पदावली : संत मीरा बाई (भाग-6)

Padavali : Sant Meera Bai (Part-6)

1. मत डारो पिचकारी

मत डारो पिचकारी। मैं सगरी भिजगई सारी॥टेक॥
जीन डारे सो सनमुख रहायो। नहीं तो मैं देउंगी गारी॥१॥
भर पिचकरी मेरे मुखपर डारी। भीजगई तन सारी॥२॥
लाल गुलाल उडावन लागे। मैं तो मनमें बिचारी॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमल बलहारी४॥

2. मतवारो बादर आए रे

मतवारो बादर आए रे, हरि को सनेसो कबहुँ न लाये रे।।टेक।।
दादर मोर पपइया बोलै, कोयल सबद सुणाये रे।
(इक) कारी अँधियारी बिजली चमकै, बिरहणि अति डरपाये रे।
(इक) गाजै बाजै पवन मधुरिमा, मेहा अति झड़ लाये रे।
(इक) कारी नाग बिरह अति जारी, मीराँ मन हरि भाये रे।।

(सनेसो=सन्देश, कबहूँ=कभी भी, दादर=मेंढ़क, मधुरिमा=
मन्दगामी,धीरे धीरे चलने वाला)

3. मथुराके कान मोही मोही मोही

मथुराके कान मोही मोही मोही॥टेक॥
खांदे कामरीया हातमों लकरीया। सीर पाग लाल लोई लोई॥१॥
पाउपें पैंजण आण वट बीचवे। चाल चलत ताता थै थै थै॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। हृदय बसत प्रभू तुही तुही तुही तुही॥३॥

4. मन अटकी मेरे दिल अटकी

मन अटकी मेरे दिल अटकी। हो मुगुटकी लटक मन अटकी॥टेक॥
माथे मुकुट कोर चंदनकी। शोभा है पीरे पटकी॥१॥
शंख चक्र गदा पद्म बिराजे। गुंजमाल मेरे है अटकी॥२॥
अंतर ध्यान भये गोपीयनमें। सुध न रही जमूना तटकी॥३॥
पात पात ब्रिंदाबन धुंडे। कुंज कुंज राधे भटकी॥४॥
जमुनाके नीर तीर धेनु चरावे। सुरत रही बनशी बटकी॥५॥
फुलनके जामा कदमकी छैया। गोपीयनकी मटुकी पटकी॥६॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। जानत हो सबके घटकी॥७॥

5. मदन गोपाल नंदजीको लाल

मदन गोपाल नंदजीको लाल प्रभुजी॥टेक॥
बालपनकी प्रीत बिखायो। नवनीत धरियो नंदलाल॥१॥
कुब्जा हीनकी तुम पत राखो। हम ब्रीज नारी भई बेहाल॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। हम जपे यही जपमाल॥३॥

6. मन केरो जेवो चंद्र छे

मन केरो जेवो चंद्र छे। रास रमे नंद लालो रे॥टेक॥
नटवर बेश धर्यो नंद लाले। सौ ओघाने चालोरे॥१॥
गानतान वाजिंत्र बाजे। नाचे जशोदानो काळोरे॥२॥
सोळा सहस्त्र अष्ट पटराणी। बच्चे रह्यो मारो बहालोरे॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। रणछोडे दिसे छोगळोरे॥४॥

7. मन माने जब तार प्रभुजी

मन माने जब तार प्रभुजी॥टेक॥
नदिया गहेरी नाव पुराणी। कैशी उतरु पार॥१॥
पोथी पुरान सब कुच देखे। अंत न लागे पार॥२॥
मीर कहे प्रभु गिरिधर नागर। नाम निरंतर सार॥३॥

8. मनमोहन गिरिवरधारी

मनमोहन गिरिवरधारी॥टेक॥
मोर मुकुट पीतांबरधारी। मुरली बजावे कुंजबिहारी॥१॥
हात लियो गोवर्धन धारी। लिला नाटकी बांकी गत है न्यारी॥२॥
ग्वाल बाल सब देखन आयो। संग लिनी राधा प्यारी॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। आजी आईजी हमारी फेरी॥४॥

9. मन मोहन दिलका प्यारा

मन मोहन दिलका प्यारा॥टेक॥
माता जसोदा पालना हलावे। हातमें लेकर दोरा॥१॥
कबसे अंगनमों खडी है राधा। देखे किसनका चेहरा॥२॥
मोर मुगुट पीतांबर शोभे। गळा मोतनका गजरा॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। चरन कमल बलहारी॥४॥

10. मन रे परसि हरिके चरण

मन रे परसि हरिके चरण।

सुभग सीतल कंवल कोमल, त्रिविध ज्वाला हरण।
जिण चरण प्रहलाद परसे, इंद्र पदवी धरण।।

जिण चरण ध्रुव अटल कीन्हे, राख अपनी सरण।
जिण चरण ब्रह्मांड भेट्यो, नखसिखां सिर धरण।।

जिण चरण प्रभु परसि लीने, तेरी गोतम घरण।
जिण चरण कालीनाग नाथ्यो, गोप लीला-करण।।

जिण चरण गोबरधन धारयो, गर्व मधवा हरण।
दासि मीरा लाल गिरधर, अगम तारण तरण।।

पाठांतर
मण में परस हरि के चरण ।।टेक।।
सुभग सीतल कवल कोमल, जगत ज्वाला, हरण।
इण चरण प्रहलाद परस्याँ, इन्द्र पदवी धरण।
इण चरण ध्रुव अटल करस्यां, सरण असरण सरण।
इण चरण ब्रह्माण्ड भेट्याँ, नखसिखाँ सिर भरण।
इण चरण कालियाँ नाथ्यां, गोपीलीला करण।
इण चरण गोबरधन धारयाँ गरब मधवा हरण।
दासि मीराँ लाल गिरधर, अगम तारण तरण।।

(परसि=स्पर्श कर, छू, हरि=श्रीकृष्ण, सुभग=सुन्दर,
जगत ज्वाला=संसार के विविध ताप, दैहिक, दैविक
और भौतिक ताप; दैहिक दुःखों के दो भेद हैं:
शारीरिक रोग,जैसे-खाँसी,ज्वर आदि; मानसिक रोग,
जैसे-क्रोध, लोभ आदि। देवताओं अथवा प्राकृतिक
शक्तियों के द्वारा दिये जाने वाले दैविक दुःख
कहलाते हैं, जैसे, आँधी, ओले, भूचाल आदि। स्थावर
या जंगम प्राणियों द्रारा प्रदत्त दुःख भौतिक दुःख
कहलातै हैं, जैसे-सर्प-दंश,हिंस्र पशुओं के आक्रमण
आदि; त्रिविध=तीन तरह की, परस्याँ=स्पर्श करके,
नखसिखा=नखशिख तक,पूर्णरूप से, सिरी=श्री,शोभा,
कालियाँ=काली नाग। नाथ्या=वश में किया, मधवा=
इन्द्र, तारण=उतारने में, तरण=तरणि,नौका)

