किस्सा पूर्णमल : पंडित लखमीचंद (हरियाणवी कविता)

Kissa Puranmal : Pandit Lakhmi Chand (Haryanvi Poetry)

स्यालकोट में राजा सलेभान राज करते थे। राजा ने शादी होने के बाद भी कोई सन्तान पैदा नहीं हुई। राजा के बाग तथा कुएं सूख गये। भगवान की कृपा से उनके बाग में गुरू गोरखनाथ आये। जिनके पदार्पण से कुएं में पानी तथा बाग में फूल व हरियाली लौट आई। माली फूलों की डालियां लेकर राजा के यहां पेश हुआ, और कहा कि महाराज आपके बाग में ऐसा तपस्वी आया हुआ है जिसके आने से कुएं के अन्दर पानी व बाग में फूलों की भरमार हो गई है। राज सुलेभान और बडी रानी इन्छरादे नंगे पैर जाकर साधू की सेवा करते हैं। साधू ने समाधि खोलकर देखा कि राजा रानी हैं और उनसे वरदान मांगने को कहा। राज सुलेभान ने वरदान में पुत्र को मांगा तो साधू ने वरदान दिया कि आपकी बडी रानी के गर्भ से एक लडके का जन्म होगा। उसका नाम पूर्ण भगत रख देना और होते ही उसको भौरे के अन्दर डलवा देना। वहीं उसको शिक्षा देना क्योंकि वह इतना सुन्दर और ज्ञानवान होगा कि कभी उसको कोई उठा न ले जाये। यह वरदान देकर साधू अन्तर्रध्यान हो जाते है। 10 महीने के बाद रानी इन्छरादे के गर्भ से पूर्ण भगत का जन्म हुआ। राजा ने साधू के कहे अनुसार ही किया तथा पूर्ण को भौरे में डलवा दिया और उसकी शिक्षा भी वहीं पूर्ण करवाई। जब पूर्ण भगत को भौरे में 12 साल हो गये तो चारों तरफ से नाते रिश्ते आये। राजा ने रूपेशाह दिवान को भेजकर पूर्ण को दरबार में बुलाया और उसको शादी के बारे में कहा। पूर्णमल ने शादी से साफ़-साफ़-सइन्कार इन्कार कर दिया और कहा कि पिताजी मैं जती रहूंगा। कैसे-


मत ले शादी का नाम पिता मैं जती रहूंगा ।टेक। छोड दिये सब दुनिया के रगडे, हम सै भजन करन मैं तगडे, जगत के झगडे बने तमाम, उनसे दूर मैं कती रहूंगा ।।1।। मैं कायदे से नहीं घटूंगा, इस बन्धन से अलग हटूंगा, हर नै रटूंगा सुबह शाम, करकै शुद्व गति रहूंगा ।।2।। करते भजन हरि के रूख में, जब तक दिन टूटंगे सुख में, मुख में दे राखी सै लगाम, ना करकै भंग मती रहूंगा ।।3।। लखमीचन्द हरफ कहै गिणकै, धन परवस्त बणा दिया जणकै, मात-पिता का बनकै गुलाम, दया का पति रहूंगा ।।4।। पूर्णमल आगे क्या कहता है- विष्णु कहण लगे ब्रहमा से, रच क्यूँ देर लगाई, पूर्ण ज्ञान दिया ईश्वर नै, सृष्टि खातर भाई ।। टेक ।। सृष्टि खातर रजोगुण-तमोगुण, सतोगुण गैल मिलाये, काम-क्रोध अहंकार स्वरूप से, ब्रह्मा जी घबराये, व्याकुल होकै दो गुण तज दिये, गात बचाणा चाहये, अहंकार सदगुण से बचकै फेर, शिव के दर्शन पाये, शिवजी कहण लगे रोकै, मेरी देह किस लिये बनाई ।।1।। शिवजी कहण लगे ब्रहमा से, कित जगह मुकरर मेरी, फेर ब्रह्मा जी नै जगह बताकै, सृष्टी रचनी टेरी, दुनिया मैं कीर्ति होज्यागी, सृष्टि रचो सवेरी, फेर ग्यारा नाम धरे शिवजी के, ग्यारा स्त्री तेरी, ग्यारा रूद्र ग्यारा स्त्री, भिन्न-भिन्न कर दर्शायी ।।2।। भूत-प्रेत और डांण-डंकणी, इनका रूप बणाया, सब जहरीले रचे जानवर, रची जहर से काया, तमोगुण सृष्टि चली खाण नै, जब ब्रह्मा जी घबराया, व्याकुल होकै दो गुण तज दिये, गात बचाणा चाहया, शिवजी नै बन्ध कर सृष्टि, तन में खाक रमाई ।।3।। सनक-सनन्दन सन्तकवारा, भक्ति करगे न्यारी, काम-क्रोध तज ज्ञान भजन से, तृष्णा ममता मारी, अगस्त-मरिचि कदर्म-अत्री, नारद से ब्रहमचारी, वशिष्ठ-भृगू पुलस्त-अंगिरा, धर्म रूप देहधारी, स्तन से धर्म पीठ से अधर्म, उदर से देबी माई ।।4।। स्वयंभू मनू शतरूपा कन्या, दहणे-बामें अंग से, इस कारण से पैदा कर दिये, सृष्टि रचो उमंग से, देहूति-आकूति कहती, प्रसूति किस ढंग से, उतानपात और प्रियव्रत ना, हटे धर्म के जंग से, रूचि-देवता और दक्ष-मनू, कश्यप नै भी सृष्टि चाही ।।5।। पृथू कुल के बरही राजा नै, सृष्टि के सुख भोगे, दस पुत्र परचेता थे, जो सुथरे देखण जोगे, 10 हजार वर्ष तप करकै, मुक्ति मार्ग टोहगे, फेर सृष्टि नै रचण लगे, जब नारद ढंग नै खोगे, मेर-तेर और मोह-ममता की, या सृष्टि फेर रचाई ।।6।। अनसुईया के पति अत्री नै, लाली श्रुत भजन म्य, ॐ शब्द का जाप करया, हुआ ज्ञान चान्दणा तन म्य, ब्रह्मा-विष्णु शिवजी तक भी, दर्शन देगे बण म्य, दिया वरदान जन्म लें तेरैं, फिकर मेट दिया छन म्य, दत्तात्रेय-सोम-दुर्वासा, त्रिगुण रूप सफाई ।।7।। कहै लखमीचन्द सृष्टि खातर, बड़े-बड़े कोशिश करगे, आदि मनु मनुष्य की खातिर, चार आश्रम धरगे, ब्रह्मचारी बण ग्रहस्थ भोग, फेर बाणप्रस्थ बण फिरगे, सन्यासी बण दण्डी स्वामी, तप करण डिगरगे, जीव की खातिर कर्म करण नै, या सृष्टि-ऐ ठीक बताई ।।8।। पूर्णमल और क्या समझाता है- तज गये मेर संसार की, सुख त्रिया का चाहया ना ।। टेक ।। ऋषभ जी के इक्कासी पुत्र, शास्त्री-वेदान्ती लोग, नौ पुत्र नो खण्ड के राजा, भरत नै गद्दी का भोग, नौ पुत्रों नै त्यागी बणकै, दुनियां में फैलाया योग, मारकंड जी के मारकंडे, देवतां के वर से जाया, छ: मनु मन्त्र तप करकै, कल्पभर की आयु पाया, पिता जी की मुक्ति करणे, 12 वर्ष खातिर आया, सब तृषणा तजी विकार की, दुख गृहस्थियों का ठाया ना ।।1।। सनक-सनन्दन ऋषि, सनकादिक और सन्त कुमार, स्त्री के त्यागी बनें, ब्रह्मा जी के बेटे चार, गरूडासन को ऋषि मुनि, माया से बतावैं बाहर, मरिचि ब्राह्मण के सुत, अट्ठासी तो हजार हुये, प्रचेता की पदवी पाई, तप कै आधार हुये, नाम तक धराया नहीं, माया पे सवार हुए, लख सुरति ज्ञान विचार की, लय हुए अलग काया ना ।।2।। चौरासी सिद्ध के लक्षण, सिद्वियों से मिले हुये, साठ हजार ऋषि मुनि, बाल खिला भले हुए, चन्द्रमा के लोक जाते, शान्ति से चले हुये, तोष और प्रतोष कहते, सन्तोष और भद्रा नामी, शान्ति और ईडसपति ईदम कवि विभु स्वामी, स्वह: और सुदेह रोचन, त्रिया के बणे ना कामी, जिननै पदवी मिली अवतार की, लगी जन्म धरत माया ना ।।3।। प्रियव्रत राजा हुऐ, 13 पुत्र जन्में भाई, सात पुत्र राजा बने, सात द्वीप ध्वजा छाई, तीन पुत्र मनु बणे, ब्यास जी नै कीर्ति गाई, पंच कोष जीत राजा, आप जीवन मुक्त हुए, विषय-वासना दूर करी, योगियों में चुक्त हुए, तीन पुत्र जिनके त्यागी, ज्ञानी मन्त्र युक्त हुए, जड़ भरत ज्ञान तलवार की, रहुगण धोखा खाया ना ।।4।। सूर्य का सारथी अरूण, त्रिया का ना सत्संग किया, राक्षसों मे बत्रासुर नै, स्त्री को त्याग दिया, देवता तै युद्व करकै, मरती बार स्वर्ग लिया, कण्व ऋषि जति हुये, वीर्य को डिगाया नहीं, कपिल मुनि ब्रह्माचारी, विषय तो जगाया नहीं, शील गंगे भीषम के-सा, प्रण तो पुगाया नहीं, करी हित चित से रक्षा परिवार की, पड़ी विषय रूप-छाया ना ।।5।। दस दिगपाल जती, पृथ्वी का संहार करै, अष्ट वसु ग्यारा रूद्र, बारहा सूर्य प्यार करै, महाप्रलय तक की आयु तक का, फेर शिवजी संहार करै, यह कथा सुणकै नै, शुकदेव मुनि प्रसन्न हुए, देखकै नै ढंग गुरू, मानसिंह आनन्द हुए, चरणों मै लौलीन दास, शिष्य लखमीचन्द हुए, ध्रुव-इन्द्र अग्नि-कश्यप सार की, विधि बिन आसन लाया ना ।।6।। और क्या समझाता है पूर्णमल- पिता के हुक्म से शवयम्भू मनु नै, शतरूपा कन्या ब्याही, ग्रहस्थ धर्म का पालन करणा, प्रथम रीत बताई ।। टेक ।। पिता के हुक्म से कर्दम जी नै, सहस्त्र वर्ष तक भजन किया, एक श्रेष्ठ स्त्री मिलै मेरे को, श्री विष्णु से वरदान लिया, बिन्द सरोवर पै तप करकै, देहूती के बणे पिया, ग्रहस्थ धर्म का पालन करकै, फिर दुनियां को त्याग दिया, कर्दम ऋषि की नौ कन्या, नौ ऋषियों कै परणाई ।।1।। पिता के हुक्म से वश्ष्ठि जी नै, जती धाम कर नीत लिया, एक सौ एक बेटे पोत्यां सुध, ग्रहस्थ आश्रम बीत लिया, अरून्धती पतिभर्ता स्त्री नै, हरी कीर्तन गीत लिया, शान्ति रूप बण श्रेष्ठन भोजन कर, काम-क्रोध को जीत लिया, मह जनतप सत लोकां के अन्दर, उन्है जगह मिली मन चाही ।।2।। बावन जनक हुए दुनियां म्य, राज करया भोगी रानी, कर्तव्य कर्म को करते रहे, देह होते भी देह ना जानी, ग्रहस्थ धर्म का पालन कर, सिद्व होगे पूरे ब्रह्मज्ञानी, ईश्वर में लौलीन रहे पर, शादी बुरी नहीं मानी, हरिश्चंद नै सुत के कारण, कौण बिपत ना सिर पै ठाई ।।3।। ऋषि जरुत्कारू हुये दुनियां म्य, सिद्व होगे पूरे ब्रह्मचारी, पित्रों को जल नहीं मिल्या, झट शादी की करली त्यारी, नाम से नाम स्त्री देखी, नागिन मिली जरुत्कारी, फेर पित्रों को प्रसन्न करकै नै, ब्याधा मेट लई सारी, आस्तिक पुत्र हुए जिनके, जिन्हें सर्पों की बन्ध छुटाई ।।4।। एक सत्यवती के उदर में से, ब्यास हुये विष्णु की कला, पैदा होते ही भजन करण गये, किसी तरह दिल नहीं हिला, जन्म के बखत की बात याद कर, फेन जननी नै लिया बुला, दुनियां की सब रीत भोगकै, हटकै दिया कुरू वंश चला, लखमीचन्द धर्म पालन करो, जीवन मोक्ष मिलै भाई ।।