रागनियाँ व भजन : पंडित मांगे राम (हरियाणवी कविता)

Ragniyan Va Bhajan : Pandit Mange Ram (Haryanvi Poetry)


गंगा जी तेरे खेत मैं री माई

गंगा जी तेरे खेत मैं री माई गडे सैं हिंडोळे, च्यार कन्हैया, झूलते संग रुक्मण झूल रही। शिवजी के करमंडल कै, विष्णु जी का लाग्या पैर, पावन पवित्र अमृत बणकै, पर्बत पै गई थी ठहर, भागीरथ ने तप कर राख्या, खोद के ले आया नहर, साठ हज़ार सगर के बेटे, जो मुक्ति का पागे धाम, अयोध्या के धोरे आकै, गंगा जी धराया नाम ब्रह्मा विष्णु शिवजी तीनो, पूजा करते सुबह शाम, सब दुनियां तेरे हेत मैं, किसी हो रही जय जयकार, कन्हैया झूलते संग रुकमण झूल रही। अष्ट वसु तन्नै पैदा किये, ऋषियों का उतार्या शाप, शांतनू कै ब्याही आई, वसुओं का बनाया बाप, शील गंग छोड कै स्वर्ग मैं चली गई आप, तीन चरण तेरे गए मोक्ष मैं, एक चरण तू बणकै आई, नौ सौ मील इस पृथ्वी पै, अमृत रूप बणकै छाई, यजुर-अथर्व-साम च्यारों वेदों नै बड़ाई गाई, शिवजी चढ़े थे जनेत मैं, किसी बरसी थी मूसलधार, कन्हैया झूलते संग रुकमण झूल रही। गौमुख बद्रीनारायण लक्षमण झूला देखी लहर, हरिद्वार और ऋषिकेश कनखल मैं अमृत की नहर, गढ़मुक्तेश्वर, इलाहबाद और गया जी पवित्र शहर, कलकत्ते ते सीधी होली, हावड़ा दिखाई शान, समुद्र मैं जाकै मिलगी, सागर का घटाया मान, सूर्य जी नै अमृत पीकै अम्बोजल का किया बखान, इक दिन गई थी सनेत मैं, जित अर्जुन कृष्ण मुरार, कन्हैया झूलते संग रुकमण झूल रही। मौसिनाथ तेरे अन्दर जाणकै मिले थे आप मानसिंह भी तेरे अन्दर छाण कै मिले थे आप लख्मीचंद भी तेरे अन्दर आण कै मिले थे आप मुक्ति का जो मारग तो है तेरे अंदर न्हाने आळा, पाणछि मैं वास करता, एक मामूली सा गाणे आळा, मांगेराम भी एक दिन माई तेरे अंदर आणे आळा, रळ ज्यागा तेरे रेत मैं कित टोहवैगा संसार, कन्हैया झूलते संग रुकमण झूल रही।

तूं बालक बच्चेदार मरै टोट्टे म्हं

तूं बालक बच्चेदार मरै टोट्टे म्हं तेरे फेरयां की गुनागार फिरै टोट्टे म्हं कोन्या मिटती भूख, मिल्या ना टूक, रोवणा होग्या मनैं चौबीस घण्टे जंग झोवणा होग्या तनैं कुछ भी नहीं तमीज, फिकर का बीज बोवणा होग्या दुख दरदां का बोझ ढोवणा होग्या तेरी ब्याही बारा मास, सबर के सांस, भरै टोट्टे म्हं घर में नहीं अनाज भूख म्हं आज मरें गे सार होरे सौ-सौ कोस पेमी म्हारे तेरे टोट्टे आळे ख्याल बदलज्यां काल्ह, सजन न्यूं थारे भीड़ पड़ी म्हं मदा कर् या करैं प्यारे मेरी फूट गई तकदी, सजन तेरी बीर, जरै टोट्टे म्हं तेरी सुबह की नहाण, रोज की बैण, नहर का पाणी तू होज्यागा बेमार डरै मिसराणी तेरे बालक सैं नादान, लिए तू मान, शर्म की बाणी तू मान्या ना भरतार रोज की कहाणी घरां कपड़ा कोन्या एक, लखा कै देख ठिरैं टोट्टे म्हं जब बरसेंगे भगवान, या टपकै छान, टूटज्या सारी जब चलै जोर की हवा उठज्या सारी काच्ची तेरी दीवाल, देख लिए काल्ह, फूटज्या सारी तेरी भजन करण की बाण छुटज्या सारी मांगेराम की रजा, धर्म की धजा, गिरै टोट्टे म्हं

पकड़ कालजा रोवण लाग्गी

पकड़ कालजा रोवण लाग्गी बेटे की कौली भर कै आज कंवर तनैं जाणा होगा धर्मराज पनमेशर कै मां के हाथां मळ-मळ नहाले हट कै फेर नहीं नहाणा मां के हाथां भोजन खाले हट कै फेर नहीं खाणा जो कोय गया किले के भीतर हट कै फेर नहीं आणा जिस जगहां तेरा बाप गया सै उसे जगहां तनैं जाणा हिचकी बंधगी ना जीभ उथलती प्राण लिकड़गे डर-डर कै जमना जी म्हं डूब मरूं तै गोते आळी होज्यां हैं गणका बण कै सूवा पढ़ाल्यूं तै तोते आळी होज्यां हैं भाई चारे तै प्रैम करूं तै न्योते आळी होज्यां हैं ब्याह शादी तेरे हो जाते तो मैं पोते आळी होज्यां हैं जळुआं पूजण बहु चलै तेरी बंटा टोकणी सिर धर कै बारां साल रहया मां धोरै मां तै हाथ छुटा चाल्या मोहर, असर्फी, कणी, मणी सब अपणे हाथ लुटा चाल्या धर्म का पेड्डा ला राख्या था अपणे हाथ कटा चाल्या इन्द्रमण मेरे कंवर लाडले बाप का वंश मिटा चाल्या बिन सांकळ कुण्डे ताळी ताळा भेहड़ दिया घर कै ‘मांगेराम दर्द छाती के फटे जख्म नै सीऊंगी लखमीचन्द्र गुरु अपणे के उठ चरण नित नीऊंगी तेरे मरने के बाद कंवर ना ठण्डा पाणी पीऊंगी जब जा लेगा किले के भीतर एक घड़ी ना जीऊंगी तेरी गेल्यां-गेल्यां आ ल्यूंगी मनैं कफन बांध लिया सिर कै

रोवण आळी मनैं बतादे

रोवण आळी मनैं बतादे के बिप्ता पड़गी तेरे म्हं गैरां के दुख दूर करणियां या ताकत सै मेरे म्हं बैठ एकली रोवै सै क्यूं चेहरा हुया उदास तेरा के सासू नै बोली मारी के बालम बदमाश तेरा के नणद जिठाणी करैं लड़ाई घर में बाजै बांस तेरा के देवर सै तेरा हठीलाअ बन्द कर राख्या सांस तेरा के चोरां नै माल लूट लिया आंधी और अंधेरे म्हं के घणी कसूती चिट्ठी आग्यी गोती नाती प्यारे की के तेरे संग में हुई लड़ाई साबत भाई-चारे की कोय आवै कोय जाण लागरया जगत सरां भटियारे की लिकड़ी होठ्यां चढगी कोठ्या दुनियां चोब नकारे की तनै गादड़ आळी रात बणा दी मैं सहम धिका दिया झेरे म्हं बैठ कै एकली रोवै सै के सिर पै खसम गुसांई ना कई रोज का भूखा सूं मनैं रोटी तक भी खाई ना डेढ पहर आए नै हो लिया तोसक दरी बिछाई ना मैं आया था ठहरण खातर तूं भी सुखिया पाई ना हुई कन्हार पसीना सुख्या सर्छी बड़ै बछेरे म्हं ले गोदी में रोवै सै के बाप मरया इस याणे का सारा भेद खोल कै कहदे काम नहीं शरमाणे का उसा किसा मनै मतन्या जाणै मैं माणस ठयोड़ ठिकाने का पांणची म्हं रहण लागग्या ‘मांगेराम’ सुसाणे का पहले मोटर चलाई फेर सांग सीख लिया लखमीचन्द के डेरे म्हं

लाख बरस तक माणस जीया

उज्जैन शहर में एक गरीब ब्राह्मण रहता था और शिव की पूजा करते थे ।एक दिन शिव जी उसकी पूजा से खुश हो जाते हैं और उस को एक अमरफल देकर चलें जातें हैं । ब्राह्मण अमरफल को लेकर अपने घर आकर अपनी पत्नी को बताता है, तो उसकी पत्नी कहती है कि अब तो टोटे में बड़ी मुश्किल से दिन काट रहे हैं । हम अमर होकर क्या करेंगे और क्या कहती है - लाख बरस तक माणस जीया टोटे के मांह मरें गया के जीणें में जीया साजन धक्के खाता फिरें गया टोटे के मांह देह कै ओर उचाटी होज्या सै टोटे के मांह माणस का जी सौ-सौ घाटी होज्या सै टोटे के मांह सगे प्यार की तबियत खाटी होज्या सै टोटे के मांह सब कुणबे की रे रे माटी होज्या सै इस तै आच्छा डूब कै मरज्या दिन भर मेहनत करें गया टोटे आळे माणस की कोय आबरो करता ना जित बैठै ऊड़ै गाळ बकैं यू साळा किते मरता ना टोटे के मांह माणस तै दखे कोय आदमी डरता ना धन का टोटा भरज्या सै माणस का टोटा भरता ना इस तै आच्छा डूब कै मरज्या नीच जात तै डरें गया ‘मांगेराम’ कड़े तक रोऊं, इस टोटे का ओड़ नहीं हीरे पन्ने मोहर अशर्फी किस माणस नै लोड़ नहीं मींह बरसै जब घर टपकै फेर चीज धरण नै ठोड़ नहीं कातक लगते सोच खड़ी हो ओढ़ण खातर सौड़ नहीं शी शी शी शी करै बिचारा जाड़े के मांह ठिरें गया