11. मनुवा बाबारे सुमरले मन सिताराम

मनुवा बाबारे सुमरले मन सिताराम॥टेक॥
बडे बडे भूपती सुलतान उनके। डेरे भय मैदान॥१॥
लंकाके रावण कालने खाया। तूं क्या है कंगाल॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर लाल। भज गोपाल त्यज जंजाल॥३॥

12. माई तेरो काना कोन गुनकारो

माई तेरो काना कोन गुनकारो। जबही देखूं तबही द्वारहि ठारो॥टेक॥
गोरी बावो नंद गोरी जशू मैया। गोरो बलिभद्र बंधु तिहारे॥१॥
कारो करो मतकर ग्वालनी। ये कारो सब ब्रजको उज्जारो॥२॥
जमुनाके नीरे तीरे धेनु चराबे। मधुरी बन्सी बजावत वारो॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरणकमल मोहि लागत प्यारो॥४॥

13. माई मेरो मोहनमें मन हारूं

माई मेरो मोहनमें मन हारूं॥टेक॥
कांह करुं कीत जाऊं सजनी। प्रान पुरससु बरयो॥१॥
हूं जल भरने जातथी सजनी। कलस माथे धरयो॥२॥
सावरीसी कीसोर मूरत। मुरलीमें कछु टोनो करयो॥३॥
लोकलाज बिसार डारी। तबही कारज सरयो॥४॥
दास मीरा लाल गिरिधर। छान ये बर बरयो॥५॥

14. माई मेरो मोहने मन हर्यो

माई मेरो मोहने मन हर्यो।।टेक।।
कहा करूँ कित जाऊं सजनी, प्रान पुरूष सूं बर्यो।
हूँ जल भरने जात थी सजनी, कलस माथे करयो।
साँवरी सी किसोर मूरत, कछुक टोनो करयो।
लोक लाज बिसारी डारी, तबहीं कारज सरयो।
दासि मीराँ लाल गिरधर, छान ये वर बरयो।।

(मोहने=कृष्णने, पुरूष=ब्रह्म,कृष्ण, बर्यो=मिल
गए, माथे=सिर पर, टोनो=जादू, सरयो=सिद्ध हुआ,
छान=छिपे-छिपे, बरयो=वरण किया)

15. माई म्हाणो सुपणा मां परण्यां दीनानाथ

माई म्हाणो सुपणा मां परण्यां दीनानाथ।
छप्पण कोटां जणां पधारयां दूल्हो सिरी व्रजनाथ।
सुपणा मां तोरण बेंध्यारी सुपणामां गह्या हाथ।
सुपणां मां म्हारे परण गया पायां अचल सुहाग।
मीरां रो गिरधर मिल्यारी, पुरब जणम रो भाग।।

(सुपण=स्वप्न, परण्या=विवाह कर लिया, जणाँ=
जन, बराती, सिरी=श्री, ब्रजनाथ=श्रीकृष्ण, तोरण=
द्वार)

16. माई म्हारी हरिहूँ न बूझयाँ बात

माई म्हारी हरिहूँ न बूझयाँ बात।।टेक।।
पड माँसू प्राण पापी, निकसि क्यूं णा जात।
पटा णाँ खोल्या मुखाँ णा बोल्या, सांझ भयाँ प्रभात।
अबोलणां जुग बीतण लागा कायाँरी कुसलात।
सावण आवण हरि आवण री, सुण्या म्हाणे बात।
घोर रैणां बीजु चमकां बार निणताँ प्रभात।
मीराँ दासी स्याम राती, ललक जीवणाँ जात।।

(न बूझयाँ बात=बात न पूछना, पड मांसूँ=
शरीर में से, पटा=पट,घूँघट, अबोलणाँ=बिना
बोले ही, कायाँरी=कैसी, कुसलात=कुशल, रैणां=
रैन,रात, बीजु=बिजली, बार निणताँ=घड़ी
गिनते-गिनते)

17. माई म्हां गोविन्द, गुण गास्यां

माई म्हां गोविन्द, गुण गास्यां।।टेक।।
चरणम्रति रो नेम सकारे, नित उठ दरसण आस्यां।
हरि मन्दिर मां निरत करावां घूँघरयां घमकास्यां।
स्याम नाम रो झांझ चलास्यां, भोसागर तर जास्यां।
यो संसार बीड़रो कांटो, गेल प्रीतम अटकास्यां।
मीरां रे प्रभु गिरधरनागर, गुन गावां सुख पास्यां।।

(गास्याँ=गाऊंगी, चरणम्रति=चरणामृता, सकारे=
प्रातःकाल, निरत=नृत्य, झांझ=एक प्रकार का
बाजा, भोसागर=भवसागर,संसार रूपी सागर,
बीड़रो=बेरी का, गेल=गया, प्रीतम=प्रियतम)

18. माई री! मैं तो लियो गोविंदो मोल

माई री! मैं तो लियो गोविंदो मोल।
कोई कहै छानै, कोई कहै छुपकै, लियो री बजंता ढोल।
कोई कहै मुहंघो, कोई कहै सुहंगो, लियो री तराजू तोल।
कोई कहै कारो, कोई कहै गोरो, लियो री अमोलिक मोल।
या ही कूं सब जाणत है, लियो री आँखी खोल।
मीरा कूं प्रभु दरसण दीज्‍यो, पूरब जनम को कोल।

पाठांतर
माई मैनें गोविंद लीन्हो मोल॥टेक॥
कोई कहे हलका कोई कहे भारी। लियो है तराजू तोल॥१॥
कोई कहे ससता कोई कहे महेंगा। कोई कहे अनमोल॥२॥
ब्रिंदाबनके जो कुंजगलीनमों। लायों है बजाकै ढोल॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। पुरब जनमके बोल॥४॥

पाठांतर
माई री म्हालियाँ गोबिन्दाँ मोल ।।टेक।।
थें कह्याँ छाणो म्हां काँ चोड्‌डे, लियाँ बजन्ता ढोल।
थें कह्यां मुंहोधो म्हां सस्तो, लिया री तराजां तोल।
तण वारां म्हां जीवण वारां, वरां अमोलक मोल।
मीरां कूं प्रभु दसरण दीज्यां, पूरब जन्म को कोल।।

(म्हा=मैं, थें कह्यां=तुम कहती हो, छाणे=छिपकर,
म्हां कां=मैं कहती हूँ, चोड्‌डे=खुले आम, बजन्ता
ढोल=ढोल बजाकर,प्रकट रूप से, मुंहोधो=महँगा,
तराजां=तराजू, कोल=वचन)

पाठांतर
माई में तो लियो रमैया मोल ।।टेक।।
कोई कहै छानी, कोई कहै चोरी, लियों है बजता ढोल।
कोई कहै कारो, कोई कहै गोरो लियो है अखीं खोल।
कोई कहै हल्का, कोई कहै महंगा, लियो है तराजू तोल।
तन का गहना मै सब कुछ दीन्हा, दियो है बाजूबन्द खोल।
मीराँ के प्रभु गिरधरनागर, पूरब जनम का कोल।।

