किस्सा वीर हकीकत राय : फौजी मेहर सिंह (हरियाणवी कविता)

Kissa Veer Haqiqat Rai : Fauji Mehar Singh (Haryanvi Poetry)


बात उस समय की है जब भारत पर मुगल बादशाह शाहजहाँ द्वितीय राज किया करते थे। उस समय पंजाब के स्यालकोट में सेठ भागमल अपनी पत्नी कौरां व इकलौते बेटे हकीकत के साथ रहते थे। हकीकत की शादी बचपन में ही लक्ष्मी नाम की लड़की के साथ कर दी थी। हकीकत मदरसे मे पढने के लिये भेजा जाता है। हकीकत बड़ा होनहार था। काजी साहब मुंशी जी जो भी सबक पढाते वो तुरंत ही याद कर लेता। एक दिन पढ़ाये गये सबक को हकीकत मुंशी जी को सुणाता है-

सुणो सबक उस्ताज जी दयूँ सारा ए सुणा जुबानी। अलीफ से अजमेर, अटावा, आगरा अम्बाला हो सै बे से बम्बई बणैं बड़ोदा और बरनाला हो सै पे से पूना पालमपूर पंजाब और पटियाला हो सै ते से तख्ती तीतर तरकश तमाशा तमाम देखो टे से टेबल टाईम टांगा ट्रक और ट्राम देखो से से हो शवाब शाबित शमर सरे आम देखो जिम से जुमला जंमा जिहाद जी पे जाहां बतावैं फानी।। चे से चिड़िया चावल चाकू चंबा और चनाब कहैं हे से हुक्का हुलिया हाजिर और हुस्न हबाब कहैं खे से हो खरगोश खचर, खालीफा खवाब कहैं दाल से दरमान दस्ता दरवाजा दीवार बनैं डाल से हो डोल डिब्बा डलिया डोली तैयार बनैं ज़ाल से जखीरा ज़र्रा जिगर जमेवार बनैं रे से राम रह याद जी रग रग में रमी है भवानी।। ज़े से जुल्फ जेब जेवर जर जबान मैं सीन से सुरज सितारे चमकैं जो असमान मैं शीन से हो शिमला शायर शमां जलती है मकान मैं स्वाद से सन्दूक साबुन सफाई सदाकत सही ज्वाद से जईफ जामिन जमानत जमीर कही तो से तोता तायर तबला तरज बनती नई-नई ज़ो से जुल्म करै जुल्मी जी दे जन्नत की छोड़ निशानी। एन से आलिम इलम इबरत आबिद करें आलिशान, गै़न से गरीब गुरबा गुरबत से बचाते जान, फे़ से फ़िकर फाका फसी फकीरों का फरमान, क़ाफ़ से किताब कुरसी किश्ती और कमान बनै, काफ़ से कनायत कलम कुदरत और कुरान बनै, गाफ़़ से गुमनाम गाम गरमी गुलिस्तान बनै, लाम से करै लतीफा शाद जी प लहा हो लासानी।। मीम से मदरसा मुल्ला मस्जिद में अजान करै नून से नज़्म नग्म़ नई तैयार कर नज़रान करै वाओ से वहदत वसयत वायदा इन्सान करै हे से हिम्मत हारै मत, हाथ से कमाई कर ये से या हे याद रख यारों की भलाई कर सोच के नै जाट मेहर सिंह ठीक कविताई कर रहै बुरे धन्धों से आजाद जी ये दो दिन की जिन्दगानी। मदरसे में एक दोपहर की बात है की जुम्मे का दिन था तो काजी जी नमाज के लिये मस्जिद चले जाते हैं और बच्चों की तफरी कर दी जाती है बच्चे आपस में क्या कहते हैं- आधी छुट्टी की घंटी बाजी, मस्जीद कान्ही चल दिये काजी, बालक होगे सारे राजी, फैंक कै किताब।।