हिन्दी कविताएँ : भूपेश प्रताप सिंह
Hindi Poetry : Bhupesh Pratap Singh
बह रही आज जब मधुर वात
झर- झर कर झरते पीत पात बह रही आज जब मधुर वात । तरु तन के अवयव शिथिल हुए जीवन झंझा से विकल हुए उर में ऊर्जित उल्लास लिए नीरसता तजने को व्याकुल नव वसन धारने को आतुर झर- झर कर झरते पीत पात बह रही आज जब मधुर वात । कोमल किसलय दल पाने को कलिका बनकर खिल जाने को पल्लव बन शीतल हाथों से जलधर को पास बुलाने को नवजीवन की आशा से भर झर- झर कर झरते पीत पात बह रही आज जब मधुर वात । परिवर्तन का स्वागत करने जीवन में मधुर गन्ध भरने सुरभित संसार बनाने को जीवन संघर्ष बताने को मारुत प्रहार से कम्पित हो झर- झर कर झरते पीत पात बह रही आज जब मधुर वात ।
आज नई ज्योति भरो
सूरज से ज्योति ले चन्दा से कान्ति ले नदियों से अविरल गति पंछी से गीत से भौंरों की गुनगुन से गाने की रीति सीख हर उदास चेहरे पर खुशियों की रेख खींच हृदय के ताप हर प्रेम के भाव भर दुनिया के जन-जन में धरती के कण -कण में आज नई ज्योति भरो । गाँव शहर गलियों में ,मुरझाई कलियों में जलते दीप के तले अन्न -फूल फलियों से नीरसता खींच-खींच श्रम जल से सींच-सींच नव प्राण भरते रहो अथक बन चलते रहो कल्पवृक्ष छाँव भी आलस न भरने पाए वसुधा के तृण -तृण में प्राणी के रग -रग में आज नई ज्योति भरो । युद्ध न होने पाए शान्ति न खोने पाए पत्थर की चोट सह क्रान्ति न रुकने पाए कण्ठ की वीणा साध गीत गुनगुनाते चलो सधे हुए कदमों से सृजन गीत गाते चलो दुनिया के घर -घर में जन- जन के उर-उर में आज नई ज्योति भरो ।