ईसुरी की रचनाएँ : ईसुरी

Isuri Ki Rachnayen : Isuri


जीवन श्री जगन्नाथ जाल सें निनोरौ

जीवन श्री जगन्नाथ जाल सें निनोरौ। थाकें ना हात-पाँव, कोऊ ना घरै नाँव, चलत फिरत चलौ जाँव, घोरूआ न घोरों। जीवन श्री ... बानी रहै बान तान, इज्जत के संग सान, दीनबन्धु दीनानाथ रै गऔ दिन थोरों। जीवन जौ ... हाँत जोर चरन परत, चरनामृत घोय पियत जियत राँम देखोंना, दूसरे को दोरौं। जीवन श्री ... ईसुरी परभाति पड़त, आवरदा सोऊ बड़त, कीचड़ में सनौ मऔ, नीर ना बिलोरों। जीवन श्री ...

रसना राम राम कह जारी

रसना राम राम कह जारी, कौन जात है हारी। जौ हरनाम सजीवन बूटी, खात बनै तो खारी। काँलों दिन उर रात सिखइये, बऔ जात बिरथाँरी। ईसुर हमना कोउ तुमाये तैनाँ कोउ हमारी।

मैंने मन मुदरी मैं गाड़ौ

मैंने मन मुदरी मैं गाड़ौ। राम नाम ना छाँड़ौ। तन कंचन की डार दई है, सुखा खटाई काड़ौ। नैम को बाँध धरम को पलवा, प्रेंम तराजू जाड़ौ। तिसना तौल धरी जा ईसुर रंग रसना से माड़ौ॥

भजमन राम सिया भगवानै

भजमन राम सिया भगवानै, कछू संग नइँ जानै, धन सम्पत सब माल खजानौ, रैजें येई ठिकानैं। भाई बन्द उर कुटुम कबीला, जे स्वारथ सब जानैं। कैंड़ा कैसौ छोर ईसुरी, हँसा हुयें रवानै॥

लैवौ राम नाम इक सच्चा

लैवौ राम नाम इक सच्चा। दूर होय दुख दच्चा। हिरनाकस पिहलाद के लानैं। कौन तमासो रच्चा। सबरे बरतन पके अबाके, बो बर्तन रऔ कच्चा। बरत आग सैं कूँदत आ गए, मनजारो के बच्चा। लै-लै राम निकारौ, ईसुर, मिल्ला-दुल्ला-फुच्चा।

जिनकौ सेर-सवेरे खइये

जिनकौ सेर-सवेरे खइये, जिये बिसेख डरइये। नौ-दस माँस गरम में राखौं। जिनैं पीठ ना दइये। नर-नारी को कौन बला-बल, जिनकी संगत गइये। सब जग रूठौ-रूठौ रन दो, राम न रूठौ चइये। ईसुर चार भुजा बारे खाँ, का दो भुजा निरइये।

दीपक दया धरम को जारौ

दीपक दया धरम को जारौ, सदा रात उजयारौ। धरम करे बिन करम खुलैना, ज्यौं कुन्जी बिन तारौं, समझा चुके करै न रइयो। दिया तरै अंदयारौ। कात ईसुरी सुनलो भईया लगजै यार न वारौ।

रोमैं लयें रागनी जी की

रोमैं लयें रागनी जी की। लगे सुनत मैं नीकी। कौऊ सास्त्र पुरान अठारा। चार बेद सो झीकी। गैरी भौत अथाह भरी है। थायमिलै ना ई की। ईसुर साँसऊँ सुरग नसैनी, रामायण तुलसी की।

मस्त मतवारे दानवारे गज

मस्त मतवारे दानवारे गज तीन कोट, चार कोट चर्ष चारू चन्दल विधान है। साँढिया सवारन पाँच कोट लों संवार को, आठ कोटजान सान माल के समान है। ईसुर चतुरंग चमूँ कोट साठ देखी मैं, साहब की साहबी सरस बेवखान है। एतो बरात जात साथ लिये अवधनाथ, आकत दैं डंका, चोब धूमत निसान हैं।

साजौ पत जोजन की

साजौ पत जोजन की, भोजन पै सभों सब, साजौ मंच डेरन गुलगुलौ लियायकें। तान दो वितान चार चाँदनी चंदेवा, पूर- पल में गलीचा फर्स मखमली बिछाय कें। ‘ईसुरी’ तरंगन में दीजियो बंधाय सेत, काट के कुघाट बाट राखियो बनाय कें। साज के तोश बेष आउत श्री कोसलेस, पावै ना कलेंस लेस देस मेरे आय कें।

जिनको बजत हुकुम को बाजा

जिनको बजत हुकुम को बाजा। कान रीत में आजा। हम खाँ जान देब द्द बैंचन। भग रोकन नई साजा। करो फिराद जावगे पकरे। रोकें सें गम खाजा। जानत नई बृजभान कुँअर खाँ, जिसकी सकल समाजा, चौरासी बृज कोस ईसुरी, हियाँ राधका राजा।