(रमैया=श्रीकृष्ण, छानी=छिपकर, बजता ढोल=ढोल बजा
बजाकर, अखीं=आँखें, पूरब जन्म=पूर्व जन्म, कोल=वचन)

19. मागत माखन रोटी

मागत माखन रोटी। गोपाळ प्यारो मागत माखन रोटी॥टेक॥
मेरे गोपालकू रोटी बना देऊंगी। एक छोटी एक मोटी॥१॥
मेरे गोपालकू बीहा करुंगी। बृषभानकी बेटी॥२॥
मेरे गोपालकू झबला शिवाऊंगी। मोतनकी लड छुटी॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमलपा लोटी॥४॥

20. मिलता जाज्यो हो जी गुमानी

मिलता जाज्यो हो जी गुमानी, थाँरी सूरत देखि लुभानी।।टेक।।
मेरो नाम बूझि तुम लीज्यो, मैं हूँ बिरह दिवानी।
रात दिवस कल नाहिं परत है, जैसे मीन बिन पानी।
दरस बिन; मोहि कछु न सुहावे, तलफ तलफ मर जानी।
मीराँ तो चरणन की चेरी, सुन लीजे सुखदानी।।

(गुमानी=गर्बीला, लुभानी=मोहित हो गई, मीन=
मछली, चेरी=दासी)

21. मीरा मगन भई हरि के गुण गाय

मीरा मगन भई हरि के गुण गाय॥
सांप पिटारा राणा भेज्या, मीरा हाथ दिया जाय।
न्हाय धोय जब देखन लागी, सालिगराम गई पाय॥
जहरका प्याला राणा भेज्या, इम्रत दिया बनाय।
न्हाय धोय जब पीवन लागी, हो गई अमर अंचाय॥
सूली सेज राणा ने भेजी, दीज्यो मीरा सुवाय।
सांझ भई मीरा सोवण लागी, मानो फूल बिछाय॥
मीरा के प्रभु सदा सहाई, राखे बिघन हटाय।
भजन भाव में मस्त डोलती, गिरधर पर बलि जाय॥

(मगन=प्रसन्ना, अंचाय=पीकर, बिघन=बाधा)

22. मीरां लागो रंग हरी

मीरां लागो रंग हरी औरन रंग अटक परी।।टेक।।
चूडो म्हारे तिलक अरू माला, सील बरत सिणगारो।
और सिंगार म्हारे दाय न आवे, यों गुर ग्यान हमारो।
कोई निन्दो कोई बिन्दो म्हें तो गुण गोविन्द का गास्यां।
जिण मारग म्हांरा पधारै, उस मारग म्हे जास्यां।
चोरी न करस्यां जिव न सतास्यां, कांई करसी म्हांरो कोई।
गज से उतर के खर नहिं चढस्यां, ये तो बात न होई।।

(अटक=बाधा, रूकावट, सील बरत=शील व्रत;
आचारव्यवहार, सिणगारो=श्रृगांर, दाय=पसंद,
बिन्दो=वन्दना, प्रसंसा, गज=हाथी, खर=गधा)

23. मुखडानी माया लागी रे

मुखडानी माया लागी रे, मोहन प्यारा।
मुघडुं में जियुं तारूं, सव जग थयुं खारूं, मन मारूं रह्युं न्यारूं रे।
संसारीनुं सुख एबुं, झांझवानां नीर जेवुं, तेने तुच्छ करी फरीए रे।
मीराबाई बलिहारी, आशा मने एक तारी, हवे हुं तो बड़भागी रे॥

(माया=लगन,प्रीति,जोयुं=देखा, तारूं=तेरा, थयुं खारूं=नीरस हो गया,
एवुं=ऐसा, झांझवानाम=मृग-तृष्णा, जेवुं=जैसा, फरीए=घूम रही हूं,
हवे=अब)

24. मुझ अबला ने मोटी नीरांत थई रे

मुझ अबला ने मोटी नीरांत थई रे।
छामलो घरेणु मारे सांचुँ रे।।टेक।।
बाली घड़ावुँ बिट्ठल बर वेरी, हार हरि नो मारे हैये रे।
चित्त माला चतुरमुज चुड़लो, शिद सोनी घरे जइये रे।
झांझरिया जगजीवन केरा, कृष्णाजी कड़ला ने कांवी रे।
बिछिया घुंघरा रामनारायण ना अणवट अन्तरजामी रे।
पेटी घड़ावुँ पुरूषोत्तम केरी, त्रीकम नाम नूं तालूँ रे।
कूची कराबूँ करूणानन्द केरी, तेमां घरेणु मांरूँ घालुँ रे।
सासर वासो सजी से बैठी, हवे नथी कँई कांचूँ रे।
मीरां कहे प्रभु गिरधरनागर, हरिने चरण जाचूँ रे।।

(मोटी=पूरा, नीराँत=भरोसा, थई=हुआ, छामलो=
श्यामलो, श्यामसुन्दर, घरेणु=घर पर, साँचुँ=पधारा,
बाली घड़ाबुँ=कान की बालियां बनवाऊँ, विट्ठल वर=
कृष्ण रूपी पति, शिद=किस लिए,क्यों, सोनी=सुनार,
जइये=जाकर, झांझरिया=एक प्रकार का पैर का
आभुषण, कड़ालने काँवी=कड़ा और पैर का आभूषण,
बिछिया=पैर का आभूषण, अणवट=पैर के अंगूठे का
छल्ला, पेटी=कमर बन्द, त्रीकम=त्रिविक्रम, नामा नूं=
नाम का, तालुं=ताला। कूंची=ताली, सासर=सुसराल,
कांचूं=चोली, कँई=कोई)

25.

मुरलिया बाजा जमणा तीर।।टेक।।
मुरली म्हारो मण हर लीन्हो, चित्त धराँ णा धीर।
श्याम कण्हैया स्याम करमयां, स्याम जमणरो नीर।
धुण मुरली शुण सुध बुध बिसरां, जर जर म्हारो सरीर।
मीरां रे प्रभु गिरधरनागर, बेग हर्यां, म्हा पीर।।

(मुरिलाया=वंशी, मण=मन, स्याम=काले, करमयाँ=
कामरी, जमण रो=यमुना का, जर-जर=जड़ीभूत, बेग=
शीघ्र, पीर=पीड़ा,वेदना)

26. मेरी कानाँ सुणज्यो जी करूणा निधान

मेरी कानाँ सुणज्यो जी करूणा निधान।।टेक।।
रावलो बिड़व म्हाणे रूढ़ो लागां, पीड़त म्हारो प्राण।
सगाँ सनेहाँ म्हारै णाँ क्याँई, दस्यां सकल जहान।
ग्राह गह्याँ गजराज डबार्यां, अछत कर्यां बरदान।
मीराँ दासी अरजाँ करता म्हारो सहारो णा आण।।

