किस्सा चंदकिरण : पंडित लखमीचंद (हरियाणवी कविता)

Kissa Chandkiran : Pandit Lakhmi Chand (Haryanvi Poetry)


एक समय की बात है कि मदनपुर शहर में राजा मदन सेन राज करते थे। उनकी धर्मपत्नी का नाम नागदे था। महाराज अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए वेश बदलकर शहर में घूमा करते थे। एक दिन दुकान पर राजा ने एक बहुत ही सुंदर स्त्री का फोटो देखा। इतनी सुंदर स्त्री राजा ने कभी नहीं देखी थी। परिणाम स्वरूप राजा उसके ऊपर मोहित हो गया और दुकानदार जो की एक बुढिया थी उससे क्या पूछता है-

फोटो चीज दुकान में दुनिया से न्यारी सै।।टेक। के किमै चातर नै चतुराई करी, फोटो नै ज्यान काढ ली मेरी, तू उड़ती परी विमान मै धरती पै तारी सै।। इस फोटो नै न्यू कहया, इब तू राधिका मेरी ले लिए दया, कृष्ण भी रहया खेल मैदान मै या रंग की पिचकारी से।। फोटो दामां का मंगवाया, गया ना अर्जुन पै संगवाया, मछ टंगवायाआसमान मैं, या द्रोपदी कंवारी सै।। लख्मीचंद के फायदा झगड़ा झोएं तै, सहम न्युएं जिंदगी खोएं तै न टोहें तै, मिले जहान में तू जनक दुलारी सै।। राजा मदनसेन उस बुढिया दुकानदार से पूछता है कि यह तस्वीर किसकी है। तो बुढ़िया उसे बताती है कि है कि यह कंचनपुर की राजकुमारी चंदकिरण की तस्वीर है। अब मदनसिंह चंदकिरण की फोटो को घर ले आता है। रानी नागदे उसे देखकर क्या कहती है- कागज की तस्वीर कड़े तै लाया हो, जी नै खाड़ा होग्या।।टेक। क्यूकर मौके नै चूक दूं , क्यूंकर गिले नै थूक दूं , फूक दयूं सिर का चीर, गया लिकड़ उमाहया हो, मनै रंडसाड़ा होग्या।।1। मेरा तेरा मिलै ना जोड़, कर दयूं एक बात में तोड़, मैं सूं पाकया ओड़ अन्जीर, पता जिसनै खाया हो, तू सड़या सिघांड़ा होग्या।।2। तेरी इश्क में घीटी घुटगी, मैं सब क्याएं तै लुटगी, मेरी छुटगी जन्मस जगीर, हो लिया मर्द पराया हो, जां सूं जेब का भाड़ा होग्या।।3। वा नकली रेशमी साड़ी सै , तू झूठा मूढ़ अनाड़ी सै, मेरी माड़ी सै तकदीर, लखमीचन्द छन्द गाया हो, तू मर्द लुगांड़ा होग्या।।4। कागज की तस्वीर के प्रति राजा को इतना आसक्त देख कर रानी क्या कहती है- और ढाल की शक्ला हुई, ना तेरा पहले आला ढंग पिया, एक कागज की तसवीर देख कै, क्यूं अक्ल, होगी भंग पिया ।।टेक। बीर के कारण नारद जी कै गात उचाटी हुई कै ना, जमदगनी और पारासर की तबीयत खाटी हुई कै ना, मुनि उदालक, भसमासुर कै गोला लाठी हुई कै ना, विष्णु का मन मोया गया उसकी रे रे माटी हुई कै ना, गैर बीर और गैर मर्द का आच्छा ना सत्संग पिया ।।1। रावण भी बुरा कुर्कम सीता की गैल करया चावै था, नार अहलया संग चन्द्रमा मेल करया चावै था, नहुष भूप इन्द्राणी के संग खेल करया चाहवै था, कीचक भी द्रोपदी के धर्म नै फैल करया चाहवै था, आज तलक तनै देखे कोन्या इन बीरां के रंग पीया ।।2। धक्के खावणियाँ माणस कै, घर और बार रहै कोन्या,, साथ देणिया साथी मन का मित्र यार रहै कोन्या, राज मै रोब ताज मै छलकी मेरे भरतार रहै कोन्या, दो धेले का होज्यैगा पिया इज्जतदार रहै कोन्या, खाण-पीण ओढण पहरण तै होज्यगा कती नंग पिया ।।3। राज करणिंया राजा नै तै बहोत समाई चाहिए सै, इज्जतबन्द नै ना अपने हाथां लोग हंसाई चाहिए सै, पुरूषार्थ से कर प्रजापालन इसी भलाई चाहिए सै, और दूसरा ब्याह करवाले जै नई लुगाई चाहिए तै, लखमीचन्द मेरी एक ना सुणता क्यूं होग्या कती नंग पिया ।।4। रानी नागदे राजा को समझाती है- छत्रधारी राजा भूल में, सोवै सै पिया, कागज की तस्वी र देख कै क्यूं रोवै सै पिया।।टेक। आज तेरे मन का फूल खिल्या ना, एक मिनट भी चैन मिल्या ना, पता चला ना फोटू में के टोहवै सै पिया।।1। तेरा क्यों छूटग्या पीणा खाणा, कर लिया मुर्दया केसा बाणा, सिर अपना और बोझ बिराणा ढोवै सै पिया।।2। आज तेरा दुर्बल होग्या शरीर, दिखै लग्या जिगर पै इश्क तीर, इस कागज की तस्वीगर पै जी खोवै सै पिया।।3। लखमीचन्द भरया के चाह में, कुणसी जचगी तेरी बात निघां में, चालण आले राह में कांटे बोवै सै पिया।।4। रानी की बात सुनकर राजा क्या कहता है- चीज मिली सै लाहणे आली, हूर सुनहरी गहणे आली कंचनपुर के रहणे आली, चंदकिरण नाम सै। ना सुख की निंद्रा सोऊंगा, नहीं मिली तो जिंदगी खोऊंगा, टोहूंगा जै काबू चलाज्या, पाज्या जै फूल कमल सा खिलज्या, मिलते ही दुःख सारा टलज्या गंगा कैसा धाम सै। चमका लग्या गजब नूर का, मैं मारया मर गया घूर का, हूर का परियों कैसा बाणा, किसा जाणै सै प्रेम जगाणा, नहीं मिली तै पीना खाना कती हराम सै। जगाऊंगा जै जाग ज्या भाग, बुझाऊंगा बुझगी तै आग, रही लाग री मेरै विष घुटुंगा, प्रेम का प्याला हंस छूटूंगा, बेरा ना कद रेस लूटूंगा, मालदे का आम सै। लख्मीचंद मेर लेगा जिस दिन, फेर आराम रहेगा निस दिन, जाणै किस दिन मेरा काम बणैगा, प्रेम का कस कै तीर तणैगा, कदे तै मालिक टेर सुणैगा काजी आली बाम सै। राजा मदनसेन और रानी नागदे के बीच फोटो के बारे में बात होती है तो रानी क्या कहती है- या कागज पै कौण कड़े की नार, तू जिसका मारया मरता ।।टेक। क्यों गल में फांस घलाई, तनै झूठी तोहम्मोद लाई, या बिलाई गाहक चिड़े की, तनै लेगी उभार, कितका चुग्गा करता।।1। के सौवै सै जाग, तनै सोची ना निरभाग, वा काली नाग बिड़े की, तेरे धर मारै फुंकार, डस लेगी क्यों ना डरता।।2। तेरे जी नै होज्या2गा फजीता, इनै तै आज तक कोए नहीं जीता, या सीता खून घड़े की, रावण तेरे बाहर, क्यों फन्दे के मैं घिरता।।