हिन्दी कविताएँ : डॉ. अनुराधा प्रियदर्शिनी

Hindi Poetry : Dr. Anuradha Priyadarshini


हे! अंबिका जगदंबिका माँ

हे अंबिका जगदंबिका माँ, मात तुम अंबालिका। त्रैलोक्य की आराधिका हो, जगत की संचालिका।। नवरात्रि का पावन दिवस है, अंबिका आती धरा। नौ रूप में पूजन यहाँ पर, सौभाग्य से जीवन भरा।। दिन-रात पूजन मात का हो, द्वार तोरण से सजा। नौ रात्रि माता अंबिका हैं, धर्म की फहरे ध्वजा।। हे अंबिका कल्याण करना, अश्रु भावों का चढ़ा। चौकी सजा आह्वान तेरा, हाथ अपना अब बढ़ा।। नैना निहारे मात आती, बालिका का रूप धर। ऊँचे पहाड़ी से उतर, द्वार आयी झोली भर।। आशीष देकर माँ मुझे भी, आप चरणों में धरो। कर दो कृपा अब मात अंबे, शक्ति मुझमें तुम भरो।।

राम का सुमिरन करो

राजा अवध के राम जी हैं, आगमन उनका हुआ। दरबार उनका सज गया है, तेज रवि का है छुआ।। पालक हमारे राम ही हैं, राम का सुमिरन करो। सच्चे हृदय में राम रहते, भक्ति रस से हिय भरो।। जब भी किसी ने राम बोला, राम को पाया निकट। हनुमत हृदय में जो विराजे, भक्त से जाते लिपट।। पूरी हुई सब कामना जो, राम से हमने कही। आशीष उनका मिल रहा है, प्रीत की नदिया बही।। आसक्ति से तुम दूर होकर, धाम को जाया करो। आदर्श जीवन का दिये हैं, भावना मन में धरो।। सत्संग से जुड़ना भला है, नाम की महिमा गुनो। मोती मिला अनमोल गूंथों, राम की गाथा सुनो।।

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