श्रीकृष्ण बाल-माधुरी : भक्त सूरदास जी

Shri Krishna Bal-Madhuri : Bhakt Surdas Ji

276. जननि जगावति , उठौ कन्हाई

जननि जगावति , उठौ कन्हाई !
प्रगट्यौ तरनि, किरनि महि छाई ॥
आवहु चंद्र-बदन दिखराई ।
बार-बार जननी बलि जाई ॥
सखा द्वार सब तुमहिं बुलावत ।
तुम कारन हम धाए आवत ॥
सूर स्याम उठि दरसन दीन्हौ ।
माता देखि मुदित मन कीन्हौ ॥

राग सूहो बिलावल

277. दाऊ जू, कहि स्याम पुकार्‌यौ

दाऊ जू, कहि स्याम पुकार्‌यौ ।
नीलांबर कर ऐंचि लियौ हरि, मनु बादर तैं चंद उजार्‌यौ ॥
हँसत-हँसत दोउ बाहिर आए, माता लै जल बदन पखार्‌यौ ।
दतवनि लै दुहुँ करी मुखारी, नैननि कौ आलस जु बिसार्‌यौ ॥
माखन लै दोउनि कर दीन्हौ, तुरत-मथ्यौ, मीठौ अति भार्‌यौ ।
सूरदास-प्रभु खात परस्पर,माता अंतर-हेत बिचार्‌यौ ॥

राग रामकली

278. जागहु-जागहु नंद-कुमार

जागहु-जागहु नंद-कुमार ।
रबि बहु चढ़्यौ, रैनि सब निघटी, उचटे सकल किवार ॥
वारि-वारि जल पियति जसोदा, उठि मेरे प्रान-अधार ।
घर-घर गोपी दह्यौ बिलोवैं, कर कंगन-झंकार ॥
साँझ दुहन तुम कह्यौ गाइ कौं, तातैं होति अबार ।
सूरदास प्रभु उठे तुरतहीं, लीला अगम अपार ॥

राग बिलावल

279. तनक कनक खी दोहनी, दै-दै री मैया

तनक कनक खी दोहनी, दै-दै री मैया ॥
तात दुहन सीखन कह्यौ, मोहि धौरी गैया ॥
अटपट आसन बैठि कै, गो-थन कर लीन्हौ ।
धार अनतहीं देखि कै, ब्रजपति हँसि दीन्हौ ॥
घर-घर तैं आईं सबै, देखन ब्रज-नारी ।
चितै चतुर चित हरि लियौ, हँसि गोप-बिहारी ॥
बिप्र बोलि आसन दियौ, कह्यौ बेद उचारी ।
सूर स्याम सुरभी दुही, संतनि हितकारी ॥

280. आजु मैं गाइ चरावन जेहौं

आजु मैं गाइ चरावन जेहौं ।
बृंदाबन के बाँति-भाँति फल अपने कर मैं खेहौं ॥
ऐसी बात कहौ जनि बारे, देखो अपनी भाँति ।
तनक-तनक पग चलिहौ कैसैं, आवत ह्वै हैं राति ॥
प्रात जात गैया लै चारन, घर आवत हैं साँझ ।
तुम्हरौ कमल-बदन कुम्हिलैहै, रेंगत घामहिं माँझ ॥
तेरी सौं मोहि घाम न लागत, भूख नहीं कछु नेक ।
सूरदास-प्रभु कह्यौ न मानत, पर्‌यौ आपनी टेक ॥

राग रामकली

281. मैया ! हौं गाइ चरावन जैहौं

मैया ! हौं गाइ चरावन जैहौं ।
तू कहि महर नंद बाबा सौं, बड़ौ भयौ न डरैहौं ॥
रैता, पैता, मना, मनसुखा, हलधर संगहि रैहौं ।
बंसीबट तर ग्वालनि कैं सँग, खेलत अति सुख पैहौं ॥
ओदन भोजन दै दधि काँवरि, भूख लगे तैं खेहौं ।
सूरदास है साखि जमुन-जल सौंह देहु जु नहैहौं ॥

