हिन्दी कविताएँ : अनोप भाम्बु

Hindi Poetry : Anop Bhambu


कर्ज की किरण

झोपड़ी की छत टपकती थी, पर सपने फिर भी चमकते थे। सूखी रोटियों में स्वाद नहीं, मगर माँ-बाप के इरादे भड़कते थे। पिता की हथेली फटी हुई, माँ के पाँव में छाले थे। बेटा पढ़ेगा, बेटी बढ़ेगी, बस यही तो उनके ख़्वाब निराले थे। सूद पर कर्ज लिया था तब, जब दवा के लिए पैसे नहीं थे। बेटी की शादी के वक्त, गहने नहीं, आँसू बेचे थे। हर महीने सूद बढ़ता गया, पर उम्मीद कभी कम न हुई। गरीबी ने कितना भी दबाया, पर हिम्मत ने हार न मानी कभी। रात के खाने से पहले, कर्ज की चर्चा होती थी। "कब चुकाएंगे सब?" ये बात हर बार खामोशी में रोती थी। पर एक दिन उसी घर से, एक अफसर निकला चमकता हुआ। बेटा नौकरी पे लग गया, बेटी बन गई दीपक-सा उजाला हुआ। अब कर्ज की वो किरण, गर्व की रौशनी बन गई। जो कभी बोझ थी, आज सम्मान की कहानी बन गई।

पिता का साया

छांव बनें जो धूप में, वो हैं मेरे पापा, हर मुश्किल में साथ दें, जैसे हो दुआ सच्चा। हँसी छुपा के ग़म सहे, कुछ कहे बिना, पल-पल करते फिक्र मेरी, बस चुपचाप सदा। कंधों पर जो चढ़ा दिया था आसमाँ मुझे, आज भी वो उम्मीदों का आकाश हैं वही। थकते नहीं, रुकते नहीं, बस चलते जाते, मेरी ख़ुशी में ही वो अपना सुख पाते। संघर्ष की किताब के वो हर शब्द बने, मेरे जीवन की नींव में वो स्तम्भ बने। पिता सिर्फ़ रिश्ता नहीं, एक जीवन मंत्र है, उनकी छाया में ही तो मेरा अस्तित्व केंद्रित है। —समर्पित हर उस पिता को, जो बिना कहे सब कुछ दे जाते है।

प्रकृति को मत दो तुम आँसू

प्रकृति को मत दो तुम आँसू, मत करो इसका अब अपमान। हरी-भरी धरती मुस्काए, रखो सहेजकर इसका मान। पेड़ कटे तो छाँव घटेगी, नदियाँ सूखी, प्यास बढ़ेगी। जो बर्बादी अब तुम बोओगे, कल की पीढ़ी वही सहेगी। चिड़ियाँ गाए मीठे गाने, मत छीनो उनके आशियाने। हरियाली का दीप जलाकर, धरती को फिर स्वर्ग बनाओ। बूँद-बूँद को यदि बचा लोगे, कल न सूखी झीलें पाओगे। नदियाँ फिर से गीत सुनाएँ, सावन के मेघ मुस्काएँ। सूरज, चाँद, हवा, ये धरती, सबने हम पर है उपकार। प्रकृति हमारी माँ के जैसी, करो न इसका तुम संहार। आओ मिलकर प्रण यह लें, धरती को न रुलाएँगे। पेड़ लगाएँ, जल बचाएँ, प्रकृति का सम्मान बढ़ाएँ। प्रकृति को मत दो तुम आँसू, मत करो इसका अब अपमान!!

मां की महिमा

नवरात्रा का पावन पर्व है आया, माँ का नाम हर दिल में समाया। भक्ति-भाव से करें आराधना, माँ की कृपा से मिले साधना। नौ दिन तक जगदंबा पूजित, संकट हरने माता विराजित। शैलपुत्री से होती शुरुआत, सिद्धिदात्री करें सबकी बात। डांडिया की थाप है प्यारी, माँ के गीतों से दुनिया सारी। उज्ज्वल दीप जलाते हम, माँ के चरणों में शीश झुकाते हम। शक्ति, भक्ति, ज्ञान की ज्योति, माँ की कृपा से कटे विपत्ति। सच्चे मन से जो ध्यान लगाए, माँ हर दुःख को दूर भगाए।

