधा ही है। गड्ढे में भरे पानी में गन्दगी बैठ जाती है और ऊपर साफ़ पानी होता है। बाकी जानवर ऊपर का साफ़ पानी पीते हैं, पर गधा पानी को जोर से हिला कर पीता है जिससे गन्दगी पानी में घुल जाती है। मूर्ख व्यक्तियों के मूर्खतापूर्ण कार्य के लिए कहावत।

गधा पीटे घोड़ा नहीं होता : कितना भी प्रयास करो मूर्ख व्यक्ति बुद्धिमान नहीं बन सकता।

गधे का जीना थोड़े दिन भला : गधे जैसी जिंदगी हो तो थोड़े दिन ही जीना बेहतर है।

गधे का पूत गधा : मूर्ख लोगों की संतान भी मूर्ख होती हैं।

गधे का मूंह कुत्ता चाटे तो क्या बिगड़े : दो मूर्ख या निकृष्ट लोग एक दूसरे से प्रेम करें या एक दूसरे को नुकसान पहुँचाएं, तो हमें क्या।  

गधे की खातिर सर मुंडवाया : किसी मूर्ख व्यक्ति के प्रति अत्यधिक प्रेम प्रदर्शित करना.

गधे की पूँछ पकड़ाई : किसी को ऐसे फालतू के काम पर लगा देना, जिससे लाभ कुछ न हो बल्कि हानि की संभावना हो।

गधे की बगल में गाय बाँधी तो वह भी रेंकने लगी : संगत का असर (कुसंगति कथय किम् न करोति पुंसाम)।

गधे की रेंक और ओछे की प्रीत घटती जाती है : दो बिल्कुल अलग दृष्टान्तों को जोड़ कर हास्यपूर्ण ढंग से कोई बात कहना कहावतों की विशेषता होती है। जैसे गधे की रेंक पहले तेज और बाद में धीमी हो जाती है वैसे ही ओछे व्यक्ति की प्रीत शुरू में अधिक और बाद में कम हो जाती है।

गधे के ऊपर वेद लदे, गधा न वेदी होय : गधे के ऊपर पुस्तकें लादने से वह ज्ञानी नहीं हो जाता।

गधे को गधा ही खुजाता है : मूर्ख व्यक्ति की जरूरतों को मूर्ख ही पूरा कर सकता है।

गधे को गुलकंद (गधे को जाफरान, गधे को हलुआ पूड़ी, गधे को अंगूरी बाग़) : अयोग्य व्यक्ति को ऐसी वस्तु मिल जाना जिसके वह बिलकुल योग्य न हो।

गधे को दिया नोन, गधा कहे मेरे दीदे फोड़े : गधे को किसी ने नमक खाने को दिया। गधा तो गधा ही ठहरा। उसने नमक का हाथ आँख में लगा लिया। आँख में तकलीफ हुई तो नमक देने वाले को कोसने लगा कि तुमने मेरी आँख फोड़ दी। किसी के भले के लिए कोई काम करो और वह उल्टा आपको कोसे तो यह कहावत कहते हैं।

गधे गुड़ हगने लगें तो गन्ने कौन पेरे : (बुन्देलखंडी कहावत) आसानी से कोई चीज़ मिल जाए तो कोई मेहनत क्यों करेगा इस बात को मजेदार ढंग से कहा गया है।

गधे घोड़े एक भाव : जहाँ प्रतिभाशाली व्यक्ति की कोई कद्र न हो।

गधे पर जीन कसने से घोड़ा नहीं होता : मूर्ख व्यक्ति को अच्छे कपड़े पहना दो तो वह योग्य नहीं हो जाता.

गधे पर हाथी की झूल : बेमेल काम।

गधे में ज्ञान नहीं, मूसल की म्यान नहीं (मूरख के ज्ञान नहीं, दरांती के म्यान नहीं) : गधे (मूर्ख व्यक्ति) में ज्ञान नहीं होता और मूसल या दरांती की म्यान नहीं होती।

गधे से गिरा और गाँव से रूठा : बिना बात रूठने वालों पर व्यंग्य।

गधे से हल चले तो बैल कौन बिसाय : बैल को पालना गधे के मुकाबले बहुत महंगा है। अगर गधा हल चला लेता तो बैल कौन पालता। अगर सस्ती चीज़ से काम चले तो कोई महंगी चीज़ क्यों लेगा।

गधे ही मुल्क जीत लें तो घोड़ों को कौन पूछे : गधे की कीमत भी घोड़े से बहुत कम होती है और रख रखाव भी बहुत सस्ता होता है, लेकिन युद्ध लड़ने के लिए घोड़े ही चाहिए जोकि बहुत महंगे होते हैं। अगर सस्ती चीज़ से पूरा काम निकल जाए तो महंगी चीज़ को कौन पूछेगा। (जो टट्टू जीते संग्राम, को खर्चे तुर्की को दाम)।

गधों की यारी में लातों की तैयारी : गधे से दोस्ती करोगे तो दुलत्ती खानी पड़ेगी। मूर्ख व्यक्ति से दोस्ती करना खतरे से खाली नहीं है।

गधों के गले में गजरा : अयोग्य व्यक्ति को बहुमूल्य परन्तु बेमेल चीज़ मिल जाना।

गन्दी बोटी का गन्दा शोरबा। 1 : घटिया कच्चा माल तो घटिया उत्पाद। 2. नीच मां बाप की नीच संतान।

गन्ना बहुत मीठा होता है तो उसमें कीड़े पड़ जाते हैं : ज्यादा सज्जनता मुसीबत बन जाती है।

गन्ने से गंडेरी मीठी, गुड़ से मीठा राला, भाई से भतीजा प्यारा, सब से प्यारा साला : रिश्तों की मिठास को प्रकट करने वाली कहावत।

गम न हो तो बकरी पाल लो : बकरी पालने में बहुत परेशानियाँ उठानी पडती हैं।

गया बदरी, काया सुधरी : बद्रीनाथ की यात्रा करने से स्वास्थ्य लाभ होता है।

गया मर्द जिन खाई खटाई, गई रांड जिन खाई मिठाई : पहले के लोग समझते थे कि खटाई खाने से पौरुष शक्ति कम हो जाती है और विधवाओं से यह अपेक्षा की जाती थी कि किसी प्रकार का सुख न भोगें।

गया माघ दिन उनतीस बाकी : माघ का एक दिन बीतने के बाद कह रहे हैं कि माघ खत्म हो गया, बस उन्तीस दिन बाकी हैं। अति उत्साह की मूर्खतापूर्ण पराकाष्ठा।

गया वक्त फिर हाथ नहीं आता : बीता हुआ समय और खोया हुआ अवसर पुन: हाथ नहीं आते।

गरज का क्या मोल (गरज दीवानी होय) : किसी वस्तु की बहुत अधिक आवश्यकता होने पर उसकी मुंह मांगी कीमत देनी पड़ती है।

गरज का बावला अपनी गावे : जरूरतमंद आदमी अपनी ही कहता है।

गरज मिटी गूजरी नटी : दूध का काम करने वाले लोग अधिकतर गुर्जर जाति के होते थे। उनकी पत्नी गूजरी कहलाती थी। जब तक गूजरी को आप से कोई काम है वह रोज खीर खिलाती है। जैसे ही उस का काम निकल गया वह छाछ देने को भी मना कर देती है। (गरज दीवानी गूजरी, नित्य जिमावे खीर, गरज मिटी गूजरी नटी, छाछ नहीं रे बीर)।

गरज रहे तो चाकर, गरज मिटी तो ठाकुर (गर्ज पड़े मन और है, गर्ज मिटे मन और) : जब तक अपना स्वार्थ था तब तक जी हुजूरी करते रहे। स्वार्थ पूरा हो जाने के बाद ऐंठ दिखाने लगे।

गरब का बिरछा, कबहुं नहीं हरियाए : (बुन्देलखंडी कहावत) गरब – गर्व, घमंड, बिरछा – वृक्ष। घमंड का पेड़ कभी फलता फूलता नहीं है, अर्थात घमंड बहुत दिन नहीं टिकता।

गरीब का बेली राम। निर्धन का सहायक ईश्वर है।

गरीब की आहें मोटी होती हैं, बाहें नहीं : गरीब अपने सताने वाले को पीट नहीं सकता, केवल बद्दुआ दे सकता है। लेकिन उस में भी असर होता है।

गरीब की कौड़ी टेंट में : गरीब अपनी छोटी सी पूँजी को भी संभाल कर रखता है। टेंट – अंटी।

गरीब की खाय, जड़ मूल सों जाए : गरीब के हक को मारने वाला समूल नष्ट हो जाता है।

गरीब की जवानी, बहता पानी : गरीब की जवानी व्यर्थ ही चली जाती है।

गरीब की जोरू सब की भौजाई : गरीब पर सब जोर जमाते हैं।

गरीब की बछिया को रंभाना मना : गरीब को अपनी व्यथा कहने का भी अधिकार नहीं है।

गरीब की सच्ची गवाही भी झूठी : गरीब की बात पर कोई विश्वास नहीं करता।

गरीब की हाय, सरबस खाय : गरीब को नहीं सताना चाहिए, उस की हाय व्यक्ति को बर्बाद कर देती है। (कबीरदास ने कहा है – दुर्बल को न सताइए, जाकी मोटी हाय)।

गरीब के लिए तो बाल-बच्चे ही धन है : अर्थ स्पष्ट है।

गरीब को मत सता गरीब रो देगा, गरीब की हाय पड़ी तो जड़ मूल खो देगा : अर्थ स्पष्ट है।

गरीब को मिट्टी भी भारी : गरीब को अपने सगों का अंतिम संस्कार करना भी बहुत भारी पड़ता है।

गरीब को मुहूर्त कैसा, जब चाहे चल पड़े : गरीब शगुन असगुन का विचार नहीं कर सकता। जब काम होगा उसे जाना ही पड़ेगा।

गरीब को सरग में भी बेगार : एक गरीब आदमी रोज की बेगार से तंग आ कर मरने की सोच रहा था, तो जमींदार ने कहा कि तुझे स्वर्ग में भी बेगारी में काम करना पड़ेगा, इससे अच्छा तू यहीं रह। (चमार को अर्श पे भी बेगार)।

गरीब ने रोजे रखे तो दिन ही बड़े हो गए : गरीब कोई अच्छा काम करना चाहता है तो उसमें भी बहुत सी अड़चनें आती हैं।

गरीबी गुनाहों की जननी है : गरीब व्यक्ति मज़बूरी में अपराध करता है।

गरीबी तेरे तीन नाम लुच्चा, गुंडा, बेईमान; अमीरी तेरे तीन नाम परसा परसी परसराम : गरीब को सब लुच्चा, लफंगा और बेईमान कहते हैं जबकि वही अगर अमीर हो जाए तो उस से इज्ज़त से बात करने लगते हैं। गरीब को परसा कहते थे, उस पे थोड़ा पैसा आया तो परसी भाई कहने लगे और वह सम्पन्न हो गया तो परशुराम जी कहने लगे।

गरीबी से बढ़ कर कोई भाईचारा नहीं : गरीब लोग मुसीबत में एक दूसरे का साथ निभाते हैं, जबकि अमीर लोग आड़े समय में मुँह मोड़ लेते हैं।

गर्जमंद की अकल जाए, दर्दमंद की शकल जाए : जब व्यक्ति बहुत गर्जमंद होता है तो उस की अक्ल काम नहीं करती और जिस व्यक्ति को बहुत बड़ा शारीरिक कष्ट हो रहा हो उसकी सुन्दरता नष्ट हो जाती है.

गलमिल गलकट सुरसुर हाय हाय : मुसलमानों के चार मुख्य त्यौहारों पर कही गई कहावत। गलमिल – गले मिलने वाली मीठी ईद, गलकट- बकरा काटने वाली बकरीद, सुरसुर – पटाखे छोड़ने वाली शबेरात, हाय हाय – शोक मनाने वाली मुहर्रम।

गलियारे में टट्टी बैठे और उल्टे आँख दिखाए : गलियारे में शौच कर रहा है और मना करने पर अकड़ रहा है। चोरी और सीनाजोरी।

गले पड़ी, बजाए सिद्ध : कोई आदमी मजबूरी में कोई काम करे और लोग उसे महान समझ लें तो यह कहावत कही जाती है।

गले पड़े का सौदा : कोई जिम्मेदारी जबरदस्ती गले पड़ जाए तो।

गले में ढोल पड़ा, रो के बजाओ चाहे गा के (गले में ढोल पड़ा है बजाना ही पडेगा) : जो जिम्मेदारी आप के ऊपर पड़ी है उसे निभाना तो पड़ेगा ही, हँस के निभाओ या रो कर यह आप के ऊपर है।

गले में सिगड़ी बंधी है : जो लोग हर समय गुस्से में रहते हैं उन का मजाक उड़ाने के लिए।

गहना चांदी का, नखरा बांदी का : गहना चांदी का अच्छा लगता है और दासी के नखरे अच्छे लगते हैं.

