ईसुरी की फाग : ईसुरी

Isuri Ki Phaag : Isuri


तुम खों छोड़न नहि विचारें

तुम खों छोड़न नहि विचारें भरवौ लों अख्तयारें जब ना हती, कछू कर घर की, रए गरे में डारें अब को छोड़ें देत, प्रान में प्यारी भई हमारें लगियो न भरमाए काऊ के, रैयो सुरत सम्भारें ईसुर चाएँ तुमारे पीछें, घलें सीस तलवारें

बैठी बीच बजार तमोलिन

बैठी बीच बजार तमोलिन । पान धरैं अनमोलन । रसम रीत से गाहक टेरै, बोलै मीठे बोलन प्यारी गूद लगे टिपकारी, गोरे बदन कपोलन खैर सुपारी चूना धरकें, बीरा देय हथेलन ईसुर हौंस रऔ ना हँसतन, कैऊ जनन के चोलन

मोरी रजऊ से नौनों को है

मोरी रजऊ से नौनों को है डगर चलत मन मोहै अंग अंग में कोल कोल कें ईसुर रंग भरौ है । मन कौ हरन गाल कौ गुदना, तिल सौ तनक धरौ है । ईसुर कात उठन जोबन की, विरहा जोर करौ है ।

उनकी होय न हमसों यारी

उनकी होय न हमसों यारी उनसों होय हमारी मन आनन्द गईं मन्दिर में, शिव की मूरत ढारी परसत चरन मनक मुन्दरी में, मुख की दिसा निहारी गिरजापति वरदान दीजिए, जौ मैं मनें बिचारी ईसुर सोचें श्री कृष्ण खों, श्री बृखमान दुलारी

दिल की राम हमारी जानें

दिल की राम हमारी जानें मित्र झूठ न मानें हम तुम लाल बतात जात ते, आज रात बर्रानें सा परतीत आज भई बातें, सपनेन काए दिखानें ? ना हो, हो, देख लेत हैं, फूले नईं समानें भौत दिनन से मोरो ईसुर तुमें लगौ दिल चानें

जुवना दए राम ने तोरें

जुवना दए राम ने तोरें सब कोऊ आवत दौरें आएँ नहीं खांड़ के घुल्ला, पिएँ लेत ना घोरें का भऔ जात हाथ के फेरें, लए लेत ना टोरें पंछी पिए घटी नहीं जातीं, ईसुर समुद हिलौरें

कैयक हो गए छैल दिमानें

कैयक हो गए छैल दिमानें रजऊ तुमारे लानें भोर भोर नों डरे खोर में, घर के जान सियानें दोऊ जोर कुआँ पे ठाड़े, जब तुम जातीं पानें गुन कर करकें गुनियाँ हारे, का बैरिन से कानें ईसुर कात खोल दो प्यारी, मंत्र तुमारे लानें

ऎंगर बैठ लेओ कछु काने

ऎंगर बैठ लेओ कछु काने, काम जनम भर रानें सबखाँ लागौ रात जियत भर, जौ नइँ कभऊँ बड़ानें करियो काम घरी भर रै कैं,बिगर कछु नइँ जानें ई धंधे के बीच 'ईसुरी' करत-करत मर जानें ।

अब रित आई बसन्त बहारन

अब रित आई बसन्त बहारन, पान-फूल-फल डारन हारन-हद्द-पहारन-पारन, धाम-धवल-जल-धारन कपटी कुटिल कन्दरन छाई, गै बैराग बिगारन चाहत हतीं प्रीत प्यारे की, हा-हा करत हजारन जिनके कन्त अन्त घर से हैं, तिने देत दुख-दारुन ईसुर मौर-झोंर के ऊपर, लगे भौंर गुंजारन ।

पतरें सोनें कैसे डोरा

पतरें सोनें कैसे डोरा, रजऊ तुमाये पोरा बड़ी मुलाम पकरतन घरतन लग न जाए नरोरा पैराउत में दैया-मैया, दाबत परे दादोरा रतन भरे सें भारी हो गये, पैरन कंचन बोरा 'ईसुर' कउँ का देखे ऎसे, नर-नारी का जोरा ।

जो तुम छैल, छला हो जाते

जो तुम छैल, छला हो जाते, परे उंगरियन राते मौं (मुँह) पौंछत गालन के ऊपर, कजरा देत दिखाते घरी-घरी घूंघट खोलत में, नज़र सामने आते 'ईसुर' दूर दरस के लानें, ऎसे काए ललाते ?

इक दिन होत सबई का गौनों

इक दिन होत सबई का गौनों होनों औ अनहोंनों । जाने परत सासरें साँसऊँ बुरऔ लगै चाय नौंनों जा ना बात काउ के बस की हँसी मचै चाय रौंनों राखौ चायें जौनों ईसुर दयें इनईं भर सोनों ।

बखरी बसियत है भारे की

बखरी बसियत है भारे की दई पिया प्यारे की कच्ची भींट उठी माटी की, छाई फूस चारे की बे बंदेज बड़ी बे बाड़ा, जई में दस द्वारे की एकऊ नईं किबार किबरियाँ, बिना कुची तारे की ईसुर चाय निकारौ जिदना, हमें कौन उवारे की ।

