किस्सा चीर पर्व (महाभारत) : पंडित लखमीचंद (हरियाणवी कविता)

Kissa Cheer Parv : Pandit Lakhmi Chand (Haryanvi Poetry)


दुर्योधन,शकुनी और दुशाशन मिल कर पांडवों को जुए में हराने की योजना बनाते हैं-

आपस के बैर विवाद से कोये नफा किसी को है ना ।। टेक। पुत्र पिता का बैर था भाई, राम नाम से हुई थी लड़ाई, नरसिंह बण कै ज्यान खपाई, हिरण्याकश्यप घटे प्रहलाद से, पड़ा नाम हरि का लेना ।।1। सिन्थ उपसिन्थ मां जाये बीर थे, त्रिया कारण हुये आखिर थे, कुरू वंश में शुभ कर्म सीर थे , जिनका मेल कई बुनियाद से, पड़ा रवि शशि ज्यूं गहना ।।2। चकुवे बैन हुए बलकारी, जिसनै जा सताये ब्रह्माचारी, अन्न जल करूं ना चाहे ज्यान जा मारी, ना हटे चुणकट ऋषि संवाद से करया कुशा का शस्त्र पैना ।।3। लखमीचन्द शुभ कर्म रेख था, यो विधना का लिख्या लेख था, कौरव पांडवों का भी वंश एक था, हटे बड़ी मर्याद से, पड़या अन्त समय दुख सहना ।।4। जुआ खेलने की योजना बनाकर युधिष्ठर को फंसा लिया वहीं पर बैठे शुकनि जो दुर्योधन का मामा था धृतराष्ट्र से कहने लगा कि मैं एक ऐसा यत्न बतायूं कि लड़ाई भी नहीं करनी पड़े बुराई भी ना मिले । अब युधिष्ठर को जूए के लिए तैयार किया जाता है और पाशे डालता है तो तीन काणें पड़ते है, और उधर से जब शुकनी पासें फेंकता है तो पौ बारहा पड़ते है। अब इस तरह धीरे धीरे युधिष्टर की हार होने लगी । चारों तरफ शोर मच गया, और क्या हुआ- खेलें थे कपटी शुकनी चौपड़ दरबारां में बिछगी ।।टेक। धर्मपुत्र नै धोखा खाया, करया शुकनि नै मन का चाहया, इसा जुए का खेल रचाया, जिसकी धूम जगत में मचगी ।।1। हुई धर्मपुत्र की हार, नकुल सहदेव हुए लाचार, भीम बली रोवै था सिर मार, जब कती नाश होण की जचगी ।।2। कट्ठे हो रहे थे अन्याई, उननै मिल कै दगा कमाई, थे चाचा ताऊआं के भाई, पर आपस मैं करड़ी खिंचगी ।।3। लखमीचन्द दे जोर अकल पै, छुरा दिया टेक पांडवां के गल पै, पापी दुर्योधन के दिल पै स्याही पाप रूप की रचगी ।।4। कौरवों ने दूत को भेजा- पृतकामी दूत बुलाया जड़ में, दासी होज्यागी द्रोपदी नै बेरा करदे ।।टेक। चंगी सभा लगी सै डटकै, जीत ली वा जूए मैं हरि रट कै, आगे हटकै प्राण मेरे धड़ मैं, भगवान कारज सिद्ध मेरा करदे ।।1। तेरे जूए मैं हारगे धणी, थारी बिगड़ी कैरों की बणी, मणि तनै मिलना पड़ैगा कैरवों की लड़ में, कदे चमकै ना घोर अन्धेरा करदे ।।2। थारे कर्मां की बाजी ढली, रहैगी दिन रात हां जी मैं खली, फली तू लाग रही, जिस केले की घड़ मैं, इब तू उस तै अलग बसेरा करदे ।।3। लखमीचन्द गुरु का दास, करै ईश्वर का भजन तलाश, होगा नाश भाईयां की अड़ में, होणी चाहे जिसनै तीन तेरहां करदे ।।4। अब पृतकामी दूत द्रोपदी के पास जाकर क्या कहता है- माता कोरवों नै छुटा दिया तेरा पटराणी का नाम दासियां में मिलकै राणी करणा होगा काम ।।टेक। तेरे पतियों नै माल लुटा दिया मिलकै, जुआ खूब घुटा दिया, कैरों नैं छुड़ा दिया, तेरा सब ऐशो आराम ।।1। मनै रंज गम का प्याला पिया, आज मैं जीवण में भी के जिया, जब दुर्योधन नै हुक्म दिया सभा भरी थी तमाम ।।2। जैसा कोए हुक्म मेरे पै टेकै, मनै तै बात कहणी थी एकै, मुझ दास के लेखै तू राणी गंगा केसा धाम ।।3। छोड़ दे पटराणी के बिस्तर नै, चाल देखै नै कौरवों के घर नैं, लखमीचन्द रटा कर हर नै, सुबह और शाम ।।4। दुर्योधन का हुक्म पाते ही पृतकामी दूत से नहीं रूका गया। वह जानता था कि यह अन्याय हो रहा है। द्रोपदी कभी दासी बनने के लायक नहीं है। यह तो घोर अनर्थ हो रहा है। वह द्रोपदी के पास जाना नहीं चाहता था परन्तु मजबूर था उसे जाना पड़ा। वह धीरे-धीरे सोच विचार करता हुआ द्रोपदी के महल के पास पहुंच जाता है- चलकै पृतकामी दूत महाराणी के पास गया ।।टेक। मां तनै किसे मौके पै जणया, इसे पापी का मैं दास बणया, गुस्सा घणा बदन कमकूत, सोचता न्यू रणवास गया ।।1। काम बुरे हों सैं अन्दाजा के, खेल बुरे हों जूए बाजां के, बिगड़े महाराजा के सूत, अनर्थ आम हो खास गया ।।2। बुरे हुए बाजां के पेशे, सुण-सुण आवैं घणे अन्देशे, जड़ै दुर्योधन केसे पूत, उन राज्यां का हो नाश गया ।।3। लखमीचन्द चित भक्ति में भेणा पड़ैगा, दण्ड ठाड़े का खेणा पड़ैगा, बात का देणा पड़ैगा सबूत, करता न्यूं खोज तलाश गया ।।4। जिस समय पृतकामी दूत द्रोपदी के पास पहुंचा तो वह अपनी सेज पर आराम कर रही थी । कारण पूछने पर मजबूर होकर पृतकामी महारानी जी को क्या सन्देशा सुनाता है- कौरवों का सख्त हुक्म सै तू दासी बणकै करै न गुजारा री ।।टेक। होगी धर्म पुत्र की हार, नकुल सहदेव हुए लाचार, भीम बली रोवै सै सिर मार, करै के अर्जुन बीर बिचारा री ।।1। काम इब रहै नहीं सुत्र के, नलवे मिलैंगे मल मूत्र के, काणे तीन धर्मपुत्र के, दुर्योधन के पौ बारा री ।।2। बता कित गाढा मिलै ऊन मैं , दुख दर्दां नै गेरा भून मैं, फर्क पड़रया आपस के खून मैं, कित रहरा भाईचारा री ।।