पिलपोट्टण : रामफल चहल
Pilpottan : Ramphal Chahal

अपनी बात

बचपन ठेठ ग्रामीण माहौल मं बीत्या अर खूब पीहलअ् पीच्छू लेसबे (लसोड़े) खाटे-मीठे बेर, कचरी, बरबंठी, झींझ (जांटी की पक्की फलियां) , चणे की टाट (छोलिए) होअ्ले, भुने हुए बाजरे की सिरटी, कच्ची इमली, गूल्लर, जमोवे (देसी जामुण) अर ना बेरा के-के खाया जिनका ईब सुवाद भी दिमाग पर घणा जोर देण पै याद आवै सै। पर इन सबतै न्यारा एक सुवाद जो आज तक नहीं भूल्या सै वो सै पिलपोट्टण का जिसका जायका हरफां मं लिख पाणा नामुमकिन सै।

म्हारे गितवाड़ के घेर की कूण अर बरानी खेत, खेत म्हं बणे कोठड़े अर खेत म्हं छोड्डी हुई जोहड़ी (छोटा सा तालाब) के चारूं तरफ खड़े झाड़ बोझड़या के बीच जामे पिलपोट्टण के पौधे दिखतीं एं एक पैनी नजर उसके फलां न ढूंढण लागती अर हरे पौधे पै खाखी रंग के लट्टुनुमा पुस्तड़े के भीतर पीले नारंगी गोल फल दिखतें ए खाण न मन ललचा उठता अर फल तोड़तें एं पुस्तड़ा (लिफाफेनुमा कवर) हटा कै दूर फैंक दिया और कच्चरअ् की आवाज करते पिलपोट्टण न बीजां सुधां खा जाया करते। ना धोवण का झंझट ना पूंझण की जरूरत अर सुवाद सबतैं न्यारा कुछ मीट्ठा कुछ खाट्टा अर कुछ खारा।

आज जब गाम मं जाण का मौका पड़ै सै तो उन गितवाड़ां मं, खेत झाड़आ मं, अर बाड़यां मं, छक्कअ् टोह ल्यूं सूं पर पिलपोट्टण नहीं दिखती। कुछ साल पहल्यां जब कविता लिखण का चस्का लाग्या तो अपणे आप दिल मं भरे ख्याल कागजां पर उतरते चले गए अर आइस्ता-आइस्ता इस किताब का खाका त्यार होग्या। घणखरी कवितायां मं कुछ न कुछ संदेश जरूर सै अर ज्यादातर मं छोरियां की घटती गिणती पर चिन्ता अपणे आप उजागर हुई सै। फेर मन मं विचार आया के न्यून त सबतै सुरक्षित पुस्तड़े मं बन्द फल पिलपोट्टण कम होता चल्या गया अर न्यूनै गुदड़े मं लिपटी बेटी।

पिलपोट्टण के बारे मं इब बेरा पाड़या तो यो नाम और कसूता मन मं जंच गया क्यूंकै परपोटिका ( पिलपोट्टण) के पत्यां के रस मं सरसों का तेल मिला कै कान मं धालणं तै बहरापण दूर होज्या सै। इसका फल एक खतरनाक रति रोग गनेरिया नै दूर करै सै अर हजारां साल तै पीढ़ी दर पीढ़ी खाए जाण आल़े इस सोलेनेसिया फैमिली (टमाटर प्रजातिय) के फल़ मं जिवाणु अर फफूंदनाशक गजब की ताकत हो सै। आज गर्भ मं मारी जावण आल़ी छोरियां की पुकार सुनण ताहीं कान्ना का बहरापण दूर करना जरूरी सै।

इब न्यूं तो फैसला आप पढ़ण आल़े ए करोगे के इस किताब का नाम किसा लाग्या पर मेरी समझ मं सब त आच्छा योहे नाम सूझया ‘पिलपोट्टण’। नई पीढी के बाल़कां म्हां ते बेरा ना किसे नै पिलपोट्टण’ खाई सै अक ना, पर मेरी पीढी के लोगां नै पिलपोट्टण’ बी खूब खाई सै अर कहावत बी खूब सुणी सै ’बाप कै बेटी गूद्दड़ लपेटी’ इब ना बाप बेटी पैदा करणा चांहवता अर ना बेटी गूद्दड़ मं लिपटी रह्या चांहवती

इब ना रहे खटोले ना रहे गुदडे़
ना रही पिलपोट्टण ना रहे पुस्तड़े
धरती पै बढ़ता जा रह्या पाप
इब कुछ तो सोचो बेटी के बाप

मैं स्वर्गीय श्री रघुबीर सिंह मथाना का एहसानबंद हूं जिन्होंने मुझे अपने साथ कवि गोष्ठियों में कविता पढ़ने के लिए प्रेरित किया। स्व. श्रीयुत श्री वर्धन कपिल ने मुझे हमेशा नई कविताएं ठेठ देहाती परिवेश पर लिखने के लिए प्रेरित किया तथा हरियाणवी बोली में रची गई इन कविताओं को कई-कई बार सुना। डा. लक्षमण सिंह ने भी इन रचनाओं को ध्यान से सुना तथा कवि गोष्ठियों में पढ़ने का अवसर दिया। श्रद्धेय डा. सुधीर शर्मा जो मेरे गुरू तथा मेरे गुरू डा. आर.एस. वालदिया के भी गुरू हैं उन्होनें इन कविताओं को गम्भीरता पूर्वक सुना हमेशा प्रोत्साहित किया। अनुज तुल्य श्री जगबीर राठी व श्री ओम प्रकाश कादियान ने भी अपना सहयोग इन्हें पुस्तक रूप में प्रकाशित करवाने के लिए दिया जिसके लिए मैं इन सभी अत्यंत आभारी हूं। श्री मेम पाल द्वारा दिए गए सहयोग के बिना इनका पुस्तक रूप में आना कठिन था इस लिए मैं इनका भी आभार व्यक्त करता हूं। मेरी सुपुत्री अंजलि मेरी इन कविताओं की प्रथम श्रोता रही हैं तथा पुत्र मनदीप ने इनमें से कुछ कविताओं को युवा समारोहों में प्रस्तुत किया किया है इसलिए वे भी धन्यवाद के पात्र हैं। अन्य उन सभी महानुभावों को साधुवाद देता हूं जिन्होंने किसी भी प्रकार से मेरी मदद की है।


चिरायु-चिर युवा अश्वत्थामा जै जिन्दा सै

(अश्वत्थामा ने हम चिरायु (अमर) और कदे बूढा ना हो इसा मान्नै सै जब अश्वत्थामा ने द्रोणाचार्य का धोक्खे ते मारे जाण का बेरा पाट्या तो उसने बदला लेण खात्तर द्रोपदी के पांचों छोरे सूते मार दिए और इस बात की जाण पाट्टै पाच्छै अर्जुन जब अश्वत्थामा ने मारण लाग्या तो श्रीकृष्ण ने कह्या के ब्रह्मा का वरदान सै यो ना तो मर सकता अर ना कदे बूढा होगा। तू इसकै माथे की मणि काढ़ ले यो आप्पै सरमाता होया स्यहामी नहीं आवैगा।) जै अश्वत्थामा जिन्दा सै तो कितै बदहाल हुअया फिरता होगा या किसै मन्त्री के पाछै लाग्या माला-माल हुअया फिरता होगा द्रोपदी के छोरयां न मारकै वो तो बहोत घणा सरमाया था धोखे तैं सूत्ते बालक मारे पाच्छै वो कोन्या साह्मी आया था अमर रहण का आशीष ले कै वो बहोत घणा दुख पाया था पर ईब तो वो टेम गया, कोन्या रही लोगां में उतनी हया जै मनै अश्वत्थामा मिलग्या तो माथे प्लास्टिक सर्जरी करवा द्यूंगा वोे द्वापर था यो कलयुग सै उसनै या बात दाहैंव समझा द्यूंगा युग की गेल्यां कानून बदलगे उसने साफ-साफ दिखला द्यंूगा कहूंगा इब तू भी किसै शहर में आ, बढ़िया सी एक कोठी ले बणा हाम तनै इलैक्शन मैं ठावांगे, गिफ्ट मै एक कार भी दुवावांगे क्यूं जंगल मैं बदहाल हुअया हाण्डै, आज तो हर पापी मालामाल हुअया हाण्डै सै तू मेरी बात मान ले, रै बावले बख्त नै पिच्छाण ले विपक्ष में के धरया सै कोई मोर्चा बणा की कुर्सी की शरण आण ले पर के बेरा कोय ’चहल’ जिसा पहल्यां ए टकराग्या होगा मोटा कमीशन खा कै यो नुस्खा तनै बताग्या होगा मैं न्यूं ऐं शक में घिरता आऊं सूं अर हर पापी तैं आज भाज कै हाथ मिलाऊं सूं के बेरा तू तीर तलवार न त्यागें माथे के घाव न छुपांदा घूमै सै या बत्ती आली कार मैं गनमैंन लिए राजनशैं मैं झूमैं सै के तो तू कृष्ण तैं बैर चुकावण खातर गायां का चारा चरता होगा या किसै दलाल का काम करा कै ठाड्डा घर भरता होगा जै अश्वथामा जिन्दा सै तो कितै बदहाल हुअया फिरता होगा या किसै मन्त्री का पी.ए. लाग कै मालामाल हुअया फिरता होगा तन्नै सुत्ते बालक मारे थे, था बाप मरण का दुख ज्यादा पर ईब गर्भ म्हं कन्या न मार, दहेज बचा ठावैं फायदा तेरा ब्रह्मास्त्र रोक श्रीकृष्ण नै पाण्डू वंश बचाया पर इब कन्या नै कोण बचावै, कोन्या समझ म्हं आया जै मुक्ति लेणा चाहवै सै, तो किसै शहर म्हं आज्या जितने छोहरे मारे थे, उतनी छोहरियां नै आज बचाज्या जै तू इब बी नहीं आया, तो यो जमाना तन्नै आपै टोहवैगा बण तो सारे काट लिए कित अपनी शान लकोवैगा कदे भगवान तै लड़ कै भाज्या था आज इन्सान मिलण नै तरसता होगा जै अश्वत्थामा जिन्दा सै तो कितै बदहाल हुअया फिरता होगा या किसैे मन्त्री के पाछै लाग्या माला-माल हुअया फिरता होगा तनैे सुत्ते बालक मारे थे था बाप मरण का दुख ज्यादा पर ईब गर्भ मैं कन्या न मार दहेज बचा ठावै फायदा जै मुक्ति लेणा चाहवै सै तो किसै शहर म्हं आज्या जितणे छोहरे मारे थे उतणी छोरियां न आज बचाज्या जै तू इब्बी नहीं आया तो यो जमाना तन्नै आपै टोहवगा बण तो सारे काट लिए कित अपणी शक्त लहकोवगाष् कदै भगवान तै लड़कै भाज्या था आज इंसान मिलण न तरसता होगा जै अश्वत्थामा जिन्दा सै तो कितै बदहाल हुअया फिरता होगा या किसै मन्त्री के पाछै लाग्या माला-माल हुअया फिरता होगा

