किस्सा फूलसिंह-नौटंकी : पंडित लखमीचंद (हरियाणवी कविता)

Kissa Phool Singh-Nautanki : Pandit Lakhmi Chand (Haryanvi Poetry)


स्यालकोट में राजा गजेसिंह राज्य करते थे। उनके दो पुत्र थे। बड़े का नाम भूपसिंह और छोटे का फूल सिंह बड़े लड़के भूपसिंह की शादी कर दी जाती है और राजतिलक भी हो गया और छोटा लड़का उस समय पढ़ रहा था। राजा गजेसिंह राज-पाट छोड़कर बन में तपस्या के लिए चले गये। छोटा लड़का पढ़ लिखकर जवान हो जाता है। उसी शहर में कुन्दन नाम का सेठ जो फूलसिंह का साथी था। पढ़लिख कर हीरे मोतियों का व्यापार कर लेता है। फूलसिंह का अपने दोस्त कुन्दन के घर आना जाना था। फूलसिंह को जवान देखकर सेठ की सेठानी ने कई बार शादी की सलाह दी लेकिन फूलसिंह शादी से इन्कार करता रहा। भूपसिंह की कोई औलाद नहीं है। एक दिन दोनों दोस्त जंगल में शिकार खेलने चले गए उधर मौका पाकर कुन्दन सेठ की सेठाणी फूलसिंह की भाभी के पास राजमहल में आकर व्यंग्य करती हुई कहने लगी कि तुम्हारे घर में सब प्रकार के आनन्द हैं लेकिन फूलसिंह की शादी की कमी महसूस होती है। भूपसिंह की पत्नी ने बताया कि फूलसिंह सगाई-रिस्ते की किसी बात को सिरे ही नहीं चढ़ने देता। तो सेठानी भूपसिंह की पत्नी को क्या कहती है-

लक्ष्मी रूप बीर का घर में घर भरवाणा चाहिए याहे कसर सै फूलसिंह का ब्याह करवाणा चाहिए ।।टेक।। पीहर-सासरा दोनों कुलां की आण राखणी चाहिए, देवर जेठ पीतसरे सुसर की काण राखणी चाहिए, सास नणन्द बड़ी छोटी मैं जाण राखणी चाहिए, पति की सेवा प्रजा पालन की बाण राखणी चाहिए तेरा देवर जवान घोट कै न्यारा ना मरवाणा चाहिए ।।1।। छोटी बिना बड़ापन के तेरा कोए डोला डाटया ना, भाईयां बिना जगत मै धन का कोए कुढा बांटया ना, एक और आज्याा तै के तेरै आध सेर आटा ना, तुम साहुकार सो धन दिया हर नै क्याहें का घाटा ना, कहै सुण कै उस ब्याहण रात का दिन धरवाणा चाहिए ।।2।। थारै धन माया का ओड़ नहीं कोए बालक बच्चा कोन्यां, सब जाणैं सै फूलसिंह इसा अक्कल का कच्चा कोन्यां, ब्याह करवावण का मनसूबा थारे दिल मैं सच्चा कोन्यां, सिर का फर्ज तारणा चाहिए कवांरा आच्छा कोन्यां, तनै देईधाम गठजोड़े मैं बान्ध कै खुद फिरवाणा चाहिए ।।3।। कहै लखमीचन्द आजकल के प्यारे जात देण आले सैं, हम बीर मर्द थारे बदले मैं गात देण आले सैं, हीरे पन्ने लाल कणि-मणि की दात देण आले सैं, नौकर चाकर राजघरां में साथ देण आले सैं, तेरे घर में नई दुरानी आजा स्वर्ग केसा ढंग करवणा चाहिए ।।4।। अब भूपसिंह की बहू कुन्दनलाल की सेठाणी को क्या कहती है- हे गिरकाणी मेरा छोटा देवर बैरी सै, मेरै मतना मारै बोल ।।टेक।। मतना मारै चोट जिगर में, साची बात बताई घर में, मैं स्यारणी हे कसर कोणसी रैहरी सै, दयूं धन की बोरी खोल ।।1।। कईं बै कहली सै रो-रो कै, देखली बात जिगर की टोह कै, हे मरज्याणी, कई बै शादी की ठहरी सै, जले का कोन्या पाटया तोल ।।2।। कई बै होली ब्याह की तकरार, कदे जाणै ना एक आध बार, हे भरपाणी, जाणू जल की भरी जलैहरी सै, तनै कर लिया डामाडोल ।।3।। लखमीचन्द कर्म का सौदा, जले के ब्याह करवादूं चौदाह, हे बणयाणी, जला इसे शुभा का जहरी सै, ऊं तै हीरा सै,अनमोल ।।4।। सेठाणी भूपसिंह की बहू को और क्या कहती है- कहरी सूं कुछ तेरे भले की रमज नहीं जाणी, एक बर ना सौ बार बता मनैं लुच्ची गिरकाणी ।।टेक।। थारे तै कुछ म्हारा कुढा नरम बताया सै, ब्राह्मण, क्षत्री, वैश्य, शुद्र का धर्म बताया सै, पित्र देव ऋषि ऋण तारण का कर्म बताया सै, मनुष्यों में भक्ति भाव तप परम बताया सै, सूर्य देवता खिलै मिलै जब पितरां नै पाणी ।।1।। पुत्र बिन मोक्ष नहीं चाहे हो गृहस्थी नै ज्ञान, राज पाट घर धन माया सब कुछ खाक समान, थारे कितना धन और किसे कै जै दे भी दे भगवान, एक मर्द एक बीर मनु नै लिख दी दो सन्तान, बीर एक आधी बेईमान करादे दो कुल की हाणी ।।2।। जड़ै आपस में प्रेम नहीं उड़े गैर दिखाई दे, भाई की इज्जत भाई ना करै उड़ै बैर दिखाई दे, एक बालक बिन रंग महलां की के लहर दिखाई दे, बेटे बिन टूक भी घर में जहर दिखाई दे, मै तै मूर्ख सूं चुप होगी इब तू ये बणले स्याणी ।।3।। वेद कहैं सोए मनु कहैं जो ऋषियां की मर्याद, सोच समझ कै धरी विधि नै दुनियां की बुनियाद, लखमीचन्द कहै गृहस्थ आसरै ऋषि मुनि सिद्ध साध, कई बार ब्रह्मा नैं कही ऋषि पैदा करो औलाद, रखणी चाहिए याद मनु महाराज की बाणी ।।4।। सेठाणी की यह बात सुनकर रानी ने विचार किया कि यह सब हमारे भले की है और सेठाणी से क्षमा मांगकर क्या कहती है- तनै तै सेठाणी म्हारे फायदे की कही, मानैगा तै वोहे जो कोए जाणैगा सही ।।टेक।। और किसे का दोष नहीं कर्मां का फेरा सैं, मानैं ना कहे की बैरी देवर मेरा सै, एक दो सन्तान बिना घर सून्ना डेरा सै, बेटे बिन इस रंग महल में घोर अन्धेरा सै, वैं घर जांगे उत नपूत जड़ै दूध ना दही ।।1।। अजमाऊंगी तकदीर नै जै जाग जागी तै, रात दिन की चिन्ता दिल तै भाग जागी तै, फूलसिंह की तबियत रंज नै त्याग जागी तै, आज कहूंगी जले तै किमैं लागज्यागी तै, कै तै मान जागा बात ना तै लड़ाई-ए-रही ।।2।। एक-दो हो सन्तान धन भरपूर चाहिए सै, फूलसिंह की ब्याह-शादी जरुर चाहिए सै, खानदान हो अच्छा बिना कसूर चाहिए सै, इसा छैल बांका फिरै इन्द्र की जणूं हूर चाहिए सै, कित तै ल्यादूं टोहकै बहू दुनियां तै नई ।।3।। लखमीचन्द सतगुरु का गुण गाणा चाहिए सै, रीत पुरानी घर गृहस्थी का बाणा चाहिए सै, म्हारे फूलसिंह की खातर नाता स्याणां चाहिये सै, धन की नहीं जरुरत भला ठिकाणा चाहिए सै, कै तै बणगी बात ना जिन्दगी न्यूऐ गई ।।4।। यह सुनकर सेठाणी ने कहा रिश्ता में बतला देती हूं। रानी के पूछने पर बताया कि मैं मुल्तान शहर के रहने वाली हूं। वहां राजा कर्णसिंह राज्य करते हैं। उनके यहां 'नौटंकी' नाम की लड़की है। सेठाणी वहां से चली गई। इतने में फूलसिंह शिकार खेल कर घर आ गया। वह भूख और प्यास से व्याकुल था। आकर उसने भाभी से पानी मांगा तो क्या होता है- मेरी ले लिए दया री तेरा होगा भला, मैं मरूं सूं तिसाया जिया जा सै जला ।।टेक।। फूलसिंह :- सुबह से अन्न खाया ना पीया नीर, आगै अप अपणी तकदीर, मेरा दुखी सै शरीर नीर नैना तै ढल्यात ।।1।। भाभी :- आवतैं हें इसी हकुमत लाई, जाणूं तेरी लागू सूं खुद ब्याही, जितणी सौड़ समाई उतने पायां नै फला ।।2।। फूलसिंह :- गौर कुछ करिये मेरी बात की, चिन्ता मिटती नहीं गात की, वा भी करती शर्म जात की नटणी जो करै सै कला ।।3।। भाभी :- कितै लेज्या नैं देश लिकाड़ा, कै कितै मोडा बण कनपाड़ा, फिरै किस का बिगाड़ा मेरे गल मैं घल्या ।।4।। फूलसिंह :- मनैं तू अपणा खोल मता दे , आज मनै भूले नै राह दिखादे, मनै न्यूं तै बतादे तेरी के सै सलाह ।।5।। भाभी :- घणी लखमीचन्द तै डर रही सूं , न्यू गुस्से नै कम कर रही सूं, मैं के तेरी खातिर भररी सूं , ठण्डे नीर का तला ।।6।। फूलसिंह :- लखमीचन्द कहै खूब संभलज्याा, भावज तू बदी करण तै टलज्यां, ना तै लगते बूंद पिंघलज्या यू तन माटी का डला ।।7।। यह सुनकर रानी ने क्या कहा- तेरे पाणी नै मारली, क्यों इतणी करै सै मरोड़, किते तै चाल कै आया के ।।टेक।। देखै करड़ी नजर लखा कै, किसा बोलै छोह मै आकै, तनै पाणी प्याकै हारली कर लिया सारा तोड़, किते तै चाल कै आया के ।।1।। कोन्या राख्या अपणा भर्म, करड़ा हो रहा सै दिल नरम, तनै शर्म गात की तार ली, मनै हाथ लिए सै जोड़, किते तै चाल कै आया के ।।2।। क्यों दे रहा पैर विघ्ना में, ना रह री बाकी मेरे तन मैं, या मन मैं बात बिचार ली, मैं नाट गई मुंह फोड़, किते तै चाल कै आया के ।।3।। लखमीचन्द बात थी छोटी, सहम मैं राड़ जागगी मोटी, मन मैं खोटी धार ली, के सापड़गे कूए जोहड़, किते तै चाल कै आया के ।।4।। अब रानी दूसरी बात में क्या कहती है- लडूगीं ना भिडूंगी, पडूंगी कुंए में जले काढी तेरे पाणी नै ।।टेक।। आंवतें हुकम मेरे पै टेकै, के ठाली बैठी थी तेरे लेखै, जले इसी करड़ी नजरा देखै, चोर सा कठोर सा जोर सा दिखावै,जले बोहड़िया बिरानी नैं ।।1।। के धन माल कमा कै ल्या,या, कहै भूख प्यास मैं व्याकुल काया, क्यों इसा करड़ा छोह मैं आया, करता नहीं आण काण जाण कै सतावै, मनैं ओड बड़ी स्याणी नै ।।