3। लखमीचन्द कर भजन जाप का, संकट कटज्या तीन ताप का, घड़ा डूबैगा भरै सै पाप का, जाणै कद लेगा धर्म उभारा री ।।4। पृतकामी ने मीठी बाणी से अपनी अरदास पेश की तब द्रोपदी कहने लगी कि मैं तुम्हारे ऊपर गुस्सा नहीं कर रही। मै तो उन पर गुस्सा कर रही हूं जिनसे बिना सोचे समझे तुम्हारे को मेरे पास भेज दिया अब द्रोपदी पृतगामी दूत को कहने लगी कि तुम जाकर कौरवों की सभा में ऐसे कहना- सतपुरुषों कै न्याय होया करैं सैं दूध और पाणी छणकै, टहल करण का हुक्म दिया किसनै रहूं किसकी दासी बणकै ।।टेक। बग्गी टमटम अर्थ पालकी ऊंट और हाथी घोड़ा, पलटन फौज रिसाले म्हारै ना क्याहें चीज का तोड़ा, पांच पति बलवान मेरे ना कोए हुक्म का मोड़ा, पति धर्मपुत्र न्याय करया करैं सै रह हाथ राज का कोड़ा, सब प्रजा आधीन पति के जैसे सर्प भरोसै मण कै ।।1। कोये भी सभा में ना बोल्या के धारण मौन हुया रे, साच बता यो हुक्म देणियां माणस जौण हुया रे, ले कै हुक्म उरे नै चाल्या तेरा खोटा सौण हुया रे, मै दास भाव मंजूर करूं इसा कारण कौण हुया रे, गन्धारी नै गाम घेर लिया मूर्ख बेटे जणकै ।।2। उस दुर्योधन का नाम सुणा मैं करती ख्याल भतेरे, कौरव सारे द्रोपदी सति के जाणै हाल भतेरे, सिहंणी गैल मसकरी करकै मरगे श्याल भतेरे, म्हारै मोहर असर्फी कणी मणी और हीरे लाल भतेरे, धन माया के भरे खजाने खड़े सन्तरी तण कै ।।3। उस दुर्योधन नै किस मुददे पै तुझको हुक्म दिया है, मैं दास भाव मंजूर करूं इसा कर्त्तव्य कौण किया है, लखमीचन्द गुरु ज्ञान का प्याला करकै प्रेम पिया है, दुनियां मै जीणा दिन दस का न्यू सदा कौण जिया है, उस दुर्योधन नै जन्म लिया है कति नाश होण की ठण कै ।।4। पृतकामी दूत की बात सुनकर द्रोपदी ने कहा कि मेरे नीचे पता नहीं कितने दास दासियां काम करते हैं मैं रानी हूं। वैसा सभा में कह देना। मैं तो आप दोनों का सेवक हूं जैसी आज्ञा आप की होगी वैसी वहां जाकर बता दूंगा। रानी कहती है कि जो जवाब सभा में मिले मुझे बताकर जाना- के कुछ लाया रे जवाब मनैं, जाईये रे बता कै ।। टेक। मनै सवाल करया था सच्चा, समझा नहीं अकल का कच्चा, अच्छा कहा के खराब, अरे मनैं जाईये बता कै ।।1। लगया हुया महाराजों का दरबार, जूआ खेले बिना विचार किसनै लई तार बड़यां की आब, मनैं जाईये बता कै ।।2। हुक्म हासिल बिन फिरा देण की, त्रिया जूए के दा पै धरा देण की, किसकी हरा देण की रे ताब रे, मनैं जाईये बता कै ।।3। लखमीचन्द भेद सब खुलज्या,, जै सही पता बात का मिलज्या, दिल खिलज्या फूल गुलाब रे, मनैं जाईये रे बता कै ।।4। पृतकामी दूत क्या कहता है- शेरां गेल्यां शेर लड़ा करैं, छत्री गेल्या छत्री लड़ते, म्हारा धर्म सै टहल करण का, बणकै दास चरण में पड़ते ।।टेक । सुनार सोना शुद्ध छांटण खातिर, जोहरी कीमत पै डाटण खातिर, दुश्मन का सिर काटण खातिर, मिस्त्री सेल लोहे की घड़ते, हम दोनूं का घर एक समझते, पार बोल के तीर लिकड़ते ।।1। नौकर हो सब नै सुख देवा, अपणी करी चाकरी लेवा, ऊंच वर्ण की करकै सेवा, नीच तै ऊंच वर्ण में चढते, वैं सही धर्म मर्याद समझते, जो नहीं बड़ां के साहमी अड़ते ।।2। हम ना बदलया करैं सै भेष से, मेरी छाती में क्यूं करै सै छेक से, हमनै दोनूं थोक एकसे, मेरे सिर चोट भूल की जड़ते, मैं जुणसे की तरफ लखाऊँ नजर के साथ अंगारे झड़ते ।।3। मैं मरज्यांगा जै कोए से नै घूर दिया, मेरा फिकर नैं गात चूर दिया, जो विधना नै जाल पूर दिया, वे तागे ना फेर उधड़ते, जो लखमीचन्द की नहीं मानते, वें बणकें पशु जमी नै छड़ते ।।4। आगे पृतकामी दूत क्या कहता है- जीत लिए जूए मैं पांडों देखै सारी सभा भरी सै, दासी बण कै टहल करया कर दुर्योधन नै याद करी सै ।।टेक। थारे कर्मां के पासे ढलगे, पापी लोग पाप तै छलगे , धर्मी लोग पाप मै गलगे, उन बेईमानां की बेल हरी सै ।।1। दुर्योधन कह पर्ण पै मरलूंगा, इसा ना सूं घूंट सबर की भर लूंगा, सब क्याहें नै बस मैं कर लूगां, इब लुग सुन्नी डार चरी सै ।।2। मनैं सोच लिया जो कहणा होगा, आगै अप-अपणा लहणा होगा, दासी बणकै तनैं रहणा होगा, सौ बातां की एक बात खरी सै ।।3। लखमीचन्द बुरे नै सजा दे, बुरा जननी का दूध लजा दे, जो कहे हुक्म की टहल बजादे, वो मानस बे खोट बरी सै । महारानी द्रोपदी की बात सुनकर पृतगामी वापिस हो लिया और दरबार में हाजिर हो गया। दुर्योधन ने देखा कि पतृगामी आ गया है वह कहने लगा कि क्या बात है द्रोपदी क्यों नहीं आई? तब पतृगामी भरी सभा में क्या कहता है- सुनकै दासी के नाम को दो चार बार धमकाया ।। टेक । मनैं कहया दासी बणज्या री, वा क्रोध भरी एक दम ललकारी, दासी कौण तकै व्याभिचारी, कर गुस्सा कहा हराम को, ये सख्त वचन फरमाया ।।1। मनै सुणी द्रोपदी की बाणी, कहदी सब जूए की कहाणी, राज जिता और होगी हाणी, जितवा कै राज तमाम को, फेर तुझको दाव पै लाया ।।