सब्र कर लिया

मां बाप न आपणा एकला बेटा पाल्या लाड चा तै मां का मन दुखी हो जाया करै सै छोटै से घा तै छोहरा गोरे म्हैं कब्बडी कब्बडी टाड्या करता, साथियां न ठा ठा कै गाड्या करता फेर खाड़े म्हैं दण्ड बैठक मारण लाग्या, पहलवानां के पां उखाड़न लाग्या पढ़ाए पाच्छै घरक्यां के चेहरे पै जर्दी थी, खंत की थोड़ी सी धरती थी एक दिन जोर की शर्दी थी, शहर म्हैं फौज की भर्ती थी इब छोहरे ने पहरी फौज की वर्दी थी, ट्रेनिंग शुरू कर दी थी आगले ए साल फौजी का ब्याह होग्या, घरक्यां नै पोते का मूंह देखण का चा होग्या साल भर पाच्छै उसकै एक छोहरा होग्या, फौजण का घर म्हैं डठोरा होग्या फौजी हर साल होली पै छुट्टी आया करता, सब खातर कुछ न कुछ ल्याया करता सन 99 मैं जब वो छुट्टी आया मां की शाल अर फौजण की साड़ी ल्याया उसनै छोहरे का नाम स्कूल म्हैं लिखवा दिया अर कच्ची पहली म्हैं पढण बिठा दिया आगले दिन फौज म्हां तै आग्या तार दुश्मन सीमा पै रह्या ललकार फौजी छु्ट्टी अधम छोड़ चाल्ण लाग्या फौजण का कालजा हालण लाग्या ऊंची कारगिल की पहाड़ी थी, उड़ै ना बोझे और झाड़ी थी लड़ाई छिड़ी घणी घमसान थी, वा जीत नहीं आसान थी ये दागैं दमादम गोले थे अर बोलैं बम बम भोले थे दुश्मन की एक गोली टांग के पार लिकड़गी, अर दूसरी कांधे न घायल करगी फौजी के फेर भी पराक्रम नहीं हारे, घायल हुए पाच्छै बी दुश्मन के बारा मारे कई गोली उसकी छाती के पार लिकड़गी, अर देशभक्त फौजी न शहीद करगी लकड़ी का ताबूत बणवाया गया, फौजी का पार्थिव शरीर गाम म्हैं ल्याया गया हजारां आदमी उसके आखिरी दर्शन करण आए, लीडरां नै भी चिता पै फूल चढ़ाए पूरा गाम-गुवांड गमगीन था चारूं तरफ देश-भक्ति का सीन था इस मौत पै किसै न रूदन नहीं मचाया था यो नंजारा देख यमराज भी शर्माया था बेटा देश पै कुर्बान होग्या मां बाप की वाणी थी छोरे न फौज म्हैं भेजूंगी फौजण न मुट्ठी ताणी थी सरकार न दस लाख की सहायता राशि कर दी थी फौजण नै भी आपणी अर्जी भर दी थी उसका भाई अर भावज घणे आवण लागे, अर फौजण नै समझावण लागे ईब इस घर म्हं क्यूकर तेरा गुजारा होगा, बदले म्हं नौकरी लेले छोहरे का सहारा होगा फौजण नै शहर म्हं नौकरी मिलगी, छः साल के छोहरे न ले के घर तैं लकड़गी बुढ़िया सांस घालती रहगी, फौजण हर हफ्ते आवण की कहगी फौजण न सहायता राशि मिली तो बैंक की बजाए पीहर मैं मंगाली उसके भाई भावज न धूम धड़ाके तैं आपणी दोनूं छोहरी ब्याहली कुण्बे की किस्मत माड़ी थी चालै के जोर, कोन्या बड़ी नौकरी वा लागी क्लास फोर उसके दफ्तर का अफसर कायर अर कमजोर सै, दाम बिना काम नहीं पक्का रिश्वतखौर सै ऊं तो वा शहीद की बीवी कहावै सै पर सारा दिन इस अफसर के झूठे कप ठावै सै एक पड़ौसी बोल्या ताई तम भाभी धौरै शहर म्हं जाआ, इब अड़ै के करो सौ बोली गए थे बहू की भाभी न्यू बोली, कमरे न थूक भरो सौ पर ईब फौजण के सारे पीस्से सपड़गे, भाई भावज भी अपणा रास्ता पकड़गे बूढ़ा बुढ़िया जब तो दिल न करड़ा करगे थे, देश पै कुर्बान हुया सै लोग भी धीरज धर गए थे पर ईब पोते अर बहू का मूंह देखण न तरसै सैं उनके बूढ़े शरीर दिन रात कलपैं सैं ईब तो बहू तै गिले शिकवे उलहाणे भी बन्द कर दिए, बेटे पोते की याद म्हं आंसू भी बहाणे बन्द कर दिए गाम आलां न स्कूल का नाम शहीद के नाम पै धर लिया मां बाप न भी सब्र कर लिया बूढ़े बुढ़िया तै कोए भी हाल चाल बूझैं सै, तो बस न्यूंए कहैं सैं सब्र कर लिया के हमने तो सब्र कर लिया

वरदान बने अभिशाप

(हिन्दु धर्म शास्त्रों में इसी मान्यता सै के इस धरती पै आदमी नै ब्रह्मा जी पैदा होण का वरदान दे जब वो जन्म लै सै अर विष्णु इस मृत लोक का सचालक सै। आदमी तैं पहलां पशु जमीन पै पैदा होये थे अर ब्रह्मा जी नै जब आदमी बणाया तो बहोत सारे वरदान भी दिए जो हमने अपणे आप श्राप (अभिशाप) में बदल लिए। चारों युगां का जिक्र इस कविता म सै।) ब्रह्मा नै विष्णु बुलवाए म्हारै घरां पधारो आप पृथ्वी बसाणा चाहूं सूं उसके बणो संचालक आप पुतला ठाकै ब्रह्मा लाया विष्णु के खडे़ होगे कान सब जीवां तैं न्यारा दीखै कर देगा यो घणा परेशान गुण औगुण की चर्चा चाल्यी विष्णु सुणरया धर कै ध्यान बेकाबू यू हो ज्यागा दे राखे इतणे वरदान ब्रह्मा बोल्या बिष्णु तै यो मानव मन्नै बणाया मृत लोक म्हं भेजण का सै मन म्हं घणा उम्हाया बिष्णु बोल्या कुछ बातां का भेद समझ म्हं ना आया सींग हटा दिए पूंछ हटा दी यो पेट बी क्यूं ना हटाया ब्रह्मा बोल्या पेट बिना यो संसार चलै कोन्या ठाली बैठे खुराफात करैंगे कोए बी काम करै कोन्या पेट म्हं जब भूख लगेगी यो दबकै खूब कमावैगा खेती करैगा अन्न निपजैगा कुणबा बैठ्या खावैगा बिष्णु बोल्या तेरी चाल्लै सै तूं अपणी खूब चलावैगा पर जाणू सूं भूख के बहाने के के काम करावैगा कदे मदनावत पाणी भरैगी अर हरीश्चन्द्र चिता बुझावैगा कदे सत्यावान लाकड़ी काटैगा अर नल तीतर भूणना चाहवैगा खैर तन्नै पेट आली तो करी सो करी, पर जीभ तैं ना बुलवावै बिष्णु तू स्याणा सै गूंगा राखण की उल्टी शिक्षा मत ना लावै जीभ तैं बेद पढ़ावैगा हरि गुण गावैगा बालकां न अच्छी बात सिखावैगा विष्णु बोल्या यो बड़ी बात करैगा स्वाद चखैगा अर ताने खूब लगावैगा यो अच्छा खावैगा ताकत पावैगा अर काम बीच धंस जावैगा कदे केकैयी बण दशरथ न घेरैगा अर रामचन्द्र न बण म्हं खंदावैगा कदे रावण बण सीता न हरैगा कदे इन्द्र मुर्गां पै बांग दुवावैगा कदे बाली बण भाभी खोसैगा कदै नारद मूंह बन्दर का करवावैगा खैर मजबूर सूं तेरी या भी मान्नी पर एक जगहां तो रहज्या छान्नी तू इसनै बुद्धि का ज्ञान मत दिखा अर क्रोध और अभिमान मत सिखा ना तो मछली बींध द्रोपत ब्याहवैगा कदे परसुराम बण कुहाड़ा ठावैगा कदे भीष्म बण कै राज बचावैगा कदे एकलव्य बण अगूंठा कटवावैगा कदे कर्ण बण कै शेर मारैगा कदे दुशासन बण चीर तारैगा कदे सुदर्शन के दम पै नहीं हारैगा फिर कदे सूत्ते न भील मारैगा तू ठाड्डा सै ज्याहे तैं मेरी एक नहीं मान्या पर इस झकोई नै धन अर विज्ञान की तो कती नहीं चान्हा ब्रह्मा बोल्या रै बिष्णु तू तो दिल का घणा बोदा सै धन अर विज्ञान बिना भला या दुनिया के सौदा सै बिष्णु बोल्या ना मान्नै मैं ईब आगै कती नहीं चुसकता पर कलयुग आ लेण दे फेर हाण्डैगा टसकता यो चांद पै जाकै बसैगा मंगल अर गुरू पै पैडी लावैगा कदे पीएम बण सूटकेस लेगा अर सी.एम. बणकै घास खावैगा कदे गेट बण कै ब्यापार करैगा अर कदे मानव बंम बण जावैगा कदे एटम के दम पै अकड़ेगा अर धन खातर बहू जलावैगा इस पेट का तो गूमड़ा सा रीतै भरैगा जब कन्या भ्रूण गिरावैगा हजार के पाच्छै सात सौ रह ज्यांगी जब पाच्छै पिछतावैगा उसदिन बिष्णु की बात टाल आज ब्रह्मा भी घणा पच्छताया पेट खड्डा भरण की खातर ’चहल’ कुरूक्षेत्र म्हं बैठ्या पाया ब्रह्मा बोल्या बिष्णु तैं यो नया माडल मन्नै बणाया सींग हटा दिए, पूंछ हटा दी पेट बी क्यूं ना हटाया

गांधारी की पट्टी

(कणव ऋषि और दुर्वासा ऋषि दोनों गुरू भाई थे। कणव ऋषि की पत्नी ने बार-बार उनके यहां चले जाने पर बगैर नमक का भोजन देकर कहा कि नमक घर में था ही नहीं क्योंकि उसने नमक को आटा समझ कर बाहर फंक दिया। दुर्वासा ऋषि इस अपमान को सहन नहीं कर सके और उसे अगले जन्म में आंखे होते हुए भी न देख सकने का श्राप दे दिया जो अगले जन्म में गांधारी बनी।) जै गांधारी आंख्या कै पट्टी ना बांधती तो ना महाभारत सा चाला होता ना इतणे योद्धा कटकै मरते ना देश का ब्योंत कुढाला होता धृतराष्ट्र जन्म का अंधा गांधारी कर्म की अंधी बण बैठी अच्छी पत्नि बणन के चक्क्र मैं वा मात कुल मेटी बण बैठी आंख्या पै पट्टी बांधण की बजाए वा दुर्योधन न आच्छे लच्छण सिखावती तो आपणे सौ बेट्यां नै महाभारत म्हं कदे न वा खपावंती दुर्वासा गेल्यां उसनै पाच्छले जन्म मैं अनुणा भोजन दे कै करया था मजाक पर वो अतिथि न देख कै नाक चढाणा करग्या आगले जन्म मैं गरगाप, कणव ऋषि की पत्नि के रूप मैं गांधारी नै अपणे सिर पै पाप लिया सुन्दर आंखे होते हुए बी ना देख सकैगी दुर्वासा न यो शाप दिया मन्नै पूरे के पूरे महाभारत के रोले मैं दो चीजां की कमी पाई एक तो उन दिनां ब्यूटी कन्टैस्ट ना थे दूजी बालकां ताहीं अंग्रेजी ना सिखाई जै बालक उन्हें द्रोण पाठशाला की बजाय किसै कान्वैंट म्हं पढ़ाए होते तो छोटी मोटी बातां पै न्यूं ना देश अर कुटुम्ब खपाए होते कुछ बालकां का फिल्म इंडस्ट्री अर कुछ का फैशनडिजाइन का डिप्लोमा कराया होता तो दुर्योधन न दुसासन की जगह द्रोपदी धौरै एक सुन्दर सा कार्ड भिजवाया होता इबकै मिसिज यूनिवर्स हस्तिनापुर म्हं होगा बस यो हे संदेशा लिखवाया होता तो द्रोपदी दो छोटी छोटी कात्तर पहरें उघाणें पाहीं भाजी आवै हे अर्जुन खुद उसकी बाकी की डैस ए.सी. कार म्हं धर कै ल्यावै हे ना भीष्म पितामह शर्मसार होता अर ना विधुर कोए ऑब्जैक्शन लावै हे ना भीम बली जाड़ पीसता खुद युधिष्ठर जजां की सिफारश लावै हे ना कर्ण उसपै हांस सकै था अर ना कृष्ण चीर बढ़ा के लाज बचावैहे उनका टी.वी. आला प्रोड्यूसर संजय बी बावला था जो भैंस के आगै बीन बजाए गया कोए मनोरंजक सैक्सी प्रोग्राम ना दिखाया आंखो देखा हाल सुणाए गया जै ब्यूटी कन्टैस्ट अर फैशन चैनल वे उस टेम शुरू कर लेते तो कौरू द्रोपदी का के चाहे सारी दुनियां का चीर हर लेते वै तो कैरूं पाण्डू मार्डन ना थे ज्यां करकै इसा जोर का लाट्ठा बाज्या आज ब्यूटी क्वीन के ताज खातिर बिना बताए छोहरी घर तैं भाज्जैज्या जै उस टेम अंग्रेजी होती तो कर लेते इतनी एडजस्टमैंट सिंहासन तै बंध्या सूं की बजाए भीष्मपितामह कहता नो कमैंट द्रोपदेी रोला मचावण की बजाए बण जाती मिसिज यूनिवर्स की कन्टैस्ट गांधारी की ढालां बेरा ना आजकल के मां-बाप किसके श्राप तलै आरे सै बालकां नैं कोए भी ना रोकता सारे फैशन चैनल चलारे सै चीर हरण आले का इस देश म्हं कदे तो भीम चल्लू भरकै लहू पीग्या आज उन्हैं के वंशज ब्यूटी कान्टैस्ट करावै हर कोए आपणे होठ सीग्या मेरे ख्याल तैं वो युग बदलग्या कलयुग को इब रोल़ा सै मुफ्त मैं तू क्यूं थूक बिलोवै चहल तू सादा भोल़ा सै जै रोकण बी लाग्गै तो लोग कहैं से यो टोल तो नरया बैकवर्ड सै इस गांधारी की ढाल मन्नै बी पट्टी बांध ली क्यूं के जमाना घणा फारवर्ड स