मोये बल रात राधका जी कौ

मोये बल रात राधका जी कौ, करैं आसरौ की को। दीन दयाल दूर दुख मेलत, जिनको मुख है नीको। पैले पार पातकी कर दए, मोहन सौ पति जी को। काँलों लगत खात सब कोऊ, स्वाद कात ना थी को ईसुर कछू काम की जानै, कदमन के ढिंग झीकौं।

राधा अलबेली को आनन

राधा अलबेली को आनन। तकै नन्द को कानन। राखैं रहत चकोर चित्त में। ज्यों चन्दा की मानन। हँसी करन रस-बस करवे खाँ, मानौ रस की खानन। भारत सौ पारत हेरन में, पारथ कैसे बानन। ईसुर कात श्याम नई छाँड़त, जब से लागे जानन।

बरसौं जामैं बृज बै जाबै

बरसौं जामैं बृज बै जाबै। मेघन इन्द्र सुनावैं। सात दिन औ सात रात लौं, बूँदा गम ना खावै। ब्रज वासिन के घर आँगन में, जल जमना को धावैं। लऔ उठा गोबरधन नख पैं, छैल छत्र सौ छावैं। कैसे मारे मरत ईसुरी, जिन खां राम बचावैं।

छैला छलन चलौ नव काजर

छैला छलन चलौ नव काजर, दयैं राधा बृज नागर। मुकती भोल बिकैं मथरा में, कजरौटन के आगर। श्री वृषभान-मनदर में दीपक, है सनेह कौ सागर। कोयन भीतर रेखा गागई, परती दिखा उजागर। कात ईसुरी तुम लौ रावै प्रान हमारे हाजर।

आली मनमोहन के मारै

आली मनमोहन के मारै। जमना गैल बिसारें। जब देखो तब खड़े कुंज में। गहें कदम की डारैं। जो कोऊ भूल जात है रास्ता बरबस आन बिठारैं। जादौं नई हँसी काऊसों। जा नइ रीत हमारैं। ईसुर कौन चाल अब चलिये, जे तो पूरौ पारें।

जसुदै दैंन उरानों जइये

जसुदै दैंन उरानों जइये। हाल लला कौ कइये। हीरा हाट बिचौली पैरी चोली फटी दिखइये। कछुअक साँसी कछुअक झूँठी, जुरे मिले कैं कइये, आठ घरी दिन रात ‘ईसुरी’। काँलौं कैं गम खइये।

नैनन साभरिया लग रैहै

नैनन साभरिया लग रैहै। जो तै जमुनै, जै हैं। जिनकौं राज जिनहूँ की रइयत, उनकी कीसौं के है। चाहत है जो अपने कुल की, बाहर पाँव न दैहैं। ‘ईसुर’ स्याम मिलैं कुंजन में, मन माई कर लै हैं।

मइया तुम नाहक खिसयातीं

मइया तुम नाहक खिसयातीं। इनके कँयँ लग जाती। पानी मिला दूध में बैचैं। तासें गाड़ौ कातीं। जे तौ अपने सगे खसम खाँ। साँसौं नई बतातीं। ईसुर जे बृज की बृजनारीं। धजी कै साँप बनातीं।

गुदना हरें गोद गुदनारी

गुदना हरें गोद गुदनारी। कसकत बाँय हमारी। हातन में लिख गुर गोविन्दा, हिरदें कुँज बिहारी गालन में लिख छब मोहन की। फूलन फूल हजारी। माथैं लिख दे गोबर धन की, मूरत, प्रान प्यारी। ईसुर चीन लये राधा ने, ठाँडे हसत बिहारी॥

सुन्दर सेत सरद को चन्दा

सुन्दर सेत सरद को चन्दा। रास रचौ गोविन्दा। सेत उठाई सेत बिछाई। सेत चाँदनी बन्दा। सेतइ कली टिकुली सी दमकैं, अली करै आनन्दा। जेवर सेत-सेत पोसाखैं। सेत सुमन को कन्दा। ईसुर सेत सुपेती को सुख, किसन चन्द मकरन्दा।

बागन भये बसन्त अबईयाँ

बागन भये बसन्त अबईयाँ, न जा विदेसै सँईयाँ। पीरी लता छता भई पीरी, पीरी लगत कलईयाँ। सूनी सेज नींद ना आवै, विरहन गिनें तरँइँयाँ। तलफत रहत रेंन दिन सजनी का है राँम करइँयाँ? ईसुर कऐं सजा दो इनखाँ, परों तुमाई पइँयाँ।

अवरित आई बसन्त बहारन

अवरित आई बसन्त बहारन पान-फूल फल डारन। बागन, बनन, बंगलन, बेलन बीधन बगरं बजारन। हारन और पहारन पारन, घाम धवल जल धारन। तपसी कुटिल कन्दरन खोरन। गई बैराग बिगारन। आए बौर मजीरन ऊपर लगे भोंर गुजारन। चहत अतीत, प्रीत प्यारे की। हा हा करत हजारन। ईसुर कन्त अन्त हैं जिनके तिनें देत दुख दारून।

मद अब देत करेजे जारें

मद अब देत करेजे जारें आई बसन्त बहारें। सीतल पवन लगत है ऐसी, मानो अगन की झारें। बोल-कोकिला लगें तीर से लेवें प्राण निकारे। आमन-मौर झोंर के ऊपर भोंर करत गुन्जारे। ईसुर पाती देव पीतम खाँ घर खों बेग पधारें।