2। जै खेलैं थे साजन मेरे, खेलण के सामान भतेरे, ये वचन द्रोपदी नै टेरे, तज पाजी और गुलाम को, क्यों मुझ पै खेल रचाया ।।3। लखमीचन्द बतादे कायदे, जो पति अपने आप को जितादे, तो मुझको कौण दाव पै लादे, रट कै सच्चे घनश्याम को, यही जवाब फरमाया ।।4। पृतकामी की बात सुनकर दुर्योधन को गुस्सा आ गया, उसने अपने छोटे भाई दुशासन को कहा कि जाओ केस पकड़कर यहां तक खींच कर लाओ- आण कै करलेगी आप सवाल, इबकै दुशासन तू जा ।।टेक । बखत पै कौण गैर कौण घर के, हम के मारे मरैं किसे के डर के, खींचला सिर के पकड़कै बाल, ना तै मेरे तेरे भी दो राह ।।1। तनाजे बुरे हों सै आपस के, इब मैं दोष गिणाऊं किस-किस के, उसके हारण जीतण का हाल, उत्तर देगी सकल सभा ।।2। इस झगड़े नै पहर बीत लिया, घर बैठी नै जोड़ गीत लिया, न्यूं कहैं जीत लिया छल करकै धन माल, रही घर बैठी तोहमंद ला ।।3। अरज सुणै कोए लखमीचन्द की, आंख खुलज्यां चाहे जिसे मतिमन्द की, छन्द की चाहिए ठीक मिशाल,ना तै डूबज्यांगी अधम बिचालै नाव ।।4। शकुनी अब दुशासन की क्या बड़ाई करता है- कह शुकनी, दुशाषन कैसा, दूसरा और जननी नै जाया ना ।।टेक। बड़ा रजपूत शूरमा नामी, तेरे मै ना बल और दिल की खामी, ऐकले दुशाशन की स्याहमी, सिर पांडवों नै ठाया ना ।।1। न्यूं कहकै दासी री दासी री दासी, ताली पीट करण लगया हांसी दई एक शुकनी नै शाबाशी और पंचा नै कती सराहया ना ।।2। बिन संगवाये फसल नहीं सै, शेर सै तू स्याल की नसल नहीं सै, मैं तै न्यूं जाणूं था असल नहीं सै, जै इबकै पकड़ द्रोपदी नै लाया ना ।।3। लखमीचन्द प्रण के सिवा, और नहीं सूझै मरण के सिवा, शुकनी दुर्योधन कर्ण के सिवा, सभा के मन भाया ना ।।4। दुशाशन अब अपने बारे में क्या कहता है- मेरे मैं ये गुण नीच पणे का, टुकड़ा बेशर्मी का खाईये सै ।।टेक। कर दिये जुए नै कंगाल, सारा जीत लिया धन माल, एक बै सभा की स्याहमी चाल, थारी जड़ उखड़ी ओड़ जमाईए सै ।।1 बड़ा रजपूत शूरमा नामी, मेरे मैं ना बल और दिल की खामी, एक बै तू चल भाई की स्याहमी, आज तू रूसी ओड़ मनाईए सै ।।2। इब रोए तै नहीं डरूंगा, दूणां-2 जोश भरूंगा, तनैं तरसाकै दुखी करूंगा, तू ठाड़या की बहू बताईए सैं ।।3। लखमीचन्द छन्द धरया करैं सैं,न्यू के रो कै मरया करैं सैं , दासी तै धोती करया करैं सैं,तनैं कित तील रेशमी चाहिए सै ।।4। दुर्योधन दुशाशन को समझाता है कि द्रोपदी यदि जीत के बारे में तर्क-वितर्क करे तो उसको कहना कि इसका जवाब उसके पांचों पति देंगे- उसके हार जीत की बात, उसके पांचों पति बतावैंगे ।। टेक। दासी बण पां धोया करैगी, हुक्म तै जाग्या सोया करैगी, सुख नैं रोया करैगी दिन रात, हम पुचकारै नहीं मनावैंगे ।।1। कै तै म्हारे दिये दण्ड नै खेगी, जो कुछ कहणा सो ओड़ये कहगी, कै तै या उत्तर देगी पंचायत, नहीं तै हम दासी जरूर बणावैंगे ।।2। जा तूं उनै आड़ए बुलाल्या जाकै, जो कहणा कहलेगी आकै, जुणसे ल्याये थे ब्याह कै साथ, देखंगे आज कौण कौण आंख चुरावैंगे ।।3। लखमीचन्द लगी चोट मर्म कै, पांचों बैठे सै भरे शर्म कै, ताली कुन्जी थी धर्म के हाथ, डूब ज्यांगे जै छोटे जिकर चलावैंगे ।।4। युधिष्ठर ने पृतमामी को अपने पास बुलाया और कहने लगा कि तुम चुपचाप द्रोपदी के पास चले जाओ और उसको कह देना कि अबकी बार कोई बुलाने आए तो उसके साथ चली आना। युधिष्ठर पृतगामी दूत को क्या समझाता हैं- ला कै ठीक तरहां अन्दाजा, कह दिए द्रोपदी नै सरमाज्या , जै इब कै कोए बुलावण आज्या, तै टाल करै ना आवण की ।।टेक। कैरों लोग हटैं ना डर कै, मानैंगे जोरा जस्ती करकै, धर कै बात ध्यान में कहदी, नीति और पुराण में कहैदी, बुला कै दूत कान में कहदी, सहज मैं बात सुणावण की ।।1। दोष लावै सै जति सति कै, धोरै बैठे कर्म गति कै, कह दिए तेरे पति कै हाथ नहीं सै, चैन पडै़ दिन रात नहीं सै, और के आगै बात नहीं सै, जिकर चलावण की ।।2। नाश हुया करै जदा जदी तै, ये करते ना सलूक कदी तै, बदी तै कैरों लोग फिरै ना, अधर्म करते ऊत डरैं ना, घणे निर्दयी सै दया करैं नां, तेरे रो कै रूधन मचावण की ।।3। गुरु मानसिंह करैं आनन्द, काटैं, फांसी यम के फन्द, लखमीचन्द मैं ज्ञान नहीं सै, गावण का अभिमान नहीं सै, छन्द की गति आसान नहीं सै, तुरत बणा कै गावण की ।।4। द्रोपदी क्या कहती है- यो तै मेरा देवर दुशासन सै, इसका मनैं मतलब जाण लिया ।।टेक । इन्द्री जीती ना पंचकोष, इन्हैं ना घटी बधी का होंश, अपणाऐ दोष सै जाण लिया, मन से क्रिया क्रम पिछाण लिया ।।1। मनैं दुख देगा परम परे का, यूं गाहक सै बदन मेरे का, आज मेरे दर्शन करे का विघन सै, न्यूं गज का घूंघट ताण लिया ।।2। पहलम एक कुटम्ब था म्हारा, इब समझण लागे न्यारा न्यारा, सारा इनका मूर्खपन सै, मनैं के छोडै सै ठाण लिया ।।3। दंड भोगूं सूं कार करी का, खून मेरा पीवैंगें मरी-मरी का, लखमीचन्द हरी का जन सै, न्यू महाभारत लेख बखाण लिया ।।