2।। मनै ना इसे घरवासे की लोड़, तेरी रेते में रलो मरोड़, मैं सूं बीर मुल्हाजा तोड़, शेर केसा चेहरा तेरा, बेरा ना भकाया, किसे लुगाई गिरकाणी मैं ।।3।। लखमीचन्द छन्द इसा गावै, गया वक्त हाथ नहीं आवै, जै इसा हुक्म चलाणा चाहवै, पकड़ सूध की राह ले,जाले इसा सै तै जाकै ब्याहले नौंटकी निमाणी नै ।।4।। अब फूलसिंह अपनी भाभी से क्या कहता है- सुण-2 कै नै तेरे बोल भावज तिस मिटगी री ।।टेक।। तेरा दिदा फिरै था अधर कै, बोली तिरछा घूंघट करकै, मारया भर कै नै पिस्तोल, भावज नश कटगी री ।।1।। तनै तै बाण कसूती पकड़ी, मैं बोल्या तू ज्यादा अकड़ी, तखड़ी ज्यूं डामाडोल, भावज, डस छंटगी री ।।2।। आज तू बैठी प्रण हार कै, मुझ पै दुख दर्द डार कै, मार कै दामण की झोल, भावज परै हटगी री ।।3।। के जल पिए बिन ना सरै, हट बस खड़ी रहै तू अलग परै, लखमीचन्द छन्द धरै टटोल, भावज गिरदिश घटगी री ।।4।। अब फूलसिंह अपनी भाभी को क्या कहता है- पाणी नै तू नाटी री भाभी, देखैं हमनै पाणी थावैगा अक ना ।।टेक।। कदे खोलै कदे नेत्र मिचै क्यों ना पेड़ धर्म का सींचै, मनैं पीछै मालूम पाटी री भाभी, फूलसिंह नौंटकी नै ब्याहवैगा अक ना ।।1।। मैं बहुत घणा दुख पा लिया, इब मनैं सिर पै बोझा ठा लिया, जी जा लिया सौ-सौ घाटी री भाभी, के बेरा फिरकै उल्टा आवैगा अक ना ।।2।। इब तेरे बोलां नै करदी ढेरी, तू मेरा काल हाथ में ले री, धड़ से गर्दन मेरी काटी री भाभी, देखैं रंग शादी का छावैगा अक ना ।।3।। मानसिंह गुरु पेड़ आनन्द का, फांसा कटै विपत के फन्द का, लखमीचन्द का बसणा जाटी री भाभी, के बेरा छन्द नै मिलकै गावैगा अक ना ।।4।। भूपसिंह फूलसिंह को क्या कहता है- तेरी भाभी लागै सै नेग मैं बहोड़िया बड़े भाई की ।।टेक।। हम दो भाई मां जाए प्यारे, तेरे तै के काम करैं सै न्यारे, तनै दो थप्पड़ क्यूं ना मारे, हो सै के जात लुगाई की ।।1।। चाल घरां गुण अवगुण छाटैंगे, सांठा जिन्दगी का सांठगे, घरां चाल नाड़ काटैंगे, वा पल री ढाल जमाई की ।।2।। जै कोए पहलां अवसर चूक्या हो, बोल तेरी छाती में दुख्या हो, जै ब्याह शादी का भूखा हो, करूं तदबीर सगाई की ।।3।। लखमीचन्द छन्द नै गाले, कुछ भाई की तरफ निंघाले, जै तू भूखा हो तै खाले, या रोटी खांड मलाई की ।।4।। फूलसिंह अपने भाई भूपसिंह से क्या कहता है- भाइयों बहू बिरानी पै के रोब जमाया जा सै ।।टेक।। भावज बहुत घणी बदकार, करी मेरी गैल तकरार, बरमां स्यार कमाणी पै, के उल्टा स्यार चलाया जा सै ।।1।। के था पाणी प्यावण में हरज, मेरा करया उतां में नाम दर्ज, मतलब गरज दिवानी पै, गधा भी बाप बणाया जा सै ।।2।। मैं आया करकै आशा, भाभी तनै कर दिया तोड़ खुलाशा, रासा एक लोटे पाणी पै, के मरया तिसाया जा सै ।।3।। लखमीचन्द भाई नै छोड़ दिया सांड, इसनै मैं बणा दिया भांड, भूपसिंह तेरी रांड हंगाणी पै, के मुंह पिटवाया जा सै ।।4।। भाभी क्या कहती है- तेरे पाणी नै काढ़ी जले इतणी क्यूं करै सै मरोड़ ।।टेक।। भाभी :- इसा करड़ा छो में आया आवतैं मेरे पै हुक्मन बजाया, तू मरता तसाया, के सूखगे कुएं जोहड़ ।।1।। फूलसिंह :- बोलता जा लिया कई कई घाटी, क्यों इज्जत पै गेरै माटी, तू पाणी प्यावण तै नाटी, हो लिया बात का तोड़ ।।2।। भाभी :- चावल माथे पै धरवाले, इसा हुकम चलावै, तै ब्याह करवाले, जले नौंटकी नै ब्याहले, सिर बन्धवा कै नै मोड़ ।।3।। फूलसिंह :- लखमीचन्द दर्द करया सै भारया, तेरे बोलां नै कर दिया घारा, किसा भाभी नै ताना मारया, सुआं सा नाक सकौड़ ।।4।। फूलसिंह भाभी को क्या कहता है- भाभी मत बोलै कड़वे-2 बोल, तेरे जल पीवण तै छिक लिया ।।टेक।। पाणी मांगा था आण, लिया तनै गज का घूंघट ताण, डाण तेरा मुंह बटुआ सा गोल, तनै करकै मस्करी मुंह ढक लिया ।।1।। खीर का क्यूं कर री पणखीरा, ला दिया काचे घाव में चीरा, कदे तै मैं हीरा था अणमोल, आज मै मन्दे भा में बिक लिया ।।2।। नफा के मिलै पाप में धस कै, के लेगी मेरे तै खस कै, हंस कै करण लागी मखौल, इसा के बदमाश लुंगाड़ा तक लिया ।।3।। लखमीचन्द सिर धुण लिए, राह चलते बटेऊ बण लिये, कोए दिन में सुण लिये बाजता ढोल, आज का दिन कागज पै लिख लिया ।।4।। फूलसिंह अब भूपसिंह को क्या कहता है- मेरी भाभी देवर कह कै कदे सोलै माथै बोली ना ।।टेक।। रै इसनै म्हारे घर की जड़ पाड़ी, बीर सै या असली मूढ़ अनाड़ी, जिसे म्हारै सैं पलंग निवारी,आज तक इसे ठिकाणै सोली ना ।।1।। अरै वृथा जिन्दगी खोवैगी, फेर पाछे तै रोवैगी, या रोटी कद सी पोवैगी,इसनै चाकी तक भी झो ली ना ।।2।। या बैठी रै धार मौन नै, म्हारी हांडै सै जिन्दगी खौण नै, इसका जी कर रया न्यारी होण नै, तनैं इसके मन की टोहली ना ।।3।। लखीमचन्द छन्द गावै, ना बात समझ में आवै, भतेरी दुनियां मुंह बावै, पर हाथ लागती डोली ना ।।4।। फूलसिंह अब क्या कहता है- कर भरले, डर मरले, सिर धरले अपणे घर बार नैं ।। टेक।। कदे था घर कुन्बे तै बाध, आवैं लाड भतेरे याद, इब मनैं आता नहीं स्वाद, लख चखले, चख भखले, ढक रखले, तेल के आचार नै ।।1।। कदे मैं भगत कहाऊं था हर का,इब मिटता ना दर्द जिगर का, रै मैं भी माणस सूं इस घर का, आण कै, नया फया ना, दया ना, कुछ कहा गया ना, खोटी तेरी नार नै ।।2।। चलै ना काम कुटम्ब त्यागे तै, रात और दिन जागे तै, सुण रै बीर मेरे आगे तै, झट हटज्या, डट मिटज्या, लूट पिटज्याी, तेरे कोसूं सूं परिवार नैं ।।3।। गुरु मानसिंह छंद गावै, लखमीचन्द शीश झुकावै, वो घर बसणा ना चाहवै, जड़ै सत पत ना, गत मत ना, कथ मथ ना, छन्द के विचार नै ।।4।। फूलसिंह की भाभी उसे फिर से समझती है- मेरा करदे माफ कसूर, कहै तनै हूर, गिल्ला दूर, थूक दिए मेरा जी ।।टेक।। मेरी हांसी मैं अक्कल बही, मनैं ना सोधी गात की रही, मैं गई बेहूदी डूब, तेरी रूब-रूब, हंस पड़ी खूब खिलाकै, चेहरा जी ।।1।। आज गुस्सा गया जाग कड़े तै, बक्स दे पायां बीच पड़े तै, ना तेरे लड़े तै बाजती तान, अब कहे की मान, तू मेरी ज्यान हाथ मैं ले रहया जी ।।2।। फेर ठल्ला करै कौण नपूती, चैन पड़ण दे ना तृष्णा दूती, गई लिकड़ कसूती बात, दखे जोडू सूं दो हाथ, हाजिर गात, आसरा तेरा जी ।।3।। जो दिन रात रामजी नै रटते, वैं ना नेम धर्म तै घटते, ना सतगुरु बिन कटते फन्द, किसे आनन्द, कहै लखमीचन्द तनै सब बेरा जी ।।4।। अब फूलसिंह क्या कहता है- पता नहीं था नौंटकी हर कौण निमाणी हों सैं, ताने दे कै खीज कढ़ावैं बहू हंघाणी हों सैं ।।टेक।। मर्द कुचलने कम अक्कल के बोल झेलने हो सैं, चोर जार ठग बदमाशां तै हाथ मेलणे हों सैं, छोटा देवर बड़ी भाभी हंस खेलणे हों सैं, कलिहारी तेरे दुख के पापड़ रोज बेलणे हों सैं, जो लाड करै छोटे देवर का वा भाभी स्याणी हो सैं ।।1।। दोपाहारै दिन सूती उठैं ना साजन तै बौलैं, बोलै तै ढाल चेतवे पिल्ले की मुश्किल आंख्यां नैं खोलै, आए गए की शर्म करै ना रहै ना परदै ओलै, सुसरा जेठ खड़े रहैं जड़ में घूंघट खोलें डोलैं, साजन तै लड़ पड़ै रूसज्यांम रोज मनाणी हों सैं ।।2।। गए घंरा की बहू और बेटी गैरां के घर जाणा, रांड नपूती कहैं बेटी नैं बेटे नैं मरजाणा, लड़ै झगडै करैं चुगली चोरी कायदे तै गिर जाणा, बालम नैं कहै ऊत ढेड़ ना किसे तै शरमाणा, जो जेठ देवर तै करै लड़ाई वा कुणबा खाणी हों सैं ।।3।। भले घरां की बहू और बेटी शर्म आबरो राखैं, मात-पिता और सास सुसर की धजा शिखर में टाकैं, आए गए की शर्म करैं कदे बुरा वचन ना भाखैं, अमृत भरया रहै जिब्भां में जी चाहवैं जब चाखैं, कहै लखमीचन्द अतिथि की सेवा टुकड़ा-ए-पाणी हों सैं ।।4।। यह कहकर फूलसिंह घर से चलने लगा तो भाभी ने रस्ता रोक लिया। यह देखकर फूलसिंह क्या कहता है- मनैं जा लेने दे मत रोक परी, मेरी दुनियां बीच हवा क्यों उड़ाने लगी, मनैं पाणी मांग्या था पीणे खातिर, कैसे हंसकर अंगूठा दिखाने लगी ।।टेक।। तनैं क्या करी, ओ दगा की भरी, तेरी बात लिखी सब छाती में धरी, हाथों से घर की खुद मालिक बणादी परी, अब क्यों देवर की खातिर मैं आने लगी ।।1।। गला सज रहा हार कै, दया नहीं बदकार कै, क्या लेगी जखम पर, नमक डार कै, पहले देवर के सिर में दो जूते मार कै, पीछे से खीर खिलाने लगी ।।2।। तेरे चरण नीऊं था, गुप्ती जख्म सीऊं था, तनैं देख-देख कै, दिन रात जीऊं था, मनैं और क्या कहा सिर्फ पानी ही पीऊं था, मगर एक एक की सौ-सौ सुनाने लगी ।।