5।। और आगे समझाता है- मनुष्य जन्म लेकर कै, हरी गुण गाणा चाहिए, देह की खातिर विषय भोग से, ध्यान हटाणा चाहिए ।। टेक ।। विषय भोग तो विष्टा भोजी, बराह तलक भी मिलते, श्रेष्ठ चीज दुनियां में तप है, जो मार्ग सिर चलते, तप से अन्त:करण शुद्व हो, दुख देही के टलते, जब शुद्व हो अन्त:करण, सतचित आन्नद के रंग खिलते, ऋषि-महात्मा जन लोगों का, कहा बजाणा चाहिए ।।1।। भाई-बंध और कुटम्ब-कबीला, मात-पिता सुत-दारा, अपना-उसका तेरा-मेरा, यो सब झूठा परिवारा, विषय भोग के फन्द में फंसकै, कुछ ना चालै चारा, अन्त:करण पै मैल चढै, बणै बोझ भरोटा भारा, बस इसको नरक कहैं दुनियां में, गात बचाणा चाहिए ।।2।। ऋषि-महात्मा उनको कहते, जो सह्रदय सभी को लखते, शान्ति स्वरूप बण श्रेष्ठ भजन कर, सदाचार गुण रखते, बणखंड की गर्मी-सर्दी देही पै, दंड भुगत कै पकते, अन्धकार दुख तेज स्वरूप सुख, मुख से ना कहै सकते, अपना-पराया दुख-सुख, सब कुछ एक समान चाहिए ।।3।। सब जीवों में जो मैं ईश्वीर हूं, वो उड़ज्या जीव आत्मा। जानों, मुझमें प्रीत करो प्रेम से, सो ही पुरषार्थ मानो, विषय-वासना इस दुनियां से, अलग राखणी ठानों, देह के दुख दूर करने को, धन लक्ष्मी से मन तानों, कहै लखमीचन्द ऋषि महात्मा, उन्हे बताणा चाहिए ।।4।। जब रूपेशाह दीवान पूर्णमल को समझाने की कोशिश करता है तो पूर्णमल रूपेशाह दिवान को क्या कहता है- बिघन की खिडकी खोलै मतन्या, मेरे जिगर नै छोलै मतन्या, रूपेशाह घणां बोलै मतन्या, पड़ो सगाई झेरे में ।। टेक ।। जितने मात-पिता सुतदारा, यू दुनिया का दून्ध-पसारा, इन तै न्यारा कती रहूंगा, ना करकै भंग मति रहूंगा, गुरू की दया तै जती रहूंगा, न्यू आ री मन मेरे में ।।1।। मनै ना कायदे तै भगणा सै, मीठा बणकै ना ठगणा सै, मुश्किल लगणा सही ध्यान का, हरदम खतरा रहै ज्यान का, ह्रदय में दीपक चसै ज्ञान का, क्यूकर रहूं अन्धेरे में ।।2।। सतगुरू जी के पां धोउंगा, कोन्या बीज बिघ्न का बोउंगा, रोउंगा तै नहीं हंसया जा, भक्ति तै दिल सख्त कस्या जा, जाण बूझ कै नहीं फंसया जा, मोह-ममता के घेरे में ।।3।। मानसिंह भोगै ऐश अन्नद, कटज्या जन्म-मरण के फन्द, यो घड़कै छन्द गावणां दिखै, चलता रहै सोये पावणा दीखै, लखमीचन्द नै आवणा दिखै, लाख चौरासी के फेरे में ।।4।। पूर्णमल को उसकी मौसी से मिलने के लिए भेजा जाता है। जब पूर्णमल दरवाजे पर पहुंचता है तो बांदी रानी को बताने के लिए जाती है और बान्दी रानी को क्या कहती है- खड़या हुआ घणी देर का, तेरा पूर्ण राजकुमार, री! पुचकार ले जा कै ।। टेक ।। पूर्ण डयोढी उपर कूक्या, बैरण तेरा जीवडा क्यूं ना दूख्या, भूखा सै मां की मेर का, लिये सौ-सौ रूके मार, री! पुचकार ले जा कै ।।1।। किसे तू पैर धरै थम-थम कै, री तेरा गजब सितारा चमकै, जाणू दमकै चेहरा शेर का, चन्दा की उणिहार, री! पुचकार ले जा कै ।।2।। झगड़े छोड़ धूप-छाया के, कटज्यां रोग सकल काया के, तेरे धन माया के ढेर का, खुल्या पड़या बजार, री! पुचकार ले जा कै ।।3।। लखमीचन्द रटया कर राम, तन के झगड़े मिटैं तमाम, यो काम नही सै फेर का, जल्दी करो विचार, री! पुचकार ले जा कै ।।4।। पूर्णमल के आने की सूचना पाकर रानी दौड़ती हुयी आती है- बेटे की सुण भाजी आई, दस-पन्दरा ढंग धरकै, पूर्णमल के दर्श करण की, समय मिली सै मरकै ।। टेक ।। पहलम तै रानी के दिल म्य, ख्याल नहीं था गन्दा, डयोढी उपर खड़या देख लिया, पूनम केसा चन्दा, पूर्णमल का रूप सवाया, यो रानी का रंग मन्दा, पकड़ कालजा बोचण लागी, पड़या इश्क का फन्दा, जैसे किसी शिकारी नै, दिया मार दुगाड़ा भरकै ।।1।। पूर्णमल का रूप देखकै, चौट कालजै सहगी, कौण खींचकै काढण लाग्या, ज्यान फंद म्य फहगी, बेमाता की गलती तै, मेरे कसर भाग म्य रहैगी। मेरी जोड़ी जोगम-जोग मिलै, मैं भूल कै बेटा कहगी, बेटे आला हरफ राम जी, मत फेर कढाइऐ फरकै ।।2।। पूर्णमल तेरा रूप देख कै, प्रेम गात म्य जागै, अकलमन्द दिन सुख तै काटै, मूर्ख डूबण भागै, कितने दिन म्य सुणी राम नै, आज भाग मेरा जागै, जोट पति तै ना मिलती, हम सुसर-बहु से लागैं, बूढा पति में सिवासण ब्याहता, न्यूं के मरया जा घिरकै ।।3।। करदे पूरी आस बणै नै, मेरी नणंद का भाई, तेरे कैसा मर्द मिलै तै, होज्या सफल कमाई, मात-पिता के आगै मेरी, कुछ ना पार बसाई, डूब गये मां-बाप लोभ म्य, बूढे के संग ब्याही, कहै लखमीचन्द बेटा कहगी, मैं तनै भूल-बिसर कै ।।4।। पूर्णमल अपनी मौसी नूणादे को क्या कहता है- तेरा पूर्ण पूत खड़या जड़ म्य, किसनै घूंघट ताण दिखावै सै ।। टेक ।। एक बर बेटा कहकै नै बोल, क्यूं तन कर लिया डामांडोल, पड़ै औली-सौली झोल तेरी कड में, तू पुचकारै सै के बहकावै सै ।।1।। कुछ तै कर बेटे की री गौर, बदलगी क्यूं तोते बरगा त्यौर, जाणू नाचै मोर सामण के झड़ म्य, किसनै करण नाच सिखावै सै ।।2।। कुछ तै कर बेटे की ख्यास, करै नै ईश्वर का भजन तलाश, चलै लाम्बे-लाम्बे सांस तेरे धड़ म्य, क्यूं तिरछी नजर लखावै सै ।।3।। लखमीचन्द कहै छन्द की कली, सब ईश्वर कर देंगे भली, जैसे फली तू लागरी केले की घड म्य, बिन माली किसनै तोड़ चखावै सै ।।4।। पूर्णमल अपनी मौसी नूणादे को समझाता है- तेरा क्यूकर खोट बतादूंग्या, मनैं खोटी करी कमाई री मौसी] उलटे लक्षण कलू काल के, न्यू ऋषियों नै बतलाई री मौसी ।। टेक ।। ब्राह्मण-क्षत्री कर्म छोड़दे, शुद्र सेवा शर्म छोड़दे, पतिव्रता भी धर्म छोड़दे, झूठी करैगें बड़ाई री मौसी, गऊ माता मर्याद छोड़दे, काटैगे गला कसाई री मौसी ।।1।। दाता करणां दान छोड़दे, विप्र वेद सम्मान छोड़दे, ध्रुव भक्त स्थान छोड़दे, या कलू काल की राही री मौसी, गंगा छोड़ चली जा शक्ति, देगा नीर दिखाई री मौसी ।।2।। सर्प छोड़दे मणी के बल नै, मृग तजदे कस्तूरी नस्ल नै, सूर्य छोड़दे भूण्डल नै, ना तेजी रहै रूशनाई री मौसी, क्षत्री छोड़ भाज ज्यां रण नै, शुद्र करैंगे लड़ाई री मौसी ।।3।। गुरू मानसिंह आनन्द छोड़दे, लखमीचन्द भी छन्द छोड़दे, भौंरा फूल की गन्ध छोड़दे, छोड़दे ऋषि समाई री मौसी, पर पूर्णमल तेरा धर्म तजै ना, कर कितनी-ऐ लोग-हंसाई री मौसी ।।4।। पूर्णमल अपनी मौसी नूणादे को क्या कहता है- मां बेटे पै जुल्म करै, तू देख राम के घर नै, पतिभर्ता एक सार जाणती, छोटी-बडी उमर नै ।। टेक ।। रावण के बेटे की बोडिया, नार सलोचना प्यारी, पति की भुजा कटी पड़ी महल म्य, रोई दे किलकारी, अर्थ जुड़ा कै गई दलां मैं, उड़ै सेना जुड़गी सारी, धर्म के कारण रामचन्द्र नै, हाथ जोड़ पुचकारी, उस पतिभर्ता के सत के कारण, हांसी छुटी कटे सिर नै ।।1।। सावित्री सत्यवान पति नै, आप ढूंढ कै ल्याई, वर्ष दिन भीतर मर लेगा, नारद नै कथा सुणाई, पतिभर्ता का धर्म समझ कै, औटी खूब तवाई, लकड़ी काटण गये पति जब, कजा शीश पै छाई, सत के कारण धर्मराज पै, ल्याई छुटा कै वर नै ।।2।। इन्द्रानी-ब्रह्माणी-लक्ष्मी, अनसूईया की भी गिणती, दमयन्ती-मदनावत हर का, तू जिकर सदा से सुणती, कौशल्या दशरथ की रानी, सूत रामचन्द्र से जणती, विषय नै त्यागै भजन मैं लागै, जब पतिभर्ता बणती, जैसे मीराबाई पार उतरगी, पूज पति पात्थर नै ।।3।। लखमीचन्द जिसे कर्म करै, के भौगे बिना सरै सै, तेरे केसी बेईमाना का, के बेड़ा पार तरै सै, डूब गई मां होकै नै, खुद बेटे पै नीत धरै सै, आगै भी ना पति मिलै जोडी का, जै इसे कर्म करै सै, नर्क म्य कूंड मिलै कीड़या की, तेरे खाज्यां चूट जिगर नै ।।