किस्सा राजा भोज-शरण दे : पंडित लखमीचंद (हरियाणवी कविता)

Kissa Raja Bhoj-Sharan De : Pandit Lakhmi Chand (Haryanvi Poetry)


एक समय की बात है कि उज्जैन शहर में राजा भोज राज्य करते थे। वे बड़े धर्मात्मा और प्रतापी राजा थे। उन्हें रात-दिन अपनी प्रजा के दुख सुख का ध्यान रहता था। अपनी प्रजा का हालचाल जानने के लिए वे खुद गश्त पर जाया करते और लोगों से उनके दुख दर्द पूछकर उनको दूर किया करते थे। एक रात वे अपने साथी मनवा भाण्ड के साथ गश्त पर गये तो उन्हें कुछ शोर-सा सुनाई दिया।उन्होंने मनवा भाण्ड से कहा जरा इधर-उधर जाकर पता लगाओ कि यह कैसा शोर है, कोई दुखी आदमी तो नहीं रो रहा। मनवा भाण्ड उधर गया तो उसने क्या देखा कि एक कमरे में चार सखी चरखा कात रही हैं और आपस में बातें कर रहीं हैं। वह उनकी बातों को छुपकर सुनने लगा तो वे क्या बातें कर रही थी।

कमरे के में चरखा कातैं बैठी-बैठी चार सखी, ब्याह शादी के बारे में सब लगी करण तकरार सखी ।।टेक।। एक बणिए की न्यू बोली कदे टलै करमां की टाली ना, बेल फूल फल सब ही सूखज्यां रहै चमन में माली ना, मेरे केसी और जगत में कोए फूटे करमां आली ना, बारह वर्ष बाप कै हो लिए पति नै कती सम्भाली ना, बणिए की कहै ब्राह्मण की तै तेरा किसा भरतार सखी ।।1। होज्यागी बरबाद जवानी जिन्दगी ठीक तेरी कोन्या, मद जोबन की केशर क्यारी बणकै मृग चरी कोन्या, मेरे पति नै मेरे बराबर समझी हूर परी कोन्या, हरदम लाड करै मेरे कदे दिल तै दूर करी कोन्या, धर्म समझ कै जती सती की रहती मैं ताबेदार सखी ।।2।। फिर खत्री की न्यू बोली मेरा मिलरया ठीक मिजान सखी, मेरा पति मेरे दुख-सुख के मैं हाजिर राखै ज्यान सखी, और घणी के करूं बड़ाई म्हारी ठीक बाजरी तान सखी, जिसा पति मनैं मिलरया सै इसा सबनै दे भगवान सखी, दोनों बखता शाम सबेरे करै प्रेम से प्यार सखी ।।3।। फेर नाई की बोली ब्याह का फिकर हो लिया घरक्यां नै, मेरी शादी के बारे में खुद जंग झो लिया घरक्यां नै, लखमीचन्द कहै बोझ बिराणा खूब ढो लिया घरक्यां नै, मेरी जोड़ी का भरतार मिल्या ना देश टोहलिया घरक्यां नै, मेरे बस की बात नहीं कित मरज्यां टक्कर मार सखी ।।4।। सखियां सरणदे नाई की को क्या कहती हैं - तेरी जोड़ी का पति बताऊं बरले नाई की, जोड़ी जोगम जोग मिलै ब्याह करले नाई की ।।टेक।। ईब तलक तू फिरै क्वारी के धन लूटगी, जवानीपण की डोर सरणदे तेरी छूटगी, तेरे बाप ऊतिया जाणे की क्यूं शर्म ऊठगी, के तेरी माता आंधी सै के आंख फूटगी, बिना पति तू एक साल में मरले नाई की ।।1।। जोड़ी के भरतार बिना कदे सोया ना जाता, बीज अगत का ना चालै जै बोया ना जाता, समझदार तै न्यू अपणा जोबन खोया ना जाता, डूब गए तेरे माता-पिता बर टोहया ना जाता, सदा जोबन जोश रहै ना यो बिखरले नाई की ।।2।। ईब नहीं तै फेर पति तनै चाहवै देख लिए, कामदेव तेरे गल में फांसी लावै देख लिए, सौ-सौ मण की झाल गात में ठावै देख लिए, बिन पति तू आगै सी दुख पावै देख लिए, मेरी बात नै छाती में लिख धर ले नाई की ।।3।। बिन पति तनै सब बातां की हाणी होज्यागी, बिन शादी फेर तनै मुसीबत ठाणी होज्यागी, लाड करैगा तेरे सरणदे आणी जाणी होज्यागी, राजा भोज तै ब्याह करवाले रानी होज्यागी, इसा पति नही मिलै तीन लोक में फिरले नाई की ।।4।। लखमीचन्द कहै बिना पति तू के जिन्दगी लेरी, ओढ पहर नही सकती बहना कितने दुख खेरी, तनै जिन्दगी भर आराम रहैगा बात मान ले मेरी, महारानी का दर्जा मिलज्या इज्जत होगी तेरी, छोड़ बाप के घर नै अगला घर ले नाई की ।।