3। लखमीचन्द सतगुर की आड़ ले, मेरी तेगे तै नाड़ बाढ़ ले, काढ ले ज्यान शरण पड़े की, के थुकैगा संसार, अन्त में करी ओड़ नै भरता।।4। फोटो को लेकर राजा और रानी के बीच क्या सवाल-जवाब होते हैं- इसनै परे सी हटाले हो यो किस पापण का फोटू ठा लिया।।टेक। राणी :- क्यूं तेरी गई बिगड़ अकल सै, या तेरे घर में खड़ी फसल सै , तेरी तै कौण असल सै, धोखा बड़े बड़या नै खा लिया ।।1। राजा :- इस मैं मत समझै कोए अन्देशा, ले लूंगा मांगण तक का पेशा, बणग्या मैं नारद मुनि केसा, आसन शील नदी पै ला लिया ।।2। राणी :- तनै मैं सुणाऊं कथा बांच कै, मेरे तू जाइए धड़ नै तांच कै, मरया भष्मासुर नाच नाच कै, उसनै मजा इश्क का पा लिया ।।3। राजा :- सच्चे बन्दां का रूखाला हर सै, यो तेरा पड़ा रहण नै घर सै, भष्मासुर मरग्यार तै के डर सै, एक वर तै विष्णु भी बहू बणा लिया ।।4। राणी :- जिसनै बोलां के सेल सहे थे, इसतै भी ज्यादा ब्योंत नए थे, ब्याैहवण रुक्मिणि नै शिशपाल गए थे, कुन्दनपुर में मुंह पिटवा लिया ।।5। राजा :- वो शीशपाल भूल मैं सोग्या, भूप नै काट लिया जिसा बोग्या, रुक्मिणि नहीं मिली तै के होग्या, एब बर तै सिर पै मोड़ धरा लिया ।।6। राणी :- तेरै गया लाग इश्क का झटका, आशिकी बांस समझ लिए नट का, नहूष भूप स्वर्ग तै पटका, जिसनै इन्द्राणी पै ध्यान डिगा लिया ।।7। राजा :- लखमीचन्द सै यो दुख दारुण, कोये बिरला लगै बात बिचारण, नहूष भूप नै इन्द्राणी कारण, एक बर तै इन्द्र का पद पा लिया ।।8। एक बार फिर से राजा चंदकिरण की सुन्दरता पर मुग्ध होता हुआ रानी नागदे से क्या कहता है- फोटू दियासिलाई नै, मेरा दिया फूक कालजा मरग्या, शीलक कद हो ।।टेक। बस होगे कर्म रेख कै, बेमाता कै लिखे लेख कै, देख कै जल पर की मुरगाई नै, वा लरजती फिरै थी, मैं देख कै डरग्या, रही हद हो ।।1। ठीक मेरा सै कहणा, कसर बात में है ना, दो नैंना की चोट चलाई नै, मेरा धड़ पर तै सिर उतरग्या, रहया दरद हो ।।2। उसनैं मैं जाणूं सू सब तरहां, क्यूंकर उड़ज्यां बिना परा, जो घरां राखरया बिन ब्याही नै, हूर का जोबन मद में भरग्या, जोंणसा मद हो ।।3। लखमीचन्द कह हरफ गिण कै, भजन बिन रोवैगा सिर धुणकै, सुण कै सांरगी की रूसनाई नै, फेर ध्यान ढोलक पै फिरग्या, रही गदा गद हो ।।4। रानी नागदे मदनसैन को धमकती हुयी कोसती है- तनै के सोची निरभाग फिरण लगया तरहां हंडेरू की, तनै के इस घर बिन सरज्यागा ।।टेक। के मेरी आच्छी लगी ना टहल, यू के करण लगा मेरी गैल, चिणा कै महल बसा लिए काग, फेर के खता पथेरू की, बिन बरतैं घर गिरज्यागा ।।1। खोटा काम करै धिंगताणै, जले क्यूं ना दूध और पाणी छाणैं, या तेरी धरी सिराणै पाग, जगहां रख पावे शेरू की, मरूंगी जै छोड़ डिगरज्यागा ।।2। जिसनै कह तूं बिजली घन की, वा तेरी ज्योत काढ लेगी तन की, जले सै या खांडू बण की आग, उड़ते पर जलैं पखेरू की, भाई की सूं जलकै मरज्यागा ।।3। लखमीचन्द छन्द नै धरगे, ऋषि बण तप करण डिगरगे, बहोत से मरगे करकै लाग, या चोटी शिखर समेरू की, तू इसा ना जो पार उतरज्या लगा ।।4। रानी की बात सुनकर मदनसेन कहने लगा कि रानी मेरी बात सुन, एक तरफ होकर बैठ जा, मै राजा हूं, मैं जो चाहूंगा सो करूंगा। और क्या कहता है- राहणदे क्यूं घणी मिलावै बात, करूंगा जो मन मेरे मैं, हटज्या छेड़ै मतना ।।टेक। तेरे घेरे तै नहीं घिरूंगा, मैं मन चाही कार करूंगा, मेरा जी करैगा जड़े कै फिरूंगा दिन रात, घेर कै के मारैगी, अन्धेरे में, सांकल भेडै मतना ।।1। तेरे तै रहूं सूं के मैं दब कै, तेरा तै यो बोल जिगर मैं खबकै, सब कै तेरे केसा गात, नैन का जो कोड़ा तेरे मैं , खाल उधेडै मतना ।।2। जब तैं लाठ बणी फिरै मुलकी, समझती ना किसे नै अपणे तुल की, आगी या तै कुल की स्यात, लिकड़ आई बाल पटेरे मैं, पकड़ उखेड़ै मतना ।।3। ये चार कली लखमीचन्द नै जड़ी, तमाशा तू देखें जा दूर खड़ी, तनैं के गर्ज पड़ी कमजात, पडूं चाहे कूए झेरे मैं, लागै नेड़ै मतना ।।4। राजा मदनसैन रानी की एक नहीं मानता है और चंदकिरण को से मिलने के लिए चल पड़ता है। और चलते हुए रानी से कहने लगा कि मैं यहां से जा रहा हूं और जब तक मुझे यह फोटू वाली नहीं मिलेगी, मैं वापिस नहीं आऊंगा। रानी ने कहा कि पति जी कहीं पर मेरी जरूरत पड़ जाये तो मुझे याद कर लेना। मैं उसी समय आपकी सेवा में हाजिर मिलूंगी। और चलते-चलते मदनसैन क्या सोचता है- हूर का चन्दकिरण सै नाम, सिंगलद्वीप जंजीरे मैं, बेटी नारायण सिंह की सै ।।टेक। मेरी पड़गी फसल पछेती, परीक्षा आए गयां की लेती, डाण नै हत्या सेती काम, मनुष्य तरबूज मतीरे मैं, चालज्या पैनी बंकी सै ।।1। घणें तै दूर- दूर तै डर लिये, उसका रूप देखकै मर लिये, बहुत से कर लिये भूप गुलाम, नफा के गर्दन चीरे मैं, आशकी डोर पंतग की सै ।।2। भरया रस केले केसी घड़ मैं , दीखै सांस चालता धड़ मैं, महल की जड़ में रौंश तमाम, आ रही बहार जखीरे मैं , खड़ी मेवा सब रंग की सै ।।3। गुरु मानसिंह करैं आनन्द, कटज्यां जन्म मरण के फन्द, लखमीचन्द बरत बिन दाम, दमक जैसे सच्चे हीरे मैं, तेरी कथनी इसे ढंग की सै ।।4। आगे राजा मदनसेन क्या सोचता है- दीन से बेदीन हुआ, घर तै बेघर हो लिया भाई, भगवान पै भरोसा करकै कन्चनपुर की सुरती लाई ।।टेक। साच माच रहा दीख हूर का, सुन्दर शरीर फोटू में, गोरे गात पै किसा सजरा, दखनी चीर फोटू में, मरणा जीणा लाभ हाण और मेरी तकदीर फोटू में, रांझे की सपनों की राणी जाणूं हीर फोटूं में, कारीगर नै ध्यान लगा कै, किसी करी सै चतुराई ।।