ग़ज़लें : रमेशराज

Hindi Ghazals : Rameshraj

1. घनी उदासी अपने पास

घनी उदासी अपने पास
बुझी नहीं अधरों की प्यास।

भले न ये दर्दालंकार
मत दे घावों के अनुप्रास।

अपनों से ये कैसी लाज?
तेरे मेरे रिश्ते खास।

इधर चुभन टीसों का दौर
क्या मन रहता उधर उदास?

मन मेरा तुझसे अनुबद्ध
कैसे छोडूँ तेरी आस।

जो पल बीते सँग में ‘राज’
उनकी अब भी मधुर सुवास।

2. सोने-चाँदी वाले तुमको बँगले की रौनक भायी

सोने-चाँदी वाले तुमको बँगले की रौनक भायी
इस निर्धन की कुटिया-लुटिया रास नही प्रियतम आयी।

तुम क्या जानो इन्तजार की, प्रीति-प्यार की तड़पन को
हमने हारे, सभी सहारे, आँख हमारी पथरायी।

मरते दम तक, बनकर याचक, हक माँगेंगे अपना हम
बनो दुःखद दस्तूर-नूर तुम, हम न कहेंगे हरजायी।

तुमने उड़ना सीख लिया तो उड़ो अजनबी उस नभ में
अपनी इस ज़मीन की प्यारी हमको हैं खंदक-खायी।

3. प्यार हमारा, मन बंजारा, जख्मों से कर डाला

प्यार हमारा, मन बंजारा, जख्मों से कर डाला
गाती-मुस्काती आँखों को फिर मेघों से भर डाला।

ये दिल तो था सिर्फ तुम्हारा, मीत सहारा इसके तुम
आर-पार इसके पर तुमने झट से खंजर का डाला।

मीत तुम्हारी, आदत प्यारी बदली तो ऐसी बदली
कस्तूरी रागों में तुमने नित तेजाबी स्वर डाला।

जिसमें मेरे नन्हे-मुन्नों सपनों की किलकारी थी
तुमने मुस्काते परिचय में शक-संशय का डर डाला।

यह मदमाती छल-पफरेब की दुनिया तुम्हें मुबारक हो
जिसने आज हमारे मन पर दुःख से भरा असर डाला।

4. उधर अगर लब पर मुस्कान

उधर अगर लब पर मुस्कान
इधर बसा अन्दर तूफान।

मीत मोम-सा, अजब विलोम
खींचे बनकर खंजर प्रान।

वो छू ले तो हो झंकार
पा जाते हैं पत्थर जान।

देती एक अलौकिक हर्ष
अगर नज़र हो अधर समान।

आज कहे क्या मन की ‘राज’
सिर्फ प्रेम का मंतर ध्यान।

गीतिका छंद में ग़ज़लें
1. सादगी पै, दिल्लगी पै, इक कली पै, मर मिटे

सादगी पै, दिल्लगी पै, इक कली पै, मर मिटे
दोस्ती की रोशनी पै, हम खुशी पै, मर मिटे।

फूल-सा अनुकूल मौसम और हमदम ला इधर
प्यार की इकरार की हम चाँदनी पै मर मिटे।

हम मिलेंगे तो खिलेंगे प्यार के मौसम नये
हम वफा की, हर अदा की, वन्दगी पै मर मिटे।

रूप की इस धूप को जो पी रहे तो जी रहे
नूर के दस्तूर वाली हम हँसी पै मर मिटे।

फिर उसी अंदाज में तू ‘राज’ को आवाज दे
नैन की, मधु बैन की हम बाँसुरी पै मर मिटे।

2. नैन प्यारे ये तुम्हारे, चाँद-तारे-से प्रिये

नैन प्यारे ये तुम्हारे, चाँद-तारे-से प्रिये।
इस लड़कपन, बंक चितवन में इशारे-से प्रिये!