गहनों वस्त्र उधार को, कभी न धरिए अंग : उधार के वस्त्र और गहने कभी नहीं पहनने चाहिए।

गहरा बोने वाला और रिश्वत देने वाला, घाटे में नहीं रहते : बीज को गहरा बोने में मेहनत अधिक लगती है लेकिन उपज अच्छी होती है इसलिए सब वसूल हो जाता है। रिश्वत देने में पैसा खर्च होता है लेकिन व्यक्ति उस से अधिक लाभ कमा लेता है।

गहिर न जोते बोवे धान, सो घर कुठला भरे किसान : धान की बुआई के लिए खेत को गहरा नहीं जोतना होता है। (घाघ)

गँवार गन्ना न दे, भेली दे (गुड़ न दे भेली दे) : मूर्ख व्यक्ति छोटी सी चीज़ देने में आनाकानी करता है जबकि बड़ी चीज़ दे देता है। भेली – गुड़ की भेली।

गंगा आवनहार, भगीरथ को जस, (गंगा आनहार भागीरथ के सिर पड़ी) : गंगा को आना ही था, भगीरथ को यश प्राप्त हुआ। जैसे भारत को बहुत से कारणों से आज़ादी मिली नेहरू जी ने श्रेय ले लिया।

गंगा की राह किसने खोदी है : वेगवती नदी जब पहाड़ से उतरती है तो अपनी राह खुद बनाती है। उसके लिए कोई खोद के मार्ग नहीं बनाता। महान लोग जब किसी कार्य के लिए निकलते हैं तो अपना रास्ता खुद बनाते हैं।

गंगा की राह में पीर के गीत : गंगा नहाने जाएंगे तो गंगा के गीत गाए जाएंगे, पीर बाबा के नहीं।

गंगा के मेले में चक्की खोदने वाले को कौन पूछे : चक्की के पाटों में छोटे छोटे गड्ढे बना कर उन को खुरदुरा बनाया जाता है तभी पिसाई होती है। कुछ दिन चलाने के बाद पाट फिर चिकने होने लगते हैं तो उन्हें फिर खोदना पड़ता है। गंगा के मेले में लोग चक्की ले कर जाते ही नहीं हैं इसलिए वहां चक्की खोदने वाले का क्या काम। जिस माल की जहाँ खपत हो वहीं उस का व्यापार करना चाहिए।

गंगा गए तो गंगादास, जमुना गए तो जमुनादास : जैसी परिस्थिति देखी वैसे ही बन गए। इंग्लिश में कहावत है – When in Rome, do as Romans do।

गंगा जाते कोढ़ उभरा : पहले के लोग मानते थे कि गंगा में नहाने से कोढ़ ठीक हो जाता है। अगर गंगा जाते समय कोढ़ उभरा है तो चिंता की कोई बात ही नहीं है, हाथ की हाथ निवारण हो जाएगा।

गंगा जी के घाट पर बामन वचन प्रमान, गंगा जी को रेत को तू चंदन कर के मान : जाट गंगा नहाने गया तो एक पंडे ने उसे घेर लिया। हाथ में गंगाजल ले कर कुछ उलटे सीधे मन्त्र पढ़े, जाट को गंगा जी की रेत से तिलक लगाया और बोला बामन का वचन है, तू इस रेत को चंदन मान और जल्दी से इस बामन को गऊ दान कर दे। जाट उस से ज्यादा चतुर था। उस ने एक मेंढकी पकड़ी और पंडे से कहा, गंगा जी कै घाट पर जाट वचन परमान, गंगा जी की मेंढकी तू गऊ कर के जान (जाट के वचन को प्रमाण मानो और गंगा जी की मेंढकी को गऊ मान कर ग्रहण करो)।

गंगा जी को नहायबो, बामन को व्योहार, डूब जाय तो पार है, पार जाए तो पार : गंगा में नहाने वाला डूब जाए तो यह मान कर संतोष कर लिया जाता है कि वह भवसागर से पार हो गया और तैर कर पार हो जाए तब तो पार है ही। इसी प्रकार ब्राह्मण को दिया गया ऋण वापस मिल जाए तो अच्छा है और न मिले तो दान पुण्य मान कर संतोष कर लेना चाहिए।

गंगा नहाए मुक्ति होय तो मेंढक मच्छियाँ, मूढ़ मुड़ाए सिद्धि होए तो भेड़ कपछियाँ : गंगा नहाने से मुक्ति होती तो मेढक मछलियाँ सबसे पहले मुक्त हो जाते, सर मुड़ाने से सिद्धि मिलती तो भेड़ें सबसे पहले सिद्ध हो जातीं क्योंकि वो तो हर साल मुंडती हैं।

गंगा नहाने से गधा घोड़ा नहीं बनता : गंगा नहाने से मूर्ख व्यक्ति योग्य नहीं हो जाता।

गंगा बही जाय, कलारिन छाती पीटे : कलारिन – शराब बनाने वाली। कलारिन को इस बात की चिंता हो रही है कि सारा पानी बह गया तो शराब कैसे बनाएगी।

गंगोत्री ही गन्दी हो तो गंगा में बदबू होगी ही : अर्थ स्पष्ट है। उदाहरण के तौर पर – जिस पकिस्तान का जन्म ही घृणा, उन्माद और हिंसा पर हुआ हो वहां आतंकवाद तो पनपेगा ही।

गंजा और कंकड़ों में कुलांचे खाए : गंजा कंकडों में कुलांचे खाएगा तो उसका सर लहूलुहान हो जाएगा। कोई व्यक्ति अपनी मूर्खता से अपने को नुकसान पहुँचा रहा हो तो.

गंजा मरा खुजाते खुजाते : कोई व्यक्ति कुछ दुर्भाग्य से और कुछ अपने कर्मों के कारण दुर्दशा को प्राप्त हुआ हो तो।

गंजी कबूतरी और महल में डेरा : अयोग्य व्यक्ति को उच्च स्थान प्राप्त होना।

गंजी को सर मुंडाने की क्यों पड़ी : अनावश्यक काम करने वाले पर व्यंग्य।

गंजी क्या मांग निकाले : जिसके बाल ही नहीं है वह मांग कैसे निकालेगी। कोई साधनहीन व्यक्ति सामर्थ्यवान की बराबरी करे तो।

गंजी देवी, ऊत पुजारी : जैसे देवता वैसे ही मानने वाले।

गंजी पनिहारी और गोखुरू का हंडुवा : पनिहारी अर्थात पानी भरने वाली। पहले गाँव की स्त्रियाँ कुँए या तालाब से मटके में पानी भर कर सर पर रख कर लाती थीं। सर पर मटके को बैलेंस करने के लिए कपड़े का गोल रिंग बना कर रखा जाता है जिसे हंडुवा या कुंडरी कहते हैं। कहावत का अर्थ है कि एक तो पानी भरने वाली गंजी है ऊपर से गोखुरू (एक प्रकार की कंटीली घास) का हंडुवा बना कर रखा गया है जिससे उसे और कष्ट हो रहा है। अपनी मूर्खता से कष्ट उठाना।

गंजे आदमी को नाई की क्या परवाह : जिस व्यक्ति से हमें कभी काम नहीं पड़ने वाला उसकी परवाह क्यों करें।

गंजे के भाग से ओले पड़ें : जब किसी गंजे के भाग्य में कष्ट उठाना लिखा होता है तब ओले पड़ते हैं।

गंजे को कौओं का डर : गंजे सर पर कौवा चोंच न मार दे इसलिए।

गंजे पर नाई का क्या एहसान : गंजे को नाई की जरूरत ही नहीं है, फिर वह उसका एहसान क्यों माने।

गंजे सर पानी पड़ा, ढल गया : वैसे बात तो गलत है पर यहाँ गंजे सर का अर्थ बेशर्म आदमी से है।

गंदला है तो भी गंगाजल : गंगाजल यदि थोड़ा गंदला भी हो जाए तो भी उसकी महिमा कम नहीं होती। उच्च चरित्र वाले किसी व्यक्ति पर थोड़े बहुत आक्षेप लग जाएँ तो भी उसका आदर कम नहीं होता।

गंधी बेटा टोटा खाए, डेढ़ा दूना कहीं न जाए : इत्र के व्यापार में कई गुना मुनाफा है। जब इत्र का व्यापारी यह कहता है कि उसे घाटा हुआ है तो इसका मतलब  यह होता है कि उसे केवल डेढ़ दो गुना ही मुनाफा हुआ है।

गंवार अधेला न दे अधेली दे : अधेला माने आधा पैसा और अधेली माने अठन्नी। नासमझ व्यक्ति छोटी सी चीज़ देने में आनाकानी करता है पर लोग उस को बेवकूफ बना कर उस से बड़ी चीज़ ठग लेते हैं।

गंवार की अकल गुद्दी में : पुराने जमाने में गंवार शब्द को मूर्ख के लिए प्रयोग करते थे। मूर्ख व्यक्ति की बुद्धि दिमाग में न हो कर उसकी गर्दन में होती है।

गंवार की गाली, हंसी में टाली : मूर्ख व्यक्ति गाली दे तो हंसी में टाल देना चाहिए, दिल पे नहीं लेना चाहिए।

गंवार को पैसा दीजे पर अकल न दीजे : गंवार शब्द का प्रयोग बहुत स्थानों पर मूर्ख के लिए होता है। इस बात का ग्रामीण लोगों को बुरा नहीं मानना चाहिए। कहावत का अर्थ है कि मूर्ख व्यक्ति को अक्ल का उपदेश देना बेकार है।

गंवार खा के मरे या उठा के मरे : मूर्ख व्यक्ति या तो अधिक खाने से मरता है या क्षमता से अधिक बोझ उठाने से।

गाए गीत का गाना क्या, पके धान का पकाना क्या : किसी काम को बार बार करने में आनंद नहीं आता।

गागर में सागर : बहुत कम शब्दों में बहुत बड़ी बात कह देना।

गाजर की पूंगी, बजी तो बजी, नहीं तो तोड़ खाई : हर तरह से उपयोगी वस्तु।

गाजे न बाजे, दूल्हे राजा आय बिराजे : कोई बड़ा आदमी बिना किसी पूर्व सूचना और तैयारी के अचानक आ जाए तो।

गाडर (भेंड़) पाली ऊन को बैठी चरे कपास : भेड़ इसलिए पाली कि ऊन मिलेगी पर वह तो सारी कपास चर गई।

गाडर पाली ऊन को, बैठी चरे कपास, बहू लाया काम को, बैठी करे फरमास : उपरोक्त कहावत में यह बात जोड़ दी गई है कि बहू लाए थे यह सोच कर कि कुछ काम धाम करेगी, पर वह बैठ कर फरमाइशें कर रही है।

गाड़ी का पहिया और मर्द की जुबान फिरती ही अच्छी : जो मर्द अपनी बात पर कायम न रहें उन के लिए व्यंग्य।

गाड़ी का सुख गाड़ी भर, गाड़ी का दुख गाड़ी भर : गाड़ी जब तक चलती है तब तक बहुत सुख देती है, जब बिगड़ती है तो दुख भी बहुत देती है। यही बात गृहस्थी पर भी लागू होती है।

गाड़ी कुत्ते के बल नहीं चलती : एक कुत्ता बैलगाड़ी के नीचे चल रहा था। उसे यह गलतफहमी हो गई कि गाड़ी को वही चला रहा है। चलते चलते उसे गुस्सा आया कि वह गाड़ी क्यों चलाए। वह रुक गया। लेकिन गाड़ी ऊपर से निकल गई। कोई व्यक्ति बिना किसी उपयोगिता के अपने आप को बहुत महत्वपूर्ण सिद्ध करने की कोशिश कर रहा हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए।

गाड़ी के पाड़ी बंधी हुई है : किसी व्यक्ति ने अपने पड़ोसी से कुछ देर के लिए बैलगाड़ी उधार मांगी। देने वाले का मन नहीं था तो उस ने बहाना बनाया कि गाड़ी में पड़िया बंधी हुई है इसलिए नहीं दे सकते।

गाड़ी तो चलती भली, ना तो जान कबाड़ : गाड़ी जब तक चलती रहे तभी तक उपयोगी है, अन्यथा कबाड़ के समान है। यही बात मनुष्य पर भी लागू होती है।

गाड़ी देख लाड़ी के पावँ भारी : लाड़ली बेटी अच्छी खासी पैदल चल रही थी। तब तक रिक्शा दिख गया। उसको देख कर कहने लगी माँ मेरे पैरों में दर्द हो रहा है। कोई सुविधा उपलब्ध हो तो हर कोई उसे भोगना चाहता है।

गाड़ी पे सूप का क्या भार (चलती गाड़ी में चलनी का क्या भार) (गाड़ी भर नाज में टोकरी का क्या बोझ) : जो व्यक्ति बहुत सी जिम्मेदारियाँ उठा रहा हो उस को छोटे मोटे काम से क्या परेशानी।

गाड़ी भर अनाज की मुट्ठी बानगी : गाड़ी में लदा हुआ अनाज कैसा है यह एक मुट्ठी देख कर ही जाना जा सकता है। किसी समाज के विषय में जानकारी उस के एकाध व्यक्ति को देख कर ही हो सकती है।। 

गाड़ी भर बोया, पल्लू भर पाया : बहुत अधिक परिश्रम का बहुत थोड़ा प्रतिफल।

गाड़ीवान की नार सदा दुखिया : गाड़ी चलाने वाले को अधिकतर घर से बाहर रहना पड़ता है इसलिए उस की पत्नी दुखी रहती है। ट्रकों पर भी अक्सर लिखा होता है – कीचड़ में पैर दोगी तो धोना पड़ेगा, ड्राइवर से शादी करोगी तो रोना पड़ेगा।

गाते गाते कीरतनिया हो जाते हैं : कीरतनिया – कीर्तन करने वाले। गाने का अभ्यास करते करते सभी अच्छे गायक बन जाते हैं।

गाना और रोना कौन नहीं जानता। ये मनुष्य के मूलभूत गुण हैं।

गाय का दूध सो माय का दूध : गाय का दूध मां के दूध के सामान गुणकारी है।

गाय का बछड़ा मर गया तो खलड़ा देख पनिहाय : खलड़ा – भूसा भरी हुई बछड़े की खाल (बछड़े का पुतला)। पनिहाना – थन में दूध उतरना। किसी के प्रियजन की मृत्यु हो जाने पर उस से मिलती जुलती शक्ल सूरत वाले को देख कर भी प्रेम उमड़ता है। पशुओं में भी माँ की ममता की यही पराकाष्ठा देखने को मिलती है।

गाय की भैंस क्या लगे : किसी व्यक्ति से हमारा कोई संबंध नहीं है यह बताने का हास्यपूर्ण तरीका।

गाय को अपने सींग भारी नहीं होते : अपने प्रिय सगे सम्बन्धी कभी बोझ नहीं लगते।

गाय गुण बछड़ा पिता गुण घोड़ा, बहुत नहीं तो थोड़ा थोड़ा : गाय के बछड़े में माँ के गुण होते हैं जबकि घोड़े के बछड़े में पिता के गुण होते हैं।

