विविध कविताएँ : शैलेन्द्र

Hindi Poetry : Shailendra

क्रान्ति के लिए जली मशाल (समूहगान)

क्रान्ति के लिए जली मशाल
क्रान्ति के लिए उठे क़दम !

भूख के विरुद्ध भात के लिए
रात के विरुद्ध प्रात के लिए
मेहनती ग़रीब जाति के लिए
हम लड़ेंगे, हमने ली कसम !

छिन रही हैं आदमी की रोटियाँ
बिक रही हैं आदमी की बोटियाँ
किन्तु सेठ भर रहे हैं कोठियाँ
लूट का यह राज हो ख़तम !

तय है जय मजूर की, किसान की
देश की, जहान की, अवाम की
ख़ून से रंगे हुए निशान की
लिख रही है मार्क्स की क़लम !

हर ज़ोर जुल्म की टक्कर में

हर ज़ोर जुल्म की टक्कर में, हड़ताल हमारा नारा है !

तुमने माँगे ठुकराई हैं, तुमने तोड़ा है हर वादा
छीनी हमसे सस्ती चीज़ें, तुम छंटनी पर हो आमादा
तो अपनी भी तैयारी है, तो हमने भी ललकारा है
हर ज़ोर जुल्म की टक्कर में हड़ताल हमारा नारा है !

मत करो बहाने संकट है, मुद्रा-प्रसार इंफ्लेशन है
इन बनियों चोर-लुटेरों को क्या सरकारी कन्सेशन है
बगलें मत झाँको, दो जवाब क्या यही स्वराज्य तुम्हारा है ?
हर ज़ोर जुल्म की टक्कर में हड़ताल हमारा नारा है !

मत समझो हमको याद नहीं हैं जून छियालिस की रातें
जब काले-गोरे बनियों में चलती थीं सौदों की बातें
रह गई ग़ुलामी बरकरार हम समझे अब छुटकारा है
हर ज़ोर जुल्म की टक्कर हड़ताल हमारा नारा है !

क्या धमकी देते हो साहब, दमदांटी में क्या रक्खा है
वह वार तुम्हारे अग्रज अँग्रज़ों ने भी तो चक्खा है
दहला था सारा साम्राज्य जो तुमको इतना प्यारा है
हर ज़ोर जुल्म की टक्कर में हड़ताल हमारा नारा है !

समझौता ? कैसा समझौता ? हमला तो तुमने बोला है
महंगी ने हमें निगलने को दानव जैसा मुँह खोला है
हम मौत के जबड़े तोड़ेंगे, एका हथियार हमारा है
हर ज़ोर जुल्म की टक्कर हड़ताल हमारा नारा है !

अब संभले समझौता-परस्त घुटना-टेकू ढुलमुल-यकीन
हम सब समझौतेबाज़ों को अब अलग करेंगे बीन-बीन
जो रोकेगा वह जाएगा, यह वह तूफ़ानी धारा है
हर ज़ोर जुल्म की टक्कर में हड़ताल हमारा नारा है !

(1949 में रचित )

सुन भैया रहिमू पाकिस्तान के

सुन भैया रहिमू पाकिस्तान के
भुलवा पुकारे हिंदुस्तान से

भुलवा जो था तेरे पड़ोस में
संग-संग थे जब से आए होश में
सोना- रूपा धरती की गोद में
खेले हम दो बेटे किसान के ।
सुन भैया …

दोनों के आँगन एक थे भैया
कजरा और सावन एक थे भैया
ओढ़न पहरावन एक थे भैया
जोधा हम दोनों एक ही मैदान के
सुन भैय्या …

परदेसी कैसी चाल चल गया
झूठे सपनों से हमको छल गया
डर के वह घर से तो निकल गया
दो आँगन कर गया मकान के ।
सुन भैया …

मुश्किल से भर पाए हैं दिल के घाव
कल ही बुझा है लाशों का अलाव
अब भी मंझधार में है अपनी नाव
फिर क्यों आसार हैं तूफान के ।
सुन भैया …

तेरे मन भाया जो नया मेहमान
आया जो देने शक्ति का वरदान
आँखों से काम ले भैया पहचान
ले चेहरे -मोहरे शैतान के ।
सुन भैया …

इसने ही जग को दिए हथियार
फांसी के फंदे बांटे है उधार
इसका तो काम लाशों का ब्यापार
बचना ये सौदे हैं नुकसान के ।
सुन भैया …

मैं संभलू भैया तू भी घर संभाल
गोला-बारूद ये लकड़ी की ढाल
छत पर मत रखो यह परदेशी माल
कहते हैं नर-नारी जहान के ।
सुन भैया …

हर कोई गुस्सा थूको मुस्कराओ
जो भी उलझन है मिल-जुल के सुलझाओ
सपनों का स्वर्ग धरती पर बसाओ
बरसाओ मोती गेहूं -धान के ।
सुन भैया …

पावस

मुझे रंगीन कागजों की जरूरत नहीं
हमें मेहनती शरीर से पसीने की
झलकती हुई बूँदें चाहिए
जी हाँ मैं कवि हूँ
कविता लिखना चाहता हूँ
मुझे बरसात की झीनी-झीनी फुहारें मिलें न मिलें
हमें पावस की उमस चाहिए
जी हाँ मैं किसान हूँ
क्रांति-बीज बोना चाहता हूँ
मुझसे अभी सावन-भादों-क्वार-कातिक
या फागुन की बातें मत करो
मैं आसाढ़ की पहली बारिश में भीग कर
ठहरी हवा में उमस से आकुल-व्याकुल
होना चाहता हूँ।

जलता है पंजाब हमारा प्यारा

जलता है, जलता है पंजाब हमारा प्यारा
भगत सिंह की आँखों का तारा

किसने हमारे जलियांवाले बाग़ में आग लगाई
किसने हमारे देश में फूट की ये ज्वाला धधकाई
किसने माता की अस्मत को बुरी नज़र से ताका
धर्म और मज़हब से अपनी बदनीयत को ढांका
कौन सुखाने चला है पाँचों नदियों की जलधारा
जलता है, जलता है पंजाब हमारा प्यारा।

हम जान गए दुश्मन तेरी चालें
साजिश है तेरी हमें भिड़ाकर उखड़ी जड़ें जमा ले
तूने ही कुछ मज़हब के अंधों को है उकसाया
कुछ धर्म के ठेकेदारों को तूने ही भड़काया
उफ़ ! कैसा विष फैलाया... जलता है, जलता है
जलता है, जलता है पंजाब हमारा प्यारा।

(अधूरी रचना)

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