इन पै लगे कुलरियाँ घालन

इन पै लगे कुलरियाँ घालन, भैया मानस पालन इन्हें काटबो न चइयत तौ, काट देत जो कालन ऎसे रूख भूँख के लानें, लगवा दये नंद लालन जे कर देत नई सी ईसुर, मरी मराई खालन ।

जब से रजऊ ने पैरी अंगिया

जब से रजऊ ने पैरी अंगिया, मोय करो बैरगिया फिरतीं रातीं गली-खोरन में, तनक उगर गई जंगिया घूमत फिरत नसा के मारे, मानो पी लई भंगिया ईसुर भये बाग के भौंरा, रजऊ भईं फुलबगिया ।

ऎसी पिचकारी की घालन

ऎसी पिचकारी की घालन, कहाँ सीख लई लालन कपड़ा भींज गये बड़-बड़ के, जड़े हते जर तारन अपुन फिरत भींजे सो भींजे, भिंजै जात ब्रज-बालन तिन्नी तरें छुअत छाती हो, लगत पीक गइ गालन ईसुर अज मदन मोहन नें, कर डारी बेहालन ।

देखी रजऊ काउनें नइयाँ

देखी रजऊ काउनें नइयाँ, कौन बरन तन मुइयाँ काँ तौं उनकी रहस रास है, काँ दये जनम गुसइयाँ पैलऊँ भेंट हमईं सें न भई सही कृपा हम पैयाँ ईसुर हमने रजऊ की फागें, कर दई मुलकन मैंया ।

जौ जी रजउ-रजउ के लानैं

जौ जी रजउ-रजउ के लानैं का काऊ से कानैं जौ लौ जीने जियत जिन्दगी रजुआ हेत कमाने पैले भोजन करै रजऊआ पाछे मो खौं खानै रजउ रजउ को नाँव 'ईसुरी' लेत लेत मर जानै।

तुमखों देखौ भौत दिनन सें

तुमखों देखौ भौत दिनन सें बुरौ लगत रओ मन सें लुआ न ल्याये पूरा पाले के कैबे करी सबन सें एकन सें विनती कर हारी पालागन एकन सें मनमें करै उदासी रई हों भई दूबरी तन सें ईसुर बलम तुमइये जानौ मैंने बालापन सें।

पग में लगत महाउर भारी

पग में लगत महाउर भारी अत कोमल है प्यारी आद रती कौ लांगा पैरें तिल की ओढ़ें सारी खस खस की इक अंगिया तन में आदी कोर किनारी रती रती के बीच 'ईसुरी' एक नायिका ढारी।

रोजई मुस्का कें कड़ जातीं

रोजई मुस्का कें कड़ जातीं हमसै कछू न कातीं जा ना जान परत है दिल की काये खों सरमातीं जब कब मिलैं गैल खोरन में कछू कान सौ चातीं ना जानै काहे कौ हिरदो कपटन सोउ दिखातीं ईसुर कबै कौन दिन हू है जबै लगाबै छाती।

तोरे नैना मतबारे

तोरे नैना मतबारे तिन घायल कर डारे खंजन खरल सैल से पैने बरछन से अनयारे तरबारन सैं कमती नइयाँ इनसें सबरई हारे 'ईसुर' चले जात गैलारे टेर बुला कैं मारे।

ऐसी हती रजउ की सानी

ऐसी हती रजउ की सानी दूजी नईं दिखानी। बादशाह कै बेगम नइयाँ ना राजा घर रानी। तीनऊ लोक भुअन चौदा में ऐसी नईं दिखानीं। ईसुर पिरकट भईं हैं जग में श्री वृषभान भुबानी।

बाँकी रजउ तुमारी आँखें

बाँकी रजउ तुमारी आँखें रव घूंगट में ढाँके। हमने अबै दूर से देखीं कमल फूल सी पाँखें। जिदना चोट लगत नैंनन की डरे हजारन कांखें। जैसी राखे रई 'ईसुरी' ऐसईं रईयो राखें।

जाके होत विधाता डेरे

जाके होत विधाता डेरे को कर सकत सहेरे। पाव रती के जोड़ लगाए परे हाथ के फेरे। अदिन-दिना जब आन परत हैं दालुद्दर नै घेरे। मारे-मारे फिरत 'ईसुरी' संजा और सबेरे।

मिलती कभऊं अकेली नइयाँ

मिलती कभऊं अकेली नइयाँ बतकाये खाँ गुइयाँ। मिल जातीं मन की कै लेते जैसी हती कवइयाँ। बाहर सें भीतर खाँ कड़ गईं कुल्ल लुगाइन मइयाँ। 'ईसुर' फिरत तुमाये लानें ढूंढत कुआं तलइयाँ।

जब सें गए हमारे सईयाँ

जब सें गए हमारे सईयाँ देस बिराने गुइयाँ। ना बिस्वास घरें आबे कौ करी फेर सुध नइयाँ। जैसो जो दिल रात भीतरौ जानत राम गुसैयाँ। ईसुर प्यास पपीहा कैसी लगी रात दिन मइयाँ।

मिलकै बिछुर रजउ जिन जाओ

मिलकै बिछुर रजउ जिन जाओ पापी प्रान जियाओ। जबसे चरचा भई जाबे की टूटन लगो हियाओ। अँसुआ चुअत जात नैनन सैं रजउ पोंछ लो आओ। ईसुर कात तुमाये संगै मेरौ भओ बिआओ।

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