282. चले सब गाइ चरावन ग्वाल

चले सब गाइ चरावन ग्वाल ।
हेरी-टेर सुनत लरिकनि के, दौरि गए नँदलाल ॥
फिरि इत-उत जसुमति जो देखै, दृष्टि न पैर कन्हाई ।
जान्यौ जात ग्वाल सँग दौर्‌यौ, टेरति जसुमति धाई ॥
जात चल्यौ गैयनि के पाछें, बलदाऊ कहि टेरत ।
पाछैं आवति जननी देखी, फिरि-फिरि इत कौं हेरत ॥
बल देख्यौ मोहन कौं आवत, सखा किए सब ठाढ़े ।
पहुँची आइ जसोदा रिस भरि, दोउ भुज पकरे गाढ़े ॥
हलधर कह्‌यौ, जान दै मो सँग, आवविं आज-सवारे ।
सूरदास बल सौं कहै जसुमति, देखे रहियौ प्यारे ॥

283. खेलत कान्ह चले ग्वालनि सँग

खेलत कान्ह चले ग्वालनि सँग ।
जसुमति यहै कहत घर आई, हरि कीन्हे कैसे रँग ॥
प्रातहि तैं लागे याही ढँग, अपनी टेक कर्‌यौ है ।
देखौ जाइ आजु बन कौ सुख, कहा परोसि धर्‌यौ है ॥
माखन -रोटी अरु सीतल जल, जसुमति दियौ पठाइ ।
सूर नंद हँसि कहत महरि सौं , आवत कान्ह चराइ ॥

राग बिलावल

284. देख्यौ नँद-नंदन, अतिहिं परम सुख पायौ

देख्यौ नँद-नंदन, अतिहिं परम सुख पायौ ।
जहँ-जहँ गाइ चरति, ग्वालनि सँग, तहँ-तहँ आपुन धायौ ॥
बलदाऊ मोकौं जनि छाँड़ौ, संग तुम्हारैं ऐहौं ।
कैसैहुँ आजु जसोदा छाँड़यौ, काल्हि न आवत पैहौं ॥
सोवत मोकौं टेरि लेहुगे, बाबा नंद दुहाई ।
सूर स्याम बिनती करि बल सौं, सखनि समेत सुनाई ॥

राग सारंग

285. बन में आवत धेनु चराए

 बन में आवत धेनु चराए ।
संध्या समय साँवरे मुख पर, गो-पद-रजि लपटाए ॥
बरह-मुकुट कैं निकट लसति लट, मधुप मनौ रुचि पाए ।
बिलसत सुधा जलज-आनन पर उड़त न जात उड़ाए ।
बिधि-बाहन-भच्छन की माला, राजत उर पहिराए ॥
एक बरन बपु नहिं बड़-छोटे, ग्वाल बने इक धाए ।
सूरदास बलि लीला प्रभु की, जीवत जन जस गाए ॥

राग गौरी

286. जसुमति दौरि लिए हरि कनियाँ

जसुमति दौरि लिए हरि कनियाँ ।
आजु गयौ मेरौ गाइ चरावन, हौं बलि जाउँ निछनियाँ ॥
मो कारन कछु आन्यौ है बलि, बन-फल तोरि नन्हैया ।
तुमहि मिलैं मै अति सुख पायौ, मेरे कुँवर कन्हैया ॥
कछुक खाहु जो भावै मोहन, दैरी माखन-रोटी ।
सूरदास प्रभु जीवहु जुग-जुग हरिहलधर की जोटी ॥

287. मैं अपनी सब गाइ चरैहौं

मैं अपनी सब गाइ चरैहौं ।
प्रात होत बल कैं सँग जैहौं, तेरे कहें न रैहौं ॥
ग्वाल-बाल गाइन के भीतर, नैंकहु डर नहिं लागत ।
आजु न सोवौं नंद-दुहाई, रैनि रहौंगौ जागत ॥
और ग्वाल सब गाइ चरैहैं मैं घर बैठौ रेहौं ?
सूर स्याम तुम सोइ रहौ अब, प्रात जान मैं दैंहौं ॥

