किस्सा नल-दमयन्ती : पंडित लखमीचंद (हरियाणवी कविता)

Kissa Nal-Damyanti : Pandit Lakhmi Chand (Haryanvi Poetry)


यह राजा नल का चरित्र ब्रहदस ऋषि महाराजा युधिष्ठर को सुना रहे थे। युधिष्ठर ने कहा कि महाराज हमें नल-दमयन्ती का चरित्र खोलकर सुनाने का कष्ट करो। अब ऋषि जी सारी कथा सुनाते हैं-

समझ ना सकते जगत के मन पै, अज्ञान रूपी मल होग्या, बेईमाने मैं मग्न रहैं सैं, गांठ-गांठ मैं छल होग्या ।। टेक ।। भाई धोरै माँ जाया भाई, चाहता बैठणा पास नहीं, मात—पिता गुरू शिष्य नै कहैं, मेरे चरण का दास नहीं, बीर और मर्द कमाकै ल्यादें, पेट भरण की आस नहीं, मित्र बणकै दगा कमाज्यां, नौकर का विश्वास नहीं, जब से गारत महाभारत मैं, अठारा अक्षोणी दल होग्या ।।1।। नियम-धर्म तप-दान छूटगे, न्यूं भारत पै जाल पड़े, इन्द्र भी कम वर्षा करते, जल बिन सूखे ताल पड़े, बावन जनक हुऐ ब्रह्मज्ञानी, वेद धर्म के ख्याल पड़े, राजा शील ध्वज के राज मैं भी, बारह वर्ष तक काल पड़े, उस काल का कारण समझण खातिर, त्यार जनक का हल होग्या ।।2।। शिक्षा-कल्प व्याकरण-ज्योतिष, निरूकत छन्द की जाण नहीं, श्रुति-स्मृति महाभारत, समझे अठारह पुराण नहीं, बिन सतगुरू उपनिषदों के, ज्ञान की पहचान नहीं, पढ़े-लिखे बिन मात-पिता गुरू, छोटे-बड़े की काण नहीं, सत-पत गोपत विधि भाग बिन, सब कर्तव्य निष्फल होग्या ।।3।। दुमत-दांत दमयन्ती-दमन, राजा भीमसैन कै कुन्दरपुर मैं, देवता ऋषि और पितृ प्रसन्न कर, आनन्द करते थे घर मैं, ऋषियों द्वारा यज्ञ कराकै, चार औलाद मिली वर मैं, लखमीचन्द धर्म के सेवक, कभी नहीं रहते डर मैं, सतयुग मैं एक निषध देश म्य, वीरसैन कै नल होग्या ।।4।। राजा नल के रूप की प्रसंसा करते हुए कवि ने लिखा है- कंवल से नैन नाक सुवां सा, मुख चन्दा सा गोल जिसका, झूठ कदे ना बोल्या करता, रूप घणां अनमोल जिसका ।। टेक ।। नल जंगल मैं फिरया करै था, सदा अधर्म से डरया करै था, प्राण खींच तप करया करै था, सत मैं पूरा तोल जिसका ।।1।। धर्म के छिद्र टोहया करै था, भूल मैं कदे ना सोया करै था, देवतां तक के मन मोहया करै था, प्रेम का मीठा बोल जिसका ।।2।। घी सामग्री लगै थी हवन मैं, भूप कै घाटा ना था धन मैं, हर दम रहै थी नीत भजन मैं, चित नहीं डामांडोल जिसका ।।3।। लखमीचन्द मत पड़ कुऐ मैं, जाणै के लिखी भाग मूऐ मैं, राज जिता दिया था जूऐ मैं, कलू नै बजाकै ढोल जिसका ।।4।। एक दिन राज जंगल में शिकार खेलने चले गये, उनको एक हंसों की लार नजर आती है- राजा नल नै जंगल मैं, एक हंसा की डार पाई ।। टेक ।। हंस जंगल के बीच विचरै थे, खुशबोइ लेकै पेट भरै थे, जड़ै कै हंस फिरै थे, बण की शोभा गुलजार पाई ।।1।। हंसा के-सा गात भी के सै, विधना बिना हाथ भी के सै, दो-चार की बात भी के सै, पूरी सौंवा की लार पाई ।।2।। था नल का भी रूप निराला, हंसा नै देख हुआ मतवाला, जब हंसा नै पकड़न चाल्या, वा डार उड़न नै त्यार पाई ।।3।। लखमीचन्द धरै नै धीर, एक तै पकड़ लिया आखिर, उस दिन की करले तबदीर, जिस दिन मृत्यु करार पाई ।।4।। राजा नल हंसों को देखकर, उनको पकडने के लिये आगे बढे तो सभी हंस भाग जाते हैं, परन्तु एक हंस को राजा नल पकड़ लेते हैं। वह हंस जानता था कि यह राजा नल है और बडा धर्मात्मा है। तब वह हंस राजा नल से क्या कहता है- राजा नल मारिये मत, जै दया करै तै मेरी, तेरे भाग कै नीचे दबकै, मैं भूलग्या हेरा-फेरी ।। टेक ।। सजनों तै ना खटकया करते, सहम नाड़ ना झटक्या करते, हम तेरे दर्शन नै भटक्या करते, मिलकै श्याम-सवेरी ।।1।। लड़ना चाहिए तैयार भी हो तै, हटै नही चाहे हार भी हो तै, भवसागर तै पार भी हो तै, चाहिए प्रीत घनेरी ।।2।। मनै तेरी लई आज आड ले, सुण बीरसैन के पूत लाडले, जो शरण पडे की ज्यान काढ ले, तै धर्म की डूबा-ढेरी ।।3।। लखमीचन्द कहै छाया धूप की, गर्ज मिटै ना अन्धकूप की, राज भीम कै बेटी तेरे रूप की, उसतै जोट मिलांदू तेरी ।।4।। हंस ने कहा अगर आप मेरी जान बक्श दो तो मैं कुन्दनपुर के राजा भीमसैन की लड़की दमयन्ती जो तुम्हारे रूप से मिलती जुलती है, मैं उससे तुम्हारी जोट मिला दूंगा। अब वह हंस अपने दूसरे साथियों के पास गया और क्या कहता है- आओ रै! हंसों विदर्भ देश, कुन्दनपुर नगरी चलैं जी ।। टेक ।। जो दमयन्ती के दर्शन पाले, देवतां तक के मन भरमाले, हूर के लम्बे—लम्बे काले घूमर वाले केश, दर्शन करते-ऐ दुख टलै जी ।।1।। बचग्या मैं मरने के भय से, नल की जोट मिलादूं ऐसे, जैसे, कवंल खिलै जल मैं प्रवेश, चन्द्रमा ज्यूं घन मैं खिलैं जी ।।2।। चीज सै वा दुनियां मैं अनमोली, ह्रदय बीच ज्ञान श्यान की भोली, जिस की मीठी बोली, दिल मैं पाप का ना लेश, दमयन्ती तै चल मिलैं जी ।।3।। कहैं लखमीचन्द प्रेम की बाणी, जब मिलै नल की जोट निमाणी, जब दमयन्ती बणज्यागी दमयन्ती, करकै हूरां केसा भेष, दोनों घर दीपक बलै जी ।।4।। उधर पहुंचने पर दमयन्ती ने हंसो को बाग में घूमते हूए देखा तो उसको वह हंस बहूत ही प्यारे लगे। वह उनको पकड़ना चाहती है और अपनी सखियों से दमयन्ती क्या कहने लगी- स्वर्ग केसा आन्नद म्हारे बाग मैं, सखी कर रहे हंस किलोल, हरी-हर म्हारे राम की माया ।। टेक ।। किसे रूप के फटकारे लगैं, जैंसे चांद-सूरज तारे लगैं, वैं हंस चले जब प्यारे लगैं, वा भी रही थी हंसणी सी डोल, हरी-हर म्हारे राम की माया ।।1।। किसी चम्पे की खिलरी कली, इतर की खश्बोई बदन मै मली, सखी हंसां कै पीछै चली, रही आओ-आओं करकै नै बोल, हरी-हर म्हारे राम की माया ।।2।। वैं हंस भगण लगे घणी दूर कै, सखी लाई थी जाल सा पूर कै, वोहे हंस हिथ्याग्या हूर कै, जिसनै पिछले जन्म का तोल, हरी-हर म्हारे राम की माया ।।3।। लख्मीचन्द कुछ विचारिये, न्यूं सोचण लगी पुचकारिये, वो हंस कहै मत मारिये, मै दयूंगा भेद नै खोल, हरी-हर म्हारे राम की माया ।।4।। जब दमयन्ती हंसो को पकड़ने के लिए आगे बढ़ी तो सारे हंस भाग गए, एक वही हंस पीछे रह गया और उसी को दमयन्ती ने पकड़ लिया, जिसको राजा नल ने पकड़ा था, पकड़ते ही उस हंस ने दमयन्ती से क्या कहा- वैं मारैंगे हंसा नै तो, जिनके ह्रदय हर ना, बात कहूंगा खोलकै, कुछ मरण तैं आगै डर ना ।। टेक ।। रहै सै किस नींद नशे मै लेटी, काया जा पिछले जन्मा चपेटी, बेटी, चाहिए सासरै हे! सदा बाप कै घर ना ।।1।। बात नै कुटुम्ब कै आगै फोड़िये, छोरी नल संग प्रीत जोड़िये, कसकै मतना मरोड़िऐ, मेरी तोड़ण जोगी पर ना ।।2।। तूं भी रूप गजब का लेरी, नल नै रटया कर श्याम सवेरी, उस तै जोट मिलै सै तेरी, और जोड़ी का वर ना ।।