किस्सा जगदेव-बीरमति : फौजी मेहर सिंह (हरियाणवी कविता)

Kissa Jagdev-Beermati : Fauji Mehar Singh (Haryanvi Poetry)


एक समय की बात है की मालवा देश में राजा उदयदत राज किया करते थे जिनकी राजधानी धारा नगरी थी। उनकी दो रानियाँ थी, बड़ी राणी सोलंकनी से जगदेव तथा छोटी राणी वाघेलनी से रणधूल का जन्म हुआ। जगदेव का विवाह पडोसी राज्य टोंकाटोंक (टोड) नरेश टोडरमल की राजकुमारी बीरमती से हो चुका था परन्तु अभी तक गौणा संपन्न नहीं हुआ था। सारे राज्य में खुशहाली थी। राजा जगदेव को अपना उतराधिकारी घोषित करना चाहते थे परन्तु छोटी राणी राजा को वचनों में बांध कर जगदेव के लिये 12 साल का दिसौटा व रणधूल के लिये राज मांग लेती है। राजा विवश होकर डियोढी पर ये फरमान लिखवा देते है। जगदेव शिकार खेलने गया हुआ था जब वो वापिस आता है तो वो उस फरमान को पढ़ता है-

दरवाजे पै देखण लाग्या परचा सै अक चाला के पाछे तै डूब्बा पडगी होग्या मुह काला (यह रगनी नही मिली) जगदेव परचा पढ कर वहीं से वापस चल देता है । मारे रै मोसी हत्यारी नै चाल्या उल्टा घोडा मोड कै (यह रगनी नही मिली) जगदेव रास्ते सोचता है कि मुझे एक बार बीरमति से मिलना चाहिये। और क्या सोचता है- बणखंड मै जाण तैं पहलम, बीरमति तै मिलणा चाहिये। जो फेरयाँ ऊपर वचन भरे थे, उन्हतै नहीं हिलणा चाहिये।। उजल उजल आवै हिया सै, बीरमति दुखी तेरा पिया सै, मौसी नै जो जख्म दिया सै, इस बख्त पै सिलणा चाहिये।। के राह हो मौसी जिसी का, कोये के करले बता इसी का, मेरी तरह जख्म किसी का, कदे नहीं छिलणा चाहिये।। मौसी नै किसा मरम दुखाया, चढ़ घोडे पै सुसराड़ आया, पापण नै जो कांटा चुभाया, वो जरूरी किलणा चाहिये।। पुराणी याद म्हारी ताजी होज्या, जै बीरमति दुख मै साझी होज्या, मेहर सिंह भी राजी होज्या, फूल कमल ज्यूं खिलणा चाहिये।। जगदेव अपनी ससुराल एक बाग में पहुंच जाता है और एक हलकारे को अपने आने का सन्देश राजा तक पहुँचाने की कहता है- जाकै कहदे आ रहा थारे बाग्गां मै,जगदेव पति तेरा।। मन मेरे पै उदासी छाई, न्यूं चल्या आया सुसराड़ की राही, दुनिया कहती आई धन मिलै जाग्गां मै, खिल्या रहै चेहरा।। ताज लिया मौसी नै खोस, शरीर मै रहया ना जोश, खोड़ निरदोष दाग दी दाग्गां मै, कितणे दुख खे रहया।। मौसी नै किसी जमीं जड़ पाड़ी, कोये कर्म पल आण अड़या अगाड़ी, बेहमाता नै माड़ी लिख दी भाग्गां मै, के राह हो मेरा।। होणी नै या विपता डारी, आगी मेरे करमां मै हारी, मेहर सिंह की सारी मिलैं सैं रागनी राग्गां मै, जगत कहै भतेरा।। कथन हरकारे का महल मै जगदेव कँवर बाग मै आ रहया, बख्त तवाई का। राजमहल मै बुला करो, सत्कार जमाई का।। बाग मै बांध बटेऊ का घोड़ा, मैं आया घणा भाग्या दोड़ा, न्यूं कहै था वो टेम सै थोड़ा, जाणा लांबी राही का।। बात साफ कुछ नहीं बताई, मुख मंडल पै उदासी छाई, दीखै आगी कोये करड़ाई, बेरा ल्यो मुसीबत ठाई का।। खीर हलवा बणा दयो ताज्जी, कई किस्म के साग और भाज्जी, सब तरियां कर दयो मन राज्जी, ले आनन्द रोट्टी खाई का।। मनै था भेद छंद का टोहणा, जुग जुग बसो मेरा गाम बरोणा, कुछ भाईयाँ कै पड़ग्या रोणा, मेहर सिंह की कविताई का।। कथन जगदेव का बीरमति से- तनै साच बता दयूं बीरमति मैं, बारा बरस का मिल्या दिसोट्टा। बिना खता के डण्ड दे दिया, यो दुख हो रहया सब तै मोट्टा।। राज्जी होऊं था मौस्सी दरस पै, उसनै बाळ दी आग करस पै, अरस तै पटक दिया फरस पै, अपणा भरगी ठाडढा कोठ्ठा। पिता जी भी दबैं सै उसतै, घर मै पाळ दिया किसा झोट्टा।। मौस्सी बात करै मार हाथां नै, जाणै ना कदे सीले तात्यां नै, मैं समझूं सूं सारी बातां नै, उसका भतेरा दुख मनै ओट्टा। रणधूल कवँर नै भी करूं था, जो मौस्सी जाया मेरे तै छोट्टा।। आज कोये मेरे जितना तंग ना, पिता का कहया टाळू इसा नंग ना, बोझ ढोण की मेरी आसंग ना, सिर पै धर दिया जबर भरोट्टा, अपणे बेटे के मोह मै घिरकै, मेरा हक नाहक खसोट्टा।। ऊं तै बूढ्ढा स्याणा और चात्यर, जाणैं क्यूं होग्या इसका दिल पात्थर, पिता मेरा मनै पीटण खात्यर, भाज भाज ठावै सोट्टा, महज रागणी गाणे तै, खरे मेहर सिंह नै बतावै खोट्टा।। हलकारा वापस आकर जगदेव को महल में ले जाता है वहा राम रमी होती है।