सारी उमर गई टोट्टे म्हं

सारी उमर गई टोट्टे म्हं ना खाया टूक गुजारे तै कोणसा खोट बण्या साजन गई रूस लक्ष्मी म्हारे तै राजवाड्यां के राजा शाही ठाठ बिगड्ज्यां टोट्टे म्हं दर-दर भीख मांगते हांडै लाट बिगड़ज्यां टोट्टे म्हं यारे प्यारे सगे सम्बन्धी तीन सौ साठ बिगड़ज्यां टोट्टे म्हं दान पुन सब व्यर्थ तीर्थ घाट बिगड़ज्यां टोट्टे म्हं तनै धोरै बैठण देता ना कोये ताहया जा पिया सारे तै टोट्टे आळे माणस का पिया नहीं किसे संग प्यार रहै मां का जाया दुश्मन बणज्या हरदम खाए खार रहै बोल में बोल मिलै ना किसे का न्यू घर म्हं तकरार रहै काम म्हं बरकत कती नहीं जब धुर तै पाटी सार रहै इस तै आच्छा मौत भली के चालै काम कसारे तै लुच्चा गुंडा बेईमान ये नाम धरे जां टोट्टे म्हं तेरे याणे बाळक भूखे घर में रूदन करें जां टोट्टे म्हं उस कृष्ण नै जा कै कहदे हम कती मरे जां टोट्टे म्हं भीड़ पड़ी म्हं सहारा लादे के दगा करेगा प्यारे तै कोण से जन्म का श्राप सेदग्या हम बणे खड़े कंगाल पिया टोट्टे नै म्हारी कमर तोड़ दी आती कोन्या चाल पिया ‘मांगेराम’ गुरु लख्मीचन्द ये करे टोट्टे नै कैल पिया भीड़ पड़ी म्हं मदद करेगा खुद कृष्ण गोपाल पिया कोण सा बदला लेवै लक्ष्मी इस भृगु वंश बेचारे तै

सासू नणद जेठाणी कोन्या

सासू नणद जेठाणी कोन्या मैं बेटे पै दिन तोडूं सूं मेरे बेटे की ज्यान बचादे भूप खड़ी कर जोडूं सूं आए गए मुसाफिर के कदे दो आने भी लूट्टे ना साधु सन्त महात्मा तै मनैं दिए वचन कदे झूठ्ठे ना काच्चे गेहूं खेत म्हं सूखै रॉस हुई और उठ्ठे ना मेरा बेटा के मरण जोग सै दांत दूध के टूट्टे ना आंसू पड़-पड़ घूंघट भीझै मैं पल्ला पकड़ निचोडूं सूं 18 साल की रांड हुई मैं डळे स्वर्ग म्हं डोहऊं सूं तन-मन की कोय बूझणियां ना बैठ एकली रोऊं सूं काफी दिन हुए रांड हुई नै सांस घाल कै सोऊं सूं कई रोज की भूखी सूं मैं डेढ टिकड़ा पोऊं सूं और देश नै मोती चुग लिए मैं ठाली रेत पिछोडू सूं त्रिलोकी के पनमेसर मत एक किसे कै लाल दिए एक लाल भी दे दे तो फेर मोहर असर्फी माल दिए बारां साल होए रांड होई न काट भतेरे साल दिए मेरे बेटे के बदले म्हं आज और किसे नै घाल दिए तूं जाणैं कै मैं जाणूं के बात शहर म्हं फोडूं सूं ‘मांगेराम’ बुरे कामां तै टळता-टळता टळया रहै ऊंच का पाणी सदा नीच म्हं ढळता-ढळता टळया रहै दुश्मन माणस के करले वो अपणे मन म्हं जळया रहै मेरे बेटे की ज्यान बचादे मेरा भी दीवा बळया रहै तेगा लेकै नाड़ काटले के तेरे हाथ नै मोडूं सूं

हरियाणे की कहाणी सुणल्यो

हरियाणे की कहाणी सुणल्यो दो सौ साल की। कई किस्म की हवा चालगी नई चाल की । एक ढोलकिया एक सारंगिया खड़े रहैं थे एक जनाना एक मर्दाना दो अड़े रहैं थे पन्दरा-सोलहा कूंगर जड़कै जुड़े रहैं थे गली और गितवाडां के म्हं बड़े रहें थे सब तै पहलम या चतराई किशनलाल की । एक सौ सत्तर साल बाद फेर दीपचन्द होग्या साजिन्दे तो बिठा दिये घोड़े का नाच बन्द होग्या नीच्चै काला दामण ऊपर लाल कन्ध होग्या चमोले नै भूलग्ये न्यूं न्यारा छंद होग्या तीन काफिये गाए या बरणी रंगत हाल की । हरदेवा दुलीचंद चितरु भरतु एक बाजे नाई घाघरी तै उन्हनै भी पहरी आंगी छुटवाई तीन काफिये छोढ़ इकहरी रागनी गाई उन्हतैं पाच्छै लखमीचन्द नै डोली बरसाई। बातां उपर कलम तोड़ग्या आज-काल्ह की। मांगेराम पाणची आला मन म्हं करै विचार घाघरी के मारे मरगे मूरख मूढ़ गवार शीश पै दुपट्टा, जम्फर पाह्यां म्हं सलवार ईबतैं आगै देख लियो के चौथा चलै त्योहार ज्यब छोरा पहरै घाघरी किसी बात कमाल की। हरियाणे की कहाणी सुनल्यो दो सौ साल की।।

हे रै कुछ ज्ञान रह्या ना

कवि शिरोमणि पंडित मांगे राम सांगी जी ने अपने समकालीन सांगी भाइयों के सांग करने के बारे में काफी प्रकाश डाला।उस समय के पंडित दीपचंद से लेकर स्वयं पंडित मांगे राम सांगी तक के सांग करने के तरीकों के बारे में और सांग विधा के बारे में एक बहुत ही सुंदर रचना बनाई थी जो इस प्रकार है- हे रै कुछ ज्ञान रह्या ना दुनिया की चाल बिगाड़ी।।टेक।। दीपचंद के खिमा कुतबी धौली चादर ओढया करते। आडा-तिरछा ढुंगा मारै हाथ तले नै कोडा करते। गोली किसा निशान लागै, तीन काफिए छोड्या करते। खिमा तै सोरठ बनता फिर दीपचंद बणता बंजारा। मरगे कुतबी मरगे कुतबी, मार दिया मेरे फटकारा। बीजा बण कै आया करता बिन बजा कै सांग दिख्यारा। दो नकली के तख्तां कै उपर बकते बात उघाड़ी।।१।। हे रै कुछ ज्ञान रह्या ना दुनिया की चाल बिगाड़ी।।टेक।। हरदेव तै राँझा बणता, चतरू की बनाई हीर। सादिक के म्ह चाले काटे, कहते देखे मर्द और बीर। मरगे चतरू मरगे चतरू, बोलां के मारै था तीर। बाजे ने एक झम्मन पाला गिण कै डाक मराई तीन। हाय मरगे हाय मरगे, आख्यां देख्या करो यकीन। जमाल के नै कुरान पढ़ा कै दुनिया का बिगाडया दीन। बहुत से माणस हीरामल नै पागल कहें अनाड़ी।।२।। हे रै कुछ ज्ञान रह्या ना दुनिया की चाल बिगाड़ी।।टेक।। दुनिया के म्ह शोर माच ग्या लकड़हारा गावण लाग्या। मरगे दादा मरगे दादा, भर भर डोली ठावण लाग्या। ब्होत सी दुनिया पाछे छोडी, नये नये सांग सुणावण लाग्या। लख्मीचंद का माईचन्द था, काठ बैहल सी हाल्या करता। बागां में नोटंकी बण कै, खटोले से साल्या करता। फेर आगे आगे नोटंकी अर पाछे बामण चाल्या करता। लख्मीचंद माळी की बण कै बांध्या करता साडी।।३।। हे रै कुछ ज्ञान रह्या ना दुनिया की चाल बिगाड़ी।।टेक।। धनपत ने एक श्याम बणाया श्याम खटक गया सारा कै। पाका श्याम डूम का छोरा काच्चा श्याम कुम्हारा कै। सिलो सिलो कह कै बोले या लागे खटक गवारां कै। आंग्लियाँ तै करें इशारे जा ली बलख बुखारे में। सी -सी कर कै सांग करे जणु खाली मिर्च बिचारे नै। मुह जळ ज्य़ा तै मीठा खा ले, ले अगले समझ इशारे नै। ज्यानी चोर पै जोर लगा दिया धनपत पिछम पिछाड़ी।।४।। हे रै कुछ ज्ञान रह्या ना दुनिया की चाल बिगाड़ी।।टेक।। दत नगर का चन्द्र बादी तेली का एक लेरया छोरा। करमु का कर्मबीर बणाया जिस पै बांगर पागल होरया। मुह मरका कै करे इशारे आख्यां में स्याही का डोरा। एक हीर के नै दीन बिगाडया हिन्दू रह्या ना मुसलमान। बादियाँ कै होका पीवै जाने सै यो जगत जहान। बनवारी का टीबा ठा कै दत नगर पड़वाये कान। ही-ही करे जणु गादड़ बोले सारी फसल उजाड़ी।।५।। हे रै कुछ ज्ञान रह्या ना दुनिया की चाल बिगाड़ी।।टेक।। राम किशन माईराम का चेला, बेड़े बंद की पदवी थ्यागी। दिन धौली पंसारी बण गया मुसे नै एक हल्दी पागी। आँख मीच कै पड़ कै सोगया पाले नै तै बकरी खागी। किसका पाला किसकी बकरी क्यों बण रह्या सै सहम रूखाला। पन्मेशर का भजन करे ज्य़ा गळ में पहर काठ की माला। ब्यास का ब्यास बणा रहग्या वो ब्यास बणे था नारनोंद आला। यो धंधा तेरा चाले कोन्या तू टोह ले काम अगाड़ी।।६।। हे रै कुछ ज्ञान रह्या ना दुनिया की चाल बिगाड़ी।।टेक।। मांगेराम मसीता तेरा भाई का भाई रहग्या। मांगेराम सूरजमल तेरा राही का राही रहग्या। मांगेराम टेकचंद तेरा नाई का नाई रहग्या। एक सरुपा अर एक कपूरा रोक्या खड़ें रकाने नै। ध्रुव भगत अर क्रष्ण जन्म के ओटे कोण निशाने नै। बाप और बेटी सुणों बैठ के या पट री जाण जमाने नै कहे मांगेराम तेरा ज्ञान लुट गया तेरी खुली पड़ी किवाड़ी।।७।। हे रै कुछ ज्ञान रह्या ना दुनिया की चाल बिगाड़ी।।टेक।।