3।। लख्मीचन्द भली ठाणनियां, हम सै दूध नीर छाणनियां, हे! इस पद के जाणनियां, कै छोरी धन देही धड़ सर ना ।।4।। जब दमयन्ती ने राजा नल का नाम और प्रसंशा सुनी तो शरीर में एक दम रोमांच सा हो गया। वह कहने लगी क्या राजा नल मुझे चाहेंगे? हंस ने कहा कि मैं उसी का भेजा हूआ, आपके पास आया हूं, अब दमयन्ती उस हंस को छोड देती है और कहने लगी कि जाओ राजा नल को ऐसे कह देना- जाईये रे! हंसो राजा नल के पास, नल के मिलन की, मनै पूरी-पूरी आस ।। टेक ।। कदे नल रहज्या ना बिन बेरै, बात का ख्याल रहै ना तेरै, तेरे ही वचन का मेरै, सै पक्का विश्वास, तू ही तो कह था, नल सच्चा आदमी खास ।।1।। तू ही कहै था नल प्रीत पालना सै, मनै तूं उसके पास घालणा सै, कह दिऐ मामूली सा चालणा सै, कोस सौ-पचास, दमयनती की शादी मैं, हों पूरे रंग-रास ।।2।। तेरा कहणां मंजूर करूंगी, नल की इज्जत भरपूर करूंगी, पति के दुख नै दूर करूगी, बण चरणा की दास, तनै मौती भर-भर दूध पिलाऊं, सोने के गिलास ।।3।। लख्मीचन्द फिकर करूं निस दिन, जाणै मेरा रंज मिटैगा किस दिन, जिस दिन, बेदी रचकै अग्नि मै हों सामग्री का बास, जैसे पूर्णमाशी की रात नै, हो चन्दा का प्रकाश ।।4।। अब दमयन्ती राजा नल के बारे में अपने मन में क्या सोचती है- बेरा ना कद पार होऊंगी, पिया की सुमर मैं, दमयन्ती कुंद रहण लागगी, नल के फिकर मैं ।। टेक ।। हांसै खेलै और डोलै कोन्यां, बात नै किसे तै खौले कोन्यां, दासियां तैं बोलै कोन्या, अलग पड़ी रह घर मै ।।1।। अच्छया-अच्छया के मैं उनकै याद होंगी, बल्कि अपणे दिल से बाध होगी, जाणै किस दिन सुख-समाध होगी, नल प्रीतम को वर मै ।।2।। हंस की बातों से प्यार करै थी, ध्यान नल का हर बार करै थी, नहीं किसे तैं तकरार करै थी, क्योंकि लागगी जिगर मै ।।3।। लख्मीचन्द कहै खरी रहै थी, रात-दिन रंज मै भरी रहै थी, वा सूरत चित मैं धरी रहै थी, जैसे चन्द्रमा शिखर मै ।।4।। अब हर समय दमयन्ती का चेहरा मुरझाया सा रहने लगा, दमयन्ती राजा भीमसैन के पास गई, और क्या कहने लगी- दमयन्ती कुन्द रहण लागगी, बोलण तैं बन्द बाणी होगी, रचा स्वंयबर शादी करदयो, ब्याहवण जोगी स्याणी होगी ।। टेक ।। काम देव का जंग देखकै, बेटी का दिल तंग देखकै, दमयन्ती का ढंग देखकै, मुश्किल रोटी खाणी होगी ।।1।। चाहिये बात धर्म की कहणी, होगी तन मै विपता सहणी, स्याणी बेटी कवारी रहणी, दिन-दिन धर्म की हाणी होगी ।।2।। पहले थी नादान अवस्था, के समझै थी अज्ञान अवस्था, इब सोला वर्ष की जवान अवस्था, तनै भी बात पिछाणी होगी ।।3।। लख्मीचन्द छन्द धरया करैं थे, कर्म कर दोष नै हरया करैं थै, जो पहलम गृहस्थी करया करै थे, वैं छोड़दी बात पुदमयन्ती होगी ।। 4 ।। राजा और रानी दोनो की एक सलाह हो गई, तो फिर राजा भीमसैन ने दमयन्ती के स्वयंबर की घोषणा करदी। स्वंयबर की घोषणा मिलते ही नारद जी स्वर्ग में इन्द्र के पास गए, वहां उस समय इन्द्र सहित अग्नि, वरूण और यमराज उपस्थित थे। नारदजी स्वयंबर का कैसे वर्णन करते है- भीमसैन नै रचा स्वंयवर, राजाओं के मण्डल छागे, नारद ऋषि इन्द्र कै आगै, स्वर्ग मै जिकर करण लागे ।। टेक ।। एक दिन राजा भीमसैन की, ऋषियों से फरयाद हुई, ऋषियों ने यज्ञ रचया, पुत्रेष्टि पूर्ण हवन मर्याद हुई, यज्ञ हवन से तीन पुत्र, एक पुत्री चार औलाद हुई, इन्द्दमयन्ती, ब्रह्माणी, लक्ष्मी रूप में सबसे बाध हुई, जो कोए दमयन्ती नै ब्याहले, उसके फेर निमत जागे ।।1।। वरूण-इन्द्र यम-अग्नि, स्वर्ग तै चार देवता मिल चाले, सबके दिल मै यही चाव था, कि दमयन्ती मुझको ब्याहले, यह भी गुमान था म्हारे रहते, कौण मनुष्य जो परणाले, प्रारब्ध उद्योग करे बिन, कौण शख्स पदवी पाले, पूर्व-पश्चिम उतर-दक्षिण तैं, सब राजे आवैं भागे ।।2।। हंस के कहणे से राजा नल भी, दमयन्ती को चाहता था, यज्ञ-हवन से पित्तीर प्रसन्न कर, ज्ञान-दान सत दाता था, गऊ-ब्राह्मण साधु को प्रसन्न कर, सबसे वर पाता था, अर्थ सजाकर पवन बेग से, कुन्दनपुर को जाता था, रास्ते मैं मिले चार देवता, उधर से राजा नल आगे ।।3।। कामदेव केसी छवी स्वरूप, सूर्य के तेज ज्यूं नजर पड़या, हुऐ निराश देवता सारे, नल को देख कै मान झड़या, तूं सत्यवादी राजा नल है, सिद्ध कर म्हारा काज अड़या, लख्मीचन्द कहै इतनी सुणकै, हाथ जोड़ नल हुआ खड़या, नल जैसे सत्यवादी बन्दे, फेर मोक्ष का पद पागे ।।4।। निश्चित दिन पर स्वंयवर का आयोजन किया गया। कवि ने वर्णन किया है- लग्न महूर्त शुभ दिन आया, सभी राजाओं को सभा मै बुलाया, भीमसैन नै ब्याह रचाया, ब्रहम पूजा करकै !!टेक! सिंगरकै राजे न्यारे-न्यारे, सब गहणे आभूषण धारे, सारे थे ब्याह-शादी की चाहना मैं रत्न जड़ित कुण्डल कांना मैं, लाल-लाल होठ रचे पानां मैं, रस रंगत भरकै !!1! जुड़ी कुन्दनपुर मै महफिल इसी, नागों की भोगवती पुरी जिसी, ऋषि राजा देवता सारे, जैसे चान्द सूरज और चमकैं तारे, एक से एक शक्ल मै प्यारे, बैठे चित धरकै !!2! चली दमयन्ती माला लेकै हाथ, सब की नजर पड़ी एक साथ, किसा गोरा गात नाक सूवा सा पैना, चावल से दांत कंवल से नैना, चन्दा सा मुख मीठे बैना, लेज्यां मन हरकै !!3! गोत्र नाम सुणावै थे कदे, जो नर विद्या बल तै बधे, बख्त सधे सब ब्याह की रस्म के, लख्मीचन्द रंगरूप जिस्म के, पांच पुरूष मिले एक किस्म के, झट हटगी डरकै !!4! नारद जी के कहने पर चारों देवता भी स्वंयबर के लिए चल पड़े। रास्ते मे नल भी मिल जाते है और नल की सुन्दरता सभी देवताओं का चेहरा मुरझा गया। उन्हें पता था की दमयन्ती राजा नल को ही अपना पति चुनेगी। उन्हें एक योजना सूझी और वो राजा नल से कहते हैं हमारा एक काम है, वह आपको करना होगा। राजा नल हाथ जोड़कर देवताओं के सामने खड़े हो गए- राजा नल नै रस्ते में देवता मिले, कौण सो तुम चारों, हे! जी महात्मा भले ।।टेक।। खोलकै इन्द्र नै भेद बताऐ, वरूण-यम अग्नि पाऐ, हम दमयन्ती नै ब्याहवण आऐ, न्यूं सोचकै चले ।।1।। दूत बणाकै मुझको टेरा, तुम चाहते सोई मतलब मेरा, जो करैं सत में अन्धेरा, वै झूठे जा छले ।।2।। वरूण-इन्द्र यम-अग्न कहै तुझसे, कहै दिए वे चारों प्रसन्न तुझसे, उन चारो के मन तुझसे, हिलाऐ ना हिले ।।3।। दूत की आज्ञा मुझपै डारी, काम करूं जो रूचि तुम्हारी, थारे दर्शन तै मिटै तृष्णा म्हारी, सन्देह भी टले ।।4।। सच्चे पुरूष हटै ना डरकै, चलया जा बीच राज मन्दिर कै, जो नाटैंगे प्रतिज्ञा करकै, वे सदा पाप म्य गले ।।5।। नल देख सत नेम तोलकै, बात का ल्याणा सै भेद खोलकै, देवत्यां आगै झूठ बोलकै, नरक मै ढोये डले ।।