हिन्दी कविताएँ : डॉ. विजय प्रताप शाही

Hindi Poetry : Dr. Vijay Pratap Shahi


आओ हे मधुमास

आओ हे मधुमास, नया उल्लास भरो फिर, कण- कण में.... आओ हे मधुमास, नया अहसास भरो फिर, कण-कण में... अभिसिंचित फिर करो, सृष्टि को, नव ऊर्जा से, दे दो आज छितिज को, फिर से नई चेतना, आओ हे मधुमास, नया विश्वास भरो फिर, कण-कण मे... आओ हे मधुमास, नया अहसास भरो फिर, कण- कण में.... आलोकित हो पुनः भारती, ज्ञान - दीप से, सूर्य उगे फिर, शांति, प्रेम, आरोग्य, प्रगति का, आओ हे मधुमास, नया अभिलाष भरो फिर, कण-कण में... आओ हे मधुमास, नया अहसास भरो फिर, कण- कण में....।।

राग ना हो द्वेष ना हो

राग ना हो द्वेष ना हो, और मन में क्लेश ना हो । पूर्ण हो उद्देश्य सारे, चाह कोई शेष ना हो ।। प्रतिक्रिया में आग ना हो, और अनुचित माँग ना हो । स्वयं की थाली में कोई, दूसरे का भाग ना हो ।। दुर्जनों का संग ना हो, और एका भंग ना हो । आत्महित का लोप हो पर, आचरण बेरंग ना हो ।। प्रभु कृपा का अंत ना हो, और चित्त स्वतंत्र ना हो । सुख मिलेथोड़ा विजय पर, सोच में षड्यंत्र ना हो ।।

हिन्दी

हिन्दी, अपनी प्यारी हिन्दी, भाषाओं में न्यारी हिन्दी, सुन्दर,सहज,सरस,सम्मोहक, शब्दों की फुलवारी हिन्दी ।। इठलाती बलखाती हिन्दी, नवरस रंग सजाती हिन्दी, लक दक भावाभूषण ओढ़े, मंत्रमुग्ध कर जाती हिन्दी, पंक्ति पंक्ति परिपूरित हिन्दी, अक्षर अक्षर मधुरित हिन्दी, अलंकार, रस, छंद सजाए, भाषित राजकुमारी हिन्दी ।। सत की सतत साधना हिन्दी, कवि की कर्म कल्पना हिन्दी, युगों - युगों से संघर्षों से, प्रकटित राष्ट्र चेतना हिन्दी, सत्य संस्कृति पोषित हिन्दी, संतों से संवर्धित हिन्दी, जन - मानस से नेह जोड़ती, रुचिता राजदुलारी हिन्दी ।। हिन्दी, अपनी प्यारी हिन्दी, भाषाओं में न्यारी हिन्दी, सुन्दर सहज सरस सम्मोहक, शब्दों की फुलवारी हिन्दी ।।

संकल्प

वह अनंत तक व्याप्त गगन, छाया जो धरती के ऊपर, मनो, छूने को हो तत्पर ..... अंततः असफल रहकर भी, मूक संदेश भेजता, जो समाज के बीच, निरंतर करते जो संघर्ष, सदा होता उनका उत्कर्ष ..... लक्ष्य यद्यपि होता है दूर, किसी पर्वत सदृश्य स्थिर होकर जो स्वयं, चाहता हो ऊपर की ओर, लपक ले अम्बर का इक छोर ..... विजय फिर रहे पूर्ण विश्वास, सफल होने का हर दिन करता रहे प्रयास, रहे संकल्प सुदृढ़ जिसका, लक्ष्य भी आगे बढ़ कर कर गह ले उसका ।।

मधुमास : मनहरण घनाक्षरी

लेके रंग आस पास, आया मधुमास खास, जूही, मोगरा, पलास, खिले मधुवन में, मृदु राग बोल-बोल, फूल-फूल डोल-डोल, भँवरे करें किलोल, भरे उपवन में, अंग अलसाये हुए, मन हरसाए हुए, प्रेम रंग छाये हुए, दिखे जन - जन में, ऐसी पुरुवाई बही, देखे कोई छू के सही, बिजुरी सी दौड़ रही, सबके बदन में ।। काली कोकिला की कूँक, हिया में उठावे हूँक, चंचला चिड़ी चिहूँक, चाँव - चाँव चँहके, साथियों को संग लिये, भाँति-भाँति रंग लिये, तितली तरंग लिये, बाग - बाग बँहके, झूमि के बहे बयारि, झूमें डारि झारि - झारि, जेहि से जिला जवारि, मन्द - मन्द मँहके, मूक हो मनो अनंग, आये ऋतुराज संग, अंग - अंग में उमंग, उठे रह रह के ।।

पर्यावरण बचाओ भाई

पर्यावरण बचाओ भाई आओ हाथ बढ़ाओ, आगे बढ़कर वृक्ष लगाओ हरियाली फैलाओ ।। ताल पोखरे स्वच्छ बनाओ वहां न कूड़ा फेको, वर्ना जीवन भर घेरेंगी बीमारियां अनेकों ।। देखो अब नदियों को दूषित मत होने दो आगे, कोशिश हो समाज में कोई नई चेतना जागे ।। पालीथीन प्लास्टिक से इक दूरी सहज बनाकर, निकलो तुम बाजार हमेशा झोला थैला लेकर ।। फ्रिज एसी मोटर स्कूटर बने नहीं मजबूरी, विजय करो उपयोग तभी जबजब हो बहुत जरूरी ।।

  • मुख्य पृष्ठ : विजय प्रताप शाही - हिंदी कविताएँ
  • मुख्य पृष्ठ : हिन्दी कविता वेबसाइट (hindi-kavita.com)