Shailendra
शैलेन्द्र
शंकरदास केसरीलाल शैलेन्द्र (30 अगस्त, 1923-14 दिसंबर 1966) हिन्दी व भोजपुरी के प्रमुख गीतकार थे।
उनका जन्म रावलपिंडी में और देहान्त मुम्बई में हुआ। उन्होंने राज कपूर के साथ बहुत काम किया। उन्हें तीन बार
सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला । उनका का एकमात्र काव्य-संगह 'न्यौता और चुनौती' मई 1955 ई.
में प्रकाशित हुआ । शैलेन्द्र को फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी 'मारे गए गुलफाम' बहुत पसंद आई। उन्होंने गीतकार
के साथ निर्माता बनने की ठानी। राजकपूर और वहीदा रहमान को लेकर 'तीसरी कसम' बनाई।
शैलेन्द्र न्यौता और चुनौती
शैलेन्द्र की प्रसिद्ध कविताएँ
फ़िल्मी गीत शैलेन्द्र
होठों पे सच्चाई रहती है
ये चमन हमारा अपना है
देश की धरती ने ललकारा
मत रो माता, लाल तेरे बहुतेरे
आ अब लौट चलें
मेरा जूता है जापानी
मेरा नाम राजू घराना अनाम
नन्हें-मुन्ने बच्चे ! तेरी मुट्ठी में क्या है
नींदपरी लोरी गाए, माँ झुलाए पालना
आ जा रे आ निंदिया तू आ
एक दौर नया दुनिया में शुरु बच्चों के क़दम से होगा
नानी तेरी मोरनी को मोर ले गए
जूही की कली मेरी लाडली
तितली उड़ी, उड़ जो चली
मुन्ना बड़ा प्यारा, अम्मी का दुलारा
मैं गाऊँ तुम सो जाओ
भैया मेरे राखी के बंधन को निभाना
बहना ने भाई की कलाई से प्यार बाँधा है
अबके बरस भेज भैया को बाबुल
लाली लाली डोलिया में लाली रे दुल्हनिया
गोरी, बाबुल का घरवा अब है बिदेसवा
मन भावन के घर जाए गोरी
आवारा हूँ, आवारा हूँ
ऐ मेरे दिल कहीं और चल
कोई लौटा दे मेरे, बीते हुए दिन
तू प्यार का सागर है
दिल अपना औ प्रीत पराई
ये शाम की तन्हाइयाँ ऐसे में तेरा ग़म
रमय्या वस्तावय्या
राजा की आएगी बारात
वहाँ कौन है तेरा, मुसाफ़िर
सजनवा बैरी हो गए हमार
सुर न सजे क्या गाऊँ मैं
हैं सबसे मधुर वो गीत जिन्हें
पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई
प्रीत ये कैसी बोल री दुनिया
बरसात में हमसे मिले तुम सजन
बहुत दिया देने वाले ने तुझ को
बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना
मिट्टी से खेलते हो बार-बार किस लिए
मुझे तुम से कुछ भी न चाहिए
बदलेगी ये दुनिया एक दिन बदलेगी
ओ जानेवाले, हो सके तो लौटके आना
ओ जोगी जब से तू आया मेरे द्वारे
ओ रे माँझी, ओ रे माँझी
मन रे, तू ही बता क्या गाऊँ
तेरे बिन सूने, नैन हमारे
आज फिर जीने की तमन्ना है
पिया तोसे नैना लागे रे
सुहाना सफ़र और ये मौसम हंसीं
छोटा-सा घर होगा बादलों की छाँव में
टूटे हुए ख़्वाबों ने, हमको ये सिखाया है
ओ बसंती पवन पागल
किसीने अपना बनाके मुझको
किसीने अपना बनाके मुझको
जाओ रे, जोगी तुम जाओ रे
तुम्हारी भी जय-जय हमारी भी जय-जय
केतकी, गुलाब, जूही, चम्पक बन फूले
ये मेरा दीवानापन है, या मुहब्बत का सुरूर
बोल री कठपुतली डोरी कौन संग बाँधी
याद न जाए, बीते दिनों की
दोस्त दोस्त ना रहा
चलत मुसाफ़िर मोह लियो रे