1। गोल-2 मुख चन्द्रमा सा खिली रोशनी तन में, गहणे के में लटपट जाणूं, देवी रही सिंगर भवन में , जैसे रती के प्रेम से काम देव कै उठैं लोर बदन में, जाणूं भगतां नै भगवान मिलै मैं न्यू आनन्द दर्शन में , हाथ पैर मुख शरीर की शोभा मद में भरी भराई ।।2। राज घरां में जन्मी पाछै, आच्छी करणी करगी, दासी बान्दी टहल करैं, किसी मस्त जवानी भरगी, रूपवती सती शहजादी की, तसवीर देश में फिरगी, कै तै फेटूं ना मरणा होगा, या तै पक्की जरगी, बहुत राजे, महाराजे उसकी करते फिरै बड़ाई ।।3। घड़ी मिलण की, चमन खिलण की समय आगी तै जाणूं, ध्यान टेक कै मनै देख कै, सरमागी तै जाणूं, चोट जिगर में, कंचनपुर में, मनैं पागी तै जाणूं, घर बार गया, कष्ट सहया, मेरै लागी तै जाणूं, कह लखमीचन्द किस कै दुखै लागी चोट पराई ।।4। चलते-चलते राजा एक जंगल में पहुँच जाता है। वहाँ उसे एक साधु की कुटिया दिखाई दी। वहाँ जा कर मदनसैन साधु से अपना चेला बनाने की विनती करता है- बाबा जी मेरे कान पाड़ले बहुत घणा दुख पायां में, मेरी तृष्णा पूरी करदे आशा करकै आया मैं ।।टेक। मेरै होरी कर्म की हाणी , मुख से नहीं निकलती बाणी, करकै नैं तेरी सेवा पाणी, पड़या रहूं तेरे पांया में ।।1। बहुत घणां मनैं दुख ओटया सै, भाग मेरा सब तरिया लोटया सै, इब सब क्याहें का टोटा सै, कदे खेलू था धन माया में ।।2। दुख विपता में मरण लागरया, कष्ट गात में भरण लागरया, दो दिन तै न्यूंए फिरण लागरया, भूखा और तिसाया में ।।3। लखमीचन्द बेढंग हो रहया सूं, सब तरियां तै नंग हो रहया सूं , गरमी के में तंग हो रया सूं , मनैं बिठा ले छाया में ।।4। साधु महाराज राजा से साधु बनाने का कारन पूछता है। राजा के साडी बात बताने पर साधु राजा मदनसैन से क्या कहता है- समझ गया तेरी बात नै, जिस कारण बणै फकीर, मरै सै खटक का मारया ।।टेक। तेरे में कुछ ना कुछ सै टुक, जिस तै सारा छुटया सुख, सहन करया ना दुख गात नैं, डोब गई कोए बीर, यो मतलब सै सारा ।।1। कित का सन्त बणै फेर रोवै, सहम अगत में कांटे बोवै, क्यों खोवै जात-जमात नै, रहा खाली पीट लकीर, लिकड़ग्या सांप था भारया ।।2। तनै धूणे पै पैर गाड दिया, के तेरे कारण छोड़ लाड़ दिया, के काढ दिया पिता मात नै, न्यू फूटी तकदीर, पाटग्या कुणबे तै न्यारा ।।3। लखमीचन्द पवाड़ा कोड, तू के करैगा मेरी ओड़, मत छोड़ कुटम्ब के साथ नै, जा घर अपने धरधीर, ना तै कुणबा रोवै थारा ।।4। मदनसैन साधु के आगे बैठ जाता है। साधु उसके कान पाड कर अल्फी पहना देता है। उस समय का वर्णन- मदनसैन, बाबा के आगै बैठग्या अपने कान करकै, बाबा जी नै करया भेष में सतगुर जी का ध्यान करकै ।।टेक। मुश्किल होती ना बात मर्द नै, हांगा करकै खेग्या दरद नैं, एक मिनट में पैनी करद नै, गेर दिया लहू लुहान करकै ।।1। ठीक-ठाक बरताव करया गया, काचे कानां में घाव करया गया, तेरे लिए न्यूं भाव करया गया, खुद अपना स्थान करकै ।।2। मतलब तेरा छांट गया था, न्यूं अपना दिल डाट गया था, पहलम तै न्यूं नाट गया था, सुन्दर उमर नादान करकै ।।3। लखमीचन्द सही छन्द गाइए, जा बच्चा कितै खाईए कमाईए, मत बाणें कै बटटा लाइए, रहिए ठीक ईमान करकै ।।4। मदनसैन को वह रहते हुए काफी दिन हो जाते हैं। उसका भेष साधु जैसा ही हो गया था। तो एक दिन मदनसैन साधु से पूछता है की क्या वो जो कर रहा है वो ठीक है? तो दोनों के सवाल-जवाब होते है- मनै बतादे बाबा जी तेरे मन का ठीक विचार के सै, तू बाबा वा राजदुलारी, उसके लायक कार के सै ।। टेक। इसा करणिएं नै पिटवा दे, नाड़ फेरे तैं खोज मिटवादे, हाथ करे तै हाथ कटवा दे, इसी उत तै प्यार के सै ।।1। कुणसे दुख नै मेटया चाहवै, के तू भरणा पेटा चाहवै, उसतै क्यूं तू फेटा चाहवै, तेरा उसका व्यवहार के सै ।।2। तेरै के बूम मिलण की उठी, क्यूं तेरी आ कै किस्मत फूटी, मुंह की मीठी, पेट की झूठी, इसी का एतबार के सै ।।3। कहै लखमीचन्द वा काटै धरती, उसतै सारी दुनियां डरती, नहीं किसे तै प्रेम करती, ना हे समझती प्यार के सै । ।।4। मदनसैन वह से चल पड़ता है। साधु की कही बातों से खिन्न हो कर मरने की सोचता है। अपने लिए चिता बना लेता है। कवि ने कैसे वर्णन किया है- इश्क विषय में रोंए जांगा ना दुख भरणा चाहिए, चिता बणाली मरण की खातिर, जल कै मरणा चाहिए ।।टेक। चोट लगी ना करूं मक्क़र मैं, इब कित मार मरूं टक्कर मैं , चन्दकिरण के बहम चक्कर में, न्यूं नहीं फिरणा चाहिए ।।1। अड़ बैठया बुरी राड़ के उपर, पां सैं विघन बाड़ के उपर, नहीं जलूं तै नाड़ के उपर तेगा धरणा चाहिए ।।2। लिकड़ लिया अपने घर में तैं, राज पाट माया जर में तै, कै मेरे सिर पै अम्बर में तै, गोला गिरणा चाहिए। ।।3। फायदा हुआ ना कुछ आवण में, जवानी पण का रंग लावण में लखमीचन्द कहै गावण में, गुरू का शरणा चाहिए ।।4। वह पर एक बुढिया आरणें इकट्ठे कर रही थी। जब वो किसी साधु को चिता पर बैठा देखती है तो उसके पास जाती है और पूछती है कि साधु महाराज क्या हुआ? तो मदनसैन उस बुढिया से क्या कहता है- मैं पूरा सूं पैज परण का, ढंग होरया सै आज मरण का, महल बतादे चन्दकिरण का, मैं भूखा दर्शन का ।।टेक। कुछ तै करिए काम अकल तै, फांसी काट घली जो मेरे गल तैं, बड़ी मुश्किल तै थारी नगरी पाई, खुश होग्या जब दई दिखाई, ना तै इस जंगल में होता ताई, ढेर मेरे तन का ।।