6।। लख्मीचन्द वचन कहै सच्चे, सच्चे पुरूष काम करै अच्छे, बैठे हंसा के-से बच्चे, बड़े नाज से पले ।।7।। देवताओं ने राजा नल को दूत बना कर दमयन्ती के पास भेजा और कहा की कि चारों देवता इन्द्र, वरुण, अग्नि और यम तुम्हें को चाहते है। देवताओं की आज्ञा पाकर राजा नल दमयन्ती के महल में पहुँच जाता है- रोकया नही टोकया, नल पहुंचग्या भवन मै, बिजली कैसे चमकै लागै, गोरे-गोरे तन मै ।। टेक ।। राजा का रूप घणा अनमोल, देखकै सखी सकी ना बोल, गोरा मुख गोल, जैसे चन्दा चमकै घन मै ।।1।। यक्ष-गंर्धव कोऐ मायाधारी, सोचण लगी यू कोये देवता बलकारी, अप-अपणे आसण पै सारी, उठ बैठी पल-छन मै ।।2।। देखकै राजा नल की श्यान, कहण लगी तनै खूब घड़ी भगवान, दमयन्ती की ज्यान, जलगी काम की अग्न मै ।।3।। सिर दासी नै ठीक करया रै, तिलक मस्तक पै लाल धरया रै, चोटी जाणुं जहर भरया रै, नागणी के फन मै ।।4।। रूप की ठीक ज्योत सी बलती, नहीं थी कोऐ से भी अंग मै गलती, सखियां की ना जीभ उथलती, मुस्करावै मन-मन मै ।।5।। पतली कमर लचकती चालै, मोटे-मोटे नैन कंवल से हालै, सखी बोलै ना चालै, सांस घालैं भरी जवानी पण मैं ।।6।। लख्मीचन्द कहैं पाने दोनों, देवता तक नै माने दोनों, रूप के निशाने दोनों, जाणू गोली चालैं रण मै ।।7।। राजा नल से दमयन्ती पूछती है कि तुम कौन हो? और यहां पर कैसे आये हो? तब राजा नल क्या कहते है- देवताओं ने तुझको चाहया, नल मेरा नाम दूत बण आया, उनका एक संदेशा ल्याया, उनमैं तै वरिये ।। टेक ।। उनकी आज्ञा में रहण आला, तन पै पड़ै उसी सहण आला, झूठ कहण आला पाजी सै, उल्टा दोजख का साझी सै, जिसका तूं रूप देख राजी सै, उस मै चित धरिये ।।1।। उनका दूत समझ चाहे पायक, वैं हम तुमनै दर्शन दायक, तू लायक अकलमन्द स्याणी, वरूण-इन्द्र यम-अग्नि की बाणी, चाहे जुणसे की बण पटदमयन्ती, उमंग मै भरिये ।।2।। म्हारे मैं तैं वरले उननै न्यूं कहया, म्हारा-तेरा कुछ पर्दा भी ना रहया, उनकी दया तै तेरे दर्शन पाग्या, रोक्या नही अचम्भा छाग्या, न्यूं मत सोचै कौण कड़े तै आग्या, कती मतन्या डरिये ।।3।। मनै उनका करणा था योहे काम, देवता असली स्वर्ग का धाम, लख्मीचन्द राम गुण गावै, समय लिकड़ज्या हाथ नही आवै, इब तेरे मन मै जैसी आवै, वैसी-ऐ करीये ।।4।। राजा नल को अपने महल में देखकर दमयन्ती चकित सी रह गई। सोचने लगी की इतने पहरे के बावजूद भी यह कामदेव जैसा सुन्दनर पुरूष महल में कैसे आया। दमयन्ती ने नल को अपने पास बैठा लिया और क्या कहने लगी- सहम गई दमयन्ती , जाणूं कोऐ सुत्यो जाग, राजा तै बतलावण लागी, सब झगडां नै त्याग ।। टेक ।। वारूं ज्यालन रूप गहरे पै, मन मेरा ज्यूं चलै नाग लहरे पै, मेरे रक्षक खडे महल पहरे पै, आया कड़े कै भाग ।।1।। ये मेरी दासी अनमोली, देख तेरी सूरत भोली-भोली, तेरे रूप तलै दबकै ना बोली, गई कसूती लाग ।।2।। हम होरी सैं दुखी ब्होकत-सी, रूप तेरा गेरै करकै मौत सी, तेरे रूप की चसै जोत सी, हम रंग रूत के बाग ।।3।। कौण सै के मतलब सै तेरा, लग्याग मेरे रंग महल मैं फेरा, तेरी सूरत नै मन मोह लिया मेरा, जलै काम की आग ।।4।। कहै लखमीचन्द बात राखणी, चाहिए मिलकै साथ राखणी, हे! मालिक तेरे हाथ राखणी, मेरे पिता की पाग ।।5।। राजा नल दमयन्ती को समझाते हैं कि देवताओं का ही वरण करना। में तो एक मनुष्य हूँ। देवताओ जितना सार्मथ्य मुझमे नहीं है। और राजा नल दमयन्ती से क्या कहता है- देवताओं नै त्याग कै प्यारी, मनुष्य का वरंणा काम का कोन्या ।। टेक ।। देवता सबतैं बड़े तेरी कसम, उनकी पड़ै बरतणी रस्म, ये करैं मरे तलक देह भष्म, इननै अग्न कहो चाहे आग रै नारी, मनुष्य का वरंणा काम का क़ोन्या ।।1।। देवता चीज बड़ी अनमूल, इनकै आगै हम माटी-धूल, आनन्द भोग स्वर्ग में झूल, इनके रहिए चरण तै लाग ना हो हारी, मनुष्य का वरंणा काम का क़ोन्या ।।2।। दुनियां इनका दिया फल पाती, होकै तूं मनुष्य स्त्री जाती, देवता नै ना वरणा चाहती, सै तेरे बिल्कुल माड़े भाग इनकी माया न्यारी, मनुष्य का वरंणा काम का क़ोन्या ।।3।। लख्मीचन्द इब मतन्या फिर तूं, ध्यान इब देवताओं का धर तूं, उनका भाव सच्चे मन तैं कर तू, वैं रक्षा करैं धोवै दाग रै कंवारी, मनुष्य का वरंणा काम का क़ोन्या ।।4।। लेकिन दमयन्ती नहीं मानती है और क्या कहती है- दमयन्ती नै श्रदा करकै, देवताओं को प्रणाम किया, हंसकै बोली राजा नल से, तुम्ही हमारे बनो पिया ।। टेक ।। चार देवताओं के पूजन को, पान-फूल और मेवा करूं, मैं आधीन दास चरणां की, तुम्हें आनंद का लेवा करूं, ईश्वर की भगती शास्त्रों से, पार धर्म का खेवा करूं, मुझे अंगीकार करो प्रभु, मैं थारी क्या सेवा करूं, तन-मन-धन सब ज्यान वार कै, थारे चरणों मैं डार दिया ।।1।। अब तो मुझको वर लो साजन, सही विश्वास करो मेरा, हंस के मुख से बात सुणी, मनै जब से इश्क लग्या तेरा, मेरे पिता नै रचा स्वयंवर, दुनिया मैं करकै बेरा, इसलिए कुन्दरपुर मैं आकै, सब नै ला लिया डेरा, तुझको पति वरण की खातिर, सभी राजाओं को बुला लिया ।।2।। हंस के कहे हुये वचनों से, अलग जाओ नही टलकै, कै तै जहर मंगा कै खालूं, ना अग्नि बीच मरूं जलकै, तुम पति बनो मैं चरणावृत पीऊं, धोऊं पैर तेरे मलकै, ना तै कितै एकान्त मैं फांसी लेलूं, आप मरूं गल मैं घलकै, किसी नै किसी तरह आप मारकै, अपणा खो लूं आप जिया ।।3।। कड़वे बोल जिगर मै लागै, जैसी पैनी कर्द पति, तेरे विरह मै रात दिनां रही, पीली पड़गी जर्द पति, हंस की वाणी सुनी मनैं, मेरा होगा सीना सर्द पति, जो शरण पड़े की रक्षा करते, वे नर सच्चे मर्द पति, लखमीचन्द वरण की खातिर, निस दिन तड़फै मेरा हिया ।।4।। जब दमयन्ती हाथ में माला लेकर स्वंयवर में आई तो चारो देवताओं ने नल के पास ही बैठे थे। उन्होंने अपना रूप राजा नल जैसा बना लिया, पांच पुरूष एक ही रूप के देखकर दमयन्ती घबरा गई थी। उसने देवताओं की प्रार्थना की और क्या कहा- दमयन्ती नै धरया प्रेम से, देवताओं का ध्यान नमस्कार करूं करा दियो प्रभु, राजा नल का ज्ञान ।। टेक ।। चार देवता एक राजा नल, पांच रही गिन मैं, पांचों का रंगरूप एकसा, नल कौन सा इन मैं, मनुष्यों से न्यारे देवताओं मैं, सुना करूं कई चिन्ह मैं, फिर भी नल को जाण सकी ना, किसा अन्धेरा दिन मैं, मनुष्य तै न्यारे देवताओं मै, होते कई निशान ।।1।। कांपती-डरती विनती करती, बोली हे! जगदीश, करया संकल्प हंस की सुणकै, नल का विश्वेबीस, राजा नल बिन किसे नै वरूं ना, तुम्हें निवाऊ शीश, मुझ दासी पै दया करो, तुम हे! देवताआं के ईश, राजा नल को जाण सकूं, मनै इसा दियो वरदान ।।