पदावली : संत मीरा बाई (भाग-3)

Padavali : Sant Meera Bai (Part-3)

1. चरन रज महिमा मैं जानी

चरन रज महिमा मैं जानी।

याहि चरनसे गंगा प्रगटी।
भगिरथ कुल तारी॥१॥
याहि चरनसे बिप्र सुदामा।
हरि कंचन धाम दिन्ही॥२॥
याहि चरनसे अहिल्या उधारी।
गौतम घरकी पट्टरानी॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर।
चरनकमल से लटपटानी॥४॥

2. चालने सखी दही बेचवा जइंये

चालने सखी दही बेचवा जइंये, ज्या सुंदर वर रमतोरे॥टेक॥
प्रेमतणां पक्कान्न लई साथे। जोईये रसिकवर जमतोरे॥१॥
मोहनजी तो हवे भोवो थयो छे। गोपीने नथी दमतोरे॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। रणछोड़ कुबजाने गमतोरे॥३॥

3. चालां पण या जमणा कां तीर

चालां पण या जमणा कां तीर।।टेक।।
वा जमणा का निरमल पाणी, सीतल होयां सरीर।
बँसी बजावां गावां कान्हां, संग लियां बलवीर।
मीर मुगट पीताम्बर सोहां, कुण्डल झलकणा हीर।
मीरां रे प्रभु गिरधरनागर, क्रीड्या संग बलवीर।।

(चालां=चलो, तीर=किनारा, सीतल=ठण्डा,दुःख
विहीन, कान्हां=कृष्ण, हीर=हीरा, क्रीड्या=खेलते हैं)

4. चालां वाही देस प्रीतम

चालां वाही देस प्रीतम, पावां चालां वाही देस।।टेक।।
कहो कसूमल साड़ी रँगावाँ कहो तो भगवां भेस।
कहो तो मोतियन मांग भरावां, करों छिटकावां केस।
मीरां के प्रभु गिरधरनागर, सुणज्यो बिड़द नरेस।।

(चलां=चल, वाही=उसी, पावां=पांव, कसूमल=कुसुम
के रंग की लाल, छिटकावां=बिखरा दें, बिड़द=विरद,यश,
नरेश=नरेश,प्रियतम)

5. चालो अगमके देस कास देखत डरै

चालो अगमके देस कास देखत डरै।
वहां भरा प्रेम का हौज हंस केल्यां करै॥
ओढ़ण लज्जा चीर धीरज कों घांघरो।
छिमता कांकण हाथ सुमत को मूंदरो॥
दिल दुलड़ी दरियाव सांचको दोवड़ो।
उबटण गुरुको ग्यान ध्यान को धोवणो॥
कान अखोटा ग्यान जुगतको झोंटणो।
बेसर हरिको नाम चूड़ो चित ऊजणो॥
पूंची है बिसवास काजल है धरमकी।
दातां इम्रत रेख दयाको बोलणो॥
जौहर सील संतोष निरतको घूंघरो।
बिंदली गज और हार तिलक हरि-प्रेम रो॥
सज सोला सिणगार पहरि सोने राखड़ीं।
सांवलियांसूं प्रीति औरासूं आखड़ी॥
पतिबरता की सेज प्रभुजी पधारिया।
गावै मीराबाई दासि कर राखिया॥

पाठांतर
चालाँ अगमवा देस काल देख्याँ डराँ।
भरो प्रेम रा होज हंस केल्याँ कराँ।
साधा सन्त रो संग, ग्याण जुगताँ कराँ।
धराँ सांवरो ध्यान चित्त उजलो कराँ।
सील घूँघरां बाँध तोस निरता कराँ।

(केल्यां=खेल, बेसर,चूड़ो,बिंदली,गज,हार=
आभूषणों के नाम)

