किस्सा काला चाँद : फौजी मेहर सिंह (हरियाणवी कविता)

Kissa Kala Chand : Fauji Mehar Singh (Haryanvi Poetry)


एक समय बंगाल रियासत में सुलेमान कर्रानी शासन करता था। उसके राज्य में नयन चंद नाम का एक जमींदार रहता था। शादी के काफी समय बाद उसके घर एक पुत्र पैदा हुआ जिसका नाम कालीचरण रखा गया। उस समय का वर्णन-

बंगाल देश के शाही जिले मै, बीजनौर एक नाम्मी गाम। जमींदार नयन चंद राय का, गाम मै था खासा काम।। किसे बात का नहीं था धड़का, बिन संतान लाग रहया अड़का, घर जमींदार कै होया एक लड़का, काली चरण धरया था नाम।। खुश हो रहे थे सब नर नार, लुगाई गावैं थी मंगलाचार, उमंग मै भरकै परिवार, सिर ऊपर कै वारै दाम।। घर मै कमी जब हो ना धन मै, कोये ना चिंता रहती मन मै, ध्यान रहै था पूजा पाठ हवन मै, संध्या करै थे सुबह और शाम।। इसतै जा कुछ शिक्षा पाई, न्यू या तालिमी कथा बणाई, जाट मेहर सिंह नै खुश हो गाई, प्रभू सुख तै बसो बरोणा धाम।। कुछ साल बाद जब कालीचरण पढ़ने लायक हुआ तो शिक्षा-दीक्षा के लिए विद्यालय जाने लगा- पढने जोग होया जब लड़का, पिता नै भेज दिया स्कूल। पढ़ा लिखा होशियार बणाऊं, इसमैं करूं कति ना भूल।। नीच करम तै अलग टरै था, अधर्म कन्ही ना पैर धरै था, दत चित होकै पढ़ाई करै था, नीत ना बुरे करमां मै मूल।। डूब्बैगा जो बीज बुरा बोज्या, अपणा करया कराया खोज्या, लड़का दिल मै खुश होज्या, मस्तक ला पिता चरण की धूल।। पूरी पिता की मन चाही होगी, शस्त्र और शास्त्र की पढ़ाई होगी, दिन दिन कला सवाई होगी, जैसे खिलता आवै फूल।। मेहर सिंह एक नई मुसीबत जागी, हर नै काली चरण करया मंदभागी, पिता गुजरगे गरीबी आगी, जणू मरम मै गड़गी सूल।। कालीचरण बहुत बुद्धिमान, रूपवान और गुणवान लड़का था। विद्यालय में उसने शास्त्र-शास्त्र व हर तरह का ज्ञान अर्जित किया। उसकी ख्याति चारो और फैलने लगी। तभी एक अनहोनी हो गयी। उनके पिता चल बसे। गुणी काली चरण का पड़ रहया रूक्का सारै।। मुकाबले मै है ना कोये, खूबसूरत इसा नौजवान, नयन नक्श सब तै न्यारे, चंदरमा सी दिखै शान, इस जैसा बलशाली कोन्या, ईसा नहीं को बुद्धिमान, शस्त्र और शास्त्र की, सब विद्याओं मै भरपूर, ब्रह्मचर्य का पालन करता, विषय वासना से रहता दूर, विशाल भाल लाल गाल, झड़ता दिखै चेहरे से नूर, विपता मै भी घबरावै कोन्या, सदा सबर शांति धारै।। शिक्षा कल्प निरूक्त व्याकरण, ज्योतिष छंद का ज्ञान इसनै, चार वेद छह शास्त्र की, विद्या का सै ध्यान इसनै, ग्यारह उपनिषदों के ज्ञान का, कर राख्या अमृतपान इसनै, उपवेद और ब्राह्मण ग्रंथ, इसनै पढ़ राखे सै सारे, रामायण और महाभारत, मनुस्मृति के ज्ञान विचारे, चाणक्य