हरियाणवी कुण्डलियां

(हरियाणवी लोक साहित्य पर अमीर खुसरो का काफी प्रभाव है क्योंकि उनकी रचानाएं खड़ी बोली में भी थी तथा कुण्डलियां भी उन्होंने काफी लिखी जिनमें दूसरी पंक्ति के अंतिम हिज्जे की पुर्नावृति तीसरी पंक्ति के पहले हिज्जे में होती है तथा कुण्डली का पहला हिज्जा उल्टा करके अंतिम हिज्जा बनाया जाता है।) 1. फागण फगुआ फूलग्या इब फर फर चाल्लै बाल़ याणी स्याणी कट्ठी होकै गोरै मारै छाल़ गोरै मारैं छाल़ आज कट्ठी हुअै लुगाई कमला बिमला पुष्पा नाचै अर नाचै चाची ताई बेरियां के बेर पाकग्ये चण्यां के टाट लगी लागण गेहुआं की इब बालअ् फूलग्यी फूलग्या फगुआ फागण 2. एक ससुर घर दो बहु आपस मैं करती रगड़ा कोण चुकाव न्याय उनका मिटता कोन्यां झगड़ा मिटता कोन्यां झगड़ा न्यूं घर म्हैं ए लाग्य दरबार सुसरा जेठ और देवर हारे फेर कंथै करी पुकार न्याय कंथ न पड़ रह्या महंगा क्यूकर राखै टेक नौलड़ हार मंगा दयूं थारा चुंदड़ी ल्यादूं एक 3. झंकार उठी नाड्यां की गोरै धरती दलकण लागी मस्ती छाई चारूं ओेर नें सब के मन म्हं भाग्यी सबके मन मैं भाग्यी टोकणी ल्यावण भेजैं रेवाड़ी पतली कमर का नाड़ा मांगै मांगै बनारसी साड़ी फागण की चौदस नै आज लापसी की उठै मंहकार गोरै के म्हां गोरी नाचै नाड्या की उठी झंकार 4. ढ़ाल बुरकले ले कै चाल्ली होली की करली पूजा प्रह्लाद भगत न आज बचावै काम नहीं कोए दूजा काम नहीं कोए दूजा मन मैं साच्ची लगी लगन शील वस्त्र तैं ए प्रह्लाद बचै सब मिल कै करें भजन बहादुर छोरे डाण्डा काढ़ैं जब उठै होली मैं झाल ढप बजा होली मंगलावै प्रह्लाद न बचावै ढाल 5. बाज्जै नाड़ा हो रह्या खाड़ा हुई गौरयां म्हं तकरार ओढ़ पहर चाल्ली पाणी नै बण्या होल़ी कोड़ त्युहार बण्या होली कोड़ त्युहार देख रहे खड़े खड़े भरतार देख कमर की झोल जब गालां म्हं पड़ी किलकार काला दाम्मण कुरता धोल़ा गल मैं कंठी साज्जै सिंगर कै जब गोरी लिकड़ै गालां म्हं नाड़ा बाज्जै 6. गुलाल उडै गालां मैं सबकै चेहरे छाई आब मिजाजण तैं होली खेलण आवै आप नवाब आवै आप नवाब हो रहे गोरयां मैं हुड़दंग पाणी गेरैं लगैं कोलड़े भंग पिए पड़े मलंग बुड्ढे़ बालक खेलैं सारे ना उम्र की कोए संभाल रंग बरसै फागण का सारै गालां म्हं उड़ै गुलाल 7. कासण बासण बांटण लाग्गे होण लगे न्यारे-न्यारे राण्ड़यां की कती कद्र घटा दी लागण लगै सबने खारे लागण लगै सबने खारे आज बांटै सोड़ सोड़िया रोज बंटवारे होण लगे जब तैं आई नई बोहड़िया याणा बालम बोल्लै कोन्या बोल्लै बहु सुवासण कहै चहल सब रोला फागण का बांटे बासण कासण 8. फागण फगुआ फूल लिया इब चैत मैं लागै चिन्ता देवर भाभी करांगे कटाई साथ मैं ले लिया कन्ता साथ मैं ले लिया कन्ता आज सब चाल पडै खेतां म्हैं होले भून्नै गन्ने चूसैं सरसम काटैं रेतां म्हैं सूट पहर चाल्ली खेतां म्हैं चौकस धर लिया दाम्मण कहै चहल इब दाती ठाले जा लिया फगुआ फागण

जहर का प्याला

शंकर जी थमनै एक बै जहर का प्याला पी लिया तो शिव भोळा कुहाया मैं हर रोज जहर का घूंट भर कै भी नर्या बोळा कुहाया तन्नै तो मजबूरी मैं देवत्यां अर राक्षसां का झगड़ा निपटाणा पड़या पर मैं तो चारूं ओड़ तै ऐकले ए राक्षसां तै घिर्या खड़या काम का्रेध नै तो तूं भी पूरी तरहां नहीं रोक पाया था उमा तैं शादी करी अर छोह मैं ताण्डव नृत्य दिखाया था तन्ने बड़े छोहरे ताहीं राजपाट ना दिया ज्यां तैं मांस पाड़ पाड़ बगावै था मैं छोहरे नै मोटरसाइकिल ना दे सकया ज्यां तैं रोज मन्नै धमकावै था तेरा गणेश तो तेरी हा नां मैं साथे सूण्ड हिलाता रह्या मेरा छोटला जबरदस्ती लब मैरिज करग्या मैं मजबूर पछताता रह्या तेरी गोरां तो सदा तेरी भक्ति मैं एक टांग के ताण खड़ी पाई पर मैं रोज आपणी के आगै एक टांग पै खड़या रहूं फेर बी ना करै समाई कदे कहै नया सूंट ना ल्याया कदे कहै टूम ना घड़वाई तू तो रोज सुल्फे अर गांजे की कर लिया करता खिंचाई मैं जै कदे वाणै टेहलै दो घूंट ले ल्यूं तो करवादे सै नाक रगड़ाई घणा सुखी तो तूं न्यूं था के तेरे घर म्हं कोए छोहरी ना थी ना तो समधाणे के उल्हाणे अर दहेज के खर्च मैं घर की तली दीख जाती नाम तो म्हारी बोहड़िया के भी रिधि-सिद्धि की तरहां रिंकी स्वीटी कुहावैं सैं कदे इन्टरव्यू अर कदे कम्प्यूटर के बहानें रोज ब्यूटी पार्लर जावैं सैं दहेज के कानून मैं जमानत ना होती रोज हामनै सुणा सुणा कै धमकावैं सैं बेरोजगार छोहरे लाठी भींत बिचालै आगे कदे बीवी अर कदे मां नै समझावैंं सैं मैं जै कदे बीच मैं बोल पड़ू तो आपणी लड़ाई नै छोड़ मन्नै आंख दिखावैं सैं जै तेरी गेल्यां इतणे रास्से होते तै जहर न घिटी तै नीचै जाण देता बजाए औरां के झगड़े मैं पड़न के तू खुदैअ आपणे प्राण त्याग देता जी तो मेरा भी करै सै के किसै के रोळै म्ह बिचौला मैं बुलाया जाऊं एक बै जहर का प्याला पी लूं अर रोज जहर की घूंट भरण तै बच जाऊं शंकर जी थमनै जहर का प्याला एक बी पी लिया तो शिव भोळा कुहाया मैं हर राजे जहर का घूंट भर कै भी नर्या बोळा कुहाया

फागण आग्या

कोयल कू कू कर रही शोर, आया देख आम पै बोर छाई मस्ती चारों ओर लागै सै इब फागण आग्या............. होली सभी बणावण लाग, खेतां तैं झाड़ी ल्यावण लागे गीत खुशी के गावण लागे लागै सै इब फागण आग्या........... गेहूं चणे जौं पाकण लागे सरसों न इब काटण लागे बेरी के बेर चाक्खण लागे लागै सै इब फागण आग्या........... बुढ़िया भी उधम मचावण लागी, नाचण न बुलावण लागी छोहरी रल मिल गावण लागी लागै सै इब फागण आग्या.......... गोरै म्हं कट्ठी हुई लुगाई, धमाचौकड़ी खूब मचाई बीच म्हं आकै नाच्चै ताई, लागै सै इब फागण आग्या......... गोरै म्हं हुअया गजब नजारा कट्ठी होग्यी सतरा अठारा बोली यो संदेश दे दिया म्हारा लागै सै इब फागण आग्या........... एक का बालम कती काळा, घरक्यां नै करया मोटा चाळा बांध जूड़ कुठले म्हं डाल्या लागै सै इब फागण आग्या.......... एक का बालम छोटा छोहरा, न्यारी होण का झगड़ा होरह्या गौरी का सै गजब डठोरा लागै सै इब फागण आग्या.......... कंत एक का जा रह्या दूर, सुध बुध खो बैठी वा हूर न्यूं बोली ना खेलूं लुहूर लागै सै इब फागण आग्या........... दो बहुआं का था आच्छा प्यार, आज आपस म्हं हुई तकरार न्यूं बोली चल ससुर दरवार लागै सै इब फागण आग्या........... पूर्णमासी नै होली आग्यी, रंगा की भर झोली आग्यी टाट भून आज धन्नौ खागी लागै सै इब फागण आग्या............ नई नई चीज मंगावण लागी, पति न लेण ख्ंादावण लागी धरती न दलकावण लागी लागै सै इब फागण आग्या......... होली नै मंगलावण चाल, गीत खुशी के गावण चाले प्रह्लाद न बचावण चाले लागै सै इब फागण आग्या........... देवर हो आगै रहे भाग, भाभी के संग खेलैं फाग कहै तोड़ूगी तन्नै नरभाग लागै सै इब फागण आग्या........... आज कीचण गंदगी कोए ना डारे, भेदभाव मिटावै सारे कट्ठे होकै खेलो सारे लागै सै इब फागण आग्या........... चहल आज गीत बणावण लाग्या, मोहन न समझावण लाग्या ले पिचकारी बाहर नै आज्या लागै सै इब फागण आग्या...........

