किस्सा अजीत सिंह-राजबाला : फौजी मेहर सिंह (हरियाणवी कविता)

Kissa Ajeet Singh-Rajbala : Fauji Mehar Singh (Haryanvi Poetry)


एक समय की बात है की अमरकोट में राजा अनार सिंह राज किया करते थे। उनकी रानी का नाम विजयवंती था और इनके लडके का नाम अजीत सिंह था। सभी खुशहाल थे। बेसलपुर के राजा ने अपनी लड़की राजबाला की सगाई अजीत सिंह से कर दी थी। राजा अनार सिंह अपने पड़ोसी धारा नगरी के राजा राम सिंह पर उसका खजाना लूटने के लिए आक्रमण कर देता है और मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। रानी विजयवंती अजीत सिंह को ले कर राज्य छोड़ कर भाग जाती है। एक शहर में जाकर एक लाला के यहाँ नौकरी करने लगती है और अपना व अपने बेटे का पेट पालने लगती है। कुछ समय के बाद रानी भी बीमार होकर स्वर्ग सिधार जाती है। लड़का अजीत सिंह क्या सोचता है-

जब ठाडा घड़ा पाप का भरग्या, मनै टुक टेर जगत का करग्या सिर तवाई पिता छोड़ डिगरग्या, आज मां भी मरगी।टेक सिर पै आण पड़ी करड़ाई, के थूकैंगे लोग लुगाई भाई आज तबीयत खाटी होगी, तन में घणी उचाटी होगी आगै रे रे माटी होगी न्यूं पक्की जरगी। राम नै बुरी करी मेरे साथ, सूकग्या रंज फिकर में गात मात मरी जब चाला होग्या, पुंजी राख दिवाला होग्या दुखिया का मुंह काला होग्या रो रो छाती भरगी। दुश्मन कै घलग्या घीसा, खटका मिटग्या आग्या जीसा पीसा पीसा लावै थी कमा कै, उन मैं तै कुछ दाम बचा कै जननी मां मनै पढ़ा लिखा कै इस काबिल करगी। मेरा हो लिया बोलता तंग, ईब ना रहा बसण का ढंग मेहर सिंह उम्र का थोड़ा, खाणे का भी होग्या तोड़ा, करड़ाई नै लिया मरोड़ा, न्यूं तबीयत डरगी। अजीत सिंह लाला ले पास ही रहता है। लाला जी अजीत सिंह को अपने पास नौकरी पर रख लेता है। समय बीतता जाता है। एक दिन अजीत सिंह कुछ देरी से आता है तो लाला जी अजीत सिंह को भला बुरा कहने लगता है। अजीत सिंह गुस्सा होकर अपनी तलवार निकाल लेता है, तो लाला जी क्या कहता है- धुर दिन तैं मनैं जाणूं सूं इसा छत्रधारी ना सै। रजपूती कै बोझ मरै तेरी इज्जत भारी ना सै।टेक पहलम तो तेरी गलती या तूं आज देर तै आया दो पिसे का मजदूर फिरै तनैं क्यांह का घमण्ड दिखाया अपणी आपै करै बड़ाई तू कायर बण्या बणाया छत्रापन के जरिये तै तनैं क्यूं ना ब्याह करवाया कह द्यूंगा तो रोवैगा के तेरी मांग कुंवारी ना सै। इसे नौकर की लौड़ नहीं ईब किसपै स्यान धरै सै अपणा किणा देख आज तेरा मुश्कल पेट भरै सै झूठी शेखी मारै मत तेरे तै कोण डरै सै छतरापण का काम तेरे तै सौ सौ कोस परै सै माणस नै दे मार इसी तेरी तेज कटारी ना सै। सत पुरुषों का दुनियां म्हं ईश्वर बेड़ा पार करै सै बेइमान बेइमानी तै बेअकली जाहर करै सै मक्कारी नैं चलै तेरी के मक्कार करै सै बे मतलब और बिना काम की क्यों तकरार करै सै बेइमान लुच्चे-गुण्ड्यां की या दुनियां सारी ना सै। घूम जमाना देख लिया मिल्या कोए नहीं मरहम का प्यारा बख्त पड़ै जब धोखा देज्यां करज्यां यार किनारा मेरा गाणे नै नाश करया हुअया कुणबा दुश्मन सारा मैं के फौज कै लायक था इन रागनियां नै मारया कहै मेहर सिंह गाणे तै बत्ती मेरै और बिमारी ना सै। लाला जी की बात सुनकर अजीत सिंह अपने ससुर को चिठ्ठी लिखता है और चिठ्ठी में क्या लिखता है- कह दिये क्यूं भूल गया मेरी सगाई कर कै। राजबाला नै ब्याह देगा अपणी मान बड़ाई कर कै।