निशा निवेदन (रात से कुछ बातें) : राजगोपाल

Nisha Nivedan : Rajagopal


चाँद अकेला

तुम सा ही सुंदर है आसमान में चाँद अकेला कभी उतर आना तुम प्रेयसी बन धरा पर बैठेंगे-बातें करेंगे तुम्हें चाँदनी से चुरा कर डर है कहीं छिपा न ले तुम्हें कोई बादलों का रेला तुम सा ही सुंदर है आसमान में चाँद अकेला रात सोती नहीं है जुगनुओं के उजाले में वह झाँकती है कनखियों से मधु भरे प्याले में कर लो थोड़ा प्रणय-गुहार लग जायेगा कल जगती मे मेला तुम सा ही सुंदर है आसमान में चाँद अकेला तुम्हारी मुस्कुराहट का शरणागत मैं प्रणय-प्रसाद और अर्ध्य का अक्षत मैं शशि तुम्हारे लिये ही मैंने खंडित प्राणों के झेला तुम सा ही सुंदर है आसमान में चाँद अकेला तोड़ कर काल-अकाल प्रबल जग मे बस जाना तुम जीवन के रग-रग मे कर लो आज सदियों की बातें, कल जीवन है मिट्टी का ढेला तुम सा ही सुंदर है आसमान में चाँद अकेला

नींद से पहले

उनींदी आँखों मे नींद से पहले कुछ कह लें कल सुबह दोबारा सज-सँवर कर आयेगा लेकिन अँधियारे खोया इतिहास नहीं लौटेगा किनारे छूटने से पहले किसी और दिशा बह लें उनींदी आँखों मे नींद से पहले कुछ कह लें कल तक बिखरा था आनन पर उजियाला निमंत्रित कर निशा क्यों बुझ गयी उर की ज्वाला अब समय मे उलझे हुये कुछ सुलझे से रह लें उनींदी आँखों मे नींद से पहले कुछ कह लें तज सारी आशायेँ इसी नीड़ मे बस जायें समेट कर जीवन इस कुम्हलाते तन मे लस जायें मन तो बच्चा है आओ इसके शत-क्रंदनों को सह लें उनींदी आँखों मे नींद से पहले कुछ कह लें तुम्हें पा कर भी आकुल जैसे युगों से उर मेरा न उठ सकूँगा दोबारा तुम्हारे अंक मे पा कर स्वर्ग मेरा नियति यही है चलो हम काल संग जीवन मे बह लें उनींदी आँखों मे नींद से पहले कुछ कह लें

निशा निवेदन

मांग लें निशा से नयनों मे मधुर सपना हमारा पलकों पर रख दें युगों का स्नेह-चुंबन पोछ लें आंसुओं से गालों पर चिपके रजकण पी लें हाला मन की भुला कर यह प्रपंच सारा मांग लें निशा से नयनों मे मधुर सपना हमारा झांक लें उर मे तुमने ही है यह विश्व रचा आज कहाँ खो गये हैं हम कैसा यह बवाल मचा हम हैं बहती धारा लहरों मे ही देख लें अपनी कारा मांग लें निशा से नयनों मे मधुर सपना हमारा साथ चलें, हर लें मन से मन की नीरवता ढूंढ लेंगे पाषाण हृदय मे भी प्रणय की रोचकता सुन लो उर का स्पंदन, नहीं बज रहा कहीं अंतर्द्वंद हमारा मांग लें निशा से नयनों मे मधुर सपना हमारा इस नीड़ मे बसा है यह जग ऐसा कुछ हमने कुछ विधि ने रचा है जैसा काल के उठा-पटक मे कहीं खो गया है यह प्रणय प्यारा मांग लें निशा से नयनों मे मधुर सपना हमारा

अंबर तले

थके अंबर तले आओ साथ सो जायें ओढ़ कर रात की चादर काली पोछ लें आशाओं से भरी आँखें गीली समय से परे चल कर बीते दिन समेट लायें थके अंबर तले आओ साथ सो जायें भूलती नहीं है प्रथम दृष्टि की साँझ रंगीली देखा था उन आँखों मे अपार निधि चमकीली एक बार जीवन को फिर वही जगह हम दिखलायें थके अंबर तले आओ साथ सो जायें तुम हो जहां वहीं है सृष्टि भी सुंदर चुन लें मोतियाँ तुम्हारे सीपियों के अंदर स्मृतियों से बुनकर प्रयाण से पहले फिर वही कथा सुनायें थके अंबर तले आओ साथ सो जायें लौट जाती हैं स्मृतियाँ लहरों सा छू कर मन किनारे बैठे केवल श्रृंगार ताकते रहते हैं नयन मन की गुत्थी खोल कर अब कहाँ किसे समझायें थके अंबर तले आओ साथ सो जायें