5।। सरणदे क्या जवाब देती है- और बात तेरी सब सुथरी पर एक बात का जहर, गैर जात में पति बताया मुश्किल रहणी खैर ।।टेक।। उसा कर्म का फल काटूं जिसा पीछै बो लिया, करे कर्म का पाप मनै सिर धरकै ढो लिया, मगज मारती नै हो लिया तनै पूरा एक पहर ।।1।। सोवण दे नै भाग मेरा जै पड़ सोग्या तै, के करूंगी बिरादरी का ताना खोग्या तै, गैर जात तै ब्याह हो गया तै थूकैगा शहर ।।2।। नाई की बोली मारया करैंगे पिता मात कै, हाथ भी ना लावण देंगे अपने हाथ कै, गैर लुगाई गैर जात कै कौण जागी ठहर ।।3।। लखमीचन्द चालणा एक दिन धर्मपुरी के गोरै, इसे पति से अच्छी मैं चुपकी बैठी कालर कोरै, राजा भोज किसे धोरै मैं नहीं धुवाऊं पैर ।।4।। सखियों ने कहा सरणदे राजा भोज को पति बना ले। सरणदे ने कहा तुम उसे पति बनाने की बात कर ही हो, मैं उससे अपने पांव, भी नहीं धुलवाऊं। मनवा माण्ड ने ये सब बातें सुन ली और भाग-भाग राजा भोज के पास आकर कहने लगा- तेरे शहर की आज भूप मनै करकै खूब घुमाई देखी, चार सखी आज मनै कमरे के में करती आज अंघाई देखी ।।टेक।। कती भाजजया था डर उनका, आखिर में था घर उनका, काट देता मैं सिर उनका करकै मनै समाई देखी ।।1।। झूठ ना बोलू कसम राम की, इसी प्रजा ना किसे काम की, के बूझैगा तेरे नाम की करती मनै बुराई देखी ।।2।। चारों में एक खास इसी थी तीनों के एक पास इसी थी, घणी बौले बदमाश इसी थी ना इसी और लुगाई देखी ।।3।। मानसिंह छन्द धरे तीन सै, राजा भोज किसे फिरैं तीन सै, न्यू बोली इसे मरैं तीन सैं, बात कही मुंह आई देखी ।।4।। लखमीचन्द कहै छन्द गाऊं रोवैगा जै और बताऊं, राजा भोज तै ना पैर धुआऊं, न्यू बोली ना शरमाई देखी ।।5।। राजा भोज क्या कहता है- लगी बदन में आग एकदम बात गई ना हरगिज ओटी, कौण थी इसी बदमाश थारे में जो भोज की कहै थी खोटी ।।टेक।। पहरा दयूं सहम रात में, आज न बाकी मेरे गात में, ले कै नै तलवार हाथ में काट ल्यूगा नाक और चोटी ।।1।। थारी काया में भुस भर दूंगा, काट कै शीश अलग धर दूंगा, जो कुछ चाहूं सो कर दूंगा, मेरे आगै थारी कुछ ना पोटी ।।2।। मनुष नै सुख का लेवा करदूं, पार गरीब का खेवा करदूं, अन्न वस्त्र दे सेवा करदूं, पर इसी बात नहीं जा ओटी ।।3।। लखमीचन्द इसे छन्द विचारै, जिनका रूक्का पड़ज्या सारै, जो राजा की इज्जत तारै, राज में मुश्किल मिलणी रोटी ।।4।। सखियां क्या जवाब देती है- हम कहैं बात धर्म तै सौंह खाली भाई की ।।टेक।। चार जणी रहैं कमरे के मैं न्यारी-न्यारी जात म्हारी, आपस के मैं प्रेम ज्यादा न्यू सै मुलाकात म्हारी, एक जगह पै बैठक रहै चारों की दिन रात म्हारी, जाणती हैं बात सारी करैं धर्म की हाणी ना, खोटे धोरै बठै कोन्या, खोटी शिक्षा पाणी ना, हम सैं तीनों एकसी कहैं कदे खोटी बाणी ना, म्हारे में बदमाशी करती या उत घरारी नाई की ।।1।। हम तीनों सै ब्याही हुई नाई की कंवारी सै, इसनै पति नहीं मिलया न्यूं करकै लाचारी सै, बिना पति सुनी रहै न्यूं करकै गिरकाणी सै, बिना पति भूल रही सै अपणी शर्म काण नै, बहुत सी समझाई हमनै छोडै नहीं बाण नै, टिकता नहीं पैर होरी धरती पर तै जाण नै, घरां बाप कै कंवारेपण मैं आंख भरी स्याही की ।।2।। झूठ नहीं बोलै राजा खोट नाई की का सारा, आच्छी भूंढी बोले जा सै इसका सै सुभा खारा, करती नहीं मेल सोंक हरदम रह गरम पारा, चाहे जिसनै खोटी कहदे बिगड रही जबान इसकी, 15-16 साल की सै उमर ना नादान इसकी, कामदेव का जोर होरया बाजती ना तान इसकी, बिन पति रहै सूनी सरणदे भूखी असनाई की ।।