शंकरदास Shankardas

पं. शंकरदास जी की कृति के संदर्भ में इनका जन्म मेरठ से सात मील पूर्व में गढ़मुक्तेश्वर को जाने वाली सड़क पर बसे जिठौली नामक ग्राम के एक वशिष्ठ गोत्रीय ब्राह्मण परिवार में सन् १८२४ ईसवी को पण्डित कल्याणदत्त उर्फ कलुआ के यहाँ हुआ था। उनकी माता का नाम श्रीमती दानकौर था। अपने पारिवारिक परिवेश का परिचय शंकरदास ने एक पद में इस प्रकार दिया है।
मकरुत दुतियाने का निकास हुआ,
पिलखुवा में बसे बड़े अन्न जल प्रकाश का।
कल्याणदत्त नामदेह, पिता का विख्यात हुआ,
दानकौर माता, फन्दा टूटा यम-त्रास का।
आदि गौड़ विप्र और गोत्र तो वशिष्ठ म्हारा…?,
मेरठ का जिला, डाकखाना मऊ खास का।
गढ़ को सड़क जात, मौजे का जिठौली नाम…?,
छोटा-सा स्थान, जिसमें बना शंकरदास का॥

लेकिन वास्तविक रूप में इनका जन्म एक दूसरे गाँव रामपूर (रम्मपुर) के जंगली क्षेत्र में हुआ था जो पिलखुवा के पास है, उनके नाना का गाँव जिठौली था, उनकी माता का कोई भाई न था। इस कारण वे बचपन में ही माता के साथ नाना के पास आकर जिठौली बस गये थे और नाना के वर्चस्व हेतु जिठौली को ही हमेशा जन्मभूमि माना।

20-22 वर्ष की अवस्था में ही आपने कवित्व में पूर्ण प्रखरता प्राप्त कर ली थी और उनके निर्गुण भक्तिपरक गीतों का प्रचार इस क्षेत्र में इतना अधिक हो गया था कि गंगा तटवर्ती मेरठ अंचल से लेकर पश्चिम के सभी क्षेत्रों तक इनकी शिष्य परम्परा हो गई थी। वे बालब्रह्मचारी, सत्यशोधक और ब्रह्म-ज्ञानी के रूप में न केवल इस क्षेत्र में ही विख्यात हुए, बल्कि उनकी रचनाओं की ख्याति देश में दूर दूर तक फैल गई। पूर्वी पंजाब, हरियाणा और मेरठ मण्डल में तो उनकी रचनाओं ने इतनी जागृति उत्पन्न की कि सर्वत्र उनकी शिष्य-परम्परा स्थापित हो गई।
उनकी प्रमुख रचनाएँ प्रकाशित रूप में उपलब्ध होती हैं उनमें–१. ‘भक्ति मुक्ति प्रकाश, २. ‘भजन शब्द वेदान्त’, ३. ‘ब्रह्म ज्ञान प्रकाश’, ४. ‘बुद्धि प्रकाश’, ५. ‘धर्म सनातन’, ६. ‘बारह खड़ी’, ७. ‘रुक्मिणी मंगल’ ८ कृष्ण जन्म’, ६. ‘ध्रुव भगत’, १०. ‘प्रह्लाद भक्त’, ११. ‘हरिश्चन्द्र’ १२. ‘नरसी का भात’, १३. ‘श्रवणकुमार’, १४. ‘मोरध्वज’, १५. ‘सती सुलोचना’, और १६. महा भारत (भीष्म पर्व) आदि के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।