3।। बस जा चाहे खड़ी रहो, राजी चाहे लड़ी रहो, कहै लखमीचन्द कली चौथी छन्द की जड़ी रहो, चाहे रोसे में भर कै घर बीच पड़ी रहो, अब कैसे हंसकर नजरिया चुराने लगी ।।4।। फूलसिंह फिर भाभी को क्या कहता है- हट तेरा के पाणी पीवैंगे तू बिल्कुल बदमाश लुगाई सै, लुगाई सै लुगाई सै ।।टेक। तन पै दारूण दुखड़ा भोग्या, सहम तेरी गेल्यां झगड़ा होग्या, तेरी सुणकै चुप होग्या, छोरे की समाई सै, समाई सै समाई सै ।।1।। मैं सारे दुख दर्द सहूंगा, इब तेरै फन्दे बीच नहीं फहूंगा, मैं अपणे भाई तै जा कै कहूंगा, जो मौसा का खास जमाई सै, जमाई सै, जमाई सै ।।2।। दिल जा लिया सो सो घाटी, रै इज्जत में गेर दी माटी, तू पाणी प्यावण तै नाटी, भाभी तेरी अंघाई सै, अंघाई सै, अंघाई सै ।।3।। लखमीचन्द हो कै त्यार पडूंगा, चाहे कितनाए बेमार पडूंगा, नौंटकी के बाहर पडूंगा, जो तेरे मरज के लायक, दवाई सै, दवाई सै, दवाई सै ।।4।। फूलसिंह यह कहकर भाई के पास चला गया। फूलसिंह की बात सुनकर भाई ने कहा तुम्हारे लाड करने वाला अभी मैं जिन्दा हूं। यह सुनकर फूलसिंह ने क्या कहा- लाड प्यार माटी में मिलगे इब के पुचकारै सै, भाई भूपसिंह तेरी बहू रात दिन तान्यां तै स्यारै सै ।। टेक।। सोलै माथै कदे ना बोलै चाहे जब घर में जाले, कदे भी राजी हो कै ना कहती आ देवर भोजन खाले, मनैं पाणी मांग्या था पीवण नें बोली आपए-पी-प्याले, घणी खुशामन्द का भूखा तै उस नौंटकी नै ब्या हले, घरां रहण का धर्म नहीं जब न्यूं बोली मारै सै ।।1।। जिस घर में रहै रोज लड़ाई न्यूं के हों सैं गुजारे, सब कुणबे की एक सलाह बिन सब दुखी न्यारे-न्यारे, घर के माणस लड़यां करैं जब गैर बणां करैं प्यारे, तेरी बहू के झगड़ां नैं जाणैं अगड़ पड़ौसी सारे, लोग कहैं इसा जुल्म ना देख्या जिसा जुल्म थारै सै ।।2।। लक्ष्मण की ज्यूं बणां फिरूं था भाई का हितकारी, भाई केसी चीज जगत में और नहीं सै प्यारी, राम लक्ष्मण भरत शत्रुघ्न नैं जाणैं दुनियां सारी, राज तिलक की गेंद बणाकैं भरत नैं ठोकर मारी, पर आज-काल भाई के सिर नैं खुद भाई तारै सै ।।3।। काम करण मैं कसर ना घालूं मेरे लायक जो सै, कार व्यवहार करण में बता कदसी करी लहको सै, बाप बराबर समझूं था, मेरे नहीं जिगर मैं धो सै, बड़ी भाभी नैं छोटा देवर बेटे केसा हो सै, कहै लखमीचन्द समझणियां माणस सब तरियां हारै सै ।।4।। फूलसिंह क्या कहता है । मेरे भाई, मेरे सिर पै चढ़गी खागड़ी, बदमास हो री सै ।।टेक।। वा बोल कसूता बोलै, डाण का तै बोल जिगर नै छोलै, इसी तर-तर-तर करती डोलै हड़खाई, जाणूं कोए उंट बिगड़रया बागड़ी, बदमाश हो री सै ।।1।। ज्यान फन्दे के बीच फही जा, क्यूकर इतणी विपत सही जा, के कुछ और के आगै कही जा, समझाई, पर नहीं मानी निरभागड़ी, बदमाश हो रही से ।।2।। मरूंगा फन्दे बीच फहे तै , नफा के घर बीच रहे तै, मेरी मानी ना एक कहे तै, करै सै हंघाई, ज्यों कड़वाल झोटड़ी लागड़ी, बदमाश हो री सै ।।3।। लखमीचन्द अलग सूं छल से, बात मैं करूं अकल के बल से, मर्द की तै सब तरियां मुश्किल सै, जब लुगाई ले तार मर्द की पागड़ी, बदमाश हो री सै ।।4।। भूपसिंह की पत्नी पाने पति भूपसिंह से अपने देवर फूलसिंह की शिकायत करती है- तेरा भाई सै बदमाश आंवते ही गाल बकण लाग्या ।।टेक ।। भूपसिंह की बहू :- दिल के धोवण लाग्या दाग, पति कित सोवै सै तू जाग, इसकै इश्क करण की आग, पाणी तै कड़ै छिकण लाग्या ।।1।। भूपसिंह :- सांडणी होगी खा-खा माल, देख या कूदै सै किस ढाल, सै देशां की चिण्डाल इसी नै कौण रखण लाग्या ।।2।। भूपसिंह की बहू :- मन मैं सौ-सौ करै सै विचार, मेरे तै करणां चाहवै प्यार, इसनै दिया पतंगा डार, समझ माशूक सिकण लाग्या ।।3।। भूपसिंह :- लखमीचन्द लागी चोट, मेरै इसनै लादी गलघोट, इसनै काढे मेरे मैं खोट, अपणे ऐब ढकण लाग्या ।।4।। फूलसिंह ने लड़ाई का सारा हाल भाई को बताया। भाई को घर लेकर गया और अपनी रानी को क्या कहता है- तनै के सोची बदमाश फूलसिंह काढ दिया लड़ भिड़ कै ।।टेक।। के पीहर तै ल्याई थी आड़ै बरतै माल जमाईयां का, के गुंजाइश काटड़े की जो खाज्याब घास कसाईयां का, झूठी साची ला कै मन पड़वादे मां के जाए भाईयां का, ब्याहे का भी सिर तरवादे के एतबार लुगाईयां का, तेरा जाईयो सत्यानाश राम करै तू मरियो कीड़े पड़ कै ।।1।। पहलम केसा ढंग रहया ना और नया रंग छांट गई, लड़ै बराबर रोवै बाध किसा मोटा चाला काट गई, जितना माल कमाया हमनैं तू घरां पड़ी-2 चाट गई, और तेरा के सुख होगा जब पाणी नैं भी नाट गई, हमनैं नहीं बहू की ख्यास चली जा अपणे घर नै तड़कै ।।2।। तेरे बदले में ज्यान गवादूं तूं मत दिल में घबराइए रै, मेरै घन माया का तोड़ा ना तेरा जी चाहवै जो खाईए रै, इसकी लाठी धोती पकड़ा कहदे और कितै चाल्याज जाइए रै, तेरे हंस कै सिर पै हाथ धरूं तेरे लाड करूं के चाहिए रै, मूढा़ घाल बैठज्याप पास दिल नरमाग्यार हाथ पकड़ कै ।।3।। कहै लखमीचन्द जिस दिन तै आई धन माया मैं खेली सै, ना और कोए पां धर सकता या तेरे नाम की हेली सै, दुनियां के लेखै बड़ी बडेरी मेरे लेखै नई नवेली सै, जै म्हारा तेरा मेल मिला रहा यो कौण तीसरा तेली सै, म्हारा तेरा बणा रहै ईकलाश लाठी टूटै ना बासण खड़कै ।।4।। भूपसिंह की बात सुनकर फूलसिंह को विश्वास हो गया कि वह बड़ा भाई भाभी की राह में पड़ गया है और उसकी तरफदारी भी करता है। आगे क्या कहता है- अरै बीर के गुलाम घणां मत बोलै, अरै बीर के गुलाम घणा मत बोलै ।।टेक।। दर्द सै पाणी के नाटे का, मैं के पीउं था उसके बांटे का, यो सै कल कांटे का काम, घाट मत तोलै ।।1।। इब तलक दिन टूटे सुख में, इब मन रहे जा सै दुख में, मुख मैं देती ना लगाम, देख ले उछलती डोलै ।।2।। या औरां के सिर लाज्या सै, ठाले जो चीज मेरी पाज्या सै, खाज्या सै अंगूर बादाम, खड़ी हो के परदे ओल्है ।।3।। लखमीचन्द सब बात टालज्या, पाणी में आग बालज्या, कुछ मेरा कालजा मुलायम, कुछ या कटारी बण कै छोलै ।।4।। यह सुनकर रानी ने क्या जवाब दिया- मेरे तै के बान्धया जा सै मरदां आगै पाला, तुम दोनों भाई सुख तै बसियों मेरी ज्यान का गाला ।।टेक।। भाभी :- उंच नीच नै कोन्या तोलै यो मेरे जिगर नैं छोलै, उपर तै तै राजी बोलैं, भीतर ले मैं काला ।।1।। फूलसिंह :- मारण खातर आवण लागी, न्यूं कह कै धमकावण लागी, लुच्चा डेढ बवातण लागी, बाप भाई का साला ।।2।। भाभी :- गाडा खूब गिरड़वा देगा, उल्टा रासा छिड़वा देगा, कोए दिन के मैं भिड़वा देगा, रंग महलां में ताला ।।3।। फूलसिंह :- कड़वी देखै घूरें जा सै, मुठी मैं जी चूरे जा सै, बेईमाने में पूरे जा सैं, मकड़ी केसा जाला ।।4।। भाभी :- जला झूठी साची जोड़े जा , यू आपै नाक सिकोड़े जा, मेरे सिर भांडा फोड़े जां, घरवासा सै अक चाला ।।5।। फूलसिंह :- तनै भाई बण कै खूब दगा दी, तन में दूणी आग जगा दी, या कित बूरा की जगह लगादी, मटकी मैं का राला ।।6।। भाभी :- घर में ओला सौला जा सै, इसकी हरदम बुरी निंघा सै , उत गए के दिल में ना सै, सिर काटण का टाला ।।7।। फूलसिंह :- थारी अमीरी तजणी दिखै, न्यासरी धूणी सजणी दीखै, लखमीचन्द नै भजणी दीखै, परमेश्वर की माला ।।8।। भाभी :- इसनै हांसी करणी चाही, लखमीचन्द कै नहीं समाई, हासियां में करी लड़ाई, ना भीतरले में काला ।।9।। फूलसिंह की पत्नी मायके जाने के लिए कहती है- तुम दोनू भाई रहो महल मैं मेरा आड़ै के काम, जुड़ा दियो बहल चली जांगी पीहर नै ।।टेक। देख ले मैं कितने कष्ट सहूं, किस तै मन की बात कहूं, जै फूलसिंह की रहूं टहल मैं होज्यांगी बदनाम, न्यूएं रोउं सूं अपनी तकदीर नै ।।1।। धन-धन सै बीर की जात, थारे मैं दुख भोगू दिन रात, कर नाई के नै साथ गैल मैं, ना आप करूं इन्तजाम, खोऊंगी ना तै कूए झेरे मैं शरीर नैं ।।2।। कोन्या फर्क गात में होवै, मोती बालबाल मैं पोवै, वो सोवै रूई केसे पहल में, रटै पति का नाम, भाई की सूं धन-धन सै उस बीर नै ।।3।। चार कली लखमीचन्द नैं गाई, यो कदे भी ना भाभी कहै अन्याई, कदे ब्याही आई रथ बहल मै पुजवाए देई थाम, ओढ़ कै नए रेशमी चीर नैं ।।4।। अब भाभी फूलसिंह को क्या कहती है- हो जै जागा प्रदेश जले रो रो के मरलूंगी, ले कै कटारी हाथ अपणी नाड़ कतर लूंगी ।।टेक।। भाभी:- सुणिए मेरी नणद के बीर, म्हारा तेरा जिन्दगी भर का शीर, अपणे सिर का तार कै चीर, तेरे पायां मैं धरलूंगी ।।