3।। हम बोली हे बोली हे ब्याह करवाले, जिन्दोगी का एतबार नहीं, या बोली ब्याह कैसे हो मेरी जोडी का भरतार नहीं, मैं बोली हे ब्या‍ह करवाले तनै सुथरा पति बताउं मैं, फिर मनैं ले दिया नाम आपका कहती नहीं सरमाउं मैं, वा न्यूं बोली भोज के धोरै न पैर तलक धुलवाउं मैं, लखमीचन्द‍ कहै आखं फूटगी खुद जननी माई की ।।4।। राजा भोज क्या जवाब देता है- खोटी बात कहण आले का सिर काटण में शर्म नहीं, पर हाथ बीर पै ठादयूं तै मेरा छत्रीपण का धर्म नहीं ।।टेक।। तू लागी खोटी कहण मेरी, तेरी चीज कौणसी हड़ी मनैं, तेरे मुख मैं नहीं लगाम कती, तू लगी बेहूदी बड़ी मनैं, चाहूं तै तेरा शीश काटदूं, ना लगै आधी घड़ी मनैं, जात बीर की इस कारण आज माफी देणी पड़ी मनैं, मनै प्राचीन मर्याद सोचली हिरदा मेरा नरम नहीं ।।1।। ज्ञानी सेती बात ज्ञान की मूर्ख तै लठ होया करै, राजा सेती बैर करे मैं आपे का मठ होया करै, दोनों थोक बराबर हों जब आच्छी खटपट होया करै, बदला लिए बनया ना मानैं छत्री कै हठ होया करै, कह कै करदे नहीं उल्हाणा रहै कोए से का भरम नहीं ।।2।। राज ताज आज समझया कोन्यां मनचाही करै नाई की, डांक मारती खुले मुखेरे तूं किस तरियां फिरै नाई की, माता-पिता और राजा की ना इज्जत तै डरै नाई की, जलज्यागी पैर आग में जाणबूझ तू धरै नाई की, मुहं जल ज्यागा ठण्डा करले खाणा अच्छा गरम नहीं ।।3।। पालन-पोषण करूं प्रजा का सूं सच्चा हितकारी मैं, दुख तकलीफ नहीं देता नित रहता ताबेदारी मैं, फिर भी करी बुराई मेरी थूकै सै इज्जत थारी मैं, तेरी बात का बदला ल्यूंगा पूरा छत्रधारी मैं, सबनैं भूंडा लागै जो इसा करणा चाहिए करम नहीं ।।4।। अपणा मरणा जगत की हांसी वो ज्ञान करै सै नाई की, जवानीपण और जोबन का अभिमान करै सै नाई की, कित राजा कित जात तेरी कित ध्यान करै सै नाई की, छत्रधारी राजा का अपमान करै सै नाई की, लखमीचन्द कहै किसे माणस का ठीक सताणा ब्रह्म नहीं ।।5।। राजा भोज ने सरणदे पर हाथ नहीं उठाया। उसे स्त्री समझकर छोड़ दिया पर इतना अवश्य कहा कि मैं तुम से खोटी बोलने का बदला जरूर लूंगा। अब राजा अपने दरबार में गया, और सरणदे के पिता देवलदे नाई को वहीं बुलवा लिया। उसे आदरपूर्वक वहां बैठाकर राजा भोज ने क्या कहा- देवलदे मनैं न्यूं बुलवाया मेरी कहण पुगादे, एक लड़की सै तेरै सरणदे उसनै मेरै ब्याहदे ।।टेक।। पाणी दे कै समय के ऊपर फूल खिलाणा अच्छा, घणी कहे में के फायदा ना जिगर जलाणा अच्छा, होगा धर्म गऊ प्यासी नै, नीर पिलाणा अच्छा, राजा सेती रइयत का रहै मेल मिलाणा अच्छा, घरा राखणी ठीक नहीं उसनै धन्धे सिर लादे ।।1।। कै तै डोला दे राजी तै ना धिंगताणे ठाऊंगा, अनरीति पै जमी आत्मा मैं कोन्या शरमाऊंगा, एक मिनट में कर दयूं जो कुछ करणा चाहूंगा, न्यू मत डरिए मैं नाई सू के राजा कै ब्याहूंगा, नेक आदमी वो हो सै जो हुक्म की टहल बजादे ।।2।। मैं बीमार मर्ज का मेरे लायक दवाई होज्या, दुनिया देगी शाबाशी तेरी दूर बुराई होज्या, राज के लोग करैं इज्जत तेरी मान बढ़ाई होज्या, राजा तै कम नहीं रहै जब राजा तै असनाई होज्या, जिन्दगी भर तेरा गुण भूलूं ना धर्म की नीम जमादे ।।3।। लुक्‍हमा भेद बात में सै तनैं ईब तलक ना बेरा, जिस दिन भेद पाटज्या उस दिन होज्या दूर अन्धेरा, मैं राजा तूं नाई सै कुछ हरज नहीं सै तेरा, सुण बात तेरा देवलदे क्यूं उतरग्या चेहरा, तेरे हाथ में डोरी सै ब्याह करकै उमर बधादे ।।