6. चालो ढाकोरमा ज‍इ वसिये

चालो ढाकोरमा ज‍इ वसिये। मनेले हे लगाडी रंग रसिये॥टेक॥
प्रभातना पोहोरमा नौबत बाजे। अने दर्शन करवा जईये॥१॥
अटपटी पाघ केशरीयो वाघो। काने कुंडल सोईये॥२॥
पिवळा पितांबर जर कशी जामो। मोतन माळाभी मोहिये॥३॥
चंद्रबदन आणियाळी आंखो। मुखडुं सुंदर सोईये॥४॥
रूमझुम रूमझुम नेपुर बाजे। मन मोह्यु मारूं मुरलिये॥५॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। अंगो अंग जई मळीयेरे॥६॥

7. चालो मन गंगा जमुना तीर

चालो मन गंगा जमुना तीर।
गंगा जमुना निरमल पाणी सीतल होत सरीर।
बंसी बजावत गावत कान्हो, संग लियो बलबीर॥
मोर मुगट पीताम्बर सोहे कुण्डल झलकत हीर।
मीराके प्रभु गिरधर नागर चरण कंवल पर सीर॥

8. चालो सखी मारो देखाडूं

चालो सखी मारो देखाडूं। बृंदावनमां फरतोरे॥टेक॥
नखशीखसुधी हीरानें मोती। नव नव शृंगार धरतोरे॥१॥
पांपण पाध कलंकी तोरे। शिरपर मुगुट धरतोरे॥२॥
धेनु चरावे ने वेणू बजावे। मन माराने हरतोरे॥३॥
रुपनें संभारुं के गुणवे संभारु। जीव राग छोडमां गमतोरे॥४॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। सामळियो कुब्जाने वरतोरे॥५॥

9. छोड़ मत जाज्यो जी महाराज

छोड़ मत जाज्यो जी महाराज॥
मैं अबला बल नायं गुसाईं, तुमही मेरे सिरताज।
मैं गुणहीन गुण नांय गुसाईं, तुम समरथ महाराज॥
थांरी होयके किणरे जाऊं, तुमही हिबडारो साज।
मीरा के प्रभु और न कोई राखो अबके लाज॥

पाठांतर
छोड़ मत जाज्यो जी महाराज ।।टेक।।
म्हा अबला बल म्हारो गिरधर, थें म्हारो सरताज।
म्हा गुणहीन गुणागार नागर, म्हा हिवड़ो रो साज।
जग तारण भोभीत निवारण, थें राख्यां गजराज।
हार्यां जीवन सरण रावलां, कठे जावां ब्रजराज।
मीरां रे प्रभु और णा कोई, राखा अब री लाज।।

(जाज्यो=जाओ, महाराज=प्रियतम,कृष्ण, गुणागार=
गुणों का समूह, हिवड़ रो=हृदय की, साज=शोभा,
भोभीत=भयभीत,संसार के दुःखों के कारण डर,
निवारण=दूर करने वाले, कठे=कहां)

10. छैल बिराणे लाख को हे अपणे काज न होइ

छैल बिराणे लाख को हे अपणे काज न होइ।
ताके संग सीधारतां हे, भला न कहसी कोइ।
वर हीणों आपणों भलो हे, कोढी कुष्टि कोइ।
जाके संग सीधारतां है, भला कहै सब लोइ।
अबिनासी सूं बालवां हे, जिपसूं सांची प्रीत।
मीरा कूं प्रभु मिल्या हे, ऐहि भगति की रीत॥

11. छोडो चुनरया छोडो मनमोहन

छोडो चुनरया छोडो मनमोहन मनमों बिच्यारो॥टेक॥
नंदाजीके लाल। संग चले गोपाल धेनु चरत चपल।
बीन बाजे रसाल। बंद छोडो॥१॥
काना मागत है दान। गोपी भये रानोरान।
सुनो उनका ग्यान। घबरगया उनका प्रान।
चिर छोडो॥२॥
मीरा कहे मुरारी। लाज रखो मेरी।
पग लागो तोरी। अब तुम बिहारी।
चिर छोडो॥३॥