तेरे भवन म्ह खड़े पुजारी-भेंट

तेरे भवन म्ह खड़े पुजारी, खड़े पुजारी, री, री, री, री ज्वाला री, री, री ज्वाला री, मेरे मन म्ह, मन म्ह, मेरे मन म्ह बसी है तू ।।टेक।। दुर्गे, ब्रिजिया, काली, विजिया नाम गिणाऊं तेरे, कमोढ़ा, चंडिका, क्रष्णा महादेवी जगह-जगह पै डेरे, सदा शेर की तेरी सवारी, तेरी सवारी, री, री, री, री ज्वाला री ।।1।। री, री ज्वाला री, मेरे मन म्ह, मन म्ह, मेरे मन म्ह बसी है तू ।।टेक।। ब्रहमा, विष्णु, शिवजी रच दिए जगमग जोत सवाई, चार वेद तनै साकसी कहते सृष्टि तनै रचाई, रचा दी तनै दुनिया सारी, दुनिया सारी री, री, री, री ज्वाला री ।।2।। री, री ज्वाला री, मेरे मन म्ह, मन म्ह, मेरे मन म्ह बसी है तू ।।टेक।। भामासुर अभिमानी राजा कोन्या रोकी कफल जड़े, कफल तोड़ कै कैद छुटाली देखैं थे सब लोग खड़े, बड़ी किले म्ह दे किलकारी, दे किलकारी री, री, री, री ज्वाला री ।।3।। री, री ज्वाला री, मेरे मन म्ह, मन म्ह, मेरे मन म्ह बसी है तू ।।टेक।। मवासीनाथ, मानसिंह भी तेरे शरण म्ह खड़े रहे, मांगेराम गुरु लख्मीचंद तेरे चरण म्ह पड़े रहे, ज्ञान के कारण बणे भिखारी, बणे भिखारी री, री, री, री ज्वाला री ।।4।। री, री ज्वाला री, मेरे मन म्ह, मन म्ह, मेरे मन म्ह बसी है तू ।।टेक।।

के हुया करै कंगाल कै

के हुया करै कंगाल कै, के मैं ल्यावण जोग्गा सूं ।।टेक।। क्यूं बातां की करै सफाई, क्रष्ण लाग्या करण अंघाई, भाई तू छिकरया सै धनमाल तै, के मैं ठावण जोग्गा सूं ।।1।। के हुया करै कंगाल कै, के मैं ल्यावण जोग्गा सूं ।।टेक।। हम छ:माणस विप्त भरैं, बतादे जतन कौनसा करैं, चाहें घरां देखले चाल कै, के मैं आवण जोग्गा सूं ।।2।। के हुया करै कंगाल कै, के मैं ल्यावण जोग्गा सूं ।।टेक।। मैं भूखा मरता कुटुंब समेत, कुछ कर मेरे बालाकां का चेत, मेरे रेत लाग् रया खाल कै, भाई मैं ताह्वण जोग्गा सूं ।।3।। के हुया करै कंगाल कै, के मैं ल्यावण जोग्गा सूं ।।टेक।। लख्मीचंद भज रहे हरि, मांगेराम कै पक्की जरी, दुनिया भरी सुरताल कै, के मैं गावण जोग्गा सूं ।।4।। के हुया करै कंगाल कै, के मैं ल्यावण जोग्गा सूं ।।टेक।। ("क्रष्ण-सुदामा" सांग में से)

पांच, सात, दस, बीस म्ह गेड़ा मारिए

पांच, सात, दस, बीस म्ह गेड़ा मारिए । भाभी नै दिए राम-राम, बच्चों नै पुचकारिये ।।टेक।। जो कुछ मेरे घर म्ह सै सब भीतर बाहर तेरा । त्रिलोकी का नाथ करेगा बेड़ा पार तेरा । मैं बालकपण का यार तेरा, मत दिल तै तारिये ।।1।। भाभी नै दिए राम-राम, बच्चों नै पुचकारिये ।।टेक।। प्यारे मिलैं उजाड़ म्ह जब पेटे भरया करैं । सत पुरुषां की नाव भवंर तै आपे तिरया करैं । त्रिलोकी के नाथ करया करैं, बख्त बिचारिये ।।2।। भाभी नै दिए राम-राम, बच्चों नै पुचकारिये ।।टेक।। तीन रोज तक रंग महल म्ह खूब करे ठठ्ठे । महादेव नै बेटे तेरै चार दिए कट्ठे । कुर्ता टोपी और दुपट्ट, खूब सिंगारिये ।।3।। भाभी नै दिए राम-राम, बच्चों नै पुचकारिये ।।टेक।। कहै मांगेराम इस दुनिया म्ह खोट्टा घरवासा । 24 घण्टे फ़िक्र करें जा आनन्द ना माशा । काम, क्रोध, मद, लोभ की आशा, तू मतन्या धारिये ।।4।। भाभी नै दिए राम-राम, बच्चों नै पुचकारिये ।।टेक।। ("क्रष्ण-सुदामा" सांग में से)

यज्ञ, हवन, तप, दान, करे तै

जब सुदामा के घर पर अनाज नही रहता है तो सुदामा की पत्नी सुशीला उसे क्या कहती है--- यज्ञ, हवन, तप, दान, करे तै लोग हंसाई होगी । दो मुटठी ना दाणे घर म्ह कती सफाई होगी ।।टेक।। अगत का सामान करया था, आत्मा का ज्ञान करया था, हरिचंद नै दान करया था, कोड तबाई होगी ।।1।। दो मुटठी ना दाणे घर म्ह कती सफाई होगी ।।टेक।। अपणा हिरदा नर्म करे तै, सबके दिल म्ह भर्म करे तै, नल राजा के कर्म करे तै, भौम पराई होगी ।।2।। दो मुटठी ना दाणे घर म्ह कती सफाई होगी ।।टेक।। पंचा म्ह पकड़या पल्ला, कोन्या करया राम नै भला, गौतम ऋषि की नार अहल्या, सती लुगाई होगी ।।3।। दो मुटठी ना दाणे घर म्ह कती सफाई होगी ।।टेक।। पांच आदमी तेरे सहारै, क्यूँ ना साजन बख्त बिचारै, मांगेराम सांग के बारै, सफल कमाई होगी ।।4।। ("क्रष्ण-सुदामा" सांग में से)