4।। दुनिया में रहै खड़ी कहावत त्यार कहाणी होज्या, तेरी बेटी स्याणी सै कुछ और भी स्याणी होज्या, कदे तेरे घर कदे राजा के आणी जाणी होज्या, कोए नाई की नहीं कहै तेरी बेटी रानी होज्या, लखमीचन्द कहै ब्याह की खातिर एक बार कर हां दे ।।5।। देवलदे नाई क्या जवाब देता है- तू छत्री रजपूत भूप सै मैं टहल करणियां नाई, म्हारी तेरी जात मिलै ना कर दयूं किस ढाल सगाई ।।टेक।। नीची नाड़ जात में होज्या मेरै बट्टा लाणा चाहवै, मेरी जात के नाई नाटैं क्यूं कुकर्म ठाणा चाहवै, मेरी बेटी नै ब्याहणा चाहवै तेरे क्यूकर मन में आई ।।1।। तेरे संग में बेटी ब्याह कै, मैं जात जन्म नै खोल्यूं, जुड ज्यागी पंचायत बारणैं मैं किस आगै दुख रोल्युं उनके आगै क्यूकर बोलूं जब कट्ठे हो दो भाई ।।2।। राजा हो कै रइयत ऊपर तनै कितना रोब जमाया, हिणा करकै मनैं ताने दे सै कती नहीं शरमाया, मेरी बेटी पै ध्यान डिगाया के और बहू ना पाई ।।3।। राजा हो कै बुरी नजर तै ना देख्या करैं लखा कै, सतगुरु जी की सेवा करकै कहै लखमीचन्द गा कै, गैर जात कै बेटी ब्याह कै कहदयूं किस ढाल जमाई ।।4।। राजा भोज देवलदे से क्या कहता है- देवलदे तूं राख अकीदा रै बात मेरी का, धिंगताणें तै डोला ल्यूंगा रै बेटी तेरी का ।।टेक।। बोली और तान्यां नै मेरा रै गेरया गात कान्द कै, छाती में कै पार लिकड़ग्या इसा मारया तीर साध कै, परसों आऊं मोड़ बान्ध कै रै काम नहीं देरी का ।।1।। तूं एक नाई मैं एक राजा के करले मेरा सामणा, सौ-सौ मण की झाल पड़ै सैं रै मुश्किल गात थामणा, बात खोल दी और काम ना रै कुछ हेराफेरी का ।।2।। बीस बिशवे मेरा काम बणैंगा मनैं मालिक इसा सौंण दे, जो विधना में लेख लिख्या सै उसनै हटा कौण दे, देवलदे मनैं ग्राहक होंण दे रै फूलां की ढेरी का ।।3।। लखमीचन्द कहै अपणे मन से तूं परण हारिए मतना, नू इज्जतबन्द माणस होज्या रै बुरी धारिए मतना, तू नाई मान मारिए मतना इसा सिंहनी केहरी का ,।।4।। देवलदे राजा भोज से डर गया, उसने राजा से कहा मैं अपनी घर जाकर नाईन से पूछ कर आपको तुरंत बताऊंगा। अब देवलदे अपने घर पर उदास होकर बैठ गया। उसकी पत्नी ने पूछा क्या बात है? इतने उदास क्यो हो, राजा के पास गये थे? राजा ने क्यों बुलाया था और उसने क्या कहा है? देवलदे अपनी पत्नी को सारा हाल कैसे सुनाता है- इसा जुल्म कदे देख्या कोन्या आज हुआ दुनिया तै न्यारा, तेरा धरती में सिर लागैगा जै मनैं भेद बता दिया सारा ।।टेक।। उसनै कर लिए बुरे इरादे, अपणे सोच सारे फायदे, न्यू बोल्या मेरै बेटी ब्याहदे, जुल्म करया बड़ा भारा ।।1।। तमाशा होग्या नए सीन का, झगड़ा होग्या तेरा तीन का, कोन्या छोड़या किसे दीन का, मैं इसा धरती कै दे मारा ।।2।। क्यूकर उसका कहण पुगादयूं, अपणी इज्जत कै बट्टा ला दंयू, जै गैर जात कै बेटी ब्याह दयूं, के थूकैगा भाईचारा ।।3।। लखमीचन्द कहै छन्द गाऊं, कोन्या अपणा धर्म डिगाऊं, उसकै बेटी कोन्यां ब्याहूं, चाहे मनैं वर्ष बीतज्यां बाराह ।।4।। नाइन देवलदे को क्या समझाती है- जिसा ठिकाणा मैं चाहूं थी, आज होगी मन की चाही, मेरी निगाह में आगी करले राजा तै असनाई ।।टेक।। दुनिया करै बड़ाई तेरी राम कहाणी होज्या, राम करै उस राजा भोज की साची बाणी होज्या, ब्याह करदे दस पांच रोज मैं वा आणी जाणी होज्या, जै राजा कै ब्याहदी तै मेरी बेटी रानी होज्या, इसे भाग मेरे कित सैं बेटी जा राजा के ब्याही ।।