हिन्दी ग़ज़लें : फ़रहत अब्बास शाह

Ghazals in Hindi : Farhat Abbas Shah



आग हो तो जलने मे देर कितनी लगती है

आग हो तो जलने मे देर कितनी लगती है बर्फ के पिघलने मे देर कितनी लगती है चाहे कोई रुक जाये चाहे कोई रह जाये काफिलो को चलने मे देर कितनी लगती है चाहे कोई जैसा भी हमसफर हो सदियो से रास्ता बदलने मे देर कितनी लगती है ये तो वक्त के बस में है के कितनी मोहलत दे वरना वक्त ढलने मे देर कितनी लगती है

इक यही रौशनी रौशनी इम्कान में है

इक यही रौशनी रौशनी इम्कान में है तू अभी तक दिल-ए-वीरान में है शोर बरपा है तिरी यादों का रौनक़-ए-हिज्र बयाबान में है प्यार और ज़िंदगी से लगता है कोई ज़िंदा-दिली बे-जान में है आज भी तेरे बदन की ख़ुश्बू तेरे भेजे हुए गुल-दान में है ज़िंदगी भी है मिरी आँखों में मौत भी दीदा-ए-हैरान में है दिल अभी निकला नहीं सीने से एक क़ैदी अभी ज़िंदान में है

इसी से होता है जाहिर

इसी से होता है जाहिर जो हाल दर्द का है सभी को कोई ना कोई बबाल दर्द का है सहर सिसकते हुये आसमान से उतरी तो दिल ने जान लिया ये बिसाल दर्द का है ये झाँक लेती है दिल से जो दूसरे दिल मे मेरी निगाह मे सारा कमाल दर्द का है अब इसके बाद कोई राब्ता नही रखना ये बात तय हुई लेकिन सवाल दर्द का है ये दिल, ये उजडी हुई चश्मे नम,ये तन्हाई हमारे पास तो जो भी है माल दर्द का है ना तुम मे सुख की कोई बात है ,ना मुझ मे है तुम्हारा और मेरा मिलना बिसाल दर्द का है यही कहीं मेरे अंदर कोई तड़पता है यही कही पे कोई यर्ग़माल दर्द का है ये इश्क है,इसे तीमारदारियाँ कैसी? इसे ना पूछ ये बूढा निढाल दर्द का है हम इसको देखते जाते है,रोते जाते है ये शहने शब पे पड़ा है जो थाल दर्द का है असीर है मेरी शाखे नसीब पतझड़ मे मेरे परिंदा -ए-दिल पर भी जाल दर्द का है सुना है तेरे नगर जा बसा है बेचारा सुनाओ कैसा वहाँ हाल चाल दर्द का है किसी ने पूछा के ‘फरहत’ बहुत हसीन हो तुम तो मुस्कुरा के कहा सब जमाल दर्द का है

एक क़तरा मलाल भी बोया नहीं गया

एक क़तरा मलाल भी बोया नहीं गया वोह खौफ था के लोगों से रोया नहीं गया यह सच है के तेरी भी नींदें उजड़ गयीं तुझ से बिछड़ के हम से भी सोया नहीं गया उस रात तू भी पहले सा अपना नहीं लगा उस रात खुल के मुझसे भी रोया नहीं गया दामन है ख़ुश्क आँख भी चुप चाप है बहुत लड़ियों में आंसुओं को पिरोया नहीं गया अलफ़ाज़ तल्ख़ बात का अंदाज़ सर्द है पिछला मलाल आज भी गोया नहीं गया अब भी कहीं कहीं पे है कालख लगी हुई रंजिश का दाग़ ठीक से धोया नहीं गया

कभी सहर तो कभी शाम ले गया मुझ से

कभी सहर तो कभी शाम ले गया मुझ से तुम्हारा दर्द कई काम ले गया मुझ से मुझे ख़बर न हुई और ज़माना जाते हुए नज़र बचा के तिरा नाम ले गया मुझ से उसे ज़ियादा ज़रूरत थी घर बसाने की वो आ के मेरे दर-ओ-बाम ले गया मुझ से भला कहाँ कोई जुज़ इस के मिलने वाला था बस एक जुरअत-ए-नाकाम ले गया मुझ से बस एक लम्हे के सच झूट के एवज़ 'फ़रहत' तमाम उम्र का इल्ज़ाम ले गया मुझ से