रोऊँ बरसै नैनां तै नीर

जब दीवान चन्द्रहास को मारने की साजिश दुबारा करता है और मन्दिर में जल्लादों को बैठा देता है क्योंकि जब चन्द्रहास और विषिया दोनों पूजा करने जायेंगे । वहीं पर चन्द्रहास का सिर धड़ से अलग कर देंगे । पर वहां पर उनसे पहले विषिया का भाई मदन वहां पहुंच जाता है और जल्लाद उसी को चन्द्रहास समझ कर उसका कत्ल कर देते हैं जब चन्द्रहास और विषिया मन्दिर में पहुंचते हैं तो विषिया अपने भाई को मरा देख क्या कहती है- रोऊँ बरसै नैनां तै नीर । माँ के जाए बोलिए रे मेरे बीर ।।टेक।। मुख चुमुं, करूं लाड मदन का । खून सूख ग्य़ा तेरे बदन का । कौण बंधावै मेरी धीर ।।1।। माँ के जाए बोलिए रे मेरे बीर ।।टेक।। कौण बाहण के लाड करेगा । माँ-जाई के कौण भात करेगा । कौण उढावे दखणी चीर ।।2।। माँ के जाए बोलिए रे मेरे बीर ।।टेक।। तन म्ह होग्यी कौण बिमारी । कित लाग्गी तेरै छुरी-कटारी । कित सी लाग्या तीर ।।3।। माँ के जाए बोलिए रे मेरे बीर ।।टेक।। मांगेराम नै ल्याओ बुलाकै । संजीवनी बूटी ज्यागा पिला कै । हो ज्यागा अमर शरीर ।।4।।

नारद के बोल मेरे हृदय समाए हो

जब नारद जी रानी सुनीति को कहते हैं कि आपकी वंश बेल तब चलेगी जब आप अपने पति की दूसरी शादी करवाओ ।इतना कहकर नारद जी महल से चले जाते हैं।तो रानी सुनीति राजा उतानपाद से कहती हैं कि आप दूसरी शादी करवा लो तभी हमारी वंश बेल चलेगी पर राजा उतानपाद मना कर देते हैं तो रानी उन्हें कहती है- नारद के बोल मेरे हृदय समाए हो ।।टेक।। मेरे कहे तै ब्याह करवाले तन की कली खिलैगी । जब म्हारे अगत बेल चलेगी, माया मिलैगी, होंज्या मन के चाहे हो ।।1।। नारद के बोल मेरे हृदय समाए हो ।।टेक।। बीर मर्द का मेल बण्या रहै धूर के साथ इसे हों । त्रिलोकी के नाथ इसे हों, हाथ इसे हों, जिन तै बाग लुआए हों ।।2।। नारद के बोल मेरे हृदय समाए हो ।।टेक।। कदे भी ना झूठी जा इन म्हं-ऋषियों की बाणी । तूं राजा मैं राणी, म्हारी उमर पुराणी, हम सां खाए कुमाए हो ।।3।। नारद के बोल मेरे हृदय समाए हो ।।टेक।। बेटे बिन मुक्ति ना मिलती चाहे लाख बर्ष तक जी ले । गुरु लख्मीचंद के छन्द रसीले, गडरे सै कील्ले, कोन्या हिलते हीलाए हो ।।4।। नारद के बोल मेरे हृदय समाए हो ।।टेक।। इस रागनी में पंडित मांगेराम जी ने अपने गुरु का ही नाम लिया है ।

दया धर्म सब जा लिए

दया धर्म सब जा लिए, जा लिए दीन ईमान ।।टेक।। जमाने तने के करी, किसे रंग दिखाए हो ............. बीर-मर्द आपस के मांह धोखा करके करते बात । एक जगहां रहणा-सहणा काम करै दिन-रात । न्यारी-न्यारी गाँठ सबकी खाणा-पिणा एक साथ । बाबू बोल्या छोरे सेती लेरया सूं भतेरा माल । मेरी गेल्याँ न्यारा होइए, खूब द्यूंगा लते चाल । फागण म्ह तने घी दे द्यूंगा, छोरे गेल्याँ करिये आळ । छोरा-बहू न्यू बहका लिए, या बूढ़े तेरी शान ।।१।। जमाने तने के करी.किसे रंग दिखाए हो ............. दया धर्म सब जा लिए, जा लिए दीन ईमान ।।टेक।। बेटी चाहवे माँ की गेल्याँ लुट लेज्याँ सारे घर नै । भाई-भावज दोनों रोवें पीट-पीट अपने सिर नै । पिहिरयाँ पै माळ लेके राजी राखे ब्याहे वर नै । ब्याहा वर तै सुल्फा पीवै, बेच खाई सारी टूम । किसे तै भी बोले कोन्या एकला फिरे जा सूम । आठ जगहां तै लते जळ रहे टोटे नै मचाई धूम । कासण बेच कै नै खा लिए, फिर चा की करी दुकान ।।२।। जमाने तने के करी.किसे रंग दिखाए हो ............. दया धर्म सब जा लिए, जा लिए दीन ईमान ।।टेक।। बीडी-चाए, पान बेचे सबते बोले करके प्यार । महीने म्ह दिवाला लिकड़ा उसने पीगे मिन्त्र-यार । पिसे मांग्ये जूत बाज्या सारी बाकी रही उधार । महीने भीतर घर नै आग्या एक लिया ङांडा मोल । २० बीघे धरती बोई, बीज गेरया तोल तोल । सुल्फा पीकै पड़ के सोग्या, धंधा लिया चोरां नै खोल । गधा तलक भी बहा लिए, फेर पागल कहै जहान ।।३।। जमाने तने के करी.किसे रंग दिखाए हो ............. दया धर्म सब जा लिए, जा लिए दीन ईमान ।।टेक।। ब्याही बीर घर नै छोड़ी, बोहरियाँ का टोह्या मठ । भगमा बाणा कान पड़ाय़े, एक कीकर का ठाया लठ । दिए माई-दिए माई, गोरै जा लगाया भठ । बालकपण म्ह बिगड़ होग्या, सोने का बणाया रांग । लख्मीचंद नै देख देख इस दुनिया का बणाया सांग । मांगेराम हाथ जोड़े छोड़ दियो नै सुल्फा भांग । गंगा जी से नहा लिए, म्हारा बसियो हिंदुस्तान।।४।। जमाने तने के करी.किसे रंग दिखाए हो ............. दया धर्म सब जा लिए, जा लिए दीन ईमान ।।टेक।।

मेरा बाहर खडया भरतार

श्री क्रष्ण जी सुदामा के लिए नया महल बनवा देते है और वे सुदामा को नही बताते । जब सुदामा वापिस अपने घर आता है तो अपनी झोपडी की जगह उस महल को देख कर दंग रह जाता है और सुशीला पर भड़क जाता है तो सुशीला बांदी से क्या कहती है - मेरा बाहर खडया भरतार, हुए दिन चार दिखाई देग्या । मैं करया करूं थी शर्म सच्चाई देग्या ।।टेक।। मैं देख्या करती बाट, दिया फंद काट क्रष्ण काले नै । चीणा दिए ऊँचे महल बृज आले नै । पाट गया सै तोल, गया सै खोल कर्म ताले नै । मैं ओट्या करती रोज सर्द पाले नै । दिए दुशाले बीस, गदेले तीस, रजाई देग्या ।।१।। मैं करया करूं थी शर्म सच्चाई देग्या ।।टेक।। आनन्द होग्या आज, भतेरा नाज घरां कोठया म्ह । आटा बेसन चुन धरया कोठया म्ह । घी शक्कर गुड़ खांड, दोहरे टांड भरया कोठया म्ह । मिर्च तेल और नूण निरा कोठया म्ह । कदे मिलै नही था टूक, मेट दी भूख, मिठाई देग्या ।।२।। मैं करया करूं थी शर्म सच्चाई देग्या ।।टेक।। चाँदी सोने के ढेर, नही सै छेर भरी अलमारी । मैं सब ढालां की टूम पहरल्यूं सारी । हीरे, पन्ने, मणी, महल म्ह कणी भतेरी आरयी । बैठे बीस मुनीम भरैं सै डायरी । त्रिलोकी भगवान, करड़ा धनवान, कमाई देग्या ।।३।। मैं करया करूं थी शर्म सच्चाई देग्या ।।टेक।। गुरु लख्मीचंद की गेल, मिला कै मेल गुजारा होग्या । चरणा के मांह ध्यान हमारा होग्या । मांगेराम, सुबह और शाम नजारा होग्या । क्रष्ण जी का दर्श दुबारा होग्या । मेरे कर्म के भोग, काट दिए रोग, दवाई देग्या ।।४।। मैं करया करूं थी शर्म सच्चाई देग्या ।।टेक।। ("क्रष्ण-सुदामा" सांग में से)