टेक मुंशी जी गये करण अजान, इब तम खेलण पै दयो ध्यान, ज्यान म्हारी खा ली मखतब नै, कित फंसा दिये उरु रब नै, मुश्कल आणा है हम सब नै, तर्जुमा और हिसाब।। जल्दी मैंदां मैं आओ, अप अपनी टोली बुलाओ, ल्याओ खुलिया गिंडू काढ, राखे गोल गाड़, खेलण का चढ़ रया चाढ, हटरी सारी दाब।। सारे दिखा रहे थे जोर, मारैं थे गिंडू कै टोर, शोर घणा कररे थे, गिंड्डू गेल्यां फिररे थे, गोल कर टोरा भररे थे, जणु मुल्की लाठ साहब।। टोर मारया गिंडू वो गई, ना पाई झाड़ मै खो गई, हो गई थी तकरार, मेहर सिंह होग्या लाचार, पीटण नै होग्ये त्यार, जाती दिखै आब।। खेल खेल में हिन्दू और मुस्लिम बच्चों के बीच तकरार हो जाती है। मुस्लिम बच्चे हकीकत को हिन्दू धर्म के बारे भला बुरा कहते है। हकीकत भी उन्हें पलटकर जवाब दे देता है। मुस्लिम बच्चें इसे अपनी तौहीन समझते हैं व मुंशी जी के आने कै वाद हकीकत की शिकायत करते हैं- हम मारे पीटे और धमकाये इस जुल्मी शैतान नै।। बीवी फातिमा को गाली बकदी हकीकत बेईमान नै।। न्यू बोल्या थारा अल्हा अदना म्हारा बड़ा राम सै, हिन्दू पाक पवित्र सै नापाक इस्लाम सै, थारी फातिमा बीवी मेरी जूती का चाम सै, सारे मुस्लिमान पापी नमक हराम सै, इतनी कहकै फैंकण चाल्या शरीफ कुरान नै।। न्यू बोल्या थारा काजी झूठा मजहब नै झूठ बतावै था, बार बार गाल दे कैं रसुल रबी नै बसरावै था, बरजे तै भी ना मान्या ब्होत घणा गरकावै था, हम इल्तजाह करते रहे याे हम नै धमकावै था, थप्पड़ मारे बाल पाड़े खीचैं था कान नै।। न्यू बोल्या ना डरता किसे तै करूं जो मेरी राजी, कह दयो अपने मुंशी तै बुलवाल्यो थारा काजी, किसकी हिम्मत मनै टोक दे रोकै कूण साला पाजी, थारी फातीमा नै भी पीटूं थावै कोन्या वा भाजी, छाती के म्हां छेक करे इकी कैंची सी जुबान नै।। काजी जी इन्हें म्हारे मजहब के ब्होत उड़ाये थे ठठे, सख्त सबक सिखलाओ इसनै पाड ल्यो इसके पठे, गोला लाठी दे कै इसके हाथ पां बांधों कठे, खाल खींचवां दयो इसकी गटयां पै मारो लठे, लाले पडने चाहिये इस मेहर सिंह की ज्यान नै।। मुंशी जी अपने धर्म की बुराई सुनकर आग बबूला हो जाते हैं। हकीकत को मारते पीटते है। उसे काफिर गुंडा काफी कुछ भला बुरा कहते है। हकीकत हाथ जोड़कर क्या कहता है- गुंड़ा कही लुच्चा कही काफ़र कही कमजात। काजी जी मेरी भी सुण ल्यो कहुं जोड़कै हाथ।। छोटा सा एक रौला होग्या खेल खेल मै, झूठी साची लाकै बात ऊंट चढ़ा दिया रेल मै, पाणी मिला दिया तेल मै और बूझा दई बात।। इन्हैनै वेद गलत बताये मनै झूठी कुरान कही, इन्हनै हिन्दू काफ़र कह दिये मनै गाड़े मुस्लिमान कही, इन्है नै झूठा भगवान कही मनै कही झूठी खुदा की करामात।। तम नै फातीमा प्यारी हमनै प्यारी भवानी सै, कुछ इन्है नै कह दी कुछ मनै कहदी इसमे के बेमानी सै, हम सबकी गलत ब्यानी से फेर क्यूं मेर एकले पै पंचात।। थारा मक्का पाक सै पवित्र सै काशी म्हारा, दोनूँ थोक बराबर सै बता मुंशी जी क्यूं छोह मै आरया, जाट मेहर सिंह नै धर्म प्यारा, कोन्या प्यारा गात।। मुंशी जी बड़ा गुस्सा होते है व कहते है कि तुम हिन्दू हमारे गुलाम होकर इतना बोलते हो मैं तुम्हारी जान ले लूंगा। हकीकत क्षमा याचना करता है। मुंशी की क्या कहते हैं- सुण बात हकिकत मेरी, मैं जान बकस दयू तेरी, तू बण ज्या मुसलमान, ना त स्याहमी