वहा पर बीरमती से अपनी दुःख विपदा बताता है- माल्यक नै भंग गेर दिया, करणी म्हारी मैं। बाराह साल तक रहूं बणां मै दिल की प्यारी मैं।। मेरे पिता नै दिया दिसोटा, हँस कै काटूंगा, सूं छतरी का जाम हुक्म तै, ना न्यारा हाटूंगा, जो दुनिया की राही उसतै, ना न्यारा पाटूंगा, ना व्यर्था रो कै खोऊं जिंदगी, दिल नै डाटूंगा, सहम मजाक बणू कोन्या, इस दुनियादारी मै।। जुदाई का सदमा गोरी, तनै सहना पड़ैगा 12 साल पिता के घर पर, और रहना पड़ैगा तेरे बारे मै मल्यक तै, कुछ कहना पडै़गा इस भवसागर की धार मै, सबनै बहना पड़ैगा तेरे सारे बयान दिखा दूंगा, उस मलिक की डायरी मै।। बेवारस की ढाल फिरूं सूं, मैं छत्री का जाया थारे बाग मै आ ठहरया, दुख विपता का सताया 12 साल तक मनै रहणा बण मै, या माल्यक की माया, आडै़ आण का कारण, मनै सारा खोल बताया, तेरतै को सुख दिया कोन्या, कित का सूं घरबारी मैं।। धन माया और महल हवेली कुछ ना चलै गैल, मेरे बाप ने कह दी छोरे,कर दुनिया की सैल, कहे सुने कि ना मानै, वो रहे बैल का बैल, सांगी भजनी करैं कमाई सै तेरै झूठा फैल, मेहर सिंह पूरा पाट्टै,प्यारे खेती क्यारी मै।। कथन बीरमति का- अपने साथ ले चलिए पिया, आड़ै छोड़िए मत अकेली। घर आपने मैं रहै ना सकती, बण मै जा जब मन का मेली।। बखत सारे खेल खिलाहवै, यो ना हो बंदे के हाथ, आच्छे बैठ्ठे बिठाया पै, होणी नै कोड़ करी अलामात, 12 बरस पीहर के म्हां, क्यूकर मौस्से बैठी रहूं गात, बेसक कितनी नाट पिया मैं चालूंगी तेरे साथ तू के जाणै तेरे बिना मनै, कितनी विपत पीहर मै झेली।। तेरे बिना पीहर मै साज्जन, इब जी लागै ना मेरा, एकली नै छोड़ बण मै जावै, बुझा दिवा करै अँधेरा, मरद बिना बता बीर का, कदे होता देख्या बसेरा, मैं साथ रहूंगी दिसौट्टे मै, उड़ै दुख बटवाऊं तेरा, आड़ै तड़प तड़प कै मरज्यांगी, जै तू ना लेग्या अपनी गेल्ली।। पार नहीं बसावै थी मेरी, सरद आँह भरकै सोया करती, सुपने मै दिख जाता जब, सारे कै तनै टोहया करती, ना किसे तै बात करूं थी, एकली ए जंग झोया करती, छोहरियां के बटेऊ लेण आते, मैं भीतर बड़ कै रोया करती, पीहर मै मैं रही तड़फती, ना सासरे मै खाई खेली।। सब तै आदर भाव तै बोल्या, कदे भूण्डा बोल कहया ना, शील सुभा का घणा नरम मैं, किसे तै वृथा फहया ना, रागनियां मै मेरा ध्यान रह था, न्यूं हल भी ठीक बहया ना, इस गाणे और बजाणे मै, मनै कुछ भी नफा रहया ना, इन रागनियां के गावण तै, के मेहर सिंह नै भर ली थेल्ली।। कथन जगदेव का बीरमति से- रै मत साथ चलै तू, हो ज्यागा उल्टा रासा।। बात पति की मानणी चाहिये, आच्छी ना हो आल़ गोरी, मेरा भला मनाणा चाहिये, कर बण चालण की टाल़ गोरी, ऊक चूक जै बण मै बणगी, दुनिया देगी गाल़ गोरी, उड़ै मैला भेष पाट्टे कपड़े, आड़ै रहै परियां की ढाल़ गोरी, यो शरीर ना ओटण का, चालै ताती सीली बाल़ गोरी, उड़ै रोट्टी तलक नसीब हो ना, घरां पड़ै खाणे पै राल़ गोरी, हंसी खुशी तै दिन कट रहे थे, मौस्सी नै घाल दिया फाँसा।। मनै विपत मै सहारा दिये, होणी नै गेरया जाल़ गोरी, सुख की आश भूल जाईये, उड़ै नहीं गलैगी दाल़ गोरी, उड़ै भूखा भी रहणा पड़ज्या, आड़ै परोसे जां थाल़ गोरी, शेर बघेरे फिरैं बण मै, उड़ै डंग डंग पै काल़ गोरी, कुरसी मुढढे नहीं बैठण नै, बैठणा पड़ै जोहड़ पाल़ गोरी, सुबह शाम खाणे के टेम पै, तेरै याद आवैंगे माल़ गोरी, माक्खी माच्छर डांस लडैंगे, जब आवैगा चमासा।। सब तरियां के सुख छुट्टै तेरे, होज्या बण मै काल़ गोरी, कई बै कुछ ना मिलै खाण नै, चाबणी पड़ज्या छाल़ गोरी, जीते जीयां नै के मुश्किल सै, गुजरज्यां बारा साल़ गोरी, दो दिन मै लाली खोई जागी, इब चमकै तेरा भाल़ गोरी, तपती गरमी मै रहणे तै तेरी, काली पड़ज्या खाल़ गोरी, घर मै बैठ्ठी मौज उडाईये, के लेगी बण मै चाल़ गोरी, मैं आपा देखूं के तनै संभालू, दुख होज्यागा खासा।। अपना बेटा राजा बणा दिया, मौस्सी नै खेली चाल़ गोरी, इसतै बचण का जतन बता, या मौस्सी नै घाल़ी घाल़ गोरी, बीरां आल़ा मता छोड़ दे, कर मेरी बात का ख्याल़ गोरी, दिसौट्टे का दुख इतना कोन्या, उठै तेरी औड़ की झाल़ गोरी, भूखी प्यासी रहने तै, पिचक ज्यां तेरे गाल़ गोरी, साबुन मटणे मिलै नहीं, ना उड़ै मिलै नाहण नै ताल़ गोरी, विपता की गठड़ी क्यूकर ठावै, जब दुख देख्या ना मासा।। जंगल आले काम बणै ना, तू आड़ै देख री ठाल़ गोरी, जेठ भादवे की धूप सही ना, होज्या चेहरा लाल गोरी, हारी बिमारी आज्या बण मै, कौण बूझैगा हाल गोरी, उडै साबण तेल कड़े तै आवै, सिर के धोल़े होज्यां बाल़ गोरी, दिसौट्टे मै चालण का जिकर छोड़, पाड़िये मतना फाल गोरी, बणी मै प्यारे बिगड़ी मै न्यारे, देख नजर डाल़ गोरी, मुँह पै बडाई पाच्छै निंदा, मेहर सिंह नै देख्या खुद तमासा।। कथन बीरमति का जगदेव से- एकला मत बण मै जाईये, ले चालिये मनै साथ, तेरा मैं पूरा साथ निभाऊंगी।। मौस्सी नै काम करया किसा खोट्टा, बारा साल का दे दियी दिसौट्टा, भरोट्टा दुख का एकला मत ठाईये, मैं भी लाऊंगी हाथ, और बता किस काम आऊंगी।। हम दोनूं मिलकै रहैंगे इसे, दूध और पाणी मिल ज्याते जिसे, किसे किस्म कि मत चिंता ठाईये, हाजर सै मेरा गात, रात नै तेरे पैर दबाऊंगी।। अंबर मै चढूं तै कई योजन, बात मै ना सूई कितनी