राग सारंग

288. बहुतै दुख हरि सोइ गयौ री

बहुतै दुख हरि सोइ गयौ री ।
साँझहि तैं लाग्यौ इहि बातहिं, क्रम-क्रम बोधि लयौरी ॥
एक दिवस गयौ गाइ चरावन, ग्वालनि संग सबारै ।
अब तौ सोइ रह्यौ है कहि कै, प्रातहि कहा बिचारै ॥
यह तौ सब बलरामहिं लागै, सँग लै गयौ लिवाइ ।
सूर नंद यह कहत महरि सौं, आवन दै फिरि धाइ ॥

राग केदारौ

289. पौढ़े स्याम जननि गुन गावत

पौढ़े स्याम जननि गुन गावत ।
आजु गयौ मेरौ गाइ चरावन, कहि-कहि मन हुलसावत ॥
कौन पुन्य-तप तैं मैं पायौ ऐसौ सुंदर बाल ।
हरषि-हरषि कै देति सुरनि कौं सूर सुमन की माल ॥

राग कान्हरौ

290. करहु कलेऊ कान्ह पियारे

करहु कलेऊ कान्ह पियारे !
माखन-रोटी दियौ हाथ पर, बलि-बलि जाउँ जु खाहु लला रे ॥
टेरत ग्वाल द्वार हैं ठाढ़े, आए तब के होत सबारे ।
खेलहु जाइ घोष के भीतर, दूरि कहूँ जनि जैयहु बारे ॥
टेरि उठे बलराम स्याम कौं, आवहु जाहिं धेनु बन चारे ।
सूर स्याम कर जोरि मातु सौं, गाइ चरावन कहत हहा रे ॥

291. मैया री मोहि दाऊ टेरत

मैया री मोहि दाऊ टेरत ।
मोकौं बन-फल तोरि देत हैं, आपुन गैयनि घेरत ॥
और ग्वाल सँग कबहुँ न जैहौं, वै सब मोहि खिझावत ।
मैं अपने दाऊ सँग जैहौं, बन देखैं सुख पावत ।
आगें दै पुनि ल्यावत घर कौं, तू मोहि जान न देति ।
सूर स्याम जसुमति मैया सौं हा-हा करि कहै केति ॥

292. बोलि लियौ बलरामहि जसुमति

बोलि लियौ बलरामहि जसुमति ।
लाल सुनौ हरि के गुन , काल्हिहि तैं लँगरई करत अति ॥
स्यामहि जान देहि मेरैं सँग, तू काहैं डर मानति ।
मैं अपने ढिग तैं नहिं टारौं, जियहिं प्रतीति न आनति ॥
हँसी महरि बल की बतियाँ सुनि, बलिहारी या मुख की ।
जाहु लिवाइ सूर के प्रभु कौं, कहति बीर के रुख की ॥

राग सारंग

293. अति आनंद भए हरि धाए

अति आनंद भए हरि धाए ।
टेरत ग्वाल-बाल सब आवहु, मैया मोहि पठाए ॥
उत तैं सखा हँसत सब आवत, चलहु कान्ह! बन देखहिं ।
बनमाला तुम कौं पहिरावहिं, धातु-चित्र तनु रेखहिं ॥
गाइ लई सब घेरि घरनि तैं, महर गोप के बालक ।
सूर स्याम चले गाइ चरावन, कंस उरहि के सालक ॥

राग नट

294. नंद महर के भावते, जागौ मेरे बारे

नंद महर के भावते, जागौ मेरे बारे ।
प्रात भयौ उठि देखिऐ, रबि-किरनि उज्यारे ॥
ग्वाल-बाल सब टेरहीं, गैया बन चारन ।
लाल! उठौ मुख धीइऐ, लागी बदन उघारन ॥
मुख तैं पट न्यारौ कियौ, माता कर अपनैं ।
देखि बदन चकित भई, सौंतुष की सपनैं ॥
कहा कहौं वा रूप की, को बरनि बतावै ।
सूर स्याम के गुन अगम, नंद-सुवन कहावै ॥

