हिन्दी कविताएँ : प्रतीक झा 'ओप्पी'

Hindi Poetry : Prateek Jha Oppi


शिक्षा विभाग से एक प्रश्न

क्या शिक्षा विभाग को यह नहीं दिखाई देता भारत की इस पुण्य भूमि से दर्शनशास्त्र क्यों सिमटता जा रहा है? क्या भारत के युवाओं को महान विचारकों के चिन्तन से दूर ही रखना अब लक्ष्य है? और यदि ऐसा नहीं है, तो फिर दर्शनशास्त्र क्यों उपेक्षित होता जा रहा है? क्यों दुख देते हो? उन दिव्य आत्माओं को जो ज्ञान की अमर पहचान हैं आख़िर क्यों? आज दर्शन की यह दयनीय दशा है यह प्रश्न मैं नहीं बल्कि वे महान दार्शनिक आत्माएँ हर पल पूछ रही हैं आपसे— निःशब्द, परन्तु पुकारती हुईं...

संवाद : डॉक्टर और ओपेनहाइमर

धुआं भरा था ओपेनहाइमर के फेफड़ों में पर मन में उभरते थे विचारों के सैलाब डॉक्टर ने कहा, 'यह धुआं जानलेवा है और आपके आविष्कार से होगा विनाश अपार।' ओपेनहाइमर बोला, 'मैं यह सब जानता हूँ पर क्या हिटलर को यह करने दूँ? कर्तव्य मेरा विज्ञान के संग खड़ा है पर मन में नैतिकता का सवाल बड़ा है।' डॉक्टर ने पूछा, 'क्या यह राह उचित है? क्या परमाणु हथियार से बच पाएगी कोई भूमि? जब बम गिरेगा तो कौन बचेगा? यह सवाल दिल को चीर देता है। मनुष्य जलेंगे, राख बन जाएंगे और तब डॉक्टरों के पास क्या बचेंगे?' ओपेनहाइमर बोला, 'मुझे भी डर है यही पर यह कर्तव्य है, मैं इसे रोक नहीं सकता हूँ हिटलर से पहले बनाना, यही मेरा उद्देश्य मैं राजनेताओं से निवेदन करूँगा कि परमाणु हथियार का हो सदा के लिए प्रतिबंध।' शान्ति का सपना मेरा अन्तिम प्रण है, आशा है, राजनेता समझेंगे सत्य का वजन, परमाणु परीक्षण रुकेगा, पर्यावरण निखरेगा, मानवता की सेवा ही मेरा जीवन धन है।

प्रैक्टिस में कैद प्रतिभा

जो बच्चे हैं वे होमवर्क दर होमवर्क करते जाते हैं और जो बड़े हैं वो प्रैक्टिस सेट पे प्रैक्टिस सेट सुलझाए जा रहे हैं। और यही है वो प्रमुख कारण जिसके चलते अब महान प्रतिभाएं जन्म नहीं ले रहीं — और यही सबसे बड़ा दुखद सत्य है।

एक और कानून की आवश्यकता

तुमने तो पहले ही दोषी ठहरा दिया है पुरुषों को तभी तो बने हैं अधिकांश कानून महिलाओं के पक्ष में। कृपा कर अब एक कानून बना दो संस्कार का ज्ञान अनिवार्य कर दो ताकि बच सके पति की जान पत्नी के प्रियतम से।

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