उरजौ ना स्याम कही मानों

उरजौ ना स्याम कही मानों, फट जै हैं, चुनरिया ना तानों। इत मथरा उत गोकल नगरी, बीच बसत है बरसानो। रजा कंस कौ राज बुरओ है, मथरा बीच रूपौ थानों। मैं बेटी वृषभान लला की, काऊकी ईसुर ना जानों।

सारी चोर-बोर कर डारी

सारी चोर-बोर कर डारी, कर डारी गिरधारी। गिरधारी पकरन के काजैं। जुर आईं ब्रजनारी। नारी भेस करौ मोहन कौ। पैराई तन सारी। सारी पैर नार भए मोहन, नाचें दै-दै तारी तारी लगा ग्वाल सब हँस रय ईसुर कयँ बलहारी।

रंग डारो ना लला को अलकन में

रंग डारो ना लला को अलकन में। पर जैं है मुकुट की झलकन में। उड़त गुलाल लाल भये बादर, परत आँख की पलकन में। पकर पकर राधे मोहन खाँ, मलत अबीर कपोलन में। खेलत फाग परस पर ईसुर, राधे मोहन ललकन में।

केसर भई राधिका रानी

केसर भई राधिका रानी, गलन गलन मिहकानी। चम्पा, जुही केतकी बेला ललत बेल लिपटानी जिनसें भौत तड़ंगें उठतीं ज्यों गुलाब कौ पानी। ईसुर किसनचन्द मधुकर नें लइ सुगन्द मनमानी।

अटकी पीरे पटवारे सैं

अटकी पीरे पटवारे सैं। प्रीत पिया प्यारे सैं। निसदिन रात दरस की आसा, लगी पौर व्दारे सैं। कैसे, प्रीत बड़े भय छूटैं, संग खेली बारे सैं। विसरत नई भोत बिसराई, बसीं दृगन तारे सैं। ईसुर कात मिलैं मन मोहन, पूरव तन गारे सैं।

जब से मन मोहन बिछुरे हैं

जब से मन मोहन बिछुरे हैं, भारी कसट परे हैं। दिन ना चैन रात ना निंदिया, खान-पान बिसरे हैं। भूसन बसन सवह हम त्यागे-, जे तन जात जरे हैं। ईसुर स्याम सौत कुवजा पै, जोगिन भेष धरे हैं॥

जोगिन भई राधिका गोरी

जोगिन भई राधिका गोरी। अवै उमर है थोरी। बाजन लगी चमीटा चुटकी। नईं लाज ना चोरी। अंग भभूत बगल मृगछाला, डरी कँदा पै झोरी। ईसुर जाय हटी सौं कइयौं, पालागन है मौरी॥

पाती किशन चन्द की आई

पाती किशन चन्द की आई, छाती से चिपकाई। हातन-हात लै गोपिन नैं, राधा जुबै गुवाई। परी देय में फिर से स्वाँसा, मरी खाल जी आई। अब हम पै भगवत भए सूदे। ऊधौ जू की ल्याई। समाचार लिख दये ईसुरी, सबने बाँच सुनाई।

गोरी कठिन होत है कारे

गोरी कठिन होत है कारे, भरे हैं मद मतवारे। कारे रंग के काट खात जब जिहर न जात उतारे। काम के बान कामनिन खाँ भये, कारे नन्द दुलारे। पटियँन जात उनारे। ककरेजी खौं पैर ‘ईसुरी’, खकल करेजे डारे।

कारे सबरे होत बिकारे

कारे सबरे होत बिकारे, जितने ई रंग बारे। कारे नाँग सफाँ देखत के, काटत प्रान निकारे। कारे भमर रहत कमलन पै, ले पराग गुंजारें। कारे दगावाज हैं सजनी, ई रंग से हम हारे। ईसुर कारे खकल खात हैं, जिहरन जात उतारे।

ऊधौ रूप राधकाजू कौ

ऊधौ रूप राधकाजू कौ, कृस्न बिछुरतन सूकौ। मन उड़जात तिनूका नाँई मन्द मन्द में फूँकौं। गदिया पलंग गदेला त्यागो परवौ है अब भू कौ। भुगतै मिटें, करौ कछु हू है, कछू पाय आगंूकौ। ईसुर पार लगत ना बँदरा फिरत डार कौ चूकौ।

हो गई स्याम बिछुरतन जीरन

हो गई स्याम बिछुरतन जीरन, बृज में एक अहीरन। कल नई परत काल की ढूँड़त, कालिन्दी कै तीरन। भरमत फिरत चित्त नई ठौरें, उठत करेजें पीरन। हमरौ जनम बिगार चले गये- डारकें मोह-जँजीरन। वन वन व्याकुल फिरत ईसुरी राधा भई फकीरन।