1। अपणी समझ भेद खोलै सै, बण आधीन दास बोलै सै, तृष्णा डोलै सै रंग लादे, जाणै तूं शहर पनाह के कायदे, मनज्या तै तू मेरा मनवादे त्यौहार वर्ष दिन का ।।2। जाणैं देश लगी हुई टुक नैं, सब रोवैं अप अपणे सुख नै, मेरे पिछले दुख नै कती भूलादे, चन्दकिरण तै मनै मिलादे, खिलज्याख तै तू आज खिलादे, फूल मेरे मन का ।।3। लखमीचन्द राम की माया, भेद बात का बूझया चाहया, यो उसाए पाया जिसा सुण्या सै, फर्क नहीं कुछ थोड़ा घणा सै, कंचनपुर थारा शहर बणया सै, सारा कंचन का ।।4। आगे मदनसैन बुढिया से क्या कहता है- दोनुवां में तै एक काम कर पिछला दर्द भुलादे, चन्दकिरण का महल बता ना आग चिता में लादे ।।टेक। और सहारा ना दिखया बस लिया तेरा शरणा सै इसमें उक चूक ना रहणी जो विध्ना नै बरणा सै, मैं छतरी सूं हठ का पूरा जी कै के करणा सै, कै तै फेटू चन्दकिरण तै, ना जल कै मरणा सै, होगा धर्म तेरा ताई री, एक जीव की ज्यान बचादे ।।1। करूं गुजारा गरीब नगर में जिगर छो लिए मतना रे, धर्म करम का भेद समझ कै घाट तोलिए मतना रे, अपनी मेरी इन बातां का भेद खोलिए मतना रे, चुपका-2 पीछै आज्या कती बोलिए मतना रे, एक आरणा जड़ैं गेरू उड़ै चौक में पैर जमादे ।।2। दिल का दूर अन्धेरा करकै किसा करया प्रकाश तनै, मेरे पै असहान आज यो कर दिया ताई खास तनै, एक परदेशी माणस की पूरी कर दी आस तनै, मेरे जीवण का ब्योंत बणा दिया वा ताई शाबास तनै राम करै तू जुग जुग जियों निभा दिए सब कायदे ।।3। आगै-आगै चालिए ताई तूं करिये काम होशयारी का, सोच समझ कै पां धरिए तनै बेरा नगरी सारी का, चाल कै महल बतादे चन्दकिरण राजदुलारी का, जड़ै आरणा तू गेरै उड़ै महल समझलूं प्यारी का, फेर लखमीचन्द ना हटै हटाया तू एक बै जगह दिखादे ।।4। बुढिया कहती है कि चंदकिरण कोई ऐसी-वैसी राजकुमारी नहीं है। अगर किसी ने उसके महल की तरफ उंगली भी कर दी तो हाथ कटवा देती है। किसी ने नजर से इशारा भी कर दिया तो सर कटवा देती है। मदनसैन बुढिया से बार-बार विनती करता है तो बुढिया कहती है कि ठीक है तो, तुम मेरे साथ चलो। मैं जहाँ पर भी आरणा गिराऊ, समझ जाना वही चंदकिरण का महल है। मदनसैन बुढिया के पीछे-पीछे चल पड़ता है। जब चंदकिरण का महल आता है तो बुढिया अपनी टोकरी से एक आरणा वह पर गिरा देती है। जैसे ही मदनसैन को इशारे से चंदकिरण का महल दिखाई देता है वह वही पर बैठ जाता है। कवि ने कैसे बताया है- देख्या चन्द किरण का महल, बाबा नै ली मार पलाथी ।। टेक। गाऊँ झूठे नागड़ रागड़ खागड़ की ज्यू टाड रहा, हुए बाहर नगर तै सुरती हर तै घर तै फोटू काढ रहा, करूं शोर शराबा तुरन्त खराबा बाबा चिमटा गाड रहा, जब गई दीख मेरै बली डीक तूं घाल दे भीख भिखारी मैं, किसे मीठे बोल दई काया छोल रही कोयल कूक अटारी मैं, क्यूं ना ब्याह करवावै लाल खिलावै के थ्या वै मजा कवारी मैं, कदे ना चाले जुड़ा कै बहल, कदे ना लाए घूंघट गाती ।।1। लिहाज करैं थे ताज धरैं थे राज करैं थे घर उपर, सुण प्रेम नड़ी मेरै नाग लड़ी बिखा पड़ी नर उपर, सुण फोटू आली झड़गी लाली लटा बढ़ाली सिर उपर, महिमा बाणी कोन्यां जाणी मार राणी तै होड आया, बण मुद्रा आला ली मृग छाला काला काम्बल ओढ़ आया, मेरी अक्ल वही के कसर रही मैं कईं-कईं पहरानी छोड़ आया कदे मसलूं था अतर फलैल, थे पायां में बूंट बिलाती ।।2। घर तै लिकड़गे नक्शे- झड़गे छाले पड़गे पायां में, घटग्या बल तै ना बोलू छल तै बड़ी मुश्किल तै आया मैं, सुण फोटू आली झड़गी लाली राख रमाली काया मैं, किस्मत सोगी कांड़े बोगी कुछ तेरी खोगी तस्वीर मनैं, हम नाथ नये बड़े कष्ट सहे गए मार अदा के तीर मनैं हुये कईं बरस रहा तरस तू दर्श दे दिये बीर मनैं, बाबा कर रहा धूणे पै फैल, जाणूं कोए मदिरा पी रहा हाथी ।।3। मैं चला कुराह मेरै लगा छुरा माशूक बुरा हो दुनियां में, मैं रहा शिशक मेरै लगी चश्क इश्क मूढ ना गुनियां में, मेरी याहे नीत कद होगी जीत रही बीत ऋषि और मुनियां में , आशिक मिलता हाथ मसलता चलता बाबा हार रहा, क्यूं ना मुट्ठी भीचै डोरी खींचै झांखी नीचै यार रहा, सुण चन्दकिरण मालिक की शरण चमटे तै चरण चुचकार रहा, लखमीचन्द कर दुनियां की शैल, हिम्मत का राम हिमाती ।।4। मदनसैन वही पर अपना धुणा लगा लेता है। जब धूणे का धुंआ चंदकिरण के महल में जाता है तो वह धुएं से परेशान हो कर अपनी दासी से क्या कहती है- मेरे दुख सुख की जाणैं कोन्यां ध्यान कड़ै सै तेरा, कित तै धूमा आवै सै यो जी घबराग्याा मेरा ।।टेक। किसनै धूणा ला राख्या सै, सांस लेण का ना राह राख्या सै, किसनै धूमा ठा राख्या सै, ले बहार लिकड़ कै बेरा ।।1। के कोए साधै सौंण आदमी, देख तावली जौण आदमी, मनै बतादे कोण आदमी कोर सुलगती ले रहा ।।2। अलग रहूं सूं न्यारे महल मैं, कुकर्म रच दिया म्हारे महल मैं , इस धूमें तै सारे महल में होग्या घोर अन्धे रा ।।3 लखमीचन्द कहै छन्द धर कै, किस नै काम करया ना डर कै, म्हारे महल की जड़ में धूमा करकै किसनै ला लिया डेरा ।।4। जब धुआं अन्दर आता है तो चंदकिरण बान्दी को भेजती है की देखो ये धुआं कहा से आ रहा है। बान्दी छत पर चढ़ कर देखती है आर बाबा को वह से धुणा हटाने के लिए कहती है तो बाबा उसे क्या कहता है- री कदे तलै आणं पडै ना हटज्याढ अलग मंडेरे तै ।।टेक। तेरा सै बान्दी का दरजा, बता तेरै धूणा लावण में के हरजा, कदे बाबा जी मरज्याा, री तेरे पुतली फेरे तै ।।