2।। सत-संकल्प व्रत धर्म-पुन्न, मनै नल के लिए करे, सब कर्तव्य मिलज्यांगे धूल मै, जै नल पति नही बरे, मेरे मन का भाव प्रेम से समझो, हे! देवता लोग हरे, अपना वैसा ही रूप बनाओं, तुम जैसे आप खरे, ना तैं नल के फ़िक्र मैं थारी शरण मैं, खोदूं अपनी ज्यान ।।4।। दमयन्ती की विनती सुणकै, और नल की साची बात, दमयन्ती पै दया करी, प्रभु बदल गये एक साथ, पलक झपैं ना छाया कती, ना मिट्टी लगै ना गात, लख्मीचन्द लख मनुष्यों से न्यारी, देवताओं की जात, जिनकी सुन्दर माला जमी से, ऊंचा सवा हाथ अस्थान ।।5।। दमयन्ती देवताओं से प्रार्थना करती है- दमयन्ती झुकावण लागी देवत्यां नै शीश, रक्षा करो मेरे सच्चे जगदीश ।। टेक ।। धर्म की थारै हाथ लड़ी सै, या मूर्त नल कै लायक घड़ी सै, न्यू तै घणखरी दुनिया पड़ी सै, जली रीसम-रीस ।।1।। पतिभ्रता पति के चरणां के म्हा लिटती, साची कहण आली ना पिटती, हे! नल तेरे बिना ना मिटती, मेरी आत्मा की चीस ।।2।। पापी ना बदी करण तै डरैं सै, दिल मै ना सबर की घूंट भरै सै, न्यूं तै घणखरे राजा फिरैं सै, जले जाड़ पीस-पीस ।।3।। देवता मुक्त करो सब भय से, नल को मैं बरणा चाहती ऐसे, जैसे, वेद मै वर्णन सोलह और बतीस ।।4।। लख्मीचन्द कहै छन्द धरूंगी, बदी करण तैं सदा डरूंगी, मैं नल को ही पति बरूंगी, पक्के विश्वेबीस ।।5।। देवता बड़े दयालू होते है, दमयन्ती की विनती सुनकर उस पर दया आ गई और सभी देवताओं ने अपना-अपना असली रूप धारण कर लिया। दमयन्ती के दिल में खुशी की सीमा नही रही, उसने माला हाथ में ले रखी थी, सामने राजा नल के दर्शन हूए तो उनके गले में बर माला डालकर चरणों में गिर गई- लज्जा सहित पकड़कै वस्त्र, डाल दई फूल माला, समझकै राजा नल के हाजिर, कर दिया जोबन बाला ।। टेक ।। जैसे जल के भरे बादल में, बिजली चमक-चमक कै घोरै, बामां हाथ पकड़ कै होगी, खड़ी पति के धोरै, चन्दा सा मुख गोल बोल कै, मीठी चित नै चोरै, वा सती पति नै सत समझकै, बन्धी धर्म कै डोरै, देवता ऋषि कहैं भला-भला, और भूप कहै करया चाला ।।1।। देवता ऋषि और राजा मिलकै, जुड़ मेला सा भर लिया, धन्य दमयन्ती धर्म समझकै, ध्यान पति मै धर लिया, देवताओं के रहते-रहते, फिर भी मुझको वर लिया, जिन्दगी भर तेरा पालन करूगां, मनैं भी संकल्प कर लिया, या भी दया इन देवतां की, ना तैं और के धरया था मशाला ।।2।। हंस के कहे हुए वचनों से, हरगिज नही टलूगीं, जै पतिभर्ता का धर्म छोड़दूं, तैं फूलूं नही फलूगीं, मेरे मन का जो सत संकल्प, हरगिज नहीं हिलूगीं, काट दियो संसार के बन्धन, मोक्ष में साथ चलूगीं, नेम-धर्म और कर्म काण्ड से, दियो तोड़ भर्म का ताला ।।3।। यम-वरूण और अग्नि-इन्द्र, सुन्दर सरूप वर्ण मैं, तुम दुनियां के रक्षक हो, प्रभु जनमत और मरण मैं, मेरे मन का जो सत संकल्प, छोडूं नही परण मैं, नल दमयन्ती दोनों मिलकै, उनकी गऐ शरण मै, लख्मीचन्द पै दया करो प्रभु, कर ह्रदय उजियाला ।।4।। जब दमयन्ती ने राजा नल के गले में माला पहनाई तो सारे कुन्दनपुर शहर में धूम मच गई। खुशी के बाजे बजने लगे, नर नारी सभी मंगलगान करते है। औरतों ने गीत गाया और दमयन्ती क्या कहती है- तुम गाओ मंगलचार, अजब बहार, हे! सखियो, राजा नल आये, म्हारै पाहवने जी ।। टेक ।। आओं ल्याऊं कुर्सी मेज मै, अपने पिया जी के हेज मै, तन-मन-धन दूं वार, करूं ज्यान न्यौछार, हे! सखियों, राजा नल आये, म्हारै पाहवने जी ।।1।। किसा रूप पति भगवान पै, अपणे पिया जी की श्यान पै, पुण्य करदूं गऊ हजार, इसा सै विचार, हे! सखियो, राजा नल आये, म्हारै पाहवने जी ।।2।। कई हे! सखी मेरे साथ सै, बहना ये सच्चे दीनानाथ सैं, इनके लियो चरण चुचकार, कर सतकार, हे! सखियो, राजा नल आये, म्हारै पाहवने जी ।।3।। लख्मीचन्द धर्म दाब खेवता, पिया नै प्रसन्न कर लिये देवता, मेरी उनतै सौ लखवार, नेग जुहार, हे! सखियो, राजा नल आये, म्हारै पाहवने जी ।।4।। राजा नल और दमयन्ती की बड़ी धूमधाम से शादी हूई, यम ,वरूण, अग्नि तथा इन्द्र सभी देवताओं ने खुश होकर राजा नल को 8 वरदान दिये और चारों देवता स्वर्ग की तरफ चले पड़े। रास्ते में उन्हें कलि और द्वापर मिलते है। वे भी दमयन्ती के स्वयम्वर में सम्मलित होने जा रहे थे। परन्तु चरों देवताओं से दमयन्ती द्वारा नल का वरण करने की बात सुन कर कलि बहुत क्रोधित हुआ। तब देवताओं ने उसे क्या समझाया- रूपवान-गुणवान तेजस्वी, नल बलवान जती सै, भीम की बेटी दमयन्ती, राजा नल के लायक सती सै ।। टेक ।। वेद-शास्त्र उपनिषेदों का, सच्चा ज्ञान पढै सै, सब शास्त्रों का निर्णय करना, न्यूं गुणवान पढै सै, अतिथि पूजा साधू सेवा करकै, यज्ञ दान पढै सै, यु़द्ध करता महारथी तेजस्वी, न्यू बलवान पढै सै, वेद तृप्त हो धर्म यज्ञ से, ज्ञान की परमगति सै ।।1।। अहिंसक दृढवर्ती राजा, धर्म से नहीं टरैगा, तप-भजन यज्ञ-हवन व्रत से, हरगिज नही फिरैगा, धर्म मै विघन डालने वाला, कर्म का दंड भरैगा, जो इसे पुरूष तै बैर करैगा, वो अपने आप मरैगा, इसे पुरूष तै बैर करैगा, उसकी-ऐ मूढमती सै ।।2।। राजा भीम सैन नै, समय जाणकै विवाह करया सै, नल दमयन्ती को ठीक समझ, आन्नद से हरा-भरया सै, आदि अन्त वेदान्त शास्त्र, नल में लिखया धरया सैं, हंस उपदेशक म्हारे कहने से, नल को पति वरया सै, म्हारे रूबरू दमयन्ती नै, नल को वरया पती सै ।।3।। कलयुग बोल्या द्वापर सेती, तू मेरी करो ना सहाई, इसे नै कष्ट देण की सोचैै, पडैगा नरक मै भाई, कहै लख्मीचन्द चले देवता, लई स्वर्ग की राही, मै पासे बणकै राज जितादूं, हो दुखी भीम की जाई, राज-काज से भ्रष्ट करूगां, या मेरी सलाह कती सै ।।4।। राजा नल का एक भाई था जिसका नाम पुष्कर था। कलि ने पुष्कर को उकसाया की राजा नल को जुए में हरा कर सारे राजपाट पर कब्ज़ा कर ले। इस पर पुष्कर ने राजा नल को चाव से जुए की चुनौती दी और बाजी शुरू हो गई- इतनी सुणकै राजा नल नै, चौपड़ सार बिछाई, दे परमेश्वर जिसनै उसकी, होज्या सफल कमाई ।। टेक ।। राजा नल नै जाण नही थी, कलयुग आले छल की, के बेरा था सिर होज्यागा, फांसी बणकै गल की, पीला चेहरा दमकण लाग्या, आश रही ना पल की, सारे शहर मै सोर माचग्या, क्यूंकि हार हुई राजा नल की, नौकर-चाकर सतपुरूषों से, देते फिरैं दुहाई ।।1।। कलयुग मिलकर पुष्कर के संग, घी-शक्कर सा होग्या, बुध्दि भ्रष्ट हूई राजा नल की, सिर मै चक्कर सा होग्या, दमयन्ती-बांदी बालक-बच्चे, सबनै फ़िक्र सा होग्या, राजा नल की हार होण का, शहर मै जिकर सा होग्या, दमयन्ती की एक सुणी ना, दमयन्ती कईं बर बरजण आई ।।