हिन्दी कविताएँ : योगेंद्र पांडेय

Hindi Poetry : Yogendra Pandey


खूंटी पर टंगे लोग

मैंने देखा है खूंटी पर टांगे हुए लोगों को जैसे देह से उतार कर टांग देते हैं पुराने कपड़े को। पुराने कपड़े भी काम आते हैं किसी गरीब लाचार का देह ढकने के लिए, वैसे ही पुराने लोग भी काम आते हैं अभाव और दुख की घड़ी में उम्मीद की एक नई ज्योति जलाते हुए। हमारे समय की ये कैसी विडंबना है कि लोग नहीं समझते हैं पुराने कपड़े का महत्व आधुनिकता की इस अर्धनग्न भाग दौड़ में।।

कवि की संपत्ति

आम की अमराई महुवे का गंध एक कवि की सम्पत्ति होती है॥ कलकल बहती नदी वृक्ष से लदे पर्वत गोधूली की बेला एक कवि की सम्पत्ति होती है॥ चिड़ियों का चहकना फूलों का महकना बादल का बरसना बसंत का लहकना एक कवि की सम्पत्ति होती है॥ किसी के हृदय का दर्द किसी के आंखों का आंसू किसी के होठों की मुस्कान किसी से मिलने की खुशी किसी से बिछड़ने का ग़म एक कवि की सम्पत्ति होती है॥

अनंत की यात्रा

सूर्य के चारो तरफ सूरज भी घूम रहा है अपनी आकाशगंगा के चारो तरफ॥ ग्रहों और सितारों की ये यात्रा अनंत काल से चली आ रही है सृष्टि के आदि और अंत तक चलती रहेगी ये अविराम यात्रा॥ ग्रहों की ये दौड़ भाग आखिर किस लिए है? क्यों सभी ग्रह, तारे और नक्षत्र घूमते रहते हैं सूर्य के और अपनी आकाशगंगा के चारो ओर? विज्ञान चाहे कुछ भी तर्क दे मगर मेरा कवि हृदय कहता है कि जैसे भंवरा चक्कर लगाता है फूलों का और फूलों के आगोश में होने का स्वप्न देखता है ठीक वैसे ही सभी ग्रह, नक्षत्र, तारे प्यासे हैं अमृत रस के लिए और उसे पाने के लिए चक्कर लगाते हैं अपने अपने तारे और आकाशगंगा का॥ यही सोचता हूं मै आकाश को निहारते हुए और तभी नींद आती है मुझे लेकर चली जाती है सपनों की सुनहरी दुनिया में॥

तुम्हे चलना होगा

चलो कि तुम्हे चलना होगा चाहें सूख जाए नदियां, टूट जाए सड़क, बिखर जाए शूल मुरझा जाए फूल॥ चलो कि तुम्हे चलना होगा चाहें छाले पड़े हों पांव, मिले ना कोई ठांव, रूठ जाए अपने, टूटने लगे हों सपने॥ चलो कि तुम्हे चलना होगा चाहें मंज़िल हो दूर हो के मजबूर, छोड़ना पड़े संसार, सहना पड़े अंगार चलो कि तुम्हे चलना होगा॥

कोयल क्यों कूक रही हो

कोयल क्यों कूक रही हो बोलो क्या दुःख है, क्यों हूक रही हो।। किसने तेरा बाग उजाड़ा किसने है उपहास उड़ाया क्यों डाली पर बैठ अकेले अपने दुःख में डूब रही हो कोयल क्यों कूक रही हो बोलो क्या दुःख है, क्यों हूक रही हो।। किसने तुमको है चिढ़ाया किसने नकल तुम्हारा गाया कौन है जिसके लिए निरंतर पीड़ा के सुर खींच रही हो, कोयल क्यों कूक रही हो बोलो क्या दुःख है, क्यों हूक रही हो।। तेरी गीतों में कम्पन है स्वर में थोड़ा स्पन्दन है क्या आफत में ऋतु वसंत है? या फिर धरती पे संकट है बोलो अब क्यों चुप बैठी हो, कोयल क्यों कूक रही हो बोलो क्या दुःख है, क्यों हूक रही हो।।

खोया हुआ बचपन

शहर के गगनचुम्बी इमारतों से झांकता हुआ एक बच्चा देखना चाहता है उगता हुआ सूरज। ये बड़ी बड़ी इमारतें ढक रखे हैं आसमान को, कई दिनों तक नहीं दिखता है पूरब का क्षितिज। तरसती हैं आंखे देखने के लिए प्रात के सूरज की लालिमा लिए मधुर मुस्कान।

हम पूछेंगे

हम पूछेंगे सवाल आप से, सरकार से, धर्म के ठेकेदार से। क्यों दहेज के नाम पर जल रही हैं बेटियां? क्यों टुकड़ों में काटी जा रही हैं बेटियां? क्यों लव जेहाद के नाम पर सताई जा रही हैं बेटियां? हम पूछेंगे सवाल आप से सरकार से धर्म के ठेकेदार।।

बस यूं ही

कभी कभी रो लेना चाहिए किसी के कंधे पे सर रख कर घड़ी दो घड़ी। लोग कहते हैं रो लेने से मन का बोझ हल्का हो जाता है मगर रोए भी तो किसके कंधे पे? कौन है जो सहारा देगा? सुलझाएगा दुख सुख की पहेली अपनाएगा मुझे, निभाएगा दिल का रिश्ता सौंप देगा अपना कंधा मुझे पल भर को, रो लेने के लिए।।

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