12. जगमाँ जीवणा थोड़ा कुणे लयां भवसार

जगमाँ जीवणा थोड़ा कुणे लयां भवसार।।टेक।।
मात पिता जग जन्म दियां री, करम दियां करतार।
खायाँ खरचाँ जीवण जावाँ, कोई कर्या उपकार।
साधो संगत हरिगुण गास्या और णा म्हारी लार।
मीराँ रे प्रभु गिरधरनागर, थें बल उतर्या पार।।

(जगमाँ=जग में, कुणे=किस लिए, भवसागर=
संसार का बोध,मोह-ममता आदि का अनुराग,
करम=भाग्य, करतार=ईश्वर)

13. जब ते मोहि नन्दनन्दन दृष्टि पड्यो माई

जब ते मोहि नन्दनन्दन दृष्टि पड्यो माई।
तब से परलोक लोक कछु न सुहाई।
मोहन की चन्द्रकला सीस मुकुट सोहै।
केसर को तिलक भाल तीन लोक मोहै।।
कुण्डल की अलक झलक कपोलन पर छाई।
मानो मीन सरवर तजि मकर मिलन आई।।
कुटिल तिलक भाल चितवन में टोना।
खजन अरू मधुप मीन भूले मृग छोना।।
सुन्दर अति नासिका सुग्रीव तीन रेखा।
नटवर प्रभु वेष धरे रूप अति बिसेखा।।
अधर बिम्ब अरूण नैन मधुर मन्द हाँसी।
दसन दमक दाड़ि द्युति अति चपला सी।।
छुद्र घण्टिका किंकनि अनूप धुन सुहाई।
गिरधर के अंग-अंग मीरा बलि जाई।।

(मोहि=मुझको, नन्दनन्दन=कृष्ण,
चन्द्रकला=चाँद जैसी मूर्ति, मीन=मछली,
सरवर=तालाब, कुटिल=टेढ़ा, टोना=जादू,
मधुप=भौंरा, मृग-छोना=हिरन का बच्चा,
नासिका=नाक, सुग्रीव=सुग्रीवा,सुन्दर गर्दन,
बसेखा=विशेष, अधर-बिम्ब=दोनों होंठ,
अरूण=लाल, दसन=दशन,दांत, दाड़िम=
अनार, द्युति=दुति,ज्योति, चपला=बिजली,
छुद्र=छोटी, धुनि=ध्वनि)

14. जमुनाजीको तीर दधी बेचन जावूं

जमुनाजीको तीर दधी बेचन जावूं॥टेक॥
येक तो घागर सिरपर भारी दुजा सागर दूर॥१॥
कैसी दधी बेचन जावूं एक तो कन्हैया हटेला दुजा मखान चोर॥२॥
येक तो ननंद हटेली दुजा ससरा नादान॥३॥
है मीरा दरसनकुं प्यासी। दरसन दिजोरे महाराज॥४॥

15. जमुनामों कैशी जाऊं मोरे सैया

जमुनामों कैशी जाऊं मोरे सैया। बीच खडा तोरो लाल कन्हैया॥टेक॥
ब्रिदाबनके मथुरा नगरी पाणी भरणा। कैशी जाऊं मोरे सैंया॥१॥
हातमों मोरे चूडा भरा है। कंगण लेहेरा देत मोरे सैया॥२॥
दधी मेरा खाया मटकी फोरी। अब कैशी बुरी बात बोलु मोरे सैया॥३॥
शिरपर घडा घडेपर झारी। पतली कमर लचकया सैया॥४॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरणकमल बलजाऊ मोरे सैया॥५॥

16. जल कैशी भरुं जमुना भयेरी

जल कैशी भरुं जमुना भयेरी॥टेक॥
खडी भरुं तो कृष्ण दिखत है। बैठ भरुं तो भीजे चुनडी॥१॥
मोर मुगुटअ पीतांबर शोभे। छुम छुम बाजत मुरली॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चणरकमलकी मैं जेरी॥३॥

