Senapati
सेनापति

सेनापति (1646-?) अनूपशहर के रहने वाले कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे। इनके पिता का नाम 'गंगाधार', पितामह का 'परशुराम' और गुरु जी का नाम 'हीरामणि दीक्षित' था। अन्य प्राचीन कवियों की भाँति सेनापति का जीवनवृत संदिग्ध है। सेनापति भक्ति काल एवं रीति काल के सन्धि युग के कवि हैं। इनकी रचनाओं में हिन्दी साहित्य की दोनों धाराओं का प्रभाव पड़ा है; जिसमें भक्ति और शृंगार दोनों का मिश्रण है। इनके ऋतु वर्णन में प्रकृति का सूक्ष्म निरीक्षण है। सेनापति इनका उपनाम है । इनकी भाषा शुद्ध साहित्यिक ब्रज भाषा है। जिसमें तत्सम शब्दों की ओर झुकाव अधिक है । सेनापति के दो मुख्य ग्रंथ हैं- 'काव्य-कल्पद्रुम तथा 'कवित्त-रत्नाकर।

सेनापति की कविताएँ

  • आत्म-परिचय
  • ऋतु वर्णन-वसंत
  • ऋतु वर्णन-ग्रीष्म
  • ऋतु वर्णन-वर्षा
  • ऋतु वर्णन-शरद्
  • ऋतु वर्णन-हेमन्त
  • ऋतु वर्णन-शिशिर
  • सिवजू की निध्दि, हनूमान की सिध्दि
  • तुम करतार, जन-रच्छा के करनहार
  • सोहति उतंग, उत्तमंग ससि संग गंग
  • रावन को बीर 'सेनापति रघुबीर जू की
  • फूलन सों बाल की, बनाई गुही बेनी लाल
  • लाल-लाल टेसू, फूलि रहे हैं बिसाल संग
  • केतकि असोक, नव चंपक बकुल कुल
  • बृष को तरनि तेज, सहसौ किरन करि
  • सेनापति ऊँचे दिनकर के चलत लुवैं
  • चौरासी समान, कटि किंकिनी बिराजत है
  • नवल किसोरी भोरी केसर ते गोरी
  • तब न सिधारी साथ, मीड़त है अब हाथ
  • केतो करौ कोई, पैए करम लिखोई ताते
  • महा मोहकंदनि में जगत जकंदनि में
  • बानि सौं सहित सुबरन मुँह रहैं जहाँ
  • सेनापति उनए नए जलद सावन के
  • दूरि जदुराई सेनापति सुखदाई देखौ
  • बालि को सपूत कपिकुल पुरहूत
  • नाहीं नाहीं करै, थोडो माँगे सब दैन कहै
  • कुस लव रस करि गाई सुर धुनि कहि
  • पावन अधिक सब तीरथ तैं जाकी धार
  • राखति न दोषै पोषे पिंगल के लच्छन कौं
  • तुकन सहित भले फल कौं धरत सूधे
  • मूढ़न कौ अगम, सुगम एक ताकौ, जाकी
  • लीने सुघराई संग सोहत ललित अंग
  • कौल की है पूरी जाकी दिन-दिन बाढ़ै छवि
  • दोष सौ मलीन, गुन-हीन कविता है
  • तोरयो है पिनाक, नाक-पल बरसत फूल