हिंदी कविताएँ : सूर्यकुमार पाण्डेय

Hindi Poetry : Suryakumar Pandey


सबके प्यारे नंदलाल

थी रात अँधेरी भादो की, बादल करते थे मनमानी । यमुना उफनाई बहती थी, था सभी ओर पानी-पानी ।। वसुदेव-देवकी बंदीगृह में, बैठे थे हारे-हारे । बाहर पहरे पर डटे हुए थे, मथुरा के सैनिक सारे ।। मथुरा पर राज कंस का था, तब नहीं सुखी था कोई भी । थे बरसों से कैदी उसके, निज बहन और बहनोई भी ।। जिनके पुत्रों को मार-मार, उसने आतंक मचाया था। थी धरा पाप से लदी हुई, हर ओर अधर्म समाया था।। असुरों का अत्याचार देख, देवता सभी जब घबराए । भगवान विष्णु के पास सभी, विनती की मुद्रा में आए।। हे ईश्वर, धरती पर जाकर सारी वसुधा का ताप हरें । पामर दनुजों का अंत करें, सज्जन का प्रभु! उद्धार करें ।। तब कृपासिंधु प्रभु ने हँसकर, उनका कहना स्वीकार किया। श्रीकृष्ण रूप में मथुरा में जाकर प्रभु ने अवतार लिया ।। आठवें पुत्र बनकर कान्हा, वसुदेव- देवकी घर आए। देवों ने फूलों की वर्षा की, सबने भक्ति-गीत गाए ।। यूँ प्रकट कन्हैयालाल हुए, सब का पालन करने वाले । सब पहरेदार अचेत हुए, खुल गए कैद-गृह के ताले ।। वसुदेव टोकरे में लेकर उस शिशु को यमुना के पार गए। चौकसी कंस की व्यर्थ हुई, सब हथकण्डे बेकार गए ।। तब नंद यशोदा के घर में, पलकर प्रभुवर गोपाल बने, वंशीधर- माखनचोर बने, सबके प्यारे नंदलाल बने।। वध किया कंस का माधव ने, सारे जग में सम्मान मिला। इस धरती को आदर्श मिला, गीता का सुंदर ज्ञान मिला।।

रद्द हुआ कानून

(पद्य कथा) राजकुमार शुक्ल चंपारण के किसान थे एक गरीब। भले नील की खेती करते, लेकिन फूटे हुए नसीब ।। निलहे गोरे गाँव-गाँव में जुल्म किया करते भारी। परेशान करते थे सबको, आ-आ कर अत्याचारी।। सुना उन्होंने, गांधी जी कांग्रेस-अधिवेशन में आए। राजकुमार शुक्ल उनसे मिलने लखनऊ शहर धाए।। गए कानपुर जब गांधी जी, किया शुक्ल जी ने पीछा। अपनी तरफ़ महात्मा जी का ध्यान उन्होंने यों खींचा।। बोले-''चंपारण चलिए,बापू बस यही कृपा करिए। हम गरीब नील के किसानों की दुर्दशा आप हरिए।।" हुए द्रवित गांधी जी, बोले-"चंपारण मुझको आना। मैं कलकत्ते आऊँगा, तुम मुझे वहाँ से ले जाना।।" गांधी जी से पहले पहुँच गए कोलकाता राजकुमार। उन्हें साथ लेकर पटना वाली गाड़ी पर हुए सवार।। पटना में राजेंदर बाबू के घर दोनों लोग गए। सरल स्वभाव बिहार प्रांत का देखा, अनुभव मिले नए।। वहाँ वकीलों से मिलकर गांधी जी ने हालत जानी। कैसे तीन बटा बीस खेती पर गोरे करते मनमानी।। इसे 'तीन कठिया' कहते थे, नील उगाना था अनिवार्य। यह कानून रद्द करवाना होगा, पर मुश्किल था कार्य।। गांधी जी धुन के पक्के थे, उनसे हर मुश्किल हारी। गये मुज़फ़्फ़रपुर, तिरहुत, फिर पहुँच गए मोतीहारी।। नील मालिकों और फ़िरंगी अफसरान से मिले वहाँ। बात नहीं कोई बन पाई, बहुत कठिन था काम यहाँ।। गांधी जी पर चला मुक़दमा, गोरों की ताक़त हारी। गाँव गाँव में जाकर गांधी जी ने जाँच रखी जारी।। तब बिहार का लाट गवर्नर सर एडवर्ड गेट था नाम। उसने भेजा पत्र कि मुझसे मिलिए, सुलझाऊँगा काम।। हुई गेट से भेंट, कमेटी एक बनी इस हेतु तुरंत। सौ सालों से बाद तीन कठिया का ऐसे आया अंत।। हार मान ली अंग्रेजों ने, गूँजा गांधी का जयगान। रद्द हुआ कानून, खुश हुए चंपारण के नील किसान।।

लल्लू- जगधर गए शहर

सोचा, देखें चिड़ियाघर, लल्लू- जगधर गए शहर. रहे घूमते वे दिन भर, सारा शहर अजायब घर. कारें, ट्रक,बस, टू-व्हीलर, सड़क पार करना दूभर. इतना शोर कि घूमा सर, आने लगे उन्हें चक्कर. भीड़-भाड़ से जी ऊबा, और उधर; सूरज डूबा. बोले दोनों, चलो चलें. इससे अपने गांव भले. थक-हारे लल्लू- जगधर, बस पकड़ी, लौटे घर पर.

भारत की पहचान तिरंगा

आन-बान है, शान तिरंगा, भारत की पहचान तिरंगा। नगर-नगर में, डगर-डगर पर, गांव- गली में, सीमाओं पर। लहर- लहर कर, फहर-फहर कर, देशभक्ति भरता है घर-घर। है उत्सव, अभियान तिरंगा। हम सबका अभिमान तिरंगा। भारत की पहचान तिरंगा। आजादी वाला यह परचम, तीन रंग का है यह संगम। शौर्य, शांति, हरियाली के संग, चक्र प्रगति का घूमे हरदम। हम सब का अरमान तिरंगा। रहता सीना तान तिरंगा। भारत की पहचान तिरंगा।

झंडा प्यारा

शान हमारी, प्राण हमारा झंडा न्यारा, सबको प्यारा। लहरलहर कर, फहरफहर कर। देश- भक्ति का भरता नव स्वर। मंदिर- मस्जिद, है गुरुद्वारा। झंडा न्यारा, सबको प्यारा। कभी न डरता, साहस भरता। मस्तक हर पल, ऊँचा करता। रूप तिरंगा, इसने धारा। झंडा न्यारा, सबको प्यारा।

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