4।। नूणादे और पूर्णमल की आपस में कैसे वार्तालाप होती है- आत्मा नहीं सताया करते, अपणे के-सी ज्यान करकै, भाईया की सूं मान कहे की, के लेगी नुकसान करकै ।। टेक ।। रानी :- टूटैगी जै घणी खिचज्यागी, बचण की चीज आप बचज्यागी, तेरे होठां पै लाली रचज्यागी, खाले देसी पान करकै !!1! पूर्ण :- मौसी ईश्वर में चित लाले, बिगड़या जा सै धर्म बचाले, बेटा कहकै पास बिठाले, मेरे पै एहसान करकै !!2! रानी : सारे बोल कहैं सैं लिटटे, दोनूं होठ पहर भर पीटटे, मेरै लागै तेल के-से छिटटें, तू समझावै ज्ञान करकै !!3! पूर्ण :- जग प्रलय म्य के कसर रहै सै, जब मां बेटे नै खसम कहै सै, आड़ै ज्ञान गंग की धार बहै सै, क्यों ना खुश होले अस्नान करकै !!4! रानी :- रंग भररया केले के-सी गोभ म्य, बारूद भररी जाणू तोब म्य, मेरे मात-पिता गये डूब लोभ म्य, शंखपति सलेभान करकै !!5! पूर्ण :- जै मां कायदे तै घटज्यागी, डोर तेरे हाथां तै छुटज्यागी, दुनिया में डुन्डी पिटज्यागी, सुन लिए मौसी कान करकै !!6! रानी :- जाणै कित किस्मत पड़ सोगी, होणी मार्ग में कांटे बोगी, तनै देखकै बेकाबू होगी, चन्द्रमा की शान करकै !!7! पूर्ण :- गुरू मानसिंह छन्द नै घड़ज्या, मौसी तूं शुभ कर्मां पै अड़ज्या, सतगुरू के पायां म्य पड़ज्या, पक्का एक इमान करकै !!8! रानी :- लखमीचन्द कायदे तै नहीं घटूंगी, मैं वचनां तै नहीं हटूंगी, पूर्णमल तेरा नाम रटूंगी, त्रिलोकी भगवान करकै !!9! अब नूणादे पूर्णमल को क्या कहती है- आ खेल घड़ी दो-चार, या चौपड़ सार बिछाई, घाल हाथ म्य हाथ, बैठज्या नाड़ झुकाकै ।। टेक ।। इतणै मेला बिछड़ले, काणी की त्यारी हो, ज्यूं-ज्यूं भिजै काम्बली, त्यों-त्यों भारी हो, पड़या नौ बीघां का क्यार, घली ना एक हलाई, बीज पड़या ना खात, बैठग्या टेम उकाकै !!1! सारी दुनिया कहया करै, हो हथियार औसाण का, बीत्या जा सै बखत भाई की सूं खेलण खाण का, न्यूं रोऊ सूं सर मार, बता के खेली खाई, खोली जात-जमात, सहम देईधाम धुकाकै !!2! चाहे किसे नै बुझ लिये, सै बान्दी मेरी गवाह, घर आई नागण पुजिये, क्यूं बम्बी पूजण जा, मैं कर सोला सिंगार, महल में बैठी पाई, ले फेरे छ: सात, नफा के बरात ढुकाकै !!3! लखमीचन्द का शेर कैसा चेहरा पर किस्मत का बोदा, कर्मां करकै मिला करै सै, सगा और सौदा, ये मर्द घणे होशियार, जगत में दुखी लुगाई, करैं हठ धर्मी की बात, मार दें सुका-सुकाकै !!4! रानी नूणादे पूर्णमल को क्या कहती है- मैं हूर परी, के उमर मेरी, वा मात तेरी, तू जिसके पेट पड़या ।। टेक ।। गमी का नाम धर दिया शादी, डूब गये मात-पिता जिननै ब्याहदी, गल लादी लागर कै, रतनागर कै, मुझ सागर कै, पति पल्लै लेट पड़या ।।1। तनै दई मार रेख मैं मेख, लादी काचे घा मैं सेक, एक रश्म बिना, और कसम बिना, आड़ै खसम बिना, किसा मलियामेट पड़या ।।2। सच्चे दिल तै लाइऐ प्रीति, तनै हंस-खेलकै काया जीती, उम्र बीती दुख-सहते, यहां रहते, मां कहते, तेरा क्यूकर ढेठ पड़या ।।3।। लखमीचन्द छन्द नै धररया, मेरा जी खेलण नै करग्या, रस भररया बीच फीणी कै, मुझ हीणी कै, इस सिंहणी कै, तू गादड़, फेट पड़या ।।4। पूर्णमल अपनी मौसी को क्या कहता है- क्यू दिल के अन्दर भूल पड़ी री, मैं पासंग तू एक धड़ी री, घूंघट करकै हुई खड़ी री, मुखड़ा फेर कै ।। टेक ।। यो सब सौदा अप-अपने कर्मां, मिलै नै तेरे पास खड़या चन्द्रमा, तनै ब्रह्मा-विष्णु-शिव कर-नी लूं, तेरे पायां म्य पड़कै जी लू, चरणांव्रत बणांकै पीलूं, माँ जल गेर कै ।। रही थी मां बेटे बिन तरस, करकै नैं पूर्ण सुत के दर्श, मनै बारा बर्ष हुए टलते-2, ये दिन आ लिये चलते-चलते, जैसे आन्नद होणां था खाजा मिलते, बणके शेर कै ।। बात करै नै गुरबत कैसी, घूंट भरै नै शरबत केसी, पर्वत कैसी आड करै नै, दिल कपटी मै ठाड करै नै, पूर्ण सुत के लाड करै नै, मां फूल बखेर कै ।। लखमीचन्द तज बात बैर की, चन्दन तैं क्यू डाली बणै कैर की, तनै एैर-गैर की ढालां तक लिया, गुरू का बोल क्यों ना जिगर मैं लिख लिया, माता-माता कहकै छिक लिया, सौ बर टेर कै ।। रानी नूणादे व पूर्णमल के आपस में क्या सवाल-जवाब होते हैं- किस नै मात कहै सै, बिचल रही मैं और दर्द म्य ।। टेक ।। रानी :— ईश्क बली नै ज्यान सताई, राम आज देग्या मनै दिखाई, मर्ज की मुश्किल मिलै दवाई, मैं कटरी इश्क कर्द म्य !!1! पूर्ण :— मेरी तू सुणले बात ज्ञान की, तृष्णा चलै म्हारे-तेरे ध्यान की, पिता सुलेभान की पाग, मिलावै क्यूं आज गर्द म्य !!2! पूर्ण :— मौसी काम छोड बुरा छल का, क्यूं मेरै झाड़ बणै सै गल का, सुभा जाणै सै तूं गर्म जल का, शीला हो सै सर्द म्य !!3! रानी :- लखमीचन्द इसे छन्द धरै सै, क्यूं ना बात का ख्याल करै सै, जब खड़या माशूक मरै सै, बता कित अकल मर्द में !!4! रानी नूणादे पूर्णमल को अब क्या कहती है- पूर्णमल तू कुणसे ढंग म्य, मैं भर री सू चाव-उमंग म्य, मेरी तेरे पिता के संग म्य, जोड़ी ना मिलती ।।टेक ।। यू धनमाल आपकी खातर, तू इसका मालिक बणज्या चातर, पाथर तेरै प्रेम ना जागै, कुछ कहै दयू तै डर भी लागै, भाइयां की सूं तेरे आगै, मेरी काबू ना चलती ।।1। तू कहरया सै बोल दर्द का, मेरै होरया सै जखम कर्द का, बीर-मर्द का करले नाता, बूढा बालम सिवासण ब्याता, डूब गई बैरण बेमाता, म्हारी जोड़ी ना बलती ।।2। तूं हीरा ना फूटण जोगा, मेरा मौका विष घूटण जोगा, उठण जोगा होंश नहीं सै, चलण-फिरण का जोश नहीं सै, तेरा तै कुछ दोष नहीं सै, मेरे कर्मां की गलती ।।3। लखमीचन्द जिगर म्य धो ना, छोड़ी मै जीवण जोगी कोन्या, मोह ना मेरा बाप-भाई म्य, घिरकै मरगी करड़ाई में, जो जामैगी शरदाई म्य, वा बेल फूल फलती ।।4। रानी नूणादे पूर्णमल को क्या कहती है- जिसकी कूख से जन्म लिया, तू उसनै कहिऐ माता, जुल्मी जोबन कामदेव, मेरे ना काबू मैं आता ।। टेक ।। नरक बीच मैं दरजा होगा, मेरी बात मोड़ी का, मेरी उमर सै 18 साल की, तू सै मेरी जोड़ी का, पूर्णमल तू झटका ले ले, इस जिन्दगी थोड़ी का, कसी कसाई खडी ठाण पै, हो चढणिंया घोड़ी का, दया करकै दिये तप्त बुझा, तू क्यूं ना पाणी प्याता ।।1।। एक पहर की नूणादे, न्यूं कद की सिर पटकै सै, छाती जलगी मेरी न्यूऐ, तू दूर खड़या मटकै सै, तेरी श्यान नै देख-देख कै, मेरा जी भटकै सै, रूत पै मेवा पाक रही, या नीचे नै लटकै सै, सेब-सन्तरे अंगूर-दाख, क्यू ना सूआ बणकै खाता ।।2।। मेरा इस तरियां रहा रूप चमक, बिजली चमकै घन मैं, मीठे-मीठे बोल इसे जाणूं, कोयल कूकै बन मैं, तेरी चन्दा केसी श्यान देख, मेरै उठै लोर बदन मैं, बूढे तै थी भली कंवारी, दुख होया जवानीपन मैं, मैं पल्ला पसारू तूं भीख घालदे, मैं भिक्षुक तू दाता ।।3।। बिशवे तीन मर्द मैं हों सैं, सतरा बीसवे नारी, बीर-मर्द की जोट मिलै, न्यू कहैं ऋषि ब्रह्मचारी, तोशक-तकिए लाग रहे, और बिछरे पिलंग निवारी, कहै मानसिंह ख्याल करै नै, तेरी क्यूँ गई अक्कल मारी, नीर गेर कै तप्त बुझादे, न्यूं लखमीचन्द कथा गाता ।।4।। पूर्णमल रानी नूणादे को क्या कहता है- देखकै पूर्णमल की श्यान, डूबगी क्यूं खुद जननी माई ।। टेक ।। धर्म का झण्डा तार बगा लिया, तनै काया में इश्क जगा लिया, डिगा लिया खुद बेटे पै ध्यान, कहण लगी नणदी का भाई ।।1।। तनै बोलां की मारी कर्द, क्यूकर करलूं सीना सर्द, मेटदे दर्द पिता सलेभान, डाण तू जिस दुख नै खाई ।।2।। मौसी तेरा बोल जिगर म्य दुखैगा, पूर्णमल धर्म तै ना चुकैगा, तनै के थुकैगा सारा जगत जहान, चांद कै तू लावै सै स्याही ।।3।। लखमीचन्द कली धरै चार, मौसी लिये सब्र शान्ति धार, सिर मार मरे लुकमान, बहम की कितै दारू ना पाई ।।4।। रानी नूणादे पूर्णमल को अब क्या कहती है- मेरे जिगर मैं खटकै सै, तेरी सूरत भोली-भोली, मंगती करकै भीख घालदे, मांगू सू कर झोली ।। टेक ।। मै क्यूकर बैठू दुंख नै खेकै, मरणा होगा तेरा ना लेकै, इश्क जले नै डाका देकै, लूट लई दिन धोली ।।1।। इन बातां का ना होया तोड़ सै, ओटया गया ना दर्द खोड़ तै, मरज्याणे तनै मेरी ओड़ कै, नजर फेरली क्यूँ औली ।।2।। तेरा ध्यान कड़ै फिररया सै, मेरा माणस सा मररया सै, तू लेकै पास लकोह कररया सै, मेरे मर्ज की गोली ।।3।। लखमीचन्द ना बुरी बकण दे, ना कदे उंच और नीच तकण दे, ना धरती पै पैर टिकणदे, या छ: ऊतां की टौली ।।4।। पूर्णमल रानी नूणादे को क्या कहता है- मौसी थर-थर कापैं तेरा गात, री! तू कई बर होली पड़ण नै ।। टेक ।। संगवाले तेरे दोनू पल्ले री लटकणे, मौसी ये तन माट्टी के री मटकणे, सबकी एक माटी की जात, री! वो एक रूखाला घड़ण नै ।।1।। तेरा पूर्ण पूत खड़या टहल म्य, मेरा पिता री कहै था जा रंग महल म्य, तू अपणी मिल मौसी के साथ, री! के बुलाया था मां लड़ण नै ।।2।। के तू बेटे तै शरमा गई, के वाहे बात समझ में आ गई, जुणसी हो बीरां की लुहक्मा बात, री! मर्दां की बुद्वि हड़ण नै ।।3।। लखमीचन्द कमल केसा फूल सै, जै कुछ पूर्णमल की भूल सै, मौसी मेरा सिर तेरा हाथ, री! मगज म्य चटटू जड़ण नै ।।4।। पूर्णमल रानी नूणादे को क्या कहता है- मौसी आगै बेटा-बेटी, जगह दास की हो सै, बेईमाने नै इश्क बतावै, बेल नाश की हों सैं ।। टेक ।। नौ दरवाजे चौगरदै, नित्य रहै अधारै तन कै, दस इन्द्री और पांच विषय, नित्य रहै आसरै मन कै, दुनिया के सब दृष्ट पदार्थ, दूर करो गिन-गिन कै, काम-क्रोध मद-लोभ तज, बस रहणा हरि भजन कै, जीव नै ब्रह्म का ज्ञान होणे से, ठीक आश्की हों सैं ।।1।। मात-पिता और बेटा-बेटी, जितने नेग व्यवहारी, श्री रामचन्द्र जी मर्याद बान्धगे, बरतै दुनिया सारी, चार वर्ण मनू जी नै बान्धे, उंच-नीच की बारी, जै नहीं मनू मर्याद बान्धते तै, कौण पुरूष कौण नारी, चेतन जीव ज्ञान के द्वारै, सनन्ध पास की हों सैं ।।2।। गुरू की सेवा ईश्वर भक्ति, ज्ञान की माला गल म्य, आच्छा सत्संग साधू की सेवा, दया राखणी दिल म्य, तत्व ज्ञान से दिल का दाग धो, ज्ञान गंग के जल म्य, लगा समाधि तुरिया पद की, आगा सूझै पल म्य, खींच कपाली दसवे द्वारै, जड़ै रोक सांस की हों सैं ।।