गोद मे

इस रात प्राण तुम्हारे ही गोद सोया कल-आज का लेखा-जोखा है इसी जगह पर लगता है असमय मन मणि धन खोने का डर अँधियारे आँखों मे निराकार निष्काम झाँकता मन बहुत रोया इस रात प्राण तुम्हारे ही गोद सोया सोया प्राण हमेशा नहीं जागता है यह तो मन है जो दिशाहीन भागता है दूर रह कर लगता है किसने कितना है खोया इस रात प्राण तुम्हारे ही गोद सोया जब कभी जीवन को तम ने घेरा तुम्हारे निश्चय से ही हुआ सवेरा हँसते-सहते श्रम-संताप एक ही प्राण मे पिरोया इस रात प्राण तुम्हारे ही गोद सोया प्रथम प्रणय का बंधन सच होता है अनूठा दिन पर दिन बीत गये पर मोह न छूटा जब न होगे साथ तुम, समझेंगे हमने कितना कुछ खोया इस रात प्राण तुम्हारे ही गोद सोया

नभ के तारे

पकड़ हाथ हम गिन लें नभ के सारे तारे पहले साथ चलते नहीं था मन का आवरण ढूंढते हैं आज हम मिल कर चलने का कारण प्रणय लिये नहीं बिखरे हैं स्वछंद गगन मे नक्षत्र सारे पकड़ हाथ हम गिन लें नभ के सारे तारे कैसे विलुप्त हुआ जीवन मे आकर्षण दामिनी हुयी स्नेह-सगाई सहती घन-घन घर्षण कहीं गिरी उल्का, देखो उस पर सिसक रहे हैं उनके प्यारे पकड़ हाथ हम गिन लें नभ के सारे तारे कभी देखा है अभिसारी के वक्ष का विस्तार वह क्षितिज है जहां आसक्ति है अक्षय अंबार उसमे ही प्राण-प्राण है, जो निर्निमेष सौंदर्य को निहारे पकड़ हाथ हम गिन लें नभ के सारे तारे कहाँ से यह बादलों का रेला आया आँखों मे सारी रात न जाने कितना बरसा गया जी लें दोबारा तड़ित-प्रभंजन मे आँचल के सहारे पकड़ हाथ हम गिन लें नभ के सारे तारे

कल की बातें

छोड़ो कल की बातें अब रात छटने लगी समेटे तारों को रात भर आसमान नही सोया घात-प्रतिघात से डर कर उसने संबंध नहीं खोया हुआ उजियाला, रात की पीड़ा अब घटने लगी छोड़ो कल की बातें अब रात छटने लगी धीरे-धीरे विलुप्त होता गया नयनों से तम मन ही तो है सहला लो कुछ ज्यादा कुछ कम कर लें मनुहार प्रणय का अवसान भी हमसे अब परचने लगी छोड़ो कल की बातें अब रात छटने लगी न खींचें तार इतना जो टूट कर जुड़े नहीं गिरे हैं कई प्रणय मे उड़ते, जो फिर उड़े नहीं न बनो हठी बैरागी, मिटा अँधियारा पौ फटने लगी छोड़ो कल की बातें अब रात छटने लगी मिल जायें हम नियति मे नीर-नीर सा घोल का सुख-दुख हम पी लें क्षीर-क्षीर सा लांघ सुमेरु कहाँ जाना है जब सांसें सिमटने लगी छोड़ो कल की बातें अब रात छटने लगी

शब्द

क्या जीवित हैं आज भी तुम्हारे उर मे मेरे शब्द अंबुज सी आँखों मे आँखें डाल कर चिरबंधन का उन्मत्त स्वर भर कर हमने गया था प्रणय गीत प्राणों से हो कर कटिबद्ध क्या जीवित हैं आज भी तुम्हारे उर मे मेरे शब्द समय छीन गया पुराने सारे संकल्प हर बात का ढूंढते हैं नया विकल्प रात के अवसान पर रोता हुआ दिन भी हुआ है निस्तब्ध क्या जीवित हैं आज भी तुम्हारे उर मे मेरे शब्द कविता मे छिपे प्रश्नों का उत्तर लिखती थी तुम आज उन्ही छंदों मे मन क्यों उलझा है गुमसुम मिट गयी पंक्तियाँ फट गया पन्नों सा प्रारब्ध क्या जीवित हैं आज भी तुम्हारे उर मे मेरे शब्द दिन-बरस बीते,अगणित आशाओं को किसने लूटा बार-बार लूट कर भी हाय, सपनों का मोह न छूटा बाहुपाशों मे जीवन कभी मचला कभी क्षुब्ध हुआ क्या जीवित हैं आज भी तुम्हारे उर मे मेरे शब्द