1।। फूलसिंह:- कहूंगा बहुत घणी हद होली, मेरै गई लाग जिगर में गोली, भाई तेरी बहू न्यूं बोली, गैर मानस नै बरलूंगी ।।2।। भाभी:- मैं तनैं बात बता दूं सारी, तनै सब तरियां हिम्मत हारी, बेशक नाड़ काट लिये म्हारी, जै बचनां तै फिरलूंगी ।।3।। फूलसिंह:- कितनी मोटी पली छोड़ दे, चाहे रोवती नैं खली छोड़दे, हाथां तै बली छोड़ दे , नाव मैं आपै तिरलूंगी ।।4।। भाभी:- दोनों देवर भाभी रहैंगे कट्ठे, खाण नैं दूध घी बूरा के मटठे, तू भी कर लिए सो सो ठटठे, जब खूब सिगंरलूंगी ।।5।। फूलसिंह:- कहै थी मैं के मारी मरूं किसे के डर की, सच्ची बणैं थी भगतणी हर की, एक मैं बहू घराने घर की, इसी के तेरे तै डर लूंगी ।।6।। भाभी:- गुरु बिन कौण ज्ञान का देवा, थारे बिन कौण पार करै खेवा, मानसिंह की कर सेवा, मैं पार उतरलूंगी ।।7। फूलसिंह क्या कहता है- मेरी जात बिगाड़ी रै मेरे भाई की बहू नैं, मनैं जाणती कोन्यां ।।टेक।। कहण लगी दूर परे सी नै खेल , कौन सै तूं घी में मिलाण लगा तेल, कड़वे बोलां के सेल बदन के पार लिकाड़ी रै, वा गाली दे गऊ नै, मनैं जाणती कोन्यां ।।1।। मैं बस होग्या कर्म रेख कै, बेमाता बेहूदी के लिखे लेख कै, मेरे कान्ही देख देख कै न्यूं रही पीस जबाड़ी रै मेरे पीवैगी लहू नै, मनैं जाणती कोन्या ।।2।। बिगाड़ा चाहवै सहम श्यान नै , झाड़ होरी मेरी ज्यान नै, उस बेहूदी बेईमान नै, इस घर की जड़ पाडी रै, घेर लिया ज्यूं खेत कहूं नै, मनैं जाणती कोन्यां ।।3।। चार कली लखमीचन्द नै गा दी, तेरे तै सच्ची बात बता दी, तोहमंद लावै सै बेफादी मेरै सिर लादी साड़ी रै, रात दिन धोरै के रहू नै, मनैं जाणती कोन्यां ।।4।। अब कुन्दनमल सेठ की सेठाणी ने आकर पूछा कि देवर क्या बात है । फूलसिंह ने सारा हाल बताया कि मैं नौंटकी को ब्याहने जा रहा हूं। जब सेठाणी की राय मांगी तो क्या बताने लगी- उस बैरण नै काढ दिया धमकाकै मनैं तेरी सी आवै, नौटंकी नै ब्याह कै ल्यादे जब जी मैं जी आवै ।। टेक।। कितना दुख दे दिया डाण नैं ओड़ उमर याणी में, धक्के दे कै घर तै ताह दिया उस माणस खाणी नैं, ताना मार दिया देवर कै भाभी मरज्याणी नैं, जै नहीं बोलणा आवै तै अपणी बन्द राखै बाणी नैं, जगत बिलोवै पाणी नै फेर कित तै घी आवै ।।1।। धुर दिन तै व्यवहार जगत मैं काम नहीं चोरी का, धन चाहिए तै टांका तोडूं माया की बोरी का, सच्चे दिल से लिए सहारा जत सत की डोरी का, तू भौंरा लेण चला खश्बोई वा फूल खिला तोरी का, मैं कद देखूं तनै फूलसिंह किस गोरी का पी आवै ।।2।। डूब गया मेरा जेठ जिनै ना लाड करया भाई का, याणा सै यू के जाणैं ढंग यारी असनाई का, पांडवों नै दिया श्राप अमावस तै मोह करकै जाई का, सौ अश्वमेघ यज्ञ केसा फल हो एक बेटी ब्याही का, करै सासु लाड जमाई का जब घर बेटी धी आवै ।।3।। नौटंकी नै ब्याह कै ल्यादे हो सकता हो जैसे, एक डंग भी मत उल्टा हटिए पैसे धेले के भय से, जै देवर तेरा ब्याेह नहीं हुया तै मेरा जीवणा कैसे, कहै लखमीचन्द मैं न्यूं तड़फूं जल बिन मछली जैसे, जैसे जमींदार नै बाट साढ़ में कद पिछवा का मीहं आवै ।।4।। फूलसिंह क्या कहता है- म्हारे घरक्यां तै हुई लड़ाई रै, रोउं सू तेरी जड़ में खड़या रै ।।टेक।। घर तै चाल पड़या बुरे शोण, लागी बे अदबी सी होण, एक नौटंकी जाणै कोण बताई रै, सिर आडै, धड़ उडैए़ पड़या रै ।।1।। भाभी का तीर जिगर में लाग्या, भाई का भी बोल जिगर नैं खाग्या, आग्यात मैं करकै डिगर समाई रै, दुख का काला नाग लड़या रै ।।2।। मैं सोचूं सूं बात उस लंकी, खींचे खड़या दुधारी जंग की, एक नौटंकी घणी सुथरी लुगाई रै, मैं भी बे नै ठाली बैठ घड़या रै ।।3।। इब रहणी ना बात भली, लिखी कर्मां की नहीं टली, कली लखमीचन्द नै गाई रै, छन्द खूब घड़या रै ।।4।। अब फूलसिंह सेठ कुन्दनमल व उसकी पत्नी क्या कहता है- बैरण होगी रै बड़े भाई की बूह ।।टेक।। चढ़गी विघन रूप हटड़ी पै, धर दिया पैर पाप गठड़ी पै, बण कै मेम फिरै पटड़ी पै, वा तै नहरण होगी, चरण दे ना पाली की गऊ ।।1।। जाणै के कह बठै निरभागण, लागी बोल्यां के शोले दागण, नागण जहरण होगी रै, लड़ते हें काढ दे लहूं ।।2।। मेरी ओड़ की ना आत्मा साफ, उसके रहता दिल पै पाप, आप तै शहरण होगी रै, समझ लिया में जगल का रहूं ।।3।। लखमीचन्द बात कहै चाह की, मुश्किल मिलै दवाई घा की, मेरे ना की अहरण होगी रै, क्योंकर चोट नै सहूं ।।4।। चलते हुय्र फूल सिंह क्या सोचता है- जाणा नौटंकी के देश मिलावै शिवजी ।।टेक।। रक्षा करो हे दुर्गे अम्बे, हे सच्ची ज्वाला जगदम्बे, जिसके लम्बे-लम्बे केश बढावै शिवजी ।।1।। मेरी भाभी नै बोली मारी, कहा ब्याह ल्या नौटंकी नारी, प्यारी का हूरां केसा भेष सजावै शिवजी ।।2।। भावज प्याली भरी विष की, कौण पीले इसी श्रद्धा किसकी, जिसकी बातां बीच कलेश मिटावै शिवजी ।।3।। लखमीचन्द कहै उस भगवन की, सतगुरु जी की भी लग्न भजन की, जिनकी सेवा करूं हमेश दर्श दिखावै शिवजी ।।4।। फूलसिंह शहर छोड़कर मुलतान शहर को चल देता है- लई मुलतान शहर की राही, जाणै कद हूर मिलैगी ।।टेक।। घर तै चाल पड़या बुरे सौंण , लागी बेअदबी सी होण, नौंटकी जाणैं कोण बताई, जाणै कितनीक दूर मिलैगी ।।1।। देखैंगे नई प्रीत पाल कै, पहुंचना सै मुलतान शहर चालकै, घाल कै आख्यां में सुरमां स्याही, हूर तै कद घूर मिलैगी ।।2।। जोड़ी ना सजती दो बिन, बात बणैं ना दूसरे के मोह बिन, जोबन में भरी भराई, मद में कद भरपूर मिलेगी ।।3।। मेरे छुटगे ऐश आनन्द, गल में घला विपत का फन्द, लखमीचन्द राख समाई, कदे नै कदे जरूर मिलेगी ।।4।। फूलसिंह मन में सोचता है- कित बसै रै शहर मुलतान जमाने नै टोहलूंगा घूम घूम कै ।।टेक।। मैं खींचे खड़या दुधारी जंग की, जाणूं सूं सब बात उस लंक की, परी नौंटकी की श्यान बीच बस री सै रूम-रूम कै ।।1।। कद मन-तन की कह रहैगी, सब दुख सुख की सह रहैगी, हूर कद पहरैगी नया पराहन, नगीने बिच जड़े टूम-टूम कै ।।2।। समय आगी दुख सुख सहण की, गैर तै ना बात कहण की, जिसनै ना लेण देण की बाण, चलया घर मांगण सूम-सूम कै ।।3।। कह लखमीचन्द इब किसतै करूं रिपोर्ट, भाभी नै ताना मार दिया बिन खोट, किसे की जोट मिलावै भगवान, भतेरे मरज्यां काया हूम-हूम कै ।।4।। फूलसिंह अपने दोस्त से बहुत धन दौलत लेकर अपने घोड़े पर सवार होकर मुलतान शहर के बाहर नौंटकी का बाग था, वहां पहुंचा। दिन छिप गया था, बाग का दरवाजा बन्द देख घोड़ा रोक दिया और विचार किया किया कि यहां ठहरना चाहिए। किस तरह से- चढ़ा आलकस काया के मैं पुर्जा-पुर्जा घेरा, न्यूं सोची थी फूलसिंह नै कर बागां मैं डेरा ।।टेक।। सन्ध्या समय अर्थ सूरज का वो भी थम-थम चालै, सन्ध्या समय पवन मन्द होज्या दरखत भी कम हालैं, दिन भर पक्षी उड़ैं भतेरे ना कसर उड़न में घालैं, अण्डे बच्चे रहैं आलणै सन्ध्या समय सम्भालैं, कीड़ी हाथी पशु पखेरू सब चाहते रैन बसेरा ।।1।। दरवाजे पै जाकै देख्या फाटक लाग रही सै, आया सूं मैं हार नीर बड़ी दारूण विपत सही सै, फाटक खोलो फाटक खोलो न्यूं कई बर बोल दई सै, इन बागां का रखवाला कोए माणस सै क नहीं सै, दोएक बै तै बोल्या सहज-सहज फेर ऊंचे सुर में टेरा ।।2।। कद का रूक्के मारूं सूं तनैं कुछ तै कहणा चाहिये, कुछ तै धर्म गृहस्थी का कुछ म्हारा भी लहणा चाहिए, आए गए अतिथि के बदले दुख-सुख सहणा चाहिए, कुए, प्याऊ, धर्मशाला पै माणस रहणा चाहिए, के कानां मैं डाटे ठुकरे मैं कद का रूक्के देरहा ।।3।। घर आए का आदर करले चलते नै शीश निवावै, कहै तुलसीदास इसे बन्दा तै ईश्वर रोज मिलावै, गुरू मानसिंह शिष्य लखमीचन्द नै सहज-सहज समझावै, जो आए गए की टहल करै वैं परम पद्वी फल पावैं, आगै बख्त नहीं चालण का होता आवै अन्धेरा ।।4।। यह कहकर आवाज लगाई बाग के अन्दर से आवाज आई तो फूलसिंह ने कहा कि फाटक खोलिए। बाग की मालण ने फाटक खोलकर कहा तुम कौन हो। ये बात सुनकर फूलसिंह ने कहा कि मैं एक परदेशी हूं। मालण ने यह बाग जनाना है, यहां तुम नहीं ठहर सकते और कहा मेरी सुनो- चोर जार लुच्चे डाकू का भेद पटण का ना, यो सै बाग जनाना आड़ै काम डटण का ना ।।टेक।। आजकाल के ठहरणियां कै शर्म नहीं रही री, प्यारे बणकै माल लूटलें लाग करैं गहरी, बेरा ना के रचदे बैरी, दर्द घटण का ना ।।1।। अतिथि बणकै घरां ठहरज्यां ईस्यां नै घर खोया, जिसकै घरां दो रोटी खालें उसका-ए धन दबकोया, लाखां में एक आधा टोहया नेक छंटण का ना ।।