3।। ॐ भूर्भुवः: स्व: महर लोक तक दिन गिन न्यारे-न्यारे, ब्रहमा विष्णु शिवजी तक के कल्प भूलज्या सारे, जन तप सत मह लोको के बीच में जीव ब्रहमा के प्यारे, लखमीचन्द चसै ज्ञान के दीपक जहां रवि शशि ना तारे, जो जीव ब्रहमा की करै एकता मोक्ष खास की हों सै ।।4। पूर्णमल अपनी मौसी को कैसे समझाता है- तू कहरी पूर्णमल, मेरा लाल नहीं सै, डूबगी जननी इज्जत का, ख्याल नहीं सै !!टेक! मौसी :— मैं तनै वचन कहूं सू साच्चा, गोरा बदन गोभला काच्चा, मनै तेरे तै आच्छा, कोए धन माल नहीं सै !!1! पूर्ण :— मैं सोचू सूं सभी तरहा की, परिंदी मत बण बिना परां की, जुणसी चालै वा राजघरां की, चाल नहीं सै !!2! मौसी :— डिबिया तेरे रोकण की घड़वा दयूं, सूरत शीशे मैं जड़वा दयूं, इस जोबन के आगै अड़वा दयूं, इसी ढाल नहीं सै !!3! पूर्ण :— जिगर म्य दर्द बोल तेरयां का, पिता मेरा गुनाहगार फेरया का, जडे कै रस्ता हो शेरां का, धोरै श्याल नहीं सै !!4! मौसी :— जै पति तेरे के-सा वर लेती, भाई की सूं इतने म्य सर लेती, मुरगाई बण तर लेती, गहरा ताल नहीं सै !!5! पूर्ण :— झोपड़ियां म्य सोवै महलां के सपने, चाहिए नाम हरी के जपणे, तनै पराये और अपणे, की सम्भाल नहीं सै !!6! मौसी :— लखमीचन्द इसे छन्द धरै सै, बदी करण तै घणा डरै सै, भतेरी दुनिया रोज मरै सै, मेरा काल नहीं सै !!7! रानी नूणादे पूर्णमल को क्या। कहती है- बूढा बालम बीर सवासण जतन कोण्सा मैं करूं जले, तनै मेरी ओड का फिकर नहीं मैं तेरी खटक मैं मरुँ जले ।।टेक।। दे पाणी सर सब्ज बिना, बिन माली चमन पड़या सूका, लाचारी पर्वत तै भारी सबर का मार लिया मुक्का, जै घणी खुशामद का भूखा तेरे पांया मै ओढणा धरूं जले ।।1। बडे बडया नै इश्क कमाया, तू कित सी रहगया बाकी , बिन मांगे तनै चीज मलै, तेरी सरा सर नालाकी, सोजया सेज बिछया राखी, तेरै मुटठी चाकी भरू जले ।।2। मैं इश्क नशे मैं चूर हुई मनैं पीली दिखै सै धरती, भीतरले की बात बता दी तेरै एक भी ना जरती, रात दिनां तेरी सेवा करती तेरे आगै-2 फिरूं जले ।।3। लखमीचन्द डरै मतन्या तेरे ना की ल्यू ओट बुराई, बुढा पति सवासन ब्याता ना होती मन की चाही, छकमा लाफ रजाई करली फेर भी जाडे के मा मरूं जले ।।4। रानी पूर्णमल को धमकाती है और क्या कहती है- पूर्णमल तू सूणता जाईये, नूणादे की बात, बदला ले ल्यूं-चीर रंगाल्यूं, तेरे खून म्य !!टेक! मनै कोए और चीज ना चाहती, तू बणज्या नै मेरा हिमाती, जब मैं साथी तनै और के चाहिये, हाजिर सै मेरा गात, तावला सा आज्या, माणस आली जून में !!1! क्यूकर दिल में धीरज धरूं, बता इब जतन कौणसा करूं, मैं मरू तिसाई तपत बुझाईये, कर मनचाही बरसात, दर्द इश्क जले नै, दई भून मैं !!2! मनै पड़ै नाम गैर के जपणे, दिखै प्राण मुफत में खपणे, मनै अपणे हाथां उढा-पहराइये, टूम-ठेकरी नाथ, लिपटरी रेशम लच्छी, या ऊन में !!3! कहै लखमीचन्द कर्म की हाणी, पड़ै गैरां की टहल बजाणी, करू ताता पाणी तूं मल-मल न्हाइये, मैं फेरूंगी हाथ, मिलाकै नै केशर-मटणे, आले चून मै !!4! मौसी की धमकी सुनकर पूर्णमल उसको समझाता है और आपस मे क्या बात होती हैं- तेरे बोलां की मेरी छाती के म्हा, करड़ी दाब सै, देदे मेरा रूमाल क्यूं तेरी, अकल खराब सै ।। टेक ।। पूर्ण :— मौसी के सोवै क्यूं ना जागै, क्यूं ना बदी का रस्ता त्यागै, चलै जब धर्मराज के आगै, मेरा महरूम जवाब सै ।।1।। मौसी :— पूर्ण तनै अकल भूल में खोई, जले तू सै पक्का निर्मोही, तू भौरा बणकै ले खशबोई, रूत पै फूल गुलाब सै ।।2।। पूर्ण :— बूरा तै क्यूं जगह बणै छाणस की, विधि क्यूँ तोड़ै आणस की, मौसी दुनिया म्य माणस की, मोती बरगी आब सै ।।3।। मौसी :— कर दिया इश्क बली नै चाला, क्यूकर बोलू आवै सै तिवाला, तनै कोड रोप दिया चाला, मैं शाकी तूं पीवण आला, बोतल बीच शराब सै ।।4।। पूर्ण :— तू तै झूठी नार सती सै, तेरे मैं अक्ल का ना खोज कती सै, यो तेरा पूर्ण पूत जती सै, क्यों तोड़ै व्रत कवाब सै ।।5।। मौसी :— कुछ निभज्या तै पर्ण निभादे, ना तै मनै कूए बीच धकादे, जै प्यासी नै पाणी प्यादे, इसमें के ऐब-सबाब सै ।।6।। पूर्ण :- लखमीचन्द छन्द नै तोलण आला, गुरू की सेवा में डोलण आला, पाणी का नाका खोलण आला, कोए और जिले-साहब सै ।।7।। मौसी :- तनै मेरी एक बात ना मानी, खोऊगी चन्दा सी जिन्दगानी, या तेरे नां की राजधानी, तू इसका भूप-नवाब सै ।।8।। पूर्ण :- लखमीचन्द जख्म बोल तेरयां का, मेरा पिता गुनाहगार तेरे फेरयां का, जडे कै रस्ता हो शेरां का, गादड की के ताब सै ।।9।। पूर्णमल को नूणादें दोबारा धमकाती है और क्या कहती है- पूर्णमल तेरे खून म्य, मैं अपणा चीर रंगाल्यू ।। टेक ।। कहे की ना मान्या कही भेतेरी, पुतली मनमोहिनी भी फेरी, गेरी इश्क जले नै भून मैं, क्यूकर तपत बूझाल्यूं ।।1।। जोबन कमल फूल सा खिलज्या, जै तू अपणी जगह तै हिलज्या, जो तू रेशम मिलज्या ऊन म्य, तनै छाती कै लाल्यूं ।।2।। मुख से बुरी नहीं भाखूं, तनै अमृत करकै चाखूं, ना कसर राखूं मजबून म्य, नया ढंग बणाल्यू ।।3।। मैं बस होगी इश्क-कोढ कै, देख रूई केसा गात लोढ कै, लखमीचन्द छोडकै टके-लकोणे चून म्य, कली छन्द की मिलाल्यूं ।।4।। पूर्णमल अपणी मौसी के कमरे से निकल कर अपनी मां इन्छरादे के कमरे में जाता है तो उसकी मां क्या कहती है- मैं तेरे हंस-हंस करल्यूं लाड, उरे नै हो ममता मेरी ।। टेक ।। बात दो गुण चर्चा की पढकै, रहै था कदे मांस-मुठियां चढकै, कदे तै गडकै आवैं थी टाड, सुखा तन की करली ढेरी ।।1।। बात दो करिये गुरबत के-सी, मीठी बोली शरबत के-सी, इन्द्र नै ज्य लई पर्वत के-सी आड, चांद न्यूं शरण लई तेरी ।।2।। रहूं नित पति चरण की चेरी, अरी क्यूं जन्म दिया मां मेरी, गेरी तनै मीठे कारण काढ, डाण तनै क्यूं जण कै गेरी ।।3।। दुख-विपता की बूम फूटली, लखमीचन्द नै विषधार घूंटली, जब तै छूटली तेरी ठाड, बणी मैं केले तै बड़बेरी ।।4।। अब नूणादें बांदी को पूर्णमल के खिलाफ गवाही देने को कहती है, तो बान्दी क्या कहती है- हे! बेईमान तेरे फन्दे म्य, बता पूर्ण भगत फहै था के ।। टेक ।। पुतली मनमोहिनी फेरै थी, कई बार साजन कहै टेरै थी, जुणसे फन्दे में गेरै थी, बता इस दुख नै कवर सहै था के ।।1।। जाण दे होणी थी सो होली, मनै तेरी बात जिगर की टोली, कईं बार साजन कहकै बोली, बता तनै वो माता नही कहै था के ।।2।। इश्क की फूली धनमाया म्य, तनै लिया रोग जगा काया म्य, चालते बादला की छाया म्य, बता पूनम का चांद गहै था के ।।3।। लखमीचन्द छन्द नै घड़ता, तेरै ना फर्क घड़ी का पड़ता, जब छोरे का धर्म बिगड़ता, होए बिन सत्यानाश रहै था के ।।4।। बान्दी क्या कहती है- पूर्णमल के बारे म्य, ना झूठ कहूं रानी, डूबण की क्यूं सोचै, होकै ओड बड़ी स्याणी ।। टेक ।। मां बेटे पै इश्क कमावै, यो सै अचरज भारी, आज तलक मनै ना देखी, मां-बेटे की यारी, तेरी सुणकै बात हत्यारी, भरया मेरी आंख्या म्य पाणी ।।1।। थारी बीरां की जात इसी, ना बेटे तक की डोली, बता पूर्णमल नै मरवाकै, के तेरी भरज्यागी झोली, या सै अन्धे किसी लठोली, छूटैगी तै फेर नहीं थ्याणी ।।2।। म्हारे-तेरे मैं फर्क घणां, तू रानी मैं बान्दी, पूर्णमल थारे महलां के म्हा, अनमोल चीज चांदी, हुई इश्क नशे में आन्धी, चाहिए लाज-शर्म आणी ।।3।। लखमीचन्द कहै मेरी बातां का, क्यूं नही लगता ज्ञान, यो इश्क नै के जाणै, इसकी बालक उम्र नादान, तेरे केसी बेईमान, करादे दो कुल की हाणी ।।4।। रानी नूणादे राजा को क्या कहती है- म्हारा-तेरा ना बोलण का काम, मरूंगी मनै पड़ी रहाणदे नै ।। टेक ।। मनै तै भाग लिखा लिया हीणां, दीखै विष का प्याला पीणां, सजन मेरा जीणा कती हराम, मंगाकै मनै जहर खाणदे नै ।।1।। पिया मेरे जिये बिन सरज्यगा, मार मेरा सहज रोग मरज्यगा, चिरज्यागा बदन मुलायम, कटीली तेग ताणदे नै ।।2।। यो ना खोट छुपाया छिपणा, दीखै कोए घडी मैं खपणा, अपणा ले घरवासा थाम, कूए मैं पड़ण जाणदे नै ।।3।। मारै नै क्यों हटग्या परै, के मेरे जिए बिना ना सरै, करै गददी के न्याय तमाम, दूध-जल अलग छाणदे नै ।।4।। लखमीचन्द नै भली विचार ली, मैं बेटा-बेटा कहकै हार ली, तारली आबरो सरेआम, मनै कुएं मैं पड़न जाणदे नै ।।5।। राजा बार-बार रानी का हाथ पकड कर उठाता है और क्या कहता है- किसनै कही कसूती बात, रानी पाजी और गुलाम नै ।। टेक ।। हम रजपूत जात के ठाकर, मतन्या मरै कटारी खाकर, के कोए नौकर-चाकर बदजात, तेरे कहे तै नाटग्या हो काम नै ।।1।। मेरी गोरी क्यूं प्रण हार दिया, तेरे पै किसनै दुख-दर्द डार दिया, मार दिया होतै कटाकै दोनू हाथ, भरादूं भूस अलग कढाकै चाम नै ।।