रोजन, भोजन महलां आले ना चाहिये, मैं खा ल्यूंगी फल पात, कहैगा तै भूख भूल ज्याऊंगी।। गैल चालण तै मतना नाट, तेरे पै वारूं सब रंग ठाट, जाट मेहर सिंह कि तरिया गाईये, जिसकी सब तै न्यारी बात, वो नजारा मैं भी देखणा चाहूंगी।। कथन बीरमति का- बात मानज्या मेरे पिया, इसमै भला तुम्हारा होगा। बियाबान मै साथ चलूंगी, तेरे साथ गुजारा होगा।। दिसौट्टे की सुणकै मेरा, उजल आया हिया, उसका फल पड़ै भोगना, करम जो बंदे नै किया, तेरे तै न्यारी रहकै इब, मेरे तै जागा नहीं जीया, सीता की तरह मैं भी बण मै, तेरे साथ चलूं पिया, थारे चरणां मै मेरा ठिया, इब यो ना न्यारा होगा।। आड़ै पीहर मै रहूं कोन्या, चालूंगी तेरे साथ, ना चाहती मैं छतीस भोजन, खाल्यूंगी फल पात, छोड़कै मत जावै साजन, दुख पावै कोमल गात, पतिभरता के लछण जाणूं, सेवा करूं दिन रात, सब कुछ सै ईश्वर के हाथ, फेर भी तेरा सहारा होगा।। मनै पीहर मै छोड़ कै मत, नींव धरम की ढाहईये, तेरे हाजर खड़ी रहूं मैं, मन चाहा सुख पाईये, न्यारी करण का मेरे पीया, ना हरगिज डम्मा ठाईये, म्हारे घरां छोड़ै तै गूंट्ठा, घींट्टी मै दे जाईये, साजन इसे हाथ मत लाईये, मनै दुख भारया होगा।। सुबह शाम मैं दोनूं बख्तां, हर मै ध्यान लाऊं सूं, बड़े प्रेम तै और नेम तै, गुण ईश्वर के गाऊं सूं, मात पिता की आज्ञा मानूं, इसमै ए सुख पाऊं सूं, अच्छा ही सत्संग करती और सात्विक भोजन खाऊं सूं, मैं भी बरोणा देखना चाहूं सूं, जित मेहर सिंह प्यारा होगा।। कथन जगदेव का- समझा समझा कै थक लिया पर चाली ना मेरी। चालै तै ले घोड़ा अपना मत लावै देरी।। दुख विपता का म्हारे सिर पै, बाज लिया बाजा, बेरा ना क्यूकर निमड़ैगी, घा हो रहया ताजा, बीर मरद का दुख सुख मै साझा, तनै कहली कई बेरी।। अपणे संकल्प की पक्की सै, बात सब तरियां छाण ली, आड़ै एकली छोडूं ना, मन मै मनै ठाण ली, मनै तेरे मन की बात जाण ली, तू ना कर री हथफेरी।। एकली नै दुख ठाण दयूं ना, करिये भरोसा मेरे पै, मायूस दिल करै मतना तू, रौनक ल्या चेहरे पै, संकट आवै जै तेरे पै, अड़ ज्यागा तेरा केहरी।। पणमेसर का भजन करे तै, बंदे के कष्ट हरे जां, सोच समझ कै बरोणे मै, नये नये छंद धरे जां, हृदय ऊपर मार करे जां, मेहर सिंह गजब रागनी तेरी।। कथन कवि का- दिसोट्टा काटण चाल पड़े, हो घोड़यां पै असवार दोनूं। अपनी सुरक्षा की खातर, ले रहे तलवार दोनूं।। मौस्सी किसे पवाड़े कोये मत घड़ियो, अड़ो तै धरम के ऊपर अड़ियो, इब कितनी ए बिखा आ पड़ियो, मानै नहीं हम हार दोनूं।। रहैंगे कट्ठे सब दुख सुख खे कै, हृदय राम भजन मै भे कै, सब खुशी खुशी विदा ले कै, कर रहे नमस्कार दोनूं।। चाहे ईश्वर कितनी बिखा डाल्लैं, वीरां के दिल कदे ना हाल्लैं, घोड़े कदे चौकड़ियां कदे सरपट चाल्लैं, घोड़ां के खिल्हार दोनूं।। दिन भर चाले ना विसराम किया, शाम हुई घोड़े थाम आराम किया, फेर हर का नाम लिया, शुक्र करैं बारम्बार दोनूं।। ब्होत दूर आ लिये फिरते फिरते, गहरे बण मै बड़गे डरते डरते, दिसोट्टे का जिकरा करते करते, होये राज तै बाहर दोनूं।। कहै मेहर सिंह चित के विकार हरकै, सब बुराईयां तै अलग टरकै, पणमेस्सर का भजन करकै, हों भवसागर तै पार दोनूं।। कथन बीरमति का- तनै दिया मार शेर, सिंहणी चाले करगी हो।। जब हम बियाबान बीच आये, शेर शेरणी आगै खड़े पाये, म्हारा लिया आगा घेर, मैं चाणचक डरगी हो।। शेर झपट कै ऊपर आया, तनैं तलवार का वार चलाया, वो हो गया था ढेर, मैं सिंहणी तै भिरगी हो।। शेरणी मुँह पाड़ खाण आई, मनैं तलवार तै मार गिराई, दिये दोनूं मार गेर, म्हारी करडाई टरगी हो।। मेहर सिंह करै बुरे करमा का तजन, हर नै सुमर कै बणावै भजन, तू छंद मै छोडडै नहीं छेर, रागनी तेरे बरगी हो।। कथन कवि का- रस्ता बूझ कै दोनूं हो लिये, पाटन नगरी की राही।। छल की भरी या दुनिया सारी, म्हारे पै आफत गेर दी भारी, मेरी मौस्सी नै जान हमारी, किसे फंदे मै फाही।। दें इब काम छोड़ सब डर के, ना हम भूखे धन जर के, सुबह शाम भजन करैं हर के, धरम तै डिगैंगे नाही।। धंधा करे बिन चालै ना चारा, छत्री नै मन मै विचार विचारा, अपणा करैंगे पेट गुजारा, किसे के बण कै नै पाही।। जब पाटन का गोरा आया, एक तलाब किनारै डेरा लाया, शीतल जल पी होई आनंद काया, फेर आराम करण की चाही।। पिता लगे कष्ट देही पै डारण, छोह मै भर कदे लगते मारण, जाट मेहर सिंह रागनियां कारण, तनै धरती भी ना बाही।। कथन जगदेव का बीरमति से- न्यूं के बैठ्ठे काम चाल्लै, यो पेट खढहा भरणा होगा। पाटन नगरी मै जा, टुकड़े धंधे का राह करणा होगा।। इब बैठ्ठे ना आँह भरैं, हम छोट्टा मोट्टा कोये काम करैं, गरम कपड़ा का भी इंतजाम करैं, ना तै जाडे मै ठरणा होगा।। नहीं किसे के बहकावे मै आणा, ना तै पाच्छै