(कानाँ सुणज्यो=कानों से सुनिये, करूण=दया,
निधान=भंडार, बिड़द=बिरद,यश, रूढ़ो=उत्तम,
बैर्यां=दुश्मन, अछत=अक्षत,पूर्ण, आण=अन्य,दूसरा)

27. मेरी गेंद चुराई

मेरी गेंद चुराई। ग्वालनारे॥टेक॥
आबहि आणपेरे तोरे आंगणा। आंगया बीच छुपाई॥१॥
ग्वाल बाल सब मिलकर जाये। जगरथ झोंका आई॥२॥
साच कन्हैया झूठ मत बोले। घट रही चतुराई॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरणकमल बलजाई॥४॥

28. मेरी लाज तुम रख भैया

मेरी लाज तुम रख भैया। नंदजीके कुंवर कनैया॥टेक॥
बेस प्यारे काली नागनाथी। फेणपर नृत्य करैया॥१॥
जमुनाके नीर तीर धेनु चरावे। मुखपर मुरली बजैया॥२॥
मोर मुगुट पीतांबर शोभे। कान कुंडल झलकैया॥३॥
ब्रिंदावनके कुंज गलिनमें नाचत है दो भैया॥४॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमल लपटैया॥५॥

29. मेरे घर आवौ सुन्दर स्याम

मेरे घर आवौ सुन्दर स्याम।।टेक।।
तुम आवा बिन सुष नहीं मेरे पीरी परी जैसे पान।
मेरे आसा और न स्वामी एक तिहारी ध्यान।
मीराँ के प्रभु बेगि मिलो अब, राषो जी मेरी मान।।

(सुष=सुख, पीरी=पीली, वेग शीघ्र, राषो=रक्खो,
मान=सम्मान,प्रण, पान=पत्ता)

30. मेरे तो आज साचे राखे

मेरे तो आज साचे राखे हरी साचे। सुदामा अति सुख पायो दरिद्र दूर करी॥१॥
साचे लोधि कहे हरी हाथ बंधाये। मारखाधी ते खरी॥२॥
साच बिना प्रभु स्वप्नामें न आवे। मरो तप तपस्या करी॥३॥
मीरा कहे प्रभू गिरिधर नागर। बल जाऊं गडी गडीरे॥४॥

31. मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई

मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई॥
जाके सिर है मोरपखा मेरो पति सोई।
तात मात भ्रात बंधु आपनो न कोई॥
छांड़ि दई कुलकी कानि कहा करिहै कोई॥
संतन ढिग बैठि बैठि लोकलाज खोई॥
चुनरीके किये टूक ओढ़ लीन्हीं लोई।
मोती मूंगे उतार बनमाला पोई॥
अंसुवन जल सींचि-सींचि प्रेम-बेलि बोई।
अब तो बेल फैल गई आणंद फल होई॥
दूध की मथनियां बड़े प्रेम से बिलोई।
माखन जब काढ़ि लियो छाछ पिये कोई॥
भगति देखि राजी हुई जगत देखि रोई।
दासी मीरा लाल गिरधर तारो अब मोही॥

पाठांतर
म्हराँ री गिरधर गोपाल दूसरआं णा कूयाँ।
दूसराँ णाँ कूयाँ साथाँ सकल लोक जूयाँ।।टेक।।
भाया छाँणयाँ, बन्धा छाँड्याँ सगाँ भूयां।
साधाँ ढिग बैछ बैठ, लोक लाज खूयाँ।
भगत देख्यां राजी ह्याँ, जगत देख्यां रूयाँ।
दूध मथ धृत काढ़ लयाँ डार दया छूयाँ।
राणा विषरो प्यालो भेज्याँ, पीय मगण हूयाँ।
मीरां री लगण लग्याँ होणा हो जो हूयाँ।।

(कूयाँ=कोई, जूयाँ=देख लिया है, भाया=भाई,
साधाँ=साधु, ढिग=पास, रूयाँ=रोई, छूयाँ=छाछ,
मगण=प्रसन्न)

32. मेरे प्रियतम प्यारे राम कूँ लिख भेजूँ रे पाती

मेरे प्रियतम प्यारे राम कूँ लिख भेजूँ रे पाती।।टेक।।
स्याम सनेसो कबहुँ न दीन्हौ, जानि बूझ शुभबाती ।
डगर बुहारूँ पंथ निहारूँ, जोइ जाइ आखियां राती।
राति दिवस मोहि कल न पड़त है, हीयो फटत मेरी छाती।
मीराँ के प्रभु कबरे मिलोगे, पूरब जनम का साथी।।

(पाती=पत्र, सनेसो=सन्देशो, शुभबाती=गुप्त बात, डगर=
मार्ग, बुहारूँ=साफ करूँ, जोइ=देखते देखते, जाइ=हो गई है,
राती=लाल)

33. मेरे मन राम वासी

मेरे मन राम वासी।।टेक।।
तेरे कारण स्याम सुन्दर, सकल जोगाँ हाँसी।
कोई कहै मीराँ भई बावरी, कोई कहै कुलनासी।
कोई कहै मीराँ दीप आगरी, नाम पिया सूँ रासी।
खाँड धार भक्ति की न्यारी, काटी है जम की फाँसी।।

(सकल जोगाँ=सब लोग, कुलनासी=कुल की प्रतिष्ठा
का नाश करने वाली, खाँड=तलवार, जम की=मृत्यु की)

34. मेरो बेड़ो लगाज्यो पार

मेरो बेड़ो लगाज्यो पार, प्रभु जी मैं अरज करूँ छै।।टेक।।
या भव में मै बहु दुख पायो, संसा सोग निवार।
अष्ट करम की तलब लगी है, दूर करो दुख भार।
यो संसार सब बह्यो जात है, लख चौरासी री धार।
मीराँ के प्रभु गिरधरनागर, आवागमन निवार।।

(बेड़ो=नाव, भव=संसार, संसा=संशय, सोग=शोक,
निवार=दूर करो, अष्ट करम=आठ बंधन आठ पाश,
तलब=उत्कट इच्छा, लख चौरासी री धार=चौरासी
लाख योनियों की धारा में, आवागमन=जन्म मृत्यु
का बंधन)

35. मेरो मनमोहना, आयो नहीं सखी री

मेरो मनमोहना, आयो नहीं सखी री॥
कैं कहुं काज किया संतन का, कै कहुं गैल भुलावना॥
कहा करूं कित जाऊं मेरी सजनी, लाग्यो है बिरह सतावना॥
मीरा दासी दरसण प्यासी, हरिचरणां चित लावना॥

36. मेरो मन राम-हि-राम रटै

मेरो मन राम-हि-राम रटै।
राम-नाम जप लीजै प्राणी! कोटिक पाप कटै।
जनम-जनम के खत जु पुराने, नामहि लेत फटै।
कनक-कटोरै इमरत भरियो, नामहि लेत नटै।
मीरा के प्रभु हरि अविनासी तन-मन ताहि पटै।