मोत खड़ी सै।। कर इस्लाम मजहब की हाणी, तनै कुछ ना बात पिछाणी, सै मोत निमाणी खोटी, इब तूरत कटा ले चोटी, और ठा ले हाथ कुरान, ना तै स्याहमी मौत खड़ी सै।। कर दे दिल का दूर भरम, छोड़ कै सारी लाज शरम, तज धर्म जनेऊ आला, अर ठा ले तसबी माला, रट ले नै रहमान, ना तै स्याहमी मौत खड़ी सै।। दोष मिटै तेरे सर तै, पार पा ले अपने डर तै, उस ईश्वर तै नाता तोड़, संध्या हवन छोड़, कर ले तु अजान, ना ते स्याहमी मौत खड़ी सै।। हाल तेरा होज्या गा बेढंग, पावैगा घणा तंग, मेहर सिंह थारे राम का, और गंगा काशी धाम का, तज दे नै गुमान, ना तै स्याहमी मौत खड़ी सै।। हकीकत कहता है की काजी जी हम हिन्दू या आप मुस्लिमान हैं तो क्या, हम हैं तो इंसान ही और आपस में सभी भाई है और भाईयों में फूट डालना उचित नहीं है और क्या कहता है- भाई भाई हम सारे फूट खिडाणा ठीक नहीं। झगड़े और टंटे बाजी फसाद कराना ठीक नहीं।। इस फूट के कारण बता किसनै सुख पाया, बाप बेटे मै फूट पड़ी देवां नै मोका ठाया, हिरनाकुश फंसा भूल मै, फूट नै नाश कराया, नरसिह अवतार धार कै कर दी छनभिन्न काया, या दिन धौली मै नाश करा दे राड़ जगाना ठीक नहीं।। त्रेता युग की बात सुणो रावण नै दुखड़ा ठाया, छोटे भाई की बात सुणी ना सीता हड़ कै ल्याया, भाईयों बीच फूट पड़ी परिणाम सामने आया, लंका केसा कठीन किला रेत बीच रलाया, गैरां आगै अपण्या का भेद बताणा ठीक नहीं।। द्वापर युग मै इस फूट नै ऐसा जाल बिछवाया, कैरों और पांडवा बीच महाभारत रचवाया, चेले हाथां गुरु मरगया दादा पोते पै मरवाया, भाई हाथां भाई मरगे सारा कुटंब खपाया, अपने बच्चों के मोह मै फंसके कुल का टीब्बा ठाणा ठीक नहीं।। इस फूट नै मत जगाओ फूट कॉ उल्टा रासा सै, फूट कारण राज चल्याजा हो टुकड़े की सासा सै, ढोड ठीकाणा या छुटवा दे मेट दे घरवासा सै, मरते दम तक ना चैन आण दे गेरै उल्टा पासा सै, कह जाट मेहर सिंह इसी बिमारी का फैलाना ठीक नहीं।। यह बात बहुत बढ जाती है। जितने भी वहां मोजूद थे वे सभी हकीकत की गलती बताते हैं ओर हकीकत को फांसी की सजा सुनाने की फरियाद करते हैं- बढ़ती बढ़ती ज्यादा बढ़गी थी या बात जरा सी। ला द्यो ला द्यो हकीकत कै फांसी।। अरबी तुर्किस्तान काबली कन्धारी पठान बोले म्हारी बीबी फातिमा तै न्यूं क्यूं बुरी जुबान बोले सै फांसी का हकदार हकीकत न्यूं सारे मुस्लिमान बोले हिन्दु से मुस्लिमान बणा द्यो बदल दो ईमान बोले काफिर और हरामजादे सुअर की सन्तान बोले दुनियां तै ल्हको द्यो खो द्यो हकीकत की ज्यान बोले दरोगा दरबान मुसद्दी न्यूं कहरे थे चपड़ासी। छोटे बड़े अफसर सारे मिलकै सलाह करने लागे हिन्दूआं की औकात देखो थे म्हारा ठल्ला करने लागे गाली का अफशोश मोटा सारे गिला करने लागे हाय खुदा हाय खुदा अल्लाह अल्लाह करने लागे आपस कै म्हां काना फूसी काजी मुल्ला करने लागे फांसी दे दो फांसी के दो सारे हल्ला करने लागे इस पाजी के लिए सोच लो मौत सजा खासी। दुनियां कै म्हां घूम कै देख ल्यो तमाम म्हारे