1। बाबा नहीं कदे परण तै हिलै सैं, ला दिया धूणा इब नहीं टलैं सै, तेरी लप तप जीभ चलै सै, उगल दे कदे जहर गवेरे तै ।।2। बान्दी परे नै बैठ उठज्या, तू जाणै कदे बाबा जी रंग लूटज्या , ना तै पड़ते नाड़ टूटज्या , मैं न्यू समझांउ तेरे तै ।।3। जी जा लिया सौ सौ घाटी, न्यूं दिल में गई लाग उचाटी, लखमीचन्द पिरवा में नै जांटी, ढाई क कोस ननेरे तै ।।4। चंदकिरण की बात सुनकर बान्दी देखती है की धुआं कहा से आ रहा है? जब वो देखती है की ये तो बाबा जी के धूणे से आ रहा है तो वह बाबा जी से क्या कहती है- हो बाबाजी धूणां ठाले, धूमा आवै से घर म्हारे में ।।टेक। दिखै कार करै घणी ढेठी, तनै तकदीर लिखा ली हेठी, राजा नारायण सिंह की बेटी, चन्दकिरण रहै चौबारे में ।।1। पूरा सै पैज परण का, टाला करदे कुबध करण का, बाबा जी तेरे मरण का रूक्का, पड़ज्यागा जग सारे मैं ।।2। जब तेरी मछली सी फंस लेगी, वा तेरी काया नै कस लेगी, बाबा जी तनै डस लेगी, एक रूक री नाग पिटारे मैं ।।3। लखमीचन्द सही ध्यान नहीं सै, तेरै बाबा धर्म ईमान नहीं सै, रे मूर्ख तनै ज्ञान नहीं सै, समझदार जा समझ इशारे मैं ।।4। जब बान्दी बाबा हो धुणा हटाने के लिए डांटती है तो बाबा बान्दी को क्या जवाब देता है- बान्दी हो कै ठाडू घमकावण का, तेरा के हक सै इस बाबा नै तावहण का ।।टेक। स्वाद बात भरी मीठी रस की हो सै, मत गर्व करै जिन्दगी दिन दस की हो सै, हांसी मसकरी आपस की हो सै, या हवा रोकणी किसके बस की हो सै, धूमें का सभा हवा के साथ आवण का ।।1। सच्चे दिल तै धूणे नै सेहरा सूं, तनैं गाल बकी मैं हीणां बण खेरयां सूं, धरती नै ओट लिया अम्बर नै गेरया सूं , बता मैं बदमाशी का के मुद्दा ले रहा सूं, लिये मेट उमाहया मेरै तोहमन्द लावण का ।।2। जिस नै नाम लिया उसनै मेरी स्याहमी करदे, जो करणी हो मुंह पै बदनामी करदे, नाश हुया करै जो बुरा हरामी करदे, घर त्याग दिया थारी कौण गुलामी करदे, चाहे सिर कटज्याौ पर ना धूणा ठावण का ।।3। मन मारे बिन सत का मेल नहीं सै, धर्म करे बिन या फलती बेल नहीं सै, चाहे कूट लिए इन तिल्लां मैं तेल नहीं सै, लखमीचन्द गाणा हांसी खेल नहीं सै, दुनियां करैगी जिकर तेरे गावण का ।।4। बाबा कहता है की जिसने तुन्हें मेरे पास भेजा है उसी को भेज दो, तभी ये धुणा उठेगा नहीं तो नहीं। अब बान्दी भी समझ गई यह साधु नहीं है। यह तो इश्क के चक्कर में घूम रहा है। अब बान्दी क्या कहती है- बाबाजी जाइये ऊठ, महल चन्दकिरण कंवारी का, मर्द का आडै काम कती कोन्यां ।।टेक। हीजड़ा बण कै आप रहा, तन पै भारी कष्ट सहा, गया अर्जुन का पिंड छूट, बोल लिकड़या महतारी का, इसा तू मर्द जती कोन्यां ।।1। टूटज्याागी जै या घणी खिंचादी, तनै दुनियां कै बात जचा दी, मचादी कुन्दनपुर में लूट, ब्याचह था रूकमण गिरधारी का, इसी तेरी तेज रती कोन्या ।।2। क्यूं हांडै सै भूखा प्यासा मरता, क्यों फिरै भेष फकीरी भरता, शिवजी फिरता चारूं खूंट, नादिया ले असवारी का, इसी या पार्वती कोन्यां ।।3। लखमीचन्द ले मान कहा, दिखादूंगी फन्दे कै बीच फहया, रहा विष की प्याली घूंट, रोग लगै इश्क बीमारी का, तनै तै या बरै पति कोन्या ।।4। अब बान्दी की बात सुनकर बाबा बान्दी को क्या कहता है- जा उस चन्दकिरण तैं कहदे, घूणां ना ठाए तै उठैगा ।।टेक। मैं बाबा सूं सादा भोला, और मैं घणां करूं ना रोला, मेरे धोरै एक गजब का गोला, जो थारे महलां में फूटैगा ।।1। जुणसी तनै चीज लागती हो प्यारी, वा ना सै दिल तै न्याोरी, थारे महलां में केशर क्यारी, उसका बाबाजी रंग लूटैगा ।।2। निशाना ठीक-ठीक ताकरया, ल्हको कै कोन्यां बात राख रहया, थारे महलां मैं आम पाकरया, उसका प्रदेशी रस घूटैंगा ।।3। बात का देणा चाहिए अर्दा, थारे मैं ना सै इतणी श्रद्धा, के पाटै धरती का पर्दा, के अम्बर नीचे नैं टूटैगा ।।4। विपता ले ली मोल सहम मैं, दुनियां कोन्यां रही रहम मैं , लखमीचन्द गावण के बहम में, चौकस मरकै पांडा छूटैगा ।।5। आगे बान्दी और बाबा की नौंक-झौंक होती है- धूणां ठाले हो बाबा जी, म्हारी चन्दकिरण दुख पावै सै ।।टेक। बान्दी :- जै मेरी नहीं बात नै गुणता, पाछै रो कै सिर नै धुणता, सौ बर कहली एक ना सुणता, किसा बीजू की ढाल लखावै सै ।।1। बाबा :- मनै आडै धूणां ला लिया बान्दी, तेरा मतलब पा लिया बान्दी, मनै तेरा के ठा लिया बान्दी, इसी करडी धौंस दिखावै सै ।।2। बान्दी :- आड़ै नहीं सै जो तू सींहले, बाबा भगती का रस पीले, जीणां हो तै कुछ दिन जीले, क्यूं अपणी मौत बुलावै सै ।।3। बाबा :- बता तू कौंण कडे तै आई, तेरे केसी ना उत लुगाई, मनै जितणी पकड़ी नरमाई, तू दूणी सिर चढ़ती आवै सै ।।4। बांदी :- बणी बणाई बात राहण दे, अपणी आच्छीद स्यात राहण दे. दबी दबाई आग राहण दे, जलैगा क्यों सूती आग जगावै सै ।।5। बाबा :- इसा ना कोए डरज्या , तेरे कहे तै उठ डिगरज्याै, तू सिर मार कै बेशक मरज्या,, बाबा के घूणा ठावै सै ।।6। बान्दी :- बाबा जी तनै होश नहीं सै, जीभ तेरी खामोश नहीं सै, इसमैं मेरा दोष नहीं सै, म्हारी चन्दकिरण तनै ताहवै सै ।।7। बाबा :- लखमीचन्द इसे छन्द स्यालदे, इसका सारा पता हाल दे, जा उस चन्दकिरण नैं घाल दे, जो मनैं ताहणा चाहवै सै ।।8। दोनों की नौक-झौंक सुनकर चंदकिरण झांकी के पास आई और उसने अपनी बान्दी को आवाज दी। तब बाबा जी क्या कहने लगा- बोली रै, बोली रै, कौण या इसका उरे नै मुंह करवाइयो ।।