पड़ै पछताणा, यो राज पाट नगर बिराणा, सोच कै पां धरणा होगा।। देख लिया भतेरा जी कै मरकै, के मिल जाता पाप घड़ा भरकै, सत्पुरूषों का सत्संग करकै, दुष्टों से डरणा होगा।। भतेरे दुख पाते अकड़ अकड़ कै, आवागमन के चक्कर मै जकड़ कै, अच्छाई की डगर पकड़ कै, बुरे करमां तै टरणा होगा।। जो नेक नीति तै बख्त गुजारै, उसनै पणमेस्सर पार उतारै, हमनै आच्छे कामां के सहारै, इस भवसागर तै तरणा होगा।। कौण समझ सकै म्हारे दरद नै, काट दिये दुख रूपी करद नै, सुख की खातर बीर मरद नै, एक दूजे का दुख हरणा होगा।। सत्संग मिलता है रिषी मुनिया मै, मन हरषता है बैठ गुनिया मै, बुरे करम करकै दुनिया मै, अधमौत मरणा होगा।। पेट की खातर मैं परदेश आ रहया, न्यूं घर कुणबे तै पाटया न्यारा, मेहर सिंह नै ना और सहारा, बस ईश्वर का शरणा होगा।। कथन जगदेव का बीरमति से- एक बात तनै कहकै जां सू, मेरे आये बिना मतना जाईये। बीरमति कदे ऊठ चली जा, बैठी इसी तला पै पाईये।। और बात मन मै ठाणी तै, बचै नहीं गी तू हाणी तै, बात मेरी तू मानी तै,फेर दुनिया की गाल़ खाईये।। करते छल कपट और चोरी जारी, झूठे यार बण करै मतलब की यारी, या दुनिया करती फिरै मक्कारी, मतना किसे की भका मै आईये।। या पल्लै गांठ बाधले कति, मरद बिना ना बीर की गति, मैं समझा चाल्या तनै बीरमति, उल्टा कदम कोये मत ठाईये।। मत मरियो कोये कूए मै पड़कै, के बेरा भाग जाग ज्यां तड़कै, जाट मेहर सिंह नये छंद घड़कै, गावै तै लय सुर मै गाईये।। इस रागनी को इस तरह से भी गाया जाता है- एक बात तनै कहकै जा सूं, मेरे आये बिना मतना जाईये। बीरमति कदे ऊठ चली जा, बैठी इसी तला पै पाईये।। जो खोट्टी मै नीत धरैं सैं, वे ईश्वर तै भी नहीं डरैं सैं, आड़ै ऊत लफंगे घणे फिरैं सैं, गैर मनुष तै मत बतलाईये। परदेशां मै कोये ना हिमाती, तू अपणी इज्जत आप बचाईये।। दुनिया भरी पड़ी सै छल की, धोखा करै ढील ना पल की, इब देखूंगा किसी अकल की, तू पतिभरता का प्रण पुगाईये। तेरी दुनिया मै कीर्ति होज्या, सति धरम की डिग्री चाहिये।। फर्क पड़ज्या ना तेरे मेरे प्यार मै, नईया इब सै बीच मझधार मै, नॉ धंसरी सै पाप गार मै, इसनै खींच बारणै ल्याईये। तेरा पतिभरता का धरम बण्या रहै, इसी युक्ती आप बणाईये।। या दुनिया बेफायदै ना बकती, हो सै पतिभरता धरम मै शक्ति, भजन करे तै मिलज्या मुक्ति,बैठी राम नाम गुण गाईये। जाट मेहर सिंह सब पाप कटैंगे, गुरू अपने नै शीश झुकाईये।। कथन कवि का- पत्नी नै समझा चाल पड़या, जगदेव कंवर होया शहर की राही।। पाटन नगरी की एक काणी ठगणी, चाल बीरमति धोरै आई।। ठगणी बूझै बीरमति नै, चलकै कौण देश तै आये, थारे चेहरे की रेख बता री, दुख विपता नै घणे सताये, के घरक्यां नै जुल्म करे, तम्ह बीर मरद घर तै ताहे, या गलती बणगी थारे तै, जो बीती कहिये वा हे, पाटन नगरी मै आ ठहरे तम्ह, क्यूकर यहाँ की सुरती लाई।। टोंक टोड़याँ शहर की बेटी, मैं धारा नगरी मै ब्याही सूं, बीरमति सै नाम मेरा, पति जगदेव कंवर के संग आयी सूं, पति तै 12 साल का मिल्या दिसोटा, इस रंज न घणी खाई सूं, धर्म समझकै आयी गेल्याँ, ना किसे नै ताही सूं, पतिव्रता नारी सूं मैं, गति पति की गैल बताई। म्हारी बात क्यों बुझी तन्नै, के मतलब सै तेरा, दा-घाटी तै बात करै तू, और ढाल का दिखै चेहरा, अपनी कुछ ना बताई तनै, सब हाल बुझ लिया मेरा, तू के कार करती फिरती, शहर मै कित सी सै डेरा, चाणचक आण माथै लागी तू, मैं भेद समझ ना पाई। ठगनी बोली इसी शहर मै रहती, हाल सुणा दयूं सारा, आये गयां कि सेवा करकै, हम करते पेट गुजारा, इस शहर मै मोज मनाइयो, थारा दुख मिटज्या सारा, जल्दी आवै तेरा पति जो, सौदा लेण शहर मै जारहया, मेहरसिंह नै ध्यान धरकै कथा, जगदेव बीरमति बणाई।। कथन कानी ठगनी का उसकी लीडर जामवंती ठगनी से- जामवंती कित ध्यान सै तेरा, तने मैं आई करणे बेरा, एक बीर मर्द नै लाया डेरा, तला के कंठारे आ कै। महारे भाग नै करया सै जोर, भेष बदल कदे दिखै ठग चोर, अपनी ओर का प्रेम जगाकै, चिकनी चुपड़ी बात लगाकै, बिठा डोले मै ल्याइये भगाकै, उसनै बहकाल्या जा कै ।। उसका पति शहर मैं जारह्या, मनै दा लाकै सही बख्त विचारह्या, आरह्या म्हारा सही मौका सै, माल भी उन धोरै चोखा सै, काम म्हारा तै देणा ए धोखा सै, निहाल घर बीरमति ल्याकै ।। भूख नै कालजा खा लिया चूट कै, देर करै ना चली जा उठ कै, उनका माल लूटकै घर भरैंगे, इब हम भूखे नही मरैंगे, उमर भर बैठ्ठे एश करैंगे, छीकमा माल खा कै।। वे सोना चांदी भी ले रहये साथ, तू ठग विद्या की दिखा करामात, कोन्या बात मेरे त झिलती, प्रभु बिन भाग रेख ना खिलती, जाट मेहर सिंह बड़ी खुशी मिलती, नए नए छंद बणा गा कै।। कथन काणी ठगणी का जामवती से- तला के कंठारे पै, एक सारस