2।। साहूकार सरकार के नौकर, बान्ध परण आये सै, चलो कहेंगे राजा नल तैं, हम तेरी शरण आये सै, हलकारे तूं जा कै कहदे, जी तै मरण आये सै, राज के हित की खातिर जुआ, बन्द करण आये सै, पन्द्रह दिन हो लिये खेलते, बहुत सी माया जिताई ।।3।। दमयन्ती भी सोच करै, कदे राज भी जीतज्या सारा, काणे तीन पडै़ राजा नल के, पुष्कर के पोह-बारहा, दमयन्ती बांदी फिरै तड़फती, यो हंसा कैसा लंगारा, एक औड़ नै खड़या रोवै था, राजा का हलकारा, लख्मीचन्द नै प्रेम मै भरकै, नल की कथा सुणाई ।।4।। जब दमयन्ती को जूवे के खेल के बारे में पता चला तो वह एक दम नल के पास गई और क्या कहने लगी- मेरे साजन नै खेलण का चा सै, दूणी लगी जूऐ की डा सै, पुष्कर कै धन चाल्या जा सै, या के मर्जी भगवान की ।। टेक ।। आच्छी लगी जूवे मै प्रीत, हौंण लगी पुष्कर की जीत, पति की नीत जूवे मैं बढ़ती, समय पुष्कर की आवै चढती, दुख की सेल बदन मै गढती, खैर रहै ना ज्यान की ।।1।। पति मानै ना जै बात कहूं तै, दुख तन पै साथ सहूं तै, चुपकी रहूं तै सबर नही सै, जूवे तै दुख जबर नही सै, मेरे पति नै खबर नही सै, अपणी और जहान की ।।2।। जाणै के लिखी भाग मुऐ मै, सब धन पड़ण लगया कुऐ मै, जूवे मै तै घर-जर लुटज्या, दुनियां मै तै साझां उठज्या, जुवे की तृष्णा मै छूटज्या, मेर-तेर सन्तान की ।।3।। लख्मीचन्द कर ख्याल भजन का, जब किते खेद मिटै तेरे तन का, पुष्कर धन का सांझी हो सै, उसके हक मै बाजी हो सै, हंसै खेलै घणा राजी हो सै, पति ना सोचै ज्ञान की ।।4।। दमयन्ती ने देखा कि तेरे पति की जूऐ मे हार हो रही है तो उसे बड़ा भारी दुख हुआ। वह राजा नल से हाथ जोड़कर एक अर्ज करती है कि पति देव खेल बन्द कर दो। यह तुम्हारे और हमारे लिए बहूत बुरा हो रहा है। रानी दमयन्ती क्या कहने लगी- जरा खेल बंद करके सुणों, तुम्हें रोकती ना सजन मैं ।। टेक ।। वो भी समय मेरै याद है पिया, उठकै आसन से चले, तुम पैर धोने भूलगे, न्यूं भंग पड़ गया है भजन मै ।।1।। आदर सहित बिठा लिये, सब नगरीवासी आ गए, फेर खेलिये मै भी साथ हूं, पिया प्राण तक के तजन मै ।।2।। अगर मान लो-ऐ पति, फायदा रहैगा जी आपको, मै जाण गई तुम हो गऐ खुशी, हारी का डंका बजण मै ।।3।। मानसिंह अपने गुरू की, कर सेवा लख्मीचन्द तूं, जै मै अपने आप को धिक्कार दूं, तै माता की दुधी लजण मै ।।4।। दमयन्ती बार-बार जूआ बंद करने को कहती है, परन्तु राजा नल दमयन्ती की एक नही सुनते। दमयन्ती क्या कहती है- आदर करकै पास बिठाले, सब पुरबासी आगे, भोजन तक की सोधी कोन्या, ऐसे खेलण लागे ।। टेक ।। पति बिन किस तैं करूं जिकर मै, ऐसा चढ़ग्या सांस शिखर मैं, जिसनै काल सुणी थी वैं तेरे फिकर मै, सारे रात्यूं जागे ।।1।। ऐसे जमे जूऐ के रण पै, सजन तेरी प्रीति घणी थी जिनपै, उन पुरूषां के मन पै, साजन फिरै संकल्प भागे ।।2।। आकै सब पुरबासी टेरे, सजन तेरे मित्र यार-घनेरे, इन्द्रसैन इन्द्रावती तेरे, आज रोकै टूकड़ा खागे ।।3।। लख्मीचन्द कहै बूरे-भले गऐ, काल के चक्कर बीच दले गए, बिन बोले वे न्यूंऐ चले गऐ, तेरे जूऐ की कीर्ति गागे ।।4।। जब दमयन्ती की बात राजा नल नही सुनते तो दमयन्ती बांदी से क्या कहती है- धन हारण की सुणकै, जी जा लिया सौ-सौ कोस, पुष्कर कै चसै घी के दीपक, नहीं पती नै होश ।। टेक ।। साजन आंख तलक ना खोलता, फ़िक्र न्यूं मेरा जिगर छोलता, मेरे संग भी नही बोलता, मनै लिया कालजा मोश ।।1।। आप उन्मत बण जाण बैठया, छोडके कुटम्ब की काण बैठया, मेरे पति के मन पै आण बैठया, धन हारण का रोष ।।2।। के जाणै यो राज भी जितज्या सारा, मनै पिया की शरण में करणा गुजारा, पति लगै मनै ज्यान तै प्यारा, दियो मनै सन्तोष ।।3।। लख्मीचन्द मत काम करो छल का, होणी करै माजणा हलकां, किसे देव की माया महात्मा नल का, नही रती भर दोष ।।4।। कलि ने छल से पुष्कर और द्वापर के साथ मिल कर राजा नल को जुए में हरा देता है। राजा नल जुआ हारने पर दमयन्ती को अपने माता-पिता के पास भेजना चाहते हैं। दमयन्ती के इन्कार करने पर राजा नल कहने लगे कि तुम नही जाना चाहती तो इन बच्चों को जरूर भेज दो। हमारे साथ रहना इनके बस की बात नही है। अब दोनो बच्चे इन्द्रसैन और इन्द्रवती जब अपने मामा नाना के घर जाते है तो क्या कहते है- चले बाहण और भाई दोनूं साथ, सम्भलकै मां तावली मिलिऐ ।। टेक ।। तेरे बिन कूण मन की टोहवणियां सै, उमर म्हारी खा-पीकै सोवणियां सै, जुआ खोवणियां सै जात, सम्भल कै मां तावली मिलिऐ ।।1।। हम थारी इज्जत शिखर करैगे, और किसे तै ना जिक्र करैंगे, हम फ़िक्र करैगे दिन रात, सम्भल कै मां तावली मिलिऐ ।।2।। हम तेरे दोनों बालक बच्चे, म्हारे वचन तूं मानले सच्चे, तेरे कचिया केले के-से पात, सम्भल कै मां तावली मिलिऐ ।।3।। लख्मीचन्द धर्म ना छोडै, नाता कदे अलग ना तोड़ै, हम जोड़ै दोनों हाथ, सम्भल कै मां तावली मिलिऐ ।।4।। अब दोनो बच्चे अपने मामा-नाना के घर जाने के लिऐ तैयार हो जाते है और इन्दसैन की मां दमयंती क्या कहती है- सुण इन्द्रसैन बेटा मेरे, राजा जुआरी हो गया ।। टेक ।। जा बेटा ननशाल म्य, मामा अपणै तै कह दिये, अश्वमेघ यज्ञ करने वाला, आज खिलारी हो गया ।।1।। दो फर्ज तुम्हारे रहे बेटा, हमारे शीश पै, कदे गोदी ले मुख चुमती, आज बिन महतारी हो गया ।।2।। पुष्कर हमारा क्या करै जै, तेरा पिता राज तै नाटज्या, आज शेरां के मुख मोड़कर, गिदड़ शिकारी हो गया ।।3।। लख्मीचन्द कहै सारथी, रथ नै हांकदे, इतना मुख से कहकर फिर, आंखों से नीर जारी हो गया ।।4।। अब राजा पुष्कर की बात सुनकर अपने वस्त्र उतारकर वन की तैयारी करता और दमयन्ती भी उनके साथ ही तैयार हो लेती है और क्या कहती है- हिया पाटकै आवण लाग्या, नाड़ तले नै गो-ली, पुष्कर की बातां नै सुणकै, दमयन्ती भी ना बोली ।। टेक ।। राजपाट और फौज रिसाले, माल खजाने सारे, सब कुछ जीत लिया पुष्कर नै, नल जूऐ मै हारे, ताज और कुण्डल मोहनमाला, सब आभूषण तारे, दुखी मन-मन मै ना बोले, नल गैरत के मारे, मनै पहलम भेज दई पीहर मै, दो मूरत अनमोली ।।1।। कई-कई कलशे भरे रहैं थे, गर्म-सर्द पाणी के, सौ-सौ दासी सिंगार करैं थी, दमयन्ती दमयन्ती के, आज छाती कै मै सैल गडे, पुष्कर की बाणी के, एक साड़ी मैं गात लहको लिया, वक्त सधे हाणी के, सब कुछ तजकै एक वस्त्र मै, साबत श्यान लहकोली ।।2।। समझ गई किसे देव की माया, मेरे पति का खोट नही सै, जब भाई तैं भाई बैर करै तै, कोय बड़-छोट नही सै, इसतै बत्ती सिर पै धरण नै, पाप की पोट नही सै, पतिभरता नै पति तै बढकै, और कोऐ ओट नही सै, पतिभरता का धर्म समझकै, पति की गेल्या होली ।।