2।। जिसका नूण और पाणी खाले उसका-ए हराम करैं, दिखा गरीबी प्यारे बणकै दिल नैं ऐ मुलायम करैं, नेम तोड़ बुरा काम करैं, ऊत हटण का ना ।।3।। सतगुरू जी के ज्ञान बिना कौन सही धुर पाला लेगा, इब मद में आन्धा हो रहया सै कद फेर सम्भाला लेगा, लखमीचन्द जब माला लेगा रहै बख्त रटण का ना ।।4।। मालिन की ये बात सुनकर फूलसिंह ने कहा तूने ठीक कहा है लेकिन मालिन गृहस्थी धर्म को क्यों भूल रही हो। एक गृहस्थी का अतिथि के प्रति क्या धर्म होता है- प्रदेशी नै शरण लई थारी एक रात काटण नैं, घरबारी का धर्म भूल क्यूं त्यार खड़ी नाटण नैं ।।टेक।। बिना बुलाए कौण किसे कै आया जाया करै सै, लिख्या कर्म का दाणा पाणी आपै ल्याआया करै सै, समझणियां अतिथि के हाजिर सब कुछ पाया करै सै , फेर सारा कुणबा घणी खुशामन्द मिल कै ठाया करै सै, दो रोटी तै भो कोए दे-दे पेट खढ़ा आंटण नैं ।।1।। सुणी हो राजा धर्मपुत्र कै दासी लाख रहैं थी, सोने के पात्र मैं भोजन ले कै कृष्ण-कृष्ण कहैं थी, ऋषि मुनि मंगते भूखे नै भोजन दे चरण गहैं थी, कुन्ती सहित द्रोपदी रानी कितने कष्ट सहैं थी, बिना जाण कूण घर गृहस्थी कै आवै दुख बांटण नै ।।2।। मेरा भी कुछ दोष नहीं सब कै पेट खढ़ा सै, जितना शरीर बणा बन्दे का पाप का भरया लढ़ा सै, जो घर आए का करै निरादर उनकै पाप चढ़ा सै, जिनकै बिना बुलाए अतिथि आज्यां उनका भाग बड़ा सै, धर्म और श्रद्धा दोनों चाहिए आए गए डाटण नै ।।3।। मनै अपणै भी घर-2 हांडण की कदे तै बाण नहीं सै, धर्म दिवा ले थारी नगरी में मेरी जाण पिछाण नहीं सै, जाण बिना इस दुनियां में माणस की काण नहीं सै, कहै लखमीचन्द मनै ठहरा ले थारी कुछ भी हाण नहीं सै, बिना मणि का नाग जाण दयो जगह ओश चाटण नैं ।।4।। अब मालिन क्या कहती है- काम पड़या ना बाग मैं डटणा माणस बेजाणी का, चल्या जा शहर में घाटा कोन्या दुकड़े और पाणी का ।।टेक।। ठीक नौकरी करणी चाहिए जै टुकड़े के सिर हो तै, कौण पता तेरा इस मालण नै ऐर गैर नर हो तै, कुछ दहस्त ना उस माणस नै जिसकै ईश्वर का डर हो तै, चाहे जिसनै ठहरा सकूं जै खुद अपणा घर हो तै, पागल समझ कै ध्यान डिगावै मेरा कोड़ बड़ी स्याणी का ।।1।। जिस लड़ जोगा मोती होगा उस में पोया जागा, मेरी जात बीर की चोर गैर का नहीं लहकोया जागा, कुछ बदमाशी कर बैठा तै ना तेरा दुखड़ा रोया जागा, तू दुख-सुख नै खे लिकड़ै मेरा टुकड़ा खोया जागा, मर्द डटण का हुक्म नहीं आडै खुद राजा रानी का ।।2।। या दुनियां बड़ी दोगली बस्ती जाणैं के करवा देगी, चुगली कर राजा कै तेरै बेड़ी भरवा देगी, तेरे दंड मैं नहीं सरा तै सिर मेरा भी तरवा देगी, जै नौंटकी नै देख लिया तै तनै चौड़ै मरवा देगी, जाणैं किस बख्त आंवणा होज्या जोबन की याणी का ।।3।। मंगते भूखे कोढी कंगले दुख सुख में डुल रे सै, साधु संत और आए गए संग प्रेम बोल बुल रे सै, कर्णसिंह राजा के नाम से सदाव्रत खुल रे सै, चाहे भोजन लो बणा बणाया सीधे तक तुल रे सै, लखमीचन्द नित ढोल बाजता रसद तुला खाणी का ।।4।। अब फूलसिंह मालण को क्या कहता है- मैं प्रदेशी घणी दूर का, कर कै आग्या आश, थारी रै मनै ठहरा लिए इन बागां मैं ।।टेक।। आज मेरा सारा लाड़ बिखरग्या, कीमती लाल रेत में जरग्या, मैं मारया मरग्या तेरी घूर का, आवै सै टूट कै सांस, कारी रै, रही खेल नागणी नागा में ।।1।। दुख नैं देख-देख जी डरग्या, न्यूं मेरा फिकर कालजा चरग्याज, मैं मारया मरग्या तेरी घूर का, आवै सै छूट कै सांस, न्यारी रै, के लिख राखी भाग मैं ।।2।। मैं दुखिया सूं और किस्म का, अपणे आप भरोसा दम का, चमका लाग्या तेरे नूर का, लगते सत्यानाश, कारी रै, तू नागण खेलै नागयां मैं ।।3।। जैसे नशे बाज पी रहा हो भंग, न्यू बिगड़ा काया का ढंग, जैसे मीठे के में सतसंग बूर का, न्यूं लगी सै इश्क की चास, त्यारी रै, हम हंस फिरण लगे कागां मैं ।।4।। लखमीचन्द भजो श्री कृष्ण, जब लागैगा रंग बरसण, जब दर्शन करल्यूं परी हूर का, सब मिटज्या विश्वास सारी रै, मिलै सैं ये रागनी रागा में ।।5। अब मालण आगे क्या जवाब देती है- बाग जनाना ठहर ना सकते गैर आदमी आवण आले, धोखा दे कै माल लूटले , इज्जतदार बतावण आले ।।टेक।। तेरै के हो रहा सै मर्ज बाल मैं, चाल्या जा ना बकूंगी गाल मैं, तेरा काल सै तेरी आल मैं , चोर की ढाल लखावण आले ।।1।। हम के किसे का एतबार करया करैं, न्यूं के फन्दे बीच घिरा करैं, पिट छित कै हां भरा करैं सैं, चीज पराई ठावण आले ।।2।। सतगुरु जी तै ज्ञान लिया करैं, नित उठ कै पुनदान किया करैं, तड़फ-2 कै ज्यान दिया करैं, गरीब कर टूक छुटावण आले ।।3।। लखमीचन्द कहै बहुत चले गए, काल की चक्की बीच दले गए रोक-टोक बिन पार चले गए, ईश्वर का गुण गावण आले ।।4।। अब मालिण की बात सुनकर फूलसिंह कहने लगा कि आप चाहो तो ठहरा भी सकती हो। अब फूलसिंह क्या कहने लगा- न्यू सोची थी छत्री नैं निभा कुछ अपनी ओड़ दे, रात-रात भर डटणा सै मालिण नैं कोड़ दे ।।टेक।। बाग मैं ठहरग्या भका सिखा कै, देख्या चारों तरफ लखा कै, नकद नामें का लोभ दिखाकै, मुंह चाहे जिसका फोड़ दे ।।1।। आज तनै प्रदेशी डाटया सै, ना इसका गुण अवगुण छांटया सै, नकद नामें का के घाटा सै, ले मुल्हाजा जोड़ दे ।।2।। समझ ज्ञान मिलै गुणियां मैं, सतसंग मिलै ऋषि मुनियां मैं, यो लोभ नीच दुनियां मैं , नाड चाहे जिसकी तोड़ दें ।।3।। मालिण के सोवै सै क्यूं ना जागै, क्यूं ना बदी का रस्ता त्यागै, लखमीचन्द गुरु के आगै अपणी छोड़ मरोड़ दे ।।4।। फूलसिंह मालण को कहता है तुम क्या करोगी, मालिण ने कहा फूलों का हार नौटंकी के लिए बनाऊंगी। यह सुनकर फूलसिंह ने पांच असर्फ और दे दी। और क्या कहने लगा- रोटी तै टुकड़ा री मालिण करदे मेरा री, बदले में काम मालण करदूं तेरा री ।।टेक।। कर दूंगा काम तेरा जैसे का वैसा री, दमड़ी ना दाम थारा ना लेणा पैसा री, ऐसा हार नौटंकी नै कदे ना गल मैं गेरया री ।।1।। बागां के मैं आग्या मालिण बख्त पड़ी मैं, थारी नौटंकी का हार बणादू आधी घड़ी में, जड़ दूंगा लड़ी मैं सच्चे मोती ले रहया री ।।2।। बीतैगी तै वोहे जो कुछ लिख दी भागां मैं, हंसा आली चाल मिलै कित काले कागां मैं, कर्मां करकै तेरे बागां में लाग्या फेरा री ।।3।। मिलण की समय मिलती मर कै, प्रदेशी नैं बोलणा पड़ै डर-डर कै, कर्मां करकै थारे बागां में लाग्या फेरा री ।।4।। भूल कै मैं कित सोग्या, खोग्या, होग्या चाला री, बदी तै हटले, डटले, रटले, हर री माला री, लखमीचन्द किसा उक्या, सूक्या, भूखा रूका दे री ।।5।। यह सुनकर मालिण बड़ी खुश हुई और फूल लाकर फूलसिंह को दे दिए। फूल लेकर फूलसिंह क्या कहने लगा- आया था मैं ठहरण खातिर, माणस मारणी बैरण खातिर, नौटंकी के पहरण खातिर हार बणया बड़े जोर का ।।टेक।। हार में ला दिए फूल हजारी, लड़ी गेल्यां एक-एक मणी न्यारी, दिल की प्यारी पहर कै चालै, दो आंख्यां में स्याही घालै, लाम्बी नाड़ हूर की हालैं, जैसे गरदना मोर का ।।1।। जब खिली हार की ज्योति, तबियत देख देख खुश होती, एक-एक मोती सच्चा ला दिया, हीरा पन्ना अच्छा ला दिया, कतई रेशमी लच्छा ला दिया, तागा रेशम डोर का ।।2।। देख्या ख्याल बाग का करकै, सीलक होरी थी पाणी भर कै, फिर कै ऊंचा नीचा देख्या, ना कोए दरखत बिन सींच्या देख्या, लटपट बाग बगीचा देख्या, रंग सामण की लोर का ।।3।। मानसिंह छन्द का धरणा, ठीक चाहिए गालब सा भरना, लखमीचन्द मरणा होगा पिछलै दरजै, काल बली आ सिर पै गरजै, हे मालिक कद हिया लरजै, उस माशूक कठोर का ।।4।। फूलसिंह ने हार तैयार करके मालण को बुलाकर कहा अब तुम हार को लेकर जाओगी। मालण ने कहा- हां, तो फूलसिंह ने कहा क्या कहोगी, मालण ने कहा जो रोजाना कहती हूं। फूलसिंह ने कहा मुझे क्या पता आप क्या कहती हो। मालण ने कहा नौटंकी नमस्कार लो पहन लो हार। फूलसिंह ने यह कहा अपनी राजकुमारी को मेरी तरफ से यह कहना- पहरा कै नै हार दे दिये राम रमी री ।।टेक।। बाग मैं डट रहया सै राजकुमार, जै उस तै बात करो दो चार, न्यूं कै वो भी मिलण नैं सै त्यार, अपने दमा दमी री ।।1।। काया मीन की तरह जकड़ी, जैसे जाला पूर रही मकड़ी, मरज्या बोदी सी लकड़ी डार, जुणसी घुण लाग कै खमी री ।।2।। सहम के झगड़े झोवै था, वृथा जिन्दगी नैं खोवै था, छोरा रोवै था सिरमार, आंसू थामी ना थमी री ।।