कथांतर

नियति वही पर क्यों हुआ रति-रजनी मे अंतर क्यों डरता है प्रणय भरा यह मन किसने मांगा है एक नया गगन अँधियारे क्यों घिरते हैं नित स्वप्न भयंकर नियति वही पर क्यों हुआ रति-रजनी मे अंतर शशि मे उस प्रथम प्रणय का उन्माद कहाँ चाँदनी मे भी छाया है, मन का अवसाद यहाँ लेकिन टूट कर भी प्रणय खड़ा है ताड़ सा तन कर नियति वही पर क्यों हुआ रति-रजनी मे अंतर चाहता है चाँद फिर से वही इतिहास दोहराना लौट का रजनी के घने कुंतलों मे खो जाना क्यों जान कर भी रुला जाती है यह निशा निरंतर नियति वही पर क्यों हुआ रति-रजनी मे अंतर यह कथा ही कल मुट्ठी भर जगती बनी सुख-सुख मे गुंथ कर भाग्य मे सनी निशब्द ही क्षितिज तक खिंच गया यह कथांतर नियति वही पर क्यों हुआ रति-रजनी मे अंतर

समीक्षा

न पूछो एकाकी कैसे यह रात बितायी उस मधुर छवि को उर मे रख कर आँखों मे उमड़ते प्रणय-स्वप्न पर सुबह तक प्रश्नों मे उलझी कोई बात सतायी न पूछो एकाकी कैसे यह रात बितायी उजियाले अँधियारे तुम ही आँखों का कंचन मन मे जूझता है क्यों आदि-अंत का प्रश्न निरंतर जब सत्य यही है क्यों छलते तारों की बारात दिखायी न पूछो एकाकी कैसे यह रात बितायी समय बदला किन्तु न बदली उसकी प्रतिमा धूल जमी पर न धुंधलायी उसकी गरिमा क्यों समय ने है प्रथम प्रणय पर ऐसी घात लगायी न पूछो एकाकी कैसे यह रात बितायी कभी यथार्थ मे कभी स्वप्नों मे उठा प्रभंजन जब शांत हुआ लगा मिट्टी का कण-कण कंचन तुम ही नयन, स्वप्न, जीवन बन हर रात छायी न पूछो एकाकी कैसे यह रात बितायी

गुत्थी

यदि तुमसे नयन मिला पाते तो न अश्रु बहाते रिस-रिस कर ताल हुआ खारा जल न मिली थाह कहीं, युग बीता पल-पल यदि समझ पाते हम, खारा जल भी मधुर बनाते यदि तुमसे नयन मिला पाते तो न अश्रु बहाते अपनी बात लिये कौन किसे है कह पाता उर मथ कर कब तक कंठ कोई मे विष रख पाता जगती मे कितने हैं ऐसे, जो यह संभव कर पाते यदि तुमसे नयन मिला पाते तो न अश्रु बहाते साथ मिल जाता तो करते अमृत का आबंटन मन समझ सको तो हमारे ही हिस्से है कण-कण तुम ही कुबेर हो, जी लेंगे आगे भी भाग्य सिहाते यदि तुमसे नयन मिला पाते तो न अश्रु बहाते मन तो मृत्युंजय है, न जीता है न मरता है किन्तु आशा-प्रत्याशा मे उलझा डरता है तुम से मोह न छूटा अब भी, यह सत्य किसे समझाते यदि तुमसे नयन मिला पाते तो न अश्रु बहाते

यह रात गयी

यह रात गयी छेड़ दो सुबह कोई बात नयी न करें बात फिर धूल झाड़ने या फर्श पोछने की यह नहीं कोई ढंग मन की गुत्थियाँ खोलने की तुम तक ही जीवन है स्नेह-सगाई नहीं गगन गयी अब रात गयी छेड़ दो सुबह कोई बात नयी काजल सी खुली आँखों मे रात भर लो कस्तूरी समझ स्वयं को अलंकृत कर लो यह तो मन है हर बार हार कर भी होता है विजयी यह रात गयी छेड़ दो सुबह कोई बात नयी निशा मे अलकों की ओट से झाँकती तुम समय की धारा मे भटकती न हो जाना गुम प्रणय इतना भारहीन भी नहीं, उड़ जाये जैसे सेमल की रूई अब रात गयी छेड़ दो सुबह कोई बात नयी

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