और विधूर नीति के, श्लोक है अन्तरस मै धारे, कंठ सरस्वती वास करै, बातां के छोलिये से तारै।। अष्टयोग अभ्यास करकै, तुरीय पद का धरता ध्यान दुर्जन इसकै आवै ना नेडै, सज्जनों मै मान सम्मान मुखमंडल पै तेज इतना, जैसे दोफारै चमकै भान शूरवीर योद्धा बांका, ब्होत बुरी सै इसकी मार बर्छी भाले गदा का खिल्हारी, हाथ इसकै चमकै तलवार अड़ सकै ना कोये स्यामी, उटै नही इसका वार, पाछे तै कदे वार करै ना, स्याहमी होकै अरि नै मारै।। सतपुरूषों के आगै, शीश को झुकाने वाला, देव रिषी और पितृ रीण को चुकाने वाला, मर्यादा पै टिके रहना, ना कर्त्तव्य को उकाने वाला, शेर ब्बर सम धाक इसकी, दुश्मन दहलै जैसे स्यार, गऊ ब्राह्मण साधू की सेवा मै, हरदम रहता यह त्यार, ईश्वर भक्ति मै आनंद लेता, गायन विद्या से करता प्यार, जाट मेहर सिंह नै भी शौक गाण का, ना गाता गाता हारै।। पिता की मृत्यु के बाद कालीचरण सुल्तान की सेना में सिपहसलार भर्ती हो जाता है। वह हर रोज महानंदा नदी में स्नान करने के लिए जाता था। एक दिन शाजादी उसे देख लेती है और उस पर मोहित हो जाती है और उससे अपनी शादी का प्रस्ताव रखती है- मेरी गैल्यां ब्याह कर वाले न्यू कहरी सै शहजादी निकाह पढ़ा चाहे फेरे लेले तेरी दोनूं तरियां राजी।टेक मैं तेरी ताबेदार रहूंगी मत कर शादी का टाला तेरे रूप का ईसा चान्दना जणुं लेरयाचांद उजाला म्हारा बंध्या प्रेम का पाला, फेर के कर लेगा काजी। सच्चे दिल तै दो दिल मिलज्यां तै बणै स्वर्ग मै बासा ब्याह शादी हो ढ़ोल कै डंकै यो होज्या तोड़ खुलासा करदे पूरी आशा, रहूंगी दुःख सुख कै म्हां साझी। रहणा सैहणा एक जगह पै ना किसे बात मै छोह सै जितना प्रेम तनै मेरे तै यो उतना ऐ मनै मोह सै जो प्यारे तै करै ल्हको सै, वो बणै पाप का साझी। या शहजादी फेर तेरी गैल्यां हंसकै दिन काटैगी तू ब्राहमण मैं मुस्लमान की सारै मालम पाटैगी मेहर सिंह दिल नै डाटैगी, साज की रंगत ताजी। शहजादी की बात सुनकर कालीचरण उसे समझाता है- मैं ब्रहमण तूं मुस्लमान मेरे मतना लाईये हाथ, रै शहजादी के थूकैगी पंचायत।टेक मैं कर रह्या सूं गरीब गुजारा तूं बदमाश जाण नै होरी ब्याह शादी की मारी नेम ठाण नै होरी बेईमान खाण नै होरी, ब्राहमण के का गात। तू तै कह सै मुस्लिम होले मेरै लागै जिगर मै सेल, बैरी मारै दाव खेल कै तम मारो हंस खेल, किसै मुस्लमान के तै कर ले मेल, जो निकाह पढ़ै तेरी साथ। मेरी बदनामी के सारै माच लिए रोले, थारी गुदी पाछै मत हो सै स्याणे लोग न्यूं बोले, किसै सरकी बन्द की गैल्यां होले, थारी इसी बीर की जात। और किसै का दोष नहीं मेरे कर्मां का रोना कितै भी लिख राख्या कोन्या मुस्लमान