4। दुर्योधन का हुकम मिलते ही दुशाशन ने हाथ में तेगा उठाया और द्रोपदी के महल की तरफ चल दिया। शकनि की बड़ाई करता हुआ क्या कहता है । युधिष्ठर की आज्ञा पाकर पुतगामी एक दम चल दिया परन्तु दुशासन उससे पहले ही पहुंच चुका था। उसने जाते ही द्रौपदी के केश पकड़ लिये और खींचता-खींचता महल से बाहर ले आया- षट दुशासन नै आण कै, झट पकड़े केश सुनैहले ।। टेक। ईश्वर की गति कोये जाणै नहीं इन्सान, वेद मंत्र जल से सींचे केश खींच रहा अज्ञान, वेद मंत्रों से यज्ञ में अग्नि शुद्ध किनी जान, ऋषियों ने हवन किया जब पुतले मैं आए प्राण, पांडवों के पराक्रम को भूल्या दुशासन बलदाई, मीठे-2 बचनों से द्रोपदी न्यू बतलाई, केश मेरे छोड़ दुष्ट काया मेरी दुख पाई, बख्श मुझे गऊ गरीब बिचारी जाण कै, मेरे रज से कपड़े मैले ।।1। बली करै जोर घोर बादल सा गरज रहा, हारी नहीं श्रद्धा गोरी का लरज रहा, दही सी बिलोई कोई योद्धा ना बरज रहा, हरे कृष्ण हरे विष्णु हरी हर पुकार रही, तुम बिन कोण मेरा चित में विचार रही, समय पड़ी रक्षा करो नैनां आंसू डार रही, भक्तों की विपत पिछाण कै गुण याद करो प्रभु पहले ।।2। खींचने और झुकने से मानती कलेश भारी, नीच दुष्ट मन्द बुद्धि मत ले चालै अहंकारी, एक वस्त्र पहने हुए रजस्वला हूं मैं नारी, दासियों में रहणा सहणा दासियों में खाणा पीणां, दासी बण कै टहल करो भूप नै हुक्म दीन्हां, रोये तै बणै ना कुछ भाग तै लिखा लिया हीणां, चल सभा के बीच मैदान कै, कैरों के ताने सहले ।।3। दुशासन बोल्या मैं तनैं भेद बताए रहा, नंगी रहो उघाड़ी चाहे एक वस्त्र भी ना ऐ रहा, जूए मैं जीती है दासी भाव को जिताय रहा, हो कै मति मन्द बन्ध पांडवों के तोड़ डाले, धर्म के अंगूर दूर जान कै निचोड़ डाले, असुर केसा भेष केश पकड़ कै मरोड़ डाले, क्या लेगी परदा ताण कै चल दासी बण कै रहले ।।4। द्रोपदी सति की काया तंग होकर डोल रही, कहै नहीं सकै विष मन ही मन में घोल रही, हाथ जोड़ विनती करै, धीरे-2 बोल रही, इतना समय बीतने पै फेर और रंग हुया, द्रोपदी सति का दिल जोर जबर तंग हुया, सति को सताया जैसे महाघोर जंग हुया, कहैं लखमीचन्द स्वरूप बखाण कै, शुभ चरण गुरु के गहले ।।5। द्रोपदी ने देखा कि यहां पर तेरा कोई भी हिमाती नहीं है तो वह अपनी सास को याद करती है- मेरी सासू सभा मै जां सू री, तेरा दुशासन लेज्या ।। टेक। जुल्म किसा हस्तनापुर खेडै़ सै, यो थारे काल खड़क भेड़ै सै, यो तेरा दुशाशन छेडै सै, मेरी कुछ ना पार बसा ।।1। खर तै के बच्चा बणै सै गऊ का अमृत बणता नहीं लहू का, तूं हे कुछ ले-ले तरस बहू का, मैं रही रो-रो रूधन मचा ।।2। उडैं महफिल के लोग हंसेंगें, फेर आपस मै बांस खसैंगे, हस्तनापुर में काग बसैंगे, लोभ नै दीन्हां नाश करा इ।।3। आज मेरे हुई कर्म की हाणी, तुमनै कोन्यां बात पिछाणी, सतगुरु मानसिंह की बाणी, सुण रहे लखमीचन्द चित ला ।।4। द्रोपदी दुशासन को क्या कहती है- अरे थारी मरदां की कचहैरी आगै, द्रोपदी क्यूकर बोलै चालैगी ।।टेक । होणी सकल सभा में छागी, मनै सब की बेअकली पागी, सभा में जब बहू बुलाई जागी, तै धरती पायां तले की हालैगी ।।1। आपस का विश्वास होण मैं, त्रिया सभा के पास होण मैं, कसर के रहज्यागी नाश होण मैं, द्रोपदी जब सांस सबर के घालैगी ।।2। तुम क्यों डूबो सो पढ गुण कै, पाछै पछताओगे सिर धुण कै, थारे कुकर्म करणे की सुण कै, अपणे प्राण त्यागने सालैगी ।।3। लखमीचन्द रंग आप हुया तै, पार जा सै मन साफ हुया तै, सभा तै जै ना इन्साफ हुया तै, अर्जी श्री कृष्ण कै डालैगी ।।4। द्रोपदी दुशाशन को आगे क्या कहती है- चंडाली की तरह बिगड़ रहा चेहरा, मत हाथ लगावै यो धर्म नहीं सै तेरा ।।टेक। छत्री न्यायकारी पद मलीन होज्यांगा, इन्सानों के कहने का यकीन होज्या‍गा, मैं पहले कह चुकी धर्म क्षीण होज्या‍गा, मेरे दर्शन करे से बुरा दीन होज्या,गा, पाणी को समझ दीवार गार को फेरा ।।1। गए डूब सभा के लोग नहीं सरमाते, मुझ चंडाली को पास बुलाना चाहते, जो रजोशला त्रिया के दर्शन पाते, शुभ क्रिया क्रम और धर्म नष्ट हो जाते, जो डाण के दर्शन से दोष रूप वही मेरा ।।2। पृतकामी दूत क्या लौट गया नहीं होगा मेरे फिकरे को बिना कहे रहा नहीं होगा, क्या सुनने वाला बिना दया नहीं होगा, मेरे दादसरे नैं जा लिया के कहा नहीं होगा, वो असल नहीं सै, जिसकी तू आज्ञा लेरया ।।3। किसका धन किसनै जीता और कौण हारै, मनैं कौंण समझकै तू मेरी आबरो तारै, कहै लखमीचन्द कुछ शर्म नहीं सै थारै, थारी हठ धर्मी का डंका बज लिया सारै, इस कुरूं वंश का क्यूं बसा उजाडै डेरा ।।4। अब द्रोपदी रोती है चिल्लाती है और क्या कहती है- उड़ै बैठे गुरु समान सभा में सारे, मनै मत ले चालै अज्ञान दुष्ट हत्यारे ।।टेक। भला उनके स्याहमी कैसे जा सकती हूं, सब धर्म कर्म के काज लाज रखती हूं, आवै शर्म घणी मैं ऊंच नीच तकती हूं, मनैं घणी सताओ मैं न्यूयें बुरी बकती हूं, मेरे पांच पति बलवान दोष तै न्यारे ।।