प्यास देते, आस देते, खास देते रससुध
हैं अधर पर सुर्ख सागर के नजारे-से प्रिये।

होंठ हिलते तो निकलते बोल मिसरी में घुले
नाज-नखरों से भरे अंदाज प्यारे-से प्रिये।

रूप की ये धूप पीकर हो गये हम गुनगुने
और क्या इसके सिवा हम लें तुम्हारे से प्रिये।

पास आओ, मुस्कराओ, मत जताओ बेरुखी
दर्द अपने और सपने हैं कुँआरे-से प्रिये।

रात बीते, बात बीते गम-भरी ये तम-भरी
आप आयें, मुस्करायें, दे उजारे-से प्रिये।

3. प्यार के, इकरार के अंदाज सारे खो गये

प्यार के, इकरार के अंदाज सारे खो गये
वो इशारे, रंग सारे, गीत प्यारे खो गये।

ज़िन्दगी से, हर खुशी से, रोशनी से, दूर हम
इस सफर में, अब भँवर में, सब किनारे खो गये।

आप आये, मुस्कराये, खिलखिलाये, क्यों नहीं?
नित मिलन के, अब नयन के चाँद-तारे खो गये।

ज़िन्दगी-भर एक जलधर-सी इधर रहती खुशी
पर ग़मों में, इन तमों में सुख हमारे खो गये।

फूल खिलता, दिन निकलता, दर्द ढलता अब नहीं
हसरतों से, अब खतों से सब नज़ारे खो गये।

तीर दे, कुछ पीर दे, नित घाव की तासीर दे
पाँव को जंजीर दे, मन के सहारे खो गये।

4. एक जलती रेत के इतिहास का मैं गीत हूँ

एक जलती रेत के इतिहास का मैं गीत हूँ
हो सके तो तृप्ति दे दो, प्यास का मैं गीत हूँ।

आज चुन ले खूब मोती भोर की पहली किरन
रात-भर की ओस-भीगी घास का मैं गीत हूँ।

मैं कहानी पतझरों की अब किसी से क्यों सुनूँ
तू मुझे महसूस कर, मधुमास का मैं गीत हूँ।

तू परिन्दे की तरह मिलने कभी तो मीत आ
दूर तक फैले हुए विश्वास का मैं गीत हूँ।

लय समय की, बात जय की, सुन रहा, मैं बुन रहा
आस का, उल्लास का, मधुप्रास का मैं गीत हूँ।

5. होंठ अपने प्यास से जलते अँगारे ओ नदी

होंठ अपने प्यास से जलते अँगारे ओ नदी
ला हमारे पास जल के आज धारे ओ नदी!

एक पल रुककर जरा हमसे कभी तू बात कर
हम खड़े हैं पेड़-से तेरे किनारे ओ नदी!

आज मन के पास में हैं सिर्फ जर्जर कश्तियाँ
और तूफाँ से भरे तेरे इशारे ओ नदी!

तू मधुर थी हर तरह से, आज तुझको क्या हुआ?
आचरण तेरे नहीं थे सिर्फ खारे ओ नदी!

हम पिघलकर बर्फ से झरना हुए, तुझ में मिले
तू भले ही अब न कर चर्चे हमारे ओ नदी!

आज जब इस ज़िन्दगी को तू डुबोकर ही रही
कौन तट को या कि पनघट को पुकारे ओ नदी!

6. पत्थरों ने मोम खुद को औ’ कहा पत्थर हमें

पत्थरों ने मोम खुद को औ’ कहा पत्थर हमें
प्रेम में जज़्बात के कैसे मिले उत्तर हमें।

आप कहते और क्या जब आपने डस ही लिया
अन्ततः कह ही दिया अब आपने विषधर हमें।

इस धुए का, इस घुटन का कम सताता डर हमें
तू पलक थी और रखती आँख में ढककर हमें।

साँस के एहसास से छूते कभी तुम गन्ध को
आपने खारिज किया है आँख से प्रियवर हमें।

आब का हर ख्वाब जीवन में अधूरा रह गया
देखने अब भी घने नित प्यास के मंजर हमें।

7. नैन ये दिन-रैन जलधर, तर तुम्हारे प्यार में

नैन ये दिन-रैन जलधर, तर तुम्हारे प्यार में
प्यार के मंजर बने खंजर तुम्हारे प्यार में।

आपने ये मन दुःखाया, दिल जलाया रात-दिन
हम जहर पीकर, रहे जीकर तुम्हारे प्यार में।

जर्द चेहरा और गहरा घाव अपने वक्ष में
अब कहाँ नित मीत अमरित स्वर तुम्हारे प्यार में।

कौन बोले, बात खोले, अब टटोले उलझनें
बस अपरिचय, मौन की लय गर तुम्हारे प्यारे में।

नूर का दस्तूर अब तो दूर हरदम ‘राज’ से
हम जिये, तम-सा लिये अक्सर तुम्हारे प्यार में।