2।। क्यूं तूं मेरी नार प्राण त्यागै, बता उस माणस नै मेरे आगै, मनै लागै ना एक स्यात, दुष्ट का सिर उड़ादयू तेरै सामनै ।।3।। मानसिंह गुरू मंत्र दिया पढा रै, तेरा बालम रहा लाड लडा रै, बैठी मौज उड़ा रै दिन रात, रटे जा श्री ठाकुर जी के नाम नै ।।4।। राजा ने रानी से सारा हाल पूछा और क्या कहा- खोलकै बता दे गौरी, पति के आगै सारी, आसणपाटी ले पड़ी, तेरै कुणसी सै बिमारी ।। टेक ।। साधू-सन्त गरीबां पै, मेरी गौरी दया करै थी, मन-तन की सब बात, पति के आगै कहया करै थी, बडी हंसी-खुशी तै रहया करै थी, आज नैनां तै जल जारी ।।1।। साची बात खोलकै कहदे, तेरा फिका चेहरा क्यूं सै, दिवा-बाती नहीं महल म्य, घोर अन्धेरा क्यूं सै, तेरा धरती के म्हा डेरा क्यूं सै, ये तजकै पलगं निवारी ।।2।। बड़े-बड़ेरे कहया करै, थाम हो सो कईं किस्म की, किसे तै ना करो दोस्ती, तोते जिसे जिस्म की, इज्जत ल्यो खुद तार खसम की, इसी हो सै जात थारी ।।3।। कहै लखमीचन्द सांग की राही, के सबनै पाया करै सै, अपणां मन बहलावण नै, दूनिया मुंह बाया करै सै, या के सबनै आया करै सै, गावण की लयदारी ।।4।। रानी नूणांदे राजा सुलेभान को पूर्णमल की शिकायत करती है कि पूर्णमल मेरे महल में आया और मेरे साथ उसने क्या-क्या किया- तेरा पूर्णमल बदमाश मेरे तै लाग्या करण हंगाई ।।टेक। लुंगाड़या की ढा़ल पिया मेरे महला के में आण बड़या, मैं तै उसतै बोली कोन्या वो चार भोर सा होया खड़या, मैं आई थी बाहर लिकड़ कै मेरी तरफ ध्यान पड़या, न्यूं बोल्या री मौसी मेरै तेरी ओड़ का नाग लड़या, बोल्या खेलैंगे चौंपड़ सार, मेरी लिनी पकड़ कलाई ।।1। इसी कसकै कलाई पकडी मेरी सारी चूड़ी छाड दई, मरजाणे गडजाणे नै मेरी आबरो बिगाड दई, वो ठाड़ा मैं हीणी थी मैं गेर कै पछाड दई, कईं जगह पै घटटे होरे मेरी चूंदड़ी भी पाड़ दई, मेरी होई हो पडी सै लाश, तेरे तै ना जागी संगवाई ।।2। मैं बोली रे पूर्णमल तेरा के मतलब सै मेरे तै, वो बोल्या मैं आश्क सूं इश्क करूंगा तेरे तै, मैं बोली रे जल कै मरज्या घर में आग बखेरे तै वो बोल्या के कसर रहै जब लागै हवा चौफेरे तै, तेरा जाइयो सत्यायश मैं के पूर्ण के संग ब्याखही हो ।।3। मैं बोली रे पूर्णमल क्यूं बात करै सै चाले की, वो बोल्या मैं सूआं सूं तू मेवा चाकू डाले की, मैं बोली रे मारया जा जै चढज्यां भेट रूखाले की, वो नाड हला कै न्यूं बोल्या मनैं दहसत ना किसे साले की, गुरू मानसिंह के पास लखमीचन्द‍ नै इसी करी पढ़ाई ।।4। राजा सुलेभान महल में आया तो नूणादे ने पूरा त्रिया-चरित्र रच दिया और धरती में लेट गई। राजा उसको उठाता है और उनके बीच क्या वार्तालाप होती है- राजा : उठ क्यू तलै पड़ी मेरी नार, रानी : मनै मतन्या छेड़ै भरतार, तेरे तै मैं बोल्या ना चाहती, राजा : अन्धेरे-गुब्बार महल म्य, दिवा ना बाती ।। टेक ।। राजा : मैं सब जाणू थारा बीरां का, जुणसा हो मता, रानी : तड़कै पीहर चाली जा, तनै लागज्या पता, राजा : बता के खता होई मेरे तै, रानी : मैं इब तक डटी शर्म तेरी तै, ना अपणे घंरा चली जाती, राजा : घर-घर में चाहे जूत मारले, बाहर मैं माणस पंचायती ।।1।। राजा : बाग-बगीचे महल-बावडी, सब तेरी जायदाद, रानी : तेरे बोलां नै गेर दई, मेरी छाती के म्हा राध, राजा : तेरे तै बाध कूण प्यारा सै, रानी : ले यो राजमहल थारा सै, आड़ै मेरा कोए ना साथी, राजा : इसा किसनै के कह दिया, डाण तू रो-रो डकराती ।।2।। राजा : न्यारे-न्यारे बैठ गये, किसे बान्दर से घर कै, रानी : न्यू तै मैं भी जाणूं यो, पैण्डा छूटैगा मर कै, राजा : ठहर टुक करकै बैठ समाई, रानी : थारी दोनुवां की बणूं लुगाई, मेरी ना ओड बड़ी छाती, राजा : कदे बिना खोट मरवादे, या सीली सै के ताती ।।3।। राजा : लखमीचन्द रंग महलां म्य, किसे रोप दिए चाले, रानी : मैं ईब खोलके गेरूंगी, तेरे सिरगून्दी के नाले, राजा : हटज्या काले मुंह की नाग, रानी : तेरे पूर्णमल नै आग, बालदी गेरकै पाती, राजा : क्यूं लावै इसे भगत कै दोष, मार रही पाप रूप गाती ।।4।। रानी नूणादे पूर्ण के खिलाफ झूठी बात बनाती है और राजा के सामने क्या कहती है- तेरे पूर्णमल बदकार नै, दई मारकै गेर, आज मेरी गैल बुरी करग्या ।। टेक ।। आवतेहे मेरे तै खटकण लाग्या, मैं बोलू थी वो तै अटकण लाग्या, मेरे झटकण लाग्या हार नै, किसा दिवे तलै अन्धेर, मेरा सिर काटण नै फिरग्या ।।1।। ना जी फन्दे बीच फहै था, यू तन ना दुख-दर्द सहै था, न्यूं कहै था खींचकै बाहर नै, दिये छोड पिता की मेर, मनै लिये समझ पति बरगा ।।2।। गले में घल्या विपत का फन्द, मेरे सब छुटगे ऐश-आनन्द, रट लखमीचन्द करतार नै, लुटै धन माया के ढेर, जागज्या क्यूँ जीवताऐ मरग्या ।।3।। मानसिंह भोगै ऐश आनन्द, गुरू दियो काट विपत के फंद, रट लखमीचन्द करतार नै, ना तै लूटै सै माल का ढेर, जागज्या क्यूं जीवताऐ मरग्या ।।4।। रानी नूणादे आगे क्या कहती है- तेरे पूर्णमल बदकार नै, मै मार गिरी, तनै किसा सांड छोड दिया, पाल कै ।। टेक ।। मै बोली जब अटकण लाग्या, आंवते मेरे तै खटकण लाग्या, मेरे झटकण लाग्या हार नै, मैं बहुत डरी, 100 बात हांसियां मै टाल कै ।।1।। शरीर ना दुख दर्दां नै सहै था, ना दिल फन्दे बीच फहै था, मनै न्यूं कहै था खींचकै बाहर नै, बहू बण मेरी, भीतर टोहली मैं दीवा बाल कै ।।2।। कहे बिन नहीं उकूंगी, आज ना मौके नै चूकूंगी, के फूकुंगी तेरे सिंगार नै, ये ले टूम धरी, ठाले अपणी खूब सम्भाल कै ।।3।। गुरू मानसिंह भोगै ऐश आनन्द, मेरै पडया विपत का फन्द, लखमीचन्द रट करतार नै, होले झगडे तै बरी, एक दिन मोंहंडै चढणा सै काल कै ।।4।। रानी नूणादे की बात सुणकर राजा सुलेभान को बडा क्रोध आता है। रानी को धमकाता है और क्या कहता है- कर बन्द जबान रै, चुपकी बदकार होज्या ।। टेक ।। जब मां सेती बेटा खुलज्या, घड़ी कहर की तुलज्या, डुलज्या जहान रै, जै पूर्णमल जार होज्या ।।1।। तूं कुकर्म कान्ही घणी पचती, तेरी ना बात जचाई जचती, क्यों इसा रचती तूफान रै, ठहर ना मोटा त्यौहार होज्या ।।2।। राम करै तेरा भाई मरज्या, जै पूर्ण बे-अदबी करज्या, गिरज्या आसमान रै, खाण्डा मौम की धार होज्या ।।3।। मारूं तेग शीश पड़ै कटकै, घरां बैठज्या बेहूदी डटकै, लखमीचन्द रटकै भगवान रै, इस झगड़े तै बाहर होज्या ।।4।। रानी देखती है की राजा बहुत क्रोधित है, तो फिर पूर्णमल पर दोष धरती है और क्या कहती है- पिया मेरे जिसनै भगत कहै सै, आज मनै बहू बणाणी चाहवै था ।। टेक ।। रानी : मै ना करूं कहण की टाल, उठै सौ-सौ मण की झाल, समझ रंडी-वैश्या की ढाल, वो मेरे हाथ गात कै लावै था ।।1।। राजा : तू तै झूठी नार सती सै, तेरे मैं ना अक्कल का खोज कती सै, मेरा पूर्ण पूत जती सै, तेरे तै कितके इश्क कमावै था ।।2।। राजा : आज बस होग्या कर्म रेख कै, बेमाता के लिखे लेख कै, पूर्ण का रूमाल देखकै राजा, नीची नाड़ झुकावै था ।।3।। रानी : लखमीचन्द छन्द का ख्याल, बोल के करे जिगर म्य साल, पिया यो पूर्ण तेरे का रूमाल, बता कित पड़या सेज पै पावै था ।।4।। सारी बातों को सुनने के बादे राजा सुलेभान पूर्ण को गिरफ्तार करने के आदेश दे देते है, जब ये आवाज पूर्ण के कानों में पडी तो पूर्णमल क्या कहता है- भनक पड़ी थी कानां के म्हा, हिया उझलकै आया, चौगरदे तै घेर लिया, री! धन मौसी तेरी माया ।। टेक ।। इसी औरत के चाहिए थी, इन राजघरां की रानी, मैं दर्शन करण गया मौसी के, ऊँच-नीच ना जाणी, वा कितके दर्शन करकै राजी, बैरण बेटे खाणी, और किसे का दोष नहीं, मेरे पिछले कर्म की हाणी, जाण बुझ मेरा पिता डूबग्या, मैं दर्शन करण खन्दाया ।।1।। मैं जाणू था मां और मौसी, तरण-तारणी हों सैं, मां मौसी का ऐकै दर्जा, काज सारणी हों सै, जो ऊँच-नींच का ख्याल करै, ना व्याभिचारणी हों सै, वेद कहै बेशर्म स्त्री, परण हारणी हों सै, पिता-पूत का ख्याल करै ना, यो अपणा सै कै पराया ।।2।। मेरी मौसी नै करणा था, न्यूएं बेटे का मुंह काला, बेइमाने में सहम डूबगी, कोड रोप दिया चाला, भले घरां म्य आ जन्मै, कोये ओछे कर्मां आला, नीच कर्म तै ऊचं घरां का, नीच भेड़दे ताला, जैसे मेरी मौसी ने इस घर का, कती नाश कराणा चाहया ।।3।। बड़े पुरूष के साथ रहै कोये, छोटा नहीं कहावै, भले पुरूष का सत्संग कर कोये, खोटा नहीं कहावै, ले कै दे कर्जा तारै तै, कदे टोटा नहीं कहावै, बूरे कर्म तै इज्जत बन्द कोए, मोटा नहीं कहावै, लखमीचन्द मौसी के दर्शन करकै, यो फल पाया ।।4।। राजा ने पूर्णमल को तेगे से काटने की सोची। रूपेशाह दिवान ने आकर राजा को रोक लिया। राजा गुस्से में क्या कहते हैं- तनै रोक लिया, क्यों टोक लिया, मनै झोक लिया, क्यूं तेगा थाम लिया ।। टेक ।। इसनै लोग कहैं सै गुणी, मनै इसके रंज मैं काया धुणी, जब तै सुणी कान तै, मारू ज्यान तै, सुलेभान तै, समझ गुलाम लिया ।।