37. मेहा बरसवो करे रै

मेहा बरसवो करे रै, आज तो रमियो मेरे घर रे।।टेक।।
नान्ही नान्हीं बूँद मेघ घन बरसे, सूखे सरवर भर रे।
बहुत दिना पै पीतम पायो, बिछुरन को मोहि डर रे।
मीरां कहे अति नेह जुड़ायो, मैं लियो पुरबलो दर रे।।

(रमियो=रमैया,प्रियतम, सरवर=तालाब, पुरबल=
पूर्व-जन्म का, वर=पति)

38. में जाणयी नहीं प्रभु को मिलन केसे होय री

में जाणयी नहीं प्रभु को मिलन केसे होय री।।टेक।।
आए मोरे सजना, फिरी गए अंगना, में अभगाण रही सोय री।
फारूँगी चीर, करूँ गलकँथा, रहूँगी वैराग्य होय री।
चूड़ियाँ फोरूँ माँग बिखेरूं, कजरा मैं डारूं धोय री।
निसि बासर मोहिं बिरह सतावै, कल न परत पल मोय री।
मीराँ के प्रभु हरि अबिनासी, मिलि बिछुड़ी मत कोय री।।

(निसि बासर=रात दिन, कल न परत=चैन नहीं पड़ता)

39. मैया मोकू खिजावत बलजोर

मैया मोकू खिजावत बलजोर। मैया मोकु खिजावत॥टेक॥
जशोदा माता मील ली जाबे। लायो जमुनाको तीर॥१॥
जशोदाही गोरी नंदही गोरा। तुम क्यौं भयो शाम सरीर॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। नयनमों बरखत नीर॥३॥

40. मैं गिरधर के घर जाऊँ

मैं गिरधर के घर जाऊँ।
गिरधर म्हांरो सांचो प्रीतम देखत रूप लुभाऊँ।।
रैण पड़ै तबही उठ जाऊँ भोर भये उठिआऊँ।
रैन दिना वाके संग खेलूं ज्यूं त्यूं ताहि रिझाऊँ।।
जो पहिरावै सोई पहिरूं जो दे सोई खाऊँ।
मेरी उणकी प्रीति पुराणी उण बिन पल न रहाऊँ।
जहाँ बैठावें तितही बैठूं बेचै तो बिक जाऊँ।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर बार बार बलि जाऊँ।।

पाठांतर
में तो गिरधर के घर जाऊँ।।टेक।।
गिरधर म्हाँरो साँचो प्रीतम, देखत रूप लुभाऊँ।
रैण पड़ै तब ही उछा जाऊँ भोर गये उछि आऊँ।
रैणदिना वाके सँग खेलूं, ज्यूं त्यूं वाहि रिझाऊँ।
जो पहिरावै होई पहिरूँ, जो दे सोई खाऊँ।
मेरी उणकी प्रीत पुराणी, उण बिन पल न रहाऊँ।
जहाँ बैठावैं तितही बैठै, बेचे तो बिक जाऊँ।
मीराँ के प्रभु गिरधरनागर, बार बार बलि जाऊँ।।

(प्रीतम=प्रियतम, रैण=रात्रि,रात, भोर=प्रातःकाल,
सुबह, ज्यूँ त्यूँ=ज्यों-त्यों,हर प्रकार से, होई=सोई)

41. मैं तो तेरी सरण परी रे रामा

मैं तो तेरी सरण परी रे रामा, ज्यूँ जाणे त्यूँ तार।।टेक।।
अड़सठ तीरथ भ्रमि भ्रमि आयो, मनव नाहीं मानी हार।
या जग में कोई नहिं अपणाँ, सुणियौ श्रवण मुरार।
मीराँ दासी राम भरोसे, जग का फंदा निवार।।

(ज्यूँ जाणे=जिस प्रकार तुम्हारी इच्छा हो, त्यूँ तार=
उसी प्रकार उद्धार करो, श्रवण=कान, फंदा=बन्धन,
निवार=दूर करो)

42. मैं तो तेरे दावन लागीवे गोपाळ

मैं तो तेरे दावन लागीवे गोपाळ॥टेक॥
कीया कीजो प्रसन्न दिजावे।
खबर लीजो आये तुम साधनमें तुम संतनसे।
तुम ग‍उवनके रखवाल॥२॥
आपन जाय दुवारकामें हामकू देई विसार॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। चरणकमल बलहार॥४॥

43. मैं तो तेरे भजन भरोसे अबिनासी

मैं तो तेरे भजन भरोसे अबिनासी॥टेक॥
तीरथ बरतते कछु नहीं कीनो। बन फिरे हैं उदासी॥१॥
जंतर मंतर कछु नहीं जानूं। बेद पठो नहीं कासी॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। भई चरणकी दासी॥३॥

44.

मैं तो तोरे चरण लगी गोपाल।।टेक।।
जब लागी तब कोउ न जाँने, अब जानी संसार।
किराप कीजौ दरसण दीजो, सुध लीजो ततकाल।
मीराँ कहे प्रभु गिरधरनागर, चरण कमल बलिहार।।

(तोरे=तेरे, ततकाल=तत्काल,तुरन्त)

45. मैं तो सांवरे के रंग राची

मैं तो सांवरे के रंग राची।
साजि सिंगार बांधि पग घुंघरू, लोक-लाज तजि नाची।।
गई कुमति, लई साधुकी संगति, भगत, रूप भै सांची।
गाय गाय हरिके गुण निस दिन, कालब्यालसूँ बांची।।
उण बिन सब जग खारो लागत, और बात सब कांची।
मीरा श्रीगिरधरन लालसूँ, भगति रसीली जांची।।

पाठांतर
माई साँवरे रंग राँची।।टेक।।
साज सिंगार बाँध पग घूंघर, लोकलाज तज नाँची।
गयाँ कुमत लयाँ साधाँ, सँगत, श्याम प्रीत जग साँची।
गायाँ गायाँ हरि गुण निसदिन, काल ब्याल री बाँची।
श्याम बिणआ जग खाराँ लागाँ जगरी बाताँ काँची।
मीरां सिरी गिरधर नट नागर, भगति रसीली जाँची।।

(रांची=रंग गई, कुमत=कुबुद्धि,दुर्मति, लयां=लेकर,
सांची=सच्ची, ब्याल=सर्प, बांची=बच गई, खारा=
निस्सार, कांची=कच्ची,नश्वर, रसीली=रसपूर्ण,आनंद
से भरी हुई, जांची=देखी)

46. मैने सारा जंगल ढूँढा रे

मैने सारा जंगल ढूँढा रे, जोगिड़ा न पाया।।टेक।।
काना बिच कुण्डल, जोगी गले बिच सेली घर घर
अलग जगाये रे।
अगर चन्दन की धुनो, जोगी, धकाई, संग बिच भभूत लगाये रे।
बाई मीराँ के प्रभु गिरधरनागर, सबद का ध्यान लगाय रे।।