गाय जने, बैल की दुम फटे (गाय बियाए पीर बैल को), (बिल्ली बच्चा जने, बिलौटे को पीर आवे) : बच्चा जनना – बच्चा पैदा करना, पीर आना – दर्द होना। किसी दूसरे की परेशानी में अत्यधिक परेशान होने वाले पर व्यंग्य।

गाय तिरावे, भैंस डुवाबे : डूबता आदमी यदि गाय की पूँछ पकड़ ले तो गाय उसे पार करवा देती है, जबकि भैंस डुबो देती है।

गाय तैरी, भैंस तैरी, बकरी बिचारी डूब मरी : बड़ी आपदाओं को बड़े लोग तो झेल लेते हैं पर छोटे बेचारे मटियामेट हो जाते हैं।

गाय दुही और कुत्तों को पिलाया (गाय दुही और गधे को पिलाया) : परिश्रम से अर्जित किए हुए धन को बर्बाद कर देना। घर के लोगों से छीन कर अपात्रों को बांटना।

गाय दूब से सलूक करे तो क्या खाय : गाय दूब का लिहाज करेगी तो क्या खाएगी। दूकानदार अगर सब ग्राहकों से दोस्ती कर लेगा तो पैसा किस से कमाएगा। (घोड़ा घास से यारी करेगा तो क्या खाएगा)।

गाय न बच्छी, नींद आवे अच्छी : गाय पालना बहुत जिम्मेदारी का काम है। जिस व्यक्ति के पास ऐसी कोई जिम्मेदारी न हो वह चैन से सोता है।

गाय न हो तो बैल दुहो : कुछ न कुछ कर्म करो चाहे उससे कुछ हासिल न हो।

गाय बाँध के रखी जाए सांड नाहीं : 1. सारी बंदिशें स्त्रियों के लिए ही हैं, पुरुषों के लिए कुछ नहीं। 2. सीधे आदमी के लिए ही सब कानून हैं, दबंग के लिए नहीं।

गाय बैल मर गए, कुत्ते के गले घंटी : योग्य व्यक्तियों के न रहने पर अयोग्य लोगों की चांदी हो जाना।

गाय भी हाँ और भैंस भी हाँ : हर बात में हाँ में हाँ मिलाना।

गाय मार के जूता दान : बहुत बड़ा पाप कर्म कर के थोड़ा सा दान कर देना और पुण्यात्मा बनने का ढोंग करना।

गाय रतन निगल गई। अत्यधिक दुविधा की स्थिति : गाय को मार कर बहुमूल्य रत्न को निकाल भी नहीं सकते।

गायें तो मालिकों की हैं, ग्वाले का अपना तो फकत लट्‌ठ : गरीब और मजदूर का अपना कुछ नहीं होता।

गायों के भाग से बर्षा होवे : वर्षा होती है तो गायों को घास पत्ते आदि प्रचुर मात्रा में खाने को मिलते हैं। कहावत का अर्थ है कि गरीब और बेसहारा लोगों के लिए ही ईश्वर पानी बरसाते हैं मनुष्य के कर्म तो ऐसे हैं कि वर्षा हो ही न।

गायों को घास, कुतियों को मलीदा : अयोग्य व्यक्तियों को विशेष सुविधाएं।

गाल कट जाए पर चावल न उगले : बहुत कंजूस या बेशर्म आदमी के लिए।

गाल बजाए हू करैं गौरीकन्त निहाल : गाल बजाना – अपनी प्रशंसा स्वयं करना, गौरीकंत – भगवान शंकर। 1. ऐसे व्यक्तियों के लिए जो किसी की सहायता नहीं करते केवल बड़ी बड़ी बातें करते हैं और आश्वासन देते हैं। 2. इससे उलट इसका यह अर्थ भी हो सकता है कि जो व्यक्ति उदार होते हैं वे सहज में ही प्रसन्न हो जाते हैं.

गाल बजाने से कोई बड़ा नहीं हो जाता : गाल बजाना – अपनी बड़ाई करना। अपनी प्रशंसा स्वयं करने से कोई बड़ा नहीं हो जाता।

गाल वाला जीते, माल वाला हारे : जो बातें बनाने में तेज हो वह जीत जाता है और पैसे वाला उसके सामने हार जाता है।

गालियों से कोई गूमड़े पड़ते हैं : कोई आपको डंडा मार देगा तो सर पर गूमड़ा पड़ जाएगा, लेकिन गाली देगा तो कोई नुकसान थोड़े ही होगा, इसलिए कोई गाली दे तो मारपीट पर उतारू नहीं होना चाहिए।

गाली और तरकारी खाने के लिए ही बने हैं : कोई आप को गाली दे उसका बुरा नहीं मानना चाहिए।

गाली मत दे किसी को, गाली करे फसाद, गाली सूं लाखों हुए, लड़ भिड़ कर बरबाद : किसी को गाली देना शर्तिया लड़ाई का नुस्खा है।

गावे तो सीठना, लड़े तो गाली : सींठना – विवाह इत्यादि में गाई जाने वाली हंसी मजाक की गालियाँ। विशेष अवसर पर वही बात हंसी मजाक मानी जाती है जो लड़ाई के समय गाली मानी जाती है।

गाँठ का गवाऊँ न लोगों साथ जाऊँ : जो आदमी बिल्कुल जोखिम लेने को तैयार न हो।

गाँठ का जाए और जग हँसाई होय : जिस का नुकसान होता है उसी पर लोग हँसते हैं।

गाँठ का देय और बैरी होय : किसी को उधार दे कर आप उससे दुश्मनी पाल लेते हैं।

गाँठ का पैसा, साथ की जोरू, वक्त पर यही काम आते हैं : पैसा वही काम आता है जो अपने पास हो (उधार में बंटा हुआ न हो) और पत्नी वही काम आती है जो साथ रहती हो।

गाँठ का भरम क्यूँ गवाऊँ : बाजार में किसी की कितनी साख है यह इस बात पर निर्भर करता है कि उसके पास कितना नकद पैसा है। कुछ लोगों के पास पैसा न भी हो तब भी उनकी हवा बंधी रहती है। ऐसे किसी व्यक्ति का कथन।

गाँठ गिरह से मद पीवे, लोग कहें मतवाला : शराब ऐसी चीज़ है कि आदमी अपना पैसा खर्च कर के पीता है तो भी मतवाला समझा जाता है।

गाँठ में जमा रहे तो खातिर जमा : जिस व्यक्ति का धन उस के पास रहता है वह निश्चिंत रहता है.

गाँव करे सो पगली करे : जैसा सब गाँव के लोग करते हैं पगली उन की नकल करती है। बिना सोचे समझे किसी के नकल करने वाले पर व्यंग्य।

गाँव का छोरा छोरा, दूजे गाँव का दूल्हा : गाँव के लड़के की शादी होती है तो उसे दूल्हे वाली इज्जत नहीं मिलती, वह छोरा ही कहलाता है। दूसरे गाँव के लड़के को दूल्हे राजा और जमाई बाबू कह कर सत्कार किया जाता है।

गाँव की छवि चौक से और घर की छवि द्वार से : कोई गाँव कितना उन्नत और समृद्ध है यह उस के चौक को देख कर समझा जा सकता है, इसी प्रकार घर के द्वार को देख कर गृह स्वामी की हैसियत जानी जा सकती है।

गाँव के गडढे पोखर अंधा भी जाने : गाँव के लोग उन्हीं रास्तों पर चलते चलते इतने अभ्यस्त हो जाते हैं कि वे आँख बंद कर के भी चल सकते हैं।

गाँव जले, डोम त्यौहारी मांगे : किसी का कितना भी नुकसान हो रहा हो क्षुद्र लोगों को केवल अपने स्वार्थ से मतलब होता है।

गाँव जले, नंगे को क्या : यहाँ नंगे से तात्पर्य बेशर्म आदमी से भी हो सकता है और अत्यधिक गरीब से भी। गाँव के जलने का इन दोनों पर कोई फर्क नहीं पड़ता।

गाँव न माने पगले को और पगला न माने गाँव को : जो व्यक्ति स्वयं पागल या मूर्ख है वह और सब को पागल और मूर्ख समझता है।

गाँव बसा नहीं, बिलैंया लोटन लगीं : जब कोई नया गांव बसता है तो आसपास के जंगल से बिल्लियां आकर वहां डेरा डाल लेती हैं। इस कथन का शाब्दिक अर्थ है कि गांव के बसने से पहले ही बिल्लियां डेरा डाल रही हैं। कहावत का अर्थ है – कोई लाभप्रद काम होने से पहले ही फ़ालतू और मुफ्तखोरों का जमा हो जाना।

गाँव में धोबी का छैल : धोबी का बेटा गाँव में छैला बना घूमता है क्योंकि वह शहर के लोगों के कपड़े पहनता है (जो कपड़े लोग धोने के लिए देते हैं)।

गिदधों को कौन न्योता देता है : गिद्धों को कोई निमंत्रण नहीं भेजता, वे तो लाश देख कर अपने आप चले आते हैं। दुष्ट और अवसरवादी लोगों को कोई बुलाने नहीं जाता, वे अपने आप पहुँच जाते हैं।

गिद्ध की आँख पिड़की निकाले : पिड़की जैसा छोटा सा पक्षी भी गिद्ध की आँख निकाल सकता है। किसी को बहुत कमज़ोर समझने की भूल नहीं करना चाहिए।

गिद्ध को मौत से प्यार : लाशों पर पलने वाले गिद्ध यही चाहते हैं कि आदमी और जानवर मरते रहें। घटिया नेताओं और पत्रकारों पर व्यंग्य।

गिनी गाय में चोरी नहीं हो सकती : अपनी धन संपदा का ठीक से हिसाब रखा जाए तो उसमें चोरी नहीं हो सकती।

गिनी बोटी, नपा शोरबा : जहाँ हिसाब किताब बिल्कुल साफ़ हो।

गिने को गिनावे, टोटा हो जावे : गिना हुआ धन बार बार गिनने से उसमें घाटा हो जाता है।

गिने गिनाए नौ के नौ : एक गाँव के नौ बुनकरों ने अच्छे अच्छे वस्त्र बुने और अच्छे पैसे मिलने की आशा में उन्हें ले कर शहर की ओर चले। रास्ते में जंगल में बेरों की झाड़ियों में पके हुए बेर देख कर सब का मन चल आया। बेर खाने के लिए सब इधर उधर बिखर गए। छक कर बेर खाने के बाद सब इकट्ठे हुए तो चलने से पहले मुखिया ने सब की गिनती की, लेकिन उसने अपने को नहीं गिना। कई बार गिना पर हर बार आठ ही निकले। वहाँ रोना पीटना पड़ गया। एक घुड़सवार उधर से निकला तो उन से पूछा क्या माजरा है। उन की समस्या सुन कर वह मन ही मन हँसा और बोला, अगर मैं तुम्हारा खोया हुआ आदमी ढूँढ़ दूँ तो क्या दोगे। बुनकर बोले हम ये सारे बहुमूल्य वस्त्र तुम्हें दे देंगे। घुड़सवार ने उन्हें लाइन से खड़ा किया और हर आदमी को कोड़ा मारते हुए पूरे नौ गिन दिए। वे सारे मूर्ख ख़ुशी ख़ुशी सारे वस्त्र उसे दे कर जान बचने की ख़ुशी मनाते हुए अपने गाँव लौट गए।

गिने पूए संभाल खाए : धन संपत्ति को ठीक से गिन कर रखा जाए तो उस का प्रबन्धन आसान हो जाता है।

गिरगिट की दौड़ बिटौरे तक : बिटौरा – कंडों का ढेर। तुच्छ आदमी की सोच सीमित ही होती है।

गिरता पत्ता  यूं कहै, सुन तरुवर बनराय, अबका बिछड़ा कब मिलूं, दूर पड़ूँगा जाय : गिरता हुआ पत्ता कहता है कि हे तरुवर! अब दूर जा पडूंगा, पता नहीं बिछुड़ने पर फिर कब मिलना हो।

गिरधर वहां न बैठिए, जंह कोऊ दे उठाए : जहाँ सम्मान न हो उन लोगों के बीच नहीं बैठना चाहिए।

गिरा सत्तू पितरों को दान : सत्तू गिर गया, खाने लायक नहीं रहा तो पितरों को दान कर के पुण्य कमा रहे हैं। ढोंगी धर्मात्मा।

गिरी पहाड़ से रूठी भतार से : किसी की नाराजगी किसी और पर उतारना।

गिरे का क्या गिरेगा : जिसकी कोई इज्ज़त न हो उसकी क्या बेइज्ज़ती हो जाएगी। जो जमीन पर गिरा हुआ है उसका क्या सामान गिर जाएगा।

गिरे का क्या गिरेगा : जो आदमी पहले ही गिरा हुआ है उसके पास से क्या गिर सकता है। यहाँ गिरे हुए का अर्थ ओछे व्यक्ति से भी हो सकता है और अत्यधिक गरीब से भी।

गिरे तो देव के पगों में पड़े : गिरे तो लेकिन देवता के चरणों में गिरे। (ऐसे गिरने से कोई नुकसान नहीं हुआ बल्कि लाभ हो गया)। नुकसान के साथ में ही भरपाई भी हो जाना।

गिरे पड़े वक्त का टुकड़ा : बुरे समय में काम आने के लिए बचा कर रखा गया धन या वस्तु।

गिरे पे चार लात जमाना : ऐसे बनावटी बहादुरों पर व्यंग्य जो लड़ने की हिम्मत नहीं रखते पर गिरे हुए पर लात जरूर जमाते हैं।

गिलहरी की दौड़ पीपल तक : छोटा व्यक्ति छोटी सोच ही रखता है।

गीदड़ की तावल से बेर नहीं पकते : तावल – उतावलापन, जल्दबाजी। गीदड़ के चाहने से बेर जल्दी नहीं पक जाते। उतावले लोगों को सीख देने के लिए।

गीदड़ की मौत आती है तो वह शहर की ओर भागता है : गीदड़ अगर शहर में घुसेगा तो मार दिया जायेगा। यदि कोई कमजोर और डरपोक व्यक्ति दुस्साहस दिखाने का प्रयास करता है तो उसकी मजाक उड़ाने के लिए यह कहावत कही जाती है।