17. जल भरन कैशी जाऊंरे

जल भरन कैशी जाऊंरे। जशोदा जल भरन॥टेक॥
वाटेने घाटे पाणी मागे मारग मैं कैशी पाऊं॥१॥
आलीकोर गंगा पलीकोर जमुना। बिचमें सरस्वतीमें नहावूं॥२॥
ब्रिंदावनमें रास रच्चा है। नृत्य करत मन भावूं॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। हेते हरिगुण गाऊं॥४॥

18. जशोदा मैया मै नही दधी खायो

जशोदा मैया मै नही दधी खायो॥टेक॥
प्रात समये गौबनके पांछे। मधुबन मोहे पठायो॥१॥
सारे दिन बन्सी बन भटके। तोरे आगे आयो॥२॥
ले ले अपनी लकुटी कमलिया। बहुतही नाच नचायो॥३॥
तुम तो धोठा पावनको छोटा। ये बीज कैसो पायो॥४॥
ग्वाल बाल सब द्वारे ठाडे है। माखन मुख लपटायो॥५॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। जशोमती कंठ लगायो॥६॥

19. जसवदा मैय्यां नित सतावे कनैय्यां

जसवदा मैय्यां नित सतावे कनैय्यां, वाकु भुरकर क्या कहुं मैय्यां॥टेक॥
बैल लावे भीतर बांधे। छोर देवता सब गैय्यां॥१॥
सोते बालक आन जगावे। ऐसा धीट कनैय्यां॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। हरि लागुं तोरे पैय्यां॥३॥

20. जाके मथुरा कान्हांनें घागर फोरी

जाके मथुरा कान्हांनें घागर फोरी, घागरिया फोरी दुलरी मोरी तोरी॥टेक॥
ऐसी रीत तुज कौन सिकावे। किलन करत बलजोरी॥१॥
सास हठेली नंद चुगेली। दीर देवत मुजे गारी॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमल चितहारी॥३॥

21. जागो बंसी वारे जागो मोरे ललन

जागो बंसी वारे जागो मोरे ललन।
रजनी बीती भोर भयो है घर घर खुले किवारे।
गोपी दही मथत सुनियत है कंगना के झनकारे।
उठो लालजी भोर भयो है सुर नर ठाढ़े द्वारे ।
ग्वाल बाल सब करत कोलाहल जय जय सबद उचारे ।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर शरण आयाँ कूं तारे ॥

पाठांतर
जागो बंसीवारे ललना, जागो मोरे प्यारे।।टेक।।
रजनी बीती भोर भयो है, घर घर खूले किंवारे।
गोपी दही मथत सुनियत है, कँगना के झनकारे।
उछो लाल जी भोर भयो है, सुन रन ठाढ़े द्वारे।
ग्वाल बाल सब करत कुलाहल, जय जय सबद उचारे।
माखन रोटी हाथ में लीनी, गउधन के रखवारे।
मीराँ के प्रभु गिरधरनागर, सरण आयाँ कूँ तारे।।

(ललना=लाल, रजनी=रात, भोर=प्रभात,
किंवारे=किवाड़,द्वार, सुर=देवता)

22. जागो म्हांरा जगपतिरायक

जागो म्हांरा जगपतिरायक हंस बोलो क्यूं नहीं॥
हरि छो जी हिरदा माहिं पट खोलो क्यूं नहीं॥
तन मन सुरति संजोइ सीस चरणां धरूं।
जहां जहां देखूं म्हारो राम तहां सेवा करूं॥
सदकै करूं जी सरीर जुगै जुग वारणैं।
छोड़ी छोड़ी लिखूं सिलाम बहोत करि जानज्यौ।
बंदी हूं खानाजाद महरि करि मानज्यौ॥
हां हो म्हारा नाथ सुनाथ बिलम नहिं कीजिये।
मीरा चरणां की दासि दरस फिर दीजिये॥