1। आज दादसरा भीष्म भी आंख चुराग्या, कर्ण भी मेरे मुंह उघड़े की तरफ निघांग्या, मेरा तायसरा भी धर्म हार धन खाग्या, मैं जाण गई थारा बख्त आखरी आग्या, ये कैरों सब बेईमान बड़े लजमारे ।।2। इस हस्तनापुर में न्याय करणिये मरगे, फेर सति के नेत्र पतियां की ढब फिरगे, चुप होगे ना बोले कती रोष मैं भरगे, दुख देख नार का क्रोध अग्न मैं जरगे, इतना दुख ना मान्या, जब सब सामान जुए में हारे ।।3। जै इन्द्र भी तेरी सहाय करण नै आज्या, तू बचै नहीं जो क्रोध भीम कै छाज्याआ, इस वक्त धर्मसुत धर्म का करै मुलाहजा, जिसकी सूक्ष्मु बुद्धि वे ऋषि मुनि पद पाजया, रहे छल की खोल दुकान शुकन गन्धेरे ।।4। द्रोपदी जा कै खड़ी सभा में करदी, छाई उदासी और चेहरे पै जरदी, त्रिया संग झगड़ैं दिखा रहे नामर्दी, कहै लखमीचन्द क्यूं नींव नाश की धरदी, मेरी दया लियो कृष्ण भगवान ज्यान तै भी प्यारे ।।4। अब अर्जुन भीम से क्या कहता है- कर्ण की बातां पै भाई धर कै देख्या ध्यान, झूठी कदे पड़ज्या बड़े भाई की जबान ।।टेक। कर्ण नै बोल निशाने मारे, जिगर म्हारे इन बोलां तै स्यारे, सब अस्त्र शस्त्र तारे जितना लड़ाई का समान ।।1। आज हम सबर शान्ति धारैं, कदे न कदे फिर बाजी नैं मारैं, पर प्रण नैं नहीं हारैं, चाहे छूटज्या जिहान ।।2। इनकै सै भूख राज की गहरी, बख्तक पै ये डंक मारज्या। जहरी, अरै लूटण खातिर बैठी बैरी ठगा की दुकान ।।3। लखमीचन्द जल दूध छणा दे, न्यारे-2 हर्फ गिणादे, जाणूं के तै के बणादे, तेरी माया हे भगवान ।।4। दुर्योधन अब व्यंग कसकर क्या कहता है- वो काले मुंह आला दिया किन्घेय नै भेज, जो बणरया था तेरा नकली भाई ।।टेक । के फायदा नन्हा काते मैं, फर्क सै मूल फूल पाते मैं, वो नाते मैं साला, झूठा करै हेज, लिए सुण द्रोपद की जाई ।।1। तेरे नां की कोन्या दया, आज मौके पै कडै गया, रहा चोरी का ढाला, ला कुर्सी मेज, मक्ख न दही तार कै खाई ।।2। जिसका था तनै घणा सहारा, वो भी करग्याक आज किनारा, म्हारा देख्या भाल्या , नाचण मैं तेज, सांगी बण घालै स्या हीं ।।3। लखमीचन्द भजन कर रब का, फेर ना काम रहै डर दबका, जो सबका रूखाला, परमपद सेज, एकाधे नै मुश्किल पाई ।।4। अब दुशासन द्रोपदी को क्या कहता है- कहण लग्या राणी तै खोटी, दुशासन बलवान, बुराई करकै ।।टेक। पांच पति बैठे तेरे चुपके तमाम बणे, बोल नहीं सकते क्योंकि कैरों के गुलाम बणे, जूए के मैं जीत लिए म्हारे सिद्ध काम बणे, पांच पति बैठे तेरे नाड़ तक हिलाते नहीं, अस्त्र शस्त्र गदाओं से खेलते खिलाते नहीं, दुशाशन की स्याहमी देख नैन तक मिलाते नहीं, मेरी चोट नहीं जा ओटी, लिया सतगुरु पै वरदान बड़ाई करकै ।।1। कौरवां की स्याहमी बोलै पांडवां की छाती नहीं, रो रही अनाथ बण कै कोए भी हिमाती नहीं, दास की लुगाई कदे पटराणी कहलाती नहीं, हाथ पकड़ के खींचण लाग्या पीटी और तणाई हमनै, नाच के दिखाओ रंडी बेशमां बणाई हमनै, जूए के मैं जीत लई दासी कर जणाई हमनैं, पीटी वा खूब पकड़ कै चोटी, करदी जात बिरान, हंघाई करकै ।।2। धर्मपुत्र जीत लिया जूए का खिलारी करकै, अर्जुन भी जीत लिया गान्डीव धनुषधारी करकै, भीमसैन जीत लिया पूरा बलकारी करकै, सहदेव जीत लिया ज्ञान का भण्डार करकै, नकुल को भी जीत लिया घोड़ां का सवार करकै, राज पाट जीत लिया सारे कै प्रचार करकै, तेरी के बोलण पोटी, तेरी ल्यूहे खींच जबान बख्स दी लुगाई ।।3। बीस बार नीच कहा बोल कै सुणाओ दासी, देख लूंगा बात तेरी तोल कै सुणाओ दासी, सुबक-2 क्यों रोवे सै खोल कै सुणाओ दासी, समझदार आदमी को थोड़ा सा इशारा चाहिए, मूर्ख सेती पल्ला पड़ज्या दूर से किनारा चाहिए, सतगुरु जी की सेवा करकै ज्ञान का भण्डारा चाहिए, गुरु मानसिंह चीज नहीं थे छोटी, लिया लखमीचन्द नै ज्ञान, समाई करकै ।।4। द्रौपदी की बात किसी ने नहीं सुनी। विकर्ण जो नादान अवस्था के थे वहीं बैठे हुए थे उसने खड़ा होकर क्या कहा- एक अर्ज मेरी, कर जोड़ करी, सुणों सभा भरी, मुझ बालक की वाणी ।।टेक । जो था जूवा खेलण का विचार, पांडव अपने आप गये हार, सौ बार कही, धर्मसुत नै लही, इब कडै रही, इनके हक में राणी ।।1। जो धर्म शास्त्र के अन्दाज, सारी सभा भूलगी आज, तज राज तख्त, दिल नर्म सख्त, कही चार बख्त, की साची ना जाणी ।।2। जो धर्म शास्त्र गुणैं, जो कोए स्वयंभू मनु की सुणै, एक तै बणैं शिकारी, दूजै जूए का खिलारी, तीजै विषय का व्यवहारी, पी मदिरा पाणी ।।3। लखमीचन्द कर शर्म जात की, खैर चाहो, सो जै अपणे गात की, बात की ख्यास करो, विश्वास करो, मत नाश करो, हो अधर्म से हाणी ।।4। विकर्ण की बात को कोई नहीं सुनता तो अब द्रोपदी हाथ जोड़कर सबके सामने शीश झुकाकर कहने लगी कि सारी सभा बैठी हुई है। मेरे एक प्रश्न का उत्तर दो। द्रोपदी सबके सामने अपना एक सवाल पेश करती है- हाथ जोड़ कै अर्ज करी सुणियों जी पंचात सभा सै या सारी ।।