कृषि व संस्कृति

शिवजी का नन्दी मांग्या और यम का मांग लिया झोटा सोन्ने का हल कुरू नै जोड़या खेती का कर्या मेळ मळोटा पांच योजन के क्षेत्र म्हं सत् तप दया क्षमा सी चीज बो दिए दोनों भुजा काट कै आपणी दान योग धर्म के बीज बो दिए सरस्वती के कंठारे पै विष्णु का ले कै नै आशीष बो दिए नैतिकता और ब्रह्मचर्य अपणा कै वैदिक धर्म पै रीझ बो दिए न्यूं कृषि की शुरूआत हुई प्रजा का काढ़ दिया टोटा......................1 कृषि संस्कृति साथ चलैं या बात म्हारी समझ मैं न्यूं आई ऋृग और साम वेदों की रचना सुरस्ती कंठारै बतलाई सांख्य दर्शन रचया कपिल मुनि नै सीफर रूप मैं बिंदी लाई पाणिनी नै रची व्याकरण भाषा की आत्मा जो बतलाई कई पुराण भी रचे यहीं पै जिनमैं ज्ञान दे दिया सब तैं मोटा.........2 द्वापर के म्हां कुरूक्षेत्र मैं ए गीता का उपदेश दिया था तात गुरू सगे रण म्हं देख कै कांप्या जब अर्जुन का हिया था मोह न छोड़ कर्म करले खुद कृष्ण न रथ हांक लिया था मर जाता तो सुरग मिलै था रहया जींवता तो राज किया था धर्म की रक्षा की ,खातर कई अक्षौणी दल का गळ घोट्या............3 जब कृषि संस्कृति साथ चलैं थी संस्कृति मैं क्यूं आज पिछड़ग्ये कविसर जोगी भजनी शब्दी अर सांगी म्हारे कती बिछड़ग्ये इब कट्ठे करां दुबारा उन्हैं जो साज बाज म्हारे रेत म्हं रलग्ये देशी सांग तमाशे करूं दुबारा जो इतिहास मैं दब कै गलग्ये ना बड्डी बात कदे करता ’चहल’ यो माणस सै कती ए छोटा........4

आया सै बसंत

पूरे विश्व मैं भारत ऐकला इसा देश बतावै सैं जड़ै गर्मी वर्षा हेमन्त शरद शिशिर बसंत आवैं सैं पेड़ा पै नई कांपल आग्यी इब सर्दी लई सै जा चारूं तरफ मस्ती सी छाई हर किसान उठया गा एक बाप कै दो बेटे सै बड्डा सै बणया किसान छोटा पहरा देवै सीमा पै सै वो पूरा वीर जवान खेतां म्हं खड़ी फसल देख कै बोल्ली बड्डे की घरआल़ी सारी टूंम पहर जाऊं मेले म्हं ले घर की कुंजी ताल़ी था बड्डा स्याणा सहज सहज घरआली न लाग्या समझावण मेले म्हं धक्के खावण के लाग्या वो नुकसान गिणावण बडयां की बतलाअण सुणी जब फौजण की बी दूख्खी पांस्सू पिया की याद सतावण लाग्यी भरग्ये आंख्यां म्हं आंस्सू जेठ जिठाणी की बात सुणी तो फोैजण के दिल तैं लिकड़ी हूक बिरहण न नहीं सुहाई कोयल जो रही थी बाग म्हं कूक बोल्ली कूक कूक कोयल प्यारी तू दिल नै खोल कै कूक कर अपणे जिगरे के चाहे मेरे दिल के कर सौ टूक कोयल बोल्ली मेरे कूकण तैं दिल के क्यूंकर होते टूक बता जिनके पिया परदेस गए उनके दुख का तन्नै नहीं पता किस कारण पिया परदेस गए वो भेद बताणा चाहिए मेरा पिया सरहद पै पहरा दें यो हे क्षत्री का धर्म बताइए तेरे पति न चिट्ठी गेर कै तूं अपणे घरां बुलाइए जब कंथा मेरा घर न आज्या मन्नै और बता के चाहिए घर आली की चिट्ठी जब पहांची फौजी के पास पढ़ कै आंख्या म्हं पाणी भरग्या मन मैं हुअया उदास संग के साथी बूझण लागे के बात हुई मेरे भाई घर तैं चिट्ठी आई सै उड़ै याद करै मेरी ब्याही अगले दिन अफसर के आगै जाकै करी सलाम बीस रोज की छुट्टी दे दयो कहै दिया हाल तमाम अफसर बात न समझ गया था दिल का घणा मुल्याम अगले महीने घरां भेज दयूं इब लिए कालजा थाम छुट्टी की जिब बात सुणी वो होग्या मन मैं प्रसन्न बीस रोज की छुट्टी आकै घरां प्यारी के करे दर्शन बीस रोज मैं खा पी कै चेहरे पै आग्यी आब्बी तड़कै दुलहैंडी खेल्यांगे न्यूं समझावण लागी भाभी तड़कए सारे कट्ठे होगे भीड़ हुई थी गोर्यां म्हं भाभियां के चले कोरड़े मस्ती छाग्यी छोरयां म्हं छुट्ठी काट कै उल्टा चाल्या जब याद हाजरी आई उसकै फिक्र मैं फौजण न आज रोटी भी ना खाई धोरै बैठकै उसकी जेठाणी लागी फेर उसनै समझाण देश की रक्षा करतब फौजी का अन्न उगावै किसान एक सीमा पै दूसरा खेत म्हं हरदम चौकस खड़े पावैं खुशिया रहैं बसन्ती सारै सदा न्यूं रल मिल मौज उड़ावैं

गर्भस्थ कन्या की पुकार

(जब एक गर्भवती महिला को उसकी सास भ्रुण जांच के लिए मजबूर करती है तो गर्भ में से कन्या अपणी मां को क्या अनुरोध करती है।) ऐ री मां तू मेरी बात मानं जाइए कितै बी जाइए डाक्टर के ना जाइए तूं स्याणी सै खुदअ हिसाब लाइए अर मेरी दादी ने भी समझाइए आपां हजार कै पाछैं सात सौ रहग्यी फेर भी मेरी दादी मेरे बाबू के कान म्हं कुछ कहग्यी जैं मैं जन्मी तो आपै त्यार होकै स्कूल म्हं पढ़ण जाऊंगी फेर छुटियां म्ंह उल्टी आण कै घर का सारा काम भी कराऊंगी तेरे ऊपर कोई दुख भी आया तो सदा तेरै धोरै खड़ी पाऊंगी मां तू मन्नै बाहर काढ़ कै मतना बगाइए मां तू कितै बी जाइए पर डाक्टर के ना जाइए मनै ब्याह कै चाहे किस्सै कै साथ भेज दिए उल्टी नहीं आऊंगी थारै मकान के भी ना कदे बीचम बीच भींत कढ़वाऊंगी मैं दारू पी कै भी ना कदै नालियां म्हं पड़ी पाऊंगी अर ना थारी बदनामी के पोस्टर थाणे म्हं लगवाऊंगी मन्नै बेशक तै इन बातां की भाइंयां की सौंह खुवाइए मां और कितै बी जाइए पर डाक्टर के ना जाइए मां जै तन्नै अगली बार बेटा जण भी दिया तो कोणसा छ़त्रधारी बणैगा तम मेरे दहेज का हिसाब लगाओ सो वो थारै तै भी बड़ा ब्यापारी बणैगा वो अपणी कोठी शहर की बढ़िया कालोनी म्हं बणवावैगा उसमैं ड्राइंग रूम अर बैड रूम तो होंगे पर थारा कमरा कितै नहीं पावैगा मां मैं या बात तेरे ताहीं कहूं सूं तू और किस्सै आगै मतना बताइए मां तू और कितै बी जाइए पर डाक्टर के ना जाइए मां बोल्ली बेटी सूणूं सूं सिर धुनुं सूं पर तेरी मां सै कत्ती मजबूर मन्नै अल्ट्रासाऊंड कराणां पड़ैगा पति का कहणा मानना सै दस्तूर फेर गर्भ म्हं तै एक आवाज आई अर अणजामी कन्या चिल्लाई बुढ़ापे म्हं जब एकेले पड़े रोवो जब मेरे बाबू कै या बात याद दुवाइए जो मेरी दादी मेरी गेल्यां करणा चाहवै तू आपणी पोती गेल्यां मतना कराईए मान ली मजबूरी सै पर तू अपणी पोती नै दुनियां म्हं जरूर आवणदिए मां मेरे होवण आल़े भाई नै उसके लाड जरूर लडावणदिए मां पूतना भी थारै तै अच्छी थी वा दुधि प्याकै बिराणा नै मारया करती उसने छोहरे-छोहरी म्हं भेद करया ना सबनै पार उतारया करती मां सांपण भी जण कै खा सै तू बिन जणै मत ना खाइए मां तू कितै बी जाइए पर डाक्टर के ना जाइए मां बोल्ली और घणी ना बोल्लै मन्नै राजी बोल भलोवै ना मेरै धक्कै लागै घर तै काढै मन्नै दीन दुनियां तै खोवै ना दिखै इब मेरी आत्मा जागग्यी अर मेरै कालजै म्हं तेरी बात लागग्यी मैं खुद मर ज्यांगी पर तन्नै नहीं मारण दयूंगी मैं शहर नहीं जां तन्नै शरीर धारण दयंूंगी फेर बेटी हांस कै बोल्ली भाई कै पोंहची बांधण नै बाहण अर भाभी की सन्दूक खोलण नै भी तो नणद चाहिए अर औरत की तो भीष्म तै भी बड़ी प्रतिज्ञा बताइए मां तू कितै बी जाइए पर डाक्टर के ना जाइए

हरियाणवी बारा-कड़ी

क काका तन्नै मैं कहूं चालणा पड़ैगा मेरे साथ यू.पी. तै बहु ल्यावंगे ना लागै हरियाणे म्हं हाथ ख खाखी सारे हो लिए इब मिलता न रोजगार खानदानी सब भूखे मरैं गैलड़ां की हुई तार ग गुड़-गोबर सारा हुअया आच्छें झौंकें भाड़ देश गरत म्हं जा रह्या खावै खेत नैं बाड़ घ घुघ्घू सग़ले हो लिए किसै धौरै बची न धरती लाखां रिश्वत मांगते जब होणा चाहवां भरती ड डड्डू नेता हो गए बदलैं पार्टी रोज नोटां की गड्डी मिलै साथ म्हं सारे भोज च चाचा चहल चाह रह्या सबकी चाहत पूरी होय चाहत मैं चाहत खो गई क्यूकर चाहत रहती दोय छ छतरा-पण पाच्छै गया आजाद हुअया इब देश राजा भिक्षा मांगते अर राज करैं दरवेश ज जच्चा दफ्तर जंच रही बड़े अफसर के पास कन्या भ्रुण गिरवाए कै करैं सपूत की आस झ झूंझणा झणकाय कै नेता मांगै वोट कुर्सी ऊपर बैठ कै करैं नोट पै चोट ञ ञयञां कतैयां ला रहे ना करते सीधे काम चणा भाण्ड़ नै फोड़ रहै जों गोझ म्हं हो दाम ट टेर उसी की टेरणी जो राक्खै तेरी टेक टेक राखणियां टकरा जा तो मारै गोझ म्हं मेख ट ठाली मत ना बैठिए जब आवैं रिश्वत के नोट जै लेता पकड़ा जावै तो दिए दुगणे पायां लोट ड डर कै सदा ए चालिए कदे रंगे हाथ ना थ्याइये किसै नै बेरा पाटै तो उसते ऊपर दूणे पहोंचाइये ढ ढूंढ रह्या जै ढूंढ नै क्यूं ढूंढै ढूंढ-ढूंढ जै ढूंढ ढूंढणा चाहवै सै तो कुर्सी के म्हं ढूंढ ण णुण तेल जै चाहिए तो ना सुणिये किसी का रोल़ा बालकां का दाखला चाहवै सै तो ले ज्या नोटां का झोल़ा त तात्ती तात्ती खा रहे इतरावैं तलवे चाट चाट बड़या के पायां लोट कै कर ज्यां ठाट बाट थ थिरक रहे सब होटल म्हं जड़ै बिकै काच्चे पाक्के मांस पिससे आल्यां कै लिपट मरैं गरीब म्हं तैं आवै बांस द दादा सड़ रह्या खाट म्हं दादी नै टूक ना थ्यावै ए. सी. कार म्हं बैठ कै रोज पोत्ते पीजा खावैं ध धीरज धरम ना धारते धक्के रहे सब खाए शेर नै बकरी मार रही देखो कलजुग का न्याय न ना नुकर नेता करै काढै़ं सब म्हं खोट नाक रगड़ तलवे चाटैं चाहिएंगे जब वोट प पप्पा पुलिस पुकारती जब चोर हाथ न आए धर्मक्षेत्र म्हं बैठ कै कोठे रहे चलवाए फ फाफा फूं फूं ना करै क्यूं सांप ज्यूं रह्या फुफकार बणी म्हं सौ साअ्ले बणज्यां ना कोए बिगड़ी का यार ब बेबे बाट नित देखती कद भाई मिलण नै आवै जब बाबु बेरा पाड़ता तो सालियां घर पावै भ भूल भ्रम म्हं भटकते भली करैं ना एक भीतर म्हं काला रहै ऊपर तै बणैं नेक म मामा मैं मैं क्यूं करै क्यूं बकरी ज्यूं मिमयावै जब पिस्से सपड़ज्यां कोई जात ना बूझण आवै य यो यमराज भी टलज्या सै जै रिश्वत म्हं नोट धकावै बिन पइसे खड़या देखता जणुं धुम्मर म्हं गधा लखावै र रो रो रूदन मचा रह्या धन हाथ किस तरियां लागै छोहरी आलां नै लूटता छोहरे आले देख कै भागै ल लपर लपर लार गेरते देख पराया माल नोटां की गड्डी थ्यावंती ए लेवै गोझ म्हं घाऽल व वाह वाही सब चाहवते चमचें राखैं साथ गरीब के धक्के मारते ढाड्डे ते मिलावैं हाथ स सासु सुसरा कह रहें हाम बहू फूंकणी चाहवैं उसते पिण्ड छुड़वाए कै दहेज दुबारा ल्यावैं ह हा हा ही ही कर रहे सब राग बेताले गावैं छोहरी ना पैदा करै क्यूंकर आग्गै वंश चलावैं