गीदड़ गिरा गड्ढे में, आज यहीं रहेंगे : अपनी गलती से विपत्ति में पड़े व्यक्ति द्वारा यह दिखावा करना कि उसे कोई परेशानी नहीं है।

गीदड़ ने मारी पालथी, अब मेह बरसेगा तभी उठेगा : अत्यधिक गर्मी होने पर गीदड़ पालथी मार लेता है और पानी बरसने पर ही उठता है। कोई मूर्ख व्यक्ति अपनी बात पर अड़ जाए तो।

गीदड़ पट्टा : कुत्तों के डर से सियार बस्ती में जाने से डरते हैं। एक सियार को संयोग से एक पुराना कागज मिल गया तो उसने अपनी जमात इकट्ठी की। कागज दिखाकर बोला – मैंने गाँव का पटटा ले लिया है। अब कोई कुत्ता हम पर नहीं भौंक सकता। चलो गाँव चलते हैं। सबसे आगे मैं चलूँगा। सियारों की बिरादरी को पट॒टे वाली बात समझ में आ गई। वे सभी उसके पीछे-पीछे गॉव की ओर चले। पर गाँव में घुसते ही कुत्तों की फ़ौज भौंकते हुए उन पर टूट पड़ी। मुखिया सियार वापस भागने में सबसे आगे था। साथियों ने  कहा – भाग क्यों रहे हो? गाँव का पट्टा दिखाओ। तब उस सियार ने और जोर से भागते हुए कहा – ये सभी अनपढ़ हैं, फिर किसे पट्‌टा दिखाऊँ। जान बचाकर भागो, वरना बेमौत मारे जाओगे।

गुजरे लोगन की निंदा अजोग है : मरे हुए लोगों की निंदा नहीं करना चाहिए। इंग्लिश में कहावत है – Speak well of the dead।

गुड़ अँधेरे में खाओ तो मीठा, उजाले में खाओ तो भी मीठा (गुड़ तो अंधेरे में भी मीठा लागे) : अर्थ स्पष्ट है।

गुड़ कड़वा लगे तो जानो ज्वर का जोर : बिना बात मुँह कड़वा हो रहा हो तो बुखार की संभावना होती है।

गुड़ की चोट थैली जाने : थैली में रखे गुड़ को तोड़ने के लिए थैली को उठाकर पत्थर पर पटका जाता है। गुड़ मीठा होता है पर थैली पर भीतर से चोट तो करता ही है। कोई मीठा दिखने वाला व्यक्ति चुपचाप किसी को चोट पहुँचाए तो।

गुड़ खाए गुलगुलों से परहेज करे : जो लोग परहेज नहीं करते लेकिन परहेज का दिखावा बहुत करते हैं उनके लिए यह कहावत है।

गुड़ गुड़ कहने से मुंह मीठा नहीं होता : सिर्फ बातें बनाने से कोई काम नहीं होता।

गुड़ से मीठी क्या ईंटें : इस कहावत का प्रयोग उसी प्रकार किया जाता है जैसे – नेकी और पूछ पूछ।

गुड़ से मीठी जुबान : जुबान से बहुत मीठी बोली बोली जा सकती है।

गुड़ हर दफै मीठा ही मीठा : गुड़ को जितनी बार भी खाओगे मीठा ही लगेगा। जो फायदे की बात है वह हर समय अच्छी ही लगेगी।

गुड़ होता गुलगुले करती, आटा उधार मांग लाती, निगोड़ो तेल ही नाय है : पास में कुछ भी न हो तब भी मंसूबे बांधना।

गुड़ियों के ब्याह में चियों का नेग : चिया – इमली का बीज। जैसा बचकाना आयोजन, वैसी बचकानी भेंट।

गुण मिलें तो गुरु बनाए चित्त मिले तो चेला, मन मिलें तो मीत बनाए वरना रहे अकेला : गुरु उसी को बनाना चाहिए जिसमें बहुत से गुण हों, चेला उसी को बनाना चाहिए जिससे विचार मिलते हों और मित्र उसी को बनाना चाहिए जिससे मन मिलता हो।

गुणवान सब जगह पूजा जाता है : जबकि राजा केवल स्वदेश में पूजा जाता है।

गुणों के अनुसार प्रतिष्ठा होती है : अर्थ स्पष्ट है।

गुदड़ी से बीबी आईं, शेखजी किनारे हो : कोई ओछा व्यक्ति थोड़ा बहुत अधिकार पाकर अत्यधिक इतराने लगे तो।

गुनके गाहक सहस नर, बिन गुन लहै न कोय : गुणों की कद्र सभी लोग करते हैं। बिना गुणों के कोई आपको नहीं पूछता। (गिरधर की एक कुंडली से)।

गुनवंती के नौ मायके, गली गली ससुराल : जिस में गुण होते हैं उस की सब जगह पूछ होती है।

गुनिया तो औगुन तजे, गुन को तजे गंवार : जो गुणवान है वह अपने अवगुणों को त्यागने का प्रयास करता है और जो मूर्ख है वह अपने भीतर छिपे गुणों को ही त्याग देता है।

गुनियां तो गुण कहे, निर्गुनिया देख घिनाय : गुणों को पहचानने वाला व्यक्ति हर चीज़ में गुण देखता है और जिस में स्वयं कोई गुण नहीं है या जिसे गुणों की पहचान नहीं है वह हर चीज़ को बेकार समझ कर घृणा करता है।

गुनियों की कमी नहीं, पारखियों की कमी है : गुणवान लोग बहुत हैं, उन्हें परखने वाले पारखी चाहिए।

गुपचुप बुलाई, ऊंट चढ़ी आई : गुप्त रूप से कोई काम करने लिए किसी को चुपचाप बुलाया और वह बेबकूफ दिखावा करता हुआ आया।

गुप्तदान महापुण्य : वैसे तो सभी प्रकार के दान करने से पुन्य मिलता है लेकिन गुप्त दान (बिना अपना नाम प्रदर्शित किए) सबसे बड़ा पुन्य है क्योंकि इस में व्यक्ति को अपने नाम की भूख नहीं होती।

गुबरारी की रानी भई, रानी की गुबरारी : (बुन्देलखंडी कहावत) गुबरारी – गोबर उठाने वाली। भाग्य से ही सब मिलता है। गोबर उठाने वाली रानी बन सकती है और रानी गोबर उठाने वाली।

गुबरैले के लिए तो गोबर ही गुड़ : 1. जो जिस परिवेश में रहता है उसको वही अच्छा लगता है। 2. निकृष्ट व्यक्ति निकृष्ट परिवेश में ही खुश रहता है।

गुरु कहै सो करो, करे सो न करो : गुरु के उपदेशों का पालन करो, गुरु जो करते हैं उसकी नकल मत करो। (गुरु में कोई गलत आदत भी हो सकती है)।

गुरु की चोट, विद्या की पोट : गुरु की मार से ही विद्या आती है।

गुरु की विद्या गुरु को फली : जहाँ कोई शिष्य गुरु से कोई विद्या सीख कर गुरु को लाभ पहुँचाए। (यदि अत्यधिक हानि पहुँचाए तो भी व्यंग्य में यह कहावत बोलते हैं)।

गुरु कुम्हार सिष कुंभ है, गढ़ि-गढ़ि काढ़ै खोट, अन्तर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट : गुरु कुम्हार के समान है और शिष्य घड़े के समान। कुम्हार अन्दर से हाथ का सहारा देता है और बाहर से चोट कर के घड़े के टेढ़े पन को दूर करता है। इसी प्रकार गुरु शिष्य को सहारा भी देता है और दंड दे कर उसके दोष दूर करता है।

गुरु गुरु विद्या, सिर सिर ज्ञान : हर गुरु से विद्या ग्रहण की जा सकती है और हर व्यक्ति से ज्ञान।

गुरु तो ऐसा चाहिए ज्यों सिकलीगर होए, जनम जनम का मोरचा छिन में डाले खोए : सिकलीगर – छुरी कैंची पर धार रखने वाला। गुरु ऐसा होना चाहिए जैसा छुरी पर धार रखने वाला होता है। कितनी भी पुरानी जंग (अज्ञान) हो उसे साफ़ कर दे।

गुरु बिन मिले न ज्ञान, भाग बिन मिले न संपति : गुरु के बिना ज्ञान और भाग्य के बिना सम्पत्ति नहीं मिल सकती।

गुरु मारे धमधम, विद्या आवे छमछम : गुरु के धमाधम कूटने से ही विद्या आती है।

गुरु शुक्र की बादरी, रहे शनीचर छाए, कहे घाघ सुन घाघनी, बिन बरसे नहिं जाए : घाघ कवि के अनुसार बृहस्पति से शनिवार तक यदि बादल छाए रहें तो वर्षा अवश्य होती है।

गुरु से चेला सवाया। जब चेला गुरु से अधिक योग्य या दुष्ट हो तो।

गुरु से पहले चेला माल खाए : गुरु से पहले चेला माल खाता है क्योंकि उस के जरिये ही माल गुरु तक पहुँचता है। रिश्वतखोरों के दलालों के विषय में भी ऐसा ही कहा जा सकता है।

गुरु से पहले चेला मार खाए : जहाँ तक मार खाने (पिटने) का सवाल है तो वह भी गुरु से पहले चेला ही खाता है क्योंकि वह ज्यादा आसानी से उपलब्ध होता है और गुरु को बचाने की कोशिश भी करता है।

गुरु, बैद अरु जोतसी, देव, मंत्रि औ राज, इन्हें भेंट बिन जो मिले, होए न पूरन काज : गुरु, वैद्य, ज्योतिषी, देवता, मंत्री और राजा, इनसे जो भी बिना भेंट लिए मिलता है उसका कार्य पूर्ण नहीं हो सकता।

गुरू कीजै जान के, पानी पीजै छान के : किसी व्यक्ति के विषय में पूरी छानबीन कर के ही उसे अपना गुरु बनाना चाहिए, और पानी हमेशा छान कर पीना चाहिए।

गुरू गुड़ रह गए चेला चीनी हो गया : चेला गुरु से अधिक काबिल हो जाए तो।

गुरू से कपट मित्र से चोरी, या हो निर्धन या हो कोढ़ी : गुरु से कपट और मित्र से चोरी करने वाला या तो निर्धन हो जाएगा या कोढ़ी। यहाँ कोढ़ से आशय असाध्य बीमारी से है।

गुलगुला भावे, पर गुड़ घी आटा कहाँ से आवे : गुलगुले सब को अच्छे लगते है पर उनको बनाने के लिए सामान हर किसी को उपलब्ध नहीं है। अपनी हैसियत देख कर ही मन ललचाना चाहिए।

गुलाब में कांटे या कांटो में गुलाब : अपना अपना नज़रिया है, हाय गुलाब में कांटे हैं यह कह कर दुखी हो या काँटों जैसी विपरीत परिस्थितियों में भी गुलाब खिलते हैं, यह सोच कर आशान्वित हो।  

गुस्सा बहुत, जोर थोड़ा, मार खाने की निशानी : किसी आदमी में ताकत तो है नहीं पर गुस्सा बहुत है तो मार तो खाएगा ही।

गू का कीड़ा गू में ही खुश रहता है : नीच आदमी अपने निकृष्ट परिवेश में ही खुश रहता है।

गू का पूत नौसादर : लोगों की धारणा है कि नौसादर मल से बनाया जाता है। किसी निम्न कुल में कोई सपूत पैदा हुआ हो तो यह कहावत कही जाती है।

गू का भाई पाद और पाद का भाई गू : दो निकृष्ट लोगों के लिए हिकारत भरा कथन.

गू के कीड़े को गुलाब जल में डालो तो मर जाए : निकृष्ट मनोवृत्ति वाले व्यक्ति को अच्छे परिवेश में रखो तो वह बहुत परेशान हो जाता है।

गू खाए तो हाथी का जो पेट तो भरे, बकरी की मींगनी क्या खाए जो दाढ़ भी न भरे : कहावत में शिक्षा दी गई है कि रिश्वत खाओ तो बड़ी खाओ, छोटी छोटी मत खाओ।

गू भी कहे कि गोबर में बदबू : अपने अवगुण न देख कर दूसरों में कमियाँ निकालना।

गू में कौड़ी गिरे तो दांतों से उठा ले : किसी महा कंजूस के लिए। आम तौर पर ऐसा कथन वे दिलजले लोग कहते हैं जो कंजूस के पास कुछ मांगने गये हों और उस ने देने से मना कर दिया हो।

गू में न ढेला डाले, न छींटें पड़ें : किसी नीच से बहस करना ऐसा ही है जैसा गू में ढेला डालना। गू में ढेला डालोगे तो छींटों से तुम्हारे ही कपड़े गंदे होंगे और नीच से बहस करोगे तो तुम्हारी ही बेइज्जती होगी।

गूँगे वाला गुड़ (गूँगे वाला सपना), (गूँगा गुड़ खाये और मन-ही-मन मुस्काये) : जो व्यक्ति अपनी प्रसन्नता को व्यक्त न कर पा रहा हो।

गूंगा, अंधा, चुगदढ़िया और काना, कहें कबीर सुनो भई साधो, इनको नहिं पतियाना : गूंगा, अंधा, छोटी दाढ़ी वाला और काना, इनका विश्वास नहीं करना चाहिए। वैसे यह एक निरर्थक कथन है जोकि कबीरदास का कहा हुआ हो ही नहीं सकता।

गूंगी जोरू भली, गूंगा हुक्का न भला : हुक्का जब तक गुड़गुड़ न करे उसे पीने में मज़ा नहीं आता।

गूंगे का कोई दुश्मन नहीं : क्योंकि उस को कुछ भी कह लो वह जबाब नहीं देता।

गूंगे की सैन गूंगा जाने : सैन – इशारों की भाषा। गूंगे की भाषा गूंगा ही समझ सकता है।

गूंगे के बैन, माँ समझे या भैन (बहन) : गूंगे की बात उसकी माँ और बहन ही समझ सकती हैं।

गूंगे के सैन को और न समझे कोय, या समझे माई या समझे जोय : गूंगे के इशारों को माँ समझती है या पत्नी।