कोए कोमनिस्ट, कोए सोशलिस्ट

कवि ने १५ अगस्त १९४७ के बाद राजनीति का एक बहुत बुरा पक्ष देखा।सत्ता के लिए लीडरों की भाग दौड़ शुरू हो गयी थी ।हर कोई नेता बनने के चक्कर में रहता । वे सभी नये लीडर सत्ता की अंधी दौड़ में शामिल हो गये ।हर कोई नेता बनने के चक्कर में रहता था । कवि ने उन नेताओ का वर्णन निम्न प्रकार से किया है- कोए कोमनिस्ट, कोए सोशलिस्ट, कोए लीग जमीदारा सै । रै लीडरी के मारे रोवैं यू मतलब सारा सै ।।टेक।। घर म्ह जूत लुगाई मारै, देखै बाट लीडरी की । बीस-तीस की गिणती कोन्या, गेल्याँ साठ लीडरी की । जेल म्ह जाकै करै कुर्बानी, ख़ुलरी हाट लीडरी की । ठग, डाकू, और चोर, लुटेरे, मारै डाट लीडरी की । डूब कै मर जाओ औ गद्दारों थारा कित का भाई चारा सै ।।१।। रै लीडरी के मारे रोवैं यू मतलब सारा सै ।।टेक।। जवाहरलाल श्री गाँधी जी की, गेल बणा चाहवें सैं । कांटे कितने पैने कोन्या सेल बणा चाहवे सैं । चौकीदार भी मानै कोन्या पटेल बणा चाहवे सैं । जितने लंगड़े, लूले सारे रेल बणा चाहवे सैं । असम्बली की बात करै घरां कर्जे के 1800 ।।२।। रै लीडरी के मारे रोवैं यू मतलब सारा सै ।।टेक।। गाँधी जी नै न्यू सोची दिल ठंडे तै मानेगें । जवाहरलाल नै न्यू सोची कुछ झंडे तै मानेगें । अपणे भाई अपणी जनता प्रोपगंडे तै मानेगें । रिश्वत खोरी, ब्लैक करणीयां सब डंडे तै मानेगें । सोच समझ कै देख लियो यू राजपाट थारा सै ।।३।। रै लीडरी के मारे रोवैं यू मतलब सारा सै ।।टेक।। लन्दन आले आच्छे लिकड़े देकै राज अलग होगे । 600 रियासत भारत के म्ह देकै ताज अलग होगे । गेल्याँ रुक्के मारणियां थे सब दगा बाज अलग होगे । घर की ढोलक, घर का बाजा लेकै साज अलग होगे । मांगेराम थारा सुणता कोन्या फुटा होड़ नगारा सै ।। रै लीडरी के मारे रोवैं यू मतलब सारा सै ।।टेक।।

पाणी तै ल्यादे रै रुक्मण

जब सुदामा श्री क्रष्ण जी के पास पहुच जाते है तो अपने बचपन के मित्र को देखकर श्री क्रष्ण जी काफी खुश हो जाते हैं और अपनी पत्नी रुकमणी से क्या कहते है और पंडित जी ने लिख दिया - पाणी तै ल्यादे रै रुक्मण, पाँ धोवेगा मेरा यार ।।टेक।। खड़ी-खड़ी के देखै मेरे मांह नै । मैं ब्राह्मण की पूजा करूं छा नै । पाँ नै ठादे रै रुक्मण, कांटे काढूँगा दो-चार ।।१।। पाणी तै ल्यादे रै रुक्मण, पाँ धोवेगा मेरा यार ।।टेक।। मेरा इस ब्राहमण में हित सै । इस में बालकपण तै चित सै । कित सै राधे रै रुक्मण, पहर के मालसरी का हार ।।२।। पाणी तै ल्यादे रै रुक्मण, पाँ धोवेगा मेरा यार ।।टेक।। मन से बुरे भले की दब नै । तू भजा कर सच्चे रब नै । सबनै ताहदे रै रुक्मण, रणवांसा तै बाहर ।।३।। पाणी तै ल्यादे रै रुक्मण, पाँ धोवेगा मेरा यार ।।टेक।। न्यू सोची गुरु लख्मीचंद नै । देंगे काट द्ल्द्र फंद नै । छन्द नै गा दे रै रुक्मण, मीठा सारंगी का तार ।।४।। पाणी तै ल्यादे रै रुक्मण, पाँ धोवेगा मेरा यार ।।टेक।। ("क्रष्ण-सुदामा" सांग में से)

फाँसी भी आच्छी, सूली भी आच्छी

जब राजा उतानपाद की दूसरी शादी हो जाती है तो राजा अपनी रानियों को (जो कि दोनों बहने थी ) लड़ते हुए देख कर क्या कहने लगते है- फाँसी भी आच्छी, सूली भी आच्छी । घर म्हं ना आच्छी लुगाई दो ।।टेक।। खसम करें जा चौकीदारा गेल सिपाही दो । कान पकड़ कै मुल्जिम करले । डंडे बजावैं, करदे सिर पै पिटाई दो ।।१।। घर म्हं ना आच्छी लुगाई दो ।।टेक।। ये माणस नै पार तारदे शर्म सच्चाई दो । चौबीस घण्टे खांडा बाजै, टूक खाण दे कोन्या, घर म्हं जमाई दो ।।२।। घर म्हं ना आच्छी लुगाई दो ।।टेक।। बुढे बारै ब्याह करवावै मिलै बुराई दो । घर के अंदर हत्था बणज्या, गरीब गऊ के सिर पै चढज्यां, कसाई दो ।।३।। घर म्हं ना आच्छी लुगाई दो ।।टेक।। इसी ए सूली इसी ए फाँसी ब्याह सगाई दो । मांगेराम दूध की जड़ म्हं सारा, खिडांदे बड़ज्या घर म्हं, बिलाई दो ।।४।।

कह कै उल्टा नहीं फिरूंगा

कह कै उल्टा नहीं फिरूंगा, सदा आगे नै कदम धरुंगा । गैरां के दुःख दूर करूंगा, जीऊंगा इतनै ।।टेक।। चाहे कोए मिलियो मूढ़ अनाड़ी । उसकी भी सोचूं ना बात उगाड़ी । पतली माड़ी मोटी द्यूंगा, काम्बल एक लंगोटी द्यूंगा, भूख्या ने दो रोटी द्यूंगा, जीऊंगा इतनै।।1।। गैरां के दुःख दूर करूंगा, जीऊंगा इतनै ।।टेक।। तुम हंस बणे बिना पर के । बिगड़ी म्ह कौण गैर कौण घर के । हर के गुण नै गाया करूंगा, हरिद्वार, गढ़ जाया करूंगा, गँगा जी म्ह नहाया करूंगा, जीऊंगा इतनै ।।2।। गैरां के दुःख दूर करूंगा, जीऊंगा इतनै ।।टेक।। धर्म की ठा राखी शमशीर । सत की या खेंची एक लकीर । गैर बीर का भाती हूँगा, ठाडे का ना साथी हूँगा, हिणे का हिमाती हूँगा, जीऊंगा इतनै ।।3।। गैरां के दुःख दूर करूंगा, जीऊंगा इतनै ।।टेक।। तुमने देख हुआ घणा प्रसन्न । लग्या आँखों तै पाणी बरसण । मैं क्रष्ण कैसा नृत करूंगा, मन की सोची शर्त करूंगा, पणवासी का व्रत करूंगा, जीऊंगा इतनै ।।4।। गैरां के दुःख दूर करूंगा, जीऊंगा इतनै ।।टेक।। मांगेराम आत्मा नै मारूं । सदा आगे की बात बिचारुं । सुल्फे, दारुं में झूलूं ना, खाकै फीम घणा टुलूं ना, गुरु लखमीचंद का गुण भूलूं ना, जीऊंगा इतनै।।5।। गैरां के दुःख दूर करूंगा, जीऊंगा इतनै ।।टेक।।

महाभारत के बाद भुल्ग्ये बात मुरारी की

कवि मांगे राम सांगी जी ने आने वाले कलयुग के लोगो को को समझाने के लिए रागनी बनाई थी- महाभारत के बाद भुल्ग्ये बात मुरारी की। पैसे के म्ह मोहब्बत रहगी दुनिया सारी की।।टेक।। लोग दिखावा वेद पढ़ें और गल माला गळ री। भग माह बाणा चेली राखें किसी आजादी मिल री। मन्दिर के म्ह चोड़े खुल री पोल पुजारी की।।१।। पैसे के म्ह मोहब्बत रहगी दुनिया सारी की।।टेक।। दो पैसे के उपर माणस गंगा जल ठाले। पांच साल की छोरी ने वे बूढ़े संग ब्याह्लें। कोडी कोडी बेंच के खालें कन्या कुंवारी की।।२।। पैसे के म्ह मोहब्बत रहगी दुनिया सारी की।।टेक।। सारी हाणा काम बदी के कदे करे ना नेकी। पीं पीं पीं बाजा बाजे एक ढोलक ला टेकी। अपने आँख्यां हमने देखी ठगी प्रचारी की।।३।। पैसे के म्ह मोहब्बत रहगी दुनिया सारी की।।टेक।। मांगे राम गुरु की सेवा घणा धर के ध्यान करे। सोच समझ के चाल तेरी भली भगवान करें। जिसा पुग्गे उस दान कर भक्ति घर बारी की।।४।। पैसे के म्ह मोहब्बत रहगी दुनिया सारी की।।टेक।।