अचूक निशाना

कदे अरजन खड़या था धनुष ताण कै द्रोपदी तैं ब्याह रचाणें खातर देख कड़ाही म्हं परछाई त्यार था मछली बींध गिराणे खातर फेर अचूक निशाना मार्या अरजन नै वरमाला गले डलवाणे खातर पाँचवां नै साझी मिली द्रोपदी गृहस्थी धर्म न खूब निभाणे खातर फेर चौसर म्हं दी लगा दाव पै भरी सभा म्हं नाच नचाणे खातर उड़ै जांघ पीट दुर्योधन बोल्या करो नगन इन्हें यहां आणे खातर नारी का अपमान हुऽया देखैं भीष्म द्रौण भी शर्मसार हो जाणे खातर फेर लहू पीवण का प्रण करया भीम नै दुसासन की छाती फाड़ दिखाणे खातर जभी महाभारत की नींव पड़ी थी या जचगी थी बात जमाने खातर फेर कृष्ण याद करे कृष्णा न मातृशक्ति की लाज बचाणे खातर अठारा क्षौणी सेना खपगी पांचाली के केस लहू तै धुलवाणे खातर अरजन श्रेष्ठ धनुर्धर बणे भीष्म, द्रौण, कर्ण नै मार गिराणे खातर परछाई देख कै पहला निशाना अरजन नै द्वापर म्हं लगाया था ब्राह्मण वेश म्हं सब राज्यां तै नीचा खूब दिखाया था पर अरजन तै भी बड़े धनुर्धर सैं कलजुग म्हं जो निशाना अचूक लगावै सैं परछाई देख कै गर्भ के अन्दर बच्चे का लिंग बतावैं सैं कुछ रूपयां की खातर वो कन्या भु्रण गिरावैं सैं सफेदपोश ये कातल भी डाक्टर आज कहावैं सै मांस नौच के निर्दोषां का कुत्ते कव्वयां नैं खिलावैं सैं हजार आठ सौ का अनुपात हुऽया आंकड़े आज ये बतावैं सैं छोंर्यां ने ना मिलती दुल्हन इब यू.पी. केरल तै मंगवावैं सैं अर जिसनै मिलज्या सै वो दहेज की बली चढ़ावै सैं मिलकै सोचो सारे आज या सभ्यता किधर न जाण लगी इतिहास तै कुछ शिक्षा ली ना सब प्रमाणा नै भुलाण लगी भीम तै ज्यादा लहू रोज पी डाक्टर नर्स सै पाप कमाण लगी द्वापर म्हं बण धर्म सारथी लगे थे अरजन न उकसाणे खातर इब कलजुग म्हं फेर जन्म लो प्रभु कन्या भ्रुण बचाणे खातर ब्रह्म अस्त्र सै भी ज्यादा खतरा आज अल्ट्रासाऊंड का जमाणे खातर कदे अरजन खड़या था धनुष ताण कै द्रोपदी तै ब्याह रचाणे खातर आज डाक्टर खड़ी सै सिरींज ताण कै मानव वंश मिटाणे खातर अर ’चहल’ खड़या स कलम ताण कै एक छवि कवि की पाणे खातर कदे अरजन खड़या था धनुष ताण कै द्रोपदी तै ब्याह रचाणे खातर

ऋृतु राज बसंत

छः ऋृतुओं का राजा आग्या ले कै आया खुशियां भारी पेड़ां पै नई कोंपल फूटी खिल उठी अब क्यारी-क्यारी तितली नाचै भौंरे गूंजै कोयल बाग म्हं शोर मचारी गांव की छोहरी कटृठी होकै गीत बसंत के गा रही आम के ऊपर बौर आ लिया आडू भी मुस्काया सै बेर और अमरूद पाकग्ये अनार भी पक्या पकाया सै बुढयां नै भी बुक्कल खोली जाड़ा भी नरमाया सै छोर्यां नै होली का डण्डा गौरे बीच जमाया सै छोहरी रात नै गौरे के म्हां कट्ठी होकै नाच्च्ण लागी नई बोहड़िया फौजी पति के खत न हट हट बांचण लागी बुढ़िया भी गौरे म्ह आकै अपणे जोश न जांचण लागी पर याणे पति की गौरी इब बी साथ जाण तै नाट्टण लागी गाजर मूली खत्म हुई इब लागे सै हम छोलिए खावण हाली भी घरआली खातर नई टूम इब गया सै ल्यावण मस्ती म्हं सुस्ती नै भूली फौजण भी इब लागी गावण परदेस गए बालम की याद म्हं हिचकी सी लागी आवण गोरी गोरयां म्हं दलकारी मस्ती चारूं ओर न छा रही सास बहू नै न्यूं समझारी देख बुढ़िया भी नहीं शरमा रही कट्ठी होकै गावैं सारी ज्यूं कान्हा संग रास रचा रही कोए पति तै फरमाइस लगारी नई नई तीऊल मंगावै सारी छः ऋृतुओं का राजा आग्या ले कै आया खुशियां भारी

कित टोहूं

कच्चा ढूण्ढ, काला भूण्ड खेत का डरावा झूठ बोल कै यावा गोफिया अर टाट चाक्की के पाट घेर की बाअड़ फेहली की आअड़ डोवटी का पाट जेली आल़ा जाट चरखे का ताकू चिलम अर तम्बाकू छांत म्हं मोघ हल का ओघ जच्चा का चाब बेटी कै बाप पै आब झाड़ी का भींटका अचार टींट का कतंइयां बिन लीडर पूरे पाणी का फीडर तांगे की सवारी मतलब बिन यारी थाम का मकान देसी का पकवान दाम्मण का नाड़ा कुश्ती का अखाड़ा धनुष अर बाण सांगरी का ल्आण नेता की साच्ची बाणी रहट का पाणी पइंयां का खेल कोयले की रेल फूफा कुहाणा कसार अर मथाणा सा यार कित टोहूं बणी म्हं झण्ड चूने का गरण्ड भाभी की बन्दनवार लापसी आला त्यूहार मामा का बेलवा होक्के का टेरूआ यारी म्हं काम आवणिया सर पै खेई ठावणिया रई और चाखड़ा धाणी अर अंगाकड़ा लोबाँ की हूक अर कोयल की कूक वेद का पढ़ावणिया खिचड़ी गोजी खावणियां सिण्डोरी अर पीहल खारे आंगी की तीअ्ल हल और बहल रामफल सा चहल कित टोहूं नोटः-(वर्णक्रमानुसार क से ह तक)

कव्वाली

(फेरां का नजारा देखकर) (एक दोस्त के विवाह में फेरों के मौके पर दुल्हे की साली को देखकर हरियाणवी कव्वाली जिसमें बारहों महीने का वर्णन सुखद मिलन की भावाव्यक्ति में किया गया है।) मार डाला कसम से मार डाला बन्दड़े की साली नै उस चम्भो चाली नै कर दिया ज्यान का गाला पिण्डी पतली नाक सुआ सा चम्पा जैसी खूब खिलरी मोर जैसी गर्दन लाम्बी कमल जैसा फूल खिलरी चाल ऐसी चाल रही ज्यूं पाणी म्हं मुरगाई तिररी भूजाएं सै बेलण बरगी आंख्यां के म्हं स्याही घलरी होठ लाल मूंह गोल जणू गुलाब की कली खिलरी सपेला मैं बणना चाहूं तू बम्बी म्हं नागण बड़री बिजली सी पड़कै उठी इसा कटया रूप का चाला मार डाला कसम से मार डाला................. रूप तेरा जब तै देख्या मन मेरा डोल रह्या खाणा पीणा सब भूल गया रूक मेरा बोल रह्या कोयल जैसा बोल प्यारा मेरा कालजा छोल रहया कोण से कालेज म्हं पढ़ती पाट नहीं तोल रह्या मैं चक्कर खा कै पड़ग्या हांस छोरयां का टोल़ रह्या तेरे इशक म्ह मरूंगा कर कोन्या मखांल रह्या फेरे लेले मेरी गेल्यां ना एकला जाणे आला मार डाला कसम से मार डाला.................... चैत की चिन्ता नै छोड़ इब्बै ब्याह करवावैं गोरी बैशाख म्हं धूल उड़ती गात नै बचावैं गोरी जेठ कै म्हं लू चालै रूप नै झुलसावैं गोरी साढ़ म्हं जब घटा छावै मन मैं हरसावैं गोरी साम्मण के म्हं पींग घाऽल जोहड़ पै झूलावैं गोरी भादों भ्रष्ट करै मन नै मीहं म्हं कट्ठे नहावैं गोरी आसोज म्हं आवै दशहरा राम लीला दखावैं गोरी कात्तक की मीठी ठंड म्हं गंगा जी नहावैं गोरी मंगसर करै प्रेम ढंगसर पीवैं और खावैं गोरी पोह का पाला प्रेम जगाता हंस कै नै बतलावैं गोरी माहं म्हं मीहं सा बरसैगा जब कसकै हाथ मिलावैं गोरी फाग्गण म्हं गुलाल लावां पिचकारी चलावैं गोरी सारा साल प्रेम करैंगे चहल रोप दे चाला मार डाला कसम से मार डाला बन्दड़े की साली नै उस चम्भो चाली नै कर दिया ज्यान का गाला नोटः- बारा मासा विरह का होता है लेकिन यह मिलन का बारह मासा है।

