सुधियों की देहरी पर (दोहा संग्रह) : तारकेश्वरी 'सुधि'

Sudhiyon Ki Dehri Par (Doha Sangrah) : Tarkeshwari Sudhi


पूजा -विधि आती नहीं, मैं सुमिरूँ बस नाम । हे गणेश !मेरे सभी, पूरे करिए काम ॥ हे माँ ! वीणा वादिनी, दो मुझको वरदान। ज्ञान - दीप जलता रहे, कभी न हो अभिमान।। मुझे खींचकर आपने, किया छंद के साथ। गुरुवर बस आशीष का, रखना सिर पर हाथ ।। भावों की इस देह से, जुड़े सघन अहसास। यह सुधियों की देहरी, मन में भरे मिठास। अँखियाँ खोली पुष्प ने, आस-पास थी धूल। किरणों ने चुम्बन लिया, लगा महकने फूल।। अंदर से कुछ और हैं, बाहर से कुछ और। किस पर करें यक़ीन अब, अजब आज का दौर।। अंतर्मन में आपके, सब कुछ जाता टूट । धोखा जब देता वही, जिस पर यक़ीं अटूट ॥ अंग्रेज़ी भाषा रही, शब्द-भाव से हीन। हिंदी ख़ुद धनवान है, मान इसे मत दीन।। अपनी क्षमता का जिसे, नहीं हुआ आभास। सिर्फ ज्ञान लेकर गया, उसको मंजिल- पास ।। अब बेटी के वास्ते, हुआ जागरूक देश। उसकी ख़ातिर योजना, नित-नव होती पेश।। अतिथि कहाँ होते सभी, वे जाने के बाद। जिनसे महके रूह भी, हो मन में भी याद।। असफलता मिलती हमें, जब मेहनत के बाद । राह दिखाने के लिए, कर प्रभु से फ़रियाद ।। अपना यदि रूठे कभी, उसे मनाओ आप। हर मुश्किल तारीख़ पर, तुम छोड़ो यूँ छाप।। अपनों से मिलते रहें, रखिए मेल-मिलाप । जीवन होगा बेहतर, होंगे खुश भी आप ॥ अजब आज का दौर है, सुनते बात अज़ीब । भूल रहे बच्चे सभी, अपनी ही तहज़ीब ।। अपनी आदत से सदा, वे रहते लाचार । कर जाते कुछ लोग तो, रिश्तों का व्यापार।। अज्ञानी गलती करें, ज्ञानी करते माफ। काज़ी आँखें मूँद ले, कौन करे इंसाफ।। अश्व-गधे जिसके लिए, गर हो एक समान। सिर्फ मूर्खों से मिले, उस राजा को मान।। असफलता भी ज़िन्दगी, में होती है ख़ास। वह ही असली जीत का, करवाती आभास।। आँखें सपनों से भरी, भरे हिना से हाथ। नई राह पर वो चली, मिला पिया का साथ।। आज जिसे देखो करे, इंग्लिश का गुणगान । आओ मिलकर दें सभी, हिंदी को सम्मान ।। आवाजाही से बढ़ी, रौनक़ -ए- बाजार । जब आई दीपावली, औऱ बढ़ा व्यापार। आलस करता ज्ञान से, धन से सदा विपन्न। मेहनत ही करती सदा, सभी काज़ संपन्न।। आने वाले वक़्त का, उसे न था कुछ भान। जल में उतरी नाव फिर, लड़ी संग तूफ़ान।। आसमान भू पर झुका, घटा घिरी घनघोर । धरती होगी तर-ब-तर, हरियाली चहुँ ओर॥ आन बान ख़ातिर उठी, सदा यहाँ तलवार। पाई राजस्थान ने, बस अपनों से हार ।। आना तेरे दर मुझे, दर्शन की है प्यास । माँ हरकारा भेज दे, जल्दी मेरे पास ॥ आता कोई भी नहीं , बुरे वक़्त में पास। रंग दिखाएँ लोग वे, जो बनते हैं ख़ास ॥ आएँ मतलब साधने, लोग बहुत नज़दीक । हमको होगा देखना, किसकी संगत ठीक ॥ आसमान, गणतन्त्र पर, बरसा दिन भर आज । झण्डारोहण बस यहाँ, केवल बचा रिवाज ।। आ जाती है मुफ़्त की, रोटी जिनको रास। श्रमवीरों का बस वही, कर सकते उपहास।। आहत हो तेरा नहीं, हे नारी ! सम्मान। चूल्हे-चौके से अलग, यह दुनिया पहचान।। ओछे जिनके कर्म हो, जिनकी ओछी सोच । उनसे दूरी में कभी, करो नहीं संकोच ॥ इंसां लगता ज़हर- सा, कड़वा जैसे नीम। होता है अक़्सर वही, अपने लिए हकीम॥ इठलाते हैं, नाचते, फूल हवा के संग। धरती करे बसन्त में, धारण पीला रंग।। इश्क़ तड़पता हर पहर, मन में दर्शन- प्यास । बतलाऊँ कान्हा मगर, शब्द नहीं हैं पास।। इठलाती सी चाँदनी, चंदा की मुस्कान । झींगुर के संगीत से, बढी रात की शान।। इनके ही आधार पर, बने दूसरे पंथ। जग में अपने वेद ही, प्रथम धार्मिक ग्रंथ।। इसे राजभाषा चुना, करके बहुत विचार। आओ हिंदी का करें, मिलकर सभी प्रचार।। इस अज्ञानी को बहुत, प्रभु तुझसे है आस । मेरे मन को शक्ति दे, बना रहे विश्वास ।। ईश्वर ने भेजा जिसे, देकर यहाँ अभाव। जग में भी उसको मिला, तिरस्कार का भाव।। ईश्वर की ही देन है, ये सारा संसार। जग के पालक हैं वही, हम उनका परिवार।। उसकी थाली में नही, हैं व्यंजन भरपूर। लेकिन दुआ ग़रीब की, फलती हमें ज़रूर।। उनके बंधन से किया, मैंने ख़ुद को मुक्त़। जिस-जिसका लहज़ा लगा, अहंकार से युक्त़।। उन्नत, भाषा, संस्कृति, मूल्य, सोच, परिवेश। इनसे ही है विश्व-गुरु, अपना भारत देश।। उपवन में विचरण करे, मन-हिरणा उन्मुक्त। ख़्वाहिश बनी बहेलिया, अब कैसे हो मुक्त।। उन लोगों के वक़्त पर, यार इरादे भाँप। जिनके जेहन में पले, मक्कारी का साँप ।। उछल-कूद मस्तिष्क में, करती है दिन-रात । हर लेती खुशियाँ सभी, चिंता करके घात।। उसके ख़त ने कर दिए, ------गीले मेरे नैन। लिखा बिछुड़ कर खो गया, मन का सारा चैन॥ उजली-उजली हर दिशा, खिली -खिली सी धूप । बारिश के पश्चात क्या, सुन्दर भू का रूप ॥ उसके क़दमों में मिला, हमें स्वर्ग का द्वार। मिला मात की गोद में, चैन भरा संसार।। उनकी गोदी में रहा, शिशु हरदम भयहीन। मात सदा संतान का, एक अटूट यकीन।। ऊष्मा, आशा, बुद्धि का, करता है संचार पीला रंग बसन्त का, हर दिल भरता प्यार।। ऊँचा उड़ना औ' सदा, याद रखे तारीख़। भरनी तुझे छलाँग, पर, पहले गिरना सीख।। ऊँच-नीच औ' जन्म पर, क्यों टिक गया विवाद । करिए मन मस्तिष्क को, समता से आबाद ॥ ऊँचा उड़ना आपका, बने नही अभिशाप। इसीलिए इंसानियत, कभी न छोड़ो आप।। एक-दूसरे को यहाँ, लूट रहे इंसान। फिर जाकर के पूजते, मंदिर में भगवान।। एक जरा-सी आह!पर, दौड़ी सुन आवाज़। उस बेटी पर भी करो, बेटे जैसा नाज़।। एक बार जो खो गया, मिले न कर लो यत्न। करो उचित उपयोग, है, समय कीमती रत्न।। एतबार का तेल पी, जले प्रेम का दीप। हम दोनो का साथ है, जैसे मोती-सीप।। एक बार जो गिर गया, नज़रों से इंसान। मुश्किल है पाना बहुत, पहले -सा सम्मान।। कविता छोटी - सी कथा, करे भाव लयबद्ध। बच्चे, बूढ़े या युवा, सब इससे आबद्ध।। कलम लगी रूठी हुई, रूठ रहे थे छंद। बोले हम सँग खेल लो, होकर रंग स्वछंद।। करता बच्चों के लिए, पिता सदा ही काम। दे उनकी मुस्कान ही, सुधि असली आराम।। कष्ट झेलकर हम सभी, रहते हैं आबाद। रहता अपने साथ जब, माँ का आशीर्वाद।। करने से पहले सदा, बात जान 'सुधि' ख़ास। बहुत जरूरी दोस्ती, में होना विश्वास।। करुणा, उम्मीदें भरी, ममता भरी अथाह। माँ बनकर ही ले सकी, माँ के मन की थाह।। क़द्र नही गर बात की, रहा कीजिए मौन। वे ढपली-ढोलक लिए, तुझे सुनेगा कौन।। कभी हमें मिलती विजय, किसी मोड़ पर मात। त्यों ही फल देता समय, ज्यो बीतीं दिन - रात।। कभी किसी को दीजिए, मत इतना सम्मान। लगे समझने आपको, सस्ता- सा सामान।। कहाँ ढूँढता है उसे, रखता जिससे आस । प्रभु है तेरे पास ही, मन में उसका वास।। करले तू बातें मग़र, अपने दुख मत बाँट। अपने गैरों में यहाँ, मुश्किल करनी छाँट।। कर्म आपका आपको, दे जाए सम्मान। ऐसे क्रियाकलाप से, खींचो सबका ध्यान।। कथनी को करनी करूँ, दो ऐसा वरदान । परमपिता तुम आसरा, हो, रखना बस ध्यान ॥ करिए मेहनत वक्त़ पर, बनिए आप सशक्त़ आठ-आठ आँसू गिरे, निकले यदि ये वक्त़।। करूणा की तस्वीर है, निर्मल है व्यवहार। दो बेटी को प्यार भी, ये उसका अधिकार।। कल्याणी है बालिका, रखती रुतबा ख़ास। उसका हो आदर जहाँ, ईश्वर करते वास।। करते हैं शोषण सभी, जन्म मानते श्राप। कन्या देवी तुल्य है, हे जग! मानो आप ।। करे बैठ श्रृंगार वो, पहने नित नव वेश। करे याद आँखें बहे, पिय तो हैं परदेश ॥ करो न हत्या गर्भ में, बेटी तेरा अंश। रखना है अस्तित्व में, उसे किसी का वंश।। करती रहती रात-दिन, नारी घर का काम । घर ही है उसका जगत, घर ही चारों धाम।। कन्याएँ अब बन गई, भारत में अभिशाप। तभी मारते गर्भ में, कन्या धन को आप।। कर देते बाधा खड़ी, जो राहों में नित्य। उन लोगों के साथ का, क्या निकले औचित्य।। कहाँ तलाशें वक़्त वो, जब था सच्चा प्यार । रिश्तों का हठ से कभी, होता था श्रृंगार ॥ क़दम बढाया सोच कर, चली वक़्त के साथ। तब जाकर आया कहीं, 'सुधि' तेरे कुछ हाथ ॥ कभी राज गम का यहाँ, कभी हँसी के ठाठ । जीवन का हर पल हमें, सिखलाता नव पाठ।। करती हूँ मैं गलतियाँ, होती मुझसे भूल । गिरकर उठ जाना सदा, मेरा रहा उसूल ।। कमी मूर्खों को लगे, कुछ हो कहीं स्वरूप । ढूँढेंगे वो ऐब, तब, क्या बदली क्या धूप ॥ कर्णवती, पद्मावती, राजस्थां की शान। जग कैसे भूले भला, पन्ना का बलिदान ॥ करना था संसार के, -----दुष्टों का संहार। इसीलिए माँ ने लिया, शक्ति रूप अवतार।। कभी तोड़ती-जोड़ती, रखती अपनी धाक। क़दम -क़दम पर ज़िन्दगी, करती सदा मज़ाक़।। कर जाएँ मुस्कान सँग, बच्चे बाधा पार । अगर आपने दे दिया, मित्र सबल आधार ।। कहते हैं तक़दीर से, मिलते अच्छे लोग। उनकी संगत का जरा, ढँग से करो प्रयोग।। कल तक तरसी नीर को, अब पानी भरपूर । धरती रेगिस्तान की, पर छाया है नूर ।। करके जल की बूँद जब, अपना ख़त्म वज़ूद। बनकर नदिया धार तब, पड़ी शिखर से कूद।। करो नही साबित कभी, ख़ुद को तुम कमज़ोर । जो डूबा मन से उसे, कहाँ मिला फिर छोर ॥ क़दम-क़दम पर अड़चनें, करतीं रस्ता बन्द । हिम्मत औ' उत्साह से, मन को करो बुलन्द।। करे प्रकाशित ज्ञान को, उर को तम से मुक़्त। भाषा सदा विचार को, देती पथ उपयुक़्त्त।। करती है व्यक्तित्व का, शिक्षा सदा विकास । जीवन में रखती तभी, अपना रुतबा ख़ास।। कान्वेंट में जा रहा, जिनके घर का फूल । लड़की उनकी जा रही, सरकारी स्कूल ॥ काली -काली बादली, रिमझिम बरसे मेह । मन के रेगिस्तान में, बढता जाये नेह।। किसी मोड़ पर भी नहीं, करो सीखना बंद । जीवन को परवाज़ ही, देता ज्ञान स्वछंद।। किस्मत एक किताब -सी, मत कर इतना नाज़ । पल भर में पन्ने फटे, वो भी बिन आवाज़ ।। किसकी होनी है सुबह, और कहाँ कब शाम। हो तेरे अनुसार माँ, जग का सारा काम ॥ किसने कब धोखा दिया, जाने दो ये बात। कीमत नहीं जुबान की, क्या उसकी औकात।। कितना सुंदर लग रहा, हम दोनों का साथ। बस है इतनी चाह अब, छूटे कभी न हाथ॥ कीका आया युद्ध में, अपने चेतक संग । लाल हुई थी ख़ून से, मिट्टी हल्दी रंग।। कुछ लोगों की क्या कहें, आदत बहुत ख़राब। औरों के घर झाँकने, को हरदम बेताब ॥ कुर्सी पर ये कौन है, देखो बैठा आज। ज्ञानीजन सर पीटते, कैसा जंगलराज।। कुआँ खोद या बावड़ी, करो इकट्ठा नीर। व्यर्थ किया इसको अगर, तो भुगतोगे पीर।। कुछ लोगों ने दे दिया, मुझको सस्ता ज्ञान। पैसा सबसे कीमती, सबसे सस्ती जान।। कुछ लम्हों में हो गई, बरसों की सब बात । बिछड़ा लम्हा जब मिला, बिखर गए जज़्बात।। कैसे कहें मिज़ाज़ से, हैं थोड़े मजबूर । जाना, आना, लौटना, हमें नहीं मंजूर ॥ कोई खुश हमसे यहाँ, तो कोई नाराज़ । जिसकी जैसी है ग़रज़, उसका वो अन्दाज़ ॥ कोई बैठा पक्ष में, बैठा कोई विपक्ष । संसद में बैठे सभी, दाँव-पेच में दक्ष ।। कौन ढूंढ पाया मुझे, रहूँ कहाँ मौज़ूद । परे देह से भी मिले, मेरा एक वज़ूद ॥ कौन हादसा कब कहाँ, खड़ा हुआ तैयार । एक जरा सी चूक पर, ख़त्म जिंदगी यार ।। क्यों तेरी इच्छा इसे, मान्य नही भगवान। पुत्री-जन्म का फैसला, लेते ख़ुद इंसान।। खट्टी भी, नमकीन भी, रखती मीठा रूप। जिसके सँग है दोस्ती, वो ही असली भूप।। खा जाती रिश्ते सभी, एक ज़रा सी बात। सूखे पत्तों की तरह, बन जाते जज़्बात।। ख़ुद्दारी, ईमान, सच, सब है यहाँ मज़ाक़। झूठे इस संसार में, ये बेजां ख़ूराक़॥ खुशी, शांति औ' सत्य को, करो कभी मत दूर। जो जीना तुम चाहते, जीवन को भरपूर।। खून-पसीना एक कर, बच्चे किये जवान। बसे मगर परदेस में, घर करके वीरान।। खेल अनोखे इश्क़ के, अजब इश्क़ की बात। सबके ही इस खेल में, लुटते दिल, जज़्बात।। खेतों में लहरा रहे, मूँग, बाजरी, ग्वार। कृषक हुआ खुश देखकर, अपनी पैदावार।। ख़्वाब भरे इसमें, कभी, तोड़ो मत अरमान। निज मन-मंदिर के स्वयं, कुछ हम भी भगवान॥ गलती को स्वीकारना, इसमें क्या संकोच। करते हैं ऐसा वही, जिनकी उन्नत सोच।। गरमी से बेबस हुए, धरती के हालात। पेड़ काट खुद पर किया, मानव ने आघात।। गहराई दुख दर्द की, जब सारी ली नाप। तब समझी मैं आख़िरी, रस्ता प्रभु का जाप ।। गर्मी में इस चाँद की, खिल जाती मुस्कान । रात चाँदनी में करे, -------धरा-रूप हैरान ।। गरज-गरज-कर कर रहा, मौसम अत्याचार। मेहनत हुई किसान की, पल-भर में बेकार।। गली-गली में खोलकर, अंग्रेज़ी स्कूल। चले बनाने देश को, हिंदी के अनुकूल।। गर्मी के सँग आ गये, बड़े रसीले आम । पहले इनका स्वाद लूँ, छोड़ूँ सारे काम ॥ गुरुवर मुझको आपने, दिया कीमती ज्ञान । हर पल रहती है मुझे, बात आपकी ध्यान ।। गरमी में भाये नही, पलभर को भी धूप । सर्दी में वह ही लगे, मन भावन-सा रूप।। घर, गलियाँ, बाजार 'औ', करो सुरक्षित देश। घूम रहा अपराध अब, धर कर नाना वेश।। घर की रौनक़ बेटियाँ, वे ही घर की शान। उसे कलंकित मत करो, देना सीखो मान।। घिरकर आई बादली, रिमझिम बरसे मेह। चाय - पकौड़ी संग में, घर में फैले नेह ॥ चंचल मन को कब भला, मिलता है ठहराव। पल में जाकर नापता, अम्बर का फैलाव।। चमचागीरी में सदा, वे पाते आनंद। हो धंधा ईमान से, नेताओं का मंद।। चलो ध्यान से बेटियों, क़दम-क़दम पर गिद्ध। तुम भी रखकर हौसला, करो स्वयं को सिद्ध।। चलो सत्य की राह पर, तुम निशदिन चुपचाप। क़ीमत जग में आपकी, बढ़ जाए ख़ुद आप।। चली वक़्त ने एक दिन, अपनी टेढी चाल। गुज़र गया चुपचाप खुद, पीछे छोड़ सवाल।। चलता राही रुक गया, देख शजर की छाँव । बुला रही मंजिल उसे, उठे न लेकिन पाँव ।। चार दिनों की चाँदनी, चार दिनों की रात। क़तरे जैसी ज़िंंदगी, सागर से जज़्बात।। चाहे जो दुनिया कहे, अपने मन की मान। इसमें है तेरा भला, मत बन तू अनजान।। चाह अगर सम्मान की, तो तू रख ये ध्यान । बिन मेहनत न मिल सके, यहाँ किसी को मान।। चिंता तो खाती हमें, ज्यों घुन खाता काठ। सीखो बच्चों से सदा, ख़ुश रहने का पाठ।। चुपके से ख़त खोलकर, बाँचा सारी रात। बिरहन के मन की व्यथा, किसे पता जज़्बात।। चौखट पर बैठी हुई, बनकर पहरेदार। जी भर कर आशीष दे, घर को बूढ़ी नार।। छुट-पुट घोटाले नहीं, करे आजकल लोग। अरबों-खरबों से बनें, इनके छप्पन भोग।। छोड़ महल की शान को, पहना भगवा वेश। मीराबाई ने हमें, दिया भक्ति- संदेश॥ छोड़ गए जो भी तुझे, समझो सब थे ग़ैर। जीवन बहता नीर है, रुके न किसी बग़ैर।। जबरन रहना मत कहीं, सुन ऐ मेरे मीत। अपनी राहें खुद बना, गा खुशियों के गीत।। जले दूर दीपक कहीं, कहे मुझे ये बात। ठहरेगा कुछ देर तम, दे इस डर को मात।। जग में आये हैं सभी, लेकर बस दिन चार । जाने कैसे हो गये, सबके अलग विचार ॥ जब मुझको ठोकर लगी, माँ ने थामा हाथ । उसे जरूरत जब पड़ी, नहीं मगर मैं साथ ।। जन्म-मरण के बीच में, पुण्य और हैं पाप । कभी कर्म आनंद दें, और कभी संताप ।। जग का कन्या रूप में, करती तू उद्धार। हत्या कन्या की करे, फिर क्यों माँ! संसार।। जब बच्चे चलने लगें, टेढ़ी -मेढ़ी राह । तब उनकी करनी पड़े, कुछ ज्यादा परवाह।। जगी आस क्यों तोड़ते, बरसो न घनश्याम। नहीं बरसना तब करो, पर्वत पर विश्राम।। प्रकट कर मन को सदा, सुधि तेरे सब बोल। इसीलिए जो बोलना, उसको पहले तोल ।। जब भी आती मुश्किलें, देकर जाती पीर। हँसकर सहती नारियाँ, होती नहीं अधीर।। जब बेटी का बाप ने, देखा जला शरीर । शब्द नही जो कह सकूँ, पिता-हृदय की पीर ।। जग में रखती दोस्ती, अलग-अलग अंदाज़। सतरंगी से रूप पर, हम सब करते नाज़।। जब भी किसी तनाव ने, जकड़ा बन जंजीर। बैठी माँ के पास में, भूली सारी पीर।। जब रिश्ते निभने लगे, कुछ ज्यादा ही ठीक । समझो वक्त़ बिछोह का, खड़ा बहुत नज़दीक ।। जादू -टोना से रखें, लोग लाभ की आस। शिक्षित में भी ये मिला, मुझे अंधविश्वास।। जाते हम थक हार कर, घर दिनभर के बाद । बच्चों का मुख देखकर, हो जाते आबाद ॥ जागूँ सारी रात मैं, करके तुझसे प्रीत। दीपक सँग जलती रहूँ, गाऊँ विरहा गीत।। जिसका जितना है लिखा, देंगे दीनानाथ । करना है अपना करम, हमको मन के साथ ॥ जिस भी मानव ने किया, लड़का-लड़की भेद। मुझको उसकी सोच पर, हरदम होता ख़ेद।। ज़िद, मचलन, बचपन गया, बदला स्वर्णिम काल। यादों की कतरन बची, कुछ ख़त के कंकाल।। जिस घर भी पैदा हुई, खुशियाँ बसी अपार। बेटी से ही सृष्टि को, मिलता है विस्तार।। जिनसे अक़्सर बैठकर, करते हम संवाद। उनसे होना लाज़मी, थोड़ा वाद-विवाद।। जिनसे मन का ही नहीं, हो पाता संयोग। ऐसे लोगों से भला, कैसा हृदय-वियोग।। जीवन में हर शख्स के, रहते खुद के राज। उत्सुक करता है मगर, औरों का हर काज।। जीवन यदि गतिशील हो, भर देता उत्साह। नदियों में मौजूद ज्यों, नाद, तरंग, प्रवाह।। जीवन भर की दौड़ में, है सुख-दुख का साथ। फिर भी अंदर शून्यता, सब ही खाली हाथ।। जीवन हो ये बेहतर, रखते ऐसी चाह। जख़्म मिले, काँटे मिले, फिर कैसी परवाह।। जीवन में रखिए सदा, केवल सच्चे यार। बाक़ी को बाहर करो, ये हैं खरपतवार।। जीवन का संघर्ष, सँग, करते लेकर शूल। इसीलिए बदनाम हैं, देखो! पेड़ बबूल ।। जीवन की हर बात का, मिलता है उपचार। वेद ज्ञान-विज्ञान के, हैं अथाह भण्डार।। जीवन में सम्पन्नता, देती है भटकाव। लेकिन कभी ग़रीब को, तोड़े नहीं अभाव।। जीवन के हर मोड़ पर, उसे मिला है ख़ार। लेकिन बेटी ने कभी, किया नही प्रतिकार।। जैसे बालू रेत हो, झड़ने में आसान । लोभी पैसे देख कर, करे त्याग ईमान ॥ जो मतलब के लोग हैं, रहती उनसे दूर । लेकिन लोगों को लगी, 'सुधि'थोड़ी मग़रूर ॥ जो जीए उम्मीद रख, नहीं मानता हार। वो ही होता जीत का, उचित शख्स, हक़दार।। जो है अच्छा याद रख, बाक़ी बात बिसार। छोटी - सी ये ज़िन्दगी, ऐसे इसे सँवार।। जोहड़, पोखर, बावड़ी, गये दिनों की बात । कहाँ इकट्ठा नीर हो, जब बरसे बरसात ।। जो तन-मन पर आपके, करता अत्याचार। उसके सँग व्यवहार का, रखना नही विचार।। जो मन से कंगाल है, वो ही इसका पात्र। सिर्फ रोटियाँ दीनता, नहीं मापती मात्र।। जो जीवन में हो रहा, सब जादू का खेल । कभी प्रकट, ग़ायब कभी, हो भावों का मेल ।। जीवन भर का साथ हो, मगर बीच दीवार । ऐसे बंधन का भला, क्या निकलेगा सार।। जोगी मुझ पर चढ़ गया, ----ऐसा तेरा रंग । तुझ बिन सारा जग लगे, अब मुझको बदरंग ।। जो गुण दाता ने दिए, एक-एक कर बीन। दूजे का मुख ताककर, मान न ख़ुद को हीन।। झिलमिल सा सहरा लगे, उर में उपजे गीत। जब मन-आँगन में बसे, जादूगरनी प्रीत ॥ झुलस रहा है धूप में, मन भी तन के साथ । बचना इससे आज भी, है मानव के हाथ ।। टूटे-फूटे लोग हैं, सबकी टूटी राह। औरों की इस हाल में, किसको होगी चाह ॥ ठिठुरन औ' सिहरन बढ़ी, हुई गुलाबी शाम। कल तक ख़लता था हमें, अब भाएगा घाम।। डटे रहे रणभूमि में, लेकर तन पर घाव। राणा सांगा से मिला, देशभक्ति का भाव ॥ ढीले या ज्यादा कसे, तो टूटे आबन्ध । निभा सके तो जोड़िए, वरना मत सम्बन्ध ॥ ढूँढ रहे संसार में, आप उसे बेक़ार। निज मन में झाँको, छुपा, खुशियों का भण्डार।। तन पर गहने लादकर, नाम दिया श्रृंगार। मुक्त़ हुए फिर डालकर, उस पर घर का भार।। तक़े राह मन बावरा, करता प्रिय को याद । मन में नित नव ख़्याल से, हो खुद ही आबाद ।। तप मत सूरज की तरह, कर चँदा सी बात। बातों से कर चाँदनी, दे शीतल सौगात ॥ तिनका-तिनका जोड़कर, घर में डाले जान। दुख में भी नारी सदा, फैलाती मुस्कान।। तुलसी, पीपल, खेजड़ी, हरे-भरे ये पेड़ । करते हैं पूजा सभी, बच्चे, युवा अधेड़॥ तुम ये सोचो एक तुम, बस दुनियाँ में ख़ास। तुम भी कैसी बात ये, करती 'सुधि' परिहास।। तुमको ऐसा क्या मिला, नहीं जमीं पर पैर। कुछ दिन जी कर देखिए, आप घमण्ड बग़ैर।। तूफ़ां सागर में उठा, आया तेज बहाव। लहरों से अठखेलियाँ, करना भूली नाव ॥ तूफ़ां या बारिश करे, लाख उसे मजबूर । कश्ती ने यदि ठान ली, तब क्या मंजिल दूर ॥ तेरी पाती ने लिया, मेरे मन का चैन । भीगा-भीगा दिल लगे, गीले-गीले नैन ॥ तेरी सब नादानियाँ, बाते सभी क़ुबूल। भरमाने की बस मुझे, तू मत करना भूल।। थकन सभी मन की गई, दो बूंदों के साथ। जब तूने कान्धे रखा, सखी ! प्यार का हाथ।। था वो सफ़र सुहावना, बेहद उड़े विचार। शीतल, मन्द समीर ने, किया प्राण संचार।। थोड़ी इसकी बात है, थोड़ी उसकी बात । इन दोहों में क़ैद है, मेरे कुछ जज़्बात।। थोड़ा नियरे बैठ कर, बन जाए हमराज । बहुत जरूरी बाँटना, यारों के दुख आज ॥ थोड़ा भी चूके अगर, श्रम करने से आज । रखे बेरहम वक्त़ ये, किसी और सिर ताज ॥` दर्द भरा है रास्ता, गुज़रे इससे कौन? सभी न समझें प्रेम को, इसकी भाषा मौन।। दामन में तारे सजा, टिका भाल पर चाँद। पिय से मिलने चल पड़ी, शब दीवारे फाँद ॥ दिल बैठा दिल थामकर, सुन क़दमों की चाप। नैनों की पगडंडियों, से जब आये आप।। दिनभर रहती व्यस्तता, करती रहती काम। बस माँ के ही राज में, मुझको था आराम।। दिल में उम्मीदें बसी, मुखड़े पर मुस्कान। सपने पलते आँख में, बेटी घर की शान ।। दीन हो कि धनवान हो, या निर्बल बलवान।। सबको अंतिम आसरा, दे बस वो शमशान ।। दीपक-माला से सजे, हैं घर- आँगन, द्वार । प्रबल इरादे दीप के, देख छुपा अँधियार।। दुनिया जंगल-जाल है, पग-पग मिलते शूल। कर लेता है पार जो, उसके हक़ में फूल।। दुख़ के कारण खोजते, करें स्वयं की जाँच। शुद्ध करे मन-आत्मा, विपदा की आँच।। दुल्हन के जैसे सजे, सभी गली बाजार । एक दूसरे के लिए, सब लेंगे उपहार ।। दुर्गम को करता सुगम, मेहनत से मजदूर। मारे अपनी ख्वाहिशें, वो होकर मजबूर।। दुख कैसे होंगे वहाँ, तेरी जहाँ पनाह । पर आसानी से कहाँ, मिले प्रभु की राह ॥ दूषित है पर्यावरण, अब तो कर आगाज़। इसको फिर आबाद कर, करें पीढ़ियाँ नाज़।। देख लिया था आप को, जब से 'मैं' के साथ। खींच लिया तब दोस्ती, से हमने भी हाथ।। देख उसे नज़दीक़ से, सुधि मानव को तोल। लगते हमें सुहावने, सदा दूर के ढोल।। देखो बादल ने किया, अंधकार चहुँ ओर । आतुर धरती नीर को, बगुल, पपीहा, मोर ।। देशभक्ति के गीत अब, बजते हैं दिन एक । यहाँ बेसुरे गीत यूँ, दिन में बजे अनेक ॥ देखे हैं नज़दीक से, दिल ने सबके रंग। इसीलिए इसने किया, अपना रस्ता तंग।। देती है मुस्कान भी, करती हमें उदास। यह छोटी सी जिन्दगी, अज़ब-गज़ब आभास॥ देखे थे मैने जहाँ, बड़े-बड़े- से खेत । बनीं वहाँ अट्टालिका, फसल बची न रेत॥ देखे सहमी वधु नई, ले घूँघट की आड़। एक-एक किरदार को, रही गौर से ताड़।। देती है दीपावली, ----- हमें ज्ञान- सौग़ात । दीपक बन हम दें सदा, अँधियारे को मात ।। दो दिल बेशक़ कर गए, दूरी कोसों पार । बाक़ी लेकिन आज भी, दबा -दबा -सा प्यार ॥ धन दौलत से भी नही, सकता कोई खरीद। माँ -ममता की कामना, करते सब उम्मीद।। धन -दौलत जोड़ी, सदा, बनकर बेईमान। रखवाला पर चाहिए, जिसमे हो ईमान।। धन दौलत से हो नहीं, बेशक़ वो धनवान। ऐसी चाहूँ दोस्ती, हो विपदा में आन।। धारण करे त्रिशूल माँ, शंख, चक्र, तलवार । करती रक्षा धर्म की, होकर सिंह सवार ॥ धुंध, कोहरा हर तरफ, मौसम भी प्रतिकूल । बेचारे बच्चे चले, पढ़ने को स्कूल॥ घृणा, लड़ाई, लालसा, रोके द्वेष विकास। सिर चढ़कर ये नाचते, बनो न इनके दास।। ध्यान सदा पहले रखो, करने से अन्याय। ईश्वर जज सबसे बड़ा, करता सबका न्याय।। नक़ली चीज़े देखकर, हो असली-सा भान। चमक-धमक की होड़ से, अब बिकता सामान।। नहीं किसी की फ़िक्र है, खुद पर पानी जीत। साथ रहें मेरे सदा, मेरा प्रभु, कुछ मीत ।। नहीं रही मज़बूर अब, है बेटी अभिमान। चहुँ और से मिल रहा, अब उसको सम्मान।। नहीं है कोई लालसा, नहीं किसी से होड़। हो जाए मुझ-आप का, मन से मन का जोड़।। नन्ही चिड़िया मै सुनो!हूँ हर घर की शान। लेकिन मेरी माँ, बचा! पहले मेरी जान।। नज़र देहरी पर टिकी, उड़ा रही उपहास । बैठी रूप सँवार कर, पिया मिलन की आस॥ नन्हीं बच्ची जब चली, पैर उठाकर द्वार। मन-आँगन होने लगी, ख़ुशियों की बौछार।। नहीं करो संताप जो, लौटा सूरज माँद। साथ रहेंगे रात भर, जुगनू, तारे, चाँद।। नन्हें-नन्हें दीप में, ----बाती, थोड़ा तेल । जग को रोशन कर रहा, इनका अनुपम मेल।। नन्हीं -नन्हीं कोंपलें, हमको रही निहार। हुई अचंभित देखकर, दुनिया पहली बार ॥ नहीं हुआ तो क्या हुआ, मुझसे रस्ता पार । कैसे मानू मैं भला, इतनी जल्दी हार।। नर्म -मुलायम बिछ गया, धरती पर कालीन । पावस में नजरें हुई, धरा-छटा में लीन॥ नही किसी की फ़िक्र कर, हो सुधि खुद से होड़ । जितना भी मौका मिले, मेहनत कर जी तोड़ ॥ नमन करुँ माँ वैष्णवी, करुँ आपका ध्यान। दो सपनों को हौसला, भर लें नई उड़ान।। नारी -शिक्षा के लिए, यूँ तो सब मुस्तैद। उनके घर की नार है, पर घूँघट में क़ैद।। नारी घर की शान है, नारी से पहचान । बिन नारी होता नहीं, काज कभी आसान।। नाव और मल्लाह में, देखो कितना प्यार । एक बिना दूजा नहीं, करता नदिया पार।। नारी की इन्द्रिय छठी, भगवन का वरदान । नज़र - नज़र के फर्क का, उसको होता भान।। निर्धन या धनवान हों, पिता हमारी आस। करते वे संतान का, पालन-पोषण ख़ास।। निज तन भी अपना नहीं, नहीं है अपनी श्वांस। ये तन है माटी-महल, पलती लेकिन आस ।। निर्मल, शीतल जल हुआ, मिलना मुश्किल आज। करले संरक्षण मनुज, बचा धरा की लाज।। निकली थी किस बात पर, जाने उसकी बात। पर निकली फिर चल पड़ी, मुश्किल मिली निजात।। नीचे तपती है धरा, ऊपर तीखी धूप। पेड़ जमीं से लुप्त हैं, बिगड़ा भू का रूप।। नींद नही है आँख में, गुज़री जाए रैन। सपने भी मायूस हो, ...घूम रहे बेचैन॥ नेता गण बिसरा गए, किधर दिखाना जोश। कुर्सी पाकर हो गए, सब के सब मदहोश।। नेता डोरी देश की, थाम हुए बेहोश। जैसे नशा शराब का, कर देता मदहोश।। न्यौछावर जीवन करे, चाहे थोड़ा प्यार । चाहत छोटी -सी मगर, औरत जाती हार ।। पहले देना सीख लो, रखो बाद में आस। अगर चाहते दोस्ती, में 'सुधि' रहे मिठास।। पल में चीजें कीमती, अगले क्षण बेकार। हर अगले पल हो रहा, परिवर्तित संसार।। पहुँच गया पंछी भले, उड़कर नदिया पार। मगर चैन देता उसे, अपना ही घर बार ॥ पहले अपने को परख, फिर अपना बर्ताव । तब औरों की दोस्ती, परख किसी का भाव ॥ पढना लिखना हो अगर, भारत का इतिहास । शुरु करें मेवाड़ से, पायेंगे कुछ ख़ास ॥ पग-पग काँटे, झाड़ियाँ, तोड़ें जीवन डोर । आओ, मिलकर बाँट लें, हम-तुम मन का शोर ॥ पकड़ा दी औलाद को, उसने आज किताब। अनपढ़ माँ ने यूँ किया, पूरा अपना ख़्वाब।। पलकें बोझिल हो रही, लगे नींद का भार । अतिथि रहे कल रात भर, सपनों के संसार ॥ पहचानूँ कैसे भला, अच्छा कौन खराब। लोग यहाँ डाले हुए, मुख पर कई नक़ाब ।। पार्वती के लाड़ले, हे शिव की संतान! सिद्ध मनोरथ अब करो, हे मेरे भगवान! पाया मैंने ईश से, जन्मस्थल यह खास । मेरे भारत का रहा, गौरवमय इतिहास॥ पालन होते देश में, हर घर रीति रिवाज । निष्ठा और ईमान का, सबके सिर पर ताज ।। पालनहारा है कृषक, लेकिन खुद तृणकाय । भूख मिटाकर जगत की, रूखी -सूखी खाय ।। पा लेता है श्रम बिना, जब ज़्यादा इंसान । तब स्वाभाविक है उसे, ख़ुद पर हो अभिमान।। पानी है मंजिल अगर, तो मत देखो शूल। बिना शूल के फूल का, ख़्वाब देखना भूल।। पापा हँसकर झेलते, हर दुख को चुपचाप। लेकिन पड़ने दें नहीं, हम पर उनकी छाप।। पूर्ण स्वयं को मानकर, करना मत अभिमान। शिक्षक को भी चाहिए, लेना अनुभव, ज्ञान।। पूरे घर में गूँजती, पायल की झनकार। नन्हें क़दमों से चली, बेटी पहली बार।। पेड़ भगाएँ आपदा, भूख, गरीबी, रोग । देते हैं ताज़ी हवा, काया रखे निरोग॥ पेट भरा हो तन ढका, हर मुख पर मुस्कान। करो दुआ अपना बने, ऐसा देश महान।। पेड़ हवा में हो रही, कब से लम्बी बात । पावस में निकले सभी, छुपे हुए जज़्बात।। पैसा सब कुछ मानकर, करते लोग अधर्म। मिले चैन-धन देखिए, करके आप सुकर्म।। पौधा हमें गुलाब का, फूल और दे शूल । जीवन दे अनुकूल भी, तथा वक़्त प्रतिकूल ॥ प्रखर हुई सूरज किरण, बढा धरा का ताप । दर्द झुलसने का सहे, पुष्प -पात चुपचाप।। प्रकृति नहीं पैदा करे, कुछ भी कभी फ़िज़ूल। मानव उसको नष्ट कर, लेकिन करता भूल।। प्रथम गुरु वो ही बनी, दी ममता की छाँव। माँ प्रभु का वरदान है, धो-धो पीओ पाँव।। प्रकट हुई नौ रूप में, माँ की शक्ति अपार। किया दैत्य संहार से , प्रलय मुक्त संसार।। प्रथम रहे अंतिम नहीं, तेरे सभी प्रयास। देगी मेहनत एक दिन, सचमुच तुझे मिठास।। प्रियतम का संदेश ले, तू आया कर काग। विरहन को तड़पा रहा, आज पपीहा राग।। प्रेम, ज्ञान, विश्वास है, जीवन की पतवार । बिन इनके होती नहीं, जीवन नैया पार ॥ पंछी बन नभ में उड़ें, स्वप्न हुए बेताब। अम्बर उनसे कह रहा, पूरे कर लो ख़्वाब।। पंछी के पर.नये, हैं उसकी नई उड़ान । मिल जाये यदि होंसला, उड़ना हो आसान ॥ पंछी लौटा घूमकर, दुनियाँ, देश-विदेश । मिला नहीं वापस उसे, माँ, बापू, परिवेश ॥ फसल बचानी हो अगर, लगे जरूरी मेड़ । इसके हैं दुश्मन बहुत, गधे, बकरियाँ, भेड़ ॥ फिसल न जाना राह में, क़दम क़दम पर गार । है हँंसने को आप पर, यह दुनिया तैयार।। फैला हुआ समाज में, जड़ तक भ्रष्टाचार । न्याय, सत्य, नियमावली, सब ही हुए शिकार।। बस धन के ही लोभ में, लिप्त अधिकतर लोग । काश! करें सत्कर्म से, वे अपना संयोग ।। बच्चों की मुस्कान पर, कर दूँ जान निसार । उन बिन मैं कुछ भी नहीं, वे मेरा संसार।। बड़ा खज़ाना ज्ञान का, छपते बड़े विचार। शेष जगत से जोड़ते, हैं हमको अख़बार।। बच्चे आँगन में रहें, चाहे घर से दूर। आँखें वे माँ-बाप की, सपनों से भरपूर।। बरसे बदरा टूटकर, मिटी धरा की प्यास। मन में जगी किसान के, नई फसल की आस।। बना महल से खंडहर, और खंडहर से रेत। महलों की जीवन कथा, करे गूढ संकेत ।। बस अपनी ही सोच को, लाद नही हर बार। दूजे की भी बात पर, करना कभी विचार।। बच्चे, बूढ़ों की भली, लगती है मुस्कान। इनकी संगत भी मुझे, करती है धनवान ॥ बहुत अधिक समृद्ध है, करें नहीं अपमान। मातृभूमि सम दीजिए, हिंदी को भी मान।। बनकर दीपक -ज्योति हम, दूर करें अँधियार। फैलायें जग में सदा, खूब ज्ञान उजियार ।। बनकर घुन इस देश को, खाता भ्रष्टाचार। बन कर रोड़ा राह का, रोक रहा रफ़्तार।। बच्चे, बूढ़े या युवा, चाहत सबकी प्यार। सबके अंदर है छुपी, ममता की दरकार।। बनें केकड़े घूमते, कलयुग में कुछ लोग। पैर पकड़ कर खींचना, उनको मिथ्या रोग।। बना चुकी हैं बेटियाँ, शिक्षा को हथियार। क़दम थमेंगे अब नहीं, नहीं रहेंगी भार।। बदलेगा ये वक़्त भी, मानो 'सुधि' मत हार। ज्यों पतझड़ के बाद में, लौटी सदा बहार।। बनी बावरी तक रही, कान्हा तेरी राह । वक़्त मिले तो ले कभी, मीरा -मन की थाह ।। बड़ी तीव्रता से घटा, बेटी का अनुपात। उसे बचाना है हमें, तभी बनेगी बात।। बढा देश में नार पर, निशदिन अत्याचार। करना है लेकिन उसे, अब इसका प्रतिकार।। बन्द न करना वार्ता, बेशक़ करना जंग। सभी सुलह के रास्ते, वरना होंगे तंग।। बच्चों के मुख पर सदा, बनी रहे मुस्कान। एक स्वप्न में हम सभी, अटकाते हैं जान।। बहुत सुहाती चाँदनी, औ' गर्मी की रात । बाँहों में आकाश है, तारे करते बात । । बच्चों के सँग खेलते, करते हैं मनुहार। आज पिता भी कर रहे, माता जैसा प्यार।। बादल तो आये बहुत, मगर न बरसा नीर । धरती प्यासी रह गई, सही न जाए पीर ॥ बाग़-बग़ीचे हैं हरे, भरे हुए तालाब। सावन में धरती हरी, खिलते ख़ूब गुलाब।। बादल तो आये बहुत, मगर न बरसा नीर| सहना उनकी बेरुख़ी, धरती की तक़दीर । बाहर बहुत कठोर हैं, अंदर है बस प्यार। समझाते हमको पिता, असली जीवन सार।। बाजे सँग नाचें सभी, गाएँ होली गान। हैं रंगों से तर-ब-तर, गलियाँ, सड़क, मकान।। बादल तो आये बहुत, मगर न बरसा नीर| रख जिन्दा उम्मीद को, मत हो धरा अधीर ॥ बाँटों उनके दर्द जो, रहते घर के पास। होता पास-पड़ोस भी, आख़िर अपना ख़ास।। बिन शिक्षा संभव नहीं, कोई आविष्कार । बिना ज्ञान के नौकरी, मुश्किल है व्यापार।। बिटिया तुम बिन लग रहे, लम्बे दिन औ' रैन। जल्दी आजा दौड़कर, दे नयनों को चैन।। बिन श्रम कुछ हासिल नही, कर लो कितने जाप। मन से मेहनत कीजिए, राह निकलती आप।। बीज स्वयं को भूलकर, होतें हैं कुर्बान । भरते हैं तब फस्ल से, खेत और खलिहान ॥ बीते दिन करवा गये, मुझको ये आभास । अमरबेल बनना नही, बनूँ पेड़ मैं खास ॥ बुरे वक़्त का दो नही, कभी किसी को भान। बहुत जरूरी हो तभी, लेना तुम अहसान।। बुरा हुआ, अच्छा हुआ, करो न पश्चाताप। बस इस पल की सोचकर, ही ख़ुशियों को माप।। बेपर उड़ने के लिए, रखिए यह भी ध्यान । ईंधन लेकर ज्ञान का, ऊँची भरें उड़ान ॥ बेटों ने जब खींच दी, आँगन में दीवार । मात-पिता को लग रहा, जीवन-तप बेक़ार ॥ बेटी के मुख पर खिले, बस निश्छल मुस्कान । हर माँ की ये कामना, पूरी कर भगवान।। बेटी मेरे वास्ते, कोई आशीर्वाद। मैं उससे करती सदा, सुख-दुख का संवाद।। बेटी से सपने जुड़े, वो है मेरी जान। जुड़ी उसी से भावना, वही गुणों की खान।। बेटी ताकि बचा सकें, चले बहुत अभियान। होंगे तब लेकिन सफल, जब जागे इंसान।। बेटी से रौशन जहां, रौशन आँगन-द्वार। घर में रंग बिखेरकर, देती ख़ुशियाँ, प्यार ।। बेटी शक्ति-रूप सभी, निभा रही है फ़र्ज़। सोचो तुम पर दोस्तों, कितना भारी कर्ज़।। बेटी नन्ही -सी परी, पंख लिए सब छीन। कभी सोच कर देख ये, ज़ुर्म बड़ा संगीन ।। बेशक़ थोड़ा ही पढ़ो, पढ़ो मगर तुम नित्य। भरता मन में स्वच्छता, है अच्छा साहित्य।। बोझिल जब लगने लगे, 'सुधि' कोई क़िरदार । उचित यही करिए विदा, दे अंतिम आभार॥ भरते हैं धन-धान्य से, बस ख़ुद का घर -बार। नेतागण इस देश का, करके बंटाधार।। भरा नयन में प्रेम है, माँ तू लिए त्रिशूल । होके सिंह सवार माँ, हर दे सबके शूल।। भले -बुरे सब एक से, राजनीति में लोग । मिलते ही करने लगे, सत्ता का उपभोग ॥ भगवन तुझको ढूँढती, ये अँखियाँ बेचैन । एक झलक जो देख लें, पा ले दिल ये चैन ॥ भगवन ने जैसी रची, मैं उस से संतुष्ट । नहीं करूँ बर्ताव से, कभी किसी को रुष्ट।। भरते तन के घाव सब, मत कर इनकी बात। पर शब्दों की तीक्ष्णता, करती है आघात।। भरती कवि की कल्पना, अन्धकार में रंग। ले आती है सामने, मन की भाव- तरंग।। भर जाते सब ज़ख्म पर, बाक़ी बचें निशान। यदि मिट सकें निशान तो, जीवन हो आसान।। भाग्य चक्र बेहद प्रबल, सबको यकीं अटूट । किसी और का ठीकरा, निज-सिर जाता फूट।। भाग रहे संघर्ष से, वे कायर, कमजोर । कर्मशील तो अंत तक, करते कोशिश घोर ।। भाँग चढ़ा कर प्रेम की, फेंकें रंग, गुलाल। आगे दौड़ें गोपियाँ, पीछे -पीछे ग्वाल।। भारत का सिरमौर है, जन्नत है कश्मीर। आतंकी उत्पात से, झेल रहा पर पीर।। भावुक होना भी बहुत, ठीक नहीं है बात । कौन किसी के बेसबब, समझेगा जज़्बात।। भारत में दीपावली, है त्योंहार विशेष । भाईचारे, प्रेम का, ----फैलाता संदेश।। भारत धरती पर मिले, भाषा, क्षेत्र अनेक । धर्म, जाति को भूलकर, लेकिन दिल सब एक ।। भारत की पहचान है, कला, ज्ञान-विज्ञान। धर्म-कर्म की ये धरा, इस पर हमें गुमान।। भावों का तूफ़ान जो, दिल के जोड़े तार। बैठी गोरी थाम कर, घूँघट के उस पार।। भारत है इसका जनक, करे विश्व उपयोग। देह, आत्मा, चेतना, को सँग लाता योग।। भेदभाव रखिए नहीं , ऊँच-नीच का भाव । खाएँ सब मिल बांटकर, हो फिर नहीं अभाव ॥ मन पुलकित बहका हुआ, है फूलों के संग। रंगा आज बसन्त में, तन- मन केसर रंग।। मन आकुल होकर विकल, करे स्वयं से बात। प्रिय बिन, ये मुखड़ा लगे, मुरझाया जलजात ॥ मन से जपकर देखिए, जय जय जय हनुमान। होती है शनिदेव की, कितनी कृपा महान ॥ मन पर बेटी के हुए, हरदम बहुत प्रहार। वो भी अपना खून है, रोको अत्याचार।। मतलब के अहस़ास से, ग्रसित आजकल लोग । एक दूसरे का करे, -----बस जमकर उपयोग ॥ मजदूरी बच्चे करें, शर्मनाक यह बात । चंद रुपये में मारते, सब सपने, जज़्बात।। मत कर सोच विचार यह, कब, किसको, दूँ मात। गुज़रे दिन बस चैन से, और नींद में रात ॥ मतलब की बैसाखियों, से चलते जो लोग। अपने जैसों से सदा, होता उनका योग।। मत आना नजदीक तू, लेकर कोई आस । कैसे दे दूँ मैं तुझे, खोया जो विश्वास ॥ मनुज-उदर की आग ने, खोजी जग में आग। बुझी पेट की आग तब, उर में उपजा राग।। मन को रहें मसोस कर, आखिर क्यों हर-बार। बैठ ख़्वाब की नाव में, चलें क्षितिज के पार।। मानव मन ख़ुद शक्ति का, एक विपुल भंडार। बाह्य जगत में खोजकर, करे वक्त़ बेक़ार।। माता तपती आग में, खुद रोटी के साथ । जले नहीं रोटी कभी, बेशक जलते हाथ ।। मास कार्तिक कृष्ण में, जगमग करती रात। होती है ख़ुश देखकर, अपनी भारत मात।। मानव निज-निर्माण का, कर लेता आभास। वैसा ही निर्मित हुआ, जैसा था विश्वास।। माँ की महिमा का करे, जो नर- नार बख़ान। जीवन से दुख दूर हों, मिले सुखों की खान ॥ मानव हृदय विशाल है, मुश्किल लेनी थाह। ये सागर जैसा लगे, गहरा, राज़ अथाह ॥ माँ बेटी में ढूंढती, अपना बचपन, ख्वाब। लगती पूरे स्वप्न सब, करने को बेताब।। मिला हमें जिस भूमि पर, जीवन, घर, धन, मान। हम सब का कर्तव्य है, रखें देश हित ध्यान।। मिले भरम के चादरे, में जब मुझको छेद। तब जाकर मैं कर सकी, सही-गलत में भेद।। मिला नहीं अख़बार तो, होते थे बेचैन । अब तो बस देता हमें, नेटवर्क ही चैन ॥ मिल ही जायेगा कहीं, प्यासों को तो नीर । सूखे कूपों की यहाँ, कौन समझता पीर ॥ मिटे, बचाने के लिए, मातृभूमि की लाज । फबता है सम्मान का, उनके सिर पर ताज।। मिलता है गर फ़ायदा, सह जाते नुकसान। फँसे लाभ के मोह में, अब रिश्ते, इंसान।। मित्र गए हमने सुना, तेरे तुझसे ऊब। तुमने अच्छे वक़्त में, अकड़ दिखाई खूब।। मिलना है माँ-बाप से, देखेगी परिवार । बेटी ने ससुराल से, मांगा वक़्त उधार ।। मिले हृदय को दर्द जो, बन कर बहता नीर। हर ले तू मेरे खुदा, सबके मन की पीर॥ मिले अगर आरम्भ से, विद्या का आधार। जीवन, मन होता सुख़द, उन्नत सोच, विचार।। मिलता मोती ज्ञान का, करो अगर संकल्प। लेकिन मेहनत का नहीं, कोई और विकल्प।। मिलता है धोखा इसे, दर्दों का उपहार। ये दिल भी कैसे करे, आख़िर सबसे प्यार।। मिला अगर कुछ भाग्य से, मत दिखलाओ ताव। पल भर में होते यहाँ, जीवन में बदलाव।। मिल जाएंगी मंजिलें, कर पहले शुरुआत । सीख जरा सी चीटियों, से मेहनत की बात ।। मिट्टी से उपजे सभी, है मिट्टी से अंत। बस जीवन जीते चलें, ये है सफ़र अनंत।। मित्र पटाखे फोड़ कर, मत कर धन बर्बाद । काश !करो इस वित्त से, कोई घर आबाद ।। मिलती गई सराहना, आता गया निखार। मेरे लेखन को मिला, आप सभी का प्यार।। मीठी बोली का भला, ये कैसा आतंक। बोल सुरीले बोलकर, मच्छर मारे डंक ॥ मुझको है भगवान का, जो भी मिले क़ुबूल । चाहे मुझको फूल दे, या फिर पथ में शूल ।। मुख से खुशियाँ फूटती, बिन पर भरें उड़ान। ख़त्म परीक्षा, कह रहे, बच्चे सीना तान।। मूलरूप से एक था, विस्तृत था आकार। वेदव्यास ने तब किए, भाग वेद के चार।। मूरख सँग जब बोलता, ज्ञानी उसके बोल । कैसे उनमें भेद हो, क्या उनका फिर मोल ।। मूक जानवर भी यहाँ, करते काज महान । देश धरा खातिर हुआ, चेतक भी क़ुर्बान।। मेरा फिर से रह गया, एक अधूरा गीत। होगा पूरा या नही, कुछ न जानूँ मीत।। मेरी बेटी तू नही, रही कभी भी भार। ऊँचा उड़ना है तुझे, अपने पंख पसार।। मैया मेरी गलतियाँ, तू कर देना माफ। बनी रहे तेरी कृपा, रहे सदा मन साफ।। मैं सोचूँ बैठा ख़ुदा, तारों के उस पार। तब ही तक कर शुन्य में, शान्ति मिले अपार ।। मैं छोटी -सी नाव हूँ , सागर है संसार । तर जाउँ यदि थाम लो, मैया तुम पतवार ।। मंजिल छोटी ही सही, या हो लम्बी राह। चैन भरी हो जिन्दगी, मेरी बस यह चाह॥ यह धागा ही मोह का, करवाता आभास । कल तक थे जो कुछ नहीं, अब लगते हैं ख़ास ।। याद मुझे सब लोरियाँ, वे सपनो की रात। जब तारों की छांँव में, माँ कहती थी बात।। यूंँ तो नन्ही आंँख से, झाँक रही मुस्कान । छोटे हैं बच्चे मगर, अंदर से शैतान।। ये जीवन लम्बा सफ़र, बहुत कठिन है राह । वक़्त करेगा फैसले, रख चलने की चाह।। ये जग जंगल -सा लगे, बाधा मकड़ी-जाल। कदम-कदम पर उलझने, कर देती बेहाल।। ये रस्तों की अड़चनें, देंगी नई तराश। हे भारत की बेटियो, छू लो तुम आकाश।। ये नसीब की बात है, जो तुम मेरे साथ। वरना किसका कौन है, दुनिया में रघुनाथ।। ये गेहूँ की बालियाँ, भँवरों का संगीत। कोयल -कूक बसन्त में, करे मौन पर जीत।। रंग-बिरंगी तितलियाँ, उड़े फूल से फूल। लगता ये ऋतुराज तो, मधुर बड़ा अनुकूल।। रंग बदलकर आ रहा, गिरगिट मेरे पास । भूल रहा हर रंग का, अब मुझको आभास।। रंक बने राजा कभी, राजा रंक हुजूर । देने वाला वो ख़ुदा, तुम नाहक़ मग़रूर ॥ रणभूमि से चुण्डावत, का, मन हुआ उचाट । भेजा हाड़ी ने तभी, शीश स्वयं का काट॥ रखना मेरी माँ मुझे, सदा बदी से दूर। राह कभी भटकूँ नहीं, आए नही ग़ुरूर।। रख लेंगे गर कैद कर, नहीं रुकेगी पास । चलो बाँटती सुधि इसे, खुशी एक अहसास। रक्त -चाप, अविवेक को, पैदा करता क्रोध। फिर कब हो अपना पतन, कभी न होता बोध।। रखता जो निज फ़ायदे, का ही सदा विचार। वो दूजे की राह में, कंकड़ भरता खार।। रहते हैं अम्बर तले, धरती ऊपर पैर। मन अपना सम्पन्न है, पर हम खुद से गैर।। रहना इसको शाश्वत, है विस्तार अनंत। मित्र सनातन धर्म का, आदि न कोई अंत।। रहता है संकल्प का, एक क्षणिक आवेश। मिले शिथिलता राह में, धर कर नाना वेश।। रख सिर पर मटकी चली, भरने पानी नार। इठलाती सी चल रही, कर नज़रों से वार।। रगड़ रगड़ कर धो लिए, तन के वस्त्र मलीन। मन का कैसे साफ़ हो, गंदा जो कालीन ॥ राजधर्म को भूलकर, करते भोग-विलास। फिर नेता को भूख का, हो कैसे अहसास।। राधा नाची झूमकर, सुन मुरली की तान। कान्हा के मुख पर सजी, मधुर-मधुर मुस्कान।। राज्य हितों की आड़ में, मन माफ़िक बदलाव। जनता को नेता ठगें, देकर नित नव घाव।। रात रँगीली है कहीं, ख़ौफ़नाक है रूप। जिसकी जैसी लालसा, ये उसके अनुरूप।। राजस्थानी यह धरा, भारत माँ की शान। गौरव जहाँ प्रताप का, गोरा का बलिदान।। राह किधर, मंजिल कहाँ, नही किसी को होश। लक्ष्यहीन बन दौड़ते, व्यर्थ पालकर जोश।। रिश्ते ऐसे जो सदा, दिल में देते घाव। उन्हे निभाना है मगर, देते बहुत तनाव॥ रिश्तों के इस खेल में, जीत और क्या हार । अना, दम्भ, शिकवे, गिले, सब बातें बेकार।। रिश्ता बने नसीब से, इससे मत कर खेल । वही दूरियाँ भी करे, वही कराए मेल ॥ रोता है दिल बारहा, देख झूठ के पाँव । सच तो बैठा धूप में, मिली कहीं न छाँव॥ रोके से रुकता नहीं, कभी प्रीत का भाव । यह ख़ुद ही पहुँचे वहाँ, मिलता जहाँ सुभाव ॥ रोटी थी जो घास की, लेकर चला बिलाव । आँसू बच्चे के करें, राणा-उर में घाव ।। लगती हँसती बेटियाँ, बजता ज्यों संगीत। घर भी इनके साथ में, गाये जीवन गीत।। लगा समझने में मुझे, मुश्किल वैदिक धर्म। मैं बस सच के साथ में, करूँ स्वयं का कर्म।। लगती है जिसकी हमें, बोली कड़वा नीम। होता है अक़्सर वही, अपने लिए हकीम।। लालन-पालन से उसे, दो सुदृढ़ आधार। जिससे बेटी कर सके, स्वप्न सभी साकार।। लेकर तेरी कोख से, जन्म, हो गई धन्य। माँ-सा कोई दूसरा, नही जगत में अन्य।। लोभ पाप का मूल है, जो देता अपमान। अपमानी को कब मिला, फिर जग में सम्मान।। लोग करें परिहास अब, ले कान्हा की आड़। राधा-राधा बोलकर, कर जाते खिलवाड़।। लौटे थे घर राम जी, पूरा कर वनवास । दीप जलाकर देश ने, दिखलाया उल्लास ।। वक़्त गुज़रने पर करें, सुधि सब पश्चाताप। था जीवन सुलझा हुआ, बस उलझे हम-आप।। वक़्त कहाँ है पास जो, करें स्वयं से बात। भौतिकता ही घेरकर, बैठी है दिन -रात।। विपदा में पहले करें, मित्र जिसे हम याद। उन्हें सलामत रखो प्रभु, इतनी है फ़रियाद।। विरहानल का ताप हो, या गर्मी की मार। जठरानल के सामने, सब बातें बेक़ार।। विषधर, बिच्छू जा छुपे, खा गर्मी की मार। कुछ इंसानों ने लिया, उनका यह व्यवहार। विद का मतलब जानना, विद से बना है वेद। वेदों के अंदर छुपा, सारा जीवन भेद।। वे विपदा की आँधियों, में हिम्मत, विश्वास। और पिता के सम नहीं, दूजी कोई आस।। वे शब्दों से खेलने, के निकले शौकीन। हम जिनके हर लफ्ज़ पर, करते गए यकीन।। वो गुरु है, माँ-बाप भी, सबका प्रभु औ' ईश। करती रक्षा प्रकृति भी, वो ही न्यायाधीश।। वो पापा की लाड़ली, अपनी माँ के प्राण। लेकर संग लड़ने चली, विद्या रूपी बाण।। वो भाई की लाड़ली, है बहना को भान। पल में करता है वही, हर मुश्किल आसान।। संदेशा प्रिय का लिया, पल में उसने बाँच। प्रेमिल मन बहका फिरे, हर पल भरे कुलाँच।। समय निकालो प्रभु कभी, जानो जग-हालात। लगे लूटने में सभी, बस धन औ' जज़्बात।। सपनों ने नींदें छली, आशा ने विश्वास। मैं इस छल के खेल में, रखती किससे आस॥ सभी दिवाली में करें, कोने- कोने साफ़। पर्दे, चादर, वस्त्र औ, बदलें सभी लिहाफ़।। सभी दरो-दीवार पर, लिखी हुई है शान। हमें जानने के लिए, आएँ राजस्थान।। सच्चे मन से कीजिए, माँ की जय- जयकार । मिटते हैं नवरात्र में , मन के सभी विकार ॥ सबको ये शुभकामना, हर दिन हो त्यौहार। दस्तक दें घर आपके, खुशियाँ बारम्बार।। समय गुज़ारी का इसे, ज़रिया समझें लोग । कभी फेसबुक का करो, उचित दोस्त उपयोग ।। सही नही ये बात, सब, कन्या देते मार । कुछ बेटी के वास्ते, सब कुछ जाते वार ॥ सज़कर आता फ़ाग सँग, होली का त्यौहार। चहूँ ओर बाजार में, रंगो का अंबार।। सत्य, अहिंसा जब बना, गाँधी का हथियार। अंग्रेज़ों से तब हुआ, भारत का उद्धार।। सत्य, अहिंसा का हमें, यूँ तो सब है ज्ञान। गाँधी जी उपयोग कर, लेकिन बने महान।। सधे क़दम जिसके, सधी, जिसकी होगी चाल। पायेगा मंज़िल वही, ऊँचा होगा भाल।। समय अगर प्रतिकूल हो, या कोई तक़रार । थोड़ी चुप्पी साधना, लगे जरूरी यार ॥ समय पकड़ने मैं चली, सब कुछ पीछे छोड़। पर कैसे पकड़ूँ उसे, बड़ी कठिन ये होड़।। समय कीमती सम्पदा, करता ईश प्रदान। इसके सही प्रबन्ध से, निर्धन हों धनवान।। सदा मेघ मानिंद है, जीवन में संघर्ष। धीरज ही देगा सखी, तुझे एक दिन हर्ष।। सम्बल बन असहाय का, तोड़ मोह का जाल। जल कर मरना है इसे, तन है एक मशाल।। सही -गलत समझूँ सदा, हो रोटी दो जून। क़दम मेरे फिर बढ चलो, दिल को जहाँ सुकून।। समता नार, पतंग में, डोरी जब तक हाथ । एक गगन में नाचती, दूजी चलती साथ ॥ सहती नार प्रताड़ना, होते अत्याचार। नित-नव घटनाएँ हमें, बतलाते अख़बार।। सब में होती भावना, अलग-अलग अहसास । करते तय जीवन दिशा, बनकर बेहद खास।। सबकी अपनी ज़िंदगी, मर्ज़ी की है बात। जीते हैं कोई छुपा, बता कोई ज़ज़्बात।। सभी बोझ से दबे हुए, नही कहीं विश्राम। गुज़र रहा जीवन मगर, बाक़ी ढेरों काम।। समय चले जिस चाल से, रखिए वैसी चाल। पिछड़ गए गर वक्त़ से, मिले हार का जाल।। सबसे दिल मांगे नहीं, अपना कोई भाग । ये मचला है बस वहीं, हो जिनसे अनुराग ॥ सारा जग है झूमता, सुन मुरली की तान । मुरलीवाला बस करे, राधा का गुण -गान ॥ साथी मुझ -सा चाहिए, या फिर कोई और । ये रिश्ता टूटे नहीं, करना इस पर ग़ौर ॥ सावन लेकर आ गया, अपने संग त्योहार । हर दिन इनकी आड़ से, अब बरसेगा प्यार।। साथ तुम्हारे किस तरह, आए मुझे खरोंच। दी तुमने प्रभु ज़िंदगी, दृष्टि और ये सोंच॥ सीने में उठने लगी, हाय! दर्द की हूक । जब मारी औलाद ने, शब्दों की बंदूक ॥ सुधि कुछ ऐसे लोग हैं, ख़ुद को मानें भूप। जग को चाहें ढालना, अपने ही अनुरूप।। सुन माँ पर्वत वासिनी, सबकी करुण पुकार । तेरी ही संतान है, ------- ये सारा संसार ॥ सुमिरन करते आपका, बनते बिगड़े काम । हनुमत मुझे बताइए, मेरा किधर मुका़म ॥ सुनो ध्यान से वक़्त के, क़दमों की पदचाप। अब भी दिल सँभला नहीं, तो होगा संताप।। सुख़-दुख़ है अनुभूतियाँ, सबको सुख की प्यास। लेकिन दुख़ के बाद ही, लगता है सुख ख़ास।। सुधि छोटी -सी बात है, सभी जान लें काश। गुस्सा औ' तृष्णा सदा, करती आत्मविनाश॥ सुने -सुनाने से अगर, मिट जाता अज्ञान । कैस़े विपदा से हमें, मिलता असली ज्ञान ॥ सूना लगता है जहां, लगे बेसुरे गीत । सुन ले ओ मनमीत रे, तुझ बिन सूनी प्रीत ।। सूरज उगले आग को, बहता गर्म समीर । काया लथपथ स्वेद से, राहत दे बस नीर ।। सोचूँ देख क़तार मैं, कैसे बदलूँ नोट । खाली हाथों लौटना, मन को रहा कचोट ॥ सोचो!हम होते कहाँ, कहाँ ज्ञान का स्रोत? अगर न जलती शब्द की, इस दुनिया में जोत॥ स्वस्थ्य रहे तन-मन सदा, रखो अगर ये ख़्वाब । पहले रखना ध्यान ये, बचे तरु और आब।। स्वप्न सजाकर आँख में, चली सजन के द्वार। वहाँ सुनी थी आग में, अपनी ही चीत्कार।। स्वप्न सलौने छीनकर, भूख बनाती हीन। पढ़ने लिखने की उमर, गुज़रे कचरा बीन।। शीश विराजे चंद्रमा, नाग गले का हार। हैं देवों के देव शिव, मन से बहुत उदार।। शहरों जैसा गाँव में, नहीं अभी भी दाँव। मेरी आँखों में बसा, दिल में अपना गाँव॥ शातिर फ़ितरत के जिन्हें, मक्कारी का रोग। गली-गली में आजकल, मिलते ऐसे लोग ॥ शाँत और गंभीर है, अपनी प्रकृति विशाल । विवश अगर मानव करें, धरे रूप विकराल ॥ शाख कँटीली चूमकर, झूमे नाचे फूल । किया प्रेम जब शूल से, गया दर्द सब भूल ।। शीतलता, मदहोशता, रखता एक मिठास। दर्द, यातना भी लगे, सदा प्रेम में ख़ास।। शीतल जल गगरी भरा, बरगद की थी छाँव । सोई माँ की गोद में, पहुँच स्वप्न में गाँव ।। शुद्ध हृदय, पुरुषार्थी, दोस्त मृदुल हो, शिष्ट। रहना दूर कुसंग तो, करता सदा अनिष्ट।। शूलों पर जीवन सफर, हिम्मत है पहचान। बाधा पथ में खूब हैं, चलता चल इंसान।। श्रमिक काज सब साधता, है मेहनत से चूर। अधनंगा, भूखा मगर, जीने को मज़बूर।। हँसमुख मुखड़ा, साहसी, बातचीत में ढंग। नहीं जरुरी हो यही, विश्वासी का रंग।। हँसना सेहत के लिए, माना अच्छी बात। करो किसी के तुम नही, पर आहत जज़्बात ॥ हरा-भरा परिवेश है, सावन का उपहार। चहूँ औऱ फैला रही, क़ुदरत अपना प्यार ।। हरी ओढ़कर औढनी, धरा रही है झूम । लौटा पावस अंततः, सारी दुनिया घूम ॥ हरा-भरा परिवेश है, सावन का उपहार । इसके सम्मुख मानवी, चकाचोंध, बेक़ार।। हाथ किसी का थाम कर, बीच राह मत छोड़। ऐसा कर बर्ताव तू, हो रिश्ता बेजोड़।। हद से ज्यादा प्रीत भी, कब है अच्छी बात । ये हमसे ही छीनती, चैन भरे दिन - रात ॥ हर विपदा में दे रहे, मन को सम्बल आज । भूले कुछ रिश्ते नहीं, अब भी अपनी लाज।। हरी -भरी है पेड़- सी, मन में तेरी याद । महकाती रहती सदा, मुझको तेरे बाद ।। हर पल घटते जा रहे, जीवन के दिन-रात । जल्दी तुम पूरी करो, मित्र अधूरी बात॥ हर दिल में कोई बसी, दबी-दबी सी बात। प्यार और अपनत्व से, निखरे सब जज़्बात।। हाय ! मनुज ने तोड़ दी, मर्यादाएँ आज। होड़ लगाकर चुन रहे, हम काँटों के ताज ॥ हारी मैं तुझसे सजन, जीती तेरी प्रीत। तुझको पाना हारकर, ये मेरी ही जीत ॥ हाथ पकड़ कर ले गई, मुझे क्षितिज के पार। तेरी यादों ने किया, फिर मुझ पर उपकार।। हाथ जोड़ शामो-सुबह, करती हूँ नित ध्यान । गलती पर दो क्षमा प्रभु, देना खुशियाँ, मान ॥ हिंदी भाषा देश में, जन-जन का है बोल। देवनागरी बन गई, लिपि बेहद अनमोल।। है मंदिर के शंख -सी, बेटी की आवाज़। लगे भौंर की आरती, जैसे बजता साज़।। हो जाती अज्ञानवश, जिनसे कोई भूल। माफ़ी के हक़दार वो, दो न बात को तूल ।। होता जहाँ विचार का, बेमतलब टकराव। साधो चुप्पी तुम वहाँ, मेरा यही सुझाव।। होती विपदा में सदा, 'सुधि' सच्ची पहचान। ला देती है दोस्ती, दुख में भी मुस्कान।। होते है सब काज शुभ, इनसे ही संपन्न। कन्या पूजन से सभी, होते देव प्रसन्न।। होती है मुश्किल बहुत, कहना सच्ची बात। बुरी बनूँ सच बोलकर, लेकिन करूँ न घात।। होते हैं रिश्ते वही, राह वही, हम, आप । वक़्त बदल देता नज़र, और, भाव चुपचाप

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