1।। जन्म दे दिया बेटी की तकदीर नहीं बांची थी, जिस दिन बेटी पैदा हुई म्हारै धूम खूब माची थी, गाजे बाजे खेल तमाशे रण्डी तक नाची थी, नहीं नाटणा चाहिए था हां करणी आच्छी थी, कोय उल्हाणा ना दे सकता होज्या मान बड़ाई ।।2।। ब्याह शादी का सामा करकै सुथरा रंग ला दे नैं, ब्याहवण जोग सिवासण होरी बार तै ठा दे नैं, दो भाइयां नै कट्ठे करले मत भूलै कायदे नैं, और बता के मिलैगा राम तै राजा कै ब्याहदे नैं, तूं बणज्या राजा का सुसरा राजा तेरा जमाई ।।3।। मैं राजी सूं उड़ै ब्याहवण मैं कहण पुगाणा चाहिए, जात-पात का ख्याल नहीं और ना घबराणा चाहिए, लखमीचन्द लगै सब नै सुथरा सही शुद्ध गाणा चाहिए, जिसा राजा का घर मिलग्या इसा ठीक ठिकाणा चाहिए, बेशक तै ब्याह भेज भूप कै इसमैं नहीं बुराई ।।4।। राजा भोज का सरणदे के साथ विवाह हो गया। सरणदे डोले में बैठने के लिए तैयार हो गई। उसे विदा करते हुए सखियां क्या कहने लगी- नाई की थी रानी होगी सरणदे तेरे भाग, तेरे रूप की राजा भोज कै चोट गई थी लाग ।।टेक।। बेमाता नै खूब घड़ी, सज धज कै बणी फूलझड़ी, कड़ के ऊपर चोटी पड़ी जैसे काला नाग ।।1।। रहणा ठीक बात नै खे कै, देखले सब आनन्द सा ले कै, तरे रूप की चौगरदे कै बलती दीखै आग ।।2।। समझण जोगी स्याणी होगी, साची कही म्हारी बाणी होगी, सरण इब तू रानी होगी, धोए गए सब दाग ।।3।। कसर ना रहै तेरी टहलां मैं, संग जाया करिए सैलां मैं, लखमीचन्द कहै महलां मैं, तू बलता रहै चिराग ।।4।। सखियां आगे क्या कहती है- कर्मा करकै पति मिलग्या तनै राजा भोज, दासी बान्दी टहल करैंगी करया करिए मौज ।।टेक।। तीजण के मैं मीठी-मीठी बात लायी थी, तेरी शादी भी नहीं हुई थी कती क्वारी थी, जिस दिन चरखा कातै थी तनै बोली मारी थी, जिसनै कमरे के मैं देखी थी उस रोज ।।1।। आयी तेरे काम कही जो बात हंघाई की, राज में साझा होग्‍या थारी जात नाई की, लाख बराबर कीमत होगी धेला पाई की, ऐश करैगी नहीं जरूरत तनै कमाई की, मोहर अशर्फ नामे तै तेरी भरी रहैगी गोज ।।2।। तेरे माता पिता नै लाड चाव से सरणदे पाली, ठीक सिवासण होयी सै तेरी उमर ना बाली, राजा भोज पै पड़ग्यी तेरे रूप की छाली, कित जा कै तेरा जोग भिडया सै कर्मा आली, कितै और दूर ब्याही जाती चलता ना खोज ।।3।। लखमीचन्द कहै बूझैगा जो बात सै मन की, चिमकारा सा लागै सै जागै बिजली धन की, गहणा वस्त्र धूम ठेकरी शोभा सै तन की, खूब खेलिए खाइए भूखी नहीं रहै धन की, धन के भरे खजाने संग में लेरया पलटन फौज ।।4।। सरणदे की मां उसे क्या कहती है- बिधना आगै आदमदे का कुछ ना चालै चारा, मात-पिता के जुम्मे हो सै वो फर्ज तार दिया सारा ।।टेक।। जन्‍म दिया और पाल-पोश दी या दुनिया की रीत, लाख करो चतुराई जा सै कर्म लिखाई बीत, मां बेटी की सच्चे दिल से रहती रही प्रीत, माता-पिता जां छूट आखिर पति रहै सै मीत, मां-बेटी का प्रेम जगत में हो सै सब तै भारा ।।1।। तेरी माता ना तेरी ओड़ धर्म तै हाली सै, जो मर्यादा पुरानी थी मनै वाहे चाल चाली सै, करतब सै बढ़े कर्म प्रेम नै आपस की लाली सै, ब्याह के जोग हुई ब्याह कर दिया कसर नहीं घाली सै, लिया दिया जिसा धोरै था और करमां का रंग न्यारा ।।2।। खिलै चान्दणा तेरे कर्मां का दूर अंधेरी होगी, जोड़ी का वर नहीं मिल्या था न्यू ब्याह में देरी होगी, सुखी रहैगी जिन्दगी भर खुशी आत्मा मेरी होगी, इसी जगह मनै ब्याहदी बेटी इज्जत तेरी होगी, दासी बांदी टहल करैं जड़ै झांकीदार चुबारा ।।