दर्पण कुछ ना बौल्लै

(यह कविता कुरूक्षेत्र के प्रसिद्ध शायर दोस्त भारद्धाज द्वारा दिये गये मिसरे; "सबके चेहरे देखता है कुछ नहीं कहता कभी आइनें की कुव्वतें बर्दास्त की हद देखिए" पर आधारित है जिसमें विभिन्न पात्र आइने के सामने आते हैं। वास्तव में यह कविता सच्ची घटना पर आधारित है। यह दर्पण गांव बौंद कला जिला भिवानी के बस अड्डे पर स्थित एक धर्मशाला में जहां कभी रामकिशन नाई की दुकान होती थी। उसकी मृत्यु के बाद वह धर्मशाला तो खण्डहर में बदल गई परन्तु उसकी दुकान में लगा शीशा आज भी वैसे ही लगा है जिसे देखकर बस की इंतजार में बैठे-बैठे यह कविता लिखी गई है।) म्हारे गाम के बस अड्डे पर लाग रह्या एक पुराना शीशा बस लिकड़गी वार हुई थी आवण नै हो रह्या था मींह सा बालकपण म्हं यो शीशा देख हम स्कूल पढ़ण नै जाया करते उल्टा सीधा मूंह बिचका कै साथियां नै खूब हंसाया करते याद पुराणी ताजा होग्यी अडै़ पाया करता किसना नाई अकेला देख शीशा बोल्या घणे दन म्हं दिख्या रामफल भाई शहर म्हं जाकै होया पराया भूलग्या कती गाम की राही बीते दिनां का हाल मन्नै बूझ्या तो शीशे पै छाग्यी जरदाई इस धर्मशाला म्हं नया जड़या जब लोग इसे अड़ै आया करते शक्ल देख कै खुश हो पैनी मुछ्यां नै खूब पनाया करते फेर समों बदली अर माणस बदल, बदल गई माणस की जात चालीस साल के इस अरसे म्हं बदल लिए सारे हालात तू ध्यान अर कान लगाकै सुण ले बात कहूं मैं साची स्याणी मेरे तन अर लोगां की आंख्या का मर लिया सै सारा पाणी फेर शीशा बोल्या मेरे तैं इब कती हद होली सै भाई चेहरा देख सारे इतरावै खुद तै झूठी तारैं खूब सफाई सब के चेहरे देखूं सूं अर कुछ नहीं काढूं मीन-मेख संत सा बण्या रहूं सूं मेरी बरदास्त की हद न देख मैं बोल्या चल हाल सुणा क्यूं दुखी घणा के लुटग्या तेरा बोल्या खुद तैं ए सारे झूठ बोलते भीतर काला अर उजला चेहरा किस किस नै आज मूंह देख्या था शीशा हाल सुनावण लाग्या तैड़कैऐ एकला देख कै चेहरा लीडर खुद शरमावण लाग्या इमानदार सा दिखूं सूं पर हल्के न जमां बेच कै खाग्या फेर अफसर आया रोब दखाया खुद न न्यूं समझावणे लाग्या आत्मा कोन्या शरीर खड़्या सै आप्पै तैं बतलावण लाग्या एक दरोगा आया थोड़ा घबराया इब लागूं कती ऐ यमदूत सूं पर किसने बेरा कितणे ले रह्या घर म्हं एकै कमाऊ पूत सूं मास्टर आया धमका कै बोल्या टयूशन बिन तू करता बात छोहरी हों तो करूं इशारे छोहरां के मारूं धुस्से लात फेर मोटा फूल्या जणूं रसगुल्ला इतणे म्हं एक आया व्यापारी ब्लैक करूं अर नकली बेचूं इस्सै म्हं सै इज्जत म्हारी गर्भवती एक औरत आकै मेरे आगै रोवण लाग्गी डाक्टर कै ले ज्यां सैं पड़ै गिरवाणी गर्भ म्हं जै छोहरी पाग्यी टूट्टे लीतर पाट्टे कपड़े मूंह लटकाए आया किसान अन्नदाता कुहावण आला हो रह्या सै इब घणा बिरान शीशा रोया झगड़ा झोया सारी कहदी अपणी बात जीवण नै जी करता कोन्या करणा चाहूं आत्मघात मैं गिर लेता अर दब लेता पर एक फौजी मेरे श्याहमी आया हाथ घुमा कै जय हिंद बोल्या फिर चौखा सा एक सैल्यूट जमाया तू अन्धा हो लिया, छिककै रो लिया, मेरी हिम्मत की हद न देख सियाचिन म्हं दयूं सूं पहरा चाल उस सरहद न देख तू झूठा तेरे कवि सै झूठे उसने मेरे कान खोले रे झूठी दुनिया कहती आवै के दर्पण झूठ ना बोले रे सब के चेहरे देखै सै पर दर्पण कुछ ना बोले रे

आदमी नाम ना धरियो

(हाम कोय आदमी जिसे काम करैं उसाए उसका नाम धरदयां सां भोले आदमी न गधे की उपमा और डरपोक न गादड़ कहां सां जानवर इस बात पै एतराज करण लागगे के आदमी म्हारे तैं अपणी तुलना क्यूं करैं सैं। उन्नै पंचायत बुलाई और फैसला कर्या के जानवर अपणे साथियां का नाम कदे भी आदमी ना धरैंगें। इस कविता में जानवरों पर आधारित मुहावरों और लोकोक्तियों का प्रयोग किया गया है।) जंगल म्हं टेकड़े ऊपर जानवरां नै पंचायत जुटाई गादड़ लोमड़ शेर गधा मुस्सा गा भैंस बुलाई चीहल गिरझ औेर मुरगा आग्ये बांगां तै कोयल बी आई सांप और कव्वा पहरा दे रहे ऊंट की पीठ पर गिरझ बिठाई शेर आपणे आसन्न पै बैठ्या गधे नै मन्त्री की पदवी थ्याई खरगोश कलम दे बणाया मुन्शी लिखणे लग्या सारी कारवाई मुकदमें पेश करो नम्बरवार गधे नै फेर आवाज लगाई फेर सात सलाम कर गादड़ बोल्या आदमी हो लिया घणा अन्याई हर डरपोक नै गादड़ कहता अर मैं राजा बिन डरता नाहीं गां बोल्ली मन्नै माता कहन्दा इब कुरड़ियां की राह दिखाई किसी की समझ म्हं कुछ ना आवै तो कहैं भैंस कै आगै बीन बजाई उल्ट बुद्धि ने कहं उल्लू का पट्ठा मेरी इज्जत कती गिराई शरमाता मैं बाहर ना लिकड़ूं रात म्हं ही करता पेट भराई गिरें हुए माणस नै कुत्ता क्यूं कहते उल्टा हटे बन्दर घुड़की कहाई कव्वा अर कोयल दोनूं बोल्ले म्हारी खानदानी दुश्मनी कराई बोल्या ऊंट ना मूंह जीरा घाल्या गधे नै कदे न पंजीरी खाई मेरे बोल्ले पर उठता कोन्या मुरगे नै फेर बांग लगाई लोबड़ कहं ये शेर सिंह नाम धरैं क्यूं दिखै शेर छावै मुरदाई सब जनता की फरियाद सही कहै मुस्सा मेरे न हल्दी थ्याई चीहल झप्पटे नै क्यूं रोवै गिरझ की आंख कै नजर लगाई दूध देऊं अर बरतूं हलीमी लोग कहं बकरी मिमिआई फेर फण ठाकै सांपण चाल्ली बीच म्ंह आकै फुफकार लगाई गर्भ गिरावै उन्ह नागण कहते मन्नै कद बिन जामी बेटी खाई सेम सेम के नारै गूंजे गधे ने बी जोर की हुचकी आई राजा दहाड़ा चुप कराए क्यूं पंचायत की पार्लियामैंट बनाई फेर गंभीर आवाज म्हं शेर गुर्राया शुशा लिखो फैसला शाही कोए कितणे नाम धरो थारे, पर तम आदमी नाम ना धरियो भाई

गाम सांझला कुआ

(हमारे गांव में एक गांम साझला कुआं है जो अब खण्डहर में बदल गया है। यह कुआ सन 1956 में गांव द्वारा तैयार करवाया गया था जिसमें से अब कोई पानी नहीं भरता और बदबूदार काई युक्त पानी उसकी दुर्दशा की कहानी कहता है। सुन्दर निर्माण शैली वाले मिट्ठे जल युक्त कुओं की लगभग सभी गांवों में यही हालत हो चुकी है तथा ये धरोहर अब विलुप्ति की कगार पर हैं।) म्हारे गाम नै कट्ठा होकै कदे बणाया था सांझला कुआ च्यार पाड़छे ऊंची बुर्जी पाणी भरती मां अर बुआ मेरे होण पै जलवा पूज्या जब इसै पै पहली चाब बटाई थी पत्थर लगे पै जब तारीख देखी तो सन् 1956 की पाई थी कदे तो इस कुएं पै पूरे गाम का पनघट लाग्या करता जिस भाभी का मूंह देखणा होता अड़ै आकै भाग जाग्या करता सारी सुख दुख की इसै कुएं पै आकै नै बतलाया करती हरेक ब्याहली मुकलायी पायां की महंदी इसै चबूतरे पै छुड़ाया करती सिंगर कै हर बार नया सूंट पहर पाणी भर भर ल्याया करती औसरै बारी सारी भरती नई बहुआं पा बरही खिंचाया करती सारा हांगा लगा बोहड़िया सैअड़ दे गूंअण म्हं जाया करती सास नणद की चुगली चर्चा गाम गुहाण्ड की खबर सुणाया करती कात्तक के महीने म्हं छोहरी नहां कै अड़ै ए हरजस गाया करती फेर जलघर बणग्या पाइप दबकै घरां म्हं डिग्गी का पाणी आग्या सौतण बणी टूंटी कुए की कुए का दिल घणा घबराग्या कुछ साल के अरसे म्हं फेर कुआ होग्या कती सुनसान कदे रौनक घर था लुगाइयां की आज काई भर रही बेअनुमान ईब गूअण के म्हां बोझे जागग्ये राही म्हं बणा लिया मकान मैं कुए म्हं झांक्या तो कुआ धाड़ मार मार रोया बोल्या रै देख रामफल मेरी गैल यो किसा मोटा चाला होया मैं बोल्या रै ठीक सै कुए तू अपनी करनी का फल पाग्या मीठा पाणी तो तन्नै प्याया पर 40 साल म्हं 40 लुगाइयां न भी तो खाग्या जब भी कोए इस गाम की बहू जीवण तै छक जाया करती तेरै ए पाड़छै आकै दअड़ दे भीतर डाक लगाया करती इब ना तेरै धौरै कोए आंवता ना तूं किसे न काल बणकै खांवता कुआ बोल्या घणा ना बोल्लै तेरे गाम के घणे ए भेद छुपा रह्या सूं हर महीने कम ते कम एक अणजामी छोहरी न खा रह्या सूं कोए पोलीथीन म्हं पत्थर अर लोथड़ा घाल मेरे म्हं फैंक ज्या सै अर कोए मेरी गूअण म्हं फैंक कै कुत्यां न खुवा ज्या सै मैं तेरे आगै हाथ जोड़ूं सूं तू मन्नै इस पाप तै बचा दे गाम म्हं तैं तागड़ी पागड़ी करकै मन्नै माटी तै ठाड्डा भरवादे मेंरे ऊपर यो एहसान नहीं सिर्फ मेरे मीठे पाणी का मोल चुकादे मन्नै हिम्मत करकै गाम की पंचात जुटा कै कुए की अर्ज सुणाई हुराकड़े से पंचाती बोल्ले तूं सोच्चै सै उतणा बावला यो गाम नहीं हम तो नये कुए खोदण के सां पुराण्या नै भरणा म्हारा काम नहीं

बिरह नामा (बारा मासा)

(इस बिरह नामे में कोयल की तुलना में कव्वे के बोलने को ज्यादा अच्छा माना गया है क्योंकि कव्वा बोलना किसी प्रियतम के आगमन का सूचक माना जाता है। एक विरहन युवती के मन में मौसम अनुसार परिवर्तन होता है तथा उसकी मनःस्थिति अलग-2 महीनों में कैसे बदलती है।) तेरा तन भी काल़ा मन भी काल़ा कड़वा तेरा बोल हो पर कोयल की कूक इब नहीं सुहावै कागा मेरी अटरिया बोल हो फागण म्हं होली संग खेल्ली फेर बालम अकेली छोड़ गए चैत म्हं चिंता न खाई चकोर तै चंदा मूहं मोड़ गए बैसाख म्हं भौंरें गुंजै मन्नै मुरझाई कली ज्यूं छोड़ गए जेठ म्हं पड़ै जुल्म की गर्मी मेरी शरद सुराही फोड़ गए साढ़ म्हं जोबन दाढ़ बण्या देख घटा मन रह्या डोल हो... सामण बड़ा सुहावणा पर एकली न नहीं सुहाता भादवै म्हं मन भर कै पिया याद बहोत घणा आता आसोज की ऐश साथ गई ना अच्छा लागै नौराता कात्तक बणै कन्त बिन कौतक मेरी रूस्सी लक्ष्मी माता मंगसर जाड्डा रंगसर पड़ता ना रह्या दुख का तोल हो... पोह म्हं पिया की प्रीत सतावै मैं रातों मरी जडाई माह म्हं मन घणा मचलया मेंरी किसी चढ़ी करड़ाई फागण फेर दुबारा आग्या मेरी जुत्ती भी मरड़ाई सारा साल बीत गया इब तो आज्या हो हरजाई सोचूं होली न तो पक्कम आवै जब बजै चंग अर ढोल हो तेरा तन भी काला मन भी काला कड़वा तेरा बोल हो पर कोयल की कूक इब नहीं सुहावै कागा मेरी अटरिया बोल हो

