जीवन-झांकी : ज्ञानी राम शास्त्री

Jiwan Jhanki (Autobiography): Gyani Ram Shastri


श्री सरस्वत्यै नमः

दोहा

दूर करो बाधा सभी मेरी श्री गणेश । घट भीतर बसते रहें ब्रह्मा, विष्णु, महेश ।।

दोहा

दुर्गा कहूं या शारदा एक रूप दो नाम । इस सेवक की कलम में करो आज विश्राम ।।

छप्पय

श्री कृष्ण जी ने दिया, जहां अर्जुन को ज्ञान । धन्य जन्म भूमि वह, हरियाणे का स्थान ।

छप्पय

जीन्द असन्ध के बीच में बसा अलेवा गाम । कवियों की नगरी उसे कहते लोग तमाम । उसी गाम में कई कवियों और विद्वानों ने वास किया । गोत वशिष्ट गौड़ ब्राह्मण घर एक कवि ने जन्म लिया । माई राम शुभ नाम कवि का "कविरत्न" बन छाये। ज्ञानीराम भतीजे उनके "लोक कवि" कहलाये ।।

छप्पय

उन्नीस सो तेईस में था करवा त्यौहार । मात गुलाबी के यहां छाया मंगलाचार ।। एक नन्हें से बालक के जन्मे की खुशी मनाई । भाई प्रसन्न पिता जी को सब देने लगे बधाई ।। वर्ष अढाई बाद पिता का सिर से उठ गया साया । आठ वर्ष में राम किशन भाई भी बड़ा गंवाया ।।

छप्पय

पूत पति नै खो कै माता रोई मार दहाड़ । विधवा के सिर टूट पड़ा दुखों का एक पहाड़।। बालक बेटे नै देख्या जब घर का हाल तमाम । पढ़न वास्ते निकला घर तै छोड़ अलेवा गाम ।। उर्दू छोड़ बढ़ा संस्कृत भाषा की ओर रुझान । शहर भिवानी अमृतसर में लिया संस्कृत का ज्ञान ।।

छप्पय

लाहौर शहर में औरियण्टल एक कालेज था मशहूर । शास्त्री कर पास वहां गया फिर लायलपुर कुछ दूर ।। लिखी पुस्तकें कई वहां रहा एक वर्ष आबाद । सन् छियालीस में शुरू हुए वहां दंगे और फिसाद ।। जान बचा के घर आया रखी परमेश्वर नै लाज । गांव अलेवे रहा, लिखा फिर आज़ादी का राज।।

छप्पय

धन्धा करूं पढ़ाने का लेकर मन में विश्वास । साल उनंचास में किया फिर लुधियाने में बास ।। चार वर्ष के बाद दिया फिर जय हिन्द कालेज खोल । पूरे चालीस वर्ष दान विद्या का दिया अनमोल ।। "नया जमाना" लिखा लिखी फिर "पाकिस्तान की पोल " । हीरे मोती ज्ञान के अब पढ़ो " बखत के बोल "।

दोहा

लोक कवि के रूप में लो अब नये उपहार। जिन्दगी भर मत भूलना इस सेवक का प्यार।।

"एक सनम्र निवेदन"

मेरे जीवन की इस छोटी सी झांकी में किसी तरह की कल्पना, दिखावा या "अपने मूंह मियां मिट्ठू” जैसी कोई भावना न होकर केवल मात्र अपना एक छोटा सा परिचय दिया गया है ताकि किसी लेखक आलोचक या किसी कविता प्रेमी सज्जन के काम आ सके ।

धन्यवाद सहित

-ज्ञानी राम शास्त्री प्रधान : पंजाब हिन्दी परिषद् (रजि०) लुधियाना (पंजाब) - १४१ ००१ फोन नं० : ४४३२२१

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