(जोगिड़ा=योगी,कृष्ण, सेली=माला, धुनो=धुनी, धकाई=लगाई)

47. मैं बिरहणि बैठी जागूं

मैं बिरहणि बैठी जागूं जगत सब सोवे री आली॥
बिरहणी बैठी रंगमहल में, मोतियन की लड़ पोवै|
इक बिहरणि हम ऐसी देखी, अंसुवन की माला पोवै॥
तारा गिण गिण रैण बिहानी , सुख की घड़ी कब आवै।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, जब मोहि दरस दिखावै॥

(बिरहणी=विरहनी, पोवै=गूंथती है, रैण=रात, बिहानी=
बीत गयी)

48. मोती मूँगे उतार बनमाला पोई

मोती मूँगे उतार बनमाला पोई॥
अंसुवन जल सींचि सींचि प्रेम बेलि बोई।
अब तो बेल फैल गई आणँद फल होई॥
दूध की मथनिया बडे प्रेम से बिलोई।
माखन जब काढि लियो छाछ पिये कोई॥
भगत देखि राजी हुई जगत देखि रोई।
दासी 'मीरा लाल गिरिधर तारो अब मोही॥

49. मोरी आंगनमों मुरली बजावेरे

मोरी आंगनमों मुरली बजावेरे। खिलावना देवुंगी॥टेक॥
नाच नाच मोरे मन मोहन। मधुर गीत सुनावुंगी॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। हरिके चरन बल जावुंगी॥३॥

50. मोरे लय लगी गोपालसे

मोरे लय लगी गोपालसे मेरा काज कोन करेगा।
मेरे चित्त नंद लालछे॥टेक॥१॥
ब्रिंदाजी बनके कुंजगलिनमों। मैं जप धर तुलसी मालछे॥२॥
मोर मुकुट पीतांबर शोभे। गला मोतनके माल छे॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। तुट गई जंजाल छे॥४॥

51. मोरी लागी लटक गुरु चरणनकी

मोरी लागी लटक गुरु चरणनकी॥टेक॥
चरन बिना मुज कछु नही भावे। झूंठ माया सब सपननकी॥१॥
भवसागर सब सुख गयी है। फिकीर नही मुज तरुणोननकी॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। उलट भयी मोरे नयननकी॥३॥

52. मोहन आवनकी साई किजोरे

मोहन आवनकी साई किजोरे। आवनकी मन भावनकी॥टेक॥
आप न आवे पतिया न भेजे | ए बात ललचावनकी॥१॥
बिन दरशन व्याकुल भई सजनी। जैशी बिजलीयां श्रावनकी॥२॥
क्या करूं शक्ति जाऊं मोरी सजनी। पांख होवे तो उडजावनकी॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर | इच्छा लगी हरी बतलावनकी॥४॥

53. मोहि लागी लगन गुरुचरणन की

मोहि लागी लगन गुरुचरणन की।
चरण बिना कछुवै नाहिं भावै, जगमाया सब सपननकी॥
भौसागर सब सूख गयो है, फिकर नाहिं मोहि तरननकी।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर आस वही गुरू सरननकी॥

54. म्हाणो चाकर राखां जी

म्हाणो चाकर राखां जी गिरधारी लाला चाकर राखां जी।।टेक।।
चाकर रहस्यूँ बाग लगास्यूँ नित उठ दरसण पास्यूँ।
बिन्द्राबन री कुँज गलिन माँ, गोविन्द लीला मास्यूँ।
चाकरी में दरसण पास्यूँ, जणम जणम री तरसी।
मोर मुकुट पीताम्बर सोहां, गल बैजन्ती मालो।
बिन्द्रावन मां धेण चरावां, मोहन मुरली वालो।
हरे हरे णवा कुँज लागस्यूँ, बीचा बीचा बारी।
सांवरिया रो दरसण पास्यूँ पहण कुसुम्बी सारी।
मीरां रे प्रभु गिरधरनागर, हिवड़ो घणो अधीरा।
आधी रात प्रभु दरसण दीस्यों, हिवड़ो घणओ अधीरा।
आधी रात प्रभु दरसण दीस्यों, जमण जी रे तीरा।।

55. म्हा मोहणरो रूप लुभाणी

म्हा मोहणरो रूप लुभाणी।।टेक।।
सुन्दर बदन कमल दल लोचण, बाँका चितवण णेण समाणी।
जमणा किणारे कान्हे धेनु चरावाँ, बंसी बजावाँ मीठाँ वाणी।
तन मन धन गिरवर पर वाराँ, चरण कँवल मीराँ विलमाणी।।

(म्हा=मैं, मोहणरो=कृष्ण का, समाणी=समा गई, विलसाणी=
विलीन हो गई,रम गई)

56. म्हारे आजोय जी रामाँ

म्हारे आजोय जी रामाँ, थारे आवत आस्याँ सामाँ।।टेक।।
तुम मिलियाँ मैं बोह सुख पाऊँ, सरै मनोरथ कामा।
तुम बिच हम बिच अंतर नाहिं, जैसे सूरज घामा।
मीरां के मन अवर न माने, चाहे सुन्दर स्यामाँ।।

(थारे आवत=तुम्हारे आने पर, आस्याँ=होगी, सामाँ=
शान्ति, बोह=बहुत, सरै=पूर्ण हो जायेंगे, कामा=इच्छित,
घामा=धूप)

57. म्हारे घर आओ प्रीतम प्यारा

म्हारे घर आओ प्रीतम प्यारा।।
तन मन धन सब भेंट धरूंगी भजन करूंगी तुम्हारा।
म्हारे घर आओ प्रीतम प्यारा।।
तुम गुणवंत सुसाहिब कहिये मोमें औगुण सारा।।
म्हारे घर आओ प्रीतम प्यारा।।
मैं निगुणी कछु गुण नहिं जानूं तुम सा बगसणहारा।।
म्हारे घर आओ प्रीतम प्यारा।।
मीरा कहै प्रभु कब रे मिलोगे तुम बिन नैण दुखारा।।
म्हारे घर आओ प्रीतम प्यारा।।

पाठांतर
म्हाँरे घर आज्यो प्रियतम प्यारा, तुम बिन सब जग खारा।।टेक।।
तन मन धन सब भेंट करूँ, ओ भजन करूँ मैं थारा।
तुम गुणवंत बड़े गुणसागर, मैं हूँ जी औगणहारा।
मैं निगुणी गुण एकौ नाहीं तुम हो बगसण हारा।
मीराँ कहे प्रभु कबहि मिलौगे, थाँ बिन नैण दुष्यारा।।

(खारा=फीका,आनन्दहीन, निगुणी=गुण रहित,
बगसणहार=क्षमा करने वाला, दुष्यारा=दुखी)