तुम खाँ देखौ भौत दिनन में

तुम खाँ देखौ भौत दिनन में। अबलाखा ती मन में। हमरी तुमरी प्रीत पुरानी। छूटी वाला पन में। दरसन दियौ न्यारे परकें, छिप जिन जाव सकन में हम तुम इक संगे खेले हैं। मथुरा बिन्द्रावन में। भली करा दई भेंट ईसुरी, विध नैं येइ जनम में।

ऐसी बोलो कौनऊँ बानी

ऐसी बोलो कौनऊँ बानी। ना काऊ की जानीं। सगुन मैं होय, ना निर्गुन में। नाहिं बेदन में धानी। ना आकासैं नंपातालैं, नई देवतन जानी। ना भूतन में ना प्रेतन में, ना जल जीब बखानी कयें ईसुरी जोड़ मिला दो। जब जानैं हम ज्ञानीं।

बखरी रैयत है भारे की

बखरी रैयत है भारे की, दई पिया प्यारे की। कच्ची भीत उठी माटी की, छाई फूस चारे की। वे बन्देज बड़ी बे बाड़ा, तई पै दस व्दारे की। किबार-किवरियाँ एकऊ नइयाँ, बिना कुची तारे की। ‘ईसुर’ चाँय निवारों जिदना, हमें कौंन बारे की।

हंसा फिरैं बिपत के मारे

हंसा फिरैं बिपत के मारे अपने देस बिनारे। अब का बेठें ताल तलईयाँ? छोड़े समुद्र किनारे। चुन चुन मोती उगले उननें ककरा चुनत बिचारे। ईसुर कात कुटुम अपने सें, मिलवी कौन दिनारे?

तन कौ कौन भरोसों करनैं

तन कौ कौन भरोसों करनैं। आखिर इक दिन मरनैं। जौ संसार ओस कौ बूँदा, पवन लगै सें ढुरनें। जौ लों जी की जियन जोरिया- जी खाँ जे दिन भरनें। ईसुर ई संसारै आकें। बुरै काम खों डरनें।

तेरो मन पापी तन नौंनों

तेरो मन पापी तन नौंनों, एक भाँत ना दौनों। मन, माटी के मोल, कदर कम। तन कीमत में सोनों। मन से रात अदेखसबई कोऊ। तनकौ मचौ दिखौनों। ऐसे नौने सुन्दर तन में, मन दऔं, बिध अनहौनौं। ईसुर नमक अकेले बिन सब। बिनजन लगत अरौनों।

तन कौ तनक भरोसौ नइयाँ

तन कौ तनक भरोसौ नइयाँ, राखैं लाज गुसईयाँ, उड़ उड़ पात गिरत धरनी मैं, फिर नई लगत डरईयाँ जर बर देय भसम हो जै हैं। फिरना चुनैं चिरइयाँ, मानुस चाम काम न आवै। पसु कीं बनत पनईयाँ, ईसुर कोऊ हाँत ना दै ले जब हम पकरैं बइयाँ।

सबसें बौलौ रस की बानी

सबसें बौलौ रस की बानी, कौन बड़ी जिन्दगानी, येई बानी गजरा पेरावैं येई उतारै पानी। येई नरक की खानी येई बानी बेकुन्ठ दिखावै। ईसुर चले बैकुन्ठ घाम खाँ, करके नाम निसानी॥

रइयो करन हार से डरते

रइयो करन हार से डरते। पल में परलै परते। पल में धरती बूँद न आवै, पल में सागर भरतें। पल में बिगरे बना देत हैं। पल मैं बने विगरते। तृन सें बज्र-बज्र से तिनका। तिल सें बज्जुर करते। ईसुर कयें करता की बातें। बिरलें कोई नजरते।

नाते रिस्ते सम्पदा

नाते रिस्ते सम्पदा, सजन सलौनौं गात, ईसुर जा सिंसार में, सबई अखारत जात। मरम न जानें जौ जगत, लाखन करौ उपाय, ईसुर सोसत रात हैं, ईसुर एक सहाय। साँसन को सब खेल है, मन जिन लेव उसाँस, ईसुर राधा रटत रऔ, चारक लगनें बाँस। मानस मन माया फँसौं, सबकौ बेरी काम, ईसुर काम आवै नहीं, हड़रा, मज्जा चाम।

हौनी कवउँ न जात अनूठी

हौनी कवउँ न जात अनूठी, जिदना जी पै रूठी। इक दिन रूठी राजा नल पै, हार लील गइ खूँटी। इक दिन रूठी कंसासुर पै, मूड़ खपरिया फूटी। इक दिन रूठी तो अर्जुन पै, भील गोपका लूटी, सोने की गढ़ लंक ईसुरी, घरी भरे में टूटी।

हौनी दो पग चलत अँगरैं

हौनी दो पग चलत अँगरैं, सब तन चलत पिछारैं। जैसुइ जान घरों आँगे खाँ, मार देह का धारें। करमन वचन करत है ओई, होनी जौन विचारे सुर मुन नर आकुल है, ‘ईसुर’, ई होनी के मारे।

उदना रेख करम में खाँची

उदना रेख करम में खाँची। होन हार सो साँची। जैसी लिखी भाग में भाबई आन अगारूँ नाँची। पक्की मौत होत पाँवँन की उबै गिनो ना काँची। राखी बात आपविघ हाँतन आन बदे मैं बाँची साजी बुरई ईसुरी चर्चा सिनसारी में माँची।