केसी जोट निराली, चाँद से गोरे मुखड़े पै, कदे किसे की पड़ज्या छाहली, ध्यान लगा कै देख्या तै एक, हूर तला पै लोटी देखी। टेक नार जणूं चन्दा की उनिहार, रूप जणूं बिजली की चमकार, दिख्या होली जोड़ त्यौहार, और कातिक जिसी दिवाली, जणुं लक्ष्मी पुजण खातिर, जोत सेठ नै बाली, चिरमा उंगली मुंगफली सी ढाई इंच तै छोटी देखी। फैशन बुरा आज और कल का, सचमुच गाहक मर्द के दिल का, एक लाल दुपट्टा मलमल, जम्फर मै कढ़मा जाली, जणूं जंगल मै ओस चाटती, फिरती नागण काली, कोए बालक बच्चा कोन्या, खड़ी एकली पोटी देखी। नार भर री सै खुब उमंग मै, रती बैठी एक एक अंग मै, ना मर्द दिखता संग मै क्यूकर रहैगी उमर की बाली, घोड़ी धन धरती बीर नै, चाहिए घणी रुखाली, नाजुक थी एक सार छूट मनै, वा ऐडी तै चोटी देखी। कहै मेहर सिंह सुर बिन किसा राग, नमक बिना अलूणा भोजन साग, फलया ना करता यो काया बाग, बिना माली, सींचे बिन भी तुरत सूख ज्या डाली, माणस नै दे तुरत मार, नैनां की घूर ईसी खोटी देखी। कथन कवि का- एक डोले मै आप बैठगी, एक ले लिया संग खाली पतिव्रता का सत आजमावण आप बेशवां चाली। टेक आपणी गैल्यां ल्याऊं भलो कै, फेर राखूंगी घरां ल्हको कै, कपड़े बदल लिए नहा धो कै, माथे पै बिन्दी ला ली। या कार करे बिन कोन्या सरता कुकर्म देख कालजा डरता देखूंगी वा किसी पतिव्रता सत तोड़न की स्याली। देख्या रूप आनंदी छागी, उसकी करण बड़ाई लागी, बैठी हूर तला पै पागी, मिठ्ठी बोल रिझाली। नरमी होती सदा सुख देवा, सब ईश्वर पार करेंगे खेवा, मेहरसिंह कर सतगुरु की सेवा, मनै जोड़ रागनी गा ली। कथन जामवती का बीरमति से- जगदेव कंवर की बुआ सूं, बिखा पडी भतीजे मेरे पै। जब सुणी बहू तला पै बैठी, मेरै रौनक आगी चेहरे पै।। मेरे भाई नै भकावे मै आकै, यो काम करया बड़ा खोट्टा, राज का हक जगदेव का था, रणधूल कंवर इसतै छोट्टा, बिन सोचे बिना खता के, बारां बरस का दिया दिसोट्टा, मेरे धोरै दिन कटै सुख तै, ना यो दुख नहीं जागा ओट्टा, किसे कि पेश चालती कोन्या, इस होणी के घेरे मै।। जब लग बालक होये ना मेरै, मै पीहर आया जाया करती, दोनूं भाभी भागवान मेरी, मन चाहया ल्याया करती, भाभी मेरी कमेरी भतेरी, मैं ना हाथ काम कै लाया करती, सब ढाल की मौज पीहर मै, जी चाहे सो खाया करती, कदे अजमा कै देख लिये, खड़ी पाऊंगी एक बेरे पै।। घर कुणबे नै बिचला राखी, न्यूं आण ना पाती मैं, चोखा तम आ गे ना तै, धारा नगरी आती मैं, तेरै पक्की जर ज्यागी सौं, भाई उदियादत्त की खाती मैं, सारी राम कहाणी कहदी, और के पाड़ दिखाऊं छाती मैं, इब देर करै मन बहुअड़ राणी, चाल ऊठ मेरे डेरे पै।। जै बूड्ढा बरोणै बस लण देता, नई नई कथा बणाता मैं, नई तरज नई उमंग मै भरकै, के बेरा के के गाता मैं, जिन्है नै बुरी बतावैं थे उन्ह, रागनियाँ की धूम मचाता मैं, मेरा घर कुणबे मै बसेबा होता, क्यांह नै फौज मै आता मैं, मेहर सिंह फौज मै भरती करवा, के काढ्या पिता नै तेरे पै।। कथन बीरमति का जामवती से- किसे की गैल मैं जाऊँ कोन्या, पति गये सै मनै नाट।। के बेरा तेरा कुण सा रूख, हमनै पहल्याएं भतेरा दुख, किसे का सुख चाहूं कोन्या, अपणा ल्यूंगी बख्त मै काट।। तेरा पता नहीं कुछ ठीकाणा ठोर, ओर ढाल का दिखै तेरा त्योर, कष्ट और इब पाऊं कोन्या, कदे हम जां ना न्यारे पाट।। घर तै चाल्ले पाछै दुखी होये, सारे रस्ते घरती मै सोये, मुसीबत कोये ठाऊं कोन्या, मनै ना चाहते पलंग खाट।। लाया नहीं मनै कुटंब कै लाणा, मेरा काम शुरु तै गाणा बजाणा, कदे गंदा गाणा गाऊं कोन्या, न्यू कहरया मेहर सिंह जाट।। कथन बीरमति का- दिन ढलग्या हुई शाम सै री, हे री मेरे आए ना भरतार, एकली मैं बैठी ताल पै री। टेक ऊंच नीच किमै बण गई री, बात पिया नै सुण लई री, फेर मेरा जीणा सै हराम सै री, हे री मनैं देंगे पिया दुत्कार,एकली मैं। पिया तो मेरे आए नहीं री, हुई मन चाही नहीं री ना भाग मै आराम सै री, हे री मेरी लोग करैं तकरार, एकली मैं। कहूं थी साथ ले चा लिए हो, नहीं विप्ता के दिन जा लिए हो, आड़े नहीं लवै म्हारा गाम सै री, हे री मेरी जिन्दगी सै बेकार, एकली मैं बैठी। मेहर सिंह हर नै रटै री, कृष्ण कृपा तै संकट कटै री, उसका गाण बजाण का काम सै री, हे री सुध लेंगे सृजनहार, एकली। कथन जामवती का बीरमति से- जगदेव कंवर कितै तै आवैगा, वो जा रहया सै मेरै। खुद चाल देख ले, यकीदा आज्या तेरै।। तू याणी तनै बेरा कोन्या मैं जाणू नस नस नै, ऊक चूक जै बणगी तै म्हारे खो देगी जस नै, अपणी भोली भाली फूफस नै, क्यूं बातां तै हेरै।। अपणे हाथां बणा रसोई, भतीजा अपणा जिमाया, बारा साल दिसोटे की सुण कै, मेरा हिया उजल कै आया, जगदेव कंवर नै सब हाल सुणाया, के इब बी रहगी बिन बेरै।। जमाना बहोत खराब मेरी माया, तनै