कहाँ मैं कहाँ हो तुम

कहाँ मैं कहाँ हो तुम जवाब आया जहाँ हो तुम मिरे जीवन से ज़ाहिर हो मिरे ग़म में निहाँ हो तुम मिरी तो सारी दुनिया हो मिरा सारा जहाँ हो तुम मिरी सोचों के मेहवर हो मिरा ज़ोर-ए-बयाँ हो तुम मैं तो लफ़्ज़-ए-मोहब्बत हूँ मगर मेरी ज़बाँ हो तुम

ख़ुश्बू सा बदन याद न साँसों की हवा याद

ख़ुश्बू सा बदन याद न साँसों की हवा याद उजड़े हुए बाग़ों को कहाँ बाद-ए-सबा याद आती है परेशानी तो आता है ख़ुदा याद वर्ना नहीं दुनिया में कोई तेरे सिवा याद जो भूले से भूले हैं मगर तेरे अलावा इक बिछड़ा हुआ दिल हमें आता है सदा याद मैं तो हूँ अब इक उम्र से पछतावों की ज़द में क्या तुम को भी आती है कभी अपनी ख़ता याद मुमकिन है भला कैसे इलाज-ए-ग़म-ए-जानाँ जब कोई दवा याद न है कोई दुआ याद

गर दुआ भी कोई चीज़ है तो दुआ के हवाले किया

गर दुआ भी कोई चीज़ है तो दुआ के हवाले किया जा तुझे आज से हम ने अपने ख़ुदा के हवाले किया एक मुद्दत हुई हम ने दुनिया की हर एक ज़िद छोड़ दी एक मुद्दत हुई हम ने दिल को वफ़ा के हवाले किया इस तरह हम ने तेरी मोहब्बत ज़माने के हाथों में दी जिस तरह गुल ने ख़ुश्बू को बाद-ए-सबा के हवाले किया बेबसी सी अजब ज़िंदगी में इक ऐसी भी आई कि जब हम ने चुप-चाप हाथों को रस्म-ए-हिना के हवाले किया ख़ून ने तेरी यादें सुलगती हुई रात को सौंप दीं आँसुओं ने तिरा दर्द रूखी हवा के हवाले किया

ग़म का मारा कभी न हो कोई

ग़म का मारा कभी न हो कोई बे-सहारा कभी न हो कोई जब हर इक शख़्स हो फ़क़त दरिया जब किनारा कभी न हो कोई गर कभी हो तो हो फ़क़त तश्बीह इस्तिआ'रा कभी न हो कोई क्यूँ भला इस तरह तबीअ'त हो क्यूँ गवारा कभी न हो कोई तू कि इक उम्र इंतिज़ार करे और इशारा कभी न हो कोई इस क़दर हूँ तही ख़ुदा न करे जब ख़सारा कभी न हो कोई

ज़िंदगी के बहुत मसाइल हैं

ज़िंदगी के बहुत मसाइल हैं हर क़दम पर पहाड़ हाइल हैं ऐ दिल-ए-बे-क़रार मुद्दत से हम तिरी वहशतों के क़ाइल हैं ऐसे तकते हैं आप की जानिब जैसे मौसम नहीं हैं साइल हैं फूल ख़ुश्बू हवा शजर बारिश एक तेरी तरफ़ ही माइल हैं फ़ासला तो बहुत ही कम है मगर दरमियाँ में कई मसाइल हैं उस के चेहरे के सामने 'फ़रहत' रंग और रौशनी भी ज़ाइल हैं सिर्फ़ सहराओं ही की बात नहीं बस्तियों में भी तेरे घायल हैं

तुम्हारे ख़्वाब मिरे साथ साथ चलते हैं

तुम्हारे ख़्वाब मिरे साथ साथ चलते हैं कई सराब मिरे साथ साथ चलते हैं तुम्हारा ग़म ग़म-ए-दुनिया उलूम-ए-आगाही सभी अज़ाब मिरे साथ साथ चलते हैं इसी लिए तो मैं उर्यानियों से हूँ महफ़ूज़ बहुत हिजाब मिरे साथ साथ चलते हैं न जाने कौन हैं ये लोग जो कि सदियों से पस-ए-नक़ाब मिरे साथ साथ चलते हैं मैं बे-ख़याल कभी धूप में निकल आऊँ तो कुछ सहाब मिरे साथ साथ चलते हैं