पाई खुदा के घर की कीनैं

पाई खुदा के घर की कीनैं? की खाँ मरनै जीनैं? बिघ ललाट के अच्छर ऐसे, लिखे ना काऊ चीनैं। एकन खाँ धन वान करत हैं, एकन को धन छीनैं। ईसुर ऐसे कलम करत है अल्ला ख्याल नवीनैं।

जीके जब जैसे दिन आये

जीके जब जैसे दिन आये। कैसें जात बराये। दिनन फेर के फेर सें। स्यार सिंग खाँ धाये। दिनन फेर से राय मुनईयाँ। बाजै झपट दिखायें। दिनन फेर सें सरपन ऊपर। मिदरन मूँड़ उठाये। बेर बेर जे खात ईसुरी, बेर बीन तिन खाये।

जौ लों जग में राम जियावैं

जौ लों जग में राम जियावैं। जे बातें बरकावै। हात पाँव दृग-दाँत बतीसउ सदा एक से राबैं। ना रिन ग्रेही करै काऊ खाँ ना घर बनौ मिटावै। आपुस की बनी नइँ बिगरै कुलै दाग ना आवै। इतने में कुछ होय ईसुरी बिना मौत मर जावै।

माँगे चार मिलें ना भाई

माँगे चार मिलें ना भाई। बिन पूरब पुन्याई। बिन पुरब को पुन्य मिलै ना, बिरथाजात बड़ाई बिन पूरब के पुन्य मिलै ना जे सरीर सुखदाई। बिन पूरब के पुन्य मिलै ना सुन्दर नार सुहाई बिन पूरब के पुन्य ईसुरी कौनें सम्पत पाई?

राखें मन पंछी ना रानें

राखें मन पंछी ना रानें, इक दिन सब खाँ जानें? खालो पीलो, लैलो दैलो, ये ही लगै ठिकानें, कर लो धरम कछूबा दिन खाँ, जा दिन होत रमानैं। ईसुर कई मान लो मोरी, लगी हाट उठ जानैं।

जिदना मन पंछी उड़ जानैं

जिदना मन पंछी उड़ जानैं, डरौ पींजरा रानैं। भाई ना जै हैं बन्द ना जैहें। हँस अकेला जानें। ई तन भीतर दस व्दारे हैं की हो के कड़ जाने। कैवे खों हो जै है ईसुर। एैसे हते फलाने।

जग में बिना यार कौ को है

जग में बिना यार कौ को है? मिलै सो भाग बदौ है। एक यार आमद के पाछै, धनके संग लगौ है। एक यार दये प्रान प्रेम मैं प्रीत की कौन फंसौ हैं। एक यार बिच धार वहा कैं बीचइ छाड़ भगो है। जे सब यार देखकें ईसुर मो मन भौत हँसौ है।

ढप सौ ढाल सरीसौ चइये

ढप सौ ढाल सरीसौ चइये। मित औईसौं कइये। सुखमें रयै पछारँ भारी। दुख में ऑगू रइये। सबई अनी के अस्त्र बचावैं तऊ स्वारथ ना कइये। काम देय मौका पै ईसुर आजावै जाँ चइये।

यारी बेवकूपन सें करबौ

यारी बेवकूपन सें करबौ, होत सुगर कौ मरवौ। बिना ज्ञान मूरख ना जानें। बनवौ और बिगरवौ, अपुनयाई में बन हैं कैसें एकई गैल डिगरवौ? जरिया कैसो जार ईसुरी मुसकिल परे निनरवौ।

हमना तुम खाँ बदी विचारैं

हमना तुम खाँ बदी विचारैं। बचन अगारूँ हारैं। सिम्भू कऔ कइलास बरफ सौ। सिर पै गंगा धारें। बाहर कड़े फेर नई मुरकत ज्यों गज दन्त निकारैं। वाँहन गही सो छूटत नईयाँ हाड़ल कैसी डारें। सत सैं ईसुर हरत सुनी ना, सती सहत है मारैं।

यारौ पर नारी से बरकौ

यारौ पर नारी से बरकौ। येइ हुकुम है हरकौ। ई कलजुग कौ जाल कठिन है। रहवौ बड़ी खबर कौ। जिनके संगै परी भांवरैं। जोड़ा नारी नर को। जो सुख चाहौ घरी भरेकौ। मिटे जनम को खटकौ। ईसुर स्याम आस सब छोड़ौ भजन करौ रधुवर कौ।

एक दिन चूक जात सब कोई

एक दिन चूक जात सब कोई केसऊ स्यानों होई। हय गज दन्त पुनीत चड़इया। चूक जात जे दोई। चूक जात मानस परखइया। परख रहे हैं खोई। चूकजात पुरानिक पाँडे वैरागी तपसोई। ईसुर कात चुगत न चूकै। होवै बड़ो अनोई।

गाँजौ पियो न प्रीतम प्यारे

गाँजौ पियो न प्रीतम प्यारे। जरजें कमल तुमारे। जारत काम बिगारत सूरत सूकत रकत नियारे जो-तौ आय साधु सन्तन कौ, अपुन गिरस्ती वारे। ईसुर कात छोड़ दो ईखाँ हौ उमर के बारे।