बार बार समझाऊं, सारा धन ले बैठ डोले मै, तेरे पति धौरै पहोचाऊं, घरां ले ज्याऊं लाड लडाऊं, और के गेरूंगी झेरै।। कोये डाकू ठाले दिखै तू इंद्र खाड़े की पातर, समझावण का तेरा बिसर नहीं तू खुद अकलमंद चातर, जाट मेहर सिंह अगत की खातर, ओम् नाम नै टेरै।। कथन जामवती का- हे बहू तावल करकै चाल हे, दुःख पा रह्या मेरा गात, विपता गेर दई हर नै। टेक अपणा भेद बता दे मन का दुःख भोग्या रात और दिन का कर रही तन का बेहाल हे, रही कष्ट भोग दिन रात क्यूं छोड़ कै घर नै। मदनावत सवित्री सीता सतवन्ती, जिनका जिक्र सदा से सुणती, उस दमयन्ती की ढाल हे, तेरी खोट्टी लागी स्यात टोहवती फिर रही बर नै। मैं थारी करकै आगी मेर, खड़ी हो क्यूं ला राखी देर, तेरी टेर सुणै तत्काल हे, वो तीन लोक का नाथ, रट्या कर सच्चे ईश्वर नै। मेहर सिंह सीख सुर ज्ञान, तेरा हो कवियों मै सम्मान कर खानदान का ख्याल हे, बहू ईज्जत तेरे हाथ, ल्या पुचकार दयूं सिर नै। उधर कथन जगदेव का- कर कै आया आस, राम की सूं। एक कमरा चाहिए खास, राम की सूं। टेक मौसी नै कढ़वाया घर तै, कुछ ना गलती मेरी थी दुःख विपता ने घेर लिया, तन की होगी ढेरी थी अपना उल्लू सीधा करगी, मौसी की हथफेरी थी हो हो राम चले बनवास, राम की सूं। दरवाजे तै उल्टा फिरग्या, होग्या राही राही रै, न्यूं सोची हो दुःख सुख मै, यारी अर असनाई रै, गया सुसर के पास उड़ै, बीरमति बैठी पाई रै, हो हो यो सुणा दिया इतिहास, राम की सूं। बीरमती पाछै चाली, आगै आगै आप होया, एक सिंहनी एक शेर फेटग्या, म्हारे जी नै सन्ताप होया, शेर सिंहणी मार दिया, जब मेरा रस्ता साफ होया, हो हो आग्या सुख का सांस, राम की सूं। आशा कर कै आया सूं, दुःख मेरे ने बाट लिए, धन माया की कमी नहीं, ज्यादा ले चाहे घाट लिए, मेहर सिंह तेरा गुण भूलै ना, इस कमरे मै डाट लिए, हो हो रहूं चरण का दास, राम की सूं। कथन जगदेव का- हाथ जोड़कै कहूं सूं एक अरजी म्हारी थी देखी हो बता कड़ै गई,आड़ै मेरे दिल की प्यारी थी जब उसनै छोड़कै गया शहर खिल रया था सवेरा मेरी दोफारी और सांझ बीतगी इब हो लिया अंधेरा आकै देखी कोन्या पाई मेरा उतरग्या चेहरा इधर-उधर चोगरदै देखी पर कोन्या लाग्या बेरा इस पीपल नीचै डेरा था,वा बैठी टेम बितारी थी मनै बोलती सुणती कोन्या कई बार आवाज देई बेरा ना कित मरै डाण सै ऊठ बैरण कड़ै गई बेरा ना के ठट्ठा कररी अक विप्ता नै घेर लई कितै उठ तला तै जाईए ना मनै सौ बै उस्तै कही बोली ऊठ आड़े तै जाऊं कोन्या सूं भाईयां की खारी थी स्याणे माणस कहया करैं गुद्दी पाछै मत लुगाई की आड़े खूड़ां चालैगी ना मानै बाप खसम भाई की बीरमति नै ना करी सुणाई इतणे बै समझाई की मन बैरी मनै काल करै सोच टोडर जाई की ओर मुसीबत गेर दई विप्ता पहलम ए भारी थी राज घरां में जन्म लिया पर तकदीर लिखाई खोटी मिला दसौटा दर-दर भटकां विप्ता तन पै ओटी मैं तै काम टोहण गया था शहर में जीतै चलज्या दाळ-रोटी मेहर सिंह हो मालक की नाराजी बता म्हारी के पोटी ना तै गाम बरोणे में हेल्ली म्हारी दुनिया तै न्यारी थी कथन जगदेव का- बखत पड़े पै धोखा देगी, आखिर थी जात लुगाई, आकै तला पै देखी, बीरमती ना पाई। टेक पहलम तै मनै जाण नहीं थी, मेरी जिन्दगी नै खार करैगी, जैसे कर्म करे पापण नै, वैसा ही डंड भरैगी, कीड़े पड़कै डाण मरैगी, केसर सिंह की जाई। बेरा ना कुणसी खूंट डिगरगी, ईब कड़ै टोहले, गुदी पाच्छै मत बीरां की, अक्ल मन्द न्यूं बोले, सरकी बन्द की गैल्यां होले, जब लागै करण अंघाई। मौसी नै घर तै कढ़वाया, मेरी गैल्यां कोड करी, पिछले जन्म की बैरण थी, कुछ राखी ना शर्म मेरी, दगाबाज धोखे की भरी, या सदियां तै जात बताई। कितै भी ना रास्ता दिखै, बैठ गया घिर कै, या तै मेरै पक्की जरगी, पैण्डा छुटैगा मर कै, मेहर सिंह जाट सबर कर कै, फेर हो लिया राही राही। कथन जगदेव का- काह्ल ढींढोरा पिट लेगा, इस दुनियां सारी मै खूब तमाशा देख लिया, थारी वेश्या की यारी मै। टेक पक्की मन मै सोच लिए, सै जीवण की भी सांसा, थोड़ी देर और बाकी सै, फेर देखेंगे लोग तमाशा, तेरे केले के सी धड़ ऊपर, चालैगा खड्या गंडासा, म्हारी दोनुआं की ज्यान लिकड़ज्या, यो किसा बसै घरबासा, तनैं न्यूं बुझूं सूं साच बता, बण्या किसा घरबारी मैं। एक दिन सब नै जाणां कोए ना, गैल किसे की चालै, परदेशां मै कौण हिमाती, या जिन्दगी राम हवालै, निराकार की मेहर बिना, कोण विपत नै टालै, बीरमती तूं अपणी करणी मै, कति कसर मत घालै, सब अपणे अपणे बाजे बजागे, अपनी बारी मै। इतनै मेरी तेरी जिन्दगी सै तनै, और चीज के चाहिये, इस फूटे मूंह तैं सौ बै कही थी, तू ओर किते मत जाइये, थोड़ी देर मै आ ल्यूंगा मनैं, इसी तला पै पाइये, चोर-जार लुच्चे डाकु तैं, मत ज्यादा बतलाईये, हाल्लण