1।। यो जाणै फिरता कौण भूख मै, काम नित करता उक-चुक मै, जिसकी कूख में लेटा, बण कै ढेठा, मां संग बेटा, सोच हराम लिया ।।2।। मैं ना आऊ थारे फंड मै, जाणै यो फिरता कौण घमंड मै, डंड में घटगी साख, लिये याद राख, भर तीन लाख, तनै छोडण का क्यूं नाम लिया ।।3।। लखमीचन्द समारो अगत, लिया देख घूमकै जगत, भगत दुनिया तै मरगे, जाणै कड़ै डिगरगे, मंगते फिरगे, बस नहीं गाम लिया ।।4।। राजा सलेभान को क्रोधित देखकर रूपेशाह दिवान कहने लगा कि क्या तीन लाख की बात है। मेरे उपर आपने जो जुर्माना किया है, वह गलत है। रूपेशाह आगे क्या कहता है- जै नही यकीदा हो तेरै, मैं सहज-सहज समझा ल्यूँगा, पूर्णमल के बदले म्य, कसम ज्यान की खा ल्यूँगा ।। टेक ।। जो दंड दिया तुमने, मैं भरने से मजबूर नहीं, तीन लाख के बदले म्य, दस लाख भी दूर नहीं, नूणांदे रानी का मतलब, समझें आप हजूर नहीं, जो कुछ किया रानी नै, पूर्ण का कोई कसूर नही, तिल भर फरक मिलै पूर्ण म्य, तो जबां अपनी कटवाल्यूँगा ।।1।। प्रहलाद को दुख दिया पिता नै, जगत बुराई धरता है, मरती बरियां बन्दे की एक, धर्म सहाई करता है, मैं जाण गया पूर्ण का दिल, बे-खता तबाई भरता है, कभी खबर पटै करै कत्ल पिता, मरै जननी मां न्यू डरता है, जरा खोट पूर्ण में निकले तो, मैं अपणे गल फांसी ला ल्यूंगा ।।2।। न्या-निति और धर्म भूलगे, याद पहलड़ी चाल करो, चुगलखोर औरत के कहे तै, मत इतना जबर कमाल करो, पता हो शहर में पूछो, किसे नै दरियाफ्त सब हाल करो, जरा सा खोट पूर्ण में निकलै, फेर बेधड़क हलाल करो, पूर्ण के बदले गंगा जी म्य, बडकै हलफ उठालूंगा ।।3।। सच मानो अपनी आदत से, नहीं लाचार तेरा पूर्ण, कसम राम की खाता हॅू, कच्चे दूध की धार तेरा पूर्ण, कहै लखमीचन्द इन म्रजों का, नहीं बिमार तेरा पूर्ण, धड़ पर तै सिर काट लिये, मरने को त्यार तेरा पूर्ण, नहीं तै तेग गर्दन पै रखकै, अपणा शीश कटाल्यूँगा ।। अब रूपेशाह राजा को क्या कहता है- अपणी अकल पास म्य कोन्या, कित का छत्रधारी, त्रिया की बातां म्य आकै, रीत भूलग्या सारी ।। टेक ।। सिंध-उपसिंध मां जाए भाई, तिलोतमा नै खोये, श्रंगी ऋषि और दुर्बाशा, विश्वामित्र के मन मोहये, सूरज-सुमरन इन्द्र-चन्दा, इश्क नै खूब डबोये, रावण सरीखे मिले गर्द मैं, बाकी रहा ना कोये, ब्रहमा-विष्णु दक्ष-मनू, खुद शिवजी की मत मारी ।।1।। उतानपात और भूप ययाति, त्रिया नै भरमाये, दो-दो ब्याह करवाकै, पाछै के सुख पाये, चित्रकेतू भूप करोडां, रानी ब्याहकै ल्याये, जहर खुवाकै बेटा मारया, जब नारद नै समझाये, ज्ञान हुआ जब जाण पटी, किसा जुल्म ज्यान का भारी ।।2।। भष्मासुर और पाराशर थे, मुनि उदालक न्यारे, जन्मदगनि के परशराम, हरि ठग लिये बणकै प्यारे, श्रीकृष्ण कुब्जा नै मोहये, जो योगी अति करारे, भीमसैन नै मिली हिड़म्बा, जो दिन मैं दिखागी तारे, पवन देव का भी मान हड़या, एक अंजणा सुणी हो कवारी ।।3।। ध्रुव भगत संग बालेपन म्य, मौसी नै घर घाले, मौसी नै श्री रामचन्द्र जी, बण के बीच निकाले, मौसी कारण रूप बसंत भी, सूली चढगे बाले, किस-किस का इतिहास सुणाऊ रहगे बहुत मसाले, लखमीचन्द बेटे किसी चीज, मांगी मिलै ना उधारी ।।4।। रूपेशाह और इन्छरादे की अपील और दलील सुनकर राजा सुलेभान क्या कहता है- लज्जा करकै बुझण लाग्या, उतरग्या चेहरा, साच बतादे खोट तेरी, मौसी का अक तेरा ।। टेक ।। के आपै बिचली खागड़ी, के गई कसूती आ-घड़ी, सुलेभान की पागड़ी, पै कुणसे नै पां फेरा ।।1।। कै तै डुब्या आल म्य रे, कै खोट उस छिनाल म्य रै, दोनूवां का काल मैं रै, मुटठी के म्य ले रहा ।।2।। पहलम तेगा ताणग्या रै, फिर बुझण की ठाणग्या रै, स्यालकोट का जांणग्या रै, उजड हो लिया डेरा ।।3।। लखमीचन्द पड़ी के खामी, आज कुणसे नै करी बदनामी, दिवा बलता स्याहमी, कर दिया भुन्डयां नै अन्धेरा ।।4।। पूर्णमल भरे दरबार में अपने ब्यान में कहता है कि पिता जी मेरी कोई गलती नहीं है और न ही मेरी मौसी की कोई गलती है, ये तो सब मेरे पिछले कर्मों का फल है- राम जाणता मां बेटे म्य, कुणसे की नालाकी थी, गादड़ आली मौत मरूंगा, न्यूऐं लिख राखी थी ।। टेक ।। पिछले जन्म म्य मनैं पिताजी, कोए खोटी कार करी थी, पर इस मौके मौसी के कान्हां, ना बुरी नीत धरी थी, मेरे लेखै जहर बराबर, तेरै लेखै चीज खरी थी, न्यू मत सोचै पूर्ण नै, अमृत कर घूंट भरी थी, कड़वी-मीठी खारी की तै जाण, जिन्हैं चाखी थी ।।1।। मेरी मौसी नै गजब का गोला, मेरी तरफ फंकाकै देख्या, गई निशाना चूक डाण नै, पिता सिखाकै देख्या, छाती के मै चोट मार फेर, जख्म दुखाकै देख्या, मनै मौसी के पांया सिवा शरीर की, ना ओड़ लखाकै देख्या, मेरी कजा के बोल उड़ै तैं आये, जड़ै मौसी की झांखी थी ।।2।। दर्द होवै पर आह करूं ना, चाहे जाओ गर्दन काटी, मैं न्यू बूझु सूं मेरे पिता तनै, खता कोणसी छांटी, शहर म्य जाकै करो तसल्ली, यो बसता चारों पाटी, जब तैं बोल सुणे मौसी के, जी जा लिया सौ-सौ घाटी, मनै मौसी के पांया तले की माटी, खांड बणा फांकी थी ।।3।। पिता सिपाही हुक्म देण नै, मौसी बणी दरोगा, इसी बीर का कहया मानले, माणस ना क्याहे जोगा, के जाणै कंगाल गती नै, ऐश-अमीरी भोगा, कहै लखमीचन्द धर्मराज घर, आप फैंसला होगा, पूर्णमल और उसकी मौसी की, महलां मैं साखी थी ।।4।। रानी इन्छरादे अब क्या कहती है- पूर्णमल बेटे की पिया, ज्यान खोवैगा, झिखैगा जब सौकण के, सब एब टोहवैगा ।। टेक ।। गुरू गोरख की नहीं यकीदा, तेरै जुबान का, मानैगा तूं सौकण की, सै कच्चा कान का, पूर्णमल जती नाम कहया गया, पूत जवान का, जोड़े थे हाथ तनै दुख था, सन्तान का, गुरू गोरख का वरदान, के ना पूरा होवैगा ।।1।। बीर-मर्द समदर्शी जो, बावन जनक गिणाये सैं, मेरी सोकंण तैं कद ब्राह्मण नै, वेद सुणाये सैं, कद परम हंसां के दर्जे मैं, जल दूध छणाये सैं, उसनै के परीक्षा करकै, जती बणाये सैं, बेटे का गल काटकै, के सुख तै सोवैगा ।।2।। ज्ञान बिना के मन का पाप, सहजै भागै सै, मैं जाण गई तूं सौकण की, के मेर त्यागै सै, उस बैरण के मन म्य, कामदेव जागै सै, सती जनक की रानी केसी, या क्यूकर लागै सै, वशं बेल का नाश करकै, पाछै रोवैगा ।।3।। लखमीचन्द कहै भौरे के म्हा, ज्ञान सीखै था, इसी बे-अदबी कर देता, के बिना सलीखै था, पिछले जन्म का पाप करया, पड़या चौड़ै दिखै था, दुख था तनै सन्तान का, तूं रोवै-झीखै था, इस जिन्दगी के पाप करे हुऐ, क्यूकर धोवैगा ।।4।। अब रानी इन्छरादे क्या कहती है- बांझ दोष की बीर नै, के बेरा सन्तान होण का, किसा दर्द हो सै ।। टेक ।। फिरया करै झूठ बोलती दूती, जो पुत्र बिन रहै नपूती, प्रसूति की पीर नै, के समझै अज्ञान, खेण का किसा दर्द हो सै ।।1।। सजन बेटे की ले लिये दया, क्यों बीर के फन्दे म्य फहया, तेरे तै सौ बार कहया था वजीर नै, परम परे का ज्ञान, सुणै तै हिया सर्द हो सै ।।2।। सजन तेरी जिन्दगी भर की गीन्द, खपा कै क्यूकर आवैगी नींद, तू लिया बीन्ध इश्क के तीर नै, देख बीर की श्यान, डूबज्या वो किसा मर्द हो सै ।।3।। मारी चोट जिगर दुखैगा, जै तू मौके नै चूकेगा, फिर के फूकैगा जागीर नै, खपाकै पूत की ज्यान, न्याय की नीत जर्द हो सै ।।4।। यह छन्द लखमीचंद नै धर लिया, मेरा सब तरिया मन भर लिया, तू बस में कर लिया बीर नै, गया बहू की मान, जाणदे क्यूं बिना पर्द हो सै ।।5।। राजा सुलेभान रूपेशाह दिवान की बात नहीं मानता और उससे पूछता है कि तेरे पास क्या सबूत है कि पूर्णमल जती है और रानी सती नहीं है। राजा रूपेशाह से क्या कहता है- करकै दया छोड दयूं सूत नै, यो भी तै चाला सै, त्रिया बिना जति की परिक्षा, कौण करण आला सै ।।टेक।। बिना खोट इस दुनिया म्य, कुण किसके सर नै काटै, रानी कहै बेइज्जती करग्या, यो मेरे स्याह्मी नाटै, पर त्रिया का रूप देख कै, कोए बिरला दिल नै डाटै, परखे बिना खरे-खोटे की, किसनै मालूम पाटै, जैसे चाबी बिना पता ना चलता, यो किस ढंग का ताला सै ।।1।। भौरे बीच सम्भाल्या करते, जितने लोग-लुगाई, विद्वान और जती बता कै, झुठी करै बडाई, देश-देश तै आये नेवगी, लेकै ब्याह सगाई, डूबण लाग्या कोड करी, खुद मौसी बहू बणाई, यो बुगला भगत आश्की करता, पर शादी का टाला सै ।।2।। था सुखदेव ब्यास का लडका, जनक के घरां गया था, दरी गलीचे साथ स्त्री, रहते जती रहया था, सेवा मै दस बीस नार, ना फन्दे बीच फहया था, छ: महीने म्य आकै जनक नै, योगी पुरूष कहया था, सब बीरां नै दई गवाही, म्हारा खुद देख्या-भाला सै ।।