टेक। चलता सांस दिखता धड़ मैं, लरज गाड़ी केसी फड़ में, या और कौण दूसरी जड़ मैं , होली रै, होली रै, कौण या इसका उरे नै मुंह करवाइयो ।।1। रंग रूप हुसन में चातर, चलै जाणै इन्द्र सभा की पात्र, अपणे बोलण बतलावण खातर, टोहली रै, टोहली रै, कौण या इसका उरे नै मुंह करवाइयो ।।2। के फायदा सै कमर कसे मैं, तू राजी ना ढूंड बसे मैं, मद जोबन के इश्क नशे मैं, सोली रै, सोली रै, कौण या इसका उरे नै मुंह करवाइयो ।।3। लखमीचन्द कहै छन्द धरकै, आनन्द होगा दर्शन करकै, बतादे या कौण मण्डेरे पर कै, डोली रै, डोली रै, कौण या इसका उरे नै मुंह करवाइयो ।।4। बान्दी जब बाबा को झांकी के सामने आने से रोकती है तो बाबा बान्दी से क्या कहता है- अरै बान्दी हम नै भी सुण लेण दे यू किस का बोल सै ।।टेक। बान्दी :- तेरा धड़ तै सिर तारा जागा, जग तै खोया सारा जागा, बिन आयी में मारा जागा, यू भरया हुआ पिस्तौल सै ।।1। बाबा :- ध्यान बाबा का कारज सारण का, बाबा जी ना प्रण हारण का, बिराणे मानस के मारण का बान्दी किसा मखौल सै ।।2। बान्दी :- बड़ी करड़ी दिल ढेठी सै, बाप कै एक जन्मी जेठी सै, नारायण सिंह राजा की बेटी सै, वा जिनस अनमोल सै ।।3। बाबा :- मैं उसनै देख प्रेम भरलूंगा, इसा ना सूं जो बचना तै फिर लूंगा, बांदी मैं भी दर्शन करलूंगा, जै चंदा सा मुंह गोल सै ।।4। बान्दी :- के तेरा बोया ईख साझै सै , सिर पै मौत खड़ी गाजै सै, तेरे दम पै दांती बाजै सै, उसका सख्तण कन्ट्रोल सै ।।5। बाबा :- लखमीचन्द नहीं पढरया सै, गुरु की दया तै दिल बढ़रया सै, मेरी छाती पै कोल्हू गढ रा सै, पता ना किसकै छोल सै ।।6। चंदकिरण जब बान्दी को बुलाने के लिए झांकी से देखती है तो उसकी नजर बाबा पर पड़ जाती है। चन्दकिरण ने एक नजर बाबा को देख्या तो बहुत सुन्दर था। बाबा की श्यान शक्ल को देख कर चंदकिरण उस पर मोहित हो जाती है। वह अपनी बान्दी से कहने लगी कि इस बाबा जी को फिर उठने के लिए नहीं कहना क्योंकि साधुओं से बैर लगाना ठीक नहीं होता। ये श्राप दे देते हैं, इनका वचन सच्चा होता है। राजकुमारी ने बान्दी से और क्या कहा- करणी ना ठीक लड़ाई हे, कदे कोए साधु सन्त सताया जा ना ।।टेक। शकुन्तला नै करया दुर्बाशा का मोहना, दे दिया श्राप पड़या फिर रोना, सती अनसुईया केसी कोन्यां, होया अवगुण माफ कराया जा ना ।।1। तनैं इस बाबा जी तै के काम पड़ा, इसनै न्यूं मत कहिये होज्या खड़ा, रावण ऋषियों के साथ लड़ा, कदे न्यूंये सारा कुटम्ब खपाया जा ना ।।2। साठ हजार सगड़ के मरे, गर्व करया ना ऋषियों तै डरे, वैं कपिल मुनि नै फूक गिरे, कदे न्यूंये कुणबा भष्म बणया जा ना ।।3। लखमीचन्द शुक्र फायदे में, प्रेम घणां था कृष्ण राधे मैं, लगी सरमिष्टा बेकायदे मैं, लगा कच्छ केसा श्राप हटाया जा ना ।।4। और बान्दी को ऊपर बुला कर चंदकिरण क्या कहती है- हे मैं मरगी, इस बाबा जी नै ज्यान काढली मेरी ।।टेक। मेरा तै सांटा भी ना संटता, आधपा खून रोज का घटता, हे ना डटता यू जोबन बेईमान, दखे मनैं आवण लगी अन्धेरी ।।1। इसकी श्यान जिगर मे रमकै, यो किसी बात करै थम-थम कै, हे इसकी चमकै, चन्द्रमा सी श्यान, जाणू कोए पड़या बिड़े में केहरी ।।2। यो बाबा सै ऐस अमीरी भोगया, होरया सै ब्याह करवावण जोगा, हे कद होगा मेरी शादी का पकवान, घर-घर उठी फिरैं चंगेरी ।।3। लखमीचन्द मरी मैं धिंगताणा, मर्ज नै तै मरिजे इश्क पछाणैं, के जाणैं वो त्रिलोकी भगवान, दखे मैं ना झूठा ओड़ा ले रही ।।4। चंदकिरण बान्दी से कहती है की किसी तरह इस बाबा जी से मेरी मुलाकात करा दो और ये बात किसी को बताना मत तो बान्दी कहती है कि वो किसी को कुछ नहीं बताएगी। और चंदकिरण से क्या कहती है- मैं क्यूँ भांजी मारूं थारे बन्धे प्रेम के पाले में, थारे आपस के मा चलैं इसारे, ना भूंडी बणू बिचाले में ।।टेक। और सहारा ना साथ इसा सै, कदे ना देख्या नाथ इसा सै, बाबा जी का गात इसा सै जांणू गोभ फूट रही डाहले में ।।1। इसी मत बठै भारी हो कै, घर कुणबे तै न्यारी हो कै, चन्दकिरण तू कवारी हो कै पैर धरै मत चाले मैं ।।2। देखती नहीं इज्जत का ढंग, लागगी करण इश्क का जंग, के फायदा इस बाबा के संग, छोहरी जिन्दी गाले मैं ।।3। लखमीचन्द कर्म कित सोग्या, बाबा तनै दीन दुनी तै खोग्या, तेरा लिकड़णा मुश्किल होग्या, तू मकड़ी फंसगी जाले में ।।4। चंदकिरण बान्दी के हाथ संदेशा भेजती है और बाबा को रात में अपने कमरे में बुलाती है। रात में जब बाबा मदनसैन चंदकिरण के कमरे में जाता है तो वह सो रही होती है। तो वह किस तरह से आवाज़ लगता है- सोवै सै के डाण अटारी मैं, मेरा दम लिकड़ण नै होरा रै, गए घर की तूं बैठी हो लिए ।।टेक। लागरी मुझ पापी की कजा, तूं सोवती पाई मनै आई लजा, यो मजा मिल्याी तेरी यारी मैं, तेरे कारण जिन्दगी खोरया रै, गए घर की एक बर बोलिये ।।1। कदे मनैं लोग कहैं थे भूप, आज बणग्या पक्का बेकूफ, रूप जाणैं पड़ रहा तेल अंगारी मैं , किसा चन्दन केसा पोरा रै, गए घर की तनै हम मोह लिए ।।2। इब मनै कहैं सैं लोग अनाड़ी, तनैं मेरी बणी हुई बात बिगाड़ी, तेरी फूलवाड़ी की क्यारी मैं, यो आणा चाहवै भौरा रै, गए घर की बैठ खश्बो लिए ।।3। करै थी घोड़ी जितणा दंगा, जाणूं, नशे बाज पी रहा हो भंगा, श्री गंगा महतारी मैं, वो लखमीचन्द ब्राह्मण बोरया रै, गए घर की धर्म के जौ लिए ।।4। जब राजकुमारी की आंख खुली तो अपने पास बाबा को देखती है। उस समय का कवि ने कैसे वर्णन किया है- बाबाजी की श्यान देख कै शीलक होगी धड़ मैं, चन्दकिरण नै हाथ पकड़ कै बिठा लिया जड़ मैं ।।