चौपर है राजन के लानैं

चौपर है राजन के लानैं जिनै जगीरी खानैं। बड़े भोर सें बिछो गलीचा ठान ओई की ठानैं। निस दिन तार लगी चौपर की, मरे जात भैरानें। कात ईसुरी जुरकै बैठत लबरा केऊ सयाने।

इनपे लगे कुलरियाँ घालन

इनपे लगे कुलरियाँ घालन, मऊआ मानस पालन। इनै काटवौ ना चइयत तौ, काट देत जै कालन। ऐसे रूख भूख के लानैं, लगवा दये नंद लालन। जे कर देत नई सी ईसुर मरी मराई खालन।

आसौ दे गऔ साल करौंटा

आसौ दे गऔ साल करौंटा, करौ खाव सब खौंटा। गोंऊ पिसी खाँ गिरूआ लग गव महुअन लग गओ लौंका। ककना दौरीं सबधर खाये रै गव फकत अनोंटा। कात ईसुरी बाँधें रइयो जबर गाँठ कौ घोंटा।

मारत बिना अन्न हर सालै

मारत बिना अन्न हर सालै पनमेसुर का पालै? काय खाँ दुख दयैं रात हौं? काटइ करौ हलालै। सबै समेट इकटठौ लै जा कात काय न कालैं,? नोंनौ लगै अकेलो ईसुर जब सब भिक्छ बड़ा लै।

जानै कौन जमानों आऔ

जानै कौन जमानों आऔ, गाँठन माल गमाओं भोजन वार बरक्कत गइँयाँ खाऔ जौन कमाऔ अपनी मूँड जेरिया बाधें। फिरत लोग सब धाओ। सतजुग की वा राय चली गई, बिन बँयै काटौ गाऔ। ईसुर कलस कुलीनन के घर कलजुग कलसा छाऔ।

आ गऔ बेईमानी कौ पारौ

आ गऔ बेईमानी कौ पारौ, इतै न डेरा डारौ, पंचन में परपंच जुरत है। करैं न बारो न्यारौ। मों देखी पंचयात करत हैं। तकें चीकनो व्दारौ। ईसुर कात सवै के मन की जौ तगड़ा तौ डारौ।

आऔ जौ कलजुग कौ पारौ

आऔ जौ कलजुग कौ पारौ। सतयुग दैगव टारौ। मौं देखी पंचयात होत है, देखौ चिकनो दुआरौ। कर पंचयात सरपंच चले गए, कोंनौ भओ न निवारौ। ईसुर कात चलौ भग चलिये इतै न होत गुजारौ।

दारौ आऔ देस सें

दारौ आऔ देस सें, परौं धोर्रा आन, हमने आदर दे करौ, तनक खवइया जान। तनक खवइया जान, रोटियँन पैं धी धरकें, छै छिटिया भरदार, दई दो बेला भरकें। बाल मुकुन्दै लिखा, ईसुर पठओ उरानों, तीन सेर खा गओ आन कें मनका दानों।

घरी घरी पै ईसुरी

घरी घरी पै ईसुरी, घरी सौ दृगन दिखात, मुईयाँ बाँके छेल की, नजर न भूलत रात। ऑखियाँ तरसें यार खाँ कबै नजर मिल जाय, नजर बचा के ईसुरी रजऊ बरक कड़ जाय। तरै तरै के करत हैं, तेरे ऊपर प्यार, हमहँ अकेले एक हैं, रजऊ की दमके यार। घातें सबई लगाँय हैं, घर खोरन की कोद, ईसुर डूबे रस-रँगन, और न पावै सोद।

ना छेड़री कामनी

ना छेड़री कामनी, कड़ जान दै विचारे खों, गैल के चलइया खों बीच ना उतार लैं। जा बारी सी उमर में लंक में कलंक लगौं, थौरे से जीवन में पूरब तौ सुधार लै। जीवन दे जुआतन खों जोवन ना दिखारी, नैकें चल बेला, तन कंदेला सभारलै। कात व्दिज ‘ईसुर’ सुख सासरे खों राखिये, सबरौ मजा - मान मायके मैं न मारलै।

देखत स्याम माँग पै मोये

देखत स्याम माँग पै मोये, गोला मुख पै गोये फन्दन फन्द फूल बेला कौ, बीचन बीच बिदोये। बेनी जलद चार कय केरत, तिरवेंनी सें धोये, उठत पराग अतर पटिया की, गये सरवोर निचोये। ईसुर उतै प्राण की परवी मन लै चली चितौये।

पग में लगत महाउर भारी

पग में लगत महाउर भारी, अत कोमल है प्यारी, आद रती को लाँगा पैरें। तिलकी औड़ें सारी। खस-खस की इक अँगिया तन मैं आदी कौर किनारी रती रती के बीच ईसुरी, एक नायका ढारी।