पुलिस थाणे मिलिटरी फौजों के इन्तजाम म्हारे हकूमत और राजधानी शहर कस्बे गाम म्हारे या अली के नारे लागैं सुबह और शाम म्हारे जमीन खां असमान खां और जहानखां तक नाम म्हारे कैसे गली बकदे हिन्दु होकै नै गुलाम म्हारे इस काफिर का खोज मिटा द्यो ना फेर करेगा बदमाशी। भागमल के कोठी बंगले तोड़कै दलान कर दो घर की ठोड़ तला खुदवा कै गहरा सा तलान कर द्यो ऊपर नै मुंह उठ रह्या सै नीचे नै ढ़लान कर द्यो कोए कह धकड़ा मुकड़ा कोए कहै फलान कर द्यो यहां से खारज करो मुकदमा लाहौर का चलान कर द्यो हकीकत की मौत का सारेकै ऐलान कर द्यो जाट मेहर सिंह रोवै थी खड़ी जड़ मैं दिल की दासी। हकीकत के माता पिता को इस बात का पता चलता है तो वे भागे भागे काजी जी के पास जाते है और फरियाद करते है परन्तु काजी उनकी एक नहीं सुनता। कहता है यदि हकीकत हिन्दू धर्म छोड कर इस्लाम कबूल कर ले तो उसे माफी मिल सकती है अन्यथा नहीं। हकीकत इस्लाम कबूल करने को राजी नहीं होता। भागमल ओर कोरां रोते पीटते घर को वापिस आते हैं क्योंकि काजी में फांसी का हुक्म सुनाकर मुकदमा लाहौर में नाजिम के पास भेज दिया। घर आने पर लक्ष्मी पूछती है कि क्या हुआ तो कोरां क्या जवाब देती है- मित्र प्यारा मौलवी सब गैर होग्या रै इसै फिकर मैं खाणा पीणा जहर होग्या रै।। तड़कै हे मेरे लाल नै वो काजी पेश कर देगा एक छोटी सी बात का बड़ा भारी केश कर देगा आज तलक देख्या ना सुणा ईसा कलेश कर देगा हिन्दुआं से खाली सारा शहर देश कर देगा दरिया मैं रहकै मगरमच्छ तै बैर होग्या रै। सब काजी की कहैं म्हारी एक वोट भी कोन्या लिया पकड़ हकीकत राम की सूं खोट भी कोन्या बेटे केसी दुनियां कै म्हां कोए चोट भी कोन्या कित उड़ज्यां कित लुहकज्यां कितै ओट भी कोन्या महाप्रलय और जुल्म सितम किसा कहर होग्या रै। जिन्दगी भर ना लिकड़ै ईसा जाल बतावै सै हकीकत के लिए मौत और काल बतावै सै एक तरफ सै लोट सबकी ढाल बतावै सै सजा दें जरूरी हो ना कती टाल बतावै सै म्हारा कोण हिमाती साथी उनका शहर होग्या रै। दर्द भरा दिल हंसण का के उसाण आवै सै उबल उबल दिल हांडी की ज्यूं उफाण आवै सै जिस तै कहूं वो हे पाड़ कै खाण आवै सै भय का भूत मेहर सिंह मनै डराण आवै सै इस घर में शमशान जंगल डहर होग्या रै। कौरां लक्ष्मी को कहती है-बेटी तु अपने घर बटाला में चली जा। लक्ष्मी इन्कार करती है, परन्तु कौरां उसे जबरदस्ती भेजती है। रास्ते में पुलिस वाले हकीकत को लेकर लाहौर जा रहे थे। लक्ष्मी डोले में से देख लेती है और कहारों से क्या कहती है- मनै आती जाती पुलिस कैदियां का ठिया दिखै सै। डोला डाट कहार के मेरा पिया दिखै सै।