राग बिलावल

295. लालहि जगाइ बलि गई माता

लालहि जगाइ बलि गई माता ।
निरखि मुख-चंद-छबि, मुदित भइ मनहिं-मन ,कहत आधैं बचन भयौ प्राता ।
नैन अलसात अति, बार-बार जमुहात , कंठ लगि जात, हरषात गाता ।
बदन पोंछियौ जल जमुन सौं धौइ कै,कह्यौ मुसुकाइ, कछु खाहु ताता ॥
दूध औट्यौ आनि, अधिक मिसिरी सानि ,लेहु माखन पानि प्रान-दाता ।
सूर-प्रभु कियौ भोजन बिबिध भाँति सौं,पियौ पय मोद करि घूँट साता ॥

राग रामकली

296. उठे नंद-लाल सुनत सुनत जननी मुख बानी

उठे नंद-लाल सुनत सुनत जननी मुख बानी ।
आलस भरे नैन, सकल सोभा की खानी ॥
गोपी जन बिथकित ह्वै चितवतिं सब ठाढ़ी ।
नैन करि चकोर, चंद-बदन प्रीति बाढ़ी ॥
माता जल झारी ले, कमल-मुख पखार्‌यौ ।
नैन नीर परस करत आलसहि बिसार्‌यौ ॥
सखा द्वार ठाढ़े सब, टेरत हैं बन कौं ।
जमुना-तट चलौ कान्ह, चारन गोधन कौं ॥
सखा सहित जेंवहु, मैं भोजन कछु कीन्हौ ।
सूर स्याम हलधर सँग सखा बोलि लीन्हौ ॥

राग ललित

297. दोउ भैया जेंवत माँ आगैं

दोउ भैया जेंवत माँ आगैं ।
पुनि-पुनि लै दधि खात कन्हाई, और जननि पै माँगैं ॥
अति मीठौ दधि आजु जमायौ, बलदाऊ तुम लेहु ।
देखौं धौं दधि-स्वाद आपु लै, ता पाछैं मोहि देहु ॥
बल-मोहन दोउ जेंवत रुचि सौं, सुख लूटति नँदरानी ।
सूर स्याम अब कहत अघाने, अँचवन माँगत पानी ॥

राग बिलावल

298. (द्वारैं) टेरत हैं सब ग्वाल कन्हैया, आवहु बेर भई

(द्वारैं) टेरत हैं सब ग्वाल कन्हैया, आवहु बेर भई ।
आवहु बेगि, बिलम जनि लावहुँ, गैया दूरि गई ॥
यह सुनतहिं दोऊ उठि धाए, कछु अँचयौ कछु नाहिं ।
कितिक दूर सुरभी तुम छाँड़ी, बन तौ पहुँची नाहिं ॥
ग्वाल कह्यौ कछु पहुँची ह्वै हैं, कछु मिलिहैं मग माहिं ।
सूरदास बल मोहन धैया, गैयनि पूछत जाहिं ॥

राग रामकली

299. बन पहुँचत सुरभी लइँ जाइ

बन पहुँचत सुरभी लइँ जाइ ।
जैहौ कहा सखनि कौं टेरत, हलधर संग कन्हाइ ।
जेंवत परखि लियौ नहिं हम कौं, तुम अति करी चँड़ाइ ॥
अब हम जैहैं दूरि चरावन, तुम सँग रहै बलाइ ॥
यह सुनि ग्वाल धाइ तहँ आए, स्यामहिं अंकम लाइ ।
सखा कहत यह नंद-सुवन सौं, तुम सबके सुखदाइ ॥
आजु चलौ बृंदाबन जैऐ, गैयाँ चरैं अघाइ ।
सूरदास-प्रभु सुनि हरषित भए, घर तैं छाँक मँगाइ ॥

राग बिलावल

300. चले सब बृंदाबन समुहाइ

चले सब बृंदाबन समुहाइ ।
नंद-सुवन सब ग्वालनि टेरत, ल्यावहु गाइ फिराइ ॥
अति आतुर ह्वै फिरे सखा सब, जहँ-तहँ आए धाइ ।
पूछत ग्वाल बात किहिं कारन, बोले कुँवर कन्हाइ ॥
सुरभी बृंदाबन कौं हाँकौ, औरनि लेहु बुलाइ ।
सूर स्याम यह कही सबनि सौं,आपु चले अतुराइ ॥

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