3।। बचनां कै मै बन्धी हसंणी, खड़ी हंस कै धोरै, गोरे मुख पै आंसू पड़ती, जरदी चित नै चोरै, राजा तै कंगाल बणादे, राखदे कालर कोरै, कहै लख्मीचन्द नल दमयन्ती, खड़े गाम के गोरै, पति की सेवा करण लागगी, जब सारी प्रजा सो-ली ।।4।। अब दोनो शहर से बाहर निकल जाते है और शहर के गोरै भूखै प्यासे खड़े-खड़े तीन दिन बीत जाते है, तो क्या होता है- भुखे मरत्यां नै हो लिये दिन तीन, फेर उठ चले थे बणोबास मैं ।। टेक ।। तीन दिन रहे शहर कै गोरै, तृष्णा पापण चित नै चोरै, धोरै बैठणियां माणस कोये, करता नही यकीन, न्यूं फर्क पड़या था, विश्वास मै ।।1।। नल जंगल मै जाण लागे, ह्रदय पै विपदा के बाण लागे, भूखे मरते खाण लागे, फल पात्यां नै बीन, क्यू के टूकड़ा पाणी तै, नहीं था पास मै ।।2।। राजा नल चल बणखण्ड में आगे, ऊड़ै दो पक्षी फिरते पागे, पक्षी उस वस्त्र नै ले भागे, राजा नल हो गऐ बलहीन, प्राण दुखी हुये ल्हाश मै ।।3।। लख्मीचन्द बात कहै न्याय की, जणै कद मिलैगी दवाई घा की, इब तै प्राण रहे सै बाकी, बिल्कुल हो लिए बेदीन, फेर कलयुग बोल्या था आकाश मै ।।4।। राजा नल पिछली बात याद करके क्या कहता है- कदे प्रजा झुकै थी मैरे सामनै, आज दुख की सुणणियां कोऐ नही ।। टेक ।। लाखों स्त्री आण कर करती, वो मुझसे प्यार थी, आज मुझ जैसे कंगाल को, जननी जणणियां कोऐ नही ।।1।। एक तो थी वो समय, वरदान दें थे देवता, पर आज मेरे इस दुख दर्द मै, सिर तक धुणणियां कोऐ नही ।।2।। तिलभर भी घटती नही, जो विघना नै लिख दई कलम से, चाहे बांच भी ले तकदीर को, पर पढकै गुणणियां कोऐ नही ।।3।। मानसिहं अपने गुरू की, लख्मीचन्द लेले शरण, जो बिगड़गी प्रारब्ध से, उधड़ी बुणणियां कोऐ नही ।।4।। अब कलयुग ने आकाश में चढकर आवाज दी और कहां यह सब कुछ मेरा किया हुआ है। अब और भी कुछ करूगां और क्या कहता है- गगन मै चढकै कलयुग बोल्या, एक वचन सुण मेरा, पाशे बणकै राज जिता दिया, नल जूऐ मै तेरा ।। टेक ।। देवताओं तै भी आगै बढग्या, दमयन्ती नै बरकै, मेरी सलाह थी नाश करण की, तेरा गुस्से मै भरकै, धन माया सब जिता दई, जुऐ के दा पै धरकै, मेरी सलाह थी काढण की, तनै नग्न उघाड़ा करकै, इब नही हटूं किसे तैं डरकै, न्यूं कलू गगन मै टेरा ।।1।। रूई केसे पहल मिलै ना, जंगल मै लेटण नै, एक वस्त्र भी ना छोडया, तेरे तन मै लपेटण नै, जो लिख दिया मनै कलम तै, कौण त्यार मेटण नै, इतना दुख दे दूंगा, आगै तरसोगे फेटण नै, इब तै आगै दीखै तुमनै, दिन मै घोर अन्धेरा ।।2।। बिना देवत्यां दमयन्ती नै, कौण था ब्याहवण आळा, तू जोड़ी का वर भी ना था, तेरे घाल दई फूल माळा, छोटे-बड़े का ख्याल करया ना, कर दिया मोटा चाळा, तेरी गैल में बुरा करूगां, इब मूल करूं ना टाळा, तनै लुह्क्मा ब्याह करवा लिया, मनै पाटया कोन्या बेरा ।।3।। कौण शख्स कर सकै गुजारा, जो कलू तै अड़ण की ठाणै, साधू-सन्त बिन इस दुनियां मै, मेरी गति नै कौण पिछाणै, मनै पक्षी बणकै वस्त्र हड़ लिया, न्युं भी मतन्या जाणैं, कहैं लख्मीचन्द बुरा करकै, मत धरिये दोष बिराणैं, तेरे पड़ण की खातिर, खोदया मनै आप तै झेरा ।।4।। अब राजा नल बिल्कुल नंगा रह गया और उसने दमयन्ती से क्या कहा- भूख प्यास नै चौगरदे तैं, करया घेर कै तंग मै, तूं सब जाणै सै जो कुछ बीती, तेरे पति के संग मै ।। टेक ।। अपणे तन का तारकै वस्त्र, न्यूं घाली थी घेरी, ओढण के वस्त्र नै लेगे, करगे हेरा-फेरी, पक्षी तीतर चढ़े गगन म्य, अक्ल मारगे मेरी, इसा जुल्म मनै कदे ना देख्या, जिसी आज हूई डूबा ढेरी, पेट भरण नै पकडूं था पक्षी, पड़ग्या विघ्ऩ उमंग मै ।।1।। गगन मैं चढकै कलयुग बोला, के विश्वास करया सै, तेरे राजपाठ और धन माया का, सब कलू नै नाश करया सै, इसमैं तेरा दोष नही, मनै करया जो खास करया सै, तेरे केसां नै दण्ड देण नै, मनै पुष्कर पास करया सै, पाशे बणकै राज जिता दिया, तेरा जूऐ आले जंग मै ।।2।। राजपाट के नाश करण की, क्युकर के ठहरी सै, जाण नही थी कलयुग मेरा, कद का के बेरी सै, सोच-फ़िक्र टोटे में काया, चन्दा सी गहरी सै, बस प्राण सैं बाकी मेरे मरण मै, कसर नही रहरी सै, तूं खड़ी जड़ मै भरे जंगल मै, रहया उघाड़ा नंग मै ।।3।। लख्मीचन्द कहै सुणिये दमयन्ती, कित के तेरी निगाह सै, यो विन्धयाचल पर्वत नदी पोषणी, सारी दुनियां न्हा सै, आडे तै थोड़ी सी दूर चालकै, कौसल देश का राह सै, दमयन्ती एक रास्ता चन्देरी नै, एक कुन्दनपुर नै जा सै, इतनी कहकै पसर गया नल, मुर्दयां आले ढंग मैं ।।4।। दमयन्ती ने आधी साड़ी खोलकर राजा की तरफ कर दी। अब एक साड़ी से दोनों ने अपना बदन ढक लिया। जब दोनों लेट जाते है तब राजा नल कहने लगा कि दमयन्ती तू भी क्यों मेरे साथ दुख पा रही है! अब भी अपने पिता के घर चली जा। तब दमयन्ती ने क्या कहा- सोच लई के पिया जी, मेरे त्यागणे की मन मै, मत घबराओ पिया, कंगले पण मै ।। टेक ।। दमयन्ती :- एक तो भूख प्यास मैं थकया और हारया, बता मैं तनै क्युकर छोडू़ं न्यारा, मनै ज्यान तै भी प्यारा, तनै कड़ै छोडूं बन मैं ।।1।। राजा:- दमयन्ती मैं किस्मत का माड़ा सूं, लेरया देश लिकाड़ा सू, करूं के उघाड़ा सूं , कंगाल निर्धन मै ।।2।। दमयन्ती :- भले के करैं भलाई हो सै, बुरे के करैं बुराई हो सै, स्त्री दवाई हो सै, मर्द की बेदन मै ।।3।। राजा:- राजा नल दुख दर्दां नै खेगे, करूं के दो पक्षी धोखा देगे, ओढण के वस्त्र नै भी लेगे, और चढगे गगन मै ।।4।। दमयन्ती :- लेगे तै आधा वस्त्र बांटकै ओढूं, मै तेरी ज्यान तलै तन पौढूं, तनै एकले नै क्युकर छोडूं , बियाबान निर्जन मै ।।5।। राजा:- दमयन्ती मनै तेरे तैं आवैं भतेरी लाज, करूं के होणा था जो हो लिया आज, मै तनै त्यागूं ना हरगज, इतनै प्राण मेरे तन मै ।।6।। दमयन्ती :- इतना मत दुखड़ा पावो, सजन इस कारण मत घबराओ, कई-कई रस्ते बताओ, पिया एक-एक छन मै ।।7।। राजा:- दमयन्ती तूं मेरी भतेरी मेर करै, करूं के कलू अन्धेर करै, लख्मीचन्द मत देर करै, हरि के भजन मै ।।8।। दमयन्ती:- बात नै जाणो सो पिया आप, लख्मीचन्द सोचलो चुप चाप, कदे रहैं थे गरगाप, राज पाट धन मै ।।9।। दमयन्ती नल को छोड़ कर जाने से साफ़ मना कर देती है और क्या कहती है- एकले नै क्यूकर छोडूं, ज्यान तै भी प्यारे नै, याहे मनसा थारी सै तै, पिया चलो घर म्हारे नै ।। टेक ।। तू म्हारे घर जाणा ना चाहता, तेरा उड़ै सास-जमाई का नाता, आनन्द रहैगी मेरी माता, रूप देख थ्हारे नै ।।1।। मै तेरी सच्ची नार सती, तेरी सेवा बिन मेरी बुरी हो गति, वे डूबैंगी जो त्यागैगी पति, भुखे-थके हारे नै ।।