तू अपने होने का हर इक निशाँ सँभाल के मिल

तू अपने होने का हर इक निशाँ सँभाल के मिल यक़ीं सँभाल के मिल और गुमाँ सँभाल के मिल हम अपने बारे कभी मुश्तइ'ल नहीं होते फ़क़ीर लोग हैं हम से ज़बाँ सँभाल के मिल वजूद-ए-वाहिमा वीरानियों में घूमता है ये बे-कराँ है तो फिर बे-कराँ सँभाल के मिल ये मरहले हैं अजब इस लिए समुंदर से हुआ को थाम के मिल बादबाँ सँभाल के मिल अगरचे दोस्त हैं सारे ही आस-पास मगर उसूल ये है कि तीर-ओ-कमाँ सँभाल के मिल तू कैसी ग़ैर-यक़ीनी फ़ज़ा में मिलता है कोई तो लम्हा कभी दरमियाँ सँभाल के मिल फिर उस के बा'द तो शायद रहे रहे न रहे तमाम उम्र का सूद-ओ-ज़ियाँ सँभाल के मिल

तू ने देखा है कभी एक नज़र शाम के बा'द

तू ने देखा है कभी एक नज़र शाम के बा'द कितने चुप-चाप से लगते हैं शजर शाम के बा'द इतने चुप-चाप कि रस्ते भी रहेंगे ला-इल्म छोड़ जाएँगे किसी रोज़ नगर शाम के बा'द मैं ने ऐसे ही गुनह तेरी जुदाई में किए जैसे तूफ़ाँ में कोई छोड़ दे घर शाम के बा'द शाम से पहले वो मस्त अपनी उड़ानों में रहा जिस के हाथों में थे टूटे हुए पर शाम के बा'द रात बीती तो गिने आबले और फिर सोचा कौन था बाइस-ए-आग़ाज़-ए-सफ़र शाम के बा'द तू है सूरज तुझे मा'लूम कहाँ रात का दुख तू किसी रोज़ मिरे घर में उतर शाम के बा'द लौट आए न किसी रोज़ वो आवारा-मिज़ाज खोल रखते हैं इसी आस पे दर शाम के बा'द

दिल भी आवारा नज़र आवारा

दिल भी आवारा नज़र आवारा कट गया सारा सफ़र आवारा ज़िंदगी भटका हुआ जंगल है राह बेचैन शजर आवारा रूह की खिड़की से हम झाँकते हैं और लगता है नगर आवारा तुझ को मा'लूम कहाँ होगा कि शब कैसे करते हैं बसर आवारा मुझ को मा'लूम है अपने बारे हूँ बहुत अच्छा मगर आवारा ये अलग बात कि बस पल-दो-पल लौट के आते हैं घर आवारा

दिल में इक शाम सी उतारती है

दिल में इक शाम सी उतारती है ख़ामुशी अब मुझे पुकारती है कैसे वीरान साहिलों की हवा रेत पर ज़िंदगी गुज़ारती है तुझ से हम दूर रह नहीं सकते कोई बेचैनी हम को मारती है खेलती है मिरे दुखों के साथ ज़िंदगी किस क़दर शरारती है है मोहब्बत तो बस मोहब्बत है जीत जाती है अब या हारती है रोज़ इक नक़्श को उभारती है अन-कही रूप कितने धारती है कारोबारी हैं उस की बातें भी उस की मुस्कान भी तिजारती है

फूल की सुख की सबा की ज़िंदगी

फूल की सुख की सबा की ज़िंदगी मुख़्तसर है क्यूँ वफ़ा की ज़िंदगी किस ने देखा है ख़ुदा की मौत को किस ने देखी है ख़ुदा की ज़िंदगी हाथ पाँव मारना बे-कार है जी रहे हैं हम ख़ला की ज़िंदगी बारहा भी मौत से है सामना आज़मा ली बारहा की ज़िंदगी दर्द सहने का अलग अंदाज़ है जी रहे हैं हम अदा की ज़िंदगी चाहे जंगल हों या सहरा या नगर अस्ल में तू है हवा की ज़िंदगी