तिलकी परन तिलन सें हलकी

तिलकी परन तिलन सें हलकी, बाँय गाल पै झलकी। मानौ चुई चाँद के ऊपर। बुंदकी जमना जल की। मानों फूल गुलाब के ऊपर, उड़ बैठन भई अलकी। के गोविन्द गुराई दै कैं। बैठ गये कर छलकी। जी में लगी ईसुरी जी के, दिल के दाब अतल की।

बाँके बजैं पैजनाँ धुनके

बाँके बजैं पैजनाँ धुनके। परे पगन में उनके। सुन तन रौम-रौम कड़ आवत, धीरज रहत ना तनके। खेलत फिरत गैल खोरन मेंख सुर मुख्त्यार मदन के। करने जोंग लोग कुछनाते, लुट गये बालापन के ईसुर कौन कसायन डारे, जे ककरा कसकन के।

बूँदा मनकौ हरन तुमारौ

बूँदा मनकौ हरन तुमारौ। जो लयें लेत हमारौ। बनौ रात घूंघट के भीतर। करै रात उजियारौ। अच्छे रंग धरे कारीगर। लाल, हरीरो, कारौ। ईसुर ऐसें डसें लेत है। जैसे नाँग लफारौ।

साँकर कन्नफूल की लटकें

साँकर कन्नफूल की लटकें। दोई गालन में छुटकें। कबहूँ हाल भुजन को लेतीं। छूती गाल झपट कैं। कमऊँ कमऊँ तो रूरकी रातीं, कमऊँ होत दो फटकें कमऊँ होय कानन कौ कुन्डल, कमऊँ जाँय पलटकें। ईसुर दुरें गरे लगवे खों। साँप साँकरे अटके।

नैना परदेसी सें लरकें

नैना परदेसी सें लरकें। भऐ बरवाद बिगर कैं। नैनाँ मोरे सूर-सिपाही। कवऊं न हारे लरकें। जे नैना बारे सें पाले, काजर रेखैं भरकें। ईसुर भींज गई नइ सारी, खोवन अँसुआ ढरकें।

नैना ना मारौ लग जै हैं

नैना ना मारौ लग जै हैं। मरम पार हो जै हैं। बख्तर जुलम कहा कर लै हैं। ढाल फार कढ़ जै हैं। नैनाँ मार चली ससुर खाँ, डरे कलारत रै हैं। ओखद मूर, एक ना लग है। वैद गुनी का कै है? कात ‘ईसुरी’ सुन लो प्यारी, दरस दवाई दै हैं?

तोरे नैनाँ हैं मतवारे

तोरे नैनाँ हैं मतवारे, तन घायल कर डारे। खन्जन खरल सैल से पैने, बरछन से अनयारे। तरबारन सें कमती नइँयाँ, इनसे सबरे हारे। ईसुर चले जात गैलारे। टेर बुलाकें मारे।

दोई नेंनन की तरवारें

दोई नेंनन की तरवारें, प्यारी फिरें उवारें। अलेमान, गुजराम सिरोही। सुलेमान झकमारे। ऐंचत बाढ़ म्याँन घूँघट की, दैकाजर की धारैं। ईसुर स्याम बरकते रइयो, अंधयारै उजयारै।

हमखों बिसरत नई बिसारी

हमखों बिसरत नई बिसारी, हेरन हँसन तुमारी। जुबन बिसाल चाल मतवारी, पतरी कमर इकारी। भांेय कमान बान से तानैं, नजर तरीछी मारी। ‘ईसुर’ कात हमारे कोदै तनक हेरलो प्यारी।

कड़तन लागौ मूड़ दिरौंदा

कड़तन लागौ मूड़ दिरौंदा, कड़ीं न सिर खों ओंदा। कारीगर ने बुरऔ बनाऔं। धरौ न ऊँचों गोंदा। लच गई, लफ गई, दूनर हो गई, नेंनूँ कैंसो लोंदा ईसुर उनें उठा नई पाए, हतो उतै सकरोंदा।

बसती बसत लोग बहुतेरे

बसती बसत लोग बहुतेरे। कौन काम के मोरें। बैठे रहत हजारन को दी, कबऊँ न जे दृग हेरे। गैल चलत गैलारे चर्चे, सब दिन साझ सबेरे। हाय दई उन दो ऑखन बिन, सब जग लगत अँधेरे। ईसुर फिर तक लेते उन खाँ वे दिन विध ना फेरे।

यारी होत मजा के लानैं

यारी होत मजा के लानैं। जो कोउ करकैं जानैं। बड़े भाग से यार मिलत है। सौंरी सी पैचाने। नाव लेत रैंदास चले गये। कुज्जा भई दिमानें। ईसुर कात बिना यारी के, जिउ ना लगत ठिकानें।

मारग आदी रातलों हेरी

मारग आदी रातलों हेरी, छैल विदरदी तेरी। बेकल रई पपीहा जैसी, कहाँ लगाई देरी? भीतर सें बाहर लों आई। दै दै आई फेरी। उठ उठ भगी सेज सूनी सें लगी ऑख ना मोरी तड़प तड़प सो गई ईसुरी। तीतुर बिना बटेरी।