3।। चलती बरियां लाड करकै आनन्द करणदे बेटी, सास-सुसर और पति सेवा का बांध परणदे बेटी, लखमीचन्द का प्रण निभाइए मेरी सरणदे बेटी, ले पुचकार सिर के ऊपर हाथ धरणदे बेटी, मैं चाहूं तेरै अन्न-धन्न का न्यू भरया रहै भण्डारा ।।4।। अब राजा भोज सरणदे नाई की से शादी करके उसे अपने घर ले आया और क्या कहने लगा- ब्याह होग्या मेरे साथ सरणदे मुश्किल रहणी खैर, आगे सी नै हो नाई की तेरे मलमल धोलू पैर ।।टेक।। किस के आगै अपणे दिल के दाग धोवैगी, इतना दुख देदूंगा ना कदे सुख तै सोवैगी, रानी होगी फिर भी डले सुरग में ढोवैगी, कदे सूकै कोन्यां आसूं दिन रात रोवैगी, तेरी करणी का फल सै आज तू बणी चन्दन तै कैर ।।1।। मैं धड़ तै शीश उड़ा देता इसी बीरबानी का, छत्री था न्यू डटग्या कर ख्याल तेरे कान्हीं का, टाले तै ना मूल टलै जो दुख जिन्दगानी का, नहीं किसे नै थापै था इस जोश जवानी का, तूं एक नाई की छोरी सै करै राजा सेती बैर ,।।2।। जो सखियां के मैं गावै थी वो गीत गाले नै, उस दिन बोली मारै थी मेरी तरफ लखाले नै, तू ठाडी अक मैं ठाडा इब खुद आजमा ले नैं, पैर धुवावण को कहरी थी पैर धुवाले, मेरे गात में भररया सै तेरी उस बोली का जहर ।।3।। गिरकाणी तेरी बोली तनैं खोगी नाई की, कहै लखमीचन्द क्यूं राह में कांटे बोगी नाई की, के तनै आरही नींद तूं पड़कै सो गई नाई की, बोलण मैं के डर सै क्‍यूं चुप होगी नाई की, जल का लोटा लेरया सू तूं एक मिनट जा ठहर ।।4।। सरणदे क्या कहती है- मुंह तै नहीं लिकड़ती बाणी होगी मेरे करमां की हाणी, माफी दे दे सूं तेरी रानी जोडूं हाथ पिया ।।टेक।। मैं सू राजी आपके मोह मैं, आसू्ं तै रही मुखड़ा धो मैं, इतना क्यूं छोह में आवै सै, डर ज्यांगी क्यूं धमकावै सै, तंग मत करिए दुख पावै सै गोरा-गोरा गात पिया ।।1।। गहरा ख्याल करूं सूं मन में, कोन्या रहरया जोश बदन मैं, तनै में दूणी चिन्ता छिड़ग्यी, मैं थारे चरणा में पड़ग्यी, गलती होगी मुंह तै लिकड़गी उस दिन बात पिया ।।2।। लागी चोट दूखती पासूं, बाहर मैं कती हुक्म तै ना सूं, आंसू तै मुंह धोणा दे मत, दुख का बोझा ढोणा दे मत, जाण बूझ कै रोणा दे मत, मनैं दिन और रात पिया ।।3।। तेरे बिन होज्या बुरी गति, लखमीचन्द कर माफ कती, सती के जुम्मै नै कर हो सै, जिनके हिरदे में डर हो सै, दिखे भगवान बराबर हो सै पति और मात पिता ।।4।। राजा भोज क्या जवाब देता है- जिन्दगी भर दुख दे दूंगा तनैं नहीं करूंगा प्यार तेरा, खडी उड़ाइए काग सरणदे महल दुहागी प्यार तेरा ।।टेक।। तू अक्कल की स्याणी ना सै, के तनैं इब तक जाणी ना सै, नाई की तू मेरी रानी ना सै, मैं कोन्यां भरतार तेरा ।।1।। दुख देदूंगा एक स्यात में, ले ले थोथा बांस हाथ में, धौला बाणा ले गात में, योहे सै सिंगार तेरा ।।2।। तू थी मेरे तै त्यार फहण नै, मेरे घर आयी कष्ट सहण नै, महल दुहागी मिल्या रहण नै, उसमैं सै संसार तेरा ।।3।। लखमीचन्द जी करै गाण नै, थोड़ा सा जल मिलै न्हाण नै, एक रोटी जो मिलै खाण नै, उसमैं सै आधार तेरा ।।4।। सरणदे की मां सरणदे को क्या कहती है- महल दुहागी मिल्या तनैं के पड़ी मुसीबत भारी, राजा भोज नै मेरी सरणदे क्यूकर करदी न्यारी ।।टेक।। के तनै सच्चे दिल से उसकी टहल बजाई कोन्यां, के पतिव्रता धर्म समझ कै सेवा ठाई कोन्यां, के कुछ कहदी राजा नै तनैं करी समाई कोन्या, के पहली रानी घणी सुथरी सै तू मन भाई कोन्यां, कौण बात पै झगड़ा चाल्या जो खटपट होगी थारी ।।