होना मेहर सिंह मामूली कोन्या कौम महजब की बात। कालीचरण कहता है की आप मुसल्मान है और मैं एक हिन्दू ब्राह्मण हूँ। आपकी और मेरी शादी नही हो सकती। शहजादी कालीचरण को धर्म परिवर्तन के लिए कहती है की या तो आप मुस्लिम बन जाओ या फिर मुझे हिन्दू बना लो बात सुल्तान तक पहुंच जाती है सुल्तान कालीचरण को मुस्लिम बनकर शहजादी से निकाह करने के लिए कहता है। कालीचरण कुछ समय मांगता है और जगन्नाथ में जाता है और वहा हिन्दू धर्म गुरुओं से सहायता मांगता है- जड़ै बैठी थी पंचायत, बोल्या जोड़ कै नै हाथ, मेरी बिगड़ी जा सै जात, बात सुणियो ध्यान तै मेरी।टेक अपणी करी तपस्या नै खो रह्या, मार्ग मै काटे बो रह्या, हो रह्या सुं घणा विरान, मेरी उम्र सै नादान मुस्लमान, ज्यान के उपर घाल रहे घेरी। कुछ ख्याल बात का करियो, मतना गैर जात तै डरियो, बेशक करियो टाला, ख्याल सै शहजादी आला, यो सब का राम रुखाला, माला स्वामी की टेरी। भुगतणें पड़ै कर्म के भोग, लागग्या बीझण आला रोग, मनै लोग कहें निरभाग, लगा रह्या कुल अपणे कै दाग, सब दई वासना त्याग, पाग थारे पायां कै म्हां गेरी। करया शहजादी नै तंग, रह्या ना ईब बचण का ढंग, मेहर सिंह लखमीचंद का चेला, हो रहा सै ईज्जत का धेला दो दिन का दर्शन मेला, अकेला जा संग ना कोए तेरी। वे सब उसकी मदद करने की बजाये उसे जात से गिराने का फरमान सुनते है। इस बात से कालीचरण काफी आहत होता है- जगन्नाथ म्हं पहोंच गया लोगां का ढंग न्यारा देख्या मन्दिरां मै मुस्टण्डे बैठे उतां का ठीक गुजारा देख्या।।टेक जिसनै पोप कहैं थे हरी, और कुछ ना बस माट्टी निरी, एक पत्थर की मूरत धरी, कहैं स्वामी जी म्हारा देख्या। मैं बेईमान किसे नै ना बुझया, मीत मिल्या ना जगत मै दूजा, पत्थरां की करते पूजा, माणसां का लारा देख्या। कोए ऋषि कहै कोए ब्रह्मचारी, जिसनै पूजै थी दूनियां सारी कृष्ण जी का भगत पुजारी, मनैं रिश्वत का प्यारा देख्या। चाहिए थे राम नाम के जपणें, ये नहीं भेद छीपाएं छुपणें मेहर सिंह मतलब केअपने, सब दूनियां जग सारा देख्या। आहात हो कर कालीचरण आगे सोचता है- क्यूकर आवै सबर मेरै चालण की सुरती लाई कुछ ब्राहमण पाखंडी देखे तीर्थ पै करैं कमाई।टेक मन की ममता चित की चिन्ता ना मिटै तीर्थ न्हाए तै महंत पुजारी बरत कै देखे ना संकट कटै बंडाए तै ये झूठी शान बणाए तै, ना होती कदे बड़ाई। करणी का डंड पड़ै भोगना कुछ टुटी कै बुटी कोन्या जितना सांस दिया मालिक ने, उसतै आगे की छुट्टी कोन्या या मेरी बात झूठी कोन्या, पर नहीं मानते भाई। विश्व मोहिनी का रूप देख कै, नारद जी का मन छणग्या, भरी सभा मै हाथ पकड़ लिया कामदेव का तीर तणग्या, उस का बंदर आला मुंह बणग्या, हुई जग मै लोग हंसाई काली चरण ईब नहीं ठिकाणा चल शहजादी धोरै मेहर सिंह सतगुरु बिना चेला रहज्या कालर कोरै या तृष्णा पापण चित नै चोरै, ना मिली कीतै दवाई। सब जगह से आहात हो कर कालीचरण वापिस आता है- देख लिया सारे कै फिरकै, सच्चा भगवान मिल्या ना।