मौत का वक़्त गुज़र जाएगा

मौत का वक़्त गुज़र जाएगा ये भी सैलाब उतर जाएगा आ गया है जो किसी सुख का ख़याल मुझ को छूएगा तो मर जाएगा क्या ख़बर थी मिरा ख़ामोश मकाँ अपनी आवाज़ से डर जाएगा आ गया है जो दुखों का मौसम कुछ न कुछ तो कहीं धर जाएगा झूट बोलेगा तो क्या है इस में कोई वा'दा भी तो कर जाएगा उस के बारे में बहुत सोचता हूँ मुझ से बिछड़ा तो किधर जाएगा चल निकलने से बहुत डरता हूँ कौन फिर लौट के घर जाएगा

ये जो ज़िंदगी है ये कौन है

ये जो ज़िंदगी है ये कौन है ये जो बेबसी है ये कौन है ये तुम्हारे लम्स को क्या हुआ ये जो बे-हिसी है ये कौन है वो जो मेरे जैसा था कौन था ये जो आप सी है ये कौन है मिरे चार-सू मिरे चार-सू ये जो बेकली है ये कौन है मिरे अंग अंग में बस गई ये जो शाइ'री है ये कौन है वो जो तीरगी थी वो कौन थी ये जो रौशनी है ये कौन है मुझे क्या ख़बर मुझे क्या पता ये जो बे-ख़ुदी है ये कौन है वो जो ग़म से चूर था कौन था जो ख़ुशी ख़ुशी है ये कौन है वो जो पहला दर्द था किस का था ये जो आख़िरी है ये कौन है

सफ़र के लाख हीले हैं

सफ़र के लाख हीले हैं ये दरिया तो वसीले हैं कहाँ से हो के आई है हवा के हाथ पीले हैं डसा है हिज्र ने हम को हमारे साँस नीले हैं ख़ुदाया ख़ुश्क रुत में भी हमारे नैन गीले हैं मैं शाइ'र हूँ मोहब्बत का मिरे दुख भी रसीले हैं अभी तो जंग जारी है मगर आ'साब ढीले हैं

समय जैसे गुजरता जा रहा है

समय जैसे गुजरता जा रहा है कोई दिल से उतरता जा रहा है बना था रेतली मट्टी से जीवन बिखरता ही बिखरता जा रहा है बिछे है जख्म मेरे फूल बन कर जमाना पांव धरता जा रहा है वो काजल है या आंसू या कोई ग़म मेरी आँखो मे भरता जा रहा है मुसाफिर दिल तेरी खामोशियो में बहुत तन्हा है,डरता जा रहा है

हिज्र की रात छोड़ जाती है

हिज्र की रात छोड़ जाती है नित-नई बात छोड़ जाती है इश्क़ चलता है ता-अबद लेकिन ज़िंदगी साथ छोड़ जाती है दिल बयाबानी साथ रखता है आँख बरसात छोड़ जाती है चाह की इक ख़ुसूसियत है कि ये मुस्तक़िल मात छोड़ जाती है मरहले इस तरह के भी हैं कि जब ज़ात को ज़ात छोड़ जाती है हिज्र का कोई ना कोई पहलू हर मुलाक़ात छोड़ जाती है

अशआर

कभी सहर तो कभी शाम ले गया मुझ से तुम्हारा दर्द कई काम ले गया मुझ से ***** उस के बारे में बहुत सोचता हूँ मुझ से बिछड़ा तो किधर जाएगा ***** उसे ज़ियादा ज़रूरत थी घर बसाने की वो आ के मेरे दर-ओ-बाम ले गया मुझ से ***** साँस लेता हूँ तो रोता है कोई सीने में दिल धड़कता है तो मातम की सदा आती है ***** मैं बे-ख़याल कभी धूप में निकल आऊँ तो कुछ सहाब मिरे साथ साथ चलते हैं ***** मिरे अंग अंग में बस गई ये जो शाइ'री है ये कौन है ***** अना की जंग में हम जीत तो गए लेकिन फिर उस के बाद बहुत देर तक निढाल रहे

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