लोहा अर सोना

सुनार की पछीत म्हं लुहार आ ठहरया कुट्टण लाग्या फाली अहरण पै धर मारै हथौड़ा संडासी तै पकड़ै घरआली जब सोन्ने नै खुड़का नहीं सुहाया तो चांदी तै बतलाया कमजात कुरूप कम अक्ल लोहे नै देख कितणा शोर मचाया चांदी बोल्ली जाकै धमकादे क्यूं बगड़ नै सिर पै ठारह्या लागै थोड़ी रोवै घणा क्यूं यो आपणी जात दिखा रह्या फेर सोन्ने नै लोहा जा टोक्या रै काले इसा के बिगड़ै सै तेरा मैं अर चांदी ठुक-ठुक पिटते तू क्यूं इतने रूक्के दे रह्या छोह म्हं आकै लोहा बोल्या तम तो दोषां कारण दुख पाते शब्द स्पर्श रूप रस गंध पांचू मौत के मूंह ले जाते तू गोरी के बदन कै चिपटया रहता ज्यां तैं मार घणी खावै तेरे गोरे रंग पै गोरी रहै आशक न्यूं बार बार पीट्या जावै तू कान्ना सजै छाती चढ़ै गल म्हं भी लिपट्या पावै आंगली पकड़ कै पौंहचै पकड़ै नाक म्हं भी तू घुस जावै, चांदी पांयां पड़ती हाथां सजती गल म्हं हंसली बन ंजावै आशकां का हाल योहे हो रोवै कम चोट घणी खावैं अर सुण, सुवर्ण नै तीनूं तकैं कवि व्याभिचारी चोर मेरे दिल का दुखड़ा सुण ले क्यूं घणा मचाऊं शोर तमनै तो बेगाना लोहा पीटता चहल न्यूं समझावै पर आपणे न कोए आपणा ए पीटै तो दर्द सह्या ना जावै

याद

(आकाशवाणी चुरू से वापसी के बाद) बागड़ (चुरू) तैं मैं उल्टा आ लिया आवै इब्बी याद भतेरी ताती लू खारा पाणी आग उगलती थी दोफारी पाणी डूंगै टीब्बे ऊंचे नये नवेले भेष म्हं नारी खिंपोली अर सांगरी होवै काचरी खावैं मिट्ठी खारी पीच्छू अर पीहल लागैं सबतै घणा मतीरा पावै सीना ताणे खड़या रोहिड़ा लाल अर पीले फूल खिलावै कठिनाइयां न क्यूंकर झेलो या बात सिखावै रेगिस्तान बाजरी अर ग्वारफली खा मर्दाने हों उड़ै जवान बाटी अर चूरमा खाया इब फीके लागैं छप्पन भोग उडै़ रहकै सब भूल्या था मैं मामा-फूफी मेरा-तेरी बागड़ (चुरू) तैं मैं उल्टा आ लिया आवै इब्बी याद भतेरी

शहर में बसकै, के खोया के पाया

(जिन लोगों का जन्म ठेठ देहात में हुआ और गांव की संस्कृति में पले-बढ़े तथा नौकरी के लिए शहर आकर वही के हो कर रह गए। उनके दिल में गांव की याद आज भी ज्यों की त्यों ताजा है और किस प्रकार एक ग्रामीण बालक उच्च अधिकारी बनकर भी अपनी जड़ों से जुड़ा रहता है और उसके दिल में अपनी मां तथा गांव की यादें किस प्रकार हिलोरें मारती है। उसका वर्णन मैनें स्वयं भोगे ग्रामीण जीवन पर आधारित इस कविता में किया है।) इस शहर नै बहोत सम्मान दिया सै, पर मेरी मां के बदले म्हं ओहदा, कार, मकान दिया सै, पर मेरी मां के बदले म्हं नुहा-धुवा अर कालस घाल कै, काला टीका लाया करती कल्लेवार टीण्डी हाण्डीवारां मलाई टूअक पै धर खुवाया करती कुड़ते पै राई गल़ म्हं गण्डा नजरियां तै टोक बचाया करती देवतैं पै धौक मरा, जोहड़ तैं माटी कढवा स्कूल छोड़ कै आया करती बड़ा होकै पटवारी बणैगा पड़ोसन दादी न हाथ दिखाया करती थाम खूब पढाइ़यो पर मारियो मतना मास्टरां का लौटे म्हं दूध भिजवाया करती नस्तर सुआं आले दिन मन्नै ओबरे म्हं ल्को खुद बस्ता ठाकै ल्याया करती गुड़गामें की धौक, नौमी की खीर गूगै का झाड़ा जरूर लगवाया करती अगाऊं पीस कै झाकरे भरती दिवाली पाच्छै माम्यां कै ले जाया करती उड़ डोवटी की चाद्दर टोपला, कुड़ता, बूट नानी पा मंगवाया करती होल़े, पीहल, कसार, लापसी, सुहाली, पूड़े, गुलगुले खूब खुवाया करती आज काजू मेवा मिश्री अर मिष्ठान दिया सै पर मेरी मां के बदले म्हं जब हुअया दागड़ा आठ पास करी मां रोला रोज मचावण लागी तीन कोस क्यूं भेजूं पांयां जब महेन्द्र अर भूप्पी की साइकिल आगी दादी नै लाठी ठाई, मां धमकाई, पर मैं घाघरी के लिपटया जब हांसण लागी ताऊ छोह म्हं भरग्या, बाब्बू समाई करग्या, अर मेरी सौ रूपइयां की साइकल आगी मैं बेबे, बुआ, मौसी अर मामां कै साइकल पै चढ़ कै जाण लाग्गया खाड़े म्हं जाणा जोहड़ म्हं नाहणा चोरी के खरबूजे भी खाण लाग्गया सौ दण्ड अर दो सौ बैठक मार कै गात म्हं तेल रमाण लाग्गया एक दिन सतबीर मास्टर घर नै आकै मन्नै सबकै बीच धमकाण लाग्गया तमनै नहीं सै बेरा, बताणा फर्ज मेरा, यो बीड़ी के सुट्टे लाण लाग्गया मां नै जुती ठाई, छककै करी धुनाई अर रोकै बोल्ली तू इसे इसे बट्टे लाण लाग्गया इस शहर नै आज विहस्की सिगरेट अर पान दिया सै मेरी मां के बदले म्हं फेर गाम छोड़ कै कालेज म्हं आग्या जब दशमी मेरी होग्यी पास कई दिन लग जी लाग्या कोन्या साथियां बिन था घणा उदास जब डिग्री होग्यी फार्म भर दिया शहर म्हं मेरै नौकरी थ्यागी मां नै राजी होकै रिश्ता ले लिया पढ़ी लिखी मेरै बहू भी आग्यी फेर बालक होग्ये आप्पै म्हं खोगे मां इब कदे कदाऊं आवै सै बालक दिखै स्याणे सै गिरकाणे कान कै मुबाइल सुहावै सै मंा हुई पराई पर ना करावै जग हंसाई दे आशीष तम रहो आबाद पर आड्डे चालैं मेरी ढाल़ पीटीयो ना बालक होज्यां जमां बर्बाद जी चाहवै मैं गोड्यां लेटूं मां सिर रोळै लाड तैं मारै कड़ पै धोल जिस जूत्ती तै पीटया श्योकेश मैं धरलूं पर उडै़ धरे मोमैंण्टो उड़ावै मखोल कम्प्यूटर टी.वी. ड्राइंग रूम आलीशान दिया पर संस्कार छीन लिए मेरे अनमोल इस शहर नै रामफल तै चहल नाम दिया सै पर मेरी मां के बदले म्हं इस शहर नै बहोत सम्मान दिया सै, पर मेरी मां के बदले म्हं

छाकटा यार

मैं अर जगबीर बालकपण तैं सां घणे कसूते यार मजाक मजाकां में शर्त लागग्यी तेरी मूंछ करादूं पार मैं बोल्या ना मूंछ कटाऊं तू कितण ए हांगा ला ले बोल्या इसा पंवाड़ा रच दयूंगा तूं भाज कै मूंछ कटा ले मै बोल्या हो मर्द मूछैल बांका अर पूंछ बांकी घोड़ी सींग बांकी भैंस हुअया करै नैन बांकी गोरी बोल्या जुबान तैं बांका मर्द हो अर घोड़ी बांकी चाल दोझ बांकी भैंस हो अर गोरी जो जणैदे बांका लाल मैं बोल्या चल छोड़ राअड़ नै मन्नै घणा ना समझावै तूं क्यूं जलता, तनै कै सैधैं के तेरै मीटर मं खर्चा आवै म्हारी सौ रूपयां की सरीत लागग्यी उसनै कसूती तरकीब लड़ाई पचास रूपये की मेरी घर आली तै उल्टैबळ सरीत लगाई उसै दिन मेरी अर घर आली की होग्यी घणी तकरार न्यूं बोली घणा बूढा लाग्गै आजै मूंछ मुण्डा भरतार मैं नाट्या वा त्यार हुई झट अपणे पीहर जाणे न मैं रोकण लाग्या वा पड़ी टूट कै रिपोर्ट लिखा दयूं थाणे मं छोहरा लेकै घर तैं लिकड़ी सिर पै ट्रक धरया धिकताणे तं आटा सब्ब्जी कुछ ना छोड़या सांझ न मेरे खाणे न था बोहिया खाली पर भैंस खड़ी थी दूध तैं काम चलाणे न पर भैंस कसूती उसकै हाथळ क्यूंकर काढूं धार लंहगा ओढणी टंगें खूंटी पै दिन छिपै पहर हुअया त्यार लंहगा पहर कै बाल्टी ठाई धार काढण चाल्या सूंघ सांघ कै भैंस कूदग्यी मेरा कालजा हाल्या छोह म्हं आकै, लाठी ठाकै, भैंस कै पाड़ी चार बेल तुड़ा के भैंस भाजग्यी गाळां म्हं पड़ी किलकार मैं गेल्यां भाज्या घूंघट खुलग्या मूंछ फर्राके ठारही मेरै गाम के बालक डले माररे सै कोए डाकण स्याहरी भाज लूज कै उल्टा आया मन्ने टोहया रूलिया नाई मूंछ मुण्डा कै सारै टोही भैंस कती ना पाई आगले दिन सुसराड़ पहुंचग्या उल्टी लावण घर आल़ी उड़ै साला हांसै सालेह हॉंसै अर हांसै सारी साल़ी सरीत के रूपये गए, भैंस गई अर साथे भैंस की पूंछ गई छोहरा अर बहु तो उल्टे ले आया पर मेरी सबतै प्यारी मंूछ गई सांप अर बिच्छू बेशक मिलीयो अर चाहे करो शेर की टहल पर बहकटी लुगाई अर छाकटा यार ना मिलीयो कहता रामफल चहल जगबीर बोल्या तेरी ठीकै सधरी सै तेरे सिर पै दिखै सच्चा करतार नाश तो उनका हो जिसनै मिलज्यां छाकटी लुगाई अर बहकटा यार

कोन्या बणूं लीडर

कौआ बौल्या आपणी मां न मैं साचम साच बताऊं हरदम आसा रहती मन म्हं मैं लीडर बण जाऊं लीडर मत ना बणीए बेटा या बात मान ले मेरी जै बणना घणा लाजमी सै तो सीख ले ये हथफेरी गुण्ड़यां के पैर दबाणा सीख, दंगे फसाद कराणा सीख बुगला भक्त बण जाणा सीख, होटल म्हं ऐश उड़ाणा सीख आक का आम दिखाणा सीख, विरोधियां का हाथ बताणा सीख पाणी म्हं आग लगाणा सीख, चिता पै रोट सिकाणा सीख कई कई ब्याह करवाणा सीख, फेर राजनीति म्हं ल्याऊ खद्दर पहर, गिरकाणा सीख, कौम की बात चलाणा सीख हमाम म्हं नंगा नहाणा सीख धर्म पै भाषण प्याणा सीख बदली खूब करवाणा सीख, नौकरी भी लगवाणा सीख चाकु छुरी चलवाणा सीख, हर जगह कमीशन खाणां सीख काग न हंस बताणा सीख, आच्छै नुस्खे तनै सिखाऊ एस्तीफे खातर चिल्लाणा सीख, विरोधी पै जूत्ते फिकवाणां सीख भभकी दे घुरकाणा सीख, संसद म्हं चिल्लाणा सीख जेब भरणा और भरवाणा सीख, दारू पीणा और पिलाणा सीख कच्चे पक्के मांख चबाणा सीख, मंदिर मस्जिद न तुड़वाणा सीख अपणे ए शहर म्हं बम फुडवाणा सीख फेर कुर्सी तक पहोंचाऊ ले जनता न बहकाणा सीख, गरीबां तै नाक चढाणा सीख झोंपड़ी म्हं रात बिताणा सीख, खेतां नै बिकवाणा सीख कदे हाथी पै चढ़ जाणा सीख, रेत म्हं कमल खिलाणा सीख कदे चश्मां हरया लगाणा सीख, कदे पंजे पै बटण दबाणा सीख कदे खम्बे पै चढ़ जाणा सीख, कदे खरीदणा अर बिकजाणा सीख पहल्यां सारी शर्त निभाणा सीख,फेर तेरे छिक्क कै लाड लडाऊ ना इतणे पाप बस के मेरै, मैं बिन कुछ करे काणा कहाऊं ’चहल’ आगै नेम करूं मां, मैं ना लीडर बणना चाहऊं