भरण गई थी नीर राम की सूं

कवि शिरोमणि पंडित मांगे राम सांगी जी ने अनेक सांग बनाये जिनमे से प्रमुख सांग था क्रष्ण जन्म।इस सांग में श्री क्रष्ण जी के बाल काल का वर्णन किया हुआ।तो बात तब की जब श्री क्रष्ण जी यमुना नदी के पास गोपियों की मटकी तोड़ के भाग जाते है तो गोपियाँ उनके घर जाकर यशोदा माता को उनकी शिकायत करते हुए क्या कहती है- भरण गई थी नीर राम की सूं। जमना जी के तीर राम की सूं।।टेक।। फोड़ के मटकी म्हारी भाज गया नन्दलाल। बीस ते उल्हाने दिए करया नही बंद लाल। घाघरी के छिट लाग्गी भीज गया कंद लाल। हुए कपड़े झिरम झिर राम की सूं।।१।। जमना जी के तीर राम की सूं।।टेक।। घाट पे झमेला क्र दिया कट्ठे होग्ये नर नारी । गाली दे के साहमी बोल्या काप गई पनिहारी। आगे आगे क्रष्ण भाज्या पाछे पाछे हम सारी। उड़े कट्ठी होगी बीर राम की सूं।।२।। जमना जी के तीर राम की सूं।।टेक।। हम तो नुए सोचे जां सै यो कोए गैर नही सै हे। भाई की सूं इन बातां मह रहनी खैर नही सै हे। म्हारी गेल्या बैर ला लिया और के शहर नही सै हे। हम गुज्जर तुम हीर राम की सूं।।३।। जमना जी के तीर राम की सूं।।टेक।। मानसिंह ने बुझ लिए ना सहम लड़ाई हो ज्यागी। लख्मीचंद ने बुझ लिए ना घणी तबाही हो ज्यागी। मांगेराम ने बुझ लिए ना आड़े कति सफाई हो ज्यागी। घर बारी बणे फकीर राम की सूं।।४।। जमना जी के तीर राम की सूं।।टेक।।

आ ज्या नन्द के दुलारे हो

कवि शिरोमणि पंडित मांगे राम सांगी जी ने ईश्वर को मीरा जी के द्वारा याद करते हुए मीरा के अनेक भजन बनाये थे जिनमे से एक भजन उस समय का है जब मीरा बाई श्री क्रष्ण को याद करती है- आ ज्या नन्द के दुलारे हो, रोवे अकेली मीरा।।टेक।। रोम रोम म्ह रम्या होया सै, नही रोम ते न्यारा हो। असुरो के तन्ने मान घटाए, भक्तो का बना प्यारा हो, टोहवे अकेली मीरा।।१।। आ ज्या नन्द के दुलारे हो, रोवे अकेली मीरा।।टेक।। आदम देह के चोले गेल्या, ये दूत रहे सै यम के हो, सतरंज सेज बिछा राखी, और लगे गलीचे गम के हो, सोवे अकेली मीरा।।२।। आ ज्या नन्द के दुलारे हो, रोवे अकेली मीरा।।टेक।। बालक सी ने ब्याह करवाया, तेरे संग म्ह ब्याही हो, पीहर छोड़ सासरे आग्यी, ला दी कुल के स्याही हो, धोवे अकेली मीरा।।३।। आ ज्या नन्द के दुलारे हो, रोवे अकेली मीरा।।टेक।। मांगेराम ने टोहे जा सै, कोन्या पाया घर पे हो, श्री लख्मीचंद स्वर्ग म्ह जा लिए, फेर भी बोझा सिर पे हो, ढोवे अकेली मीरा।।४।। आ ज्या नन्द के दुलारे हो, रोवे अकेली मीरा।।टेक।।

लेंणा एक ना देणे दो

लेंणा एक ना देणे दो दिलदार बणे हांडे सै। मन म्ह घुंडी रह पाप की यार बणे हांडे सै।।टेक।। नई नई यारी लगे प्यारी दोष पाछले ढक ले। मतलब खातर यार बणे फेर थोड़े दिन म्ह छिक ले। नही जानते फर्ज यार का पाप पंक म्ह पक ले। के ते खाज्या धन यार का ना बहन बहू ने तक ले। करे बहाना यारी का इसे यार बणे हांडे सै।।१।। मन म्ह घुंडी रह पाप की यार बणे हांडे सै।।टेक।। मतलब कारण बडे पेट म्ह करके ने धिंग ताणा। गर्ज लिकडज्या पास पकड़ज्या करे सारे के बिसराणा। सारी दुनिया कहया करे, करे यार यार ने स्याणा। उसे हांडी म्ह छेक करे जिस हांडी म्ह खाणा। विश्वासघात करे प्यारे ते इसे यार बणे हांडे सै।।२।। मन म्ह घुंडी रह पाप की यार बणे हांडे सै।।टेक।। यारी हो सै प्याऊ कैसी हो कोए नीर भरणइया। एक दिल ते दो दिल करवादे हो जबान फिरनिया। सुदामा का यार क्रष्ण था टोटा दूर करनीया। महाराजा को कर्ज दे दिया भामाशाह था बनिया। आज टूम धरा के कर्जा दे साहूकार बणे हांडे सै।।३।। मन म्ह घुंडी रह पाप की यार बणे हांडे सै।।टेक।। प्यारे गेल्या दगा करे का हो सबते बती घा सै। जो ले के कर्जा तुरंत नाट ज्या वो बिना ओलादा जा सै। पढ़े लिखे और भाव बिना मने छन्द का बेरा ना सै। पर गावन अर बजावन का मने बालकपन ते चाह सै। इब तेरे कैसे लख्मीचंद हजार बणे हांडे सै।४। मन म्ह घुंडी रह पाप की यार बणे हांडे सै।।टेक।। (पंडित मांगे राम जी ने अपना नाम न लेकर अपने गुरु जी का नाम ले दिया।)

महात्मा की आत्मा ने आजादी दिला दई

15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ।इस आजादी में भारत माता के अनगणित सपूतों ने अपने प्राणों की आहुति दी।उन शहीदों को कवि शिरोमणि पंडित मांगे राम ने अपनी रचनाओ में श्रद्धा-सुमन अर्पित किये हैं। शहीदों के बलिदान की साथर्कता को अंजाम तक पहुचाने वाले महापुरुषो का, प्रतीक टोपी रूप में इस प्रकार उल्लेख किया हुआ है- महात्मा की आत्मा ने आजादी दिला दई। टोप चले टोपी आगयी दुनिया हिला दई।।टेक।। अमरीका ने टोपी अटम बम्ब दिखाई दे सै। योरूप ने या टोपी कोन्या कम दिखाई दे सै। एशिया ने टोपी रोकी दम दिखाई दे सै। अफ्रीका ने टोपी खावे गम दिखाई दे सै। भई, इस टोपी ने भारत की जड़ चोवे ला दई।।1।। टोप चले टोपी आगयी दुनिया हिला दई।।टेक।। जब टोपी जर्मन म्ह पहुची हिटलर गेल्या प्रचार करया। जब टोपी जापान म्ह पहुची बड़ा टेडा प्रचार करया। जब टोपी सिंगापूर पहुची एक मसोदा त्यार करया। जब टोपी इम्फाल पहुची दिल्ली का इंतज़ार करया। भई, इस टोपी ने चीन म्ह जा के सच्ची सलाह दई।।2।। टोप चले टोपी आगयी दुनिया हिला दई।।टेक।। इस टोपी ने छ:सो रियासत ठयोड़ ठिकाणे ला दी। इस टोपी ने जागीरदारी बहामे-दहने ला दी। इस टोपी ने छतीस जाती पांत-सिरहाने ला दी। इस टोपी ने एक नहर भाखड़ा शहर टोहाणे ला दी। भई, इस टोपी ने सतलुज-यमुना कट्ठी मिला दई।।3।। टोप चले टोपी आगयी दुनिया हिला दई।।टेक।। इस टोपी ने साठ साल अंग्रेज भजा के मारया। इस टोपी ने अब्दुला कर हेज भजा के मारया। इस टोपी ने मिस्टर चर्चिल तेज भजा के मारया। कहे मांगेराम खोस कुर्सी सुंध्या मेज भजा के मारया। भई, इस टोपी ने सारी दुनिया काटे तुला दई।।4।। टोप चले टोपी आगयी दुनिया हिला दई।।टेक। महात्मा की आत्मा ने आजादी दिला दई। टोप चले टोपी आगयी दुनिया हिला दई।।टेक।।

जमाने आया अपरम्पार

जब अंग्रेजों को देशभक्तों ने देश से भगा दिया तो उन्होंने जाते जाते भी हिन्दू -मुसलमानों के बीच फूट डाल दी जिसे हरयाणवी भाषा में मारकाट कहते हैं।भारत और पाकिस्तान के विभाजन का दिल को हिला देने वाला मार्मिक चित्रण कवि ने अपने शब्दों में किया हुआ है- जमाने आया अपरम्पार। इधर-उधर के फिरे भागते कर के हा-हाकार।।टेक।। भाई जी को छोड़ भाई भाग भाग जाने लगे। मोटर-रेल तांगे बग्गी गाडियों में आने लगे। भूखे मरते घास पते तोड़ तोड़ खाने लगे। बाप कहीं, बेटा कहीं, बेटियों का बेरा नही। सिर के उपर गोली चालें लूख्णे को अँधेरा नही। गुंडों ने मचाई लुट गोरमेंट का घेरा नही। फेर घबरा गयी सरकार।।1।। इधर-उधर के फिरे भागते कर के हा-हाकार।।टेक।। आपस के म्ह कटते मरते हिन्दू मुसलमान देखे। इंडिया में आये और जाते पाकिस्तान देखे। कच्चे और पक्के हम ने फूकते मकान देखे। चोकीदार, लम्बरदार, ठोलेदार मारे गये। जैलदार, होलदार, सूबेदार मारे गये। तहसीलदार, जमादार, थानेदार मारे गये। फेर खोस लिए हथियार।।2।। इधर-उधर के फिरे भागते कर के हा-हाकार।।टेक।। मुसलमान मिलट्री ने हिन्दुओ को सूट किया। रेडियो, अखबार ने प्रोपगंडा झूठ किया। गदारो ने मिल कै रोला जग में चारो खुट किया। कारखाने, मिल बंद साहूकार खोया गया। बोई-बाही धरती रहगी जमीदार खोया गया। न्यारे न्यारे होग्ये भाईचारा खोया गया। ये देखे खड़े नर-नार।।3।। इधर-उधर के फिरे भागते कर के हा-हाकार।।टेक।। सरगोधा और शेखपुरा पहले झगड़ा लाहोर होया। मियांआली, रावलपिंडी, जेहलम के म्ह शोर होया। अमृतसर-लुधिआना फेर हरियाणे में जोर होया। गोरखा-बिलोच फोज लाहोर के म्ह खूब लड़ी। पटड़ी और प्लेट फार्म स्टेशन पे लाश पड़ी। मांगेराम देख रह्या गोली चाली चार घड़ी। फेर एक दम फिर ग्या तार।।4।। इधर-उधर के फिरे भागते कर के हा-हाकार।।टेक।। जमाने आया अपरम्पार। इधर-उधर के फिरे भागते कर के हा-हाकार।।टेक।।