58. म्हारे घर आवो स्याम, गोठड़ी कराइयै

म्हारे घर आवो स्याम, गोठड़ी कराइयै।
आनंद उछाव करूँ, तन मन भेंट धरूँ।
मै तो हूँ तुम्हारी दासी, ताकूं तौ चितारियै।
गगन गरजिय आयौ, बदरा बरसि भायौ।
सारंग सबद सुनि, बिहनी पुकारियै।
घर आवो स्याम मेरे, मै तो लागूँ पाँव तेरे।
मीराँ कूँ सरणि लीजै, बलि बलिहारियै।।

(गोठड़ी=गोष्ठी,बातचीत, उछाव=उत्साह,
चितारियै=सुधि लिजीए, सारंग=पपीहा,
बिहनी=बिरहणी)

59. म्हारे घर चालोजी जशोमती लालनारे

म्हारे घर चालोजी जशोमती लालनारे॥टेक॥
राधा कहती सुनोजी प्यारे। नाहक सतावत जननी मुरारे।
अंगन खेलत ले बिजहारे | लुटू लुटू खेलनारे॥१॥
पेन्हो पीत बसन और आंगीया। मोनो मोतरवाला कन्हैया।
रोवे कायकू लोक बुझाया। हासती ग्वालनारे॥२॥
चंदन चौक उपर न्हालाऊं। मीश्री माखन दूध पिलावूं।
मंदिर आपने हात हलाऊं। जडाऊं पालनारे॥३॥
मीराके प्रभु दीनदयाला। वहां तुम सावध परम कृपाला।
तन मन धन वारी जै गोपाला। मेरे मन बोलनारे॥४॥

60. म्हारे घर रमतो ही जोगीय तूं आँव

म्हारे घर रमतो ही जोगीय तूं आँव।।टेक।।
कानां बिच कुंडल गले बिच सेली, अंग भभूत रमाय।
तुम देख्याँ बिन कल न पड़त है ग्रिह अँगणो न सुहाय।
मीराँ के प्रभु हरि अबिनासी, दरसण द्यौन मोकूँ आय।।

(रमतो ही=विचरण करता हुआ ही, ग्रिह=गृह,घर,
द्यौन=दीजिये न)

61. म्हारे डेरे आज्यो जी महाराज

म्हारे डेरे आज्यो जी महाराज।
चुणि चुणि कलियां सेज बिछायो, नखसिख पहर्यो साज।
जनम जनम की दासी तेरी, तुम मेरे सिरताज।
मीरां के प्रभु हरि अबिनासी, दरसण दीज्यो आज।।

(डेरे=घर, नखसिख=पूर्णतया,नख से लेकर शिखा
तक, साज=आभूषण, सिरताज=स्वामी)

62. म्हारे नैणां आगे रहाजो जी

म्हारे नैणां आगे रहाजो जी, स्याम गोविन्द।।टेक।।
दास कबीर घर बालद जो लाया, नामदेव की छान छबन्द।
दास धना को खेत निपाजायो, गज की टेर सुनन्द।
भीलणी का बेर सुदामा का तन्दुल, भर मुठड़ी बुकन्द।
करमाबाई को खींच आरोग्यो, होई परसण पाबन्द।
सहस गोप बिच स्याम विराजे, ज्यो तारा बिच चन्द।
सब संतों का काज सुधारा, मीराँ सूँ दूर रहन्द।।

(बालद=बलद,बैल, कबीर=निर्गुणी सन्त कबीर,
नामदेव=एक भक्त का नम, छान छबंद=छप्पर
छा दिया, दास धना=धन्ना भक्त, निपजाओ=
बो दिया, सुनंद=सुनली, भीलणी=शवरी नामक
भीलनी, तन्दुल=चावल, बुकन्द=चबाया, खींच=
खींचड़ी, आरोग्यो=ग्रहण की, परसण=प्रसन्न,
पावंद=पाया,खाया, रहंद=रहता है)

63. म्हारो ओलगिया घर आज्यो जी

म्हारो ओलगिया घर आज्यो जी।
तणरी ताप मिट्याँ सुख पास्यां, हिलमिल मंगल गाज्यो जी।
घणरी धुणं सुण मोर मगण भयाँ, म्हारे आँगण आज्यो जी।
चंदा देख कमोदण फूलाँ, हरख भयाँ म्हारे छाज्यो जी।
रूप रूप म्हारो सीतल सजणी, मोहन आंगण आज्यो जी।
सब भगताँरा कारण साधाँ, म्हारा परण निभाज्यो जी।
मीराँ विरहण गिरधरनागर, मिल दुख दंदा छाज्यो जी।।

(ओलगिया=परदेशी, तणरी=तन की, ताप=दुःख, घणरी=
घन की, धुण=ध्वानि, हरख=हर्ष, भगताराँ=भक्तों का,
साधाँ=सिद्ध किया, दंदा=द्वन्द्व,कलह,कलेश)

64. म्हारो प्रणाम बांकेबिहारी को

म्हारो प्रणाम बांकेबिहारी को।
मोर मुकुट माथे तिलक बिराजे।
कुण्डल अलका कारीको म्हारो प्रणाम
अधर मधुर कर बंसी बजावै।
रीझ रीझौ राधाप्यारीको म्हारो प्रणाम
यह छबि देख मगन भई मीरा।
मोहन गिरवरधारीको म्हारो प्रणाम

पाठांतर
म्हाँरो प्रणाम बाँके बिहारी जी।।टेक।।
मोर मुगट माथ्याँ तिलक बिराज्याँ, कुण्डल अलकाँकारी जी।
अधर मधुर घर बंशी बजावाँ, रीझ रिझावाँ नारी जी।
या छब देख्याँ मोह्याँ, मीराँ, मोहन गिरधारी जी।।

(म्हाँरो=हमारा, बाँके बिहारी=रसिक श्रीकृष्ण, मोर-मुगट=
मोर-पंखो का ताज, बिराज्याँ=शोभा देता है, अलकाँकारी=
काली लटें, अधर=होंठ, रिझावाँ=मोहित करते हैं, छब=
छबि,शोभा, मोह्याँ=मोहित हो जाती है, मोहन=मन को
मोहने वाले, गिरधारी=श्रीकृष्ण)

65. म्हारो मण हर लीण्या रणछोड़

म्हारो मण हर लीण्या रणछोड़।।टेक।।
मोर मुगट सिर छत्र बिराँजाँ, कुंडल री छब ओर।
चरण पखार्यां रतणागर री, धारा गोमत जोर।
धजा पताका तट तट राजाँ झांलर री झकझोर।
भगत जणारो काज संवार्या म्हारा प्रभु रणछोर।
मीराँ रे प्रभु गिरधरनागर, गह्यो नन्दकिशोर।।

(रणछोड़=द्वारिकवासी श्री कृष्ण, छब=छवि,
शोभा, पखार्यां=धोता है, रतणार=रत्नाकर,समुद्र,
गोमत=गोमती नदी, धजा=ध्वजा, राजाँ=शोभित
है, जणारो=जनों का)