गूंगे ने सपना देखा, मन ही मन पछताए : गूंगे ने सपना देखा, अब मन में परेशान हो रहा है कि सब को कैसे बताए। अपनी बात किसी को न समझा पाने का दर्द।

गूजर का दहेज़ क्या, बकरी या भेड़ : गूजर दहेज़ में क्या देगा, भेड़ बकरी ही तो देगा। (उसका वही धन है)।

गूजर किसके असामी, कलाल किसके मीत : गूजर बहुत अच्छे ग्राहक नहीं होते और शराब बेचने वाले किसी के दोस्त नहीं होते।

गूजर से ऊजड़ भली : गूजर के पड़ोस से उजाड़ अच्छा।

गूदड़ में गिंदौड़ा : गिंदौड़ा एक बढ़िया मिठाई का नाम है। कोई बहुत गुणवान व्यक्ति अत्यंत साधारण परिस्थितियों में रह रहा हो तो यह कहावत कहते हैं। (गुदड़ी का लाल)।

गूदड़ में लाल नहीं छिपता : प्रतिभाशाली व्यक्ति गरीबी में भी अपनी प्रतिभा की पहचान करा देता है।

गृहस्थ का एक हाथ दुख में ओर एक हाथ सुख में : गृहस्थी में सुख और दुख दोनों बराबरी से लगे रहते हैं।

गृहस्थ के पास कौड़ी न हो तो दो कौड़ी का, साधु के पास कौड़ी हो तो दो कौड़ी का : गृहस्थ के पास पैसा न हो तो उसकी कोई कद्र नहीं है और साधु के पास पैसा हो तो वह साधु ही नहीं कहलाएगा।

गेंद खेल की और धन दोनों एक सुभाय, कर आवत छिन एक में छिन में कर से जाए : खेलने वाली गेंद और धन, इन दोनों का स्वभाव एक सा होता है। ये क्षण में आप के हाथ में आते हैं और क्षण में ही निकल जाते हैं।

गेंवड़े आई बरात, बहू को लगी हगास : गेंवड़ा – गाँव का बाहर का हिस्सा। गाँव के बाहर बरात आ गई है और बहू को शौच जाना है (बात उस समय की है जब शौच के लिए गाँव के बाहर जाना होता था)। जरूरी काम के समय अगर कोई आदमी विकट समस्या ले कर बैठ जाए तो। (शिकार के वक्त कुतिया हगासी)। हगास – शौच जाने की इच्छा।

गेंवड़े खेती हम करी, कर धोबन से हेत, अपनी करी का से कहें, चरो गधन ने खेत : (बुन्देलखंडी कहावत) गाँव के पास के हिस्से को गेंवड़ा कहते हैं। वहाँ के खेत को गाँव के आवारा पशु चर जाते हैं। ऊपर से धोबन से प्रेम कर लिया तो उस के गधे ने भी खेत चर लिया। अपनी गलतियों से कोई नुकसान उठाए तो यह कहावत कही जाती है।

गेंवड़े खेती, छप्पर सांप, भाई भयकरन, बादी बाप, ये अच्छे नहीं होते : गाँव से लगा खेत, छप्पर में सांप, डराने वाला भाई और मुकदमेबाज बाप ये अच्छे नहीं होते।

गेहूँ के साथ घुन भी पीसा जाता है : जब चक्की में गेहूं पीसा जाता है तो अगर कोई घुन भी गेहुओं के बीच हो तो पिस जाता है। जहां दोषी लोगों को सजा देने में कोई निर्दोष भी लपेटे में आ जाए तो यह कहावत कही जाती है।

गेहूं के साथ बथुए को भी पानी मिलता है : जब गेहूं की खेती की जाती है तो उसके बीच में जगह जगह पर बथुए के पौधे अपने आप निकल आते हैं। जब गेहूं जैसे महत्वपूर्ण पौधे को पानी दिया जाता है तो बथुए जैसे महत्व हीन पौधे को भी पानी मिल जाता है। आप अपने दोस्त के साथ उसकी ससुराल जाएं और वहां दामाद साहब के साथ आपकी भी खातिरदारी हो तो मजाक में यह कहावत कही जा सकती है।

गैब का धन ऐब में जाए ऐब का धन गैब में जाए : गैब – अदृश्य शक्ति। बिना मेहनत के मिला धन गलत आदतों में खर्च होता है और गलत तरीकों से कमाया धन ईश्वर छीन लेता है.

गैर का सिर कद्दू बराबर। दूसरे की जान को कोई जान नहीं समझता.

गों निकली, आँख बदली : गों माने स्वार्थ। स्वार्थ सिद्ध हो जाने पर लोगों की आँख बदल जाती हैं, कृतघ्न मनुष्यों के विषय में ऐसा कहा जाता है.

गोंद पंजीरी और ही खाएं, जच्चा रानी पड़ी कराहें : जच्चा रानी – प्रसूता स्त्री। जिसको प्रसव हुआ है वह तो पड़ी कराह रही है और उसके लिए बनी हरीरा पंजीरी और लोग उड़ा रहे हैं।

गोकुल गाँव को पैड़ों न्यारो : अनोखी रीति।

गोत्र वाली गाली तो कुत्ते को भी बुरी लगे : जाति सूचक गाली सभी को बुरी लगती है (कुत्ते को भी)।

गोद का खिलाया गोद में नहीं रहता : छोटा बच्चा हमेशा छोटा नहीं रहता, कभी न कभी बड़ा होता ही है। बड़ा होने के बाद उसका व्यवहार भी बदल जाता है।

गोद में बैठ के आँख में उँगली (गोद में बैठ के दाढ़ी नोचे) : अपने आश्रय देने वाले के साथ विश्वासघात करना।

गोद मोल का छोरा, निहाल किसको करे : गोद लिया हुआ या मोल लिया हुआ बेटा किसी को सुख नहीं दे सकता। जब वह बड़ा होता है तो लोग उसे बता देते हैं कि वह गोद लिया हुआ है इसलिए उस के मन में उतना प्रेम नहीं आ सकता।

गोद लड़ायो छोकरो, चढ़ा कचहरी जाट, पीहर लड़ाई पद्मिनी, तीनों बारहबाट : गोद लिया बेटा, कचहरी के चक्कर लगाने वाला जाट और मैके से लड़ कर आई स्त्री इन तीनों का भविष्य अच्छा नहीं होता।

गोद वाले की बात न पूछे, पेट वाले को पुचकारे : वर्तमान पर ध्यान न दे कर केवल भविष्य के विषय में सोचना।

गोबर का पुतला भी पहन ओढ़ कर अच्छा लगता है : अच्छे कपड़ों से व्यक्तित्व में निखार आता है।

गोबर में कीड़ा पड़ें, पपीहा मीठे बोल सुनाय, अफीम चमड़ा गीले होंय, वर्षा हो संशय न कोय : अर्थ स्पष्ट है।

गोबर में तो गुबरैले ही पैदा होंगे : खराब परिवेश में तो नीच लोग ही पनपेंगे.

गोबर, मैला, नीम की खली, या से खेती दूनी फली : जब कृत्रिम खाद का रिवाज़ नहीं था तो गोबर, मल और नीम की खली की खाद ही लगाई जाती थी। कहावत में कहा गया है कि इन से खेती दोगुनी हो जाती है।

गोबर, राखी, पाती सड़े, फिर खेती में दाना पड़े : गोबर, राख और पत्तियों को सड़ा कर उनकी खाद बना कर खेत में डालो, उस के बाद बीज बोओ। (घाघ)

गोरस बेचन हरिमिलन, एक पंथ दो काज : एक काम करने से दो प्रयोजन सिद्ध हों।

गोरी तेरे संग में गई उमरिया बीत, अब चाली संग छोड़ के ये न प्रीत की रीत : मरणासन्न व्यक्ति अपनी आत्मा से ऐसे कहता है। कोई बूढ़ा व्यक्ति अपनी मरणासन्न पत्नी से भी ऐसे कह सकता है।

गोरे चमड़े पे न जा, वह है छछूंदर से बदतर : वेश्याओं से बचने के लिए सीख।

गोला और  मूंज पराये बल ऐंठे : दास अपने स्वामी के बल पर अकड़ता है, मूंज भी पानी का बल पाकर ही  ऐंठती है।

गोली को घाव भर जाए, पर बोली को न भरे : कड़वी बोली और चुभने वाली बात कितना कष्ट पहुंचा सकती है इसको समझाने के लिए यह उदाहरण दिया गया है।

गोह के जाए, सारे खुरदरे : गोह – छिपकली की जाति का बड़ा जानवर (बिस्खोपड़ी), जाए – पैदा किए हुए। गोह के सब बच्चे कुरूप ही होते हैं। कहावत का अर्थ है कि नीच लोगों की सभी संतानें नीच ही होती हैं।

गोहरा के पाप से पीपला जले : गोह को मारने के लिए लोग पीपल को जला देते हैं। दुष्ट व्यक्ति की संगत अनजाने में ही आप के लिए बहुत खतरनाक हो सकती है।

गौन के माल में गधे का क्या साझा : जानवरों की पीठ पर जिस बोरे में भर कर माल लादा जाता है उसे गौन कहते हैं। जिस माल को गधा ढोता है उसमें गधे का कोई हिस्सा नहीं होता। मेहनत करने वाले को व्यापार के लाभ में हिस्सा नहीं मिलता।

गौमुखा नाहर : (राजस्थानी कहावत) ऊपर से गाय की तरह सीधा, अंदर से शेर जैसा खतरनाक। नाहर – सिंह।

ग्रह बिना घात नहीं, भेद बिना चोरी नहीं : बुरे ग्रहों के प्रभाव से ही मृत्यु या कोई बड़ा नुकसान होता है और भेदिये द्वारा भेद देने से ही चोरी होती है।

ग्रहण का दान, गंगा का स्नान : ग्रहण के समय दान देने से विशेष पुण्य मिलता है।

ग्रहण तो लगा ही नहीं, डोम घूमने लगे : पुरानी मान्यता है कि ग्रहण पड़ता हो (विशेषकर सूर्य ग्रहण) तो सफाई सेवकों और डोमों इत्यादि को दान देना चाहिए। इस प्रकार के लोग ग्रहण के समय बाहर निकल कर घूमने लगते हैं और आवाज लगाते हैं – दान करो, दान करो। कहावत में कहा गया है कि ग्रहण लगा ही नहीं और मांगने वाले आ गए। बिना उपयुक्त अवसर के लाभ लेने का प्रयास करने वाले लोगों के लिए।

ग्रहण में डोमों की मौज : सामान्य जनता के लिए ग्रहण को अनिष्टकारी माना गया है, लेकिन डोमों को ग्रहण में खूब दान मिलता है।

ग्राहक और मौत का भरोसा नहीं होता : यह तो हर कोई जानता है की मौत का कोई भरोसा नहीं कब आ जाए। बुद्धिमान लोग व्यापार में लगे अपने से छोटे लोगों को यह सिखाते हैं कि दुकान छोड़कर गायब नहीं होना चाहिए। ग्राहक का कोई भरोसा नहीं कब आ जाए। अपनी बात को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए साथ में मौत का उदाहरण भी जोड़ दिया गया है।

ग्राहक कभी गलत नहीं होता : व्यापार का नियम है कि ग्राहक की हाँ में हाँ मिलाना चाहिए। इंग्लिश में कहावत है – The customer is always right।

ग्वाले के घर दूध हो तो दूधन नहीं नहाए : अगर किसी के पास कोई वस्तु अधिक मात्रा में उपलब्ध हो तो वह उसका दुरूपयोग थोड़े ही करता है।

( घ )

घट तोला, मिठ बोला : 1. बनिए की विशेषता बताई गई है, कम तौलते है और मीठा बोलते हैं। 2. जो कम तौलते हैं वे मीठा बोलते हैं।

घड़ी घड़ी की मांगो खैर : कोई नहीं जानता कब क्या हो जाए, इसलिए ईश्वर को हमेशा याद करते रहना चाहिए और यह प्रार्थना करनी चाहिए कि सब कुशल रहे।

घड़ी घड़ी को रंग न्यारो : किसी का समय सदा एक सा नहीं रहता।

घड़ी भर का पता नहीं, जनम भर के सौदे : मनुष्य के जीवन का एक क्षण का भी भरोसा नहीं है लेकिन वह लम्बे समय की योजनाएं बनाता है।

घड़ी भर की बेशर्मी, सारे दिन का आराम : कोई आप से किसी काम के लिए कहे और उस समय थोड़ी बेशर्मी दिखा कर मना कर दें तो फिर बड़ा आराम रहता है। (हांलाकि उस समय बुरा लगता है)।

घड़ी भर में घर जले, अढ़ाई घड़ी भद्रा : वारिश में अभी देर है और घर जला जा रहा है। मुसीबत सर पे हो और सहायता मिलने में देर हो तो। भद्रा – एक नक्षत्र जिसमें वर्षा का योग होता है।

घड़ी में औलिया, घड़ी में भूत : औलिया माने महात्मा या भूत भगाने वाला।। ऐसा व्यक्ति जिसका मूड पल पल में बदलता हो।

घड़ी में तोला घड़ी में माशा : तोला और माशा किसी जमाने में तौलने की इकाइयाँ हुआ करती थीं। उस समय एक रुपये का सिक्का एक तोला (लगभग 11. 7ग्राम) का होता था। माशा इसका दसवां हिस्सा होता था। कहावत का अर्थ ऐसे व्यक्ति से है जिसका मूड बहुत जल्दी जल्दी बदलता हो।

घड़े को अरंड ही वज्र : अरंड की लकड़ी काफी कमजोर होती है परन्तु घड़े को फोड़ सकती है। गरीब आदमी को छोटी मोटी परेशानी भी बर्बाद कर सकती है।

घड़े में से घड़ा नहीं भरा जाता : घर में एक घड़ा भरा हुआ रखा हो तो दूसरा घड़ा बाहर से भर कर लाना चाहिए। एक घड़े से पानी लौट कर दूसरा भरा तो क्या फायदा होगा।

घड़े सरीखी ठीकरी, माँ सरीखी डीकरी : फूटे हुए घड़े का टुकड़ा भी घड़े के समान रंग रूप वाला होता है, इसी प्रकार बेटी भी माँ जैसी होती है।

घना कुनबा घना दुखी, घना कुनबा घना सुखी : बड़े परिवार की परेशानियाँ भी अधिक है और सुख भी बहुत हैं।

घनी  सीघी छिपकली चुन –चुन कीड़े खाय : ऊपर से सीधा-सादा दिखलाई पड़ने वाला भी कभी-कभी भीतर से बड़ा घातक होता है।

घमंडी का सर नीचा : अहंकारी व्यक्ति को अंततः नीचा देखना पड़ता है। इंग्लिश में कहावत है – Pride goes before a fall.