किताबों की दुनिया

किताबों की है दुनिया न्यारी, हर पन्ना कहता है कहानी प्यारी। कभी जंगल, कभी पहाड़, कभी उड़ें हम तारों के पार। राजा-रानी, परियाँ भोली, कभी कोई चुन्नू की टोली। दादी वाली बातों जैसा, हर किस्सा हो जाए खासा। चित्र रंग-बिरंगे झलकें, मन के सारे दरवाज़े खुलें। पढ़ते-पढ़ते हँसी भी आए, दिल भी कुछ सच्चा समझ पाए। चलो किताबों से दोस्ती करें, हर दिन कुछ नया सीखें, पढ़ें। ये सच्चे साथी, ज्ञान की खान, किताबों से ही बने पहचान।

स्कूल की घंटी

छन-छन छनक उठी घंटी प्यारी, स्कूल में लाई सुबह हमारी। नींद भरी आँखों में सपना, घंटी ने कह दिया “अब चलना!” पहली घंटी “झटपट आओ, किताब-कॉपी सब खोल लाओ।” दूसरी घंटी “अब चुप बैठो, गिनती-पहाड़े याद तो कहो!” तीसरी घंटी “चलो खेलें, दोस्तों संग मैदान झेलें।” चौथी घंटी “पानी पी लो, फिर से पढ़ने की बात कर लो।” आख़िर में जब बजी अंतिम, बच्चों का चेहरा हो गया खिलखिल। “छुट्टी! छुट्टी!” सबने चिल्लाया, घंटी का जादू फिर रंग लाया।

राम लला आए हैं

राम लला आए हैं, दीप जलाओ, भक्ति की गंगा में मन को बहाओ। सदियों की आस हुई अब पूरी, अयोध्या नगरी सजी है सुरभि। मंदिर के द्वार खुले आनंद से, हर मुख पर जयकारे हैं वंदन से। शंखनाद से गूंज उठी ये धरा, राम लला ने खुद रखी है कदम धरा। सूर्य सा तेज, चंद्र सी शीतलता, करुणा का सागर, प्रेम की मूरत। हर हृदय में राम बसे हैं, हर द्वार पर मंगल घुंघरू बजे हैं। भक्तों की आंखों में आंसू हैं छाए, शताब्दियों की पीड़ा में सुख के साए। अयोध्या नगरी हर्ष से नहाई, राम लला आए हैं, खुशहाली लाई।

भारत माँ, तुझे प्रणाम

भारत माँ, तुझे प्रणाम, तेरे चरणों में अर्पित है मेरा हर एक काम। तेरी मिट्टी में है चंदन की बात, तेरे आँचल में है प्रेम की सौगात। तू पर्वतों की ऊँचाई है, गंगा-सी निर्मल छाया है। तेरे बेटे जब रण में जाएं, तेरा नाम ही होंठों पर लाएं। तू भगवती, तू दुर्गा रूप, तेरे लिए ही चलती यह धूप। हर किसान तेरा सपूत, हर जवान तेरा मजबूत। तेरी खातिर जीना-मरना, हर भारतवासी का है सपना सुनहरा। नमन तुझे, हे भारत माँ, तेरे चरणों में हमारा जहाँ।

पिता की परछाईं

हर सुबह दरवाज़े पर अब वो आवाज़ नहीं आती, "उठ जा बेटा, देर हो रही है..." वो मीठी झिड़की अब बहुत याद आती है। कभी जो साए की तरह मेरे पीछे-पीछे चलते थे, आज वो बस यादों के धुंधलके में मुस्कुराते मिलते हैं। आपके बिना घर तो है, पर घर जैसा कुछ नहीं, आपकी हँसी की गूँज के बिना ये दीवारें भी चुप हैं कहीं। वो सिखाया हर सबक, अब जीवन की मशाल बन गए, आप तो चले गए पापा... पर दिल में अमिट सवाल बन गए। हर मुश्किल में आज भी आपकी आँखें याद आती हैं, जिनमें निश्चिंतता थी कि "मैं हूँ ना, डर मत।" आप थे तो सब कुछ था, अब आप नहीं हैं, तो सब अधूरा लगता है फिर भी जी रहा हूँ, क्योंकि आपकी सीख में ही मेरी सांसें चलती हैं।

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