3।। लखमीचन्द छन्द नै धरज्यास, किसे का जी फन्दे में घिरज्या, चाहे कोये मरज्यान राजकुवार, तेरै शादी ना गमी री ।।4।। और फूलसिंह क्या कहता है- कहियो री उस नौटंकी गोरी नै राजा की छोरी नैं, एक आशिक रोवै तेरी ज्यान नै ।।टेक।। या तै थी मेरे हाथां की कार, जड़ दिये हीरे रत्न। जवाहर, पहरा कै नै हार अपने राजा की छोरी नै, कह दिये खूब सजाले अपणी श्यान नै ।।1।। जाणूं कद मुरगाई ज्यों लरज डोलैगी, किस दिन साजन कह कै बोलैगी, कद सी खोलैगी अपणी घन माया की बोरी नै, कद पाटै खबर जिहान नैं ।।2।। दान पुन जाणूं कद आ ज्यांगे आड़ी, कह दिए वो हीणा तू ठाड़ी, धंसरी गारा में गाड़ी, मुश्किल होरी सै धोरी नै, जाणूं कद चालैंगे जीत मैदान नैं ।।3।। तनै दम दम पै याद करूंगा, आवैगी इतणै लाम्बेज सांस भरूंगा, ना पी कै मरूंगा भरी जहर की कटोरी नैं, मनैं होश नहीं सै गलतान नैं ।।4।। माया जाणूं किस-किस नै लूट ले हंसकै, नागिनी बिल में बड़ज्या डस कै, लखमीचन्द पकड़ ले कस कै, मन कपटी की डोरी नै, कदे तै आवैगी दया भगवान नैं ।।5।। मालण हार को ले कर चल पड़ती है। किस तरह से- चाल पड़ी, चाल पड़ी, जब हार उठा लिया हाथ, मालण चाल पड़ी ।।टेक।। जाणै कोए कोयल बोलै बड़ मैं, कईं कईं लचक पड़ैं थी कड़ में, हाल पड़ी हाल पड़ी, तन केले केसा पात, लरज कै हाल पड़ी ।।1।। पैहरण आली तै ना हार झिलैगा, कह थी तनैं दूणां इनाम मिलैगा, फेर ख्याल पड़ी, उस परदेशी की बात, दिल पै ख्याल पड़ी ।।2।। या तै मेरै भी पक्की जचली, जाणूं कोए जल बिन तड़फै मछली, ताल पड़ी, ताल पड़ी, जाणूं कद होगी बरसात, मीन बिन ताल पड़ी ।।3।। लखमीचन्द के करूं जिकर मैं, रहै सै कंवारी पिता के घर में, ख्याल पड़ी, ख्याल पड़ी, बिन बनड़े किसी बारात, उमर में 16 साल पड़ी ।।4।। नौटंकी ने मालण का हार देखकर मालण से कहा- हे तेरा हार गजब की मार बता बदकार कड़े तै ल्याई सै ।।टेक।। तेरे मैं इतणी अकल कडै थी गलीज, किसनै यो बोया सै बिघन का बीज, अरी तेरी चीज भली नै मेरी अकल छली, मेरै कली कली मन भाई सै ।।1।। इसकी शोभा देखूं कद की, इसमैं कणी मणी लगी हद की, मद की बली आग, गई चोट लाग, काली नाग सोवती ठाई सै ।।2।। तू के इसी चीज बणावै थी खरी, इसनै देख मेरी तबियत डरी, करी ना एक फूल मैं भी भूल, लगा त्रिशुल करी चतुराई सै ।।3।। लखमीचन्द नै चार कली कही, बीतैगा कर्म लिखा जो सही, क्यों रही बांध धौज, करै मौज, रोज ठग विद्या करकै खाई सै ।।4।। महल में पहुँच कर मालण नौटंकी को क्या कहती है- आंगली मत तोड़ छोरी लागज्यागी चोट, तेरै दया नहीं सै डाण कै ।।टेक।। मनै के ल्याणे थे फूल उधारे, एक बहू नै निशाने मारे, सारे फूलां का सिर जोड़, छोड़या तिल भर भी ना खोट, एक भाणज बहू सै मेरी बाहण कै ।।1।। आई सै दस पन्द्रह दिन ठहरण, आच्छा जाणै सै ओढण पहरण, सिर नै मतना बैरण फोड़, ना चाहती धन माया की पोट, घणी ए सतावै बोदी ठाण कै ।।2।। बहू वा ऊंच नीच नै तोलै, तिरती मुरगाई सी डोलै, बोलै शहद सा निचोड़, मेरे पाहयां के मैं लोट, शर्म करै सै बड़ी जाण कै ।।3। लखमीचन्द में कसर रही कैसे, काली जुल्फ लटक रही ऐसे, जैसे नाड़ नै सिकोड़, बिल पै दो नागों केसी जोट, डंक चलावै फण ताण कै ।।4।। मालिन हार को ले जाकर नौंटकी को दे देती है तो नौंटकी हार को देखकर पड़ी प्रसन्न हुई और कहने लगी मालिन सच बताओ यह हार किसने बनाया है। मालिण कहने लगी कि यह मेरे भाणजे की बहू ने बनाया है। तो नौंटकी कहने लगी मैं जल्दी तेरे भाणजे की बहू से मिलना चहती हूं। अब मालिण फूलसिंह के पास जाकर कहने लगी तूने तो मैं मरवा दी। फूलसिंह कहने लगा कि तुम घबराओ मत मैं बहू बनकर चलती हूं और आगे क्या कहने लगया- मालिण ल्या दे मनैं समान जै चालण की तावल कर री सै ।।टेक।। देख लिया बागां मैं फिर-फिर, दुखड़ा ठाणा होगा सिरे सर, तेरी तर-तर चालै सै जुबान, मेरी बागां में मां सी मर री सै ।।1।। घाल लू प्रेम रूप का काजर, घर के सब तज दिए मुन्सिफ नाजर, हाजिर परदेशी की ज्यान, जाणूं सिंहणी पिंजरे में घिर री सै ।।2।। बहू बण ज्यांगा खूब अनूठी, जोड़ दूंगा घणे दिनां की टूटी, कदे तेरी झूठी जा लिकड़ दुकान, जिसमैं तू छल का सौदा, भर री सै ।।3।। कहै लखमीचन्द छन्द धरै खूब, बहोड़िया बण ज्यांगा तेरी रूब-रूब, डूब ज्यागा अधम बिचालै बेईमान, सतपुरुषां की नौका तर री सै ।।4।। अब फूलसिंह मालिण से क्या कहता है- मींह बरसण नै होरया सै पर बादल पाडैगी, काची अस्नाई में बेहुदी मेरा नेग बिगाड़ैगी ।।टेक।। मनैं मत भरमावै मन भर कै, हटग्या अलग तेरे तै डर कै, बाटां की बराबर धर कै, के लाल हीरां नै हाडै़गी ।।1।। मनैं न्यू बोली परे सी नै खेल, कौण सै घी में मिलावै सै तेल, इन कड़वे बोलां की सेल बदन के पार लिकाडैगी ।।2।। आदमी मैं सू दिल्ली धोरे का, खेलणियां मत समझै गोरे का, इस प्रदेशी छोरे का बेहूदी नक्शा, झाड़ैगी ।।3।। मैं धाया तेरे लाड़ नैं, मारै दूर खड़ी टाडां नैं, इस प्रदेशी के हाड़ां नै, होणी कित साडैगी ।।4।। मारै खड़ी-2 टाडां नैं, मखमल मिलै नहीं गाढ़ा नै, इस लखमीचन्द के हाडा नै हौणी कित साडैगी ।।5।। अब मालण क्या कहती है- मैं मरी रे बटेऊ लोग, इब क्यूकर लिकडूं बारणैं ।। टेक।। तेरै कोन्यां शादी गमी, मेरै हुई सब राहयां तै कमी, राम रमी तेरी रे बटेऊ लोग, गई डोब मेरे रोजगार नै ।।1।। तू मेरी मरती की दया ले, मनैं नौटंकी दुखड़ा दे, तनै या के करी रे बटेऊ लोग, मेरा लिया खोस टूक तेरे हार नै ।।2।। मालिण नौटंकी तैं डरै, बचण का जतन कौण सा करै, तेरै ना जरै रे बटेऊ लोग, मैं पीटी नौंटकी बदकार नैं ।।3।। लखमीचन्द होले नै तगड़ा, मेरै लिया लाग बहतेरा रगड़ा, झगड़ा बरी रे बटेऊ लोग, बहोड़िया बण रटकै करतार नै ।।4।। मालण क्या कहती है- इसमैं के धर्म बिगड़ता तेरा मैं तनैं भेद कहूं सारा रे ।।टेक।। सोचूं थी घणा अकलबन्द चातर, मतना मारै ईंट कै पात्थर, भषमासुर मारण खातिर, विष्णु नै रूप जनाना धारया रे ।।1।। तेरे तै बोल कहया साचा था, मनैं पहलम झटकै जाच्यांर था, एक दिन दशरथ भी नाच्या था, ना सिर परशुराम नै तारया रे ।।2।। तू सै अकलबंद घणा स्याणा, तेरे तै मैं ना करती धिंगताणा, एक दिन बणा भीम जनाना, कीचक हांगे तै मारया रे ।।3।। लखमीचन्द का छन्द खरया था, तेरै ना साचा बोल जरया था, एक दिन कृष्ण नै भी रास करया था, ब्रज में उठा झन्का र रे ।।4।। फूलसिंह मालण को क्या कहता है- कदे भरम बात का फूटज्याक री, आड़ै परदेशां का काम सै ।।टेक।। ऐ री वा सै राजा की छोरी, एक लिकड़न की राख लिए मोरी, कदे डोरी हाथ तै छूटज्या री, मैं एकला मरूं आडै थारा गाम सै ।।1।। मैं डरूं सूं सीले तात्या तैं, उन भिरड़यां केसे छत्या तैं, कदे मेरे हाथा तै टूटज्या री, वो रूत का पका पकाया आम सै ।।2।। तू परदेशी का रखिए ध्यान, कदे फन्दे में फंसज्या, ज्यान, कदे मेरा सामान उठज्या री, मेरा हिया बड़ा मुलायम सै ।।3।। लखमीचन्द छा रही गिरदिश, आज हम गए फन्दे में फंस, रस कदे कोए और घूटज्याठ री, नाम तै मेरा ऐ बदनाम सै ।।4।। फूलसिंह मालण से क्या कहता है- मालिण तेरा दर्द मिटाऊंगा, राख यकीदा मन मैं ।।टेक।। जा झपट कै लिया लत्ते चाल, कदे कर बठै ना आल, मालण जल मुरगाई की ढाल लरज कै तनै दिखाऊंगा, इत्र मल ल्यूं गा, इस छडे से बदन मैं ।।1।। न्यूं के लेख लिखे टल ज्यांगे, मेरे सब कर्म करे फल ज्यांगे, माली की पक्षी तक जल ज्यांगे, जब बणकै बहू लखाऊंगा, आंख जैसे तेग कटीली रण मैं ।।2।। मेरी बेशक बिगड़ज्यां लाज, हौणी थी सो होली आज, पर तेरे सिद्ध कर दूंगा काज, जब मुंह का साज सजाऊंगा, देखिए किसे बिजल से पाटैंगे घन मैं ।।3।। गल मैं घला विपत का फन्द, मेरे सब छूटे ऐश आनन्द, न्यू कहैं ब्राह्मण लखमीचन्द, छन्द की कली मैं मिलाऊंगा, ज्ञान सतगुरु तै लिए बचपन मैं ।।4।। आगे अब फूलसिंह क्या कहता है- कंवर नै झट गहने का डिब्बा लिन्हां ।।टेक।। गहने ही का डिब्बा लिन्हां करने लगा सिंगार, डांडे बाली करण फूल झुबली की झनकार, मुंह का साज सज रहा बिन्दी की बुरी मार, गहना तो एक है पर ढंग न्यारे-न्यारे घड़े, हंसला, हमेल, हार गले बीच सारे पड़े, मांग में सिन्दूर सोंहवै नैनों पै सितार जड़े, मद जोबन का लिख चुका था सफीना ।।