3।। चोरी-जारी बदमाशी कर, कुल का नाश करादे, इसे पूत का अपणे आगै, चौड़ै शीश तरादे, अपणी झूठी करें जा बड़ाई, योगीपणां जरादे, जती पुरूष तै वो हो सै, जिसनै सती बीर सराहदे, लखमीचन्द बडी मुश्किल मिलता, जो समदर्शी पाला सै ।।4।। इन्छरादे रानी राजा से क्या कहती है- पूर्णमल के बारे म्य, जवाब करूंगी, तार लिये सिर मेरा, मैं भी गैल मरूंगी ।। टेक ।। मैं छिक ली सूं पिया जी, नाट-नाट कै, दुणे-दुणे आओ सो, पाट-पाट कै, मैं अपणे सिर नै काटकै, इब दूर धरूंगी ।।1।। मैं रीझुँ सू पिया जी, एक पहर की, घड़ी तुल री सै, खूब कहर की, प्याली लेकै जहर की, मैं घूट भरूंगी ।।2।। मेरा दुनियां तै सुख सारा जा सै, हिरणीं पै दुख डारा जा सै, जब मेरा बच्चा-ऐ मारा जा सै, मैं कित की खुद चरूंगी ।।3।। लखमीचन्द दुख दर्द गनम मै, तेरी पतिभ्रता नार सनम मै, आगले जन्म मैं, तनै फेर वरूंगी ।।4।। पूर्णमल अपनी माता इन्छरादे को समझाता है और क्या कहता है- री ! मरणदे जननी, मौका यो ठीक बताया ।। टेक ।। पिता जी आज्ञा बिना, जीवणा खराब होगा, खाट के म्हा पड़-सड़ मरज्या, इसका के जवाब होगा, बुरी भली करणी का मां, अगत मै हिसाब होगा, सौंपदे पति नैं पुत्र, दुनियां कै म्य नाम होगा, पिता जी की ईज्जत बढै मेरा भी सिद्ध काम होगा, ईश्वर के अधीन माता, फैंसला तमाम होगा, सब्र का मुक्का मार पेट म्य, न्यू सोच लिये ना जाया ।।1।। उतानपात-प्रियव्रत दुनियां मै, दो होऐ राजा, समुद्र बनाये सात सूर्य के, संग अर्थ साजा, भानू से प्रतापी राजा, काल नै बणाया खाजा, 60 हजार सघड़ के बेटे, कुआं खोद पाणी पीया करते, हिरणाकुश और हिरणायाक्ष, ना नाम राम का लिया करते, रावण से रहे ना सदा, घमण्ड करकै जिया करते, छ: चकवे भी ना रहे जगत मै, बता कौण काल नै ना खाया ।।2।। दशरथ के बेटे चार, दुनियां मै तै चले गये, बली राजा से दानी वीर, धोखे कै मै छले गये, कौरवां नै मार पाण्डू, हिमालय के म्हा गले गये, कृष्ण और बलदेव का भी, समय नै मिलाया जोग, ऋषियों नै श्राप दिया, यादवों का काटया रोग, बीते बिना टलै नहीं, समय और कर्म के भोग, आवागमन रही लाग जगत मैं, ढलती फिरती छाया ।।3।। सौंपदे पति नै पुत्र, दुनियां मै बढाई होगी, भले के करे तै जननी, अगत मैं भलाई होगी, होगा नाम तेरा इज्जत, पिता की सवाई होगी, लखमीचन्द रटे जा हर नै, हृदय मै रहै ना काला, खुलैंगे संहस्त्र दर, एक ही तो बन्द होगा ताला, करैगें सहाई जननी, राम की रटें जा माला, कौण कहै ईश्वर ना मिलता, टोहया जिसनै पाया ।।4।। रूपेशाह दिवान आगे क्या कहता है- तीन लाख के बदले मैं, दस लाख तलक भी भर दयूंगा, दूध और पाणी अलग छाण कै, सही फैसला कर दूंगा ।। टेक ।। पूर्णमल का रूप देखकै, रानी भी उमंग भरी होगी, इसका खोट नहीं राजा, रानी की नीत फिरी होगी, क्यूंकि तू बूढा वा जवान अवस्था, मोह मैं ठीक घिरी होगी, मत करिऐ एतबार बीर का, उसनै खोटी नजर करी होगी, जै पूर्णमल का खोट मिल तै, मैं शीश काटकै धर दूंगा ।।1।। करणा चाहिए ख्याल तनै, के हो सै जात लुगाई की, हस्तनापुर मैं ताले भिड़ग्ये, मरगे साथ लुगाई की, कुरूक्षेत्र और लंका नै खोग्यी, या मुलाकाल लुगाई की, मर्द साले की कोई सुणै ना, पर साची बात लुगाई की, इनके कारण मिले खाक मैं, गिणा भतेरे घर दूंगा ।।2।। कदे इन्द्रानी कदे ब्रह्माणी, कदे पतिव्रता रंग छाया सै, कदे लक्ष्मी कदे डाण-डंकणी, इनकी अदभुत माया सै, माणस नै दे मार ज्यान तै, ऐसा जाल फलाया सै, ब्रह्मा-विष्णु शिवजी तक नै, मिलकै धोखा खाया सै, तेरी भी मैं कदे नै कदे, न्यूएं लागी दिखा कमर दूंगा ।।3।। लखमीचन्द के-सा गाणा कोन्या, और सब दुनिया नकल करै, इन बातां नै कड़ै ठिकाणा, चाहे कोए कितनिऐ अकल करै, होज्यगा बदनाम भूप जै, झूठ बात नै असल करै, मै देश-देश मैं चिट्ठी गेरूं, के पिता पूत नै कत्ल करै, कै तै आज्या बाज बदी तै, ना तै सारै-ऐ करा खबर दूंगा ।।4।। राजा सुलेभान अब क्या कहता है- बस रै रानी मेरे हुक्म मैं, तू मतना देर करै, डूब गये मां-बाप खोट पै, सुत की मेर करै ।। टेक ।। बारहा बरस तक भौरे के म्हा, सीख्या ज्ञान समाज, यो मार झपट्टा बड़या महल मैं, ज्यूं तीतर पै बाज, म्हारे-तेरे नाम पै रानी, दाग लगा दिया आज, जै मेर मैं फंसकै करूं फैंसला, के राजा का राज, इसनै छोडूं ना हरगिज, मेरी ईज्जत का ढेर करै ।।1।। इसी रानी बेहूदी कोन्यां, जो सहम बोलदे दूत, शेर का बच्चा बणां खड़या, लडया होकै नै मजबूत, घामड गाँ का बाछड़ू, और कलिहारी का पूत, ये तन-मन वचन से नहीं उजले, और लोगड़ का सूत, जैसे आम अन्त तक शहतूत, खटाई ना खाटा बेर करै ।।2।। ना कत्ल करण की टाल करूं, और बकता ना गाली, इस जार जती की चाल आज, मेरी सब देखी-भाली, के थूकैगा संसार बात जै, हांसियां के म्य टाली, कड़ै रहै हरया बाग रूख जब, खुद काटै माली, तेरे भाग मैं होगा तै, बेटे आली तनै ईश्वर फेर करै ।।3।। मतना करिये दया देखकै, काया कंचन की, आओ जल्लादों ठाओ हाथ म्य, तेग धरी रण की, रानी रै तनै जाण नहीं सै, इसके मूर्खपण की, लगा भजन म्य नीत डाटले, झाल तेरे तन की, लखमीचन्द ज्ञान के धन की, रोज बखेर करै ।।4।। इन्छरादे रानी राजा को क्या जवाब देती है- मेरी सौंकण का कहया मानकै, क्यूं तजै पूत की मेर पिया, पूर्णमल को कत्ल करण नै, क्यूं लई हाथ शमसीर पिया ।। टेक ।। चन्दन रूख काटकै जड तै, छाया कड़ै तलाश करै, बिना दर्द की बणा बीमारी, क्यूं स्यालकोट का नाश करै, देखे बिन सुण तोहम्मद लावै, क्यूं झूठा विश्वास करै, पूर्णमल मेरा जती जन्म का, ना बुरे कर्म की ख्यास करै, ज्ञान माला हाथ रात दिन, रहया हरि नै टेर पिया ।।1।। पांच कदम कुते तै बचज्या, हटज्या दूर इशारे तै, बीस कदम त्रिया तै बचज्या, तीस कदम लजमारे तै, उल्टे हों सै ख्याल बीर के, ना पाटै तोल बिचारे तै, खुद ब्याहे नै मरवादे और, दगा कमाज्यां प्यारे तै, यो पूर्णमल मेरा काचा केला, या कांटा की बड़बेर पिया ।।2।। गऊमुखी मैं जाण लागग्या, धर्म गंगा का नीर पति, पर्वत धंसे रसातल मैं, या कलयुग की तासीर पति, लुच्चे-गुण्डे मौज करैं, खा-खा मरै तीर जति, मां-बेटे की लगी आश्की, आ लिया बख्त आखिर पति, राहु बणाकै छुपा चान्द नै, क्यूं लाग्या करण अन्धेर पिया ।।3।। कुलिया मैं जल धरै घालकै, हाथी की तिस मिटै नहीं, अलपंख के ओट करे तै, तेज सूरज का घटै नहीं, सीपी भर-भर लगै बगावण, सागर का जल घटै नहीं, वृद्ध पुरूष तै जवान बीर का, कदे भी सांटा सटै नहीं, लखमीचन्द अज्ञान के धन की, क्यूं लाग्या करण बखेर पिया ।।4।। इन्छरादे रानी राजा को क्या जवाब देती है- डूब गया क्यूं पिता पूत कै, झूठी तोहम्मद लावै, पूर्ण केसा भगत जगत मैं, ना टोहे तै पावै ।। टेक ।। आज पूत मरै तड़कै साजन, या तनै भी मारैगी, गांठ बांधले पल्ले कै, ना इतने मैं सारैगी, कुणबा घाणी माणस मरवाणी, या नहीं परण हारैगी, मैं बेटे की गैल मरूं, तनै याहे पार तारैगी, बणजारे की ज्यूं पशु मारकै, फेर पाछे तै पछतावै ।।1।। सोच-समझकै सजन मेरे कुछ, सुकर्म का फल बोज्या, जितना मैल चढया अन्तस पै, भक्ति करकै धोज्या, सौकण तनै थेपड़ण लागी, कदे भूल मैं सोज्या, वा न्यू सोचै मेरी सौक इन्छरा, मेरी केसी होज्या, तेरे घर का नाश करावण खातर, साजन तनै भकावै ।।2।। जो राजा न्याय करै गद्दी का, दूध और पाणी छाणै, सोचे-समझे बिना पूत का, क्यूं सिर काटै धिंगताणै, यो दुख-सुख नै एक सार जाणता, अपणे और बिराणै, परम हंस की गति पूत, के इश्क कमाणा जाणै, एक रण्डी के कहणे तै, क्यूं छुरा पूत पै ठावै ।।3।। आखिर नै तेरी ब्याही सूं, और लेखा मेरा सती सै, हाथ जोड़कै माफी मांगू, तू साजन मेरा पति सै, मानसिंह कहै बात मेरी मै, झूठ ना एक रति सै, गुरू गोरखनारथ की कृपा तै, तेरा पूर्ण पूत जति सै, लखमीचन्द पूर्ण हर के, रात-दिनां गुण गावै ।।4।। राजा सुलेभान रानी की बात नहीं मानता और जल्लादों को हुक्म देता है कि जगंल में ले जाकर पूर्णमल को कत्ल कर दो। इसकी दोनों आखें निकाल लाना और दो कटोरे इसके खून से भर लाना। फिर राजा पूर्णमल से उसकी आखिरी इच्छा पूछता है और उसकी इच्छानुसार उसे अपनी मौसी नूणादे के दर्शन कराने के लिये रूपेशाह दीवान को हुक्म देता हुआ क्या कहता है- रूपेशाह पूर्ण के मरण म्य, बाकी ढाई घड़ी इसकी, जैसा कर्म करया पूर्ण नै, उसमैं नीत पड़ी इसकी ।। टेक ।। बारा वर्ष बेटे के प्रेम मैं, रात-दिनां ना सोया गया, मिल्या तै मारी चोट इसी, गुम होग्या ना रोया गया, मां संग बेटा इश्क कमावै, धर्म-कर्म सब खोया गया, नूणादे का रूप देख कै, पूर्ण का मन मोहया गया, कामदेव ना रहा काबू मैं, जब आंख तै आंख लड़ी इसकी ।।