टेक धूम जमाना देख लिया इस में कुण किस का सै बखत पड़े पै धोरा धरज्यां जो कुणबा जिस का सै मित्र मेली गोती नाती यो मतलब आपस का सै प्रताप सिंह से कह दिये के टोटा किस के बस का सै इस ब्याह का खर्चा चला ल्यूं अपणी नेक कमाई कर कै। समय करै नर के कर ले समय आवणी जाणी किस समय मैं राजा थे पर डोब गई बेईमानी ईसा खजाना लुट्या पिता नै खो दिन्ही जिन्दगानी पिछली बात याद करकै आख्यां मैं आग्या पाणी झूपड़ी मैं बैठ गया अजीत समाई कर कै। तनै रजपुतां की मुंछ काटली के महाराणा बण रह्या सै दुनियां मैं तेरी बांस उठली क्यूं स्याणा बण रह्या सै बेशलपुर नै मरण की खातिर खुद जाणा बण रह्या सै किस कै आगै रोऊं जाकै धिंगताणा बण रह्या सै बेईमान रोवैगा पाछै लोग हंसाई कर कै। कदे कदे हम भी राजा थे राज हमारा तपग्या, धर्म की माला छोड़ पिता जी उल्टी माला जपग्या, इसा खजाना लुटया पिता नै सहम चाँद सा छिपग्या, जाट मेहर सिंह न्यू रोऊं म्हारा सारा कुणबा खपग्या, तेरे खानदान कै बट्टा ना लागै म्हारे अस्नाई करकै। अजीत सिंह का ससुर अजीत सिंह के सारे हालात जनता था। वह अजीत सिंह से शादी में बखेर के लिए बीस हजार रूपये लाने की कहता है। जब इस बात का पता राजबाला को लगता है तो वह अजीत सिंह के पास एक हलकारा भेजती है और हलकारे से क्या कहती है- घबरावण का काम नहीं न्यूं कह दिये बिचारे नै मैं भी उस की गैल मरूंगी समझा दिये प्यारे नै।टेक बिना बुझे गल घोटै सै पता ना मनै किस के संग जोटै सै ईब टोटे मैं कुण ओटै सै अजीत सिंह कुंवारे नै। बीस हजार रुपये मांगे बाप मेरे हत्यारै नै। मैं चौगरदे तै बिंधगी देख ल्यो सब तरियां तै रंधगी इस जिन्दगी मैं कद देखूंगी ससुर के द्वारे नै अपणे हाथां कद पूंजूंगी कुटम्ब कबीले सारे नै। मैं ना जाऊं प्रीत तोड़ कै कोन्या लाऊं दाग खोड़ कै हाथ जोड़कै दिये नमस्ते बहाण मेरी दुखियारे नै। प्रेम का दिया भेज संदेशा बतलावण के मारे नै। बाप मेरा दिखा रहया नामर्दी या किसी नीव नाश की धर दी दो धेले की इज्जत कर दी रागनियां के बारे नै मेहर सिंह ना मिल्या को हमदर्दी जो समझै मर्ज हमारे नै। हलकारा अजीत सिंह को सारी बात बताता है। अजीत सिंह को याद आता है की उसके पिता अनार सिंह का एक मित्र जैसलमेर मे रहता है तो वह उसके पास चल पड़ता है- मेरे बाबुल का साहुकार मनै सुण राख्या था जैसलमेर मैं। डाट्या डटता कोन्या हिया अमृत तज कै विष पिया दुखिया राजकुमार गया था पहुंच सेठ के घेर मैं। आज फन्दे बीच फह्या सेठ जी करले मेरी दया भर दम रह्या घणी वार लाला जी बोल्या देर मैं सेठ जी जिसका कुणबा मरज्या हो मेरे केसा दर्जा कर्जा दे दे बीस हजार मेरे ब्याह मैं रुपये चाहियेगे बखेर मैं। हो लिया घणा तंग, ना