नै मनैं जगहां नहीं, ईब कित जां हत्यारी मै। चोर जार की दुनियां मै, ना बडाई हो सै नकब लगे पै चोर थ्याज्या, खूब पिटाई हो सै, पति नै मार कै सति होज्या, इसी चीज लुगाई हो सै, मेहर सिंह कहै इन बीरां की, उल्टी राही हो सै, यो हे नतीजा मिलता पाछै, चोरी और जारी मै। कथन बीरमति का जामवति से- तेरी गेल्यां तेरे घर आगी, करकै भरोसा तेरा। इब तै साच बता दे नै, कित बैठया सै साज्जन मेरा।। तू ठग्गां की ढाळ लखावै सै, मनै ना साच्ची बात बतावै सै, आड़ै मेरा जी घबरावै सै, इब होता आवै अंधेरा।। न्यारे न्यारे तू बहाने करती, तेरी बात मेरै ना जरती, मैं आड़ै बैठण तै भी डरती, बदल्या दिखै तेरा चेहरा।। सब मेरे तै नजर बचारी, ओर ढाळ की बीर नजर आरी, कोये गुप्ती मंशा दिखै थारी, मनै पाट्या कोन्या बेरा।। मेहर सिंह गम का प्याला पीया, इब लग पति दिखाई ना दिया, जै इसनै कुछ धोखा किया, तै बीरमति तेरा के राह्।। कथन जामवति का बीरमति से- झूठ भका कै मनै के मिलज्या, इसी मत सोचिये दोबारा हे। तेरा पति घुम्मण खातर, अपणे फूफा गेल्या जा रह्या हे।। खरी बात पै पूरे डटैंगे, अपणे कहे तै नहीं हटैंगे, थारे सुख तै दिन कटैंगे, मिलग्या म्हारा सहारा हे।। इब तू घूँट सबर की भर ले, मन मै कुछ तै धीर धरले, जा कै ऊप्पर आराम करले, खुल्या पड़या चुबारा हे।। बिछोवा तेरे तै नहीं झलैगा, मन का चमन फूल खिलैगा, रात नै जब पति मिलैगा, वो होगा अलग नजारा हे।। यो देव लोक तै आरह्या लागै, मनै तै सब तै न्यारा लागै, जाट मेहर सिंह प्यारा लागै, जो राग सुरीले गारह्या हे।। कथन बीरमति का- इस पापी कै धौरे, मेरी ज्यान टका सी अबला का धर्म बचाईये हो राम। टेक यो पड्या दुःख विपता का जाल, प्रभु झट आकै करो सम्भाल, यो काल मेरे सिर पै धोरै, छाई सै उदासी मनै मृत्यु का दिन चाहिऐ हो राम। चोट छाती में लाग खूब गई, कहैंगे इज्जत रुब रुब गई, मैं डूब गई कालर कोरै, हे सच्चे अभिनाशी, मेरी नाव कै बली लगाईये हो राम। लिखूं सूं ऊंच नीच की डिगरी, मेरे चोट लागगी जिगरी, इस नगरी कै गोरै, घलगी मेरै फांसी, मेरी छुटै तै ज्यान छुटाईये हो राम। मेहर सिंह डुंडी सारै पिटगी, इज्जत खानदान की घटगी, मैं लुटगी गुप्त मशोरै, ना लाई वार जरासी कुछ तै जतन बताईये हो राम। कथन बीरमति का कोतवाल से- देसां के बेइमान डिगरजा, क्यों अकल राम नै मारी भई मतना लावै हाथ मेरै, मैं सूं पतिभरता नारी। टेक पतिभरता का धर्म यो सै, देखैं नहीं घर समय पति नै रावण सरीख मरै थे देख कै अपनी कर्म गती नै एक दिन कीचक मरवाये थे द्रौपद नार सति नै ओला सौला मतना बोले कर ले ठीक मति नै बुरे काम का दण्ड मिलै गा जब पड़ेगी मुसीबत भारी। थी गौतम की नार अहिल्या, चन्द्रमा नै छेड़ी पाछे तै पछताया, जब घली पाप की बेड़ी क्यों तेरे उलटे दिन आ रे सैं, तू हट जा खोहा खेड़ी जान बूझ कै मृग नहीं चरै ना, जड़ै काल खड़ा हो होड़ी तेरे कैसे न्यूं ए भुगता करैं, जो करते चोरी जारी। जो जाण बूझकै पाप करै, वो धरैं बुराई सिर पै जो तूं कहै रया वो बनती कोना, मेरै लागै चोट जिगर पै मेरी तेरी बातां का फैसला, हो धर्मराज के घर पै ओले सोले कर्म करण लगै, जब गिरदस आवै सै नर पै ले ज्यांगे जलाद पकड़ कै, तेरी चालै ना होश्यारी। थोड़े दिन मै तनै बेरा पटज्या, खोटे कुकर्म करकै देख लिये चाहे चौकस फूटै, घड़ा पाप का भर कै बेमौत तू मारया जागा, कर बात राम तै डर कै भसमासुर भी मरे थे खुद, हाथ शीश पै धर कै बाली सत तोड़े था तारा का जिनै जीती बाजी हारी। बड़े-बड़े ऋषि महात्मा, ना धरती पै ठहरे नारद नै भी मुक्ति खातर, भजन करे थे गहरे बीर के रूप का जहर रह सै, नर इतने ले सै लहरे सोच समझ कै चलना चाहिये,न्यूं जाट मेहर सिंह कह रे कदे ना कदे तै धर्मराज कै, तेरे होंगे वारन्ट जारी। कथन बीरमति का कोतवाल से हाथ मत लाईये पापी, तेरा खून हो ज्यागा। आड़ै रह ज्यागी ल्हाश पड़ी, सिर न्यून हो ज्यागा।। तनै जाण नहीं सै, ताती सीली बाळ की, कती सुणी ना जाती, तेरी बात चण्डाळ की, टाळ ज्या या घड़ी पापी, सिर तेरै काळ की, के बेरा के सोचैगी, दुनिया सब ढ़ाळ की, इसे पाप करे तै के तू, अफलातून हो ज्यागा।। नीच आदमी नीच करम मै, सदा लिट्या करै, चोर जार बदमाश लुटेरा, जूतां पिट्या करै, सेर नै सवा सेर, बख्त पै फिट्या करै, कुकर्म करण आल्या का, वंश तक मिट्या करै, बांस आवैगी तेरे मै तै, तू उगज्या चून हो ज्यागा।। जिसतै इज्जत खाक हो, मत करै इसा काम, बीर बिराणी नै तकता, नहीं असल का जाम, काम प्यारा कहया करैं, प्यारा हो ना चाम, पगल्यां आळा ढ़ग होरया, छांह देखै ना घाम, रक्षक भक्षक बणगे तै, सुखी कूण हो ज्यागा।। होकै नै सियार रे, तू सिंहणी नै तकै, जबान को लगाम दे, मत मनै भूंडी बकै, हीणी ऊपर जोर