टेक। चा मैं भरी भराई डोलै, सारा भेद बात का खोलै, प्रेम करै और मीठी बोलै ज्यूं कोयल कूकै बड़ मैं ।।1। भर्म बातां के फूट लिए, जोबन का रंग लूट लिये बाबा जी रस घूंट लिये, भरा केले केसी घड़ मैं ।।2। बाबाजी तेरी टहल बजाऊं, सच्चे दिल से प्रेम बढाऊं, मैं मोरणी बण के आंसू ठाऊं, तू मोर नाचिए झड़ मैं ।।3। लखमीचन्द तन में शीलक पड़ी, तेरी सेवा में नार खड़ी, शुभ दिन और शुभ घड़ी, मोती पिरोया गया लड़ मैं ।।4। इतने में राजा के सिपाही आ जाते हैं और वो बाबा को पकड़ लेते हैं। मदनसैन को राजा के सामने पेश किया जाता है तो वो उसे फांसी का हुक्म सुना देते हैं। अब मदनसैन चन्द्रकिरण को कहता है- बिराणे माणस मरवावण का किसनै लाड बताया था ।।टेक। पांडों लोग बणां मैं फिरगे, कई बै होगी मरगे-मरगे, फिर भी राज जोर का करगे, जिसा कुछ जूए मैं जिताया था ।।1। एक दिन छत्रियां नै धार ली खोटी, काट गरी भ्रगु वंश की बोटी-2, आंच ना गई उस्बग की ओटी, खजाना भरया रिताया था ।।2। ना कर्मां की रेख टली, राजा बणा स्वर्ग तक पिली, नहुष नै अजगर की देह मिली, अगस्त्य मुनी घणा सताया था ।।3। लखमीचन्द दो दिन के दर्शन मेले, फिर उड़ज्यां हंस अकेले, हम सैं उन ऋषियां के चेले, भृगु नै विष्णु लताया था ।।4। इधर रानी नागदे को ये सपना आता है कि उसका पति किसी मुसीबत में है तो वह भागमा बाणा बना कर कुन्दनपुर के लिए चल पड़ती है। वह पहुँच कर जन रानी नागदे को साडी खानी पता चलती है तो वह अपने मन-मन में क्या सोचती है, और चन्दकिरण को कोसती हुई कहती है- मरवा कै पति बिराणा, तेरा जाईयो सत्यानाश, रांड गई पड़ कमरे में सो।।टेक। रंग चौड़े के मैं लुटरया, यो बेरा सारे कै पटरया, मेरा छुटरया पीणा खाणा, जली भूख लागती ना प्यास, बता कित मरज्या नाक डबो।।1। मैं बहुत घणी दुख पाई, काया रंज फिकर नैं खाई, मैं आई सूं देण उल्हाणा, आड़ै करकै जगांह तलाश, तनै मेरा राख्या पति लकोह।।2। मैं मद जोबन में भरी, मेरा के जीवै मैं तै मररी सूं , कररी सूं भगमां बाणा, आड़ै काग करैंगे बास, महल नै ठाडा भरदूं रो।।3। पड़ग्या चेहरे का रंग फीका, मैं सारा गई भूल सलीखा, सीख्या गुरूवां तै गाणा, रह कै चरण की दास, घणा मेरा लखमीचन्द में मोह।।4। रानी नागदे नगरी के रास्तो पर बीन बजाती हुयी घुमती है- मेरी बाजै बीन गलियारे में ।।टेक। दुख का नाग मेरै लड़रा सै, तन का नूर कती झड़रा सै , आज दुख पड़रया सै पति म्हारे मैं ।।1। मेरा पति दुख पाया होगा, भोजन तक ना खाया होगा, चौकस आया होगा शौक के चौबारे में ।।2। अपणे पति की बन्ध छुटवालूं, तन का दुख दर्द बटवालूं। मैं छुटवालूं पति एक इशारे में ।।3। लखमीचन्द सही सै ध्यान, जै राजी हुया सै मेरा भगवा मेरी हाजिर सै ज्यान पति के बारे मैं ।।4। रानी नागदे की बीन को सुनकर सारा शहर मोहित हो जाता है और उसकी बीन के लहरे का चर्चा पुरे शहर में फ़ैल जाता हैं। राजा नारायण सिंह ने भी सुना की शहर में को सपेला आया हुआ है जो बहुत बीन बजता है। तो राजा सपेले को अपने दरबार में बुला लेता है और बीन बजने के लिए कहता है। तो सपेला राजा से कहता है की आप अपनी पूरी प्रजा को बुला लीजिये। साथ ही जो कैदी जेल में बाद हैं उनको भी बुला लीजिये। में सबके सामने बीन बजाऊंगा। और सपेला राजा को क्या कहता है- भूप तेरे दरबार बुलाले, जो राजा कैद में पड़े रै, मुलजिम दुखी और सुखी ।।टेक। करूंगा जब भैरो राग सुहाग, बन्द होज्या, उड़ते पक्षी काग, मेघ राग का भी करूंगा विचार, दिखै दिन मैं तारे लिकड़े रै, गेल्यां रात सी झुकी ।।1। चलैं जब दीपक राग के तेग, रहै ना छोटे बड़े का नेग, गाऊंगा सारंग मेघ मल्हार, होज्यांट बीछू सांप खड़े रै, नागिन झोली मैं रूकी ।।2। ब्रह्मा, रुद्र लक्ष्मी झप ताल, गुजरी, टोडी और जयमाल, शालवन्ट की गैल दो चार, सुण करूं दूर झगड़े रै, बात कोए रहै ना ल्हुसकी ।।3। लखमीचन्द भाग बड़े बन्दां का, गात मेरा रन्दया हुया रन्दया का, इन साजन्दां का भी ताबेदार, गाणा शूलां जिसे छड़े रै, या काया पड़ी है फुकी ।।4। रानी नागदे की बीन को सुनकर राजा बहुत खुश हुआ। और राजा सपेले को क्या कहता है- इसी बजाई बीन सपेले तनै मन मोह लिया मेरा, लेणां हो जो ईनाम मांगले जी चाहवै सो तेरा ।। टेक। छन्द लावणी भजन चौपाई, तनै प्रेम मै भर खूब सुणाई, बीन में गजल कवाली गाई, तनै सै गावण का बेरा ।।1। कित आया कित की त्यारी, मीठी बोल लागती प्यारी, राजी होगी महफिल सारी, सबका खिलरा चेहरा ।।2। मैं तेरे दर्शन पाया करूंगा, अपणा मन बहलाया करूंगा, मैं तनैं रोज बुलाया करूंगा, कितसिक सै थारा डेरा ।।3। लखमीचन्द कर माफ खता दे, अपणा सारा खोल मता दे, आगे का मनै दिन बतादे, किस दिन लागै फेरा ।।4। राजा नारायण सिंह बीन सुनकर इतना खुश हुआ कि कहने लगा जो चाहो सो ईनाम मांग लो वही मिलेगा। अब रानी नागदे ने सोचा कि ऐसा अवसर नहीं चूकना चाहिए। वह क्या कहने लगी- ईनाम देण की खातिर राजा करड़ी छाती करले, पाछै मांगू ईनाम पहलम तीन वचन भरले ।।टेक। देख कै प्रेम मेरै जागै सै, मन मेरा पक्षी बण भागै सै, मनै एक बात का डर लागै सै, कदे तू वचना तै फिरले ।।1। अपना पूरा प्रण निभाइए, मतना तिरछी नजर लखाइए, राज पाट मनैं कुछ ना चाहिए, ना माल खजाना जर ले ।।2। तबियत रस मैं भेणी होगी, लगी गात मैं खेणी होगी, जुणसी चीज तनै देणी होगी, उसमैं ये चित धरले ।।