23. जाणां रे मोहणा, जाणां मारी प्रीती

जाणां रे मोहणा, जाणां मारी प्रीती।।टेक।।
प्रेम भगती रो पैड़ा म्हारो अवरू ण जाणां रीत।
इमरत पाइ विषां क्यूँ बीज्यां कूँण गांव री रीत।
मीरां रे प्रभु हरि अविणासी, अपणो जणारो मीत।।

(मोहणा=मोह लेने वाले, पैड़ा=मार्ग, अवरू=दूसरी,
कूँण=किस)

24. जाण्याँ णा प्रभु मिलण बिध क्यां होय

जाण्याँ णा प्रभु मिलण बिध क्यां होय।।टेक।।
आया म्हारे आगणाँ फिर में जाण्या खोय।
जोवताँ मग रैण बीनां दिवस बीताँ जोय।
हरि पधाराँ आगणां गया में अभागण सोय।
बिरह व्याकुल अनल अन्तर कल णा पड़ता दोय।
दासी मीराँ लाल गिरधर मिल णा बिछडयाँ कोय।।

(क्यां=कैसे, जाण्या खोय=खोकर जाना, जोवतां=
देखते देखते, अनल=आग, अन्तर=हृदय, कलणां
पड़ता=चैन नहीं मिलता)

25. जान्यो मैं राजको बेहेवार उधव जी

जान्यो मैं राजको बेहेवार उधव जी।
मैं जान्यो ही राज को बेहेवार।
आंब काटावो लिंब लागावो।
बाबल की करो बाड॥ १॥
चोर बसावो सावकार दंडावो।
नीती धरमरस बार॥ २॥
मेरो कह्यो सत नही जाणयो।
कुबजाके किरतार॥ ३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर।
अद्वंद दरबार॥ ४॥

26. जावादे जावादे जोगी किसका मीत

जावादे जावादे जोगी किसका मीत।।टेक।।
सदा उदासी रहै मोरि सजनी, निपट अटपटी रीत।
बोलत वचन मधुर से मानूँ, जोरत नाहीं प्रीत।
मैं जाणूं या पार निभैगी, छांड़ि चले अधबीच।
मीरां के प्रभु स्याम मनोहर प्रेम पियारा मीत।।

(जावा दे=जाने दे, उदासी=उदासीन,
निपट=बिल्कलु)

27. जावो हरि निरमोहिड़ा

जावो हरि निरमोहिड़ा, जाणी थाँरी प्रीत ।।टेक।।
लगन लगी जब प्रीत और ही, अब कुछ अवली रीत।
अम्रित प्याय कै विष क्य दीजै, कूण गाँव की रीत ।
मीराँ कहै प्रभु गिरधरनागर, आप गरज के मीत।।

(निरमोहिड़ा=निर्मोही, अवली=दूसरा,उलटा, रीत=ढंग,
कूण गाँव की=किस स्थान की, गरज के=स्वार्थ के)

28. जोगिया जी आज्यो जी इण देस

जोगिया जी आज्यो जी इण देस।।टेक।।
नैणज देखूँ नाथ नै धाइ करूँ आदेस।
आया सावण भादवा भरीया जल थल ताल।
रावल कुण बिलमाई राखो, बिरहनि है बेहाल।
बरस्या बौहो दिन भया बल बरस्यौ पलक न जाई।
एक बेरी देह फेरी, नगर हमारे आइ।
वा मूरति म्हारे मन बसे छिन भरि रह्योइ न जाइ।
मीराँ के कोयई नाहिं दूजो, दरसण दीज्यौं आइ।।

(इण=इस, नैणज=नैनों से, आदेस=आदेश,निवेदन,
रावल=प्रियतम को, कुण=किसने, बिलमाई=रोक लिया,
बेहाल=अत्यंत दुखी, बरस्या=बिछुड़े हुए, बौहो=बहुत,
बल=अब, बरस्यौ=बिछड़ना, बेरी=बार)