1।। सरणदेः- ना झगड़ा ना हुई लड़ाई जिकर करूं सारे मैं, और किसे का दोष नहीं इसी लिखी भाग म्हारे में, हम चार जणी चरखा कातैं थी अपणे रंग न्यारे में, मेरे मुंह तै एक बात लिकड़ग्यी थी राजा के बारे में, उस दिन से वो जल्या पडया सै राजा छत्रधारी ।।2।। माताः- राजा की हठ पूरी हो सै कोन्या झूठ कती सै, प्रजा बैर करै राजा तै कितनी मूढ़ मती सै, तू जाणैं और मैं जाणूं बिन बालम बुरी गति सै, तनैं क्यूं ना माफी मांग लई आखिर मैं तेरा पति सै, पत्नी नै पति राम बराबर अर पति नै पत्नी प्यारी ।।3।। सरणदे :- दिल का इतना कठोर भूप सै शर्म तै आखं भरी ना, सौ-सौ उतरा-चढ़ा दिए कोए ह्रदय बात धरी ना, सब कुणबे नै समझा लिया पर बदी तै नीत फिरी ना, मनैं हाथ सरीखे जोड़ लिए मां फिर भी दया करी ना, लखमीचन्द नैं देकै दुहाग मैं धरती कै दे मारी ।।4।। अब सरणदे कुछ दिन अपने घर रही। उसने बहुत अच्छी बीन बजानी सीख ली और सपेरे का भेष बनाकर बीन बजाती हुई राजा भोज के दरबार की तरफ चल पड़ी। शहर के लोग बीन सुनकर क्या कहते है- सुणिये रै सपेले नै किसा राग गाया सै, इसा सपेला ना देख्या जिसा आज आया सै ।।टेक।। किसा लखावै चौगरदे नै सेकै सै घा नैं, म्हारे शहर में क्यूकर आग्या भूल कै नै राह नैं, धन-धन इसकी जननी मां नै खूब जाया सै, बुआ बाहण नै लाड़ लड़ाकै, गोद खिलाया सै ।।1।। मेरी निगाह में दीखै सै किसे ऊंची जात का, सुन्दर और उजला रंग सै इसके गात का, कर्मां करकै इसे नाथ का दर्शन पाया सै, आदमदेह ना दीखता कोए और माया सै ।।2।। इसा रूप का चिमकारा जाणूं जेठ की हो धूप, किसे का मारया फिरया सै कोए आशकी में भूप, इस सपेले का रूप गजब का सबके मन भाया सै, आज तलक ना देखी कितनी सुन्दर काया सै ।।3।। लखमीचन्द बणादे नै छन्द सही जोड़ का, शहर के मैं आया आज सपेला तोड़ का, सपेले की ओड़ का किसा बहम छाया सै, दर्शन खातिर सब के मन में लाग्या उम्हाया सै ।।4।। कवि सपेले का वर्णन कैसे करता है- कुछ तै सुथरी सूरत की कुछ कपड़े नए बदन मैं, बणी सपेला सरणदे और बड़गी राज भवन में ।।टेक।। सूरत दीख्यां पाछै धरले माणस प्यार कालजे में, लगी लौलता सच्चे दिल से बसे भरतार कालजे में, कई तरह के कई बै ऊठैं नए विचार कालजे में, बीन बजावण लगी सुरीली खटकै तार कालजे में, बेखटकै रही चालती भय नहीं मान्या मन में ।।1।। कसम भेष की खाण लागी जब बोलता प्यारा, नगरी के मैं रुक्का पड़ग्या नया सपेला आरया, नया सपेला छैल गाभरू संग शहर हो लिया सारा, संग में बालक बच्चे गाभरू आदमियां का लारा, सब तै न्यारा रूप इसा जाणूं चमकै सूरज गगन मैं ।।2।। केले केसी लरज गात में रंग था गोरा-गोरा, होरया मस्त सपेला जैसे फूलां पै आशिक भौरा, कदे इधर और कदे उधर करै दरबारां का दौरा, स्‍यान छबीली आंख कटीली कुछ स्याही का डोरा, खशबोई का तेल लगा लिया गोरे-गोरे तन में ।।3।। वाह! वाह! करती हांडै नगरी खूब सराहना होरी, जात बीर की भेष मर्द का श्‍यान भी गोरी-गोरी, लखमीचन्द कहै ब्याहे मर्द तै खुद कररयी थी चोरी, खास सरणदे नाई की पर अपणा भेद ल्हकोरी, लगै रूप का फटकारा रही चमक बिजली घन में ।।4।। दरबार में बैठे हुए राजा भोज के कानों में बीन की मधुर आवाज पड़ी तो उसने अपने मन्त्री से कहा- इतनी मीठी बीन कौन बजा रहा इसे दरबार में बुलाओ। राजा का आदेश पाकर मंत्री सपेले के पास पहुंचा और उसे क्या कहने लगा- याद करया सै राजा नै मेरी साथ आइए तू, दरबारां में चाल कै नै बीन बजाइए तू ।।