1।। हमनै भी ईश्वर के हुक्म से, दूध और नीर छणा देणा, महल से लेकै दरबारां तक, झट कनात तणा देणा, पूर्ण कहै सो रानी करदे, महल मैं हुकम सुणा देणा, रानी कहै सो पूर्ण करदे, झटपट काम बणा देणा, घड़ी दो घड़ी दर्श देण नै, सम्मुख रहै खड़ी इसकी ।।2।। कौण किसे नै बुरा कहै, जो किसे कै खटकता ना जागा, सीधा रस्ता साफ पड़या, यो कहीं अटकता ना जागा, पूर्णमल रानी के बहम मैं, शीश पटकता ना जागा, नूणांदे के दर्श करादयो, इसका हंस भटकता ना जागा, दर्शन करकै जा पहुंच स्वर्ग मैं, और ना दवा-जड़ी इसकी ।।3।। मां संग बेटा इश्क कमावै, फेर कोए बड़-छोट नहीं, साफ-साफ पूर्ण नै कहदयो, कोए पर्दा कोए ओट नहीं, कहै लखमीचन्द सच्चाई आगै, कोए अपील-रिपोर्ट नहीं, न्यूं तै मैं भी जाण गया, मेरी रानी का कोए खोट नहीं, पूर्णमल की भी खता नहीं सै, क्यूंके इश्क नै अक्ल हड़ी इसकी ।।4।। अब पूर्णमल अपणी मौसी नूणांदे के दर्शन करने महल में गया तो नूणादे उसे फिर क्या बात कहती है- जो कहदी थी रंग महल म्य, वाहे सलाह मेरी सै, पूर्णमल तनै नजर मेहर की, कद की कद फेरी सै ।। टेक ।। हाथ-पैर जुड़वाले चाहे, तेरै मुट्ठी तक भर दूंगी, सिरका चीर तारकै भाई की सूं, तेरे पायां मैं धर दूंगी, खाण-पीण की चीजां तै, तेरा मुंह बैरी कर दूंगी, जै कत्ल होण की ना टाल हुई तै, तेरे बदले मैं सिर दूंगी, तोड़-मोश चाहे कुछ भी करले, इब या काया तेरी सै ।।1।। पति बणन की आज बधाई, घर-घर बटवा दूंगी, इस जबर जुल्म का हुक्म भूप तै, कहकै हटवा दूंगी, पति बणन की मालूम, एक घडी मैं पटवा दूंगी, बहू बंणा ना तै आंख कढा, सिर धड तै कटवा दूंगी, साजन बण तनै इब छुटालूं, ना एक पल की देरी सै ।।2।। कुछ तै करणी चाहिए दया बहू तनै, औड बड़ी स्याणी की, हां भरकै एक टेर सुणांदे, इस मीठी बाणी की, पूर्णमल तेरै हाथ लाज, इस नूणादे रानी की, यो जगत सुखी और मैं तड़फू, जैसे मीन बिना पाणी की, तूं आप मरै मनै मरवावै, या के डूबा-ढेरी सै ।।3।। कहै लखमीचन्द यो त्रिलोकी, सबके काज सारता, तूं साजन बण मैं घूंघट कर, तेरा झुक-झुक करूं आरता, पूर्णमल तनै समझणी चाहिऐ, मेरे मन की वार्ता, दुनियां मै बरतण की खातिर, ईश्वर चीज तारता, क्यूं भरी थाली कै लात मारता, तूं तै सारा-ऐ अन्धेरी सै ।।4।। रानी नूणादे अपनी जिद पर कायम रहती है और क्या कहती है- पूर्णमल मैं जांगी स्वर्ग म्य, तेरी शान पै मरकै, दिलदार बाहर मत जाईये, मनै बिमार आप तै करकै ।। टेक ।। सब तरियां के आनन्द सै आड़ै, कोन्यां कसर ठाठ पै, मै दरियां म्य किश्ती सुन्नी, तू मिलग्या मल्हा घाट पै, एक पहर की बैठी सूं, मरजाणे तेरी बाट पै, मेरा-तेरा मेल इसा जाणूं, पडग्या नमक चाट पै, आ राजी होकै लेट खाट पै, मै देखूं मुटठी भरकै ।।1।। मेरे मात-पिता नै हाथ पकड़कै, मैं कुएं बीच धकादी, पूर्णमल मेरा सांस पड़ैगा, तनै गमी-गणी ना शादी, न्यूं के पूरी होया करै सै, उमर चौथाई ना आधी, और किसे का दोष नहीं, मेरै आग काम नै लादी, मै बूढे के संग ब्याहदी, न्यूं बैठी फन्द मैं घिरकै ।।2।। जवान अवस्था नूणादे नै, जोडी का वर चाहिए, मदजोबन के तला भरे, तू पूर्ण मल-मल न्हाइये, थाला के म्हा धरूं मिठाई, तू राजी हो कै खाइऐ, बीर-मर्द का नाता कर, मत जिक्र दूसरा ठाइऐ, जै ना मान्या तै चाल्या जाइऐ, मेरी छाती पै पां धरकै ।।3।। शुद्ध-अशुद्ध का बेरा कोन्या, दुनिया गावण लागी, कई-कईं मण्डली बिना गुरू के, न्यूंऐ मुंह बावण लागी, बड़े-बड़या की छाप काटकै, आपा चाहवण लागी, धर्म-कर्म पै जमी मूर्ती, थोड़ी-ऐ पावण लागी, समो बदलकै आवण लागी, गुरू देख मानसिंह फिरकै ।।4।। राजा रानी की एक बात नहीं मानता और क्या कहता है- जो विधना नै लेख लिख्या, वो मूल टलण का ना, यो सै खोट कंवर का, माफ करण का ना ।। टेक ।। देख-देख कै चेहरा खुश था, चलते और बैठे-लेटे का, मिलण गया किसा चाला कर दिया, किसा ढेंठ सराहूं ढेठे का, मां की सेज पै हक बेटे का, पैर धरण का ना ।।1।। पिता-पूता का नेग कड़ै, जब मां की भूजा गहली, मार-पीट बेइज्जती करदी, इब कसर कौणसी रहली, हुई सै हो ली इब तै पहली, इब सून्ना चरण का ना ।।2।। जती नाम तै उसका हो, जिसका भगती मै रूख सै, न्यूं सोचूं था बेटा होग्या, उमर कटैगी सुख सै, जितणा इब रानी का दुख सै, पूत मरण का ना ।।3।। लखमीचन्द कहै खतावार नै, माफ करूं ना जाण कै, मेर-तेर और कौड सिफारिश तज, हरि भक्ति दिल में ठाण कै, न्याय करूं जल-दूध छाण कै, मैं झूठा परण का ना ।।4।। पूर्णमल जाता हुआ, अब क्या कहता है- कर्मगति का के बेरा कद, उल्टी आण पड़ै गिरकै, मात-पिता और मौसी नै, मैं चाल्या राम-राम करकै ।। टेक ।। मेरे उपर ईश्वर की किसी, निगाह कठोर हुई माता, जन्म दिया भौरे में पटक्या, विपता घोर हुई माता, मेरे मारण की मेरी मौसी के, हाथ म्य डोर हुई माता, तनै चूची तक भी प्याई कोन्या, तू जणकै चोर हुई माता, कदे गोदी तक भी नहीं खिलाया, लाड करया ना मन भरकै ।।1।। पिता होया पाप के वश म्य, धर्म और कर्म पिछाणै ना, एक बेटा यो पूर्णमल सै, और कोए तेरै याणा ना, म्हारे नाम का इस धरती पै, रहा ईब पाणी-दाणा ना, बिना औलाद जागा पिता, तनै दूध और नीर छाणा ना, एक बांझ बीर के कहणे तै, तनै ताला भेड दिया घरकै ।।2।। मौसी री तनै पत्थर गेरे, मेरी नैया तिरती मैं, तेरा ईश्वर भला करै मौसी, मेरी अर्दास कुदरती मैं, एक तुलसी की माला ले ले, ढाब बिछाले धरती मैं, तनै भी एक दिन जाणा होग्या, धर्मराज की भरती मैं, उडै करणी के डण्ड पड़ै भुगतणे, जब जागी सच्चे हर कै ।।3।। गुरू मानसिंह इन कर्मां की, लिखी हुई के टल्या करै, बात पाप की सुण मौसी, लखमीचन्द भी जल्या करै, न्यूं तै मैं भी जाण गया, तू नाश करण की सला करै, मरता-मरता कहै चाल्या सूं, यो मालिक तेरा भला करै, मै तो चाल्या स्वर्गपुरी नै, तू रहिये ध्यान हरी मैं धरकै ।।4।। अब पूर्णमल को जल्लादो के सुपुर्द कर दिया जाता है और दरबारों से बहार कर दिया- जल्लादों नै अपणे तेगे, म्यान से बाहर निकाले, नगरी मै करलाहट माचग्या, जब पूर्ण नै ले चाले ।। टेक ।। रानी इन्छरादे पूत की सुणकै, बदन नै खोवण लागी, सारी प्रजा चक-चक कर, चाक्की सी झोंवण लागी, सारी दुनियां अप-अपणें, कर्मां नै टोवण लागी, सुण पूर्णमल के कत्ल होण की, सब प्रजा रोवण लागी, इस नूणादे पापण नै, आज कोड बड़े घर घाले ।।1।। रानी इन्छरादे रोया करैगी, अपणे पूत की मारी, मेरे हुक्म से पूर्णमल के, करो कत्ल करण की त्यारी, जती बण्या फिरै ज्ञान लिया, इब करण लागग्या जारी, यो किसा कबूतर गैर जगह पै, लेता फिरै उडारी, सुणी पूर्णमल के कत्ल होण की, दुनियां के दिल हाले ।।2।। शंख पति नै हुक्म दिया, सब चीज बांटकै ल्याइओ, न्यारे-न्यारे भाग अहलदा, कती छांटकै ल्याइयो, पूर्ण्मल का बदन-चाम, सब मांस काटकै ल्याईयों, ये दो बर्तन ल्यो कान्यां तक, कती डाटकै ल्याइओ, थाली मैं दो आंख धरों, और भरो खून के प्याले ।।3।। डबल खुराक देण तै, नौकर हरगिज ना नरमाऐ, पड़या माल पूर्ण के पेट मैं, जिब कामदेव गरमाऐ, खुद बेटे का खोट देख कै, मात-पिता शरमाऐ, बारहा साल रहया भौरे मैं, ब्होत घणे भरमाऐ, कहै लखमीचन्द कित फरमाये, सन्तां नै दाल-मशाले ।।4।। पूर्णमल अब चलता-चलता क्या कहता है- आवागमन रही लाग जगत मैं, रात मरया कोए दिन मरग्या, बाहर मरया कोए भीतर मरग्या, घरां मरया कोए बण मरग्या ।। टेक ।। एक सती बिन्ता कश्यप के घरां, होकै गरूड-अरूण मरगे, महाप्रलय की पदवी पाई फेर भी बिना चरण मरगे, भिक्षुक जाण दिया ना खाली, करकै दान कर्ण मरगे, बहुत से राजा इस पृथ्वी पै, अपणा बान्ध परण मरगे, भक्त विभीषण कुम्भकर्ण, और लंका का रावण मरग्या, श्री रामचन्द मर्याद बान्धकै, बिना लड़ाई रण मरग्या ।।1।। एक दानी नाम सूणा होगा एक विरोचन का बल मरग्या, सब धन जुए मैं जीता दिया वो वीरसैन का नल मरग्या, दुश्मन खड़े सहाया करते महाभारत में छल मरग्या, द्रौपद सुता के कारण 18 अक्शोनी दल मरग्या, भीम नकुल सहदेव युधिष्ठिर कुंती का अर्जुन मरग्या, अभिमानी भूप सुना होगा वो राजा दुर्योधन मरग्या ।।2।। ये 56 करोड यदुवंशी, आपस में कटकै मरगे, मेर-तेर ना रही कुटुम्ब की, आपस में जुटकै मरगे, कुछ भागे कुछ डूबे जल मैं, कुछ रण मे डटकै मरगे, दई रोंवती छोड़ गोपनी, खुद कृष्ण भगवान मरग्या, एक निती निपुण भक्त कृष्ण का, विदुर छोड़कै अन्न मरग्या ।।3।। अवधि ऊपर ब्रह्मा मरग्या, हंस छोड़कै ताल मरे, साठ हजार सघड़ के पुत्र, हांगा कर बे-काल मरे, कंस कुकर्मी मान्या कोन्या, उग्रसैन के लाल मरे, श्री कृष्ण तै बैर लगाकै, दन्तबक्र-शिशुपाल मरे, तीन कदम मैं धरती नापी, वो छलिया वामन मरग्या, कुछ दिन के म्य सुण लियो, लोगों लखमीचन्द ब्राहमण मरग्या ।।4।।

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