कैसे चाल पिछाणी जागी इस रंगदार जमाने की

आज भारत देश उन्नति के राह पर है।परन्तु लोगो में जिम्मेदारी की भावना समाप्त होती जा रही है।हमारे सामाजिक रिश्ते तार तार होते जा रहे हैं।सामाजिकता पर व्यक्तिवादी विचारधारा हावी होने लगी।समाज के बदलते मूल्यों का चित्रण कवि ने अनेक रचनाओ में किया है। उनमे से एक रागनी है- कैसे चाल पिछाणी जागी इस रंगदार जमाने की।।टेक।। गंगा जी पे चोरी करते जमना जी पे गावे गीत। वेद-शास्त्र सुणते कोन्या दुनिया की बदलगी रीत। रिश्तेदार-यारी छुटी पैसे के माह रही प्रीत। कलयुग तो यु नुए बीतेगा सहम बेचारी दुनिया रोती। अड़बंद के साड़े बांधे थे तहमद बांधे दोहरी धोती। ऋषि-महात्मा राख्या करते साथ म्ह संध्या की पोथी। जो आज बिकती दो दो आने की।।1।। कैसे चाल पिछाणी जागी इस रंगदार जमाने की।।टेक।। भाई ने भाई चहाता ना बेटे ने चहाता बाप। बीर-मर्द रहे दोनों घर म्ह दोनुवा के मन म्ह पाप। किसे का भी दोष नही वे दुश्मन बण के बेठे आप। तू मेरे म्ह, मैं तेरे म्ह 100-100 ऐब क्डावन लागगे। न्याय-नीति इंसाफ रह्या ना गंगा पाहड चडावण लाग्गे। जग परले म्ह कसर कड़े जब शुद्र वेद पडावन लागगे। या इज्जत ठोले पाने की।।2।। कैसे चाल पिछाणी जागी इस रंगदार जमाने की।।टेक।। घर-घर म्ह हिमाती होगे हिमात्या का ओड रह्या ना। घर-घर म्ह बाराती होगे बारता का ओड रह्या ना। घर-घर म्ह पंचायती होगे पंचेता का ओड रह्या ना। कष्ट की कमाई लोगो खांड कैसी काची होगी। भटियारी की रांधी होई कदे भी ना काची होगी। जुणसी मांगेराम कहदे सोला आने साची होगी। या खोटी मार निशाने की।।3।। कैसे चाल पिछाणी जागी इस रंगदार जमाने की।।टेक।। कैसे चाल पिछाणी जागी इस रंगदार जमाने की।।टेक।।

जाग ज्या मुसाफिर के तेरी आँख फुट्गी

कवि ने मानव के परलोक साधने पर अनेक रागनियाँ बनाई थी जिनमे से एक प्रमुख रागनी है देखिये- जाग ज्या मुसाफिर के तेरी आँख फुट्गी। भाज के टिकट ले ले तेरी रेल छुट्गी।।टेक ।। फर्स्ट, सेकंड, थर्ड इंटर ड्ब्बे चार सें। बिना टिकट बैठेगा ते डंडे त्यार सें। चार सिपाही उनके संग म्ह 100 हथियार सें। पाछे टी-टी आग्गे दो थाणेदार सें। तेरे साथ की साथण संग ना चाले रुठ्गी।।1।। भाज के टिकट ले ले तेरी रेल छुट्गी।।टेक ।। बिना टिकट बैठ्गा ते तने टी-टी पावेगा। पकड़ के ले जां तने कोण छुटावेगा। कुटुंब कबीला, मात-पिता खड़ा लखावेगा। दुणा ले ले भाड़ा तेरे पे तू कित लावेगा तू ब्याही की बात देख रहया हथी टूट गी।।2।। भाज के टिकट ले ले तेरी रेल छुट्गी।।टेक ।। जाग ज्या मुसाफिर के तेरी आँख फुट्गी। भाज के टिकट ले ले तेरी रेल छुट्गी।।टेक ।। रेल म्ह ते उपर पहोच्या गेट के धोरे। यम के दूत घाल दे पेटी पेट के धोरे। पड्या-पड्या तडपेगा नरक लेट के धोरे। घाल के नै बेडी ले ज्याँ सेठ के धोरे। पकड़ा गया जब ते तेरी किस्मत फुट गी।।3।। भाज के टिकट ले ले तेरी रेल छुट्गी।।टेक ।। धुर की टिकट कटा ले के तने वापस आणा। तन के कपड़े तार ले तेरा बदला जा बाणा। ना टेसन लगे रस्ते में तने 10वे प जाणा। लख्मीचंद भी पावे आगे सुण आंनंद से गाणा। मांगे राम प्रेम का प्याला मीरा घुट गी।।4।। भाज के टिकट ले ले तेरी रेल छुट्गी।।टेक ।। जाग ज्या मुसाफिर के तेरी आँख फुट्गी। भाज के टिकट ले ले तेरी रेल छुट्गी।।टेक ।।

बड़े बड़े घर घाल दिए इस मार काट खटकाणी ने

आजादी से पूर्व देशवासियों ने आजादी के बाद जिस भारत की कल्पना की थी, वह सपना अधूरा ही रह गया।यधपि आजादी के बाद देश ने ओधोगिक, विज्ञानिक स्तर पर विकास किया लेकिन इसका लाभ देशवासियों तक नही पहुचा बल्कि मोकाप्रस्त लोगो ने ही अधिक लाभ उठाया- बड़े बड़े घर घाल दिए इस मार काट खटकाणी ने। उचे नीचे क्यार बणा दिए इस्तेमाल कहाणी ने।।टेक।। नेहरु और महात्मा गांधी गंगा जी में ज्यो बोगे। कानूनी पुस्तक ठाई अंग्रेज राज ते मुह धोगे। साडे 600 राजा थे जो देख कर्म ने छो होगे। हट के कर्म दिखा दिया बेदखल हो सोगे। इब राजा हांडे दूध बेचता होटल खोल्या राणी ने।।1।। उचे नीचे क्यार बणा दिए इस्तेमाल कहाणी ने।।टेक।। वो भी दिन याद म्हारे लन्दन में पंचायत हुई। 15 अगस्त 1947 आठम आली रात हुई। अंग्रेज राज ते काड दिए इसी भारत में आ औकात हुई। अंग्रेजा के पूरी जचगी किसी कसूती बात हुई। 56 मुल्क आजाद करे तेरी हिंद सुरीली बाणी ने।।2।। उचे नीचे क्यार बणा दिए इस्तेमाल कहाणी ने।।टेक।। वोट्म सिस्टम चला के बड्डा के सिर फसा दिए। जो अक्लमंद माणस थे भाई, वो नीलोखेडी बसा दिए। जड़े दिन में गादड़ बोल्या करते गैस और बिजली खीचा दिए। जड़े भुत तिसाये मरया करते थे बागड़ में गंडे चुसा दिए। डाड-भदोड़ टमाटर लावे यू खादर खो दिया पानी ने।।3।। उचे नीचे क्यार बणा दिए इस्तेमाल कहाणी ने।।टेक।। जिस के सब तरियां आखानन्दी थे सब तरियां ते तंग होगे। जो भूखे मरते फिरयाँ करे थे सब तरियां आनंद होगे। राम राज और आई आजादी भारत में नये रंग होगे। दुनियां के मंह गावण आले एक लख्मीचंद होगे। मांगेराम भी देख रह्या इस समो आवणी जाणी ने।।4।। उचे नीचे क्यार बणा दिए इस्तेमाल कहाणी ने।।टेक।। बड़े बड़े घर घाल दिए इस मार काट खटकाणी ने। उचे नीचे क्यार बणा दिए इस्तेमाल कहाणी ने।।टेक।।