3। लखमीचन्द प्रेम पाल्याद जा, फेर बचना तै ना हाल्या जा, ले कै ईनाम आड़े तै चाल्या जा, फेर देख आपना घर ले ।।4। राजा नारायण सिंह को पूरी तरह वचनों में बांध कर और पूरी तरह आश्वस्त हो कर रानी राजा नारायण सिंह से क्या मांगती है- इस बाबा जी के साथ बिठा दे चन्दकिरण नै डोले में ।।टेक। अपना पूरा वचन निभाले, ध्यान तू मेरी बात में लाले, राजा हो कै बाबा खाले, घी खांड भरी सै गोले मैं ।।1। मनै वचन भराए करी हुश्यारी, कदे तू चाल, चाल दे न्यारी, चन्दकिरण तेरी बेटी कवारी, आज रंग छटज्याक चूनी चोले में ।।2। तू सच्चा अच्छा भूप इसा, रंग देरी जाणै धूप किसा, चन्दकिरण का रूप इसा, जाणूं तसवीर कढा दी कोले में ।।3। लखमीचन्द बदल मत ढंग, जीत ले धर्म कर्म का जंग फेर चन्दकिरण चलै सज कै संग, होज्याध जोर लठोले में ।।4। सपेले की बात सुनकर राजा नारायण सिंह क्या कहता है- तीन वचन मनैं भर राखे सैं नहीं करूंगा इनकार, इस बाबा जी के साथ में करो चन्दकिरण नै त्यार ।।टेक। नारायण :- राजा नहीं बचनां तै उकैगा, बोल मेरी छाती में दुखैगा, जन्म कर्म में के थूकैगा, मेरा सकल परिवार ।।1। सपेला :- मै सब भेद बतादूं ताजी, मैं सूं दुख दरदां की साझी, यू मदनसैन राजा बाबा जी, मैं सू इसकी नार ।।2। नारायण :- ठीक ठीक जै बताई गई तै, सौ सौ कोस बुराई गई तै, राजा के संग ब्याही गई तै फेर नहीं तकरार ।।3। सपेला :- लखमीचन्द कहै तेज तावला, करणा चाहिए हेज तावला, चन्द किरण नै भेज तावला, मतना करिये वार ।।4। राजा नारायण सिंह चंदकिरण का डोला उस साधु यानि मदनसैन को दे देता है। राजा मदनसैन रानी नागदे के साथ में चंदकिरण को ले कर चल पड़ता है और जैसे ही डोला कंचनपुर की सीमा से बहार निकलता है चंदकिरण राजा मदनसैन से रानी नागदे का त्याग करने के लिए कहती है। अब राजा मदनसैन क्या कहने लगा है- अनर्थ करवावै सै रै क्यूं अक बिगड़गी तेरी, खुद दुख पाई जब तूं ब्या ही कैद छुटाई मेरी ।।टेक। तू सै भरी भराई विष की, प्रीती तोड़ै सै आपस की, जै मैं नाड़ काटलूं इसकी तै धर्म की डूबा ढेरी ।।1। मतना ज्यान फंसावै घारे में, मोटा जुल्म शीश तारे में, म्हारे तेरे बारे में या बहुत घणा दुख खेरी ।।2। तू मन में ले धार समाई, इसमैये सै तेरी भलाई, या खुद मेरे फेरयां की ब्याुही रहै चरण की चेरी ।।3। लखमीचन्द कर्म की हानी, तूं मन में रही सोच नादानी, मेरे पै मत करवावै राणी दिन तै रात अन्धेररी ।।4। <अब तो चंदकिरण जिद्द करती हुयी राजा मदनसैन से क्या कहती है- आगै डोला जब चालैगा पहलम सुण मेरी बात जले, इस राणी का शीश काट दे जब चालूं तेरी साथ जले ।।टेक। इसनै तू काढ पकड़ कै चोटी, इसकी तूं काट बणादे बोटी, शौक दूसरी घर में खोटी, सेधगी दिन रात जले ।।1। भरणी पड़ैगी रोज तवाई, बता मैं कद लुग करूंगी समाई, या कहैगी तनै ब्याह कै ल्याई, रोज हिलावै हाथ जले ।।2। दिल पै पत्थर धरणा होगा, जिकर तलक भी ना करणा होगा, कदे बिन आई मैं मरणा होगा, रोज फुकैगा गात जले ।।3। लखमीचन्द ठीक बताया सांगी, मैं इसी ना सूं भूखी नांगी, उल्टी घर नै चाली जांगी, के बिगड़ै मेरी जात जले ।।4। राजा मदनसैन ने चन्दकिरण को बहुत समझाया, परन्तु उसकी समझ में कुछ नहीं आई और राणी क्या कहने लगी- एक मर्द संग दो बीरां की मुश्किल यारी लागै, दोनूआं मैं तैं एक राखले जुणसी प्यारी लागै ।।टेक। राजा :- के चाले की बात बणी सै, हम दो ठहरे या एक जणी सै, या बोल की मीठी बहुत घणी सै, क्यूं तनै खारी लागै ।।1। चन्दकिरण :- रहण नै मनैं नहीं घर देगी, धड तै दूर शीश धर देगी, मेरी रेह-रेह माटी कर देगी, जो तनै बिचारी लागै ।।2। राजा :- मत करै किसे बात का धड़का, यो केला सै मीठी घड़ का, तनै दीखै सै पेड्ड़ा बड़ का, मनैं केशर क्यारी लागै ।।3। चन्दकिरण :- जै मेरा तेरे में रूख होज्याबगा, दूर मेरा सब दुख होज्या गा, जिन्दगी भर का सुख होज्या गा, फेर बसण की बारी लागै ।।4। राजा :- मुश्किल हुई झाल डाटूं तै, तू ना ठहरै जै मैं नाटूं तै, आज ब्याही का सिर काटूं तै, या कार जगत में न्यारी लागै ।।5। चन्दकिरण :- मेरे पै अहसान करै नै, एक खेत में खुद चरै नैं, जिसी जाणै सै आप करै नै जुणसी बात व्यवहारी लागै ।।6। राजा :- लखमीचन्द कर्म सै खोटा, जै काटूं शीश जुल्म सै मोटा, तेरे बारे मैं दुख ओटया, इब किस ढाल कटारी लागै ।।7। राजा मदनसैन ने चन्दकिरण से बहुत कुछ कहा पर वह नहीं मानी । राणी चन्दकिरण कहने लगी कि यह मेरी आखिरी बात है । इसके बाद मैं ज्यादा नहीं कहूंगी जैसे तुम्हारी मर्जी हो वैसे करना । मैं तो अब भी वापिस अपने घर जा सकती हूं अब चन्दकिरण राजा से क्या कहती है- ले चालै तै साथ मैं, फेर कहूं एक बार काटदे शीश राणी का ।।टेक। तनैं या लगती होगी प्यारी, पक्की बैरण होली म्हारी, ले कै कटारी हाथ मैं, टुकड़े करदे दो चार, करकै ख्याल बाणी का ।।1। मेरा दुर्बल होग्याा बाणा, न्यूं छुटज्यागा पीणा खाणा, मनै देगी उल्हाणा एक स्यात मैं, ना जीवण दे भरतार, उड़ै घर सै गिरकाणी का ।।2। बाजी हो सै तकदीरां की, सेधै मार बोल तीरां की, बीरां की पंचायत में मेरी लेगी आबरो तार, रहै ढंग खींचा ताणी का ।।3। लखमीचन्द रहणा हो दुख झेल, म्हारा इसका कदे मिलै ना मेल, सेल लगैंगे गात मैं, मुश्किल पड़णी पार, मनै डर कौडी खाणी का ।।4।

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