टेक हाथ पैर जोड़ कै नैं बड़ी मुश्किल तै कट्ठे किए, हिन्दुओं का इत्तफाक देखो ठोकरों से बट्टे किए, जात मै तै गेरण लागे बहोत स्यां नै ठठ्ठे किए, गैरां के घरां रोशनी अपणे घरां रात देखी, बख्त पड़े पै नाट गए या पंचा की बात देखी, फैसला करणिये देखे ऊता की पंचायत देखी, डूबगे अधम मै तिरकै, नुगरया कै गुण स्यान मिल्या ना। मन्दिर के म्हं जाकै देख्या पत्थर की एक मूरत धरी, घी बुरा का भोग लावैं उस नै बतावैं हरी, इन झूठे फंडा नै लोगो दुनियां बारा बाट करी, आगे सी नै चाल कै मनैं एक झटका और देख्या, मंदिर के म्हा टाली बाजी बहोत घणा शोर देख्या, मोडे और मुस्टंडे बैठे पोपां का घणा जोर देख्या, करया था ख्याल ध्यान धरकै, छलियां म्हं ज्ञान मिल्या ना। मन्दिर मंढी कुए बावड़ी बागां मै फल सारे थे, किस्म किस्म की फुलवाड़ी छूट रहे फुव्वारे थे, देख कै आनन्द हो गया बहिस्त के नजारे थे, कोठी बंगले बहुत देख छोटे बड़े साहूकार, मन्दिर मै रहै पोप पुजारी उतां की भाई लागी लार, चढ़ावे के पैसे मारैं कती भी ना करते टार, बैठगे घर अपणा भरकै, कितै भी पुन दान मिल्या ना। हवन कुण्ड थोड़े देखे घणे तो शिवाले थे, चौगरदे नै गऊ चरैं थी बीच मै ग्वाले थे, एक तरफ नै प्रजा न्हा थी बहते नदी नाले थे, घूम कै लिया देख दूनियां मै कोए प्यारा नहीं, सच्चे अन्तर्यामी बिना और का सहारा नहीं, जाट मेहर सिंह सोच ले नै इस तरियां गुजारा नहीं, चाल पड्या गरीब सबर करकै, ईश्वर का स्थान मिल्या ना। वापिस पहुँच कर कालीचरण मुस्लिम धर्म अपनाने की सोचता है और शहजादी से क्या कहता है- हिन्दूओं की ली उठ देख, मनैं मुस्लिम होणां पड़ग्या। चाल शहजादी निकाह पढ़ागें, यो रस्ता टोहणा पड़ग्या।टेक एक हिंदू आज मुस्लम होगा कोन्या होणा टाला, किते भी ना हुई सुणाई सब कुछ देख्या भाला, जै कोये वीर आर्य मितली आज क्यूं होता मुंह काला, गहरी नींद पड़े सोवैं सै ना कोए जगावण आला मुस्लिम सारे जाग रहे हिन्दुओं कै सोणा पड़ग्या। दो पाटां मै ज्यान फंसी जीवण का काम रहया ना, मुझ गरीब बंदे का साथी वो सच्चा घन श्याम रहया ना, पिता नयन चंद का इस दुनिया मै इज्जत का नाम रहया ना, जिसनै निर्मल जल समझया करता गंगा का धाम रहया ना, तू सै लेट सड़े पानी की पर मनै नाक डूबोणा पड़ग्या।। उल्टा पैर नहीं धरणे का आगै नै बढ़या करूंगा, थारे मजहब की बातां