माणस की खोड़

(मनुष्य योनि चौरासी लाख योनियां भोगने के पश्चात प्राप्त होती है ऐसा हमारे शास्त्रों में कहा गया है लेकिन यदि मनुष्य बनकर भी गरीबी में जीवन जीना पड़े तो यह और भी दुखदायी होती है।) लख चौरासी जुणी भोगी फेर माणस की खोड़ मिल्यी जमीदारे म्हं के सुख पाया ना दो पायां नै ठोड़ मिल्यी मनमर्जी थोपी घरक्यां न कदे हंसा कदे रूवा दिया फठे पुराणे मिले पहरण न कदे कदाऊं नुहवा दिया गन्ठा रोटी लहासी चटणी कदे दलिया खिचड़ी खुवा दिया खेलण कूदण पै लगा पाबन्दी स्कूल का बस्ता ठुवा दिया उडे़ तैं मास्टरां नै पीट भजाया उनमें सबतैं घणी मरोड़ मिल्यी भैंस गाय मेरे तैं आच्छी उनतैं आच्छे कुत्ते बैल चाट बाट और खाणा मिलता हरदम बाज्जै उनकी टहल ब्याह मकान की चिंता कोन्या बाहर भीतर करते सैल बत्ती कदर मेरे तैं उनकी मैं सूक्का हाण्डू बणकै छैल पशुआं की लगै कीमत भारी मेरी नै कितै लोड़ मिल्यी सारी उम्र गई टोटे म्हं सदा कर्जा सिर पै धरया रहया ससोपंज म्हं जिन्दगी खो दई ना जिया ना मरया रहया सुख का सांस कदे ना आया बिपदा के म्हां धिरया रहया ब्याह बेटी अर भात बटेऊ ओले बाढ़ तै डरया रहया मेट अर पटवारी जाणै मेरी ना इसतै ऊपर दोड़ मिल्यी मेरी हालत सबतै माड़ी ना कोए करता ख्याल मेरा एस. ई. जैड. म्हं खूड चले गए के होग्या इब हाल मेरा पइसां उपर जूत बाज रहया छोहरी तै लडै़ इब लाल मेरा सुक्के हाथ मसलता हाण्डूं ज्यूं चोरां नै लूटया माल मेरा माथै त्योड़ी सदा रही चहल तनै बीवी भी नहीं हंसौड़ मिल्यी

बाप का वरदान

सुख तैं जग म्हं रहूं जींवता यो चाहिए वरदान तेरा बाबु पैदा करया अर पाल्या पौस्या सै घणा एहसान तेरा बाबु सुक्ष्म रूप धर पति पत्नि के गर्भ बीच म्हं जावै सै र्नौ महीने तक उल्टा लटकै मनुष्य जन्म जब पावै सै हाड़ पिता से मांस मात से गुण नाना से ल्यावै सै मां पर पूत पिता पर घोड़ा सदा न्यूं होती आवै सै कार व्यवहार दे परिवार परवरिश अगत बणावै सै पिता का अंश पूत म्हं हो कदे भी ले इम्तिहान मेरा बाबु......... बालकपण मं उछाल उछाल कै आपणी गोद खिलाया करता चीजी ले कै उल्टी देणी अपणे हाथां आप सिखाया करता कड़वे नीम तै भी बड़ा बणूं तूं खूबै आशीष लुटाया करता आटड़े बाटड़े कान्ना बात्ती अर गहर गडी करवाया करता कांधै बिठा कदे पद्धी चढ़ा मेला दिखाकै ल्याया करता खुद दुख पाकै भी पूरा करया तन्नै हर अरमान मेरा बाबु........ दादा दादी की सेवा करणा या बात दावैं समझाई थी छोटे बड्डे के काण काअदे तन्नै सारी बात सिखाई थी फेर तख्ती बस्ता दे स्कूल भेज दिया करवादी शुरू पढ़ाई थी कुबध करी तो छोह म्हं आया पर छकमा करी समाई थी टिण्डी मलाई दई मेरे तै खुद गण्ठा रोटी खाई थी कोए मारैगा इसकै तो लागैगी मेरै था इसा एलान तेरा बाबु....... इसै आशीष की बिनती करूं मैं, धर्म हार धन नहीं हरूं मैं पाप करण तैं सदा डरूं मैं ’चहल’ का ऊचा नाम करूं मैं स्वाभिमान का ख्याल करूं मैं अभिमान तैं सदा टलूं मैं आखर तक तेरी टहल करूं मैं जभी हो कल्याण मेरा बाबु....... पैदा करया अर पाल्या पौस्या सै घणा एहसान तेरा बाबु सुख तैं जग म्हं रहूं जींवता यो चाहिए वरदान तेरा बाबु

इडली डोसा खावांगे

(बिगड़ते लिंग अनुपात के कारण अब हरियाणा में यू पी, बिहार व केरल से दुल्हनें आने लगी हैं जिस कारण हमारे खानपान में भी बदलाव आने लगा है। दो कुवांरे दांस्त धारे और प्यारे दलिया राबड़ी की जगह इडली डोसा खाने की चर्चा इस प्रकार करते हैं।) प्यारे- ये घणी सुथरी दीखै छोहरी इनके फैशन म्हं हद हो रही धारे चाल, इनतें बतलांवांगे मीठी करकै इनतें बात ब्याह का जिक्र चलांवांगे धारे- कोण अंग्रेजी बोलै इनकी गैल इन्हैं चाहिएं सुथरे छैल तूं सै गाम का देसी बैल बता क्यूंकर इन्हैं पटांवांगे जब बोलैगी अंग्रेजी ना भाजे ठ्यावैंगे प्यारे- मनै आवै अंग्रेजी काफी सॉरी बोल कै मांगू माफी इन्हैं प्याऊं कोल्ड या कॉफी इश्क के पेंच लड़ावांगे न्यूं शर्माए जांगे तो रांडे ऐ रहजावांगे धारे- उम्र जाली सै म्हारी आधी घरके कोन्या करते शादी बिन शादी हो ज्या बर्बादी चल किते लव मैरिज करवांवांगे धर के ब्याह की तारीख डी.जे. बजवांगें प्यारे- तूं सुण ले सौ का तोड़ न्यूं ना बंधता दीखै मौड़ दिखावां धन की इब मरोड़ बहू केरल तैं ल्यावांगे दयां खिचड़ी खाणी छोड़ उत्पम उपमां खावांगें धारे- देख ले अल्ट्रासाऊंड का खेल सात सौ रहग्यी हजार की गेल तीन सौ रहे बिन बान और तेल किसनै देई धाम धुकवांवांगे मटणे की जगहां गात पै राख मसलांवांगे प्यारे- दक्खण की सै घणी काली छोहरी उनकी बोली म्हं हद होरही वै तो करकै भाजज्यां चोरी कोण सै थाणै रिपोर्ट लिखवावागे दो किल्ले आवै बांटै एक न पढ़ण बिठावांगे धारे- यो कहता रामफल चहल तम इब बी करलो पहल बन्द करों अल्ट्रासाऊंड की सैल ना तो कर मल मल पछतांवागें लापसी पूड़े छोड़ इडली डोसा खावांगे

प्यारा तिरंगा

सबतै न्यारा सबतैं प्यारा झण्डा हमारा तिरंगा तन मन धन सै इस पै कुर्बां ना होवण दयां बदरंगा रंग केसरिया सबतैं ऊपर वीरता की सै निशानी योद्धेय महासंघ था पहला गणराज्य सच्ची सै कहानी कार्तिकेय न करी स्थापना रोहतक थी रजधानी पांच गणराज्य ये कुल ब्रह्मवृत म्हं सबक याद जुबानी थे कमाऊ योद्धा पर कदे न करते पहले झगड़ा दंगा सबतै न्यारा सबतैं प्यारा झण्डा हमारा तिरंगा दूसरा रंग सफेद, शांति का यो संदेशा देवैं तन मं बल मन मं तप दुख सुख न हंस-हंस खेवैं शील शांति सब्र संतोष सब संशय न हर लेवैं शरीरबदल जा पर अमर आत्मा कर्म के रस में भेवै धर्म की खातर प्राण भी त्यागां जब सहम लेवै कोए पंगा सबतै न्यारा सबतैं प्यारा झण्डा हमारा तिरंगा रंग हरया मन मैं हर्षावै अड़ै सदा रहै खुशहाली अमन और तरक्की पसन्द सो कदे ना बैठां ठाली सीमा ऊपर अड़ै सूरमां दबकै खेत कमावै हाली आंच देश पै ना आवण दयां इस चमन के हम रखवाली सदा चहल पहल रहै देश म्हारे मं बहै प्यार की गंगा सबतै न्यारा सबतैं प्यारा झण्डा हमारा तिरंगा तन मन धन सै इस पै कुर्बां ना होवण दयां बदरंगा

बरसात

(हर महीने की बरसात का खेती बाड़ी पर अलग-अलग असर पड़ता है। बरसात की मात्रा और ख्ाती पर पड़ने वाले प्रभाव के अनुसार इसके नाम बदलते रहते हैं। देसी महीनों के हिसाब से होने वाली बरसात और उसके प्रभाव की जानकारी इस कविता से मिलती है।) गरड़ फरड़ अर झरमरिया, कदे कुहावै डोळे तोड़ चादर भे मं मरै तिसाये घणी बणा दे गाम न जोहड़ लगती होज्या तो परलो करदे थोड़ी मं कुंहावै काळ न्यारे न्यारे नाम गिनाऊं सारे सुणियो करकै ख्याल चैत मं चड़पड़ाट होता, बैसाख मं हल़सौतिया जेठ म झपट्टा मारै साढ़ म सरूवातिया सामण के मं ल्होर चालैं भादों के मं लाग्गै झड़ी आसोज के मं मोती पड़ै कातक कहैं कटक पड़ी मंगसर मं फॉसरड़ा हो पौह मं पौहवट फायदा भार्या मांह मं महावट आच्छी हो फागण का चोखा फटकारा इस बिना चहल काम ना चालै जमीदारै मं आवै काम टोटा नफै दोनूं देवै, बारहूं महीने बदलैं नाम

पिलपोट्टण

पीह्ल गई पींच्छू गए अर गए खाट्टे मीट्ठे बेर शहरां मं इब बिकैं छोलिए सौं रूपयां के सेर सुहाली अर गुलगले गए लास्सी के गए बरोल्ले ठेक्यां आगे मिलते भूगड़े नाम धरया सै छोल्ले कसार गया अर गई लापसी पूड़े गए रसीले ब्याह शादी म्हं मिलै खाण न नाम धरया सै चील्ले आड़ गई बाड़ गई और गए खेइयां के ढेर शहरां मं इब बिकैं छोलिए सौं रूपयां के सेर कढावणी अर प्याहण गए, गए नेता और चाखड़ा चांदी की वै टूम चली गई नेवरी पात्ती बांकड़ा गुड़भत्ता अर खुद्दा चले गए धाणी और अंगाकड़ा जोगी और भजनी चले गए आल्हा औेर सांकड़ा फलसी और गिरड़ी गई गरण्ड के गए घेर शहरां मं इब बिकैं छोलिए सौं रूपयां के सेर पोऴी और उसारे चलें गए गई मूरतां आली हेल्ली पजावे और कोल्हू चले गए गुड़ की चली गई भेल्ली पनघट दामण नाड़ा भूल्ली बहुअड़ नई नवेली लूहर अर खोड़िया गए कट्ठी नाचै ना सखी सहेली धूपिया सरातियां पींघ पिंजाली चूण्डे मीण्ढी की गई घूमेर शहरां मं इब बिकैं छोलिए सौं रूपयां के सेर गिन्दोड़ा बंटाणा कात्तक न्हाणा चौणा चराणा भूल गए झींझ सुखाणा चाव बंटाणा देव उठाणा भूल गए मतीरा कचरी गूलर बरबंटी होले बनाणा भूल गए जमोवे अर लेहस्वे निमोली पिलपोट्टण खाणा भूल गए जड़ै राबड़ी और गोज्जी न भूले चहल, क्यूं उड़ै हटकै जन्मै फेर शहरां मं इब बिकैं छोलिए सौं रूपयां के सेर

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