8. हम दहें, कितना सहें, इस एकतरफा प्यार को

हम दहें, कितना सहें, इस एकतरफा प्यार को
वो वफा जाने न माने, सिर्फ ताने रार को।

बेकली में नित जली पगली हमारी ज़िन्दगी
नैन बरसे, खूब तरसे यार के दीदार को।

दीप की बाती जलाते, वो निभाते दोस्ती
दूर करते, नूर करते वे कभी अँधियार को।

अब लबे-दम ज़िन्दगी है, आँख भी है बे-रवाँ
क्या दवा दें या हवा दें, इस दिले बीमार को।

हम गुलेलें, रोज़ झेलें, खेल खेलें प्रीति का
‘राज’ की परवाज घायल, मन विकल अभिसार को।

9. पीर ही तकदीर बनकर, गर रहे तो क्या करें

पीर ही तकदीर बनकर, गर रहे तो क्या करें?
नैन में जलधर अगर अक्सर रहे तो क्या करें?

गर सुमन ही, दे जलन ही ज़िन्दगी-भर को हमें
मोम बनकर, मन पिघलकर, तर रहे तो क्या करें?

प्रीति की हर रीति कातिल, दिल बचे ये किस तरह?
साँस में अब फाँस कसके, ज्वर रहे तो क्या करें?

हैं इधर मन के स्वयंवर, साज-स्वर झंकृत सभी
गर उधर संवदेना पत्थर रहे तो क्या करें?

चाह प्रतिपल, बन कमलदल मुस्कराये ‘राज’ की
मौन में पर मीत के स्वर भर रहे तो क्या करें?

10. एक उलझन में रहे मन, नैन सावन आज भी

एक उलझन में रहे मन, नैन सावन आज भी
प्यार की, अभिसार की हर याद चन्दन आज भी।

आपके स्पर्श का उत्कर्ष स्मृति में जगे
तेज होती, धीर खोती मीत धड़कन आज भी।

पास आकर, मुस्कराकर, बात कहना रस-भरी
दे प्रचुर, सुख-सा मधुर वह बोल-गुंजन आज भी।

आपका ये जाप दे संताप तो हम क्या करें
नित सिहरता, याद करता आपको मन आज भी।

‘राज’ से तुम दूर बनकर नूर का दस्तूर क्यों?
चाहते हम, ये हटे तम, किन्तु अनबन आज भी।

11. आज यदि तम और ग़म है कल मिलेंगे फूल भी

आज यदि तम और ग़म है कल मिलेंगे फूल भी
प्रीति अनपढ़ और अल्हड़ जाएगी स्कूल भी।

अब भँवर का डर भयंकर है अगर, मन मत सिहर
यह समन्दर का सफर होगा कभी स्थूल भी।

नैन की तलवार से, दीदार से, घायल हुए
यार कातिल? बावरे दिल! यार से मिल भूल भी।

मिल गयी गहरी चुभन मन! ये न उलझन का विषय
क्या हुआ हमने छुआ जो फूल के सँग शूल भी।

‘राज’ उसके लाज चहरे पर दिखी कुछ आज जो
कल खिलेगा प्यार का गुलजार ये आमूल भी।

12. आप हैं जो साथ मेरे ज़िन्दगी-सी रोज है

आप हैं जो साथ मेरे ज़िन्दगी-सी रोज है
ज़िन्दगी में रागिनी-सी, बाँसुरी-सी रोज है।

हास भी है, रास भी है, साथ भी है आपका
दीप जैसी, खूब कैसी लौ जली-सी रोज है।

कौन जाये छोड़ के ये, तोड़ के ये मित्रता
खिलखिलायें, मुस्करायें वो खुशी-सी रोज है।

नैन प्यारे, बैन प्यारे, रूप जैसे धूप है
रात को भी दूध जैसी चाँदनी-सी रोज है।

‘राज’ प्यारी है हमारी रीति सारी आपसी
प्रीति कैसी, जादुई-सी, या रुई-सी रोज है।

कहमुकरी संरचना में ग़ज़लें
1. प्यारा उसे लगे अँधियार, रात-रात भर करे पुकार

प्यारा उसे लगे अँधियार, रात-रात भर करे पुकार
मत करना सखि री संदेह, पिया नहीं, संकेत सियार।

घायल है तन, मन बेचैन, घाव रिसें औ’ बहते नैन
झेल न पाऊँ उसका वार, क्या सखि सैंया, नहीं कटार।