टेक । छोटे बड़े बूढ़े सब सभा के मैं बैठे सारे, करूंगी सवाल उसका उत्तर दियो न्यारे-न्यारे, पांच पति पांडौं लोग दुनिया में कहलाए हमारे, पांचों पांडों पति मेरे किससे मिलता बाजा नहीं, अर्जन और सहदेव, नकुल, भीम से तनाजा नहीं, धर्मपुत्र पति मेरे बता कौणसे मैं साझा नही, न्यू द्रोपदी रोष भरी, सुख भोग्या दिन और रात, मनैं सारा का भारी ।।1। कुन्ती पिता वासुदेव नै पांच तै विचारे पति, एक जुआ खेल रहा चार बैठे न्यारे पति, दाव पै लगादी किसनै जब मुझसे पहले हारे पति, इस त्रिया के कुढे का माल खाने वाला कौन रहा, पड़ा है जमी पै माल ठाने वाला कौन रहा, हार चुके पति दा पै लाने वाला कौन रहा, किसनै ठा कै जूए पै धरी, मेरा केले केसा गात, द्रोपदी नारी ।।2। द्रोपदी सवाल खड़ी सभा के अगाड़ी करै, सच्चा दो जवाब कोये ख्याल ना अनाड़ी करै, कौणसा कसूर साड़ी खींच कै उघाड़ी करै, छल तै खेले छल तै जीते तन मन धन असीम, अर्जुन और सहदेव नकुल धर्मपुत्र बली भीम, इन्हीं के अगाड़ी तुमनै नाश की जमाली नीम, मूर्ख बण कै काट गिरी, मेरे खिडां दिए फल पात, थी केसर क्यारी ।।3। माता पिता बुआ दादी औरतों के शर्मदार, बेटे और बेटयां की बहू पोतियां सहित परिवार, भाणजे भतीजे जमाई धेवतां तलक की लार, इतणा कुणबा होए पाछै शर्म तै सभी कै होगी, धरती और आसमां शशि और रवि कै होगी, दाना दन्तर देवता और मानसिंह कवि कै होगी, लखमीचन्द नित्य कहैं खरी-खरी, द्विज गौड ब्राह्मण जात, आदि दे म्हातरी ।।4। जब द्रोपदी ने भरी सभा में सवाल किया कि जब मेरे से पहले पति जुए में हार चुके तो उनका फिर जुवा खेलने का अधिकार कहां रह गया और उनके बिना मुझे कोई भी दाव पर नहीं लगा सकता , क्योंकि मैं पतिभर्ता औरत हूं। द्रोपदी की यह बात सुनकर किसी की जबान तक नहीं हिली। सब चुप होकर बैठ गए पांचों भाई पांडव भी चुप चाप बैठे देख रहे हैं- चुप चाप शान्ति हो रही, ना बोल किसी को आया ।।टेक। सच्चा दो जवाब दाब मुख मैं जबान रहे, ध्यान कहीं नहीं जग में कैसे इन्सान रहे, जानने के योग्य लोग पापियों की मान रहे, कर रहे आपा-धापी पापी लोग जान पड़े विघ्ने के बिन तोले गोले सभा बीच आन पड़े, करते नहीं उजर नजर रचते तुफान पड़े, होणी सिर झगड़े झो रही, हुई कुमत पाप सिर छाया ।।1। कौण कैसा द्रोण गुरु किसी को समझाते नहीं, भीष्म गुणवान ध्यान ज्ञान उपर लाते नहीं, विदुर भक्त साच बात ज्ञान की बताते नहीं, सूत पुत्र कर्ण प्रण बांध कै सफाई करै, दुर्योधन, दुशाशन नीच खींच कै हंघाई करें, दर्द में ना कसर असर मेरै कोए ना दवाई करै, दुर्दशा हो राणी रो रही दुष्टों नै जाल फैलाया ।।2। द्रोणाचार्य भीष्म जी भी लज्जा से सरमाय रहे, धृतराष्ट्र ताऊ सभा में गम का भाला खाय रहे, कैरों वंश का नाश करण नै कटृठे हो तुम आय रहे, अन्धे और दरन्दे बन्दे लाखों से नहीं थे थोड़े, लोहे की तरह से सख्त मोड़े से भी नाय मोड़े, असुर केसा भेष देश, देशान्तरों के राजा जोड़े, ताने दे कै सेल चभो रही, नां दिल कांपा ना काया ।।3। जुवे के खिलार त्यार चौकड़ी चन्डाल की, इन्हीं नै पटराणी दासी करने की सम्भाल की, आती नहीं शर्म धर्म करने की तो टाल की, किसनै पटराणी ठाणी दासी करने की ये सलाह, गुण अवगुण ना छटैं मिटै इन कर्मों से घटै कला, इन कामां नै देख देख जीणे से तो मरणा भला, लखमीचन्द मन की टोह रही, ना ज्ञान किसी पै पाया ।।4। दुशाशन ने एक नहीं सुनी। दुर्योधन उठ कर आया और दुशाशन से कहने लगा कि इसको भरी सभा में नंगी कर दो। इसको अपनी जांघ पर बिठायेंगे। जब यह वचन वहीं पर बैठे भीम ने सुने तो प्रण किया कि जिस जांघ पर द्रोपदी को बिठाने की कहता है तेरी वही जांघ तोड़ दूंगा। अब क्रोध में भरकर भीम क्या कहता है- आंसू भरे नैन देखे द्रोपद की जाई के, डाटे ना डटते क्रोध भीम बलदाई के ।। टेक। सभा में था कंवारी केसा भेष, लगा नहीं सकै थी पवन तक लेस, आज दुशाशन पकड़ै केश रै पांडवां की लुगाई के ।।11 द्रोपदी ने भी आड दूंगा, इस पापी के खिंडा हाड दूंगा, एक पल भर में बल काढ दूंगा, दुष्टां की हंघाई के ।।2। मैं नहीं करूंगा समाई, जाणग्या होणी सिर पै छाई, द्रोपद सुता जूए पै लाई, इसे हाथ फूकंदू भाई के ।।3। लखमीचन्द इनका होरया सै सुत्र, दे नहीं सके बात का उत्तर, डूबग्या ओ धर्मपुत्र, रै या द्रोपदी भी दा पै लाई के ।।4। दुर्योधन और दुशाशन दोनों द्रोपदी को नंगी करने के लिए आगे बढ़े तो अर्जुन से भी नहीं रूका गया। जब युधिष्ठर ने देखा कि अर्जुन में क्रोध आ रह है तो इशारे से उसको भी वहीं दबा दिया अब अर्जुन अपने विचार कैसे प्रकट करता है- काम नहीं था बोलण का, पर बोले बिन नां सरता, देख देख बुरे कर्मां नै सतपुरुषां का जी डरता ।। टेक। कौरवां नैं समझा करते अपणे केसे भाई, बेईमाने में नाश करा लिया ना पकड़ी नरमाई, गैर समझ बैर ला लिया सभा में बहू बुलाई, के जीणा हो उनका जिनकी इतनी दुखी लुगाई, भूल गये मर्याद कुटम्ब की खुले मुखेरे चरता ।।