66. म्हा लागाँ लगण सिरि चरणा री

म्हा लागाँ लगण सिरि चरणा री।।टेक।।
दरस बिणा म्हाणो कछु णा भावाँ जग माया या सुपणा री।
भो सागर भय जग कुल बंधण, डार दयाँ हरि चरणा री।
मीराँ रे प्रभु गिरधरनागर, आस गह्याँ थें सरणा री।।

(म्हां=मेरी, लगन=प्रीति, सिरी=श्री(कृष्ण), सुपणा=स्वप्न,
निस्सार, सरणा री=शरण में)

67. म्हाँ गिरधर आगाँ नाच्याँ री

म्हाँ गिरधर आगाँ नाच्याँ री ।।टेक।।
णाच णाच म्हाँ रसिक रिझावाँ, प्रीत पुरांतन जांच्यां री।
स्याम प्रीत री बाँधि घूघर्यां मोहण म्हारो साँच्याँ री।
लोक लाज कुलरा मरज्यादाँ जगमाँ णेकणा राख्याँ री।
प्रीतम पर छब णा बिसरवाँ, मीराँ हरि रँग राच्याँरी ।।

(म्हाँ=मैं, रसिक=कृष्ण, कुलरा=कुलकी, राच्यां=
रंग जाना)

68. म्हां गिरधर रंग राती

म्हां गिरधर रंग राती, सैयां म्हां ।।टेक।।
पंचरंग चोला पहर्या सखी म्हां, झिरमिट खेलण जाती।
वां झरमिट मां मिल्यो सांवरो, देख्यां तण मण राती।
जिणरो पिया परदेस बस्यांरी लिख लिख भेज्यां पाती।
म्हारां पियां म्हारे हीयडे लिख लिख भेज्यां पाती।
म्हारा पिया म्हारी हीयडे बसतां णा आवां णा जाती।
मीरां रे प्रभु गिरधरनागर मग जोवां दिण राती।।

(रंग=प्रेम, पंचरंग=पांच (विविध) रंगों का,पांच
तत्वों (जल, पृथ्वी, आकाश, वायु, अग्नि) से बना,
चोला=लम्बा और ढीला ढाला कुर्ता,शरीर, झिरमिट=
एक प्रकार का खेल, जिसमें सारे शरीर को इस
प्रकार से ढक लिया जाता है, कि कोई जल्दी
पहचान न सके,कर्मानुसार प्राप्त जीवात्मा की
योनि का शरीर रूपी आवरण, राती=अनुरक्त
हो गई, मग जोवां=रास्ता देखती रहती हूँ,
प्रतीक्षा करती रहती हूँ)

69. म्हांणे क्या तरसावाँ

म्हांणे क्या तरसावाँ।।टेक।।
थारे कारण कुल जग छाड्याँ अब थें क्याँ बिसरायाँ।
बिरह बिथा ल्यायां उर अन्तर, थें आस्याँ णआ बुझावाँ।
अब छाड्या णा बणे मुरारी सरण गह्याँ बड़ जावाँ।
मीराँ दासी जनम जनम री, भगताँ पेजणि भावां।।

(म्हाणे=मुझको, क्या तरसावाँ=क्यों सताते हो,
पेजणि भावाँ=प्रण पूरा करो)

70. म्हांरी बात जगत सूं छानी

म्हांरी बात जगत सूं छानी, साधाँ सूं नही छानी री ।।टेक।।
साधू मात-पिता कुल मेरे, साधू निरमल ग्यानी री।
राणा ने समझायो बाई, ऊदां मैं तो एक न मानी री।
मीराँ के प्रभु गिरधरनागर, सन्तन हाथ बिकानी री।।

(छानी=छिपी हुई, निरमल=निर्मल,पाप से रहित)

71.

म्हाँरे घर होता आज्यो महाराज।।टेक।।
नेण बिछास्यूँ हिवड़ो डास्यूँ, सर पर राख्यूँ विराज।
पाँवड़ाँ म्हारो भाग सवारण, जगत उधारण काज।
संकट मेट्या भगत जणाराँ, थाप्याँ पुन्न रा पाज।
मीराँ रे प्रभु गिरधरनागर, बाँह गह्यारी लाज।।

(बिछास्यूँ=बिछाऊँगी, डास्यूँ=रक्खूँगी, पावड़ां=
पाहुना,अतिथि, उधारण काज=उद्धार के लिए,
जणाराँ=जनों का, थाप्यां=स्थापित की है,
पाज=मर्यादा)

72. म्हांरो जणम जणम रो साथी

म्हांरो जणम जणम रो साथी, थाँने णा बिसार्यां दिन राती।।टेक।।
थां देख्यां बिण कल न पड़ताँ जामे म्हारी छाती।
ऊचां चढ़चढ़ पंथ निहार्यां कलप कलप अँडियां राती।
भी सागर जग बँधण झूंठां, झूंठा कुलार न्याती।
पल पल थारो रूप निहारां निरख निरखती मदमांती।
मीरां रे प्रभु गिरधरनागर, हरि चरणां चित रांती।।

(थाँने=तुमको, थाँ=तुम्हें, कलप-कलप=रो-रोकर,
भो सागर=भव सागर,सँसार रूपी सागर, कुलरा
न्याती=कुल और सम्बन्धी, मदमाँती=मस्त हो
जाती हूँ, राँती=प्रेम अनुरक्त)

73. म्हाँरो सुध ज्यूँ जानो लीजो जी

म्हाँरो सुध ज्यूँ जानो लीजो जी।।टेक।।
पल-पल भीतर पंथ निहारूँ दरसण म्हाँने दीजो जी।
मैं तो हूँ बहु औगुणहारी, औगुण चित्त मत दीजो जी।
मैं तो दासी थारे चरण कँवल की, मिल बिछुरन मत कीजो जी।
मीराँ तो सतगुर जी सरणे, हरि चरणाँ चित्त दीजो जी।।

(औगुणहारी=अवगुणों से भरी हुई, चित्त मत दीजो=
ध्यान मत दीजिए)

74. म्हाँ सुण्यां हरि अधम उधारण

म्हाँ सुण्यां हरि अधम उधारण।
अधम उधारण भव भय तारण।।टेक।।
गज बूड़तां अरज सुण धावां, भगतां कष्ट निवारण।
द्रुपद सुताणओ चीर बढ़ायां, दुसासण मद मारण।
प्रहलाद पतरग्या राख्यां, हरणाकुश णओ उद्र विदारण।
थें रिख पतणी करिपा पायां, विप्र सुदामा विपद विदारण।
मीराँ रे प्रभु अरजी म्हारी, अब अबेर कुण कारण।।

(अधम उधारण=पापियों का उद्धार करने वाले, भव
भय तारण=संसार के दुःखों से पारन करना, मद
मारण=गर्व का नाश करना, उद्र=उदर, पेट, विदारण=
फाड़ना, रिख पतणी=ऋषि-पत्नि,अहिल्याबाई, अबेर=
देर, कुण=किसलिए)

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