रहया जिवण का ढ़ंग, मेहर सिंह फरै ख्वार जिंदगी की उलझेर मै। अजीत सिंह सेठ जी को जाकर सारी बात और अपने ससुर के द्वारा भेजी गई चिठ्ठी के बारे में बताता है- बिगड़ी नीत मेरे सुसरे की खोटे धार लिये विचार। इसी कसूती चिटठी लिखकै मेरी लई आबरो तार।। चिटठी के म्हां रामरमी ना ना बुझया सुख दुख का हाल, घाटे बाधे की बूझी ना ना बुझी बिगड़ी की चाल, बुढे मलंग नै शरम ना आई करे दिये गजब कमाल, न्यू लिख दी म्हारी ओड़ तै सै इस ब्याह की टाल, जै मोड़ बांधकै आणा चाहवै संग लाइये बीस हजार।। और किसी का दोस नहीं म्हारे पै मलिक सै नाराज, राम सिंह पै करके चढ़ाई बाप ने खोया राज, जान खपाई पर धन पै खुद का खोया तख्तो ताज, मेरे पिता के लालच कारण फिर टके का मोहताज, धन के बिन सूनी लागे ब्याह शादी तीज त्यौहार।। गोली का घाव भरज्या सै पर नहीं बोल का भरता, खोटा बोल नासुर बणै बंदा तिल तिल करकै मरता, खोटे बोला के कारण मैं होया ख्वार फिरता, और क्या का गम कोन्या पर एक बात तै डरता, जै रहगी मेरी मांग कुंवारी के थूकैगा संसार।। भीड़ पड़ी मै काम आवै गोती नाती मित्र प्यारे, मेरे पिता संग थारी यारी के सुण राखे किस्से सारे, बाप बरोबर जान शीश धरूं चरणां मै थारे, ताऊ जी इस मौके पर दिए बीस हजार उधारे, कह जाट मेहर सिंह डरिये मतना रहूं रकम का जिम्मेवार।। अजीत सिंह की बात सुनकर उसके पिता का मित्र सेठ उसे कहता है- बीस तीस का जिकरा कोन्या चाहे ले जा साठ हजार। पर अपणी बात पर कायम रहिए ना तोड़िए व्यवहार ।। तू मेरे यार का लड़का तने खूब पछाणू, एक के सवाये दो के ढाये करें इतनी भी जाणू, अपने मन में पक्की ठाणू तू कोन्या पूंजीमार।। पहलम छोरे नाह धोले फेर प्रेम तै भोजन खा, या ले थैली रूपये की यो सै बेसलपुर का राह, हंसी खुशी ते ब्याह के ल्या अपने फेरयां की गुणगार ।। इस कर्जे के बदले मेरी ले एक बात ठाण, इतना कर्जा ना उतरै इतनै रहगी ब्याही धरम की बहाण, धर्म का कांटा जाण रखिए बीच में कटार।। जाट मेहर सिंह राखिये बस इतना ए ख्याल, तेरी मेरी इन बातां की कितै मत पाड़िये फाल, जै हो छतरी का लाल ना जाईये प्रण हार।। सेठ उसे इस शर्त पर बीस हज़ार रुपये दे देता है कि जब तक अजीत सिंह सेठ का कर्ज चुकता नहीं करेगा तब तक अजीत सिंह और उसकी पत्नी के संबंध बहन-भाई जैसे होंगे। अजीत सिंह ये शर्त मान लेता है और पैसे ले कर वापिस चल पड़ता है- बीस हजार घला झोली मैं उल्टा चला बेचारा जो लाला तै काम कह्या था वो पूरा होग्या सारा।टेक पैसा होतै पैसे के संग मै बनड़ी ब्याह ली हो सै पैसे वाले की दुनिया में शान निराली हो सै पैसा होता यार बथेरे बिन पैसे खाली हो सै बिन पैसे ना लिहाज जगत में नीच कंगाली हो सै आज वक्त पड़े पर काम दे गया बाबुल का साहूकारा घोर अन्धेरा घर में दीखै कद रोशनाई होगी चेतन जीव ज्ञान की ज्यौती घली घलाई होगी म्हारे टोटे की दुनियां नै बात चलाई होगी म्हारे मित्र फेर मिलै कद मिला मिलाई होगी न्यू सोचूं सूं अमर कोट मैं कद ढूंढ़ बसैगा म्हारा। देशां का बेईमान पता ना ईब