तुमनें मोह टोर दऔ सँइँयाँ

तुमनें मोह टोर दऔ सँइँयाँ, खबर हमारी नँइँ याँ। कोंचन में हो निपकन लागीं चुरियँन छोड़ी बहियाँ। सूकी देह छिपुरिया हो रई हो गए प्रान चलैयाँ। जो पापिन ना सूकीं अंखियाँ झर झर देत तलैयाँ। उनें मिलादो हमें ईसुरी लाग लाग के पैंयाँ।

हमखों कर डारो बैरागी

हमखों कर डारो बैरागी, रजऊ की आसा लागी। अपने जानें कभऊ नई भई धूनी बरै न आगी। इन हातन का दई दच्छिना हमने भिच्छया माँगी। फेरी देत रजऊ के लाने ईसुर बस्ती त्यागी।

हमसें दूर तुमारी बखरी

हमसें दूर तुमारी बखरी, हमें रजऊजा अखरी। हो पावे बतकाव न पूरौ घरी भरे खाँ छकरी। परत नहीं हैं द्वार सामनें, खोर सोऊ है सकरी बेरा बखत नजर बरकाकें कैसे लेवे तकरी छिन आवें छिन जाय ईसुरी भए जात हैं चकरी।

विधना करी देह न मेरी

विधना करी देह न मेरी, रजऊ के धर की देरी। आवत जात चरन की घूरा लगत जात हर बेरी। लागी आन कान के ऐंगर, बजन लगी बजनेरी। उठत चात अब हाट ईसुरी बाट भौत दिन हेरी।

दिल रहौ दाबनी में बसकें

दिल रहौ दाबनी में बसकें, मों फेरों इतखाँ तुम हँसकें। झँझरीदार खुली ज्यों पुतरी पटियन बीच रई लसकें। दोई भोंय दाब कें बैठी कानन लों खेंचें कसकें। ईसुर प्रान कौन के लेतीं? राधा के माथै धसके।

जादू सो कर गई हेरन में

जादू सो कर गई हेरन में दुरवारी दृग की फेरन मैं। जों मरतेज, तेज चितवन कौ, सो नइँयाँ समसेरन में। उड़त फिरत जैसें मन पंछी गिरत बाज के घेरन में। जब कब मिलत गैल खोरन में, तिरछी नजर तरेरन में। कहत ईसुरी सुन लो प्यारी, तनक सेन की टेरन मैं।

पिया लै दो हमें हरियल सारी

पिया लै दो हमें हरियल सारी, पलका पै मचल रई हैं प्यारी सूत महीन, झीन ना हौवै, बड़ी मुलाम तरज बारी। छोरन मोर पपीरा राजें, जरद कोर की जरतारी। बीचन बीच बेल बूटन सें भरी होय कछु फुलवारी। कहत ईसुरी सुनलो प्यारी, भोर भगा है सुकमारी।

दिन बूड़ौं विदेसी ना जारे

दिन बूड़ौं विदेसी ना जारे, रूप जाब थके हौ तुम हारे। ससुर हमारे गये परदेसै, छाये विदेस पिया प्यारे। कर लइयो आराम भवन में लाल पलंग दें लटकारे हमनें सुनी एई गलियन में गये वटोई दो मारे। काटौ सुख से रेंन ईसुरी उठ जइयो यार मोर पारें।

काजर काय पे दइये कारे

काजर काय पे दइये कारे। बारे बलम हमारे। साँज भये ब्यारी की बैराँ करें बिछोना न्यारे। जब छुव जात अनी जोवन की थर थर कँपत विचारे। का काऊ खाँ खोर ‘ईसुरी’ फूटे करम हमारे।

सूजैं इन आँखन अलबेली

सूजैं इन आँखन अलबेली जग मैं रजऊ अकेली। भरकें मूठ गुलाल, धन्न वे, जिनके ऊपर मेली। भागवान जिनने पिचकारी, रजऊ के ऊपर ठेली। ई मइनाँ की आवन हम पै, मिली, मसा के झेली। अपकी बेराँ उननें ईसुर फाग सासरें खेली।

नीकौ नई रजऊ मन लगवौ

नीकौ नई रजऊ मन लगवौ, एइ सें करत हटकवौ। मन लागौ लगजात जनम खाँ, रौमंई रौंम कसकवौ। सुनतीं, तुमे सऔ ना जै हैं, सब - सब रातन जगवौ। कछु दिनन में होत कछु मन लगन लगत लै भगवौ। ईसुर जे आसान नहीं है प्रान पराये हरवौ।

मिलकें रजऊ बिछुर जिन जाऔ

मिलकें रजऊ बिछुर जिन जाऔ, पापी प्रान जियाऔ। जब सें चरचा भई जावे कीं, टूटन लगों हियाऔ। अँसुआ चुअत जात नैनन सौं रजऊ पोंछ लो आऔ। ईसुर कात तुमाये संगै, मेरौ भऔ बियाऔ।

जौ जी रजऊ रजऊ के लानें

जौ जी रजऊ रजऊ के लानें का काऊ सें कानें। जौं लों जीनें जियत जिन्दगी रजऊ के हेत कमानें। पेले भोजन करें रजऊ आ, पाछे कें मोय खानें। रजऊ रजऊ कौ नाँव ईसुरी लेत लेत मर जानें।

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