घर आए कुत्ते का भी आदर होता है : अपने घर जो भी आए उसका अनादर नहीं करना चाहिए.

घर आए नाग न पूजिए, बाँबी पूजन जाए : घर पे जो नाग आया है उस की पूजा न करके दूर सांप की बांबी पूजने जा रहे हैं। अपने घर या आस पास की उपयोगी वस्तुओं की उपेक्षा कर के दूर की चीजों को अधिक महत्व देना।

घर आएं तो माँ मारे, बाहर जाएं तो कुत्ता काटे : जब दोनों ओर संकट हो तो।

घर आया बैरी भी पाहुना (घर आए बैरी को भी न मारिए) : अपने घर कोई अतिथि आया है तो वह वैरी हो तब भी उसका यथोचित सत्कार करना चाहिए।

घर कपड़ा और रोटी, और सब बात खोटी : मनुष्य की तीन मूलभूत आवश्यकताएँ हैं, रोटी कपड़ा और मकान।

घर कर घर कर, सत्तर बला सर पर : गृहस्थी बसाने का मतलब है अनेकों मुसीबतें सर पे लेना।

घर का अगुआ घर का बैरी, गाँव का अगुआ गाँव का बैरी : मुखिया चाहे घर का हो या गाँव का। यदि अनुशासन और न्याय प्रिय है तो सब उससे नाराज रहते हैं।

घर का आदमी घर से बाहर भला : आदमी हमेशा घर से बाहर ही अच्छा रहता है। निठल्ला या लड़ाका हो तब तो घर से बाहर अच्छा है ही, कमाऊ हो तब भी घर से बाहर रहेगा तभी तो कमाएगा।

घर का कुआँ है तो क्या डूब कर मरोगे : घर में कोई सुविधा उपलब्ध है तो उसका मूर्खतापूर्ण दुरूपयोग नहीं करना चाहिए।

घर का कोल्हू, तेली रूखी क्यों खाए : घर में तेल की भरमार हो तो कोई रूखा क्यों खाएगा।

घर का गांजा और घर की चिलम (घर की दारू, घरवाले ही पीने वाले) : जब घर वाले ही अपनी संतान को गलत काम सिखा कर बर्बाद करें।

घर का गुड़ घर ही में फोड़ लो : जो बंटवारा करना है चुपचाप घर में ही कर लो, चार जनों के बीच तमाशा न बनाओ।

घर का जोगी जोगिड़ा, आन गाँव का सिद्ध : अपने घर या आस पास की उपयोगी वस्तुओं की उपेक्षा कर के दूर की चीजों को अधिक महत्व देना। घर में कोई साधु है उस का उपहास कर रहे हैं और दूसरे गाँव के महात्मा को सिद्ध बता रहे है। इंग्लिश में कहावत है – The prophet is not honoured at home.

घर का द्वार, खसम के हाथ : घर को गृह स्वामी ही चलाता है।

घर का परोसनियाँ और अँधेरी रात : खाना परोसने वाला घर का आदमी है और अंधेरी रात है अत: कोई देख भी नहीं सकता कि वह किस को कितना परोस रहा है। फिर तो मौज ही मौज है। ऐसी ही एक कहावत है – मामा का ब्याह और माँ परोसन वारी।

घर का बच्चा, काना भी अच्छा : अपना बच्चा कुरूप हो तब भी प्यारा लगता है।

घर का बामन बैल बराबर : घर में कोई विद्वान व्यक्ति हो तो उसकी कद्र नहीं होती।

घर का भेद और दिल का दर्द हरेक के सामने न कहे : अर्थ स्पष्ट है।

घर का भेदी लंका ढाए : रावण और मेघनाथ महापराक्रमी और मायावी थे और उनके पास सब साधनों से संपन्न राक्षस सेना थी। दूसरी ओर राम के पास साधन विहीन वानर सेना थी इसलिए रावण और मेघनाथ को मारना और लंका को जीतना आसान नहीं था। विभीषण ने जो भेद की बातें राम को बताईं उन की सहायता से ही रावण को मारना संभव हो सका। जब कोई व्यक्ति घर के भेद बाहर वालों को बताकर अपने घर को नुकसान पहुंचाता है तब यह कहावत कही जाती है।

घर का लड़का चाकी चाटे, ओझा जी को सीधा : घर के लोग भूखों मर रहे हैं और झाड़ फूंक करने वालों पर धन बर्बाद किया जा रहा है।

घर का लड़का भूखा मरे, पड़ोसियों को खीर चूरमा : घर के लोगो की बेकदरी कर के बाहर के लोगों को खुश करना।

घर का ही देव, घर के ही पुजारी : जैसे आजकल के कुछ परिवार वादी राजनैतिक दल।

घर की आग ना देखें पहाड़ की आग देखे (घर जलता नजर न आए, पहाड़ की आग देखन जाए) : अपना घर जल रहा है उसे नहीं देख रहे हैं, और कहीं आग लगी है वहाँ तमाशा देखने जा रहे हैं।

घर की खांड किरकरी लागे, चोरी को गुड़ मीठा : जो चीज़ सहज ही उपलब्ध है वह अच्छी नहीं लगती। जो मुश्किल से मिले (चाहे चोरी करना पड़े) वह अच्छी लगती है। इंग्लिश में कहावत है – Stolen fruits are the sweetest.

घर की खाये, सदा सुख पाये : जो व्यक्ति अपने उपलब्ध संसाधनों में काम चलाता है वह सदा सुखी रहता है।

घर की गाय और घर के ही सांड : सब कुछ घर में ही उपलब्ध है, किसी पर आश्रित नहीं हैं।

घर की जोरू की चौकसी कहाँ तक : अगर घर का ही कोई व्यक्ति चोरी करने लग जाए तो चोरी से कैसे बचा जा सकता है।

घर की दाही वन गयी, वन में लागी आग : अभागा और प्रताड़ित व्यक्ति कहीं भी जाए दुर्भाग्य उस का साथ नहीं छोड़ता। दाही – जली।

घर की धुनियानी, धुने आग पानी : धुनिया उसे कहते हैं जो रुई धुनता है। घर में कोई रुई धुनने वाली होगी तो रुई न मिलने पर और चीजों को धुनने लगेगी।

घर की फूट घर को खाय : घर के लोगों में मतभेद और झगड़ा घर को बर्बाद कर देता है।

घर की फूट जगत की लूट : जिस घर के लोगों में आपसी झगड़े होते हैं उसे दुनिया के लोग लूट लेते हैं।

घर की फूट, लोक की हांसी (घर की हान लोक की हांसी) : घर के लोग आपस में लड़ते हैं तो दुनिया तमाशा देखती है।

घर की बिल्ली और घर ही में शिकार : अपने परिवार के लोगों को धोखा देना।

घर की बीबी हांडनी, घर कुत्तों जोग : घर की स्त्री बहुत बाहर घूमने वाली हो तो घर बरबाद हो जाता है।

घर की मुर्गी दाल बराबर : जो चीज़ घर में मौजूद हो उस की कीमत लोग नहीं समझते।

घर के चोर के खोज कैसे मिलें। खोज – पैरों के निशान : कहीं पर चोरी होती है तो पैरों के निशान देख कर यह पता लगाया जाता है कि बाहर से कौन आया होगा। घर के किसी आदमी ने चोरी की हो तो पैरों के निशान से कोई सहायता नहीं मिलेगी।

घर के जाए के दिन गिनो या दांत : जानवर की उम्र कितनी है इस का अंदाज़ उसके दांत गिन कर लगाया जाता है, लेकिन जो बछड़ा घर में पैदा हुआ है उस के दांत गिनने की क्या जरूरत। उस का जन्म तो याद ही होता है.

घर के ना घाट के माई के न बाप के : नितांत आवारा।

घर के पीर को तेल का मलीदा : मलीदा एक विशेष प्रकार का पकवान है जो खूब सारा घी डाल कर बनता है। घर में कोई साधु संत है तो उसे तेल से बना घटिया मलीदा खिलाया जा रहा है।

घर के सरकंडे से आँख फूटी : यदि घर का ही कोई व्यक्ति बहुत बड़ा नुकसान पहुंचाए।

घर के सिंगार, लीपा पोता आंगन और पहनी ओढ़ी नार : घर कब अच्छा लगता है, जब आंगन लीपा पोता हो (पहले के जमाने में सफाई करने के बाद आंगन को गोबर या चकनी मिट्टी से लीपते थे) और गृहणी अच्छे कपड़े पहने हो।

घर के ही नन्द बाबा और घर की ही यशोदा : जब नटखट कृष्ण कोई शैतानी करते थे तो गोप गोपियाँ नंद बाबा और यशोदा से ही शिकायत करने आते थे और यह जानते भी थे कि वे कुछ नहीं करेंगे। वास्तव में कृष्ण सभी के इतने प्रिय थे कि वे लोग स्वयं भी नहीं चाहते थे कि कृष्ण का कुछ अहित हो।   

घर खीर तो बाहर खीर : घर में आपकी पूछ होगी तभी बाहर भी होगी। बेटा घर से बाहर जा रहा था, माँ ने कहा कुछ खा के जा। बेटा बोला, माँ बहुत जगह जाना है सब जगह कुछ न कुछ खाना पड़ेगा। उस दिन कहीं कुछ खाने को नहीं मिला। लौट कर माँ को बताया तो माँ ने कहा, बेटा! घर खीर तो बाहर खीर।

घर घर मटियारे चूल्हे हैं : झगड़े झंझट हर घर में हैं। मटियारे – मिटटी के।

घर घर मित्र न कर सको तो गाँव गाँव में एक। (घर घर मीत न कीजे, तो गाँव गाँव तो कीजे) : हर घर में मित्र न बना पाएं तो कम से कम हर गाँव में एक तो बनाएं।

घर घर शादी, घर घर गम (जहाँ ख़ुशी वहाँ रंज) : यह संसार है, जहाँ ख़ुशी है वहाँ कुछ न कुछ दुःख भी है।

घर चैन तो बाहर चैन : घर में सुख होगा तभी व्यक्ति तनाव रहित हो कर बाहर भी चैन से काम कर पाएगा।

घर जल गया तब चूड़ियाँ पूछीं : एक स्त्री ने नई चूड़ियाँ बनवाई। इत्तेफाक से किसी ने चूड़ियों के लिए पूछा ही नहीं। हताश हो कर उसने अपने घर में आग लगा ली और हाथ उठा उठा कर लोगों को दिखाने लगी कि देखो मेरे घर में आग लग गई। तभी किसी औरत का ध्यान उसकी चूड़ियों पर गया और उसने पूछ कि ये चूड़ियाँ तुमने कब बनवाईं। तब वह स्त्री बोली, बहन! पहले ही पूछ लेतीं तो मैं घर में आग क्यों लगाती।

घर जला कर उजाला कौन करता है : अर्थ स्पष्ट है।

घर जलेगा तो चूहे भी सुख नहीं पाएंगे : घर में आग लगती है तो घर को नुकसान पहुँचाने वाले चूहों को भी नुकसान ही होता है। देश विरोधी तत्वों को भी ऐसा सोच कर देश को आग में नहीं धकेलना चाहिए।

घर जाना हो तो पाँव नहीं दुखते : जब मन माफिक काम करना हो तो थकान नहीं होती।

घर तंग बहू जबरंग : घर में साधनों की कमी और बहू खर्चीली।

घर तो नागर बेल पड़ी, पड़ोसन  को खोसै फूस : अपने पास सब कुछ होते हुए भी दूसरे की तुच्छ वस्तुओं को भी हड़पता है।

घर पर काम, कूएँ पर विश्राम : 1. उल्टा काम। कायदे में कुएँ पर काम और घर पर आराम होना चाहिए।  2. कोई व्यक्ति घर पर काम करने को कहा जाएगा इस डर से कुएँ पर जा कर लेटा है।

घर फूंक कर छत्ता जलाना (घर फूंक कर बर्रैया मारे) : बर्र के छत्ते को जलाने के लिए घर में आग लगाने वाले के लिए। छोटी मुसीबत से छुटकारा पाने के लिए बड़ा नुकसान उठाना।

घर फूटे गँवार लूटे : अगर घर में फूट पड़ जाए मूर्ख से मूर्ख व्यक्ति भी आप को लूट सकता है।

घर फूटे घर जाए : आपसी फूट से घर बर्बाद होता है।

घर बार तुम्हारा, ताला चाबी हमारा : किसी का झूठा आदर सत्कार करना। सास भी नई बहू से ऐसे ही कहती है।

घर बैठे आधा भला : घर बैठे थोड़ा लाभ भी मिल जाए तो वह बाहर भटक कर मिलने वाले अधिक लाभ से अच्छा है।

घर बैठे गंगा आई : बड़े भाग्य से लोगों को गंगा में नहाने को मिलता है। किसी के घर में ही गंगा आ जाए तो इससे बड़ा भाग्य क्या होगा। बैठे बिठाए किसी को कोई बहुत बड़ी चीज़ मिल जाए तो यह कहावत कही जाती है।

घर भर दढ़ियल, चूल्हा कौन फूंके : दढ़ियल – दाढ़ी वाला। लम्बी दाढ़ी वाला व्यक्ति चूल्हा फूंकता है तो दाढ़ी में आग लगने का डर रहता है। घर के सभी लोगों में कोई न कोई ऐब है तो घर का काम कौन करेगा।