के नुकता छांटैगा टुकड़े का मोहताज फिरुं क्यूंकर कर्जा पाटैगा होणी थी सो होली ईब के घिटी नै काटैगा न्यू सोचूं सूं अपणे मन मैं ईब के कहकै नाटैगा बीस हजार रुपया द्यूं कदे फिर भी रहूं कंवारा। एक समय का जिक्र करुं सूं राज हमारा तपग्या धर्म की नीति छोड़ पिता जी उल्टी माला जपग्या गया खजाना लुटण खातर बाप चांद सा छिपग्या आज खड्या ऐकला रोऊं सूं म्हारा सारा कुणबा खपग्या जाट मेहर सिंह कुते नै मार जो रोया था बणजारा। चलते-चलते अजीत सिंह अपने मन में क्या सोचता है- लाणा बाणा था, न्हाणा खाणा था याणा स्याणा था मरग्या बाप लड़ाई मैं।टेक आज हम बणे शेर तै शाल ये होणी नै करे कमाल सुणा द्यूं दुखिया मां का हाल दुखियारी भारी थी, बिचारी न्यारी थी, महतारी म्हारी थी लागी जोर पढ़ाई मैं। एक जगह पै जमता ना ध्यान उस का कित होगा कल्यान तेरा दिल सै बेइमान मनै अल दलग्या, फेर रलफलग्या, जलबलग्या मैं जैसे तेल कढ़ाई मैं। बाज लिया सारे कै ढ़ोल दुनियां करती फिरै मखौल प्यारी मतना आगै बोल गुमसुम जांगे, दमथम जांगे, हम तम जांगे उस सुली गड़ी गडाई मैं। क्यूंकर काम जाट चलज्या जब या घाल बिघन की घलज्या लखमीचन्द कह था सांग मैं रलज्या मेहर सिंह बेसक चरणबन्द था, यो सांग गंद फंद था, पर पसन्द छन्द था, जिस की करुं बड़ाई मैं। अजीत सिंह बीस हज़ार रुपये ले जाकर राजबाला के पिता को दे देता है और राजबाला से शादी करके अपने घर के लिए चल पड़ता है और रस्ते में राजबाला से कहता है- घणा सूं लाचार, हो रहया सूं ख्वार, मेरै घर नहीं बार बाला, ठोड़ ना ठीकाणा।। अमरकोट मै राज था म्हारा ना क्याहें का तोड़ा था, पिताअनार माँ विजयवंती का हंसा कैसा जोड़ा था, नौकर चाकर मोटर लारी अर्थ पालकी घोड़ा था, हंसी खुशी तै रहा करें थे मैं उम्र का थोड़ा था, ब्होत थे खुशहाल, ना लगी थी दुख की झाल, ना होती होणी की टाल, न्यू होगा धिंगताणा।। पिता जी की अक्ल बिगड़ी किसे की ना करी सुणाई, धारा नगर के ऊपर पिता जी नै करी चढाई, राम सिंह राजा के हाथां उन्हैं थी मुह की खाई, पिता जी की ज्यान खपगी म्हारी चढगी करडाई, छोड़ भागे अमरकोट नै, मारे बख्त की चोट नै, मेरे पिता के खोट नै, कर दिया धक्के खाणा।। दुश्मन तै बचाकै माँ एक लाला के पास लाई, कुछ दिन पाछै छोड़ एकला होली वा सुरग की राही, लाला जी कै करकै नौकरी दो बख्तां की रोटी खाई, कहा सुणी होगी लाला तै मनै पेटी रफल तार बगाई, लाला नै बोली मारी, कितका बणरया छत्ररधारी, तेरी हांड़ै मांग कंवारी, तू ब्याह कै दिखाणा।। तेरे पिता तै भेज्या परवाना उसनै लई खोटी धार, ब्याह करवावण के बदले मांग लिये बीस हजार, जैसलमेर मै सुण राख्या था मेरे पिता का साहूकार, हाथ पैर जोड़ कै उसपै ल्याया कर्ज उधार, सब तरियां होग्या तंग, ना जीवण का ढंग, कहरया मेहर सिंह, बीता बख्त ना थ्याणा।। रात को सोते समय सेठ की शर्त के अनुसार अजीत सिंह आपकी नग्न तलवार अपनी सेज पर राजबाला और स्वयं के बीच में रख लेता है तो राजबाला पूछती है- न्यू बूझूं मनै साच बतादे माड़ी किस्मत म्हारी