जिसकी खुशबू मन को भाय, अधरों पर मुस्कान सुहाय
सखि शंका मत कर बेकार, पिया नहीं, फूलों का हार।

जो छू लूँ तो काँपे गात, तन को मन को दे आघात
क्या सखि री तेरे भरतार? ना री सखि बिजली के तार।

क्या दूँ री मैं मन की बोल, रसना में रस घुले अमोल
मिला तुझे क्या उनका प्यार? ना ना री सखि आम अचार।

2. चीख निकलती उसको देख, चाहे दिन हो या अंधेर

चीख निकलती उसको देख, चाहे दिन हो या अंधेर
मार झपट्टा लेता गेर, क्या सखि साजन? ना सखि शेर।

उसने छोड़ा तुरत वियोग, मन में उसके जागा भोग
क्या सखि साजन? ना सखि आज, अंधे के कर लगी बटेर।

ऐसे उसने डाला रंग, सोने जैसे चमके अंग
क्या ये सब साजन के संग? ना सखि आयी धूप मुँडेर।

भीगी चूनर, भीगा गात, चमके बिजुरी जी घबरात
क्या सँग साजन? ना री! मेघ, आज गया जल खूब उकेर।

आकर दो दर्शन भरतार, कब से तुमको रही पुकार
सखी रही तू साजन टेर? नहीं रही प्रभु-माला फेर।

3. उसने मुझे उढ़ा दी खोर, मैं सखि मचा न पायी शोर

उसने मुझे उढ़ा दी खोर, मैं सखि मचा न पायी शोर
तुरत कलाई दई मरोर, क्या सखि साजन? ना सखि चोर।

क्षण-भर मिलता चैन न बाय, पल-पल केवल मिलन सुहाय
घूमे पागल-सा हर ओर, क्या सखि साजन? नहीं चकोर।

सावन में भी हँसी न नाच, अपने मन का कहे न साँच
सब बोले अँखियन की कोर, का सखि साजन? ना सखि मोर।

तन में-मन में डाले बंध, रचे विवशता के ही छंद
एक उदासी में दे बोर, क्या सखि साजन? ना सखि डोर।

सुख दे घनी रात के बाद, होता खतम तुरत अवसाद
उसका नूर दिखे हर छोर, क्या सखि साजन? ना सखि भोर।

4. लगता जैसे खींचे प्रान, ऐसे मारे चुन-चुन वान

लगता जैसे खींचे प्रान, ऐसे मारे चुन-चुन वान
क्या सखि कोई पिया समान, ना ना सखि आँधी का ध्यान।

क्या करि आयी बोले लोग, कोई कहता मोकूँ रोग
क्या पति की रति आयी भोग? ना सखि मैंने खाया पान।

ये नैना देखत रह जायँ, वे तो मन्द-मन्द मुस्कायँ
क्या सखि पिया सुगंध बसायँ? ना ना फूलों की मुस्कान।

बरसें घन तो मन में तान, तन झूमे नित गाये गान
और जान में आवै जान, का सखि साजन? ना सखि धान।

अति चौड़ा है उसका वक्ष, बहुत सबल है उसका पक्ष
वह स्थिरता में भी दक्ष, का सखि साजन? ना चट्टान।

5. मेरे ये सावन में हाल, ऊँची-ऊँची लऊँ उछाल

मेरे ये सावन में हाल, ऊँची-ऊँची लऊँ उछाल
दिन-भर आये अति आनंद, क्या सँग साजन? ना सखि डाल।

पटकूँ पत्थर पर सर आज, नैन हुए तर, मन डर आज
मैं मुरझायी तपकर आज, क्या बिन साजन? ना सखि जाल।

मन अब दुःखदर्दों से चूर, बसी उदासी मन भरपूर
क्या सखि साजन से तू दूर? ना सखि खोयी मोती-माल।

हाल हुआ बेहद बेहाल, सम्हल-सम्हल मैं गिरूँ निढाल
पिया विरह का सखी कमाल? ना सखि कल आया भूचाल।

जल बिन तड़पै अब तो मीन, क्या बतलाऊँ हालत दीन
क्या साजन बिन ऐसा हाल? ना सखि देखे सूखे ताल।

6. सच कहती मैं आखिरकार, मन में उमड़ी बड़ी उमंग

सच कहती मैं आखिरकार, मन में उमड़ी बड़ी उमंग
क्या मिल गया पिया का प्यार? ना सखि मैंने पीली भंग।