2।। तेरी वैं पल-पल देखै बाट, म्हारे घर नै चल पिया दिल नै डाट, घर-धन राजपाट, सौंप देंगे सारे नै ।।3।। अस्नाई बिना के सरया करै सै, ख्याल पिता बच्चों का करया करै सै, जैसी टोहती फिरया करै सै, गऊ भूल लवारे नै ।।4।। (*लवारे : बछड़ा) लख्मीचन्द कलू कहर सा तोलै, सजन क्यों मन्दा-मन्दा बोलै, म्हारी मजधार कै म्हा नाव डोलै, कद पकड़ैगी किनारे नै ।।5।। अब राजा नल दमयन्ती को क्या कहता- शर्म आवैगी घणी, कैसे चलूं सुसराड़ मै ।। टेक ।। कदे देवताओं के सामने पूजा, करी थी तेरे बाप नै, बड़े प्रेम से शादी हूई, बल नही पड़ै था मेरी नाड़ मै ।।1।। औरत कहैगीं थारै नगर की, यू निर्भाग जूऐबाज सै, म्हारै राम करकै जाईयो, इसी असनाई भाड़ मै ।।2।। जो हुक्म तेरे बाप का, वो मेरा ही तो राज है, मनै जै देखलें इस भेष म्य तै, जलकै मरैं बोदी बाड़ मै ।।3।। मानसिंह अपने गुरू की, लख्मीचन्द लेले शरण, फिर शिवजी सहाई आ करै, इस बियाबान उजाड़ मै ।।4।। राजा दमयन्ती बियाबान के रस्ते मे क्या बात करते है- राजा-दमयन्ती करते जाते, दर्द भरी बात, एक साड़ी में ढक लिया, दोनूवां नै गात ।। टेक ।। इब तै मालिक देगा तै पहरैंगें, ना तै न्यूऐ दुख-सुख नै सहरैगें, दमयन्ती चाल कितै ठहरेंगे, इबतै होती आवै रात ।।1।। दमयन्ती तू मनै अपणे जी तैं भी प्यारी, करूं के माया लुटगी सारी, मै जाणू सूं जिसनै मारी, मेरी थाली कै म्य लात ।।2।। तेरे पै भी झाल गई ना डाटी, मै तनै जाण तक भी नाटी, तनै पाछै मालूम पाटी, जुवा खौवणिया सै जात ।।3।। लख्मीचन्द छन्द नै गाकै, दमयन्ती न्यूं बोली समझाकै, चाल कितै करेंगे गुजारा खाकै, फल और पात ।।4।। अब राजा क्या कहता है- राजा नल की, ऐश-अमीरी लूटी दिखाई दे, चाल उड़ै ठहरैंगे दमयन्ती, कुटी दिखाई दे ।। टेक ।। सिर पै कलयुग चढग्या घनघोर, दिखैं दसूं दिशा कठोर, वा एैश-आन्नद की डोर, हाथ तै छूटी दिखाई दे ।।1।। बिस्तर तजकै रूई के-सा पहल, संग मै करण पति की टहल, वचना मै बन्धकै गैल, हंसणी सी जुटी दिखाई दे ।।2।। कित फंसगे कर्म गन्दे मै, लागगी आग भले धन्धे मै, इस कलयुग आळे फन्दे मै, घिट्टी घुटी दिखाई दे ।।3।। लख्मीचन्द रट दीनानाथ, गुरू की लिख धरी ह्रदय बात, वा भृगु आळी लात, गात मै उटी दिखाई दे ।।4।। बात करते-करते थकी मान्दी होने से दमयन्ती सो गयी और राजा जागता रहा। कलयुग के प्रकोप से राजा नल ने आखरी फैंसला यही किया कि दमयन्ती को यहीं पर छोड दिया जाए। अब कवि क्या कल्पना करता है- बुद्धि मै अन्धेर पड़या था, नल सोवै जाणूं शेर पड़या था फूलां कैसा ढेर पड़या था, या दमयन्ती दमयन्ती ।। टेक ।। सोचकै पति परमेश्वर धणी, सेवा मै दास पति की बणी, कुछ राजा तै दमयन्ती घणी जागगी, दिल की चिंता दूर भागगी, फेर दमयन्ती की आंख लागगी, हुई कर्मा की हांणी ।।1।। कलू चाहवै था पाड़ना, फेर बुद्धि नै दई ताड़ना, कलू बिगाड़ना चाहवै जिसनै, फेर जीवण की आश किसनै, सोचण लाग्या छोड़दूं इसनै, न्यूं मन मै ठाणी ।।2।। ठीक ना संग औरत की जात, उठकै चाली जागी प्रभात, कलू नै की बात मग्ज मै भरदी, दमयन्ती नींद मै गाफिल करदी, इसी करदी जाणूं मारकै धरदी, कती बन्ध थी बाणी ।।3।। लख्मीचन्द दमयन्ती गरीब गऊ, फिकर मै जलै मेरा लहूं, पतिभरता बहू और बेटी धी नै, जो परमेश्वर समझती पी नै, खटका नही फेर इसी के जी नै, ना हो कोडी-काणी ।।4।। अब राजा नल क्या सोचता है- छोड चलो हर भली करैंगे, कती ना डरणा चाहिऐ, एक साड़ी मै गात उघाड़ा, इब के करणा चाहिए ।। टेक ।। गात उघाड़ा कंगलेपण मै, न्यूं कित जाया जागा, नग्न शरीर मनुष्य की स्याहमी, नही लखाया जागा, या रंग महलां के रहणे आळी, ना दुख ठाया जागा, इसके रहते मेरे तै ना, यो खाया-कमाया जागा, किसे नै आच्छी भुंडी तकदी तै, जी तै भी मरणा चाहिए ।।1।। फूक दई कलयुग नै बुद्धि, न्यूं आत्मा काली होगी, कदे राज करूं था आज, पुष्कर के हाथा ताली होगी, सोलह वर्ष तक मां बापां नै, या आप सम्भाली होगी, इब तै पतिभर्ता आपणे धर्म की, आप रूखाली होगी, खता मेरी पर दमयन्ती नै भी, क्यों दुख भरणा चाहिए ।।2।। एक मन तै कहै छोड़ बहू नै, एक था नाटण खातर, कलयुग जोर जमावै भूप पै, न्यू न्यारे पाटण खातर, बुद्धि भ्रष्ट करी राजा नल की, न्यूं दिल डांटण खातर, एक तेगा भी धरणा चाहिए, या साड़ी भी काटण खातर, फेर न्यूं सोची थी कलयुग नै, एक तेगा धरणा चाहिए ।।3।। दमयन्ती साझैं पड़कै सोगी, राजा रात्यूं जाग्या, उसी कुटी मै इधर-उधर, टहलकै देखण लाग्या, राजा नल नै खबर पटी ना, भूल मै धौखा खाग्या, फिर कलयुग तेगा बणकै भूप नै, धरा कूण मै पाग्या, लख्मीचन्द दिल डाटण खातिर, सतगुरू का शरणा चाहिए ।।4।। जंगल में जब राजा नल के मन में दमयन्ती की आधी साडी काटने का विचार आता है तो क्या सोचता है- किसी घोर अंधेरी रात मैं नल काटण लाग्या साडी ।।टेक। साड़ी कानी हाथ करया जब गात कांपग्या मेरा, एक साड़ी मैं दो जीवां का क्यूकर होवै बसेरा , मेरे मालिक की निंगा बदलगी यो कष्ट मेरे पै गेरया, कौण बणी मेरे साथ मैं, मेरी उजड़ गई फुलवाड़ी ।।1।। तनै बताउँ रै दमयन्ती पडैगा दुखडा छोणा रै, कर्मां का कुछ बेरा कोन्या पडग्या नल नै रोणा रै, आखिर मैं लाचार घणा मनै धरती के मां सोणा रै, खून बहया मेरे गात मैं, गये पाड़ बोछडे छाडी ।।2।। कुन्दनपुर नै चाली जाइये, बालकां नै दिये पुचकार, छुठे बतर्न पडैंगे मान्जणे अपना लिये बखत विचार, सोच लिये मैं विधवा होगी सबर का मुक्का लिये मार, कदे फर्क गेर दे बात मैं, कदे कार समझले माडी ।।3।। कोए सुणता गुणता हो तै, जुए का खेल रचाईयों ना, बालक रोवै नार बिलखती भूखे नंगे ताईहियों ना, देश नगर घर गाम शहर तै काला मुंह करवाईयो ना, लखमीचन्द हवालात मैं कोए फंसियों ना मुढ अनाड़ी ।।4।। राजा नल दमयन्‍ती दमयन्ती को वन में अकेला छोड़कर चला जाता है और अपने दुखी मन में राजा चलते-चलते-चलते क्‍या सोचता है- सिर पै धरया पाप का भार, सुती छोड दई बेकार, जिन्दगी भर की दाबेदार, दमयन्ती रोवै टक्कर मार, वा सै सती पतिभर्ता नार, फिरे जा बण मैं, हो मेरे राम ।।टेक।। नींद मैं हुई पडी़ थी माट्टी, पतिभरता जोड़े तै पाटी, साडी मनै काटी बिना कसूर, कर दी पत्थर दिल तै दूर, दमयन्ती रावैगी जरूर, होज्या गर्मी मैं मजबूर, वा तै जाड्डे के मां हूर, फिरे जा बण मैं, हो मेरे राम ।।1।। भूल करी मैं धोखा खाग्या, मैं बेईमान छोडकै आग्या, जै कोये लावण लाग्या हाथ, अपना खो बैठगी गात, उसनै नहीं किसे का साथ, वा ना करै किसे तै बात, और पिया-पिया दिन रात, फिरे जा बण मैं, हो मेरे राम ।।