घर भाड़े, हाट भाड़े, पूंजी लागे ब्याज, मुनीम बैठा रोटी झाड़े, दीवाला निकले कैसी लाज : घर किराए का, दूकान किराए की, पूंजी उधार की जिस पर ब्याज लग रहा है, नौकर चाकरों को तनखाह भी दे रहे हैं, अब दीवाला निकलने में क्या देर है।

घर भी बैठो और जान भी खाओ : निकम्मे पति से परेशान महिला का कथन।

घर मिले तो वर न मिले और वर मिले तो घर न मिले : कन्या के लिए वर ढूँढने जाएँ तो यह ख़ास परेशानी होती है, जहाँ वर अच्छा हो वहाँ घर अच्छा नहीं होता और जहाँ घर अच्छा हो वहाँ वर अच्छा नहीं होता।

घर में अंधियारा, घुड़साल में दिया : (बुन्देलखंडी कहावत) 1. उल्टा काम, घर में अँधेरा है लेकिन घुड़साल में दिया जला रहे हैं। 2. घुड़साल जैसी महत्वपूर्ण जगह पर दिया जलाना आवश्यक है चाहे घर में अँधेरा हो। (पहले अर्थ से उल्टा)

घर में आई जोय, टेढ़ी पगड़ी सीधी होय : शादी के बाद टेढ़े भी सीधे हो जाते हैं।

घर में उजियारी घरवाली से : घर की शोभा गृहिणी से ही होती है।

घर में कसाला। ओढ़े दुशाला : कसाला – तंगी, खाने की कमी। घर में तंगी होते हुए भी फिजूलखर्ची करना।

घर में कोल्हू, तेली खाय सूखा : जो तेली सब के लिए तेल निकालता है वही बेचारा रूखा सूखा खाता है। जहां चीज़ की बहुतायत होनी चाहिए वहीं उसका अभाव हो तो।

घर में खरच न, ड्योढ़ी पर नाच : कुछ न होते हुए भी दिखावा करना। (पहले जमाने में रईस लोग आम लोगों के मनोरंजन के लिए अपने घर के बाहर नाच आदि का आयोजन करते थे)।

घर में खाने का टोटा, तिस पर पाहुनों की मार : एक तो घर में खाने की कमी है ऊपर से बहुत सारे मेहमान आ गए हैं।

घर में घर, लड़ाई का डर : एक घर में दो परिवार रहते हों तो लड़ाई होने की काफी संभावना रहती है।

घर में चाकी, घर में चूल्हा, पर घर पीसे जाय, पड़ोसन से लगी बतियाने, आटा कूकर खाय : जो लोग घर में साधन होते हुए भी दूसरों के यहाँ चक्कर लगाते है और बातें करने में समय गंवाते हैं उन का घर बर्बाद हो जाता है।

घर में चिराग नहीं, बाहर मशाल : घर में कुछ न होते हुए भी तडक भडक और दिखावा करना।

घर में चूहों की एकादशी : बहुत अधिक गरीबी। (चूहों तक को व्रत रखना पड़ रहा है)।

घर में जनाना पैर तो टिका : एक आदमी इस बात से बहुत परेशान था कि उस की शादी नहीं हो पा रही थी। एक बार पड़ोस की मुर्गी उस के घर में घुस गई। किसी ने आवाज़ दे कर उस से कहा कि तेरे घर में मुर्गी घुस गई है, जल्दी निकाल दे। वह बड़े इत्मीनान से बोला, कोई बात नहीं, अच्छा शगुन है, घर में कोई जनाना पैर तो टिका।

घर में जो शहद मिले, काहे को वन जाए : आवश्यकता की वस्तु घर में ही उपलब्ध हो तो बाहर क्यों भटकना पड़े।

घर में जोरू का नाम महारानी रख लो : अपने घर में कुछ भी करो, कौन रोकने वाला है। (जैसे एक सज्जन ने कोई समिति बनाई और अपने को उसका राष्ट्रीय अध्यक्ष बना लिया)।

घर में तो फाका पड़े, साधू न्यौतन जाए : घर वालों को खाने के लाले पड़ रहे हैं और साधु को निमंत्रण देने जा रहे है। मूर्खता भी और अंधविश्वास भी।

घर में दवा, हाय हम मरे : सब कुछ होते हुए भी व्यर्थ का रोना।

घर में दिया जला कर चौराहे पर (मस्जिद में) दिया जलाना : सामाजिक कार्य करने से पहले अपने घर की न्यूनतम आवश्यकताएं पूरी करना चाहिए।

घर में दिया न बाती, मुंडो फिरें इतराती : घर में कुछ न होते हुए भी झूठी शान दिखाना।

घर में देखो चलनी न छाज, बाहर मियाँ तीरंदाज़, (घर में देखी छलनी न छाज, बाहर मियाँ तीरंदाज़) : घर में कुछ नहीं है, बाहर तीस मार खां बने घूमते हैं।

घर में धन आता है, लोग हंसें तो हंसने दो, हलवा खाते दांत घिसें तो घिसने दो : कोई काम करने से घर में धन आता है और लोग उस पर हंसते हैं तो हंसने दो। किसी काम में अत्यधिक सुख मिलता है और थोड़ा सा नुकसान भी है तो होने दो।

घर में धान न पान, बीबी को बड़ा गुमान : घर में आवश्यकता की चीजें भी नहीं हैं पर बीबी जी को बड़ा घमंड है।

घर में नहीं दाने, शादी चले रचाने : घर मे कुछ न होते हुए भी बड़े बड़े आयोजन करने की सोचना।

घर में नारी आंगन सोवे, रन में चढ़ के छत्री रोवे, रात को सतुआ करे बियारी, घाघ मरे तिन्ह की महतारी : जो घर में पत्नी के होते हुए आंगन में सोता है, जो क्षत्रिय रण में रोता है, जो कोई रात में सत्तू का सेवन करता है, इन सब की माएं रो रो के मर जाती हैं।

घर में नाहीं चून चने को ठाकुर बड़ियाँ खावें, मुझ दुखिया पे धोती नाहीं कुत्ता झूल सियावें : घर में चने का आता तक नहीं है और ठाकुर को बड़ियाँ खाने की सूझ रही है, पत्नी के पास ढंग की धोती नहीं है और कुत्ते के लिए झूल सिल्वा रहे हैं। जहाँ तंगी भी हो और कुप्रबंधन भी हो.

घर में बबूल बोए तो पांवों में कांटे तो गड़ेंगे ही : गलत काम का बुरा ही परिणाम.

घर में बीवी पान नरंगी, बाहर मियाँ कलुआ भंगी : घर में बीवी खूब बन ठन के रहती हैं और बाहर पति बड़ी दीन हीन हालत में काम कर रहा है। भंगी शब्द पर बहुत से लोगों को आपत्ति हो सकती है, पर इससे इतना तो मालूम होता ही है कि उस समय सफाई सेवकों की दशा खराब थी।

घर में ब्याह, बहू कंडों को डोले : घर में कोई बहुत बड़ा काम होना है और घर के महत्वपूर्ण व्यक्ति को छोटे से काम में लगा दिया है।

घर में भूँजी भाँग नहीं, बाहर करता नाच : घर में कुछ नहीं है, बाहर दिखावा करते घूम रहे हैं।

घर में महुआ की रोटी, बाहर लम्बी धोती : घर में गरीबी का यह आलम है कि महुआ जैसे घटिया अनाज की रोटी खा रहे हैं, और बाहर दिखावे के लिए लम्बी धोती पहन रखी है।

घर में मूसे दंड पेलें, बाहर मिर्ज़ा होली खेलें : घर में इतना कुप्रबंधन है कि चूहों की मौज हो रही है, और गृहस्वामी बाहर होली खेल रहे हैं।

घर में शेर, बाहर भेड़ (राजस्थानी कहावत) : घर के लोगों पर रौब झाड़ना और बाहर भीगी बिल्ली बन जाना।

घर में संटी, बच्चे पिटने को तरसें : घर में अनुशासन लागू न किया या जाए तो बच्चे बिगड़ जाते हैं।इंग्लिश में कहावत है – spare the rod and spoil your child.

घर में साला दीवार में आला, आज नहीं तो कल दीवाला (भीत में आला और घर में साला ठीक न होते) : दीवार में आला होने से दीवार कमज़ोर होती है और घर में साले के रहने से घर कमजोर होता है। महाभारत का शकुनि सबसे बड़ा उदाहरण है।

घर में ही औलिया घर में ही भूत : औलिया – भूत भगाने वाला। बीमारी भी घर में है और डॉक्टर भी।

घर मेरो दूर गागर सिर भारी : काम मुश्किल भी है और जल्दी निबटने वाला भी नहीं है।

घर यार का, पूत भतार का : दुश्चरित्र स्त्री के लिए जो गैर पुरुष से संबंध रखती है पर पुत्र को पति का बताती है।

घर रहे घर की खाय, बाहर रहे तो भी घर को खाय : निठल्ले आदमी के लिए।

घर रहे न तीरथ गए, मूंड मुंड़ा के जोगी भए (फजीहत भए) : मूंड मुंडा के घर के भी नहीं रहे और न ही तीरथ कर के जोगी बन पाए। बेकार में अपनी फजीहत करा ली।

घर ला चीज़ उतनी, काम आवे जितनी : उतना ही सामान घर में लाना चाहिए जितना काम आए। अनावश्यक वस्तुओं का ढेर नहीं लगाना चाहिए।

घर सब से उत्तम, पूरब हो के पच्छम : सबसे आराम दायक जगह घर ही है चाहे वह कहीं भी हो।

घर सुधारयां गांव सुधरे : (राजस्थानी कहावत) हर व्यक्ति अपना घर संभाल ले तो पूरा गाँव ठीक हो जाएगा।

घर से खेत कितना, जितना खेत से घर : किसी बात का सीधा जवाब न देना।

घर से घर नहीं चलता : 1. आप किसी की सहायता कर सकते हैं पर उसका पूरा खर्च नहीं उठा सकते। 2. घर का मुखिया घर में ही बैठा रहेगा तो घर नहीं चल सकता।

घर से निकली बेटी को जम ले जाय या जमाई, वह घर लौट कर नहीं आती : पहले के जमाने में यह मान्यता थी की स्त्री की मायके से डोली उठनी चाहिए और ससुराल से सीधे अर्थी ही उठनी चाहिए।

घर ही में वैद, मरे कैसे : मूर्खता पूर्ण प्रश्न। मृत्यु तो अवश्यम्भावी है, खुद वैद्य को भी एक दिन मरना है।

घर हीना देना पर वर हीना मत देना : लड़की अपने माता पिता से कहती है कि एक बार को मुझे कमजोर घर में दे देना, पर निखट्टू वर को मत दे देना।

घरनी बिना घर कैसा : घर गृहणी से ही होता है। (बिन घरनी घर भूत का डेरा)।

घरवाले का एक घर, निघरे के सौ घर : गृहस्थ व्यक्ति का एक ही घर होता है, घर विहीन व्यक्ति के लिए हर जगह घर है।

घरै बाबरा, बाहर सयाना : ऐसे व्यक्ति के लिए जिस के गुणों की कद्र उस के घर वाले न करते हों।

घाघरे का चीलर, पालते बने न निकालते बने : घाघरे में चीलर लग जाए तो सब के सामने निकाल भी नहीं सकती और न निकाले तो वह काटता रहेगा। कोई संबंधी यदि नीचता पर उतारू हो जाए तो।

घाघरे का रिश्ता : पत्नी की तरफ के रिश्तेदार।

घाट-घाट का पानी पी के होखल बड़का संत : (भोजपुरी कहावत) जगह जगह मुंह मारते हैं और अपने को बड़ा संत घोषित करते हैं।

घाटा डेढ़ हजार का, नाम हजारी लाल : गुण के विपरीत नाम। कहावत उस समय की है (जब हजार रूपये बहुत बड़ी रकम होती थी)।

घाटी का पानी पहाड़ पर नहीं चढ़ता : कोई असम्भव बात कर रहा हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए।

घाटे में बनिया बही टटोले : बनिया घाटे में चल रहा होता है तो अपना पुराना बही खाता टटोलता है कि शायद किसी पर लेनदारी निकल आए।

घायल की गति घायल जाने, और न जाने कोय : दुखी व्यक्ति की हालत दुखी ही जानता है.