29. जोगिया जी निसदिन जोऊं बाट

जोगिया जी निसदिन जोऊं बाट।।टेक।।
पाँ न चालै पंथ दूहेलो; आड़ा ओघट घाट।
नगर आइ जोगी रस गया रे, मो मन प्रीत न पाइ।
मैं भोली भोलापन कीन्हो, राख्यौ नहिं बिलमाइ।
जोगिया कूँ जोवत बोहो दिन बीता, अजहूँ आयो नांहि।
विरह बुझावण अन्तरि आवो, तपन लगी तन मांहि।
कै तो जोगी जग में नांही, कैर बिसारी मोइ।
कांई करूँ कित जाऊँरी सजनी नैण गुमायो रोइ।
आरति तेरी अन्तरि मेरे, आवो अपनी जांणि।
मीराँ व्याकुल बिरहिणी रे, तुम बिनि तलफत प्राणि।।

(जोऊं बाट=राह देखना,प्रतीक्षा करना, दूहेलो=विकट,
भयंकर, आड़ा=संकीर्ण, औघटघाट=विचित्र मार्ग, बिलमाइ=
प्रेम में फँसाना, बोहो=बहुत, गुमायो=नष्ट कर दिया,
आरति=लालसा, तलफत प्राणि=प्राण तड़पते हैं)

30. जोगिया ने कहज्यो जी आदेस

जोगिया ने कहज्यो जी आदेस।।टेक।।
जोगियो चतुर सुजाण सजनी, ध्यावै संकर सेस।
आऊंगी में नाह रहूँगी (रे म्हारा) पीव बिना परदेस।
करि करिपा प्रतिपाल मो परि, रखो न आपण देस।
माला मुदरा मेखला रे बाला, खप्पर लूँगी हाथ।
जोगिण होई जुग ढूँढसूँ रे, म्हाँरा रावलियारी साथ।
सावण आबण कह गया बाला, कर गया कौल अनेक।
गिणता-गिणता घँस गई रे, म्हाँरा आँगलिया रेख।
पीव कारण पीली पड़ी बाला, जोबन बाली बेस।
दास मीराँ राम भजि कै, तन मन कीन्हीं पेस।।

(आदेस=प्रार्थना,बिनती, ध्यावै=ध्यान करते हैं,
संकर=शंकर,महादेव, सेस=शेषनाग, प्रतिपाल=अनुगर्ह,
कृपा, मुदरा=मुद्रा,योगियों का एक आभूषण, मेखला=
करधनी,तड़ागी, बाला=बल्लभ,प्रियतम, रावलियारी=
अपने राजा के, कौल=वचन, आंगलिया=अंगुली की,
रेख=रेखायें, बाली=नवीन,नई, पेस=पेश,समर्पित)

31. जोगियारी प्रीतड़ी है दुखड़ा रो मूल

जोगियारी प्रीतड़ी है दुखड़ा रो मूल।।टेक।।
हित मिल बात बणावत मीठी, पीछै जावत भूल।
तोड़त जेज करत नहिं सजनी, जैसे चैमेली के फूल।
मीरां कहै प्रभु तुमरे दरस बिन, लगत हिवड़ा में सूल।।

(जोगियारी=जोगी की, प्रीतड़ी=प्रीती, दुखड़ा रो=
दुख का, मूल=जड़,कारण, जेज=देर, सूल =काँटे)

32. जोगिया से प्रीति कियां दुख, होई

जोगिया से प्रीति कियां दुख, होई।।टेक।।
प्रीत कियां सुख ना मोरी सजनी, जोगी मित न कोइ।
रात दिवस कल नाहिं परत है, तुम मिलियां बिनि मोइ।
ऐसी सूरत या जग माहीं फेरि न देखी सोइ।
मीरां रे प्रभु कबरे मिलोगे, मिलियां आणद होइ।।

(मित=मित्र,वफादार, आणद=आनन्द)