टेक घर तै बाहर लिकड़ कै आगी इस दुःख मोटे मैं लिकड़ी जा सै ज्यान विपत के जबर भरोटे मैं कुछ ना खेली खाई रैहगी गहरे टोटे मैं होरया सै इसा हाल जणुं रही लिकड़ दसोटे मैं श्री रामचन्द्र तै बिछड़ी बण मैं सिया दिखै सै। अपने पति तै मिलकै नै दो बात कर लण द्यो मेरी और इस की आखरी मुलाकात कर लण द्यो घणा टेम नहीं चाहती मिन्ट छः सात कर लण द्यो देखूं जै सुणले तै हिदायत कर लण द्यो थारी लोहे केसी छाती बजर का हिया दिखै सै। इस झगड़े की तारीख पेशी लाहोर की होगी जैसी दशा मेरे पति की ना किसै और की होगी बुरी गेर दी मार पीटाई जणुं चोर की होगी इतनी खस्ता हालत ना डांगर ढोर की होगी खोटी हो सै पुलिस घणा दुःख दिया दिखै सै। लाहौर शहर की डगर पिया तनै दीख कड़े तै ली गावण आली मेरे पिया पकड़ लीख कड़े तै ली ज्ञान का मंगता बणकै घला या भीख कड़े तै ली इतनी सुथरी बात जाट के सीख कड़ै तै ली लखमीचन्द पै ज्ञान मेहर सिंह लिया दीखै सै। लक्ष्मी हकीकत को समझाने की कोशिश करती है परन्तु हकीकत नहीं मानता और लक्ष्मी को क्या कहती है- अपना धर्म हार ना सकता बेशक जाओ ज्यान। दुनिया याद करया करैगी इस हकीकत का बलिदान।। पैज प्रण का पूरा सूं ना बिल्कुल डटूंगा, इतणी आगै आकै ना पाच्छै हटूंगा, इनके आगै झूकूं कोन्या, चाहे बोटया कटूंगा, हरगिज़ अल्लाह कहूं नहीं सिया राम रटूंगा, मेरी आंट नै तुड़वां दें देखू़ कैसे मुसलमान।। इन स्यालां के बीच मै रूप केहरी धार खड़या सूं, इनके घमंड़ गरूर की तोप आगै ले सत की तलवार खड़या सूं, मोह और छोह त्याग दिया लोभ डर नै मार खड़या सूं अपणे कौम मजहब की खातर मरण नै त्यार खड़या सूं, इस चोटी तिलक जनेऊ ऊपर मैं होज्यांगा कुर्बान।। जै मनै वेद छोड़ कुरान उठाली ,म्हारी उतर पाग जागी, घाव खुरंड़ कुछ दिखै कोन्या गुप्ती चोट लाग जागी, मनै फांसी तौडैगें तै फैल सारै आग जागी, मेरा मरणा भी काम आवैगा कौम हिन्दू जाग ज्यागी, इस रात अंधेरी के बादल छटज्या खिलै गगन मै भान।। मात पिता और तेरा दोषी छोड़ चाल्या परिवार नै, हो सकै तै माफी दे दिये अपणे भरतार नै, कौम मजहब पै मरणा चाहिये माणस समझदार नै, सबका निमत तय कर राख्या उस सृजनहार नै, कह जाट मेहर सिंह भूलूं कोन्या गुरू लख्मीचंद का ग्यान।। हकीकत को नाज्म बेग के सामने पेश किया जाता है। नाज्म बेग हकीकत को इस्लाम कबूल करने के लिये कहता है। हकीकत इंकार कर देता है। नाज्म बेग उसे डराता है, प्रलोभन देता है परन्तु हकीकत नहीं मानता और क्या कहता है- राज पाट धन दौलत का के रोब जमाओ सो हकीकत की जान काढ ल्यो और के चाहवो सौ। खिंचाताणी मेरे साथ बेफायदी होरी सै पतिव्रता के साथ देहात म्हं शादी होरी सै रंज फिक्र म्हं सूख लक्ष्मी आधी होरी सै वा पड़ी घरां मैं पड़या जेल म्हं न्यूं बरबादी होरी सै बार-बार इन बातां नैं के याद दुवाओ सौ। पूरे गुरू तैं ज्ञान हुअया सै ना मैं मनूष अधूरा सूं सतपुरुषों के लिए ज्ञान का मैं मैदा चूरा सूं कटण मरण तै डरता कोन्या क्षत्री सूरा सूं सर जाओ चाहे धड़ जाओ पर मैं जिद्द का पूरा सूं धन माया ओर हुस्न जवान का के लोभ दिखाओ सो। भारत मां का पूत सपूत मैं जेठा सूं पिता भागमल कौरां मां का इकलौता बेटा सूं, कर्मा का निर्भाग चान्दड़ा इतना हेठा सूं और हिन्दू डरपोक भतेरे मैं नीडर ढेठा सूं बरछी भाले और कटारी तै किसनै डराओ सौ। थारी बी जद्द नै