थिरकन लागे मेरे पाँव और बढ़ी पायल-झंकार
क्या सखि जुड़े पिया से तार? ना सखि सिर्फ सुनी थी चंग।

सुन-सुन बोल गयी मैं रीझ, तन क्या मन भी गया पसीज
क्या सखि पिया मिले इस बार? ना ना री सखि बजी मृदंग।

जब आयी बैरिन बरसात, दी उसने दुःख की सौगात
क्या सखि पिया संग तकरार? ना सखि लोहे देखी जंग।

नभ को छूकर यूँ मन जोश, ‘कहाँ आज मैं’ रहा न होश
हुआ पिया सँग क्या अभिसार? ना सखि मैं लखि रही पतंग।

7. जैसे तैसे रातें काट, रोज भोर की जोहूँ बाट

जैसे तैसे रातें काट, रोज भोर की जोहूँ बाट
क्या छेड़ें तेरे सम्राट? ना सखि सोऊ में बिन खाट।

देख उन्हें मैं दी मुस्काय, चैन पड़ा अपने घर लाय
मिले सजन मत जइयो नाट? ना सखि मोती देखे हाट।

भला इसी में रह लूँ दूर, पल में तन-मन करते चूर
क्या साजन हैं क्रूर कुटाट? ना ना सखि चाकी के पाट।

सखि मैं गयी स्वयं को भूल, ऐसा देखा सुन्दर फूल
क्या साजन है बड़े विराट? ना ना सखि नदिया के घाट।

कभी चाँदनी-सा खिल जाय, कभी मेघ बन मन को भाय
मिलन हुआ सखि नदिया-घाट? ना सखि नभ लखि रूप विराट।

8. भला बढ़ाया मैंने मेल, लुका-छुपी का कैसा खेल

भला बढ़ाया मैंने मेल, लुका-छुपी का कैसा खेल
घावों पै नित मलती तेल, क्या संग साजन? नहीं पतेल।

घने ताप में थी खामोश, आया सावन दूना जोश
क्या सखि वहीं बढ़ाया मेल? ना सखि मेरे घर में बेल।

आये इत तो धुक-धुक होय, नींद जाय अँखियन से खोय
दे मन में झट शोर उड़ेल, क्या सखि साजन? ना सखि रेल।

मिले न काहू ऐसा संग, बार-बार जो फाटें अंग
क्या सखि ये साजन के खेल? ना सखि बेरी के सँग केल।

मैं चौंकी सखि री तत्काल, मैंने लीना घूँघट डाल
क्या साजन की चली गुलेल? वे वर ना, सखि मिले बड़ेल।

9. बात बताऊँ आये लाज, गजब भयौ सँग मेरे आज

बात बताऊँ आये लाज, गजब भयौ सँग मेरे आज
मेरी चूनर भागा छीन, क्या सखि साजन? ना सखि बाज।

सखि मैं गेरी पकरि धड़ाम, परौ तुरत ये नीला चाम
निकली मुँह से हाये राम, सैंया? नहीं गिरी थी गाज।

कहाँ चैन से सोबन देतु, पल-पल इन प्रानों को लेतु,
बोवै काँटे मेरे हेतु, क्या सखि साजन? नहीं समाज।

बिन झूला के खूब झुलाय, गहरे जल में झट लै जाय
खुद भी हिचकोले-से खाय, क्या सखि साजन? नहीं जहाज।

10. पहले मोकूँ चूम ललाम, फिर लोटत डोल्यौ वो पाम

पहले मोकूँ चूम ललाम, फिर लोटत डोल्यौ वो पाम
गिरौ पेड़ से सुन सखि फूल, चल झूठी पति होंगे शाम।

चमकी चपला नभ के बीच, तुरत गयी मैं आँखें मींच
ली मैंने झट बल्ली थाम, सखि ना छुपा सजन कौ नाम।

पीत वसन में सुन्दर गात, रस दे मीठा अधर लगात
महँक उठे मन-बदन तमाम, का सखि साजन? ना सखि आम।

भरी दुपहरी पहुँची बाम, चाट गयी तन-मन को घाम
पिया मिले होंगे गुलफाम? क्या बोले सखि हाये राम!

अगर मिले तो चित्त सुहाय, पास न हो तो मन मुरझाय
रोज बनाये बिगड़े काम, का सखि साजन? ना सखि दाम।

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