जमाकै, तू के शूरमा पकै, पाप के बादल तै, क्यूं चांद नै ढकै, थूकै जहान तनै तेरा, दागी मजबून हो ज्यागा।। बुरे करम तै बंदे नै, अलग हटणा चाहिये, दोनूं लोक सुधारण खात्यर, धरम पै डटणा चाहिये, पाप रूपी आरे नीच्चै, हरगिज ना कटणा चाहिये, आवागमन तै बचण खात्यर, ओम् रटणा चाहिये, सोच समझ कै चाल मेहर सिंह, ना बरून हो ज्यागा।। कथन बीरमति का कोतवाल से जैसा कर्म करया बन्दे नै, डण्ड भरणा हो ज्यागा। बेईमान तेरी बदमाशी का, सब निर्णय हो ज्यागा। मीराबाई भजन करै थी, मन्दिर कै म्हां जा कै, उसके कारण राणा भी, ल्याया था फौज सजा कै, किसे की ना पार बसाई, लेग्या हांगे तै ब्याह कै, मीरा की ना राजी थी, मारै था जहर खवा कै, उड़ै ठाकुर जी प्रकट होगे, उनका न्यू शरणा हो ज्यागा। बीर पराई छेड़णियां का, हुया करै मुंह काला, चन्द्रमा कै स्याही लागी, ईब तक नहीं उजाला, महाभारत मै दुर्योधन गया, हार पाप का पाला, द्रोपद छेड़ी कीचक मारया, विराट भूप का साला, उठा भीम नै पटक दिया, तेरा न्यू धरणा हो ज्यागा। नदी किनारै रहा करै थी, इसी पाट दई रावण नै, एक सारस और एक सारसणी, छांट दई रावण नै, आगै हो कै भाज लई, पर काट दई रावण नै, वा बोली रे मत बिछड़ावै हमनै, डाँट दई रावण नै, ऋषियां के धूणे मै गिरगी, तेरा न्यू गिरणा हो ज्यागा। सप्त ऋषियों ने शराप दे दिया, जब जाण पटी रावण की, जनकपुरी में दबा दई, तकदीर छंटी रावण की, कहै मेहर सिंह साथ गई, वा पंचवटी रावण की, उस सारसणी के परां के बदले, भुजा कटी रावण की, मेघनाथ लछमन नै मारया, तेरा न्यू मरणा हो ज्यागा।। कथन कवि का- कोतवाल कै एक गड़ी ना, बीरमति नै घणा समझाया। इज्जत जाती दिखी उसनै, तलवार तै मार गिराया।। बीरमति नै चादर मै लपेट, पापी गली मै डार दिया, तुरत शहर मै रूक्का पड़ग्या, कोतवाल मार दिया, बाप जा था शोर सुण्या, कोतवाल धर धार दिया, ल्हाश देख बेट्टे की बोल्या, किसनै यो जुल्म गुजार दिया, तलवार लिये दिखी बीरमति, जब ऊप्पर नै लखाया।। पिता शेख झट वापस जाकै, संग सात सिपाही लाया, उन्है आकै चारों ओड़ तै, मकान का घेरा लाया, जब गेट खुल्या ना तै छात पाड़ कै, जैसे अंदर धुसना चाहया, रणचंड़ी बण बीरमति नै, सातों को परलोक पहुँचाया, शेख साहब फेर रोता रोता, राजा धोरै ध्याया।। कोये छत्राणी हत्यारी आरही, शहर मै जुल्म गुजार दिये, मेरा बेट्टा का काट डाल्या, सात सिपाही मार दिये, रणचंड़ी का रूप बणा री, हम सब बणा लाचार दिये, चालकै अपणे हाथां तै उसनै, मौत के घाट उतार दिये, जगदेव कंवर नै लेकै राजा, खुद मौके पै आया।। सारे शहर मै शोर माचग्या, जुड़गी प्रजा सारी, कहै कहै नै सब हार लिये, उन्हैं फैंकी ना कटारी, आखर राजा बूझैण लागे, या करी के कारगुजारी, झाँकी मै कै बीरमति, बीती हकीकत बतारी, जाट मेहर सिंह के आगै, उन्हैं सारा दुखड़ा गाया।। कथन बीरमति का- यो दुःख मालिक नै गेरया,जगदेव पति सै मेरा, इस थारे बजार मै, एक बै उसने बुलवा दियो। सिर पै चढ़ी घड़ी जुर्म की, आज फूटगी बात मर्म की, मैं घणी कर्म की माड़ी, ना खोलूं कति किवाड़ी, बिन भरतार मैं, पहल्या म्हारी चार आंख मिलवा दियो। अधर्म कर रहा था बेईमान, बिगाड़ै था पतिभरता की शान, मैं खो दयूं ज्यान टकासी, ना लाऊं देर जरा सी ले रही तलवार मैं, इसनै म्यान मै घलवा दियो। शेख नै बूझी तक ना बात, साथ सिपाही ले आया सात, वैं छात पाड़ आवैं थे, मनैं मारणा चाहवैं थे, नहीं कसूरवार मैं, चाहे किसे तै बुझवा दियो। मैं कह रही सूं जोड़ कै हाथ, थारी आड़ै बैठी सै पंचायत, एक बात कहूंगी न्याय की, मेरै ना देही म्हं बाकी हो रही लाचार मैं, सत नरजे पै तुलवा दियो। म्हारे छूट गये रंग ठाठ, घर कुणबा हुया बारा बाट, मेहरसिंह जाट कड़ै हस्ती सै, मेरी टूटी सी किस्ती सै, या डौलै मझधार मै, चलज्या तो चलवा दियो। कथन जगदेव का बीरमति से- शीश काट काट कै ढेर ला दिया, कितना करया उजाड़ प्यारी। चौगरदे कै पुलिस खड़ी सै, खोल दे किवाड़ प्यारी।। तनै मेरै खाक़ गेर दी सिर मै, मैं मर ल्यूंगा इसै फिकर मै, कितै जगह नहीं अंबर, धरती लेगी बिवाड़ प्यारी। अधम बिचालै लटकू सूं, मारुं खड़ा चिंघाड़ प्यारी।। पापण तृष्णा चितनै हड़ै, मैं भी खो दूंगा प्राण आड़ै, तेरे दया धर्म का ख्याल कड़ै, चालै खड़ा कवाहड़ प्यारी। शहर तै तनै शहर बना दिया बियाबान उजाड़ प्यारी। डुंडी पिटगी जग सारे में मोह नहीं मित्र प्यारे में तेरे आले आरे में, मैं भी दंगा नाड़ प्यारी किस गफलत में सोवै सै टुक तै पलक उघाड़ प्यारी कदे ना खोट दिल में जाणुं था सदा दूध और नीर छाणु था पहलम तैं तनै जाणुं था मेरे जी का होग्या झाड़ प्यारी मेहर सिंह की बात मान ले सारी मिटज्या राड़ प्यारी

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