वा राजा की राज दुलारी मैं सिर्फ लंगोटे आला सूं

बात उस समय की जब ब्राह्मण और नाई शिव जी के पास पार्वती जी का रिश्ता लेके पहुचते हैं तो शिव जी उन्हें क्या कहते हैं- वा राजा की राज दुलारी मैं सिर्फ लंगोटे आला सूं, भांग रगड़ के पिया करूं मैं कुण्डी सोटे आला सूं-टेक उड़े 100-100 दासी टहल करे आड़े 1 भी दासी दास नही, वा शाल दुशाले ओढ्न आली मेरे काम्बल तक पास भी पास नही, क्या के सहारे जी लावेगी आड़े शतरंज चोपड़ तास नही, वा बागां की कोयल सै आड़े बर्फ पड़े हरी घास नही, मेरा एक कमंडल एक कटोरा मैं फूटे लोटे आला सूं, , भांग रगड़ के पिया करूं मैं कुण्डी सोटे आला सूं-टेक वा पालकिया में सैर करे मैं बिना सवारी रहया करूं, 100-100 माल उढावन आली मैं पेट पुजारी रहया करूं, उसने घर बर जर चाहिए मैं सदा फरारी रहया करूं, लगा समाधि तुरिया पद की अटल अटारी रहया करूं, वा साहूकार की बेटी से मैं निर्धन टोटे आला सूं, , , भांग रगड़ के पिया करूं मैं कुण्डी सोटे आला सूं-टेक 100-100 सर्प पड़े रैं गल में नाग देख क डर ज्यागी, पंच धुणा में तप करया करूं आग देख क डर ज्यागी, राख घोल के पीया करूं मेरा भाग देख क डर ज्यागी, मैं अवधूत दर्शनी बाबा मेरा राग देख क डर ज्यागी, उसने जुल्फां आला ब्न्न्ड़ा चहिये मैं लांबे चोटे आला सूं, भांग रगड़ के पिया करूं मैं कुण्डी सोटे आला सूं-टेक किसे राजा संग शादी कर दो इसा मेल मिलाणा ठीक नही, जिसकी दोनू धार हो पैनी इसा सैल चलाणा ठीक नही, सुल्फा गाँजा पीया करूं तेल पिलाणा ठीक नही, जुणसा खेल खिलाणा चाहो इसा खेल खिलाणा ठीक नही, कहे मांगे राम वा बोझ मरेगी मैं जभर बरोटे आला सूं, भांग रगड़ के पिया करूं मैं कुण्डी सोटे आला सूं-टेक वा राजा की राज दुलारी मैं सिर्फ लंगोटे आला सूं, भांग रगड़ के पिया करूं मैं कुण्डी सोटे आला सूं-टेक ('शिव जी का ब्याह' सांग में से)

अरे 100-100 पड़े मुसीबत बेटा उमर जवान में

भगत सिंह के सांग में से एक रागनी उस समय की जब भगत सिंह की माता विद्यावती उसे जेल में मिलने जाती है और अपने बेटे का होसला बड़ाने के लिए क्या कहती है और कवि ने लिख दिया- अरे 100-100 पड़े मुसीबत बेटा उमर जवान में, भगत सिंह कदे जी घभरा ज्या बंद मकान में।-टेक हिन्द्वासी ढंग नया करेंगे, बड़ाई तेरी करया करेंगे, म्ने शेर की माँ कय्हा करेंगे हिंदुस्तान में, भगत सिंह कदे जी घभरा ज्या बंद मकान में।-टेक अरे 100-100 पड़े मुसीबत बेटा उमर जवान में, भगत सिंह कदे जी घभरा ज्या बंद मकान में।-टेक सारे के तेरे गीत सुनुगी, कदे ना कदे तेरी माँ जरूर बनूंगी, अगले जन्म में फेर ज्णुगी इसी संतान ने, भगत सिंह कदे जी घभरा ज्या बंद मकान में।-टेक अरे 100-100 पड़े मुसीबत बेटा उमर जवान में, भगत सिंह कदे जी घभरा ज्या बंद मकान में।-टेक 3.इसा एक घोरक धन्धा बण दे, किला एक आजादी का चीण दे, तेरे कैसा पूत जण दे इसी कोण जिहान में, भगत सिंह कदे जी घभरा ज्या बंद मकान में।-टेक अरे 100-100 पड़े मुसीबत बेटा उमर जवान में, भगत सिंह कदे जी घभरा ज्या बंद मकान में।-टेक मांगे राम गुरु का शरणा, मर के नाम जगत में करणा, एक दिन होगा सब ने मरणा सूर्ति ला भगवान में, अरे 100-100 पड़े मुसीबत बेटा उमर जवान में, भगत सिंह कदे जी घभरा ज्या बंद मकान में।-टेक अरे 100-100 पड़े मुसीबत बेटा उमर जवान में, भगत सिंह कदे जी घभरा ज्या बंद मकान में।-टेक

गंगा और हरिद्वार वो 20 वर्ष तक नहाया

पंडित मांगे राम जी की बेटी फूलो ने उनके स्वर्ग सिधारने पर उनकी याद मे रागनी की रचना की है जो रागनी होने के साथ साथ सचाई है।आज उनकी पुत्री भी जीवित नही है, यह रागनी केवल पंडित मांगे राम जी के सुपुत्र ओमप्रकाश को याद है- गंगा और हरिद्वार वो 20 वर्ष तक नहाया, गंगा जी गढ़ मुक्तेश्वर ऋषियों का पद पाया-टेक सारी बात बता दी पहला अपना भजन जोड़ क, उसी जगा प पहोच गया फेर सारा कुटुम्ब छोड़ क, सब क्याए ते ध्यान हटा लिया ना देखी नाड मोड़ क, क्रड़ाई का चढ़ गया ना मूड़ क उल्टा आया। गंगा जी गढ़ मुक्तेश्वर ऋषियों का पद पाया-टेक गंगा और हरिद्वार वो 20 वर्ष तक नहाया, गंगा जी गढ़ मुक्तेश्वर ऋषियों का पद पाया-टेक रो रो रध्न मचा रही दोनों लुट ली दिन धोळी, साथ बणा क अधम छोड़ ग्या के भरी बिचारी न झोली, सारे खेल खत्म करग्या ली छीन मांग की रोली, गंगा जी पर ते ल्याए भरी नाड़ की कोली, माथे तिलक लगा दिया सती ने गल में हार सजाया, गंगा जी गढ़ मुक्तेश्वर ऋषियों का पद पाया-टेक गंगा और हरिद्वार वो 20 वर्ष तक नहाया, गंगा जी गढ़ मुक्तेश्वर ऋषियों का पद पाया-टेक बलमत बोल्या तू कित जा सै मैं आड़े बैठ्या पाउँगा, आ लेन दे मने काम जरूरी आके कथा सुनाऊंगा, बेरा ना कित जाणा था ना मन का भेद बताया। गंगा जी गढ़ मुक्तेश्वर ऋषियों का पद पाया-टेक गंगा और हरिद्वार वो 20 वर्ष तक नहाया, गंगा जी गढ़ मुक्तेश्वर ऋषियों का पद पाया-टेक

20 वर्ष तक दुनिया के में लख्मीचंद याद दिवाया

कवि जी 16-11-1967 को ब्रह्मलीन हो गये। उनके शिष्य पंडित जयनारायण ने उनके अंतिम पलो को 1 रागनी बनाकर प्रकट किया है, रागनी इस प्रकार है- 20 वर्ष तक दुनिया के में लख्मीचंद याद दिवाया, तेरे रेत में आण मिलूँगा 7 वर्ष तक गाया ।-टेक 14-11-67 ने गँगा जी नहाण गया था, म्रत्यु के दिनं नेड़े आग पहलम जाण गया था, स्याणा ते थे बहोत घणा के भूल औसाण गया था, घन्ने दिन ते गाया करता वो प्रण निभाण गया था, 15 तारीख 8 बजे जा गंगा जी में नहाया तेरे रेत में आण मिलूँगा 7 वर्ष तक गाया ।-टेक 16-11-67 ने जिक्र चलावण लाग्या, बुद्ध का सांग बणाया स या कथा सुणावण लाग्या, बुद्ध की मा न सुपना आया न्यू समझावण लाग्या, सोने का दिया पहाड़ दिखाई न्यू बतलावण लाग्या, हाथी न आक़े पहाड़ का चक्र 1 लगाया। तेरे रेत में आण मिलूँगा 7 वर्ष तक गाया ।-टेक चक्र चार कहे लडके ने एक दम दहका खाग्या, लगा समाधि तुरिया पद की आगा सोचण लाग्या, प्राण खीच लिए उपर ने सिर न आग्या, 10वे द्वार पर प्होच गये आग्गे लखमीचंद पाग्या, चरण पकड़ क गेल हो लिया उल्टा कोन्या आया। तेरे रेत में आण मिलूँगा 7 वर्ष तक गाया ।-टेक घोर अँधेरा होया चाणचक बाती तेल खत्म होग्या, 10 इन्द्री 25प्राक्रति इनका मेल खत्म होग्या, 5 तत्व से बण्या पुतला वो भी गैल खत्म होग्या, माट्टी के म़ाह माटी मिलगी सारा खेल खत्म होग्या, जयनारायण फिरे टोहव्ता गुरु गंगा बीच समाया। तेरे रेत में आण मिलूँगा 7 वर्ष तक गाया ।-टेक 20 वर्ष तक दुनिया के में लख्मीचंद याद दिवाया, तेरे रेत में आण मिलूँगा 7 वर्ष तक गाया ।-टेक

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