देखूंगा मेरी तो याहे आंट सै हकीकत बता दयो थारे तैं यो क्या म्हं घाट सै राम छोड़ कै खुदा कहूं ना मेरी तो बिल्कुल नाट सै बेशक सर नै काट लियो बता क्यां की बाट सै मेहर सिंह जंग झोणा रोणा के गाणा गाओ सो। इतनी सुनकर नाज्म बेग हकीकत के कत्ल का फरमान सुना देता है। हकीकत की मां हकीकत से मिलने जाती है व उसे इस्लाम कबूल करने के लिये कहती है। क्या कहती है- कर बेटा मेरी बात की ख्यास, करै मत धर्म तजण का टाला।। राजिक रक्षक रुठ ज्या तै रयैत की के हो पोटी, ठाडे माणस की हीणे तै चोट कोन्या जा ओटी, मुस्लिमान करुर घणे इनकी नीत सै खोटी, तू तिलक पौछ जनेऊ तोड कटा ले मूँछ और चोटी, यो खोश लेगा तेरे सांस, नाजिम बेग पेट का काला।। और कोए आश नहीं तू म्हारी इकलौती संतान सै, तू सै तै सब रंग ठाठ ना तै सूना यो जहान सै, अपनी जननी का ख्याल कर क्यूं बणरया नादान सै, नर की खातर धर्म बण्या ना धर्म खातर इंसान सै, लेरी गैल उठै म्हारी ल्हास, क्यूं घर कै भेडै ताला।। किसे हिन्दू की पेश चलै ना मुस्लिम ताज के आगै, एक तूती की के पेश चलै भरे साज के आगै, एक छोटी सी चिडिया की के औकात बाज के आगै, बेटा जिद करनी आच्छी ना होती राज के आगै, मेरे पूत रहज्यागा मेरे पास, तू रट ले नै अल्हा ताला।। जाट मेहर सिंह बणा लई बात नाक का सवाल, इतणी जिद आच्छी ना होती कर दे नै रे टाल, सारे मनुष बराबर सबका एक खून एक खाल, हिन्दू बण चाहे मुस्लिम बण रहैगा मेरी कूख का लाल, म्हारा बण्या रहज्यागा इकलास, तू ले ले नै तसबी माला।। हकीकत अपनी मां को समझता है की जिसने जन्म लिया है वह अवश्य ही मृत्यु को प्राप्त होगा। मोत के भय से मैं धर्म का त्याग नहीं का सकता तथा क्या कहता है- जीव अमानत ईश्वर की, हँस दे क्यूं मुट्ठी भींचै। रहा नहीं कोए सबनै जाणा, दो दिन आगै और पीछै।। इसे इसे ना रहे जगत मै इस दुनियाँ का रासा सुणिए जीव पिंजरा बन्द भौरे में, उस रावण का बासा सुणिए श्री रामचन्द्र तै करी लड़ाई, पड़ा तकदीरी पाशा सुणिए आप मरा और कुटुम्ब खपाया, तोड़ कती खासा सुणिए कदे गगन चढ़ी फर्राट करै थी, वा टूट धजा पड़ी नीचै... दुर्योधन, जरासंध, कंश तै, सभी लोग कांप्या करते कीचक से बलवान रहे ना, जो ना ओरां नै थाप्या करते हिराणाकुश से पापी रहे ना, जो ना भगत मार धाप्या करते वो पांडव भी चले गये जो डंगा धरती नापा करते किस किस के इतिहास सुणाऊं, तू आँख खोल मतना मीचै... आये थे कुछ दिन ठहरण नै, वापस कुछ जल्दी कुछ लेट चले टेशन पर तै टिकट कटाकै, गाड़ी के म्हां बैठ चले कोए उत्तर नै कोए दक्षिण नै कौए पूर्व पछम गेट चले बड़े बडे अमरावत तज कै ऐश अमीरी सेठ चले बिन पहिए बिन लेन-चैन, या मौत रेल सबनै खींचै... सतगुरु के परखे बिन, चेला खोटा रहै खरा हो ना मेहर सिंह वो के गाणा जिस छंद मै रस भरा हो ना इसा कोण होया जगत म्हं, जो पैदा होया मरा हो ना सूखा रूख बाग म्हं पौधा, हटकै फेर हरा हो ना जिसकै फल लागण की आश नहीं माँ, क्यूं लाकड़ म्हं पाणी सींचै... हकीकत अपनी मां