घायल दुश्मनों में, साँस ले तो मरे साँस न ले तो मरे : घायल व्यक्ति दुश्मनों के बीच में सांस रोक के पड़ा है, अगर सांस लेगा तो दुश्मन समझ जाएंगे कि वह जिन्दा है और उसे मार डालेंगे। अगर सांस नहीं लेगा तब भी मर जाएगा। बहुत बड़ी दुविधा में फंसे व्यक्ति के लिए।

घाव भर जाता है पर निशान रह जाता है : किसी ने आप के साथ दुर्व्यवहार किया हो और समय के साथ आप उसे भूल जाएं तो भी उस की कसक मन में रहती है।

घाव से टीस बड़ी : जब शरीर के घाव से मन का घाव बड़ा हो।

घास काटने जाए और कसार का तोसा : कसार – घी, आटे, बूरा और मेवा से बनने वाली मिठाई, तोसा – काम पर जाने वाले जो खाना ले जाते हैं। किसी काम में जितनी कमाई न हो उससे ज्यादा खर्च करना।

घास की छाया कितनी : छोटे आदमी से कितना सहारा हो सकता है।

घिरी हुई बिल्ली कुत्ते से पंजा लड़ाती है : संकट में फंसा व्यक्ति अपने से अधिक ताकतवर से भी भिड़ जाता है।

घिस घिस कर ही गोल होता है : नदी के साथ बहने वाले पत्थर घिस कर गोल हो जाते हैं। कुछ बनने के लिए कष्ट उठाने पड़ते हैं।

घिसे बिना चमक कहाँ। लकड़ी और पत्थर को घिसने पर ही चमक आती है : उन्नति करने के लिए कष्ट उठाना आवश्यक है।

घी कबीरा खा गया, छाछ पाई संसार : ज्ञान का घी कबीर ने चख लिया, दुनिया को बची हुई छाछ ही मिली है।

घी कहाँ गया, खिचड़ी में, खिचड़ी कहाँ गई, पेट में : किसी वस्तु का सही काम में उपयोग हो जाना।

घी का चूरमा, भैरों जी को भाए न : भैरों जी को तेल का चूरमा ही चढ़ाया जाता है। अगर कोई बच्चा घर के स्वादिष्ट और स्वास्थ्य प्रद भोजन के स्थान पर बाजार का चटर पटर खाने को मांगे।

घी का लड्डू टेढो भलो : उपयोगी वस्तु देखने में अच्छी न भी तो भी ठीक लगती है।

घी की हंडिया से बेटों को जिमाए, खट्टी छाछ बेटियों को खिलाए : पुराने समय में बेटों और बेटियों में बहुत भेदभाव होता था।

घी खाने से ताकत आती है, लगाने से नहीं : अर्थ स्पष्ट है।

घी खावत बल तन में आवे, घी आँखों की जोत बढ़ावे : पहले के लोग मानते थे कि घी खाने से शरीर में ताकत आती है और आँखों की ज्योति बढ़ती है। वैसे आँखों की ज्योति वाली बात ठीक भी है क्योंकि घी में विटामिन ‘ए’ होता है।

घी खिचड़ी का मेल : एक दूसरे का महत्व बढ़ाने वाली दो चीजों का मेल।

घी गिर गया, मुझे रूखी भाती है : घी गिर गया तो समझदारी इसी में है कि यह कहें हमें तो रूखी रोटी पसंद है। (मजबूरी का नाम महात्मा गांधी),

घी गुड़ आटा तेरा, फूंक आग और पानी मेरा : बिना लागत लगाए साझा करने की कोशिश करना।

घी गुड़ मीठा या दुलहन : बरातियों को अच्छा खाना प्रिय है पर दूल्हे को तो दुल्हन ही अधिक प्रिय है।

घी जाट का और तेल हाट का : घी गाँव से लिया अच्छा होता है क्यों कि ताज़ा होता है और मिलावट की संभावना कम होती है, तेल बाजार से लिया अधिक अच्छा होता है क्यों कि साफ़ किया हुआ होता है।

घी जिमावे सास, पोतों की आस : सास बहू को घी खिलाती है, जिससे उसकी संतान (पोता) हृष्ट पुष्ट हो।  

घी डालते कौन मना करता है : अपने भले के लिए कौन मना करता है।

घी डाले आग नहीं बुझती : आग में घी डालना एक मुहावरा है जिसका अर्थ है लड़ाई को और भड़काना। कहावत का अर्थ है कि लड़ाई को और भड़काने वाला काम करोगे तो लड़ाई शांत नहीं होगी।

घी तो निकल गया, छाछ ही बची है : किसी संगठन में से श्रेष्ठ व्यक्तियों के निकल जाने पर यह कहावत बोली जाएगी।

घी न खाया, कुप्पा तो बजाया : कुप्पा – बड़ा मटका। कुप्पे को उंगली से बजा कर देखते हैं कि वह कितना भरा है। यह कहावत उसी प्रकार है जैसे ब्याह नहीं किया तो क्या, बारात तो गए हैं।

घी नहीं है तो कुप्पा ही बजाओ : अभावों में समय काटना हो तो समझदारी इसी में है।

घी बिना रूखा कसार, बच्चों बिना सूना संसार : अर्थ स्पष्ट है।

घी भी खाएं तो खेसारी की दाल में : खेसारी की दाल घटिया मानी जाती है। उस में घी डाल कर खाना घी का अपमान करना है।

घी भी खाओ और पगड़ी भी रखो (घी खाना है तो पगड़ी रख कर खाओ) :  अच्छा खाना सब चाहते हैं लेकिन उसके लिए अपनी प्रतिष्ठा पर आंच मत आने दो।

घी मिले तो गोड़ चलें : पुराने लोग मानते थे कि घी खाने से ही ताकत आती है। गोड़ – घुटने।

घी शक्कर और दूध की मलाई हो, सात भाइयों में कमाई सवाई हो, घर में सोना चांदी हो बाजार में हुंडी चले, इतना दे दो प्रभु कुछ और मिले ना मिले : सब कुछ मांग रहे हैं और कह रहे हैं कि प्रभु बस इतना दे दो।

घी सम्हाले ताहरी, नाम बहू को होए : नई बहू से ताहरी बनाने के लिए कहा गया। उसने खूब सारा घी डाल कर बढ़िया ताहरी बना दी। सबने ताहरी की तारीफ़ की तो सास ने जल कर यह बात कही। जरूरत से अधिक साधनों का उपयोग कर के कोई काम किया जाए तो यह कहावत कहते हैं। इसको ऐसे भी कहते हैं – घी संवारे काम, बड़ी बहू को नाम।

घुसिया हाकिम, रुसिया चाकर : हाकिम घूसखोर हैं और उनका नौकर तुनक मिजाज है। रुसिया – गुस्सा करने वाला।

घूँघट का मर्म गँवार कया जाने (घूँघट का भार, क्या जाने गंवार) : मूर्ख व्यक्ति स्त्री की मर्यादा और महत्व को नहीं समझ सकता।

घूँघट की मर्यादा तो मूँछ की भी मर्यादा (घूँघट का मान, मूँछों की शान) : पुरुष यदि स्त्री का सम्मान करेगा तभी उसका सम्मान होगा।

घूँघट में मकखी गटके : पर्दे की ओट में गलत काम करने वालों के लिए।

घूँघट से सती नहीं, मूंड मुंडाए जती नहीं : घूँघट कर लेने मात्र से कोई स्त्री पतिव्रता नहीं बन जाती और सर मुंडा लेने से कोई योगी नहीं हो जाता।

घूमे सो चरे, बंधा भूखा मरे : जो जानवर आजाद है वह तो इधर उधर मुंह मार कर पेट भर लेता है पर जो खूंटे से बंधा है उसे खाना न मिले तो वह तो भूखा ही मरेगा। यही बात इंसानों पर भी ठीक बैठती है।

घूर में पड़ा हीरा भी कूड़ा : व्यक्ति का महत्व उसके स्थान से होता है।

घूरे का हंस (घूरे का रत्न) : किसी गलत स्थान पर पड़ा हुआ कोई उत्तम वास्तु या व्यक्ति।

घूरे की गाय, कूड़ा ही खाय : ओछी संगत में पड़ कर श्रेष्ठ व्यक्ति भी ओछे काम ही करता है।

घूरे के साथ गोबर खुश : ओछा व्यक्ति उसी प्रकार के परिवेश में खुश रहता है।

घूरे पर उगा आम का पेड़ : किसी निकृष्ट व्यक्ति के घर अच्छी संतान का जन्म लेना।

घूरे पर घूरा पड़ता है : जहाँ एक बार कूड़ा डालना शुरू कर दो वहाँ सभी लोग कूड़ा डालने लगते हैं। कोई व्यक्ति एक बार गलत काम करना शुरू कर दे तो उसे वैसा ही काम करने वाले लोग मिलने लगते हैं।

घूरे पर भी मेंह बरसे और महलों पर भी : ईश्वर की कृपा सब पर बराबर से बरसती है.

घूस चलती तो बनिया यमराज को भी घूस दे देता (घूस दिए मौत टले तो बनिया यमराज से भी न चूके) : यदि परलोक में घूस देने की कोई व्यवस्था होती तो बनिया वहाँ भी घूस दे कर अपना काम निकाल लेता।

घोड़ा और फोड़ा, जितना सहलाओ उतना बढ़ते हैं : फोड़े को सहलाना नहीं चाहिए यह सीख देने के लिए यह कहावत कही गई है। यह भी बताया गया है कि घोड़े का बच्चा भी मालिश करने से जल्दी बड़ा होता है।

घोड़ा को चढ़इया चूक जात, राजा को सिपहिया चूक जात, धन को धरैय्या चूक जात, चूकत नहीं चुगला चुगलखोरी सों : (बुन्देलखंडी कहावत) घोड़े पर चढ़ने वाला घुड़सवार चूक सकता है, राजा का सिपाही चूक सकता है, धन को रखने वाला चूक सकता है, पर चुगलखोर चुगली करने से नहीं चूकता।

घोड़ा घास से यारी करेगा तो खायगा क्या : यह एक बड़ी व्यवहारिक सी बात है की घोड़ा घास से दोस्ती नहीं कर सकता, वरना वह खाएगा क्या। कोई डॉक्टर अगर मरीज से फीस न ले तो यह कहावत कही जाएगी।

घोड़ा चले चार घड़ी, ब्याज चले आठ घड़ी : उधार के पैसे का ब्याज दिन दूना रात चौगुना बढ़ता है।

घोड़ा चाहिए विदा को, लौटते पे आना : जाने के लिए घोड़े की जरूरत है, जिससे मांगने गए वह कह रहा है कि लौटते पे ले लेना। जरूरत पर चीज़ न देने के लिए बहाना बनाना।

घोड़ा दौड़े या घोड़ी दौड़े कौन जाने : बहुत सी बातों का अंदाज दूर से नहीं लगाया जा सकता।

घोड़ा पहचाने सवार को : कोई नया सवार जैसे ही घोड़े पर बैठता है घोड़ा उसके हावभाव से तुरंत पहचान लेता है कि सवार कितना काबिल है। ऐसे ही मातहत कर्मचारी नए हाकिम की आदतों को तुरंत भांप लेते हैं।

घोड़ा पालूं और पैदल चलूँ : अगर घोड़ा पालने के बाद भी पैदल चलना पड़े तो घोड़ा पालने का क्या फायदा हुआ। (कुत्ता पाले और पहरा दे)

घोड़ा भला न लांगड़ा, रूख भला न झांगड़ा : लंगड़ा घोड़ा अच्छा नहीं होता और पेड़ के नाम पर झाड़ झंखाड़ अच्छा नहीं होता।

घोड़ा भेज के वैद बुलाए, मर्ज घटा तो पैदल पठाए : काम निकल जाने के बाद कोई नहीं पूछता।

घोड़ा है पर सवार नहीं : साधन तो हैं पर उनका उपयोग करने वाला सही व्यक्ति कोई नहीं है।

घोड़ा, टट्टू, गज, गऊ, पूत, मीत, धन, माल, कोऊ संग न जात है, जब लै जिउ निकाल : जब यमराज प्राण लेने आते हैं तो किसी भी प्रकार का धन और मित्र व सम्बन्धी साथ नहीं जाते।

घोड़ा, मर्द और मकौड़ा, पकड़ने के बाद छोड़ते नहीं : अर्थ स्पष्ट है।

घोड़ी नहलाएँ या पानी पिलाएँ : काम करने में बहाने बनाने वालों के लिए।

घोड़े का गिरा संभल सकता है, नजरों का गिरा नहीं : एक बार किसी का विश्वास खो देने पर दोबारा लौट कर नहीं आ सकता।

घोड़े का हठ और औरत का हठ एक समान : अर्थ स्पष्ट है।

घोड़े की दुम बढ़ेगी तो अपनी ही मक्खियाँ उड़ाएगा : क्षुद्र मनोवृत्ति का व्यक्ति उन्नति करेगा तो खुद अपना ही भला करेगा, किसी और काम नहीं आएगा।

घोड़े की नालबाजी में गदही पैर बढ़ावे (घोड़े के नाल ठुकती देख मेंढकी ने भी पंजा बढ़ा दिया) : घोड़ों के पैर सड़क पर दौड़ने से घिस न जाएं इसके लिए उनके पैर में लोहे की नाल ठोंकी जाती है। घोड़े के नाल ठुकती देख कर गदही या मेंढकी ने भी अपना पैर आगे कर दिया। कोई मूर्ख और कमजोर आदमी बुद्धिमान और शक्तिशाली आदमी की बराबरी करने की कोशिश करे तो यह कहावत कही जाती है।

घोड़े की पूँछ पकड़ूँ क्या दोगे, के घोड़ा खुद ही दे देगा : मूर्खतापूर्ण प्रश्न पूछने वालों पर व्यंग्य।

घोड़े की लात से घोड़े नहीं मरते : किसी बेईमान के हथकंडों से बेईमानों का नुकसान नहीं होता।

घोड़े की सवारी और गठरी सिर पर : कोई व्यक्ति घोड़े की पीठ पर बैठा हो और गठरी अपने सर पर रखे हो वह निपट मूर्ख ही कहा जाएगा।

घोड़े की सवारी, चलता जनाजा : घोड़े की सवारी खतरनाक होती है।

घोड़े को लात, आदमी को बात : घोड़े को लात की भाषा ही समझ में आती है (घोड़े को दौड़ाने के लिए एड़ लगाते हैं), जबकि मनुष्य को बातों से समझाया जा सकता है। यहाँ घोड़े से मतलब मूर्ख या नीच आदमी से भी है।

घोड़े घोड़े लड़ें, मोची का जीन टूटे : दो व्यक्तियों की लड़ाई में नुकसान किसी तीसरे का हो तो।

घोड़े तो असवारों से ही दबते हैं : घोड़ा कितना भी शक्तिशाली और उच्छ्रंखल क्यों न हो, अच्छे सवार उसे काबू कर लेते हैं।

घोड़े भैंसे की लाग : दो बड़े आदमियों की टक्कर।

घोड़े मर गए, गधों का राज आया : योग्य व्यक्ति नहीं रहे, अब मूर्खों का राज है।

घोड़े से गिर गिर कर ही घुड़सवार बनता है : चोट खा कर ही आदमी कुशल और मजबूत बनता है।

घोड़ों का घर कितनी दूर : यदि आप काम करना चाहते हैं तो साधन कितनी भी दूर क्यों न हो आप उस तक पहुँच जाएँगे, यदि नहीं करना चाहते हैं तो साधन कितनी भी पास क्यों न हो आप बहाने बनाते रहेंगे। इसी प्रकार की दूसरी कहावत है – जहाँ चाह वहाँ राह।

घोड़ों का दाना गधों को नहीं खिलाया जाता : उत्तम सुविधाएँ प्राप्त करने के लिए उनके योग्य होना जरूरी है।

घोड़ों की शोभा घुड़सवारों से : घोड़ा कितनी भी अच्छी नस्ल का क्यों न हो, उसकी शोभा अच्छे सवार से ही होती है।

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