1।। बेशर बुलाक शर्मा नैनों अन्जन स्यार रही, घूंघर वाले बाल चोटी नागणी सी फुंकार रही, सीने उपर चोली, छाती छागल अंगिया पहर रही, गोरा सा बदन गोरी लरज रही बणी ठणी, चौकी माला चम्पा कली जड़ी विच हीरे की कणी, मुंह का साज खूब सजा सर्प केसी दमकै मणी, कर पंखा रहया सुखा पसीना ।।2।। टड्डे टांड लटकण महेल पछेली और पहने छन, कंगनी पोंहची नौगरी और चूड़ियां पै लागै मन, गूंठी छल्ला छाप आरसी पहन लिया छन कंगन, हथ डण्ड बाजू बन्द बाजू चौंक ऊपर नजर पड़ी, तालियों का झब्बा और उलड़ी दुलड़ी पड़ी लड़ी, शीशे में निहार गौरी लचकै बिजली सी खड़ी, देख कै मर्द का हो मुश्किल जीना ।।3।। कड़े छड़े-रमझोल पैरों में पायल सजै, बांक पजेब पाती झनकारा नहीं तजै, पल्लु नाड़ा चान्दी के थाम्बे तैं दूणे बजै, रेशम की साड़ी मद जोबन की पड़ैं झोल, जुता तो पहना नहीं बिच्छुओं की मचै रोल, मानसिंह ख्याल करै कोयल तै भी मीठा बोल, कहै लखमीचन्द गुठी मैं गजब नगीना ।।4।। अब फूलसिंह मालिण से दोबारा क्या कहता है- क्यों मालिण मेरा धर्म बिगाड़ै, मेरी आंख्यां आगे तै चाली जा ।।टेक।। मै जब पैर धरूंगा डट-डट कै, चालूंगा उल्टा हट-हट कै, छोरे मरज्यांरगे कट-कट कै, जब मेरी बहू बणन की शाली जा ।।1।। किसे का कर्म सोज्या सै, कोए पढ़ कै पास होज्या सै, लूट माफ होज्या सै, जब चल्यास बाग का माली जा ।।2।। तू सुण कै बात हमारी, मैं कह दूंगा न्यारी-न्यारी जब मारूंगा तेग दूधारी मेरा कौन निशाना खाली जा ।।3।। लखमीचन्द मौत शीश पै घोरै, कदे बिठादे ना कालर कोरै, जब जा बीर मर्द के धोरै, बतादे कसर कौण सी घाली जा ।।4।। राजकुमार फूलसिंह जनाना भेष करके मालिन के साथ नौटंकी के महल की ओर चल दिया। महल की डयोढ़ी पर एक अन्था रहता था। उससे कुछ बातें करने के बाद उसे पहचान लिया कि यह पुरुष है। लेकिन फूलसिंह ने अन्धे को पांच असर्फ दे दी और कहा कि यदि तुमने शोर किया तो खत्म कर दूंगा। ये कहकर फूलसिंह व मालिन नौंटकी के महल में पहुंच गए और मालिन ने राजकुमारी से कहा मेरे भानजे की बहू हाजिर है ये सुनकर राजकुमारी ने मालिन को वापिस भेज दिया और मालिन के भानजे की बहु से नौटंकी क्या कहने लगी- मिलण बुलाई आई देर मैं बहू, कद की मरूं सू तेरी मेर मैं बहू ।।टेक।। बात झूठी हो सै बेगोरी, तनै परखैगा परखणियां जौहरी, बुरी तेल की कचोरी खांसी खेर में बहू ।।1।। तेरी चीज बणाई हुई पागी, देखते ही दिल पै आनन्दी सी छागी, तेरे हार के मैं आगी हेर फेर मैं बहू ।।2।। रूप घी केसी जोत बली सै, जाणूं घन मै की बिजली सै, तू खांड की डली सै शक्कर ढेर मैं बहू ।।3।। मनैं तू इसा मीठा करकै जाणी, सुथरी श्यान प्रेम भरी बाणी, जैसे एक तोला ना पाणी दूध सेर मैं बहू ।।4।। गुरु मानसिंह स्वर्ग किनारा, बैठ कै मतलब समझ लिया सारा, लखमीचन्द का छप्पर न्यारा घेर में बहू ।।5।। फूलसिंह जनाने भेष में ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सचमुच स्वर्ग की अप्सरा हो। राजकुमारी ने हाथ मिलाने की इच्छा से उसकी और हाथ बढ़ा दिया। उधर मालिन के भानजे की बहू (फूलसिंह) ने प्यार से राजकुमारी के हाथ को थाम लिया और दोनों की खुशी की सीमा न रही। इस अवस्था का वर्णन कवि किस ढंग से करता है- आनन्द होंण लगे काया मैं जब हाथ मिले हाथां मैं, मिश्री केसी डली घुलैं थी, आपस की बात मैं ।।टेक।। टोहे तै भी मुश्किल मिलती इस ढंग की हरियाली, दोनों पौधे त्यार करे तनैं धन-धन कारीगर माली, एक गोरी एक श्याम वर्ण की जुल्फ नाग सी काली, गहणे के मैं लथपथ होरी झुकी मेवा केसी डाली, सेब अंगूर लपेटण जोगे केले के पातां मैं ।।1।। छम-2 छन न न न करती चाली मुरगाई की ज्यूं चाल छबीली, लचके तीन पड़ैं मुड तुड़ कै काया करली ढीली, होठां पै पानां की लाली मीठी बोल रसीली, चन्द्रमा सा चेहरा दमकै, चमकै आंख कटीली, इसा रूप घड़ण की अकल, कड़े तै आगी बेमाता नै ।।2।। रूप जनानां चढै मर्द पै ज्यों तस्वीर लिकड़गी, जती सती के मेल होण की समय आण कै भिड़गी, नौटंकी थी जात बीर मिलते हाथ कलाई मुड़गी, पर दुख नहीं मान्याम प्रेम भरकै दूणी सीलक पड़गी, जैसे मां कै सीलक होया करै सै बालक की लातां मैं ।।3।। घर आए का आदर करणा मान बड़ाई हो सै, जती सती के दिल के अन्दर खुद चतुराई हो सै, गुरु मानसिंह कहैं झूठे रंग की कम रोशनाई हो सै, याद कवि कै छन्द धरण की, घड़न्त सफाई हो सै, कहै लखमीचन्द सच्चे प्यारां के हरदम गुण गाता मैं ।।4।। दोनों आपस में बात करते हैं- मिश्री में रस आया करै तेरी बोली प्यारी केसा के ढंग बहू तेरा जवान उमर में भेष कंवारी केसा ।।टेक।। ना दुनियां के पापड़ बेलूं कितनाएं कष्ट बदन पै झेलूं, जाण बूझ कै कोन्या खेलूं, खेल जवारी केसा ।।1।। डूबैगी कित ध्यान जच्याष सै , बिल्ली कै घी नहीं पच्या् सै, ईश्वर नै संसार रच्याच सै, खेल मदारी केसा ।।2।। टालूंगी जै दुख टलग्या तै, दिल का फूल कमल खिलग्या तै, दुनियां के में वर मिलग्या तै, श्यान हमारी कैसा ।।3।। कई बै कहली एक सुणैं ना, आंगलियां पै घड़ी गिणैं ना, बिन बालम के रोब बणै ना, राज दुलारी केसा ।।4।। लखमीचन्द छन्द धर नहीं सकता, कली काफिया भर नहीं सकता, दुनियां में कोए कर नहीं सकता, रास मुरारी केसा ।।5।। फूलसिंह नौटंकी की तारीफ करता है। कैसे- क्या तारीफ करूं जोबन की, रंग चन्दा की उनिहार खिल्या, गहणां वस्त्रक पहन रही सखी, तेरा खूब सिंगार खिल्या ।।टेक।। मुंह का साज बोरला चमकै, पल्लू तक चोटी आई, इत्र फलेल मले हुए तन में, जुल्फल नागणी सी लहराई, नक-बेसर और बिन्दी बैना, मस्तक पै रोली लाई, नैन कटीले रतनाले, तीजै घली हुई स्याही, देख खुशी हुआ दिल मेरा, ठीक चमन गुलजार खिल्या ।।1।। गुलीबन्द जुगनी कंठी माला, बीच झालरा पड़या होया, जबर सा सोने का हंसला, जो कणी मणी से जड़या होया, छाती छागल रत्न जड़ाऊ, मोर सामने खड़या होया, कई लचक पडैं थी कड़ में, नूर कुदरती चढ़या होया, जैसे कातक की पूर्णमासी नै, चन्द्रमा एक सार खिल्या ।।2।। हाथ दंड, बाजू बन्द नौगरी, पहुंची हीरे रत्न जड़ी, पहर कांगणी गजरा कर में, छनकगण झनकार पड़ी, चुड़ी पहर सुहाग भाग की, बण बिजली सी त्यार खड़ी, आरसी और हथफूल हाथ में, एक सोने की बन्धी घड़ी, टाड गोरी बईयां के में, जोबन बाग बहार खिल्या ।।3।। उपर ओढ़या चीर हजारी, नीचै दामण झोल पड़ी, अनहद बिछवे पायल बाजैं, रमझोलां की रौल पड़ी, बांक पांजेब पाती कड़ी, पिंडली गोरी गोल पड़ी, तबियत करती ना पहरण नैं, बहुत चीज अनमोल पड़ी, लखमीचन्द सतगुर का बण कै हरदम ताबेदार खिल्या ।।4।। फूलसिंह ने जब नौटंकी को तैयार होने के बाद देखा तो क्या कहा- खोलते हें किवाड़, किसी बिजली सी चमकी ।।टेक।। हांडै सै छम-छम करती, किसी मुरगाई सी तिरती, धरती ले ज्या बिवाड़, मैं भी गैल समाजयां दम की ।।1।। किसी दांता पै ला रही मेषी, मैं माणस परदेशी, मुरगाई केसी नाड़, दिखावै धमकी ।।2।। बखत टाले तै कोन्या टलता, माणस ना आच्छी ढाल सम्भलता, बलता रूप का मिराड़, परी नई रै किस्म की ।।3।। लखमीचन्द कहै बात सही, सतगुर जी की बाणी लही, किसी रही दिदयां नै पाड, नाक जाणूं नोक कलम की ।।4।। नौटंकी और फूलसिंह बाग में आ जाते है, नौटंकी भानज बहू को गाने व गीत सुनाने को कहती है- झुकज्या रे बदला पिया जी के देश, पिया परदेश ।।टेक।। कोयल केसा पर करूं ऐ, तीजां के दिन सिर करूं ऐ, लुक जा रे बदला, सूकते ना केश ।।1।। रात-दिनां गोरी पिया जी के चेत में, मोठ बाजरा थलिया रेत में, ढुकज्या रे बदला बरस हमेश ।।2।। सखी सहेली सारी साथ में हे, पवन कैसे झोंके लगे गोरे गात में हे, रूकज्यो रे बदला कटै कलेश ।।3।। लखमीचन्द काया दुख नै जाकड़ी, जल्यान आला इन्धन गोसा लाकड़ी, उकज्या रे बदला कटै कलेश ।।4।। भान्जे की बहू नौंटकी को गीत गाकर बाग में सुनाती है- मनैं बालक छोड़े रोवते, चाकी मैं छोड़या चून, नगोड़े ईखड़े तनै बहुत सताई रे ।।टेक।। जली या खेती बणी खुभात की, चैन पडै ना दिन रात की, सब साथण छोरी साथ की, सब सखियां का मजबून, नगोड़े ईखड़े तनैं बहुत सताई रे ।।1।। सखी दिन में ईंख नुलावणा, सांझ पडै घर आंवणा, फिर पीस और पो कै खुवावणा, दई दुख विपता नै भून, नगोड़े इखड़े तनै बहुत सताई रे ।।2।। इस दुख विपता नै काया जाकड़ी, ज्यों जाला पूरै माकड़ी, आले गोसे लाकड़ी ना रहा बदन में खून, नगोड़े इखड़े तनैं बहुत सताई रे ।।