टेक।। बीन बारणै बाज रही तेरी घणी हाण की, कौण देश से आया सै सलाह कड़ै जाण की, इच्छा हो तै खाण की ओड़ै भोजन खाइए तू ।।1।। किसे बात का डर कोन्यां उड़ै लाग रहे पहरे, बड़े भाग तेरे नाथ आज हों दरबारां में गहरे, प्रेम के दो चार लहरे खूब सुणाइए तू ।।2।। न्याकारी सै भूप म्हांरा तनै करणा चाहिए ख्याल, बड़े प्रेम से करता है सब प्रजा की प्रीतपाल, राजा सेती चाल प्रेम तै हाथ मिलाइए तू ।।3।। तेरी बीन की गूंज खुद दरबारा में जा ली, लखमीचन्द कहै बीन सुण कै नै सब बैठगे ठाली, ठुमरी गजल कव्वाली सारी बीन में गाइए तू, ।।4।। सरणदे ने इतनी मनमोहक बीन बजाई की सारा दरबार दंग रह गया। अब वह बीन बजाते-बजाते एकदम धरती पर गिर पड़ी तो राजा ने पूछा क्या हो गया? राजा ने अब क्या कहा- इतनी सुन्दर बीन बजाई न्यूँ तबीयत खुश म्हारी होगी, चक्कर खाकै पडया सपेले तन मैं के बेमारी होगी ।।टेक।। श्यान बिगड़गी गैर पूत की, झपेट होगी किसे प्रेत भूत की, के नजर लागी किसे ऊत की, स्याहमी डाण सिहारी होगी ।।1।। देख कै बड़ा अचम्भा छाग्या, के तेरे तन मैं खटका लाग्या, के मिरगी का दोरा आग्या क्यूकर के लाचारी होगी ।।2।। सपेले तेरी उमर सै बाली के पड़ग्यी बेईमान की छाली, मुश्किल जागी बात सम्भाली कोड मुसीबत भारी होग्यी ।।3।। लखमीचन्द कहै बात प्रण की, घड़ी ना थी आज कष्ट भरण की, दरबारां में आज मरण की, तेरी सपेले त्यारी होगी ।।4।। सरणदे क्या जवाब देती है दुख की लगी कटारी मेरी काया मैं भूप, लाग रही सै आग मेरे पायां मैं भूप ।।टेक।। तन का होरया सै बुरा हाल, न्यूं होया पड्या सूं घाल, आडे तै ले चाल बिठादे छाया मैं भूप ।।1।। रूम-रूम जली मेरे चाम की जिन्दगी ना रही किसे काम की, जरूरत नहीं इनाम की ना चाहता माया में भूप ।।2।। जल गए पैर लग्या दुख पावण, घर का आवै कौण बुझावण, खोटी खरी बीन बजावण आज आया मैं भूप ।।3।। लखमीचन्द ले समझ लाग नै, रोया करै सब खोटे भाग नैं, तेरे दरबारा की आग नै आज खाया मैं भूप ।।4।। राजा ने सपेले से कहा तुझे यह अचानक क्या हो गया? सपेला कहने लगा महाराज आपके दरबार की जमीन में अग्नि बिछी हुई है। इसलिए मेरे पैर अग्नि से जल रहे हैं। राजा ने कहा इसका क्या इलाज है? तो सपेले ने कहा आप प्रजापालक हो, यदि आप स्वयं मेरे पैरों पर ठण्डा जल डालकर इन्हें धोएं तो पैरों की जलन शान्त हो सकती है। सपेले की बात मानकर राजा क्या कहता है- राजा मन मैं सोचण लाग्या देर कती ना चाहिए लाणी, तावल करकै भरकै ल्याया एक घड़े तै ठण्डा पाणी ।।टेक।। सिर पै उल्हाणां धरैगा सपेला, दुख के सांस भरैगा संपेला, दरबारां में मरैगा संपेला इसकी चाहिए ज्यान बचाणी ।।1।। माला जपता सुबह शाम की, एक उस सच्चे हर नाम की, इज्जत ना रहै किसे काम की, जै दरबारां में होगी हाणी ।।2।। इज्जत हो मुखिया माणस की, अमीरत हो सुखिया माणस की, आए गए दुखिया माणस की, हमनैं चाहिए टहल बजाणी ।।3।। लखमीचन्द रंग फेरण लाग्या, नाम गुरु का टेरण लाग्या, पायां पै जल गेरण लाग्या, सपेला बोल्या मुख से बाणी ।।4।। सरणदे की कला और चतुराई को देखकर राजा भोज बहुत खुश हुआ। अब सरणदे सारी बात बताती है राजा उसे अब अपने गले से लगा लिया। अब राजा उसे अपने महल में ले गया और रानी बनाकर रखा।

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