किस्सा हीर-रांझा : फौजी मेहर सिंह (हरियाणवी कविता)
Kissa Heer-Ranjha : Fauji Mehar Singh (Haryanvi Poetry)
बहर-ऐ-तबील मिलकै दगा करी मेरे संग मैं तखत हजारे से मुझको बुलाना नहीं अगर बुला भी लिया दिल मिला भी लिया तुझे अटखेड़ां में जाना नहीं था।टेक सिर जाता कटा पाछै भेद पटा तेरी यारी के अन्दर ये बन्दा लुटा बता किस के कहने से दिल का प्रेम हटा तनै लगे दिल को दूर हटाना नहीं था। पहलें कहूँ था तुझे तेरे बालों में मोती सजे शान-ओ-शोकत में भर कर लेती मजे ये खबर पहले नहीं थी मुझे, कि इतनी परेशानी होगी तुझे तनै ऐसा धोखे का तीर चलाना नहीं था। मेरा चलता ना जोरा, तेरा रंग रूप हुश्न भी गोरा कंटीली आंख मैं स्याही का डोरा थी तूं चन्दन का पोरा तनै चिपटे विषियर को दूर भगाना नहीं था। भेजा कै द्यूं शरन, आया करकै प्रन तेरी यारी मैं मुझ बन्दे का मरन कहै मेहर सिंह छन्द के मिले बिना कुछ गाना नहीं था। * * * * * के बुझैगा नाथ जी मेरी माया लुटगी।टेक पाणी हिलै था डोल मैं थी कोयल केसी बोल मैं थी पन्द्रह सेर की तोल मैं आज पोने दो सेर घटगी। उठी घटा घनघोर थी सामण केसी लोर थी रेशम केसी डोर थी, आज हाथां तै छुटगी। खाती की लाकड़ी स्याली ओड़ नयन मारे की ना जा खाली ओड़ जंगशाला तै चाली ओड़ बादली जा अटखेड़ा डटगी। मेहर सिंह का छन्द जड़या हुया किसै कारीगर का घड़या हुया गंडासा रेत में पड्या हुया न्यूं सानी की कटगी।