33. जोगी मत जा मत मत जा

जोगी मत जा मत मत जा, पांई परूँ मैं तेरी चेरी हौं।।टेक।।
प्रेम भगति की पैड़ी ही प्यारा, हमको गैल बता जा।
अगर चँदण की चिता बणाऊं, अपणे हाथ जला जा।
जल बल भंई भस्म की ढेरी, अपणे अंग लगा जा।
मीरां कहै प्रभु गिरधरनागर, जोत में जोत मिला जा।।

(चेरी=दासी, पैड़ी=मार्ग, गैल=रास्ता, जोत=ज्योति)

34. जोगी मेरो सांवळा कांहीं गवोरी

जोगी मेरो सांवळा कांहीं गवोरी॥टेक॥
न जानु हार गवो न जानु पार गवो। न जानुं जमुनामें डुब गवोरी॥१॥
ईत गोकुल उत मथुरानगरी। बीच जमुनामो बही गवोरी॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमल चित्त हार गवोरी॥३॥

35. जोगी म्हाँने, दरस दियाँ सुख होइ

जोगी म्हाँने, दरस दियाँ सुख होइ।
नातिर दुख जग माहिं जीवड़ो, निस दिन झूरै तोइ।
दरद दिवानी भई बाबरी, डोली सबही देस।
मीराँ दासी भई है पंडर पलट्या काला केस।।

(जोगी=प्रियतम, म्हाँने=मुझको, नातिर=नहीं तो,
झूरै=व्याकुल करना। तोइ=तेरे लिए, पंडर=सफेद,
पलट्या=बदल गया, केस=बाल)

36. जो तुम तोड़ो पियो मैं नही तोड़ूँ

जो तुम तोड़ो पियो मैं नही तोड़ूँ।
तोरी प्रीत तोड़ी कृष्ण कोन संग जोड़ूँ ॥
तुम भये तरुवर मैं भई पखिया।
तुम भये सरोवर मैं तोरी मछिया॥
तुम भये गिरिवर मैं भई चारा।
तुम भये चंद्रा हम भये चकोरा॥
तुम भये मोती प्रभु हम भये धागा।
तुम भये सोना हम भये स्वागा॥
बाई मीरा कहे प्रभु ब्रजके बाशी।
तुम मेरे ठाकोर मैं तेरी दासी॥

37. जोसीड़ा ने लाख बधाई रे

जोसीड़ा ने लाख बधाई रे अब घर आये स्याम॥
आज आनंद उमंगि भयो है जीव लहै सुखधाम।
पांच सखी मिलि पीव परसिकैं आनंद ठामूं ठाम॥
बिसरि गयो दुख निरखि पियाकूं, सुफल मनोरथ काम।
मीराके सुखसागर स्वामी भवन गवन कियो राम॥

पाठांतर
जोसीड़ा णे लाख बधाया आस्यां म्हारो स्याम ।।टेक।।
म्हारे आणंद उमंग भर्यारी, जीव लह्यां सुखधाम।
पांच सख्यां मिल पीव रिझावां, आणंद ठामूँ ठांम।
बिसरि जावां दुख निरखां पियारी सुफल मनोरथ काम।
मीरां रे सुख सागर स्वामी, भवण पधाराया स्याम।।

(जोसीड़ा=ज्योतिषी, णे=को, बधाया=धन्यावाद,
आस्याँ=आया है, सुख-धाम=सुख का स्थान, पांच
सख्याँ=पांच इन्द्रियाँ, ठामूँ ठांम=स्थान-स्थान पर,
बिसरि जायां=दूर हो जायेगा, निरखाँ=देखकर,
सुफल=पूर्ण, काम=इच्छा, भवण=भवन)

38. ज्या संग मेरा न्याहा लगाया

ज्या संग मेरा न्याहा लगाया। वाकू मैं धुंडने जाऊंगी॥टेक॥
जोगन होके बनबन धुंडु। आंग बभूत रमायोरे॥१॥
गोकुल धुंडु मथुरा धुंडु। धुंडु फीरूं कुंज गलीयारे॥२॥
मीरा दासी शरण जो आई। शाम मीले ताहां जाऊंरे॥३॥