2।। कलू नै दई नींद की घूट्टी, हारकै आंख कसूती फूट्टी, जै वा उठी करकै देर, कोन्‍या पाया जड़ मैं फेर, रोवै कई-कई आसूं गेर, दिखै दिन मैं घोर अंधेर, बोलै चीते, सिहंनी, शेर, डरें जा बण मैं, हो मेरे राम ।।3।। लखमीचन्‍द किसा ढेठा रै मन का, साथ आज छूट‍ लिया बचपन का, इतने दिन का बनोवास, कलयुग करग्‍या सत्‍यानाश, दमयन्ती भोगै खूब त्रास, उसके ना जीवण की आस, वा तै लाम्‍बे-लाम्‍बे सांस भरें जा बण मैं, हो मेरे राम ।।4।। साड़ी को काटकर चलते समय राजा नल क्या सोचता है- तेरा बिछड़ चल्या भरतार, ऊठ बैठी होले रै, मन की प्यारी ।। टेक ।। कदै तै देवताओं नै वर दिऐ, फूंक जूऐ में धन-जर दिये, कलू नै कर दिये घर तै बहार, निमत के झोले रै, बण की त्यारी ।।1।। दुख-विपता के धूम्मे घुटगे, आज म्हारे सारे आन्नद लुटगे, तेरे छूटगे हार-सिंगार, बैछ के रोले रै, धन की मारी ।।2।। मेरे तैं काम हूआ सै गन्दा, गेर दिया कलू बैरी नै फन्दा, सूरत चन्दा की उणिहार, फूंक करे कोले रै, तन की हारी ।।3।। म्हारे सब छूटगे ऐश-आन्नद, गले मै घल्या विपत का फन्द, लख्मीचन्द कली धरै चार, छांटकै टोहले रै, सन की न्यारी ।।4।। अब राजा नल साड़ी काटकर चल पड़ता है। कवि ने क्या वर्णन किया है- न्यारे-न्यारे पाट चले, हम आऐ थे मिल करकै, डूब गया मनै साड़ी काटी, पत्थर का दिल करकै ।। टेक ।। सौ-सौ दासी तेरे नाम की, जिनकै बीच न्हाई थी, इसे दुखां की ठोकर के तनै, आज तलक खाई थी, रंग महलां के रहणे आळी, ना इतना दुख पाई थी, भूखी-प्यासी मरती-पड़ती, बणखण्ड म्य आई थी, छाले पड़-पड़ पैर फूट गऐ, कई दाग हुऐ छिल करकै ।।1।। इन बातां का यो भेद के, गैर तैं खोल्या जागा, रात की बांता का सारा माजरा, नजरां तैं तोल्या जागा, उक-चुक कहै दई तै किसे नै, मेरा ह्रदय छोल्या जागा, जै उठकै बूझण लाग गई तै, झूठ ना बोल्या जागा, तोरी केसी कली किसी, मुरझागी खिल करकै ।।2।। सोला बर्ष तक मात-पिता नै, या हांथा पै डाटी थी, इसे दुखां की मालूम ना तनै, आज तलक पाटी थी, देवताओं के रहते वर लिया, न्यूं लाखां मै छांटी थी, जाग गई तै बूझैगी पिया, तनै क्यूं साड़ी काटी थी, हाय राम इब कित बड़ज्यां, इस धरती मै बिल करकै ।।3।। जल-अग्नि पृथ्वी-आकाश, वायु-सूर्य सहायक सारे, अष्ट वसु और ग्यारा रूद्र, रक्षक चान्द और तारे, लख्मीचन्द गुरू का शरणां, रटया करो शिव प्यारे, एक बर भी ना बोली दमयन्ती, जिब सौ-सौ रूके मारे, कलू नै नींद में गाफिल करदी, गेर दई सिल करकै ।।4।। दमयन्ती की जब आँख खुलती है तो क्या देखती है- सूती उठकै देखण लागी, हूर भीम की जाई, कटी साड़ी देखी तो, पैड़ पति की पाई ।। टेक ।। हार-नीर कै आंख फूटगी, या जाण नही पाटी, हाथ जोड़कै न्यूं बूझूं पिया, कद-सी कहे नै नाटी, किसी नाप-तोलकै साड़ी काटी, इसी चींज कड़े तै आई ।।1।। मनै भी दे दिये खाण नै, जै डाहला मेवा का झुकरया हो तै, भाइयां की सूं तेरी गैल मरूंगी, जै किते संकट मै रूकरया हो तै, कितै पातां कै म्ह लुहकरया हो तै, किसे ओडे तैं देज्या नै दिखाई ।।2।। फिर चली उठकै वैं पैड़ भी रलगी, भेद कड़े तै पाज्या, इस भरे जंगल मै डर लागै, कदे शेर-भगेरा खाज्या, हो मैं कहूं मेरे धोरै आज्या, मेरी नणंद के भाई ।।3।। लख्मीचन्द सुण लेगा तै, एक बात कहूंगी पिया, इस भरे जंगल म्य दुख नंगे गात, किस ढाल सहूंगी पिया, तेरे जिन्दगी भर तक साथ रहूंगी पिया, क्यों अधम मै करो सो हंघाई ।।4।। दमयन्ती क्या कहती है- सहज म्य खुड़का सुण लूंगी, मै प्रीतम की खांसी का, मेरी एकली की ज्यान लिकड़ज्या, काम नही हांसी का ।। टेक ।। तू भी मेरे बिन एक जणा सै, मेरा तेरे म्य प्रेम घणां सै, साच बता-के खोट बणा सै, मुझ चरणन की दासी का ।।1।। तेरे बिन लागै मेरा जिया ना, ना रोटी खाई पाणी पिया ना, जंगल कै मै तरस लिया ना, मुझ भूखी और प्यासी का ।।2।। साड़ी काटकै लिकड़ण नै पां होग्या, तेरा तै सहज जाण नै राह होग्या, पिया मेरी छाती के म्हा घा होग्या, विघन सख्त ग्यासी का ।।3।। कदे घाटा ना था धन-जर का, तूं दूखड़ा देग्या जिन्दगी भर का, लख्मीचन्द भजन कर हर का, इस भोले अविनाशी का ।।4।। अब दमयन्ती अपने पति को ढूंढती हुयी इधर-उधर भटक रही होती है और क्या कहती है- इस बणखण्ड मैं दीखै सै मनै, दिन मै घोर अन्धेरा, सारदूल जंगल के राजा, कितै पति मिल्या हो मेरा ।। टेक ।। तेरे बिना ना मेरी दहशत भागै, पिया मेरे इस मौकै मत त्यागै, मनै पिता के घर पै देवत्या आगै, पल्ला पकड़या तेरा, जीवतै जी क्यूकर भूलूं, जब उनकै आगै टेरा ।।1।। अपने मन मै तै मरकै चाली, ध्यान दरखतों पै धरकै चाली, उपर नै मुहं करकै चाली, कुआ मिलो चाहे झेरा, फिर हाथ जोड़ दरखतों से बोली, जै नल का हो कुछ बेरा ।।2।। भूलकै दुनियां की गुरबत, पीगी विपत रूप का शरबत, उंची चोटी आळे पर्वत, तेरा लम्बा चौड़ा घेरा, तेरी धजा शिखर मै जड़ चोवे म्य, ऊंचा बहुत घनेरा ।।3।। ईश्वर तेरी माया इसे रंग की, थारी रचना सै इसे ढंग की, लख्मीचन्द गुरू मानसिंह की, शरण समझ कै लेरा, थारी मेहर फिरी आज कौशिक वंश का, फेर उजलैगा डेरा ।।4।। दमयन्ती अपने राजा नल के पैरो के निशान ढूंढती हुयी चल पड़ती है- बहुत देर का अरसा होग्या, फेर सोधी सी आगी, पैडां-पैड़ां चाल पति नै, बण म्य टोहवण लागी ।। टेक।। जै दर्द चोट का ना दूखै तै, दर्दपणां के हो सै, कर्द काट कै ना गेरै तै, कर्दपणा के हो सै, सर्दी मैं ना सर्दी लागै, तो सर्दपणा के हो सै, जै सती बीर नै छोड़ भागज्या, तै मर्दपणा के हो सै, जति-पति नै पतिव्रता क्यूं, अपणे दिल से त्यागी ।।1।। जिन पैड़ा तू चाल्या सै, मैं उन पैड़ा होल्यूंगी, नही मिल्या जै बिछड़न आलां मैं अपने दम नै खोलूंगी राजा नल कदे मिले दोबारा तो सब दुख नै रोलूंगी चाहे जडै लुहक लिए, जाकै तनै आप्पै टोहल्यूंगी, नहीं मिल्या ते कितै सुण लिए, मैं जिन्दगी नै खोल्यूंगी, मैं तनै ढूंढ़ कै छोडूंगी, जै मेरी पार बसागी ।।2।। गुजर गया दिन चलते-चलते, बहुत दूर तक आई, जब तक दीखी पैड पति की, बिल्कुल ना घबराई, दिन छिपग्या फेर हुआ अन्धेरा, छूट गई वा राही, पैड भी रलगी रात भी ढलगी, कुछ ना दिया दिखाई, हाय पति जी हाय पति जी करती भागी भागी।।3।। जब दिन लिकड्या पीली पाटी, ज्यान मोसणी दीखै, पति के नां की सती बीर कै, लगी खोसणी दीखै । वो विन्ध्याचल पर्वत होगा, जडै रोशनी दीखै, जिसनै पति बताया करते, वा नदी पोषणी दीखै, लखमीचन्द कहै बिना पति कै, मैं के तीर्थ न्हांगी।।4।।

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