1। धर्मपुत्र नैं जाण नहीं थी छल का करैंगे इरादा, राज पाट का ख्याल नहीं पड़ो कूए मैं फायदा, दुशाशन ब्या ही नै छेडै यो दुख सबतै ज्यादा, दुख के कारण भाई तै बोल्या भुला दिया सब कायदा, ना तै बाप बराबर समझ कै साहमी बोल्या भी ना करता ।।2। कर लण दे अनरीत जाण कै गुस्से नैं कम करले, खींच कपाली रोक सांस आगै, खातिर दम करले, झाल डाटले पत्थर बणज्या बोलण की गम करले, नरम कालजा मत राखै साधां के सम करले, शील सबर सन्तोष धार क्यों जल भुन कै नै मरता ।।3। शेखी के घटज्याोगी म्हारी अनरिति कर लण दे, घड़ा पाप का फुटैगा पर काना तक भरलण दे, छोड़ दई मर्याद कुटम्ब की अधर्म पै मरलणदे, काम नहीं सै रोक थाम का खूब डूब तरलण दे, कहैं लखमीचन्द श्री कृष्ण खुद दुखियां के दुख हरता ।।4। द्रोपदी का ध्यान पांडवों की ओर गया तो क्या-क्या कहती है- थारा के जीवै बलवान दुखी करैं ब्याही नै ।।टेक। भूल सामना करै भाड़ का के अनुमान चणे मैं, थारी नार सभा में रो दी, तमनै नहीं क्याहें की सोधी, उमर न्यूंए खोदी सहीसपणे मैं, सदा पकड़े घोड़ां के कान, जाणों के तुम उत लड़ाई नैं ।।1। हंसी द्रोपदी देखकै इसनै वो दुख इनकै याद था, देखै प्रजा इनका बुरा दर्जा, न्यूंए मरज्या सौण साधता, तेरा के मतलब आवै ज्ञान, के चाटू तेरी चतुराई नै ।।2। फूल्या -2 फिरै जगत मैं, तू कोन्या बात विचारता, थारी बीर सभा में कुकी, चोट जिगर मैं दुखी, तू न्यूंए सुखी बात मारता, कित गए थारे लक्ष्यधारी बाण देख दें गुमराई नैं ।।3। ताली कुन्जी हाथ तेरे थे, खोग्या तेरा बड़ापन, कै इन तै प्रीत जोड़ ले, कै एक-एक की नाड़ तोड़ले, कै आंख फोड़ले यें लग री थर-थर कांपण, तनै करदी जात बिरान खो दिए तेरी समाई नै ।।4। तुम बेशक तै करदो टाला, यो भीम बली ना डटता, पैर सभा में टेकया दयूं मेट अमरेखा, ना जाता देख्याद सर कटता, कह लखमीचन्द मूड नादान देख दयूं बलदाई नै ।।5। अर्जुन के क्रोध को युधिष्ठर ने रोक दिया कि भाई यह समय चुप रहने का है। अब दुर्योधन द्रोपदी की तरफ बढ़ा तो द्रोपदी कहने लगी कि मेरी बात सुनो मुझे हाथ नहीं लगाना मैं पतिभर्ता औरत हूं। अब द्रोपदी भरी सभा में सबके सामने क्या कहने लगी- जो राजा जूआ खेल ना सकते, बाजी नहीं थी खिलाणी, किततै सीखे अधर्म करकै उल्टी रीत चलाणी ।। टेक। ज्ञानी के संग ज्ञानी चाहिए ध्यानी के संग ध्यानी, मूर्ख के संग मूर्ख हो, अभिमानी संग अभिमानी, पंडित के संग व्याकरण हो जो शुद्ध बणावै बाणी शील पुरुष संग शील पुरुष हो नहीं कदे हो हाणी, जंग-जुआ और कुश्ती के मां चाहिए जोट मिलाणी ।।11 भूल गए मर्याद कुटम्ब की अधर्म ऊपर अड़ते, लोभी और लालची बन्द पड़े नरक मैं सड़ते, लिहाज शर्म का खोज रहा ना अधर्म करकै लड़ते, छत्रापण थारा कड़ै रहया जब त्रिया संग झगड़ते, पर त्रिया पै चाहिए कोन्या दृष्टि तलक फलाणी ।।2। ऋषि मुनि सन्या सी योगी शोभा सायज्य पुर की, रूप पशु पक्षी की शोभा सतगुण शोभा नर की, माता संग पुत्री की शोभा पिता संग पुत्र की, भाईयां मै भाई की शोभा नारी शोभा घर की, या थारी शोभा ठीक नहीं है सभा में बहू बलाणी ।।3। नीच दुष्ट छलियों के कहे तै, क्यूं सभा बीच बुलवाई, इन दुष्टों के कहणे तै क्यूं दा के ऊपर लाई, गुरु मानसिंह बता गए जो धर्म शर्म की राही, लखमीचन्द ये न्यूं ना मानैं अधर्म करैं अन्याई, मार पडै़गी यमदूतां की पडै फांसी तलक घलाणी ।।4। द्रोपदी क्या कहती है- भरी सभा के बीच तुमनै क्यों बुलवाई हो ।।टे‍क। लगे मामा भान्जा जुआ खिलावण, कुरीति-रीत कमावण, सुणे हो रावण और मारीच, मरगे सिया चुराई हो ।।1। बुरे हो सैं आपस के तनाजे, देख लूगी मौके उपर भाजे रहे सब राजे अखियां मींच, सै सब के घरां लुगाई हो । 2।। तुम नहीं हटते नाम धरण तै, मैं दुख पागी विपत भरण तै, तुम अधर्म कर रहे नीच, जले थारा ब्रहम कसाई हो ।।3। मानसिंह गुरु बात कहै रस की,लखमीचन्द जिन्दगानी दिन दस की, बुरी हो सै आपस की खींच, होली बहुत समाई हो ।।4। द्रोपदी आगे क्या कहती है- लगे तुम उल्टी रीत चलावण ।।टेक। बाली नैं सुग्रीव काड़ दिए घर तै, जिसका वैर लग्या था हर तै, मरगे राम चन्द्र के सिर तै, सिया हड़ी लंकपती नैं, न्यू मरगा था रावण ।।1। तुम डुबोगे पिछले दरजै, तुम नै कोए भी ना बरजै, थारे काल शीश पै गरजै, भीष्म, करण, द्रौण डूबैंगे जो लगे सभा में बहु बलावण ।।2। बाली नै जुल्म़ गुजारा, सुग्रीव की छीनी तारा, एक बाण तै मारया, ना दी लाश तलक भी ठावण ।।3। गुरु मानसिंह का गाम बसौदी, तुमनै लाज़ शर्म सब खोदी, क्यों बात बिचारो बोदी, लखमीचन्द महाभारत के छन्द बणाकै, लगे सभा में गावण ।।4। अब द्रोपदी क्या कहती है- धनवान पितम हुए बिना खत्म, इसा जुल्म सितम कोए करा नहीं सकता ।।टेक । अस्त्र शस्त्र गज और सूत्र म्हारै घोड़े पालकी, महल मावड़ी तला बावड़ी म्हारै शोभा ताल की, म्हारे नौकर सैं धणी हीरे मणि और फौज घणी, कोये डरा नहीं सकता ।।