39. झटक्यो मेरो चीर मुरारी

झटक्यो मेरो चीर मुरारी।।टेक।।
गागर रां सिरते झटकी, बेसर मुर गई सारी।
छुटी अलक कुण्डल तें उरझी, झड़ गई कोर किनारी।
मनमोहन रसिक नागर भये, हो अनोखे खिलारी।
मीरां के प्रभु गिरधरनागर चरण कमल सिरधारी।।

(बेसर=एक प्रकार का आभूषण,झड़ गई=टूट गई)

40. झूलत राधा संग गिरिधर झूलत राधा संग

झूलत राधा संग। गिरिधर झूलत राधा संग॥टेक॥
अबिर गुलालकी धूम मचाई। भर पिचकारी रंग॥१॥
लाल भई बिंद्रावन जमुना। केशर चूवत रंग॥२॥
नाचत ताल आधार सुरभर। धिमी धिमी बाजे मृदंग॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमलकू दंग॥४॥

41. डारी गयो मनमोहन पासी

डारी गयो मनमोहन पासी।।टेक।।
आँबाँ की डालि कोइल इक बोलै, मेरो मरण अरू जग केरी हाँसी।
विरह की मारी मै बन बन डोलूँ, प्रान तजूँ करवत ल्यूँ कासी।
मीराँ रे प्रभु हरि अबिनासी, तुम मेरे ठाकुर मैं तेरी दासी।।

पाठांतर
डर गयोरी मन मोहनपास, डर गयोरी मन मोहनपास॥१॥
बीरहा दुबारा मैं तो बन बन दौरी। प्राण त्यजुगी करवत लेवगी काशी॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। हरिचरणकी दासी॥३॥

(डारि गयो=डाल गया, पासी=फाँसी, आँबाँ=आम, केरी=की,
करवत=आरे से चिरना)

42. णातो साँवरो री म्हासूँ

णातो साँवरो री म्हासूँ, तनक न तोड्याँ जाय।।टेक।।
पानाँ ज्यूँ पीली पड़ी री, लोग कहयाँ पिंडवाय।
बावल वैद बुलाइया री, म्हारी बाँह दिखाय।
बैदा मरम ण जाणाँ री म्हाँरो हिवड़ो करकाँ जाय।
मीराँ व्याकुल बिरहणी री प्रभु दरसण दीन्यो आय।।

(णातो=नाता,सम्बन्ध। पानाँ=पत्ता, पिंडवाय=
पाँडूरोग,पीलिया रोग, मरम=रहस्य, करकाँ जाय=
फट रहा है)

43. णेणाँ लोभाँ अटकां शवयाँणा फिर आय

णेणाँ लोभाँ अटकां शवयाँणा फिर आय।।टेक।।
रूँम रूँम नखशिख लख्याँ, ललक ललक अकुलाय।
म्हाँ ठाढ़ी घर आपणै, मोहन निकल्याँ आय।
बदन चन्द परगासताँ, मन्द मन्द मुसकाय।
सकल कुटम्बां बरजतां, बोल्या बोल बनाय।
णेणा चञ्चल, अटक णा माण्या, परहथ गयाँ बिकाय।
भलो कह्याँ कांई कह्याँ बुरोरी सब लया सीस चढ़ाय।
मीराँ रे प्रभु गिरधरनागर बिण पर रह्याँ णा जाय।।

(णेणाँ=नेत्र, ललक-ललक=बार-बार अभिलाषा करके,
अकुलाय=दुखी होते हैं, म्हाँ=मैं, ठाढ़ी=खड़ी, बदनचन्द=
चन्द्रमुख, परगासताँ=प्रकाश करते हुए, बरजताँ=बर्जना
करना, बोल्या बोल बनाय=बना-बनाकर बातें करते हैं,
ताने मारते है, अटक=रोक, माण्या=मानते हैं, परहथ=
दूसरे के हाथ में, कृष्ण के हाथों में, लया सीस चढ़ाय=
सहन कर लिया है)

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