क्यों सै। इसका भेद मनै ना पाया बीच में कटारी क्यों सै।। ये है ब्रह्म ज्ञान की ज्योति, जिस जलवे को दुनिया टोहती, न्यूए प्रजा उत्पन्न होती तो एक मरद एक नारी क्यों सै। शादीशुदा होये पाच्छै या म्हारी गैल लाचारी क्यों सै।। धरकै ध्यान ज्ञान गुणियां मै, सत्संग करो ऋषि मुनियां मै, औरां के मन तै चलो दुनियां मै, माड़ी बुद्धि थारी क्यों सै। ज्यादा खोट मरद मै होते फेर भी पल्ला भारी क्यों सै।। इस मोह माया के फंदे मै, इतना प्रेम मनुष जिंदे मै, इस विषय वासना के धंधे मै, शामिल दुनिया सारी क्यों सै। था इतना फर्क मेरे तै करणा फेर बण रह्या घरबारी क्यों सै।। रागणियां तै ग़ल मै घलते, झूठे यार भतेरे मिलते, धरम छोड़ अधरम पै चलते, सबतै बुरी बिमारी क्यों सै। जाट मेहर सिंह इस दुनिया मै सब मतलब की यारी क्यों सै।। अजीत सिंह राजबाला को सारी बातें बता देता है की मैंने शादी के लिए तुम्हारे पिता को बीस हज़ार रुपये अपने पिता के एक मित्र सेठ से ला कर दिये हैं। और उसकी ये शर्त है की जब तक कर्जा नहीं उतरता है हमारे तुम्हारे संबंध भाई-बहन जैसे होंगे। इस बात को सुनकर राजबाला अपने पति से आश्वासन देती है की वो हर हाल में उसका साथ निभाएगी। कुछ दिन बाद जब अजीत सिंह राजा की सेना में जा कर भर्ती होने के लिए कहता है तो राजबाला भी साथ में भारती होने की जिद्द करती है। वो मर्दाना भेष बना लेती है और दोनों जा कर सेना में भर्ती हो जाते है। एक दिन दोनों साथ में रानी के महल के बाहर पहरा दे रहे थे। सावन का महीना था। ठंडी-ठंडी फुहार पड़ रही थी। ऐसे मौसम में राजबाला कामदेव के वशीभूत हो कर अपने पति अजीत सिंह से क्या कहती है- बादल गरजै, बिजल पाटै, तृष्णा बैरण चित नै चाटै पिया तूं न्यारा मैं न्यारी, खड़ी रात नै पहरे पै सब सोवैं नरनारी।टेक राजबाला खड़ी पहरै पै, राणी आराम करै मेरा जी जीवतां मरै, सांस किसे सबर के भरै धरै तूं परमेश्वर म्हं ध्यान, सजन मैं होरी सूं गलतान हाथ म्हं ले रही तेग दुधारी। सामण का महीना पिया जी बादल छा गये देख बरसणा नै आ गये, घटा तलै बुगले नहां गये आ गये हम करमां के निरभाग, कितै सुता हो तै जाग बोल रही तेरे दिल की प्यारी। ठण्डी पड़ै फहवार पिया बिन सामण हो कैसा नारंगी दामण हो कैसा, ज्ञान बिन बामण हो कैसा जिसा पशुओं के म्हं ढोर, उठरी बागां के मैं लौर, दया करौ कृष्ण मुरारी। प्राण पियारे पिया तेरी टहल म्हं रहूं सेवा पहल म्हं रहूं, मेहर सिंह तेरी गैल म्हं रहूं सहूंगी दुख सुख तेरी दासी होकै, सब दाग जिगर के धोकै, जिन्दगी काटूंगी सारी। अजीत सिंह राजबाला को समझाता है- काली पीली रात अन्धेरी घटा जोर की छाई मतना बोलै राजबाला कदे मारे जां बिन आई।