को वापिस भेज देता है व चूपचाप बैठ जाता है। नाज्म बेग हकीकत को चुप देखकर कहता है की क्या मोत को सामने देखकर धर्म को भूल ग्या आने ईशवर की भक्ति को भूल गया, तो हकीकत उसे कहता है हम तुम्हारी तरह शोर मचा कर ईश्वर को याद नहीं करते भक्ति भाव मन में वास करता है और क्या कहता है- मन का मणियां सांस की डोर चुपचाप रटन की माला पांचों इन्द्री बस म्हं करके बणज्या रटने वाला। एक जीभ इन्द्री प्यारी हो सै मिठा बोलण सीखो कान इन्द्री शब्द सुणन नै बुद्धि तै तोलण सीखो नैन इन्द्री धर्म जगह पै घूमण और डोलण सीखो एक गुप्त इन्द्री परनारी पै मतना खोलण सीखो इस मन पापी नै बस मै करले और लगादे ताला।। मन मणिये की माला तै अपराध कटण की हो सै मन अन्दर मन्दिर जित जगह रटण की हो सै बिन दीपक प्रकाश बिजली बिना बटण की हो सै बैकुण्ठ धाम एक नगरी साधु सन्त डटण की हो सै तूं उनके चरण म्हं शीश राक्ख जहां दया की धर्मशाला। एक ध्रुव भगत जी बालक से कहै भक्ति करगे भारी गुरु गोरखनाथ जती कहलाए शिष्य पूरण ब्रह्मचारी धन्ना भगत रविदास भगत नै पांचूं इन्द्री मारी मीरां बाई सदन कसाई भक्ति नै पार उतारी तीन लोक प्रवेश कबीर एक सबसे भगत निराला। भगवां कपड़े भस्म रमाल्यां ईकतारा सा ले कै भजन करां उस ईश्वर का सच्चा सहारा ले कै के न्यारे चकवे बैन बणोगे यो जग सारा ले के भगतां का नाम मेटण लागे तम काफर आरा ले कै इस मेहर सिंह नै बी हंस बणां द्यो सै कागा म्हं काला। हकीकत के कतल के आदेश हो चुके थे। बसंत पंचमी की सुबह जल्लाद हकीकत को कत्ल करने के लिये लेने आते है। कवि नै कैसे वर्णन किया- जल्लादां नै म्यान तै सूत लई तलवार। ऊठ हकीकत खड़ा होले मतना लावै वार।। नित्यकर्म से निवृत होकर ब्रहम मूर्त मै अस्नान किया, सिद्धासन लाकै नै ईशवर जी का ध्यान किया, चंदन तिलक लगाकै नै फेर गायत्री गुणगान किया, चलने से पहले हकीकत नै गंगाजल का पान किया, जनेऊ धार चोटी कै गांठ मारी सात बार।। रावी के तट पै आकै चारों तरफ नज़र घुमाई, स्याहमी नाज़्म बेग बैठया जिसनै थी सजा सुणाई, एकड़वासी पिता रोवै था बेसुध पड़ी थी जननी भाई, पति के संग मै सती होण नै त्यार खड़ी थी लक्ष्मी बाई, मुस्लिम ठट्ठा कररे थे ओर हिन्दू हाहाकार।। हाथ पैर बांध दिये वधवेदी मै नाड़ फसाई, गर्दन ऊपर तेग सूत कै खडया होगया जल्लाद कसाई, नाज्म बेग का इशारा मिलते सर उपर तलवार ठाई, बिजली सी चमकी एक चित्कार दई सुणाई, धड़ तै सर अलग होग्या बह चली खून की धार।। कह मेहर सिंह कहया ना जाता उठै सौ सौ मण की झाल, हकीकत के खून तै होगी थी धरती लाल, मामूली सी बात पर गुजार दिये जुल्म कमाल, सारे हिन्दू पछताणै लागै गे जो भी उडै हाल फिलहाल, ऐसे वीर सपूतां की सदा होगी जयजकार।। हकीकत को कतल कर दिया जाता है। लक्ष्मी हकीकत की चिता में सती हो जाती है तथा बेटे के बियोग मे भागमल ओर कौरां भी मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं।

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