3।। मनै किसे खोटे कर्म किए, मेरी मरती की दया लिए, लखमीचन्द मेरे राम किसे नै मत दिए, या बीरां आली जून, नगोड़े इखड़े तनै बहुत सताई रे ।।4।। मालिन ने कहा, राजकुमारी क्या हार पसन्द आया। राजकुमारी ने कहा-हार पसन्द आने की वजह से ही तुम्हें बुलाया है, मालिन ने कहा तुम बहुत सुन्दर हो। यह कहकर राजकुमार ने क्या कहा- तेरे रूप का इसा चान्द णा जाणूं, तेज तेग जंग की का, तेरे हार नै माली की मन मोह लिया नौंटकी का ।।टेक।। राम समझ कै करया करूंगी तेरे रूप की पूजा, हम तुम दोनों रहैंगी महल मैं और नहीं कोए दूजा, तेरे डटण तै मेरे गात का हो सब दर्द रफूजा, तेरे पतले होंठ और मीठी बाणी ज्यों मिश्री कैसा कूजा, मैं तलै पडूं चाहे उपर खरबूजा तेरै हर्ज नहीं बंकी का ।।1।। बिना ज्ञान कौण जाण सकै, ईश्वर की परम गति नैं, कड़ै ल्हजको कै राखै सै तनै हूरां कैसे कती नै, माली के घर जन्म दिया तेरी बैरण पौंच रती नै, तेरे केसी सति नै देख हो आनन्द मर्द जति नै, मिल्या पूर्बला फल तेरे पति नै, उस ब्या हवण रात रंग की का ।।2।। मेरे बदन के उपर पड़ती तेरे रूप की साया, केले केसी गोभ लरजती पतली-पतली काया, बेहमाता नै अलग बैठ, तेरा जोबन खूब बणाया, रूप द्रव्य धन गुण विद्या दे, खुद ईश्वर की माया, मालण कहै थी वैसा ही पाया तेरा ढंग चीता लंकी का ।।3।। हम तुम दोनों रहैंगी महल में क्यूं बागां नै सहरी, तेरे मिलण तै मेरे गात मैं कसर बता के रहरी, कहै लखमीचन्द तकदीर मेरी सब कर्मां का फल दे रही, तेरे पतले होंठ और बाणी मीठी जाणूं शरबत के मैं भे रही, तेरी जीभ जली दे रही मजा जाणूं बूरा की फंकी का ।।4।। नौंटकी ने कहा आज तुम मेरे साथ अतिथि बनकर ठहरोगी । फूलसिंह ने कहा मैं पतिव्रता स्त्री हूं। मैं अपने पति से अत्याधिक प्रेम करती हूं। मैं उनके बिना नहीं रह सकती। इसके अतिरिक्त घर पर बच्चे भी हैं जो मेरे बिना नहीं रह सकते। फूलसिंह ने फिर नौंटकी को बताया कि हमारे यहां एक दानव रहता है, वह एक मनुष्य की बलि प्रतिदिन लेता है। मेरे पिता की प्रतिज्ञा है जो कोई उस दानव का वध करेगा मेरी शादी उसी से होगी। अभी तक कोई भी उसे मारने में सफल नहीं हुआ है। इसलिए मैं अभी तक कंवारी हूं। नौंटकी की ठहरने की बात नकारते हुए फूलसिंह ने क्या कहा- हे मेरा बालम दुखड़ा पावैगा हे मनैं तेरी सू ।।टेक।। फूलसिंह:- खोटी हो मर्दां की जात, मेरा दुख पावै कोमल गात, ठहर भी गई तै आज की रात, मेरे बालक नै कूण खिलाहवैगा, हे मनै तेरी सूं ।।1।। नौटंकी:- चाहे लुटज्या: माल खजाना, उन बन्दां नै परवाह ना, जिन नै हो बालक की चाहना वो आपै गोदी मैं ठावैगा, हे मने तेरी सूं ।।2।। फूलसिंह:- मनै घी की तरियां ता देगा, सब तरियां अजमा लेगा, बालकां नै गोदी में भी ठा लेगा, पर चुची कोण पिलावैगा, हे मनै तेरी सूं ।।3।। नौंटकी:- जो बुरी बात सीखैंगे, वो पाछे तै झिखैंगे, जब बालक भूखे मरते दीखैंगे, तै रबड़ की चूची तुरन्त मंगवावैगा, हे मनै तेरी सूं ।।3।। फूलसिंह:- तू सब तरियां समझाली, तेरी ना एक अकल में आली, जै रबड़ की चूची भी मंगवा ली, मेरे इस जोबन, कै के आग लगावैगा, हे मनै तेरी सू ।।4।। नौंटकी:- ओ पापी सै कूण कड़े का, चुभज्या कांटा विघ्नन छडे का, तेरा जोबन सै बांस बिड़े का, इसनै नट बणकै लरजावैगा, हे मनै तेरी सूं ।।5।। फूलसिंह:- मेरा कोन्या दर्द सुणैं, इब तेरे नाटें तै के बणै, आड़ै मनै रूसी नैं कौण मनावैगा, हे मनै तेरी सू ।।6।। नौंटकी:- जल्यां मरज्यागा मार कै दूण, होज्यागा भुरंठ एंठ कै जूण, मेरे बालकां नै कुण खिलावैगा, हे मनै तेरी सू ।।7।। फूलसिंह:- तन पै दुख सुख भी पा लेगा, अपणा मन कपटी भी समझा लेगा, जल्याम जै गोदी में भी ठालेगा, तै उन्हें सूची कौण पिलावैगा, हे मनै तेरी सू ।।8।। नौटंकी:- लखमीचन्द क्यूकर त्यागैगा, उसका मन पक्षी बण भागैगा, जले कै जब घणा प्रेम जागैगा, तेरे हंस हंस लाड लड़ावैगा, हे मनै तेरी सू ।।9।। फूलसिंह:- लखमीचन्द कर भजन राम का, कुछ भी ना उठै तेरे चाम का, वो तेरा बालम नहीं सै काम का, जो स्वर्ग में डले बगावैगा, हे मनै तेरी सू ।।10।। फूलसिंह, नौंटकी आपस में बात करते हैं- तू कहरी सै मर्द बणन की, मेरे बालक गलियां में रलज्यारगें ।।टेक।। फेर कदे रोवै ना सिर धुण कै, कदे डूबै ना पढ़-गुण कै, जब मेरा चालैगा घूंघट तण कै, तेरे प्यारां के दिल शिल्यांण गे ।।1।। आगै अप अपणा भाग सै, दूर होज्याय मैं इस लाग से, हे मेरा जोबन नारद जी का राग सै, बह कै पत्थर चलैं पिघल्याग गें ।।2।। दिल में क्यूं छा री सै अन्धेरी, पुतली क्यों मन मोहन की फेरी, जब बहू बणूंगी तेरी, देख कै लोग पड़ोसी जलज्यांगे ।।3।। लखमीचन्द आंगलियां घड़ी गिणूंगी, ओढ पहर कै बणू ठणूंगी, ए जब बहू बणूंगी तेरी, मेरै घी केसे दीवे बलज्यांगे ।।4।। फूलसिंह नौंटकी को कहता है- प्रदेशी नै मरवा कै तेरै कै हिथ्याजागा गोरी रै ।।टेक।। मेरी सुनिए बात ध्यान की, तू सुथरी सै घणी श्यान की, अरै एक बै हवा ले लेण दिए आसमान की, मै पतंग बणूंगा तू डोरी रै ।।1।। मेरे धोरै ना पैसा धेली, क्यों खपवावै ज्यान अकेली, एक भेली पै जी ललचावै, थारे सखर की जीभ चठोरी रै ।।2।। दुख का काला नाग लड़ा सै, कह सै तू बे नै ठाली बैठ घड़या सै, मेरै मरज्याणी सोग पड़ा सै , डाण तेरी मटकै पोरी पोरी रै ।।3।। लखमीचन्द न्यूं के ठहरी सै, तू मेरी कद की बैरी सै, तू कहरी सै बहू बणन की, डाण मेरे जी नै मुश्किल हो री सै ।।4।। वार्तालाप से नौटंकी को यह शक हो जाता है कि मालिन के भानजे की बहू कोई मर्द है। मालिन ने मुझसे छल किया है। नौटंकी ने तत्पश्चात कहा कि कितना अच्छा होता जो तुम मर्द होते- इसी करै भगवान महारे मैं तै कोए से नै मर्द बणा दे, नजर मिला कै देखणियां का ह्रदया जोड़ी शरद बणादे ।।टेक।। हम तुम दोनू छंट भी जां तै, एक जगह पै डट भी जां तै, आह करूं ना कट भी जां तै, मनैं कचरी तनै करद बणा दें ।।1।। हरदम नेक नजर ताकूंगी, कदे ना बुरा वचन भाखूंगी, तनै काया के मैं राखूंगी, मनैं रोगी तनै दर्द बणादे ।।2।। सदा बदी करण तै डरै, लखमीचन्द छन्द नै धरै, जै ईश्वर की मेहर फिरै, रंग हरा सुर्ख शाह जरद बणादे ।।3।। फूलसिंह क्या कहता है- डाण तनै कित की भेली शरीर का ब्योंत बिगड़ता आवै सै ।।टेक।। फूलसिंह:- सदा तै मैं कै छुरा सै, रस्ता चलना ना ठीक कुराह सै, डाण थारा सर-वर पीर बुरा सै, बीरा के मर्द बणावै सै ।।1।। नौटंकी:- काटैंगे जिसा बोलिया, तनै हंस-हंस कै भर्म खो लिया, जै मर्दां आला ब्योंत हो लिया, तै क्यूं ना कपड़े तार बगावै सै ।।2।। फूलसिंह:- प्यारा बण कै नहीं दगा दूं, तू सोवै तै आप जगा दूं, क्यूकर कपड़े तार बगादूं, माली की नैं तेरे तै शर्म आवै सै ।।3।। नौटंकी:- यो पीरां का नहीं काम सै, गया भेली के पलट नाम सै, जले तू असली मर्द जाम सै, क्यों पीरां कै दोष लगावै ।।4।। फूलसिंह:- क्यूकर बोझ उतरज्या सिर का, मैं पक्षी बणग्या बिन पर का, सरवर पीर सै थारे घर का, मेरे कुणबे का क्यूं नाश करावै सै ।।5।। नौंटकी:- क्यूं तू डंकै चढया ढोल कै, के लेगा मेरा जिगर छोल कै, जले तू मीठा बोल-बोल कै, दूर खड़ा क्यूं मुंह टरकावै सै ।।6।। फूलसिंह:- लखमीचन्द न्यूं का न्यूं सै, तू इसी ऊत घरां की क्यूं सै, आच्छा टरकाऊंगा मेरा मुंह सै, भला तू क्यूं नाक चढावै सै ।।7।। इस बात का पता लगने पर नौंटकी ने फूलसिंह को गिरफतार करवा दिया, कहा कि फूलसिंह ने मालिन के साथ मिलकर मेरे साथ धोखा किया है । फूलसिंह को पकड कर जब राजा के सामने पेश करते हैं तो उसे फांसी की सजा का हुक्मह सुना दिया जाता है । उसके बाद कुछ दरबारियों ने कहा कि महाराज इसे दानव की भेंट चढा दिया जाये तो अच्छा होगा, एक आदमी भी बच जायेगा, राजा इस बात से सहमत हो जाते हैं । जब फूलसिंह को दानव के सामने ले जाने लगते है तो वह कहता है कि मैं छत्री हॅूं मेरे को खाली हाथ दानव की भेंट मत चढाओ मैं लडकर मरना चाहता हूँ । फूलसिंह ने दानव के साथ युद्ध किया और दानव को मार गिराया । दानव के मरने से राजा की प्रतिज्ञा भी पूरी हो जाती है तो राजा फूलसिंह का विवाह नौंटकी के साथ कर देते हैं। अब फूलसिंह नौंटकी को लेकर मुलतान शहर से स्याालकोट आ जाता है और सभी खुशी से अपना जीवन व्यतीत करने लगते हैं।

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