हिंदी कविताएँ : डॉ. जसबीर चावला
Hindi Poetry : Dr. Jasbir Chawla


गणतंत्र दिवस २०२५

नीचे के पानी को जगाओ, ठंढा हुआ पड़ा है! बांह नहीं पहुंचती? मत भिंगाओ! थापी से हिलाओ!लोटे से रलाओ!! पेंदे से फूंक नहीं सकते, सोंटे से जगाओ! गरम पानी रह जायेगा ऊपर-ऊपर नीचे वाला सुन्न बर्फ, अमृत महोत्सव में भारत कैसे नहाये? बह जायेगा नाली में, विदेशी थाली में हलधर जो दे रहा गरम-गरम, आक्खा देश में जाए, तली तक ताये! पानी गर्म होता हल्का ,बैठ न पाये ठंडा जो बैठे तो बैठा रह जाये जब तक रलें नहीं, रचे-बसें नहीं सुखावां न थाये भारत अमृत महोत्सव में कैसे नहाये? लकुटी ले मथ दो! ऊपरला गरम, नीच-नीच ठंडा रल-मिल जाए! सारा देश इकसार हो जाए!! न ज्यादा गरम, न बहुत ही ठंढा माफिक हुई जाए! अमृत महोत्सव गणतंत्र का गोट्टा देश नहाकर मनाये! जात -पात पाखंड -मैल, ऊच-नीच सारा बह जाये! अमृत महोत्सव बाबा साहेब का भारत नहाकर मनाये!

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