1। मेरे पति एक चार सुकर्म की कार हर बात मानते, तजैं ना नीति, हारी जीती, प्रीति जानते मेरा पांचों से मेल, जैसे घी मैं तेल, जुए का खेल, पति सराह नहीं सकता ।।2। करकै हिसाब लादे जवाब मेरे सवाल का, कोए ना हिमाती दूजा साथी इस कंगाल का, मेरा पांचों से सुत्र, लादे उतर, एक धर्मपुत्र, मुझे हरा नहीं सकता ।।3। लखमीचन्द द्विज जात बात वे कहते ज्ञान की, डूबैगी मझदार लादो पार या नय्या मान की, जूए का दाव दुष्टों का चाव, पापियों की नाव, कोए तरा नहीं सकता ।।4। द्रोपदी ने भीष्म से प्रार्थना करती है- शुभ राजनीति पछाण कै, पिता भीष्ममह पुकारा ।। टेक। धर्मसुत राजी नहीं थे खेल मैं, जुआ रच दिया धक्का पेल मैं, धन हो जिस धनवान की गेल में, बिना लाए धनवान कै नहीं, स्वाद आवता सारा ।।1। धर्मसुत उल्टे हटगे डरकै, कैरों कहैं जोश में भरकै, इबकै खेल द्रोपदी धरकै, फूक दिया घर तान कै, कोए ना जीत्या ना हारा ।।2। बढ़ता शुकन धर्मसुत बीता, पड़ता रहा मनोरथ रीता, ये कह कै मैं जीता जीता, सभा के बीच मैदान कै, कहैं शकुनि बड़ा हमारा ।।3। सिर पै आण चढ़ी करड़ाई, देख रहे पांडो बलदाई, सभा बीच द्रोपदी बुलवाई, लखमीचन्द कथा बखान कै, सतगुरु का लिया सहारा ।।4। भीष्म ने अपना फैसला दिया- सब सुनते रहो, अक्षर-2 चुनते रहो, पढ़ते और गुणते रहो, जो कुछ हमनै विचारा, ये कहा है तुमने, किसको जिताया है हमने, पूछा दादा भीष्म ने, क्या बहू यही प्रश्न है तुम्हारा ।। टेक। भीष्म का ज्ञान, सुनो करकै कान, चाहे कैसा ही इन्सान गरीब करता हो गुजारा, लेकिन हो निर्धन कैसा, हो सकता ना ऐसा, जाता दूजे का पैसा, ना जूए बिच हारा ।।1। लेकिन एक और है कर्म, उस कर्म की शर्म, पतिभ्रता धर्म, का जो रखती सहारा, सदा गुण ही लखती, पति परमेश्वर तकती, पतिभ्रता ना रखती, अपणे पति से किनारा ।।2। सुकनी देता दुहाई, द्रोपद छल से ना लाई, धर्म सुत नै जिताई, पांसा छल से ना डारा, उत्तर क्या, दूं जंबा से, सुकनी चौकस है दा सै, पांडो चुपके न्या य से, ना कोए बोलै बिचारा ।।3। यश में कुयश में, पति बसता नस नस में, हर रस में पिया पत्नी को प्यारा, मेरी यही है सलाह, इस धर्म की सूक्ष्म कला, इससे बुरा या भला उत्तर देणा नहीं धारया ।।4। एक शुकन धर्मसुत से बीत्या, कि गया पहले मुझको जित्या, पृथ्वी जितत्या मन जिता धर्म का कटारा, लखमीचन्द और क्या कहूं, बस कष्ट सहूं, अरी ये दर्द बहू है सबसे न्यारा करारा ।।5। जब द्रोपदी को अपना कोई भी रक्षक नजर नहीं आया तो वह भगवान श्री कृष्ण को टेरती है- रखियो रखियो जी, लाज हमारी, कृष्ण प्यारे ।।टेक। गज और ग्राह लड़े जल में लड़त लड़त गज हारे, गज की टेर सुणी रघुनन्दन नंगे पैर पधारे, के पकड़ उभारे जी, थारी लीला न्यारी, कृष्ण प्यारे ।।1। भरी सभा मै दुष्ट सतावैं, करो मेहर का फेरा, जैसे गऊ का बच्चा सिंह के थ्याग्या ऐसा बन्धन मेरा, टेरा टेरा जी, सच्चे गिरधारी, कृष्ण प्यारे ।।2। ब्रह्मा जी का मान घटाया, तेरा नाम कन्हैया लाला, नाग नथा जब कृष्ण कहलाए, गऊ चराई गोपाला, माला टेरूंगी, क्यूंकि मैं दासी थारी, कृष्ण प्यारे ।।3। तेरे बालकपण के यार सुदामा लखमीचन्द के भाई, मिश्राणी जी के चावल खा कै चोखी प्रीत निभाई, पाई पाई जी, थारी पक्की यारी, कृष्ण प्यारे ।।4। द्रोपदी आगे और श्री कृष्ण से क्या प्रार्थना करती है- कर जोड़ खड़ी सूं, प्रभु लाज राखयों मेरी ।।टेक। मर्यादा को भूल गए दरबारा मै शोर होग्या, भीष्म, कर्ण, द्रोणाचारी का हृदय क्यों कठोर होग्या, दुर्योधन दुशाशन शुकनी कौरवों का जोर होग्या, अधर्मी राज्यां की प्रजा गैल दुख पाया करै, पाप की कमाई पैसा काम नहीं आया करै, सताये जां आप जो औरां नै सताया करै, हे कृष्ण, हे कृष्ण कहैक ऊंचे सुर तै टेरी ।।1। सभा में प्रश्न किया धीरे-धीरे फिरण लागी, कांपता शरीर बीर कौरवों से डरण लागी, भीष्म जी की तरफ कुछ इशारा सा करण लागी, नीती को बिशारा पिता बोल कै नै साफ कहो, बोल कोए सकै ना सब बैठे चुप-चाप कहो, हारी सूं अक ना हारी भेद खोल कै नै आप कहो, मेरे प्रश्न का उत्तर दो थारी इतनी कृपा भतेरी ।।2। धर्म के विषय की बात समझकै बताई जा सै, धन की भरी थैली अपने हाथां तै रिताई जा सै, दूसरे की चीज कोन्या जूए मैं जिताई जा सै, धर्म सुत होगे तै के मैं भी बेईमान होगी, शूरवीर स्याणां की कहो बन्द क्यूं जबान होगी, बीर का शरीर चीर मैं भी तै इनसान होंगी, पर ये कौरव चीर तारणा चाहते करकै हेरा फेरी ।।3। दमयन्ती की लाज रखी नल को मिलाया फेर, देवयानी नै रटा, सखी आई थी कुएं मैं गेर, सावित्री की विनती सुणी पल की ना लगाई देर, लंका पर चढाई करी सीता से मिलाए राम, जुरतकारू फेर मिले छोड़ गए थे घर गाम, अनसुईया, अहल्या, तारा प्रेम से रटैं थी नाम, कहै माईचन्द बिना भक्ति, तन माटी केसी ढेरी ।।4।

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