तैं मै ना न्यारा कढ्या करूंगा, संध्या हवन छोड़ कै नैं नमाज नै पढ्या करूंगा, मन्दिर जाणा तज कै नै मस्जिद के मै चढ्या करूंगा, मेरे नाम का रै शहजादी, इन पंड़ता कै रोणा पड़ग्या। कोये तो कंगाल बणाया मरै भूखा और तिसाया, किसे तै दिया धन खजाना हे निराकार तेरी माया, अंधा काणा लंगड़ा लूला कोये कोढ़ी लुन्ज बणाया, एक एब मेरै बी मोटा यो गावण का अल़ लाया, जाट मेहर सिंह गाणें पै आशिक होकै थूके बिलोणा पड़ग्या। शहजादी कालीचरण जो मुस्लिम धर्म अपनाने के बाद अपना नाम काला चाँद रख लेता है से क्या कहती है- पहलम जीम रसोई पाछै अगली बात करांगे जीवांगे तै प्यार मोहब्बत दिन और रात करांगे।टेक दिलदार बैठकै जीम रसोई मैं पंखा झोलूंगी, बैठ्या हुक्म बजाए जा मैं खातर मै डोलूंगी, अपणी तेरी शादी की मैं माता आगै बोलूंगी जै माता नै नहीं सुणी तै भेद पिता तै खोलूंगी, म्हारे नाम का के कुछ न्याय हो कल पंचायत करांगे। जै पंच फैसला भी नहीं हुआ तै आगे की करूं चढ़ाई, मैं कानून मै भरी पड़ी सूं तूं भी जाणै खूब पढ़ाई, आड़ै फैसला नहीं हुआ तै करूं शिमले तलक लड़ाई, लाहौर कचहरी मैं देखी जा कितनी अक करै बड़ाई, उड़ै भी फैसला नहीं हुआ तै दायर केस बिलयात करांगे। जब तक तेल रहै दीवै मै जलती ज्योती रह्या करै, परखणियां माणस कै धोरै सच्चा मोती रह्या करै, प्यार मोहब्बत मै ख्वारी दुनियां मै होती रह्या करै, बीर मर्द की राजी चाहिए दुनिया न्यू ए रोती रह्या करै, हम दोनूं सांझ सवेरी नित मुलाकात करांगे। दोनूं बखतां राम रटण मै जगह राम की जान लिया, रात और दिन की सेवा करकै सीख गुरु तै ज्ञान लिया, उस दानी आगै मंगता बणकै घला झोली मै दान लिया, स्वार्थी संसार सभी, मेहर सिंह तनै पहचान लिया, कितै भी को नहीं सुणतै, परमेसर कै हाजर गात करांगे। कालीचरण काला चाँद बनकर शहजादी से निकाह कर लेता है और हिन्दुओ का कट्टर दुश्मन। वह बंगाल का शासक बन कर बहुत से हिन्दुओ का जबरन धर्म परिवर्तन करवाता है। मौलवी बैठा लिया जड़ में झूठा फंड तमाम लाग्या वेदां आले मन्त्र कोन्या सारा उल्टा काम लाग्या।टेक जैसे धनवत धन माल छोड़ कै, सुपने मैं कंगाल छोड़ कै, नमस्ते करण का ख्याल छोड़ कै, झट करने गरीब सलाम लाग्या। अपणा धर्म निभाणा रज कै, मूर्ख दिल बहलाणा सज कै, मन्दिर कै म्हां जाणा तज कै, मस्जिद मै देण बाम लाग्या। अपनी इज्जत आप घटा दी, पिता नैनचन्द की पैड़ मिटा दी, चोटी और मेरी मूंछ कटा दी, के खोटा इल्जाम लाग्या। पहलम जमना जी पै जाणा सिख्या, फेर गढ़ गंगा मै न्हाणा सिख्या, जाट होकै गाणा सिख्या, मेहर सिंह तनै राम लाग्या।

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