टेक कदे कदे तै अमर कोट म्हं आनन्द ठाठ रहैं थे मेरे तेरे दुश्मन बाला बारा बाट रहैं थे आनन्द के म्हं मगन रहैं और चहमाट रहैं थें नौकर चाकर टहल करण नै तीन सौ साठ रहैं थे याणे से का बाप गुजरग्या फेर मरगी जननी माई। एक बणियां की करूं नौकरी ले खोल सुणाद्यूं सारी एक दिन बणिये ने छोह म्हं आकै मेरे बोली मारी के जीणां यो मेरे कर्म मैं थूकै दुनियां दारी इसा सै तो ब्याह ले नै तेरी हाडै मांग कंवारी लाला जी की बात सुणी मनैं पेटी रफल बगाई। तेरे ब्याहवण की चिट्ठी लिखकै भेज दिया हलकारा तेरे बाप नैं कर्ज मांग कै मोटा जुल्म गुजारा बीस हजार रुपये का लिया एक लाला तै कर्ज उधारा इतनी आसंग ना थी मेरे म्हं बिपता पड़गी भारया उस करजे के तारण खातिर बणे बाहण और भाई। अकलमन्द कै लाग बताई समझणियां की मर सै न्यूं तो मैं भी जाण गया कोए होणी का चक्कर सै समझदार नैं दुनियां के म्हां बदनामी का डर सैं कहे मेहर सिंह मतना डरियो सबका साथी हर सै इस ईश्वर की लीला न्यारी दे बना पहाड़ नैं राई। उन दोनों की बातें रानी चुपके से सुन लेती है और अपने पति से पूछती है- मेरे पिया तू साच बता ये कौण सै पहरेदार। भाईयां की सूं मनै लागै एक मर्द एक नार।। गुलाब सिंह ना मर्दाना, मनै लगै सै यो जनाना, इन दोनों का भेद पटाना, प्रजा के पालनहार।। सै किसै विप्ता के मारे, झूठ ना कहती पिया प्यारे, रात नै वचन सुणे सैं सारे, ब्होत घणे सै लाचार।। ये दोनों बंधे धरम के बाणै, मनै मतना झूठी जाणै, क्यूं ना दूध पाणी छाणै, हो कै सच्चा न्याकार।। दुख पा रहया मेहर सिंह, होणी नै कर दिये तंग, पति पत्नी का लागै ढ़ग, जिनकै बीच धरम कटार।। राजा दोनों पहरेदारो को दरबार में बुला लेता है और पूछता है कि सच-सच बताओ तुम कौन हो, तो अजीत सिंह बताता है- सुणा दयूं अपनी राम कहानी। मैं सूं इसका मर्द और या मेरी बीरबानी।। अमरकोट का राज था म्हारा अनार सिंह पिता छतरधरी, विजयंती रानी थी जो थी मेरी महतारी, सब बता के ठाट थे सुखी थी प्रजा सारी, मेरे बाप की नीत बिगड़गी धन माया का बना पुजारी, धारा नगर पै करी चढ़ाई होया था युद्ध भारी, राम सिंह नै मेरा बाप मारकै जीत लई नगरी म्हारी, कत्ले आम मचा दिया बणग्या दुशमन जानी।। मनै बालक से नै लेकै माँ होगी थी राज तै बहार, धरम बचाया पूत बचाया गई वा बख्त बिचार, एक सेठ कै नौकर बणकै लागी वा करण गुजार, कुछ दिन के पाछै माता होगी सख्त बिमार, काल बलि के चौसर ऊपर माता गई प्राण हार, मैं जड़ मै बैठ रोवण लाग्या होग्या था घणा लाचार, सेठ जी नै चुप करवाया लाड करण लगी सठानी।। उस लाला के धोरै मैं बणकै नौकर रहण लाग्या, आछी भूंड़ी सारी ओटी दुख सुख सारे सहण लाग्या, एक बै गैरहाजर रहग्या छोह मै लाला कहण लाग्या, रजपूती के बोझ मरै मत जाणूं सूं किसा छतरधारी, जब जाणूं छतरी का जाया ब्याह ले तेरी मांग कंवारी, इतणी सुणकै मेरे ससुर तै बेसलपुर मै चिटठी डारी, उसनै बीस हजार मांग लिये कुछ ना बात पिछानी।। ब्याह करवाया था मनै कर्जा ले कै बीस हजार, कर्जा तै दे दिया लाला नै पर करदी करड़ी मार, बोल्या जब लग ना दे कर्जा बहाण समझिये ब्याही नार, कर्जा तारण खातर दोनों भेष बदल कै करै गुजार, आज तलक बीर मर्द नै बीच मै राखी धरम कटार, मेहर सिंह वाहे बीतै जो लिख दे सै सृजनहार, आगै वे सुख भोगैगे जो ईब ठावै परेशानी।।

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